नई दिल्ली । लंबी ऊहापोह के बाद, मुसीबत में घिरे/फँसे रोटरी क्लब दिल्ली विकास ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को हरी झंडी दे दी है । सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर क्लब में ही जो राड़ मची हुई थी, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच क्लब की भी काफी बदनामी हो रही थी । रोटरी क्लब दिल्ली विकास डिस्ट्रिक्ट का सिर्फ सबसे बड़ा क्लब ही नहीं है, बल्कि साख और प्रतिष्ठा के मामले में भी इसकी विशेष पहचान है । चूँकि बड़ा क्लब है, इसलिए विचारों और तौर-तरीकों के मामले में विभिन्नता व विविधता के कई कई रूप इसमें सहज ही देखने को मिलते हैं - जिनमें कई दफा टकराव होता भी नजर आता है; लेकिन क्लब की साख व प्रतिष्ठा इसीलिए बनी हुई है कि समय समय पर पैदा होने वाले टकरावों ने कभी भीषण रूप नहीं लिया, और जब कभी लगा कि मामला भीषण रूप लेने जा रहा है - तभी क्लब के संबद्ध सदस्यों ने क्लब की साख व प्रतिष्ठा के प्रति सम्मान दिखाते हुए मामले को यू टर्न दे दिया और हालात सामान्य बना दिए । इस बार भी ऐसा ही हुआ - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को लेकर क्लब में भारी खींचतान थी, जिसे देख/सुन कर लग रहा था कि इस बार क्लब अपनी साख व प्रतिष्ठा की पहचान को खो देगा - लेकिन एक बार फिर ऐसा हुआ कि मामला बिगड़ते बिगड़ते सँभल गया; और सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को उनके अपने क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली विकास की तरफ से सर्वसम्मति से हरी झंडी मिल गई ।
इस बार का फच्चर हालाँकि खासा गहरा फँसा था । दरअसल बड़ा क्लब होने के कारण, क्लब के कई सदस्य डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने/होने के आकाँक्षी हैं । समस्या लेकिन यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के सभी आकाँक्षी सिर्फ आकाँक्षा पाले रहे और इसे व्यावहारिक रूप देने में वास्तव में विफल रहे । इसके चलते क्लब में माहौल यह बन गया था कि क्लब में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का जो नया आकाँक्षी बनता, पुराने आकाँक्षी मिलकर उसकी टाँग खींचने लगते और उसे आगे बढ़ने से रोक देते । पिछले कुछेक वर्षों में रोटरी क्लब दिल्ली विकास के जिस किसी सदस्य ने भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की आकाँक्षा दिखाई, उसे क्लब में ही इतने विरोधों का सामना करना पड़ा कि उसकी आकाँक्षा को दम ही तोड़ना पड़ा । क्लब में हर वर्ष यह दिलचस्प नजारा देखने को मिलता कि शुरू में तो क्लब के वरिष्ठ सदस्य प्रेसीडेंट की तारीफ करने तथा उसे उत्साहित करने के लिए कहते कि वह तो गवर्नर मैटेरियल हैं, और उसे गवर्नर बनने की दिशा में बढ़ना चाहिए; इस तरह की बातें सुनकर प्रेसीडेंट बेचारा जब सचमुच गवर्नर बनने की दिशा में आगे बढ़ने लगता - तो उसे गवर्नर मैटेरियल बताने वाले लोग ही उसकी टाँग खींचने में जुट जाते । इसीलिए हर तरह से बड़ा, प्रमुख और समर्थ होने के बावजूद, रोटरी क्लब दिल्ली विकास अभी तक डिस्ट्रिक्ट को एक गवर्नर नहीं दे सका है ।
इस बार का नजारा भी पिछली बार के नजारों जैसा ही था - सुनील मल्होत्रा में पहले तो खूब हवा भरी गई, जिसके चलते सुनील मल्होत्रा ने क्लब के प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारियों को निभाने के साथ-साथ एक भावी उम्मीदवार के रूप में भी अपनी सक्रियता को संयोजित किया; लेकिन जब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की तरफ सचमुच अपने कदम बढ़ाये, तो उनकी कमियों और कमजोरियों की बातें करके उन्हें हतोत्साहित करने का खेल शुरू हुआ । इस बार के नजारे में लेकिन एक ट्विस्ट भी था, और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के नए आकाँक्षी के रूप में सुनील मल्होत्रा ने आसानी से हार मानने का रवैया नहीं दिखाया और क्लब में पैदा हुई प्रतिकूल स्थितियों का सामना करने का निश्चय प्रकट किया । सुनील मल्होत्रा को अपने इसी रवैये का फायदा भी मिला - मजे की बात यह हुई कि क्लब में जो लोग उनकी उम्मीदवारी को लेकर संदेह प्रकट करते हुए विरोध कर रहे थे, अंततः वही उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तावक व समर्थक बने । गौर करने की महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प बात यह है कि सुनील मल्होत्रा को क्लब के प्रेसीडेंट का पद भी आसानी से नहीं मिला था; क्लब के प्रेसीडेंट का पद भी वह अपनी जिद भरी निरंतर सक्रियता, अपने उदार व्यवहार और किस्मत के भरोसे पा सके थे; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए क्लब के सदस्यों की सर्वसम्मत सहमति भी उन्हें अपनी जिद भरी निरंतर सक्रियता, अपने उदार व्यवहार व किस्मत के भरोसे ही प्राप्त हुई है । इस तथ्य ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उनकी उम्मीदवारी को एक खास 'वजन' दे दिया है । सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी को मिले इस वजन ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को दिलचस्प बना दिया है ।