नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर अशोक कंतूर तथा अजीत जालान के बीच एक दूसरे को रास्ते से हटाने के लिए छिड़ी लड़ाई ने महेश त्रिखा के लिए रास्ता आसान बनाने का काम किया है, जिसका उन्होंने नेपाल में आयोजित हुई पेट्स में खूब फायदा भी उठाया । पेट्स से लौटे रोटेरियंस, खासकर प्रेसीडेंट्स इलेक्ट से उनके जो अनुभव सुनने को मिले - उससे लगा कि एक उम्मीदवार के रूप में महेश त्रिखा ने लोगों के बीच अच्छी पैठ बनाई है । पेट्स में मौजूद लोगों के बीच अशोक कंतूर तथा अजीत जालान तो एक दूसरे को कमजोर व नीचा दिखाने के प्रयासों में ही लगे रहे, और एक-दूसरे की उम्मीदवारी को वापस करवाने के लिए लोगों से सिफारिश करने में ही व्यस्त रहे; जबकि महेश त्रिखा ने लोगों के साथ अपने संबंधों को और मजबूत करने/बनाने पर ध्यान दिया तथा अपनी उम्मीदवारी के प्रति लोगों का विश्वास जीतने के तौर-तरीके अपनाए - जिसका उन्हें फायदा भी मिलता हुआ नजर आया । अशोक कंतूर और अजीत जालान के लिए मुसीबत की बात यह रही कि उनके सहयोगी व समर्थन में जिन लोगों को देखा/पहचाना जाता है, वह पेट्स में गए ही नहीं - कई को सुरेश भसीन की टीम में महत्त्व की जगह न पाने के कारण पेट्स का निमंत्रण ही नहीं मिला, तो कुछेक निजी कारणों से पेट्स में नहीं जा सके । कुछेक लोग जो वहाँ थे भी, वह अभी यही तय नहीं कर पा रहे हैं कि उन्हें अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाना है, या अजीत जालान की उम्मीदवारी का साथ देना है । दरअसल इस वर्ष अशोक कंतूर और अनूप मित्तल के बीच हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजीत जालान ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था - जिसके चलते अजीत जालान को उन्हीं लोगों के बीच से अपने समर्थक छाँटने/पाने हैं जो अशोक कंतूर के समर्थक थे; जिस कारण उनके समर्थक ही असमंजस में हैं - और उनकी असमंजसता अशोक कंतूर व अजीत जालान को अकेला बनाने के साथ-साथ आपस में भिड़ाये हुए भी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में महेश त्रिखा को स्वाभाविक रूप से इसका फायदा मिल रहा है और अपनी सक्रियता दिखा/जता कर वह फायदा उठा भी रहे हैं ।
पेट्स में अशोक कंतूर ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल का नाम लेकर अजीत जालान पर 'हमला' बोला और दावा किया कि विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की घोषणा की है और उनकी इस घोषणा से अजीत जालान की उम्मीदवारी का एकमात्र समर्थन-आधार खिसक गया है, इसलिए अजीत जालान को अब अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जाना चाहिए । अजीत जालान ने लेकिन उनके इस दावे और तर्क को हवा में उड़ा दिया है । अजीत जालान का कहना है कि विनोद बंसल की घोषणा से अशोक कंतूर खुश तो ऐसे हो रहे हैं, जैसे विनोद बंसल ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा कर दी है । अजीत जालान का कहना/पूछना है कि विनोद बंसल के सहयोग/समर्थन के बावजूद अशोक कंतूर जब इस वर्ष चुनाव नहीं जीत सके, तो अगले वर्ष विनोद बंसल यदि सचमुच डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहे तो अशोक कंतूर का और बुरा हाल नहीं होगा क्या ? अजीत जालान का कहना है कि विनोद बंसल की घोषणा के हवाले से उन्हें अपनी उम्मीदवारी से पीछे हट जाने की सलाह देकर अशोक कंतूर ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि वह 'राजनीति' नहीं समझते हैं । अजीत जालान के ही अनुसार, विनोद बंसल ने तो इस वर्ष हुए चुनाव में भी चुनाव से दूर रहने की घोषणा की हुई थी, लेकिन वह अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को सहयोग व समर्थन दे रहे थे न; लोगों को राजनीति 'समझाते' हुए अजीत जालान ने कहा/बताया कि विनोद बंसल को रोटरी में चूँकि बड़ी राजनीति करना है, इसलिए उनकी यह मजबूरी है कि वह किसी एक के साथ खुलकर न 'दिखे' और अपने पसंदीदा उम्मीदवार की मदद 'छिप' कर ही करें - जैसे उन्होंने इस वर्ष अशोक कंतूर की की थी । अजीत जालान का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की विनोद बंसल ने जो घोषणा की है, उसे ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है - वह सिर्फ 'पॉस्चरिंग' है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से दूर रहने की विनोद बंसल की घोषणा के बाद भी अपनी उम्मीदवारी को लेकर अजीत जालान का अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोश जिस तरह से बना हुआ है, उसे देख कर लोगों को अजीत जालान की बातें और उनके तर्क सही ही लग रहे हैं ।
दरअसल इसी बात ने अशोक कंतूर को थोड़ा दबाव में ला दिया है, लेकिन फिर भी वह अभी 'हार' मानने के लिए तैयार नहीं हैं । अशोक कंतूर के लिए मुश्किल दरअसल यह है कि उनके सामने 'अभी नहीं तो कभी नहीं' वाली स्थिति है । अशोक कंतूर को लगता है कि अभी तो उन्हें हमदर्दी का लाभ भी मिल जायेगा; लोगों के बीच पिछले करीब एक/डेढ़ वर्ष से निरंतर सक्रियता रहने के कारण उनकी पहचान भी बिलकुल ताजा ताजा है; जिसके चलते अपने सहयोगियों व समर्थकों को अपने साथ जोड़े रखना उनके लिए आसान होगा - इसलिए उनके सामने अभी ही मौका है कि वह अपनी उम्मीदवारी की नाव को गंतव्य 'पर' पहुँचा दें । अजीत जालान की उम्मीदवारी लेकिन उनकी उम्मीदवारी की नाव को आगे बढ़ने से रोक रही है । यह बात अशोक कंतूर भी समझ रहे हैं कि अजीत जालान की उम्मीदवारी भी यदि रही तो यह दोनों के लिए घातक होगा । अजीत जालान की लेकिन अपनी समस्या है - उन्होंने अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी की पहले से घोषणा की हुई है और उन्हें अपने क्लब से अल्टीमेटम मिला हुआ है कि वह अपनी घोषणा पर अमल करें, ताकि क्लब के दूसरे सदस्य भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की तैयारी में जुट सकें । अजीत जालान के क्लब में दो-एक और सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी दौड़ में शामिल होने के इच्छुक सुने/बताये जा रहे हैं, जिसके कारण अजीत जालान को डर है कि वह यदि इस बार घोषणा करने के बावजूद उम्मीदवार नहीं बने, तो आगे फिर उनकी उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब में ही हरी झंडी मिलना मुश्किल होगा । अजीत जालान की तरफ से कहा जा रहा है कि अशोक कंतूर के लिए इस बार जैसी बेहतर स्थिति थी, वैसी बेहतर स्थिति उन्हें आगे नहीं मिलेगी; उनकी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ-साथ निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का खुल्ला व सक्रिय समर्थन प्राप्त था, जिनके दबाव में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट चुप बना हुआ था; पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल के संगी-साथी उनके साथ थे - लेकिन फिर भी अशोक कंतूर चुनाव नहीं जीत सके, तो इससे यही निष्कर्ष निकलता है कि वह एक उम्मीदवार के रूप में बहुत ही कमजोर रहे; इस तथ्य को स्वीकार करते हुए अशोक कंतूर को चुनावी दौड़ से अलग हो जाना चाहिए ।
अशोक कंतूर और अजीत जालान के बीच चलने वाली इस तू तू मैं मैं का पेट्स में खासा शोर रहा, जिसके चलते इन दोनों की उम्मीदवारी पर नकारात्मक असर ही पड़ा, और लोगों ने मान लिया है कि यह दोनों जिस तरह से एक दूसरे को 'बैठाने' की कोशिशों में लगे हैं - उससे लग रहा है कि दोनों के उम्मीदवार बने रहने की स्थिति में दोनों ने अपने आप को अभी से हारा हुआ मान लिया है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बन रही इस धारणा ने महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को स्वाभाविक रूप से बढ़त दी है; और खास बात यह भी देखने को मिल रही है कि महेश त्रिखा इस बढ़त को सचमुच पाने तथा बनाये रखने के लिए प्रयास भी कर रहे हैं ।