मुंबई । अनिल भंडारी ने सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु अपनी जिन खूबियों पर भरोसा किया है, उसे देखते/पहचानते हुए वेस्टर्न रीजन में इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के जानकारों और खिलाड़ियों को मितिल चोकसी की उम्मीदवारी याद आ रही है - किंतु इस 'याद' में अनिल भंडारी के लिए कुछेक सबक भी छिपे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए अनिल भंडारी अपनी स्मार्टनेस पर निर्भर कर रहे हैं । उनके समर्थकों के साथ साथ दूसरे लोगों का भी मानना और कहना है कि अनिल भंडारी में लोगों को प्रभावित करने का अच्छा हुनर है, जिसका फायदा उन्हें चुनाव में मिलेगा । लोगों का कहना है कि अपने व्यक्तित्व और अपने व्यवहार से अनिल भंडारी लोगों पर जैसे जादू सा कर देते हैं, और उनके द्वारा किए गए जादू से वशीभूत होकर लोग उनकी तरफ खिंचे चले आते हैं । अनिल भंडारी को 'मार्केटिंग' के मामले में खासा होशियार माना/समझा जाता है - और इसी आधार पर माना/समझा जा रहा है कि अनिल भंडारी सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत अपनी उम्मीदवारी की भी मार्केटिंग कर लेंगे, और चुनाव में कामयाब हो जायेंगे । अनिल भंडारी के समर्थकों की इस 'राजनीतिक समझ' पर बात करते हुए इंस्टीट्यूट की वेस्टर्न रीजन की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले कुछेक लोग लेकिन मितिल चोकसी को याद कर रहे हैं, और अनिल भंडारी के लिए सुझाव दे रहे हैं कि उन्हें मितिल चोकसी के अनुभव से सबक सीखना चाहिए ।
उल्लेखनीय है कि मितिल चोकसी वर्ष 2003 में वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे, और उसी वर्ष हुए चुनाव में सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवार थे । स्मार्टनेस - व्यक्तित्व और व्यवहार के मामले में वह अनिल भंडारी से इक्कीस ही थे । मार्केटिंग के मामले में भी वह अनिल भंडारी पर भारी ही पड़ेंगे, और लोगों को प्रभावित करने की कला में खूब होशियार होने के बावजूद अनिल भंडारी यदि चाहें, तो मितिल चोकसी से बहुत कुछ सीख सकते हैं । वेस्टर्न रीजन में लोग आज भी याद करते हैं, और मानते व कहते हैं कि मितिल चोकसी जैसा चेयरमैन वेस्टर्न रीजन को अभी तक नहीं मिला है । इतने सब के बावजूद सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में मितिल चोकसी को इतने वोट नहीं मिल पाए, कि वह चुनाव जीत पाते । मितिल चोकसी के साथ तो एक और प्लस प्वाइंट था - और वह यह कि उनके चेयरमैन बनने से कुल तेरह वर्ष पहले, वर्ष 1990 में उनके पिता आरएस चोकसी वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे । आरएस चोकसी काफी लंबे समय तक रीजनल काउंसिल में रहे थे । उम्मीद की गई थी कि सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत की गई मितिल चोकसी की उम्मीदवारी को उनके पिता आरएस चोकसी की सक्रियता का भी फायदा मिलेगा, किंतु जो नहीं मिल सका । अपने व्यक्तित्व और व्यवहार का जादू लोगों पर बिखेरने के बावजूद मितिल चोकसी सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं जीत सके थे, तो इसका कारण यही समझा/माना गया था कि तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद वह स्थितियों को अपने चुनाव के संदर्भ में व्यवस्थित नहीं कर पाए और वोट पाने में पिछड़ गए । मॉरल ऑफ द स्टोरी यह है कि सिर्फ जादुई व्यक्तित्व के भरोसे चुनाव नहीं जीता जा सकता । मितिल चोकसी की इस स्टोरी का अनिल भंडारी के लिए संदेश और सबक यही है कि वह अपने व्यक्तित्व और व्यवहार के भरोसे ही यदि रहे, तो मितिल चोकसी की तरह धोखा खा सकते हैं ।
अनिल भंडारी के मामले में यह बात इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि रीजनल काउंसिल के पिछले चुनावी नतीजे भी 'बताते' हैं कि अनिल भंडारी को अपने जादुई व्यक्तित्व व व्यवहार का चुनाव में कोई खास फायदा नहीं हुआ है । उल्लेखनीय है कि पिछली बार रीजनल काउंसिल के 49 उम्मीदवारों में अनिल भंडारी पहली वरीयता के 772 वोटों के साथ 16वें स्थान पर थे; और फाइनली अपने वोटों की संख्या को 1243 तक पहुँचाते हुए उन्होंने विजेता उम्मीदवारों में अपना स्थान एक ऊँचा करते हुए 15वाँ कर लिया था । उससे पिछली बार के, यानि वर्ष 2009 के चुनाव में उन्हें पहली वरीयता के 767 वोटों के साथ 14वाँ और फाइनली 1089 वोटों के साथ 13 वाँ स्थान मिला था । जाहिर है कि 2010 से 2012 के बीच के समय में काउंसिल में रहते हुए उन्होंने अपनी स्थिति में कोई खास सुधार नहीं किया, और उनके लिए मामला जहाँ का तहाँ ही रहा । सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में यह कोई बहुत उत्साहित करने वाला नतीजा नहीं कहा जा सकता है । जादुई व्यक्तित्व और व्यवहार के बावजूद अनिल भंडारी यदि वर्ष 2010 से 2012 के बीच अपनी चुनावी स्थिति में कोई सुधार नहीं कर सके थे, तो आखिर क्या गारंटी है कि वर्ष 2013 से 2015 के बीच उन्होंने बहुत कमाल कर दिया होगा ? मितिल चोकसी का किस्सा और रीजनल काउंसिल चुनाव में खुद अनिल भंडारी का परफॉर्मेंस कहता/बताता है कि सिर्फ स्मार्टनेस के भरोसे वोट नहीं पाए जा सकते हैं ?
संजीव माहेश्वरी, राजकुमार अदुकिया और पंकज जैन द्वारा खाली की गईं सेंट्रल काउंसिल की सीटों को कब्जाने के लिए दुर्गेश काबरा, बीएम अग्रवाल, अनिल भंडारी और धीरज खण्डेलवाल ने जिस तरह की तैयारी की है, उसे देखते/समझते हुए रीजन के चुनावी खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि इनमें से एक का जीतना तो पक्का है; चुनावी गणित यदि किसी खास ऐंगल पर बैठा तो दो लोग भी जीत सकते हैं - जीतने वाले कौन होंगे, यह अभी किसी के लिए भी कह पाना मुश्किल हो रहा है । मारवाड़ी वोटों पर भरोसा करने वाले इन चारों उम्मीदवारों के साथ खूबियों और कमजोरियों की अपनी अपनी फेहरिस्त है; और इनके बीच मुकाबला टक्कर का है और खासा दिलचस्प है । अनिल भंडारी के समर्थक अनिल भंडारी के जादुई व्यक्तित्व और व्यवहार के भरोसे अनिल भंडारी की नाव पार हो जाने का जो विश्वास दिखा/जता रहे हैं, उस विश्वास की पड़ताल बाकी तीनों उम्मीदवारों की संभावनाओं के संदर्भ में करने पर ही लोगों को मितिल चोकसी का चुनाव याद आया है ।