चंडीगढ़ । राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने एमएल मनचंदा को लेकर अपनी 'महानता' दिखाने की 'राजनीति' में अपनी पत्नी उषा साबू का नाम जिस तरह से इस्तेमाल किया है, उसे कुछेक लोग #मीटू अभियान के एक प्रसंग की तरह देख रहे हैं - और इस नाते से राजा साबू की सोच को विश्लेषित कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि देश भर में इन दिनों #मीटू अभियान का शोर है, जिसमें तमाम जाने-माने लोगों के चेहरों से नकाब उतर रहे हैं और एक केंद्रीय मंत्री को तो अपनी कुर्सी तक से हाथ धोना पड़ा है । हालाँकि इस अभियान का अभी जो स्वरूप है उसमें मोटे व ऊपरी तौर पर इसे यौन शोषण व यौन छेड़छाड़ से जोड़ कर ही देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन इस अभियान का वास्तविक और गहरा अर्थ स्त्री के प्रति पुरुष की आंतरिक सामंती बनावट को सामने लाना है, जिसके तहत पुरुष अपने स्वार्थ में स्त्री को तरह तरह से इस्तेमाल करता है । स्त्री के प्रति पुरुष की सामंती बनावट की मार इतनी बारीक है, कि स्त्री घर में ही सबसे ज्यादा प्रताड़ित होती है, और स्त्री का पत्नी-रूप उत्पीड़न का सबसे ज्यादा शिकार होता है । इसी कारण से एक मामले में अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को साफ शब्दों में यह रेखांकित करना पड़ा कि पत्नी पति की संपत्ति नहीं है । पुरुष सौभाग्यशाली हैं कि असुरक्षाबोध और तथाकथित संस्कारों के चलते बनी मानसिकता के कारण पत्नियाँ तमाम उत्पीड़न को सहज भाव से लेती हैं और कोई शिकायत नहीं करती हैं । उषा साबू को सामने करके राजा साबू ने दिल्ली के एक आयोजन में अपने आपको महान दिखाने की जो कोशिश की, उस पर उषा साबू को हो सकता है कि कोई ऐतराज न हुआ हो - लेकिन कई एक लोगों को राजा साबू का व्यवहार उषा साबू को अपमानित व प्रताड़ित करने वाला लगा है; और इसीलिए लोग इस पर जहाँ तहाँ चर्चा कर रहे हैं । कुछेक लोग इस चर्चा को #मीटू अभियान के साइड इफेक्ट के रूप में देख रहे हैं ।
किस्सा यह हुआ कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होने के बाद सुशील गुप्ता देश लौटे तो सीधे चेन्नई इंस्टीट्यूट पहुँचे, जहाँ उनका स्वागत हुआ । इस मौके पर दिए अपने भाषण में सुशील गुप्ता ने अपने रोटरी जीवन में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर एमएल मनचंदा के योगदान को सम्मान के साथ याद किया । एमएल मनचंदा वर्ष 1984-86 में इंटरनेशनल डायरेक्टर थे, और उसके ठीक बाद वाले वर्ष में यानि 1986-87 में सुशील गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे । ऐसे में स्वाभाविक है कि सुशील गुप्ता की 'मेकिंग' में एमएल मनचंदा का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा होगा, और उसी योगदान को सुशील गुप्ता ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में दिए अपने पहले भाषण में सम्मान के साथ याद किया । सुनने वालों ने इसे एक औपचारिक बात की तरह सुना । सुनने वालों में अधिकतर लोग तो ऐसे थे, जिन्होंने एमएल मनचंदा का नाम भी नहीं सुना होगा - इसलिए सुशील गुप्ता द्वारा एमएल मनचंदा को याद करना इंस्टीट्यूट में कोई इश्यू नहीं बना । यह बात इश्यू लेकिन दिल्ली में हुए सुशील गुप्ता के स्वागत समारोह में बनी, जहाँ राजा साबू को भाषण देने का मौका मिला । अपने भाषण में अपनी पत्नी के हवाले से राजा साबू ने जो कहा उसका आशय यह था कि - उषा साबू को चेन्नई इंस्टीट्यूट में सुशील गुप्ता द्वारा एमएल मनचंदा को याद करना और उनका नाम लेना अच्छा नहीं लगा और उन्होंने राजा साबू से कहा कि जिस व्यक्ति के कारण हमें खासी परेशानी उठानी पड़ी, उसे सुशील गुप्ता इतने सम्मान से क्यों याद कर रहे हैं । इस पर राजा साबू ने उनसे कहा कि हमें पुरानी बातों को भूल कर आगे बढ़ना है और मिलजुल कर काम करना है । एमएल मनचंदा ने 1991-92 के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में राजा साबू को चेलैंज किया था, जिसके चलते राजा साबू को चुनाव लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा था । एमएल मनचंदा की इस कार्रवाई से राजा साबू और उनकी पत्नी अभी तक इतने खफा हैं कि खुद राजा साबू के अनुसार, उषा साबू तो एमएल मनचंदा का नाम भी नहीं सुनना चाहती हैं और राजा साबू अपनी महानता के चलते उस बात को लेकिन अब भूलना चाहते हैं ।
राजा साबू की इस बात में लोगों को राजा साबू की अपने आपको महान 'दिखाने' की कोशिश नजर आई ।इसमें बुरी बात लोगों को यह लगी कि अपने आपको महान दिखाने की कोशिश में राजा साबू ने अपनी ही पत्नी को ही मोहरा बना लिया । राजा साबू के संपर्क में आने/रहने वाले लोग बताते रहे हैं कि अपने आपको महान दिखाने/जताने के चक्कर में राजा साबू प्रायः दूसरों को छोटा व नीचा दिखाने का काम खूब करते रहते हैं - लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि अपने इस प्रिय खेल में वह अपनी पत्नी को भी नहीं बख्शेंगे । एमएल मनचंदा के प्रति उषा साबू के मन में जो भाव हैं, उन्हें समझा जा सकता है । वास्तव में पति की परेशानी में सबसे ज्यादा कष्ट पत्नी को ही उठाना पड़ता है, इसलिए वह एक अलग तरीके से सोचती है, जो अक्सर ही एकांगी और अव्यावहारिक भी होता है । इस सोच को सार्वजनिक करने का कोई कारण नहीं बनता है । रोटरी में और राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में कई लोग हैं, जिन्हें राजा साबू ने तरह तरह से सताया है; राजा साबू द्वारा सताये गए लोगों की पत्नियाँ भी हो सकता है कि राजा साबू का नाम न सुनना चाहती हों या उनकी शक्ल न देखना चाहती हों - तो कोई क्या करें ? एमएल मनचंदा को सुशील गुप्ता सम्मान के साथ याद करना चाहते हैं, तो राजा साबू - या कोई और भी क्या कर सकता है ? राजा साबू की पत्नी एमएल मनचंदा का नाम सुनना नहीं चाहतीं, और यह बात उन्होंने सिर्फ राजा साबू से कही - राजा साबू के लिए बड़ा आसान था कि अपनी पत्नी की इस बात को वह अपने बीच ही रहने देते । लेकिन तब फिर वह अपने आपको महान कैसे दिखाते/जताते ? अपने आपको महान दिखाने/जताने के लिए अक्सर दूसरों को छोटा व नीचा दिखाते रहने की आदत से मजबूर राजा साबू ने अपनी पत्नी को भी जिस तरह 'शिकार' बना लिया - उसे देख कर कई लोगों को लगा है कि #मीटू अभियान यदि अपनी वास्तविक व तार्किक परिणति तक पहुँचा तो राजा साबू की यह बात भी एक उदाहरण बनेगी ।