आगरा । पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल ने अपने अकाउंट को लेकर चल रहे विवाद में लगता है कि खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, और अपने आपको ज्यादा बड़ी मुसीबत में फँसा लिया है ? पारस अग्रवाल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही कहना है कि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह की अधिकृत शिकायत पर, लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून के तहत मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में जाँच कमेटी बनने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पारस अग्रवाल ने अधिकृत शिकायत को निरस्त करने की माँग करके मामले को पूरी तरह से पलटते हुए लोगों के बीच गड़बड़ी के संदेहों को बढ़ा दिया है, जिसके चलते मधु सिंह के आरोपों को गंभीरता से देखा जाने लगा है और मधु सिंह के आरोपों को जैसे नया जीवन मिल गया है । पारस अग्रवाल की उक्त माँग आने से पहले तक सीन यह बन गया था कि मधु सिंह के आरोपों पर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने दिलचस्पी खो दी थी, और लोग समझने/मानने लगे थे कि मधु सिंह किसी निजी खुन्नसबाजी में पारस अग्रवाल को परेशान और बदनाम कर रही हैं । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में भी जाँच की जो कार्रवाई होनी थी, उसके 'समीकरण' भी पारस अग्रवाल के हक में थे, और पक्ष-विपक्ष के लोग मान रहे थे कि उक्त जाँच में पारस अग्रवाल को क्लीन चिट मिल जायेगी । लेकिन पारस अग्रवाल ने अधिकृत शिकायत को रद्द करने की माँग करके तथा शुरू हुई जाँच प्रक्रिया को रुकवा कर एक मरते हुए मामले को फिर से जिंदा कर दिया है ।
दरअसल, लोगों के बीच सवाल पैदा हुआ है कि पारस अग्रवाल जाँच को रोकना क्यों चाहते हैं ? इसी से लोगों के बीच संदेह बढ़ा है कि जरूर ही उनके अकाउंट में बड़ा झोलझाल है, और इसीलिए जाँच की प्रक्रिया के शुरू होने ने उन्हें डरा दिया है और वह जाँच को रोकने की कोशिशों में जुट गए हैं । पारस अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि जाँच को रोकने के लिए उन्होंने जो कारण बताया है, वह लोगों को नियमानुसार उचित नहीं लग रहा है और उसे एक बहानेबाजी के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । पारस अग्रवाल ने कारण बताया है कि अकाउंट के पास होने के बाद शिकायत करने के लिए जो समयसीमा तय है, मधु सिंह की शिकायत उस समयसीमा के समाप्त होने के बाद आई है, इसलिए उनकी शिकायत को अमान्य किया जाना चाहिए और उसके आधार पर कोई जाँच नहीं होना चाहिए । लेकिन पारस अग्रवाल जिस समयसीमा का वास्ता दे रहे हैं, वह अकाउंट के 'फाइनली' पास होने पर लागू होता है - अकाउंट फाइनली मल्टीपल कन्वेंशन में पास होते हैं, जो अभी हुई ही नहीं है । अभी तो उनके अकाउंट को मल्टीपल बोर्ड ने पास किया है, फाइनली पास तो उन्हें तब माना/कहा जायेगा, जब वह कन्वेंशन में पास होंगे । इसलिए जिस नियम का हवाला देकर पारस अग्रवाल ने बचने की कोशिश की है, वह नियम अभी लागू ही नहीं होता है । लोगों को लगता है कि पारस अग्रवाल ने सोचा होगा कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर क्षितिज शर्मा नाम की जो एक कठपुतली है, वह वही करेगी जैसा वह कहेंगे/चाहेंगे - लेकिन पारस अग्रवाल ने यह नहीं सोचा होगा कि जाँच से बचने की उनकी कोशिश उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाये और बढ़ाने का ही काम करेगी ।
पारस अग्रवाल के अकाउंट का मामला दरअसल परसेप्शन का मामला है । अकाउंट में झोलझाल यदि साबित भी हो जाता है, तो क्या होगा ? लायंस व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान तो है नहीं ! ऐसे में, मधु सिंह की कोशिश इतनी ही लगती है कि वह पारस अग्रवाल को बदनाम करें, और इसके लिए वह लोगों के बीच संदेह तो पैदा कर ही दें । मधु सिंह ने इसके लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हो रहे थे - और उनके आरोपों में दिलचस्पी व मजे लेने वाले लोग भी निराश हो चले थे । उनकी निराशा मधु सिंह द्वारा मल्टीपल में अधिकृत शिकायत दर्ज करवाने तथा उनकी शिकायत पर जाँच की प्रक्रिया शुरू होने से भी दूर नहीं हुई । हर किसी को लग रहा था कि मल्टीपल में होने वाली जाँच को पारस अग्रवाल 'मैनेज' कर लेंगे, और मधु सिंह की यह कोशिश भी व्यर्थ ही जायेगी । लेकिन पारस अग्रवाल ने मधु सिंह की शिकायत को रद्द करने का आवेदन दे कर अपने अकाउंट को संदेहजनक बना लिया है - और इस तरह जो काम, मधु सिंह लगातार सक्रियता दिखा/बना कर नहीं कर पा रही थीं, उसे खुद पारस अग्रवाल ने एक गलत कदम उठा कर दिया है । पारस अग्रवाल जाँच तो रुकवा लेंगे, लेकिन इससे उन्होंने मल्टीपल के लोगों के बीच यह संदेह और सवाल पैदा कर दिया है कि उनके अकाउंट में यदि कोई झोलझाल नहीं है, तो वह जाँच से डर क्यों रहे हैं ?