Wednesday, May 8, 2019

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सदस्यों को अक्सर ही 'चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड' में पैसे जमा करवाने की नसीहत व उपदेश देते रहने वाले इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता खुद उक्त फंड में पैसे देने से क्यों बचते हैं ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने अभी हाल ही में अमृतसर में आयोजित हुए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज के मैनेजमेंट सदस्यों के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड (सीएबीएफ) में कुछ न कुछ पैसे देने की जरूरत बताई और जोर देकर कहा कि प्रत्येक चार्टर्ड एकाउंटेंट को उक्त फंड में अवश्य ही पैसे देने चाहिए । लेकिन हैरानी की जो बात 'रचनात्मक संकल्प' को प्राप्त हुए दस्तावेजों से पता चली है वह यह है कि खुद अतुल गुप्ता उक्त फंड में पैसे देने से बचते हैं । 'पर उपदेश कुशल बहुतेरे' वाली कहावत को चरितार्थ करता अतुल गुप्ता का यह रवैया खासा दिलचस्प है और शर्मनाक भी । अतुल गुप्ता ने यह बात अभी सिर्फ अमृतसर में ही नहीं कही है; इससे पहले भी वह यह उपदेश जहाँ-तहाँ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को देते रहे हैं । इसके साथ ही, अतुल गुप्ता समय समय पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इंस्टीट्यूट की फीस जल्दी से जल्दी जमा करने की, और आखिरी तारीख का इंतजार न करने की नसीहत भी देते रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इंस्टीट्यूट की फीस जमा करने का समय एक अप्रैल से तीस सितंबर तक का होता है । कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हालाँकि अप्रैल में ही अपनी फीस जमा कर देते हैं, लेकिन कई ऐसे भी होते हैं जो सितंबर के आखिरी सप्ताह में फीस जमा करने के लिए 'जागते' हैं । अतुल गुप्ता को जब भी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच भाषण देने का मौका मिलता है, वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को जल्दी जागने का आह्वान करते हैं । लेकिन इस रिपोर्ट के साथ तस्वीर के रूप में प्रकाशित दस्तावेज बताता/दिखाता है कि खुद अतुल गुप्ता फीस जमा करने के मामले में आखिरी सप्ताह तक 'सोते' ही रहते हैं, और समय से फीस जमा करवाने का ध्यान नहीं रखते हैं । 
प्रकाशित दस्तावेज बताता/दिखाता है कि पिछले वर्ष अतुल गुप्ता ने सदस्यता फीस जमा करने की आखिरी तारीख से पाँच दिन पहले, 25 सितंबर को फीस जमा की/करवाई है । यही दस्तावेज यह भी दिखा/बता रहा है कि पिछले वर्ष अतुल गुप्ता ने चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में अपनी तरफ से इकन्नी भी जमा नहीं करवाई है । । इस वर्ष की फीस भी अतुल गुप्ता ने अभी, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक नहीं जमा की है । चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड के मामले में भी ऐसा नहीं है कि अतुल गुप्ता ने पिछले वर्ष ही पैसे नहीं दिए हैं; पिछले अधिकतर वर्षों में भी उन्होंने उक्त फंड में पैसे नहीं ही दिए हैं - और उनका रवैया बिलकुल भी वैसा नहीं है, जैसा रवैया अपनाने के लिए वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को नसीहतें और उपदेश देते हैं । वैसे इस मामले में सिर्फ अतुल गुप्ता की आलोचना करना उनके साथ न्याय करना नहीं होगा; क्योंकि सेंट्रल काउंसिल के अन्य सदस्यों - यहाँ तक कि प्रेसीडेंट्स तक का रवैया उनके जैसा ही है । अन्य कई सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के साथ-साथ मौजूदा प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ तथा निवर्त्तमान प्रेसीडेंट ने भी  चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में पैसे जमा नहीं करवाए हैं - हालाँकि यह सभी लोग समय समय पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को इस फंड में पैसे जमा करवाने की नसीहत देते रहते हैं । नवीन गुप्ता ने तो और भी कमाल किया, उन्होंने अपनी सदस्यता फीस भी देर से भरी और उसमें भी सौ रुपये बैलेंस छोड़ दिए । 
चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड को लेकर नसीहतें देने वाले सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का रवैया कितना गैरजिम्मेदारी भरा है, इसका उदाहरण अमृतसर में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ओरिएंटेशन प्रोग्राम में देखने को मिला । सेंट्रल काउंसिल सदस्य संजीव सिंघल ने अपने संबोधन में फरमाया कि ब्रांचेज अपने कार्यक्रमों में अतिथियों को मोमेंटोज व बुके आदि देने पर जो पैसे खर्च करती हैं, उस पैसे को फिजूल में खर्च करने की बजाये वह चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में दे सकते हैं; यह सुन कर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के एक सदस्य ने उन्हें टोका और बताया कि उनसे पहले वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता अपने संबोधन में बता चुके हैं कि इंस्टीट्यूट का पैसा चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में नहीं दिया जा सकता है । यह सुनकर अपनी गलती मानने की बजाये संजीव सिंघल ने उक्त सदस्य पर भड़कते हुए और लगभग डाँटते हुए उन्हें चुप करा दिया । उपस्थित लोगों ने संजीव सिंघल के इस व्यवहार पर आश्चर्य ही व्यक्त किया; और उनका कहना रहा कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने के नाते संजीव सिंघल को झूठ-मूठ कुछ भी नहीं बोलना चाहिए, और गलती पकड़े जाने पर उसे स्वीकार कर लेना चाहिए । चार्टर्ड एकाउंटेंट बेनेवोलेंट फंड में हजार/पाँच सौ की रकम देने से सेंट्रल काउंसिल सदस्य और इंस्टीट्यूट के पदाधिकारी जिस तरह बचते/छिपते हैं - लेकिन दूसरों को नसीहत व उपदेश देने में आगे आगे रहते हैं, उससे उनका दोहरा रवैया ही सामने आता है ।