Saturday, April 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का इस्तीफ़ा, रॉन बुर्टोन को रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाये जाने के तुरंत बाद ही आने के कारण, लोगों के बीच संशय का विषय बना

नई दिल्ली । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा देकर सुशील गुप्ता ने देश के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के रोटेरियंस को उदास और निराश करने के साथ-साथ असमंजस और संशय में डाल दिया है । रोटेरियंस दरअसल इस बात पर फूले फूले फिर रहे थे कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट की कुर्सी पर उनके बीच रहने वाला व्यक्ति बैठेगा । सुशील गुप्ता का एक बड़ा लंबा सक्रिय रोटरी जीवन रहा है, और प्रायः हर डिस्ट्रिक्ट में ऐसे लोग मिल जायेंगे जिनकी रोटरी में कुल हैसियत/पूँजी और उपलब्धि यह है कि वह सुशील गुप्ता के नजदीक रहे हैं । कई डिस्ट्रिक्ट्स में दो/चार ऐसे लोग मिल जायेंगे जो रोटरी व डिस्ट्रिक्ट में सिर्फ इस वजह से 'जिंदा' हैं कि उनकी सुशील गुप्ता तक सीधी पहुँच है; डिस्ट्रिक्ट्स में कोई लफड़ा होता है, तो लफड़े से जुड़े लोग उसकी शरण में आते हैं कि भाई, सुशील गुप्ता के यहाँ ले चल ! सुशील गुप्ता काम तो शायद ही किसी के आए हों, लेकिन अपने तौर-तरीकों से उन्होंने अपना ऐसा ऑरा (आभामंडल) जरूर बनाया, जिसकी बदौलत उन्होंने तो उन्होंने, उनके नजदीकियों तक ने अपना अपना 'सिक्का' चला लिया । ऑरा के मामले में सुशील गुप्ता ने राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू को टक्कर दी है; रोटरी में राजा साबू ने जो 'हैसियत' पाई उसे छू पाने में सिर्फ सुशील गुप्ता ही कामयाब हो सके हैं - कुछेक संदर्भ में सुशील गुप्ता का पलड़ा बल्कि भारी ही रहा है । राजा साबू की जो हैसियत बनी, वह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने के बाद बनी, जबकि सुशील गुप्ता ने प्रेसीडेंट नोमीनेट होने से पहले ही उस हैसियत को पा लिया - यही कारण है कि प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के लिए राजा साबू को चुनाव का सामना करना पड़ा था, लेकिन सुशील गुप्ता के सामने वैसी कोई समस्या पैदा नहीं हुई । राजा साबू ने अपने खुन्नसी व्यवहार के चलते अपने विरोधी व 'दुश्मन' भी खूब बनाये, जबकि सुशील गुप्ता ने अपने उदार रवैये के चलते विरोधियों व 'दुश्मनों' को भी 'अपना' बनाया । यही कारण रहा कि सुशील गुप्ता जब प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित हुए, तब देश में हर खेमे का रोटेरियन उत्साहित हुआ, उसे एक खास किस्म के भावनात्मक गर्व की अनुभूति हुई और प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता का अप्रत्याशित स्वागत हुआ ।
और यही कारण है कि प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से सुशील गुप्ता के इस्तीफे की खबर ने हर किसी को उदास और निराश किया है । बीमारी को इस्तीफा देने का कारण बताये जाने से लोगों के बीच असमंजस और पैदा हुआ है । रोटरी में हर तरफ पदों के लिए भयंकर किस्म की 'मारकाट', तिकड़म और झूठ-फरेब देखते रहे रोटेरियंस के लिए इस बात को हजम कर पाना मुश्किल हो रहा है कि ठीक हो सकने वाली बीमारी के कारण सुशील गुप्ता ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट जैसा बड़ा पद यूँ ही छोड़ दिया है । सुशील गुप्ता को जबड़े संबंधी समस्या बताई जा रही है, जिसके चलते उनके लिए खाना-पीना और बोल पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव सा बना हुआ है । रोटेरियंस भी लेकिन मजेदार लोग हैं; अपना अपना डॉक्टरी-ज्ञान पेल कर हर कोई सवाल उठा रहा है कि यह न तो ऐसी बीमारी है जो लंबी चले और न ऐसी है कि ठीक न हो सके - तब फिर सुशील गुप्ता को इस्तीफा देने की जल्दी क्या पड़ गई ? सुशील गुप्ता के शुभचिंतकों की तरफ से इसके जबाव में कहा/बताया जा रहा है कि ऊपर से 'देखने' पर यह बीमारी ज्यादा गंभीर भले ही न लगे, लेकिन सोचने की बात यह है कि जब समस्या शुरू हुई होगी, तब सुशील गुप्ता ने ईलाज तो करवाया ही होगा; ईलाज के बावजूद समस्या खत्म होने की बजाये बढ़ती गई है - जिससे लग रहा है कि बीमारी उतनी सरल नहीं है, जितनी लोग समझ रहे हैं । शुभचिंतकों का यह भी कहना है कि सुशील गुप्ता एक आदर्शवादी व्यक्ति हैं और संगठन को प्राथमिकता देते हैं । बीमारी के चलते वह अपने पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर पा रहे हैं, और पता नहीं आगे कितना समय उन्हें अपनी जिम्मेदारियों से विमुख रहना पड़े - लिहाजा यह विचार करके कि उनकी अनुपस्थिति में संगठन के काम पर प्रतिकूल असर न पड़े, उन्होंने पद छोड़ने का फैसला कर लिया है । सुशील गुप्ता के लिए संगठन पहले है, और उन्होंने साबित कर दिया है कि अपनी निजी वजह से वह संगठन के काम पर प्रतिकूल असर नहीं पड़ने देंगे ।
हिन्दुस्तानियों का किसी भी बात को लेकर कयास लगाने का जो स्वभाव है, जिसके चलते सीता तक को अग्निपरीक्षा देने के लिए मजबूर होना पड़ा था, उसके चलते कई लोगों को लेकिन सुशील गुप्ता के शुभचिंतकों का तर्क हजम नहीं हो रहा है । उन्हें लग रहा है कि सुशील गुप्ता के इस्तीफे के पीछे की कहानी कुछ और ही है, जिसे बीमारी की आड़ में छिपाया जा रहा है । यह कयास असल में रॉन बुर्टोन को रोटरी फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाये जाने के तुरंत बाद ही सुशील गुप्ता द्वारा इस्तीफा देने से पैदा हुआ है । उल्लेखनीय है कि चेयरमैन के रूप में रॉन बुर्टोन का कार्यकाल कुल दो महीने ही बाकी बचा था, लेकिन फिर भी अचानक लिए गए फैसले में उन्हें हटा कर ब्रेंडा क्रेसी को बाकी दो माह के लिए उनकी चेयर दे दी गई है । सुशील गुप्ता भी हाल ही के वर्षों में रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी रहे हैं । यदि यह सिर्फ एक इत्तफाक है, तो भी बहुत संदेह पैदा करने वाला इत्तफाक है कि 22 अप्रैल को रॉन बुर्टोन को ट्रस्टी चेयर से हटाया जाता है, और चार दिन बाद ही पूर्व ट्रस्टी सुशील गुप्ता प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा दे देते हैं । यह संदेह तब और बढ़ जाता है, जब सुशील गुप्ता के नजदीकी उनके इस्तीफे पर हैरानी व्यक्त करते हैं और कहते/बताते हैं कि सुशील गुप्ता से उनकी रोज ही बात होती है, लेकिन उन्हें यह आभास नहीं मिला कि सुशील गुप्ता इतना बड़ा फैसला करने वाले हैं । इस तरह की बातों से लोगों के बीच संशय है कि हो न हो रोटरी फाउंडेशन में कुछ बड़ी ही गड़बड़ हुई है, जिसके कारण रॉन बुर्टोन को फाउंडेशन के चेयरमैन पद से हटाया गया है, और सुशील गुप्ता का प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से इस्तीफा 'लिया' गया है । हालाँकि रॉन बुर्टोन को हटाने के तथा सुशील गुप्ता के इस्तीफे के जो जो कारण बताये गए हैं, उनमें कोई साम्य नहीं बैठता दिखता है; लेकिन 'टाइमिंग' के चलते सुशील गुप्ता का इस्तीफा संशय में जरूर आ जाता है । मौजूदा समय ऐसा है, जिसमें दुनिया में, समाज में, देश में और रोटरी में हम बड़ी बड़ी 'मूर्तियों' को 'ढहते' हुए देख रहे हैं, तब फिर कोई भी बुरी बात चौंकाती नहीं है; इसलिए भी सुशील गुप्ता का प्रेसीडेंट नॉमिनी पद से हुआ इस्तीफा संशय के घेरे में आ जाता है ।


Friday, April 26, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में करीब 20 लाख रुपए की घपलेबाजी के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को सजा सुनाई; और इस तरह अनिल अग्रवाल की न तो चालबाजियाँ काम आईं और न रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की सिफारिशें ही उन्हें बचा सकीं

जयपुर । बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को 'बचाने' की बड़े बड़े रोटरी नेताओं और पदाधिकारियों की कोशिशें अंततः विफल हुईं, और अनिल अग्रवाल को तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाई गई है । रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी जॉन हेवको ने अनिल अग्रवाल को पत्र लिख/भेज कर इसकी जानकारी दी है । अनिल अग्रवाल को बचाने के प्रयास किस स्तर के थे, इसका अंदाज इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने रोटरी फाउंडेशन की मीटिंग से ठीक पहले अनिल अग्रवाल के साथ रियायत बरतने का अनुरोध करते हुए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वहनवती को बाकायदा लिखित में संदेश भेजा । दरअसल रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों के समर्थन का ही असर रहा कि रोटरी फाउंडेशन की कार्रवाई तक को अनिल अग्रवाल ने गंभीरता से नहीं लिया और रोटरी फाउंडेशन द्वारा मिली रियायत के दौरान भी उन्होंने पैसा वापस करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली - उलटे बल्कि मामले को उलझाने की ही कोशिश की । अनिल अग्रवाल ने रोटरी का सिर्फ पैसा ही नहीं 'लूटा' - रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों का विश्वास भी लूटा, और हर मौके पर उन्हें बेवकूफ बनाने की ही कोशिश की । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन को विश्वास दिलाया था कि वह 31 मार्च तक चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर देंगे । रोटरी फाउंडेशन ने उन्हें 10 अप्रैल तक पैसा जमा करा कर मामला क्लियर करने की समय-सीमा तय कर दी । लेकिन उक्त समय-सीमा में अनिल अग्रवाल ने इकन्नी भी जमा नहीं की । मजे की बात यह है कि अनिल अग्रवाल ने अपने शुभचिंतकों तक को 'ठगने' तथा उनके साथ भी धोखा करने से परहेज नहीं किया । बासकर चॉकलिंगम को उन्होंने दो लाख रुपए जमा कराने की जो बात बताई, और जिसके आधार पर बासकर चॉकलिंगम ने उन्हें बचाने के लिए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वहनवती को सिफारिशी पत्र लिखा - वह बात भी झूठी है ।  
अनिल अग्रवाल ने करीब बीस लाख रुपए की घपलेबाजी के इस मामले में अपने आपको बचाने के लिए शुरू से ही झूठ पर झूठ बोलने तथा तरह तरह के 'नाटक' करने का काम किया । शुरू में उन्होंने दावा किया कि आरोपित ग्रांट वास्तव में क्लब ग्रांट है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका उससे कोई लेना देना नहीं है । अनिल अग्रवाल का मासूमियत से लबालबभरा तर्क रहा कि रोटरी फाउंडेशन को दिए गए आवेदन में क्लब ग्रांट की जगह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चिन्हित करने का काम असावधानीवश हो गया था । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारी लेकिन उनकी इस नाटकबाजी के जाल में नहीं फँसे; क्योंकि तथ्य तो यह हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के लिए आवेदन किया, ग्रांट की रकम को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में स्वीकार तथा जमा किया और मनमाने तरीके से उसे खर्च करते रहे - और जब 'चोरी-चकारी' के आरोप में 'पकड़े' गए - तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगे कि उनका तो ग्रांट से कोई लेना-देना ही नहीं था । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए वर्ष 2013-14 में डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) मंजूर हुई थी, जिसके तहत 32169 अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई । इस रकम को एक ओल्ड ऐज होम, एक कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर, एक टेलरिंग ट्रेनिंग सेंटर, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने में खर्च होना था । इस मामले में पहले तो क्लोजिंग रिपोर्ट भेजने/सौंपने में बहुत देरी की गई और जो भेजी/सौंपी भी - वह आधी-अधूरी थी । रोटरी फाउंडेशन की तरफ से ग्रांट के इस्तेमाल को लेकर जो सवाल पूछे गए, उनके जबाव कभी नहीं दिए गए । ग्रांट की रकम प्राप्त करने और उसे इस्तेमाल करने वाले लोग चार वर्षों तक रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को जिस तरह से टरकाते रहे, उसके चलते रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को ग्रांट की रकम के दुरुपयोग की आशंका हुई तो उन्होंने रोटरी ग्रांट को-ऑर्डिनेटर चंद्रा पामर को जाँच के लिए भेजा, जिन्होंने अपनी जाँच में खासी गड़बड़ियाँ पाईं - और उसके बाद अपने आपको बचाने के उद्देश्य से अनिल अग्रवाल की बेवकूफीभरी नाटकबाजी शुरू हुई ।
अनिल अग्रवाल की निर्लज्जता व बेशर्मी का आलम यह रहा कि उनके गवर्नर-वर्ष में ग्लोबल ग्रांट के रूप में रोटरी फाउंडेशन से डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में आए करीब 20 लाख रुपए में हुई घपलेबाजी में संलग्नता के आरोप में डिस्ट्रिक्ट के दो क्लब्स को ग्रांट्स के लिए प्रतिबंधित कर दिए जाने तथा उनके दो पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा एक वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी में किसी भी अवॉर्ड तथा पोजीशन से प्रतिबंधित कर दिए जाने के बाद भी उन्होंने मामले की गंभीरता को नहीं समझा । अनिल अग्रवाल के गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा तक दाँव पर लग गई - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट को उक्त रकम वापस करने के लिए कहा गया, और उक्त रकम वापस न किए जाने तक के लिए डिस्ट्रिक्ट को रोटरी फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भागीदारी से वंचित कर देने का आदेश हुआ; इस आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने आपस में चंदा जमा करके डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा को बचाया; लेकिन अनिल अग्रवाल मामले को निपटवाने में सहयोग करने की बजाये अपनी चालबाजियाँ ही चलते रहे और रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों से झूठ पर झूठ बोलते हुए उन्हें बरगलाने का प्रयास ही करते रहे । लेकिन जैसा कि सयानों ने कहा है कि पाप का घड़ा एक-न-एक दिन भरता और फूटता ही है; उसी तर्ज पर अनिल अग्रवाल की न तो चालबाजियाँ काम आईं और न रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की सिफारिशें ही उन्हें बचा सकीं । 
अनिल अग्रवाल को तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाने वाला रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी जॉन हेवको का पत्र :


इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम द्वारा गुलाम वहनवती को लिखा/भेजा गया अनिल अग्रवाल को बचाने की सिफारिश करता संदेश :

Thursday, April 25, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन को चेतावनी मिली कि वह अविनाश गुप्ता को पदाधिकारियों व महिलाओं के साथ सही व्यवहार करना सिखाएँ और अविनाश गुप्ता व नितिन कँवर को रीजनल काउंसिल 'ठेके' पर देने की कोशिश न करें


नई दिल्ली । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में लगातार दूसरे टर्म सरकार द्वारा नोमीनेट किए गए सदस्य विजय झालानी का यह चार लाइनों का संदेश नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सूरते-हाल और उसके चेयरमैन की दशा को खुद-ब-खुद बयाँ कर देता है । जिस किसी को इस मेल-संदेश की जानकारी है, उसका यही कहना है कि हरीश चौधरी जैन में यदि जरा सा भी आत्मसम्मान है, तो उन्हें तुरंत चेयरमैन पद से इस्तीफा दे देना चाहिए । विजय झालानी का यह मेल-संदेश इस बात का पुख्ता सुबूत है कि हरीश चौधरी जैन रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की जिम्मेदारी निभाने में तो विफल हो ही रहे हैं, चेयरमैन पद की गरिमा को भी बनाये/बचाये रखने में फेल साबित हुए हैं । रीजनल काउंसिल के कामकाज को उन्होंने जिस तरह से अविनाश गुप्ता और नितिन कँवर को 'ठेके' पर देने की कोशिश की है, जिसके कारण विजय झालानी ने डीसी में उनकी शिकायत करने की बात की है - इंस्टीट्यूट और रीजनल काउंसिल के इतिहास में इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल ने यूँ तो एक से बढ़ एक घटिया सोच व व्यवहार के नाकारा चेयरमैन देखे/झेले हैं, लेकिन हरीश चौधरी जैन तो उन सब के गुरु साबित हो रहे हैं । पिछले टर्म में भी खूब खूब घटियापन हुआ था, और चेयरमैन्स की भूमिकाएँ आरोपों के घेरे में रही थीं, लेकिन किसी भी चेयरमैन ने अपने 'अधिकार' हरीश चौधरी जैन की तरह किसी और को दे दिए हों - यह देखने को नहीं मिला था । लोगों को हैरानी इस बात पर है कि हरीश चौधरी जैन को चेयरमैन के अधिकार जब दूसरों को ही देने थे और खुद कठपुतली बन कर ही रहना था, तो चेयरमैन बनने के लिए धोखाधड़ीभरी तिकड़म करने की उन्हें क्या जरूरत थी ?
इसे हरीश चौधरी जैन के नाकारापन के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है कि रीजनल काउंसिल में किसी भी पद पर न होते हुए भी अविनाश गुप्ता वाइस चेयरपरसन से बदतमीजी करते रहते हैं, और अभद्र व अशालीन भाषा में उन्हें लिखित में जबाव देते हैं । अविनाश गुप्ता इस बात का भी ख्याल नहीं रखते हैं कि वाइस चेयरपरसन के पद पर एक महिला है, और कम से कम एक महिला के साथ संवाद करते हुए तो उन्हें शालीन शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए । समझा जा सकता है कि अविनाश गुप्ता जब लिखित में अभद्र व अशालीन शब्दों का इस्तेमाल करने से नहीं हिचकते हैं, तो बोलचाल में तो और भी गंदे शब्दों का इस्तेमाल करते होंगे । इसके साथ ही, अविनाश गुप्ता जब रीजनल काउंसिल की चेयरपरसन के साथ अभद्र व अशालीन भाषा में बात कर सकते हैं, तो फिर स्टाफ की महिलाओं तथा काउंसिल में अपने अपने काम से आने वाली छात्राओं को भी कहाँ बख्शते होंगे ? रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म में नितिन कँवर पर बदतमीजी करने के आरोप लगते थे, जिसके कारण दो-तीन बार तो पुलिस बुलाने की नौबत आ गई थी; इस टर्म में नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता मिलकर दो नहीं, बल्कि 'ग्यारह' हो रहे हैं - और खास बात यह कि दोनों ही चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के बड़े प्यारे हैं और हरीश चौधरी जैन रीजनल काउंसिल को इन्हें ही 'ठेके' पर सौंपने को तैयार हैं । यही कारण है कि वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक ने अविनाश गुप्ता के अभद्र व अशालीन व्यवहार की शिकायत पहले चेयरमैन से ही की थी, लेकिन जब उन्हें चेयरमैन सुनवाई करते हुए नहीं दिखे तब वह अपनी शिकायत ऊपर तक ले गईं और तब विजय झालानी को चेयरमैन हरीश चौधरी जैन को लिखना पड़ा कि वह अविनाश गुप्ता को पदाधिकारियों व महिलाओं के साथ सही व्यवहार करना सिखाएँ और अविनाश गुप्ता व नितिन कँवर को रीजनल काउंसिल 'ठेके' पर देने की कोशिश न करें ।
देखना दिलचस्प होगा कि विजय झालानी की इस चेतावनी का हरीश चौधरी जैन, अविनाश गुप्ता और नितिन कँवर के व्यवहार तथा रवैये पर कैसा क्या असर पड़ता है ? उनमें सचमुच कोई सुधार होता है, या वह अपने नाकारा व बदतमीजीभरे रवैये को ही बनाये रखते हैं ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक कंतूर और अजीत जालान के बीच चलने वाली तू तू मैं मैं के पेट्स में मचे शोर ने इनकी उम्मीदवारी पर नकारात्मक असर डाला और महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को स्वाभाविक रूप से बढ़त दी; और महेश त्रिखा ने भी इस बढ़त को सचमुच पाने तथा बनाये रखने के लिए सक्रियता दिखाई

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर अशोक कंतूर तथा अजीत जालान के बीच एक दूसरे को रास्ते से हटाने के लिए छिड़ी लड़ाई ने महेश त्रिखा के लिए रास्ता आसान बनाने का काम किया है, जिसका उन्होंने नेपाल में आयोजित हुई पेट्स में खूब फायदा भी उठाया । पेट्स से लौटे रोटेरियंस, खासकर प्रेसीडेंट्स इलेक्ट से उनके जो अनुभव सुनने को मिले - उससे लगा कि एक उम्मीदवार के रूप में महेश त्रिखा ने लोगों के बीच अच्छी पैठ बनाई है । पेट्स में मौजूद लोगों के बीच अशोक कंतूर तथा अजीत जालान तो एक दूसरे को कमजोर व नीचा दिखाने के प्रयासों में ही लगे रहे, और एक-दूसरे की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए लोगों से सिफारिश करने में ही व्यस्त रहे; जबकि महेश त्रिखा ने लोगों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने/बनाने पर ध्यान दिया तथा अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों का विश्वास जीतने के तौर-तरीके अपनाए - जिसका उन्हें फायदा भी मिलता हुआ नजर आया । अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनके सहयोगी व समर्थन में जिन लोगों को देखा/पहचाना जाता है, वह पेट्स में गए ही नहीं - कई को सुरेश भसीन की टीम में महत्त्व की जगह न पाने के कारण पेट्स का निमंत्रण ही नहीं मिला, तो कुछेक निजी कारणों से पेट्स में नहीं जा सके । कुछेक लोग जो वहाँ थे भी, वह अभी यही तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाना है, या अजीत जालान की उम्मीदवारी का साथ देना है । दरअसल इस वर्ष अशोक कंतूर और अनूप मित्तल के बीच हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था - जिसके चलते अजीत जालान को उन्हीं लोगों के बीच से अपने समर्थक छाँटने/पाने हैं जो अशोक कंतूर के समर्थक थे; जिस कारण उनके समर्थक ही असमंजस में हैं - और उनकी असमंजसता अशोक कंतूर व अजीत जालान को अकेला बनाने के साथ-साथ आपस में भिड़ाये हुए भी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में महेश त्रिखा को स्वाभाविक रूप से इसका फायदा मिल रहा है और अपनी सक्रियता दिखा/जता कर वह फायदा उठा भी रहे हैं ।
पेट्स में अशोक कंतूर ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल का नाम लेकर अजीत जालान पर 'हमला' बोला और दावा किया कि विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की घोषणा की है और उनकी इस घोषणा से अजीत जालान की उम्मीदवारी का एकमात्र समर्थन-आधार खिसक गया है, इसलिए अजीत जालान को अब अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जाना चाहिए । अजीत जालान ने लेकिन उनके इस दावे और तर्क को हवा में उड़ा दिया है । अजीत जालान का कहना है कि विनोद बंसल की घोषणा से अशोक कंतूर खुश तो ऐसे हो रहे हैं, जैसे विनोद बंसल ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा कर दी है । अजीत जालान का कहना/पूछना है कि विनोद बंसल के सहयोग/समर्थन के बावजूद अशोक कंतूर जब इस वर्ष चुनाव नहीं जीत सके, तो अगले वर्ष विनोद बंसल यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहे तो अशोक कंतूर का और बुरा हाल नहीं होगा क्या ? अजीत जालान का कहना है कि विनोद बंसल की घोषणा के हवाले से उन्हें अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जाने की सलाह देकर अशोक कंतूर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह 'राजनीति' नहीं समझते हैं । अजीत जालान के ही अनुसार, विनोद बंसल ने तो इस वर्ष हुए चुनाव में भी चुनाव से दूर रहने की घोषणा की हुई थी, लेकिन वह अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को सहयोग व समर्थन दे रहे थे न; लोगों को राजनीति 'समझाते' हुए अजीत जालान ने कहा/बताया कि विनोद बंसल को रोटरी में चूँकि बड़ी राजनीति करना है, इसलिए उनकी यह मजबूरी है कि वह किसी एक के साथ खुलकर न 'दिखे' और अपने पसंदीदा उम्मीदवार की मदद 'छिप' कर ही करें - जैसे उन्होंने इस वर्ष अशोक कंतूर की की थी । अजीत जालान का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की विनोद बंसल ने जो घोषणा की है, उसे ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है - वह सिर्फ 'पॉस्चरिंग' है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की विनोद बंसल की घोषणा के बाद भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर अजीत जालान का अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोश जिस तरह से बना हुआ है, उसे देख कर लोगों को अजीत जालान की बातें और उनके तर्क सही ही लग रहे हैं ।
दरअसल इसी बात ने अशोक कंतूर को थोड़ा दबाव में ला दिया है, लेकिन फिर भी वह अभी 'हार' मानने के लिए तैयार नहीं हैं । अशोक कंतूर के लिए मुश्किल दरअसल यह है कि उनके सामने 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाली स्थिति है । अशोक कंतूर को लगता है कि अभी तो उन्हें हमदर्दी का लाभ भी मिल जायेगा; लोगों के बीच पिछले करीब एक/डेढ़ वर्ष से निरंतर सक्रियता रहने के कारण उनकी पहचान भी बिलकुल ताजा ताजा है; जिसके चलते अपने सहयोगियों व समर्थकों को अपने साथ जोड़े रखना उनके लिए आसान होगा - इसलिए उनके सामने अभी ही मौका है कि वह अपनी उम्मीदवारी की नाव को गंतव्य 'पर' पहुँचा दें । अजीत जालान की उम्मीदवारी लेकिन उनकी उम्मीदवारी की नाव को आगे बढ़ने से रोक रही है । यह बात अशोक कंतूर भी समझ रहे हैं कि अजीत जालान की उम्मीदवारी भी यदि रही तो यह दोनों के लिए घातक होगा । अजीत जालान की लेकिन अपनी समस्या है - उन्होंने अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी की पहले से घोषणा की हुई है और उन्हें अपने क्लब से अल्टीमेटम मिला हुआ है कि वह अपनी घोषणा पर अमल करें, ताकि क्लब के दूसरे सदस्य भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की तैयारी में जुट सकें । अजीत जालान के क्लब में दो-एक और सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में शामिल होने के इच्छुक सुने/बताये जा रहे हैं, जिसके कारण अजीत जालान को डर है कि वह यदि इस बार घोषणा करने के बावजूद उम्मीदवार नहीं बने, तो आगे फिर उनकी उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब में ही हरी झंडी मिलना मुश्किल होगा । अजीत जालान की तरफ से कहा जा रहा है कि अशोक कंतूर के लिए इस बार जैसी बेहतर स्थिति थी, वैसी बेहतर स्थिति उन्हें आगे नहीं मिलेगी; उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ-साथ निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का खुल्ला व सक्रिय समर्थन प्राप्त था, जिनके दबाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट चुप बना हुआ था; पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के संगी-साथी उनके साथ थे - लेकिन फिर भी अशोक कंतूर चुनाव नहीं जीत सके, तो इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि वह एक उम्मीदवार के रूप में बहुत ही कमजोर रहे; इस तथ्य को स्वीकार करते हुए अशोक कंतूर को चुनावी दौड़ से अलग हो जाना चाहिए । 
अशोक कंतूर और अजीत जालान के बीच चलने वाली इस तू तू मैं मैं का पेट्स में खासा शोर रहा, जिसके चलते इन दोनों की उम्मीदवारी पर नकारात्मक असर ही पड़ा, और लोगों ने मान लिया है कि यह दोनों जिस तरह से एक दूसरे को 'बैठाने' की कोशिशों में लगे हैं - उससे लग रहा है कि दोनों के उम्मीदवार बने रहने की स्थिति में दोनों ने अपने आप को अभी से हारा हुआ मान लिया है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बन रही इस धारणा ने महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को स्वाभाविक रूप से बढ़त दी है; और खास बात यह भी देखने को मिल रही है कि महेश त्रिखा इस बढ़त को सचमुच पाने तथा बनाये रखने के लिए प्रयास भी कर रहे हैं । 

Wednesday, April 24, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने अशोक जैन के साथ मिल कर अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट राकेश जैन को 'धमकाने' तथा दबाव में लेने के लिए उन्हें प्रेसीडेंट न बनने देने की मुहिम शुरू की

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने अपने ही क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली अशोका - के एक बड़े प्रोजेक्ट को विवाद व खतरे में डालने के बाद क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट राकेश जैन को पद से हटाने की मुहिम छेड़ दी है । इस मुहिम में उन्हें अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की तैयारी करते सुने जा रहे क्लब के वरिष्ठ सदस्य अशोक जैन का भी समर्थन मिल रहा है । दरअसल रमेश अग्रवाल और अशोक जैन की जोड़ी को लग रहा है कि 'रोटरी हेल्थ एंड वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर' नाम से एक बड़े प्रोजेक्ट की आधारशिला रखने के कार्यक्रम को लेकर जो बखेड़ा खड़ा हुआ है, उसके पीछे राकेश जैन ही हैं; और राकेश जैन यदि अगले रोटरी वर्ष में क्लब के प्रेसीडेंट बनते हैं तो अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए वह तरह तरह से मुसीबतें खड़ी करते रहेंगे - इसलिए किसी भी तरह से ऐसा कुछ करना है जिससे प्रेसीडेंट की कुर्सी की तरफ राकेश जैन के बढ़ते कदमों को रोका जाए । उल्लेखनीय है कि राकेश जैन कई लोगों के बीच यह शिकायत कर चुके हैं कि वह प्रेसीडेंट इलेक्ट हैं, उन्हें अगले रोटरी वर्ष में प्रेसीडेंट बनना है और फिर भी अशोक जैन ने इसकी कोई जरूरत ही नहीं समझी कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी की वह उन्हें सूचना भी दे दें - यह सूचना उन्हें क्लब के बाहर  के लोगों से मिली है । राकेश जैन ने इस बात पर भी आश्चर्य व्यक्त किया कि पेट्स (प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) में अशोक जैन लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी की संभावना से लगातार इंकार कर रहे थे, और सुनील मल्होत्रा व ललित खन्ना की उम्मीदवारी के लिए शुभकामनाएँ व्यक्त कर रहे थे - फिर अचानक से ऐसा क्या हुआ कि क्लब के पदाधिकारियों से बात किए बिना ही वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात करने/कहने लगे ?
क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट राकेश जैन की इन बातों को गंभीरता से लेने, जो गलती हुई उसे सुधारने तथा सभी कोआश्चर्य में डाल कर पलटी खाते हुए अचानक से प्रस्तुत की गई अपनी उम्मीदवारी से क्लब के पदाधिकारियों के बीच पैदा हुई नाराजगी को दूर करने की बजाये - अशोक जैन ने रमेश अग्रवाल के साथ मिलकर राकेश जैन को प्रेसीडेंट न बनने देने का जो बीड़ा उठाया है, उसने क्लब के सदस्यों के बीच खासी गर्मी पैदा कर दी है । क्लब के सदस्यों का ही बताना/कहना है कि राकेश जैन की जगह 'अपने' किसी आदमी को प्रेसीडेंट बनवाने की रमेश अग्रवाल व अशोक जैन की 'बातों' के पीछे वास्तव में राकेश जैन को दबाव में लेने की रणनीति है । इन दोनों को विश्वास है कि यह प्रेसीडेंट इलेक्ट को प्रेसीडेंट न बनने देने की बात करेंगे, तो राकेश जैन अपना प्रेसीडेंट पद बचाने के लिए इनके सामने समर्पण कर देंगे । हालाँकि राकेश जैन की तरफ से अभी तक ऐसा कोई काम नहीं हुआ है, जिसे रमेश अग्रवाल के विरोध के रूप में देखा/पहचाना जाए; लेकिन राकेश जैन ने अपने कार्य-व्यवहार और अपने तरीकों से यह अहसास जरूर करवा दिया है कि वह रमेश अग्रवाल की कठपुतली बन कर नहीं रहेंगे । इंकार करते करते अचानक से प्रस्तुत हो गई अशोक जैन की उम्मीदवारी और उस फैसले से प्रेसीडेंट इलेक्ट होने के बावजूद उन्हें अवगत न करवाए जाने से राकेश जैन को जो झटका लगा, उसे व्यक्त करके राकेश जैन ने यह जता भी दिया है कि उन्हें इग्नोर करने की कोशिशों को वह चुपचाप बर्दाश्त नहीं करेंगे । राकेश जैन के इसी 'व्यवहार' ने रमेश अग्रवाल और अशोक जैन को भड़का दिया है, और वह राकेश जैन को प्रेसीडेंट इलेक्ट के पद से हटवाने की धमकी दे कर कर दबाव में लेने की कार्रवाई पर उतर आए हैं । 
दरअसल, इसी बीच क्लब में प्रोजेक्ट वाला विवाद पैदा हो गया, जिसने रमेश अग्रवाल के लिए खासी फजीहत वाली स्थिति पैदा कर दी । उक्त विवाद को होशियारी व शालीनता से हल करने की बजाये रमेश अग्रवाल ने जिस तरह की धमकीबाजी वाला 'रास्ता' अपनाया, उसमें अशोक जैन भी जुड़ गए । इन दोनों का यह भी मानना/समझना है कि उक्त विवाद की जड़ राकेश जैन ने ही रोपी है । प्रोजेक्ट वाले मामले में और अचानक तरीके से आई अशोक जैन की उम्मीदवारी के किस्से में राकेश जैन की भूमिका को रमेश अग्रवाल व अशोक जैन ने अपने लिए एक 'चुनौती' के रूप में देखा/पहचाना है और समझ लिया है कि राकेश जैन को वह एक कठपुतली की तरह से इस्तेमाल नहीं कर सकेंगे - इसीलिए उन्होंने राकेश जैन को प्रेसीडेंट बनने से रोकने की मुहिम शुरू की है । क्लब के सदस्यों के अनुसार, रमेश अग्रवाल और अशोक जैन की राकेश जैन के खिलाफ शुरू की गई मुहिम को क्लब में समर्थन नहीं मिलेगा और इस मामले में उन्हें मुँहकी ही खानी पड़ेगी । क्लब में चार/पाँच सदस्य जरूर ऐसे हैं, जो रमेश अग्रवाल की बात का आँख बंद करके समर्थन करते हैं - लेकिन क्लब के अधिकतर सदस्य रमेश अग्रवाल की मनमानी व बदतमीजी को पसंद नहीं करते हैं और जरूरत पड़ने पर विरोध भी करते हैं । क्लब के सदस्यों का ही कहना/बताना है कि रमेश अग्रवाल और अशोक जैन भी इस बात को जानते/समझते हैं कि राकेश जैन को उनके पद से हटाने/हटवाने की उनकी मुहिम सफल नहीं होगी; लेकिन फिर भी वह मुहिम चला रहे हैं तो इसलिए ताकि वह राकेश जैन को अपने सामने 'समर्पण' के लिए मजबूर कर सकें । रमेश अग्रवाल और अशोक जैन की अपने ही क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट के खिलाफ छेड़ी गई मुहिम से यह आभास लेकिन जरूर मिलता है कि उनके क्लब में घमासान अभी जारी रहेगा ।

Sunday, April 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल एकेएस सदस्यता को लेकर तो फजीहत का शिकार हैं ही, अपनी हरकतों से उन्होंने अपने ही क्लब के एक बड़े प्रोजेक्ट को भी मुसीबत में फँसा दिया है

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल की हरकतों के चलते रोटरी क्लब दिल्ली अशोका के बड़े प्रोजेक्ट की नींव खुदने के साथ ही क्लब में झगड़ों और विवादों की भी शुरुआत हो गई है, जिसके चलते उक्त प्रोजेक्ट के खतरे में पड़ने की आशंका पैदा हो गई है । रमेश अग्रवाल एकेएस (ऑर्च क्लम्प सोसायटी) की सदस्यता का पैसा न देने के बाद भी एकेएस सदस्य के रूप में जगह जगह अपना स्वागत करवाने को लेकर भी इन दिनों फजीहत का शिकार बन रहे हैं; ऐसे में क्लब में पैदा हुआ नया झगड़ा उनकी मुश्किलों को बढ़ाने वाला साबित हो सकता है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली अशोका ने अभी हाल ही में 'रोटरी हेल्थ एंड वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर' नाम से एक बड़े प्रोजेक्ट की आधारशिला रखने का कार्यक्रम आयोजित किया । करीब सात करोड़ रुपये की लागत वाले इस प्रोजेक्ट के बारे में जिसने भी सुना, उसने क्लब और क्लब के पदाधिकारियों तथा सदस्यों की भूरि भूरि प्रशंसा की; लेकिन प्रशंसा के दौर के बीच ही उक्त प्रोजेक्ट को लेकर क्लब के सदस्यों के बीच विवाद और झगड़े के स्वर भी सुनाई देने लगे । पता चला कि क्लब के पदाधिकारी और सदस्य आधारशिला रखने की पूजा में यजमान के रूप में रमेश अग्रवाल के बैठने को लेकर खासे खफा हैं । उनका कहना है कि प्रोजेक्ट चूँकि क्लब का है, इसलिए उक्त अधिकार क्लब के मौजूदा प्रेसीडेंट और या प्रेसीडेंट इलेक्ट को मिलना चाहिए था । रमेश अग्रवाल ने लेकिन जिस मनमाने तरीके से प्रेसीडेंट और प्रेसीडेंट इलेक्ट को किनारे धकेल कर अपनी पत्नी के साथ मुख्य भूमिका हथिया ली, उसके कारण क्लब के पदाधिकारियों तथा सदस्यों के बीच भारी नाराजगी है । मजे की बात यह रही कि उक्त मौके पर रमेश अग्रवाल ने क्लब के सदस्य - दूसरे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शरत जैन को भी कोई तवज्जो देने की जरूरत नहीं समझी ।
क्लब के सदस्यों का आपसी बातचीत में कहना है कि उक्त प्रोजेक्ट के लिए क्लब के प्रायः सभी सदस्यों ने पैसे दिए हैं या देने की घोषणा की है; कई सदस्यों ने तो रमेश अग्रवाल से ज्यादा पैसे दिए हैं या देने की घोषणा की है - और इस आधार पर आधारशिला रखने की पूजा में उन्हें और या प्रेसीडेंट या प्रेसीडेंट इलेक्ट को बैठना चाहिए था; रमेश अग्रवाल आखिर किस हैसियत से अपनी पत्नी के साथ पूजा में बैठ गए । क्लब के सदस्यों की तरफ से इस तरह की बातें सुनकर रमेश अग्रवाल ने तुनक कर कह दिया है कि क्लब के सदस्यों को उनसे यदि इतनी ही चिढ़ है, तो वह प्रोजेक्ट से अलग हो जाते हैं और प्रोजेक्ट में पैसे का कोई सहयोग नहीं करेंगे । रमेश अग्रवाल की इस तुनकमिजाजी ने क्लब के कुछेक सदस्यों को भड़काने का काम किया और उनकी तरफ से सुना गया कि आधारशिला की पूजा में बैठ कर रमेश अग्रवाल ने अपने आप को प्रोजेक्ट का मुख्य कर्ता-धर्ता 'दिखा' ही दिया है, तो अब वही इस प्रोजेक्ट को पूरा करें और इसका पूरा पैसा दें । इस तरह की बातें प्रोजेक्ट को लेकर क्लब के सदस्यों के उत्साह पर पानी फेरती नजर आ रही हैं; और क्लब के संजीदा सदस्यों को लग रहा है कि रमेश अग्रवाल की मनमानी तथा तुनकभरी हरकतें कहीं प्रोजेक्ट को न ले डूबें ? क्लब के कई एक सदस्यों का स्पष्ट कहना है कि रमेश अग्रवाल यदि अपनी हरकतों से बाज नहीं आए, और क्लब के सभी सदस्यों के सहयोग से बनने वाले प्रोजेक्ट का अकेले श्रेय लेने की कोशिश करते रहे, तो फिर क्लब के कई सदस्य प्रोजेक्ट में सहयोग करने की घोषणा से पीछे हट जायेंगे ।
रमेश अग्रवाल इन्हीं दिनों एकेएस सदस्यता को लेकर भी विवादों की चपेट में हैं । दरअसल रमेश अग्रवाल ने तीन वर्ष पहले जेके गौड़ और सुभाष जैन के साथ एकेएस सदस्य बनने की घोषणा की थी और संकल्प-पत्र पर हस्ताक्षर किए थे, जिसके तहत तीन रोटरी वर्षों में - यानि 30 मार्च 2019 तक उन्हें पूरी रकम रोटरी फाउंडेशन में जमा करना थी । जेके गौड़ और सुभाष जैन तो अपनी अपनी रकम जमा कर चुके हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल ने करीब एक लाख अमेरिकी डॉलर की रकम रोकी हुई है । तथ्य बल्कि यह है कि पिछले रोटरी वर्ष में तथा मौजूदा रोटरी वर्ष में रमेश अग्रवाल ने एकेएस की सदस्यता का कोई पैसा जमा नहीं कराया है । रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारी उनसे तकादा भी कर चुके हैं, लेकिन फिर भी रमेश अग्रवाल के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी है । यह बात यूँ तो ऐसी बात नहीं है जिसके लिए रमेश अग्रवाल की फजीहत की जाए - किसी भी व्यक्ति की आर्थिक स्थिति में ऊँच-नीच हो सकती है जिसके कारण उसके लिए पहले से की गई घोषणाओं और या वायदों को पूरा करना मुश्किल हो सकता है; लेकिन रमेश अग्रवाल के मामले में शर्मनाक स्थिति और फजीहत की बात इसलिए है कि समय से पूरा पैसा न दे पाने के बाद भी रमेश अग्रवाल एकेएस सदस्य के रूप में जगह जगह अपना स्वागत करवाते रहे हैं । पिछले दिनों ही, मार्च के पहले सप्ताह में दिल्ली में रोटरी फाउंडेशन ट्रस्ट के चेयरमैन रॉन बुर्टन के सामने रमेश अग्रवाल ने एकेएस सदस्य के रूप में अपना स्वागत करवाया और उनके साथ फोटो खिंचवाई । उस समय रमेश अग्रवाल को यह तो पता था ही कि संकल्पित समय-सीमा में वह पूरा पैसा नहीं दे रहे हैं और इसलिए उन्हें अपने आपको एकेएस सदस्य कहने का 'हक' नहीं है - फिर भी रमेश अग्रवाल ने अपनी फजीहत करवाने वाला काम किया । इसके साथ ही, क्लब के प्रोजेक्ट में खुद को सर्वे-सर्वा दिखलाने की रमेश अग्रवाल की कोशिश के चलते क्लब में मचे बबाल ने रमेश अग्रवाल की मुसीबतों को बढ़ाने का ही काम किया है ।             

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के विरोध के बावजूद, राकेश मक्कड़ व अविनाश गुप्ता के दबाव में चेयरमैन हरीश जैन ओरिएंटेशन प्रोग्राम अमृतसर में करने के लिए मजबूर; वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता भी चुपचाप 'तमाशा' देखने में व्यस्त हुए

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के मैनेजमेंट कमेटी के सदस्यों के लिए होने वाले ओरिएंटेशन प्रोग्राम को अमृतसर में करने के प्रस्ताव पर रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के बीच मचे बबाल ने चेयरमैन हरीश जैन के साथ-साथ इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता को भी मुसीबत में फँसा दिया है । रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी पंकज गुप्ता और ट्रेजरर विजय गुप्ता फिजूलखर्ची का वास्ता देकर उक्त ओरिएंटेशन प्रोग्राम अमृतसर में करने का विरोध कर रहे हैं । इनका दावा है कि इस मामले में काउंसिल की वाइस चेयरपरसन श्वेता पाठक का समर्थन भी इनके साथ है । मामले को गंभीर रूप देते हुए इन्होंने उक्त प्रोग्राम के लिए जगह के चयन को लेकर एसओपी (स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर) अपनाने की बात कही है । उल्लेखनीय है कि चेयरमैन की कुर्सी संभालते ही हरीश जैन ने बड़े जोरशोर से रीजनल काउंसिल के कामकाज में पारदर्शिता रखने की घोषणा की थी और दावा किया था कि कामकाज के तरीकों व फैसलों में वह एसओपी अपनायेंगे । ओरिएंटेशन प्रोग्राम को अमृतसर में करने का फैसला करते हुए हरीश जैन लेकिन अपनी घोषणा और अपने दावे को भूलते/छोड़ते दिख रहे हैं । यह मामला अतुल गुप्ता के गले की फाँस बनता हुआ भी नजर आ रहा है । दरअसल अतुल गुप्ता समय समय पर कार्यक्रमों के नाम पर होने वाली फिजूलखर्चियों का विरोध करते रहे हैं; ऐसे में सभी की निगाह इस बात पर है कि अब जब इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के रूप में फिजूलखर्ची रोकने का उनके पास पूरा पूरा अधिकार आ गया है - तो वह फिजूलखर्ची रोकते हैं और या उसे होने देते हैं । 
ओरिएंटेशन प्रोग्राम को अमृतसर में किए जाने का विरोध करने वाले काउंसिल के ही पदाधिकारियों का कहना यह भी है कि उक्त प्रोग्राम वास्तव में उपयोगी और प्रभावी बन सके, इसके लिए जरूरी है कि यह दिल्ली में और या दिल्ली के आसपास के किसी शहर में हो । इस संबंध में उनका तर्क है कि ओरिएंटेशन प्रोग्राम में शामिल होने वाले ब्रांचेज की मैनेजमेंट कमेटी के नए सदस्यों के सामने यहाँ इंस्टीट्यूट के विभिन्न पदाधिकारियों से मिल कर अपने सवालों के जबाव पाना और उन्हें समझना आसान होगा; अमृतसर या दूर-दराज के किसी अन्य शहर में उन्हें यह सुविधा नहीं मिल सकेगी । सेंट्रल काउंसिल में नॉर्दर्न रीजन का प्रतिनिधित्व करने वाले कुछेक सदस्यों के साथ-साथ इंस्टीट्यूट के कई अधिकारियों का भी मानना और कहना है कि अमृतसर में प्रोग्राम होगा, तो पैसा भी अपेक्षाकृत ज्यादा खर्च होगा और प्रोग्राम अपने उद्देश्य को पूरा करने की बजाये एक पिकनिक बन कर रह जायेगा । मजे की बात यह है कि हरीश जैन के कुछेक नजदीकियों का कहना/बताना है कि हरीश जैन तो इस बात को समझ रहे हैं कि उक्त प्रोग्राम अमृतसर में करने से उसका उद्देश्य पूरा नहीं किया जा सकेगा, तथा वह तो दिल्ली में ही उक्त प्रोग्राम करना चाहते हैं - लेकिन पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ और रीजनल काउंसिल के मौजूदा सदस्य अविनाश गुप्ता के दबाव में, काउंसिल में अपने साथी पदाधिकारियों के विरोध के बावजूद वह अमृतसर में ही उक्त प्रोग्राम करने के लिए मजबूर हो रक्खे हैं । हरीश जैन को यह डर भी सत्ता रहा है कि प्रोग्राम के खर्चों पर आपत्ति करते हुए ट्रेजरर विजय गुप्ता ने यदि भुगतान में अड़ंगा डाला, तो चेयरमैन के रूप में फजीहत तो उनकी होगी । राकेश मक्कड़ और अविनाश गुप्ता हालाँकि उन्हें आश्वस्त किए हुए हैं कि विजय गुप्ता से खर्चों का भुगतान कैसे करवाना है, यह वह अच्छी तरह से जानते हैं ।
इस मामले में दिलचस्प नजारा यह देखने को मिल रहा है कि चेयरमैन होने के बावजूद हरीश जैन ने तो मामले में चुप्पी साध रखी है, और उनकी तरफ से राकेश मक्कड़ व अविनाश गुप्ता ही जोरशोर से दावे कर रहे हैं कि श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता चाहें कितना ही विरोध कर लें - ओरिएंटेशन प्रोग्राम तो अमृतसर में ही होगा । इन दोनों का आरोप है कि उक्त प्रोग्राम के अमृतसर में होने का विरोध करने वाले काउंसिल के तीनों पदाधिकारियों का तो बात बात पर झगड़ा करने की आदत हो गई है, जिसके चलते यह हर बात का विरोध ही करते रहते हैं - कभी यह मंच पर बैठने को लेकर झगड़ा करते हैं, तो कभी फैकल्टी सदस्यों के चयन को लेकर विवाद खड़ा करते हैं । इन आरोपों से यह बात तो स्वतः साबित हो जाती है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल झगड़ों का अखाड़ा बनी हुई है और इसके पदाधिकारियों के बीच ही आरोप-प्रत्यारोप लगते/चलते रहते हैं । रीजनल काउंसिल की घटनाओं से परिचित रहने वाले लोगों का कहना है कि यह सब हरीश जैन की 'कमजोरी' के कारण भी हो रहा है । तीन-तिकड़म और धोखाधड़ी से हरीश जैन चेयरमैन तो बन गए, लेकिन लीडरशिप की कोई क्वालिटी उनमें नहीं है - और इसी वजह से काउंसिल के सदस्य व पदाधिकारी उन्हें चेयरमैन के रूप में नहीं, बल्कि राकेश मक्कड़ तथा अविनाश गुप्ता की कठपुतली के रूप में 'देखते' हैं । हरीश जैन के इसी 'रवैये' के कारण अतुल गुप्ता ओरिएंटेशन प्रोग्राम के अमृतसर में होने को लेकर मचे झगड़े से अपने आप को दूर रखे हुए हैं और चुपचाप तमाशा देख रहे हैं ।

Wednesday, April 17, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव अभियान के अंतिम चरण में दिनेश जोशी की उम्मीदवारी का अभियान जिस तरह की मुश्किलों का सामना कर रहा है, उसने उनके लिए चुनावी मुकाबले को खासा चुनौतीपूर्ण व कठिन बना दिया है

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए चुनावी घमासान बढ़ने के साथ-साथ दिनेश जोशी के सामने मुसीबतें भी बढ़ती जा रही हैं, और उनके 'खेमे' के बिखराव की खाई भी और चौड़ी होती जा रही है । पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय गर्ग की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने की तैयारी ने दिनेश जोशी की उम्मीदवारी पर उल्टा ही असर डाला है । सोचा तो यह गया था कि विनय गर्ग की उक्त तैयारी दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को ताकत देगी, लेकिन परिस्थितियों का आकलन करते हुए विनय गर्ग और दिनेश जोशी की चुनावी लड़ाई की तैयारी ने जो अलग अलग रास्ता पकड़ा है, उसके कारण दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को तगड़ा झटका लगा है । दरअसल, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी घमासान के नकारात्मक असर से बचने के लिए विनय गर्ग की उम्मीदवारी के अभियान को चूँकि दिनेश जोशी के चुनावी अभियान से अलग कर लिया गया, तो दिनेश जोशी के अभियान से एक और बड़ा नेता बाहर हो गया - और इस कारण नेताओं की कमी से जूझ रहे दिनेश जोशी के चुनावी अभियान को तगड़ा झटका लगा । दिनेश जोशी और उनके समर्थकों के खेल को बिगाड़ने का काम प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार दिनेश बत्रा ने भी किया । असल में, दिनेश जोशी और उनके समर्थकों को विश्वास था कि दिनेश बत्रा चुनावी खर्चा अफोर्ड नहीं कर पायेंगे, और मैदान छोड़ देंगे - लेकिन दिनेश बत्रा लगातार चुनाव में डटे रहने के संकेत दे रहे हैं, और सभी जरूरी खर्चे कर रहे हैं । इसके चलते, दिनेश जोशी और उनके समर्थकों की सारी योजना बुरी तरह 'पिटती' दिख रही है । 
दरअसल दिनेश जोशी और उनके समर्थकों को चुनाव की नौबत आने की उम्मीद ही नहीं थी, और उन्होंने तो सोचा यह था कि दिनेश जोशी के सामने दिनेश बत्रा टिकेंगे ही नहीं - और दिनेश जोशी निर्विरोध ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जायेंगे; इसलिए उनकी तरफ से चुनावी घमासान की स्थिति से निपटने की कोई तैयारी ही नहीं की गई । इसी का नतीजा है कि अब जब चुनाव में बहुत कम दिन बचे हैं, और आरोपों-प्रत्यारोपों का माहौल गर्म है - तब दिनेश जोशी और उनके समर्थक हक्के-बक्के से हैं और उन्हें समझ ही नहीं आ रहा है कि लोगों के बीच उठने वाले सवालों का वह कैसे और क्या जबाव दें ? दिनेश जोशी की तरफ से डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म में बहुत कुछ करने के वायदे और दावे किए जा रहे हैं; लेकिन उनके वायदे और दावे इस सवाल के चलते संदेह के घेरे में हैं कि उन्होंने अभी तक क्या किया है ? दिनेश जोशी ने अभी तक जो किया है, उसमें कुछेक संस्थाओं में ट्रस्टी बनना तथा कुछेक कामों में पैसे खर्च करने के ही तथ्य हैं; लोगों के बीच घुल मिल कर काम करने का उनका कोई अनुभव नहीं है - और यही बात उम्मीदवार के रूप में लोगों के साथ उनके जुड़ने में बाधा बन रही है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच प्रचार है कि दिनेश जोशी डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म में अपनी सक्रियता व संलग्नता के चलते उम्मीदवार नहीं बने हैं; उन्हें तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा ने इसलिए उम्मीदवार बना/बनवा दिया, ताकि थाईलैंड में आयोजित किए गए अधिष्ठापन समारोह में हुई बदइंतजामी और लूट-खसोट के झमेले से बचने/बचाने के लिए दिनेश जोशी से तात्कालिक मदद के नाम पर उन्हें जो पैसे मिले थे, उन्हें वह दिनेश जोशी को वापस न करना पड़ें । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि मेहरा के उम्मीदवार के रूप में पहचाने जाने के कारण दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान को और झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रवि मेहरा के तरह तरह के फैसलों ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को - यहाँ तक कि रवि मेहरा के नजदीक रहे बड़े व प्रमुख लोगों तक को नाराज कर दिया; जिसका खामियाजा दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को भुगतना पड़ रहा है । अपनी हरकतों से रवि मेहरा नए नए विवाद पैदा करते गए हैं और मुसीबतों में फँसते गए हैं, जिनके चलते दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान पर खासा प्रतिकूल असर पड़ा है । समस्या की बात यह है कि रवि मेहरा के कारण दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान को जो झटके पर झटके लगे हैं, उनसे निपटने के लिए दिनेश जोशी के पास कोई तरीके ही नहीं हैं । रवि मेहरा के रवैये के कारण पहले तो निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने दिनेश जोशी की उम्मीदवारी के अभियान का साथ छोड़ा; फिर खासी बदनामी के चलते रवि मेहरा उनकी उम्मीदवारी के लिए फायदेमंद नहीं रह गए; विनय गर्ग का सहयोग/समर्थन दिनेश जोशी की उम्मीदवारी को मिलता, लेकिन विनय गर्ग खुद इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के चक्कर में फँस गए । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए विनय गर्ग चूँकि अकेले उम्मीदवार हैं, इसलिए उन्होंने अपने आपको सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव अभियान से दूर कर लिया है - जिसके कारण दिनेश जोशी के चुनाव अभियान को और झटका लगा है । डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म में दिनेश जोशी का 'इतिहास' चूँकि कोई प्रभावी नहीं है, इसलिए उनके अभियान को 'बड़े' नेताओं के सहयोग की खासी जरूरत थी - लेकिन उनके लिए 'कंगाली में आटा गीला' होने वाला मामला हो गया है । अब जब चुनाव अभियान अपने अंतिम चरण में है, तब दिनेश जोशी की उम्मीदवारी का अभियान जिस तरह की मुश्किलों का सामना कर रहा है, उसने उनके लिए चुनावी मुकाबले को खासा चुनौतीपूर्ण व कठिन बना दिया है ।

Monday, April 15, 2019

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के साथ बनी दूरी के कारण इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में पतली हुई हालत से उबरने के लिए विनोद बंसल ने शेखर मेहता व मनोज देसाई की मदद से अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट के एक प्रमुख कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति 'दिखा' कर बड़ा 'कांड' किया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3054 तथा डिस्ट्रिक्ट 3060 द्वारा संयुक्त रूप से अहमदाबाद में आयोजित किए गए प्रेसीडेंट इलेक्ट व सेक्रेटरी इलेक्ट के ट्रेनिंग सेमीनार में आमंत्रित वक्ताओं में विनोद बंसल की उपस्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति के बनते-बिगड़ते समीकरणों में दिलचस्पी रखने वाले रोटेरियंस को चौंकाया है; और उन्हें उक्त कार्यक्रम में विनोद बंसल की मौजूदगी एक पहेली की तरह लगी है । हालाँकि कार्यक्रम जिन 'लोगों' का था, और कार्यक्रम में जो भी प्रमुख लोग शामिल थे - उनके साथ विनोद बंसल के नजदीक के संबंध रहे हैं; और विनोद बंसल उनके काम आते रहे हैं और बदले में समय-समय पर उनसे 'फायदे' भी लेते रहे हैं । इस पृष्ठभूमि में, उक्त कार्यक्रम में विनोद बंसल की उपस्थिति पर सवाल नहीं उठने चाहिए थे - लेकिन वह उठे हैं, तो इसका कारण इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के लिए बनने वाला समीकरण है । उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अशोक गुप्ता उम्मीदवार हैं, तो डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल भी तैयारी करते सुने/देखे जा रहे हैं । इसलिए डिस्ट्रिक्ट 3054 के कार्यक्रम में विनोद बंसल की उपस्थिति राजनीतिक रूप से मामले को हैरान करने वाला बनाती है । मजे की बात यह है कि अशोक गुप्ता और विनोद बंसल - दोनों एक ही खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं, और जिन बड़े नेताओं को अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, विनोद बंसल भी उन्हीं नेताओं के भरोसे अपनी दाल गलाने की फिराक में बताये/सुने जा रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में लोगों के बीच अभी जो परसेप्शन है, उसमें अशोक गुप्ता का पलड़ा ही भारी देखा/समझा जा रहा है; लेकिन इसके बावजूद विनोद बंसल जिस तरह से तैयारी करते हुए देखे जा रहे हैं, उससे लोगों को यह अहसास भी हो रहा है कि विनोद बंसल को कहीं से तो 'फूँक' मिल रही है, जिसके भरोसे उन्हें 'लग' रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर जोन के रोटेरियंस के बीच अभी भले ही जो परसेप्शन हो, लेकिन उनके लिए मौका बन सकता है ।
दरअसल इसी कवायद के चलते डिस्ट्रिक्ट 3054 और डिस्ट्रिक्ट 3060 के संयुक्त कार्यक्रम में विनोद बंसल की उपस्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों के कान खड़े किए हैं । इन खड़े कानों में उन्हें जो सुनाई दिया है, उससे परस्पर विरोधी दावे किए गए हैं । कुछेक लोगों का कहना है कि कार्यक्रम में विनोद बंसल का शामिल होना 'घर की बात' है, और इसमें 'राजनीति' नहीं देखी जानी चाहिए; लेकिन अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि विनोद बंसल जब 'घर' में बबाल करने वाले हालात पैदा करने का काम कर रहे हैं तो फिर राजनीति तो देखी ही जाएगी । कहा/बताया और सुना जा रहा है कि उक्त कार्यक्रम का निमंत्रण पाने के लिए विनोद बंसल ने पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता और मनोज देसाई से तगड़ी सिफारिश करवाई, और उन दोनों की सिफारिश के बाद ही विनोद बंसल को उक्त कार्यक्रम का निमंत्रण मिला । यूँ तो विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के कार्यक्रमों का निमंत्रण पाने के लिए विनोद बंसल द्वारा लॉबिइंग करने की बात सुनी/बताई जाती है; लेकिन उस बात में कोई बुराई न देखने वाले लोगों का भी मानना/कहना है कि विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट 3054 के कार्यक्रम में शामिल होने से बचना चाहिए था, क्योंकि उससे नाहक ही एक विवाद की सी स्थिति बनी है । कुछेक लोगों को आशंका है कि हो सकता है कि विनोद बंसल ने यह विवाद की सी स्थिति बनाने/दिखाने के लिए ही अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3054 के एक प्रमुख कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति को संभव बनाने के लिए शेखर मेहता व मनोज देसाई से दबाव डलवाया हो । इससे विनोद बंसल यह जताने/दिखाने में भी 'सफल' हुए हैं कि वह शेखर मेहता और मनोज देसाई से कभी भी कुछ भी करवा सकते हैं - उन्हें लगता है कि इससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उनकी उम्मीदवारी का 'वजन' बढ़ेगा ।
विनोद बंसल को इसकी बहुत 'जरूरत' भी है । असल में पिछले दिनों घटी कई घटनाओं से लोगों के बीच यह बात स्थापित हुई है कि खेमे के सबसे बड़े नेता - इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के यहाँ विनोद बंसल का 'कद' घटा है । विनोद बंसल ने हालाँकि सुशील गुप्ता के यहाँ अपनी अच्छी 'जगह' बना ली थी, लेकिन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के बाद से उनके प्रति सुशील गुप्ता का रवैया कुछ बदला बदला सा दिख रहा है । सेन डिएगो में अभी पिछले ही दिनों संपन्न हुई इंटरनेशनल असेम्बली में सुशील गुप्ता ने विनोद बंसल की बजाये रंजन ढींगरा को अपने साथ ले जाने के मामले में जो तवज्जो दी, उसे विनोद बंसल के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा/पहचाना । अभी हाल ही में, सुशील गुप्ता की सरपरस्ती वाले रोटरी इंडिया वाटर कंजर्वेशन ट्रस्ट द्वारा दिल्ली में आयोजित किए गए 'वर्ल्ड वाटर डे' के कार्यक्रम में रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता की मौजूदगी तो लोगों को नजर आई, लेकिन विनोद बंसल उक्त कार्यक्रम में नहीं दिखे । विनोद बंसल के अपने डिस्ट्रिक्ट में लोगों का मानना/कहना है कि इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल द्वारा निभाई गई भूमिका ने सुशील गुप्ता को नाराज करने का काम किया है, और इसीलिए विनोद बंसल अब उनकी गुडबुक में नहीं रह गए हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में विनोद बंसल ने उन निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी के उम्मीदवार अशोक कंतूर का समर्थन किया, जिन्होंने पिछले रोटरी वर्ष के अपने गवर्नर-काल में सुशील गुप्ता को तरह तरह से अपमानित किया और नीचा दिखाने वाले काम किए । विनोद बंसल के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उनके समर्थन के बावजूद अशोक कंतूर चुनाव भी हार गए । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के चक्कर में विनोद बंसल की सुशील गुप्ता के साथ जो दूरी बनी, उससे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के मामले में उनकी हालत खासी पतली कर दी । इस स्थिति से उबरने के लिए विनोद बंसल को कोई बड़ा 'कांड' करने की जरूरत थी - अशोक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट के एक प्रमुख कार्यक्रम में अपनी उपस्थिति 'दिखा' कर जो उन्होंने कर दिया है । इसका उन्हें कोई राजनीतिक फायदा मिलेगा या नहीं, यह बात लेकिन आगे पता चलेगी ।

Saturday, April 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अलग-थलग पड़े होने की फजीहत से छुटकारा पाने के लिए विन्स सेमीनार को मौके के रूप में इस्तेमाल करने की रमेश अग्रवाल की कोशिश को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता ने फेल किया; जिसके चलते रमेश अग्रवाल के लिए 'बैक टु स्क्वायर वन' वाली स्थिति बन गई है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने दिल्ली में आयोजित हुए रीजनल विन्स ट्रेनिंग सेमीनार के आयोजन में दिलचस्पी न दिखा कर अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल और उनकी 'राजनीति' को खासा तगड़ा झटका दिया है । दीपक गुप्ता की बेरुखी के चलते उक्त सेमीनार के आयोजन की जिम्मेदारी रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के सिर पड़ी, जिसके कारण रमेश अग्रवाल को खासी फजीहत का सामना करना पड़ा । दरअसल रमेश अग्रवाल चाहते थे कि उक्त सेमीनार के आयोजन की जिम्मेदारी डिस्ट्रिक्ट 3012 ले ले, ताकि जोन के डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों के बीच यह संदेश जाए कि रमेश अग्रवाल की अपने डिस्ट्रिक्ट में गहरी पैठ है और उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों तथा सदस्यों का अच्छा समर्थन प्राप्त है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल इस 'प्रचार' से बड़े परेशान हैं कि उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई पूछ/पहचान नहीं है । मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन ने तो रमेश अग्रवाल को किनारे कोने में बैठाये रखा ही; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नामित अशोक अग्रवाल भी उनके खिलाफ रहे हैं । दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के विरोध के चलते ही रमेश अग्रवाल डीआरएफसी नहीं बन सके; और इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल को हरवाने के लिए रमेश अग्रवाल ने दिन-रात एक किया - लेकिन फिर भी अशोक अग्रवाल भारी जीत से विजयी हुए । पिछले रोटरी वर्ष में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल ने तो रमेश अग्रवाल का ऐसा बुरा हाल बना कर रखा हुआ था, कि रमेश अग्रवाल के दूसरे किसी डिस्ट्रिक्ट में ट्रांसफर लेने की चर्चा चल पड़ी थी । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में ऐसी भारी फजीहत झेल रहे रमेश अग्रवाल के लिए यह फजीहत ज्यादा बड़ी मुसीबत की बात इसलिए भी थी कि इसके कारण उन्हें दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के सामने लज्जित होना पड़ता था ।
रमेश अग्रवाल अपने आपको इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में प्रोजेक्ट करने के प्रयास में लगे हुए हैं; और इसके लिए रोटरी इंडिया विन्स के सेक्रेटरी पद को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं । उक्त सीढ़ी के जरिये वह दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में घुसने की कोशिश करते हैं, लेकिन दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारी किसी न किसी तरह से उन्हें अहसास करा देते रहे हैं कि उन्हें पता है कि खुद अपने डिस्ट्रिक्ट में रमेश अग्रवाल की कैसी क्या हैसियत है ? इस बात को अनुभव करते हुए ही रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के साथ संबंध सुधारने का प्रयास किया । पिछले दिनों संपन्न हुए इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव ने रमेश अग्रवाल को दीपक गुप्ता के नजदीक आने का मौका भी दे दिया । दरअसल अशोक अग्रवाल को सुभाष जैन के उम्मीदवार के रूप में देखने के कारण दीपक गुप्ता और रमेश अग्रवाल ने अशोक अग्रवाल के विरोध का झंडा उठाया - तो वह अशोक अग्रवाल का तो कुछ नहीं बिगाड़ सके, लेकिन उस प्रक्रिया में उन दोनों को नजदीक आने का अवसर जरूर मिल गया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक गुप्ता ने अपने कार्यक्रमों में रमेश अग्रवाल को तवज्जो दी, तो रमेश अग्रवाल को भी लगा कि उनका 'डिस्ट्रिक्ट-निकाला' खत्म हो गया है और अब वह डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में शामिल हो सकेंगे । रमेश अग्रवाल के साथ एक बड़ी समस्या बताई जाती है कि कोई उन्हें ऊँगली पकड़ाए तो वह उसका पहुँचा पकड़ने के लिए लपकते हैं; इसी 'आदत' के चलते उन्होंने दीपक गुप्ता से उम्मीद की कि वह रीजनल विन्स ट्रेनिंग सेमीनार का आयोजन कर लें - दीपक गुप्ता ने लेकिन खर्चे का रोना रोकर इससे इंकार कर दिया । दीपक गुप्ता के बारे में भी मशहूर है कि वह दूसरों से तो काम लेना चाहते हैं, लेकिन दूसरों के काम आने से वह बचते हैं और दूर भागते हैं । रोटरी विन्स ट्रेनिंग सेमीनार के 'आयोजन' से इंकार करके दीपक गुप्ता ने रमेश अग्रवाल की सारी योजना पर पानी फेर दिया ।
मेश अग्रवाल की योजना थी कि उनका डिस्ट्रिक्ट ही जब उक्त रीजनल सेमीनार आयोजित करेगा, तो रीजन/जोन में हो रखी उनकी बदनामी के दाग कुछ साफ होंगे और लोगों को पता चलेगा कि उनकी अपने डिस्ट्रिक्ट में अच्छी पैठ है । दीपक गुप्ता ने लेकिन बदनामी के दाग धोने की उनकी योजना को फेल कर दिया । दीपक गुप्ता ने कुछ ही दिन पहले रोटरी इंडिया वाटर कंजर्वेशन ट्रस्ट द्वारा आयोजित किए गए 'वर्ल्ड वाटर डे' का उदाहरण देते हुए तर्क दिया कि उक्त रीजनल ट्रेनिंग सेमीनार रोटरी इंडिया विन्स को ही करना चाहिए । उल्लेखनीय है कि रोटरी इंडिया विन्स ने गोवा, दिल्ली, कोलकाता व चेन्नई में रीजनल ट्रेनिंग सेमीनार करने की योजना बनाई है, जिनमें गोवा तथा दिल्ली में सेमीनार हो चुके हैं । दीपक गुप्ता का कहना रहा कि उक्त सेमीनार जब रोटरी इंडिया विन्स का कार्यक्रम है, तो कार्यक्रम रोटरी इंडिया विन्स को ही करना चाहिए । दीपक गुप्ता के स्पष्ट इंकार के बाद उक्त सेमीनार रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस को आयोजित करना पड़ा, जिसके चलते ट्रेनिंग सेमीनार में उपस्थित विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों के सामने साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों के रूप में संजय परमार तथा निदा हसन की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो गई - और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के संदर्भ में रमेश अग्रवाल से अपने आपको महत्त्वपूर्ण दिखलाने का मौका छिन गया । अपने ही डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़े होने की फजीहत झेल रहे रमेश अग्रवाल के सामने विन्स ट्रेनिंग सेमीनार एक अच्छा मौका था, जिसमें वह उक्त फजीहत से छुटकारा पा सकते थे - लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के रवैये ने उन्हें 'बैक टु स्क्वायर वन' वाली स्थिति में ला दिया है ।

Monday, April 8, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ऑब्जर्वर की माँग के साथ नियमानुसार पैसे जमा करवाने से बचने की जगदीश अग्रवाल की कोशिश से लग रहा है जैसे कि उन्होंने मान लिया है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होना है

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार जगदीश अग्रवाल की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग तो कर दी गई है, उनकी माँग स्वीकार भी कर ली गई है - लेकिन इस माँग को व्यावहारिक रूप देने के लिए नियमानुसार जो पैसा जमा कराना होता है, जगदीश अग्रवाल अभी उससे बचने की कोशिश कर रहे हैं । इस बात से तथा इसी तरह के अन्य कुछेक उदाहरणों से जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों को ही लग रहा है कि जगदीश अग्रवाल ने चुनाव में अपनी हार जैसे स्वीकार कर ली है, और वह संभल संभल कर पैसा खर्च कर रहे हैं । जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेता हालाँकि उनमें जोश भरने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, और उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि 'लड़ाई' को चाहें किसी भी 'स्तर' पर ले जाना पड़े, वह लड़ेंगे और बीएम श्रीवास्तव को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देंगे । इस तरह के आश्वासनों से जगदीश अग्रवाल में कुछ समय के लिए जोश तो पैदा होता है, लेकिन फिर जल्दी ही उनके जोश की हवा निकल जाती है । दरअसल जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेताओं ने अपनी खुन्नसबाजी में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मुकाबले को उस 'स्थिति' में पहुँचा दिया है, जहाँ 'कोई नहीं जीतेगा' जैसे हालात बनेंगे । ऐसे में, जगदीश अग्रवाल को लगने लगा है कि जब वह जीतेंगे ही नहीं, तो फालतू में पैसा खर्च करने की जरूरत क्या है ? हालत यह हो गई है कि चुनाव अभियान से जुड़े दूसरे कई खर्चों में कटौती करने के साथ-साथ जगदीश अग्रवाल ने ऑब्जर्वर की माँग को व्यावहारिक रूप से पूरा करवाने के लिए दी जाने वाली रकम तक भी रोक ली है ।
उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के नियमानुसार, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कोई उम्मीदवार चुनावी प्रक्रिया को लेकर यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भूमिका पर संदेह करता है, तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भूमिका को नियंत्रित करने के लिए लायंस इंटरनेशनल से ऑब्जर्वर नियुक्त करने की माँग कर सकता है । ऑब्जर्वर नियुक्त करने की माँग करते हुए उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में एक हजार अमेरिकी डॉलर जमा करवाने होते हैं, जिससे ऑब्जर्वर के खर्चे पूरे किए जाते हैं । जगदीश अग्रवाल की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग करते समय तो पैसे जमा नहीं ही करवाए गए, माँग स्वीकार हो जाने पर उन्होंने पैसे जमा करवाने की सुध नहीं ली और वह पैसा जमा करवाने से बचते हुए दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि जगदीश अग्रवाल अभी अपनी उम्मीदवारी को मंजूर किए जाने को लेकर चूँकि आश्वस्त नहीं हैं, इसलिए वह ऑब्जर्वर का पैसा जमा करवाने से बच रहे हैं; नजदीकियों के अनुसार ही, जगदीश अग्रवाल का सोचना/मानना/कहना है कि यदि उनकी उम्मीदवारी ही रिजेक्ट हो गई, तब फिर ऑब्जर्वर के आने या न आने का उनके लिए कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा; और तब उनके द्वारा जमा करवाया गया पैसा बेकार ही चला जायेगा । जगदीश अग्रवाल के इस तर्क में दम तो है; लेकिन उनका यह तर्क यह भी जता/दिखा रहा है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह सशंकित बने हुए हैं । वास्तव में, जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी पर शुरू हुए विवाद के बाद जगदीश अग्रवाल के समर्थकों ने जो बबाल मचाया है, उसने जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की जीत संभावनाओं पर कई तरह से प्रतिकूल असर डाला है - और जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को चौतरफा मुश्किलों ने घेर लिया है ।
जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के पेपर्स पर जो विवाद हुआ है, उससे एक बात तो लोगों के सामने साबित हो ही गई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले जगदीश अग्रवाल और उनका समर्थन करने वाले पूर्व गवर्नर्स नेता जब उम्मीदवारी के पेपर्स भी नियमानुसार तैयार करने/करवाने की काबिलियत नहीं रखते हैं, तो गवर्नर बन कर यह कैसे कैसे गुल खिलायेंगे ? जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के आधे-अधूरे पेपर्स रिजेक्ट होने से बचाने के लिए जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेताओं ने कोर्ट-कचहरी करने की बात करके दबाव बनाने कजो प्रयास किया, उसका भी उल्टा असर होता दिख रहा है । बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों की तरफ से भी सुना जा रहा है कि दबाव डाल कर जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के पेपर्स यदि स्वीकार करवा लिए गए, तो कोर्ट-कचहरी का रास्ता तो उन्हें भी पता है । इस तरह की बातों से लग रहा है कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी यदि मंजूर हो जाती है, और किसी तरह की जुगाड़बाजी से जगदीश अग्रवाल चुनाव यदि जीत जाते हैं, तब फिर बीएम श्रीवास्तव कोर्ट-कचहरी जा कर जगदीश अग्रवाल की जीत को निरस्त करवा देंगे । जगदीश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि उनके समर्थक नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी बचाने के लिए जो 'छड़ी' उठाई थी; बीएम श्रीवास्तव और उनके समर्थकों ने उसी 'छड़ी' को जगदीश अग्रवाल पर तान दिया है । ऐसा लगता है कि बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों ने तय किया है कि वह जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के मंजूर होने या न होने के पचड़े में अभी नहीं पड़ेंगे और चाहेंगे कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी मंजूर हो जाए; उसके बाद दो बातें हो सकती हैं : एक यह कि बीएम श्रीवास्तव चुनाव जीत जाएँ; यदि ऐसा हुआ, तब तो कोई बात ही नहीं है; दूसरी संभावना के अनुसार, लेकिन यदि जगदीश अग्रवाल चुनाव जीत जाते हैं, तब बीएम श्रीवास्तव कोर्ट-कचहरी का रास्ता पकड़ेंगे और जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की योग्यता को ही चुनौती देंगे और इस तरह जगदीश अग्रवाल की चुनावी जीत निरस्त ही हो जायेगी । यानि हालात-ए-सूरत चाहें जो हो जगदीश अग्रवाल को दोनों ही स्थितियों में घाटा ही घाटा होना है । दरअसल, इसीलिए जगदीश अग्रवाल को लगने लगा है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होना है । इसीलिए उन्होंने उम्मीदवार के रूप में पैसे खर्च करने में 'सोचना' शुरू कर दिया है । ऑब्जर्वर की माँग के साथ नियमानुसार पैसे जमा करवाने से बचने की उनकी कोशिश ने लेकिन दिलचस्प स्थिति पैदा कर दी है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में रोटरी फाउंडेशन को गच्चा देने की पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल की कोशिशों को इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद मिलेगी क्या ?

जयपुर । डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के हड़पे गए करीब 20 लाख रुपए वापस करने के लिए रोटरी फाउंडेशन की तरफ से मिली समय-सीमा को पूरा होने में मुश्किल से दो दिन बचे हैं, लेकिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल पैसा वापस करते हुए 'लग' नहीं रहे हैं । रोटरी फाउंडेशन को गच्चा देने की अनिल अग्रवाल की कोशिश ने इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या को खासी मुश्किल में डाल दिया है । उल्लेखनीय है कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की करीब 20 लाख रुपए की रकम को हड़पने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल ने यह अनोखा फैसला लिया है कि घपले के किस्से के 'साइड हीरोज' को तो सजा दे दी गई है, लेकिन किस्से के मुख्य 'हीरो' अनिल अग्रवाल को बचने का मौका दिया गया । अनिल अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना रहा है कि बचने का यह मौका उन्हें भरत पांड्या की 'कोशिशों' से ही मिला है । रोटरी फाउंडेशन की तरफ से अनिल अग्रवाल को बचने का मौका मिला, तो ऐसा लगा कि अनिल अग्रवाल घपलेबाजी की रकम वापस करके अपने ऊपर लगे दाग को धोने/मिटाने की कोशिश करेंगे; उन्होंने दावे/वायदे भी किए कि वह चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर रहे हैं - लेकिन रोटरी फाउंडेशन से मिली समय-सीमा में वह इकन्नी भी जमा करने की कोशिश करते नहीं नजर आए हैं । इससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के हड़पे गए करीब 20 लाख रुपए वापस करने के मामले में अनिल अग्रवाल रोटरी फाउंडेशन को धोखा दे रहे हैं । ऐसे में, यह देखना दिलचस्प होगा कि भरत पांड्या आगे भी उन्हें 'सजा' से बचा पायेंगे और/या उनकी मदद से हाथ खींच लेंगे ।
मामला अनिल अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर-काल - वर्ष 2013-14 में मंजूर हुई डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) का है, जिसके तहत 32169 अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई । इस रकम को एक ओल्ड ऐज होम, एक कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर, एक टेलरिंग ट्रेनिंग सेंटर, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने में खर्च होना था; लेकिन इसमें बंदरबाँट हो गई और आरोपों के अनुसार यह कुछेक लोगों की जेबों में चली गई । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों की पकड़ में मामला आया, और उन्होंने अनिल अग्रवाल से जबाव-तलब किया तो अनिल अग्रवाल ने यह तर्क देते हुए अपने आपको बचाने की कोशिश की कि आरोपित ग्रांट वास्तव में क्लब ग्रांट है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका उससे कोई लेनादेना नहीं है । हालाँकि तथ्य बताते हैं कि रोटरी फाउंडेशन को उक्त ग्रांट के लिए आवेदन डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के नाम से दिया गया था; स्वीकृत रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई थी और जो अनिल अग्रवाल के हस्ताक्षर से ही अकाउंट से ली जा सकती थी और ली गई - और 'बँटी' । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के सामने मामले से अपने आपको बचाने की अनिल अग्रवाल की चालबाजियाँ काम नहीं आईं और उन्होंने अनिल अग्रवाल को जिम्मेदार ठहराते हुए ग्रांट की पूरी रकम रोटरी फाउंडेशन को वापस करने के लिए कहा । रोटरी फाउंडेशन की सिफारिश पर रोटरी इंटरनेशनल ने उक्त घपलेबाजी के मामले में डिस्ट्रिक्ट के दो क्लब्स को ग्रांट्स के लिए प्रतिबंधित कर देने का फैसला किया है; और साथ ही उनके दो पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा एक वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी में किसी भी अवॉर्ड तथा पोजीशन से प्रतिबंधित कर दिया गया है । रोटरी इंटरनेशनल की इस कार्रवाई से घबराए और परेशान हुए अनिल अग्रवाल ने इसके बाद दूसरा नाटक शुरू कर दिया ।
अनिल अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन को विश्वास दिलाया कि वह 31 मार्च तक चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर देंगे । रोटरी फाउंडेशन ने उन्हें 10 अप्रैल तक पैसा जमा करा कर मामला क्लियर करने की समय-सीमा तय कर दी । अनिल अग्रवाल ने इस बीच तमाशेबाजी तो खूब की, जिसके तहत उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के विभिन्न पदाधिकारियों को समय समय पर मेल लिखी कि मैं आपको चेक देने कब आ जाऊं - हर किसी ने उन्हें जबाव दिया कि उन्हें चेक किसी को देना नहीं है बल्कि संबंधित एकाउंट में जमा करवाना है, जिससे कि मामला सुलटे । रोटरी फाउंडेशन द्वारा दी गई समय सीमा समाप्त होने में अभी जब दो कार्यदिवस बचे हैं, अनिल अग्रवाल ने लेकिन एक किस्त का चेक भी संबंधित एकाउंट में जमा नहीं करवाया है । इससे लग रहा है कि रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों द्वारा मिली रियायत का फायदा उठाते हुए अनिल अग्रवाल ने मामले को उलझाने की ही कोशिश की है, और पैसा वापस/जमा करने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । अनिल अग्रवाल की इस हरकत ने इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के सामने गंभीर समस्या खड़ी कर दी है । भरत पांड्या ने अनिल अग्रवाल को इंदौर में होने वाली रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में वीआईपी हॉस्पिटिलिटी कमेटी का चेयरमैन बनाया हुआ है; इंस्टीट्यूट में लेकिन लोग जब पूछेंगे कि रोटरी फाउंडेशन के साथ 'ठगी' करने वाले को उक्त कमेटी का चेयरमैन क्यों बनाया गया है - तो भरत पांड्या के लिए जबाव देना मुश्किल तो होगा ही । अनिल अग्रवाल के नजदीकियों को ही डर है कि भरत पांड्या ने अभी तक तो अनिल अग्रवाल को बचाया है; लेकिन पैसा वापस करने के मामले में अनिल अग्रवाल द्वारा की गई तमाशेबाजी से पैदा हुई स्थिति के चलते उनके लिए आगे अनिल अग्रवाल का बचाव कर पाना मुश्किल होगा । अनिल अग्रवाल हालाँकि अपने नजदीकियों को आश्वस्त कर रहे हैं कि रोटरी फाउंडेशन की तमाम कार्रवाई के बावजूद जैसे अभी तक उनका कुछ नहीं हुआ है, वैसे ही आगे भी उनका कुछ नहीं होगा । 

Saturday, April 6, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को स्वीकार करने तथा प्रस्तुत करने के लिए बड़े धूमधाम से हुई उनके क्लब की मीटिंग ने अशोक कंतूर व अजीत जालान के मुकाबले उनकी उम्मीदवारी को खासा महत्त्वपूर्ण बना दिया है

नई दिल्ली । महेश त्रिखा को लंबे इंतजार के बाद अंततः अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ ईस्ट से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी मिल गई है । उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी देने के लिए हुए आयोजन में क्लब के सदस्य - दोनों पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स सुरेश जैन और संजय खन्ना के साथ-साथ क्लब के कई पूर्व प्रेसीडेंट्स भी जिस उत्साह के साथ शामिल हुए, उससे लोगों को महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को खासा 'दम' मिलता नजर आया है । उल्लेखनीय है कि जब से अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों की दौड़ शुरू हुई है, तभी से महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को लेकर संशय बना हुआ था । हालाँकि महेश त्रिखा खुद तो उम्मीदवार के रूप में खासे सक्रिय थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी की चूँकि कोई 'वकालत' करता हुआ नजर नहीं आ रहा था - इसलिए उनकी उम्मीदवारी को ज्यादा गंभीरता से नहीं देखा/पहचाना जा रहा था । दरअसल, महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के जो स्वाभाविक सहयोगी/समर्थक हो सकते थे, उन्हें रविंदर उर्फ रवि गुगनानी की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था; और इस कारण महेश त्रिखा के लिए 'अपने' लोगों के बीच ही अपनी उम्मीदवारी की दाल गलाना मुश्किल बना हुआ था । रवि गुगनानी के चुनावी मैदान छोड़ने के बाद बनी स्थिति में महेश त्रिखा के लिए रास्ता आसान तो हो गया था, लेकिन फिर भी नेता लोगों ने महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से पहले स्थितियों को - खासतौर से उम्मीदवार के रूप में महेश त्रिखा की 'क्षमताओं' को ठीक से समझ लेना जरूरी समझा; और आश्वस्त हो जाने के बाद उन्होंने महेश त्रिखा की उम्मीदवारी का झंडा उठा लिया है ।
माना/समझा जाता है कि महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को उन नेताओं का समर्थन स्वाभाविक रूप से मिल सकेगा, जो पिछले चुनाव में अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के साथ थे और जिन्होंने अपने अपने तरीके से अनूप मित्तल की चुनावी जीत में भूमिका निभाई थी । महेश त्रिखा ने शायद अपनी उम्मीदवारी को लेकर पहले से ही मन बना लिया था, और इसीलिए अनूप मित्तल के समर्थन में सक्रिय पूर्व गवर्नर्स के साथ वह किसी न किसी तरह संपर्क में रहे - ताकि अनूप मित्तल के बाद जब वह अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करें, तो उन पूर्व गवर्नर्स का समर्थन जुटाने में उनके सामने कोई समस्या खड़ी न हो । लगता है कि महेश त्रिखा का उक्त 'फार्मूला' काम कर गया है; क्योंकि क्लब से हरी झंडी मिलने के बाद उनकी उम्मीदवारी के स्वाभाविक सहयोगियों व समर्थकों ने उनकी उम्मीदवारी के प्रति जो उत्साह प्रकट किया है - उससे लगता है कि जैसे वह क्लब से महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के क्लियर होने का ही इंतजार कर रहे थे । क्लब से महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को हरी झंडी मिलने का उतना महत्त्व नहीं है; वह तो मिल ही जाती - हर उम्मीदवार को अपने क्लब से क्लियरेंस तो मिल ही जाती है; महत्त्व की ज्यादा बड़ी बात यह है कि महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को स्वीकार करने तथा प्रस्तुत करने के लिए क्लब की बड़े धूमधाम से मीटिंग हुई और उसमें क्लब के आम व खास लोगों ने खासे जोशोखरोश के साथ हिस्सा लिया । यह बात इसलिए और भी महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के बाकी दोनों संभावित उम्मीदवारों - अशोक कंतूर व अजीत जालान को अपने अपने क्लब में वैसा एकजुट व उत्साहपूर्ण समर्थन नहीं है, जैसा कि महेश त्रिखा के लिए उनके क्लब में दिखा है ।
उल्लेखनीय है कि अशोक कंतूर ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के पिछले चुनाव में मिली हार के लिए अपने क्लब के सदस्य - पूर्व गवर्नर रमेश चंदर को भी जिम्मेदार ठहराया था । लगता नहीं है कि अगले चुनाव में भी उन्हें रमेश चंदर का सहयोग/समर्थन मिल पायेगा । अजीत जालान की तो अपने क्लब में हालत और भी पतली है । अजीत जालान खुद लोगों से कहते/बताते रहे हैं कि मौजूदा प्रेसीडेंट विनोद कुमार बंसल उनकी उम्मीदवारी में रोड़ा अटका कर खुद उम्मीदवार बनने के चक्कर में हैं, और उन्होंने बड़ी मुश्किल से घेराबंदी कर/करवा कर उन्हें रोका/संभाला हुआ है तथा अपनी उम्मीदवारी को बचाया हुआ है । अशोक कंतूर और अजीत जालान को अपने अपने क्लब में जिन चुनौतियों और मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, उसके चलते उन्हें अपनी अपनी उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी मिलने में तो कोई समस्या नहीं आयेगी; जैसा कि पहले ही कहा/बताया जा चुका है कि वह तो हर उम्मीदवार को मिल ही जाती है - लेकिन क्लब में ही उम्मीदवारी को लेकर झगड़े/टंटे हों, तो उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान पर प्रतिकूल असर तो पड़ता ही है । अशोक कंतूर और अजीत जालान को इस मुश्किल से तो दो-चार होना ही पड़ेगा; महेश त्रिखा ने लेकिन इस समस्या से निजात पा ली है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी की प्रस्तुति के कार्यक्रम में क्लब के हर आम और खास सदस्य की जैसी भूमिका और सक्रियता रही तथा 'दिखी', उससे महेश त्रिखा की उम्मीदवारी खासी महत्त्वपूर्ण हो उठी है ।

Friday, April 5, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह और उनके पति पूर्व गवर्नर विश्वदीप सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दोनों उम्मीदवारों के साथ 'दिखने' की कार्रवाई ने सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के अभियान को तगड़ा झटका दिया है

आगरा । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विश्वदीप सिंह का अपेक्षित समर्थन न मिल पाने के कारण सुनीता बंसल की उम्मीदवारी का अभियान जोर पकड़ने से पिछड़ता जा रहा है, जिस कारण उनके समर्थकों के बीच निराशा बढ़ती जा रही है । उल्लेखनीय है कि सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने जोरशोर से घोषणा की हुई थी कि विश्वदीप सिंह और उनकी पत्नी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह का समर्थन सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के साथ है । इस घोषणा के जरिये सुनीता बंसल के समर्थकों का उद्देश्य दरअसल अगले लायन वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम में प्रमुख पद पाने के आकांक्षी लोगों का समर्थन जुटाना था । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन को वास्तव में इसीलिए महत्त्वपूर्ण माना/पहचाना जाता है, क्योंकि उसके पास ही पदों का लालच देकर वोट खींचने की क्षमता होती है । मधु/विश्वदीप सिंह की इसी क्षमता को देखते/पहचानते हुए सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक उनके समर्थन के दावे करते हुए खासे जोश में थे । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने/दिखाने के उद्देश्य से होली मिलन के बहाने से आगरा में जो पहला कार्यक्रम हुआ, उसमें मधु/विश्वदीप सिंह की उपस्थिति ने सुनीता बंसल के समर्थकों के जोश को और बढ़ाने का काम किया । लेकिन मधु/विश्वदीप सिंह जब सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के दूसरे उम्मीदवार श्याम बिहारी अग्रवाल के कार्यक्रम में भी पहुँचे हुए दिखे, तो सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों का उक्त जोश ठंडा पड़ गया । उसके बाद भी मधु/विश्वदीप सिंह ने ऐसा कोई काम नहीं किया है, जिसे सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन में किये गए काम के रूप में देखा/पहचाना जा सके । इससे सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं के हौंसले पस्त हुए पड़े हैं ।
डिस्ट्रिक्ट की राजनीति की खेमेबाजी के समीकरणों से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि खेमेबाजी के समीकरणों के आधार पर विश्वदीप सिंह को रहना/होना तो सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के साथ ही चाहिए; लेकिन पिछले अनुभवों को ध्यान में रखते हुए विश्वदीप सिंह फूँक-फूँक कर कदम रख रहे हैं और ऐसा कोई काम नहीं करना चाहते हैं जिससे कि मधु सिंह का गवर्नर-वर्ष और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मधु सिंह का नाम खराब हो । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में विश्वदीप सिंह ने अपनी चौधराहट बनाने/दिखाने/चलाने के लिए काम तो धमाकेदार किए थे, लेकिन उनके नतीजों के रूप में उन्हें और डिस्ट्रिक्ट को सिर्फ बदनामी ही हाथ लगी थी । उस बदनामी के चलते विश्वदीप सिंह डिस्ट्रिक्ट में लोगों से इतने दूर हो गए कि कई वर्ष बाद जब उनकी पत्नी मधु सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनीं, तो चुनाव हार गईं । डिस्ट्रिक्ट में लोगों ने उस हार को मधु सिंह की हार के रूप में नहीं, बल्कि विश्वदीप सिंह की हार के रूप में देखा/पहचाना । उसके अगले वर्ष, जब मधु सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनी गईं, तो अप्रत्याशित रूप से उन्हें उन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का भी समर्थन मिला, जो विश्वदीप सिंह के फैसलों के शिकार हुए थे - और इसी कारण से उनकी 'जीत' को विश्वदीप सिंह की जीत के बजाए 'मधु सिंह की जीत' के रूप में देखा/पहचाना गया । जो लोग विश्वदीप सिंह और मधु सिंह, दोनों को जानते हैं - उनका कहना/बताना है कि दोनों के स्वभाव व व्यवहार में जमीन/आसमान का अंतर है, और विश्वदीप सिंह का स्वभाव अभी भी लगभग पहले जैसा ही 'गर्म' है । लेकिन लगता है कि बुरे नतीजों और अनुभवों से विश्वदीप सिंह ने शायद इतना सबक सीख लिया है कि फालतू के पंगे करने से बचा जाये; और या उन्हें लगता हो कि उनकी गवर्नरी और गवर्नर के रूप में उन्हें जैसी जो बदनामी मिली, वैसा हाल मधु सिंह का न हो । लोगों को लगता है कि इसीलिए मधु/विश्वदीप सिंह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में किसी एक उम्मीदवार के साथ 'दिखने' से बच रहे हैं ।
मधु/विश्वदीप सिंह की इस 'स्थिति' ने सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के लिए गंभीर चुनौती और मुसीबत खड़ी कर दी है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को यूँ तो कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन मिल रहा है, लेकिन फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह के पति होने के नाते विश्वदीप सिंह के समर्थन का उनके लिए खास महत्त्व था; विश्वदीप सिंह ने लेकिन दोनों उम्मीदवारों के साथ 'दिख' कर सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों को बुरी तरह निराश किया है और सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के अभियान को तगड़ा झटका दिया है । सुनीता बंसल की तरफ से हालाँकि खासी मेहनत की जा रही है, और रिश्तेदारियाँ निकाल निकाल कर उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने का प्रयास किया जा रहा है - जिस कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव रोमांचपूर्ण होता दिख रहा है । लेकिन चुनावी राजनीति के समीकरणों में होने वाले उलटफेर से परिचित लोगों का मानना और कहना है कि चुनाव में जीत सिर्फ 'शोर-शराबे' से नहीं मिलती, उसके लिए ठोस व्यवस्था करना होती है और जो किसी महत्त्वपूर्ण 'ऑफिस' के जरिये होती है । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के 'ऑफिस' के समर्थन का शोर सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों ने दरअसल इसीलिए मचाया हुआ था - जिसे लेकिन मधु/विश्वदीप सिंह की दोनों उम्मीदवारों के साथ 'दिखने' की कार्रवाई ने झटका दिया हुआ है । एक समस्या और है, और वह यह कि सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन में वह लोग भी देखे/पहचाने जा रहे हैं, पूर्व में जिनका विश्वदीप सिंह के साथ टंटा रहा है - ऐसे में उनका और विश्वदीप सिंह का एकसाथ सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन में चलना मुश्किल ही है; और इसीलिए सुनीता बंसल के चुनाव अभियान में सक्रियता तो अच्छी दिख रही है, लेकिन वह सक्रियता चुनावी नजरिये से कोई प्रभाव बनाती/छोड़ती हुई नहीं नजर आ रही है; और यही बात सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थकों को निराश/हताश कर रही है ।

Thursday, April 4, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की चुनावी राजनीति लीडरशिप के प्रयासों से इस बार जिस सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटती नजर आ रही है, उससे मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय मित्तल के नाम पर बनती दिख रही सहमति को निर्णायक रूप लेते हुए देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद को लेकर शुरू में गर्मी खा रही राजनीति अब जिस तरह ठंडी पड़ती और गंतव्य पर पहुँचती दिख रही है, उसमें संभावित उम्मीदवारों में सबसे पीछे चल रहे विनय मित्तल की दाल गलने का मौका बनता नजर आ रहा है । उल्लेखनीय है कि अभी दो/ढाई महीने पहले तक मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर राजनीतिक उठापटक खासी तेज थी, और उक्त पद के लिए लीडरशिप के बीच वीके हंस तथा बिरिंदर सोहल की दावेदारी पर चर्चा थी, और विरोधी उम्मीदवार के रूप में तेजपाल खिल्लन की सक्रियता थी । विनय मित्तल का नाम भी उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना तो जा रहा था, लेकिन चूँकि उनकी उम्मीदवारी की वकालत लीडरशिप का कोई बड़ा नेता नहीं कर रहा था - इसलिए संभावित चार उम्मीदवारों में उन्हें सबसे पीछे माना/समझा जा रहा था । लेकिन पिछले दिनों मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट तथा मल्टीपल के विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में राजनीति की जैसी जो हवा चली, उसके चलते मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति के सारे समीकरण उलट-पलट गए । दरअसल वीके हंस और बिरिंदर सोहल अपने अपने डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक चक्रव्यूह में ऐसे फँसे कि उनकी वकालत करने वाले नेता पीछे हट गए और इस तरह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की उनकी उम्मीदवारी पर नकारात्मक असर पड़ा । इनके उलट, विनय मित्तल ने अपने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी ऐसी धमक दिखाई, जो किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए सोची भी नहीं जा सकती है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय मित्तल ने जो हासिल किया, वह धैर्य-धीरज, मिलनसार, सभी को उचित सम्मान देने, ईमानदारी से काम करने और प्रशासनिक प्रबंधन की खूबी रखने जैसे अपने रवैये से हासिल किया । विनय मित्तल ने अपने इसी रवैये से मल्टीपल के छोटे-बड़े नेताओं तथा विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच अपनी पहचान, साख और विश्वसनीयता बनाई ।
मल्टीपल के नेताओं के बीच विनय मित्तल की पहचान, साख और विश्वसनीयता भले ही बनी हो; लेकिन मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए वकालत करने वाला नेता विनय मित्तल को तब भी नहीं मिला । वीके हंस तथा बिरिंदर सोहल की तरफ से निराश होने के बाद मल्टीपल के नेताओं के बीच प्रभात चतुर्वेदी का नाम आया । प्रभात चतुर्वेदी ने लेकिन निजी कारणों से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने से इंकार कर दिया । लीडरशिप के बीच मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के उम्मीदवार को लेकर असमंजस व अनिर्णय दिखा, तो तेजपाल खिल्लन ने अपनी उम्मीदवारी के लिए कमर कस ली । तेजपाल खिल्लन की सक्रियता ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उम्मीदवार तय करने के मामले में लीडरशिप के नेताओं को चौकन्ना किया, और तब विनय मित्तल का नाम लीडरशिप के नेताओं के बीच चर्चा में आया । यह सच है कि लीडरशिप के नेताओं में विनय मित्तल की उम्मीदवारी का कोई 'वकील' नहीं है, लेकिन सच यह भी है कि विनय मित्तल के नाम पर किसी का कोई विरोध भी नहीं है । बल्कि अपने डिस्ट्रिक्ट में विनय मित्तल ने जो 'राजनीतिक धमाल' किया है, उसके 'राजनीतिक संदेशों' को 'पढ़ते' हुए लीडरशिप के नेताओं के बीच विनय मित्तल को लेकर एक बड़ी 'राजनीतिक उम्मीद' बनी है । लीडरशिप के बीच मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय मित्तल का नाम जिस तरह चर्चा में आ गया है, उसने विनय मित्तल की उम्मीदवारी को अचानक से महत्त्वपूर्ण और गंभीर बना दिया है ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए लीडरशिप के बीच विनय मित्तल की उम्मीदवारी के गंभीर रूप लेने का एक अन्य प्रमुख कारण विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच विनय मित्तल के लिए बना/दिखा समर्थन भी रहा । दरअसल धैर्य-धीरज, मिलनसार, सभी को उचित सम्मान देने, ईमानदारी से काम करने और प्रशासनिक प्रबंधन की खूबी रखने जैसे अपने रवैये से विनय मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट में अपनी जो धमक जमाई; उसी रवैये से उन्होंने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों के बीच भी अपनी पहचान व साख बनाई - जो मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए समर्थन में परिवर्तित हुई नजर आ रही है । लीडरशिप के नेताओं ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की राय जानने का काम किया, तो उन्हें विनय मित्तल के लिए अच्छा समर्थन दिखा । इस बार लीडरशिप के व्यवहार में एक बड़ा परिवर्तन यह भी देखने में आ रहा है कि वह अपनी पसंद थोपने की जिद नहीं पकड़े हुए है, और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की राय को भी महत्त्व देती हुई नजर आ रही है और उन्हें विश्वास में लेकर एक बेहतर प्रशासनिक क्षमता के व्यक्ति को ही मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद पर लाना चाहती है । इस चक्कर में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय मित्तल की उम्मीदवारी महत्त्वपूर्ण होती हुई लग रही है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में अभी हालाँकि करीब एक महीने से कुछ अधिक का समय बाकी है और इतना समय बड़े उलट-फेर के लिए काफी माना जाता है - लेकिन इस बार मल्टीपल की चुनावी राजनीति जिस सौहार्दपूर्ण तरीके से निपटती दिख रही है, और लीडरशिप छोटे-छोटे झगड़े आपसी बातचीत से हल करने तथा उन्हें बढ़ने न देने में दिलचस्पी ले रही है, उससे लगता नहीं है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर अब ज्यादा उथल-पुथल होने का मौका बचा है; लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए - यह भी दावे के साथ कोई नहीं कह सकता है ।