हापुड़ । मुकेश गोयल के यहाँ नियमित रूप से उठने-बैठने वाले लोगों ने बताया है कि डिस्ट्रिक्ट में रंगा-बिल्ला के रूप में पहचानी जाने वाली जोड़ी - जिनमें एक डिस्ट्रिक्ट ही नहीं, बल्कि पूरे लायन समाज में 'चोर गवर्नर' के नाम से कुख्यात है - आजकल मुकेश गोयल के साथ नजदीकी दिखाने का नाटक दरअसल संजीव गुप्ता को आश्वस्त करने के लिए कर रही है । संजीव गुप्ता गाजियाबाद के एक व्यापारी नेता हैं, और पिछले कई वर्षों से लायनिज्म में भी सक्रिय हैं । रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने उन्हें (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए तैयार तो कर लिया है, लेकिन उनके सामने मुसीबत की बात यह बनी हुई है कि संजीव गुप्ता उन पर भरोसा नहीं कर रहे हैं - और इस कारण से उनसे 'लुट' नहीं रहे हैं । संजीव गुप्ता को अच्छे से पता है कि पिछले तीन वर्षों में जो जो लोग इस जोड़ी के साथ रहे, वह लुट-पिट कर या तो घर बैठ गए और या इनसे पीछा छुड़ा कर और पाला बदल कर कामयाबी के रास्ते पर आगे बढ़ गए । संजीव गुप्ता एक कुशल व्यापारी व्यक्ति हैं, वह जानते/समझते हैं कि व्यापार में 'कबाड़' टाइप की चीजों की जरूरत तो होती है, लेकिन सिर्फ 'कबाड़' के भरोसे 'व्यापार' नहीं किया जा सकता है । इसलिए वह सिर्फ रंगा-बिल्ला के भरोसे उम्मीदवार बनने को - और उनके कहने में आकर अपनी जेब ढीली करने को तैयार नहीं हैं । इस समस्या को हल करने के लिए रंगा-बिल्ला की जोड़ी ने मुकेश गोयल के साथ नजदीकी बनाना और 'दिखाना' शुरू किया है, ताकि वह संजीव गुप्ता को आश्वस्त कर सकें कि मुकेश गोयल उनके साथ आ गए हैं - और जब मुकेश गोयल साथ आ गए हैं, तो फिर उनका (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना पक्का ही है । रंगा-बिल्ला की जोड़ी को विश्वास है कि संजीव गुप्ता जब मुकेश गोयल को इनके साथ देखेंगे, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आश्वस्त हो जायेंगे - और तब वह इनके ऊपर पैसे खर्च करना शुरू कर देंगे ।
मुकेश गोयल को अपने साथ दिखाना रंगा-बिल्ला की जोड़ी को इसलिए थोड़ा आसान लग रहा है, क्योंकि मुकेश गोयल खुद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लेकर असमंजस में हैं - वह कभी राजेश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कभी पंकज बिजल्वान की बात करते सुने जाते हैं । मुकेश गोयल के यहाँ नियमित रूप से उठने/बैठने वाले लोगों का कहना है कि मुकेश गोयल वास्तव में तो पंकज बिजल्वान को उम्मीदवार बनाना चाहते हैं; लेकिन एक तरफ तो उम्मीदवार हो सकने के नियमों को पूरा करने के मामले में पंकज बिजल्वान का पक्ष कुछ कमजोर पड़ रहा है, इसलिए उनके उम्मीदवार हो सकने को लेकर असमंजसता है; और दूसरी तरफ पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी के पक्ष में देहरादून से ही चूँकि कोई खास वकालत नहीं हो रही है - इसलिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर पंकज बिजल्वान पर्दे के पीछे भले ही कोई जोड़-तोड़ कर रहे हों, उनकी उम्मीदवारी किसी को लेकिन नजर नहीं आ रही है । मसूरी के गौरव गर्ग ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर जो सुगबुगाहट दिखाई है, और उनकी उम्मीदवारी को मेरठ में मुकेश गोयल के नजदीकियों के बीच ही जो समर्थन मिलता दिख रहा है, उसके चलते अनुमान लगाया जा रहा है कि मेरठ के लायन नेताओं के दबाव में मुकेश गोयल को कहीं गौरव गर्ग की उम्मीदवारी का ही झंडा न उठाना पड़ जाए । ऐसे में रंगा-बिल्ला की जोड़ी को उम्मीद बनी है कि असमंजस में फँसे मुकेश गोयल को अपने साथ करके - वह अपनी राजनीति चला सकते हैं । इसलिए 'गालियों की अपनी तोप' को उन्होंने फिलहाल मुकेश गोयल के सामने से हटा लिया है, और उसे मुकेश गोयल खेमे के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल व फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीवा अग्रवाल के सामने रख दिया है ।
रंगा-बिल्ला की जोड़ी को लगता है कि गालियों की अपनी तोप की इस शिफ्टिंग के जरिये वह विनय मित्तल व संजीवा अग्रवाल को बदनाम कर देंगे और मुकेश गोयल को उनसे दूर कर देंगे - और तब मुकेश गोयल के पास उनसे जुड़ने के अलावा कोई चारा नहीं बचेगा । ऐसी स्थिति में संजीव गुप्ता उन पर भरोसा कर लेंगे और (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए उनके हाथों 'लुटने' के लिए तैयार हो जायेंगे - और उजड़ी पड़ी उनकी राजनीतिक दुकान एक बार फिर सज जाएगी । लोगों को लगता है कि रंगा-बिल्ला की जोड़ी 'ख्याली पुलाव' तो ठीक बना रही है, क्योंकि उनके साथ-साथ अन्य कई लोगों को भी लगता है कि मुकेश गोयल नए नए समीकरण बनाने में तथा विरोधी रहे व गालियाँ बकते रहे लोगों के साथ पुनः जुड़ने में हिचकते नहीं हैं - समस्या लेकिन रंगा-बिल्ला की जोड़ी की बदनामी से जुड़ी है । इस जोड़ी की ऐसी बदनामी है कि जो भी इनसे जुड़ा, जिस पर भी इनकी छाया पड़ी - वह बेचारा तबाह ही हुआ । अश्वनी काम्बोज इसका जीवंत उदाहरण हैं - वह जब पहली बार उम्मीदवार बने थे, तब उनके साथ सब कुछ अच्छा ही अच्छा था; बहुत से पूर्व गवर्नर्स का उन्हें समर्थन था, सत्ता का उन्हें समर्थन था, उन्होंने बहुत मेहनत भी की थी और जमकर पैसे भी खर्च किए थे; लेकिन फिर भी वह चुनाव हार गए थे । कारण सिर्फ यही था कि उन पर रंगा-बिल्ला की छाया थी, जो तमाम अनुकूलताओं के बावजूद उन्हें ले डूबी । अगली बार अश्वनी काम्बोज ने अपने आपको रंगा-बिल्ला की छाया से मुक्त किया, तो ऐसे हालात बने कि वह आराम से निर्विरोध ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिए गए । मुकेश गोयल को डर है कि थोड़े से राजनीतिक स्वार्थ में वह यदि रंगा-बिल्ला की जोड़ी के साथ जुड़ जाते हैं, तो कहीं ऐसा न हो कि उक्त जोड़ी की छाया पड़ने से उनकी अभी तक की सारी 'राजनीतिक कमाई', साख और प्रतिष्ठा ही लुट जाए । मुकेश गोयल के इसी डर के चलते संजीव गुप्ता को लेकर बनाया जा रहा रंगा-बिल्ला का ख्याली पुलाव अभी तो पकता हुआ नहीं दिख रहा है - आगे क्या होगा, यह आगे देखेंगे ।