नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक सदस्य दीपक गर्ग के साथ तो बहुत ही
बुरा हुआ । दीपक गर्ग पिछले करीब तीन महीने से चेयरमैन बनने की तिकड़म लगा
रहे थे - लेकिन चेयरमैन बनना तो दूर वह एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य
तक नहीं बन सके । सिर्फ इतना ही नहीं, रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उनकी
हरकतों का खुलासा हुआ, जिससे उनकी भारी फजीहत हुई - और सिर्फ यही नहीं हुआ,
उन्हें फजीहत से बचाने में उनके 'गुरु' विजय गुप्ता ने भी कोई प्रयास नहीं
किया और उन्हें अकेला छोड़ दिया । नए पदाधिकारियों को चुनने के लिए हुई
रीजनल काउंसिल की मीटिंग दीपक गर्ग के लिए 'सिर मुंडाते ही ओले पड़ने' वाली
साबित हुई । मीटिंग की शुरुआत सेंट्रल काउंसिल के सदस्य संजीव चौधरी के उस
निमंत्रण से हुई जो उन्होंने रीजनल काउंसिल के सदस्य हरित अग्रवाल को दिया, जिसमें कहा गया कि हरित, जो कुछ तुम अभी बाहर कह रहे थे, उसे यहाँ कहो ।
दरअसल, मीटिंग शुरू होने से पहले एक अनौपचारिक बातचीत में हरित अग्रवाल ने
संजीव चौधरी से कुछ कहा था - उसी का संज्ञान लेते हुए संजीव चौधरी ने
मीटिंग के औपचारिक रूप से शुरू होने पर हरित अग्रवाल को निमंत्रित किया ।
हरित अग्रवाल ने जो कुछ कहा, उससे दीपक गर्ग के लिए फजीहत का
माहौल पूरी तरह बन गया । हरित अग्रवाल ने जो बताया, उसका लब्बोलुबाब यह था कि दीपक
गर्ग ने चेयरमैन पद हथियाने की अपनी तिकड़म में सत्ता खेमे से बाहर के दो
सदस्यों - हरित अग्रवाल और मनोज बंसल से संपर्क साधा था और उन्हें पदों का
लालच देकर अपने साथ करने की तैयारी की थी । दीपक गर्ग ने उन्हें समझाया
था कि अपने खेमे में उनकी राजिंदर नारंग, हंसराज चुग और राज चावला से नहीं
बन रही है, इसलिए यदि वह दोनों उनके साथ आ जाते हैं तो उनका एक नया सत्ता
खेमा बन जायेगा । नया सत्ता खेमा बनाने की दीपक गर्ग की कोशिश में स्वदेश
गुप्ता का समर्थन तो उन्हें खुल कर मिल रहा था, लेकिन राधेश्याम बंसल और
विशाल गर्ग के समर्थन को लेकर संदेह बना हुआ था । दरअसल इसीलिए दीपक गर्ग
के प्रयासों के फलीभूत होने में देर लग रही थी । हरित अग्रवाल और मनोज
बंसल सत्ता खेमे का हिस्सा बनने को लेकर तो तैयार हो गए थे, लेकिन वह
आश्वस्त भी हो लेना चाहते थे कि सचमुच में कोई नया सत्ता खेमा बन भी रहा है
? उधर राधेश्याम बंसल और विशाल गर्ग भी दीपक गर्ग की खिचड़ी में शामिल
होने के लिए तब तक इंतज़ार कर लेना चाहते थे, जब तक की खिचड़ी के सचमुच तैयार
होने की स्थितियाँ न बन जाएँ । दीपक गर्ग ने इस खिचड़ी को तैयार करने में
काफी मेहनत की और उनकी मेहनत से परिचित लोगों का कहना है कि इस खिचड़ी को
तैयार करने/करवाने में सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता ने दीपक गर्ग
की बहुत मदद की । चर्चा तो यहाँ तक रही कि दीपक गर्ग के इस खेल के असली सूत्रधार विजय गुप्ता ही थे, दीपक गर्ग तो सिर्फ इस्तेमाल हो रहे थे ।
ख़ैर, इस संबंध में सच्चाई चाहें जो हो - दीपक गर्ग के लिए एक
समय उपलब्धि की बात यह रही कि नए सत्ता खेमे के लिए पर्याप्त लोग जुट गए । इन
जुटे लोगों की एकजुटता को और सीमेंटेड करने के उद्देश्य से दीपक गर्ग
इन्हें लेकर कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर गए और वहाँ एकजुट रहने की सौगंध
ली । यहाँ तक लगा कि दीपक गर्ग ने नया कुनबा जोड़ लिया है और अब उन्हें
चेयरमैन बनने से कोई नहीं रोक सकता है । लेकिन इसके बाद फिर अचानक पता
नहीं कि क्या हुआ, दीपक गर्ग ने हरित अग्रवाल और मनोज बंसल से बात तक करना
बंद कर दिया । उनका माथा ठनका और उन्होंने तहकीकात की तो उन्हें पता चला कि
दीपक गर्ग दूसरे लोगों के साथ भी समीकरण बनाने की जुगाड़ में हैं । हरित
अग्रवाल और मनोज बंसल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया । यह किस्सा बयान करते हुए हरित अग्रवाल ने अपनी बात को
भावनात्मक-सा ट्विस्ट दिया और कहा कि मेरा कैरियर अभी शुरू ही हुआ है, इस
तरह की धोखेबाजी और ठगी के अनुभव लेकर मैं आगे बढ़ूँगा तो मैं कैसा बनूँगा
और प्रोफेशन को तथा इंस्टीट्यूट को कैसी पहचान दूँगा । हरित अग्रवाल के इस किस्से ने मीटिंग में मौजूद सेंट्रल काउंसिल के
सदस्यों को भड़का दिया और उन्होंने लगभग एक मत से कहा कि रीजनल काउंसिल में
जो खेमेबाजी है, उसे ख़त्म किया जाए । इसके लिए उन्होंने फार्मूला सुझाया
कि दीपक गर्ग ने सत्ता खेमे के बहुमत के भरोसे हरित अग्रवाल और मनोज बंसल को जो पद देने का वायदा किया था, उन दोनों को वह पद दिए जाएँ और बाकी पदों के लिए
सत्ता खेमे के लोग जैसे चाहें वैसे चुनाव कर लें । फार्मूले में एक बात यह
और कही गई कि सत्ता खेमे से बाहर जो दो सदस्य हैं - गोपाल केडिया और प्रमोद
माहेश्वरी, उन्हें एक्जीक्यूटिव काउंसिल की प्रत्येक मीटिंग में विशेष
आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया जाये ।
सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने यह फार्मूला सुझाते हुए स्पष्ट कर दिया कि रीजनल
काउंसिल के सत्ता खेमे के लोग यदि इस फार्मूले को स्वीकार नहीं करेंगे तो
फिर वह एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में रीजनल काउंसिल में शामिल होंगे और
देखेंगे कि यहाँ कौन कैसे क्या मनमानी करता है ? सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के यह तेवर देख कर रीजनल काउंसिल में सत्ता की बंदरबाँट की जुगाड़ में लगे सत्ता
खेमे के सदस्यों ने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी और सेंट्रल काउंसिल
के सदस्यों द्धारा सुझाए गए फार्मूले को स्वीकार करते हुए बाकी बचे पदों के लिए पिछली बार तय किये गए तरीके - लॉटरी निकालने के जरिए - से चुनाव करने को राजी हो गए । यानि, सत्ता खेमे के लिए दीपक गर्ग की हरकत से हालात यह बने कि 'खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा बारह आना ।' आखिर हुआ वही
जो होना तय हुआ था; दीपक गर्ग हरकत न करते और यही होने देते तो सत्ता खेमे
की एकता भी बनी रहती और उन्हें सेंट्रल काउंसिल के फार्मूले को स्वीकार
करने के लिए मजबूर भी न होना पड़ता - और सबसे बड़ी बात कि दीपक गर्ग की फजीहत
भी नहीं होती । जिनको भी दीपक गर्ग की हरकत का पता चला है, उनका कहना रहा है कि दीपक गर्ग ने काउंसिल के अपने साथियों को तो धोखा दिया और देने की कोशिश की ही, हनुमान जी को भी धोखा देने की जो कोशिश की, उसका ही प्रतिफल उन्हें मिला है और उन्हें भारी फजीहत का शिकार होना पड़ा है ।