Thursday, September 17, 2015

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3120 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति की आड़ में राजा साबू से फायदा उठाने की उम्मीद में प्रदीप मुखर्जी ने अभी तक अपना रवैया स्पष्ट नहीं किया है - और राजीव माहेश्वरी तथा उनके समर्थकों को असमंजस में डाला हुआ है

इलाहाबाद । प्रदीप मुखर्जी के असमंजसभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी का मामला लगातार उलझता ही जा रहा है । राजीव माहेश्वरी के नजदीकियों के अनुसार, प्रदीप मुखर्जी ने राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने का वायदा तो कर लिया है, किंतु राजीव माहेश्वरी से किए गए अपने इस वायदे को लेकर वह सार्वजनिक रूप से कुछ भी कहने से बच रहे हैं । राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी का झंडा उठा लेने से बचने के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रदीप मुखर्जी तर्क दे रहे हैं कि अभी बहुत समय है, और अभी से यह सब नहीं शुरू करना चाहिए । राजीव माहेश्वरी के समर्थकों का कहना है कि पिछले वर्षों में तो प्रदीप मुखर्जी बहुत पहले से 'अपने' उम्मीदवार के लिए काम शुरू कर देते रहे हैं, और अब वह देर पर देर होते जाने के बावजूद भी 'बहुत समय' होने का तर्क दे रहे हैं । प्रदीप मुखर्जी के इस दोहरे रवैये में राजीव माहेश्वरी के समर्थकों को 'धोखा' नजर आ रहा है; और उन्हें लग रहा है कि प्रदीप मुखर्जी उनके साथ कोई खेल खेल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की चाबी चूँकि प्रदीप मुखर्जी के पास ही देखी/मानी जाती है, इसलिए प्रदीप मुखर्जी के टालू रवैये ने राजीव माहेश्वरी के नजदीकियों व समर्थकों को चिंता में डाला हुआ है, और उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि प्रदीप मुखर्जी आखिरकार खिचड़ी क्या पका रहे हैं ? प्रदीप मुखर्जी के रवैये से निराश व परेशान हो रहे राजीव माहेश्वरी के समर्थकों का हालाँकि यह भी मानना और कहना है कि प्रदीप मुखर्जी के पास राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी का समर्थन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, लेकिन फिर भी प्रदीप मुखर्जी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर अपनी राजनीति अभी तक भी 'घोषित' नहीं कर रहे हैं - इसलिए सारा मामला राजीव माहेश्वरी के लिए ही नहीं, बल्कि दूसरों के लिए भी संदेहास्पद होता जा रहा है ।
राजीव माहेश्वरी के समर्थक यदि यह मान रहे हैं कि प्रदीप मुखर्जी के पास राजीव माहेश्वरी का समर्थन करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं है, तो इसके दो कारण हैं : एक कारण तो यह कि राजीव माहेश्वरी उसी रोटरी क्लब इलाहाबाद मिडटाउन के सदस्य हैं, जो प्रदीप मुखर्जी का क्लब है । ऐसे में, प्रदीप मुखजी यदि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं करते हैं, तो क्लब में राजीव माहेश्वरी के नजदीकी प्रदीप मुखर्जी के लिए मुश्किलें खड़ी कर देंगे । दूसरा कारण लेकिन ज्यादा महत्वपूर्ण है, और वह यह कि राजीव माहेश्वरी डिस्ट्रिक्ट में रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के भान्जे के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । राजा साबू का रोटरी में जो रुतबा है, उसे प्रदीप मुखर्जी भी निश्चित रूप से जानते/समझते हैं - और इसलिए वह ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे कि राजा साबू नाराज हों और फिर बदले में वह प्रदीप मुखर्जी के लिए रोटरी के दरवाजे बंद करने में जुटें । राजीव माहेश्वरी के कुछेक समर्थकों का तो दावा है कि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी के बारे में 'मामा जी' राजा साबू की प्रदीप मुखर्जी से बात भी हो गई है, और 'मामा जी' ने राजीव माहेश्वरी को आश्वस्त भी कर दिया है । इसके बावजूद, राजीव माहेश्वरी के समर्थकों को प्रदीप मुखर्जी का रवैया ठीक नहीं लग रहा है । माना जा रहा है कि जिन दो कारणों को राजीव माहेश्वरी की 'ताकत' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, वही दो कारण वास्तव में उनकी कमजोरी भी हैं । प्रदीप मुखर्जी के नजदीकियों का कहना है कि प्रदीप मुखर्जी इस बात को लेकर बहुत आशंकित हैं कि उनके क्लब में उनके और सतपाल गुलाटी के बाद एक और गवर्नर हो जाए । भविष्य की राजनीति के संदर्भ में वह इसे अपने लिए एक खतरे के रूप में देख रहे हैं । और जहाँ तक राजा साबू वाला ऐंगल है, तो प्रदीप मुखर्जी को राजा साबू की तरफ से अभी यह नहीं बताया गया है कि उनके भान्जे को गवर्नर बनवाने के बदले में राजा साबू उन्हें क्या ईनाम देंगे । प्रदीप मुखर्जी की एक बड़ी शिकायत यह है कि रोटरी में उन्हें वह मुकाम नहीं मिला है, जिसके कि वास्तव में वह हकदार हैं । डिस्ट्रिक्ट्स के नेताओं में प्रदीप मुखर्जी का जलवा ज्यादा बड़ा है, किंतु फिर भी रोटरी में उन्हें वह पहचान और तवज्जो नहीं मिली है, जो कुछेक दूसरे डिस्ट्रिक्ट-नेताओं को मिली है । राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी में प्रदीप मुखर्जी को राजा साबू के साथ 'सौदा' करके अपनी इस शिकायत को दूर करने का बढ़िया मौका मिला है, और इस मौके का पूरा पूरा फायदा उठाने के लिए ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई को लेकर अपने पत्ते अभी तक छिपाए हुए हैं और कुछ भी कहने से बच रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि रोटरी की राजनीति में प्रदीप मुखर्जी को कल्याण बनर्जी व शेखर मेहता के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इनके सहारे प्रदीप मुखर्जी अपने काम तो कराते रहे हैं - जैसे एक बड़ा काम उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हारे हुए सतपाल गुलाटी को गवर्नर 'बनवाने' का किया - लेकिन रोटरी की बड़ी 'बैठक' में उनकी खास पहचान नहीं बन सकी है । प्रदीप मुखर्जी को इस बात का बड़ा मलाल है । राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी में उन्हें राजा साबू के साथ तार जोड़ने का जो अवसर दिख रहा है, वह अवसर उन्हें उनका मलाल दूर करने का संकेत भी दे रहा है । समस्या लेकिन यहाँ यह है कि राजा साबू का लोगों से काम कराने का अपना स्टाइल है - वह खुद सामने आने की बजाए अपने 'दूतों' से माहौल बनवाते हैं । राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी के मामले में भी उन्होंने माहौल तो बनवा दिया है; और उम्मीद में हैं कि प्रदीप मुखर्जी अब उनके 'काम' में जुट जायेंगे । प्रदीप मुखर्जी किंतु चाहते हैं कि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी को लेकर राजा साबू उनसे सीधी बात करें, ताकि उन्हें भी समझने का मौका मिले कि राजीव माहेश्वरी के लिए काम करके आखिर उन्हें क्या मिलेगा ? प्रदीप मुखर्जी की इस चाहत को समझने वाले लोगों का कहना है कि प्रदीप मुखर्जी ने लगता है कि राजा साबू को ठीक से समझा/पहचाना नहीं है, और इसलिए ऐसी चाहत कर रहे हैं, जिसका पूरा होना संभव नहीं है । दूसरे लोग भले ही ऐसा सोच और कह रहे हों, किंतु प्रदीप मुखर्जी को विश्वास है कि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी को लेकर राजा साबू अवश्य ही उनसे सीधी बात करेंगे । ऐसा हो - इसीलिए प्रदीप मुखर्जी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की राजनीति के संदर्भ में अभी तक अपना रवैया स्पष्ट नहीं किया है - और राजीव माहेश्वरी तथा उनके समर्थकों को वह असमंजस में डाले हुए हैं । 
प्रदीप मुखर्जी को यह विश्वास इसलिए है क्योंकि वह जानते हैं कि अपने 'स्टाइल' के चक्कर में राजा साबू को अपने डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी में भारी फजीहत का शिकार होना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट - रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में पिछले रोटरी वर्ष में हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू के इशारे और उनके दूतों के प्रयासों के बावजूद नोमीनेटिंग कमेटी में अधिकृत उम्मीदवार के रूप में जब टीके रूबी को चुन लिया गया, तो राजा साबू ने इस फैसले को बदलने के लिए तिकड़में लगाईं । करीब पाँच महीने तक पर्दे के पीछे से राजा साबू ने जो तिकड़में लगाईं, वह सब एक एक करके फेल होती गईं । पाँच महीनों में अपनी भारी थुक्का-फजीहत कराने के बाद राजा साबू को समझ में आया कि पर्दे के पीछे रह कर काम नहीं बनेगा, और तब वह अपने फौज-फाटे के साथ पर्दे के सामने आने के लिए मजबूर हुए । खुली बेशर्मीभरी 'बेईमानी' के साथ कार्रवाई करते हुए राजा साबू अपना मनमाफिक फैसला करवाने में तो अंततः सफल हुए हैं, लेकिन इस सफलता ने उनके 'ऑरा' को धूल में मिला दिया है । (इस बारे में जो कोई विस्तार से जानना चाहे, वह 'रचनात्मक संकल्प' की पिछले करीब छह महीनों की रिपोर्ट्स को देख सकता है ।) इस मामले में, कई लोगों को लगता है कि राजा साबू यदि समय रहते माहौल को ठीक से परख लेते और समझ लेते कि पर्दे के पीछे रह कर उनका काम नहीं बनेगा, और उन्हें अपना काम बनाने के लिए पर्दे के सामने आना ही पड़ेगा, तो संभव है कि उनकी इतनी फजीहत न होती । इसी बिना पर प्रदीप मुखर्जी को विश्वास है कि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी के संदर्भ में राजा साबू ज्यादा देर तक इंतजार नहीं करेंगे, तथा जल्दी ही पर्दे के सामने आने के लिए मजबूर होंगे - और तब वह राजा साबू के साथ सीधी 'बात' कर लेंगे । प्रदीप मुखर्जी को ही नहीं, दूसरे कई लोगों को भी लगता है कि राजीव माहेश्वरी की उम्मीदवारी के संदर्भ में राजा साबू 'कंस मामा' नहीं, बल्कि 'शकुनि मामा' साबित होंगे, तथा अपने भान्जे को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) पद की गद्दी दिलवाने के लिए कुछ भी कसर नहीं छोड़ेंगे । इसी का इंतजार करते हुए प्रदीप मुखर्जी ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में अपनी भूमिका को लेकर अभी तक चुप्पी साधी हुई है, और असमंजस बनाया हुआ है ।