Thursday, February 28, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में चेयरमैन बने हरीश चौधरी की धोखेबाजी तो सभी को नजर आ रही है, लेकिन सातवाँ धोखेबाज अभी भी 'छिपा' बैठा है; सातवें वोटर के रूप में कुछेक लोग अविनाश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कई लोग अजय सिंघल को 'देखते' हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन की चुनावी राजनीति में हरीश चौधरी ने कुछ ही मिनटों में ऐसा रंग बदला कि काउंसिल में धोखेबाजी और दगाबाजी के अभी तक के सारे किस्से फीके पड़ गए - और हरीश चौधरी ने मौकापरस्ती का अनोखा रिकॉर्ड बनाया । हरीश चौधरी पहले तो 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' में चेयरमैन पद के चुनाव में उम्मीदवार बनते हैं, और अपने नाम की पर्ची डलवाते हैं - लेकिन वहाँ जब वह चेयरमैन नहीं चुने जाते हैं, तो कुछ ही मिनटों के बाद काउंसिल के 13 सदस्यों के बीच होने वाले चुनाव में सभी को आश्चर्य में डालते हुए वहाँ उम्मीदवार बन जाते हैं और 7 - 6 से चेयरमैन का चुनाव जीत लेते हैं । घटनाक्रम के सीक्वेन्स तथा उसके समयांतराल को देखें तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि हरीश चौधरी ने धोखेबाजी की स्क्रिप्ट पहले से तैयार करके रखी थी - पहले तो वह अपने आप को 'आठ सदस्यीय सत्ता खेमे' के साथ दिखाते रहे, लेकिन वहाँ जब उनकी दाल नहीं गली, तो उन्होंने अपने दूसरे प्लान पर काम किया और चेयरमैन का पद हासिल कर लिया । कुछेक वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तरफ से सुनने को मिला कि वह पिछले कई वर्षों से चेयरमैन बनने वाले को बधाई देते आ रहे हैं, लेकिन पहली बार ऐसा हुआ है कि हरीश चौधरी को बधाई देने का उनका मन नहीं हुआ; उन्हें लगा कि धोखेबाजी से चेयरमैन का पद पाने वाले हरीश चौधरी को बधाई देना प्रोफेशन व इंस्टीट्यूट की तौहीन करना ही होगा । वैसे हरीश चौधरी की धोखेबाजी की हरकत पर हैरान होने वाले लोगों को 'रचनात्मक संकल्प' की 25 जनवरी की रिपोर्ट को फिर से पढ़ लेना चाहिए, जिसमें कह दिया गया था कि आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप में कुछेक सदस्य तो पहले ही वर्ष में चेयरमैन बनना चाहते हैं, और इसके लिए पाला बदलने से भी परहेज नहीं करेंगे और ग्रुप की एकता बनाये रखना मुश्किल ही होगा । हरीश चौधरी ने 34 दिन पहले 'रचनात्मक संकल्प' की कही गई बात को सच साबित कर दिखाया गया है ।
मजे की, लेकिन गंभीर बात यह है कि हरीश चौधरी की धोखेबाजी तो सभी को नजर आ रही है - लेकिन सातवाँ धोखेबाज अभी भी 'छिपा' बैठा है । माना/समझा जा रहा है कि हरीश चौधरी को 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' से बाहर के पाँच सदस्यों का समर्थन तो मिला ही है - लेकिन यह बात पहेली ही बनी हुई है कि उन्हें सातवाँ वोट किसका मिला है । हरीश चौधरी की धोखेबाजी का मुख्य शिकार बने रतन सिंह यादव तथा अन्य कुछेक लोग सातवें वोटर के रूप में अविनाश गुप्ता का नाम लेते हैं, तो कई लोग अजय सिंघल को 'देखते' हैं । 'आठ सदस्यीय सत्ता ग्रुप' में हरीश चौधरी, रतन सिंह यादव, अविनाश गुप्ता व अजय सिंघल को चेयरमैन पद के लिए ज्यादा लालायित देखा/पहचाना जा रहा था । इनके बीच होड़ केवल चेयरमैन बनने को लेकर ही नहीं है; अपने आपको ज्यादा से ज्यादा जेनुइन और प्रभावी दिखाने की होड़ भी है । यह चारों लोग हालाँकि दूसरी बार में रीजनल काउंसिल का चुनाव जीते हैं, लेकिन चारों ही समझते यह हैं कि जैसे इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के सबसे बड़े तुर्रमखाँ यही हैं । ऐसे में, चारों ही एक दूसरे को आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते हैं । इन्होंने ग्रुप तो बना लिया, लेकिन अपने आप को दूसरों से आगे और बड़ा दिखाने की कोशिशों में भी लगे रहे - दरअसल यही कारण है कि सातवें वोटर के रूप में अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल को ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि पर्चीबाजी में रतन सिंह यादव का नाम निकलने की बात को अविनाश गुप्ता और अजय सिंघल हजम नहीं कर पाए और हरीश चौधरी की धोखेबाजी के खेल में शामिल हो गए । यह बात यद्यपि अभी भी साफ नहीं है कि हरीश चौधरी को चेयरमैन चुनवाने में मदद करने वाला सातवाँ समर्थक/वोटर वास्तव में कौन है ?
रतन सिंह यादव के नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव धोखेबाजी के लिए हरीश चौधरी के साथ-साथ अविनाश गुप्ता को कोस रहे हैं - लेकिन पब्लिकली वह जो हुआ, उसे डेमोक्रेटिक वैल्यूज की जीत बता रहे हैं । रतन सिंह यादव का यह मजेदार किस्म का मसखरापन है - पहले तो वह डेमोक्रेटिक वैल्यूज का 'बलात्कार' करते हुए 13 सदस्यों के बीच आठ सदस्यों का ग्रुप बनाते हैं, 13 की बजाये आठ लोगों के बीच चेयरमैन का चुनाव पर्चीबाजी से करने की प्रक्रिया में शामिल होते हैं; और फिर 'फिसल पड़े तो हरगंगे' की तर्ज पर डेमोक्रेटिव वैल्यूज का लिहाफ ओढ़ लेते हैं । लोगों का कहना है कि रतन सिंह यादव की अतिमहत्त्वाकाँक्षा और उस महत्त्वाकाँक्षा को पूरा करने के लिए की गईं मसखरेपन व फूहड़ किस्म की हरकतें ही रतन सिंह यादव को ले डूबीं और उनके हाथ में लगभग आ चुकी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चेयरमैनी फिसल गई । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए टर्म के लिए चुने गए सदस्यों में हालाँकि कई लोगों की चेयरमैन पद पर निगाह थी, और वह अपने अपने तरीके से गोटियाँ सेट करने में लगे थे - लेकिन रतन सिंह यादव इस मामले में बेहद फूहड़ तरीके से जुटे थे, और उनके नजदीकियों व समर्थकों ने माहौल को और भी हास्यास्पद बनाया हुआ था । उनके नजदीकियों और समर्थकों ने पिछले कई दिनों से उन्हें 'चेयरमैन साब' कहना शुरू किया हुआ था, और यह सुन सुन कर रतन सिंह यादव गदगद हुआ करते थे । खुद रतन सिंह यादव तर्क भी देते थे कि नई रीजनल काउंसिल के सदस्यों में वह चूँकि सबसे 'बूढ़े' हैं, इसलिए उन्हें चेयरमैन बना देना चाहिए । रतन सिंह यादव को नजदीक से जानने वाले कुछेक लोगों का कहना/बताना है कि नई काउंसिल में चुने गए लोगों में रतन सिंह यादव ही सबसे जेनुइन व गंभीर व्यक्ति हैं, लेकिन अपने व्यवहार और अपनी बातों में वह तालमेल नहीं बना पाते हैं; उनके कुछेक घनघोर किस्म के समर्थक तो और भी माशाल्लाह हैं - रतन सिंह यादव तथा उनके घनघोर किस्म के समर्थक अपने तरीकों व अपनी बातों से रतन सिंह यादव की भद्द पिटवाते रहते हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की नई पारी जिस अप्रत्याशित धमाके के साथ शुरू हुई है, उसे देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि रीजनल काउंसिल में आगे भी नए नए तमाशे देखने को मिलते रहेंगे ।