नागपुर । ब्रांच के स्थापना दिवस के समारोह में रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों की संख्या घटाने के कुछेक लोगों के प्रयास को जिस तरह से मुँहकी खानी पड़ी है, उसके कारण नागपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति आपसी होड़ की प्रतिस्पर्धा में प्रवेश करती दिखाई दे रही है । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में नागपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एकता वेस्टर्न रीजन में प्रशंसा और ईर्ष्या का विषय रही है । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से जुड़े फैसले नागपुर में जिस तरह से आपसी विचार-विमर्श से मिलजुल कर लिए जाते रहे हैं, वह वेस्टर्न रीजन के चुनावी खिलाड़ियों के लिए कभी प्रशंसा के तो कभी चिंता के विषय रहे हैं । वेस्टर्न रीजन के खिलाड़ी नेताओं ने पिछले वर्षों में नागपुर की इस एकता को तोड़ने की कुछेक बार जो कोशिशें कीं, वह बुरी तरह विफल रहीं हैं । लेकिन इस बार के चुनाव में नागपुर में की यह एकता बिखरती हुई नजर आ रही है - और इसकी अभिव्यक्ति या इसके सुबूत रीजनल काउंसिल के लिए प्रस्तुत चार लोगों की उम्मीदवारी में देखे/पहचाने जा रहे हैं । चुनावी राजनीति के गुणा-भाग को समझने वाला नागपुर का कमोवेश हर व्यक्ति मान रहा है और कह रहा है कि रीजनल काउंसिल के लिए नागपुर से इस बार दो सीट निकल सकती हैं - इसलिए आपस में विचार विमर्श करके दो लोगों की ही उम्मीदवारी प्रस्तुत होनी चाहिए, जिससे कि दो सीटों को सचमुच में सुरक्षित किया जा सके । इस संबंध में अभी तक जो भी प्रयास हो रहे थे, वह कामयाब होते हुए नहीं नजर आए - इसलिए ब्रांच के स्थापना दिवस समारोह में ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटी में अभी तक रहे लोगों के सम्मान के बहाने नागपुर के प्रमुख लोग जब इकट्ठा हुए, तो फिर रीजनल काउंसिल के लिए दो उम्मीदवार वाला मुद्दा उठा । मुद्दा उठा तो तरह तरह के फार्मूले सामने आए - लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद किसी फार्मूले पर सहमति नहीं बन सकी और रीजनल काउंसिल के उम्मीदवारों की संख्या घटाने के प्रयास एक बार फिर - और शायद अंतिम बार, फेल हो गए ।
इस असफलता में कुछेक लोगों को इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में नागपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एकता को ग्रहण लगता दिख रहा है । कुछेक लोगों का मानना और कहना हालाँकि यह है कि यह पिछली बार हुई 'राजनीति' का स्वाभाविक नतीजा है; इस बार नागपुर में उम्मीदवारी के बारे में फैसले करने की सामूहिक एप्रोच में जो बिखराब हुआ है - उसकी नींव वास्तव में पिछली बार ही पड़ गई थी । दरअसल पिछली बार राजेश लोया की पराजय के लिए राजेश लोया के समर्थकों ने जिस तरह से जुल्फेश शाह को जिम्मेदार ठहराया था, उससे नागपुर के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच एक विभाजक रेखा खिंच गई थी । जुल्फेश शाह और उनके समर्थकों ने इस आरोप की गंभीरता को नहीं समझा, और इसे राजेश लोया के समर्थकों की खीज मान कर अनदेखा कर दिया । पिछली बार का चुनावी नतीजा घोषित होने के तुरंत बाद से जिस तरह जुल्फेश शाह की तरफ से सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी का दावा किया/सुना जाने लगा, उसने राजेश लोया के समर्थकों के जले पर नमक छिड़कने का काम किया । जुल्फेश शाह के समर्थकों ने अभिजीत केलकर के समर्थकों/सहयोगियों के दूसरी वरीयता के वोट न मिलने की बात करते हुए धोखा देने का आरोप भी लगाया । उनका तर्क था कि अभिजीत केलकर को पहली वरीयता के जो 655 वोट मिले थे, उनके दूसरी वरीयता के वोट उन्हें मिलने चाहिए थे; किंतु जो उन्हें नहीं मिले । पिछली बार, चुनावी नतीजा आने के बाद आरोपों-प्रत्यारोपों का जो दौर चला था, उससे नागपुर में तलवारों के म्यान से बाहर निकल आने के संकेत मिलने लगे थे । इन संकेतों को या तो पहचाना नहीं गया, और या पहचान कर भी जिनकी अनदेखी कर दी गई ।
नागपुर में उभर रहे विभाजनकारी संकेतों को सतीश सारदा की उम्मीदवारी की प्रस्तुति से और बढ़ावा मिला । दरअसल अभिजीत केलकर चाहते थे कि रीजनल काउंसिल की इस बार की उनकी उम्मीदवारी में कोई विध्न-बाधा न पड़े, इसके लिए नागपुर में कोई और अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करे । सतीश सारदा ने लेकिन इस तर्क के साथ अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत की कि नागपुर में रीजनल काउंसिल के दो उम्मीदवारों को जिता लेने की क्षमता है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी से अभिजीत केलकर को चिंता करने की जरूरत नहीं है । नागपुर में रीजनल काउंसिल के दो उम्मीदवारों को जिता लेने की क्षमता होने के बावजूद अभिजीत केलकर पिछली बार चूँकि नहीं जीत पाए थे, इसलिए उन्होंने इस तर्क को 'स्वीकार' नहीं किया । यहाँ तक भी बात लेकिन ज्यादा नहीं बिगड़ी थी; बात ज्यादा तब बिगड़ी जब सतीश सारदा ने यह बताना शुरू किया कि उन्होंने तो पहले ही घोषणा कर दी थी कि जुल्फेश शाह जब रीजनल काउंसिल को छोड़ेंगे, तब वह रीजनल काउंसिल के लिए उम्मीदवार बनेंगे - इससे लोगों के बीच यह मैसेज गया कि सतीश सारदा की उम्मीदवारी के पीछे जुल्फेश शाह हैं । अभिजीत केलकर व दूसरे लोगों को भी लगा कि जुल्फेश शाह ने अभिजीत केलकर की राह में रोड़ा बिछाने की कोशिश के तहत ही सतीश सारदा की उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया/करवाया है । इससे फिर बात बिगड़ गई, और परस्पर अविश्वास का भाव पैदा हुआ तथा फैसले करने/लेने की सामूहिक भावना मिट गई । अश्विन अग्रवाल और स्वप्निल अग्रवाल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति ने इस प्रक्रिया को और तेज कर दिया ।
इस प्रक्रिया के तेज होने का एक कारण यह भी है कि नागपुर में रीजनल काउंसिल के लिए जिन चार लोगों की उम्मीदवारी सामने आई है, उनके समर्थकों को उनके जीतने का पूरा पूरा विश्वास है; और इसलिए समर्थक अपने अपने उम्मीदवार को पीछे करने को हरगिज तैयार नहीं हैं । रीजनल काउंसिल के संदर्भ में नागपुर में इस बार मजेदार सीन यह है कि चुनावी राजनीति के होशियार खिलाड़ी भी किसी एक की जीत को लेकर पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं । अलग अलग कारणों से चारों को जीतने वाले उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है - और माना जा रहा है कि सफल होने वाले उम्मीदवार की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह अपनी खूबियों के प्रति लोगों को किस हद तक प्रभावित कर पाता है, और चुनावी समीकरणों को अपने पक्ष में किस तरह से मैनेज करता है । ब्रांच के स्थापना दिवस समारोह में ब्रांच की मैनेजमेंट कमेटि(यों) में रहे लोगों को सम्मानित करने के लिए जुटे लोगों के बीच जिस तरह से बातें हुईं और लोग खेमों में बँटे नजर आए, उससे एक बात जरूर साफ हो गई है कि पिछली बार हुई राजेश लोया की पराजय तथा उस पराजय के लिए जुल्फेश शाह को जिम्मेदार ठहराए जाने की चर्चा ने नागपुर में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की एकता को जो चोट पहुँचाई है, उसकी छाया रीजनल काउंसिल के चुनाव पर भी पड़ती दिख रही है । यह छाया क्या राजनीतिक समीकरण बनाती है, और कौन उम्मीदवार इस समीकरण को बनाने में क्या भूमिका निभाता है और कैसे इसे इस्तेमाल करता है - इस पर उसकी सफलता निर्भर करेगी ।