Wednesday, February 26, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में दीपक गर्ग की पोल खुली और लॉटरी लगी राधेश्याम बंसल, मनोज बंसल और हरित अग्रवाल की

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक सदस्य दीपक गर्ग के साथ तो बहुत ही बुरा हुआ । दीपक गर्ग पिछले करीब तीन महीने से चेयरमैन बनने की तिकड़म लगा रहे थे - लेकिन चेयरमैन बनना तो दूर वह एक्जीक्यूटिव काउंसिल के सदस्य तक नहीं बन सके । सिर्फ इतना ही नहीं, रीजनल काउंसिल की मीटिंग में उनकी हरकतों का खुलासा हुआ, जिससे उनकी भारी फजीहत हुई - और सिर्फ यही नहीं हुआ, उन्हें फजीहत से बचाने में उनके 'गुरु' विजय गुप्ता ने भी कोई प्रयास नहीं किया और उन्हें अकेला छोड़ दिया । नए पदाधिकारियों को चुनने के लिए हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग दीपक गर्ग के लिए 'सिर मुंडाते ही ओले पड़ने' वाली साबित हुई । मीटिंग की शुरुआत सेंट्रल काउंसिल के सदस्य संजीव चौधरी के उस निमंत्रण से हुई जो उन्होंने रीजनल काउंसिल के सदस्य हरित अग्रवाल को दिया, जिसमें कहा गया कि हरित, जो कुछ तुम अभी बाहर कह रहे थे, उसे यहाँ कहो । दरअसल, मीटिंग शुरू होने से पहले एक अनौपचारिक बातचीत में हरित अग्रवाल ने संजीव चौधरी से कुछ कहा था - उसी का संज्ञान लेते हुए संजीव चौधरी ने मीटिंग के औपचारिक रूप से शुरू होने पर हरित अग्रवाल को निमंत्रित किया ।
हरित अग्रवाल ने जो कुछ कहा, उससे दीपक गर्ग के लिए फजीहत का माहौल पूरी तरह बन गया । हरित अग्रवाल ने जो बताया, उसका लब्बोलुबाब यह था कि दीपक गर्ग ने चेयरमैन पद हथियाने की अपनी तिकड़म में सत्ता खेमे से बाहर के दो सदस्यों - हरित अग्रवाल और मनोज बंसल से संपर्क साधा था और उन्हें पदों का लालच देकर अपने साथ करने की तैयारी की थी । दीपक गर्ग ने उन्हें समझाया था कि अपने खेमे में उनकी राजिंदर नारंग, हंसराज चुग और राज चावला से नहीं बन रही है, इसलिए यदि वह दोनों उनके साथ आ जाते हैं तो उनका एक नया सत्ता खेमा बन जायेगा । नया सत्ता खेमा बनाने की दीपक गर्ग की कोशिश में स्वदेश गुप्ता का समर्थन तो उन्हें खुल कर मिल रहा था, लेकिन राधेश्याम बंसल और विशाल गर्ग के समर्थन को लेकर संदेह बना हुआ था । दरअसल इसीलिए दीपक गर्ग के प्रयासों के फलीभूत होने में देर लग रही थी । हरित अग्रवाल और मनोज बंसल सत्ता खेमे का हिस्सा बनने को लेकर तो तैयार हो गए थे, लेकिन वह आश्वस्त भी हो लेना चाहते थे कि सचमुच में कोई नया सत्ता खेमा बन भी रहा है ? उधर राधेश्याम बंसल और विशाल गर्ग भी दीपक गर्ग की खिचड़ी में शामिल होने के लिए तब तक इंतज़ार कर लेना चाहते थे, जब तक की खिचड़ी के सचमुच तैयार होने की स्थितियाँ न बन जाएँ । दीपक गर्ग ने इस खिचड़ी को तैयार करने में काफी मेहनत की और उनकी मेहनत से परिचित लोगों का कहना है कि इस खिचड़ी को तैयार करने/करवाने में सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता ने दीपक गर्ग की बहुत मदद की । चर्चा तो यहाँ तक रही कि दीपक गर्ग के इस खेल के असली सूत्रधार विजय गुप्ता ही थे, दीपक गर्ग तो सिर्फ इस्तेमाल हो रहे थे ।
ख़ैर, इस संबंध में सच्चाई चाहें जो हो - दीपक गर्ग के लिए एक समय उपलब्धि की बात यह रही कि नए सत्ता खेमे के लिए पर्याप्त लोग जुट गए । इन जुटे लोगों की एकजुटता को और सीमेंटेड करने के उद्देश्य से दीपक गर्ग इन्हें लेकर कनॉट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर गए और वहाँ एकजुट रहने की सौगंध ली । यहाँ तक लगा कि दीपक गर्ग ने नया कुनबा जोड़ लिया है और अब उन्हें चेयरमैन बनने से कोई नहीं रोक सकता है । लेकिन इसके बाद फिर अचानक पता नहीं कि क्या हुआ, दीपक गर्ग ने हरित अग्रवाल और मनोज बंसल से बात तक करना बंद कर दिया । उनका माथा ठनका और उन्होंने तहकीकात की तो उन्हें पता चला कि दीपक गर्ग दूसरे लोगों के साथ भी समीकरण बनाने की जुगाड़ में हैं । हरित अग्रवाल और मनोज बंसल ने अपने आप को ठगा हुआ पाया । यह किस्सा बयान करते हुए हरित अग्रवाल ने अपनी बात को भावनात्मक-सा ट्विस्ट दिया और कहा कि मेरा कैरियर अभी शुरू ही हुआ है, इस तरह की धोखेबाजी और ठगी के अनुभव लेकर मैं आगे बढ़ूँगा तो मैं कैसा बनूँगा और प्रोफेशन को तथा इंस्टीट्यूट को कैसी पहचान दूँगा । हरित अग्रवाल के इस किस्से ने मीटिंग में मौजूद सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को भड़का दिया और उन्होंने लगभग एक मत से कहा कि रीजनल काउंसिल में जो खेमेबाजी है, उसे ख़त्म किया जाए । इसके लिए उन्होंने फार्मूला सुझाया कि दीपक गर्ग ने सत्ता खेमे के बहुमत के भरोसे हरित अग्रवाल और मनोज बंसल को जो पद देने का वायदा किया था, उन दोनों को वह पद दिए जाएँ और बाकी पदों के लिए सत्ता खेमे के लोग जैसे चाहें वैसे चुनाव कर लें । फार्मूले में एक बात यह और कही गई कि सत्ता खेमे से बाहर जो दो सदस्य हैं - गोपाल केडिया और प्रमोद माहेश्वरी, उन्हें एक्जीक्यूटिव काउंसिल की प्रत्येक मीटिंग में विशेष आमंत्रित सदस्य के रूप में शामिल किया जाये ।
सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों ने यह फार्मूला सुझाते हुए स्पष्ट कर दिया कि रीजनल काउंसिल के सत्ता खेमे के लोग यदि इस फार्मूले को स्वीकार नहीं करेंगे तो फिर वह एक्स-ऑफिसो सदस्य के रूप में रीजनल काउंसिल में शामिल होंगे और देखेंगे कि यहाँ कौन कैसे क्या मनमानी करता है ? सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के यह तेवर देख कर रीजनल काउंसिल में सत्ता की बंदरबाँट की जुगाड़ में लगे सत्ता खेमे के सदस्यों ने समर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी और सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों द्धारा सुझाए गए फार्मूले को स्वीकार करते हुए बाकी बचे पदों के लिए पिछली बार तय किये गए तरीके - लॉटरी निकालने के जरिए - से चुनाव करने को राजी हो गए । यानि, सत्ता खेमे के लिए दीपक गर्ग की हरकत से हालात यह बने कि 'खाया पिया कुछ नहीं और गिलास तोड़ा बारह आना ।' आखिर हुआ वही जो होना तय हुआ था; दीपक गर्ग हरकत न करते और यही होने देते तो सत्ता खेमे की एकता भी बनी रहती और उन्हें सेंट्रल काउंसिल के फार्मूले को स्वीकार करने के लिए मजबूर भी न होना पड़ता - और सबसे बड़ी बात कि दीपक गर्ग की फजीहत भी नहीं होती । जिनको भी दीपक गर्ग की हरकत का पता चला है, उनका कहना रहा है कि दीपक गर्ग ने काउंसिल के अपने साथियों को तो धोखा दिया और देने की कोशिश की ही, हनुमान जी को भी धोखा देने की जो कोशिश की, उसका ही प्रतिफल उन्हें मिला है और उन्हें भारी फजीहत का शिकार होना पड़ा है ।  

Tuesday, February 25, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में विनोद बंसल और संजय खन्ना पर 'ठीक से' निमंत्रित न करने का आरोप लगा कर जेके गौड़ उनके कार्यक्रमों से दूर रहे

नई दिल्ली । जेके गौड़ अभी हाल ही में संपन्न हुए न तो विनोद बंसल के आयोजन 'विक्टरी ओवर पोलयो' में शामिल हुए और न संजय खन्ना की कोर टीम के ट्रेनिंग प्रोग्राम में दिखे । इन दोनों प्रमुख आयोजनों में जेके गौड़ की अनुपस्थिति को डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच उनके अलग-थलग पड़ जाने के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । पिछले दिनों ही संपन्न हुए सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ की जो भूमिका रही, और जिसकी चौतरफा जो आलोचना हुई उसे ध्यान में रखते हुए ही लोगों ने इन दोनों आयोजनों में जेके गौड़ की अनुपस्थिति को खास तौर से नोटिस किया । विनोद बंसल और संजय खन्ना ने हालाँकि उनकी अनुपस्थिति को लेकर बताया कि जेके गौड़ ने अपने परिवार में एक विवाह समारोह में व्यस्त होने के कारण उक्त आयोजनों में शामिल होने को लेकर पहले ही अपनी असमर्थता जता दी थी, किंतु जेके गौड़ और उनके नजदीकी अशोक अग्रवाल ने कुछेक लोगों के बीच यह शिकायत की कि विनोद बंसल ने और संजय खन्ना ने अपने अपने आयोजनों में जेके गौड़ को चूँकि 'ठीक से' निमंत्रित नहीं किया इसलिए जेके गौड़ ने इन आयोजनों से अपने आप को दूर रखा । जेके गौड़ के कुछेक अन्य नजदीकियों का यह भी कहना है कि सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ की जैसी फजीहत हुई, उसे ध्यान में रखते हुए सीओएल के चुनाव का नतीजा आने के तुरंत बाद हुए इन दोनों आयोजनों में शामिल होने की जेके गौड़ की खुद ही हिम्मत नहीं हुई, और इसलिए उन्होंने इन आयोजनों से गायब रहने में ही अपनी भलाई देखी ।
जेके गौड़ का रोटरी के दो प्रमुख आयोजनों में न दिखना फ़साना दरअसल इसलिए बना है, क्योंकि जेके गौड़ ने रोटरी के प्रति जो लगाव दिखाया है और जिस लगाव के चलते वह रोटरी के आयोजनों में शामिल होते रहे हैं - वह अपने आप में एक विलक्षण उदाहरण है । कुछ लोग मजाक में कहते भी हैं कि जेके गौड़ की नसों में खून नहीं बहता, बल्कि रोटरी बहती है । जेके गौड़ ने अपने घर में रोटरी की मीटिंग्स के लिए एक अलग हॉल बनाया हुआ है और उनके तमाम आयोजनों में उनके बिजनेस संस्थान - उनके स्कूल - का स्टाफ सक्रिय दिखता है । ऐसा किसी और रोटेरियन ने किया है क्या ? रोटरी की गतिविधियों में भागीदारी को लेकर जेके गौड़ की पारिवारिक और/या बिजनेस संबंधी व्यस्तता कभी भी आड़े आती हुई नहीं दिखी है । यह शायद पहली बार हुआ है कि पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वाह करने का वास्ता देकर जेके गौड़ को दो प्रमुख कार्यक्रमों से अनुपस्थित रहना पड़ा । दरअसल इसीलिये किसी को यह विश्वास नहीं हो रहा है कि बात सिर्फ यही है । इस अविश्वास को हवा दी खुद जेके गौड़ और उनके नजदीकियों की बातों ने । जेके गौड़ और उनके एक नजदीकी अशोक अग्रवाल ने जब कुछेक लोगों के सामने विनोद बंसल और संजय खन्ना द्धारा 'ठीक से' आमंत्रित न किये जाने की शिकायत की, तो लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि मामला सीओएल के चुनाव के साइड इफेक्ट्स का है ।
सीओएल के चुनाव को लेकर जो कुछ भी हुआ, उसमें सबसे ज्यादा किरकिरी दरअसल जेके गौड़ की ही हुई है । रमेश अग्रवाल और मुकेश अरनेजा अपनी घटिया सोच और व्यवहार के लिए पहले से ही बदनाम हैं, इसलिए उन्होंने जो किया उस पर किसी को आश्चर्य नहीं हुआ । वह ऐसा न करते तो जरूर आश्चर्य होता । लेकिन जेके गौड़ ने जो किया, उसकी किसी ने भी उम्मीद नहीं की थी । जेके गौड़ को मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के नजदीक समझा/पहचाना जाता ही है, लेकिन इस नजदीकियत के चलते वह बाकी लोगों को इस्तेमाल करेंगे और उनके विश्वास के साथ खेलेंगे और बाकी हर किसी को अपना दुश्मन बना लेंगे - यह किसी ने नहीं सोचा था । जेके गौड़ से ज्यादा होशियार तो सुधीर मंगला साबित हुए । सीओएल के चुनाव में सुधीर मंगला ने भी रमेश अग्रवाल की ही मदद की, लेकिन अपने को बदनाम होने से बचाये रखते हुए और चुनाव का नतीजा आते ही वह तेजी से पलट कर दूसरी तरफ आ गए । जेके गौड़ ने लेकिन पहले तो घटियापन दिखाया, और फिर जब बदनाम हो गए तो रोटरी के प्रमुख आयोजनों में अनुपस्थित होकर मुँह छिपाने की कोशिश में जुटे । सीओएल के चुनाव के दौरान जेके गौड़ पर रमेश अग्रवाल के समर्थन में काम करने की बातें जब सामने आ रही थीं, तब जेके गौड़ ने डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख पूर्व गवर्नर्स को यह विश्वास दिलाने की कोशिश की कि वह तो कुछ भी नहीं कर रहे हैं । जेके गौड़ की इस हरकत ने पूर्व गवर्नर्स तथा अन्य लोगों को और भड़काया । दरअसल उन्होने पाया कि ऐसा करके जेके गौड़ उन्हें मूर्ख बनाने की कोशिश तो कर ही रहे हैं, मूर्ख समझ भी रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में किसी की भी गतिविधियाँ छिपती नहीं हैं, सभी को पता हो जाता है कि कौन क्या कर रहा है । जेके गौड़ कहाँ-कहाँ क्या-क्या कर रहे थे, यह सभी को पता था - पूर्व गवर्नर्स यह देख कर ज्यादा खफा हुए कि जेके गौड़ फिर भी लगातार दावा किये जा रहे हैं कि वह तो कुछ नहीं कर रहे हैं । अपने दावे को विश्वसनीय बनाने के लिए जेके गौड़ घोषणा कर रहे थे कि यदि कोई कह दे कि उन्होंने रमेश अग्रवाल के लिए कुछ किया है, तो वह रोटरी छोड़ देंगे । तथ्यपूर्ण सूचनाएँ लेकिन यह मिल रही थीं कि रमेश अग्रवाल के पक्ष में कॉन्करेंस इकट्ठी करने के काम में उन्होंने अपने स्कूल के स्टाफ को लगाया हुआ था । जेके गौड़ ने कोशिश तो की दूसरों की आँखों में धूल झोंकने की, लेकिन अपनी इस कोशिश से उन्होंने अपनी ही फजीहत कराई । बदकिस्मती उनकी यह रही कि जिन रमेश अग्रवाल के लिए उन्होंने बदनाम होने की हद तक जाकर काम किया, वह रमेश अग्रवाल चुनाव भी हार गए ।
रमेश अग्रवाल की हार के बाद तो जेके गौड़ के लिए लोगों को - खास तौर से काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों को मुँह दिखाना मुश्किल हो गया । जेके गौड़ के लिए सबसे ज्यादा मुश्किल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना का सामना करने को लेकर हुई । विनोद बंसल के साथ तो उनके संबंध पहले से ही असहज-से थे, जिसे इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित तस्वीर से भी पहचाना जा सकता है - जिसमें दोनों बैठे तो साथ-साथ हैं किंतु एक-दूसरे के प्रति जिस तरह से अनमने-से हैं, उससे लग रहा है कि दोनों हैं एक-दूसरे से बहुत दूर । सीओएल के चुनाव नें जेके गौड़ ने जैसा जो रवैया दिखाया, उससे विनोद बंसल के साथ-साथ संजय खन्ना के साथ भी तुरंत से खड़ा हो पाना उन्हें मुश्किल लगा । इसीलिए जेके गौड़ ने विनोद बंसल और संजय खन्ना के कार्यक्रमों से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी । उन्हें पता था कि सीओएल के चुनाव का नतीजा आने के तुरंत बाद हो रहे इन कार्यक्रमों में लोग जुटेंगे तो सीओएल के चुनाव की चर्चा होगी ही, और उस चर्चा में उनकी भूमिका को लेकर भी बात होगी । जेके गौड़ को पता है कि चूँकि उनकी पोल पूरी तरह खुल चुकी है, इसलिए अब उनका यह कहना काम नहीं आयेगा कि उन्होंने तो कुछ किया ही नहीं । विनोद बंसल और संजय खन्ना के कार्यक्रमों में उनकी फजीहत न हो, इसलिए जेके गौड़ ने उनके कार्यक्रमों से दूर रहने में ही अपनी भलाई देखी । इस 'भलाई' ने भी लेकिन उन्हें और उनके खासमखास अशोक अग्रवाल को खीझ से भर दिया है और इसीलिए वह दोनों जहाँ कहीं कहने/बताने का मौका मिलता है, यह बताते हैं कि विनोद बंसल और संजय खन्ना सीओएल के चुनाव में आशीष घोष के खिलाफ काम करने की शिकायत को लेकर उन्हें किनारे कर रहे हैं और इसी के चलते दोनों ने ही अपने-अपने कार्यक्रमों में उन्हें ठीक से आमंत्रित नहीं किया, और इसीलिए वह उन दोनों के कार्यक्रमों में नहीं गए ।  

Monday, February 24, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद को लेकर चली दीपक गर्ग की तिकड़म में राधेश्याम बंसल और गोपाल केडिया ने भी अपना काम बनाने का मौका देखा

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता खेमे के एक सदस्य दीपक गर्ग की चेयरमैन बनने की कोशिश ने सत्ता खेमे में जो फूट डाल दी है, उसके चलते नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद के लिए होने वाला चुनाव खासा दिलचस्प हो गया है । रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्यों को हालाँकि लगता है कि दीपक गर्ग ने बड़े प्रयत्न से और बड़ी तिकड़म से अपने लिए जो घोड़ी सजाई है, एन मौके पर हो सकता है कि उस पर राधेश्याम बंसल जा बैठें और दीपक गर्ग टापते ही रह जाएँ । दीपक गर्ग की चेयरमैन पद हथियाने की कोशिश के चलते काउंसिल में नए समीकरण बनने की जो संभावना बनी है, उसने गोपाल केडिया को भी उम्मीदों से भर दिया है । गोपाल केडिया को लगने लगा है कि जिस सत्ता खेमे में उनके लिए कोई जगह नहीं बन पाई थी, उस सत्ता खेमे के बिखरने से शायद उनके लिए कोई राह बन सके । जो हो रहा है उसे देख कर चेयरमैन बनने की गुपचुप-गुपचुप इच्छा रखने वाले काउंसिल सदस्यों के मन में भी यह सोच कर गुदगुदी-सी होने लगी है कि दीपक गर्ग की चाल से जो आग लगी है, उसमें शायद उनकी दाल ही गल जाये ।
जाहिर है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद के चुनाव को लेकर नजारा दिलचस्प है ।
उल्लेखनीय है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मौजूदा टर्म के पहले वर्ष - यानि पिछले वर्ष 13 में से 8 सदस्यों ने एक ग्रुप बना कर सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था । सत्ता के सभी महत्वपूर्ण पदों के लिए सर्वसम्मती से यह फैसला किया गया था कि प्रत्येक पद के लिए इच्छुक लोगों के नाम की पर्ची डाली जायेगी और जिसका नाम निकलेगा, उसका उक्त पद पर कब्ज़ा होगा । इस फार्मूले पर सभी आठों सदस्यों की रजामंदी तो थी ही, इस फार्मूले के साथ बने/टिके रहने को लेकर दिल्ली के कनाट प्लेस स्थित हनुमान मंदिर में उन्होंने सौगंध भी खा ली थी । लेकिन दूसरी बार अब जब पदाधिकारी चुनने का समय आया तो दीपक गर्ग ने उक्त फार्मूले को और उसे लेकर खाई गई सौगंध को भुला दिया और चेयरमैन के पद पर अपना दावा ठोक दिया । मजे की बात यह रही कि दीपक गर्ग इसके लिए काफी समय से तैयारी कर रहे थे और उन्होंने इसकी किसी को भनक तक नहीं लगने दी । उन्होंने इसके लिए दो-तरफ़ा तैयारी की - एक तरफ तो उन्होंने काउंसिल में अपने खेमे के राजिंदर नारंग, हंसराज चुग और राज चावला को चेयरमैन विशाल गर्ग की आलोचना करने के लिए उकसाया; और दूसरी तरफ विशाल गर्ग को समझाया कि यह तीनों उन्हें बदनाम करने के काम में लगे हैं । दीपक गर्ग की इस तैयारी का भेद तब खुला जब चेयरमैन पद के लिए प्रस्तुत किये गए उनके दावे को विशाल गर्ग का समर्थन मिलता दिखा । राजिंदर नारंग, हंसराज चुग और राज चावला यह देख कर हैरान रह गए कि जो दीपक गर्ग हमेशा ही जिन विशाल गर्ग की शिकायत और आलोचना करते रहते थे, अब उन्हीं विशाल गर्ग के समर्थन के बूते चेयरमैन बनने की राह पर हैं ।
दीपक गर्ग ने इस काम में जातिवाद का कार्ड भी चला और अपने खेमे को बनिया-पंजाबी खेमे में बाँट दिया । इस काम में उन्हें इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता की भी मदद मिली । इन दोनों ने ही बार-बार इस बात को उड़ाया कि हंसराज चुग चेयरमैन बनने के लिए विशाल गर्ग को बदनाम कर रहे हैं और इस काम में उन्हें राज चावला और राजिंदर नारंग का सहयोग मिल रहा है । चेयरमैन के रूप में लिए गए विशाल गर्ग के जिन भी फैसलों की आलोचना हुई, उसके लिए दीपक गर्ग और विजय गुप्ता बड़ी होशियारी से राजिंदर नारंग, हंसराज चुग और राज चावला को जिम्मेदार साबित करते रहे - और इस तरह एक तरफ वह विशाल गर्ग को बदनाम भी करते रहे और उनकी बदनामी का ठीकरा दूसरों के सिर फोड़ कर विशाल गर्ग को अपने नजदीक भी करते रहे । इसका नतीजा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अवार्ड फंक्शन में दिखा, जहाँ विजय गुप्ता के अलावा सेंट्रल काउंसिल के और किसी सदस्य को कोई तवज्जो नहीं मिली । विजय गुप्ता इस खेल में इसलिए ही शामिल हुए हैं कि इसमें उन्हें दोहरा फायदा दिखा है । एक तरफ विशाल गर्ग की बदनामी कर/करवा कर सेंट्रल काउंसिल के अगले चुनाव में विशाल गर्ग से मिलने वाली संभावित चुनौती को उन्होंने कमजोर करने का काम किया है, और दूसरी तरफ दीपक गर्ग के जरिये रीजनल काउंसिल पर कब्जे की उम्मीद लगाई है । विजय गुप्ता को विश्वास है कि दीपक गर्ग चेयरमैन बनेंगे, तो वह तो बस नाम के चेयरमैन होंगे; चेयरमैनी करने का मौका तो वास्तव में उन्हें (यानि विजय गुप्ता को) मिलेगा ।
दीपक गर्ग ने पूरी तैयारी के साथ जो चाल चली है, उसमें उन्हें लेकिन सिर्फ विशाल गर्ग और स्वदेश गुप्ता का ही समर्थन खुले तौर पर मिल सका है । राजिंदर नारंग ने दीपक गर्ग की कोशिश का खुला और कड़ा विरोध करके दीपक गर्ग की राह में रोड़ा डालने का काम तो किया है, लेकिन दीपक गर्ग और विजय गुप्ता को भरोसा है कि वह अपना काम बना लेंगे । यह उम्मीद उन्हें इसलिए है क्योंकि हंसराज चुग और राज चावला ने राजिंदर नारंग का साथ नहीं दिया है । इन्होंने अभी हालाँकि दीपक गर्ग का समर्थन करने का भी संकेत नहीं दिया है, लेकिन दीपक गर्ग को भरोसा है कि खेमे की एकता बनाये रखने के नाम पर इन दोनों का समर्थन उन्हें मिल जायेगा । यह भरोसा दीपक गर्ग को इसलिए भी है क्योंकि राजिंदर नारंग ने भले ही उनकी कोशिश का विरोध किया है, लेकिन उन्होंने भी किसी और के साथ जाने का संकेत नहीं दिया है । दीपक गर्ग को विश्वास है कि 'तटस्थ' राजिंदर नारंग उन्हें कोई नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे । योगिता आनंद को भी काम दिलवाने का लालच देकर अपनी तरफ कर लेने का भरोसा दीपक गर्ग को है ।
दीपक गर्ग को इतने सब भरोसों के बाद भी लेकिन खतरा खेमे के भीतर राधेश्याम बंसल से है । राधेश्याम बंसल ने समझ लिया है कि दीपक गर्ग ने अपनी जो तिकड़म लगाई है, उसके कारण उन्होंने अपने लिए विरोध भी खड़ा कर लिया है । राधेश्याम बंसल को लगता है कि जो हालात बने हैं, उसमें उनके लिए भी मौका बन सकता है । दीपक गर्ग ने हालाँकि तीसरे वर्ष में राधेश्याम बंसल को चेयरमैन बनाने/बनवाने का ऑफर देकर अपने समर्थन में लाने का प्रयास किया है, लेकिन राधेश्याम बंसल ने उन्हें फार्मूला सुझाया है कि इस बार राधेश्याम बंसल और अगली बार दीपक गर्ग । राधेश्याम बंसल समझ रहे हैं कि अगली बारी किसने देखी है, जो पाना है अभी ही पा लो । राधेश्याम बंसल के इस तेवर ने दीपक गर्ग को सचमुच डरा दिया है : उन्हें लग रहा है कि चेयरमैन पद की जिस घोड़ी को उन्होंने अपने लिए सजाया है, राधेश्याम बंसल उस पर चढ़ बैठने की ताक में हैं । सत्ता खेमे में मचे इस घमासान में गोपाल केडिया को अपना काम बनता हुआ दिखने लगा है । उन्हें लग रहा है कि सत्ता खेमे में चेयरमैन पद को लेकर खींचतान यदि ज्यादा बढ़ी तो चेयरमैन पद पर उनका दाँव भी लग सकता है ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की आड़ में दरअसल अगले सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के पक्के और संभावित उम्मीदवारों की राजनीति भी छिपी हुई है, इसलिए चेयरमैन पद के चुनाव को लेकर बनने वाले नए समीकरण में लगातार उलटफेर हो रहे हैं । इस लगातार हो रहे उलटफेर ने ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद के लिए होने वाले चुनाव को दिलचस्प बना दिया है ।  

Sunday, February 23, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में पड़ताल फर्जी क्लब्स के असली मुजरिम की और चुनाव पर पड़ने वाले उनके असर की उर्फ़ चुनाव 'मुर्दा' लोगों के नहीं, बल्कि 'जिन्दा' लोगों के समर्थन से जीते जाते हैं

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में जिस हार का सामना करना पड़ा है, उसके लिए उन्होंने और उनके समर्थक नेताओं ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक टुटेजा के फर्जी क्लब्स को जिम्मेदार ठहराया है । हार से बौखलाए विक्रम शर्मा और उनके समर्थक नेता दीपक टुटेजा पर जैसे टूट पड़े हैं और उन्होंने दीपक टुटेजा के खिलाफ अपमानजनक व अशालीन फब्तियों का ढेर लगा दिया है । दीपक टुटेजा को फर्जी क्लब्स के एक बड़े सौदागर के रूप में पेंट किया जा रहा है और ऐसा प्रचार किया जा रहा है जैसे डिस्ट्रिक्ट में फर्जी क्लब्स के लिए एक अकेले दीपक टुटेजा ही जिम्मेदार हैं । दीपक टुटेजा के पास सात फर्जी क्लब होने की बात कही/सुनी जाती है, जिनके नाम दिल्ली आनंदवन, दिल्ली आरती, दिल्ली सेंट्रल, दिल्ली फेडरल, दिल्ली हरी नगर, दिल्ली जनकपुरी और नई दिल्ली द्धारका कैंप्स हैं । इन सातों क्लब के वोटों की संख्या बीस है । फर्जी क्लब्स के मामले में दीपक टुटेजा को जिस तरह से निशाना बनाया जा रहा है, उससे लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में यही कुल सात क्लब फर्जी हैं ।
डिस्ट्रिक्ट में लेकिन 45 फर्जी क्लब बताये जाते हैं । इन 45 में से दीपक टुटेजा के पास यदि सिर्फ सात क्लब ही हैं तो बाकी क्लब किसके/किनके पास हैं; और सिर्फ सात क्लब होने मात्र से फर्जी क्लब्स के प्रति विरोध का सारा ठीकरा दीपक टुटेजा के सिर पर ही क्यों फोड़ा जा रहा है ? दीपक टुटेजा को निशाना बनाने की आड़ में कहीं असली मुजरिम को बचाने की कोशिश तो नहीं की जा रही है ? असली मुजरिम कौन है - आईये इसे तथ्यों के आईने में देखें । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हर्ष बंसल के पास 10 फर्जी क्लब हैं, जिनके नाम दिल्ली आनंद निकेतन, दिल्ली अशोक फोर्ट, दिल्ली भगवान नगर, दिल्ली दीपाली, दिल्ली किरन गैलेक्सी, दिल्ली महानगर रॉयल, दिल्ली सुविधा कुञ्ज, हाँसी प्रेरणा, हाँसी युवा, जींद एक्टिव हैं । इन 10 क्लब्स के वोटों की संख्या 29 है । इस तरह साफ है कि फर्जी क्लब्स की संख्या और उनके वोटों की संख्या के मामले में दीपक टुटेजा की तुलना में हर्ष बंसल का पलड़ा भारी है और तथ्यों के इस आईने में फर्जी क्लब्स का असली मुजरिम हर्ष बंसल हैं । यहाँ ध्यान में रखने वाला तथ्य यह भी है कि डिस्ट्रिक्ट में फर्जी क्लब बना कर राजनीति करने का फार्मूला सबसे पहले हर्ष बंसल की ही खोपड़ी में आया था; और डिस्ट्रिक्ट को फर्जी क्लब्स की जो देन है उसके जिम्मेदार हर्ष बंसल ही हैं ।
हर्ष बंसल की बदकिस्मती यह रही कि उनके इस फार्मूले को बाद में दूसरे लोगों ने भी हथिया लिया - और फिर हुआ यह कि हर्ष बंसल भले ही फर्जी क्लब्स के मामले में गुरु रहे हों, लेकिन वह तो गुड़ ही रह गए और उनके चेले शक्कर हो गए । मजे की बात यह रही कि ज्यादा फर्जी क्लब्स और उनके वोट रखने के बावजूद हर्ष बंसल हर बार अपने उम्मीदवार को जितवाने में फेल हो जाते हैं, और कम फर्जी क्लब्स व उनके वोट रखने के बावजूद दीपक टुटेजा अपने उम्मीदवार को चुनाव जितवा लेते हैं । ऐसा होने का कारण दोनों की सोच के, दोनों के तौर-तरीकों के, दोनों के व्यवहार और दोनों के व्यक्तित्व के अंतर में है । हर्ष बंसल सोचते हैं कि वह सिर्फ फर्जी वोटों से ही अपने उम्मीदवार को चुनाव जितवा देंगे; बार-बार ठोकरें खाने के बाद भी उनकी अकल में यह बात घुसती ही नहीं है कि चुनाव का फैसला मुर्दा लोग नहीं करते, बल्कि जिंदा लोग करते हैं ।
इसे वीके हंस के मामले से समझा जा सकता है : वीके हंस को चुनवाने का ठेका जब हर्ष बंसल ने लिया था, तब हर्ष बंसल ने करीब चालीस फर्जी क्लब बनाये थे और सभी का गणित था कि वीके हंस 50 वोटों से जीतेंगे, वीके हंस लेकिन तब 80 वोटों से हार गए थे । पिछले लायन वर्ष में जब वीके हंस फिर से उम्मीदवार बने और उन्हें दीपक टुटेजा की मदद का भरोसा था, तब भी वोटों की गिनती के 'आंकड़े' उनकी जीत के पक्ष में नहीं थे । लेकिन हर्ष बंसल की एक मूर्खता ने वीके हंस का काम आसान कर दिया । चुनाव से पहले जो प्रोपेगैंडा होता है और उसमें जो झूठ-सच बोला जाता है उसमें डिस्ट्रिक्ट के एक वरिष्ठ लायन एसी दासन के क्लब को हर्ष बंसल ने अपनी तरफ दिखाया, जिसका एसी दासन ने विरोध किया । एसी दासन के विरोध से चिढ़ कर हर्ष बंसल ने एसएमएस किया कि 'एसी दासन है कौन ?' यह ठीक है कि चुनावी राजनीति में अपनी तिकड़मी चालों से जो लोग खिलाड़ी समझे जाते हैं, उनमें एसी दासन का नाम न आता हो - लेकिन एसी दासन कोई ऐसे व्यक्ति भी नहीं हैं जिनके लिए हर्ष बंसल यह कहें कि 'एसी दासन हैं कौन ?' 'मुर्दा' लोगों पर भरोसा करते हुए हर्ष बंसल ने एक 'जिंदा' व्यक्ति का तिरस्कार किया और उसे भड़का दिया । दीपक टुटेजा ने क्या किया ? 'मुर्दा' लोग उनकी जेब में भी थे, लेकिन फिर भी वह जिंदा लोगों का शिकार करने के लिए निकले हुए थे और उन्होंने अपने सबसे बड़े दुश्मन राकेश त्रेहन का शिकार कर लिया । वीके हंस को चुनाव जितवाने की मुहिम में जुटे दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा ने राकेश त्रेहन की कमजोरियों को पहचाना और जाल बिछाया - उन्होंने राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन पद के लिए समर्थन का पत्र दिया और राकेश त्रेहन ने जितने पैसे माँगे उतने पैसे दिए । यह सब पाते हुए भी राकेश त्रेहन ने उन्हें छकाया तो वह छके भी - और यह सब करते हुए उन्होंने राकेश त्रेहन से अपने कुछेक क्लब्स को क्लियर करवाने का ऐसा काम करवा लिया जो यदि नहीं होता तो वीके हंस का जीतना असंभव ही होता । यानि राकेश त्रेहन यदि मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन के पद का और कुछ पैसों का लालच नहीं करते तो आज वीके हंस की जगह सुरेश जिंदल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होते ।
हर्ष बंसल और दीपक टुटेजा की सोच में और तौर-तरीके में यही एक बड़ा अंतर है । हर्ष बंसल के लिए अपने उम्मीदवार को जितवाना महत्वपूर्ण नहीं होता, बल्कि अपनी निजी खुन्नस निकालना महत्वपूर्ण होता है । इस बार भी उन्होंने ऐसा ही किया । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थन में दिल्ली में हुई मीटिंग में उन्होंने घोषणा कर दी कि उनके क्लब्स वीके हंस को समर्थन नहीं देंगे । उनके लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने से जयादा जरूरी काम वीके हंस के साथ अपनी खुन्नस निकलना था - जिसका नतीजा यह हुआ कि वह न वीके हंस का कुछ बिगाड़ सके और न विक्रम शर्मा को चुनाव जितवा सके । दूसरी तरफ आरके शाह के  समर्थक नेता थे, जिनमें से कुछ नरेश गुप्ता को सबक तो सिखाना चाहते थे लेकिन उन्होंने भी नरेश गुप्ता के खिलाफ अपनी खुंदक को जाहिर कभी नहीं होने दिया । आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं का एक ही एजेंडा था - आरके शाह को जितवाओ ! उन्होंने इसी एक एजेंडे पर ध्यान दिया और सफल रहे ।
विक्रम शर्मा की हार के लिए विक्रम शर्मा और उनके समर्थक नेता लगातार रोना मचा रहे हैं कि आरके शाह को फर्जी क्लब्स के कारण जीत मिली है । किंतु तथ्य बताते हैं कि सच्चाई इसके विपरीत है । फर्जी क्लब्स के वोट यदि आरके शाह को मिले हैं तो वह विक्रम शर्मा को भी मिले हैं, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में दोनों खेमों के कई नेताओं के पास फर्जी क्लब्स हैं । हर्ष बंसल के बारे में बता ही चुके हैं । अजय बुद्धराज के पास 4 फर्जी क्लब्स है : दिल्ली मायापुरी, दिल्ली फुलवारी, दिल्ली सुप्रीम और नई दिल्ली हिमगिरी । इनके वोट 6 हैं । राकेश त्रेहन के पास 10 वोटों के 4 क्लब्स हैं : दिल्ली जेपी कैंप्स, दिल्ली कृष्णा, दिल्ली राइसिंग सन और नई दिल्ली सार्थक । नरेश गुप्ता के पास 9 वोटों वाले 4 फर्जी क्लब्स हैं : दिल्ली मंथन, दिल्ली सहयोग, दिल्ली समर्पण और नई दिल्ली युवा कैम्पस । डीके अग्रवाल के पास भी 2 वोटों वाला एक फर्जी क्लब - दिल्ली जीटीबी नगर है । इनके सब मिला कर विक्रम शर्मा को 56 फर्जी वोट मिले । आरके शाह के मामले में दीपक टुटेजा के 20 फर्जी वोटों की बात पहले बता चुके हैं । उनके अलावा विजय शिरोहा के पास 14 वोटों वाले 5 फर्जी क्लब हैं : बहादुरगढ़, बहादुरगढ़ क्रिएटिव कैंप्स, बहल जागृति, झज्जर टाउन और सांपला टाउन । अरुण पुरी के पास 10 वोटों वाले 4 क्लब हैं : दिल्ली क्राउन, दिल्ली पदम, दिल्ली रोहिणी और नई दिल्ली पश्चिम विहार । सुशील खरिंटा के पास 12 वोटों के 6 क्लब्स हैं : आदमपुर, दिल्ली आन, भटटू, हाँसी आस्था, हिसार आस्था और मेहम । इनके मिला कर आरके शाह को भी 56 फर्जी वोट मिले ।
इस तरह, फर्जी वोटों की जहाँ तक बात है - आरके शाह और विक्रम शर्मा को बराबर-बराबर वोट ही मिले हैं । जाहिर है कि विक्रम शर्मा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव मुर्दा लोगों के कारण नहीं, बल्कि जिंदा लोगों के कारण हारे हैं ।
विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं के बीच तालमेल की कमी रही और उनमें आपस में विश्वास का अभाव था । वह विक्रम शर्मा को जिताने के लिए प्रयास करने की बजाये अपने अपने फर्जी क्लब्स के ड्यूज जुगाड़ने में दिलचस्पी लेते हुए दिख रहे थे । उन्हें दरअसल विक्रम शर्मा पर भरोसा नहीं था कि विक्रम शर्मा से उन्हें समय से पैसे मिल जायेंगे । विक्रम शर्मा अपने क्लब के लोगों से चंदा जुगाड़ने में व्यस्त रहे । इस कारण लोगों के बीच कैम्पेन ही नहीं हो पाया और विक्रम शर्मा तथा उनके समर्थक धूल चाटते हुए नजर आये ।
अपनी नाकामी, मूर्खताओं के कारण लगातार मिल रही नाकामियों से बौखलाए विक्रम शर्मा के समर्थको ने दीपक टुटेजा और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा के खिलाफ अशालीन किस्म का प्रचार अभियान छेड़ दिया है । उन्हें लगता है कि इस तरह की हरकतों से वह सच्चाई पर पर्दा डाल सकेंगे तथा दीपक टुटेजा और विजय शिरोहा को बदनाम करके अपना काला चेहरा छिपा लेंगे और अपना उल्लू सीधा करते रह सकेंगे ।

Wednesday, February 19, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के क्लब गाजियाबाद आईडियल में राजीव गोयल ने जेके गौड़ की शह पर जिस तरह संजय शर्मा को अपमानित किया, उसके चलते एक बार फिर क्लब में फूट के आसार पैदा हो गए दिख रहे हैं

गाजियाबाद । राजीव गोयल ने सीओएल के चुनाव में जेके गौड़ के प्रति अपनी वफादारी निभाने के चक्कर में अपने ही क्लब - रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल - के अध्यक्ष संजय शर्मा की जैसी/जो बेइज्जती की/करवाई है, उसके कारण क्लब में उनके खिलाफ नाराजगी मुखर होने लगी है । संजय शर्मा की पूरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के तथा दूसरे क्लब्स के अध्यक्षों के सामने जो खुली बेइज्जती हुई, उसकी बातें सुनकर क्लब के कई सदस्य कहने लगे हैं कि राजीव गोयल को रोटरी के नाम पर यदि जेके गौड़ की गुलामी ही करनी है तो उन्हें रोटरी क्लब गाजियाबाद रॉयल में ट्रांसफर ले लेना चाहिए - जहाँ अगले रोटरी वर्ष में उनकी पत्नी राधा गोयल अध्यक्ष होंगी । यह सलाह देने वाले लोग शायद नहीं जानते हैं कि गाजियाबाद रॉयल महिलायों का क्लब है और राजीव गोयल चाहें भी, तो भी उसमें ट्रांसफर नहीं ले सकते हैं । बहरहाल, राजीव गोयल क्या करें - यह राजीव गोयल जानें, मुख्य बात यह है कि जेके गौड़ के प्रति अपनी वफादारी दिखाने के चलते उन्होंने अपने ही क्लब के अध्यक्ष को जिस तरह अपमानित किया/कराया, उसके चलते क्लब में राजीव गोयल के प्रति गहरी नाराजगी है और क्लब के सदस्यों का कहना है कि राजीव गोयल ने जो किया है, उसके कारण कई लोग क्लब छोड़ सकते हैं ।
राजीव गोयल ने आखिर किया क्या ? सीओएल के लिए हुई वोटिंग में राजीव गोयल ने मौके पर मौजूद होने के बावजूद क्लब के अध्यक्ष संजय शर्मा को वोट नहीं डालने दिया और खुद वोट डाला । रोटरी में नियमानुसार वोट डालने का अधिकार अध्यक्ष का है । हाँ, वह यदि मौजूद न हो सकता हो तो अपना यह अधिकार किसी और को दे सकता है । सीओएल के लिए हुई वोटिंग में लेकिन रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल की तरफ से जब राजीव गोयल ने वोट डाला, तब क्लब के अध्यक्ष संजय शर्मा मौके पर मौजूद थे । संजय शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, राजीव गोयल ने उनका अधिकार छीन कर खुद वोट दरअसल इसलिए डाला क्योंकि उन्हें आशंका थी कि संजय शर्मा वायदा करने के बावजूद रमेश अग्रवाल को वोट नहीं देंगे, और आशीष घोष को वोट देंगे । संजय शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, राजीव गोयल ने जेके गौड़ से रमेश अग्रवाल को वोट देने के लिए सौदा किया हुआ था । संजय शर्मा और क्लब के दूसरे प्रमुख सदस्यों का कहना था कि उन्हें भी गाजियाबाद के दूसरे क्लब्स के साथ ही रहना चाहिए; और जब गाजियाबाद के अधिकतर क्लब्स तथा ज्यादातर प्रमुख रोटेरियंस आशीष घोष के साथ हैं, तो उन्हें भी आशीष घोष के साथ ही रहना चाहिए । राजीव गोयल पर लेकिन जेके गौड़ का जादू छाया हुआ था । राजीव गोयल ने संजय शर्मा पर दबाव बना कर पहले तो रमेश अग्रवाल के पक्ष में कॉन्करेंस दिलवा दी, और फिर रमेश अग्रवाल के पक्ष में वोट देने का दबाव बनाने लगे । कॉन्करेंस देने के कारण संजय शर्मा को गाजियाबाद के अपने साथी अध्यक्षों के बीच यूँ भी अपमानित-सा महसूस करना पड़ रहा था, इसलिए वह खुल कर रमेश अग्रवाल के साथ दिखने से बचने की कोशिश करना चाहते थे ।
संजय शर्मा और क्लब के दूसरे कुछेक सदस्यों ने रोटरी क्लब गाजियाबाद प्लेटिनम के अमित अग्रवाल का उदाहरण देकर भी राजीव गोयल को समझाया । अमित अग्रवाल को जेके गौड़ के बिलकुल पक्के वाले आदमी के रूप में पहचाना जाता है । लेकिन सीओएल के चुनाव में अमित अग्रवाल ने जेके गौड़ के दबाव में आने से साफ इंकार कर दिया और गाजियाबाद के बहुमत लोगों के साथ रहने का फैसला किया । अमित अग्रवाल का साफ कहना रहा कि जेके गौड़ के साथ उनके अच्छे संबंध हैं, इसका मतलब यह थोड़े ही है कि वह जेके गौड़ की गलत बात भी मानेंगे । अमित अग्रवाल के रवैये ने जेके गौड़ को गाजियाबाद में तगड़ा झटका दिया । अमित अग्रवाल से मिले इस झटके के लिए जेके गौड़ ने हालाँकि विनोद बंसल को जिम्मेदार ठहराया । जेके गौड़ ने कई लोगों से कहा कि विनोद बंसल ने वैसे तो सीओएल के चुनाव में किसी का पक्ष न लेने का दावा किया लेकिन अवार्ड का लालच देकर उन्होंने कई लोगों को आशीष घोष के समर्थन में किया । जेके गौड़ का दावा रहा कि अमित अग्रवाल ने पहले उन्हें रमेश अग्रवाल का समर्थन करने का भरोसा दिया था, लेकिन फिर अचानक से पाला बदल लिया । जेके गौड़ का आरोप रहा कि अमित अग्रवाल को विनोद बंसल ने अवार्ड का लालच देकर तोड़ा । अमित अग्रवाल ने हालाँकि अपने आप को दोनों तरफ दिखाने की कोशिश की, और इस कोशिश में वह कभी रमेश अग्रवाल के नजदीक तो कभी आशीष घोष व अमित जैन के नजदीक बैठे । राजीव गोयल को भी उनके क्लब के लोगों ने सलाह दी थी कि अमित अग्रवाल की तर्ज पर दोनों तरफ दिखो । राजीव गोयल को लेकिन जेके गौड़ दबोच लेने में सफल रहे ।
संजय शर्मा की बातों से जेके गौड़ और राजीव गोयल ने समझ लिया कि उन पर भरोसा नहीं किया जा सकता । जेके गौड़ ने राजीव गोयल को हिदायत दी कि वोट डालने का काम संजय शर्मा को हरगिज न दिया जाये और राजीव गोयल ही वोट डालने का काम करें । सीओएल के चुनाव में यूँ तो कई क्लब्स की तरफ से वोट डालने का काम अध्यक्ष की बजाये दूसरे सदस्यों ने किया, लेकिन उन मामलों में अध्यक्ष मौके पर उपस्थित नहीं थे । रोटरी क्लब गाजियाबाद आईडियल ही अकेला ऐसा क्लब है, जिसके अध्यक्ष संजय शर्मा मौके पर उपस्थित थे लेकिन वोट डालने का काम राजीव गोयल ने किया । संजय शर्मा और क्लब के दूसरे कई सदस्यों ने राजीव गोयल की इस हरकत पर गहरी नाराजगी दिखाई है ।
यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि अभी दो वर्ष पहले ही राजीव गोयल की जेके गौड़ के प्रति भक्ति के कारण ही क्लब के अध्यक्ष अतुल सालवान निवृतमान होते ही क्लब के चार्टर अध्यक्ष रवि छावड़ा तथा कई अन्य सदस्यों के साथ क्लब छोड़ गए थे । उस समय भी झगड़ा यही था कि जेके गौड़ ने राजीव गोयल के जरिये क्लब का समर्थन रवि चौधरी को दिलवाने का प्रयास किया था, लेकिन तत्कालीन अध्यक्ष ने राजीव गोयल के दबाव में आने से इंकार करते हुए संजय खन्ना का समर्थन किया था । खुन्नस में राजीव गोयल ने क्लब में ऐसे हालात पैदा किये कि अतुल सालवान और रवि छावड़ा अन्य कई सदस्यों के साथ क्लब और रोटरी ही छोड़ गए । राजीव गोयल ने जेके गौड़ की शह पर अभी जिस तरह संजय शर्मा को अपमानित किया है, उसके चलते एक बार फिर क्लब में फूट के आसार पैदा हो गए दिख रहे हैं ।

Tuesday, February 18, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल की दोहरी हार ने शरत जैन की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए संकट खड़ा किया

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल को सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव में पहले नोमीनेटिंग कमेटी में और फिर सीधे चुनाव में जिस तरह से धूल चाटनी पड़ी है, उसने शरत जैन के सामने बड़ी समस्या पैदा कर दी है । शरत जैन अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे हैं; और जिन्हें रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट में पहचाना जा रहा है । सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल की दोहरी हार से लेकिन सवाल यह पैदा हो गया है कि जो रमेश अग्रवाल अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सकते, वह शरत जैन को चुनाव कैसे जितवायेंगे ? शरत जैन के लिए यह तथ्य और यह सवाल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनका जिन दीपक गुप्ता के साथ चुनाव होता दिख रहा है, वह दीपक गुप्ता सीओएल के चुनाव के विजेता आशीष घोष के साथ थे ।
सीओएल के चुनाव को लेकर रमेश अग्रवाल और उन्हें समर्थन दे रहे अरनेजा गिरोह का जो रवैया रहा, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की खेमेबाजी को नए सिरे से पुनर्गठित किया है और इस पुनर्गठन में अरनेजा गिरोह बुरी तरह मात खा गया है । आशीष घोष के सामने रमेश अग्रवाल की जैसी जो फजीहत हुई है, उससे अरनेजा गिरोह की औकात/हैसियत सामने आ गई है । अरनेजा गिरोह की औकात/हैसियत का खुलासा इससे पहले संजय खन्ना और रवि चौधरी के बीच हुए चुनाव में भी हुआ था - जब अपनी हर तरह की टुच्ची हरकतों के बावजूद अरनेजा गिरोह रवि चौधरी को चुनाव जितवाने में विफल रहा था । उसके बाद, अरनेजा गिरोह ने लेकिन झूठे ही जेके गौड़ और सुधीर मंगला की जीत का श्रेय लेकर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी वापसी कर ली थी । जेके गौड़ और सुधीर मंगला को जो कामयाबी मिली, उसमें उनके अपने अपने खुद के जुगाड़ भी थे तथा डिस्ट्रिक्ट के अन्य पूर्व गवर्नर्स से मिले समर्थन का भी असर था - लेकिन अरनेजा गिरोह ने इन दोनों की जीत को अपनी जीत के रूप में प्रचारित किया ।
अरनेजा गिरोह ने जेके गौड़ और सुधीर मंगला की जीत को अपनी जीत बता कर दूसरों को धोखा देने की जो कोशिश की, उसमें तो वह कामयाब रहे - समस्या लेकिन तब शुरू हुई जब अपने इस झूठ पर वह दूसरों को विश्वास दिलाने के साथ साथ खुद भी विश्वास करने लगे और इस तरह दूसरोँ को धोखा देने की कोशिश करते करते खुद भी धोखा खा बैठे । अपने ही झूठ पर खुद विश्वास करने के कारण ही सीओएल के चुनाव में वह आशीष घोष से भिड़ बैठे और अपनी पोल खुलवा ली । उल्लेखनीय है कि सीओएल के लिए आशीष घोष के अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के बाद कई छोटे-बड़े नेताओं ने रमेश अग्रवाल को समझाया था कि उन्हें नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का सम्मान करना चाहिए तथा अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज नहीं करना चाहिए । रमेश अग्रवाल का हर किसी को लेकिन एक ही जबाव होता कि चुनाव में जब मेरे जीतने के पूरे-पक्के चांस हैं तो मैं चेलैंज क्यों न करूँ ?
रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह के हर सदस्य का दावा था कि चुनाव में आशीष घोष तो कहीं टिकेंगे ही नहीं, और रमेश अग्रवाल भारी बहुमत से जीतेंगे । यह विश्वास उन्हें इसीलिये था क्योंकि दूसरों के बीच पैठ बनाने के लिए फैलाये गए अपने ही झूठ पर वह खुद भी भरोसा करने लगे थे कि जेके गौड़ और सुधीर मंगला को उन्होंने ही जितवाया है और वह तो किसी को भी चुनाव जितवा सकते हैं । मुकेश अरनेजा का एक बड़ा चर्चित बयान है कि वह तो सड़क के किसी गधे को भी चुनाव जितवा दें - अब इसे रमेश अग्रवाल की बदकिस्मती ही कहा जायेगा कि जिन मुकेश अरनेजा का समर्थन पाकर कोई गधा भी चुनाव जीत सकता है, उन मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद लेकिन वह चुनाव नहीं जीत सके ।
रमेश अग्रवाल और उन्हें चुनाव जितवाने में दिन-रात एक कर देने वाले मुकेश अरनेजा व जेके गौड़ ने समर्थन जुटाने के लिए जिस-जिस तरह की हरकतें कीं और घटियापन दिखाया उससे उन्होंने रोटरी को तो शर्मसार किया ही, तथा साथ ही अपनी भी फजीहत कराई - और उसके बाद वह चुनाव भी नहीं जीत सके । रमेश अग्रवाल और उन्हें समर्थन दे रहा अरनेजा गिरोह सिर्फ चुनाव ही नहीं हारे हैं - इस चुनाव में उनकी कलई पूरी तरह उतर गई है । एक तरफ उन्होंने मंजीत साहनी, आशीष घोष, अमित जैन जैसे उन लोगों को अपना विरोधी बना लिया है जो अभी कल तक उनके साथ थे; तो दूसरी तरफ जेके गौड़ जैसे अपने चेले को ऐसा बेनकाब कर दिया कि वह अपने ही इलाके में विश्वासघाती बन गए और अलग-थलग पड़ गए हैं ।
यही तथ्य शरत जैन के लिए मुसीबत खड़ी करने वाला है । शरत जैन ने हालाँकि अपने व्यवहार और अपने कामकाज से डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोगों को प्रभावित किया हुआ है । विनोद बंसल और संजय खन्ना के यहाँ उन्होंने अपनी जैसी पैठ बनाई हुई है और ये लोग जिस तरह से उनपर निर्भर रहे दिखे हैं, वह किसी भी उम्मीदवार के लिए ईर्ष्या का विषय हो सकता है । लेकिन सीओएल के चुनाव को लेकर रमेश अग्रवाल द्धारा की गई कारस्तानी ने शरत जैन के लिए सब गुड़-गोबर कर दिया है । रमेश अग्रवाल के क्लब के होने के कारण, रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में पहचाने जाने वाले शरत जैन के सामने रमेश अग्रवाल के 'पापों' की सजा भुगतने का संकट पैदा हो गया है । शरत जैन के व्यक्तित्व और उनके आचार-व्यवहार से प्रभावित लेकिन रमेश अग्रवाल की करतूतों के विरोधी लोगों का कहना है कि उन्हें शरत जैन के समर्थन से तो कोई परहेज नहीं है, लेकिन यदि वह रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में आते हैं तब फिर उनके समर्थन में खड़ा होना मुश्किल होगा । डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल और अरनेजा गिरोह के खिलाफ जिस तरह का माहौल बना है, और जिस माहौल के चलते सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल को दो दो बार हार का मुँह देखना पड़ा है, उसे देखते हुए रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए समर्थन जुटाना शरत जैन के लिए वास्तव में चुनौतीपूर्ण होगा ।

Saturday, February 15, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवाने में असफल रहे नेताओं के लिए 'मेहनत' करके दिखाना जरूरी हो गया है, ताकि वह उनसे लिए गए पैसों को जस्टिफाई कर सकें

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुई पराजय से बौखलाए उनके समर्थक नेता पूरी तरह नंग-नाच पर उतर आये हैं । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के एक समर्थक हर्ष बंसल हालाँकि पहले से ही अपनी कुत्सित और नीच किस्म की हरकतों के लिए बदनाम हैं, लेकिन इस बार लग रहा है कि उन्हें अपने जैसे और भी कुछ सहयोगी मिल गए हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीतने वाले आरके शाह के समर्थक नेताओं के खिलाफ जिस तरह की नामी-बेनामी चिट्ठियाँ धड़ाधड़ आईं हैं, जिस जिस तरह की शिकायतें दर्ज कराईं गईं हैं - उससे एक बात बहुत साफ दिख रही है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में आया फैसला विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को हजम नहीं हो पाया है और विक्रम शर्मा की हार से वह बुरी तरह बौखला गए हैं । बौखलाहट में वह गाली-गलौच पर उतर आये हैं ।
विक्रम शर्मा की हार का फैसला आने के बाद, विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने कहीं अपनी पहचान बता कर तो कहीं - कायरों की तरह - अपनी पहचान छिपा कर आरके शाह की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के खिलाफ जो हमला बोला है, उसे देख/जान कर कई लोगों को हैरानी हुई है । लोगों का कहना/पूछना है कि इस तरह से अपनी बौखलाहट जता कर विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता आखिर साबित क्या करना चाहते हैं ? विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेता साबित क्या करना चाहते हैं, इसे समझने में एक छोटी-सी कहानी मदद कर सकती है :
एक बंदर को जंगल की व्यवस्था चलाने/संभालने का मौका मिला । बंदर ने व्यवस्था संभाली ही थी कि एक बकरी शिकायत ले कर आई कि उसके बच्चे को शेर ले गया है । बकरी ने बंदर से गुहार लगाई कि वह शेर से उसका बच्चा वापस दिलवाये । बंदर ने पहले तो शेर के खिलाफ बयानबाजी की कि 'मेरी व्यवस्था में शेर की मजाल कैसे हुई कि वह तुम्हारा बच्चा ले गया', 'मैं उसे छोड़ूँगा नहीं', आदि-इत्यादि । फिर बंदर बकरी को लेकर शेर की गुफा की तरफ गया । गुफा के नजदीक पहुँच कर बंदर ने गुलाटियाँ खानी और उछल-कूद करना शुरू किया । बकरी ने थोड़ी देर तो बंदर का यह तमाशा देखा और फिर पूछा कि तुम यह क्या कर रहे हो, मेरे बच्चे को छुड़वाने के लिए कुछ कर क्यों नहीं रहे हो । बंदर ने इस पर जबाव दिया कि तुम देख तो रही ही हो, कि मैं कितनी मेहनत कर रहा हूँ । मेरी मेहनत में तुम्हें कोई कमी दिख रही है क्या ? मेरा काम तो मेहनत करना है, तुम्हारा बच्चा छूटेगा या नहीं - यह बच्चे की और तुम्हारी किस्मत है ।
इस कहानी के बंदर की तरह विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को भी विक्रम शर्मा के सामने दरअसल मेहनत करके दिखाना है और यही वह दिखा रहे हैं । विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के लिए ऐसा करना दरअसल इसलिए जरूरी है क्योंकि उन्होंने विक्रम शर्मा से उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के पैसे लिए हैं; वह विक्रम शर्मा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवा तो नहीं सके, इसलिए उनके लिए मेहनत करके दिखाना जरूरी हो गया है, ताकि वह उनसे लिए गए पैसों को जस्टिफाई कर सकें ।
विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं को लगता है कि शिकायत करने की, रोने की जैसे बीमारी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विजय शिरोहा ने इन्हें पूरे समय बुरी तरह रुलाये भी रखा है । मौजूदा लायन वर्ष के शुरू में ही इन्होंने विजय शिरोहा की लायन इंटरनेशनल में शिकायत की थी । लायन इंटरनेशनल ने लेकिन इनकी शिकायत को कोई तवज्जो नहीं दी । तवज्जो देने लायक कोई बात थी ही नहीं । व्यवस्था संबंधी छोटी-छोटी बातें ही थीं - जो यदि सच भी थीं, तो भी ऐसी महत्व की नहीं थीं कि लायंस इंटरनेशनल उनका संज्ञान ले । अब भी, ये इस बात को लेकर रोना मचाये हुए हैं कि विजय शिरोहा ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस जल्दी कर ली । तकनीकी रूप से, नियम-कानून के संदर्भ में इसमें कुछ भी गलत नहीं है । यह सच है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस जल्दी कराने का विजय शिरोहा का फैसला एक राजनीतिक फैसला था; विजय शिरोहा ने राजनीतिक चतुराई का परिचय देते हुए यह फैसला किया था - इसका मुकाबला राजनीतिक चतुराई से ही किया जा सकता था, किया जाना चाहिए था; आप आवश्यक राजनीतिक चतुराई नहीं दिखा सके और चुनाव हार गए तो अब रोना-धोना क्यों मचाये हुए हो ?
विजय शिरोहा ने इन्हें कुछ ज्यादा ही गहरी चोट दी हुई है । विजय शिरोहा पर आरोप लगाने की कोशिश में इन्होँने यह आरोप अभी फिर दोहराया कि नया लायन होते हुए भी विजय शिरोहा ने डिस्ट्रिक्ट के अनुभवी लायन प्रदीप जैन को चुनाव हरा दिया और गवर्नर बन बैठे । अब इसमें आरोप वाली बात भला क्या है ? विजय शिरोहा और प्रदीप जैन के बीच जब चुनाव हो रहा था, तब वोट देने वाले लोगों को अच्छे से पता था कि विजय शिरोहा को लायनिज्म में अभी ज्यादा दिन नहीं हुए हैं और प्रदीप जैन डिस्ट्रिक्ट के धुरंधर लायन हैं - लेकिन फिर भी बहुमत का समर्थन विजय शिरोहा को मिला और वह गवर्नर बने तो इसमें विजय शिरोहा की भला क्या गलती है और इसके लिए उन्हें दोष कैसे दिया जा सकता है ? दरअसल इसी तरह के बेमतलब के आरोपों से विजय शिरोहा को घेरने की कोशिश की गई, जिसका कोई नतीजा नहीं ही निकलना था और न निकला ।
आरोप लगाने वाले नेताओं की समस्या लेकिन यह है कि उन्हें 'मेहनत करते हुए' दिखना है, इसलिए वह तरह-तरह के आरोप लगा रहे हैं और झमेले खड़े करने की कोशिशों में लगे हैं । ऐसी कोशिशों से लेकिन उनकी फजीहत और हो रही है । एक उदाहरण देखें : विजय शिरोहा के विरोधियों ने एक नियम यह खोज लिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के खिलाफ शिकायत को निवृतमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के यहाँ दर्ज करवाया जा सकता है । बस उन्हें लगा कि अब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की गर्दन नाप सकते हैं । किंतु डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ज्यादा होशियार निकले । उन्होंने निवृतमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश त्रेहन को लिखा कि उन्हें सिर्फ शिकायत स्वीकार करने का अधिकार है । राकेश त्रेहन को झटका देते हुए विजय शिरोहा ने उन्हें लिखा कि शिकायत के साथ जो रकम जमा होने की बात उन्होंने स्वीकार की है, उस रकम को अपने पास रखने का उन्हें कोई अधिकार नहीं है इसलिए उस रकम को वह तुरंत या तो डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को भेजे और या इंटरनेशनल कार्यालय को । विजय शिरोहा से मिले इस आदेश ने राकेश त्रेहन को सुन्न कर दिया है । राकेश त्रेहन के लिए इसका जबाव देते हुए नहीं बन रहा है और शिकायत के साथ मिली रकम को उन्होंने अभी तक भी न डिस्ट्रिक्ट कार्यालय को भेजा है और न इंटरनेशनल कार्यालय को । दरअसल इसी तरह से बिना सोचे-विचारे काम करने के कारण विजय शिरोहा के विरोधियों को पहले विजय शिरोहा से हारना पड़ा और फिर विजय शिरोहा के उम्मीदवार से भी हारना पड़ा है ।
हारने के बाद भी लेकिन उन्हें मेहनत करना पड़ रही है और कोई शक नहीं कि मेहनत करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं । उनकी इस मेहनत से विक्रम शर्मा को लेकिन न पहले कोई फायदा हुआ और न आगे कुछ फायदा होगा । कहानी वाले बंदर की तरह विक्रम शर्मा के समर्थक नेताओं को भी पता है कि वह विक्रम शर्मा का कोई फायदा नहीं करा सकते हैं, वह तो बस विक्रम शर्मा से लिए गए पैसों को जस्टिफाई करने के लिए उछल-कूद मचा रहे हैं ।

Friday, February 14, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की मुहिम में जुटे लोगों ने अपना अपना उल्लू सीधा करने का जुगाड़ भले ही कर लिया हो, लेकिन गुरी जनमेजा को उन्होंने मुसीबतों के भँवर में धकेलने का काम किया है

गाजियाबाद । सुधीर जनमेजा के आकस्मिक निधन के चलते खाली हुई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी पर दिवंगत सुधीर जनमेजा की पत्नी गुरी जनमेजा को बैठाने की कवायद को कई लोगों ने गुरी जनमेजा के लिए घातक माना/पहचाना है । डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों का मानना और कहना है कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने पर गुरी जनमेजा को कई तरह की मुसीबतों का सामना करना पड़ सकता है । दरअसल सुधीर जनमेजा पैसों संबंधी कई तरह के घालमेलों में फँसे थे । अभी हाल ही में, रीजन चेयरपर्सन अमर बोस गुप्ता ने अपने 21 हजार रुपये वापस लेने के लिए सुधीर जनमेजा को पत्र लिखा था, जिसकी प्रतियाँ उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को भेजी थीं । उनका पत्र सामने आने के बाद अन्य कई लोग अपने अपने पैसे माँगने के लिए पत्र लिखने/भेजने की बात करते सुने जाने लगे थे । सुधीर जनमेजा पर डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के नाम पर मोटी रकम जुटाने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी न छाप कर उक्त रकम हड़प जाने का आरोप जोरशोर से चर्चा में था । विदेश ले जाने के नाम पर भी अच्छी-खासी रकम इकट्ठी करने का मामला था और विदेश जाने के कार्यक्रम का कोई अतापता नहीं था । इस मामले में भी लोग अपने अपने पैसे वापस करने की माँग करने लगे थे । पैसों को हड़पने के आरोपों में सुधीर जनमेजा चारों तरफ से घिरते जा रहे थे ।
लेकिन दुखद निधन ने सुधीर जनमेजा को इस घेरे से आजाद कर दिया ।
परिस्थितियों का शिकार हो कर सुधीर जनमेजा ने जिस तरह से अपनी साँस छोड़ी, उसे जान कर फूटी रुलाई में जैसे सारे आरोप और सारी शिकायतें बह गईं ।
लेकिन गुरी जनमेजा के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बनने' की चर्चाओं ने उन सारे आरोपों और शिकायतों को पुनः मुखर बनाना शुरू कर दिया है । दरअसल इसी वजह से लोगों को लग रहा है कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की कोशिश करके गुरी जनमेजा वास्तव में अपने लिए मुसीबतों को निमंत्रण दे रही हैं । कई लोगों को लग रहा है कि गुरी जनमेजा के नजदीकी अपने अपने स्वार्थ में उन्हें बहका रहे हैं और मुसीबत की राह पर धकेल रहे हैं । दरअसल सुधीर जनमेजा के जो नजदीकी उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के चलते मजे ले रहे थे, उन्हें सुधीर जनमेजा के अचानक हुए निधन से पाँच महीने पहले ही अपने मजे की दुनिया के उजड़ जाने का दुःख हुआ है । उन्हें लग रहा है कि गुरी जनमेजा के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से उनकी मजे की दुनिया के उजड़ने का खतरा टल जायेगा । दिवंगत सुधीर जनमेजा के ऐसे नजदीकियों की खुशकिस्मती यह रही कि जो 'संकट' उनके सामने था, उसी संकट को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने भी महसूस किया । सुधीर जनमेजा की गवर्नरी की आड़ में सुशील अग्रवाल का जो राजपाट चल रहा था, उसे बचाने के लिए सुशील अग्रवाल को गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाना जरूरी लगा । सुशील अग्रवाल और दिवंगत सुधीर जनमेजा के स्थानीय नजदीकियों ने अपने अपने स्वार्थ में गुरी जनमेजा को तेरह दिन का शोक तक नहीं मनाने दिया और उन्हें कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए राजी करने में जुट गए । नजदीकी ही बता रहे हैं कि गुरी जनमेजा को राजी करने के लिए तर्क दिया गया कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने पर ही डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में जमा रकम उन्हें मिल पायेगी, अन्यथा उक्त रकम से उन्हें हाथ धोना पड़ेगा । गुरी जनमेजा को झूठ सच बता कर कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए भले ही राजी कर लिया गया हो, लेकिन कई लोगों का मानना और कहना है कि उन्हें राजी करने वाले लोगों ने अपना अपना उल्लू सीधा कर लेने का जुगाड़ भले ही कर लिया हो, लेकिन गुरी जनमेजा को उन्होंने मुसीबतों के भँवर में धकेलने का काम किया है ।
गुरी जनमेजा से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि काश कोई गुरी जनमेजा को समझा सके कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने में उन्होंने अपना फायदा चाहें जो सोचा हो, लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि उनका फायदा कम है नुकसान ज्यादा है । सुधीर जनमेजा के निधन के कारण अपनी अपनी रकम वापस माँग रहे तथा डिस्ट्रिक्ट के खर्चों का हिसाब माँग रहे लोग जिस तरह चुप हो गए हैं - गुरी जनमेजा के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने पर वह फिर से मुखर हो जायेंगे । उनसे निपटना गुरी जनमेजा के लिए खासा मुश्किल ही होगा । सुधीर जनमेजा के अनुभव से वह चाहें तो सबक ले सकती हैं - सुधीर जनमेजा की गवर्नरी की आड़ में मौज-मजा तो कई लोगों ने लिया/किया, लेकिन सुधीर जनमेजा जब भी मुश्किल में पड़े अकेले छोड़ दिए गए । उनके मामले में भी, जो लोग उन्हें कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की मुहिम में लगे हैं - उन्हें दरअसल अपने अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत स्वार्थ साधने हैं और गुरी जनमेजा उनके लिए बलि का बकरा भर हैं । यह इससे भी जाहिर है कि कई ऐसे लोग भी गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की मुहिम में लगे दिख रहे हैं जो सुधीर जनमेजा के कट्टर विरोधी थे ।

Thursday, February 13, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के लिए समर्थन जुटाने के लिए रमेश अग्रवाल लगातार अपने आप को जेके गौड़ के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि जेके गौड़ ने अभी तक इस बारे में कोई घोषणा नहीं की है

नई दिल्ली । रमेश अग्रवाल सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) का चुनाव जीतने के लिए अब ओछे किस्म के हथकंडों पर उतर आये हैं । रमेश अग्रवाल को सुबह सुबह घर घर जा कर क्लब के पदाधिकारियों की खुशामद करनी पड़ रही है । इसके अलावा, जेके गौड़ के गवर्नर-काल में पदों का लालच देकर उन्हें अपने लिए वोट जुटाने का जुगाड़ करना पड़ रहा है । उनकी इस तरह की कोशिशों ने जता दिया है कि ऊपर ऊपर में वह चुनाव में जीतने का दावा भले ही कर रहे हों, लेकिन उन्हें अपने खुद के इस दावे पर ज्यादा भरोसा है नहीं । दरअसल समर्थन जुटाने की अपनी कोशिशों के दौरान रमेश अग्रवाल ने पाया कि सीओएल के चुनाव को लेकर उनका जो रवैया रहा है, उसे लोगों ने पसंद नहीं किया है । अधिकतर लोगों का मानना और कहना रहा कि सीओएल के चुनाव में रमेश अग्रवाल को नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले का सम्मान करना चाहिए और सीओएल के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार आशीष घोष की उम्मीदवारी को चेलैंज नहीं करना चाहिए । कई लोगों ने रमेश अग्रवाल को याद दिलाया कि पिछले वर्ष भी और इस वर्ष भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में वह स्वयं और उनके संगी/साथी जब नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज किये जाने का खुले आम विरोध करते रहे हैं तथा चेलैंज करने वालों को हतोत्साहित करते रहे हैं - तो अब वह नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज क्यों कर रहे हैं ? रमेश अग्रवाल ने तरह-तरह की बहानेबाजी से इस बात का जबाव देने की कोशिश तो की, लेकिन उन्होंने खुद ही जाना/समझा कि इस बारे में दिए गए उनके सारे तर्क कुतर्क ही साबित हुए हैं, और अधिकतर लोगों ने उनकी हरकत को पसंद नहीं किया है ।
डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख लोग यह जान कर भी रमेश अग्रवाल के खिलाफ हुए हैं कि डिस्ट्रिक्ट के सभी प्रमुख व साख रखने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने आशीष घोष की उम्मीदवारी का समर्थन किया, जबकि रमेश अग्रवाल को प्रायः उन पूर्व गवर्नर्स का समर्थन मिला जो डिस्ट्रिक्ट में अपनी बदजुबानी के लिए, तिकड़मी राजनीति के लिए और या 'कुछ न करने' के लिए जाने जाते हैं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स अपने काम, अपने व्यवहार और अपनी उपलब्धियों से डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों के सामने एक उदाहरण तो प्रस्तुत करते ही हैं और लोगों को प्रेरित करने का काम करते हैं । इसी कारण से क्लब्स के अध्यक्ष तथा अन्य प्रमुख सदस्य यह सोचने के लिए मजबूर हुए हैं कि आखिर ऐसा क्यों हुआ कि रोटरी में अपने काम और अपने नजरिये से प्रतिष्ठा पाने वाले डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स तो आशीष घोष के साथ हैं, तथा बदनाम किस्म के पूर्व गवर्नर्स रमेश अग्रवाल के साथ हैं । इस तुलनात्मक आकलन से भी रमेश अग्रवाल को नुकसान हुआ है, जिसके चलते उन्हें चिंता होने लगी है ।
सीओएल के चुनाव को लेकर रमेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों के हर दाँव अभी तक उलटे ही पड़ते गए हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि रमेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों को उम्मीद थी कि वह नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा अधिकृत उम्मीदवार चुन लिए जायेंगे । लेकिन जैसे ही नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा फैसला करने का समय आया, उन्हें आभास हो गया कि नोमीनेटिंग कमेटी में उनकी दाल नहीं गलेगी - तब उन्होंने कोशिश की कि नोमीनेटिंग कमेटी का फैसला दो-तिहाई मतों से मान्य हो । रमेश अग्रवाल और उनके संगी-साथियों को विश्वास था कि रोटरी इंटरनेशनल में वह अपनी इस माँग को स्वीकृत करवा लेंगे और इसके जरिये सामने दिख रही अपनी हार को जीत में बदल देंगे । लेकिन वहाँ उन्हें मुहँकी खानी पड़ी और उसके बाद नोमीनेटिंग कमेटी में भी रमेश अग्रवाल को आशीष घोष के मुकाबले हार का सामना करना पड़ा । डिस्ट्रिक्ट की शीर्ष संस्था - काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में बुरी तरह दुत्कार दिए गए रमेश अग्रवाल ने घोषणा की कि वह नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को चेलैंज करेंगे और डिस्ट्रिक्ट के आधे से अधिक - करीब पिचहत्तर क्लब्स की कॉन्करेंस देंगे । रमेश अग्रवाल ने दावा किया था कि कॉन्करेंस के जरिये वह दिखा/जता देंगे कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने उनकी उम्मीदवारी को भले ही रिजेक्ट कर दिया हो, लेकिन क्लब्स में उनका समर्थन है ।
रमेश अग्रवाल कॉन्करेंस जुटाने के लिए खुद जुटे और अपने चेले जेके गौड़ को जुटाया - लेकिन तमाम कोशिशों के बाद वह कुल अट्ठाइस क्लब्स की कॉन्करेंस ही जुटा सके । यह भी क्लब्स के पदाधिकारियों से झूठ बोल कर, धोखेधड़ी से और जेके गौड़ के गवर्नर-काल में पदों का लालच देकर वह जुटा सके । समर्थन जुटाने के लिए रमेश अग्रवाल लगातार अपने आप को जेके गौड़ के गवर्नर-काल के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में पेश कर रहे हैं, जबकि जेके गौड़ ने अभी तक इस बारे में कोई घोषणा नहीं की है । इस बारे में पूछे जाने पर जेके गौड़ ने कहीं कहीं तो खीज में बड़ा मजेदार जबाव दिया और वह यह कि 'रमेश अग्रवाल को मैंने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर नहीं बनाया है, वह खुद ही बन गया है तो मैं क्या करूँ ?' रोटरी के इतिहास में शायद यह एक विलक्षण घटना होगी कि किसी ने अपने आप को जबर्दस्ती डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर घोषित कर दिया और गवर्नर बेचारा असहाय-सा देखता ही रह गया । रमेश अग्रवाल भी जानते हैं और दूसरे लोग भी मानते और कहते हैं कि जेके गौड़ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर भले ही हो जायेंगे लेकिन उनकी ऐसी हैसियत नहीं है कि वह रमेश अग्रवाल से कह सकें कि मेरे घोषणा करने से पहले ही वह अपने आप को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर कैसे कह सकते हैं ?
रमेश अग्रवाल को इस तरह की घटिया हरकतें करना इसलिए जरूरी लग रहा है क्योंकि उन्हें विश्वास है कि इस तरह की हरकतों से ही वह सीओएल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटा सकते हैं ।

Wednesday, February 12, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जेके गौड़ का दावा है कि पूर्व गवर्नर्स उनके खिलाफ शिकायत करने की बातें चाहें जितनी करें, किंतु कोई भी शिकायत करेगा नहीं क्योंकि सभी को उनके गवर्नर-काल में महत्वपूर्ण पद चाहिएँ और विभिन्न आयोजनों में अच्छी अच्छी सीट

नई दिल्ली । पोलियो पर जीत के जश्न में शामिल होने आये रोटरी के बड़े नेताओं ने सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव के संदर्भ में रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ की भूमिका पर भले ही नाराजगी दिखाई हो, लेकिन उनकी नाराजगी का रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ पर कोई असर पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है । रोटरी के बड़े नेताओं ने काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच कहा कि सीओएल के चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट 3010 में जो तमाशा चल रहा है उससे रोटरी की दुनिया में डिस्ट्रिक्ट 3010 की और रोटरी से बाहर की दुनिया में रोटरी की बदनामी हो रही है । उनका कहना रहा कि सीओएल का चुनाव कोई ऐसा चुनाव नहीं है, जिसे सड़कछाप तरीके से लड़ा जाये और रोटरी की भावना तथा रोटरी की प्रतिष्ठा को कलंकित किया जाये । रोटरी के सभी बड़े नेताओं का कहना रहा कि सीओएल के चुनाव को नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले तक पूरा हो जाना चाहिए तथा नोमीनेटिंग कमेटी के फैसले को ही स्वीकार कर लेना चाहिए । दिल्ली में जुटे राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू, कल्याण बनर्जी, पीटी प्रभाकर, मनोज देसाई, शेखर मेहता जैसे रोटरी के बड़े नेता सीओएल के चुनाव के संदर्भ में रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ द्धारा की जा रही हरकतों के बारे में सुन/जान कर वास्तव में हैरान भी हो रहे थे, और शर्मिंदा भी हो रहे थे कि रोटरी में क्या-क्या होने लगा है ।
सीओएल के चुनाव के संदर्भ में की जा रही रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ की कारस्तानियों के बारे में सुन/जान कर रोटरी के बड़े नेता भले ही हैरान और शर्मिंदा हो रहे हों - लेकिन रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ पर उसका कोई असर नहीं हुआ । इनके नजदीकियों का कहना है कि इन्होँने जब अपने डिस्ट्रिक्ट के बड़े नेताओं - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुदर्शन अग्रवाल और सुशील गुप्ता की नहीं सुनी/मानी, तो फिर डिस्ट्रिक्ट से बाहर के पदाधिकारियों व नेताओं को क्यों तवज्जो दें ? उल्लेखनीय है कि पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने अभी हाल ही में प्रयास किया था कि सीओएल के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार आशीष घोष की उम्मीदवारी को चेलैंज करके रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट में एक गलत परंपरा न डालें, लेकिन रमेश अग्रवाल ने उनकी बात पर ध्यान देना जरूरी ही नहीं समझा । जेके गौड़ ने भी सुशील गुप्ता की उस सलाह पर कोई गौर नहीं किया, जिसमें सुशील गुप्ता ने उन्हें किसी एक उम्मीदवार के पक्ष में पार्टी न बनने की बात कही थी । जेके गौड़ के हौंसले खूब बुलंद हैं । किसी ने उनसे सुशील गुप्ता के नाराज होने की बात कही, तो जेके गौड़ ने पलट कर जबाव दिया कि सुशील गुप्ता ज्यादा दिन नाराज नहीं रहेंगे - क्योंकि सुशील गुप्ता को उनके गवर्नर-काल में अपने प्रोजेक्ट के लिए उनसे पैसे लेने हैं न ! 
सीओएल को लेकर जो तमाशा हो रहा है, उसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जेके गौड़ की असलियत खुल कर सामने आई है । 'कलाकारी' में जेके गौड़ तो मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल के भी 'बाप' साबित हो रहे हैं । जेके गौड़ को जैसे ही पता चला कि कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनसे रमेश अग्रवाल का साथ देने के कारण खफा हो रहे हैं तथा रोटरी इंटरनेशनल में उनकी शिकायत करने की तैयारी कर रहे हैं तो उन्होंने दोहरा रवैया अपना लिया - एक तरफ तो उन्होंने पूर्व गवर्नर्स से मिल मिल कर उन्हें सफाई दी कि रमेश अग्रवाल के लिए समर्थन जुटाने के लिए उन्होंने कुछ भी नहीं किया और इस संबंध में उन्हें नाहक ही बदनाम किया जा रहा है; साथ ही लेकिन दूसरी तरफ उन्होंने अन्य कुछेक लोगों के सामने दावा किया कि पूर्व गवर्नर्स उनके खिलाफ शिकायत करने की बातें चाहें जितनी करें, किंतु कोई भी शिकायत करेगा नहीं क्योंकि सभी को उनके गवर्नर-काल में महत्वपूर्ण पद चाहिएँ और विभिन्न आयोजनों में अच्छी अच्छी सीट ।
रमेश अग्रवाल, मुकेश अरनेजा और जेके गौड़ इसी वजह से डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स को और उनकी बातों को तवज्जो नहीं दे रहे हैं; और इसी कारण से वह रोटरी के बड़े नेताओं की भी परवाह नहीं कर रहे हैं । ये जान/समझ रहे हैं कि रोटरी के बड़े नेता पब्लिक डोमेन में चाहें जो कह रहे हों, पर्सनल डोमेन में इनकी 'उपयोगिता' समझते हैं और इसलिए इनके लिए रोटरी के बड़े नेताओं की बात को सुनना/मानना बिलकुल भी जरूरी नहीं है ।

Tuesday, February 11, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में केएस लूथरा ने संजय चोपड़ा के गवर्नर-काल में चौधराहट जमाने की जो तैयारी की थी, गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने उस पर पानी फेर दिया है

लखनऊ । गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने केएस लूथरा से संजय चोपड़ा को छीन कर, उन्हें विशाल सिन्हा की उम्मीदवारी का समर्थन करने का 'ईनाम' दे दिया है । केएस लूथरा को फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय चोपड़ा के साथ अपनी दोस्ती पर बड़ा नाज़ रहा है और वह गाहे-बगाहे अपने इस नाज़ का बखान भी करते रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ दिनों से केएस लूथरा और संजय चोपड़ा के बीच बातचीत वाले संबंध भी नहीं रह गए हैं । केएस लूथरा ने अपने कुछेक नजदीकियों से शिकायत भी की है कि संजय चोपड़ा अब उनकी सुनते ही नहीं हैं । दूसरे लोगों ने भी महसूस किया है कि संजय चोपड़ा अब केएस लूथरा की नहीं - बल्कि गुरनाम सिंह की, प्रमोद चंद्र सेठ की, अनुपम बंसल की, विशाल सिन्हा की सुन रहे हैं । गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने दरअसल बड़ी होशियारी से संजय चोपड़ा को केएस लूथरा से छीन लिया है और केएस लूथरा हाथ मलते ही रह गए हैं ।
केएस लूथरा और संजय चोपड़ा के बीच अगले लायन वर्ष में - संजय चोपड़ा के गवर्नर-काल में - होने वाले अधिष्ठापन कार्यक्रम के स्थान को लेकर जो मतभेद पैदा हुआ, उसे गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने अपने लिए एक मौके के रूप में पहचाना और संजय चोपड़ा को उकसा कर उन्हें केएस लूथरा से दूर कर दिया । हुआ यह कि संजय चोपड़ा ने अपने गवर्नर-काल में होने वाले डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन कार्यक्रम को दुबई में करने की योजना का जिक्र किया, तो केएस लूथरा ने इसका विरोध किया । केएस लूथरा का तर्क रहा कि दुबई में होने से डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन कार्यक्रम में ज्यादा लोगों की भागीदारी नहीं हो पायेगी और वह एक पिकनिक कार्यक्रम भर बन कर रह जायेगा । इससे डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन के मूल उद्देश्य को भी प्राप्त नहीं किया जा सकेगा । केएस लूथरा ने उदाहरण सहित तर्क भी दिया कि जिन भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने विदेश में और/या पिकनिक स्थलों पर डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रम किये हैं, उन्हें लोगों की भारी आलोचना का ही शिकार होना पड़ा है और कुछ भी हासिल नहीं हुआ । केएस लूथरा ने संजय चोपड़ा को सलाह दी कि डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन का कार्यक्रम उन्हें शाहजहाँपुर या लखनऊ में ही करना चाहिए । केएस लूथरा की इन बातों से संजय चोपड़ा को झटका तो लगा, लेकिन यह कोई ऐसी बात नहीं थी जिससे कि उनके और केएस लूथरा के बीच दूरियाँ बन जाएँ ।
लेकिन गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी के लोगों को जैसे ही पता चला कि दुबई में डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन करने की संजय चोपड़ा की तैयारी पर केएस लूथरा पानी फेरने की कोशिश कर रहे हैं - वह संजय चोपड़ा की मदद करने के लिए कूद पड़े । सबसे पहले प्रमोद चंद्र सेठ ने संजय चोपड़ा का हौंसला बढ़ाया - उन्होंने संजय चोपड़ा से कहा कि वह जहाँ कहीं भी डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन का आयोजन करना चाहें करें । प्रमोद चंद्र सेठ उनसे यह कहना भी नहीं भूले कि वह जहाँ कहीं भी अधिष्ठापन कार्यक्रम करेंगे, उनका और उनके क्लब का पूरा पूरा सहयोग और समर्थन उन्हें मिलेगा । संजय चोपड़ा को प्रमोद चंद्र सेठ का समर्थन मिला, तो फिर समर्थन और सहयोग के ऑफर की लाइन लग गई । अनुपम बंसल ने, गुरनाम सिंह ने और विशाल सिन्हा ने भी दुबई में डिस्ट्रिक्ट अधिष्ठापन कार्यक्रम आयोजित करने को लेकर संजय चोपड़ा की पीठ थपथपाई । इतने 'महान' नेताओं से समर्थन और सहयोग का आश्वासन मिला, तो संजय चोपड़ा को केएस लूथरा की समझाइश बकवास लगने लगी और उन्होंने केएस लूथरा के साथ बात करना कम क्या, बंद ही कर दिया । गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी के लोगों की रणनीति कामयाब रही ।
संजय चोपड़ा को केएस लूथरा से छीन कर गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने केएस लूथरा से बदला भी ले लिया और उन्हें अकेला भी कर दिया । केएस लूथरा ने संजय चोपड़ा के गवर्नर-काल में चौधराहट जमाने की जो तैयारी की थी, गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने उस पर पानी फेर दिया है । गुरनाम सिंह एंड कंपनी के प्रमुख सदस्य प्रमोद चंद्र सेठ ने संजय चोपड़ा को पटा कर अपनी पत्नी मीरा सेठ के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राह को आसान बनाने का काम भी किया है । मीरा सेठ को अगले लायन वर्ष में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । मीरा सेठ की उम्मीदवारी के संदर्भ में प्रमोद चंद्र सेठ को केएस लूथरा और संजय चोपड़ा की दोस्ती से खतरा था । केएस लूथरा के साथ प्रमोद चंद्र सेठ का पीछे जो झंझट रहा है, उसके कारण प्रमोद चंद्र सेठ को डर था कि केएस लूथरा कुछ भी करके मीरा सेठ की उम्मीदवारी में फच्चर फँसा सकते हैं । प्रमोद चंद्र सेठ के क्लब के अशोक अग्रवाल के साथ केएस लूथरा पिछले कुछ समय से जिस तरह से 'दिख' रहे हैं, उसमें प्रमोद चंद्र सेठ को मीरा सेठ की उम्मीदवारी के लिए खतरा दिख रहा था । अशोक अग्रवाल को भी संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । प्रमोद चंद्र सेठ को डर हुआ था कि संजय चोपड़ा के साथ मिल कर केएस लूथरा ने यदि अशोक अग्रवाल को उम्मीदवार बनवा दिया - तो मीरा सेठ की उम्मीदवारी की संभावना तो ख़त्म हो ही जायेगी, साथ ही शाहजहाँपुर में उनकी अपनी स्थिति कमजोर हो जायेगी । संजय चोपड़ा को केएस लूथरा से अलग करके प्रमोद चंद्र सेठ ने अपने उक्त डर को खत्म कर लिया है ।
केएस लूथरा ने पिछले लायन वर्ष में गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी को नाको चने चबवा दिए थे । इस बार गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी ने उन्हें घेरघार कर अपने साथ कर तो लिया था, लेकिन साथ ही उन्हें यह डर भी था कि संजय चोपड़ा के साथ मिल कर अगले लायन वर्ष में केएस लूथरा फिर से उन्हें परेशान कर सकते हैं । इसी का ध्यान करके उन्होंने संजय चोपड़ा का शिकार कर लिया और केएस लूथरा को अकेला कर दिया है । कई लोगों को लगता है कि इस बार गुरनाम सिंह एण्ड कंपनी की बातों में आकर केएस लूथरा ने खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली - उन्हें जैसे उसी का ईनाम मिला है ।

Monday, February 10, 2014

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विनय मित्तल का नाम आगे बढ़ा कर मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को खासा दिलचस्प बना दिया है

गाजियाबाद । गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के नाम पर सुशील अग्रवाल - पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने अपना उल्लु सीधा करने का जो दाँव चला है, उसने सुनील जैन/अरुण मित्तल ग्रुप के सामने एक गंभीर दुविधा पैदा कर दी है । उनकी दुविधा गंभीर इसलिए है क्योंकि सुशील अग्रवाल ने अपनी यह चाल मुकेश गोयल द्धारा विनय मित्तल का नाम आगे बढ़ाये जाने की रणनीति की काट के लिए चली है । सुनील जैन/अरुण मित्तल के सामने दुविधा यह पैदा हुई है कि वह सुशील अग्रवाल की सरपरस्ती स्वीकार करें या मुकेश गोयल की । सुशील अग्रवाल की राजनीति के साथ उनका बुनियादी विरोध है, जबकि मुकेश गोयल के साथ उनका तात्कालिक - सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार को लेकर - विरोध है । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राजनीति में सुनील जैन/अरुण मित्तल ने मुकेश गोयल से अलग राह लेकर अपना जो वर्चस्व बनाया था, उसे सुधीर जनमेजा के निधन ने थोड़ा डिस्टर्ब कर दिया है । बुनियादी अंतर हालाँकि कुछ नहीं पड़ा है - सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की  राजनीति में सुनील जैन/अरुण मित्तल को पहले भी सुशील अग्रवाल आदि का समर्थन मिलना था, जो अब भी उन्हें मिलेगा ही; अंतर लेकिन यह पड़ा है कि बदली हुई स्थिति में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में समर्थन लेने के बदले में उन्हें सुशील अग्रवाल की सरपरस्ती स्वीकार करनी पड़ सकती है ।
सुधीर जनमेजा की अचानक हुई मृत्यु ने सुशील अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में  
अपना वर्चस्व स्थापित करने का अवसर उपलब्ध कराया है और उन्होंने इस अवसर का फायदा उठाने की पूरी तैयारी कर ली है । यहाँ इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि जो सुशील अग्रवाल अब गुरी जनमेजा को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की मुहिम में लगे हैं, वह सुशील अग्रवाल पहले अपने आप को कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की मुहिम में जुटे थे । लेकिन जब उन्हें मुकेश गोयल द्धारा विनय मित्तल का नाम आगे करने के चलते खुद के लिए कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद मिलता हुआ नहीं दिखा, तो उन्होंने गुरी जनमेजा का नाम आगे बढ़ा दिया । सुशील अग्रवाल ने समझ लिया है कि विनय मित्तल की उम्मीदवारी का मुकाबला गुरी जनमेजा के नाम पर भावनाएँ भड़का कर ही किया जा सकता है । कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गुरी जनमेजा का नाम सुशील अग्रवाल ने मजबूरी में ही लिया है - जिससे साबित है कि गुरी जनमेजा का नाम सुशील अग्रवाल अपने फायदे के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं ।
गुरी जनमेजा के सहारे सुशील अग्रवाल अपना उल्लु सीधा करने की तिकड़म भिड़ा रहे हैं, यह बात इससे भी जाहिर है कि सुशील अग्रवाल इस तथ्य से अच्छी तरह वाकिफ हैं कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गुरी जनमेजा क्वालीफाई ही नहीं करती हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर रह चुके सुशील अग्रवाल को नियम-कानूनों के अच्छे जानकार के रूप में जाना/पहचाना जाता है; वह खुद भी नियम-कानूनों को जानने और उन पर अमल करने की वकालत करने का अक्सर 'दिखावा' करते रहते हैं । ऐसे में, हर किसी को हैरानी इस बात की है कि सुशील अग्रवाल जब अच्छी तरह इस बात को जानते/समझते हैं कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गुरी जनमेजा क्वालीफाई ही नहीं करती हैं तो फिर सुशील अग्रवाल उनका नाम क्यों ले रहे हैं ? समझा जाता है कि गुरी जनमेजा के सहारे सुशील अग्रवाल अपने आप को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के केंद्र में लाने की कवायद कर रहे हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति जिस तरह मुकेश गोयल और अभी हाल तक उनके साथ रहे सुनील जैन/अरुण मित्तल के बीच बँट गई है, उसके चलते सुशील अग्रवाल तो हाशिये पर ही पहुँच गए हैं । सुशील अग्रवाल को लगता है कि सुधीर जनमेजा के निधन से उन्हें जो अवसर मिला है उसे वह गुरी जनमेजा के सहारे से ही फलीभूत कर सकते हैं ।
दरअसल कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर निगाह करने/रखने वाले सुशील अग्रवाल का खेल मुकेश गोयल ने बिगाड़ दिया । विनय मित्तल का नाम आगे बढ़ा कर मुकेश गोयल ने जो मास्टर स्ट्रोक चला, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के सारे खिलाड़ियों को जैसे साँप सुँघा दिया है । विनय मित्तल को यूँ तो मुकेश गोयल के नजदीकी के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन उनकी अपनी भी एक पहचान और साख और सामर्थ्य है । विनय मित्तल पिछले काफी समय से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर दूर थे - जिस कारण मुकेश गोयल की ताकत पर प्रतिकूल असर देखा/पहचाना जा रहा था । सभी लोग समझ रहे हैं कि विनय मित्तल के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने पर मुकेश गोयल की राजनीतिक ताकत में गुणात्मक वृद्धि होगी । सुशील अग्रवाल के सामने तो राजनीतिक पहचान के चौपट हो जाने का खतरा पैदा हो गया है । ऐसे में, उन्हें गुरी जनमेजा के सहारे से इस खतरे से निपटने का उपाय ही समझ में आया । उन्हें विश्वास है कि सुनील जैन/अरुण मित्तल भी इस 'उपाय' में उनकी मदद करेंगे ।
सुनील जैन/अरुण मित्तल के सामने इसमें लेकिन बहुस्तरीय खतरा है । उनकी सारी राजनीति वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव पर खड़ी है - और उनका मुकाबला मुकेश गोयल से होना है । वह भी जान रहे हैं कि विनय मित्तल के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने से मुकेश गोयल की ताकत बढ़ेगी, लेकिन उनके लिए समस्या की बात यह भी है कि वह यदि गुरी जनमेजा के पक्ष में खड़े होते हैं तो उन्हें सुशील अग्रवाल की सरपरस्ती स्वीकार करनी पड़ेगी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में समय तथा साधन तो वह लगायेंगे और नाम सुशील अग्रवाल का होगा । समस्या सिर्फ यही नहीं है - गुरी जनमेजा के कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने में सहायक होकर उन्हें उन लोगों की नाराजगी का भी शिकार होना पड़ेगा, जिनके पैसों को लेकर सुधीर जनमेजा के साथ विवाद या लफड़े रहे हैं । सुनील जैन और अरुण मित्तल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने में विनय मित्तल का जिस तरह का सहयोग रहा है, वह चूँकि लोगों की जानकारी में है - इसलिए विनय मित्तल का विरोध करने का उन्हें मनोवैज्ञानिक रूप से नुकसान हो सकता है ।
सुनील जैन और अरुण मित्तल के कुछेक नजदीकियों का मानना और कहना है कि विनय मित्तल को मुकेश गोयल के 'आदमी' के रूप में जानते/पहचानते हुए भी उन्हें विनय मित्तल की उम्मीदवारी का समर्थन करना चाहिए । उनका तर्क है कि विनय मित्तल 'आदमी' भले ही मुकेश गोयल के हों, लेकिन कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह मुकेश गोयल के 'अँगूठा' बन कर नहीं रहेंगे । विनय मित्तल की अपनी जो साख, पहचान और सामर्थ्य है उसके कारण वह कोई भी काम जिम्मेदारी से ही करेंगे और ऐसा कुछ करने से बचेंगे जिससे उनकी साख और पहचान पर दाग लगता हो । सुनील जैन और अरुण मित्तल के नजदीकियों का मानना और कहना है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की जितनी और जैसी  भूमिका होती है, उसके संदर्भ में कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में गुरी जनमेजा की बजाये विनय मित्तल को हैंडल करना आसान होगा । नजदीकियों का ही कहना है कि ये बातें सुनील जैन और अरुण मित्तल को समझ में तो आ रही हैं - लेकिन अंतिम फैसला करने से पहले वह अभी और सोच-विचार कर लेना चाहते हैं ।
अंतिम फैसला किसी का भी चाहें जो हो, एक बात सच है कि कार्यवाहक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विनय मित्तल का नाम आगे बढ़ा कर मुकेश गोयल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प जरूर बना दिया है ।

Saturday, February 8, 2014

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव जीतने का दावा करके विजय गुप्ता और अनुज गोयल ने चुनावी माहौल को खासा दिलचस्प बना दिया है

नई दिल्ली । विजय गुप्ता और अनुज गोयल के नजदीकियों का दावा है कि इस बार तो वह निश्चित ही इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट बन जायेंगे । दोनों के नजदीकियों के इस दावे में समस्या लेकिन यही है कि इंस्टीट्यूट का वाइस प्रेसीडेंट तो एक ही बनेगा - ऐसे में दोनों के दावों में किसी एक का दावा तो कोरा दावा ही रह जाना है । दोनों में से लेकिन कोई भी यह स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि उसका दावा ख़ारिज हो सकता है ।
विजय गुप्ता इस बार वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने के लिए इस कारण से आश्वस्त हैं, क्योंकि उन्हें इंस्टीट्यूट के मौजूदा प्रेसीडेंट सुबोध अग्रवाल और वाइस प्रेसीडेंट के रघु के सहयोग/समर्थन का भरोसा है । विजय गुप्ता का कहना है कि सुबोध अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में उन्होंने जिस तरह से सुबोध अग्रवाल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम किया है, उसके चलते सुबोध अग्रवाल उनसे बहुत ही खुश हैं और खुश होने के कारण सुबोध अग्रवाल निश्चित ही उन्हें वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने में मदद करेंगे । के रघु को लेकर विजय गुप्ता का दावा है कि पिछली बार के रघु को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने में चूँकि उन्होंने बहुत मेहनत और तिकड़म की थी तथा कई लोगों का समर्थन के रघु को दिलवाया था इसलिए इस बार 'अपने' लोगों का समर्थन के रघु उन्हें दिलवायेंगे । विजय गुप्ता का एक जोरदार तर्क यह भी है कि वह जब के रघु को वाइस प्रेसीडेंट चुनवा सकते हैं, तो अपने आप को क्यों नहीं चुनवा सकते हैं ? विजय गुप्ता ने दावा किया है कि पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की मदद भी उन्हें मिल रही है । विजय गुप्ता ने अपने नजदीकियों को बताया/जताया है कि जब इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट और वाइस प्रेसीडेंट के साथ-साथ एक पूर्व प्रेसीडेंट का सहयोग/समर्थन उनके साथ है तो फिर भला वह क्यों नहीं चुने जायेंगे ?
अनुज गोयल को इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम कुमार अग्रवाल का भरोसा है । उत्तम कुमार अग्रवाल हालाँकि इंस्टीट्यूट की काउंसिल में नहीं हैं, लेकिन फिर भी काउंसिल के कई सदस्यों पर उनका असर/प्रभाव माना/बताया जाता है । अनुज गोयल के साथ उत्तम कुमार अग्रवाल की अच्छी दोस्ती रही है - उस दोस्ती के चलते अनुज गोयल को यद्यपि काफी बदनामी भी उठानी पड़ी है, लेकिन उन दोनों की दोस्ती पर उससे कोई प्रतिकूल असर नहीं पड़ा । उत्तम कुमार अग्रवाल का इंस्टीट्यूट की मौजूदा काउंसिल के कुछेक सदस्यों के साथ तो अच्छे संबंध हैं ही, साथ ही समर्थन जुटाने का हुनर भी उन्हें खूब आता है । इसी हुनर के चलते वह ऐसी स्थिति में (वाइस) प्रेसीडेंट चुने गए थे, जबकि किसी को उनके चुनने/बनने की कतई उम्मीद नहीं थी । प्रेसीडेंट के रूप में उत्तम कुमार अग्रवाल के साथ अनुज गोयल का 'जिस तरह' का एसोसिएशन  रहा था, उसके चलते उत्तम कुमार अग्रवाल का एक एजेंडा/लक्ष्य अनुज गोयल को इंस्टीट्यूट का (वाइस) प्रेसीडेंट बनवाना/चुनवाना भी है । पिछले वर्षों में उत्तम कुमार अग्रवाल ने हालाँकि अनुज गोयल को चुनवाने का प्रयास किया था, लेकिन तब उनकी दाल नहीं गाल सकी । अनुज गोयल काउंसिल सदस्यों के बीच दरअसल इतनी बुरी तरह से बदनाम हैं, कि हर कोई यही मानता है कि अनुज गोयल यदि इंस्टीट्यूट के (वाइस) प्रेसीडेंट बनते हैं तो यह इंस्टीट्यूट के लिए और प्रोफेशन के लिए बहुत ही बदकिस्मती की बात होगी । असल में, बदनामी के कारण ही अनुज गोयल की उम्मीदवारी को कोई गंभीरता से नहीं लेता है । अनुज गोयल लेकिन इस बार बहुत उम्मीद में हैं । बदनामी वाले पक्ष से वह इसलिए चिंतित नहीं हैं क्योंकि बदनामी के बाद भी उत्तम कुमार अग्रवाल और सुबोध अग्रवाल भी (वाइस) प्रेसीडेंट बने ही न ! अनुज गोयल आश्वस्त हैं क्योंकि वह जानते हैं कि फूलन देवी भी संसद का चुनाव जीती ही थी । इसी विश्वास के भरोसे अनुज गोयल ने इस बार काफी मेहनत की है और काउंसिल के सदस्यों के वोट जुटाने के लिए उन्हें हर तरह से घेरने का काम किया है ।
विजय गुप्ता और अनुज गोयल की तैयारी ने लेकिन चरनजोत सिंह नंदा के गेम प्लान को गड़बड़ कर दिया है । चरनजोत सिंह नंदा ने भी वाइस प्रेसीडेंट बनने के लिए अपनी सारी ताकत झोंक दी हुई है । मजे की बात लेकिन यह है कि अपनी निरंतर तैयारी के बाद भी चरनजोत सिंह नंदा अपने चुने जाने को लेकर खुद ही बहुत आश्वस्त नहीं हैं - जैसे कि विजय गुप्ता और अनुज गोयल हैं । चरनजोत सिंह नंदा दरअसल अपना अभियान खुद ही चला रहे हैं, उन्हें किसी 'नामी' व्यक्ति का समर्थन घोषित रूप से नहीं सुना जा रहा है - इसलिए उनकी उम्मीदवारी में 'वजन' ज्यादा नहीं बन पा रहा है । नीलेश विकमसे, संजीव माहेश्वरी, मनोज फडनिस, संजय अग्रवाल की उम्मीदवारी को भी किसी बड़े नेता का समर्थन हालाँकि प्राप्त नहीं है - लेकिन फिर भी उनकी उम्मीदवारी को महत्वपूर्ण माना जा रहा है तो इसका कारण इनके अपने अपने व्यक्तित्व में हैं । इन्होँने अपने कामकाज, अपने व्यवहार, अपनी सक्रियता और अपनी सामर्थ्य से अपनी पहचान बनाई है और अब उसी पहचान के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उम्मीदवार बने हैं ।
वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी प्रक्रिया से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव एक घोर अनिश्चितता भरा चुनाव है और किसी के लिए भी यह समझना/पहचानना सिर्फ मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव भी है कि वाइस प्रेसीडेंट पद की कुर्सी पर कौन बैठेगा । अक्सर ही, जीतने/बनने वाले को भी यह भरोसा नहीं होता है कि वह जीत/बन ही जायेगा । यह एक ऐसा चुनाव है जहाँ हर पल नए समीकरण बनते और बिगड़ते हैं, इसलिए किसी नए बने समीकरण के हवाले से अनुमान लगाना धोखापूर्ण हो जाता है । इसके बावजूद उम्मीदवारों को अनुमानों के आधार पर और उनके भरोसे ही काम करना पड़ता है । इस बार भी वाइस प्रेसीडेंट पद के सभी उम्मीदवार अपने अपने अनुमानों के आधार पर ही बनाई गईं अपनी अपनी रणनीतियों के आधार पर ही अपने लिए मौका बनाने का प्रयास कर रहे हैं । दूसरे उम्मीदवार जहाँ अपने अपने तरीके से सिर्फ प्रयास कर रहे हैं, वहाँ विजय गुप्ता और अनुज गोयल प्रयासों के साथ-साथ जीत का दावा भी कर रहे हैं । उनका दावा सच होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा, अभी लेकिन उनके दावों ने इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को खासा दिलचस्प बना तो दिया है ।

Friday, February 7, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में सीओएल के चुनाव के संदर्भ में जेके गौड़ द्धारा की जा रही कारस्तानियों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तावित शरत जैन की उम्मीदवारी की मुश्किलें बढ़ाईं

गाजियाबाद । सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के चुनाव में रमेश अग्रवाल के समर्थन में काम करने को लेकर जेके गौड़ का जैसा भांडा फूटा है और उसके चलते जेके गौड़ जिस तरह गाजियाबाद के नेताओं के बीच अलग-थलग पड़ गए हैं, उसे देख/जान कर शरत जैन के सामने अजीब सा गंभीर संकट पैदा हो गया है । शरत जैन दरअसल अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार होने की तैयारी कर रहे हैं । रमेश अग्रवाल के क्लब के सदस्य होने के नाते कुछेक लोगों के बीच शरत जैन को रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखा जरूर जाता है, लेकिन शरत जैन ने अपनी तरफ से डिस्ट्रिक्ट के दूसरे नेताओं के साथ भी जुड़ने की सायास कोशिश की है और अपने माथे से रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार होने के 'दाग' को धोने की तैयारी दिखाई है । शरत जैन ने अभी तक अपनी जिस तरह की तैयारी दिखाई है, उसमें दोहरी व्यवस्था का संकेत है - एक तरफ उन्होंने अन्य नेताओं का समर्थन जुटाने का प्रयास किया है, तो दूसरी तरफ उन्होंने अरनेजा गिरोह के सदस्यों के सहारे क्लब्स में पैठ बनाने की तैयारी दिखाई । इसी तैयारी के चलते शरत जैन का आम तौर पर उत्तर प्रदेश और खास तौर पर गाजियाबाद में समर्थन जुटाने के लिए जेके गौड़ के साथ गठजोड़ बना ।
जेके गौड़ ने अपनी 'ड्यूटी' ज्वाइन भी कर ली थी । दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के खिलाफ जेके गौड़ ने जिस होशियारी के साथ चाल चली, उसे गाजियाबाद में शरत जैन के लिए जमीन तैयार करने की उनकी चालबाजी के रूप में ही देखा/पहचाना गया । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब गाजियाबाद के दीपक गुप्ता भी अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी में हैं । डिस्ट्रिक्ट के लोगों में इस बात को लेकर दिलचस्पी होना स्वाभाविक ही था कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी पर जेके गौड़ की क्या प्रतिक्रिया है । जेके गौड़ ने इस बारे में पूछे जाने पर सीधा जबाव देने की बजाये अफवाहों को दोहराया - उन्होंने लोगों को बताया कि दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का तो उनके अपने क्लब में ही विरोध हो रहा है और इसलिए दीपक गुप्ता अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटते हुए दिख रहे हैं । पिछले कुछ महीनों में दीपक गुप्ता चूँकि सीन में ज्यादा दिखाई नहीं दिए हैं, इसलिए जेके गौड़ को लोगों के बीच दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति संदेह पैदा करने का मौका मिला - और उन्होंने इस मौके का जमकर फायदा उठाया । जेके गौड़ की इस कार्रवाई को अरनेजा गिरोह की ड्यूटी निभाने की उनकी जिम्मेदारी के रूप में देखा/पहचाना गया और इससे शरत जैन के लिए रास्ता बनता हुआ दिखा ।
लेकिन सीओएल के लिए मचे चुनावी घमासान ने इस रास्ते में बड़े स्पीड ब्रेकर लगा दिए हैं । सीओएल के लिए रमेश अग्रवाल और उनका समर्थन कर रहे अरनेजा गिरोह ने जो गंद मचाई हुई है - उसके चलते शरत जैन की सभी का साथ लेने की कोशिशों को तो तगड़ा झटका लगा ही है, साथ ही उत्तर प्रदेश और गाजियाबाद में उनके लिए ज्यादा बड़ी मुश्किलें पैदा हो गईं हैं । दरअसल उत्तर प्रदेश और गाजियाबाद में अरनेजा गिरोह की ठेकेदारी जेके गौड़ के पास है । जेके गौड़ ने यहाँ लेकिन सीओएल के संदर्भ में जैसे ही ठेकेदारी का काम शुरू किया, यहाँ बबाल हो गया । गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश के जाने-पहचाने अधिकतर नेताओं को जेके गौड़ की हरकतें पसंद नहीं आईं । अपने आप को चारों तरफ से घिरा पाकर जेके गौड़ को बैकफुट पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा । उन्हें कहना पड़ा कि वह रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस जुटाने के लिए कुछ नहीं कर रहे हैं; उमेश चोपड़ा से तो उन्होंने यहाँ तक कहा कि यदि कोई कह दे कि उन्होंने ऐसा कुछ किया है तो वह रोटरी छोड़ देंगे । जेके गौड़ ने ऐसा कहा तो लेकिन अपनी हरकतों से वह बाज भी नहीं आये । विनोद गोयल, राजीव गोयल, अमित अग्रवाल आदि ने आपसी बातचीत में अपने अपने नजदीकियों को बताया कि जेके गौड़ ने खुद फोन कर कर के उन पर रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस देने/दिलवाने के लिए दबाव बनाया है । जेके गौड़ की इन कारस्तानियों के चलते उत्तर प्रदेश और गाजियाबाद में उनके खिलाफ नाराजगी और बढ़ी है ।
जेके गौड़ के खिलाफ बने माहौल ने शरत जैन के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं । जेके गौड़ के जिस सहारे के कारण शरत जैन को गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में पैठ बनाना आसान लग रहा था, जेके गौड़ का वही सहारा उनके लिए अब मुसीबत का भंडार बन गया है । जेके गौड़ चोरी-छिपे भले ही कुछेक क्लब के कॉन्करेंस रमेश अग्रवाल के लिए इकट्ठे कर लें, लेकिन रमेश अग्रवाल के समर्थक के रूप में मुँह दिखाने लायक वह यहाँ नहीं हैं । दीपक गुप्ता ने भी इस स्थिति का फायदा उठा लेने की भरपूर कोशिश की है । सीन से गायब गायब से चल रहे दीपक गुप्ता ने जेके गौड़ के खिलाफ बन रहे माहौल में धमाकेदार एंट्री ली और पिछले दिनों में बने गैप को भरने का काम शुरू किया । जेके गौड़ और रमेश अग्रवाल की हरकतों के खिलाफ जो लोग हैं, उनके बीच दीपक गुप्ता ने जिस तेजी के साथ अपनी स्वीकार्यता बना ली है - उसने वास्तव में शरत जैन के लिए खतरे की घंटी बजाई है ।  

Thursday, February 6, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में उदय उप्रेती को अपने गवर्नर-काल में असिस्टेंट गवर्नर बनाने का लालच देकर रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस जुटाने की डीजीएन जेके गौड़ की कार्रवाई ने रोटरी क्लब सोनीपत सिटी में फूट डलवाई

सोनीपत । सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिसलेशन) के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्धारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार आशीष घोष की उम्मीदवारी को चेलैंज करने वाले उम्मीदवार रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस जुटाने के लिए रमेश अग्रवाल और उनके 'गुर्गों' ने जिस तरह की तिकड़में चली हुईं हैं, उसके चलते रोटरी क्लब सोनीपत सिटी में विभाजन हो गया है । क्लब ट्रेनर दीपक गुप्ता और अध्यक्ष उदय उप्रेती ने रमेश अग्रवाल के समर्थन में कॉन्करेंस देने का फैसला जिस षड्यंत्रपूर्ण तरीके से करना चाहा, उसके विरोध में क्लब के नौ वरिष्ठ पदाधिकारियों व सदस्यों ने क्लब से इस्तीफ़ा दे दिया है । क्लब से इस्तीफा देने वालों में क्लब के सचिव अमित जैन, निवृत्तमान अध्यक्ष आलोक अरोड़ा और अगले रोटरी वर्ष के लिए घोषित किये गए असिस्टेंट गवर्नर विकास अग्रवाल भी हैं । क्लब से इस्तीफा देने वालों में इनके अलावा, क्लब के मौजूदा वर्ष के बोर्ड के तीन सदस्य भी हैं । क्लब से इस्तीफ़ा देने वाले इन वरिष्ठ पदाधिकारियों व सदस्यों का आरोप है कि क्लब के ट्रेनर दीपक गुप्ता और क्लब के अध्यक्ष उदय उप्रेती ने रमेश अग्रवाल के समर्थन में कॉन्करेंस देने का फैसला पहले ही कर लिया था, अपने फैसले पर क्लब के बाकी पदाधिकारियों की मोहर लगवाने के लिए उन्होंने नियमों को ताक पर रखकर मीटिंग बुलाई, जिसमें उनके द्धारा किये जा रहे षड्यंत्र का भारी विरोध हुआ ।
दीपक गुप्ता और उदय उप्रेती ने विरोध को दरकिनार कर फर्जी तरीके से कॉन्करेंस से संबंधित रिकॉर्ड और दस्तावेज तैयार कर लिए । क्लब के पदाधिकारियों का कहना है कि कॉन्करेंस से संबंधित जो रिकॉर्ड और दस्तावेज तैयार किये गए हैं, उनका प्रारूप पहले से ही दीपक गुप्ता और उदय उप्रेती के पास मौजूद था । समझा जाता है कि रमेश अग्रवाल चूँकि कागजी कार्रवाई में खासे उस्ताद हैं, इसलिए उन्हें जिन क्लब्स के कॉन्करेंस जुगाड़ने हैं उनके पदाधिकारियों को वह कॉन्करेंस से संबंधित प्रारूप दे देते हैं । रमेश अग्रवाल का कागजी काम तो पक्का है, लेकिन क्लब्स में कागजी काम को संभव करने का जो तरीका अपनाया जाता है वह फर्जीवाड़े की सारी पोल खोल देता है । रोटरी क्लब सोनीपत सिटी में यही हुआ । रमेश अग्रवाल और उनके गुर्गों ने फर्जी तरीके से इस क्लब से कॉन्करेंस जुटाने की जो तैयारी की, उसमें क्लब के कुछेक आत्मसम्मानी और खुद्दार किस्म के वरिष्ठ पदाधिकारियों व सदस्यों ने पलीता लगा दिया । स्थिति को संभालने की कोशिश में दीपक गुप्ता और उदय उप्रेती ने आनन-फानन में जो कार्रवाई की, उससे कॉन्करेंस के फर्जी होने का सुबूत और पक्का हो गया है ।
दीपक गुप्ता और उदय उप्रेती ने कॉन्करेंस पर क्लब के पदाधिकारियों को सहमत करने की जो कोशिश की, उसमें झगड़ा पड़ जाने और क्लब के कई वरिष्ठ पदाधिकारियों के इस्तीफ़ा दे देने के बाद दीपक गुप्ता और उदय उप्रेती ने जल्दीबाजी दिखाते हुए तुरंत से इस्तीफे स्वीकार कर लिए और नए पदाधिकारी बना लिए और फिर नए सिरे से कॉन्करेंस 'लेने' की प्रक्रिया अपनाई । ऐसा करते हुए, क्लब के अधिकृत और मान्य पदाधिकारियों द्धारा दिए गए इस्तीफों को स्वीकार करने तथा नए पदाधिकारी चुनने के लिए अपनाई जाने वाली प्रक्रिया को अनदेखा किया गया और आवश्यक नियम-कानूनों को उठा कर ताक पर रख दिया गया । सवाल यही है कि आनन-फानन में, मनमाने तरीके से कार्रवाई करते हुए पहले तो क्लब के अधिकृत और मान्य पदाधिकारियों को इस्तीफ़ा देने पर मजबूर किये जाने, उनके इस्तीफे स्वीकार करने और नए पदाधिकारी चुनने के साथ लिए गए कॉन्करेंस के फैसले को कैसे एक स्वाभाविक और निष्पक्ष फैसले के रूप में देखा जा सकता है ? और यदि यह एक स्वाभाविक तथा निष्पक्ष फैसला नहीं है तो क्या रोटरी क्लब सोनीपत सिटी की कॉन्करेंस फर्जी नहीं है ?
रोटरी क्लब सोनीपत सिटी में जो लोग रमेश अग्रवाल को कॉन्करेंस दिए जाने के खिलाफ रहे, उनका तर्क यही रहा कि सोनीपत में जब हर क्लब अधिकृत उम्मीदवार आशीष घोष के साथ रहने की घोषणा कर रहा है तब एक अकेले इस क्लब को अधिकृत उम्मीदवार के खिलाफ नहीं जाना चाहिए । क्लब के वरिष्ठ पदाधिकारियों तथा सदस्यों का यही कहना रहा कि बात आशीष घोष या रमेश अग्रवाल की नहीं है - बात अधिकृत उम्मीदवार के साथ होने की है । लेकिन क्लब के चार्टर प्रेसीडेंट और ट्रेनर दीपक गुप्ता ने किसी की नहीं सुनी और वह रमेश अग्रवाल के पक्ष में कॉन्करेंस देने की जिद पर अड़े रहे । दीपक गुप्ता को अरनेजा गिरोह के एक सक्रिय सदस्य के रूप में पहचाना जाता है । अरनेजा गिरोह के सदस्यों की एक विशेष खूबी अपनी मनमानी करने और अपनी ही चलाने की कोशिश करने की होती है । जाहिर है कि दीपक गुप्ता में भी यह खूबी रही है । दीपक गुप्ता चार-पाँच वर्ष पहले तक रोटरी क्लब सोनीपत अपटाउन में होते थे, लेकिन वहाँ अपनी मनमानीपूर्ण कारस्तानियों के कारण अलग-थलग कर दिए गए थे । वहाँ से निकल कर दीपक गुप्ता ने रोटरी क्लब सोनीपत सिटी बनाया । यहाँ भी दीपक गुप्ता की मनमानियाँ जारी रहीं, जिसके कारण चार-पाँच वर्ष पूर्व ही बने इस क्लब के कई चार्टर सदस्य क्लब छोड़ चुके हैं ।
क्लब के अध्यक्ष उदय उप्रेती के रवैये पर क्लब के कई सदस्यों को हालाँकि हैरानी है । उन्हें हैरानी इसलिए है क्योंकि वह जानते हैं कि उदय उप्रेती भी दीपक गुप्ता के रवैये से परेशान रहे हैं और दीपक गुप्ता की हरकतों को लेकर शिकायत करते रहे हैं । ऐसे में, क्लब के सदस्यों के लिए यह समझना मुश्किल हुआ कि फर्जी तरीके से रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस जुटाने के खेल में उदय उप्रेती आखिर कैसे फँस गए ? पता चला है कि उन्हें फँसाने में जेके गौड़ की मदद ली गई । जेके गौड़ ने उदय उप्रेती को अपने गवर्नर-काल में असिस्टेंट गवर्नर बनाने का लालच दिया तो फिर उदय उप्रेती भी फर्जी और अनैतिक तरीके से रमेश अग्रवाल के लिए कॉन्करेंस देने के खेल में शामिल हो गए । क्लब के वरिष्ठ पदाधिकारियों व सदस्यों के सीधे और खुले विरोध के कारण यह खेल हालाँकि उन्हें उल्टा पड़ गया है ।  

Wednesday, February 5, 2014

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार चुनने के लिए होने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की बैठक को स्थगित करने की दीपक बाबू की माँग को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल मानेंगे क्या ?

मुरादाबाद । दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने का एक बड़ा आसान-सा तरीका अपनाया है - उनका तरीका है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों से मिलने-जुलने जाने में समय, एनर्जी और पैसा खर्च करने की कोई जरूरत नहीं है; उनका तरीका है कि प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार की रोटरी इंटरनेशनल में आधिकारिक शिकायत करो और फिर रोटरी इंटरनेशनल का फैसला आये बिना लोगों को फोन कर कर के यह बताओ कि रोटरी इंटरनेशनल प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार की उम्मीदवारी को स्वीकार ही नहीं करेगा और इसलिए उसे जितवाने का कोई फायदा नहीं होगा - इसलिए मुझे विजयी बनाओ । दीपक बाबू ने इसी तरीके को अपना कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीतने की तैयारी की है । मजे की बात है कि मौजूदा रोटरी वर्ष में दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में कोई संपर्क अभियान नहीं चलाया; लोगों से मिलने जाना तो दूर की बात, उन्होंने फोन पर भी लोगों से बात करने की जरूरत नहीं समझी । यहाँ तक की जिन कुछेक डिस्ट्रिक्ट आयोजनों में वह उपस्थित भी हुए, वहाँ भी अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु लोगों से मिलने/बात करने की उन्होंने जरूरत नहीं समझी । दीपक बाबू के इसी व्यवहार को देख कर कई लोगों ने निष्कर्ष निकाला और कहा भी कि दीपक बाबू तो अपने आप को गवर्नर मान रहे हैं ।
दीपक बाबू आखिर किस भरोसे अपने आप को गवर्नर मान बैठे हैं ? उन्हें यह विश्वास क्यों है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग उन दिवाकर अग्रवाल को वोट नहीं करेंगे, जो दिवाकर अग्रवाल पिछले कई महीनों से लोगों से लगातार मिलजुल रहे हैं और लोगों के बीच अपनी साख और पैठ बनाने की कोशिश करते रहे हैं । पिछले दिनों दिवाकर अग्रवाल के करीब नब्बे वर्षीय पिता को जब तबीयत ख़राब होने के कारण अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था - तब भी, उनकी उचित देखभाल की जिम्मेदारी निभाने के साथ-साथ दिवाकर अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ भी संपर्क बनाये रखने के प्रयत्न किये थे । एक उम्मीदवार को जो कुछ भी करना होता है - दिवाकर अग्रवाल ने वह सब करने का हर संभव प्रयास किया है । लेकिन दीपक बाबू ने एक उम्मीदवार के रूप में कुछ भी - सचमुच, कुछ भी नहीं किया । इसके बावजूद दीपक बाबू को विश्वास है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग - नोमीनेटिंग कमेटी के सदस्य - दिवाकर अग्रवाल की बजाये उन्हें वोट करेंगे । यह विश्वास उन्हें क्यों है ?
दीपक बाबू इसका बड़ा मजेदार-सा कारण लोगों को बता रहे हैं । अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने वास्ते लोगों से संपर्क करने से लगातार बचते रहे दीपक बाबू अब लोगों को
फोन कर कर के बता रहे हैं कि उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल में दिवाकर अग्रवाल की शिकायत कर दी है और अब यदि दिवाकर अग्रवाल जीत भी जाते हैं तो रोटरी इंटरनेशनल उन्हें गवर्नर नहीं मानेगा । दीपक बाबू के पास हालाँकि इस बात का कोई जबाव नहीं है कि उन्हें यह कैसे पता है कि रोटरी इंटरनेशनल दिवाकर अग्रवाल को गवर्नर नहीं मानेगा । इसीलिए यह पूछे जाने पर वह दायें'-बायें की बातें करने लगते हैं । दीपक बाबू के पास इस बात का भी कोई जबाव नहीं है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को निरस्त कराने के लिए उन्होंने जिस बात को आधार बनाया है, उस आधार को रोटरी इंटरनेशनल के अधिकारी चूँकि पहले ही ख़ारिज कर चुके हैं, इसलिए इसमें नई बात क्या है ? उल्लेखनीय है कि दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को ख़ारिज करने के लिए दीपक बाबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को जो शिकायत की थी, उसे लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल पहले ही रोटरी इंटरनेशनल के प्रायः सभी बड़े अधिकारीयों के साथ बात कर चुके हैं; और चूँकि किसी ने भी उक्त आधार को पर्याप्त नहीं माना, इसलिए राकेश सिंघल ने दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी को स्वीकार करने की घोषणा की । जाहिर है कि दीपक बाबू लोगों को सिर्फ बहका रहे हैं ।
दीपक बाबू ने यह दावा करके हालाँकि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में गर्मी जरूर पैदा कर दी है कि रोटरी इंटरनेशनल में उनके द्धारा की गई शिकायत के आधार पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के अधिकृत उम्मीदवार का चुनाव करने के लिए होने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की बैठक को स्थगित कर देंगे । रोटरी के नियम-कानून की जानकारी रखने वाले लोगों का कहना यद्यपि यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ऐसा कुछ करने का अधिकार ही नहीं है और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को पहले से ही तय कार्यक्रम के अनुसार नोमीनेटिंग कमेटी की बैठक होने देनी है और उस बैठक में अधिकृत उम्मीदवार का फैसला होने देना है । दीपक बाबू लेकिन फिर भी लगातार दावा किये जा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वही करेंगे, जैसा वह कह रहे हैं । दीपक बाबू ने इस बारे में एक तर्क भी दिया है । उन्होंने बताया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राकेश सिंघल के एक नजदीकी रिश्तेदार इनकम टैक्स विभाग की जाँच-पड़ताल में फँसे हुए हैं, चार्टर्ड एकाउंटेंट होने के नाते दीपक बाबू अपने संपर्कों से उस मामले में राकेश सिंघल की मदद कर रहे हैं, इसलिए उस मदद के बदले में राकेश सिंघल रोटरी में उनकी मदद करेंगे । यह अब अगले तीन-चार दिन में पता चलेगा कि दीपक बाबू के इस दावे में कितना दम है ।
दीपक बाबू को लेकिन अपने दावों को लेकर शायद खुद भी ज्यादा भरोसा नहीं है । इसीलिये तमाम झूठों और तिकड़मों के बावजूद वह यह भी कहते/बताते जा रहे हैं कि उन्हें भी यह पता है कि चुनाव में वह जीतेंगे तो नहीं ही; ऐसे में वह तो सिर्फ दिवाकर अग्रवाल की जीत को मुश्किल बनाने पर ही ध्यान दे रहे हैं । दीपक बाबू ने अपने नजदीकियों से कहा है कि उन्हें भी पता है कि जीतेगा तो दिवाकर ही, लेकिन वह दिवाकर अग्रवाल और उनके समर्थकों के सामने तरह-तरह की परेशानी तो खड़ी कर ही सकते हैं - और वह यही कर भी रहे हैं । इससे लेकिन रोटरी का और डिस्ट्रिक्ट का जो नाम ख़राब हो रहा है - दीपक बाबू को लगता है कि उसकी लेकिन कोई परवाह नहीं है । दीपक बाबू की इस नकारात्मक सोच और कार्रवाई पर डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोग किस तरह की प्रतिक्रिया देते हैं - यह देखने की बात होगी ।