नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य गौरव गर्ग ने काउंसिल कार्यालय में अपने धरने को लेकर जो गुब्बारा फुलाया था, धरना शुरू होने से पहले ही उस गुब्बारे की सारी हवा निकल गई और गौरव गर्ग का आयोजन एक फ्रॉड तमाशा बन कर रह गया । दरअसल धरना शुरू होने से पहले ही सारे मामले में 'जिम्मेदार' ठहराए जा रहे रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर विजय गुप्ता की तरफ से जो तथ्य सार्वजनिक किए गए उनसे साबित हुआ कि गौरव गर्ग ने झूठ बोला, बात का बतंगड़ बनाया और अपनी घटिया व स्वार्थी राजनीति के चक्कर में रीजनल काउंसिल कार्यालय व इंस्टीट्यूट मुख्यालय में अराजकता फैलाने का माहौल बनाया । गौरव गर्ग ने जो सबसे बड़ा झूठ बोला, वह यह कि रीजनल काउंसिल में क्या हो रहा है, काउंसिल सदस्य होने के बावजूद उन्हें इसकी जानकारी नहीं है और उन्हें काउंसिल पदाधिकारियों की तरफ से उनकी ईमेल्स के जबाव नहीं मिल रहे हैं । जैसा कि कहा जाता है कि जो व्यक्ति सो रहा हो, उसे जगाना आसान होता है - लेकिन जो सोने का अभिनय कर रहा हो, उसे जगाना मुश्किल ही नहीं, कई बार असंभव भी होता है । इस तर्ज पर गौरव गर्ग सोने का अभिनय करने वाले व्यक्ति निकले । असल में, गौरव गर्ग ने जो मुद्दे उठाये, उनमें से कुछ उस वाट्सऐप ग्रुप में चर्चा में रहे, जो रीजनल काउंसिल के तेरह सदस्यों का ग्रुप है । ऐसे में, इस बात को कौन स्वीकार करेगा कि गौरव गर्ग को, और धरने में उनका समर्थन करने की घोषणा करने वाले काउंसिल सदस्यों को मामले की जानकारी नहीं होगी । जाहिर है कि गौरव गर्ग और उनके धरने का समर्थन करने वाले काउंसिल के दूसरे सदस्य 'सोने का अभिनय' करते हुए काउंसिल में अराजकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं । विजय गुप्ता की तरफ से दी गई जानकारी में यह बात भी सामने आई कि गौरव गर्ग की कई ईमेल्स के जबाव सिर्फ उन्हें ही नहीं, बल्कि दूसरे काउंसिल सदस्यों को भी दिए/भेजे गए । लेकिन गौरव गर्ग ने इस तथ्य को छिपाया और झूठ बोल कर अपने आप को काउंसिल का और प्रोफेशन से जुड़े लोगों का हितैषी 'दिखाने' का प्रयास किया - लेकिन उनका नाटक 15/20 घंटे भी नहीं चला और उनकी सारी पोल पट्टी खुल गई ।
गौरव गर्ग को ही नहीं, काउंसिल के प्रत्येक सदस्य को पता है कि किसी भी होटल ने रीजनल काउंसिल को बुकिंग देने से इंकार नहीं किया है, और कैंसिल किए गए सेमीनार के लिए भी जिन दो होटल्स से पूछताछ की गई थी, उन्होंने बुकिंग कंफर्म की थी; इसके बावजूद गौरव गर्ग ने ऐसा माहौल बनाया कि सेमीनार कैंसिल होने के लिए होटल बुक न हो पाना जिम्मेदार था - और होटल्स ने बुकिंग इसलिए नहीं दी क्योंकि उनका बकाया बाकी है । यह तथ्य भी गौरव गर्ग को ही बल्कि प्रत्येक काउंसिल सदस्य को पता है कि किसी भी होटल का कोई पुराना बकाया नहीं है; किसी का जो बकाया है भी वह हाल फिलहाल का है - और वह भी इसलिए बकाया है क्योंकि उसका बिल बनने की प्रक्रिया अभी चल ही रही है । सेमीनार कैंसिल होने का कारण सिर्फ चेयरमैन हरीश चौधरी जैन और उनके नजदीकी नितिन कँवर जानते हैं; गौरव गर्ग ने लेकिन षड्यंत्रपूर्ण तरीके से मामले को ऐसा रूप दिया कि जिम्मेदार विजय गुप्ता लगे । गौरव गर्ग ने जो मामले उठाये उनमें सबसे गंभीर मामला लायब्रेरीज से संबंधित है । इसमें भी लेकिन गौरव गर्ग ने बात का बतंगड़ बनाते हुए ऐसा दर्शाया कि सभी लायब्रेरीज पर बंद होने का खतरा मंडरा रहा है । असल में मामला लेकिन सिर्फ प्रशांत विहार लायब्रेरी का है । हैरानी की बात यह है कि इस लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक के साथ कोई एग्रीमेंट ही नहीं है । इंस्टीट्यूट के नियमानुसार, किसी बिल्डिंग का किराया देने के लिए उसके साथ एग्रीमेंट होना जरूरी है । गौरव गर्ग और उनके समर्थकों को यह बात अच्छे से पता है, लेकिन उन्होंने कभी कोशिश नहीं की कि उक्त एग्रीमेंट हो जाए । गौरव गर्ग के धरने का समर्थन करने वाले नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा और सुमित गर्ग पिछले तीन वर्षों में रीजनल काउंसिल के ट्रेजरर रहे हैं, लेकिन इन्होंने भी कभी प्रयास नहीं किया कि इंस्टीट्यूट के नियम का पालन करते हुए उक्त बिल्डिंग के मालिक के साथ एग्रीमेंट हो जाए - और नियमविरुद्ध तरीके से प्रशांत विहार लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक को पिछले कई वर्षों से किराए का भुगतान होता आ रहा है ।
मौजूदा वर्ष में सेक्रेटरी पंकज गुप्ता और ट्रेजरर विजय गुप्ता ने पहली बार प्रशांत विहार लायब्रेरी की बिल्डिंग के मालिक के साथ एग्रीमेंट करने की बात उठाई, लेकिन काउंसिल के बाकी पदाधिकारियों और सदस्यों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया; पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता ने काउंसिल के तेरह सदस्यों वाले वाट्सऐप ग्रुप में इस मामले पर चर्चा छिड़ने पर यह विकल्प भी दिया कि जब तक एग्रीमेंट नहीं होता है, तब तक उक्त बिल्डिंग का किराया देने के प्रस्ताव पर सभी काउंसिल सदस्य और या कम से कम एक्जीक्यूटिव कमेटी के सदस्य सहमति व्यक्त करें - लेकिन गौरव गर्ग और उनके समर्थकों ने इस पर भी ध्यान नहीं दिया; और किराया न देने पर बिल्डिंग मालिक से मिले नोटिस का हवाला देकर अपनी राजनीति चमकाने की तथा इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में हंगामा करवाने की योजना बना ली । विजय गुप्ता की तरफ से बताया गया कि गौरव गर्ग और उनके समर्थकों को अच्छी तरह से पता है कि न्यूजलैटर की संपादकीय टीम के प्रमुख कौन हैं और न्यूजलैटर क्यों नहीं तैयार हो सके हैं; उन्हें यह भी पता है कि न्यूजलैटर को तैयार करने तथा उसे प्रकाशित करवाने में ट्रेजरर की कोई भूमिका नहीं होती है - लेकिन फिर भी वह असली गुनहगारों को छोड़ कर न्यूजलैटर न प्रकाशित होने के लिए ट्रेजरर को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । विजय गुप्ता का कहना/बताना है कि उनका बस एक ही गुनाह है, और वह यह कि वह नियमानुसार काम करना चाहते हैं - और इसीलिए गौरव गर्ग तथा उनके धरने का समर्थन करने वालों की आँखों में खटक रहे हैं । इस बीच एक बड़ी 'घटना' यह हुई कि पूर्व चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने एक वाट्सऐप संदेश में वेंडर्स को भुगतान करने की माँग कर डाली ।कोई भूतपूर्व चेयरमैन इस तरह की माँग करे, यह इंस्टीट्यूट के इतिहास की अभूतपूर्व घटना है । इस 'घटना' पर लोगों ने चुटकी भी ली कि लगता है कि राकेश मक्कड़ को वेंडर्स से कमीशन मिलने में देर हो रही है, इसीलिए वह बेचैन हुए हैं कि वेंडर्स को भुगतान क्यों नहीं हो रहे हैं और सार्वजनिक रूप से वेंडर्स को भुगतान करने की माँग करने के लिए वह मजबूर हो उठे । यह एक मजेदार संयोग है कि रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म में राकेश मक्कड़ के संगी-साथी रहे नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग तथा राकेश मक्कड़ के प्रोफेशनल पार्टनर अविनाश गुप्ता ने गौरव गर्ग के धरने का समर्थन किया है - इससे लोगों को ऐसा लगता है कि गौरव गर्ग पिछले टर्म की राकेश मक्कड़ की लूट-खसोट वाली परंपरा को ही इस टर्म में बनाये रखना चाहते हैं; और ट्रेजरर के रूप में विजय गुप्ता चूँकि उनकी राह का रोड़ा बन रहे हैं; इसलिए उन्होंने झूठ बोल कर तथा बात का बतंगड़ बनाते हुए विजय गुप्ता को निशाने पर ले लिया है - लेकिन फिलहाल गौरव गर्ग की चाल उल्टी पड़ गई दिख रही है ।