जयपुर । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को विश्वास है कि उनके गवर्नर-वर्ष की करीब 20 लाख रुपए की एक डिस्ट्रिक्ट ग्रांट में हुई घपलेबाजी के मामले में फँसी उनकी गर्दन को बचाने/निकालने में इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या अवश्य ही उनकी मदद करेंगे, और इसी विश्वास के भरोसे अनिल अग्रवाल 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे' वाले अंदाज में उक्त ग्लोबल ग्रांट के प्रबंधन को लेकर जाँच करने वाली डिस्ट्रिक्ट कमेटी के साथ पेश आए । अनिल अग्रवाल के गवर्नर-वर्ष में ग्लोबल ग्रांट के रूप में रोटरी फाउंडेशन से डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में आए करीब 20 लाख रुपए में हुई घपलेबाजी के आरोप में डिस्ट्रिक्ट के दो क्लब्स को ग्रांट्स के लिए प्रतिबंधित कर दिया गया है, उनके दो पूर्व प्रेसीडेंट्स तथा एक वरिष्ठ रोटेरियंस को रोटरी में किसी भी अवॉर्ड तथा पोजीशन से प्रतिबंधित कर दिया गया है; और सिर्फ इतना ही नहीं - डिस्ट्रिक्ट को उक्त रकम वापस करने के लिए कहा गया है, और जब तक उक्त रकम वापस नहीं की जाती है, तब तक के लिए डिस्ट्रिक्ट को रोटरी फाउंडेशन के कार्यक्रमों में भागीदारी से वंचित कर देने का आदेश हुआ है । रोटरी फाउंडेशन की इस कार्रवाई से स्पष्ट है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल के गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा दाँव पर लग गई है; लेकिन अनिल अग्रवाल मामले में न तो अपनी कोई जिम्मेदारी स्वीकारने/लेने को तैयार हैं, और न मामले को निपटवाने में सहयोग करने के लिए राजी हैं । मामले को राजनीतिक रंग देने की कोशिश करते हुए अनिल अग्रवाल का बार बार लगातार यही कहना है कि मामले में उन्हें जानबूझ कर फँसाया जा रहा है और उनकी तरफ से दावा किया जा रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर इलेक्ट भरत पांड्या इस बात को समझ रहे हैं, और उन्होंने उन्हें आश्वस्त किया है कि वह रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों से बात करेंगे और इस मामले में उन्हें फँसाए जाने की कोशिशों को वह सफल नहीं होने देंगे ।
अनिल अग्रवाल यह तर्क देते हुए अपने आपको बचाने की कोशिश कर रहे हैं कि आरोपित ग्रांट वास्तव में क्लब ग्रांट है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उनका उससे कोई लेनादेना नहीं है । लेकिन तथ्य बताते हैं कि रोटरी फाउंडेशन को उक्त ग्रांट के लिए आवेदन डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के नाम से मिला था; स्वीकृत रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई और जो उनके हस्ताक्षर से ही अकाउंट से ली जा सकती थी और ली गई । इन तथ्यों पर अनिल अग्रवाल के जबाव बड़े मजेदार हैं - जो यह सवाल भी खड़ा करते हैं कि उनके जैसा व्यक्ति डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कैसे बन गया और रोटरी में आगे भी कोई भी भूमिका पाने/निभाने की उम्मीद आखिर किस आधार पर करता/रखता है । अनिल अग्रवाल का कहना है कि रोटरी फाउंडेशन को दिए गए आवेदन में क्लब ग्रांट की जगह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट को चिन्हित करने का काम असावधानीवश हो गया था । यह बात तो मानी जा सकती है; इस तरह की असावधानी हो सकती है - लेकिन इसके बाद की बातों का क्या ? रोटरी फाउंडेशन से ग्रांट का पैसा जब डिस्ट्रिक्ट के अकाउंट में आया, तब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अनिल अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन को यह सूचित करने की जरूरत क्यों नहीं समझी कि यह ग्रांट डिस्ट्रिक्ट ग्रांट नहीं, बल्कि क्लब ग्रांट है और यह पैसा क्लब के अकाउंट में देना/जाना चाहिए ? इस पर अनिल अग्रवाल का बड़ा मासूम-सा जबाव है कि 'यह उनसे गलती हो गई' । अनिल अग्रवाल की यह 'गलती' बड़ी चालबाजीपूर्ण है - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह डिस्ट्रिक्ट ग्रांट के लिए आवेदन करते हैं, ग्रांट की रकम को डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में स्वीकार कर लेते हैं और मनमाने तरीके से उसे खर्च करते रहते हैं - और जब 'चोरी-चकारी' के आरोप में 'पकड़े' जाते हैं - तो यह कहते हुए बचने की कोशिश करने लगते हैं कि उनका तो ग्रांट से कोई लेना-देना ही नहीं है । रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने अनिल अग्रवाल के तर्कों को स्वीकार नहीं किया, तो अनिल अग्रवाल ने उन्हें धौंस दे दी है कि उनसे वह 'निपट' लेंगे । लोगों को लग रहा है कि रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के लिए यह धौंस उन्होंने भरत पांड्या से मिलने वाले समर्थन के भरोसे ही दी होगी ।
उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए वर्ष 2013-14 में डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) मंजूर हुई थी, जिसके तहत 32169 अमेरिकी डॉलर की रकम डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में आई । इस रकम को एक ओल्ड ऐज होम, एक कम्प्यूटर एजुकेशन सेंटर, एक टेलरिंग ट्रेनिंग सेंटर, एक प्रौढ़ शिक्षा केंद्र तथा प्राकृतिक चिकित्सा सुविधाओं से परिपूर्ण एक आयुर्वेदिक क्लीनिक खोलने में खर्च होना था । इस मामले में पहले तो क्लोजिंग रिपोर्ट भेजने/सौंपने में बहुत देरी की गई और जो भेजी/सौंपी भी - वह आधी-अधूरी थी । रोटरी फाउंडेशन की तरफ से ग्रांट की रकम के इस्तेमाल को लेकर जो सवाल पूछे गए, उनके जबाव कभी नहीं दिए गए । ग्रांट की रकम प्राप्त करने और उसे इस्तेमाल करने वाले लोग चार वर्षों तक रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को जिस तरह से टरकाते रहे, उसके चलते रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों को ग्रांट की रकम के दुरुपयोग की आशंका हुई तो उन्होंने रोटरी ग्रांट को-ऑर्डिनेटर चंद्रा पामर को जाँच के लिए भेजा, जिन्होंने अपनी जाँच में खासी गड़बड़ियाँ पाईं । उनकी रिपोर्ट के आधार पर रोटरी इंटरनेशनल ने पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नीरज सोगानी को डिस्ट्रिक्ट 3054 को डिस्ट्रिक्ट स्पोंसर्ड ग्रांट्स की सुविधाओं से अस्थाई रूप से वंचित करने की जानकारी दी है । यह जानकारी पाकर डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों के होश उड़ गए । डिस्ट्रिक्ट में अनिल अग्रवाल के साथियों/नजदीकियों को ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों को भी आश्चर्य हुआ कि अनिल अग्रवाल बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर पैसा लेकर उसे हड़प जाने जैसा काम कर सकते हैं । इससे भी ज्यादा हैरत की बात 'चोरी और सीना जोरी' वाले उनके मौजूदा रवैये में दिख रही है । अपने गैरजिम्मेदार व बेईमानीभरे रवैये के कारण डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा को मुसीबत में डालने वाले अनिल अग्रवाल जिस तरह से मामले को निपटवाने में सहयोग करने से भी इंकार कर रहे हैं - उससे लोगों को यह भी लग रहा है कि अनिल अग्रवाल वास्तव में रोटेरियन रहने लायक भी हैं क्या ?