चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अजय मदान को बड़े अंतर से जितवा कर डिस्ट्रिक्ट 3080 के लोगों ने एक बार फिर राजेंद्र उर्फ राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को तगड़ी मात दी है । इस मामले में यह भी कह सकते हैं कि राज साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने एक बार फिर डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं और उनकी सोच का सम्मान करने/रखने से इंकार किया । इस बार बड़ा फर्क लेकिन यह जरूर रहा कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सोच व उनकी भावनाओं के साथ न रहने के बावजूद उन पर अपनी मनमानी थोपने के लिए कोई प्रयास नहीं किया और चुपचाप आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी । इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव का मजेदार पक्ष यह है कि पहले दिन से ही हर कोई अजय मदान की जीत को लेकर आश्वस्त था - बहस सिर्फ इस बात को लेकर थी कि वह कितने अंतर से जीतेंगे ? कपिल गुप्ता ने अपनी उम्मीदवारी को जिस तरह से 'लिया', उससे अजय मदान की जीत का अंतर बढ़ता ही जा रहा था - और हर कोई यह सोच सोच कर हैरान हो रहा था कि कपिल गुप्ता उम्मीदवार बने क्यों हैं ? इस बार का चुनावी सीन इस कदर एकतरफा था कि उसमें कोई रोमांच ही नहीं बचा था, जिसके नतीजे के रूप में मजेदार और विडंबनापूर्ण नजारा यह देखने को भी मिला कि अपने आप को महारथी समझने वाले और अभी तक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) बनाने वाले कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की हालत यह हो गई कि तीन तीन उम्मीदवारों के होने के बावजूद कोई उनके पास मदद माँगने के लिए फटका तक नहीं ।
इस बार के चुनाव में दिलचस्पी की बात सिर्फ यह थी कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अपनी दुर्दशा से सबक लेकर अब डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं तथा उनकी सोच का सम्मान करना सीखेंगे या अभी भी अपनी ऐंठन में रहेंगे ? यह सवाल दरअसल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण और दिलचस्प हो गया था, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की सक्रियता को पहली बार ठंडा पड़ते देखा जा रहा था; अब से पहले कभी ऐसा नहीं हुआ था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में राजा साबू ने प्रत्यक्ष और या अप्रत्यक्ष भूमिका न निभाई हो; लेकिन इस बार वह आश्चर्यजनक ढंग से 'अपने' उम्मीदवार के लिए तीन-तिकड़म करने से दूर बने हुए थे । राजा साबू के इस अप्रत्याशित व्यवहार को देख कर कई लोगों को राजा साबू बदलते हुए लगे और उन्होंने मानना/कहना शुरू किया कि राजा साबू अब डिस्ट्रिक्ट के लोगों की भावनाओं तथा उनकी सोच का सम्मान करना शुरू करेंगे । इस बीच, राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा पर डोरे डालने की खबरें भी लोगों को सुनने को मिल रही थीं, इससे भी इस बात को बल मिला कि राजा साबू अब अलग-थलग रहने की बजाये मिल कर चलना चाहते हैं । इस परिस्थिति में अजय मदान को सौ अधिक वोट मिलने के दावे किए जाने लगे; खुद अजय मदान 105 वोट मिलने की बात करते सुने गए; उनके समर्थक 110 वोटों की गिनती तक जा पहुँचे - हालाँकि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी अपने अनुभवों के चलते राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स पर ज्यादा भरोसा करने के लिए तैयार नहीं थे और अजय मदान को मिल सकने वाले वोटों की संख्या को सौ से कुछ कम पर ठहरता देख/पा रहे थे ।
चुनावी नतीजे ने टीके रूबी को सही साबित किया । वास्तव में इस बार के चुनावी नतीजे का एक महत्त्वपूर्ण संदेश यही है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने बार बार मिलने वाली पराजयों से कोई सबक नहीं सीखा है और वह अभी भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों की सोच और उनकी भावनाओं की उपेक्षा करने के रास्ते पर हैं । गनीमत की बात हालाँकि यह जरूर रही कि इस बार राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों से 'लड़ने' का साहस नहीं दिखाया और चुपचाप तरीके से अपने आप को अलग-थलग कर/रख लिया । वोटिंग शुरू होने से ठीक पहले जितेंद्र ढींगरा के सन डिएगो में आयोजित होने वाली रोटरी इंटरनेशनल असेम्बली में जाने के मौके का फायदा उठाने के लिए राजा साबू के कुछेक साथी गवर्नर्स ने कपिल गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास करना जरूर शुरू किया था, लेकिन अजय मदान की उम्मीदवारी के समर्थन में टीके रूबी के मोर्चा सँभाल लेने से फिर उनकी हिम्मत जबाव दे गई । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने अपने अपने क्लब्स में जूझते हुए कपिल गुप्ता को वोट तो दिलवा दिए, लेकिन कपिल गुप्ता को वह भारी पराजय से नहीं बचा सके । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के लिए यक्ष प्रश्न यह बना हुआ है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स जब यह देख रहे थे कि अस्सी प्रतिशत से अधिक क्लब्स जब अजय मदान की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं, खुद उनके क्लब्स के पदाधिकारी अजय मदान के पक्ष में वोट देना चाहते हैं, और इस सबके चलते वह कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए प्रयास करने तक का साहस नहीं कर पा रहे हैं - आखिर तब फिर उन्होंने अपने अपने क्लब के वोट जबर्दस्ती कपिल गुप्ता को दिलवा कर आखिर क्या 'दिखाने' का काम किया है ? राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स कपिल गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थन में जोरशोर से काम कर रहे होते, तो लोगों के बीच यह सवाल न उठता । राजा साबू और उनके प्रमुख साथियों के क्लब्स के वोट कपिल गुप्ता को मिलने का एक ही संदेश लोगों को समझ में आ रहा है कि चौतरफा दुर्दशा के बावजूद राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स अभी भी अपने आप को क्लब्स के पदाधिकारियों की सोच और उनकी भावना के साथ जोड़ने तथा उनका सम्मान करने के लिए राजी नहीं हैं । चुनावी नतीजे ने लेकिन यह भी साबित कर दिया है कि क्लब्स के पदाधिकारियों तथा प्रमुख सदस्यों को भी राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स की परवाह नहीं रह गई है ।