मेरठ । दीपा खन्ना की उम्मीदवारी के प्रस्तुत होने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी डेजिग्नेट) बनने की राजीव सिंघल की कोशिशों को एक बार फिर ग्रहण लगता दिख रहा है । राजीव सिंघल की बदकिस्मती ही है कि पिछले चार वर्ष से उनके साथ यह तमाशा हो रहा है कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करते हैं, सारी तैयारी और व्यवस्था करके हालात अनुकूल बनाते हैं, लेकिन जैसे ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का पद उनके हाथ में आने को होता है कि कोई न कोई गड़बड़ हो जाती है और उनका किया-कराया सारा जुगाड़ फेल हो जाता है । यहाँ याद करना प्रासंगिक होगा कि चार वर्ष पहले सुनील गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में राजीव सिंघल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने के लिए 'पक्की' व्यवस्था कर ली थी, जिसके तहत उन्होंने मुख्य प्रतिद्वंद्वी मधु गुप्ता की उम्मीदवारी को षड्यंत्रपूर्वक रद्द करवा दिया था - 'स्टेज' तैयार था और राजीव सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी पर बैठने की 'तैयारी' पूरी हो चुकी थी कि अनहोनी घट गई; जिसके तहत सुनील गुप्ता की गवर्नरी ही चली गई । गवर्नर का कार्यभार दीपक बाबु को मिला । राजीव सिंघल ने फिर जोर मारा और दीपक बाबु को भी इस बात के लिए राजी कर लिया कि वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की कुर्सी पर बिठलायेंगे । दीपक बाबु ने राजीव सिंघल की हसरत को पूरा करने के लिए कदम अभी बढ़ाये ही थे कि रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें भी उनके पद से हटा दिया और डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में डाल दिया । उन दिनों की घटनाओं को देखें और याद करें तो यही निष्कर्ष निकलता है कि सारी तैयारी और अनुकूल स्थितियों के बावजूद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर (नॉमिनी) चुने जाने का 'मौका' राजीव सिंघल के हाथ से फिसल गया ।
इस वर्ष भी ऐसा ही होता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि वर्ष 2021-22 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए होने वाले चुनाव के लिए उम्मीदवारों का टोटा नजर आ रहा था और एक अकेले राजीव सिंघल ही चुनावी मैदान में उतरते दिख रहे थे । इस लिहाज से राजीव सिंघल के लिए हालात पूरी तरह अनुकूल थे और सभी ने मान लिया था कि राजीव सिंघल निर्विरोध ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिग्नेट हो जायेंगे । डिस्ट्रिक्ट के कुछेक नेता लोग दीपा खन्ना को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए राजी करने का प्रयास कर तो रहे थे, लेकिन दीपा खन्ना कुछ ही महीनों के भीतर दूसरी बार उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार होती हुई नहीं दिख रही थीं । दरअसल अभी करीब पाँच महीने पहले ही संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दीपा खन्ना उम्मीदवार थीं, और खासी मेहनत से चुनाव लड़ने के बावजूद वह मामूली अंतर से चुनाव हार गईं थीं । उनका आकलन रहा कि कुछेक लोगों ने सहयोग/समर्थन का वायदा तथा 'दिखावा' करने के बाद भी वास्तव में उनका सहयोग/समर्थन नहीं किया, जिस कारण जीतते लग रहे चुनाव में उन्हें लेकिन पराजय का सामना करना पड़ा । इस 'झटके' के कारण ही इस वर्ष दोबारा चुनाव में उतरने का उनका मन नहीं था । हालाँकि चुनावी राजनीतिक समीकरणों को देखने/समझने वाले लोगों का मानना/कहना रहा कि पिछले चुनाव के समय के हालात अलग थे, और उस समय के अनुभव के आधार पर अब होने जा रहे चुनाव के हालात का आकलन नहीं किया जा सकता है और दीपा खन्ना को समझना चाहिए कि अब की बार हालात पिछली बार जैसे पेचीदा नहीं हैं । लेकिन किसी भी तर्क से दीपा खन्ना उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए तैयार होती नहीं दिख रही थीं । इस स्थिति ने राजीव सिंघल की संभावनाओं को एकतरफा तरीके से उछाल दे दिया था, और सभी ने मान लिया था कि चुनाव तो सिर्फ औपचारिकता है; हरि गुप्ता और मनीष शारदा के बाद राजीव सिंघल ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पदभार सँभालेंगे । मजे की बात यह देखने में आई कि चुनाव की घोषणा होने से पहले ही खुद राजीव सिंघल ने भी अपने आप को विजेता के रूप में देखना और भावी गवर्नर मानना शुरू कर दिया था ।
लेकिन लगता है कि बदकिस्मती एक बार फिर राजीव सिंघल के दरवाजे आ खड़ी हुई है । जो दीपा खन्ना उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से लगातार इंकार कर रही थीं, अप्रत्याशित तरीके से उन्होंने अपनी उम्मीदवारी घोषित कर दी । दरअसल उन्होंने क्या घोषित कर दी, डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों ने अपनी उम्मीदवारी घोषित करने के लिए उन्हें मजबूर कर दिया । खास बात यह रही कि दीपा खन्ना के लगातार इंकार करते रहने के बाद भी, मुरादाबाद में पहले तो मुरादाबाद के सभी पूर्व गवर्नर्स ने और फिर मुरादाबाद के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स व अन्य प्रमुख लोगों ने मीटिंग करके दीपा खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन देने की घोषणा करके उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए उन पर दबाव बनाया; और फिर डिस्ट्रिक्ट के दूसरे शहरों के नेताओं ने भी दीपा खन्ना की उम्मीदवारी को समर्थन देने का भरोसा दिया - जिसके चलते दीपा खन्ना के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने से इंकार करते रहना संभव नहीं रहा और उन्होंने उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए हामी भर दी । इस स्थिति के लिए राजीव सिंघल को ही जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । कई लोगों का मानना और कहना है कि राजीव सिंघल ने अपने व्यवहार और रवैये से आम तौर से डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से मेरठ के लोगों को इतना नाराज किया हुआ है कि अधिकतर लोग उनकी राह में रोड़े डालने में लग गए हैं । नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के दौरान राजीव सिंघल हालाँकि चार को-ऑर्डीनेटर्स में से एक थे, लेकिन उनके तेवर ऐसे रहते थे, जैसे वह अकेले ही को-ऑर्डिनेटर हैं - इस बात से डिस्ट्रिक्ट के और मेरठ के कई लोग राजीव सिंघल से जले-भुने बैठे हैं और चुनाव में एक एक बात का बदला लेने के लिए तैयार हो रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के और खास तौर से मेरठ के नेताओं व सक्रिय लोगों के बीच राजीव सिंघल के प्रति जिस तरह का नकारात्मक भाव दिख रहा है, और जिसके चलते लगातार इंकार करते रहने के बावजूद दीपा खन्ना उम्मीदवारी के लिए तैयार हो गईं हैं - उससे राजीव सिंघल के लिए मुसीबतें अचानक से न सिर्फ पैदा हो गई हैं, बल्कि खासी बढ़ भी गई हैं ।