Friday, February 1, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में अजय मदान की जीत को सुनिश्चित देख/जान कर ही क्या राजा साबू ने इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं ली; और इस तरह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में राजा साबू के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप व नियंत्रण के युग का अंत हो गया है

कुरुक्षेत्र । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए वोटिंग लाइन खुलने के दो दिन के भीतर ही अजय मदान की जीत के नगाड़े जिस तरह से बजने और सुनाई देने लगे हैं, उसमें डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक व प्रशासनिक आवोहवा के बदलने के संकेत और सुबूत के स्वर गूँजते नजर आ रहे हैं । पिछले कई वर्षों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी परिदृश्य को देखते आ रहे डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना/बताना है कि यह पहली बार हो रहा है कि राजेंद्र उर्फ राजा साबू इस चुनाव में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं, और अपने 'आदमी' को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने के लिए तीन-तिकड़म नहीं कर रहे हैं । इन लोगों का कहना/बताना है कि अब से पहले शायद ही कभी हुआ हो कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू ने प्रत्यक्ष और या अप्रत्यक्ष भूमिका न निभाई हो । इस संदर्भ में राजा साबू बहुत होशियारी और सावधानी से फील्डिंग सजाते रहे हैं; पहले वह पर्दे के पीछे रहते हैं, और सारा खेल उनके 'चेले' संभालते हैं - लेकिन जब कभी ऐसा लगता है कि उनके चेले खेल संभाल नहीं पा रहे हैं, तब राजा साबू खुद मैदान में उतरते हैं । हालाँकि इसकी नौबत कभी-कभार ही आई है । चार वर्ष पहले तक यह खेल सुचारु रूप से चलता रहा था; चार वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू और उनके चेलों द्वारा सजाई गई फील्डिंग को चकमा देकर लेकिन जब टीके रूबी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए गए, तब राजा साबू को सारे पर्दे हटा कर खुलकर मैदान में कूदना पड़ा । अपने सारे लॉव-लश्कर और फौज-फाटे को इस्तेमाल करते हुए और रोटरी की अपनी सारी 'कमाई' झोंक कर निहत्थे टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बनने देने के लिए राजा साबू ने क्या क्या किया और उनके क्या नतीजे निकले, यह 'रचनात्मक संकल्प' में समय समय पर बताया जाता रहा है । टीके रूबी से लड़ी लड़ाई में मिले तगड़े झटके के बाद भी राजा साबू और उनके चेलों ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर वापस पकड़ बनाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन उनकी दाल ग़लती हुई दिखी नहीं और बार-बार उन्हें मात ही मिली । 
बार-बार मिलने वाली पराजयों के बावजूद राजा साबू और उनके चेले जिस तरह से डिस्ट्रिक्ट की गतिविधियों और मामलों में 'कभी आगे तो कभी पीछे' होते नजर आते रहे हैं, उससे लग रहा था कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू और उनकी टीम खासी दिलचस्पी लेगी । कभी हाँ, तो कभी ना - के संकेतों में उलझते/फँसते हुए कपिल गुप्ता अंततः जब उम्मीदवार बन गए, तो यही माना/समझा गया था कि राजा साबू और उनकी टीम से समर्थन की हरी झंडी मिलने के बाद ही कपिल गुप्ता अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत करने के लिए तैयार हुए हैं । यही सब सोचने/समझने के चलते इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को दिलचस्पी के साथ देखा/पहचाना जा रहा था; लेकिन राजा साबू और उनकी 'टीम' के सदस्यों ने इस वर्ष जिस तरह से अपने आपको चुनाव से दूर रखा, और कपिल गुप्ता को अकेला छोड़ दिया - उससे लोगों को लगा है कि राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपनी भूमिका को समाप्त मान लिया है । राजा साबू की टीम के कुछेक सदस्यों के रूप में पहचाने जाने वाले यशपाल दास, शाजु पीटर, जेपीएस सिबिया, योगिंदर दीवान आदि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश करते हुए सुना जरूर गया - लेकिन उनकी कोशिशों का कोई असर पड़ता नहीं लगा/दिखा है । राजा साबू और उनकी टीम की तरफ से चूँकि कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में कोई संगठित कोशिश नहीं हुई, इसलिए एक उम्मीदवार के रूप में कपिल गुप्ता की हालत इतनी पतली हो गई कि सतीश सलूजा जैसे उनके नजदीकी समर्थकों तक ने उनकी उम्मीदवारी से दूरी बना ली । इस कारण से इस वर्ष का चुनाव एकतरफा तो हो ही गया, उसका रोमांच भी खत्म हो गया ।
यही वजह रही कि चुनाव के लिए वोटिंग लाइन खुलते ही क्लब्स के बीच वोट डालने के लिए होड़ मच गई और दावे किए/सुने गए कि पहले दो दिनों में ही करीब अस्सी प्रतिशत वोट पड़ गए । इसी के साथ अजय मदान की जोरदार जीत होने के दावे सुनाई देने लगे । कहा/बताया गया कि क्लब्स के बीच वोट डालने का जो जोश बना, उनमें अधिकतर अजय मदान के समर्थक क्लब्स ही थे - और इस तरह उन्होंने अजय मदान की जीत को पक्का कर दिया । लोगों का कहना है कि इस वर्ष से ज्यादा रोमांच तो पिछले वर्ष रहा/बना था, जबकि सुरेश सबलोक की उम्मीदवारी को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था । इस वर्ष कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी का 'वजन' ज्यादा था और इस नाते उम्मीद की जा रही थी कि वह अजय मदान की उम्मीदवारी को अच्छी टक्कर देंगे - लेकिन कपिल गुप्ता अपनी उम्मीदवारी के अभियान को ठीक से संयोजित नहीं कर सके और इसीलिए वह अपने संभावित समर्थकों में भी जोश नहीं भर सके और इसके चलते इस वर्ष के चुनाव को बे-रौनक कर बैठे । संभवतः यही कारण होगा कि राजा साबू ने इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कोई दिलचस्पी न लेने में ही भलाई देखी/पहचानी है; और इस तरह इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में राजा साबू के प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष हस्तक्षेप व नियंत्रण के युग का अंत हुआ है ।