Monday, May 20, 2019

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव में सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा द्वारा पर्दे के पीछे से खड़ी की गई बाधा रूपी कारगुजारी के सामने सेंट्रल काउंसिल के अन्य दोनों सदस्यों - सतीश गुप्ता और प्रमोद बूब ने सरेंडर आखिर किस डर से किया हुआ है ?

जयपुर । जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव का मामला अब इंस्टीट्यूट मुख्यालय जा पहुँचा है, और दावा किया जा रहा है कि वहाँ भी यदि न्यायपूर्ण फैसला जल्दी ही नहीं हुआ - तब फिर मामले की शिकायत केंद्रीय मंत्रालय और प्रधानमंत्री कार्यालय में की जाएगी । उल्लेखनीय है कि जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चुनाव को लेकर 6 मार्च से झगड़ा पड़ा हुआ है, और इस झगड़े को सुलझाने के लिए तमाम शिकायतें और अनुरोध किए जा चुके हैं; इंस्टीट्यूट के संबंधित विभाग से स्पष्ट निर्देश मिल चुके हैं, लेकिन कुछेक लोगों की जिद के चलते झगड़ा अभी तक अनसुलझा हुआ पड़ा है । उल्लेखनीय तथ्य यह भी है कि जयपुर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में प्रकाश शर्मा, सतीश गुप्ता, प्रमोद बूब; तथा रीजनल काउंसिल सदस्य के रूप में अभिषेक शर्मा, सचिन जैन, दिनेश जैन भी एक्सऑफिसो सदस्य हैं - लेकिन फिर भी ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के चुनाव जैसा 'मामूली' सा काम करीब ढाई महीने से झगड़े में पड़ा हुआ है । जयपुर में तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स मान रहे हैं औरकह रहे हैं कि इस मामले में सबसे ज्यादा निराशा और शर्म की बात यह है कि सेंट्रल काउंसिल के तीन तीन सदस्यों के होते/रहते हुए सिकासा चेयरमैन के चयन/चुनाव जैसा मामूली सा फैसला नहीं हो पा रहा है - क्या इन लोगों से बड़े मामलों में जरूरत पड़ने पर हस्तक्षेप करने की उम्मीद की जा सकती है ? और यदि इन्हें कहीं कुछ करना ही नहीं है, तो यह सेंट्रल काउंसिल सदस्य आखिर बने क्यों हैं ? सिकासा चेयरमैन के चुनाव का झगड़ा प्रधानमंत्री कार्यालय तक पहुँचने की स्थिति में आ पहुँचा है, लेकिन इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में जयपुर का प्रतिनिधित्व करने वाले तीनों सदस्य मुँह में दही जमा कर बैठे हुए हैं ।
झगड़ा क्या है, पहले यह जान/समझ लिया जाये : जयपुर ब्रांच की मैनेजिंग कमेटी में चुने गए सात सदस्य हैं, जो खेमेबाजी के लिहाज से दो ग्रुप्स में बँटे हैं । एक ग्रुप में चार सदस्य हैं - लोकेश कासट, अमित यादव, कुलदीप गुप्ता और आकाश बरगोटी; जो क्रमशः चेयरमैन, वाइस चेयरमैन, सेक्रेटरी तथा ट्रेजरर हैं । दूसरे ग्रुप में बाकी तीन सदस्य हैं - शिशिर अग्रवाल, अंकित माहेश्वरी और विजय अग्रवाल । यह तीनों सत्ता में बैठे चार सदस्यों से ज्यादा वोट पाकर मैनेजिंग कमेटी में पहुँचे हैं, लेकिन फिर भी सत्ता से बाहर हैं । हालाँकि यह कोई खास बात नहीं है; चुनावी राजनीति में यह सब होता है और चुनावी राजनीति की यही खूबी भी है । समस्या लेकिन यहाँ से शुरू होती है । इंस्टीट्यूट के नियमों के अनुसार, मैनेजिंग कमेटी के सदस्य एक पद के अधिकारी ही हो सकते हैं । इस नियम के चलते सिकासा चेयरमैन का पद विरोधी खेमे के किसी सदस्य को ही मिल सकता है; लेकिन चार सदस्यीय सत्ता खेमा इसके लिए तैयार नहीं है । 6 मार्च को हुई मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग में चार सदस्यीय सत्ता खेमे ने सिकासा चेयरमैन का पद पर अपने ही किसी सदस्य को सौंपने की तैयारी दिखाई, तो उन्हें इंस्टीट्यूट का नियम पढ़ा दिया गया । इस पर सत्ता खेमे के सदस्यों ने सिकासा चेयरमैन के पद पर फैसला करना टाल दिया और वह अभी तक टलता ही आ रहा है । इंस्टीट्यूट के पदाधिकारी की तरफ से ब्रांच के चेयरमैन व सेक्रेटरी को स्पष्ट निर्देश मिले हैं कि सिकासा चेयरमैन का पद उन्हें उन तीन सदस्यों में से ही किसी एक को सौंपना है, जो अभी किसी पद पर नहीं हैं, लेकिन उनके कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी है; और इस तरह जयपुर ब्रांच के चार सदस्यीय सत्ता खेमे ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट को और उसके पदाधिकारियों को 'बंधक' बना छोड़ा है ।
हालाँकि यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है और हर किसी को लग रहा है कि जयपुर ब्रांच के पदाधिकारियों की इतनी 'हिम्मत' नहीं हो सकती है कि वह इंस्टीट्यूट को 'बंधक' बना लें । हर किसी को शक है कि इनके पीछे असली 'खिलाड़ी' कोई और है जो इन पदाधिकारियों को कठपुतली की तरह इस्तेमाल कर रहा है; और हर कोई अपनी शक की सुईं सेंट्रल काउंसिल सदस्य प्रकाश शर्मा पर टिका रहा है । आरोपपूर्ण चर्चाओं में कहा/सुना जा रहा है कि प्रकाश शर्मा ने विरोधी ग्रुप के तीनों सदस्यों को आफॅर दिया हुआ है कि जो कोई उनकी शरण में आ जायेगा, उसके अगले ही पल सिकासा चेयरमैन का पद पा लेगा; अन्यथा शिकायतें करते रह जाओगे और कहीं कोई सुनवाई नहीं होगी । विरोधी खेमे के तीनों सदस्यों में से कोई भी लेकिन प्रकाश शर्मा की शरण में जाने को तैयार नहीं हो रहा है । दरअसल विरोधी खेमे के तीनों सदस्य प्रकाश शर्मा से एक बार धोखा खा चुके हैं । बताया जाता है कि जयपुर ब्रांच के पदाधिकारियों के चुनाव में प्रकाश शर्मा ने इन्हीं तीनों को लेकर सत्ता ग्रुप बनाने की तैयारी की थी, जिसके तहत इन्हीं तीनों को पदाधिकारी बनना था; लेकिन ऐन मौके पर प्रकाश शर्मा ने इन्हें अलग-थलग कर दिया और इन्होंने अपने आप को ठगा हुआ पाया । उसी अनुभव के चलते विरोधी खेमे के तीनों सदस्य अब दोबारा से प्रकाश शर्मा पर भरोसा करने को तैयार नहीं हैं । सात सदस्यीय जयपुर ब्रांच में प्रकाश शर्मा को चूँकि पाँचवाँ सदस्य अपनी शरण में नहीं मिल रहा है, इसलिए जयपुर ब्रांच में सिकासा चेयरमैन के पद पर कोई नियुक्ति नहीं हो रही है । ऐसे में, सिकासा चेयरमैन की जिम्मेदारी का निर्वाह ब्रांच के चेयरमैन लोकेश कासट कर रहे हैं, जो 'चोर दरवाजे' से इंस्टीट्यूट के नियम का सीधा सीधा उल्लंघन है - जिसके अनुसार, ब्रांच का चेयरमैन निकासा का चेयरमैन नहीं हो सकता है । जयपुर में प्रकाश शर्मा की कारगुजारी पर तो किसी को हैरानी नहीं है; लेकिन सतीश गुप्ता और प्रमोद बूब की चुप्पी पर सभी को आश्चर्य जरूर है कि जयपुर ब्रांच में नियमविरुद्ध काम हो रहा है और इन्होंने प्रकाश शर्मा से डर कर उनके सामने सरेंडर क्यों किया हुआ है ?