Friday, April 26, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में करीब 20 लाख रुपए की घपलेबाजी के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को सजा सुनाई; और इस तरह अनिल अग्रवाल की न तो चालबाजियाँ काम आईं और न रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की सिफारिशें ही उन्हें बचा सकीं

जयपुर । बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को 'बचाने' की बड़े बड़े रोटरी नेताओं और पदाधिकारियों की कोशिशें अंततः विफल हुईं, और अनिल अग्रवाल को तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाई गई है । रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी जॉन हेवको ने अनिल अग्रवाल को पत्र लिख/भेज कर इसकी जानकारी दी है । अनिल अग्रवाल को बचाने के प्रयास किस स्तर के थे, इसका अंदाज इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम ने रोटरी फाउंडेशन की मीटिंग से ठीक पहले अनिल अग्रवाल के साथ रियायत बरतने का अनुरोध करते हुए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वहनवती को बाकायदा लिखित में संदेश भेजा । दरअसल रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों के समर्थन का ही असर रहा कि रोटरी फाउंडेशन की कार्रवाई तक को अनिल अग्रवाल ने गंभीरता से नहीं लिया और रोटरी फाउंडेशन द्वारा मिली रियायत के दौरान भी उन्होंने पैसा वापस करने में कोई दिलचस्पी नहीं ली - उलटे बल्कि मामले को उलझाने की ही कोशिश की । अनिल अग्रवाल ने रोटरी का सिर्फ पैसा ही नहीं 'लूटा' - रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों का विश्वास भी लूटा, और हर मौके पर उन्हें बेवकूफ बनाने की ही कोशिश की । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन को विश्वास दिलाया था कि वह 31 मार्च तक चार/पाँच किस्तों में उक्त रकम वापस कर देंगे । रोटरी फाउंडेशन ने उन्हें 10 अप्रैल तक पैसा जमा करा कर मामला क्लियर करने की समय-सीमा तय कर दी । लेकिन उक्त समय-सीमा में अनिल अग्रवाल ने इकन्नी भी जमा नहीं की । मजे की बात यह है कि अनिल अग्रवाल ने अपने शुभचिंतकों तक को 'ठगने' तथा उनके साथ भी धोखा करने से परहेज नहीं किया । बासकर चॉकलिंगम को उन्होंने दो लाख रुपए जमा कराने की जो बात बताई, और जिसके आधार पर बासकर चॉकलिंगम ने उन्हें बचाने के लिए फाउंडेशन ट्रस्टी गुलाम वहनवती को सिफारिशी पत्र लिखा - वह बात भी झूठी है ।  
अनिल अग्रवाल ने करीब बीस लाख रुपए की घपलेबाजी के इस मामले में अपने आपको बचाने के लिए शुरू से ही झूठ पर झूठ बोलने तथा तरह तरह के 'नाटक' करने का काम किया । शुरू में उन्होंने दावा किया कि आरोपित ग्रांट वास्तव में क्लब ग्रांट है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका उससे कोई लेना देना नहीं है । अनिल अग्रवाल का मासूमियत से लबालबभरा तर्क रहा कि रोटरी फाउंडेशन को दिए गए आवेदन में क्लब ग्रांट की जगह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चिन्हित करने का काम असावधानीवश हो गया था । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारी लेकिन उनकी इस नाटकबाजी के जाल में नहीं फँसे; क्योंकि तथ्य तो यह हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के लिए आवेदन किया, ग्रांट की रकम को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में स्वीकार तथा जमा किया और मनमाने तरीके से उसे खर्च करते रहे - और जब 'चोरी-चकारी' के आरोप में 'पकड़े' गए - तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगे कि उनका तो ग्रांट से कोई लेना-देना ही नहीं था । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए वर्ष 2013-14 में डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) मंजूर हुई थी, जिसके तहत 32169 अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई । इस रकम को एक ओल्ड ऐज होम, एक कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर, एक टेलरिंग ट्रेनिंग सेंटर, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने में खर्च होना था । इस मामले में पहले तो क्लोजिंग रिपोर्ट भेजने/सौंपने में बहुत देरी की गई और जो भेजी/सौंपी भी - वह आधी-अधूरी थी । रोटरी फाउंडेशन की तरफ से ग्रांट के इस्तेमाल को लेकर जो सवाल पूछे गए, उनके जबाव कभी नहीं दिए गए । ग्रांट की रकम प्राप्त करने और उसे इस्तेमाल करने वाले लोग चार वर्षों तक रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को जिस तरह से टरकाते रहे, उसके चलते रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को ग्रांट की रकम के दुरुपयोग की आशंका हुई तो उन्होंने रोटरी ग्रांट को-ऑर्डिनेटर चंद्रा पामर को जाँच के लिए भेजा, जिन्होंने अपनी जाँच में खासी गड़बड़ियाँ पाईं - और उसके बाद अपने आपको बचाने के उद्देश्य से अनिल अग्रवाल की बेवकूफीभरी नाटकबाजी शुरू हुई ।
अनिल अग्रवाल की निर्लज्जता व बेशर्मी का आलम यह रहा कि उनके गवर्नर-वर्ष में ग्लोबल ग्रांट के रूप में रोटरी फाउंडेशन से डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में आए करीब 20 लाख रुपए में हुई घपलेबाजी में संलग्नता के आरोप में डिस्ट्रिक्ट के दो क्लब्स को ग्रांट्स के लिए प्रतिबंधित कर दिए जाने तथा उनके दो पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा एक वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी में किसी भी अवॉर्ड तथा पोजीशन से प्रतिबंधित कर दिए जाने के बाद भी उन्होंने मामले की गंभीरता को नहीं समझा । अनिल अग्रवाल के गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा तक दाँव पर लग गई - क्योंकि डिस्ट्रिक्ट को उक्त रकम वापस करने के लिए कहा गया, और उक्त रकम वापस न किए जाने तक के लिए डिस्ट्रिक्ट को रोटरी फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भागीदारी से वंचित कर देने का आदेश हुआ; इस आदेश को निष्प्रभावी करने के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने आपस में चंदा जमा करके डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा को बचाया; लेकिन अनिल अग्रवाल मामले को निपटवाने में सहयोग करने की बजाये अपनी चालबाजियाँ ही चलते रहे और रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों से झूठ पर झूठ बोलते हुए उन्हें बरगलाने का प्रयास ही करते रहे । लेकिन जैसा कि सयानों ने कहा है कि पाप का घड़ा एक-न-एक दिन भरता और फूटता ही है; उसी तर्ज पर अनिल अग्रवाल की न तो चालबाजियाँ काम आईं और न रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं की सिफारिशें ही उन्हें बचा सकीं । 
अनिल अग्रवाल को तीन वर्षों के लिए रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाने वाला रोटरी इंटरनेशनल के जनरल सेक्रेटरी जॉन हेवको का पत्र :


इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम द्वारा गुलाम वहनवती को लिखा/भेजा गया अनिल अग्रवाल को बचाने की सिफारिश करता संदेश :