लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार जगदीश अग्रवाल की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग तो कर दी गई है, उनकी माँग स्वीकार भी कर ली गई है - लेकिन इस माँग को व्यावहारिक रूप देने के लिए नियमानुसार जो पैसा जमा कराना होता है, जगदीश अग्रवाल अभी उससे बचने की कोशिश कर रहे हैं । इस बात से तथा इसी तरह के अन्य कुछेक उदाहरणों से जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों को ही लग रहा है कि जगदीश अग्रवाल ने चुनाव में अपनी हार जैसे स्वीकार कर ली है, और वह संभल संभल कर पैसा खर्च कर रहे हैं । जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेता हालाँकि उनमें जोश भरने का भरसक प्रयास कर रहे हैं, और उन्हें आश्वस्त कर रहे हैं कि 'लड़ाई' को चाहें किसी भी 'स्तर' पर ले जाना पड़े, वह लड़ेंगे और बीएम श्रीवास्तव को किसी भी कीमत पर जीतने नहीं देंगे । इस तरह के आश्वासनों से जगदीश अग्रवाल में कुछ समय के लिए जोश तो पैदा होता है, लेकिन फिर जल्दी ही उनके जोश की हवा निकल जाती है । दरअसल जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेताओं ने अपनी खुन्नसबाजी में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मुकाबले को उस 'स्थिति' में पहुँचा दिया है, जहाँ 'कोई नहीं जीतेगा' जैसे हालात बनेंगे । ऐसे में, जगदीश अग्रवाल को लगने लगा है कि जब वह जीतेंगे ही नहीं, तो फालतू में पैसा खर्च करने की जरूरत क्या है ? हालत यह हो गई है कि चुनाव अभियान से जुड़े दूसरे कई खर्चों में कटौती करने के साथ-साथ जगदीश अग्रवाल ने ऑब्जर्वर की माँग को व्यावहारिक रूप से पूरा करवाने के लिए दी जाने वाली रकम तक भी रोक ली है ।
उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल के नियमानुसार, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कोई उम्मीदवार चुनावी प्रक्रिया को लेकर यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भूमिका पर संदेह करता है, तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भूमिका को नियंत्रित करने के लिए लायंस इंटरनेशनल से ऑब्जर्वर नियुक्त करने की माँग कर सकता है । ऑब्जर्वर नियुक्त करने की माँग करते हुए उसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय में एक हजार अमेरिकी डॉलर जमा करवाने होते हैं, जिससे ऑब्जर्वर के खर्चे पूरे किए जाते हैं । जगदीश अग्रवाल की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग करते समय तो पैसे जमा नहीं ही करवाए गए, माँग स्वीकार हो जाने पर उन्होंने पैसे जमा करवाने की सुध नहीं ली और वह पैसा जमा करवाने से बचते हुए दिख रहे हैं । उनके नजदीकियों का कहना है कि जगदीश अग्रवाल अभी अपनी उम्मीदवारी को मंजूर किए जाने को लेकर चूँकि आश्वस्त नहीं हैं, इसलिए वह ऑब्जर्वर का पैसा जमा करवाने से बच रहे हैं; नजदीकियों के अनुसार ही, जगदीश अग्रवाल का सोचना/मानना/कहना है कि यदि उनकी उम्मीदवारी ही रिजेक्ट हो गई, तब फिर ऑब्जर्वर के आने या न आने का उनके लिए कोई मतलब ही नहीं रह जायेगा; और तब उनके द्वारा जमा करवाया गया पैसा बेकार ही चला जायेगा । जगदीश अग्रवाल के इस तर्क में दम तो है; लेकिन उनका यह तर्क यह भी जता/दिखा रहा है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह सशंकित बने हुए हैं । वास्तव में, जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी पर शुरू हुए विवाद के बाद जगदीश अग्रवाल के समर्थकों ने जो बबाल मचाया है, उसने जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की जीत संभावनाओं पर कई तरह से प्रतिकूल असर डाला है - और जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी को चौतरफा मुश्किलों ने घेर लिया है ।
जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के पेपर्स पर जो विवाद हुआ है, उससे एक बात तो लोगों के सामने साबित हो ही गई है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की इच्छा रखने वाले जगदीश अग्रवाल और उनका समर्थन करने वाले पूर्व गवर्नर्स नेता जब उम्मीदवारी के पेपर्स भी नियमानुसार तैयार करने/करवाने की काबिलियत नहीं रखते हैं, तो गवर्नर बन कर यह कैसे कैसे गुल खिलायेंगे ? जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के आधे-अधूरे पेपर्स रिजेक्ट होने से बचाने के लिए जगदीश अग्रवाल के समर्थक नेताओं ने कोर्ट-कचहरी करने की बात करके दबाव बनाने कजो प्रयास किया, उसका भी उल्टा असर होता दिख रहा है । बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों की तरफ से भी सुना जा रहा है कि दबाव डाल कर जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के पेपर्स यदि स्वीकार करवा लिए गए, तो कोर्ट-कचहरी का रास्ता तो उन्हें भी पता है । इस तरह की बातों से लग रहा है कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी यदि मंजूर हो जाती है, और किसी तरह की जुगाड़बाजी से जगदीश अग्रवाल चुनाव यदि जीत जाते हैं, तब फिर बीएम श्रीवास्तव कोर्ट-कचहरी जा कर जगदीश अग्रवाल की जीत को निरस्त करवा देंगे । जगदीश अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह हो गई है कि उनके समर्थक नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी बचाने के लिए जो 'छड़ी' उठाई थी; बीएम श्रीवास्तव और उनके समर्थकों ने उसी 'छड़ी' को जगदीश अग्रवाल पर तान दिया है । ऐसा लगता है कि बीएम श्रीवास्तव के समर्थकों ने तय किया है कि वह जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी के मंजूर होने या न होने के पचड़े में अभी नहीं पड़ेंगे और चाहेंगे कि जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी मंजूर हो जाए; उसके बाद दो बातें हो सकती हैं : एक यह कि बीएम श्रीवास्तव चुनाव जीत जाएँ; यदि ऐसा हुआ, तब तो कोई बात ही नहीं है; दूसरी संभावना के अनुसार, लेकिन यदि जगदीश अग्रवाल चुनाव जीत जाते हैं, तब बीएम श्रीवास्तव कोर्ट-कचहरी का रास्ता पकड़ेंगे और जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी की योग्यता को ही चुनौती देंगे और इस तरह जगदीश अग्रवाल की चुनावी जीत निरस्त ही हो जायेगी । यानि हालात-ए-सूरत चाहें जो हो जगदीश अग्रवाल को दोनों ही स्थितियों में घाटा ही घाटा होना है । दरअसल, इसीलिए जगदीश अग्रवाल को लगने लगा है कि वह एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, जिसमें उन्हें कुछ भी हासिल नहीं होना है । इसीलिए उन्होंने उम्मीदवार के रूप में पैसे खर्च करने में 'सोचना' शुरू कर दिया है । ऑब्जर्वर की माँग के साथ नियमानुसार पैसे जमा करवाने से बचने की उनकी कोशिश ने लेकिन दिलचस्प स्थिति पैदा कर दी है ।