Sunday, September 6, 2015

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की फरीदाबाद ब्रांच में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों पर मनमाने तरीके से थोपी गई लायब्रेरी फीस मामले में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी से अपने आप को बचाने के लिए विजय गुप्ता और दीपक गर्ग ने फरीदाबाद में लोगों से छिप कर रहने का फार्मूला अपनाया

फरीदाबाद । इंस्टीट्यूट की फरीदाबाद ब्रांच में छात्रों से लायब्रेरी फीस लेने के मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि सेंट्रल काउंसिल और रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों ने फरीदाबाद से 'भाग' खड़े होने में ही अपनी खैर समझी है । उल्लेखनीय है कि फरीदाबाद में अपने खिलाफ माहौल देख/पहचान कर विजय गुप्ता और दीपक गर्ग तो पहले से ही फरीदाबाद में लोगों से मुँह छिपाते फिर रहे हैं, और सिर्फ अपने अपने खास लोगों के ही फोन उठा रहे हैं । जो लोग एसएमएस और ईमेल जैसे संवाद के व्यक्तिगत माध्यमों के जरिए, तथा फेसबुक जैसे खुले/सार्वजनिक मंच से इनसे सवाल पूछ रहे हैं - उन्हें भी जबाव देने से यह कन्नी काट रहे हैं । तेजिंदर भारद्वाज और विपिन शर्मा के लिए भी माहौल चुनौतीपूर्ण होता जा रहा है - फलस्वरूप इन दोनों ने भी कभी जबाव देने तो कभी चुप लगा जाने वाला फार्मूला अपना लिया है । इनके किन्हीं किन्हीं समर्थकों ने साहस करके सवाल उठाने वाले लोगों से अनुरोध भी किया कि इंस्टीट्यूट की समस्याओं पर सार्वजनिक रूप से बात नहीं की जानी चाहिए - किंतु उन्हें भी लोगों से जब लताड़ सुनने को मिली, तो वह भी पीछे हट गए । 
उल्लेखनीय है कि यह चारों फरीदाबाद ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सदस्य हैं - और इस नाते यदि यह चाहें तो सेकेंड्स में छात्रों से फीस बसूलने का फरमान वापिस हो सकता है । चारों को छोड़िये, एक अकेले विजय गुप्ता फरीदाबाद ब्रांच में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों के साथ हो रही 'लूट' को रोक सकते हैं । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य विजय गुप्ता अक्सर दावा करते हुए सुने गए हैं कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट मनोज फडनिस तो उनके इशारे पर नाचते हैं, और फरीदाबाद के मामले में तो मनोज फडनिस ने उन्हें ही प्रेसीडेंट 'बना' दिया है । यंग मेंबर्स एम्पॉवरमेंट कमेटी के चेयरमैन के रूप में विजय गुप्ता जिस तरह की मनमानियाँ करते चल रहे हैं, और उनकी मनमानियों पर मनोज फडनिस जिस तरह से आँखें बंद करके बैठे हुए हैं, उससे विजय गुप्ता का उक्त दावा लोगों को सच भी जान पड़ता है । इसके बावजूद विजय गुप्ता चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों की सुध नहीं ले रहे हैं । दीपक गर्ग रीजनल काउंसिल में होने के कारण फरीदाबाद में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों की फीस वाली समस्या को सीधे और तुरंत हल कर/करवा सकते हैं; रीजनल काउंसिल जब दूसरी जगहों पर छात्रों से फीस नहीं ले रही है, तो फिर फरीदाबाद में छात्रों से फीस बसूलने का वैसे भी कोई तर्क तो बनता नहीं है । दीपक गर्ग ने भी लेकिन अपने राजनीतिक गुरु विजय गुप्ता की तरह मामले पर चुप्पी ही साध ली है - और फरीदाबाद के लोगों से बचते/छिपते ही फिर रहे हैं । फरीदाबाद में कई लोगों की शिकायत है कि विजय गुप्ता और दीपक गर्ग तो उनके फोन ही नहीं उठा रहे हैं; और यदि कभी उठा भी लेते हैं तो यह कह कर बात सुनने/करने से बच लेते हैं कि अभी मैं बाहर हूँ या मीटिंग में हूँ, बाद में फोन करता हूँ - और उनका 'बाद में' कभी आता ही नहीं है । 
तेजिंदर भारद्वाज का मामला फरीदाबाद ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल ने खराब कर दिया । दरअसल तेजिंदर भारद्वाज ने बाहर तो अपना मत व्यक्त किया कि छात्रों से लायब्रेरी की फीस नहीं लेनी चाहिए, किंतु ब्रांच के चेयरमैन संतोष अग्रवाल ने यह कह कर उनकी पोल खोल दी कि फीस बसूलने के फैसले में तेजिंदर भारद्वाज की पूरी सहमति थी । लायब्रेरी फीस को लेकर तेजिंदर भारद्वाज का 'नेताओं वाला' दोहरा रवैया सामने आया, तो उनके लिए भारी मुसीबत खड़ी हो गई । इस मुसीबत से निपटने के लिए उन्होंने जो तरीका अपनाया, उससे बात वास्तव में और बिगड़ गई । इस मामले में बात करने/उठाने वाले लोगों पर उन्होंने आरोप लगाया कि वह राजनीति कर रहे हैं । इस पर उन्हें सुनने को मिला कि वह रीजनल काउंसिल में चुने जाने के लिए जो जो तिकड़में लगा रहे हैं, उसे क्या सत्संग करना कहते हैं; वह भी राजनीति ही है - और जिस तरह उन्हें राजनीति करने का हक़ है, ठीक उसी तरह दूसरों को भी राजनीति करने का हक है । तेजिंदर भारद्वाज ने यह तर्क देकर भी जान छुड़ाने की कोशिश की कि इस मामले में सवाल सिर्फ चार लोगों से ही क्यों किए जा रहे हैं, ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सभी ग्यारह सदस्यों से क्यों नहीं किए जा रहे हैं ? इसका जबाव उन्हें यह मिला कि जो चार लोग इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल में जाने की तैयारी कर रहे हैं, उनसे ही खासतौर पर इस मामले में सवाल यह जानने/समझने के लिए किए जा रहे हैं, जिससे कि उनका 'असली वाला चेहरा' लोगों के सामने आ सके । लायब्रेरी फीस मामले में तेजिंदर भारद्वाज चूँकि बाहर कुछ और भीतर कुछ और कहने के आरोपी बने, तो उसके कारण सवालों का फंदा उन पर कुछ ज्यादा कसता हुआ दिखा - इस फंदे से बचने की कोशिश में फिर उन्होंने चुप्पी साध लेने में ही अपनी भलाई देखी । 
विपिन शर्मा के रवैये ने लेकिन लोगों को, और खासतौर से उनके समर्थकों को ज्यादा निराश किया है । यह निराशा दरअसल इसलिए भी है, क्योंकि लोगों को उन्हीं से उम्मीद भी ज्यादा थी । ब्रांच में अपनी सक्रियता तथा सभी को विश्वास में लेकर काम करने के अपने तरीके से विपिन शर्मा ने फरीदाबाद में अपनी अच्छी साख बनाई है; जिसमें लायब्रेरी फीस मामले में विरोधी रवैया अपनाने के चलते उन्होंने और इजाफा ही किया है । लायब्रेरी फीस लागू करने के फैसले के प्रति अपना विरोध जता कर विपिन शर्मा ने फरीदाबाद के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपनी अच्छी पैठ बनाई है । किंतु इस मामले में वह चूँकि जुबानी जमा-खर्च से आगे बढ़ते हुए नहीं दिख रहे हैं, इसलिए वह लोगों के निशाने पर आ रहे हैं । विपिन शर्मा के समर्थकों ने उन्हें सलाह दी है कि उनके लिए मौका अच्छा है, जिसमें कि वह अपने समर्थन-आधार को और बढ़ा व मजबूत कर सकते हैं; उन्हें लायब्रेरी फीस मामले में आक्रामक रुख अपनाना चाहिए और रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों तथा इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के सामने सक्रियताभरा प्रतिनिधित्व करना चाहिए । समर्थकों को यह देख कर लेकिन निराशा हो रही है कि विपिन शर्मा इस मामले में ज्यादा सक्रियता दिखाने से बचने की ही कोशिश कर रहे हैं, और सिर्फ जुबानी समर्थन देने तक ही अपने को सीमित रखे हुए हैं । विपिन शर्मा के समर्थकों व शुभचिंतकों का मानना और कहना है कि लायब्रेरी फीस मामले में विजय गुप्ता, दीपक गर्ग और तेजिंदर भारद्वाज जिस तरह अलग-थलग पड़े हैं; उसे देखते हुए इस मामले के जरिए फरीदाबाद की राजनीति में अपना अच्छा मुकाम बनाने का विपिन शर्मा के पास बढ़िया मौका है । उनके बीच निराशा लेकिन इस बात को लेकर है कि विपिन शर्मा मौके का फायदा उठाने का प्रयास करने में कोई दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं । इस मामले में पड़ने और पड़ सकने वाले दबाव से बचने के लिए विपिन शर्मा ने भी इस मामले में ज्यादा बात करने से बचने वाला रवैया अपना लिया है ।
इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल व रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों ने फरीदाबाद ब्रांच में छात्रों पर थोपी गई लायब्रेरी फीस के मामले में जिस तरह से पूरी तरह उपेक्षा का, दोहरेपन का और सिर्फ बातों का रवैया अपनाया है - उससे लग रहा है कि यह मामला उनके गले में एक ऐसी हड्डी की तरह से फँस गया है, जिसे उनके लिए न उगलते बन रहा है और न निगलते ही बन रहा है ।