नई दिल्ली/मुंबई । अतुल गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने के लिए चुनाव से पहले के करीब दस घंटों में जो राजनीतिक उठापटक हुई, उसने अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए ताल ठोंक रहे एनसी हेगड़े तथा जय छैरा की तैयारियों को तगड़ा झटका दिया है । मजे की बात यह है कि इस वर्ष के चुनावी नतीजे के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ की 'रणनीति' की तारीफ की जा रही है, और उसे श्रेय दिया जा रहा है; लेकिन प्रफुल्ल छाजेड़ की यह कामयाबी ही - प्रफुल्ल छाजेड़ के समर्थन के भरोसे अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी कर रहे एनसी हेगड़े के लिए मुसीबत बन गई है । दूसरी तरफ, पूर्व प्रेसीडेंट उत्तम अग्रवाल के नजदीक तो क्या - दूर से भी तार जोड़े रहे उम्मीदवारों का जो बुरा हाल हुआ, उससे जय छैरा को अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने के लिए की जा रही अपनी तैयारी पर मिट्टी पड़ती दिख रही है । दरअसल इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल समर्थित उम्मीदवारों को सफलता के आसपास भी न फटकने देने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ ने जो मोर्चा खोला, उसने कामयाबी तो प्राप्त कर ली, लेकिन उसके कारण उनके अपने 'ग्रुप' में संदेह और अविश्वास का जो महौल बना है, उसने अगले वर्ष के चुनावी समीकरणों को अनिश्चय में डाल दिया है । इस वर्ष हुए चुनाव में केमिशा सोनी तथा एमपी विजय कुमार को चुनाव से ठीक पहले 'अपने' ही लोगों से जो झटका लगा, उसके कारण यह दोनों अपने आप को ठगा हुआ पा रहे हैं । इसी बात ने सत्ता खेमे में आपसी विश्वास को झटका दिया है, और इस झटके के चलते ही इंस्टीट्यूट की राजनीति के सत्ता खेमे में नए समीकरण बनने की संभावना बनी है - और इस संभावना में ही अलग अलग कारणों से एनसी हेगड़े तथा जय छैरा के लिए मुसीबत के संकेत प्रकट हैं ।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उम्मीदवार तो कई थे; लेकिन मुख्य प्रतिस्पर्धा में अतुल गुप्ता, केमिशा सोनी व अब्राहम बाबु के नाम थे । अब्राहम बाबु को उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जाने का खामियाजा भुगतना पड़ा, और चुनाव से दो/एक दिन पहले ही वह पिछड़ते हुए लगने लगे । अब्राहम बाबु के पिछड़ने से एमपी विजय कुमार के लिए मौका बना । इस वर्ष के चुनाव में सबसे दिलचस्प बात यह रही कि काउंसिल सदस्यों के बीच उत्तम अग्रवाल को लेकर भारी विरोध का भाव रहा, जिस कारण हर उम्मीदवार जोरशोर से यह दावे करने को मजबूर हो रहा था कि उसका उत्तम अग्रवाल के साथ कोई लेना देना नहीं है । वास्तव में यही बात एमपी विजय कुमार के लिए घातक बनी । उत्तम अग्रवाल ने अपने सभी उम्मीदवारों की दुर्दशा देखी, तो उनकी तरफ से एमपी विजय कुमार को समर्थन देने की कार्रवाई हुई । एमपी विजय कुमार मौके की नजाकत को भाँप नहीं सके, और उत्तम अग्रवाल के साथ आने से पैदा होने वाले खतरे का आभास नहीं कर सके । दूसरी तरफ, उत्तम अग्रवाल की इस चाल को फेल करने के लिए प्रफुल्ल छाजेड़ के नेतृत्व में सत्ता खेमे ने अपनी तैयारी की, और अतुल गुप्ता पर ध्यान केंद्रित किया । चुनाव से पहले के करीब दस घंटों में जो राजनीतिक उठापटक चली और जिसमें प्रफुल्ल छाजेड़ तथा पूर्व प्रेसीडेंट्स नीलेश विकमसे व सुबोध अग्रवाल ने अपने अपने स्तर पर मोर्चा संभाला - उसमें केमिशा सोनी को इंस्टीट्यूट की प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति पर हावी रहने वाली पुरुषवादी सोच का शिकार बनना पड़ा और उनके व अतुल गुप्ता के बीच चलने वाली प्रतिस्पर्धा में पलड़ा अतुल गुप्ता की तरफ पूरी तरह झुक गया । केमिशा सोनी को तगड़ा झटका पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा की तरफ से लगा; अमरजीत चोपड़ा शुरू से केमिशा सोनी की उम्मीदवारी के पक्ष में थे - लेकिन ऐन मौके पर वह अतुल गुप्ता की तरफदारी में जुट गए । अमरजीत चोपड़ा की पाला बदलने की इस कार्रवाई के पीछे पूर्व प्रेसीडेंट मनोज फडनिस को देखा/पहचाना गया ।
चुनाव से ठीक पहले इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के बड़े महारथियों के अतुल गुप्ता के पक्ष में जुटने के पीछे दरअसल उत्तम अग्रवाल की राजनीति को पूरी तरह से फेल करने की कोशिश थी । यह कोशिश तो सफल रही, लेकिन इस कोशिश के चलते एमपी विजय कुमार और केमिशा सोनी को जो झटका लगा, उसने सत्ता खेमे में परस्पर अविश्वास की बीज बो दिए हैं । इन दोनों को लगा है कि इन्हें इनके अपने लोगों ने ही धोखा दिया है । मजे की बात यह रही कि पिछली काउंसिल में मधुकर हिरगंगे ने अतुल गुप्ता की 'प्रोफेशनल बेईमानियों' को लेकर जो मुहिम चलाई हुई थी, उसे सभी प्रमुख लोगों का समर्थन प्राप्त था, और जिसके चलते इंस्टीट्यूट की इनडायरेक्ट टैक्सेस कमेटी पर कब्जे की अतुल गुप्ता की कोशिशें सफल नहीं हो सकीं थीं - लेकिन वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अचानक से सभी लोग अतुल गुप्ता के समर्थक बन गए । इस बात ने वाइस प्रेसीडेंट पद की राजनीति में केमिशा सोनी के लिए चुनौती बढ़ा दी है । इस वर्ष हुए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उत्तम अग्रवाल की जो राजनीतिक फजीहत हुई है, उसका श्रेय भले ही प्रफुल्ल छाजेड़ की रणनीति को दिया जा रहा है; लेकिन रणनीतिक सफलता के बाद सत्ता खेमे में परस्पर अविश्वास का जो माहौल बना है, उसमें प्रफुल्ल छाजेड़ को राजनीतिक नुकसान होने का खतरा भी छिपा है । यह खतरा एनसी हेगड़े की अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी को झटका देता है । एनसी हेगड़े दरअसल प्रफुल्ल छाजेड़ के भरोसे वाइस प्रेसीडेंट बनने की तैयारी में हैं; ऐसे में प्रफुल्ल छाजेड़ का नुकसान वास्तव में एनसी हेगड़े का ही नुकसान होगा । इस वर्ष जो हुआ, उसने जय छैरा के लिए भी मुसीबत खड़ी की है । जय छैरा को उत्तम अग्रवाल के 'कवरिंग' उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । जय छैरा ने अपनी तरफ से होशियारीभरी चाल तो काफी दिखाई हुई है - जिसके तहत एक तरफ उन्होंने उत्तम अग्रवाल से भी तार जोड़े हुए हैं, और दूसरी तरफ वह उत्तम अग्रवाल के विरोधियों के साथ भी 'खड़े' रहने की कोशिश करते रहते हैं; लेकिन इस बार जो हुआ, उससे एक बात साफ हो गई है कि इस तरह की चालबाजी अब काम नहीं आएगी । वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर एनसी हेगड़े तथा जय छैरा के सामने पैदा हुई नई मुसीबतों ने वेस्टर्न रीजन के सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के बीच अगले वर्ष वाइस प्रेसीडेंट पद को लेकर होने वाली होड़ को दिलचस्प बना दिया है ।