Thursday, February 28, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में चेयरमैन बने हरीश चौधरी की धोखेबाजी तो सभी को नजर आ रही है, लेकिन सातवाँ धोखेबाज अभी भी 'छिपा' बैठा है; सातवें वोटर के रूप में कुछेक लोग अविनाश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कई लोग अजय सिंघल को 'देखते' हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन की चुनावी राजनीति में हरीश चौधरी ने कुछ ही मिनटों में ऐसा रंग बदला कि काउंसिल में धोखेबाजी और दगाबाजी के अभी तक के सारे किस्से फीके पड़ गए - और हरीश चौधरी ने मौकापरस्ती का अनोखा रिकॉर्ड बनाया । हरीश चौधरी पहले तो 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' में चेयरमैन पद के चुनाव में उम्मीदवार बनते हैं, और अपने नाम की पर्ची डलवाते हैं - लेकिन वहाँ जब वह चेयरमैन नहीं चुने जाते हैं, तो कुछ ही मिनटों के बाद काउंसिल के 13 सदस्यों के बीच होने वाले चुनाव में सभी को आश्चर्य में डालते हुए वहाँ उम्मीदवार बन जाते हैं और 7 - 6 से चेयरमैन का चुनाव जीत लेते हैं । घटनाक्रम के सीक्वेन्स तथा उसके समयांतराल को देखें तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि हरीश चौधरी ने धोखेबाजी की स्क्रिप्ट पहले से तैयार करके रखी थी - पहले तो वह अपने आप को 'आठ सदस्यीय सत्ता खेमे' के साथ दिखाते रहे, लेकिन वहाँ जब उनकी दाल नहीं गली, तो उन्होंने अपने दूसरे प्लान पर काम किया और चेयरमैन का पद हासिल कर लिया । कुछेक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तरफ से सुनने को मिला कि वह पिछले कई वर्षों से चेयरमैन बनने वाले को बधाई देते आ रहे हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि हरीश चौधरी को बधाई देने का उनका मन नहीं हुआ; उन्हें लगा कि धोखेबाजी से चेयरमैन का पद पाने वाले हरीश चौधरी को बधाई देना प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की तौहीन करना ही होगा । वैसे हरीश चौधरी की धोखेबाजी की हरकत पर हैरान होने वाले लोगों को 'रचनात्मक संकल्प' की 25 जनवरी की रिपोर्ट को फिर से पढ़ लेना चाहिए, जिसमें कह दिया गया था कि आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप में कुछेक सदस्य तो पहले ही वर्ष में चेयरमैन बनना चाहते हैं, और इसके लिए पाला बदलने से भी परहेज नहीं करेंगे और ग्रुप की एकता बनाये रखना मुश्किल ही होगा । हरीश चौधरी ने 34 दिन पहले 'रचनात्मक संकल्प' की कही गई बात को सच साबित कर दिखाया गया है ।
मजे की, लेकिन गंभीर बात यह है कि हरीश चौधरी की धोखेबाजी तो सभी को नजर आ रही है - लेकिन सातवाँ धोखेबाज अभी भी 'छिपा' बैठा है । माना/समझा जा रहा है कि हरीश चौधरी को 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' से बाहर के पाँच सदस्यों का समर्थन तो मिला ही है - लेकिन यह बात पहेली ही बनी हुई है कि उन्हें सातवाँ वोट किसका मिला है । हरीश चौधरी की धोखेबाजी का मुख्य शिकार बने रतन सिंह यादव तथा अन्य कुछेक लोग सातवें वोटर के रूप में अविनाश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कई लोग अजय सिंघल को 'देखते' हैं । 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' में हरीश चौधरी, रतन सिंह यादव, अविनाश गुप्ता व अजय सिंघल को चेयरमैन पद के लिए ज्यादा लालायित देखा/पहचाना जा रहा था । इनके बीच होड़ केवल चेयरमैन बनने को लेकर ही नहीं है; अपने आपको ज्यादा से ज्यादा जेनुइन और प्रभावी दिखाने की होड़ भी है । यह चारों लोग हालाँकि दूसरी बार में रीजनल काउंसिल का चुनाव जीते हैं, लेकिन चारों ही समझते यह हैं कि जैसे इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े तुर्रमखाँ यही हैं । ऐसे में, चारों ही एक दूसरे को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते हैं । इन्होंने ग्रुप तो बना लिया, लेकिन अपने आप को दूसरों से आगे और बड़ा दिखाने की कोशिशों में भी लगे रहे - दरअसल यही कारण है कि सातवें वोटर के रूप में अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल को ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि पर्चीबाजी में रतन सिंह यादव का नाम निकलने की बात को अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल हजम नहीं कर पाए और हरीश चौधरी की धोखेबाजी के खेल में शामिल हो गए । यह बात यद्यपि अभी भी साफ नहीं है कि हरीश चौधरी को चेयरमैन चुनवाने में मदद करने वाला सातवाँ समर्थक/वोटर वास्तव में कौन है ?
रतन सिंह यादव के नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव धोखेबाजी के लिए हरीश चौधरी के साथ-साथ अविनाश गुप्ता को कोस रहे हैं - लेकिन पब्लिकली वह जो हुआ, उसे डेमोक्रेटिक वैल्यूज की जीत बता रहे हैं । रतन सिंह यादव का यह मजेदार किस्म का मसखरापन है - पहले तो वह डेमोक्रेटिक वैल्यूज का 'बलात्कार' करते हुए 13 सदस्यों के बीच आठ सदस्यों का ग्रुप बनाते हैं, 13 की बजाये आठ लोगों के बीच चेयरमैन का चुनाव पर्चीबाजी से करने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं; और फिर 'फिसल पड़े तो हरगंगे' की तर्ज पर डेमोक्रेटिव वैल्यूज का लिहाफ ओढ़ लेते हैं । लोगों का कहना है कि रतन सिंह यादव की अतिमहत्त्वाकाँक्षा और उस महत्त्वाकाँक्षा को पूरा करने के लिए की गईं मसखरेपन व फूहड़ किस्म की हरकतें ही रतन सिंह यादव को ले डूबीं और उनके हाथ में लगभग आ चुकी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चेयरमैनी फिसल गई । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए टर्म के लिए चुने गए सदस्यों में हालाँकि कई लोगों की चेयरमैन पद पर निगाह थी, और वह अपने अपने तरीके से गोटियाँ सेट करने में लगे थे - लेकिन रतन सिंह यादव इस मामले में बेहद फूहड़ तरीके से जुटे थे, और उनके नजदीकियों व समर्थकों ने माहौल को और भी हास्यास्पद बनाया हुआ था । उनके नजदीकियों और समर्थकों ने पिछले कई दिनों से उन्हें 'चेयरमैन साब' कहना शुरू किया हुआ था, और यह सुन सुन कर रतन सिंह यादव गदगद हुआ करते थे । खुद रतन सिंह यादव तर्क भी देते थे कि नई रीजनल काउंसिल के सदस्यों में वह चूँकि सबसे 'बूढ़े' हैं, इसलिए उन्हें चेयरमैन बना देना चाहिए । रतन सिंह यादव को नजदीक से जानने वाले कुछेक लोगों का कहना/बताना है कि नई काउंसिल में चुने गए लोगों में रतन सिंह यादव ही सबसे जेनुइन व गंभीर व्यक्ति हैं, लेकिन अपने व्यवहार और अपनी बातों में वह तालमेल नहीं बना पाते हैं; उनके कुछेक घनघोर किस्म के समर्थक तो और भी माशाल्लाह हैं - रतन सिंह यादव तथा उनके घनघोर किस्म के समर्थक अपने तरीकों व अपनी बातों से रतन सिंह यादव की भद्द पिटवाते रहते हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की नई पारी जिस अप्रत्याशित धमाके के साथ शुरू हुई है, उसे देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि रीजनल काउंसिल में आगे भी नए नए तमाशे देखने को मिलते रहेंगे ।

Wednesday, February 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर उनके अपने क्लब में मचा घमासान अंततः शांत हुआ और सर्वसम्मति से उनकी उम्मीदवारी घोषित हुई

नई दिल्ली । लंबी ऊहापोह के बाद, मुसीबत में घिरे/फँसे रोटरी क्लब दिल्ली विकास ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी है । सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर क्लब में ही जो राड़ मची हुई थी, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच क्लब की भी काफी बदनामी हो रही थी । रोटरी क्लब दिल्ली विकास डिस्ट्रिक्ट का सिर्फ सबसे बड़ा क्लब ही नहीं है, बल्कि साख और प्रतिष्ठा के मामले में भी इसकी विशेष पहचान है । चूँकि बड़ा क्लब है, इसलिए विचारों और तौर-तरीकों के मामले में विभिन्नता व विविधता के कई कई रूप इसमें सहज ही देखने को मिलते हैं - जिनमें कई दफा टकराव होता भी नजर आता है; लेकिन क्लब की साख व प्रतिष्ठा इसीलिए बनी हुई है कि समय समय पर पैदा होने वाले टकरावों ने कभी भीषण रूप नहीं लिया, और जब कभी लगा कि मामला भीषण रूप लेने जा रहा है - तभी क्लब के संबद्ध सदस्यों ने क्लब की साख व प्रतिष्ठा के प्रति सम्मान दिखाते हुए मामले को यू टर्न दे दिया और हालात सामान्य बना दिए । इस बार भी ऐसा ही हुआ - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर क्लब में भारी खींचतान थी, जिसे देख/सुन कर लग रहा था कि इस बार क्लब अपनी साख व प्रतिष्ठा की पहचान को खो देगा - लेकिन एक बार फिर ऐसा हुआ कि मामला बिगड़ते बिगड़ते सँभल गया; और सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली विकास की तरफ से सर्वसम्मति से हरी झंडी मिल गई ।
इस बार का फच्चर हालाँकि खासा गहरा फँसा था । दरअसल बड़ा क्लब होने के कारण, क्लब के कई सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने/होने के आकाँक्षी हैं । समस्या लेकिन यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के सभी आकाँक्षी सिर्फ आकाँक्षा पाले रहे और इसे व्यावहारिक रूप देने में वास्तव में विफल रहे । इसके चलते क्लब में माहौल यह बन गया था कि क्लब में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का जो नया आकाँक्षी बनता, पुराने आकाँक्षी मिलकर उसकी टाँग खींचने लगते और उसे आगे बढ़ने से रोक देते । पिछले कुछेक वर्षों में रोटरी क्लब दिल्ली विकास के जिस किसी सदस्य ने भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की आकाँक्षा दिखाई, उसे क्लब में ही इतने विरोधों का सामना करना पड़ा कि उसकी आकाँक्षा को दम ही तोड़ना पड़ा । क्लब में हर वर्ष यह दिलचस्प नजारा देखने को मिलता कि शुरू में तो क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रेसीडेंट की तारीफ करने तथा उसे उत्साहित करने के लिए कहते कि वह तो गवर्नर मैटेरियल हैं, और उसे गवर्नर बनने की दिशा में बढ़ना चाहिए; इस तरह की बातें सुनकर प्रेसीडेंट बेचारा जब सचमुच गवर्नर बनने की दिशा में आगे बढ़ने लगता - तो उसे गवर्नर मैटेरियल बताने वाले लोग ही उसकी टाँग खींचने में जुट जाते । इसीलिए हर तरह से बड़ा, प्रमुख और समर्थ होने के बावजूद, रोटरी क्लब दिल्ली विकास अभी तक डिस्ट्रिक्ट को एक गवर्नर नहीं दे सका है । 
इस बार का नजारा भी पिछली बार के नजारों जैसा ही था - सुनील मल्होत्रा में पहले तो खूब हवा भरी गई, जिसके चलते सुनील मल्होत्रा ने क्लब के प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ एक भावी उम्मीदवार के रूप में भी अपनी सक्रियता को संयोजित किया; लेकिन जब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की तरफ सचमुच अपने कदम बढ़ाये, तो उनकी कमियों और कमजोरियों की बातें करके उन्हें हतोत्साहित करने का खेल शुरू हुआ । इस बार के नजारे में लेकिन एक ट्विस्ट भी था, और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के नए आकाँक्षी के रूप में सुनील मल्होत्रा ने आसानी से हार मानने का रवैया नहीं दिखाया और क्लब में पैदा हुई प्रतिकूल स्थितियों का सामना करने का निश्चय प्रकट किया । सुनील मल्होत्रा को अपने इसी रवैये का फायदा भी मिला - मजे की बात यह हुई कि क्लब में जो लोग उनकी उम्मीदवारी को लेकर संदेह प्रकट करते हुए विरोध कर रहे थे, अंततः वही उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तावक व समर्थक बने । गौर करने की महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह है कि सुनील मल्होत्रा को क्लब के प्रेसीडेंट का पद भी आसानी से नहीं मिला था; क्लब के प्रेसीडेंट का पद भी वह अपनी जिद भरी निरंतर सक्रियता, अपने उदार व्यवहार और किस्मत के भरोसे पा सके थे; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए क्लब के सदस्यों की सर्वसम्मत सहमति भी उन्हें अपनी जिद भरी निरंतर सक्रियता, अपने उदार व्यवहार व किस्मत के भरोसे ही प्राप्त हुई है । इस तथ्य ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को एक खास 'वजन' दे दिया है । सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को मिले इस वजन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है ।

Tuesday, February 26, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस 'बेचने' की तैयारी और अजय डैंग के बगावती तेवर से बिगड़ते दिख रहे हालात संभालने के मामले में इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह खुद कोई होशियारी दिखायेंगे क्या ?

कानपुर । अभिनव सिंह की उम्मीदवारी के जरिए पैसे ऐंठने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम की तैयारी के बीच अजय डैंग व राजीव बब्बर की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा करने के संकेत दिए हैं । इन संकेतों में एक डर यह भी छिपा दिख रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह ने यदि होशियारी से काम नहीं लिया, तो सिर्फ डिस्ट्रिक्ट ही नहीं - बल्कि लायन लीडरशिप भी एक बड़ी मुसीबत में फँस जा सकती है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के चुनावी समीकरण में जो 'रोटियाँ' सिंकती दिख रही हैं, उसमें चूँकि अजय डैंग के लिए कोई जगह बनती नहीं दिख रही है - इसलिए उनके द्वारा की गई अदालती कार्रवाई की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है और डिस्ट्रिक्ट व लायन लीडरशिप के लिए मामला अटकता/उलझता बन जाता है । असल में अजय डैंग और दीपकराज आनंद द्वारा की गई अदालती कार्रवाई में दीपकराज आनंद के साथ तो लीडरशिप ने 'सौदा' कर लिया, जिसके चलते दीपक राज आनंद ने अपने आपको अदालती कार्रवाई से अलग कर लिया - लेकिन अजय डैंग को लीडरशिप ने कोई तवज्जो नहीं दी, जिसके कारण उनकी कार्रवाई अभी खड़ी हुई है । अजय डैंग बनाम नवीन गुप्ता मामले में अदालत ने पिछले लायन वर्ष में हुए चुनाव में 'स्टेटस क्वो' का फैसला दिया हुआ है और आगे की कार्रवाई पर रोक लगाई हुई है; ऐसे में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनाव अधर में है । नवीन गुप्ता ने अपने आपको फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार घोषित करके अजय डैंग और उनके साथियों/समर्थकों को भड़का और दिया है । अजय डैंग के तेवर देख कर अंदाजा लग रहा है कि लीडरशिप ने उनके साथ यदि कोई सम्मानजनक समझौता नहीं किया, तो वह अदालती कार्रवाई के जरिये नाक में दम करने का काम तो करेंगे ही । 
इसी स्थिति में इंटरनेशनल डायरेक्टर जेपी सिंह की भूमिका महत्त्वपूर्ण हो जाती है । डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ नेता लोग जेपी सिंह के अभी तक के रवैये से तो असंतुष्ट हैं । उनका कहना है कि जेपी सिंह ने डिस्ट्रिक्ट के नाजुक बने हालात को ठीक से समझने की ही कोशिश नहीं की है; और पूरी तरह पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना के भरोसे ही रहे हैं - जो डिस्ट्रिक्ट के हालात को बद से बदतर बनाने के लिए जिम्मेदार हैं । डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ नेताओं का कहना/बताना है कि जेपी सिंह ने यदि अपनी लीडरशिप क्वालिटी नहीं इस्तेमाल की और विनोद खन्ना जैसे ही रंग-ढंग दिखाए - तो डिस्ट्रिक्ट में हालात सामान्य बनाना मुश्किल ही होगा । हालात सामान्य बनाने में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वंदना निगम का रवैया भी एक बड़ी बाधा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वंदना निगम का अभी तक का समय तो सिर्फ स्यापा करने, दूसरों को उपेक्षित व अपमानित करने में ही बीता है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वंदना निगम की बस एक ही 'उपलब्धि' रही है - और वह यह कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स डीपी सिंह व किरन सिंह के बेटे अभिनव सिंह उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में मिल गए हैं, जिनसे पैसे ऐंठना उन्होंने शुरू कर दिया है । डिस्ट्रिक्ट में आरोपपूर्ण चर्चा है कि वंदना निगम ने तीसरी कैबिनेट मीटिंग तो सिंह दंपति को 'बेच' ही दी; और अब डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस भी उन्हें 'बेचने' के लिए सौदेबाजी कर रही हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए होने वाले चुनाव के लिए प्रस्तुत की जा रही राजीव बब्बर की उम्मीदवारी के चलते बनते दबाव के कारण वंदना निगम को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के लिए अच्छे 'दाम' मिलने की उम्मीद बँधी है ।
राजीव बब्बर ने अभी हाल ही में कानपुर का दौरा करके कानपुर के बड़े और प्रमुख क्लब्स का समर्थन जुटाने का प्रयास किया है; उनके कानपुर दौरे से ठीक पहले डीपी सिंह भी कानपुर आ कर कुछेक बड़े नेताओं से मिले हैं और उन्होंने अभिनव सिंह के लिए माहौल बनाने का काम किया है । राजीव बब्बर के पिता पीसी बब्बर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, लेकिन राजीव बब्बर अपनी 'लड़ाई' खुद लड़ते दिख रहे हैं, जबकि अभिनव सिंह की तरफ से उनके पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पिता डीपी सिंह मोर्चा संभाले नजर आ रहे हैं - इससे राजीव बब्बर की तुलना में अभिनव सिंह का पलड़ा फिलहाल हल्का पड़ता लग रहा है । अभिनव सिंह के शुभचिंतकों का ही कहना है कि अभिनव सिंह ने उम्मीदवार के रूप में अपनी सक्रियता नहीं दिखाई और पिताजी के भरोसे ही रहे, तो उनके लिए राजीव बब्बर के मुकाबले टिक पाना मुश्किल होगा । इसके आलावा, वंदना निगम पर निर्भरता के चलते - अभिनव सिंह के सामने वंदना निगम के विरोधियों की नाराजगी झेलने का भी खतरा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने कार्य-व्यवहार से वंदना निगम ने डिस्ट्रिक्ट में अपने विरोधियों की संख्या में काफी इजाफा ही किया है; जिनकी नाराजगी का ठीकरा अभिनव सिंह के सिर पर ही फूटने का खतरा है । अभिनव सिंह की उम्मीदवारी के पक्ष में लेकिन एक स्थिति बहुत अनुकूल है, और  वह यह कि तीनों पदों के लिए झाँसी के उम्मीदवारों ने ताल ठोकी हुई है, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट में झाँसी के उम्मीदवारों के खिलाफ भावनात्मक प्रतिक्रिया है और लोगों का कहना है कि तीनों प्रमुख पद झाँसी वालों को ही चाहिए क्या ? यह आरोपपूर्ण सवाल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि अगले लायन वर्ष में बलविंदर सिंह सैनी अपने गवर्नर-वर्ष में संजय सिंह को उम्मीदवार बनाने की तैयारी करते सुने जा रहे हैं । ऐसे में, अभिनव सिंह की उम्मीदवारी के साथ हमदर्दी रखने वाले उनके शुभचिंतकों का मानना/कहना है कि झाँसी से तीनों पदों के उम्मीदवार होने के कारण झाँसी के उम्मीदवारों के प्रति कानपुर तथा अन्य शहरों के लोगों के बीच विरोध व नाराजगी का जो भाव है, उसका फायदा उठाने के लिए अभिनव सिंह को अपनी उम्मीदवारी के अभियान को गंभीरता से लेने की जरूरत है ।

Monday, February 25, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में एमपी गुप्ता की फील्डिंग के सामने राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बनाये रखने के मामले में अपने आप को बेबस पाया और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में बिजनेस सेशन शुरू होने से ठीक पहले हेमंत अरोड़ा का इस्तीफा ले लिया

चंडीगढ़ । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट और डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स में फर्जीवाड़ा करने के आरोपों से घिरे हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाये जाने के खिलाफ जो अभियान शुरू किया था, अंततः वह रंग लाया - और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के दौरान हेमंत अरोड़ा डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी की सदस्यता से इस्तीफा देने के लिए मजबूर हुए । राजा साबू  और उनके साथियों के भरपूर समर्थन के बावजूद हेमंत अरोड़ा कुल चार-पाँच महीने ही डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के सदस्य बने रह सके । मजे की बात यह रही कि हेमंत अरोड़ा को जिस गुपचुप तरीके से डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाया गया था, उसी गुपचुप तरीके से कमेटी से उनकी विदाई भी हुई । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बिजनेस सेशन में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अरुण शर्मा ने हेमंत अरोड़ा के मामले से जुड़े एमपी गुप्ता के क्लब के प्रस्ताव के वापस होने की जानकारी तो लोगों को दी, लेकिन हेमंत अरोड़ा के इस्तीफे की बात को वह 'पी' गए - सच्चाई जबकि यही है कि हेमंत अरोड़ा के इस्तीफा दे देने के बाद एमपी गुप्ता के क्लब के प्रस्ताव की कोई प्रासंगिकता ही नहीं रह गई थी, और इसीलिए उसे वापस ले लिया गया था । जानकारियों को डिस्ट्रिक्ट के लोगों से छिपा कर रखने की राजा साबू गिरोह के सदस्यों की प्रवृत्ति का प्रदर्शन करते हुए अरुण शर्मा ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लेकिन आधी-अधूरी बात ही बताई । उल्लेखनीय है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स तमाम महत्त्वपूर्ण बातें - खासकर डिस्ट्रिक्ट के तमाम प्रोजेक्ट्स व ट्रस्ट के हिसाब-किताब से जुड़ी बातें डिस्ट्रिक्ट के लोगों से - यहाँ तक कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स तक से - छिपा कर रखते हैं, जिसे लेकर निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी को रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायत करने के लिए मजबूर होना पड़ा था; और जिसके चलते प्रोजेक्ट्स से जुड़े पैसों के मामले में राजा साबू और उनसे जुड़े पूर्व गवर्नर्स की भूमिका को संदेह से देखा जाता है । 
दरअसल इसी कारण से हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने से मामला भड़का हुआ था, और हेमंत अरोड़ा को फाइनेंस कमेटी से हटाने की माँग की जा रही थी । एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को पत्र लिख कर हेमंत अरोड़ा के वर्ष 2014-15 के कार्य-व्यवहार का उदाहरण देते हुए उन्हें डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने पर अपनी आपत्ति दर्ज करवायी थी और हेमंत अरोड़ा के उस कृत्य को ध्यान में रखते हुए उन्हें तुरंत प्रभाव से डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटाए जाने की माँग की थी । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स इस तरह की माँग पर ध्यान नहीं देते हैं, लिहाजा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल ने भी उक्त माँग पर ध्यान नहीं दिया । तब एमपी गुप्ता के क्लब - रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल ने हेमंत अरोड़ा से जुड़े इस मामले को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उठाने को लेकर एक प्रस्ताव भेजा । राजा साबू की शह पर लेकिन प्रवीन गोयल ने उक्त प्रस्ताव को निष्प्रभावी करने की चाल चली । नियमों केअनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को इस प्रस्ताव से डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स को अवगत कराना चाहिए था, ताकि प्रस्ताव में उठाये मुद्दे पर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में विचार-विमर्श हो सके और वोटिंग के जरिये प्रस्ताव में की गई माँग पर लोगों की राय ली जा सके । प्रवीन गोयल ने यह खुद तो नहीं ही किया, रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पदाधकारियों तथा एमपी गुप्ता को भी ऐसा करने से रोका । प्रवीन गोयल की कोशिश थी कि हेमंत अरोड़ा से जुड़े मुद्दे/प्रस्ताव को वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के सामने आने ही न दें - और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की आपाधापी में उक्त प्रस्ताव को रफादफा करवा दें । प्रवीन गोयल के रवैये से उनके इरादे को भाँप कर एमपी गुप्ता ने भी ऐसी फील्डिंग लगाई कि प्रवीन गोयल और राजा साबू तथा उनके संगी-साथियों को समझ में आ गया कि उन्होंने ज्यादा होशियारी दिखाई तो सिवाये फजीहत के उनके हाथ कुछ नहीं लगेगा । 
एमपी गुप्ता की फील्डिंग के सामने राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में बनाये रखने के मामले में अपने आप को बेबस पाया और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में बिजनेस सेशन शुरू होने से ठीक पहले डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हेमंत अरोड़ा का इस्तीफा ले लिया । दरअसल राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को डर हुआ कि बिजनेस सेशन में मामला आयेगा, तो पता नहीं क्या क्या सुनने को मिलेगा और क्या क्या पोल खुलेगी - इसलिए हेमंत अरोड़ा से छुटकारा पा लेने में ही भलाई है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के लिए फजीहत की बात सिर्फ यही नहीं रही कि उन्हें हेमंत अरोड़ा से इस्तीफा लेना पड़ा - बल्कि यह भी रही कि उन्हें हेमंत अरोड़ा के नजदीकियों तथा उनसे हमदर्दी रखने वाले लोगों के कोप का भी निशाना बनना पड़ा । हेमंत अरोड़ा के नजदीकियों का कहना है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने जिस तरह हेमंत अरोड़ा को बेइज्जत करवाया है - उससे राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स का लोगों के प्रति 'यूज एंड थ्रो' वाला रवैया एक बार फिर प्रकट हुआ है । हेमंत अरोड़ा के नजदीकियों का कहना है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने पहले तो अपनी बेईमानियों पर पर्दा डाले रखने के लिए हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी में सदस्य बना लिया, लेकिन जब बबाल हुआ तो उन्हें दूध में पड़ी मक्खी की तरह बाहर निकाल फेंका । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने यही तरीका क्रमशः डीसी बंसल और कपिल गुप्ता के साथ भी अपनाया था - उन्हें जब तक लगा कि डीसी बंसल और कपिल गुप्ता के सहारे/भरोसे वह अपनी राजनीति चला सकते हैं, उन्होंने इन्हें अपने साथ रखा; लेकिन जैसे ही उन्हें लगा कि यह उनके काम के नहीं रह गए हैं इन्हें दूर छिटक दिया । हेमंत अरोड़ा के साथ भी यही हुआ । वर्ष 2014-15 के कार्य-व्यवहार को लेकर हेमंत अरोड़ा की जो बदनामी है, वह सब भी राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की देन है; लेकिन उसी देन के कारण हेमंत अरोड़ा फजीहत में फँसे - तो राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने उन्हें अकेला छोड़ दिया ।

Friday, February 22, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के उदाहरण के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए ललित खन्ना की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे जोर के चलते सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी की तैयारी के लिए संकट और गहरा गया लग रहा है

नई दिल्ली । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर लगातार मुसीबत में घिरे/फँसे रोटरी क्लब दिल्ली विकास के प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा को ललित खन्ना की उम्मीदवारी की तैयारी की खबर से और बड़ा झटका लगा है । मजे की बात यह है कि ललित खन्ना को उम्मीदवार बनने की तैयारी करते 'देख' सुनील मल्होत्रा के विरोधियों की उनके अपने क्लब में संख्या और बढ़ गई है । उम्मीदवारी को लेकर क्लब में मचे घमासान को अभी तक चुपचाप बैठे तमाशा देख रहे कई एक वरिष्ठ सदस्यों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि सुनील मल्होत्रा के लिए समय लगता है कि अनुकूल नहीं है, इसलिए उन्हें अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोर नहीं देना चाहिए । रोटरी क्लब दिल्ली विकास के कई वरिष्ठ सदस्यों को यह चिंता भी सताने लगी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चुनाव लड़ कर सुनील मल्होत्रा कहीं क्लब की साख  और प्रतिष्ठा को चोट न पहुँचा दें । उनका कहना है कि अभी डिस्ट्रिक्ट का सबसे बड़ा क्लब होने के नाते डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में क्लब की एक अलग ही पहचान, साख और धमक है; लेकिन यदि सुनील मल्होत्रा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हार गए तो क्लब की बनी चली आ रही पहचान, साख और धमक एक झटके में धूल में मिल जाएगी । क्लब में सुनील मल्होत्रा के विरोधी ही नहीं, बल्कि साथी/समर्थक भी ललित खन्ना के उम्मीदवार बनने की स्थिति में सुनील मल्होत्रा के लिए चुनावी मुकाबले को मुश्किल हुआ मान रहे हैं और इस कारण सुनील मल्होत्रा के समर्थन से पीछे हटते हुए नजर आ रहे हैं ।
इस बीच, क्लब में पर्दे के पीछे रह कर सुनील मल्होत्रा के खिलाफ मुहिम चला रहे पूर्व प्रेसीडेंट जवाहर गुप्ता भी कूद कर पर्दे के सामने आ गए हैं और सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के खिलाफ आमने-सामने की लड़ाई लड़ने के लिए पोजीशन ले चुके हैं । उनका कहना है कि क्लब की तरफ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार यदि प्रस्तुत किया जाना है, तो वरिष्ठ होने के नाते पहला मौका उन्हें मिलना चाहिए । क्लब के तथा क्लब की राजनीति की जानकारी रखने वाले डिस्ट्रिक्ट के लोगों का मानना/कहना है कि जवाहर गुप्ता को सचमुच में उम्मीदवार नहीं बनना है, उन्होंने तो बस सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी का रास्ता रोकने के लिए अपनी उम्मीदवारी की बात उछाल दी है । दिलचस्प नजारा यह बना है कि क्लब में सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों व समर्थकों की तरफ से कहा/सुना जा रहा है कि जवाहर गुप्ता वास्तव में ललित खन्ना के लिए रास्ता 'साफ करने' और सुनील मल्होत्रा को ललित खन्ना के 'रास्ते' से हटाने के लिए अपनी उम्मीदवारी का बुलडोजर लेकर आ गए हैं । मजे की बात यह है कि जवाहर गुप्ता जब क्लब के प्रेसीडेंट थे, तब उनके भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार बनने की बात जोरशोर से उठी थी, लेकिन उनके प्रेसीडेंट पद से उतरने के बाद उनके उम्मीदवार बनने की बात भी उतर गई और फिर खुद जवाहर गुप्ता ने खुद भी कभी अपनी उम्मीदवारी को लेकर दिलचस्पी नहीं दिखाई । क्लब में ही लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की 'जरूरतों' को पूरा कर पाना जवाहर गुप्ता के बस की बात नहीं है; इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने का ख्बाव देखना उन्होंने छोड़ दिया है - लेकिन उन्हें यह भी मंजूर नहीं है कि क्लब से कोई और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जाये; इसलिए उन्होंने सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को रोकने के लिए हर हथकंडा अपनाया हुआ है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए ललित खन्ना को तैयारी करता और डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों का समर्थन जुटाता देख जवाहर गुप्ता को अपना 'मकसद' पूरा होता हुआ लग रहा है । रोटरी क्लब दिल्ली विकास में ललित खन्ना की उम्मीदवारी का वास्ता देकर सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी का विरोध करने वालों की संख्या बढ़ी है, उससे जवाहर गुप्ता का काम आसान हो गया है और उन्हें लग रहा है कि सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों और समर्थकों ने ललित खन्ना की उम्मीदवारी को जिस गंभीरता से लिया है, उसके चलते सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के चांस अब बहुत ही कम रह गये हैं । कुछेक लोग हालाँकि सुनील मल्होत्रा और ललित खन्ना की उम्मीदवारी से डरे उनके नजदीकियों व समर्थकों को समझा रहे हैं कि ललित खन्ना दो बार पहले भी उम्मीदवार रह चुके हैं और असफल रहे हैं, इसलिए उनकी उम्मीदवारी को ज्यादा गंभीरता से लेने की जरूरत नहीं है; इस समझाइस से सुनील मल्होत्रा को कुछ बल मिलता नजर आता है, कि तभी कोई न कोई उन्हें ध्यान दिला देता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे दीपक गुप्ता भी तो तीसरी बार में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जा सके थे - इसलिए ललित खन्ना की तीसरी बार की उम्मीदवारी को हल्के में लेने की जरूरत नहीं है । अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति जिस तरह से थकी थकी सी लग रही है, उसमें ललित खन्ना की उम्मीदवारी को और जोर मिलता दिख रहा है । ललित खन्ना की उम्मीदवारी को मिल रहे जोर के चलते सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के लिए संकट और गहरा गया है ।

Thursday, February 21, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू को फजीहत से बचाने के लिए ही हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी से हटाने की माँग के रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स से छिपा कर रखते हुए डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में चलते-फिरते अंदाज में लीपापोती कर निपटा देने की तैयारी में हैं

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में विचार करने के लिए रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल द्वारा दिए गए एक प्रस्ताव की उपेक्षा करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल ने एक बार फिर यह साबित किया है कि डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू और उनसे जुड़े लोग अपनी बेईमानियों को न सिर्फ जारी रखे हुए हैं, बल्कि उन पर पर्दा डाले रखने का भी 'इंतजाम' करने में लगे हुए हैं । रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के उक्त प्रस्ताव में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हेमंत अरोड़ा के बेईमानीपूर्ण कारनामों का हवाला देते हुए उन्हें डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी की सदस्यता से निलंबित करने की माँग की गई है । नियमों केअनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को इस प्रस्ताव से डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स को अवगत कराना चाहिए था, ताकि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में प्रस्ताव में उठाये मुद्दे पर विचार-विमर्श हो सके और वोटिंग के जरिये प्रस्ताव में की गई माँग पर लोगों की राय ली जा सके । प्रवीन गोयल लेकिन नियमानुसार कार्रवाई करने की बजाये प्रस्ताव पर कुंडली मारे बैठे रहे । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के नजदीक आने पर चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट तथा डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य एमपी गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को एकबार फिर अपने क्लब के प्रस्ताव की याद दिलाई और उनसे पूछा कि डिस्ट्रिक्ट कार्यालय यदि किसी कारणवश नियमों का पालन नहीं कर सका है, तो क्या वह डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स को उक्त प्रस्ताव की प्रति भेज दें - लेकिन प्रवीन गोयल की तरफ से उन्हें उक्त प्रस्ताव की प्रति डिस्ट्रिक्ट के सभी क्लब्स को भेजने से मना किया गया है और बताया गया है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बिजनेस सेशन में उक्त प्रस्ताव को उपस्थित लोगों के बीच पढ़ा जायेगा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल के इस रवैये से जाहिर है कि वह हेमंत अरोड़ा को 'बचाने' की कोशिश कर रहे हैं और इसके लिए नियमों की अवहेलना व अनदेखी करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं ।   
हेमंत अरोड़ा दरअसल वर्ष 2014-15 के डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स को लेकर आरोपों के घेरे में हैं । उल्लेखनीय है कि उस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स में भारी झोलझाल हुआ था - और उस झोलझाल में ऑडिटर के रूप में हेमंत अरोड़ा की भूमिका को संदिग्ध देखा/समझा गया था । उक्त भूमिका को लेकर हेमंत अरोड़ा की उस समय भी खासी फजीहत हुई थी । डिस्ट्रिक्ट में लोग उस किस्से को भूलने लगे थे, लेकिन हेमंत अरोड़ा के डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनने की खबर मिलने के बाद से - हेमंत अरोड़ा की वह भूमिका एक बार फिर चर्चा में आ गई । उल्लेखनीय है कि दिलीप पटनायक के गवर्नर वर्ष 2014-15 के डिस्ट्रिक्ट अकाउंट्स की दो बैलेंसशीट बनी थीं, जिन्हें ऑडिटर के रूप में हेमंत अरोड़ा ने साइन किया था । यह दो बैलेंसशीट का बनना और साइन होना विवाद और आरोपों का विषय इसलिए बना था - क्योंकि 16 सितंबर 2015 को साइन हुई बैलेंसशीट में 20,407 रुपए का जो लाभ आ रहा था, वह 30 अक्टूबर 2015 को साइन हुई दूसरी बैलेंसशीट में 6 लाख 23 हजार 547 रुपए के घाटे में बदल गया । इस 'जादु' को चार्टर्ड एकाउंटेंट व ऑडिटर हेमंत अरोड़ा के 'अनुचित व्यवहार' के रूप में देखा/समझा गया था । हेमंत अरोड़ा को इसलिए भी फजीहत का सामना करना पड़ा था क्योंकि बैलेंसशीट में ऑडिटर के रूप में उन्होंने खुद दर्ज किया था कि बहुत से खर्चे कच्चे बिल्स के आधार पर हिसाब-किताब में लिए गए हैं । उस समय डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से खुल कर आरोप लगे थे कि डिस्ट्रिक्ट के पैसों में हेराफेरी करने के उद्देश्य से फर्जी तरीके से लाभ को घाटे में बदला गया है - और इसमें हेमंत अरोड़ा से लेकर राजा साबू की भी मिलीभगत है ।
डिस्ट्रिक्ट में राजा साबू और उनसे जुड़े लोगों की बेईमानियों के किस्से दरअसल इतने इकट्ठे हो गए हैं, कि लोगों को उनके द्वारा लिया जाने वाला कोई भी संदेहास्पद फैसला लूट-खसोट की मदद करने वाला दिखने/लगने लगता है । डिस्ट्रिक्ट के तमाम प्रोजेक्ट्स व ट्रस्ट के हिसाब-किताब जिस तरह से कुछेक लोगों की ही जानकारी में रहते हैं और उन्हें लोगों से - यहाँ तक कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स तक से - छिपा कर रखा जाता है; जिसे लेकर निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी रोटरी इंटरनेशनल तक में शिकायत कर चुके हैं; उसके चलते राजा साबू और उनसे जुड़े पूर्व गवर्नर्स की भूमिका को संदेह से देखा जाता है । इसी कारण से हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाए जाने से मामला भड़क गया है, और हेमंत अरोड़ा को फाइनेंस कमेटी से हटाने की माँग होने लगी है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में प्रवीन गोयल ने हेमंत अरोड़ा को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाने के लिए राजा साबू से अवश्य ही हरी झंडी ली होगी; ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि हेमंत अरोड़ा 'जैसे' व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी का सदस्य बनाने का फैसला प्रवीन गोयल ने क्यों तो लिया - और क्यों राजा साबू ने उन्हें इस फैसले के लिए हरी झंडी दी ? लोगों को लगता है कि राजा साबू को फजीहत से बचाने के लिए ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल ने रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डालने की तैयारी की हुई है और इसीलिए वह उक्त प्रस्ताव को डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स से छिपा कर रखना चाहते हैं, और डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के बिजनेस सेशन में चलते-फिरते अंदाज में लीपापोती कर मामले को निपटा देने की तैयारी में हैं । 

Wednesday, February 20, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल पर भरोसा करने की बजाये गुरनाम सिंह को जिमखाना क्लब के चुनाव में हरा देने वाले सुरेश अग्रवाल जैसे बाहरी व्यक्ति से चुनावी मदद लेने का काम करके जगदीश अग्रवाल ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की चुनावी लड़ाई में अपने आपको बड़ी मुसीबत में फँसा लिया है क्या ?

लखनऊ । जगदीश अग्रवाल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में वोट पाने के लिए लखनऊ के अवध जिमखाना क्लब के प्रेसीडेंट सुरेश अग्रवाल की मदद लेने की कोशिश ने गुरनाम सिंह के लिए खासी फजीहत वाली स्थिति बना दी है । उल्लेखनीय है कि अवध जिमखाना क्लब के पिछले दिनों हुए चुनाव में गुरनाम सिंह को सुरेश अग्रवाल से खासी तगड़ी वाली हार मिली थी । इस पृष्ठभूमि में, सुरेश अग्रवाल के गुरनाम सिंह के डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी लेने की कोशिश को गुरनाम सिंह के लिए बड़ी फजीहत वाली बात बना दी है । मजे की बात यह है कि सुरेश अग्रवाल अवध जिमखाना क्लब के प्रेसीडेंट होने के साथ-साथ रोटरी के एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर भी हैं । ऐसे में यह भी एक दिलचस्प नजारा है कि रोटरी का एक पूर्व गवर्नर लायंस के एक पूर्व गवर्नर की फजीहत करने के लिए सक्रिय हो रहा है; और इस नजारे में तड़के वाली बात यह है कि यह सब गुरनाम सिंह के 'चेलों' की देखरेख में हो रहा है । जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने की जिम्मेदारी जिन विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल ने ली हुई है, उन्हें गुरनाम सिंह के 'चेलों' के रूप में ही देखा/पहचाना जाता है । लगता है कि जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में जीत दिलवाने के लिए गुरनाम सिंह, विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल से मिल रहे समर्थन पर भरोसा नहीं रह गया है, और इसलिए अपनी उम्मीदवारी के लिए वह सुरेश अग्रवाल के रूप में बाहर से मदद जुटा रहे हैं - और उन सुरेश अग्रवाल के रूप में, जिनकी उपस्थिति गुरनाम सिंह के लिए फजीहत की स्थिति बनाती है ।
गुरनाम सिंह के नजदीकियों को इस मामले में जगदीश अग्रवाल से भी ज्यादा गुस्सा विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल पर आ रहा है; उनका मानना/कहना है कि इन दोनों ने जगदीश अग्रवाल को अपने समर्थन में सुरेश अग्रवाल जैसे बाहरी व्यक्ति को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में क्यों 'लाने' दिया है ? समझा जाता है कि विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति से गुरनाम सिंह को 'चुपचाप' तरीके से आउट करना चाहते हैं, और इसके लिए वह एक तरफ तो गुरनाम सिंह की भूमिका को सीमित कर दे रहे हैं, और दूसरी तरफ गुरनाम सिंह के बाहर के विरोधियों को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में भूमिका निभाने का मौका दे रहे हैं । इस संदर्भ में, डिस्ट्रिक्ट के लोग एक पुरानी घटना को भी कारण मान रहे हैं - जिसमें गुरनाम सिंह के बेटे और अनुपम बंसल के बीच मार-पिटाई हो गई थी, जिसे लेकिन गुरनाम सिंह ने दबाव डाल कर रफादफा करवा दिया था । इनके नजदीकियों को ही लगता है कि अनुपम बंसल उस समय तो अपमान का घूँट पीकर चुप रहने के लिए मजबूर हो गए थे, लेकिन अब उन्हें बदला लेने का मौका मिल रहा है और वह विशाल सिन्हा के साथ मिलकर गुरनाम सिंह को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अप्रासंगिक व गैरजरूरी बनाने की मुहिम में जुट गए हैं । जगदीश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए सुरेश अग्रवाल की जो सेवाएँ ली हैं, उससे गुरनाम सिंह की फजीहत होने की बात को समझते हुए भी - विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल उस पर जिस तरह से आँखें बंद किए हुए हैं, उससे यही समझा जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गुरनाम सिंह की फजीहत को इन दोनों की भी अनुमति है ।
गुरनाम सिंह की फजीहत करते हुए सुरेश अग्रवाल की मदद लेने की जगदीश अग्रवाल की कार्रवाई को विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल की भले ही अनुमति हो - लेकिन उनके अपने खेमे के दूसरे लोगों को यह बात पसंद नहीं आ रही है । दरअसल गुरनाम सिंह उम्र और बीमारी के दबाव के चलते आज भले ही ज्यादा सक्रिय न रह गए हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में उनके समर्थकों व शुभचिंतकों की कोई कमी नहीं है । उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को यह बात पसंद नहीं आ रही है कि गुरनाम सिंह की राजनीतिक विरासत पर कब्जा करने में लगे विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल - गुरनाम सिंह के जीते जी उन्हें 'राजनीतिक' रूप से 'मार' देने की कोशिश कर रहे हैं, और जगदीश अग्रवाल इसके लिए 'मौका' बना रहे हैं । जगदीश अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में वोट जुटाने के लिए सुरेश अग्रवाल जैसे बाहरी और गुरनाम सिंह विरोधी व्यक्ति की मदद लेने का जो काम किया है, उससे उनके अपने समर्थकों के बीच यह सवाल पैदा हो रहा है कि जगदीश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट के अपने समर्थकों पर यह भरोसा नहीं रह गया है कि वह उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जितवा देंगे ? इस तरह की बातों और चर्चाओं से लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के अपने समर्थक नेताओं पर भरोसा करने की बजाये सुरेश अग्रवाल जैसे बाहरी व्यक्ति से चुनावी मदद लेने का काम करके जगदीश अग्रवाल ने अपने आपको बड़ी मुसीबत में फँसा लिया है । जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में सुरेश अग्रवाल की मदद से जगदीश अग्रवाल का फायदा होना तो दूर, बड़ा नुकसान पहुँचने का खतरा और पैदा हो गया है ।

Tuesday, February 19, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनोद बंसल के समर्थन को लेकर अजीत जालान और रवि गुगनानी के बीच छिड़े घमासान में अशोक कंतूर को अपनी राह आसान बनती तो नजर आ रही है, लेकिन उनके सामने रवि चौधरी के ड्रिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने से होने वाले नुकसान से बचने की चुनौती भी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी संजीव राय मेहरा को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाने की सलाह देने वाले यूँ तो कई लोग हैं, लेकिन उक्त सलाह देने वालों में अशोक कंतूर का नाम भी जुड़ जाने से मामला खासा दिलचस्प हो गया है । मजे की बात यह है कि अशोक कंतूर खुद तो संजीव राय मेहरा से अनुरोध कर ही रहे हैं, साथ ही संजीव राय मेहरा के क्लब तथा डिस्ट्रिक्ट के कुछेक प्रमुख लोगों से भी रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाने के लिए दबाव पड़वा रहे हैं ।उनके इस विरोध पर रवि चौधरी भड़के न, इसके लिए अशोक कंतूर की तरफ से दावा भी सुना जा रहा है कि रवि चौधरी को वह अपने गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना लेंगे, लेकिन रवि चौधरी अभी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनें । अशोक कंतूर का कहना है कि अगले वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के मामले में उनके लिए बहुत ही अच्छी संभावना है, लेकिन रवि चौधरी यदि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बन गए - तो उनका सब गुड़ गोबर हो सकता है । दिलचस्प नजारा यह है कि रवि चौधरी यूँ तो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के सबसे बड़े समर्थक हैं, लेकिन अशोक कंतूर चाहते हैं कि रवि चौधरी उन पर एक अहसान करें - और वह यह कि वह उन पर कोई अहसान न करें । दरअसल, दूसरे लोगों के साथ-साथ अशोक कंतूर के शुभचिंतकों की तरफ से भी बार बार कहा/बताया जा रहा है कि रवि चौधरी यदि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी से दूर नहीं रहे, तो अशोक कंतूर के लिए अगले वर्ष भी जीत हासिल कर पाना मुश्किल हो जायेगा ।
उल्लेखनीय है कि खुद अशोक कंतूर को भी लगता है कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए जो अजीत जालान और रवि गुगनानी उम्मीदवार बनने के लिए जोरशोर से प्रयास करते देखे जा रहे हैं, वह अपनी अपनी मुसीबतों में इस तरह से घिरे हुए हैं कि मुकाबले में उतरने से पहले ही विवादों में पड़ गए हैं - और इस कारण उनके लिए उन दोनों से मुकाबला करना तथा चुनावी वैतरणी पार करना आसान ही होगा । अजीत जालान को हालाँकि विनय भाटिया और विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में देखे जाने के चलते अच्छा लाभ मिलने की उम्मीद थी, लेकिन रवि गुगनानी ने विनय भाटिया और विनोद बंसल से मिले धोखे पर बखेड़ा खड़ा करके अजीत जालान की इस उम्मीद को तगड़ा झटका दिया हुआ है । दरअसल विनय भाटिया और विनोद बंसल ने अपना 'काम' निकालने के लिए रवि गुगनानी को भी समर्थन की 'गोली' दी हुई है । रवि गुगनानी को लेकिन जब विनय भाटिया और विनोद बंसल की धोखाधड़ी का आभास हुआ तो वह इन दोनों की खासी फजीहत कर इन्हें 'रास्ते' पर ले आए । रवि गुगनानी खासतौर से विनोद बंसल से ज्यादा खफा हैं । उन्हें लगता है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उनके साथ जो धोखा व बेईमानी हुई, उसके लिए विनोद बंसल ही मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले कार्यक्रम का बहिष्कार करने के जरिये अपनी नाराजगी दिखा कर रवि गुगनानी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के कार्यक्रमों से उन्हें बाहर रखने की विनोद बंसल की योजना को फेल करने में जो सफलता पाई, उससे उत्साहित होकर उन्होंने अपने नजदीकियों के बीच कह दिया है कि विनोद बंसल ने उनके साथ यदि दोबारा चालबाजी करने की कोशिश की, तो वह विनोद बंसल के लिए मुसीबत खड़ी कर देंगे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए विनोद बंसल के समर्थन को लेकर अजीत जालान और रवि गुगनानी के बीच जो घमासान छिड़ा है, उसमें अशोक कंतूर को अपनी राह आसान बनती नजर आ रही है ।
अशोक कंतूर के लिए बस एक ही मुसीबत की बात है, और वह यह कि वह रवि चौधरी की हरकतों से होने वाले नुकसान से कैसे बचें ? अशोक कंतूर और उनके शुभचिंतकों को लगता है कि रवि चौधरी के पास डिस्ट्रिक्ट में यदि कोई पोजीशन नहीं होगी, तो उन्हें हरकतें करने का मौका ही नहीं मिलेगा । इसीलिए अशोक कंतूर को डर है कि संजीव राय मेहरा ने यदि रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना दिया, तो रवि चौधरी को अपनी हरकतें दिखाने का मौका मिल जायेगा; कोई उन्हें कितना भी समझायेगा - रवि चौधरी लेकिन अपना असली रूप दिखाने से बाज नहीं आयेंगे; और इससे अशोक कंतूर का जमा-जमाया काम बिगड़ जायेगा । अशोक कंतूर को लगता है कि उनके चुनाव को रवि चौधरी की हरकतों का दोबारा शिकार होने से बचाने का एक ही तरीका है और वह यह कि 'न रहेगा बाँस, तो न बजेगी बाँसुरी' वाली तर्ज पर - रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनें । इसके लिए अशोक कंतूर यह वायदा तक करने के लिए तैयार हैं कि गवर्नर बनने पर वह रवि चौधरी को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे; पर अभी रवि चौधरी उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो बनने दें । मजे की बात यह है कि संजीव राय मेहरा के कई नजदीकी व शुभचिंतक उन्हें सलाह दे रहे हैं कि अपना गवर्नर-वर्ष यदि अच्छे से और बिना विवाद व फजीहत के चलाना चाहते हो - तो रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर न बनाना । लोगों के बीच यह भी चर्चा है कि रवि चौधरी ने संजीव राय मेहरा के क्लब - रोटरी क्लब नई दिल्ली में ट्रांसफर लेने की कोशिश की थी, लेकिन क्लब के सदस्यों/पदाधिकारियों ने साफ कह दिया कि रवि चौधरी जैसे बदनाम व्यक्ति को वह क्लब में नहीं ले सकते हैं । उस मामले में संजीव राय मेहरा ने रवि चौधरी की मदद करने से इंकार कर दिया था । रवि चौधरी के लिए मुसीबत की बात यह बनी/सुनी जा रही है कि उनकी हरकतों तथा उनकी बदनामी को देखते हुए उनके अपने क्लब में उन्हें क्लब छोड़ने की चेतावनी मिली हुई है, लेकिन वह जिस किसी क्लब में ट्रांसफर लेने की कोशिश करते हैं - उसी क्लब के लोग उनके हाथ जोड़ लेते हैं कि 'भाई, हमसे दूर ही रहो ।' ऐसे में, संजीव राय मेहरा को रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाना मुसीबतों को निमंत्रण देने जैसा लग रहा है । रवि चौधरी के सबसे खास लोगों में गिने/पहचाने जाने वाले अशोक कंतूर भी जिस तरह से रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने की खिलाफत करने लगे हैं, उससे मामला और भी दिलचस्प हो गया है ।

Sunday, February 17, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद पर अतुल गुप्ता को बैठाने के लिए हुई राजनीति के चलते एनसी हेगड़े तथा जय छैरा के सामने पैदा हुई मुसीबत ने वेस्टर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर होने वाली होड़ को दिलचस्प बना दिया है

नई दिल्ली/मुंबई । अतुल गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने के लिए चुनाव से पहले के करीब दस घंटों में जो राजनीतिक उठापटक हुई, उसने अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए ताल ठोंक रहे एनसी हेगड़े तथा जय छैरा की तैयारियों को तगड़ा झटका दिया है । मजे की बात यह है कि इस वर्ष के चुनावी नतीजे के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ की 'रणनीति' की तारीफ की जा रही है, और उसे श्रेय दिया जा रहा है; लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की यह कामयाबी ही - प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थन के भरोसे अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे एनसी हेगड़े के लिए मुसीबत बन गई है । दूसरी तरफ, पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के नजदीक तो क्या - दूर से भी तार जोड़े रहे उम्मीदवारों का जो बुरा हाल हुआ, उससे जय छैरा को अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने के लिए की जा रही अपनी तैयारी पर मिट्टी पड़ती दिख रही है । दरअसल इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल समर्थित उम्मीदवारों को सफलता के आसपास भी न फटकने देने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ ने जो मोर्चा खोला, उसने कामयाबी तो प्राप्त कर ली, लेकिन उसके कारण उनके अपने 'ग्रुप' में संदेह और अविश्वास का जो महौल बना है, उसने अगले वर्ष के चुनावी समीकरणों को अनिश्चय में डाल दिया है । इस वर्ष हुए चुनाव में केमिशा सोनी तथा एमपी विजय कुमार को चुनाव से ठीक पहले 'अपने' ही लोगों से जो झटका लगा, उसके कारण यह दोनों अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं । इसी बात ने सत्ता खेमे में आपसी विश्वास को झटका दिया है, और इस झटके के चलते ही इंस्टीट्यूट की राजनीति के सत्ता खेमे में नए समीकरण बनने की संभावना बनी है - और इस संभावना में ही अलग अलग कारणों से एनसी हेगड़े तथा जय छैरा के लिए मुसीबत के संकेत प्रकट हैं । 
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उम्मीदवार तो कई थे; लेकिन मुख्य प्रतिस्पर्धा में अतुल गुप्ता, केमिशा सोनी व अब्राहम बाबु के नाम थे । अब्राहम बाबु को उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जाने का खामियाजा भुगतना पड़ा, और चुनाव से दो/एक दिन पहले ही वह पिछड़ते हुए लगने लगे । अब्राहम बाबु के पिछड़ने से एमपी विजय कुमार के लिए मौका बना । इस वर्ष के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि काउंसिल सदस्यों के बीच उत्तम अग्रवाल को लेकर भारी विरोध का भाव रहा, जिस कारण हर उम्मीदवार जोरशोर से यह दावे करने को मजबूर हो रहा था कि उसका उत्तम अग्रवाल के साथ कोई लेना देना नहीं है । वास्तव में यही बात एमपी विजय कुमार के लिए घातक बनी । उत्तम अग्रवाल ने अपने सभी उम्मीदवारों की दुर्दशा देखी, तो उनकी तरफ से एमपी विजय कुमार को समर्थन देने की कार्रवाई हुई । एमपी विजय कुमार मौके की नजाकत को भाँप नहीं सके, और उत्तम अग्रवाल के साथ आने से पैदा होने वाले खतरे का आभास नहीं कर सके । दूसरी तरफ, उत्तम अग्रवाल की इस चाल को फेल करने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ के नेतृत्व में सत्ता खेमे ने अपनी तैयारी की, और अतुल गुप्ता पर ध्यान केंद्रित किया । चुनाव से पहले के करीब दस घंटों में जो राजनीतिक उठापटक चली और जिसमें प्रफुल्ल छाजेड़ तथा पूर्व प्रेसीडेंट्स नीलेश विकमसे व सुबोध अग्रवाल ने अपने अपने स्तर पर मोर्चा संभाला - उसमें केमिशा सोनी को इंस्टीट्यूट की प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति पर हावी रहने वाली पुरुषवादी सोच का शिकार बनना पड़ा और उनके व अतुल गुप्ता के बीच चलने वाली प्रतिस्पर्धा में पलड़ा अतुल गुप्ता की तरफ पूरी तरह झुक गया । केमिशा सोनी को तगड़ा झटका पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की तरफ से लगा; अमरजीत चोपड़ा शुरू से केमिशा सोनी की उम्मीदवारी के पक्ष में थे - लेकिन ऐन मौके पर वह अतुल गुप्ता की तरफदारी में जुट गए । अमरजीत चोपड़ा की पाला बदलने की इस कार्रवाई के पीछे पूर्व प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को देखा/पहचाना गया । 
चुनाव से ठीक पहले इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के बड़े महारथियों के अतुल गुप्ता के पक्ष में जुटने के पीछे दरअसल उत्तम अग्रवाल की राजनीति को पूरी तरह से फेल करने की कोशिश थी । यह कोशिश तो सफल रही, लेकिन इस कोशिश के चलते एमपी विजय कुमार और केमिशा सोनी को जो झटका लगा, उसने सत्ता खेमे में परस्पर अविश्वास की बीज बो दिए हैं । इन दोनों को लगा है कि इन्हें इनके अपने लोगों ने ही धोखा दिया है । मजे की बात यह रही कि पिछली काउंसिल में मधुकर हिरगंगे ने अतुल गुप्ता की 'प्रोफेशनल बेईमानियों' को लेकर जो मुहिम चलाई हुई थी, उसे सभी प्रमुख लोगों का समर्थन प्राप्त था, और जिसके चलते इंस्टीट्यूट की इनडायरेक्ट टैक्सेस कमेटी पर कब्जे की अतुल गुप्ता की कोशिशें सफल नहीं हो सकीं थीं - लेकिन वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अचानक से सभी लोग अतुल गुप्ता के समर्थक बन गए । इस बात ने वाइस प्रेसीडेंट पद की राजनीति में केमिशा सोनी के लिए चुनौती बढ़ा दी है । इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल की जो राजनीतिक फजीहत हुई है, उसका श्रेय भले ही प्रफुल्ल छाजेड़ की रणनीति को दिया जा रहा है; लेकिन रणनीतिक सफलता के बाद सत्ता खेमे में परस्पर अविश्वास का जो माहौल बना है, उसमें प्रफुल्ल छाजेड़ को राजनीतिक नुकसान होने का खतरा भी छिपा है । यह खतरा एनसी हेगड़े की अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी को झटका देता है । एनसी हेगड़े दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी में हैं; ऐसे में प्रफुल्ल छाजेड़ का नुकसान वास्तव में एनसी हेगड़े का ही नुकसान होगा । इस वर्ष जो हुआ, उसने जय छैरा के लिए भी मुसीबत खड़ी की है । जय छैरा को उत्तम अग्रवाल के 'कवरिंग' उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जय छैरा ने अपनी तरफ से होशियारीभरी चाल तो काफी दिखाई हुई है - जिसके तहत एक तरफ उन्होंने उत्तम अग्रवाल से भी तार जोड़े हुए हैं, और दूसरी तरफ वह उत्तम अग्रवाल के विरोधियों के साथ भी 'खड़े' रहने की कोशिश करते रहते हैं; लेकिन इस बार जो हुआ, उससे एक बात साफ हो गई है कि इस तरह की चालबाजी अब काम नहीं आएगी । वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर एनसी हेगड़े तथा जय छैरा के सामने पैदा हुई नई मुसीबतों ने वेस्टर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर होने वाली होड़ को दिलचस्प बना दिया है ।

Saturday, February 16, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल की बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर ली गई ग्लोबल ग्रांट की रकम को हड़पने के मामले में इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या की मदद से बचने की कोशिश सचमुच सफल हो सकेगी क्या ?

जयपुर । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को विश्वास है कि उनके गवर्नर-वर्ष की करीब 20 लाख रुपए की एक डिस्ट्रिक्ट ग्रांट में हुई घपलेबाजी के मामले में फँसी उनकी गर्दन को बचाने/निकालने में इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या अवश्य ही उनकी मदद करेंगे, और इसी विश्वास के भरोसे अनिल अग्रवाल 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे' वाले अंदाज में उक्त ग्लोबल ग्रांट के प्रबंधन को लेकर जाँच करने वाली डिस्ट्रिक्ट कमेटी के साथ पेश आए । अनिल अग्रवाल के गवर्नर-वर्ष में ग्लोबल ग्रांट के रूप में रोटरी फाउंडेशन से डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में आए करीब 20 लाख रुपए में हुई घपलेबाजी के आरोप में डिस्ट्रिक्ट के दो क्लब्स को ग्रांट्स के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है, उनके दो पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा एक वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी में किसी भी अवॉर्ड तथा पोजीशन से प्रतिबंधित कर दिया गया है; और सिर्फ इतना ही नहीं - डिस्ट्रिक्ट को उक्त रकम वापस करने के लिए कहा गया है, और जब तक उक्त रकम वापस नहीं की जाती है, तब तक के लिए डिस्ट्रिक्ट को रोटरी फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भागीदारी से वंचित कर देने का आदेश हुआ है । रोटरी फाउंडेशन की इस कार्रवाई से स्पष्ट है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल के गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा दाँव पर लग गई है; लेकिन अनिल अग्रवाल मामले में न तो अपनी कोई जिम्मेदारी स्वीकारने/लेने को तैयार हैं, और न मामले को निपटवाने में सहयोग करने के लिए राजी हैं । मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करते हुए अनिल अग्रवाल का बार बार लगातार यही कहना है कि मामले में उन्हें जानबूझ कर फँसाया जा रहा है और उनकी तरफ से दावा किया जा रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या इस बात को समझ रहे हैं, और उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों से बात करेंगे और इस मामले में उन्हें फँसाए जाने की कोशिशों को वह सफल नहीं होने देंगे ।
अनिल अग्रवाल यह तर्क देते हुए अपने आपको बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि आरोपित ग्रांट वास्तव में क्लब ग्रांट है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका उससे कोई लेनादेना नहीं है । लेकिन तथ्य बताते हैं कि रोटरी फाउंडेशन को उक्त ग्रांट के लिए आवेदन डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के नाम से मिला था; स्वीकृत रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई और जो उनके हस्ताक्षर से ही अकाउंट से ली जा सकती थी और ली गई । इन तथ्यों पर अनिल अग्रवाल के जबाव बड़े मजेदार हैं - जो यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि उनके जैसा व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसे बन गया और रोटरी में आगे भी कोई भी भूमिका पाने/निभाने की उम्मीद आखिर किस आधार पर करता/रखता है । अनिल अग्रवाल का कहना है कि रोटरी फाउंडेशन को दिए गए आवेदन में क्लब ग्रांट की जगह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चिन्हित करने का काम असावधानीवश हो गया था । यह बात तो मानी जा सकती है; इस तरह की असावधानी हो सकती है - लेकिन इसके बाद की बातों का क्या ? रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट का पैसा जब डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट में आया, तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन को यह सूचित करने की जरूरत क्यों नहीं समझी कि यह ग्रांट डिस्ट्रिक्ट ग्रांट नहीं, बल्कि क्लब ग्रांट है और यह पैसा क्लब के अकाउंट में देना/जाना चाहिए ? इस पर अनिल अग्रवाल का बड़ा मासूम-सा जबाव है कि 'यह उनसे गलती हो गई' । अनिल अग्रवाल की यह 'गलती' बड़ी चालबाजीपूर्ण है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के लिए आवेदन करते हैं, ग्रांट की रकम को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में स्वीकार कर लेते हैं और मनमाने तरीके से उसे खर्च करते रहते हैं - और जब 'चोरी-चकारी' के आरोप में 'पकड़े' जाते हैं - तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगते हैं कि उनका तो ग्रांट से कोई लेना-देना ही नहीं है । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने अनिल अग्रवाल के तर्कों को स्वीकार नहीं किया, तो अनिल अग्रवाल ने उन्हें धौंस दे दी है कि उनसे वह 'निपट' लेंगे । लोगों को लग रहा है कि रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के लिए यह धौंस उन्होंने भरत पांड्या से मिलने वाले समर्थन के भरोसे ही दी होगी ।
उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए वर्ष 2013-14 में डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) मंजूर हुई थी, जिसके तहत 32169 अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई । इस रकम को एक ओल्ड ऐज होम, एक कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर, एक टेलरिंग ट्रेनिंग सेंटर, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने में खर्च होना था । इस मामले में पहले तो क्लोजिंग रिपोर्ट भेजने/सौंपने में बहुत देरी की गई और जो भेजी/सौंपी भी - वह आधी-अधूरी थी । रोटरी फाउंडेशन की तरफ से ग्रांट की रकम के इस्तेमाल को लेकर जो सवाल पूछे गए, उनके जबाव कभी नहीं दिए गए । ग्रांट की रकम प्राप्त करने और उसे इस्तेमाल करने वाले लोग चार वर्षों तक रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को जिस तरह से टरकाते रहे, उसके चलते रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को ग्रांट की रकम के दुरुपयोग की आशंका हुई तो उन्होंने रोटरी ग्रांट को-ऑर्डिनेटर चंद्रा पामर को जाँच के लिए भेजा, जिन्होंने अपनी जाँच में खासी गड़बड़ियाँ पाईं । उनकी रिपोर्ट के आधार पर रोटरी इंटरनेशनल ने पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज सोगानी को डिस्ट्रिक्ट 3054 को डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्रांट्स की सुविधाओं से अस्थाई रूप से वंचित करने की जानकारी दी है । यह जानकारी पाकर डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के होश उड़ गए । डिस्ट्रिक्ट में अनिल अग्रवाल के साथियों/नजदीकियों को ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों को भी आश्चर्य हुआ कि अनिल अग्रवाल बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर पैसा लेकर उसे हड़प जाने जैसा काम कर सकते हैं । इससे भी ज्यादा हैरत की बात 'चोरी और सीना जोरी' वाले उनके मौजूदा रवैये में दिख रही है । अपने गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा को मुसीबत में डालने वाले अनिल अग्रवाल जिस तरह से मामले को निपटवाने में सहयोग करने से भी इंकार कर रहे हैं - उससे लोगों को यह भी लग रहा है कि अनिल अग्रवाल वास्तव में रोटेरियन रहने लायक भी हैं क्या ?



Friday, February 15, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में पिछले तीन वर्षों में अपने पुराने संगी/साथियों को धोखा देने और बार-बार पाले बदलने के राजेश गुप्ता के रवैये के कारण सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के बने रहने को लेकर लोगों का विश्वास ही नहीं बन पा रहा है

देहरादून । राजेश गुप्ता ने अपने आपको 'वादाखिलाफी' का शिकार बता कर लोगों की सहानुभूति पाने तथा कुछेक जगह लायन सदस्यों को गिफ्ट देकर समर्थन/वोट पाने की जो कोशिश की है, उसका उन्हें कोई सार्थक और अनुकूल नतीजे मिलने के संकेत मिलते नहीं दिखे हैं । राजेश गुप्ता के लिए बदकिस्मती की बात यह हो रही है कि डिस्ट्रिक्ट के जो लोग उनके समर्थक हो भी सकते हैं, उन्हें भी यह विश्वास नहीं हो रहा है कि राजेश गुप्ता अंततः उम्मीदवार बने रहेंगे । उनके संभावित समर्थकों का ही मानना और कहना है कि राजेश गुप्ता चुनाव का दिन आते आते कभी भी पलटी मार कर मुकेश गोयल के 'साथ' जा सकते हैं । दरअसल राजेश गुप्ता ने पिछले तीन वर्षों में इतनी बार पाले बदले हैं, कि कोई भी उन पर विश्वास करने के लिए तैयार नहीं है । उल्लेखनीय है कि राजेश गुप्ता पिछले कई वर्षों से मुकेश गोयल के साथ रहे हैं, लेकिन तीन वर्ष पहले सभी को हैरान करते हुए उन्होंने अपनी पत्नी रेखा गुप्ता को मुकेश गोयल के उम्मीदवार विनय मित्तल के खिलाफ उम्मीदवार बना दिया । रेखा गुप्ता बुरी तरह चुनाव हारीं, तो राजेश गुप्ता ने एक बार फिर पलटी मारी और मुकेश गोयल के साथ आ गए थे । मुकेश गोयल के भरोसे पिछले वर्ष राजेश गुप्ता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हो गए, लेकिन जब उन्हें लगा कि अश्वनी काम्बोज से चुनाव लड़ना उनके बस की बात नहीं है और वह चुनाव हार जायेंगे, तब उन्होंने अपनी उम्मीदवारी का समर्पण कर देने में ही अपनी भलाई देखी । अब राजेश गुप्ता का रोना यह है कि पिछले वर्ष मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज ने अगले वर्ष (यानि इस वर्ष) उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने का वायदा किया था । उन्होंने इसका 'सुबूत' भी दिखाया है । किंतु सवाल तो यह है कि राजेश गुप्ता जब एक उम्मीदवार के रूप में सक्रिय ही नहीं थे - तब मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज उनका समर्थन करके अपना वायदा कैसे निभाते ?    
राजेश गुप्ता ने अपने एक वाट्सऐप मैसेज में उक्त वायदे का सुबूत देते हुए पिछले सात/आठ महीने लोगों से और डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों से दूर रहने की बात भी स्वीकार की है । ऐसे में 'वादाखिलाफी' की बात बेमानी हो जाती है । राजेश गुप्ता क्या यह उम्मीद कर रहे थे कि वह खुद तो डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और डिस्ट्रिक्ट के लोगों से दूर रहेंगे - और मुकेश गोयल, विनय मित्तल, संजीवा अग्रवाल व अश्वनी काम्बोज उनकी उम्मीदवारी के लिए माहौल बनायेंगे ? गौरतलब है कि गौरव गर्ग की उम्मीदवारी की आहट नबंवर माह में सुनाई दी थी; राजेश गुप्ता यदि एक उम्मीदवार के रूप में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पहले से सक्रिय रहते तो बहुत संभव था कि गौरव गर्ग उम्मीदवार बनने का साहस न कर पाते । इसके बाद भी, मुकेश गोयल तो अभी करीब एक महीने पहले तक राजेश गुप्ता को उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन राजेश गुप्ता ने ही उन्हें साफ इंकार कर दिया था । इन तथ्यों को देखते हुए राजेश गुप्ता का 'वादाखिलाफी' का रोना लोगों को नाटक ही लगता है । राजेश गुप्ता का कहना है कि एक महीने पहले मुकेश गोयल के लाख कहने पर भी वह उम्मीदवार बनने के लिए इसलिए राजी नहीं हुए थे, क्योंकि विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने को तैयार नहीं थे । कोई इस भले आदमी से पूछे कि विनय मित्तल और संजीवा अग्रवाल तो अभी भी इनकी उम्मीदवारी का समर्थन नहीं कर रहे हैं, तो अब यह क्यों उम्मीदवार बन गए हैं ? इस तरह, राजेश गुप्ता ने तीन वर्षों में पाँचवीं पलटी मारी और मुकेश गोयल खेमे के उम्मीदवार के खिलाफ एक बार फिर उम्मीदवार हो गए हैं ।
राजेश गुप्ता ने अपने एक वाट्सऐप मैसेज में एक बड़ा जेनुइन सवाल उठाया है; और वह सवाल यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर क्या मध्यम वर्ग के किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं है ? और क्या मुझे आगे बढ़ने का अधिकार नहीं है ? राजेश गुप्ता यह सवाल दूसरों से करने की बजाये खुद अपने आपसे करेंगे और ईमानदारी से जबाव सोचेंगे तो जबाव पा लेंगे । लायन राजनीति में - खुद डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की राजनीति में ज्यादातर मध्यम वर्ग के व्यक्ति ही गवर्नर बने हैं; इस वर्ष भी मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही गवर्नर बनेगा; लेकिन ऐसा व्यक्ति इस वर्ष क्या - कभी भी गवर्नर नहीं बन सकेगा, जो शुरू के महीनों में तो सोता रहे और डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच नजर न आये तथा डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों में शामिल न हो, और चुनाव से दो महीने पहले आकर कहे कि मुझे गवर्नर बनाओ ! राजेश गुप्ता को इतनी मामूली सी बात तो समझना ही चाहिए कि ऐसे व्यक्ति के लिए तो गवर्नर पद तक की राह और भी मुश्किल है जो किसी 'चोर गवर्नर' के कहने में आकर अपने पुराने साथियों के साथ ही राजनीतिक धोखाधड़ी करने को तैयार हो जाये और उसके बाद भी पाले बदलता रहे । दरअसल राजेश गुप्ता के इसी 'राजनीतिक करेक्टर' को ध्यान में रखते हुए डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को गंभीरता से नहीं लिया जा पा रहा है । 'वादाखिलाफी' के नाम पर सहानुभूति जुटाने की राजेश गुप्ता की कोशिश तो फेल हुई ही है; उनके लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि कुछेक लोगों को गिफ्ट बाँट कर अपनी उम्मीदवारी को विश्वसनीयता दिलवाने का उन्होंने जो प्रयास किया, उसका भी कोई असर पड़ता हुआ नहीं दिख रहा है । हर किसी को लग रहा है कि उम्मीदवार के नाम पर खर्च की गई रकम राजेश गुप्ता ने जिस तरह पिछले वर्ष अश्वनी काम्बोज से बसूल ली थी, ऐसे ही इस वर्ष भी अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर वह गौरव गर्ग से भी वसूल लेंगे । राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी को लेकर आश्वस्त न होने के कारण ही राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी के संभावित साथी/समर्थक नेता उनसे दूरी बनाये हुए हैं, जिसके चलते राजेश गुप्ता की उम्मीदवारी की चाल और पस्त पड़ती नजर आ रही है ।

Thursday, February 14, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा की चालबाजियों के चक्कर में सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को मुसीबत में पड़ा देख प्रियतोष गुप्ता ने 'डिनर पॉलीटिक्स' के जरिये अपनी उम्मीदवारी की संभावनाओं को टटोलने की कोशिश शुरू की

नई दिल्ली । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर रोटरी क्लब दिल्ली विकास के प्रेसीडेंट सुनील मल्होत्रा पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा की चालबाजियों में इस कदर फँसते नजर आ रहे हैं, कि उनकी उम्मीदवारी की संभावना खतरे में पड़ती लग रही है । इस स्थिति का फायदा उठाने के लिए रोटरी क्लब गाजियाबाद मेट्रो के प्रियतोष गुप्ता ने 'डिनर पॉलीटिक्स' के जरिये अपनी उम्मीदवारी के लिए कमर कस ली है । मजे की बात यह है कि सुनील मल्होत्रा ने जब से अपनी उम्मीदवारी के बारे में सोचना शुरू किया है, तभी से वह मुकेश अरनेजा के समर्थन को लेकर आश्वस्त व निश्चिंत रहे हैं । इसका कारण मुकेश अरनेजा के साथ उनका व्यावसायिक रिश्ता रहा । मुकेश अरनेजा और सुनील मल्होत्रा एक बिजनेस में एक दूसरे पर निर्भर सुने/बताए जाते हैं; जिसका वास्ता देकर सुनील मल्होत्रा दावा करते रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में राजनीतिक समीकरणों की परिस्थितियाँ चाहें जैसी भी रहें - मुकेश अरनेजा उनकी उम्मीदवारी का समर्थन ही करेंगे । लेकिन अब जब मुकेश अरनेजा उनके साथ चालबाजी करते नजर आ रहे हैं, तो लोग सुनील मल्होत्रा को बता रहे हैं कि मुकेश अरनेजा ने बिजनेस में जब अपने भाई-भतीजों को नहीं छोड़ा और जिसके चलते वह फैमिली बिजनेस से बाहर खदेड़े गए - तब सुनील मल्होत्रा का ही वह कोई लिहाज भला क्यों करेंगे और सुनील मल्होत्रा उन पर विश्वास क्यों कर रहे हैं ?
मुकेश अरनेजा की चालबाजियों के कारण सुनील मल्होत्रा अपनी उम्मीदवारी को लेकर दरअसल अपने ही क्लब में घिर रहे हैं । क्लब के ही कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर क्लब में बबाल कर रहे हैं । उनका कहना है कि सुनील मल्होत्रा ने प्रेसीडेंट के रूप में ऐसा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया है, जिसकी वजह से डिस्ट्रिक्ट में उनकी कोई पहचान बनी हो - ऐसे में उनकी उम्मीदवारी को पर्याप्त समर्थन मिल पाना और उनका जीत पाना मुश्किल ही होगा; और उनके न जीत पाने की स्थिति में क्लब की बड़ी बदनामी होगी । इन लोगों का कहना है कि सुनील मल्होत्रा को प्रेसीडेंट के रूप में बचे हुए महीनों में कुछ ऐसा बड़ा काम करना चाहिए, जिससे कि डिस्ट्रिक्ट में उनकी खास पहचान बने और उसके बाद दो/तीन वर्ष डिस्ट्रिक्ट में काम करें, तब फिर उम्मीदवार बनें । क्लब में सुनील मल्होत्रा के नजदीकियों और शुभचिंतकों का कहना/बताना है कि सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी की खिलाफत करने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स मुकेश अरनेजा के नजदीकी हैं, और मुकेश अरनेजा ही उन्हें भड़का रहे हैं । क्लब के कुछेक वरिष्ठ सदस्य और पूर्व प्रेसीडेंट्स सुनील मल्होत्रा के समर्थन में भी हैं, लेकिन लगता है कि उनकी चल नहीं रही है और उनके लिए क्लब में सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के पक्ष में सर्वसम्मति बना पाना मुश्किल हो रहा है । 
मुकेश अरनेजा ने रोटरी क्लब दिल्ली विकास के अपने 'चेलों' के मार्फत सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के लिए जो संकट खड़ा किया है, उसका कारण सुनील मल्होत्रा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन के साथ नजदीकियत है । सुनील मल्होत्रा को सुभाष जैन के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मुकेश अरनेजा की सुभाष जैन के हाथों जो दुर्गति/फजीहत हुई है, उसके कारण मुकेश अरनेजा के लिए सुभाष जैन के उम्मीदवार का समर्थन कर पाना मुश्किल ही होगा । मुकेश अरनेजा को यह भी लग रहा है कि सुनील मल्होत्रा यदि सचमुच उम्मीदवार हो गए, तो उनका खुला विरोध कर पाना उनके लिए आसान नहीं होगा; इसलिए वह सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी की जड़ खोदने में ही लग गए - ताकि सुनील मल्होत्रा उम्मीदवार ही न बन सकें । मुकेश अरनेजा को विश्वास है कि रोटरी क्लब दिल्ली विकास के अपने 'चेलों' की मदद से वह सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को रोक लेंगे । सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को मुश्किल में पड़ा देख प्रियतोष गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका ताड़ा है । अभी हाल ही में उन्होंने सुभाष जैन तथा इस वर्ष चुने गए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल और उनके कुछेक नजदीकियों को एक साथ अपने घर डिनर के लिए आमंत्रित किया । इस डिनर को सिर्फ खाने-पीने के मौके के रूप में नहीं, बल्कि पॉलीटिक्स के एक 'औजार' के रूप में लोगों के बीच चर्चा मिली है । प्रियतोष गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि प्रियतोष गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को लेकर उत्सुक तो पिछले कई दिनों से हैं, और इस 'डिनर पॉलीटिक्स' के जरिये वास्तव में उन्होंने अपनी उम्मीदवारी की संभावनाओं को टटोलने की कोशिश की है । उम्मीदवारी को लेकर सुनील मल्होत्रा की मुसीबत और प्रियतोष गुप्ता की कोशिश ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को दिलचस्प रास्ते पर आगे बढ़ाने का काम किया है ।

Wednesday, February 13, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के क्लब्स के वोट कपिल गुप्ता को मिलने के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजय मदान की हुई भारी जीत ने साबित किया है कि डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर क्लब्स के प्रमुख सदस्यों को राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स की कोई परवाह नहीं रह गई है

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजय मदान को बड़े अंतर से जितवा कर डिस्ट्रिक्ट 3080 के लोगों ने एक बार फिर राजेंद्र उर्फ राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को तगड़ी मात दी है । इस मामले में यह भी कह सकते हैं कि राज साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं और उनकी सोच का सम्मान करने/रखने से इंकार किया । इस बार बड़ा फर्क लेकिन यह जरूर रहा कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सोच व उनकी भावनाओं के साथ न रहने के बावजूद उन पर अपनी मनमानी थोपने के लिए कोई प्रयास नहीं किया और चुपचाप आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का मजेदार पक्ष यह है कि पहले दिन से ही हर कोई अजय मदान की जीत को लेकर आश्वस्त था - बहस सिर्फ इस बात को लेकर थी कि वह कितने अंतर से जीतेंगे ? कपिल गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को जिस तरह से 'लिया', उससे अजय मदान की जीत का अंतर बढ़ता ही जा रहा था - और हर कोई यह सोच सोच कर हैरान हो रहा था कि कपिल गुप्ता उम्मीदवार बने क्यों हैं ? इस बार का चुनावी सीन इस कदर एकतरफा था कि उसमें कोई रोमांच ही नहीं बचा था, जिसके नतीजे के रूप में मजेदार और विडंबनापूर्ण नजारा यह देखने को भी मिला कि अपने आप को महारथी समझने वाले और अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनाने वाले कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की हालत यह हो गई कि तीन तीन उम्मीदवारों के होने के बावजूद कोई उनके पास मदद माँगने के लिए फटका तक नहीं ।    
इस बार के चुनाव में दिलचस्पी की बात सिर्फ यह थी कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अपनी दुर्दशा से सबक लेकर अब डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं तथा उनकी सोच का सम्मान करना सीखेंगे या अभी भी अपनी ऐंठन में रहेंगे ? यह सवाल दरअसल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प हो गया था, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की सक्रियता को पहली बार ठंडा पड़ते देखा जा रहा था; अब से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू ने प्रत्यक्ष और या अप्रत्यक्ष भूमिका न निभाई हो; लेकिन इस बार वह आश्चर्यजनक ढंग से 'अपने' उम्मीदवार के लिए तीन-तिकड़म करने से दूर बने हुए थे । राजा साबू के इस अप्रत्याशित व्यवहार को देख कर कई लोगों को राजा साबू बदलते हुए लगे और उन्होंने मानना/कहना शुरू किया कि राजा साबू अब डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं तथा उनकी सोच का सम्मान करना शुरू करेंगे । इस बीच, राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा पर डोरे डालने की खबरें भी लोगों को सुनने को मिल रही थीं, इससे भी इस बात को बल मिला कि राजा साबू अब अलग-थलग रहने की बजाये मिल कर चलना चाहते हैं । इस परिस्थिति में अजय मदान को सौ अधिक वोट मिलने के दावे किए जाने लगे; खुद अजय मदान 105 वोट मिलने की बात करते सुने गए; उनके समर्थक 110 वोटों की गिनती तक जा पहुँचे - हालाँकि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी अपने अनुभवों के चलते राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स पर ज्यादा भरोसा करने के लिए तैयार नहीं थे और अजय मदान को मिल सकने वाले वोटों की संख्या को सौ से कुछ कम पर ठहरता देख/पा रहे थे । 
चुनावी नतीजे ने टीके रूबी को सही साबित किया । वास्तव में इस बार के चुनावी नतीजे का एक महत्त्वपूर्ण संदेश यही है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने बार बार मिलने वाली पराजयों से कोई सबक नहीं सीखा है और वह अभी भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सोच और उनकी भावनाओं की उपेक्षा करने के रास्ते पर हैं । गनीमत की बात हालाँकि यह जरूर रही कि इस बार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों से 'लड़ने' का साहस नहीं दिखाया और चुपचाप तरीके से अपने आप को अलग-थलग कर/रख लिया । वोटिंग शुरू होने से ठीक पहले जितेंद्र ढींगरा के सन डिएगो में आयोजित होने वाली रोटरी इंटरनेशनल असेम्बली में जाने के मौके का फायदा उठाने के लिए राजा साबू के कुछेक साथी गवर्नर्स ने कपिल गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करना जरूर शुरू किया था, लेकिन अजय मदान की उम्मीदवारी के समर्थन में टीके रूबी के मोर्चा सँभाल लेने से फिर उनकी हिम्मत जबाव दे गई । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने अपने अपने क्लब्स में जूझते हुए कपिल गुप्ता को वोट तो दिलवा दिए, लेकिन कपिल गुप्ता को वह भारी पराजय से नहीं बचा सके । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के लिए यक्ष प्रश्न यह बना हुआ है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स जब यह देख रहे थे कि अस्सी प्रतिशत से अधिक क्लब्स जब अजय मदान की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, खुद उनके क्लब्स के पदाधिकारी अजय मदान के पक्ष में वोट देना चाहते हैं, और इस सबके चलते वह कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए प्रयास करने तक का साहस नहीं कर पा रहे हैं - आखिर तब फिर उन्होंने अपने अपने क्लब के वोट जबर्दस्ती कपिल गुप्ता को दिलवा कर आखिर क्या 'दिखाने' का काम किया है ? राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में जोरशोर से काम कर रहे होते, तो लोगों के बीच यह सवाल न उठता । राजा साबू और उनके प्रमुख साथियों के क्लब्स के वोट कपिल गुप्ता को मिलने का एक ही संदेश लोगों को समझ में आ रहा है कि चौतरफा दुर्दशा के बावजूद राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अभी भी अपने आप को क्लब्स के पदाधिकारियों की सोच और उनकी भावना के साथ जोड़ने तथा उनका सम्मान करने के लिए राजी नहीं हैं । चुनावी नतीजे ने लेकिन यह भी साबित कर दिया है कि क्लब्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख सदस्यों को भी राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स की परवाह नहीं रह गई है ।

Tuesday, February 12, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह का सहयोग/समर्थन पाने के लिए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार बीएम श्रीवास्तव द्वारा अपने खेमे के केएस लूथरा तथा अन्य नेताओं को तवज्जो न देने की रणनीति बीएम श्रीवास्तव के बने-बनाये 'काम' को बिगाड़ भी सकती है क्या ?

लखनऊ । बीएम श्रीवास्तव के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए 'अकेले' ही चुनाव अभियान चलाने के फैसले के चलते उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच पर्याप्त समर्थन मिलता हुआ नजर नहीं आ रहा है, और इस कारण उनके शुभचिंतकों के बीच ही उनकी उम्मीदवारी की सफलता को लेकर आशंकाएँ पैदा होने लगी हैं । उल्लेखनीय है कि कहने को तो बीएम श्रीवास्तव को केएस लूथरा खेमे के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन बीएम श्रीवास्तव के चुनाव अभियान में केएस लूथरा और या उनके खेमे के नेता लोग दिखाई नहीं देते हैं । बीएम श्रीवास्तव के नजदीकियों का ही कहना/बताना है कि बीएम श्रीवास्तव को दरअसल नेताओं पर भरोसा नहीं है और इसीलिए वह संपर्क अभियान में नेताओं को अपने साथ नहीं रखते हैं और कभी अकेले तो कभी अपने क्लब के कुछेक सदस्यों के साथ ही निकलते हैं । बीएम श्रीवास्तव के कुछेक नजदीकियों को लगता है और उनका कहना भी है कि बीएम श्रीवास्तव ने केएस लूथरा तथा खेमे के दूसरे नेताओं के साथ जो दूरी बनाई और 'दिखाई' हुई है, उसके पीछे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह का हाथ है । खेमेबाजी के लिहाज से बीएम श्रीवास्तव भले ही केएस लूथरा खेमे के उम्मीदवार हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में उन्हें एके सिंह के उम्मीदवार के रूप में ज्यादा देखा/पहचाना जाता है । डिस्ट्रिक्ट में यह बात भी जगजाहिर है कि एके सिंह और केएस लूथरा 'साथ-साथ' नहीं हैं । बीएम श्रीवास्तव को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह उनकी उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए ज्यादा फायदेमंद साबित होंगे, इसलिए उन्होंने केएस लूथरा तथा खेमे के दूसरे नेताओं के साथ दूरी बना ली है - और उसे लोगों को (तथा एके सिंह को भी) 'दिखा' भी रहे हैं । 
बीएम श्रीवास्तव को लगता रहा है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट में जो चुनावी परिदृश्य बना है, उसमें केएस लूथरा तथा उनके खेमे के दूसरे नेताओं के पास झक मार कर उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है - इसलिए उनके सामने केएस लूथरा तथा उनके खेमे के दूसरे नेताओं को तवज्जो देने की कोई मजबूरी नहीं है । उनका ऐसा सोचना/मानना सही भी ठहरा है; क्योंकि बीएम श्रीवास्तव की तरफ से उपेक्षा किए जाने के बाद भी केएस लूथरा और उनके खेमे के दूसरे नेता अपने आप को लगातार बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के साथ ही बता/दिखा रहे हैं । बीएम श्रीवास्तव और केएस लूथरा (तथा उनके खेमे के दूसरे नेताओं) के बीच यह जो दूर/पास का खेल चल रहा है, यह अपने आप में परफेक्ट है तथा इसमें कोई समस्या नहीं है - समस्या की बात लेकिन लोगों के, क्लब्स के प्रमुख सदस्यों के बीच पैदा हुई है । बीएम श्रीवास्तव के संपर्क अभियान में लोग जब केएस लूथरा तथा खेमे के अन्य लोगों को नदारत पाते हैं, तो उनके नजदीकी बीएम श्रीवास्तव के साथ उतने सहज नहीं हो पाते हैं, जितनी सहजता की एक उम्मीदवार के रूप में बीएम श्रीवास्तव को जरूरत है - और यही बात बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के समर्थन-आधार की जड़ों को खोखला करती महसूस हो रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह प्रशासनिक तरीके से तो बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के लिए मददगार साबित हो सकते हैं, लेकिन राजनीतिक तरीके से चुनावी मदद करने के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते उनकी कई सीमाएँ होंगी ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में एके सिंह ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तारीख और जगह बीएम श्रीवास्तव को पहले से बता कर होटल के कमरों तथा ट्रेन के टिकटों की बुकिंग के मामले में तो उनकी मदद कर दी है, लेकिन ट्रेन में जाने तथा होटल के कमरों में ठहरने के लिए लोगों को प्रेरित करने का काम कर पाना एके सिंह के लिए उतना आसान नहीं होगा । ऐसे में तो और भी नहीं, जबकि बीएम श्रीवास्तव को ऐसे दो-दो उम्मीदवारों से मुकाबला करना है, जिन्हें अनुभवी नेताओं का हर तरह का सक्रिय सहयोग प्राप्त है । एके सिंह के लिए यह काम कर पाना इसलिए भी चुनौतीपूर्ण व मुश्किल होगा, क्योंकि अभी तक खेमेबाजी के लिहाज से वह उन नेताओं के नजदीकी थे, जो पराग गर्ग और या जगदीश अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा उठाए हुए हैं । केएस लूथरा खेमे के साथ एके सिंह का काफी पुराना बैर रहा है, और पिछले वर्ष हुए चुनाव में एके सिंह ने केएस लूथरा खेमे के उम्मीदवार का विरोध किया था; इस पृष्ठभूमि में एके सिंह के लिए केएस लूथरा खेमे के लोगों के वोट बीएम श्रीवास्तव को दिलवा पाना आसान नहीं होगा । एके सिंह ने केएस लूथरा खेमे से उम्मीदवार बीएम श्रीवास्तव को तो 'छीन' कर अपने साथ कर लिया है, लेकिन खेमे के प्रतिबद्ध समर्थकों व वोटरों को बीएम श्रीवास्तव की उम्मीदवारी के पक्ष में छीन पाना उनके लिए आसान नहीं होगा । ऐसे में, खुद बीएम श्रीवास्तव के शुभचिंतकों को ही लगने लगा है कि केएस लूथरा और उनके खेमे के नेताओं को 'घर बैठाने' तथा किनारे करने की रणनीति बीएम श्रीवास्तव के बने-बनाये 'काम' को बिगाड़ भी सकती है ।

Monday, February 11, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की पानीपत ब्रांच के ट्रेजरर मितेश मल्होत्रा की बदनामी के कारण उन्हें सत्ता खेमे में शामिल नहीं करने तथा अलग-थलग रखने के वायदे के बीच पानीपत ब्रांच को सात सदस्यों की बजाये छह सदस्यों से ही चलाने की तैयारी

पानीपत । जितेंद्र बंगा ने पानीपत ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी की सदस्यता के लिए होने वाले चुनाव में बने न रहने की घोषणा करके मितेश मल्होत्रा की उम्मीदवारी को बड़ी राहत दी है । उल्लेखनीय है कि 'रचनात्मक संकल्प' की 7 फरवरी की रिपोर्ट में बताया गया था कि मितेश मल्होत्रा के पक्के वाले साथियों/समर्थकों के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले जितेंद्र बंगा के खुद उम्मीदवार बन जाने से मितेश मल्होत्रा को दोहरा नुकसान होने का खतरा पैदा हो गया है; और आशंका यह पैदा हो गई है कि जितेंद्र बंगा खुद तो डूबेंगे ही - मितेश मल्होत्रा को भी ले डूबेंगे । इस खतरे को भाँप कर ही मितेश मल्होत्रा ने जमीन/आसमान एक करके जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी को वापस करवा लेने में तो सफलता प्राप्त कर ली है, लेकिन लगता नहीं है कि मुसीबतों ने उनका पीछा छोड़ दिया है । पानीपत ब्रांच के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने अन्य उम्मीदवारों पर अभी से यह दबाव बनाना शुरू कर दिया है कि मितेश मल्होत्रा ब्रांच की सदस्यता का चुनाव यदि जीत भी जाते हैं, तो भी उन्हें सत्ता खेमे में शामिल नहीं करना है और उन्हें अलग-थलग ही रखना है । मजे की बात यह है कि पानीपत ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों के लिए होने वाले चुनाव अभी चार-पाँच दिन दूर हैं, लेकिन अभी से पानीपत में लोगों की जुबान पर चर्चा आम है कि ब्रांच तो सात सदस्य नहीं, बल्कि छह सदस्य ही चलायेंगे । 
पानीपत ब्रांच की सदस्यता के लिए चुनाव लड़ने और जीतने की संभावना रखने वाले उम्मीदवारों और उनके नजदीकियों ने अभी से यह घोषणा कर दी है कि वह मितेश मल्होत्रा को तो अपने साथ नहीं रखेंगे । दरअसल ट्रेजरर के रूप में मौजूदा वर्ष में मितेश मल्होत्रा की ऐसी ऐसी हरकतें रही हैं कि पानीपत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उन्हें भारी बदनामी तो मिली ही है - साथ ही ब्रांच के हर संभावित पदाधिकारी को यह आभास भी हो गया है कि मितेश मल्होत्रा यदि किसी भी रूप में उनके साथ रहे, तो उनके लिए काम करना तो मुश्किल हो ही जायेगा - उनकी जान पर भी बन आएगी । ब्रांच के मौजूदा चेयरमैन अतुल चोपड़ा को ट्रेजरर के रूप में मितेश मल्होत्रा ने जिस तरह से तंग किया और तरह तरह से उन्हें 'ब्लैकमेल' करने की कोशिश की, उसके चलते ब्रांच में कामकाज तो बुरी तरह प्रभावित हुआ ही और ब्रांच में ताला पड़ने की नौबत आ गई - अतुल मल्होत्रा के स्वास्थ्य पर भी प्रतिकूल असर पड़ा और उनकी तबियत काफी खराब हुई । अतुल चोपड़ा पानीपत के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउटेंट हैं, और पिछले वर्षों में वह दो/तीन बार दूसरों दूसरों के लिए अपने हाथ में आए चेयरमैन पद को कुर्बान कर चुके हैं; बड़ी मुश्किल से इस वर्ष उनके चेयरमैन बनने का मौका आया, तो मितेश मल्होत्रा ने अपनी लूट-खसोटपूर्ण मनमानियों से उनका जीना ही हराम कर दिया ।    
मितेश मल्होत्रा की बदनामी को इसलिए भी पंख मिले और उसका विस्तार हुआ, क्योंकि उन पर ट्रेजरर के रूप में बेंडर्स के बिल पास करने के ऐवज में पैसे ऐंठने के आरोप लगे हैं । ब्रांच के कामकाज और फंक्शन में होने वाले प्रत्येक छोटे/बड़े खर्चे में अपना कमीशन 'बसूलने' की मितेश मल्होत्रा की कोशिशों ने पानीपत ब्रांच के हर संभावित पदाधिकारी को डराया हुआ है - और इसीलिए हर कोई मितेश मल्होत्रा से दूर रहने तथा उन्हें दूर रखने की बातें कर रहा है । इस तरह की बातों ने मितेश मल्होत्रा के लिए चुनौती और मुश्किलें बढ़ा दी हैं, जो जितेंद्र बंगा के चुनावी मुकाबले से बाहर होने की घोषणा के बाद भी कम होती हुई नहीं दिख रही हैं । मितेश मल्होत्रा के नजदीकियों को लग रहा है कि पानीपत ब्रांच के सदस्यों के बीच उनकी जैसी जो बदनामी है, और जिसके चलते हर संभावित विजेता उन्हें दूर रखने तथा उनसे दूर रहने की घोषणा कर रहा है - वह लोगों के बीच बहुत ही अपमानजनक स्थिति है; और ऐसी स्थिति में मितेश मल्होत्रा को अपने किए-धरे के लिए सार्वजनिक रूप से माफी माँगनी चाहिए । मितेश मल्होत्रा को लेकर होने वाली इस तरह की चर्चाओं ने पानीपत ब्रांच के चुनाव को खासा दिलचस्प बना दिया है । 

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ की पर्दे की आगे/पीछे के 'सक्रियता' को देखते हुए अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी ने उनका और उनके नजदीकियों का समर्थन पाने के लिए दाँव तो अच्छा चला है, लेकिन देखने की बात यह होगी कि प्रफुल्ल छाजेड़ अगले वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इनमें से किसी एक पर भरोसा करते हैं या किसी और पर ?

नई दिल्ली । अतुल गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए फील्डिंग तो अच्छी सजाई है, लेकिन दूसरे कुछेक लोगों को लगता है कि उनके व्यवहार/रवैये से नाराज रहने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्य उनकी बजाये केमिशा सोनी का खेल जमा सकते हैं । इन दोनों को पछाड़ कर आगे रहने के लिए अब्राहम बाबु की पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के 'आदमी' होने की छवि से निकलने की जोरदार कोशिश ने लेकिन इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को दिलचस्प बना दिया है । कंपनी सेक्रेटरीज इंस्टीट्यूट की तरह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में भी 'सरकारी' सदस्यों के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में भाग लेने की आशंकाएँ और चर्चाएँ काफी हैं, लेकिन साथ-साथ दावा भी सुना/कहा जा रहा है कि मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ ने 'सरकारी' सदस्यों की 'नस' दबा/दबवा कर वैसा कुछ न होने देने की व्यवस्था की हुई है । इस बारे में खास बात यह है कि इंस्टीट्यूट की अगली काउंसिल में चूँकि वही सरकारी सदस्य नोमीनेट हो गए हैं, जो मौजूदा काउंसिल में हैं - इसलिए वह प्रफुल्ल छाजेड़ को और प्रफुल्ल छाजेड़ उन्हें 'जानते' हैं; इसलिए विश्वास किया जा रहा है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में सरकारी सदस्य वैसी हरकत नहीं करेंगे, जैसी हरकत कंपनी सेक्रेटरीज इंस्टीट्यूट में सरकारी सदस्यों ने की है । प्रफुल्ल छाजेड़ की कुछ पर्दे के सामने की और कुछ पर्दे के पीछे की सक्रियता ने भी इस बार के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को 'गंभीर' रूप दिया हुआ है ।   
सरकारी सदस्यों के समर्थन के बूते, दरअसल चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट में राजेश शर्मा, चरनजोत सिंह नंदा और अनुज गोयल ने वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने के दावे किए हैं । इस दावे के जरिये वास्तव में इन्होंने सेंट्रल काउंसिल के चुने हुए सदस्यों पर दबाव बनाने और उनका समर्थन जुटाने का प्रयास किया । इन तीनों को उम्मीद रही कि सरकारी सदस्यों के समर्थन का दावा करेंगे, तो सेंट्रल काउंसिल के चुने हुए सदस्य इनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेंगे और यह वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी दौड़ में शामिल हो जायेंगे । लेकिन कोई इनके झाँसे में आता हुआ नजर तो नहीं आ रहा है । वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अब्राहम बाबु की उम्मीदवारी का ज्यादा शोर रहा है; हालाँकि इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के उनके समर्थन होने की चर्चा ने उस शोर को जल्दी ही दबाव में ले लिया । अब्राहम बाबु और उनके समर्थकों ने भाँप लिया कि उत्तम अग्रवाल का समर्थन उन्हें फायदा पहुँचाने की बजाये नुकसान पहुँचाने का ही काम करेगा; और इसलिए पिछले कुछेक दिनों में उन्होंने उत्तम अग्रवाल की 'छाया' से बचने तथा दूर 'दिखने' का भरसक प्रयास किया है । दरअसल काउंसिल सदस्यों के बीच उत्तम अग्रवाल की जैसी बदनामी है, उसे देख/पहचान कर ही अब्राहम बाबु और उनके समर्थकों को इस बात की जरूरत महसूस हुई कि यदि उन्हें सचमुच वाइस प्रेसीडेंट बनना है - तो उन्हें उत्तम अग्रवाल का उम्मीदवार 'दिखने' से बचना होगा । अब्राहम बाबु की इस  कोशिश ने वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी के लिए मुकाबले को मुश्किल बना दिया है ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में अब्राहम बाबु के साथ-साथ अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी की उम्मीदवारी को ही गंभीरता से लिया/देखा जा  रहा है - और इन दोनों ने ही उत्तम अग्रवाल के विरोधी काउंसिल सदस्यों का समर्थन जुटाने पर जोर दिया है । इस जोर के बहाने वास्तव में इन्होंने मौजूदा वाइस प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ और उनके नजदीकियों व समर्थकों का समर्थन जुटाने का प्रयास किया है । अतुल गुप्ता के मुकाबले केमिशा सोनी का विवादों से चूँकि कम रिश्ता रहा है, इसलिए कुछेक लोगों को केमिशा सोनी का पलड़ा भारी दिखता है; लेकिन अतुल गुप्ता और उनके नजदीकियों को काउंसिल सदस्यों की पुरुषवादी सोच पर भरोसा है और उम्मीद है कि काउंसिल सदस्य एक महिला को (वाइस) प्रेसीडेंट चुनने के लिए मानसिक रूप से तैयार नहीं होंगे और यही बात केमिशा सोनी के मुकाबले उन्हें आगे रखेगी । इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति से परिचित लोगों को याद होगा भी कि भावना दोषी हर तरह से समर्थ होने के और अपना एक ऑरा रखने के बावजूद - सिर्फ महिला होने के कारण - (वाइस) प्रेसीडेंट नहीं बन सकीं । यह देखना सचमुच विडंबनापूर्ण होगा कि केमिशा सोनी के मामले में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट का चुनावी इतिहास क्या पहले जैसे फूहड़ तरीके से एक फिर अपने को दोहरायेगा ? इस बार के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव को लेकर होने वाली उठापटक से परिचित लोगों का हालाँकि यह भी कहना है कि कम उम्मीदवार होने के कारण हो सकता है कि चुनावी नतीजा सभी को चौंका ही दे - और फिलहाल चुनावी दौड़ में आगे 'दिखने' वाले अब्राहम बाबु, अतुल गुप्ता और केमिशा सोनी ताकते ही रह जाएँ ! 

Thursday, February 7, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की पानीपत ब्रांच के कामकाज और फंक्शन में होने वाले प्रत्येक छोटे/बड़े खर्चे में अपना हिस्सा 'बसूलने' की तिकड़मों से मितेश मल्होत्रा को मिली बदनामी को देखते हुए उनके समर्थक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने राकेश अरोड़ा तथा जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी को आगे बढ़ा कर मितेश मल्होत्रा की उम्मीदवारी को दोहरी चोट पहुँचाई

पानीपत । इंस्टीट्यूट की पानीपत ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी की सदस्यता के लिए राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी ने मितेश मल्होत्रा के पुनर्निर्वाचित होने के प्रयास को खासा तगड़ा झटका दिया है । ब्रांच के ट्रेजरर के रूप में अपनी हरकतों के लिए मितेश मल्होत्रा पानीपत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पहले से ही बदनाम हैं, जिसके चलते इस बार का चुनाव उनके लिए वैसे ही चुनौतीपूर्ण था - जिस पर राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है । दरअसल इन दोनों को मितेश मल्होत्रा के पक्के वाले साथियों/समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जाता है; पिछले चुनाव में इन्होंने मितेश मल्होत्रा की उम्मीदवारी के समर्थन में जमकर काम किया था । इस बार के चुनाव में इनके खुद उम्मीदवार बन जाने से मितेश मल्होत्रा को दोहरा नुकसान होने का खतरा पैदा हो गया है - इनके उम्मीदवार बन जाने से मितेश मल्होत्रा को एक तरफ तो अपनी उम्मीदवारी के लिए कार्यकर्ताओं का टोटा पड़ गया है, दूसरी तरफ इन दोनों को मिलने वाले वोट सीधे सीधे मितेश मल्होत्रा के वोटों में ही कमी करेंगे । मितेश मल्होत्रा, राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा पानीपत की ब्रांच की चुनावी राजनीति में न सिर्फ साथी/दोस्त/सहयोगी/समर्थक रहे हैं, बल्कि इनका समर्थन आधार और खेमा भी एक ही है । इनके दूसरे साथियों का मानना और कहना है कि तीनों के उम्मीदवार बन जाने से खतरा यह पैदा हो गया है कि कहीं तीनों ही चुनाव न हार जाएँ ?
उल्लेखनीय है कि पानीपत ब्रांच की सात सीटों के लिए नाम वापसी के बाद 10 उम्मीदवार मैदान में बचे हैं । इनमें मौजूदा वाइस चेयरमैन आदित्य नंदवानी, मनप्रीत सिंह गंभीर, सुरेश नंदवानी और योगेश गोयल की जीत को सुनिश्चित माना/बताया जा रहा है । भूपिंदर शर्मा और मुकेश गुप्ता को भी अच्छा समर्थन मिलता दिख रहा है और उन्हें मुकाबले में माना/पहचाना जा रहा है । नोएडा में काम करने और रहने के कारण संगीता प्रजापति के लिए पानीपत में वोट जुटाना मुश्किल तो माना जा रहा है, लेकिन पानीपत ब्रांच में कार्यरत ममता प्रजापति के सहयोग के कारण उनकी जीत की संभावना को अच्छा माना जा रहा है । मौजूदा ट्रेजरर के रूप में तमाम बदनामी के बावजूद मितेश मल्होत्रा के लिए चुनाव जीतना आसान ही होता, लेकिन राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी उनकी जीत में रोड़ा बनती दिख रही है । दरअसल राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी के चलते मितेश मल्होत्रा की उम्मीदवारी को जो ग्रहण लगा है, उसमें भूपिंदर शर्मा, मुकेश गुप्ता और संगीता प्रजापति की उम्मीदवारी के लिए सफलता की राह खुलती नजर आ रही है ।
मितेश मल्होत्रा के नजदीकियों का कहना/बताना है कि मितेश मल्होत्रा ने राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा का नामांकन वापस करवाने के लिए इन दोनों पर काफी दबाव भी बनाया था । इसके लिए अपने समर्थक पानीपत के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से उन्होंने इन दोनों पर दबाव भी डलवाया था । नजदीकियों के अनुसार, राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा अपना अपना नामांकन वापस लेने के लिए राजी भी हो गए थे, लेकिन फिर अचानक से पता नहीं क्या हुआ - उन्होंने अपना नामांकन वापस नहीं लिया । इन तीनों के नजदीकियों का कहना है कि खेमे के वरिष्ठ सदस्यों को दरअसल मितेश मल्होत्रा की जीत के प्रति संदेह है, इसलिए उन्होंने राकेश अरोड़ा और जितेंद्र बंगा को उम्मीदवार बने रहने के लिए हरी झंडी दे दी और नाम वापस लेने के उनके 'प्रोग्राम' को कैंसिल करवा दिया । असल में, मौजूदा वर्ष में ट्रेजरर के रूप में मितेश मल्होत्रा ने ब्रांच में काम ही नहीं होने दिए; शुरू के कुछेक महीने तो ब्रांच की सीपीई कमेटी का मुखिया पद पाने के लिए वह चेयरमैन अतुल चोपड़ा को ब्लैकमेल करते रहे और इस कारण ब्रांच में ताला पड़ने की नौबत आ गई । ट्रेजरर के रूप में बेंडर्स के बिल पास करने के ऐवज में पैसे ऐंठने की कोशिशों के कारण बिल पास होने और चेक रिलीज होने का काम टलता रहा और इस वजह से ब्रांच के कामकाज पर बहुत ही बुरा असर पड़ा । ब्रांच के कामकाज और फंक्शन में होने वाले प्रत्येक छोटे/बड़े खर्चे में अपना हिस्सा 'बसूलने' की मितेश मल्होत्रा की तिकड़मों ने ब्रांच में काम होने की स्थितियों को बुरी तरह से प्रभावित किया और इसके चलते पानीपत ब्रांच को इस वर्ष बहुत ही बुरे दिन देखने पड़े । पानीपत में इस स्थिति के लिए हर किसी ने मितेश मल्होत्रा को ही जिम्मेदार ठहराया और इस कारण पानीपत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के  बीच मितेश मल्होत्रा की खासी बदनामी है । मितेश मल्होत्रा के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि उनके समर्थक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ही इस बार उनकी जीत के प्रति आश्वस्त नहीं हैं; इसीलिए उन्होंने राकेश अरोड़ा तथा जितेंद्र बंगा की उम्मीदवारी को आगे बढ़ा दिया है । इससे मितेश मल्होत्रा के लिए अपनी सीट बचाना मुश्किल हो गया है ।