Friday, May 31, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता के आयोजनों में मिली तवज्जो तथा जोनल सेमीनार किस्म के कार्यक्रमों के जरिये ललित खन्ना डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाने वाले पदाधिकारियों के बीच अपनी पैठ बनाने तथा उसे मजबूत करने का काम कर रहे हैं

नई दिल्ली । ललित खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट में फैली 'शांति' का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए प्रभावी अभियान चलाया है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महत्त्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका निभाने वाले पदाधिकारियों के बीच अपनी पैठ बनाने की सुनियोजित कोशिश की है । ललित खन्ना डिस्ट्रिक्ट के 16 जोन में से 8 जोन में जोनल सेमीनार किस्म के कार्यक्रम कर चुके हैं, तथा बाकी बचे जोन में ऐसे ही कार्यक्रम करने की रूपरेखा बना चुके हैं । अभी तक जो कार्यक्रम हुए हैं, उनमें जोन के क्लब्स के प्रेसीडेंट इलेक्ट तथा अगले रोटरी वर्ष में असिस्टेंट गवर्नर के रूप में जोन का प्रतिनिधित्व करने वाले रोटेरियंस शामिल हुए हैं । ललित खन्ना की तरफ से उनके अलावा, उनके क्लब के मौजूदा प्रेसीडेंट, प्रेसीडेंट इलेक्ट तथा प्रेसीडेंट नॉमिनी कार्यक्रमों में उपस्थित रहे हैं । इन कार्यक्रमों ने ललित खन्ना तथा अगले रोटरी वर्ष के प्रेसीडेंट्स तथा असिस्टेंट गवर्नर्स को एक दूसरे के 'नजदीक' लाने का काम किया है । कुछेक प्रेसीडेंट्स ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया है कि यूँ तो ललित खन्ना और उनकी बातें/मुलाकातें कई बार हो चुकी हैं, और दोनों ने एक-दूसरे को काफी हद तक जान/पहचान लिया है - लेकिन जोनल सेमीनार किस्म के कार्यक्रमों ने एक-दूसरे को और विस्तार व नजदीक से जानने/पहचानने का मौका उपलब्ध करवाया है; और इस लिहाज से यह कार्यक्रम दोनों लोगों के लिए महत्त्वपूर्ण साबित हो रहे हैं ।
जोनल सेमीनार किस्म के अभी तक हुए 8 कार्यक्रमों में शामिल होने वाले प्रेसीडेंट्स को ललित खन्ना से रोटरी के बारे में जानने/सीखने को भी बहुत कुछ मिला, जिस कारण से भी वह ललित खन्ना से खासे प्रभावित हुए हैं । कुछेक प्रेसीडेंट्स ने बताया कि यूँ तो उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के तथा डिस्ट्रिक्ट के ट्रेनिंग प्रोग्राम में काफी कुछ जाना/समझा है; किंतु ललित खन्ना के साथ बातचीत करते हुए उन्हें रोटरी के बारे में ऐसी बहुत सी बातें पता चली, जो इंटरनेशनल व डिस्ट्रिक्ट के ट्रेनिंग प्रोग्राम में भी नहीं बताई गईं थीं । असल में, बहुत सी बातें ऐसी होती ही हैं, जो 'बड़े' ट्रेनिंग प्रोग्राम के 'सिलेबस' में आ भी नहीं सकती हैं, और जो किसी वरिष्ठ रोटेरियन से बातचीत करते हुए ही जानी जा सकती हैं । इसके लिए सेमी-फॉर्मल सेमी-इनफॉर्मल कार्यक्रम होने चाहिए, लेकिन जो होते नहीं हैं । ललित खन्ना  ने पहली बार यह आईडिया अपनाया और क्लब व डिस्ट्रिक्ट के जिम्मेदार पदाधिकारी के रूप में अपनी अपनी भूमिका निभाने की तैयारी करने वाले प्रेसीडेंट व असिस्टेंट गवर्नर के साथ जोनल सेमीनार के रूप में छोटी छोटी मीटिंग्स करने की योजना बनाई और अपनी योजना को क्रियान्वित करने का काम किया । उनकी इस योजना में अगले रोटरी वर्ष के प्रेसीडेंट्स व असिस्टेंट गवर्नर्स जिस तरह से लाभान्वित महसूस कर रहे हैं, और ललित खन्ना से प्रभावित हो रहे हैं - उसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में ललित खन्ना की उम्मीदवारी की खास स्थिति बन गई है ।
इस खास स्थिति को बनाने में डिस्ट्रिक्ट में फिलहाल फैली 'शांति' की भी महत्त्वपूर्ण भूमिका है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट के कई एक प्रमुख नेता लोग जर्मनी में हो रही इंटरनेशनल कन्वेंशन में गए हुए हैं; जो नहीं गए हैं, उन्हें कुछ करने को नहीं सूझ रहा है - जिस कारण वह भी शांत बैठे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार सुनील मल्होत्रा भी चूँकि इंटरनेशनल कन्वेंशन में गए हुए हैं, इसलिए राजनीतिक सरगर्मियाँ बिलकुल ही ठप्प पड़ी हुई हैं । इसके साथ-साथ, पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के आयोजनों में ललित खन्ना को बार-बार जो तवज्जो मिली, उसे प्रेसिडेंट्स इलेक्ट के बीच ललित खन्ना की उम्मीदवारी को दीपक गुप्ता के समर्थन के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । फायदे की इस दोहरी स्थिति का उपयोग करते हुए ललित खन्ना ने जोनल सेमीनार किस्म के कार्यक्रमों के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महत्त्वपूर्ण व निर्णायक भूमिका निभाने वाले पदाधिकारियों के बीच अपनी पैठ बनाने तथा उसे मजबूत करने का काम कर लिया है । जोनल स्तर पर होने वाले कार्यक्रमों का डिजाईन ललित खन्ना ने कुछ इस तरह का रखा है कि उसमें रोटरी के बारे में ज्ञानवर्धक व उपयोगी बातें भी हों, और उपस्थित लोगों के बीच आपसी संवाद भी बने - जिससे उनके बीच विश्वास के संबंध बने । ललित खन्ना और उनके साथियों को विश्वास है कि इससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उनकी उम्मीदवारी को फायदा पहुँचेगा ।

Thursday, May 30, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच 'खिचड़ी पकने' से डरे रतन सिंह यादव ने नितिन कँवर और राजेंद्र अरोड़ा पर डोरे डालने के लिए 'अपने' स्टडी सर्किल को 'मोहरा' बनाया

नई दिल्ली । रतन सिंह यादव ने 'अपने' स्टडी सर्किल में पहले राजेंद्र अरोड़ा और फिर नितिन कँवर को स्पीकर के रूप में आमंत्रित करके दूसरों के साथ-साथ अपने नजदीकियों को भी चौंकाया है । दूसरे लोगों के साथ-साथ उनके नजदीकी भी उनकी इस 'कार्रवाई' को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की उनकी 'रणनीति' के रूप में तो देख/पहचान रहे हैं; लेकिन उनके लिए हैरानी की बात यह है कि जो रतन सिंह यादव हर समय राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर की बुराई करते रहते थे, वह अब इन दोनों के नजदीक होने की कोशिश आखिर किस 'मुँह' से कर रहे हैं । हालाँकि यह सच है कि चुनावी राजनीति में लंबे समय तक दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ नहीं चलती हैं; लेकिन सिद्धांतों और आदर्शों की बात करते रहने वाले रतन सिंह यादव इतनी जल्दी से 'रंग बदलने' का काम करेंगे, यह उनके नजदीकियों ने भी नहीं सोचा था । उल्लेखनीय है कि करीब तीन महीने पहले रतन सिंह यादव ने जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की तैयारी की थी, तब उन्होंने राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को अपनी 'तैयारी' से बाहर रखा था - और यह कहते/बताते हुए बाहर रखा था कि पिछले टर्म में इनकी बेईमानियों व बदतमीजियों के चलते प्रोफेशन के लोगों के बीच इनकी बड़ी बदनामी है, और यह यदि काउंसिल की सत्ता में रहे तो काउंसिल की भी बदनामी होगी । रीजनल काउंसिल की सत्ता हथियाने के लिए चले खेल में रतन सिंह यादव की बदकिस्मती यह रही कि जो मालाएँ उनके और सत्ता में उनके सहयोगी/साथी बनने वाले लोगों के गले में पड़ने के लिए मँगवाई गईं थी, वह उनके विरोधियों के गले की शोभा बन गईं - और बदनामी के चलते जिन राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को रतन सिंह यादव ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की सत्ता से बाहर करने/रखने की तैयारी की थी, वह सत्ता के हिस्सेदार बन गए ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में सत्ता पाने के लिए इस वर्ष जो खेल हुआ, रतन सिंह यादव को उसमें दोहरी चोट पड़ी है । चेयरमैन तो वह नहीं ही बन पाए; जिस ग्रुप में चेयरमैन पद के लिए उनके नाम की पर्ची निकली थी, उस ग्रुप के लोगों ने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि बाकी के दो वर्षों में रतन सिंह यादव के नाम की पर्ची नहीं शामिल की जाएगी - एक बार जब उनका नाम निकल गया है, तो बार-बार उनके नाम की पर्ची नहीं शामिल होगी; पर्ची में नाम निकलने के बाद भी वह चेयरमैन नहीं बन सके, तो यह उनकी समस्या है - ग्रुप के दूसरे लोग उनकी असफलता की 'सजा' क्यों भुगतेंगे ? इससे, रतन सिंह यादव को यह समझ में आ गया है कि अभी तक वह जिस ग्रुप के हिस्सा हैं, उस ग्रुप में चेयरमैन का उम्मीदवार होने का मौका उन्हें नहीं मिलेगा - और इसलिए उन्हें अन्य लोगों का समर्थन जुटाने का प्रयास करना पड़ेगा । राजेंद्र अरोड़ा व नितिन कँवर को बारी बारी से 'अपने' स्टडी सर्किल के आयोजनों में स्पीकर के रूप में बुलाये जाने की रतन सिंह यादव की कार्रवाई को उनके उसी 'प्रयास' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । रतन सिंह यादव की इस कार्रवाई को लेकिन उनके नजदीकी ही आत्मघाती कदम के रूप में देख रहे हैं । नजदीकियों का मानना/कहना है कि राजेंद्र अरोड़ा और या नितिन कँवर कभी भी और किसी भी हालत में रतन सिंह यादव का चेयरमैन पद के लिए समर्थन नहीं करेंगे । रतन सिंह यादव के नजदीकियों का रोना/रट्टा यह है कि इतनी स्पष्ट सी 'राजनीतिक' बात भी रतन सिंह यादव को समझ में क्यों नहीं आ रही है ?
रतन सिंह यादव के कुछेक नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना/बताना है कि नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच बढ़ती दिख रही नजदीकी ने रतन सिंह यादव को ज्यादा परेशान किया हुआ है; और उस 'परेशानी' में ही उन्होंने नितिन कँवर व राजेंद्र अरोड़ा पर डोरे डालने का काम शुरू किया है । रतन सिंह यादव को डर है कि नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच जो खिचड़ी पक रही है, और इन्होंने जिस तरह से चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के साथ 'कुछ पास/ कुछ दूर' का जो रिश्ता बनाया हुआ है - उसके चलते जो भी राजनीतिक समीकरण बनेंगे, उसमें रतन सिंह यादव के लिए तो कोई रोल बचेगा ही नहीं । कुछेक लोगों को लगता है कि रतन सिंह यादव अब नितिन कँवर के जरिये अविनाश गुप्ता को भी साधने की कोशिश कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष रतन सिंह यादव से चेयरमैन बनने का जो मौका छिना, रतन सिंह यादव ने उसके लिए अविनाश गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया था और उन्हें खूब कोसा था - जिसके चलते उनके और अविनाश गुप्ता के बीच छत्तीस का संबंध बन गया है । रतन सिंह यादव के नजदीकियों के अनुसार, रतन सिंह यादव को अब लग रहा है कि जो हुआ सो हुआ, अब उन्हें 'आगे' देखना चाहिए और लोगों के साथ बिगड़े संबंधों को सुधारना चाहिए । राजेंद्र अरोड़ा और नितिन कँवर को 'अपने' स्टडी सर्किल में आमंत्रित करने से उन्होंने इसकी शुरुआत की है । उनकी यह शुरुआत लेकिन अधिकतर लोगों को, यहाँ तक कि उनके नजदीकियों को भी उनकी उल्टी चाल के रूप में नजर आ रही है । पिछले दिनों, गौरव गर्ग के फ्लॉप धरना प्रोग्राम में भी रतन सिंह यादव ने जबर्दस्ती 'फूफा' बनने की कोशिश की थी, जिसमें उन्हें फजीहत ही झेलना पड़ी थी । अपने प्रयासों के कारण रतन सिंह यादव जिस तरह से मुसीबतों से निकलने की बजाये मुसीबतों में और गहरे फँस जा रहे हैं, उससे लगता है कि रतन सिंह यादव के लिए 'आगे' का रास्ता आसान नहीं है ।

Tuesday, May 28, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेक्रेटरी पंकज गुप्ता द्वारा गैरकानूनी बताई जा रही 6 जून की रीजनल काउंसिल की मीटिंग को करने की जिद पर अड़े चेयरमैन हरीश चौधरी जैन के रवैये से काउंसिल में हालात जल्दी सुधरते हुए नजर नहीं आ रहे हैं

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन हरीश चौधरी जैन द्वारा 6 जून को रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाये जाने को लेकर विवाद हो गया है । सेक्रेटरी पंकज गुप्ता ने हरीश चौधरी जैन के इस कदम को इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों से खिलवाड़ करने के नए उदाहरण के रूप में बताया है । पंकज गुप्ता का कहना है कि इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों के अनुसार, चेयरमैन को मीटिंग बुलाने का अधिकार ही नहीं है; नियम-कानूनों केअनुसार, चेयरमैन मीटिंग बुलाने के लिए सेक्रेटरी से कहेगा और सेक्रेटरी मीटिंग बुलायेगा । हरीश चौधरी जैन ने लेकिन सेक्रेटरी को 'कष्ट' देने की जरूरत ही नहीं समझी और खुद से ही 6 जून को मीटिंग बुला ली है । पंकज गुप्ता ने नियम-कानूनों का हवाला देते हुए इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से हरीश चौधरी जैन की इस कार्रवाई की शिकायत की है और 6 जून को बुलाई गई मीटिंग को रद्द करने/करवाने की माँग की है । पंकज गुप्ता का कहना है कि हरीश चौधरी जैन नियमानुसार मीटिंग बुलाने की प्रक्रिया अपनाये; सेक्रेटरी के रूप में वह मीटिंग का नोटिस निकालेंगे - वह तो खुद चाहते हैं कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग हो ताकि यहाँ जो तमाशे हो रहे हैं, उनके कारणों की पहचान हो और सभी को सच्चाई का पता चले । इस तरह देखने को तमाशे की बात यह मिल रही है कि चेयरमैन और सेक्रेटरी रीजनल काउंसिल की मीटिंग होने/बुलाने के पक्ष में तो हैं - लेकिन चेयरमैन इसके लिए नियमों का पालन नहीं करना चाहता है, और सेक्रेटरी नियमों का पालन न होने का वास्ता देकर मीटिंग का विरोध कर रहा है ।
इस तमाशे के पीछे असली कारण दरअसल मीटिंग का एजेंडा है । हरीश चौधरी जैन ने मनमाने तरीके से नियम-कानूनों को धता बता कर जिस मीटिंग का नोटिस निकाला है, उसके एजेंडे पर पंकज गुप्ता को ऐतराज है । उल्लेखनीय है कि 6 जून की प्रस्तावित मीटिंग के एजेंडे में ट्रेजरर विजय गुप्ता को निशाना बनाने की तैयारी है । सेक्रेटरी पंकज गुप्ता का कहना है कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग अवश्य ही होना चाहिए और उसमें सभी मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए और इसके लिए विस्तृत एजेंडा बनना चाहिए । हरीश चौधरी जैन की तरफ से हालाँकि दावा किया जा रहा है कि 6 जून की प्रस्तावित मीटिंग का एजेंडा इसी आधार पर तैयार किया गया है, जिससे कि रीजनल काउंसिल के कामकाज में पैदा हुए मौजूदा गतिरोध को खत्म किया जा सके । हरीश चौधरी जैन की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि रीजनल काउंसिल में कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है; हद की बात यहाँ तक हुई कि स्टॉफ की तनख्वाह समय से नहीं दी जा सकी, जिस कारण स्टॉफ को हड़ताल पर जाना पड़ा और काउंसिल को कई सेमिनार्स तक रद्द करने पड़े हैं, जिसके नतीजे में सदस्यों के बीच नाराजगी व असंतोष पैदा हुआ है । इस स्थिति के लिए हर कोई दूसरों को जिम्मेदार ठहरा रहा है, जिस कारण न तो यह साफ हो पा रहा है कि काउंसिल में ऐसे हालात आखिर बने क्यों और न यह तय हो पा रहा है कि इस हालात से निकले कैसे ? हरीश चौधरी जैन की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि उन्होंने मीटिंग का एजेंडा इसी तरह से बनाया है ताकि आरोपों/प्रत्यारोपों का खेल रुके और साफ साफ पता चले कि गड़बड़ी आखिर है क्या और कहाँ ? मीटिंग बुलाने की प्रक्रिया को भी हरीश चौधरी जैन ने नियमानुरूप बताया है; उनका कहना है कि इंस्टीट्यूट प्रशासन जब भी उनसे पूछेगा, वह यह साबित  कर देंगे कि मीटिंग बुलाने का काम उन्होंने नियमानुरूप ही किया है ।
इस बीच मजे की बात यह हुई है कि हरीश चौधरी जैन और उनके साथियों ने ट्रेजरर विजय गुप्ता के साथ-साथ सेक्रेटरी पंकज गुप्ता को भी आरोपों के घेरे में लेना शुरू कर दिया है, और इसके लिए पिछले दिनों अमृतसर में हुए ओरिएंटेशन कार्यक्रम में बाँटे गए बैजेज के भुगतान को मुद्दा बनाया है । उनकी तरफ से बताया जा रहा है कि कार्यक्रम में 'हीरोपंती' दिखाते हुए पंकज गुप्ता ने घोषणा की थी कि यह बैजेज उनकी तरफ से लोगों को दिए जा रहे हैं, लेकिन अब पता चला है कि उक्त बैजेज का भुगतान काउंसिल के अकाउंट्स से किया गया है, जबकि इसके लिए पर्चेज कमेटी की स्वीकृति भी नहीं ली गई है । पंकज गुप्ता की तरफ से इस मामले में सफाई आई है कि उक्त बैजेज उनकी तरफ से दिए जरूर गए थे, लेकिन उन्होंने यह कभी कहीं नहीं कहा था कि इसका पैसा वह देंगे; और फिर इसका जो भुगतान हुआ है, उस पर चेयरमैन के भी हस्ताक्षर हैं । पंकज गुप्ता की तरफ से कहा/बताया जा रहा है कि चेयरमैन हरीश चौधरी जैन यही गंदी राजनीति खेल रहे हैं - एक तरफ तो वह भुगतान स्वीकृत कर रहे हैं और दूसरी तरफ भुगतान पर सवाल उठा रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कामकाज का इस समय जो बुरा हाल है, और उसे लेकर परस्पर आरोपों/प्रत्यारोपों का जो शोर है - उससे निजात पाने का एक ही तरीका है कि रीजनल काउंसिल सदस्यों की मीटिंग हो और उसमें आमने-सामने सारी बातें हों, ताकि सच्चाई अपने वास्तविक रूप में सामने आ सके । लेकिन यहाँ तो मीटिंग को लेकर ही झगड़ा पैदा हो गया है । झगड़ा भी खासा पेचीदा है - क्योंकि दोनों ही पक्ष चाहते हैं कि मीटिंग हो; झगड़ा लेकिन इस बात को लेकर है कि कैसे हो । इस झगड़े को देखते हुए लगता नहीं है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में हालात जल्दी सुधरेंगे !

Monday, May 27, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए सौदेबाजी के चक्कर में विनोद बंसल ने अजीत जालान की उम्मीदवारी की बलि चढ़ाई है क्या ?

नई दिल्ली । रविंद्र उर्फ रवि गुगनानी के बाद, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवारों में, अब अजीत जालान भी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया से नाराज हो चले हैं - जिसके चलते अजीत जालान की उम्मीदवारी तो खतरे में पड़ती दिख ही रही है, साथ ही डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी भी बढ़ गई लग रही है । अजीत जालान इन दिनों विनोद बंसल और विनय भाटिया पर भड़के हुए नजर आ रहे हैं, और उन्हें जहाँ कहीं मौका मिलता/दिखता है, वह इन दोनों से मिले धोखे का रोना लेकर बैठ जाते हैं । सेक्रेटरीज इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार में लोगों के बीच घूम घूम कर अजीत जालान ने अपना दुखड़ा खूब रोया । अजीत जालान के भड़कने का कारण यह है कि विनोद बंसल और विनय भाटिया ने अचानक से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा कर दी है, और अजीत जालान को उन्होंने बीच मँझधार में छोड़ दिया है । विनोद बंसल और विनय भाटिया के इस अचानक बदले रवैये से अजीत जालान हक्के-बक्के रह गए हैं; क्योंकि अभी तक यह दोनों उनकी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के लिए तरह तरह के उपाय कर रहे थे, और उनके साथ मिल कर उनके चुनाव अभियान की योजना बना रहे थे । अजीत जालान का कहना है कि उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि विनोद बंसल और विनय भाटिया उन्हें इस तरह से धोखा देंगे । अजीत जालान के साथ हुए इस 'हादसे' ने रवि गुगनानी के साथ किए गए विनोद बंसल और विनय भाटिया के बर्ताव की घटना को लोगों के बीच ताजा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि इन दोनों से मिले धोखे से रवि गुगनानी इस कदर भड़के थे कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के पहले प्रमुख सत्र का बहिष्कार ही कर दिया था, और फिर बाद में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से भी बाहर हो गए थे । रवि गुगनानी की तरह, विनोद बंसल तथा विनय भाटिया से मिले धोखे के बाद, अजीत जालान की उम्मीदवारी को भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ से बाहर निकलते 'देखा' जा रहा है ।
अजीत जालान ने ही सेक्रेटरीज इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार में जुटे लोगों को बताया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी को समर्थन दिलवाने के लिए सौदेबाजी करने के उद्देश्य से उनकी उम्मीदवारी की बलि चढ़ाई गई है । दरअसल पिछले दिनों उक्त कमेटी के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक तलवार की उम्मीदवारी की घोषणा होने के बाद डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों में तेजी से उलटफेर हुआ है । दीपक तलवार की उम्मीदवारी को जिस तरह से 12/14 पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की मीटिंग में हरी झंडी मिली है, उसे देख/जान कर विनोद बंसल को भी तेजी से सक्रिय होने की जरूरत महसूस हुई । असल में, उक्त कमेटी के लिए विनोद बंसल ने विनय भाटिया को उम्मीदवार बनाने की तैयारी की हुई है । उक्त कमेटी के लिए निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी भी ताल ठोकते हुए सुने जा रहे हैं । अजीत जालान के अनुसार, विनोद बंसल ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का समर्थन यही सोच कर किया है कि ऐसा करके वह रवि चौधरी के साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के समर्थन के लिए सौदेबाजी कर लेंगे । अशोक कंतूर चूँकि रवि चौधरी के उम्मीदवार हैं, इसलिए विनोद बंसल को उम्मीद है कि वह अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थन के बदले में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के लिए रवि चौधरी का समर्थन प्राप्त कर लेंगे ।
मजे की बात यह देखने में आ रही है कि विनोद बंसल से मिले झटके से अजीत जालान भड़के हुए तो हैं, लेकिन भड़कते हुए भी वह विनोद बंसल की 'फ़िक्र' भी कर रहे हैं । भविष्यवक्ता बन कर वह बता रहे हैं कि विनोद बंसल ने जैसे पहले रवि गुगनानी को और अब उन्हें धोखा दिया है, वैसे ही वह भी धोखा खायेंगे । अजीत जालान की भविष्यवाणी है कि जिन रवि चौधरी का समर्थन जुटाने के लिए विनोद बंसल ने उन्हें धोखा दिया है, उन्हीं रवि चौधरी से वह खुद धोखा पायेंगे । विनय भाटिया के लिए भी अजीत जालान की घोषणा है कि जल्दी ही वह भी विनोद बंसल की धोखाधड़ी का शिकार होंगे, क्योंकि रवि चौधरी इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव/चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी का समर्थन करने के लिए अपनी उम्मीदवारी छोड़ेंगे नहीं - और तब विनोद बंसल, विनय भाटिया को भी गच्चा दे देंगे । अजीत जालान की भविष्यवाणियाँ कितनी सच होंगी, यह तो समय बतायेगा - अभी लेकिन विनोद बंसल और विनय भाटिया की पलटीबाजी से अजीत जालान की उम्मीदवारी खतरे में पड़ी नजर आ रही है । विनोद बंसल और विनय भाटिया से मिले धोखे पर अजीत जालान जिस तरह से भड़के हुए हैं, और इन दोनों के खिलाफ जिस तरह की बातें कर रहे हैं - उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का तापमान लेकिन खासा बढ़ गया है । 

Thursday, May 23, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में लगातार दूसरे वर्ष डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने टीके रूबी के लीडरशिप इंस्टीट्यूट के आयोजन को प्राथमिकता दी, और राजा साबू तथा उनके साथी गवर्नर्स को पार्टिसिपेंट न मिलने के कारण अपना आयोजन रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा है

चंडीगढ़ । लीडरशिप डेपलपमेंट प्रोग्राम के नाम पर शुरू की गई राजा साबू और उनके साथी पूर्व गवर्नर्स की 'राजनीति' को लगातार दूसरे वर्ष ऐसी चोट पड़ी है कि उनकी सारी 'लीडरी' हवा होती नजर आ रही है । करीब 17/18 वर्षों से डिस्ट्रिक्ट में लीडरशिप एकेडमी चला रहे राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को लगातार दूसरे वर्ष पार्टिसिपेंट न मिल पाने के कारण वर्कशॉप प्रोग्राम रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि इनकी लीडरशिप एकेडमी की तरफ से 24 से 26 मई के बीच वर्कशॉप करने की घोषणा की गई थी, जिसके लिए 18 हजार रुपए की कोर्स फीस तय की गई थी । इसी के साथ निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर व डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन टीके रूबी द्वारा संस्थापित लीडरशिप इंस्टीट्यूट की तरफ से 4 से 5 मई के बीच प्रोग्राम का संदेश आ गया, जिसके लिए कोर्स फीस 5500 घोषित हुई । राजा साबू 'की' एकेडमी का कार्यक्रम हालाँकि दो दिन का था, लेकिन फिर भी टीके रूबी 'के' इंस्टीट्यूट के एक दिन के 5500 रुपए के मुकाबले उसकी 18000 रुपए की फीस को लोगों ने काफी महँगा माना/पाया । कोर्स फीस के इस बड़े अंतर पर लोगों के बीच इस तरह की चर्चाएँ भी शुरू हुईं कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने लीडरशिप प्रोग्राम को कहीं 'कमाई' का जरिया तो नहीं बनाया हुआ है । इस तरह की बातों और आशंकाओं के चलते लोगों ने राजा साबू की लीडरशिप एकेडमी के प्रोग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं ली, और इसलिए एकेडमी को अपना प्रोग्राम रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा । 
मजेदार नजारा यह रहा कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को जब अपना प्रोग्राम फेल होता हुआ दिखा तो उन्होंने टीके रूबी के इंस्टीट्यूट के प्रोग्राम को फेल करने के लिए कमर कसी, जिसके तहत उन्होंने एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों को और दूसरी तरफ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से आने वाले फैकल्टी सदस्यों को इंस्टीट्यूट में न जाने/आने के लिए भड़काया, लेकिन उनकी तरकीब सफल नहीं हो सकी और टीके रूबी के इंस्टीट्यूट का प्रोग्राम कामयाबी के साथ संपन्न हुआ । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष जब राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स को अपनी वर्कशॉप रद्द करना पड़ी थी, तब उन्होंने उसका ठीकरा तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के सिर फोड़ा था । उनका आरोप था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने लोगों को उनके प्रोग्राम में आने से रोका और इसलिए उन्हें अपना प्रोग्राम रद्द करना पड़ा । लेकिन इस वर्ष तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वाली 'ताकत' उनके पास थी, फिर भी वह अपना प्रोग्राम नहीं कर सके और न टीके रूबी के इंस्टीट्यूट के प्रोग्राम को अपने तमाम प्रयासों के बावजूद फेल कर सके । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में वर्षों से होने वाले लीडरशिप प्रोग्राम के साक्षी रहे वरिष्ठ लोगों का मानना और कहना है कि टीके रूबी द्वारा संस्थापित लीडरशिप इंस्टीट्यूट के कार्यक्रमों में अपनाई जाने वाली कार्यप्रणाली ने लोगों को अपनी अपनी लीडरशिप क्वालिटी डेवलप करने का व्यावहारिक मौका दिया है, जबकि राजा साबू की एकेडमी के कार्यक्रमों में लीडरी थोपने का नजारा ज्यादा दिखता था, और इसीलिए उनके प्रोग्राम में लोग मजबूरीवश ही शामिल होते थे । यही कारण है कि जैसे ही उन्हें लीडरशिप इंस्टीट्यूट के रूप में बेहतर विकल्प मिला, उन्होंने लीडरशिप एकेडमी से मुँह मोड़ लिया और राजा साबू व उनके साथी गवर्नर्स के लिए डिस्ट्रिक्ट में लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम के लिए लोगों को जुटा पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव हो गया ।              
डिस्ट्रिक्ट के कई वरिष्ठ रोटेरियंस के अनुसार, इस हालत के लिए राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ही जिम्मेदार हैं । दरअसल पिछले रोटरी वर्ष में जब डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप एकेडमी ने अपनी वार्षिक वर्कशॉप की तैयारी शुरू की, तो उस तैयारी से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को पूरी तरह अलग-थलग रखा । रोटरी इंटरनेशनल के प्रावधानों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट में कोई भी ऐसा आयोजन नहीं हो सकता है, जिसमें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की भागीदारी और या सहमति न हो; लेकिन राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स ने अपनी मनमानी व चौधराहट दिखाते हुए लीडरशिप डेवलपमेंट प्रोग्राम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को किसी भी रूप में शामिल नहीं किया । यह देख/जान कर टीके रूबी ने डिस्ट्रिक्ट में रोटरी लीडरशिप इंस्टीट्यूट की नींव रखी और रोटरी इंटरनेशनल के लीडरशिप प्रोग्राम को डिस्ट्रिक्ट में एक नई पहचान के साथ प्रस्तुत किया । टीके रूबी ने लीडरशिप प्रोग्राम को जो नया डिजाईन दिया और जिस तरह से उसका खर्चा कम रखा, उसने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को आकर्षित किया और डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने पहली बार लीडरशिप के वास्तविक मायनों को जाना/पहचाना । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स की लीडरशिप एकेडमी को टीके रूबी के लीडरशिप इंस्टीट्यूट से जो जोर का झटका लगा, उससे कोई सबक सीखने की बजाए वह आरोपों-प्रत्यारोपों में ही उलझे रहे; जिसका नतीजा यह हुआ कि इस वर्ष भी डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने टीके रूबी के लीडरशिप इंस्टीट्यूट के आयोजन को प्राथमिकता दी, और राजा साबू तथा उनके साथी गवर्नर्स को अपना आयोजन रद्द करने के लिए मजबूर होना पड़ा  है ।

Tuesday, May 21, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए जीत हासिल करते हुए मल्टीपल की राजनीति में एक नया अध्याय भी जोड़ा है और अपने डिस्ट्रिक्ट को 19 वर्ष बाद मल्टीपल का नेतृत्व करने का अवसर उपलब्ध करवाया है

गाजियाबाद । विनय मित्तल ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए निर्वाचित होते हुए कई एक दिलचस्प किस्म के संयोग बनाए हैं । सबसे ज्यादा मजे की बात यह रही कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए जिन चार उम्मीदवारों की चर्चा थी, उनमें विनय मित्तल को सबसे पीछे देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन मुकाबले का मौका आते आते ऐसा माहौल बना कि बाकी तीनों उम्मीदवार बीच दौड़ में ही मुकाबले से बाहर हो गए और विनय मित्तल निर्विरोध मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुने गए । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के इतिहास में इससे पहले शायद ही कभी यह हुआ होगा कि सभी दसों डिस्ट्रिक्ट्स के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने किसी एक उम्मीदवार के समर्थन में हस्ताक्षर किए हों ।हालाँकि निर्विरोध तो पहले भी कई लोग मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बने हैं, किंतु वह मजबूरी के 'सौदे' रहे हैं - किसी को शर्तिया जीतता देख, दूसरा कोई उम्मीदवार बना ही नहीं तो उसके विरोध में रहने वाले फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी मनमसोस कर चुप बैठ गए । इस बार का नजारा लेकिन बिलकुल अलग था । ऐसा नहीं है कि सभी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय मित्तल के समर्थक ही थे; लेकिन ऐसा जरूर है कि किसी भी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का - और उसे 'कंट्रोल' करने वाले नेता का भी - विनय मित्तल के साथ (अंध)विरोध का संबंध नहीं था । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में यही बात विनय मित्तल के पक्ष में गई; और उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन को 19 वर्ष बाद मल्टीपल काउंसिल का प्रतिनिधित्व करने का अवसर उपलब्ध करवाया ।
उल्लेखनीय है कि विनय मित्तल के अलावा बाकी जिन तीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स - वीके हंस, बिरिंदर सोहल तथा तेजपाल खिल्लन के नाम मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए चर्चा में थे, उन्हें अलग अलग कारणों से विनय मित्तल की तुलना में मजबूत तो समझा जा रहा था; लेकिन उन तीनों के साथ एक समान समस्या यह थी कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लोगों में से कुछेक लोग उनके खिलाफ ताल ठोके खड़े थे । विनय मित्तल के विरोध में भी लोग सक्रिय तो थे - खुद उनके डिस्ट्रिक्ट से निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल उनके खिलाफ लॉबीइंग करने के लिए अपनी पत्नी के साथ मौजूदा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल के घर तक गए और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मुकेश गोयल ने भी अपनी तरफ से हर संभव प्रयास किए; लेकिन इन दोनों की चूँकि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लोगों में गिनती नहीं होती है, इसलिए इनके विरोध का बाल बराबर भी असर नहीं पड़ा । जैसा कि पहले कहा जा चुका है, उसे फिर दोहराया जा रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने वाले लोगों में कई लोग विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक नहीं थे, लेकिन उनकी उम्मीदवारी का धुर विरोधी भी कोई नहीं था - और यही कारण रहा कि चेयरमैन पद के लिए विनय मित्तल की उम्मीदवारी का भार जैसे जैसे बढ़ना शुरू हुआ, तो फिर पलड़ा विनय मित्तल के पक्ष में झुकता ही चला गया ।
विनय मित्तल के मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुने जाने में डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र चौहान और मौजूदा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल की निर्णायक भूमिका रही । वास्तव में यही दोनों शुरू से विनय मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थक थे; और इनमें भी जितेंद्र चौहान ने अपने निरंतर प्रयासों से विनय मित्तल की उम्मीदवारी को न सिर्फ चौथे नंबर से पहले नंबर तक पहुँचाया, बल्कि विनय मित्तल की उम्मीदवारी के पक्ष में सभी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन 'इकट्ठा' किया । एक बार उस समय जरूर विनय मित्तल की उम्मीदवारी को मिल रहे जितेंद्र चौहान के सक्रिय समर्थन को खतरे में पड़ा देखा जा रहा था, जब इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट के लिए जितेंद्र चौहान के साथ साथ तेजपाल खिल्लन के उम्मीदवार के रूप में वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी आ गई थी । नेताओं के बीच चर्चा छिड़ी थी कि तेजपाल खिल्लन ने वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी प्रस्तुत ही इसलिए की/करवाई है, ताकि वह मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के पद के लिए जितेंद्र चौहान के साथ सौदेबाजी कर सकें । हालाँकि इस चर्चा को ज्यादा 'हवा' मिली नहीं और फिर मल्टीपल कॉन्फ्रेंस स्थगित हो जाने से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के एंडोर्समेंट का मामला भी हवाहवाई हो गया । विनय मित्तल इससे पहले अपने डिस्ट्रिक्ट में चौतरफा षड्यंत्रों और विरोध के बावजूद सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए 'अपने' उम्मीदवार को बड़ी जीत दिलवा कर डिस्ट्रिक्ट तथा लायन राजनीति में इतिहास रच चुके हैं; उसके ठीक बाद मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए उन्होंने सिर्फ जीत ही हासिल नहीं की है - बल्कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में एक नया अध्याय जोड़ा है । 

Monday, May 20, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव में सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा द्वारा पर्दे के पीछे से खड़ी की गई बाधा रूपी कारगुजारी के सामने सेंट्रल काउंसिल के अन्य दोनों सदस्यों - सतीश गुप्ता और प्रमोद बूब ने सरेंडर आखिर किस डर से किया हुआ है ?

जयपुर । जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव का मामला अब इंस्टीट्यूट मुख्यालय जा पहुँचा है, और दावा किया जा रहा है कि वहाँ भी यदि न्यायपूर्ण फैसला जल्दी ही नहीं हुआ - तब फिर मामले की शिकायत केंद्रीय मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में की जाएगी । उल्लेखनीय है कि जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चुनाव को लेकर 6 मार्च से झगड़ा पड़ा हुआ है, और इस झगड़े को सुलझाने के लिए तमाम शिकायतें और अनुरोध किए जा चुके हैं; इंस्टीट्यूट के संबंधित विभाग से स्पष्ट निर्देश मिल चुके हैं, लेकिन कुछेक लोगों की जिद के चलते झगड़ा अभी तक अनसुलझा हुआ पड़ा है । उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि जयपुर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में प्रकाश शर्मा, सतीश गुप्ता, प्रमोद बूब; तथा रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में अभिषेक शर्मा, सचिन जैन, दिनेश जैन भी एक्सऑफिसो सदस्य हैं - लेकिन फिर भी ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चुनाव जैसा 'मामूली' सा काम करीब ढाई महीने से झगड़े में पड़ा हुआ है । जयपुर में तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स मान रहे हैं औरकह रहे हैं कि इस मामले में सबसे ज्यादा निराशा और शर्म की बात यह है कि सेंट्रल काउंसिल के तीन तीन सदस्यों के होते/रहते हुए सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव जैसा मामूली सा फैसला नहीं हो पा रहा है - क्या इन लोगों से बड़े मामलों में जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने की उम्मीद की जा सकती है ? और यदि इन्हें कहीं कुछ करना ही नहीं है, तो यह सेंट्रल काउंसिल सदस्य आखिर बने क्यों हैं ? सिकासा चेयरमैन के चुनाव का झगड़ा प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुँचने की स्थिति में आ पहुँचा है, लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में जयपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले तीनों सदस्य मुँह में दही जमा कर बैठे हुए हैं ।
झगड़ा क्या है, पहले यह जान/समझ लिया जाये : जयपुर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में चुने गए सात सदस्य हैं, जो खेमेबाजी के लिहाज से दो ग्रुप्स में बँटे हैं । एक ग्रुप में चार सदस्य हैं - लोकेश कासट, अमित यादव, कुलदीप गुप्ता और आकाश बरगोटी; जो क्रमशः चेयरमैन, वाइस चेयरमैन, सेक्रेटरी तथा ट्रेजरर हैं । दूसरे ग्रुप में बाकी तीन सदस्य हैं - शिशिर अग्रवाल, अंकित माहेश्वरी और विजय अग्रवाल । यह तीनों सत्ता में बैठे चार सदस्यों से ज्यादा वोट पाकर मैनेजिंग कमेटी में पहुँचे हैं, लेकिन फिर भी सत्ता से बाहर हैं । हालाँकि यह कोई खास बात नहीं है; चुनावी राजनीति में यह सब होता है और चुनावी राजनीति की यही खूबी भी है । समस्या लेकिन यहाँ से शुरू होती है । इंस्टीट्यूट के नियमों के अनुसार, मैनेजिंग कमेटी के सदस्य एक पद के अधिकारी ही हो सकते हैं । इस नियम के चलते सिकासा चेयरमैन का पद विरोधी खेमे के किसी सदस्य को ही मिल सकता है; लेकिन चार सदस्यीय सत्ता खेमा इसके लिए तैयार नहीं है । 6 मार्च को हुई मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग में चार सदस्यीय सत्ता खेमे ने सिकासा चेयरमैन का पद पर अपने ही किसी सदस्य को सौंपने की तैयारी दिखाई, तो उन्हें इंस्टीट्यूट का नियम पढ़ा दिया गया । इस पर सत्ता खेमे के सदस्यों ने सिकासा चेयरमैन के पद पर फैसला करना टाल दिया और वह अभी तक टलता ही आ रहा है । इंस्टीट्यूट के पदाधिकारी की तरफ से ब्रांच के चेयरमैन व सेक्रेटरी को स्पष्ट निर्देश मिले हैं कि सिकासा चेयरमैन का पद उन्हें उन तीन सदस्यों में से ही किसी एक को सौंपना है, जो अभी किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी है; और इस तरह जयपुर ब्रांच के चार सदस्यीय सत्ता खेमे ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट को और उसके पदाधिकारियों को 'बंधक' बना छोड़ा है ।
हालाँकि यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है और हर किसी को लग रहा है कि जयपुर ब्रांच के पदाधिकारियों की इतनी 'हिम्मत' नहीं हो सकती है कि वह इंस्टीट्यूट को 'बंधक' बना लें । हर किसी को शक है कि इनके पीछे असली 'खिलाड़ी' कोई और है जो इन पदाधिकारियों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहा है; और हर कोई अपनी शक की सुईं सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा पर टिका रहा है । आरोपपूर्ण चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि प्रकाश शर्मा ने विरोधी ग्रुप के तीनों सदस्यों को आफॅर दिया हुआ है कि जो कोई उनकी शरण में आ जायेगा, उसके अगले ही पल सिकासा चेयरमैन का पद पा लेगा; अन्यथा शिकायतें करते रह जाओगे और कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी । विरोधी खेमे के तीनों सदस्यों में से कोई भी लेकिन प्रकाश शर्मा की शरण में जाने को तैयार नहीं हो रहा है । दरअसल विरोधी खेमे के तीनों सदस्य प्रकाश शर्मा से एक बार धोखा खा चुके हैं । बताया जाता है कि जयपुर ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव में प्रकाश शर्मा ने इन्हीं तीनों को लेकर सत्ता ग्रुप बनाने की तैयारी की थी, जिसके तहत इन्हीं तीनों को पदाधिकारी बनना था; लेकिन ऐन मौके पर प्रकाश शर्मा ने इन्हें अलग-थलग कर दिया और इन्होंने अपने आप को ठगा हुआ पाया । उसी अनुभव के चलते विरोधी खेमे के तीनों सदस्य अब दोबारा से प्रकाश शर्मा पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं । सात सदस्यीय जयपुर ब्रांच में प्रकाश शर्मा को चूँकि पाँचवाँ सदस्य अपनी शरण में नहीं मिल रहा है, इसलिए जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के पद पर कोई नियुक्ति नहीं हो रही है । ऐसे में, सिकासा चेयरमैन की जिम्मेदारी का निर्वाह ब्रांच के चेयरमैन लोकेश कासट कर रहे हैं, जो 'चोर दरवाजे' से इंस्टीट्यूट के नियम का सीधा सीधा उल्लंघन है - जिसके अनुसार, ब्रांच का चेयरमैन निकासा का चेयरमैन नहीं हो सकता है । जयपुर में प्रकाश शर्मा की कारगुजारी पर तो किसी को हैरानी नहीं है; लेकिन सतीश गुप्ता और प्रमोद बूब की चुप्पी पर सभी को आश्चर्य जरूर है कि जयपुर ब्रांच में नियमविरुद्ध काम हो रहा है और इन्होंने प्रकाश शर्मा से डर कर उनके सामने सरेंडर क्यों किया हुआ है ? 

Saturday, May 18, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से पहले ही दीपक गुप्ता ने पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर और फिर डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की तैयारी शुरू करके रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में एक नया तमाशा खड़ा कर दिया है तथा अपने आप को मजाक का पात्र भी बना लिया है

गाजियाबाद । दीपक गुप्ता की आलोक गुप्ता के गवर्नर-काल का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की कोशिशों ने आलोक गुप्ता और मुकेश अरनेजा को एक साथ मुसीबत में डाल दिया है । हालाँकि कई लोगों को दीपक गुप्ता का मजाक बनाने का मौका भी मिल गया है । उनका कहना है कि दीपक गुप्ता का अभी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का कार्यकाल शुरू नहीं हुआ है, और वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर की जिम्मेदारी संभालने के लिए भी तैयार हो गए हैं । उल्लेखनीय है कि इससे पहले, दीपक गुप्ता इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की फुनगी छोड़ कर अपना मजाक उड़वा चुके हैं । उन्होंने घोषणा की थी कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए नामांकन भरने का मौका जिस वर्ष आयेगा, उस वर्ष वह निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे और इस तरह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के लिए पात्रता पूरी कर चुके होंगे । दीपक गुप्ता की उक्त घोषणा पर उनके कलीग गवर्नर्स के बीच तथा देश के प्रमुख नेताओं व पदाधिकारियों के बीच उनका जैसा मजाक बना, उसे देखते/सुनते हुए उन्होंने फिर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी की बात करना छोड़ दिया । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहते हुए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की कोशिशों के जरिये दीपक गुप्ता लेकिन एक बार फिर अपने आप को मजाकिया चर्चाओं के केंद्र में ले आये हैं । दीपक गुप्ता की बदकिस्मती ही है कि वह अपने आप को जितना होशियार समझते हैं, और तरह तरह से जैसे जैसे 'दिखाने' की और साबित करने की कोशिश करते हैं - वैसे वैसे वह डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ रोटरी के नेताओं के बीच मजाक का पात्र बन जाते हैं, और कोई भी उन्हें गंभीरता से नहीं लेता है ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर वाले मामले में तो चलो मान लिया जा सकता है कि दीपक गुप्ता कुछ ज्यादा ऊँचा 'उड़' गए थे; लेकिन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर वाले मामले में उन्होंने अपनी 'उड़ान' को नीचा भी किया - लेकिन इस मामले में भी उन्हें कोई गंभीरता से नहीं ले रहा है; खुद वह आलोक गुप्ता भी इस मामले में उन्हें गंभीरता से लेते नहीं नजर आ रहे हैं, वास्तव में जिनकी मदद करने के उद्देश्य से वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए 'तैयार' हो गए हैं । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद को लेकर आलोक गुप्ता चूँकि असमंजस ने फँसे दिख रहे हैं, इसलिए दीपक गुप्ता ने उनकी असमंजसता को दूर करने के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए अपनी सेवाएँ देने की पेशकश की है । माना/समझा जा रहा है कि सीमित उपलब्धता, खेमेबाजी और व्यक्तिगत पसंद/नापसंद के चलते आलोक गुप्ता के सामने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए उचित चयन करना खासा मुश्किल बना हुआ है । ले दे कर बार बार मुकेश अरनेजा का नाम ही सामने आ रहा है । मुकेश अरनेजा हालाँकि कई बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बन चुके हैं, लेकिन लगता है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद की उनकी 'भूख' मिटी नहीं है । एक समस्या और है - मुकेश अरनेजा डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर तो कई बार बन चुके हैं, लेकिन बेचारे को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी ठीक से करने का मौका नहीं मिल पाया है । एक बार वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये जाने के बाद हटा दिए गए, एक बार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का कार्यकाल पूरा न हो पाने के कारण उनकी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी बीच में ही छिन गई । दीपक गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया तो है, लेकिन उन्हें किनारे बैठाया हुआ है; दीपक गुप्ता के तौर-तरीकों से मुकेश अरनेजा परेशान तो रहते हैं और कई बार अपमानित भी महसूस करते हैं - जिसके चलते कुछेक मौकों पर मुकेश अरनेजा कार्यक्रम बीच में ही छोड़ कर निकल गए हैं । मुकेश अरनेजा अपमान सह कर भी चुप इसलिए बने हुए हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी करने को लेकर उन्होंने ज्यादा चूँ-चपड़ की तो कहीं अमित जैन की तरह दीपक गुप्ता भी उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद से हटा ही न दें ।
मुकेश अरनेजा को लगता है कि आलोक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में उन्हें पूरी स्वतंत्रता और मनमाने तरीके से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी करने का अवसर मिल जायेगा, इसलिए वह डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए आलोक गुप्ता पर डोरे डाले बताये/सुने जा रहे हैं । मुकेश अरनेजा की बदनामी और उनके रवैये को देखते हुए आलोक गुप्ता उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने से बचना चाहते हैं । मुकेश अरनेजा यह सुन/जान कर परेशान भी हुए कि आलोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए रूपक जैन से बात कर रहे हैं । रूपक जैन का पत्ता काटने के लिए मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता तक संदेश पहुँचवाए हैं कि रूपक जैन डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह नहीं कर पायेंगे और इसलिए रूपक जैन को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना कर उन्हें पछताना ही पड़ेगा । जेके गौड़ का नाम भी बीच बीच में आलोक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में उछलता रहा है । जेके गौड़ के नाम पर आलोक गुप्ता को कोई बड़ा ऐतराज तो नहीं बताया जाता है, लेकिन उन्हें डर यह है कि उनके बाद यदि अशोक अग्रवाल ने भी जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया, तो गाजियाबाद और उत्तर प्रदेश में जेके गौड़ का रुतबा थोड़ा बढ़ जायेगा - और इसीलिए जेके गौड़ का नाम आलोक गुप्ता उठाते हैं और फिर छोड़ देते हैं । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के चयन में आलोक गुप्ता की असमंजसता को देखते हुए ही दीपक गुप्ता ने अपना नाम आगे बढ़ाया है । पिछले एक वर्ष में आलोक गुप्ता को कई मौकों पर दीपक गुप्ता पर निर्भर देखा गया है, जिसके चलते दीपक गुप्ता को लगता है कि आलोक गुप्ता उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद देने के लिए सहर्ष ही राजी हो जायेंगे । दीपक गुप्ता सचमुच डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बन पायेंगे या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन लोगों के बीच उनका मजाक जरूर बन रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने से पहले दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने की तैयारी शुरू करके रोटरी और डिस्ट्रिक्ट में एक नया तमाशा खड़ा कर दिया है ।

Thursday, May 16, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में राजीव सिंघल के व्यवहार और रवैये से नाराज डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से मेरठ के लोगों ने अंततः दीपा खन्ना को उम्मीदवारी के लिए राजी किया, जिसके चलते राजीव सिंघल के लिए मुसीबतें अचानक से न सिर्फ पैदा हो गई हैं, बल्कि खासी बढ़ भी गई हैं

मेरठ । दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी डेजिग्नेट) बनने की राजीव सिंघल की कोशिशों को एक बार फिर ग्रहण लगता दिख रहा है । राजीव सिंघल की बदकिस्मती ही है कि पिछले चार वर्ष से उनके साथ यह तमाशा हो रहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं, सारी तैयारी और व्यवस्था करके हालात अनुकूल बनाते हैं, लेकिन जैसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का पद उनके हाथ में आने को होता है कि कोई न कोई गड़बड़ हो जाती है और उनका किया-कराया सारा जुगाड़ फेल हो जाता है । यहाँ याद करना प्रासंगिक होगा कि चार वर्ष पहले सुनील गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में राजीव सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने के लिए 'पक्की' व्यवस्था कर ली थी, जिसके तहत उन्होंने मुख्य प्रतिद्वंद्वी मधु गुप्ता की उम्मीदवारी को षड्यंत्रपूर्वक रद्द करवा दिया था - 'स्टेज' तैयार था और राजीव सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी पर बैठने की 'तैयारी' पूरी हो चुकी थी कि अनहोनी घट गई; जिसके तहत सुनील गुप्ता की गवर्नरी ही चली गई । गवर्नर का कार्यभार दीपक बाबु को मिला । राजीव सिंघल ने फिर जोर मारा और दीपक बाबु को भी इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी पर बिठलायेंगे । दीपक बाबु ने राजीव सिंघल की हसरत को पूरा करने के लिए कदम अभी बढ़ाये ही थे कि रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें भी उनके पद से हटा दिया और डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डाल दिया । उन दिनों की घटनाओं को देखें और याद करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि सारी तैयारी और अनुकूल स्थितियों के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) चुने जाने का 'मौका' राजीव सिंघल के हाथ से फिसल गया ।
इस वर्ष भी ऐसा ही होता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021-22 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव के लिए उम्मीदवारों का टोटा नजर आ रहा था और एक अकेले राजीव सिंघल ही चुनावी मैदान में उतरते दिख रहे थे । इस लिहाज से राजीव सिंघल के लिए हालात पूरी तरह अनुकूल थे और सभी ने मान लिया था कि राजीव सिंघल निर्विरोध ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेट हो जायेंगे । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेता लोग दीपा खन्ना को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी करने का प्रयास कर तो रहे थे, लेकिन दीपा खन्ना कुछ ही महीनों के भीतर दूसरी बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार होती हुई नहीं दिख रही थीं । दरअसल अभी करीब पाँच महीने पहले ही संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपा खन्ना उम्मीदवार थीं, और खासी मेहनत से चुनाव लड़ने के बावजूद वह मामूली अंतर से चुनाव हार गईं थीं । उनका आकलन रहा कि कुछेक लोगों ने सहयोग/समर्थन का वायदा तथा 'दिखावा' करने के बाद भी वास्तव में उनका सहयोग/समर्थन नहीं किया, जिस कारण जीतते लग रहे चुनाव में उन्हें लेकिन पराजय का सामना करना पड़ा । इस 'झटके' के कारण ही इस वर्ष  दोबारा चुनाव में उतरने का उनका मन नहीं था । हालाँकि चुनावी राजनीतिक समीकरणों को देखने/समझने वाले लोगों का मानना/कहना रहा कि पिछले चुनाव के समय के हालात अलग थे, और उस समय के अनुभव के आधार पर अब होने जा रहे चुनाव के हालात का आकलन नहीं किया जा सकता है और दीपा खन्ना को समझना चाहिए कि अब की बार हालात पिछली बार जैसे पेचीदा नहीं हैं । लेकिन किसी भी तर्क से दीपा खन्ना उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार होती नहीं दिख रही थीं । इस स्थिति ने राजीव सिंघल की संभावनाओं को एकतरफा तरीके से उछाल दे दिया था, और सभी ने मान लिया था कि चुनाव तो सिर्फ औपचारिकता है; हरि गुप्ता और मनीष शारदा के बाद राजीव सिंघल ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालेंगे । मजे की बात यह देखने में आई कि चुनाव की घोषणा होने से पहले ही खुद राजीव सिंघल ने भी अपने आप को विजेता के रूप में देखना और भावी गवर्नर मानना शुरू कर दिया था । 
लेकिन लगता है कि बदकिस्मती एक बार फिर राजीव सिंघल के दरवाजे आ खड़ी हुई है । जो दीपा खन्ना उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से लगातार इंकार कर रही थीं, अप्रत्याशित तरीके से उन्होंने अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी । दरअसल उन्होंने क्या घोषित कर दी, डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों ने अपनी उम्मीदवारी घोषित करने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया । खास बात यह रही कि दीपा खन्ना के लगातार इंकार करते रहने के बाद भी, मुरादाबाद में पहले तो मुरादाबाद के सभी पूर्व गवर्नर्स ने और फिर मुरादाबाद के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स व अन्य प्रमुख लोगों ने मीटिंग करके दीपा खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा करके उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उन पर दबाव बनाया; और फिर डिस्ट्रिक्ट के दूसरे शहरों के नेताओं ने भी दीपा खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन देने का भरोसा दिया - जिसके चलते दीपा खन्ना के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से इंकार करते रहना संभव नहीं रहा और उन्होंने उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए हामी भर दी । इस स्थिति के लिए राजीव सिंघल को ही जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । कई लोगों का मानना और कहना है कि राजीव सिंघल ने अपने व्यवहार और रवैये से आम तौर से डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से मेरठ के लोगों को इतना नाराज किया हुआ है कि अधिकतर लोग उनकी राह में रोड़े डालने में लग गए हैं । नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के दौरान राजीव सिंघल हालाँकि चार को-ऑर्डीनेटर्स में से एक थे, लेकिन उनके तेवर ऐसे रहते थे, जैसे वह अकेले ही को-ऑर्डिनेटर हैं - इस बात से डिस्ट्रिक्ट के और मेरठ के कई लोग राजीव सिंघल से जले-भुने बैठे हैं और चुनाव में एक एक बात का बदला लेने के लिए तैयार हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से मेरठ के नेताओं व सक्रिय लोगों के बीच राजीव सिंघल के प्रति जिस तरह का नकारात्मक भाव दिख रहा है, और जिसके चलते लगातार इंकार करते रहने के बावजूद दीपा खन्ना उम्मीदवारी के लिए तैयार हो गईं हैं - उससे राजीव सिंघल के लिए मुसीबतें अचानक से न सिर्फ पैदा हो गई हैं, बल्कि खासी बढ़ भी गई हैं ।

Tuesday, May 14, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर विजय गुप्ता ने तथ्यों का हवाला देकर गौरव गर्ग की झूठ बोल कर और बात का बतंगड़ बनाते हुए लोगों को गुमराह करने व भड़काने की कोशिश को फेल किया, जिसके चलते गौरव गर्ग का धरना फ्रॉड तमाशा बन कर रह गया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य गौरव गर्ग ने काउंसिल कार्यालय में अपने धरने को लेकर जो गुब्बारा फुलाया था, धरना शुरू होने से पहले ही उस गुब्बारे की सारी हवा निकल गई और गौरव गर्ग का आयोजन एक फ्रॉड तमाशा बन कर रह गया । दरअसल धरना शुरू होने से पहले ही सारे मामले में 'जिम्मेदार' ठहराए जा रहे रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर विजय गुप्ता की तरफ से जो तथ्य सार्वजनिक किए गए उनसे साबित हुआ कि गौरव गर्ग ने झूठ बोला, बात का बतंगड़ बनाया और अपनी घटिया व स्वार्थी राजनीति के चक्कर में रीजनल काउंसिल कार्यालय व इंस्टीट्यूट मुख्यालय में अराजकता फैलाने का माहौल बनाया । गौरव गर्ग ने जो सबसे बड़ा झूठ बोला, वह यह कि रीजनल काउंसिल में क्या हो रहा है, काउंसिल सदस्य होने के बावजूद उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और उन्हें काउंसिल पदाधिकारियों की तरफ से उनकी ईमेल्स के जबाव नहीं मिल रहे हैं । जैसा कि कहा जाता है कि जो व्यक्ति सो रहा हो, उसे जगाना आसान होता है - लेकिन जो सोने का अभिनय कर रहा हो, उसे जगाना मुश्किल ही नहीं, कई बार असंभव भी होता है । इस तर्ज पर गौरव गर्ग सोने का अभिनय करने वाले व्यक्ति निकले । असल में, गौरव गर्ग ने जो मुद्दे उठाये, उनमें से कुछ उस वाट्सऐप ग्रुप में चर्चा में रहे, जो रीजनल काउंसिल के तेरह सदस्यों का ग्रुप है । ऐसे में, इस बात को कौन स्वीकार करेगा कि गौरव गर्ग को, और धरने में उनका समर्थन करने की घोषणा करने वाले काउंसिल सदस्यों को मामले की जानकारी नहीं होगी । जाहिर है कि गौरव गर्ग और उनके धरने का समर्थन करने वाले काउंसिल के दूसरे सदस्य 'सोने का अभिनय' करते हुए काउंसिल में अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं । विजय गुप्ता की तरफ से दी गई जानकारी में यह बात भी सामने आई कि गौरव गर्ग की कई ईमेल्स के जबाव सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि दूसरे काउंसिल सदस्यों को भी दिए/भेजे गए । लेकिन गौरव गर्ग ने इस तथ्य को छिपाया और झूठ बोल कर अपने आप को काउंसिल का और प्रोफेशन से जुड़े लोगों का हितैषी 'दिखाने' का प्रयास किया - लेकिन उनका नाटक 15/20 घंटे भी नहीं चला और उनकी सारी पोल पट्टी खुल गई । 
गौरव गर्ग को ही नहीं, काउंसिल के प्रत्येक सदस्य को पता है कि किसी भी होटल ने रीजनल काउंसिल को बुकिंग देने से इंकार नहीं किया है, और कैंसिल किए गए सेमीनार के लिए भी जिन दो होटल्स से पूछताछ की गई थी, उन्होंने बुकिंग कंफर्म की थी; इसके बावजूद गौरव गर्ग ने ऐसा माहौल बनाया कि सेमीनार कैंसिल होने के लिए होटल बुक न हो पाना जिम्मेदार था - और होटल्स ने बुकिंग इसलिए नहीं दी क्योंकि उनका बकाया बाकी है । यह तथ्य भी गौरव गर्ग को ही बल्कि प्रत्येक काउंसिल सदस्य को पता है कि किसी भी होटल का कोई पुराना बकाया नहीं है; किसी का जो बकाया है भी वह हाल फिलहाल का है - और वह भी इसलिए बकाया है क्योंकि उसका बिल बनने की प्रक्रिया अभी चल ही रही है । सेमीनार कैंसिल होने का कारण सिर्फ चेयरमैन हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकी नितिन कँवर जानते हैं; गौरव गर्ग ने लेकिन षड्यंत्रपूर्ण तरीके से मामले को ऐसा रूप दिया कि जिम्मेदार विजय गुप्ता लगे । गौरव गर्ग ने जो मामले उठाये उनमें सबसे गंभीर मामला लायब्रेरीज से संबंधित है । इसमें भी लेकिन गौरव गर्ग ने बात का बतंगड़ बनाते हुए ऐसा दर्शाया कि सभी लायब्रेरीज पर बंद होने का खतरा मंडरा  रहा है । असल में मामला लेकिन सिर्फ प्रशांत विहार लायब्रेरी का है । हैरानी की बात यह है कि इस लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक के साथ कोई एग्रीमेंट ही नहीं है । इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, किसी बिल्डिंग का किराया देने के लिए उसके साथ एग्रीमेंट होना जरूरी है । गौरव गर्ग और उनके समर्थकों को यह बात अच्छे से पता है, लेकिन उन्होंने कभी कोशिश नहीं की कि उक्त एग्रीमेंट हो जाए । गौरव गर्ग के धरने का समर्थन करने वाले नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा और सुमित गर्ग पिछले तीन वर्षों में रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर रहे हैं, लेकिन इन्होंने भी कभी प्रयास नहीं किया कि इंस्टीट्यूट के नियम का पालन करते हुए उक्त बिल्डिंग के मालिक के साथ एग्रीमेंट हो जाए - और नियमविरुद्ध तरीके से प्रशांत विहार लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक को पिछले कई वर्षों से किराए का भुगतान होता आ रहा है ।
मौजूदा वर्ष में सेक्रेटरी पंकज गुप्ता और ट्रेजरर विजय गुप्ता ने पहली बार प्रशांत विहार लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक के साथ एग्रीमेंट करने की बात उठाई, लेकिन काउंसिल के बाकी पदाधिकारियों और सदस्यों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया; पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता ने काउंसिल के तेरह सदस्यों वाले वाट्सऐप ग्रुप में इस मामले पर चर्चा छिड़ने पर यह विकल्प भी दिया कि जब तक एग्रीमेंट नहीं होता है, तब तक उक्त बिल्डिंग का किराया देने के प्रस्ताव पर सभी काउंसिल सदस्य और या कम से कम एक्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य सहमति व्यक्त करें - लेकिन गौरव गर्ग और उनके समर्थकों ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया; और किराया न देने पर बिल्डिंग मालिक से मिले नोटिस का हवाला देकर अपनी राजनीति चमकाने की तथा इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में हंगामा करवाने की योजना बना ली । विजय गुप्ता की तरफ से बताया गया कि गौरव गर्ग और उनके समर्थकों को अच्छी तरह से पता है कि न्यूजलैटर की संपादकीय टीम के प्रमुख कौन हैं और न्यूजलैटर क्यों नहीं तैयार हो सके हैं; उन्हें यह भी पता है कि न्यूजलैटर को तैयार करने तथा उसे प्रकाशित करवाने में ट्रेजरर की कोई भूमिका नहीं होती है - लेकिन फिर भी वह असली गुनहगारों को छोड़ कर न्यूजलैटर न प्रकाशित होने के लिए ट्रेजरर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । विजय गुप्ता का कहना/बताना है कि उनका बस एक ही गुनाह है, और वह यह कि वह नियमानुसार काम करना चाहते हैं - और इसीलिए गौरव गर्ग तथा उनके धरने का समर्थन करने वालों की आँखों में खटक रहे हैं । इस बीच एक बड़ी 'घटना' यह हुई कि पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने एक वाट्सऐप संदेश में वेंडर्स को भुगतान करने की माँग कर डाली ।कोई भूतपूर्व चेयरमैन इस तरह की माँग करे, यह इंस्टीट्यूट के इतिहास की अभूतपूर्व घटना है । इस 'घटना' पर लोगों ने चुटकी भी ली कि लगता है कि राकेश मक्कड़ को वेंडर्स से कमीशन मिलने में देर हो रही है, इसीलिए वह बेचैन हुए हैं कि वेंडर्स को भुगतान क्यों नहीं हो रहे हैं और सार्वजनिक रूप से वेंडर्स को भुगतान करने की माँग करने के लिए वह मजबूर हो उठे । यह एक मजेदार संयोग है कि रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म में राकेश मक्कड़ के संगी-साथी रहे नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग तथा राकेश मक्कड़ के प्रोफेशनल पार्टनर अविनाश गुप्ता ने गौरव गर्ग के धरने का समर्थन किया है - इससे लोगों को ऐसा लगता है कि गौरव गर्ग पिछले टर्म की राकेश मक्कड़ की लूट-खसोट वाली परंपरा को ही इस टर्म में बनाये रखना चाहते हैं; और ट्रेजरर के रूप में विजय गुप्ता चूँकि उनकी राह का रोड़ा बन रहे हैं; इसलिए उन्होंने झूठ बोल कर तथा बात का बतंगड़ बनाते हुए विजय गुप्ता को निशाने पर ले लिया है - लेकिन फिलहाल गौरव गर्ग की चाल उल्टी पड़ गई दिख रही है ।

Monday, May 13, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में ट्रेजरर विजय गुप्ता के रवैये से कामकाज के बुरी तरह प्रभावित होने को लेकर चिंता जताते हुए गौरव गर्ग द्वारा की गई धरने की घोषणा का सचमुच कोई असर पड़ेगा, या यह भी एक तमाशा भर साबित होगा ?

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के इतिहास में 14 मई की दोपहर को वह होने जा रहा है, जो इससे पहले यहाँ क्या - संभवतः इंस्टीट्यूट के इतिहास में कभी नहीं हुआ है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मैनेजिंग कमेटी के सदस्य गौरव गर्ग ने सोशल मीडिया में दिए अपने एक संदेश में रीजनल काउंसिल कार्यालय में 14 मई को धरने पर बैठने की घोषणा की है । उनकी तरफ से दावा  किया गया है कि उनके धरने को 13 सदस्यीय मैनेजिंग कमेटी के पाँच अन्य सदस्यों - शशांक अग्रवाल, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग, नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता का भी समर्थन मिल गया है । गौरव गर्ग का कहना है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में कामकाज का बुरा हाल है, जिसके चलते सेमीनार कैंसिल हो रहे हैं, रीजनल काउंसिल का न्यूजलैटर प्रकाशित नहीं हो पा रहा है, रीजनल काउंसिल द्वारा संचालित लायब्रेरीज को बंद करने के नोटिस मिल रहे हैं - और पदाधिकारी समस्याओं को हल करने की कोशिश करना तो दूर की बात, काउंसिल के दूसरे सदस्यों को यह बताने तक  के लिए तैयार नहीं हैं कि ऐसा क्यों हो रहा है । गौरव गर्ग ने सोशल मीडिया में दिए अपने संदेश में कहा/बताया है कि उन्होंने पदाधिकारियों को कई ईमेल संदेश लिखे और पूछा कि रीजनल काउंसिल के रूटीन काम भी आखिर क्यों नहीं हो पा रहे हैं, लेकिन पदाधिकारियों की तरफ से उन्हें कभी कोई जबाव नहीं मिला । गौरव गर्ग का गंभीर आरोप यह है कि काउंसिल में होने के बावजूद उन्हें तथा उनके साथ-साथ अन्य कई काउंसिल सदस्यों तक को यह नहीं पता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के रूटीन व जरूरी काम भी आखिर हो क्यों नहीं पा रहे हैं ?
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में रूटीन व जरूरी काम दरअसल इसलिए नहीं हो पा रहे हैं कि काम करने वाले वेंडर्स को भुगतान नहीं हो पा रहा है, जिसके कारण वेंडर्स ने आगे काम करने से इंकार कर दिया है ।होटलों का भुगतान न हो पाने के कारण रीजनल काउंसिल को सेमीनार के लिए बुकिंग नहीं मिल पा रही है, जिसके चलते सेमीनार कैंसिल करने पड़े हैं । लायब्रेरीज की बिल्डिंग का किराया नहीं दिए जाने के कारण बिल्डिंग मालिकों की तरफ से बिल्डिंग खाली करने के नोटिस मिल रहे हैं और खतरा यह मंडरा रहा है कि लायब्रेरीज पर कभी भी ताला लटका मिल/दिख सकता है । इसी कारण से रीजनल काउंसिल का न्यूजलैटर नहीं प्रकाशित हो पा रहा है । इस अव्यवस्था के लिए रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर विजय गुप्ता को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । कहा/बताया जा रहा है कि ट्रेजरर के रूप में विजय गुप्ता भुगतान के चेक साइन नहीं कर रहे हैं, जिसके चलते रीजनल काउंसिल की व्यवस्था ठप्प पड़ गई है । विजय गुप्ता की तरफ से चेयरमैन हरीश चौधरी जैन को यह कहते हुए निशाना बनाया जा रहा है कि वह काउंसिल के दूसरे पदाधिकारियों को विश्वास में लिए बिना, मनमाने तथा बेईमानीपूर्ण तरीके से खर्चे कर रहे हैं; और खर्चे के पूरे ब्यौरे भी नहीं दे रहे हैं । विजय गुप्ता का कहना है कि खर्चों का पूरा ब्यौरा जाने बिना, ट्रेजरर के रूप में वह यदि चेक साइन कर देते हैं तो रीजनल काउंसिल में होने वाली लूट खसोट में वह भी शामिल समझे जायेंगे - और इसीलिए वह साइन करने से पहले खर्चों का ब्यौरा देखना/जानना चाहते हैं लेकिन जो उनसे छिपाया जा रहा है ।
हरीश चौधरी जैन की तरफ से विजय गुप्ता के इन आरोपों पर कहा/बताया जा रहा है कि यह आरोप वास्तव में बहानेबाजी है, और इस बहानेबाजी से भुगतान रोक कर विजय गुप्ता दरअसल वेंडर्स से पैसे ऐंठना चाहते हैं और इसलिए ही वह भुगतान रोके हुए हैं । हरीश चौधरी जैन की तरफ से तर्क देते हुए पूछा जा रहा है कि होटलों के बिल में और लायब्रेरीज की बिल्डिंग के किराये में छिपाने जैसी भला क्या बात है ? उनका कहना है कि विजय गुप्ता को यदि सचमुच लगता है कि होटलों को और लायब्रेरीज की बिल्डिंग्स के मालिकों को ज्यादा पैसे दिए जा रहे हैं, तो वह सस्ते विकल्प क्यों नहीं सुझा रहे हैं, जिससे कि वास्तव में काउंसिल और इंस्टीट्यूट का पैसा बचेगा - बजाये इसके वह भुगतान रोक कर वेंडर्स को ब्लैकमेल करने के साथ-साथ रीजनल काउंसिल के कामकाज को ही ठप किए दे रहे हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में यह जो तमाशा हो रहा है, उसके पीछे कई लोग चेयरमैन पद की राजनीति को जिम्मेदार मान रहे हैं । दरअसल हरीश चौधरी जैन जिस तरह की तिकड़मबाजी व धोखाधड़ी से चेयरमैन बने हैं, और रतन सिंह यादव से चेयरमैन का पद 'छिन' गया है, उसके बाद से रतन सिंह यादव ने हरीश चौधरी जैन को 'निशाने' पर ले लिया है । खुशकिस्मती से उन्हें विजय गुप्ता का संग-साथ भी मिल गया है । स्वभाव व तौर-तरीकों को लेकर रतन सिंह यादव व विजय गुप्ता के बीच कई समानताएँ भी हैं; जिनके चलते कई लोग विजय गुप्ता को 'छोटा आरएस यादव' भी कहते हैं । आरोपपूर्ण चर्चाओं के अनुसार, विजय गुप्ता को भड़का कर वास्तव में रतन सिंह यादव ऐसे हालात पैदा कर रहे हैं, जिससे चेयरमैन हरीश चौधरी जैन की फजीहत हो रही है । इनकी खुन्नसी लड़ाई से लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है और उसकी पहचान व प्रतिष्ठा धूल में मिल रही है । उक्त खुन्नसी लड़ाई के प्रतिकूल प्रभावों से रीजनल काउंसिल को बचाने के लिए रीजनल काउंसिल के ही एक सदस्य गौरव गर्ग ने धरने की जो घोषणा की है - देखना दिलचस्प होगा कि उसका कोई असर सचमुच पड़ेगा, या वह भी एक तमाशा भर साबित होगा ?

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में हापुड़ में हुए जोनल सेमीनार के 'डिजाईन' ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में रमेश अग्रवाल की उम्मीदों को झटका दिया और ललित खन्ना की उम्मीदवारी के अभियान को महत्त्वपूर्ण बनाया

हापुड़ । हापुड़ में आयोजित हुए जोनल सेमीनार में ललित खन्ना को मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित किए जाने ने पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल और उनके समर्थन के भरोसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को लेकर हाँ और न के बीच फँसे अशोक जैन को भारी झटका दिया है । रमेश अग्रवाल और अशोक जैन के लिए दरअसल झटके की बात यह रही कि नेता बनने की कोशिश करते रहने वाले हापुड़ के जो दो/एक लोग रमेश अग्रवाल के घनघोर प्रशंसक के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, वह जोनल सेमीनार में 'राग ललित' का आलाप लेते हुए देखे/सुने गए ।यह देख/सुन कर रमेश अग्रवाल और अशोक जैन को हापुड़ में अपनी राजनीतिक दुनिया बसने से पहले ही उजड़ती हुई लगी है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में हापुड़ क्षेत्र का महत्त्व बढ़ता जा रहा है; इसी महत्त्व को देखते हुए रमेश अग्रवाल हापुड़ में अपने प्रशंसक के भरोसे अशोक जैन के लिए समर्थन जुटाने की उम्मीद बाँधे हुए थे - लेकिन जोनल सेमीनार में ललित खन्ना को मिलती अहमियत देख कर रमेश अग्रवाल की उम्मीद नाउम्मीदी में बदल गई है । जोन 9 और जोन 10 के दसों क्लब्स द्वारा 'विजन ऑफ रोटरी' विषय पर आयोजित किए गए जोनल सेमीनार की खास बात यह रही कि इसमें हापुड़ क्षेत्र के सभी प्रमुख रोटेरियंस और पदाधिकारी मौजूद थे । गाजियाबाद और नोएडा को छोड़ कर उत्तर प्रदेश के बाकी सभी क्लब्स का प्रतिनिधित्व करने वाले मौजूदा रोटरी वर्ष तथा आगामी रोटरी वर्ष के सभी पदाधिकारी इस जोनल सेमीनार के हिस्सा थे । क्षेत्र से बाहर के सिर्फ एक ही रोटेरियन की इस सेमीनार में मौजूदगी थी - और वह एक रोटेरियन ललित खन्ना थे । क्षेत्र के बाहर से अकेले रोटेरियन होने के नाते ललित खन्ना को आयोजन में खास अहमियत मिली । 
ललित खन्ना चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार हैं, इसलिए हापुड़ में हुए जोनल सेमीनार में उन्हें मिलने वाली अहमियत का एक राजनीतिक संदेश भी है - और यही संदेश रमेश अग्रवाल व अशोक जैन के लिए मुसीबत खड़ी करने वाला है । रमेश अग्रवाल और अशोक जैन के लिए मुसीबत की बात यह है कि रमेश अग्रवाल ने जब से अशोक जैन को बहका/फुसला/भड़का कर और न जाने कौन से सब्जबाग दिखा कर जबर्दस्ती डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए राजी किया है, तभी से रमेश अग्रवाल और अशोक जैन लगातार मुश्किलों में फँसे हैं । उनके अपने क्लब में उनके खिलाफ ऐसा बड़ा झमेला खड़ा हुआ है, जिसके प्रकोप से वह अभी तक पूरी तरह से बाहर नहीं निकल पाए हैं । रमेश अग्रवाल ने गाजियाबाद के पूर्व, मौजूदा और भावी गवर्नर्स के साथ ऐसा झगड़ा कर रखा है कि उत्तर प्रदेश के क्लब्स में अशोक जैन के लिए समर्थन जुटाने की कोशिश कर पाना रमेश अग्रवाल के लिए बड़ी चुनौती है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने डीआरएफसी बनने की रमेश अग्रवाल की कोशिश को जिस 'बेरहमी' से झटका दिया है, उसे देखते हुए इनके रमेश अग्रवाल के आगे किसी काम आ सकने की कोई संभावना नहीं ही दिखती है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेट अशोक अग्रवाल को इसी वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में हरवाने की रमेश अग्रवाल ने जिस तरह की कोशिशें की थीं, उन्हें देखते हुए उनके लिए अशोक जैन के लिए अशोक अग्रवाल का समर्थन जुटा पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । ऐसे में, रमेश अग्रवाल को नेता बनने की कोशिश में इधर से उधर डोलते रहने वाले अपने गिनती के प्रशंसकों से ही उम्मीद थी कि वह अशोक जैन की उम्मीदवारी के लिए कुछ करेंगे; लेकिन उनकी इस उम्मीद को हापुड़ क्षेत्र में ललित खन्ना ने झटका दे दिया है । 
गौर करने वाला तथ्य यह भी है कि हापुड़ क्षेत्र में हुए जिस जोनल सेमीनार में ललित खन्ना को अहमियत मिली, उस तरह के जोनल सेमीनार डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले कभी होते हुए नहीं सुने/देखे गए हैं । संभवतः पहली बार एक क्षेत्र में पड़ने वाले डिस्ट्रिक्ट के दो जोन्स के क्लब्स के पदाधिकारियों ने मिलकर 'विजन ऑफ रोटरी' जैसे गंभीर विषय पर सेमीनार किया और संभवतः पहली ही बार ऐसा हुआ है कि क्षेत्र के सभी क्लब्स के महत्त्वपूर्ण पदाधिकारी और सदस्य एक कार्यक्रम में जुटे और संभवतः पहली ही बार ऐसा हुआ कि इतने महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के किसी 'बड़े' पदाधिकारी और/या नेता को आमंत्रित नहीं किया गया और 'अपने' लोगों के बीच बातचीत के जरिये ही रोटरी के विजन को रेखांकित करने और समझने की कोशिश की गई । इस तरह हापुड़ में हुए जोनल सेमीनार का वास्तव में एक अलग ही डिजाईन बना । ऐसे कार्यक्रम में क्षेत्र से बाहर से एक अकेले ललित खन्ना को आमंत्रित किए जाने से कार्यक्रम ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को एक राजनीतिक संदेश भी दे दिया है । इस राजनीतिक संदेश ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के संदर्भ में ललित खन्ना की उम्मीदवारी के अभियान को महत्त्वपूर्ण बना दिया है ।

Wednesday, May 8, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सदस्यों को अक्सर ही 'चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड' में पैसे जमा करवाने की नसीहत व उपदेश देते रहने वाले इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता खुद उक्त फंड में पैसे देने से क्यों बचते हैं ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने अभी हाल ही में अमृतसर में आयोजित हुए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के मैनेजमेंट सदस्यों के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड (सीएबीएफ) में कुछ न कुछ पैसे देने की जरूरत बताई और जोर देकर कहा कि प्रत्येक चार्टर्ड एकाउंटेंट को उक्त फंड में अवश्य ही पैसे देने चाहिए । लेकिन हैरानी की जो बात 'रचनात्मक संकल्प' को प्राप्त हुए दस्तावेजों से पता चली है वह यह है कि खुद अतुल गुप्ता उक्त फंड में पैसे देने से बचते हैं । 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली कहावत को चरितार्थ करता अतुल गुप्ता का यह रवैया खासा दिलचस्प है और शर्मनाक भी । अतुल गुप्ता ने यह बात अभी सिर्फ अमृतसर में ही नहीं कही है; इससे पहले भी वह यह उपदेश जहाँ-तहाँ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को देते रहे हैं । इसके साथ ही, अतुल गुप्ता समय समय पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इंस्टीट्यूट की फीस जल्दी से जल्दी जमा करने की, और आखिरी तारीख का इंतजार न करने की नसीहत भी देते रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की फीस जमा करने का समय एक अप्रैल से तीस सितंबर तक का होता है । कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हालाँकि अप्रैल में ही अपनी फीस जमा कर देते हैं, लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो सितंबर के आखिरी सप्ताह में फीस जमा करने के लिए 'जागते' हैं । अतुल गुप्ता को जब भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भाषण देने का मौका मिलता है, वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को जल्दी जागने का आह्वान करते हैं । लेकिन इस रिपोर्ट के साथ तस्वीर के रूप में प्रकाशित दस्तावेज बताता/दिखाता है कि खुद अतुल गुप्ता फीस जमा करने के मामले में आखिरी सप्ताह तक 'सोते' ही रहते हैं, और समय से फीस जमा करवाने का ध्यान नहीं रखते हैं । 
प्रकाशित दस्तावेज बताता/दिखाता है कि पिछले वर्ष अतुल गुप्ता ने सदस्यता फीस जमा करने की आखिरी तारीख से पाँच दिन पहले, 25 सितंबर को फीस जमा की/करवाई है । यही दस्तावेज यह भी दिखा/बता रहा है कि पिछले वर्ष अतुल गुप्ता ने चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में अपनी तरफ से इकन्नी भी जमा नहीं करवाई है । । इस वर्ष की फीस भी अतुल गुप्ता ने अभी, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं जमा की है । चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड के मामले में भी ऐसा नहीं है कि अतुल गुप्ता ने पिछले वर्ष ही पैसे नहीं दिए हैं; पिछले अधिकतर वर्षों में भी उन्होंने उक्त फंड में पैसे नहीं ही दिए हैं - और उनका रवैया बिलकुल भी वैसा नहीं है, जैसा रवैया अपनाने के लिए वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नसीहतें और उपदेश देते हैं । वैसे इस मामले में सिर्फ अतुल गुप्ता की आलोचना करना उनके साथ न्याय करना नहीं होगा; क्योंकि सेंट्रल काउंसिल के अन्य सदस्यों - यहाँ तक कि प्रेसीडेंट्स तक का रवैया उनके जैसा ही है । अन्य कई सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ-साथ मौजूदा प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा निवर्त्तमान प्रेसीडेंट ने भी  चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में पैसे जमा नहीं करवाए हैं - हालाँकि यह सभी लोग समय समय पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इस फंड में पैसे जमा करवाने की नसीहत देते रहते हैं । नवीन गुप्ता ने तो और भी कमाल किया, उन्होंने अपनी सदस्यता फीस भी देर से भरी और उसमें भी सौ रुपये बैलेंस छोड़ दिए । 
चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड को लेकर नसीहतें देने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का रवैया कितना गैरजिम्मेदारी भरा है, इसका उदाहरण अमृतसर में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में देखने को मिला । सेंट्रल काउंसिल सदस्य संजीव सिंघल ने अपने संबोधन में फरमाया कि ब्रांचेज अपने कार्यक्रमों में अतिथियों को मोमेंटोज व बुके आदि देने पर जो पैसे खर्च करती हैं, उस पैसे को फिजूल में खर्च करने की बजाये वह चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में दे सकते हैं; यह सुन कर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक सदस्य ने उन्हें टोका और बताया कि उनसे पहले वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता अपने संबोधन में बता चुके हैं कि इंस्टीट्यूट का पैसा चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में नहीं दिया जा सकता है । यह सुनकर अपनी गलती मानने की बजाये संजीव सिंघल ने उक्त सदस्य पर भड़कते हुए और लगभग डाँटते हुए उन्हें चुप करा दिया । उपस्थित लोगों ने संजीव सिंघल के इस व्यवहार पर आश्चर्य ही व्यक्त किया; और उनका कहना रहा कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने के नाते संजीव सिंघल को झूठ-मूठ कुछ भी नहीं बोलना चाहिए, और गलती पकड़े जाने पर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए । चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में हजार/पाँच सौ की रकम देने से सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के पदाधिकारी जिस तरह बचते/छिपते हैं - लेकिन दूसरों को नसीहत व उपदेश देने में आगे आगे रहते हैं, उससे उनका दोहरा रवैया ही सामने आता है । 

Tuesday, May 7, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के एक पुराने, बड़े और सक्रिय क्लब का सदस्य और मौजूदा वर्ष में प्रेसीडेंट होने का फायदा उठाते हुए सुनील मल्होत्रा ने अपनी उम्मीदवारी के अभियान को लोगों के बीच प्रभावी व विश्वसनीय रूप दिया

नई दिल्ली । सुनील मल्होत्रा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी की तैयारी में हाल के दिनों में जो तेजी दिखाई है, उसके कारण उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से देखा/पहचाना जाने लगा है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग एसेम्बली में सुनील मल्होत्रा फुल फॉर्म में दिखे और लोगों के बीच खासी सक्रियता व दिलचस्पी के साथ मिले/जुले । उनके क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली विकास के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों व पूर्व प्रेसीडेंट्स ने उनकी उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने की जो कोशिश की, उसका भी सुनील मल्होत्रा को अच्छा फायदा मिला । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग असेम्बली में चूँकि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर सक्रिय सदस्य उपस्थित थे, जिनके रोटरी क्लब दिल्ली विकास के वरिष्ठ सदस्यों के साथ निकट के घनिष्ठ संबंध रहे हैं - इसलिए रोटरी क्लब दिल्ली विकास के वरिष्ठ सदस्यों व पूर्व प्रेसीडेंट्स की सक्रियता ने सुनील मल्होत्रा की उम्मीदवारी के अभियान को प्रचारित व प्रसारित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली विकास डिस्ट्रिक्ट का एक पुराना, बड़ा और अत्यंत सक्रिय क्लब है - डिस्ट्रिक्ट में जो कोई भी थोड़ा बहुत सक्रिय है, वह दिल्ली विकास के किसी न किसी सदस्य के साथ गहरे से जुड़ा है; और जो नहीं भी जुड़ा है, वह क्लब के पुराने, बड़े और सक्रिय होने के तथ्य से प्रेरित होता है । खासकर नए रोटेरियंस यह जानकार अचंभित होते हैं कि करीब 200 सदस्यों वाला क्लब कैसे तो लगातार एकजुट बना हुआ है और कैसे बिना किसी झगड़े-झंझट के अपना काम करता है ?
डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स के लिए रोटरी क्लब दिल्ली विकास अक्सर ही एक 'स्कूल' की भूमिका भी निभाता नजर आता है । दरअसल विभिन्न क्लब्स के प्रेसीडेंट्स के लिए यह बात एक बड़ी चुनौती की तरह होती है कि उनके लिए तो अपने छोटे से क्लब के सदस्यों को एकजुट व सक्रिय करना/रखना मुश्किल होता है; ऐसे में रोटरी क्लब दिल्ली विकास में कैसे काम होता है ? इसीलिए रोटरी क्लब दिल्ली विकास की डिस्ट्रिक्ट में और खास तौर से दूसरे क्लब्स के पदाधिकारियों के बीच विशिष्ट पहचान है । सुनील मल्होत्रा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के अभियान को अपने क्लब की इस विशिष्ट पहचान का खासा फायदा मिल रहा है । बड़ा और संगठित व सक्रिय क्लब होने के कारण रोटरी क्लब दिल्ली विकास जिस जोन में होता है, उस जोन के बाकी क्लब्स भी उसके 'प्रभाव' में रहते हैं - और इस तरह उस जोन की डिस्ट्रिक्ट में एक अलग पहचान व भूमिका बन जाती है । ऐसे में, सुनील मल्होत्रा के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में बड़ी अनुकूल स्थिति यह बनी है कि वह रोटरी क्लब दिल्ली विकास के ही नहीं, बल्कि अपने जोन के क्लब्स के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं । सुनील मल्होत्रा के जोन के करीब 25 से 30 वोट होंगे, जिनमें किसी दूसरे उम्मीदवार के लिए सेंध लगाना मुश्किल ही होगा; जाहिर है कि सुनील मल्होत्रा जितने बड़े समर्थन-आधार से अपनी उम्मीदवारी की शुरुआत कर रहे हैं, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी को स्वाभाविक रूप से बढ़त मिलती दिखती है ।
डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग एसेम्बली में मौजूद लोगों के बीच सुनील मल्होत्रा ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए जिस तरह का अभियान चलाया, उसके कारण वह डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों की निगाह में तो आए ही, अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने ठोस विश्वसनीयता भी दी । दरअसल डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग असेम्बली में सुनील मल्होत्रा ने अपनी उम्मीदवारी के बाबत जो अभियान चलाया, उसने इसलिए भी विश्वसनीय रूप पाया - क्योंकि सुनील मल्होत्रा उससे पहले अधिकतर लोगों से वन-टू-वन लेबल पर मिल चुके थे । वन-टू-वन लेबल पर होने वाली बात/मुलाकात व्यक्तिगत स्तर पर तो संबंधों को बनाती/जोड़ती है, लेकिन राजनीतिक रूप से वह संबंध असरकारी तब होते हैं जब व्यक्तिगत रूप से बने संबंधों को सार्वजनिक पहचान मिलती है । डिस्ट्रिक्ट ट्रेनिंग असेम्बली में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए चलाये गए सुनील मल्होत्रा के अभियान ने वास्तव में डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस के साथ व्यक्तिगत रूप से बने उनके संबंधों को सार्वजनिक पहचान देने का ही काम किया है । सुनील मल्होत्रा चूँकि इसी वर्ष अपने क्लब के प्रेसीडेंट हैं, इसलिए प्रेसीडेंट के रूप में उनकी सक्रियता, उनके कामों और उनकी उपलब्धियों से लोग ताजा ताजा वैसे ही परिचित हैं; जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में उनके अभियान को और प्रभावी व विश्वसनीय रूप देता है । 

Monday, May 6, 2019

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की कार्रवाईयों से चौतरफा मुश्किलों में घिरे आरके शाह के लिए सबसे बड़ी मुश्किल की बात यह हो गई है कि उनके साथ किसी को जैसे कोई हमदर्दी ही नहीं है और हर कोई अपने अपने तरीके से उन्हें इस्तेमाल कर रहा है

नई दिल्ली । आरके शाह की यह स्थिति देख/जान कर उनके समर्थक व शुभचिंतक खासे निराश और परेशान हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वीके हंस की कार्रवाईयों और हरकतों की आलोचना करने वाले लोगों के बीच भी आरके शाह के प्रति हमदर्दी पैदा नहीं हो पा रही है, और अधिकतर लोगों को लग रहा है कि आरके शाह के साथ जो हो रहा है, वह ठीक हो रहा है और वह यही डिजर्व करते हैं । दरअसल वीके हंस की कार्रवाईयों और हरकतों के चलते आरके शाह को जबर्दस्ती चुनाव का सामना करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है और उन्हें अनाप-शनाप पैसे खर्च करने पड़ रहे हैं । हर कोई मान रहा है कि वीके हंस पता नहीं आरके शाह के साथ कौन सी दुश्मनी निकाल रहे हैं, जिसके चलते उन्होंने आरके शाह पर चुनाव जबर्दस्ती थोप दिया है, और लगातार यह कहते सुने गए हैं कि वह आरके शाह को गवर्नर बनने नहीं देंगे । वीके हंस के रवैये से आरके शाह को कोई राजनीतिक नुकसान तो होता हुआ नहीं दिख रहा है, लेकिन चुनाव उनके लिए भारी मुसीबत जरूर बन गया है । आरके शाह को खासी दौड़-भाग करना पड़ रही है, और खूब पैसे खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है । आरके शाह और उनके नजदीकियों को यह देख/जान कर और ज्यादा बुरा लग रहा है कि वह वीके हंस द्वारा जिस मुसीबत में फँसा दिए गए हैं, डिस्ट्रिक्ट के लोग उसका फायदा उठाने में लगे हैं और मनमाने तरीके से उनसे पैसे खर्च करवा रहे हैं - और किसी को उनसे हमदर्दी तक नहीं हो रही है ।
कुछेक लोग तो यह तक कहते हुए सुने जा रहे हैं कि आरके शाह के साथ जोहो रहा है, वह ठीक ही हो रहा है - वह यही डिजर्व करते हैं । ऐसा मानने और कहने वाले लोग दरअसल पिछले वर्ष की उनकी कार्रवाई को याद कर रहे हैं, जब उन्होंने सर्वसहमति से उम्मीदवार चुने गए राजीव अग्रवाल की राह में रोड़े डालने का काम किया था, और सर्वसम्मत फैसले के विरोध में खड़े हो गए थे । नियमानुसार हालाँकि आरके शाह ने कुछ भी गलत नहीं किया था; उन्होंने जो कुछ भी किया था वह लायंस इंटरनेशनल, मल्टीपल और डिस्ट्रिक्ट के नियमों के तहत ही किया था; ठीक उसी तरह से इस बार दिल्ली और हरियाणा से उनके सामने जो उम्मीदवारी आई है, वह भी लायंस इंटरनेशनल, मल्टीपल और डिस्ट्रिक्ट के नियमों का पालन करते हुए ही आई है । आरके शाह और उनके नजदीकियों की शिकायत यह है कि दिल्ली और हरियाणा से जो उम्मीदवारी आई हैं, वह डिस्ट्रिक्ट में सर्वसहमति से बने फैसले का उल्लंघन करती हैं । यह आरोप सच है । लोगों का कहना है कि लेकिन यही काम तो खुद आरके शाह ने पिछले वर्ष किया था, इसलिए अब उन्हें ऐसी शिकायत करने का नैतिक हक नहीं है । यह तो ऐसी ही बात हुई कि वही काम जब आरके शाह करें, तो रासलीला - दूसरे लोग करें, तो करेक्टर ढीला । लोगों का कहना है कि इस बार जो उनके साथ हो रहा है, ठीक वही काम तो पिछले ही वर्ष उन्होंने राजीव अग्रवाल के साथ किया था । पिछले वर्ष, सर्वसम्मति से राजीव अग्रवाल के पक्ष में हुए फैसले के विरोध में खड़े होने की उन्होंने जब जिद पकड़ ली थी, तब कई लोगों ने उन्हें समझाया था कि डिस्ट्रिक्ट में सौहार्द बनाए रखने के लिए उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए और सर्वसम्मति से लिए गए फैसले का सम्मान करना चाहिए । आरके शाह ने लेकिन किसी की नहीं सुनी थी; और अपनी उम्मीदवारी उन्होंने तभी वापस ली थी, जब उन्हें अगली बार समर्थन देने के लिए सर्वसम्मत फैसला किया गया था । 
यह आरके शाह की बदकिस्मती है कि उनकी चुनावी राह को मुश्किल बनाने वाले उम्मीदवारों को मनाने के लिए नेता लोग उनके साथ 'सौदेबाजी' करने की कोई कोशिश ही नहीं कर रहे हैं - जैसी सौदेबाजी पिछले वर्ष राजीव अग्रवाल की राह आसान बनाने के लिए उनके साथ कर ली गई थी । इससे ऐसा भी लगता है कि नेता लोग आरके शाह की उम्मीदवारी के साथ तो हैं, लेकिन वह आरके शाह की राह आसान बनाने के लिए उत्सुक व उत्साहित नहीं हैं । आरके शाह की यह हालत देख/जान कर उनके नजदीकियों को लग रहा है कि चौतरफा मुश्किलों में घिरे आरके शाह के लिए सबसे बड़ी मुश्किल की बात यह हो गई है कि उनके साथ किसी को जैसे कोई हमदर्दी ही नहीं है और हर कोई अपने अपने तरीके से उन्हें इस्तेमाल कर रहा है ।    

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में सुनीता बंसल के समर्थकों की हवाबाजी और उनके बड़बोलेपन ने माहौल में गर्मी तो पैदा कर दी थी, लेकिन जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल की जोड़ी के सामने उन्हें भारी हार का सामना करना पड़ा है

आगरा । श्याम बिहारी अग्रवाल और सुनीता बंसल के बीच हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के जिस चुनाव को सुनीता बंसल के समर्थक काँटे और टक्कर का चुनाव बता रहे थे, उस चुनाव को सुनीता बंसल लेकिन करीब 70 वोटों के भारी अंतर से हार गईं । सुनीता बंसल ने हालाँकि पूरी दमदारी से चुनाव लड़ा था, उन्हें डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स का खुला और सक्रिय समर्थन प्राप्त था, फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह का समर्थन उनके साथ था, श्याम बिहारी अग्रवाल की तुलना में लायनिज्म व डिस्ट्रिक्ट में उनकी भूमिका व सक्रियता ज्यादा प्रभावी रही है, डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच श्याम बिहारी अग्रवाल की नकारात्मक छवि रहने से अवधारणा के स्तर पर सुनीता बंसल का पलड़ा भारी था - लेकिन इतनी तमाम सकारात्मक परिस्थितियों के बावजूद सुनीता बंसल भारी अंतर से चुनाव हार गईं । बड़े अंतर से मिली हार के लिए जो एक प्रमुख कारण रहा, वह यह कि सुनीता बंसल और उनके समर्थक इस 'तथ्य' को भूले रहे कि चुनाव - कोई भी चुनाव वास्तव में एक 'मैनेजमेंट' भी होता है । सुनीता बंसल और उनके तीसमारखाँ किस्म के नेताओं ने हवाबाजी तो बहुत दिखाई और बड़बोले दावे किए, लेकिन मैनेजमेंट पर कोई ध्यान नहीं दिया - जिसका नतीजा रहा कि हर तरह से अनुकूल व आसान समझी जा रही चुनावी लड़ाई में वह 'खेत' रहे । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह के समर्थन का भी सुनीता बंसल और उनके समर्थक नेता वोट जुटाने के संदर्भ में फायदा नहीं उठा सके । 
श्याम बिहारी अग्रवाल को जिस तरह से आगरा के एक 'बंद हो चुके' क्लब का सदस्य बना कर, आगरा के लोगों के सिर पर थोपा गया - और जिसके चलते जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल के नजदीकी पूर्व गवर्नर्स उनके खिलाफ हो गए; उससे बने माहौल ने सुनीता बंसल और उनके समर्थकों को सुनहरा मौका दिया था; लेकिन जिसका वह कोई फायदा नहीं उठा सके । पारस अग्रवाल की नजदीकी रिश्तेदार होने के कारण सुनीता बंसल की उम्मीदवारी ने पारस अग्रवाल के सामने सिर्फ राजनीतिक ही नहीं, बल्कि पारिवारिक व नैतिक संकट भी खड़ा कर दिया था - किंतु सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को उसका भी कोई फायदा नहीं मिला । दरअसल परिस्थितियों की अनुकूलता को देखते हुए सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक इतने जोश में आये हुए थे कि वह पूरी तरह से होश खो बैठे थे, जिसके चलते अनुकूलताओं का फायदा उठाने की कोशिशें करने की बजाये वह बड़बोलेपन के साथ हवाबाजी करने में ही व्यस्त रहे - और वोट जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल की जोड़ी ले उड़ी । चुनावी नतीजा आने से पहले के चुनाव अभियान के माहौल पर यदि नजर डालें तो यहीं समझ में आता है कि जितेंद्र चौहान और पारस अग्रवाल की जोड़ी ने चुनाव लड़ने पर नहीं, बल्कि 'मैनेज' करने पर ध्यान दिया और खासी विपरीत व मुश्किल हालात वाले चुनाव को सिर्फ जीता ही नहीं - बल्कि भारी अंतर से जीता ।
असल में, श्याम बिहारी अग्रवाल को 'आगरा का' उम्मीदवार बनाये जाने के लिए अपनाये गए तौर-तरीके को लेकर डिस्ट्रिक्ट में, खासकर आगरा में जिस तरह की नाराजगी फूटी - उसे देख कर जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल की जोड़ी ने समझ लिया था कि श्याम बिहारी अग्रवाल की उम्मीदवारी के पक्ष में 'अभियान' चला पाना मुश्किल ही होगा, और उससे नुकसान ही होगा - इसलिए उन्होंने दूसरी रणनीति अपनाई । उनकी रणनीति ने उन्हें दोहरा लाभ पहुँचाया - एक तरफ तो श्याम बिहारी अग्रवाल के अभियान को कमजोर देख कर सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक इतने जोश में आ गए कि उन्हें अपनी जीत आसान लगने लगी और जिसके चलते वह मौकों का फायदा उठाने के प्रयास करने से चूकते गए; दूसरी तरफ, जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल की जोड़ी को वोट मैनेज करने का खेल खेलने के लिए खुला मैदान मिल गया, जिसका उन्होंने पूरा पूरा फायदा उठाया । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन को खासा महत्त्वपूर्ण माना/पहचाना जाता है, क्योंकि उसके पास पदों का लालच देकर वोट खींचने की क्षमता होती है । इस क्षमता के चलते फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह के समर्थन की ताकत तो सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के साथ थी ही, मधु सिंह के पति पूर्व गवर्नर विश्वदीप सिंह के कारण वह 'ताकत' और बढ़ गई थी । दरअसल विश्वदीप सिंह को जितेंद्र चौहान से कई मामलों में 'बदले' लेने हैं, इसलिए उम्मीद की जा रही थी कि मधु सिंह की फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी के जरिये विश्वदीप सिंह कोई कसर छोड़ेंगे नहीं - लेकिन यह उम्मीद भी काम नहीं आई । असल में, गड़बड़ी यही हुई कि सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थक नेता सिर्फ उम्मीद पर रहे, चुनावी लड़ाई का जो एक मैनेजमेंट होता है, उसपर उनका कोई ध्यान ही नहीं था - लिहाजा एक आसान दिख रही चुनावी लड़ाई में वह बुरी तरह से हार गए ।

Saturday, May 4, 2019

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में खासी फजीहत के बाद अंततः डीआरएफसी तय हुआ और सुशील गुप्ता के हस्तक्षेप तथा अशोक घोष की नर्म/गर्म कोशिशों के बावजूद बड़ी मुश्किल से संजय खन्ना के नाम पर सहमति बनी

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट रोटरी फाउंडेशन चेयरमैन (डीआरएफसी) पद को लेकर रंजन  ढींगरा व आशीष घोष के समर्थकों के बीच छिड़ी और कई दिनों से जारी लड़ाई का फायदा संजय खन्ना को मिला - और लंबी कश्मकश के बाद आखिरकार संजय खन्ना को डीआरएफसी घोषित कर दिया गया है । मजे की खास बात हालाँकि यह रही कि यूँ तो यह फैसला तीन-चार दिन पहले हो गया था, लेकिन फिर भी इसे छिपा कर रखा गया और जिन लोगों को इसकी भनक लग भी गई थी - उन्हें भी कन्फ्यूज करने की कोशिश की गई; ताकि कहीं कोई फैसले में अड़ंगा न डाल/डलवा दे । उल्लेखनीय है कि डीआरएफसी को लेकर इस बार जितनी राजनीति हुई, इससे पहले शायद ही कभी और कहीं हुई होगी । एक बार को तो लगने लगा था कि डिस्ट्रिक्ट में डीआरएफसी पर फैसला हो ही नहीं पायेगा, और डिस्ट्रिक्ट बिना डीआरएफसी के ही रहेगा । पिछले दिनों ही विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के डीआरएफसी के लिए एक महत्त्वपूर्ण ट्रेनिंग प्रोग्राम हुआ, जिसमें डिस्ट्रिक्ट 3011 का प्रतिनिधित्व नहीं हो पाया और जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट की खासी बदनामी भी हुई । डिस्ट्रिक्ट 3011 एक महत्त्वपूर्ण डिस्ट्रिक्ट है । डिस्ट्रिक्ट ने रोटरी को चार इंटरनेशनल डायरेक्टर दिए हैं; डिस्ट्रिक्ट के दो लोग इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की प्रक्रिया के अंतिम चरण तक पहुँचे, जिनमें से एक सुशील गुप्ता तो कामयाब भी हुए; इस कारण से रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच डिस्ट्रिक्ट की एक विशेष पहचान है । इस विशेष पहचान के चलते डीआरएफसी पर फैसला न कर पाने के लिए रोटरी में डिस्ट्रिक्ट की फजीहत हो रही थी ।
डीआरएफसी के लिए रंजन ढींगरा और आशीष घोष के नाम थे - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सुरेश भसीन और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेट अनूप मित्तल का समर्थन रंजन ढींगरा को था, जबकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी संजीव राय मेहरा ने आशीष घोष को समर्थन दिया हुआ था । दोनों पक्ष अपने अपने समर्थन-रवैये पर अड़े हुए थे, जिस कारण फैसला नहीं हो पा रहा था । लेकिन जब डिस्ट्रिक्ट की फजीहत होना शुरू हुई, और बड़े नेताओं का दबाव पड़ना शुरू हुआ तो दोनों पक्ष हिले-डुले तो जरूर, लेकिन उससे मामला सुलझने की बजाये उलझ और गया । संजीव राय मेहरा ने नया नाम राजेश बत्रा का दिया, तो सुरेश भसीन व अनूप मित्तल की तरफ से दीपक तलवार, संजय खन्ना, अमित जैन के विकल्प दिए गए । मामला एक बार फिर वहीं फँस गया, जहाँ से निकलने के लिए नए नाम दिए गए थे । मामले में अपनी टाँग अड़ाते हुए विनोद बंसल ने विनय भाटिया का नाम बढ़ाया/सुझाया, लेकिन उनके सुझाव पर किसी ने ध्यान ही नहीं दिया । मामले को फिर से फँसता देख सुशील गुप्ता सक्रिय हुए और उन्होंने अशोक घोष को जिम्मेदारी सौंपी कि वह डीआरएफसी पर फैसला करवाएँ । अशोक घोष ने मामले में दिलचस्पी ली, और कुछ नर्म व कुछ गर्म रवैया दिखाते हुए फैसला करवाया । अशोक घोष यह भी समझ रहे थे कि डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोग ऐसे हैं जो डीआरएफसी पर फैसला नहीं होने देना चाहते हैं और इसलिए जिस भी नाम पर सहमति बनेगी, 'इसे'या 'उसे' भड़का कर फैसले को लटकवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक महत्त्वाकांक्षी लोग ऐसे हैं, जिनका संजय खन्ना से खासा विरोध है । अशोक घोष ने इसीलिए सहमति बन जाने के बाद भी फैसले की जानकारी को छिपा कर रखने पर जोर दिया ।उन्होंने संबंधित चारों लोगों को इसके लिए राजी किया कि जब तक फैसला रिकॉर्ड पर न चला जाये, किसी अन्य को फैसले की भनक भी न लगने दी जाए । कुछेक लोगों को हालाँकि भनक लग गई थी, उनके द्वारा जानकारी कन्फर्म करने की कोशिशों को लेकिन होशियारी के साथ टालमटोल करके कन्फ्यूज कर दिया गया । कागजी कार्रवाई पूरी होने के बाद ही संजय खन्ना के डीआरएफसी बनने की जानकारी दी गई है ।

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल के सेमीनार में अविनाश गुप्ता को आमंत्रित किए जाने से नितिन कँवर के साथ पर्दे के पीछे चल रही उनकी दोस्ती की कोशिशें उद्घाटित हुई, जिसने कई लोगों को हैरान तथा कुछेक को परेशान किया है

नई दिल्ली । ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल के 6 मई को होने वाले सेमीनार में स्पीकर के रूप में अविनाश गुप्ता को आमंत्रित किए जाने ने नितिन कँवर तथा अविनाश गुप्ता के बीच चलने वाली साँप-नेवले जैसी लड़ाई से परिचित रहे लोगों को हैरान किया है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म में नितिन कँवर ने कई मौकों पर स्पीकर के रूप में अविनाश गुप्ता को मिले आमंत्रणों को रद्द करवाने का काम किया था, जिसके लिए अविनाश गुप्ता ने नितिन कँवर की सार्वजनिक रूप से लानत-मलानत की थी । नितिन कँवर की तरफ से खुलकर कहा/सुना जाता था कि जिस जिस ब्राँच में और कार्यक्रमों में उनकी 'चलेगी', वह अविनाश गुप्ता को उनमें 'घुसने' नहीं देंगे । अविनाश गुप्ता की तरफ से भी 'जैसे को तैसा' वाले अंदाज में नितिन कँवर को जबाव दिया जाता था । रीजन के लोगों के बीच नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच की लड़ाई को साँप-नेवले जैसी लड़ाई के रूप में देखा/पहचाना और चिन्हित किया जाता था । मौजूदा टर्म में अविनाश गुप्ता के रीजनल काउंसिल में आने के बाद से, खासकर चेयरमैन के चुनाव का नाटक हो जाने के बाद से नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के संबंध हालाँकि सुधरते हुए दिखे हैं - लेकिन वह इस हद तक सुधर गए हैं कि नितिन कँवर के स्टडी सर्किल के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल के सेमीनार में अविनाश गुप्ता को स्पीकर बनने का मौका मिलेगा, यह किसी ने नहीं सोचा था और इसीलिए यह दोनों के नजदीकियों तक के लिए हैरानी की बात है ।
अविनाश गुप्ता से तेजी से संबंध सुधारने की नितिन कँवर की कोशिश को दरअसल अगले वर्ष नितिन कँवर की चेयरमैन बनने की कोशिश के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में नितिन कँवर के रवैये से परिचित लोगों का कहना यह भी है कि रीजनल काउंसिल में चौथे वर्ष नितिन कँवर ने अपनी बदतमीजियों पर कुछ लगाम लगाई है; जिसके चलते पिछले तीन वर्षों के मुकाबले इस वर्ष उनकी हरकतें कुछ कम देखने/सुनने को मिल रही हैं । नितिन कँवर के नजदीकियों का कहना/बताना है कि नितिन कँवर ने लगता है कि इस बात को समझ लिया है कि बदतमीजियों को छोड़े बिना उनके लिए चेयरमैन बन पाना मुश्किल ही होगा; इस टर्म में तो और भी मुश्किल होगा - जहाँ कि 'तीन कनौजियाँ, तेरह चूल्हे' वाली स्थिति है । नजदीकियों के अनुसार, नितिन कँवर अपने 'स्वभाव' में ज्यादा परिवर्तन तो नहीं ला सकते हैं, लेकिन फिर भी वह कोशिश कर रहे हैं कि नाहक ही वह हर किसी के साथ बदतमीजी न करें । इसी कोशिश में उन्होंने अविनाश गुप्ता के साथ संबंध सुधारने का प्रयास शुरू किया है । दरअसल मौजूदा वर्ष में चेयरमैन पद के चुनाव को लेकर हुए नाटक में रतन सिंह यादव और अविनाश गुप्ता के बीच जो दूरी बनी है, उसमें नितिन कँवर को अगले वर्ष अपनी दाल गलती हुई दिख रही है, और उसमें अविनाश गुप्ता उन्हें अपने लिए उपयोगी नजर आ रहे हैं । 
नितिन कँवर के नजदीकियों का मानना और कहना है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इस समय जो और जिस तरह का बिखराव है, उसे देखते हुए वहाँ एक नया समीकरण और या गठजोड़ बनने का ही आभास मिल रहा है । चेयरमैन चुनाव का नतीजा आने से पहले और उसके बाद जो गठजोड़ बना है, उसके दोबारा आकार लेने की कोई संभावना नहीं है; ऐसे में नितिन कँवर को लगता है कि अविनाश गुप्ता के साथ मिल कर वह नए गठजोड़ की नींव रख सकते हैं - लिहाजा उन्होंने पुरानी बातों को भूल कर अविनाश गुप्ता की तरफ हाथ बढ़ाया है । नितिन कँवर के नजदीकियों का कहना/बताना है कि नितिन कँवर ने पिछले दिनों अविनाश गुप्ता के साथ कुछेक निजी और पारिवारिक मुलाकातें की हैं, और अविनाश गुप्ता की तरफ से भी उन्हें सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली है । दरअसल जिन कारणों से नितिन कँवर को अविनाश गुप्ता से दोस्ती की जरूरत महसूस हो रही है, ठीक वही कारण अविनाश गुप्ता को भी नितिन कँवर से दोस्ती कर लेने के लिए प्रेरित कर रहे हैं । दोनों को ही लग रहा है कि अकेले अकेले पड़ गए दोनों लोग मिल जायेंगे तो 'एक से भले दो' की तर्ज पर दोनों को ही लाभ मिलेगा । नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच अभी तक पर्दे के पीछे चल दोस्ती की कोशिशों को 6 मई को होने वाले ईस्ट एंड सीपीई स्टडी सर्किल के सेमीनार के निमंत्रण पत्र ने सार्वजनिक रूप से उद्घाटित कर दिया है, और इसीलिए दोनों के बीच चलती रही घमासानपूर्ण लड़ाई से परिचित रहे लोगों को इस निमंत्रण पत्र ने हैरान किया है - कुछेक को हालाँकि परेशान भी किया है । कुछेक लोगों को हालाँकि लगता है कि नितिन कँवर और अविनाश गुप्ता के बीच दोस्ती ज्यादा दिन नहीं चलेगी; चलेगी या नहीं चलेगी - यह तो बाद में पता चलेगा, अभी लेकिन दोनों के बीच दोस्ती होने की बात ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्यों के बीच बनने वाले समीकरणों ने जरूर हलचल सी मचा दी है ।