Wednesday, October 31, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में 'तटस्थ' रहने के चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर पैदा हुई विनोद बंसल की मुसीबत रंजन ढींगरा या अशोक गुप्ता को सचमुच फायदा पहुँचा सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । अनूप मित्तल की चुनावी जीत के रूप में मिले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी नतीजे ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट में बन सकने वाले समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है, जिसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के संभावित उम्मीदवारों में दीपक कपूर और विनोद बंसल के लिए चुनौती तथा रंजन ढींगरा व अशोक गुप्ता के लिए लाभ की स्थिति देखी/पहचानी जा रही है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक कंतूर को जितवाने में जो लोग लगे थे, उन्हें खेमेबाजी के लिहाज से दीपक कपूर के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । दीपक कपूर का डिस्ट्रिक्ट में यूँ तो कोई समर्थन नहीं है, लेकिन माना/समझा जा रहा है कि वह यदि राजा साबू खेमे के उम्मीदवार 'बने' तो फिर डिस्ट्रिक्ट के कुछेक 'उन' लोगों का समर्थन उन्हें मिलेगा - जो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के पीछे थे । उन लोगों के बीच तो यहाँ तक चर्चा रही कि दीपक कपूर की तरफ से रवि चौधरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए उम्मीदवार होंगे । समझा जाता है कि अपनी 'उक्त' उम्मीदवारी के लिए अपने दावे को मजबूत करने के उद्देश्य से ही रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था । अशोक कंतूर की हार से लेकिन रवि चौधरी की उक्त उम्मीदवारी पर सवालिया निशान लग गया है, और यह स्थिति दीपक कपूर के लिए मुसीबत भरी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अनूप मित्तल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले वह लोग थे, जिन्हें इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के खेमे में देखा/पहचाना जाता है । अनूप मित्तल की चुनावी जीत से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में स्वाभाविक रूप से इस खेमे का 'वजन' बढ़ा है । इस बढ़े 'वजन' का फायदा जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में लेकिन किसे मिलेगा - यह बड़ा सवाल है ? 
बड़ा सवाल इसलिए, क्योंकि सुशील गुप्ता के खेमे के समर्थन की उम्मीद तीन अन्य संभावित उम्मीदवार - रंजन ढींगरा, विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट 3054 के अशोक गुप्ता कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3011 में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल की भूमिका चूँकि संदेहास्पद रही, इसलिए सुशील गुप्ता के खेमे का समर्थन उन्हें मिल पाना चुनौतीपूर्ण बन गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल ने अपने आप को तटस्थ 'दिखाया' हुआ था । चुनावी राजनीति में वास्तव में तटस्थता जैसी कोई चीज होती नहीं है, उसे बहानेबाजी के रूप में ही लिया/देखा जाता है । सुशील गुप्ता के खेमे के लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में खेमे को जब उनकी मदद की जरूरत थी, विनोद बंसल तब तटस्थ हो गए; इसी तर्ज पर जब विनोद बंसल को इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए मदद की जरूरत होगी, तब यदि खेमे के लोग तटस्थ हो गए - तो क्या होगा ? विनोद बंसल की तटस्थता संदेहास्पद इसलिए भी बनी, क्योंकि विनोद बंसल के नजदीकी अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन में सक्रिय थे । इससे लोगों के बीच संदेश यह गया कि विनोद बंसल दोनों तरफ तार जोड़े हुए थे, और यह संदेश इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उनकी उम्मीदवारी की तैयारी को नुकसान पहुँचाने का काम करता है । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि विनोद बंसल को होता दिख रहा यह नुकसान तात्कालिक ही है; क्योंकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी घमासान में रंजन ढींगरा इस स्थिति का फायदा उठा नहीं सकेंगे - और तब  विनोद बंसल इस नुकसान की भरपाई कर लेंगे ।
कई लोगों का लेकिन यह भी मानना/कहना है कि यदि सचमुच रंजन ढींगरा अपनी तैयारी में 'कमजोर' पड़े या नजर आये तो इसका फायदा उठाने का प्रयास डिस्ट्रिक्ट 3054 के अशोक गुप्ता भी करेंगे - और यह स्थिति विनोद बंसल के लिए मुसीबत पैदा करेगी । डिस्ट्रिक्ट 3011 में अशोक गुप्ता के समर्थक भी हैं, जो उन लोगों के लिए अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में आने का रास्ता बना सकते हैं - जो खेमे में होने के बावजूद विनोद बंसल के समर्थन में किसी भी कारण से नहीं जाना चाहेंगे । किसी एक डिस्ट्रिक्ट में होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हालाँकि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों के ही बनने/बिगड़ने का मौका होता है, और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को सीमित रूप में ही - ज्यादा से ज्यादा उसके लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए होने वाले चुनाव को - प्रभावित करने की क्षमता रखता है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3011 की बात जरा निराली है । अब तो यह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का डिस्ट्रिक्ट भी बन गया है; इस डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए तीन उम्मीदवारों की चर्चा तो अभी से ही - जो इस डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक उर्वरता को दर्शाती है । दरअसल इसी कारण से इस वर्ष यहाँ हुआ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव खासा महत्त्वपूर्ण हो गया - और इसे राजा साबू व सुशील गुप्ता खेमे के बीच हुए चुनाव के रूप में देखा/पहचाना गया । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थक राजा साबू खेमे के नेताओं ने इस चुनाव की आड़ में वास्तव में बहुत ही आक्रामक तरीके से राजनीति की, जैसे उनके लिए यह चुनाव जीने/मरने का मामला हो - और उन्हें किसी भी तरह से इसे जीतना ही था । अनूप मित्तल की चुनावी जीत ने लेकिन उनके सारे मंसूबों पर पानी फेर दिया और इस स्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए दीपक कपूर और विनोद बंसल के लिए अलग अलग कारणों से मुसीबत पैदा कर दी है ।

Monday, October 29, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर की पराजय का ठीकरा विनोद बंसल व विनय भाटिया के सिर फोड़ने की रवि चौधरी की कोशिश ने अगले वर्ष में उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे अजीत जालान के लिए मुश्किलें बढ़ाईं

नई दिल्ली । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों का डर अंततः सही साबित हुआ और रवि चौधरी की बदनामी तथा लगातार जारी उनकी हरकतें अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के लिए विनाशकारी साबित हुईं । उल्लेखनीय है कि 'रचनात्मक संकल्प' की 24 सितंबर की रिपोर्ट में अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई एक समर्थकों के हवाले से बताया गया था कि रवि चौधरी की बदनामी तथा लगातार जारी उनकी हरकतों ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के अभियान को कभी भी 'उठने' नहीं दिया और अब जब चुनाव सिर पर आ गए हैं - तो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का अभियान संकट में फँसा दिख रहा है । अशोक कंतूर के नजदीकियों को अफसोस है कि समर्थकों की इतनी स्पष्ट चेतावनी के सामने आने के बाद भी अशोक कंतूर ने सावधानी नहीं बरती और वह लगातार रवि चौधरी के भरोसे ही बने रहे और आए नतीजे में हार को प्राप्त हुए । अशोक कंतूर ने दरअसल अपने समर्थकों की चेतावनी और हिदायतों की बजाये रवि चौधरी के उस दावे पर ज्यादा भरोसा किया, जिसमें रवि चौधरी ने घोषणा की हुई थी कि उन्हें चाहें जो करना पड़े - वह अशोक कंतूर को चुनाव जितवायेंगे ही । मजे की बात यह रही कि रवि चौधरी सिर्फ अशोक कंतूर को ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं 'चुनवा/बनवा' रहे थे, बल्कि अपने आप को अशोक कंतूर के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में भी बता/दिखा रहे थे और ऐसा करते हुए उन्होंने लोगों को 'उस' वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम की पोस्ट देने/बाँटने का काम भी शुरू कर दिया था । रवि चौधरी की इस हरकत ने अशोक कंतूर की चुनावी संभावनाओं को खासी तगड़ी चोट दी, जिसका नतीजा उनकी हार के रूप में निकला । 
रवि चौधरी ने हालाँकि 'चाहें जो करना पड़े' वाली अपनी घोषणा पर अमल करने में कोई कसर नहीं छोड़ी । उन्होंने प्रेसीडेंट्स के साथ बदतमीजी करके, उन्हें धमकाने के जरिये और यहाँ तक कि उनके 'अपहरण' तक करके वोट जुटाने/बटोरने का प्रयास किया । हरियाणा के एक क्लब के प्रेसीडेंट को उसके घर से उठा/उठवा कर अपने सामने वोट डलवाने की कोशिश की पोल खुलने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया द्वारा कड़ा रवैया अपनाने के बाद रवि चौधरी की मुहिम को थोड़ा झटका तो लगा था, लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आए । रवि चौधरी की हरकतों के चलते अशोक कंतूर को सबसे बड़ा झटका पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच नाराजगी पैदा होने के चलते लगा । असल में, रवि चौधरी की बदतमीजीपूर्ण हरकतों को देखते हुए अधिकतर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को लगा कि वह यदि चुपचाप बैठे तमाशा देखते रहे तो रवि चौधरी की हरकतें डिस्ट्रिक्ट 3011 की पहचान व साख को कलंकित ही करेंगी । डिस्ट्रिक्ट की पहचान व साख को बचाए रखने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने सक्रियता दिखाई, तो उनकी सक्रियता अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का कारण बनी । अशोक कंतूर के लिए रवि चौधरी की बदनामी और हरकतें इस हद तक मुश्किलें बढ़ाने वाली साबित हुईं कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल जैसे उनके घनघोर समर्थक तक उनके विरोधी हो गए । उल्लेखनीय है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को शुरू से ही विनोद बंसल का समर्थन था; जिसके चलते विनोद बंसल ने अनूप मित्तल को रास्ते से हटाने के उद्देश्य से सुझाव भी दिया था कि उन्हें दो-तीन वर्ष लोगों के बीच मैच्योर तरीके से काम करना चाहिए और फिर उम्मीदवार के रूप में आना चाहिए । लेकिन अशोक कंतूर के समर्थक के रूप में रवि चौधरी की हरकतों को देखते हुए विनोद बंसल ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन से हाथ खींच लिया । विनोद बंसल ने अपनी तरफ से हालाँकि चुनाव से दूर रहने तथा तटस्थ होने का दावा किया, लेकिन अशोक कंतूर के समर्थकों/नजदीकियों का कहना रहा कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के समीकरणों को देखते/समझते हुए विनोद बंसल पाला बदल कर अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक हो गए हैं ।
रवि चौधरी ने अशोक कंतूर की पराजय का ठीकरा विनोद बंसल और विनय भाटिया के सिर फोड़ते हुए उन पर धोखा देने का आरोप लगाया है । रवि चौधरी के लिए परेशानी और चिंता की बात दरअसल यह हो गई है कि अशोक कंतूर की पराजय के लिए यदि सचमुच उन्हें ही जिम्मेदार मान लिया गया, तो उनकी तो राजनीति ही चौपट हो जायेगी । इसलिए रवि चौधरी ने गिनाना/बताना शुरू किया है कि अशोक कंतूर को किन किन क्लब्स के और कितने वोट उनके कारण मिले हैं । रवि चौधरी का दावा है कि वह सहयोग और समर्थन यदि न करते तो अशोक कंतूर को आधे वोट भी नहीं मिल पाते । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल और विनय भाटिया यदि धोखा न देते तो अशोक कंतूर ही विजयी होते । डिस्ट्रिक्ट में मजेदार सीन यह बना दिख रहा है कि अधिकतर लोग डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर की पराजय के लिए जहाँ रवि चौधरी की बदनामी और उनकी हरकतों को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं, वहीं रवि चौधरी दावा कर रहे हैं कि उनके कारण ही अशोक कंतूर को ठीक ठाक वोट मिल सके हैं, अन्यथा अशोक कंतूर की बहुत ही बुरी हालत होती । अशोक कंतूर की पराजय से अजीत जालान के लिए अजीब सी समस्या पैदा हो गई है । अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने की मुहिम में रवि चौधरी के साथ बढ़चढ़ कर भूमिका निभाने वाले अजीत जालान को अगले रोटरी वर्ष के चुनाव में रवि चौधरी ने अपना उम्मीदवार बनाने की घोषणा की हुई है । रवि चौधरी की बदनामी और उनकी हरकतों के कारण अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के हश्र ने लेकिन अजीत जालान को डरा दिया है । अजीत जालान को लग रहा है कि रवि चौधरी के उम्मीदवार होने का ठप्पा लगने से कहीं उनका हाल भी अशोक कंतूर जैसा न हो । अजीत जालान के सामने समस्या की बात यह भी है कि अशोक कंतूर यदि अगले वर्ष फिर उम्मीदवार हुए तो उनकी उम्मीदवारी का क्या होगा ?

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के नियमों की अनदेखी करते हुए धीरज खंडेलवाल द्वारा मुंबई में आयोजित किए गए 'एसएमई लीडर अवॉर्ड' पर प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की मजबूरीभरी चुप्पी इंस्टीट्यूट में अराजकता का सुबूत नहीं है क्या ?

मुंबई । सेंट्रल काउंसिल सदस्य धीरज खंडेलवाल ने मनमाने तरीके से 'एसएमई लीडर अवॉर्ड्स' के आयोजन के जरिये इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के लिए किरकिरी वाले हालात बना दिए हैं । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच ही कहा/सुना जाता है कि नवीन गुप्ता कहने को तो इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट जैसे बड़े पद पर हैं, लेकिन उनकी दशा मंदिर के उस घंटे की तरह है - जिसे कोई भी जब चाहे तब 'बजा' देता है और नवीन गुप्ता इस 'बजाये' जाने को असहाय देखते रहते हैं । धीरज खंडेलवाल ने 'एसएमई लीडर अवॉर्ड्स' के जरिये जो हरकत की है, उस पर नवीन गुप्ता की असहायता का आलम यह है कि अन्य कुछेक लोगों के साथ एसबी जावरे, संजीव चौधरी, एनसी हेगड़े जैसे सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने जो स्पष्टीकरण माँगे हैं - नवीन गुप्ता के लिए उनका जबाव तक देना मुश्किल हो रहा है,  और वह इनके सवालों से मुँह छिपाते फिर रहे हैं । 'एसएमई लीडर अवॉर्ड्स' को लेकर जो सवाल उठ रहे हैं, वह बड़े साधारण से हैं : इस आयोजन को क्या काउंसिल की अनुमति थी; इस आयोजन के लिए बजट तय व पास हुआ था क्या; आयोजन की स्पॉन्सरिंग के लिए काउंसिल की अनुमति थी क्या ? सेंट्रल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा लिखित रूप में पूछे गए इन सवालों पर नवीन गुप्ता ने लेकिन चुप्पी साधी हुई है । मजे की बात यह है कि नवीन गुप्ता ने अभी पिछले दिनों ही ऐलान किया था कि इंस्टीट्यूट के आयोजनों में स्पॉन्सरशिप नहीं ली जाएगी । धीरज खंडेलवाल ने लेकिन उनके ऐलान की अनदेखी करते हुए 'एसएमई लीडर अवॉर्ड्स' को स्पॉन्सर करा लिया । इससे लगता है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच नवीन गुप्ता की कोई इज्जत ही नहीं है, और जिसे जैसा जो मन करता है वह खुल्लमखुल्ला मनमानी करता है ।
इस मामले में सेंट्रल काउंसिल में गवर्नमेंट नॉमिनी विजय झालानी का रवैया भी बड़ा मजेदार है । अभी पिछले दिनों उन्होंने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग में अड़ंगा डाल कर उसे होने नहीं दिया था, क्योंकि उस मीटिंग के लिए चेयरमैन की सहमति नहीं थी । उनका कहना था कि वह इंस्टीट्यूट में कोई गलत काम नहीं होने दे सकते हैं । विजय झालानी लेकिन धीरज खंडेलवाल द्वारा काउंसिल को इग्नोर करके मनमाने तरीके से 'एसएमई लीडर अवॉर्ड' का आयोजन करने के मामले में चुप्पी साधे बैठे हुए हैं, जबकि वह आयोजक कमेटी के सदस्य भी हैं । 'एसएमई लीडर अवॉर्ड्स' का आयोजन कमेटी फॉर मेंबर्स इन इंडस्ट्रीज एंड बिजनेस द्वारा किया गया, जिसके चेयरमैन धीरज खंडेलवाल हैं । कमेटी के 'मिशन' और ऑब्जेक्टिव्स' तो बहुत व्यापक हैं, लेकिन धीरज खंडेलवाल ने अपनी छोटी सोच के चलते उन 'मिशन' व 'ऑब्जेक्टिव्स' को अवॉर्ड देने तक सीमित कर दिया है । धीरज खंडेलवाल को पता था कि इस तरह के मनमाने आयोजन के लिए काउंसिल से उन्हें अनुमति नहीं मिलेगी, लिहाजा वह अनुमति लेने के चक्कर में पड़े ही नहीं । लोगों के बीच चर्चा है कि यह आईडिया उन्हें इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने दिया होगा; समझा जाता है कि उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने उनसे कहा होगा कि जैसा जो चाहें कर लो - बाद में काउंसिल की मीटिंग में शोर-शराबा होगा, उसे बेशर्मी के साथ झेल लेना; इससे ज्यादा क्या होगा ? धीरज खंडेलवाल को यह आईडिया कुछ ज्यादा ही पसंद आ गया है । उन्होंने 'एसएमई लीडर अवॉर्ड' का आयोजन तो कर ही लिया है, साथ ही दूसरे देशों में काम कर रहे इंस्टीट्यूट के सदस्य चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भी अवॉर्ड्स फंक्शन करने की घोषणा कर चुके हैं, और जिसके आयोजन के लिए भी उन्होंने काउंसिल से कोई अनुमति नहीं ली है ।
धीरज खंडेलवाल की इस हरकत पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य खासे खफा हैं, और इसी कारण से वेस्टर्न रीजन तक का कोई सेंट्रल काउंसिल सदस्य उक्त अवॉर्ड फंक्शन में नहीं गया । वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के भी गिनती के वही सदस्य आयोजन में उपस्थित नजर आये, जिन्हें उत्तम प्रकाश अग्रवाल के 'आदमियों' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । उत्तम प्रकाश अग्रवाल ने ही अवॉर्ड बाँटने का काम किया । वह इस आयोजन की आयोजक कमेटी - कमेटी फॉर मेंबर्स इन इंडस्ट्रीज एंड बिजनेस में को-ऑप्टेड सदस्य भी हैं । किसी पूर्व प्रेसीडेंट का किसी कमेटी में को-ऑप्टेड होना उसके पद की गरिमा के अनुरूप नहीं देखा/पहचाना जाता है; इसीलिए अन्य कोई पूर्व प्रेसीडेंट किसी कमेटी में को-ऑप्टेड नहीं है - लेकिन उत्तम प्रकाश अग्रवाल के लिए पद की गरिमा जैसी चीजों का कोई महत्त्व नहीं है, और इसलिए उन्हें प्रायः नियम विरुद्ध होने वाले आयोजनों में देखा जाता है । 'एसएमई लीडर अवॉर्ड' को भी उत्तम प्रकाश अग्रवाल के आयोजन के रूप में देखा/पहचाना गया है, जिसमें धीरज खंडेलवाल की भूमिका को कठपुतली के रूप में देखा/समझा गया है । धीरज खंडेलवाल को लोगों के बीच उत्तम प्रकाश अग्रवाल की 'कठपुतली' के रूप में ही पहचाना जाता है । लोगों के बीच चर्चा है कि उत्तम प्रकाश अग्रवाल की शह पर ही धीरज खंडेलवाल ने काउंसिल और प्रेसीडेंट की अवहेलना करके 'एसएमई लीडर अवॉर्ड' का आयोजन कर लिया है, और इंटरनेशनल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए अवॉर्ड्स के आयोजन की तैयारी कर रहे हैं - और प्रेसीडेंट बेचारा मजबूर सा बना चुपचाप सारा तमाशा देख रहा है ।

Sunday, October 28, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने के मामले में मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के स्पष्टीकरण से खुली पोल ने प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता के सामने फजीहतभरी शर्मनाक स्थिति पैदा की

नई दिल्ली । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट मोहित बंसल के मामले में मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के एक स्पष्टीकरण ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की ऐसी फजीहत की है कि उनके लिए मुँह छिपाना तक मुश्किल हो गया है । मामला वर्षों पहले, मोहित बंसल के चार्टर्ड एकाउंटेंट बनने से भी पहले उनके खिलाफ बने/चले एक आपराधिक मुकदमे में अपराध सिद्ध होने तथा सजा होने का झूठा दावा करते हुए इंस्टीट्यूट से उनकी सदस्यता खत्म करने/करवाने से जुड़ा है । वर्षों पहले के उक्त मामले में मोहित बंसल को दिल्ली हाईकोर्ट से अपराधमुक्त किए जाने का फैसला हुआ था । लेकिन षड्यंत्रपूर्ण तरीके से 14 जून को हुई सेंट्रल काउंसिल की मीटिंग में अतुल गुप्ता के साथ मिल कर नवीन गुप्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को छिपाते हुए और निचली अदालत से मोहित बंसल को सजा होने वाले फैसले को आधार बनाते हुए मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए माहौल बनाया । वह तो मोहित बंसल की खुशकिस्मती थी कि उस दिन फैसला नहीं हो सका, हालाँकि अतुल गुप्ता और नवीन गुप्ता ने मोहित बंसल की सदस्यता खत्म करने का फैसला करने की पूरी तैयारी की हुई थी । मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स, जिसे एक तरह से इंस्टीट्यूट की पैरेंट बॉडी के रूप में देखा/पहचाना जाता है और इंस्टीट्यूट को जिसके प्रति जबावदेह समझा जाता है, के इस मामले में सामने आए स्पष्टीकरण से यह साबित हो गया है कि जिस आधार पर नवीन गुप्ता ने मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने की तैयारी की थी, वास्तव में वह कोई आधार बनता ही नहीं है । नवीन गुप्ता के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि इस स्पष्टीकरण से यह भी साबित हुआ है कि प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता को नियमों की या तो सही सही समझ नहीं है, और या अपने निजी स्वार्थ के चक्कर में या अपने 'घोंचूपने' में वह उन्हें समझना ही नहीं चाहते हैं ।
मोहित बंसल के मामले में, शुरू से ही माना/समझा गया है कि सारा प्लॉट वास्तव में सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता द्वारा रचा गया था, और नवीन गुप्ता तो अतुल गुप्ता के षड्यंत्र का शिकार हो गए हैं । अतुल गुप्ता दरअसल मोहित बंसल की पत्नी पूजा बंसल से खफा रहे हैं । पूजा बंसल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी हैं और सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार हैं । सेक्रेटरी के रूप में पूजा बंसल द्वारा लिए गए कुछेक फैसलों तथा सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई उनकी उम्मीदवारी ने अतुल गुप्ता को प्रशासनिक व राजनीतिक स्तर पर खासा झटका पहुँचाया है । अतुल गुप्ता ने कई अवसरों पर पूजा बंसल पर बड़ी राजनीति करने का आरोप लगाया है; जिसके कारण हालाँकि लोगों की तरफ से उन्हें सुनने को भी मिला कि पूजा बंसल यदि अपने फैसलों के जरिये सचमुच कोई राजनीति कर भी रही हैं, और उनके फैसलों से प्रोफेशन से जुड़े लोगों को तथा इंस्टीट्यूट को यदि फायदा हो रहा है, तो इसमें बुराई क्या है ? पूजा बंसल और मोहित बंसल की सेंट्रल काउंसिल सदस्य संजय अग्रवाल से नजदीकी को देखते/पहचानते हुए अतुल गुप्ता को पूजा बंसल के फैसलों के पीछे संजय अग्रवाल का हाथ भी 'दिखाई' दिया । संजय अग्रवाल के वोटरों पर अतुल गुप्ता की नजर है, लेकिन पूजा बंसल की उम्मीदवारी प्रस्तुत होने से अतुल गुप्ता को संजय अग्रवाल के वोटरों पर कब्जा करने की अपनी तैयारी फेल होती हुई दिख रही है । इसीलिए पूजा बंसल की उम्मीदवारी पेश होते ही अतुल गुप्ता ने उनके सामने मुश्किलें खड़ी करने और उन्हें परेशान करने के उद्देश्य से उनके पति मोहित बंसल को एक पुराने मामले में आधे-अधूरे तथा झूठे तथ्य पेश करते हुए फँसाने की चाल चल दी । अतुल गुप्ता ने मीटिंग में मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करवाने के लिए षड्यंत्रपूर्ण तरीके से दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले को तो छिपा लिया, तथा निचली अदालत से मोहित बंसल को सजा होने वाले फैसले को 'दिखाते' हुए मीटिंग में मोहित बंसल के खिलाफ माहौल बनाया ।   
इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नवीन गुप्ता की चूँकि संजय अग्रवाल के साथ खासी खुन्नस रही है, लिहाजा उन्हें भी संजय अग्रवाल के नजदीकी का शिकार करते हुए संजय अग्रवाल से खुन्नस निकालने का मौका दिखा - तो उन्होंने भी अतुल गुप्ता की कार्रवाई का बिना सोचे-विचारे बढ़-चढ़ कर समर्थन कर डाला । पर जब सच्चाई सामने आई, तो नवीन गुप्ता सहित सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने अपने आप को अतुल गुप्ता के हाथों ठगा हुआ पाया । दरअसल इसी कारण से अतुल गुप्ता व नवीन गुप्ता की जोड़ी ने फिर मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया है । गौरतलब है कि अतुल गुप्ता व नवीन गुप्ता की जोड़ी पहले तो 14 जून की मीटिंग में ही मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने पर आमादा थी, लेकिन उसके बाद वह मामले को जैसे भूल ही गई । अतुल गुप्ता हालाँकि बीच बीच में लोगों के बीच कहते सुने गए हैं कि मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई शिड्यूल में है, और वह कभी भी हो सकती है । मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स से मिले स्पष्टीकरण ने लेकिन सारा परिदृश्य बदल दिया है; और यह साफ कर दिया है कि मोहित बंसल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए अतुल गुप्ता व नवीन गुप्ता की जोड़ी ने जो आधार बनाया था, वह आधार किसी भी तरह से तर्कपूर्ण और नियमानुसार नहीं है, और अतुल गुप्ता व नवीन गुप्ता की जोड़ी नियमों की मनमानी व्याख्या करके अपनी अपनी निजी खुन्नस निकाल रही है । मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के स्पष्टीकरण से सबसे ज्यादा फजीहत की स्थिति नवीन गुप्ता के लिए बनी है । वह इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट हैं; उनसे उम्मीद की जाती है कि वह मैच्योर तरीके से अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह करेंगे - लेकिन मोहित बंसल के मामले में मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स के पदाधिकारियों के सामने नवीन गुप्ता की जैसी जो पोल खुली है, वह प्रेसीडेंट के रूप में नवीन गुप्ता के लिए सचमुच में बहुत ही शर्म की बात है । 

Saturday, October 27, 2018

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वेस्टर्न रीजन में राठी विकमसे ग्रुप का समर्थन मिलने के बाद दुर्गेश काबरा की उम्मीदवारी में पैदा हुआ करंट अनिल भंडारी की सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी की तैयारी को शिकार बना सकता है क्या ?

मुंबई । दुर्गेश काबरा को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में पहुँचाने के लिए आनंद राठी, कमलेश विकमसे व नीलेश विकमसे द्वारा कमर कस लिए जाने से वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के समीकरणों में बदलाव का जो अनुमान लगाया जा रहा है, उसमें अनिल भंडारी के लिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी सीट बचाना तो चुनौतीपूर्ण हो ही गया है, साथ ही राजकुमार अदुकिया के लिए सेंट्रल काउंसिल में पुनर्वापसी और पुरुषोत्तम खंडेलवाल की राह भी मुश्किल हुई है । मुंबई स्टॉक एक्सचेंज के पूर्व प्रेसीडेंट आनंद राठी की इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में भी खासी धाक है । 1985 से 1992 तक के दो टर्म में सेंट्रल काउंसिल में रहे आनंद राठी ने अपना चुनाव खूब धूम-धड़ाके से लड़ा था; उसके बाद फिर उन्होंने अपनी राजनीतिक विरासत विकमसे परिवार को सौंप दी थी, जहाँ से एसके विकमसे, कमलेश विकमसे व नीलेश विकमसे बारी बारी से सेंट्रल काउंसिल में गए; कमलेश विकमसे और  नीलेश विकमसे तो इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट भी बने । एक समय आनंद राठी को मुंबई में 'जोधपुर क्लब' के नाम से भी पहचाना जाता था; (कुमारमंगलम) बिड़ला ग्रुप से नजदीकियों के चलते आनंद राठी का एक अन्य रुतबा भी रहा है । माहेश्वरी समाज में आनंद राठी का विशेष प्रभाव बना, और माहेश्वरी समाज में उन्हें एक 'संस्थान' के रूप में पहचान व मान्यता मिली । विकमसे परिवार के जुड़ने से उनका प्रभाव क्षेत्र और बड़ा हुआ, तथा वेस्टर्न रीजन में 'राठी विकमसे ग्रुप' की एक अनोखी ताकत बनी । यही ताकत अचानक से दुर्गेश काबरा का संबल बन गई दिख रही है । दरअसल राठी विकमसे ग्रुप के तीनों बड़े नेताओं ने जिस अप्रत्याशित तरीके से दुर्गेश काबरा की उम्मीदवारी के लिए समर्थन दिखाया है, उसने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावी गणित में खासी उथल-पुथल मचा दी है - और दुर्गेश काबरा की उम्मीदवारी दूसरे कुछेक उम्मीदवारों के लिए खतरे की घंटी बजाने लगी है ।
मजे की बात है कि अभी दो महीने पहले तक दुर्गेश काबरा की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था । दुर्गेश काबरा पिछले दो बार से लगातार चुनाव हार रहे हैं । पिछली बार उनका प्रदर्शन हालाँकि अच्छा रहा था, लेकिन दूसरी वरीयता के वोटों का सहयोग/समर्थन न मिल पाने के कारण वह नाकामयाबी का शिकार हो गए थे । उनकी नाकामयाबी जिस तरह से अनिल भंडारी और धीरज खंडेलवाल की किस्मत का ताला खोलने वाली चाभी बनी थी, उसे देखते/समझते हुए चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने तथा उसे समझने वाले लोगों ने दुर्गेश काबरा के राजनीतिक जीवन को समाप्त हुआ मान लिया था । इसी कारण से, इस बार जब दुर्गेश काबरा को तीसरी बार अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए सक्रिय देखा गया, तो किसी ने भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया । लोगों का मानना/कहना रहा कि दुर्गेश काबरा जितने जो प्रयास कर सकते थे, वह सब उन्होंने कर लिए हैं - और उन सब प्रयासों के बावजूद चूँकि वह कामयाब नहीं हुए हैं, इसलिए अब उनके लिए कहीं कोई उम्मीद नहीं बची है । लेकिन चुनावी राजनीति में कई बार चमत्कार घटते - और उन चमत्कारों के चलते बड़े उलट-फेर होते हुए देखे गए हैं, इसलिए दुर्गेश काबरा को राठी विकमसे ग्रुप से मिले समर्थन ने वेस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति के समीकरणों में भी एकदम से उलट-फेर कर दिया है - और कहीं मुकाबले में न देखे/पहचाने जा रहे दुर्गेश काबरा अचानक से बड़े महत्त्वपूर्ण उम्मीदवार बन गए हैं । उनकी उम्मीदवारी के महत्त्वपूर्ण होने से अनिल भंडारी की सदस्यता पर खतरा मंडराता देखा जा रहा है । पिछली बार अनिल भंडारी और दुर्गेश काबरा को मिले वोटों में ज्यादा अंतर नहीं था, और दोनों ही माहेश्वरी वोटों पर निर्भर रहे थे और इस बार भी हैं; इसी बिना पर माना/समझा जा रहा है कि राठी विकमसे ग्रुप के समर्थन के चलते दुर्गेश काबरा के वोटों में यदि ठीक-ठाक इजाफा हो गया, तो अनिल भंडारी के लिए इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में अपनी मौजूदा सीट को बचाना मुश्किल हो जायेगा ।
दुर्गेश काबरा की उम्मीदवारी के महत्त्वपूर्ण हो उठने से राजकुमार अदुकिया और पुरुषोत्तम खंडेलवाल के लिए भी अलग अलग कारणों से मुसीबत पैदा हो गई है । राजकुमार अदुकिया एक दशक से अधिक समय तक सेंट्रल काउंसिल में रहने के कारण नियमों के चलते पिछले टर्म में बाहर रहने के लिए 'मजबूर' किए जाने के बाद इस बार फिर से उम्मीदवार हो गए हैं, जिस कारण लोग उनके खिलाफ हैं । लोगों का कहना/पूछना है कि सेंट्रल काउंसिल में आखिर ऐसे कौन से लड्डू मिलते हैं, जिनके लालच में राजकुमार अदुकिया से सेंट्रल काउंसिल से मोह ही नहीं छूट रहा है । राजकुमार अदुकिया को यह आभास था कि उनके ऊपर सत्ता-लोलुपता का आरोप लगेगा और उनके समर्थक रहे लोग उनके विरोध में हो जायेंगे; लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि नीलेश विकमसे द्वारा खाली की गई सीट उनके लिए फायदे का सबब बन जाएगी । किंतु राठी विकमसे ग्रुप द्वारा दुर्गेश काबरा को समर्थन देने के कारण उनकी उम्मीद को झटका लग सकता है । अहमदाबाद के पुरुषोत्तम खंडेलवाल को मुंबई के उन चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से समर्थन मिलने की उम्मीद है, जो राजस्थान के हैं - क्योंकि वह खुद राजस्थान के हैं; लेकिन आनंद राठी के कारण राजस्थान से मुंबई आए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट यदि सचमुच दुर्गेश काबरा को पड़ गए, तो पुरुषोत्तम खंडेलवाल का राजस्थान-समीकरण गड़बड़ा सकता है ।
राठी विकमसे ग्रुप का समर्थन मिलने से दुर्गेश काबरा और उनके नजदीकियों में हवा तो भरी है, लेकिन दुर्गेश काबरा के ही कुछेक समर्थकों का मानना/कहना यह भी है कि सिर्फ समर्थन मिलने से दुर्गेश काबरा की जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हुआ जा सकता है । जीत इस बात पर निर्भर करेगी कि राठी विकमसे ग्रुप से मिले समर्थन को वोट में बदलने के लिए दुर्गेश काबरा जरूरी मैकेनिज्म को बना पाते हैं या नहीं । दुर्गेश काबरा के ही समर्थकों का कहना/बताना है कि राठी विकमसे ग्रुप ने फैमिली से बाहर के उम्मीदवार के रूप में आरएल काबरा को दो बार समर्थन दिया था, लेकिन आरएल काबरा को दोनों ही बार हार का सामना करना पड़ा था । इसके अलावा एक मजेदार संयोग यह है कि लगातार दो बार हार का सामना करने के बाद तरुण घिया को छोड़ कर और किसी उम्मीदवार के सफल होने का  उदाहरण नहीं है । इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि राठी विकमसे ग्रुप का समर्थन मिलने के बाद भी दुर्गेश काबरा सेंट्रल काउंसिल की सदस्यता पाने की अपनी हसरत को पूरा कर पाते हैं, या एक बार फिर बदकिस्मती का शिकार बनते हैं ?

Wednesday, October 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पूरी तरह अलग-थलग पड़े पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता से संबंध सुधारने की कोशिश के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट में अपनी उपस्थिति और सक्रियता दिखाने के प्रयास में एक नया विवाद और जोड़ लिया है

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल पिछले करीब चार महीने से रूठे रहने और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से दूर दूर रहने के बाद, झक मार कर अंततः डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच वापस लौटते दिख रहे हैं । हाल-फिलहाल के दिनों में रमेश अग्रवाल को दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के साथ अपने विरोध-पूर्ण रवैये को भूल कर उनके साथ अपने संबंध सुधारने के प्रयास करते हुए देखा गया है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल यूँ तो पहले से ही इन दोनों के खिलाफ थे, लेकिन डीआरएफसी (डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन कमेटी) के चेयरमैन बनने के उनके प्रयासों में दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने जो अड़ंगा लगाया, उसके चलते रमेश अग्रवाल इन दोनों से और बुरी तरह नाराज हो गये । डीआरएफसी चेयरमैन बनना रमेश अग्रवाल की एक पुरानी हसरत है । संयुक्त डिस्ट्रिक्ट 3010 में भी उन्होंने इसके लिए प्रयास किया था, लेकिन वहाँ विनोद बंसल ने उनकी इस हसरत को पूरा नहीं होने दिया था । इस वर्ष तो रमेश अग्रवाल ने डीआरएफसी चेयरमैन बनने के लिए जी-तोड़ प्रयास किए थे - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन तो उनके नाम पर सहमत थे, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में आलोक गुप्ता ने उनके नाम का विरोध किया । रमेश अग्रवाल ने इन दोनों की बड़ी खुशामदें/मिन्नतें भी कीं, और इन्हें तरह तरह की धमकियाँ भी दीं - दीपक गुप्ता के बारे में रमेश अग्रवाल ने कहा कि वह देखेंगे कि दीपक गुप्ता कैसे गवर्नरी करेगा; जबकि आलोक गुप्ता के लिए उन्होंने धमकी दी कि वह जानते हैं कि वह कैसे सतीश सिंघल को पैसे खिलाकर बेईमानी से जल्दी चुनाव करवा कर गवर्नर बना है, उसका तो मैं चुनाव ही रद्द करवा दूँगा । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता पर लेकिन न रमेश अग्रवाल की खुशामदों का असर हुआ और न उनकी धमकियों का । रमेश अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह हुई कि डिस्ट्रिक्ट में उनके कट्टर 'दुश्मन' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे जेके गौड़ डीआरएफसी चेयरमैन बन गए । इससे बौखला कर रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट से ही 'कुट्टी' कर ली और वह डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से अनुपस्थित रहने लगे ।
लेकिन लगता है कि चार महीनों में रमेश अग्रवाल की अक्ल ठिकाने आ गई, और उन्होंने समझ लिया कि अपनी इस हरकत से तो फिर वह डिस्ट्रिक्ट क्या, रोटरी से ही बाहर हो जायेंगे । दरअसल रमेश अग्रवाल अपने आपको इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट कर रहे हैं; लेकिन इस प्रोजेक्शन के चलते उन्हें दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के साथ-साथ बड़े रोटरी नेताओं से भी सुनने को मिला कि उनकी जब अपने ही डिस्ट्रिक्ट में कोई पूछ और सक्रियता नहीं है, तो दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से समर्थन मिलने/पाने की वह कैसे और क्या उम्मीद कर सकते हैं ? इस आलोचना को सुनकर रमेश अग्रवाल को लगता है कि अपनी बेवकूफी का आभास हुआ । उनकी बेवकूफी वास्तव में यह थी कि उन्होंने समझा था कि वह डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल नहीं होंगे, तो डिस्ट्रिक्ट चल नहीं पायेगा - और तब डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी मदद के लिए उनके पास दौड़े आयेंगे और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल होने के लिए उनकी खुशामद करेंगे । रमेश अग्रवाल लेकिन यह देख कर और परेशान हो गए कि ऐसा कुछ हुआ ही नहीं और किसी ने भी उनकी परवाह नहीं की । डिस्ट्रिक्ट के लोगों और पदाधिकारियों का उनके प्रति रवैया रहा कि 'तुम रूठे, हम छूठे ।' रमेश अग्रवाल को सबसे तगड़ा झटका शरत जैन के रवैये से लगा । शरत जैन उनके ही क्लब के सदस्य हैं और इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर हैं । रमेश अग्रवाल को उम्मीद रही कि शरत जैन डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में उनकी उपस्थिति को सम्मानजनक तरीके से संभव बनाने में उनकी मदद करेंगे । लेकिन रमेश अग्रवाल के रूठे रहने में शरत जैन को अपना फायदा दिखा - डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में रमेश अग्रवाल उपस्थित होते/रहते, तो डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर होने के बावजूद शरत जैन को ज्यादा तवज्जो नहीं मिलती; लिहाजा अपने स्वार्थ में शरत जैन ने रमेश अग्रवाल की कोई परवाह ही नहीं की और उन्हें डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग ही पड़ा रहने दिया । 
डिस्ट्रिक्ट में खुद को अलग-थलग पड़ा देख तथा इसके चलते दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों व बड़े रोटरी नेताओं के बीच हो रही किरकिरी का सामना करते हुए रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में अपनी उपस्थिति बनाने/दिखाने के लिए खुद से प्रयास करने के लिए मजबूर होना पड़ा । अपने इस प्रयास के तहत रमेश अग्रवाल ने एक तरफ तो दीपक गुप्ता व आलोक गुप्ता जैसे आने वाले वर्षों के पदाधिकारियों से अपने बिगड़े संबंधों को सुधारने का काम शुरू किया, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट के आयोजनों में शामिल होना/दिखना शुरू किया । इसी के चलते हाल ही में वह सुभाष जैन के क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल - के दीवाली उत्सव कार्यक्रम में लोगों को नजर आए । इस कार्यक्रम को क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले अमित गुप्ता के चुनाव-अभियान के कार्यक्रम के रूप में देखा/पहचाना गया था; इस नाते इस कार्यक्रम में रमेश अग्रवाल की उपस्थिति को राजनीतिक रंग भी मिला । रमेश अग्रवाल ने अपनी चिढ़-भरी बातों से अपनी उपस्थिति को लेकिन राजनीतिक रंग देने के साथ-साथ विवादपूर्ण भी बना लिया । हुआ दरअसल यह कि कार्यक्रम में मौजूद लोग गाजियाबाद के कविनगर रामलीला मैदान में आयोजित दशहरा मेले में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल से रोटरी को होने वाले फायदे की चर्चा कर रहे थे । उक्त स्टॉल की गतिविधियाँ चूँकि चल रही थीं, इसलिए वह और उसकी कामयाबी हर किसी की जुबान पर थी । लोगों के बीच चर्चा थी कि रोटरी में ऐसा अभिनव प्रयोग पहली बार हुआ है, और इसके चलते आम लोगों के बीच रोटरी की तथा रोटरी समाज में डिस्ट्रिक्ट 3012 की पहचान और साख में खासा इजाफा हुआ है । लोगों के बीच इस तरह की चर्चा सुनकर रमेश अग्रवाल के पता नहीं क्यों तन-बदन में जैसे आग लग गई, जिसकी जलन में अपने भाषण में उन्होंने लोगों को आदर्श पेला कि हमें सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना चाहिए, और उसकी तारीफ या उसका गुणगान या उसका दिखावा नहीं करना चाहिए । रमेश अग्रवाल से इस तरह की बातें सुनकर लोग भड़क गए और उनके बीच चर्चा चल पड़ी कि यह आदमी खुद तो नल की चार टोटियाँ लगवाता है, तो उसका उद्घाटन मंत्रियों से करवाता है, उसकी फोटो सोशल मीडिया में जगह जगह प्रचारित करता है, और जगह जगह उसका बखान करता फिरता है - और यहाँ भाषण दे रहा है कि हमें सिर्फ काम पर ध्यान देना चाहिए और उसकी तारीफ या उसका गुणगान या उसका दिखावा नहीं करना चाहिए । 
लोगों की इस तरह की बातों से डिस्ट्रिक्ट में अपनी उपस्थिति और सक्रियता दिखाने की रमेश अग्रवाल की कोशिशों में एक नया विवाद जुड़ गया है । उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि अपनी बातों और अपनी हरकतों से तमाम लोगों को अपना 'दुश्मन' और विरोधी बना चुके रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट में पूरी तरह अलग-थलग पड़ चुके है, लेकिन अभी भी वह कोई सबक नहीं सीख रहे हैं और अपने पुराने ढर्रे पर ही बने हुए हैं - और लोगों के बीच अपनी फजीहत करवा रहे हैं ।

Monday, October 22, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट के रूप में, संजीव सिंघल की फर्म के खिलाफ कार्रवाई कर चुके अमरजीत चोपड़ा द्वारा संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने से आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इंस्टीट्यूट प्रशासन व बिग फोर फर्म्स की मिलीभगत का जीवंत और पुख्ता उदाहरण मिला

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश पाने के लिए संजीव सिंघल की बिग फोर से जुड़ी पहचान को छिपाने तथा 'देशी अवतार' में आने की कोशिशों ने चुनावी परिदृश्य में मजेदार चर्चाओं को जन्म दिया है, और इस चर्चा में इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा को भी घसीट लिया गया है । दरअसल उम्मीदवारों की फाइनल सूची में संजीव सिंघल के नाम के साथ उनका घर का पता देख कर लोगों को बातें बनाने का मौका मिला कि संजीव सिंघल आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट पाने के लिए बिग फोर से जुड़ी अपनी पहचान को छिपाना चाहते हैं, और इसीलिए उन्होंने अपने ऑफिस की बजाए अपने घर का पता दिया है - ताकि जो चार्टर्ड एकाउंटेंट्स राजनीतिक रूप से ज्यादा सक्रिय नहीं रहते हैं और ज्यादा जानते/बूझते नहीं हैं, उन्हें बरगलाया जा सके । उल्लेखनीय है कि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच बिग फोर फर्मों को लेकर विरोध का भाव/तेवर रहता है; आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स मानते/समझते हैं कि बिग फोर फर्म्स तरह तरह के फर्जी तरीकों से बड़े काम हथिया लेती हैं, और फिर उनके लिए काम की खुरचन ही बची रह पाती है । बिग फोर फर्म्स को आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के 'दुश्मन' के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । नफरा (एनएफआरए - नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी) जैसी मुसीबत के लिए बिग फोर फर्म्स को ही जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । चर्चा में कहा/बताया जाता है कि बेईमानियाँ बिग फोर फर्म्स करती हैं, जिनसे निपटने के लिए सरकार ने नफरा का गठन कर दिया है - लेकिन जो आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए मुसीबत बन गया है । मजे की बात यह है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन कई बार बिग फोर के खिलाफ कार्रवाई करने का नाटक करता हुआ तो दिखता है, पर वह एक नूरा-कुश्ती से ज्यादा नहीं होता है - और इस तरह आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दोनों तरफ से ठगे जाते हैं, बिग फोर की तरफ से भी और इंस्टीट्यूट प्रशासन व उसके पदाधिकारियों की तरफ से भी । 
आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स दोनों तरफ से कैसे ठगे जाते हैं, इसका जीता-जागता उदाहरण इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा के व्यवहार में देखा जा सकता है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में अमरजीत चोपड़ा जब इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट थे, तब बिग फोर फर्म्स के काम करने के तौर-तरीकों के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की थी और उनके तौर तरीकों को लेकर जोरदार तरीके से विरोधी बयानबाजी भी की थी; लेकिन वही अमरजीत चोपड़ा अब उसी बिग फोर फर्म के पार्टनर संजीव सिंघल की उम्मीदवारी के प्रस्तावक बने हैं । वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट और अभी हाल ही में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के पार्ट-टाइम डायरेक्टर बने एस गुरुमूर्ति के एक ट्वीट से भी समझा जा सकता है कि कैसे इंस्टीट्यूट प्रशासन वास्तव में बिग फोर के हितों की ही रखवाली करता है, और आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को धोखा देता है । सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में संजीव सिंघल ने कई मौकों पर आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच बिग फोर के प्रति उनकी नाराजगी तथा उनके विरोध के चलते मुसीबत का सामना किया । संजीव सिंघल ने लोगों के बीच अपनी पैठ बनाने तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से गिरीश आहुजा की भी मदद ली, लेकिन संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए गिरीश आहुजा तक को लोगों से खरीखोटी सुननी पड़ी । यह बड़ा गजब 'सीन' रहा । गिरीश आहुजा का आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच बड़ा सम्मान है; कोई सोच भी नहीं सकता कि आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनके प्रति असम्मान भी दिखा और व्यक्त कर सकते हैं । इसे बिग फोर के प्रति आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के विरोध के सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना गया कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का समर्थन करने के चक्कर में गिरीश आहुजा तक को लोगों के बीच फजीहत का शिकार होना पड़ा ।
ऐसे में, इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट और प्रेसीडेंट के रूप में संजीव सिंघल की फर्म को 'बेईमानीपूर्ण' तरीकों से कामकाज करने का आरोपी ठहरा चुके अमरजीत चोपड़ा ने संजीव सिंघल की उम्मीदवारी का झंडा उठाया । समझा जाता है कि अमरजीत चोपड़ा सिर्फ संजीव सिंघल की उम्मीदवारी के प्रस्तावक ही नहीं हैं, बल्कि उनकी उम्मीदवारी के मुख्य रणनीतिकार भी हैं । अमरजीत चोपड़ा को चुनावी राजनीति का खासा लंबा अनुभव है । प्रेसीडेंट हो चुकने के बाद अधिकतर लोग जहाँ इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से किनारा कर लेते हैं, या वही लोग सक्रिय रहते हैं जिन्हें अपने बेटों को इंस्टीट्यूट की राजनीति में स्थापित करना होता है - वहाँ अमरजीत चोपड़ा अभी भी सक्रिय हैं और कई एक उम्मीदवारों की मदद करते देखे/सुने जा सकते हैं । इस कारण से माना/समझा जाता है कि अमरजीत चोपड़ा ने ही संजीव सिंघल को गुरूमंत्र दिया होगा कि उम्मीदवार के रूप में आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट यदि प्राप्त करने हैं, तो बिग फोर के उम्मीदवार की छवि से आजाद होना होगा - और लोगों के बीच एक आम प्रैक्टिसिंग चार्टर्ड एकाउंटेंट के रूप में प्रस्तुत होना होगा । संजीव सिंघल ने पिछले दिनों अपनी पहचान को देशी रूप देने की बड़ी कोशिश की है, जिसके तहत वह हिंदी में भी मैसेज लिखने/भेजने लगे हैं, अचानक से वह कंपनी की बजाए आम लोगों की तरह बनी ईमेल आईडी इस्तेमाल करने लगे है, और अपने ऑफिशियल ठिकाने के रूप में उन्होंने ऑफिस की बजाए घर का पता दे दिया है । समझा जाता है कि यह आईडिया उन्हें अमरजीत चोपड़ा ने ही दिया होगा । आखिर यह करतब अमरजीत चोपड़ा ही कर और दिखा सकते हैं कि प्रेसीडेंट के रूप में जिस फर्म के खिलाफ उन्होंने कार्रवाई की वकालत की थी, उसी फर्म के पार्टनर के रूप में संजीव सिंघल को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में प्रवेश दिलवाने के लिए उन्होंने कमर कस ली है ।  
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इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में अमरजीत चोपड़ा ने बिग फोर फर्म्स, और खासकर संजीव सिंघल की पार्टनरशिप फर्म के खिलाफ क्या कार्रवाई की थी और क्या कहा था, इसे लेकर एक अखबार में प्रकाशित रिपोर्ट के एक अंश का तथा एस गुरुमूर्ति के ट्विट का स्क्रीन शॉट :



Sunday, October 21, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अपनी अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से किए गए आयोजनों में आगे रहने के साथ साथ दशहरा मेले में लगे स्टॉल में अपनी निरंतर सक्रियता बना/दिखा कर अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी बढ़त बनाने का काम किया है

गाजियाबाद । अशोक अग्रवाल ने गाजियाबाद में कविनगर के रामलीला मैदान में आयोजित हुए दशहरा मेला में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल में लगातार अपनी उपस्थिति बना/दिखा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लोगों के बीच और मजबूती दी है । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने रोटरी की पहचान और सेवा कार्यों के संदर्भ में उसकी जरूरतों व पहुँच को एक नई ऊँचाई देते हुए पहली बार आम लोगों के बीच रोटरी को ले जाने तथा स्थापित करने की पहल की है । उल्लेखनीय है कि आम लोगों के बीच रोटरी की पहचान बड़े होटलों में इकट्ठा होकर खाने-पीने वाले लोगों के संगठन की है; आम लोगों के बीच माना/कहा भी जाता है कि रोटेरियंस कभी-कभार बड़े होटलों से बाहर निकलते भी हैं, तो सिर्फ थोड़ी देर के लिए और फोटो-सेशन करने/करवाने के लिए । सुभाष जैन ने पहली बार रोटरी को बड़े होटलों से बाहर रहने वाले आम लोगों के बीच व्यापक स्तर पर लाने का काम किया । रोटरी में पहली बार यह हुआ कि रोटरी एक ऐसे आयोजन का हिस्सा बनी, जिसमें हजारों/लाखों आम लोगों की भागीदारी होती है - और यह सिर्फ कुछ घंटों या एक दिन के लिए नहीं हुआ । सुभाष जैन ने कई दिनों तक चलने वाली रामलीला के दौरान लगने वाले मेले में रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 का सिर्फ स्टॉल ही नहीं लिया/लगवाया, बल्कि अपनी खुद की उपस्थिति को भी नियमित रूप से बनाए रखा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन चूँकि स्वयं उक्त स्टॉल पर हर दिन शाम आठ बजे से रात बारह बजे तक उपस्थित रहते थे, इसलिए डिस्ट्रिक्ट के बड़े व प्रमुख पदाधिकारी भी लगातार यहाँ आते रहे और ऐसे में स्वाभाविक ही था कि यहाँ डिस्ट्रिक्ट की राजनीति भी - कुछ प्रत्यक्ष व कुछ अप्रत्यक्ष रूप में - हुई ही ।  इस वर्ष होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संभावित उम्मीदवारों में एक अकेले अशोक अग्रवाल ने दशहरा मेले में लगे डिस्ट्रिक्ट स्टॉल का और यहाँ होने वाली प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष राजनीति का राजनीतिक लाभ उठाया । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों में अमित गुप्ता भी दो एक दिन थोड़े थोड़े समय के लिए तो स्टॉल पर दिखाई दिए, लेकिन अशोक अग्रवाल जैसी नियमितता वह वहाँ नहीं बनाए रख सके । स्टॉल पर चूँकि स्वास्थ्य संबंधी जाँच-पड़ताल की व्यवस्था की गई थी, इसलिए आम लोगों की स्टॉल में दिलचस्पी बढ़-चढ़ कर नजर आ रही थी, जिससे रोटेरियंस को उत्साह मिल रहा था और एक दूसरे से सुनकर दशहरा मेले में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल पर रोटेरियंस की संख्या पिछले दिनों से ज्यादा होती थी । रोटेरियंस ने जब सुना कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन खुद स्टॉल पर मौजूद रहते हैं, तो डिस्ट्रिक्ट के आम व खास रोटेरियंस तथा पदाधिकारियों के बीच स्टॉल पर उपस्थित होने/दिखने की होड़ सी रहने लगी । गजब यह हुआ कि सिर्फ गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के दूसरे शहरों से ही नहीं, बल्कि दिल्ली और सोनीपत से भी रोटेरियंस गाजियाबाद के कविनगर रामलीला मैदान के दशहरा मेले में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल पर पहुँचे । अशोक अग्रवाल ने इस स्थिति का जमकर फायदा उठाया । उक्त स्टॉल पर हर रोज उपस्थित होकर अशोक अग्रवाल ने स्टॉल पर आने/जुटने वाले रोटेरियंस के साथ मिल/जुल कर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन को मजबूत करने का काम किया । अशोक अग्रवाल को इससे दोहरा फायदा हुआ - एक तरफ तो आम व खास रोटेरियंस के बीच/साथ उनकी उपस्थिति ज्यादा दिखी, जिसके चलते उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन और पक्का करने का मौका मिला; दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों के बीच यह संदेश गया कि रोटरी में एक बड़े और पहली बार हो रहे एक जेनुइन किस्म के आयोजन में उम्मीदवारों में एक अकेले उन्होंने ही रुचि दिखाई, जिसके चलते रोटरी को लेकर उनकी प्रतिबद्धता के प्रति लोगों को एक आश्वासन मिला ।
दशहरा मेले में लगे रोटरी डिस्ट्रिक्ट 3012 के स्टॉल से अशोक अग्रवाल ने जो फायदा उठाया, उसे देख/जान कर दूसरे उम्मीदवारों और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को अब अफसोस भी हो रहा है कि एक अच्छे अवसर को उन्होंने व्यर्थ में गँवा दिया । खासकर अमित गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच इस अवसर को गँवा देने का अफसोस कुछ ज्यादा ही है । हालाँकि अमित गुप्ता के कुछेक नजदीकियों ने यह बताते हुए मामले में लीपापोती करने की कोशिश की है कि अमित गुप्ता और उनके साथी उन दिनों दरअसल 20 अक्टूबर के दीवाली उत्सव की तैयारी में व्यस्त थे, इसलिए वह दशहरा मेले में लगे स्टॉल पर ज्यादा ध्यान नहीं दे सके । अमित गुप्ता और उनके साथियों के लिए बदकिस्मती की बात लेकिन यह रही कि 20 अक्टूबर का उनका आयोजन भी वैसा प्रभाव नहीं दिखा पाया, जैसा के लिए उन्होंने तैयारी की थी । 20 अक्टूबर का दीवाली उत्सव यूँ तो क्लब का आयोजन था, लेकिन अमित गुप्ता और उनके समर्थकों ने उसे अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के शक्ति-प्रदर्शन के कार्यक्रम के रूप में करने की तैयारी की । उनकी कोशिश थी कि यह कार्यक्रम अशोक अग्रवाल के हाल ही में हुए शक्ति-प्रदर्शन से बड़ा हो । इसके लिए जगह भी बड़ी चुनी गई, लेकिन लोगों की कम उपस्थिति के चलते उनकी सारी तैयारी पर पानी फिर गया । 20 अक्टूबर के इस कार्यक्रम में शामिल हुए जो लोग अमित गुप्ता के जुलाई में हुए कार्यक्रम में भी शामिल हुए थे, उनका कहना है कि यह कार्यक्रम तो जुलाई के आयोजन से भी हल्का रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ को देखते हुए करीब तीन महीने बाद होने वाले कार्यक्रम को बड़ा तथा ज्यादा प्रभावी होना चाहिए था - किंतु जो नहीं हो सका । अपनी अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से किए गए आयोजनों में अशोक अग्रवाल के आगे रहने तथा दशहरा मेले में लगे स्टॉल में अपनी निरंतर सक्रियता बना/दिखा कर अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अपनी बढ़त बनाने का जो काम किया है, उसने दूसरे उम्मीदवारों के सामने मुश्किलों को खासा बढ़ा दिया है ।

Saturday, October 20, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चुनाव करवाने की रट लगाए जा रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन ने अचानक से वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया को शुरु करके मनीष शारदा को खासा तगड़ा झटका दिया

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन ने वर्ष 2020-21 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव की प्रक्रिया अचानक से शुरू करके मनीष शारदा की उम्मीदों को खासा तगड़ा झटका दिया है । मनीष शारदा की उम्मीद और कोशिश थी कि उक्त चुनाव मार्च में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में हों, ताकि वह अच्छे से तैयारी कर लें और लोगों के बीच अपनी पैठ बना लें । अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक जैन का रवैया भी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ही उक्त चुनाव करवाने का था, जिसके चलते मनीष शारदा निश्चिंत बैठे थे । पिछले दिनों सुना गया था कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के कहने पर रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारी जितेंद्र सिंह ने दीपक जैन से उक्त चुनाव करवाने को लेकर बात की थी, लेकिन दीपक जैन के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी । सुशील गुप्ता का कहना दरअसल यह था कि प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में वर्ष 2020-21 के गवर्नर हैं, और उनकी ट्रेनिंग हो रही है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट 3100 में भी वर्ष 2020-21 का गवर्नर हो जाना चाहिए, ताकि वह भी अपने समकालीन गवर्नर्स के साथ अभी से परिचित और प्रशिक्षित हो सके । जितेंद्र सिंह ने इसी तर्क के साथ दीपक जैन को उक्त चुनाव जल्दी करवाने के लिए राजी करने का प्रयास किया । दीपक जैन ने लेकिन बहानेबाजी करके उनकी बात को अनसुना कर दिया । दीपक जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियों को अभी तक भले ही न समझे हों, लेकिन यह बात वह अच्छे से समझ गए हैं कि रोटरी इंटरनेशनल का बड़े से बड़ा पदाधिकारी उन्हें चुनाव करवाने के लिए मजबूर नहीं कर सकता है - और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें यह अधिकार है कि वह जब चाहें तब चुनाव करवाएँ । इसीलिए वह वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में तथा रोटरी के बड़े पदाधिकारियों की तरफ से उठ रही माँग को लगातार अनसुना करते आ रहे थे ।
दीपक जैन की तरफ से कहा/सुना जा रहा था कि वह उक्त चुनाव यदि जल्दी करवा लेंगे तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की रौनक खत्म हो जाएगी; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह चाहेंगे कि उनकी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस अच्छे से हो - इसलिए उक्त चुनाव वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दौरान और या उसके बाद ही करवायेंगे । दीपक जैन को अपने गवर्नर-काल में वर्ष 2021-22 के गवर्नर का भी चुनाव करवाना है, जिसकी आड़ में अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से करवा सकने का मौका उनके पास है ही, लेकिन फिर भी वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को अच्छे से करने/करवाने की आड़ में वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को टालते रहे - जिसके चलते लोगों को लगा कि यह सब वह मनीष शारदा को लाभ पहुँचाने के उद्देश्य से कर रहे हैं । लोगों का यह लगना स्वाभाविक भी माना/समझा गया, क्योंकि मनीष शारदा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं की पिछले वर्ष दीपक जैन को चुनाव जितवाने में महत्त्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका थी, इसलिए हर किसी को लग रहा था कि मनीष शारदा की सुविधानुसार दीपक जैन वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव को टाल कर मनीष शारदा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के अहसान का बदला चुका रहे हैं । लेकिन अचानक तरीके से वर्ष 2020-21 के गवर्नर के चुनाव की प्रक्रिया शुरू करके दीपक जैन ने तमाम कयासों और आलोचनाओं का मुँह बंद कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक जैन द्वारा अचानक से शुरू की गई चुनाव की प्रक्रिया ने दूसरों को तो हैरान किया है, लेकिन मनीष शारदा को खासा तगड़ा झटका दिया है । 
मनीष शारदा दरअसल आराम से बैठे थे और मान कर चल रहे थे कि उक्त चुनाव मार्च में और या उसके बाद होंगे, इसलिए अभी से ज्यादा कुछ करने की जरूरत भला क्या है ? वर्ष 2020-21 के गवर्नर पद के लिए अपनी इच्छा दिखाने वाले उम्मीदवारों में एक अकेली दीपा खन्ना ही लगातार सक्रिय बनी हुईं थीं, और लगातार डिस्ट्रिक्ट में लोगों से मिलजुल रही थीं तथा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के प्रयासों में लगीं हुईं थीं । इसलिए अचानक शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया से एक अकेले दीपा खन्ना और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की तरफ से परेशानी होने की बात नहीं सुनी गई है, बल्कि उनकी तरफ से तो चुनावी प्रक्रिया शुरू होने का स्वागत होने की बात ही सुनी गई है । इसके विपरीत, मनीष शारदा और शशिकांत गोयल के खेमे में चुनावी प्रक्रिया शुरू होने की घोषणा से निराशा और हताशा के स्वर सुनाई दे रहे हैं । इन दोनों खेमों में इस बात पर भी हैरानी प्रकट की जा रही है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चुनाव करवाने की लगातार रट लगाए जा रहे दीपक जैन का अचानक से हृदय परिवर्तन कैसे और क्यों हो गया कि आनन-फानन में उन्होंने चुनाव की प्रक्रिया ही शुरू कर दी है ? बिना चुनावी तैयारी के 'पकड़े' गए मनीष शारदा और शशिकांत गोयल के सामने मुसीबत की बात यह भी है कि दोनों ही मेरठ के होने के नाते चुनाव में एक-दूसरे को ही नुकसान पहुँचाते नजर आ रहे हैं । दोनों के समर्थक नेता हालाँकि चाह तो रहे थे कि दोनों के बीच ऐसा कोई समझौता हो जाये - जिसके तहत एक पहले और दूसरा उसके बाद उम्मीदवार बन जाए; लेकिन इस समझौते के लिए बातचीत अभी यह सोच कर शुरू नहीं की गई थी कि चुनाव तो अभी दूर हैं; दोनों ही लोग इस उम्मीद में थे कि हो सकता है कि चुनाव होने तक दूसरा थक-हार कर खुद ही मैदान छोड़ दे, इसलिए अभी बात क्या और क्यों करना ? लेकिन अचानक से शुरू हुई चुनावी प्रक्रिया ने मेरठ के दोनों उम्मीदवारों को मुसीबत में फँसा दिया है और उनके समर्थक व शुभचिंतक ही दोनों को दीपा खन्ना के सामने कमजोर पा/समझ रहे हैं ।

Thursday, October 18, 2018

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट राजा साबू ने अपने आप को महान दिखाने के चक्कर में एमएल मनचंदा को लेकर कही गई अपनी पत्नी की बात को जिस तरह से इस्तेमाल किया, उसे #मीटू अभियान के साइड इफेक्ट के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है

चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने एमएल मनचंदा को लेकर अपनी 'महानता' दिखाने की 'राजनीति' में अपनी पत्नी उषा साबू का नाम जिस तरह से इस्तेमाल किया है, उसे कुछेक लोग #मीटू अभियान के एक प्रसंग की तरह देख रहे हैं - और इस नाते से राजा साबू की सोच को विश्लेषित कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि देश भर में इन दिनों #मीटू अभियान का शोर है, जिसमें तमाम जाने-माने लोगों के चेहरों से नकाब उतर रहे हैं और एक केंद्रीय मंत्री को तो अपनी कुर्सी तक से हाथ धोना पड़ा है । हालाँकि इस अभियान का अभी जो स्वरूप है उसमें मोटे व ऊपरी तौर पर इसे यौन शोषण व यौन छेड़छाड़ से जोड़ कर ही देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन इस अभियान का वास्तविक और गहरा अर्थ स्त्री के प्रति पुरुष की आंतरिक सामंती बनावट को सामने लाना है, जिसके तहत पुरुष अपने स्वार्थ में स्त्री को तरह तरह से इस्तेमाल करता है । स्त्री के प्रति पुरुष की सामंती बनावट की मार इतनी बारीक है, कि स्त्री घर में ही सबसे ज्यादा प्रताड़ित होती है, और स्त्री का पत्नी-रूप उत्पीड़न का सबसे ज्यादा शिकार होता है । इसी कारण से एक मामले में अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को साफ शब्दों में यह रेखांकित करना पड़ा कि पत्नी पति की संपत्ति नहीं है । पुरुष सौभाग्यशाली हैं कि असुरक्षाबोध और तथाकथित संस्कारों के चलते बनी मानसिकता के कारण पत्नियाँ तमाम उत्पीड़न को सहज भाव से लेती हैं और कोई शिकायत नहीं करती हैं । उषा साबू को सामने करके राजा साबू ने दिल्ली के एक आयोजन में अपने आपको महान दिखाने की जो कोशिश की, उस पर उषा साबू को हो सकता है कि कोई ऐतराज न हुआ हो - लेकिन कई एक लोगों को राजा साबू का व्यवहार उषा साबू को अपमानित व प्रताड़ित करने वाला लगा है; और इसीलिए लोग इस पर जहाँ तहाँ चर्चा कर रहे हैं । कुछेक लोग इस चर्चा को #मीटू अभियान के साइड इफेक्ट के रूप में देख रहे हैं ।
किस्सा यह हुआ कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होने के बाद सुशील गुप्ता देश लौटे तो सीधे चेन्नई इंस्टीट्यूट पहुँचे, जहाँ उनका स्वागत हुआ । इस मौके पर दिए अपने भाषण में सुशील गुप्ता ने अपने रोटरी जीवन में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर एमएल मनचंदा के योगदान को सम्मान के साथ याद किया । एमएल मनचंदा वर्ष 1984-86 में इंटरनेशनल डायरेक्टर थे, और उसके ठीक बाद वाले वर्ष में यानि 1986-87 में सुशील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे । ऐसे में स्वाभाविक है कि सुशील गुप्ता की 'मेकिंग' में एमएल मनचंदा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा होगा, और उसी योगदान को सुशील गुप्ता ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी  के रूप में दिए अपने पहले भाषण में सम्मान के साथ याद किया । सुनने वालों ने इसे एक औपचारिक बात की तरह सुना । सुनने वालों में अधिकतर लोग तो ऐसे थे, जिन्होंने एमएल मनचंदा का नाम भी नहीं सुना होगा - इसलिए सुशील गुप्ता द्वारा एमएल मनचंदा को याद करना इंस्टीट्यूट में कोई इश्यू नहीं बना । यह बात इश्यू लेकिन दिल्ली में हुए सुशील गुप्ता के स्वागत समारोह में बनी, जहाँ राजा साबू को भाषण देने का मौका मिला । अपने भाषण में अपनी पत्नी के हवाले से राजा साबू ने जो कहा उसका आशय यह था कि - उषा साबू को चेन्नई इंस्टीट्यूट में सुशील गुप्ता द्वारा एमएल मनचंदा को याद करना और उनका नाम लेना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने राजा साबू से कहा कि जिस व्यक्ति के कारण हमें खासी परेशानी उठानी पड़ी, उसे सुशील गुप्ता इतने सम्मान से क्यों याद कर रहे हैं । इस पर राजा साबू ने उनसे कहा कि हमें पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़ना है और मिलजुल कर काम करना है । एमएल मनचंदा ने 1991-92 के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में राजा साबू को चेलैंज किया था, जिसके चलते राजा साबू को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था । एमएल मनचंदा की इस कार्रवाई से राजा साबू और उनकी पत्नी अभी तक इतने खफा हैं कि खुद राजा साबू के अनुसार, उषा साबू तो एमएल मनचंदा का नाम भी नहीं सुनना चाहती हैं और राजा साबू अपनी महानता के चलते उस बात को लेकिन अब भूलना चाहते हैं । 
राजा साबू की इस बात में लोगों को राजा साबू की अपने आपको महान 'दिखाने' की कोशिश नजर आई ।इसमें बुरी बात लोगों को यह लगी कि अपने आपको महान दिखाने की कोशिश में राजा साबू ने अपनी ही पत्नी को ही मोहरा बना लिया । राजा साबू के संपर्क में आने/रहने वाले लोग बताते रहे हैं कि अपने आपको महान दिखाने/जताने के चक्कर में राजा साबू प्रायः दूसरों को छोटा व नीचा दिखाने का काम खूब करते रहते हैं - लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि अपने इस प्रिय खेल में वह अपनी पत्नी को भी नहीं बख्शेंगे । एमएल मनचंदा के प्रति उषा साबू के मन में जो भाव हैं, उन्हें समझा जा सकता है । वास्तव में पति की परेशानी में सबसे ज्यादा कष्ट पत्नी को ही उठाना पड़ता है, इसलिए वह एक अलग तरीके से सोचती है, जो अक्सर ही एकांगी और अव्यावहारिक भी होता है । इस सोच को सार्वजनिक करने का कोई कारण नहीं बनता है । रोटरी में और राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में कई लोग हैं, जिन्हें राजा साबू ने तरह तरह से सताया है; राजा साबू द्वारा सताये गए लोगों की पत्नियाँ भी हो सकता है कि राजा साबू का नाम न सुनना चाहती हों या उनकी शक्ल न देखना चाहती हों - तो कोई क्या करें ? एमएल मनचंदा को सुशील गुप्ता सम्मान के साथ याद करना चाहते हैं, तो राजा साबू - या कोई और भी क्या कर सकता है ? राजा साबू की पत्नी एमएल मनचंदा का नाम सुनना नहीं चाहतीं, और यह बात उन्होंने सिर्फ राजा साबू से कही - राजा साबू के लिए बड़ा आसान था कि अपनी पत्नी की  इस बात को वह अपने बीच ही रहने देते । लेकिन तब फिर वह अपने आपको महान कैसे दिखाते/जताते ? अपने आपको महान दिखाने/जताने के लिए अक्सर दूसरों को छोटा व नीचा दिखाते रहने की आदत से मजबूर राजा साबू ने अपनी पत्नी को भी जिस तरह 'शिकार' बना लिया - उसे देख कर कई लोगों को लगा है कि #मीटू अभियान यदि अपनी वास्तविक व तार्किक परिणति तक पहुँचा तो राजा साबू की यह बात भी एक उदाहरण बनेगी । 

Wednesday, October 17, 2018

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के लिए संजीव गुप्ता को 'तैयार' करने के लिए रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने मुकेश गोयल का दामन पकड़ने की चालबाजी शुरू की

हापुड़ । मुकेश गोयल के यहाँ नियमित रूप से उठने-बैठने वाले लोगों ने बताया है कि डिस्ट्रिक्ट में रंगा-बिल्ला के रूप में पहचानी जाने वाली जोड़ी - जिनमें एक डिस्ट्रिक्ट ही नहीं, बल्कि पूरे लायन समाज में 'चोर गवर्नर' के नाम से कुख्यात है - आजकल मुकेश गोयल के साथ नजदीकी दिखाने का नाटक दरअसल संजीव गुप्ता को आश्वस्त करने के लिए कर रही है । संजीव गुप्ता गाजियाबाद के एक व्यापारी नेता हैं, और पिछले कई वर्षों से लायनिज्म में भी सक्रिय हैं । रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने उन्हें (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए तैयार तो कर लिया है, लेकिन उनके सामने मुसीबत की बात यह बनी हुई है कि संजीव गुप्ता उन पर भरोसा नहीं कर रहे हैं - और इस कारण से उनसे 'लुट' नहीं रहे हैं । संजीव गुप्ता को अच्छे से पता है कि पिछले तीन वर्षों में जो जो लोग इस जोड़ी के साथ रहे, वह लुट-पिट कर या तो घर बैठ गए और या इनसे पीछा छुड़ा कर और पाला बदल कर कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ गए । संजीव गुप्ता एक कुशल व्यापारी व्यक्ति हैं, वह जानते/समझते हैं कि व्यापार में 'कबाड़' टाइप की चीजों की जरूरत तो होती है, लेकिन सिर्फ 'कबाड़' के भरोसे 'व्यापार' नहीं किया जा सकता है । इसलिए वह सिर्फ रंगा-बिल्ला के भरोसे उम्मीदवार बनने को - और उनके कहने में आकर अपनी जेब ढीली करने को तैयार नहीं हैं । इस समस्या को हल करने के लिए रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने मुकेश गोयल के साथ नजदीकी बनाना और 'दिखाना' शुरू किया है, ताकि वह संजीव गुप्ता को आश्वस्त कर सकें कि मुकेश गोयल उनके साथ आ गए हैं - और जब मुकेश गोयल साथ आ गए हैं, तो फिर उनका (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना पक्का ही है । रंगा-बिल्ला की जोड़ी को विश्वास है कि संजीव गुप्ता जब मुकेश गोयल को इनके साथ देखेंगे, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आश्वस्त हो जायेंगे - और तब वह इनके ऊपर पैसे खर्च करना शुरू कर देंगे । 
मुकेश गोयल को अपने साथ दिखाना रंगा-बिल्ला की जोड़ी को इसलिए थोड़ा आसान लग रहा है, क्योंकि मुकेश गोयल खुद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लेकर असमंजस में हैं - वह कभी राजेश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कभी पंकज बिजल्वान की बात करते सुने जाते हैं । मुकेश गोयल के यहाँ नियमित रूप से उठने/बैठने वाले लोगों का कहना है कि मुकेश गोयल वास्तव में तो पंकज बिजल्वान को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं; लेकिन एक तरफ तो उम्मीदवार हो सकने के नियमों को पूरा करने के मामले में पंकज बिजल्वान का पक्ष कुछ कमजोर पड़ रहा है, इसलिए उनके उम्मीदवार हो सकने को लेकर असमंजसता है; और दूसरी तरफ पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के पक्ष में देहरादून से ही चूँकि कोई खास वकालत नहीं हो रही है - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर पंकज बिजल्वान पर्दे के पीछे भले ही कोई जोड़-तोड़ कर रहे हों, उनकी उम्मीदवारी किसी को लेकिन नजर नहीं आ रही है । मसूरी के गौरव गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो सुगबुगाहट दिखाई है, और उनकी उम्मीदवारी को मेरठ में मुकेश गोयल के नजदीकियों के बीच ही जो समर्थन मिलता दिख रहा है, उसके चलते अनुमान लगाया जा रहा है कि मेरठ के लायन नेताओं के दबाव में मुकेश गोयल को कहीं गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का ही झंडा न उठाना पड़ जाए । ऐसे में रंगा-बिल्ला की जोड़ी को उम्मीद बनी है कि असमंजस में फँसे मुकेश गोयल को अपने साथ करके - वह अपनी राजनीति चला सकते हैं । इसलिए 'गालियों की अपनी तोप' को उन्होंने फिलहाल मुकेश गोयल के सामने से हटा लिया है, और उसे मुकेश गोयल खेमे के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल व फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल के सामने रख दिया है ।
रंगा-बिल्ला की जोड़ी को लगता है कि गालियों की अपनी तोप की इस शिफ्टिंग के जरिये वह विनय मित्तल व संजीवा अग्रवाल को बदनाम कर देंगे और मुकेश गोयल को उनसे दूर कर देंगे - और तब मुकेश गोयल के पास उनसे जुड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा । ऐसी स्थिति में संजीव गुप्ता उन पर भरोसा कर लेंगे और (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए उनके हाथों 'लुटने' के लिए तैयार हो जायेंगे - और उजड़ी पड़ी उनकी राजनीतिक दुकान एक बार फिर सज जाएगी । लोगों को लगता है कि रंगा-बिल्ला की जोड़ी 'ख्याली पुलाव' तो ठीक बना रही है, क्योंकि उनके साथ-साथ अन्य कई लोगों को भी लगता है कि मुकेश गोयल नए नए समीकरण बनाने में तथा विरोधी रहे व गालियाँ बकते रहे लोगों के साथ पुनः जुड़ने में हिचकते नहीं हैं - समस्या लेकिन रंगा-बिल्ला की जोड़ी की बदनामी से जुड़ी है । इस जोड़ी की ऐसी बदनामी है कि जो भी इनसे जुड़ा, जिस पर भी इनकी छाया पड़ी - वह बेचारा तबाह ही हुआ । अश्वनी काम्बोज इसका जीवंत उदाहरण हैं -  वह जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, तब उनके साथ सब कुछ अच्छा ही अच्छा था; बहुत से पूर्व गवर्नर्स का उन्हें समर्थन था, सत्ता का उन्हें समर्थन था, उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी और जमकर पैसे भी खर्च किए थे; लेकिन फिर भी वह चुनाव हार गए थे । कारण सिर्फ यही था कि उन पर रंगा-बिल्ला की छाया थी, जो तमाम अनुकूलताओं के बावजूद उन्हें ले डूबी । अगली बार अश्वनी काम्बोज ने अपने आपको रंगा-बिल्ला की छाया से मुक्त किया, तो ऐसे हालात बने कि वह आराम से निर्विरोध ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिए गए । मुकेश गोयल को डर है कि थोड़े से राजनीतिक स्वार्थ में वह यदि रंगा-बिल्ला की जोड़ी के साथ जुड़ जाते हैं, तो कहीं ऐसा न हो कि उक्त जोड़ी की छाया पड़ने से उनकी अभी तक की सारी 'राजनीतिक कमाई', साख और प्रतिष्ठा ही लुट जाए । मुकेश गोयल के इसी डर के चलते संजीव गुप्ता को लेकर बनाया जा रहा रंगा-बिल्ला का ख्याली पुलाव अभी तो पकता हुआ नहीं दिख रहा है - आगे क्या होगा, यह आगे देखेंगे ।

Tuesday, October 16, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रवि सचदेवा के उम्मीदवार के रूप में वापस लौटने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के समीकरणों में आये नाटकीय परिवर्तन ने अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी का रास्ता आसान बनाया

नोएडा । रवि सचदेवा के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में वापस लौट आने से अमित गुप्ता की चुनावी स्थिति को तगड़ा झटका लगा है, और अशोक अग्रवाल के लिए चुनावी मुकाबला आसान होता हुआ नजर आया है । दरअसल रवि सचदेवा के घर पर डकैतों के हुए हमले के बाद रवि सचदेवा जिस तरह अपने परिवार को सुरक्षित करने की चिंता और व्यवस्था करने में व्यस्त हुए, उसके चलते लोगों के बीच संदेश गया कि रवि सचदेवा के लिए अब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ पाना मुश्किल होगा । रवि सचदेवा की पारिवारिक मुश्किल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को दो-पक्षीय बना दे रही थी और माना जाने लगा था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक अग्रवाल और अमित गुप्ता के बीच ही मुकाबला होगा । रवि सचदेवा के मुकाबले से बाहर होने में अमित गुप्ता के लिए लाभ की स्थिति देखी/पहचानी जा रही थी; क्योंकि माना/समझा जा रहा था कि रवि सचदेवा के उम्मीदवार न रहने की स्थिति में उनके समर्थक अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ जुड़ेंगे ।रवि सचदेवा के चुनावी परिदृश्य से दूर होने के कारण उनके समर्थकों व शुभचिंतकों के बीच निराशा तो देखी/पहचानी जा रही थी, लेकिन यह बहुत साफ नहीं हो रहा था कि वह अंततः करेंगे क्या - क्योंकि उनमें से कुछेक लोगों को अशोक अग्रवाल के नजदीक जाता हुआ देखा जा रहा था, तो कुछेक को अमित गुप्ता की तरफ बढ़ता हुआ पाया जा रहा था । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों ने यह भी महसूस किया कि अमित गुप्ता के यहाँ अपनी अनुकूल स्थितियों का राजनीतिक लाभ उठाने का चूँकि कोई 'मैकेनिज्म' नहीं है, इसलिए रवि सचदेवा के चुनावी दौड़ से बाहर होते 'दिखने' के चलते बने मौके का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी संदर्भ में अमित गुप्ता उचित फायदा नहीं उठा पा रहे हैं ।
अमित गुप्ता के समर्थक और शुभचिंतक हालाँकि उम्मीद लगाये हुए थे कि धीरे धीरे रवि सचदेवा के सभी साथी/समर्थक अमित गुप्ता के साथ आ जायेंगे । लेकिन रवि सचदेवा के उम्मीदवार के रूप में वापस आ जाने से उनकी उक्त उम्मीद पर पानी फिर गया है । रवि सचदेवा के उम्मीदवार के रूप में वापस लौट आने से अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने बड़ी राहत महसूस की है । उनका कहना है कि हालाँकि अमित गुप्ता से सीधा मुकाबला होने पर भी अशोक अग्रवाल के लिए कोई समस्या नहीं थी - क्योंकि रवि सचदेवा के उम्मीदवार न रहने की स्थिति में उन्हें मिलने वाले वोट अमित गुप्ता को ट्रांसफर नहीं हो रहे थे; और अब जब रवि सचदेवा उम्मीदवार के रूप में वापस लौट आए हैं, तब तो अशोक अग्रवाल के सामने कोई चुनौती बची ही नहीं रह गई है । रवि सचदेवा के चुनावी मुकाबले से बाहर होने की बातें बनने और फिर उम्मीदवार के रूप में उनके वापस आने से बने माहौल में अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों को अपना दोहरा लाभ होता हुआ नजर आ रहा है - उन्हें लग रहा है कि रवि सचदेवा को पहले तो उस नुकसान की भरपाई करने में जुटना पड़ेगा जो उनके चुनावी मुकाबले से बाहर होने की बातें बनने से उन्हें हुआ है; और उनके भरपाई में जुटने से अमित गुप्ता पर दबाव बनेगा कि कहीं रवि सचदेवा उनके पाले में गए अपने समर्थकों को वापस न ले जाएँ । अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के बीच होने वाली छीना-झपटी अशोक अग्रवाल के लिए अनुकूल माहौल बनाती हैं और उन्हें निश्चिंत करती है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में जिस समय उम्मीदवारों को अपने अपने समर्थन-आधार को बढ़ाने और उसे मजबूत करने में जुटना होता है,  उस समय पर रवि सचदेवा को अपने 'हो चुके' नुकसान की भरपाई करने में तथा अमित गुप्ता को अपने 'हो सकने' वाले नुकसान को बचाने में जुटना पड़ रहा है - यह स्थिति अशोक अग्रवाल के लिए एक अलग फायदे का कारण बनती/बनाती है । इस स्थिति ने दरअसल उन नेताओं को भी असमंजस में डाल दिया है, जो अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में नहीं हैं । उनके लिए वास्तव में यह समझना मुश्किल हो रहा है कि वह अमित गुप्ता और रवि सचदेवा में से किस की उम्मीदवारी का झंडा उठाएँ ? अपने प्रतिद्धंद्धियों और विरोधियों के असमंजस में फँसे होने से अशोक अग्रवाल के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए समर्थन बढ़ाने व मजबूत करने का काम और आसान हो गया है । उनके लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह कहते/बताते हुए अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाना और आसान हो गया है कि अमित गुप्ता और रवि सचदेवा के पास जब अपना कोई समर्थन-आधार ही नहीं है, और जो एक दूसरे के समर्थकों को 'छीनने' की होड़ में लगे हैं - तब फिर उनके लिए मुकाबले में टिके/बने रहना कैसे संभव होगा । रवि सचदेवा के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मुकाबले में वापस लौटने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई के समीकरणों में जो नाटकीय परिवर्तन हुआ है, उसमें अशोक अग्रवाल के लिए एकदम से जो अनुकूल उछाल आया है - उससे डिस्ट्रिक्ट का चुनावी परिदृश्य दिलचस्प व रोमांचपूर्ण हो उठा है ।

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने जा रहे भरत पांड्या द्वारा अगले रोटरी वर्ष में होने वाले इंदौर इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की सूची डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल की उम्मीदों व अपेक्षाओं का गला घोटती सी दिख रही है

जयपुर । अगले रोटरी वर्ष में इंदौर में होने वाले रोटरी जोन इंस्टीट्यूट के लिए भरत पांड्या द्वारा घोषित की गई पदाधिकारियों की सूची में नाम न देख कर डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को जोर का झटका लगा है, और इस झटके ने अनिल अग्रवाल और उनके साथियों को तो निराश किया ही है - साथ ही अन्य कई लोगों को हैरान भी किया है । दरअसल अनिल अग्रवाल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में भरत पांड्या की जैसी मदद की थी, उसके चलते अनिल अग्रवाल को ही नहीं - बल्कि अन्य कई लोगों को पूरी/पक्की उम्मीद थी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में भरत पांड्या जब भी पदों की बंदरबाँट करेंगे - अनिल अग्रवाल का नंबर अवश्य ही लगेगा । चेन्नई इंस्टीट्यूट में भरत पांड्या ने लेकिन जब इंदौर में होने वाली अगली इंस्टीट्यूट के लिए प्रमुख पदों की घोषणा की, तो घोषणा को सुनने वालों को अनिल अग्रवाल का नाम न लिए जाने पर हैरानी हुई । चेन्नई इंस्टीट्यूट में अनुपस्थित रहे अनिल अग्रवाल के नजदीकियों से बाद में सुनने को मिला कि भरत पांड्या के इस 'व्यवहार' से अनिल अग्रवाल खुद भी बहुत आहत महसूस कर रहे हैं । हालाँकि अनिल अग्रवाल ने अपने नजदीकियों के बीच यह कहते/बताते हुए अपना हौंसला और अपनी उम्मीद भी बनाये रखी/दिखाई कि भरत पांड्या ने स्वयं कहा है कि वह अभी चेन्नई इंस्टीट्यूट में मौजूद लोगों के नामों की ही घोषणा कर रहे हैं, इसलिए उनका नाम अभी घोषित नहीं हुआ है । अनिल अग्रवाल ने उम्मीद जताई है कि इंदौर इंस्टीट्यूट के लिए भरत पांड्या जब अपनी पूरी टीम की घोषणा करेंगे, तो टीम में उनका नाम अवश्य ही होगा । 
अनिल अग्रवाल के नजदीकियों के लिए, भरत पांड्या की टीम में अनिल अग्रवाल का नाम होने या न होने की बात का रोमांच लेकिन अब खत्म हो गया है । उनका कहना है कि महत्त्वपूर्ण पद तो बँट गए हैं, अब तो बस टीम में खुरचन वाले पद ही बचे हैं - जिनका मिलना या न मिलना एक बराबर ही है । भरत पांड्या ने इंदौर इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों की सूची में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपने मददगार रहे लोगों को जिस दिल-खोल तरीके से उपकृत किया है, उसे देखते हुए अनिल अग्रवाल को उक्त सूची में नाम न होने का झटका कुछ ज्यादा ही जोर से लग गया 'सुना' जा रहा है । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के जिन सदस्यों ने भरत पांड्या की उम्मीदवारी का समर्थन किया था, उन सभी को भरत पांड्या ने इंदौर इंस्टीट्यूट की टीम में प्रमुख पदों से सुसज्जित कर दिया है । इंस्टीट्यूट के चेयरमैन और सेक्रेटरी जैसे महत्त्वपूर्ण पद तक उन्होंने चुनाव में मदद करने के 'गणित' के आधार पर बाँट दिए हैं । अनिल अग्रवाल को वास्तव में इसी बात से झटका लगा है, और अन्य कई लोगों को हैरानी हुई है । इनको लगता है कि मदद करने के 'गणित' के आधार पर ही भरत पांड्या ने जब पदों की बंदरबाँट की है, तब तो अनिल अग्रवाल को महत्त्वपूर्ण पद अवश्य ही मिलना चाहिए था । वास्तव में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अनिल अग्रवाल ने भरत पांड्या की जैसी मदद की थी, वैसी मदद भरत पांड्या को किसी और से मिल ही नहीं सकती थी । कई लोगों का मानना और कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में चेलैंजिंग उम्मीदवार अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट में होते हुए भी अनिल अग्रवाल ने जिस हिम्मत के साथ भरत पांड्या की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था - उसके लिए वह भरत पांड्या से एक अच्छे 'अवॉर्ड' का हक रखते हैं, लेकिन भरत पांड्या ने लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की कुर्सी पर बैठने से पहले ही अनिल अग्रवाल के उपकार को भुला दिया है ।
भरत पांड्या के नजदीकियों का कहना लेकिन यह है कि भरत पांड्या की नजर में अनिल अग्रवाल की मदद वास्तव में कोई मदद थी ही नहीं - वह तो बस अशोक गुप्ता के प्रति अपनी खुन्नस निकालने के लिए उनकी उम्मीदवारी का झंडा उठाये हुए थे । भरत पांड्या के समर्थक नेताओं का भी मानना/कहना रहा है कि अनिल अग्रवाल अपने डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के चलते अशोक गुप्ता का विरोध करने के अभियान पर थे - न कि भरत पांड्या की उम्मीदवारी का समर्थन व सहयोग कर रहे थे; और इसीलिए भरत पांड्या को उनसे वोटों का कोई सहयोग नहीं मिला । भरत पांड्या के लोगों का तो बल्कि यहाँ तक कहना है कि भरत पांड्या की उम्मीदवारी के समर्थन की बात कहते/करते हुए अनिल अग्रवाल कई बार अशोक गुप्ता को आश्वस्त करते हुए भी सुने/देखे गए कि मैं तो आपके ही साथ हूँ, और लोग झूठे ही अफवाह उड़ा रहे हैं कि मैं आपका विरोध कर रहा हूँ । दरअसल इस तरह के नजारों को देख कर ही भरत पांड्या के खेमे में अनिल अग्रवाल की भूमिका के प्रति संदेह पैदा हो गया था और उन्हें भरोसे के साथी के रूप में स्वीकार किए जाने से बचा गया था । किसी भी चुनाव में उम्मीदवारों के समर्थकों और विरोधियों की एक 'श्रेणी' स्वतः बन जाती है, और उसके बनने को व्यापक स्तर पर 'स्वीकार' भी कर लिया जाता है - लेकिन जोन चार में हुए रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल की भूमिका ने एक अलग ही 'श्रेणी' बनाई, जिसके चलते वह किसी भी तरफ 'स्वीकार' नहीं हुए । कुछेक लोगों का यह भी मानना और कहना है कि भरत पांड्या यदि अनिल अग्रवाल को ज्यादा तवज्जो देते हैं, तो लोगों के बीच यह समझा जायेगा कि वह अशोक गुप्ता को नीचा दिखाने और उन्हें चिढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं; भरत पांड्या अपने समर्थकों को उपकृत करने का काम तो खुल कर करना चाहते हैं, लेकिन विरोधी रहे लोगों से सीधे-सीधे पंगा लेने से भी बचने का प्रयास कर रहे हैं - ताकि उनकी डायरेक्टरी में कोई बखेड़ा खड़ा न हो । भरत पांड्या की यह 'सावधानी' अनिल अग्रवाल की उम्मीदों व अपेक्षाओं का गला घोटती सी दिख रही है । 

Monday, October 15, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सीपीई कमेटी की चेयरपरसन श्रीप्रिया कुमार द्वारा नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के खिलाफ मिली शिकायत की जाँच में अड़ंगा डालने की अतुल गुप्ता की कोशिश कामयाब हो सकेगी क्या ?

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता को इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में पुनर्निर्वाचन के लिए चलाया जा रहा अपना चुनाव अभियान बीच में छोड़ कर अपने नजदीकी रिश्तेदार और उनके नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल को बचाने के लिए जुटना पड़ रहा है । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अतुल गुप्ता के नजदीकी रिश्तेदार नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के प्रमुख कर्ता-धर्ता हैं, और इस रिश्तेदारी के चलते नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल पर अतुल गुप्ता के चुनाव अभियान का अड्डा बन जाने का आरोप लगता रहा है । नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के सामने मौजूदा मुसीबत फर्जी तरीके से सीपीई आर्स बाँटने/देने के आरोप के चलते आई है । मामला हाई-प्रोफाइल है, इसलिए उसमें लीपापोती कर पाना मुश्किल बना हुआ है । नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल ने फर्जी तरीके से सीपीई आर्स बाँटने/देने के जोश में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल और उनके पति मोहित बंसल को भी चार सेमिनार्स के 16 घंटे के सीपीई आर्स दे दिए, जबकि यह दोनों किसी भी सेमीनार में उपस्थित नहीं हुए थे । सेमीनार में बिना उपस्थित हुए सीपीई आर्स मिलने पर चकराए मोहित बंसल ने इंस्टीट्यूट की सीपीई (कन्टीन्यूइंग प्रोफेशनल एजुकेशन) कमेटी में इसकी शिकायत कर दी; कमेटी की चेयरपरसन श्रीप्रिया कुमार ने उनकी शिकायत पर कार्रवाई करते हुए कमेटी के सचिव अजीत नाथ तिवारी को जाँच के आदेश दे दिए और जाँच पूरी होने तक नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के सीपीई से जुड़े सभी प्रोग्राम स्थगित करने के लिए कहा है । मजे की बात यह है कि खुद सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अतुल गुप्ता भी इंस्टीट्यूट की सीपीई कमेटी के सदस्य हैं ।
अतुल गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनकी छत्रछाया में उनके नजदीकी रिश्तेदार द्वारा चलाये जा रहे स्टडी सर्किल में 'चोरी' का सामान 'बेचने' की कोशिश चूँकि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल और उनके पति मोहित बंसल को हुई, इसलिए मामला हाई-प्रोफाइल बन गया है । उल्लेखनीय है कि इस तरह के मामले प्रायः यह कहते/बताते हुए रफा-दफा कर दिए जाते रहे हैं कि हो सकता है कि सदस्य ने अपनी जगह किसी और को या अपने ऑर्टिकल को सेमीनार में भेज दिया होगा, जो उनके हस्ताक्षर करके सेमीनार में शामिल हो गया होगा । लेकिन संदर्भित मामले में यह बहाना तर्कसंगत नहीं पड़ता है । रीजनल काउंसिल चूँकि स्टडी सर्किल्स की पैरेंट बॉडी होती है, इसलिए इस बात पर विश्वास करना संभव नहीं है कि स्टडी सर्किल के कर्ता-धर्ता रीजनल काउंसिल के एक प्रमुख पदाधिकारी को नहीं पहचानते हैं - और उनके हस्ताक्षर करके कोई और सेमीनार में शामिल होकर चला गया । इस मामले ने वास्तव में स्टडी सर्किल्स में होने वाली घपलेबाजियों के पिटारे को खोलने का काम किया है । स्टडी सर्किल्स पर फर्जी तरीके से सीपीई आर्स बाँटने/देने का आरोप ही नहीं लगता रहा है, बल्कि सेमिनार्स में उपस्थिति को बढ़ा-चढ़ा कर दिखा कर पैसों की लूट-खसोट करने के आरोप भी लगते रहे हैं । स्टडी सर्किल्स इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों के लिए उड़ान भरने के अड्डे के रूप में भी देखे/पहचाने जाते हैं - और इसलिए इन्हें राजनीतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए भरसक तरीके से इस्तेमाल किया जाता है । द्वारका सीपीई स्टडी सर्किल की आड़ में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के लिए चुनावी तैयारी करते रहने वाले रतन सिंह यादव ने हाल ही में नए राजनीतिक प्रयोग किए, जिसके तहत उन्होंने सेंट्रल काउंसिल के कुछेक उम्मीदवारों को स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया । उनमें से कुछेक से पैसे लेने के आरोप भी उन पर लगे और इंस्टीट्यूट में शिकायत हुई । इस शिकायत के लिए रतन सिंह यादव को सेंट्रल काउंसिल के जिन उम्मीदवार पर शक हुआ, उन्हें भी फिर एक सेमीनार में स्पीकर के रूप में आमंत्रित कर उनके गुस्से को उन्होंने शांत किया और अपने खिलाफ हुई शिकायत को रफा-दफा करवाने का प्रयास किया ।
समझा जाता है कि स्टडी सर्किल्स के कर्ता-धर्ताओं के खिलाफ लगातार मिल रही शिकायतों के कारण ही सीपीई कमेटी की चेयरपरसन श्रीप्रिया कुमार ने नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के मामले को खासी गंभीरता से लिया, और जाँच के दायरे में सभी स्टडी सर्किल्स को ले लिया है । वास्तव में, फर्जी तरीके से सीपीई आर्स बाँटना/देना सिर्फ नार्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल का ही मामला नहीं है, बल्कि अधिकतर स्टडी सर्किल्स से जुड़ा मामला है । जो स्टडी सर्किल्स इंस्टीट्यूट की विभिन्न काउंसिल्स के लिए चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के सीधे नियंत्रण में हैं, और या उम्मीदवारों के नजदीकी रिश्तेदारों द्वारा नियंत्रित किए जा रहे हैं - उनमें तो मामला बहुत ही खराब है, और वहाँ हर तरह की हेरा-फेरियाँ व बेईमानियाँ होने के आरोप लगते हैं । समझा जाता है कि आरोपों को ध्यान में रखते हुए ही श्रीप्रिया कुमार ने नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के मामले में शिकायत मिलने के मौके को स्टडी सर्किल्स में होने वाली मनमानियों व बेईमानियों पर लगाम कसने के अवसर के रूप में देखा/पहचाना और चेयरपर्सनी का चाबुक खड़का दिया है । श्रीप्रिया कुमार द्वारा शुरू की गई कार्रवाई को पंक्चर करने के लिए अतुल गुप्ता के भी सक्रिय होने की चर्चा सुनी जा रही है । उनके नजदीकियों का ही कहना है कि अतुल गुप्ता ने नार्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के पदाधिकारियों को आश्वस्त किया है, कि उन्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है और उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं होगी और मामला यूँ ही रफादफा हो जाएगा । हालाँकि नार्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के कुछेक पदाधिकारियों को लग रहा है कि अतुल गुप्ता को चूँकि अगले तीन महीनों में इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए समर्थन जुटाने के काम में लगना है, इसलिए इस मामले में वह ऐसा कोई काम नहीं करेंगे जिससे कि उनके वाइस प्रेसीडेंट पद की उम्मीदवारी में बात बिगड़े - और इस कारण से नॉर्थ-एक्स सीपीई स्टडी सर्किल के मामले में श्रीप्रिया कुमार द्वारा बैठाई गई जाँच का संभव है कि कोई सकारात्मक नतीजा मिल सके । देखना दिलचस्प होगा कि इस मामले को ठंडे बस्ते में पहुँचाने के लिए अतुल गुप्ता खुलकर या छिपकर कोई प्रयास करते हैं, या फिर ईमानदारी से जाँच व कार्रवाई होने देते हैं ?

Sunday, October 14, 2018

रोटरी में घटी कुछेक प्रमुख व बड़ी घटनाओं के समकक्ष रखे जाने के चलते स्वाति गुप्ता को मिला पुरुस्कार डिस्ट्रिक्ट 3012 में अमित गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में माहौल बनाता सा दिखने लगा है क्या ?

गाजियाबाद । स्वच्छ भारत मिशन में सहयोग के लिए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों स्वाति गुप्ता के पुरुस्कृत होने की खबर - बाद की रोटरी की कुछेक अन्य सकारात्मक घटनाओं के चलते जिस तरह पुनः चर्चा में आ गई है, उसने स्वाति गुप्ता और उनके पति अमित गुप्ता के रोटरी को वास्तविक अर्थों में पहचान देने और उसके लिए सक्रिय होने के तथ्य को एक बार फिर स्थापित किया है । उल्लेखनीय है कि रोटेरियन के रूप में स्वाति गुप्ता जिस समय लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के हाथों पुरुस्कार प्राप्त कर रही थीं, लगभग उसी समय इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होने के बाद सुशील गुप्ता चेन्नई में आयोजित इंस्टीट्यूट में सम्मानित हो रहे थे । उसके बाद दिल्ली और जयपुर में सुशील गुप्ता के स्वागत-सम्मान की और दिल्ली में कार रैली की तैयारी की चर्चा शुरू हो गई । दिल्ली में सुशील गुप्ता के स्वागत-सम्मान और कार रैली के आयोजन की धूम रही - और इस धूम में रोटेरियंस ने मौजूदा पखवाड़े को रोटरी के लिहाज से उल्लेखनीय व महत्त्वपूर्ण माना और रेखांकित किया ।
इसी रेखांकन में यह तथ्य उभर का सामने आया कि रोटरी के लिए महत्त्वपूर्ण बने मौजूदा पखवाड़े की शुरुआत लखनऊ में स्वाति गुप्ता के पुरुस्कार प्राप्त करने से हुई थी । स्वाति गुप्ता यूँ तो निरंतर व विविधतापूर्ण सक्रियता के कारण डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस के बीच खुद की व्यापक पहचान व सम्मान रखती हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में इस वर्ष उनकी पहचान अमित गुप्ता की पत्नी के रूप में भी सहज रूप में उल्लेखनीय हो जाती है । अमित गुप्ता इस वर्ष चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं, इसलिए उनके साथ-साथ स्वाति गुप्ता की सक्रियता व उपलब्धियों को उनकी उम्मीदवारी के 'चश्मे' से भी लोग देखने लगते हैं । यूँ भी अमित गुप्ता और स्वाति गुप्ता का रोटरी में भागीदारी और सक्रियता का जो स्तर है, वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट में अकेले ऐसे दंपति की पहचान देता है, जो रोटरी में समान रूप से सक्रिय हैं और रोटरी के कामों में समान रूप से बढ़चढ़ कर भाग लेते हैं । ऐसे में यह स्वाभाविक ही है कि स्वाति गुप्ता की सक्रियता व उपलब्धि की व्यापक तस्वीर अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच एक व्यापक सकारात्मक अपील पैदा करती है और उसे विश्वसनीय रूप देती है - और इस तरह से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य में अमित गुप्ता की उम्मीदवारी को दिलचस्प बनाती है ।
स्वाति गुप्ता ने लखनऊ में जो पुरुस्कार प्राप्त किया, उसकी जानकारी एक सामान्य घटना के रूप में 'आई' और 'गई' खबर बन कर रह जाती - यदि कुछेक अन्य बड़ी 'बातों' के कारण मौजूदा पखवाड़ा रोटरी के लिए उल्लेखनीय व महत्त्वपूर्ण न बन गया होता । मौजूदा पखवाड़ा उल्लेखनीय व महत्त्वपूर्ण बना तो उसके प्रस्थान बिंदु के रूप में स्वाति गुप्ता का पुरुस्कार प्राप्त करना स्वतः चर्चा में आ गया - और रोटरी व डिस्ट्रिक्ट 3012 की पहचान के संदर्भ में एक प्रमुख और बड़ी घटना बन गया । उक्त पुरुस्कार के लिए स्वाति गुप्ता ने जिस तरह से अपने क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद सेंट्रल के पदाधिकारियों व सदस्यों तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सहित डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख पदाधिकारियों से मिले सहयोग को श्रेय दिया है, तथा इस पुरुस्कार पर डिस्ट्रिक्ट के सभी लोगों का हक बताया है - उसके जरिए वास्तव में उन्होंने रोटरी की सामूहिक भावना व शक्ति को ही अभिव्यक्ति दी है । स्वाति गुप्ता को मिले पुरुस्कार के वाकये को जिस तरह से रोटरी में घटने वाली बड़ी घटनाओं के समकक्ष रखा गया है, और उसके चलते वह जिस तरह से अमित गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के संदर्भ में माहौल बनाता सा दिखने लगा है - उससे डिस्ट्रिक्ट का चुनावी परिदृश्य रोमांचपूर्ण हो उठा है ।

Thursday, October 11, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स को मनमाने और अनुचित तरीके से 'बनाने' के आरोपी रहे हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने से भड़के माहौल में राजा साबू भी फजीहत का शिकार बने

चंडीगढ़/रुड़की । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाने को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल तो आरोपों के घेरे में आ ही गए हैं, खुद हेमंत अरोड़ा और पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू के लिए भी फजीहत वाली स्थिति बन गई है । हेमंत अरोड़ा को तुरंत प्रभाव से फाइनेंस कमेटी से हटाने की माँग की जा रही है; लोगों का कहना है कि प्रवीन गोयल यदि फाइनेंस कमेटी से उन्हें नहीं हटाते हैं तो राजा साबू को मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए और हेमंत अरोड़ा को तुरंत डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटवाना चाहिए । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल ने हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाने के लिए राजा साबू से अवश्य ही हरी झंडी ली होगी; ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि हेमंत अरोड़ा 'जैसे' व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाने का फैसला प्रवीन गोयल ने क्यों तो लिया - और क्यों राजा साबू ने उन्हें इस फैसले के लिए अपनी तरफ से हरी झंडी दी ? हेमंत अरोड़ा वर्ष 2014-15 के डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स के ऑडिटर थे, और उस वर्ष के अकाउंट्स में भारी झोलझाल हुआ था - और उस झोलझाल में ऑडिटर के रूप में हेमंत अरोड़ा की भूमिका को संदिग्ध देखा/समझा गया था । उक्त भूमिका को लेकर हेमंत अरोड़ा की उस समय भी खासी फजीहत हुई थी । डिस्ट्रिक्ट में लोग तीन वर्ष पुराने उस किस्से को भूलने लगे थे, लेकिन हेमंत अरोड़ा के डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनने की खबर मिलने के बाद से - हेमंत अरोड़ा की तीन वर्ष पहले की वह 'अनुचित' भूमिका एक बार फिर चर्चा में आ गई है, और लोगों की यादें ताजा हो गई हैं । 
उल्लेखनीय है कि दिलीप पटनायक के गवर्नर-वर्ष 2014-15 के डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स की दो बैलेंस-शीट बनी थीं, जिन्हें ऑडिटर के रूप में हेमंत अरोड़ा ने साइन किया था । यह दो बैलेंस-शीट का बनना और साइन होना विवाद और आरोपों का विषय इसलिए बना था - क्योंकि 16 सितंबर 2015 को साइन हुई बैलेंस-शीट में 20,407 रुपए का जो लाभ आ रहा था, वह 30 अक्टूबर 2015 को साइन हुई दूसरी बैलेंस-शीट में 6 लाख 23 हजार 547 रुपए के घाटे में बदल गया । इस 'जादु' को चार्टर्ड एकाउंटेंट व ऑडिटर हेमंत अरोड़ा के 'अनुचित व्यवहार' के रूप में देखा/समझा गया था । हेमंत अरोड़ा को इसलिए भी फजीहत का सामना करना पड़ा था क्योंकि बैलेंस-शीट में ऑडिटर के रूप में उन्होंने खुद दर्ज किया था कि बहुत से खर्चे कच्चे बिल्स के आधार पर हिसाब-किताब में लिए गए हैं । उस समय डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से खुल कर आरोप लगे थे कि डिस्ट्रिक्ट के पैसों में हेराफेरी करने के उद्देश्य से फर्जी तरीके से लाभ को घाटे में बदला गया है - और इसमें दिलीप पटनायक से लेकर राजा साबू की भी मिलीभगत है । विवाद और आरोपों से परेशान और हताश हेमंत अरोड़ा ने कुछेक लोगों के बीच कहा भी था कि सभी जानते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में किसके दबाव में न जाने क्या-क्या करना पड़ता है । डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स में फर्जीवाड़ा करने के आरोपों से घिरे हेमंत अरोड़ा के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते फजीहत की ज्यादा स्थिति बनी । वह पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न होते, तो सिर्फ ऑडिटर होने के नाते फजीहत का शिकार न बनते ।  
हेमंत अरोड़ा पर आरोपों की बौछार से बना माहौल धीरे-धीरे ठंडा पड़ रहा था, लेकिन अब जो फिर से गर्म हो उठा है । 'बिल्ली को थैले से बाहर निकालने' का काम डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ रोटेरियन तथा डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य एमपी गुप्ता ने किया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को पत्र लिख कर उन्होंने हेमंत अरोड़ा के वर्ष 2014-15 के कार्य-व्यवहार का उदाहरण देते हुए डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने पर अपनी आपत्ति दर्ज करवायी है । एमपी गुप्ता ने अपने पत्र में प्रवीन गोयल को लिखा है कि हेमंत अरोड़ा के पिछले कृत्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें तुरंत प्रभाव से डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटाया जाए । मजे की बात यह भी है कि हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य गुपचुप रूप से बनाया गया, और इसकी किसी को हवा भी नहीं लगी । इसका पता लोगों को अभी तब लगा, जब डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की ई-कॉपी उन्हें मिली । प्रवीन गोयल की गवर्नरी का चौथा महीना चल रहा है, लेकिन कामकाज का आलम यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी की हॉर्ड-कॉपी का अभी तक कोई अता-पता नहीं है । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की ई-कॉपी भी लोगों को अभी मिल पायी है । इससे ही हेमंत अरोड़ा के डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के सदस्य बनने का लोगों को पता चला - और बबाल हो गया । डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू और उनसे जुड़े लोगों की बेईमानियों के किस्से दरअसल इतने इकट्ठे हो गए हैं, कि लोगों को उनके द्वारा लिया जाने वाला कोई भी संदेहास्पद फैसला लूट-खसोट की मदद करने वाला दिखने/लगने लगता है । डिस्ट्रिक्ट के तमाम प्रोजेक्ट्स व ट्रस्ट के हिसाब-किताब जिस तरह से कुछेक लोगों की ही जानकारी में रहते हैं और उन्हें लोगों से - यहाँ तक कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स तक से - छिपा कर रखा जाता है; जिसे लेकर निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायत कर चुके हैं; उसके चलते राजा साबू और उनसे जुड़े पूर्व गवर्नर्स की भूमिका को संदेह से देखा जाता है । इसी कारण से हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने से मामला भड़क गया है, और हेमंत अरोड़ा को फाइनेंस कमेटी से हटाने की माँग होने लगी है ।