Sunday, February 3, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य संजीव सिंघल ने अपनी, इंस्टीट्यूट की और प्रोफेशन की गरिमा को ताक पर रख कर गुड़गाँव ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी के चुनाव में अपनी जो भूमिका और संलग्नता 'दिखाई' है, उसने उनकी फजीहत के हालात पैदा किए

गुड़गाँव । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य बने संजीव सिंघल ने गुड़गाँव ब्रांच के लिए होने वाले चुनाव में अतुल कंसल और मोहित सिंघल को चुनाव जितवाने की जिम्मेदारी ले कर और 'दिखा' कर गुड़गाँव ब्रांच के चुनाव को दिलचस्प तो बना दिया है, लेकिन अपनी फजीहत करवा ली है । गुड़गाँव ही नहीं, नॉर्दर्न रीजन और दूसरे रीजन के भी जिन लोगों को संजीव सिंघल की इस हरकत का पता चला है, उनका यही कहना है कि इससे यही पता चला है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए चुने जाने वाले संजीव सिंघल कितनी छोटी सोच के व्यक्ति हैं । ऐसे व्यक्ति का सेंट्रल काउंसिल के लिए चुना जाना इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है । प्रोफेशन के लोगों को संजीव सिंघल से उम्मीद होगी कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में वह इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन से जुड़े बड़े मसलों को हल करने/करवाने के प्रयासों में जुटें, लेकिन संजीव सिंघल छोटे छोटे चुनावों और मसलों में उलझे होंगे । कुछेक लोगों का यह भी कहना है कि संजीव सिंघल को गुड़गाँव ब्रांच के चुनाव में यदि इतनी ही दिलचस्पी है, तो उन्हें गुड़गाँव ब्रांच का चुनाव लड़ना चाहिए था; उन्होंने सेंट्रल काउंसिल का चुनाव क्यों लड़ा ? मजे की बात यह हुई है कि संजीव सिंघल की हो रही फजीहत को देख/जान कर उनके समर्थित उम्मीदवारों - अतुल कंसल और मोहित सिंघल को खतरा/डर यह हो रहा है कि संजीव सिंघल की हो रही फजीहत कहीं उनके चुनाव पर उल्टा असर डाल कर उनकी उम्मीदवारी का कबाड़ा न कर दे ।  
उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के ब्रांच चुनाव में दिलचस्पी लेने की बात हालाँकि कोई अनोखी बात नहीं है । यह बड़ी स्वाभाविक सी स्थिति है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को अपनी राजनीति के लिए ब्रांचेज के लोगों के समर्थन की जरूरत पड़ती है, और ब्रांचेज के उन्हीं लोगों में से कुछेक जब ब्रांच के चुनाव में उम्मीदवार बनते हैं - तो बदले में वह सेंट्रल काउंसिल सदस्य की मदद चाहते हैं, और सेंट्रल काउंसिल सदस्य उनकी मदद करते हैं । लेकिन यह सब बड़े दबे-छिपे तरीके से होता है । सेंट्रल काउंसिल सदस्य इंस्टीट्यूट की अपनी 'हैसियत' की गरिमा का ध्यान रखते हुए और उसको दागदार बनने से बचाते हुए यह सब करते हैं । संजीव सिंघल ने लेकिन यह सब बड़े ही फूहड़ और सड़क छाप तरीके से किया, इसलिए उनकी भूमिका और संलग्नता विवादग्रस्त हो गई और उन्हें फजीहत का शिकार बनना पड़ रहा है । गुड़गाँव ब्रांच के चुनाव की ही बात करें तो यहाँ सेंट्रल काउंसिल सदस्य अतुल गुप्ता की भी दिलचस्पी देखी/पहचानी जा रही है; और दो-तीन उम्मीदवार उनके समर्थन की छड़ी पकड़ कर चुनाव जीतने की कोशिश करते सुने जा रहे हैं । सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा के पास भी एक उम्मीदवार का झंडा होने की चर्चा है । लेकिन इनके खेल पर्दे के पीछे चल रहे हैं, और इन्हें अपने उम्मीदवारों के लिए कुछ करते हुए देखा/सुना नहीं गया है । लेकिन इनके विपरीत व्यवहार करते हुए संजीव सिंघल ने अपने दोनों उम्मीदवारों के चुनावी प्रबंध के लिए बाकायदा कोर टीम बनाई, उसकी मीटिंग के लिए गुड़गाँव आए, चुनावी दिशा-निर्देश तय किए । उनकी इस कार्रवाई का सोशल मीडिया पर प्रचार किया गया, ताकि सभी लोगों को पता चले कि संजीव सिंघल किन किन उम्मीदवारों को गुड़गाँव ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में देखना चाहते हैं ।
संजीव सिंघल की इस कार्रवाई से जुड़ी बातें और तस्वीरें सोशल मीडिया पर आईं तो बात फैली और जिसने भी यह सब देखा, उसे संजीव सिंघल की इस हरकत पर हैरानी हुई । हर किसी को यही लगा कि संजीव सिंघल इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य बन रहे हैं, और इस रूप में इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन में बड़ी जिम्मेदारी से जुड़ रहे हैं - ऐसे में उन्हें गुड़गाँव ब्रांच के चुनाव में इस हद तक शामिल होने की भला क्या जरूरत है ? और यदि जरूरत है भी, तो अपनी संलग्नता को थोड़ा छिपा कर उन्हें उस जरूरत को पूरा करना चाहिए - ताकि उनकी भी और इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन की भी गरिमा बची रह सके । संजीव सिंघल को फजीहत का शिकार होता देख उनके कुछेक नजदीकियों ने ठीकरा अतुल कंसल और मोहित सिंघल के सिर फोड़ना शुरू किया है । उनका कहना है कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से अपने जोश और अपनी बेवकूफी में इन्होंने मामले को ऐसा राजनीतिक रूप दे दिया, जिसने संजीव सिंघल के लिए फजीहत वाले हालात बना दिए हैं । संजीव सिंघल के नजदीकियों की तरफ से दी जा रही इस तरह की सफाई ने लेकिन मामले को शांत करने की बजाये भड़का और दिया है । लोगों का कहना है कि सारे मामले में दोष यदि सिर्फ अतुल कंसल और मोहित सिंघल का है, तो इन जैसे लोगों की उम्मीदवारी का समर्थन संजीव सिंघल क्यों कर रहे हैं ? इन जैसे लोगों को जब संजीव सिंघल की, इंस्टीट्यूट की और प्रोफेशन की पहचान, प्रतिष्ठा, गरिमा की चिंता नहीं है; और पूरी तरह से खिलवाड़ करने में लगे हैं - तो संजीव सिंघल इन्हें गुड़गाँव ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में क्यों भेजना/देखना चाहते हैं ? अतुल कंसल और मोहित सिंघल की उम्मीदवारी के चक्कर में संजीव सिंघल ने अपनी जो फजीहत करवा ली है, उसने गुड़गाँव ब्रांच के चुनावी परिदृश्य को लेकिन खासा दिलचस्प बना दिया है ।