Sunday, September 29, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अरनेजा गिरोह की हरकतों से निपटने का हुनर विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल से सीख लेना चाहिए

नई दिल्ली । विनोद बंसल जिस आसानी से अपने साथी गवर्नर्स की चालबाजियों का शिकार हो गए हैं, उसे देख कर लगता है कि वह चाहें तो अपने कलीग गवर्नर - डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर - राकेश सिंघल से सबक सीख सकते हैं । उल्लेखनीय है कि जैसे डिस्ट्रिक्ट 3010 में आईपीडीजी रमेश अग्रवाल द्धारा खुद को इलेक्शन कमेटी का सदस्य चुनवा लेने का बेशर्मी भरा काम हुआ है, वैसे ही डिस्ट्रिक्ट 3100 में भी आईपीडीजी सुधीर खन्ना ने अपने आप को इलेक्शन कमेटी का सदस्य चुनवा लिया था । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को साफ-सुथरे तरीके से करवाने के लिए रोटरी के बड़े नेताओं ने जो नियम-कायदे बनाये हैं उनके अनुसार चुनाव को संचालित करने के लिए बनने वाली इलेक्शन कमेटी के तीन सदस्यों के लिए आईपीडीजी, डीजीई और डीजीएन को एक-एक पीडीजी के नाम देने होते हैं । अब यह एक कॉमनसेंस की बात है कि आईपीडीजी जब इलेक्शन कमेटी को चुनने वाली प्रक्रिया में शामिल है तो उसे चुने जाने वाले पीडीजी में शामिल नहीं होना चाहिए । नियम हालाँकि इस मामले में चुप है । अब नियम बनाने वाले बेचारे लोगों को क्या पता था कि उनकी रोटरी में रमेश अग्रवाल और सुधीर खन्ना जैसे पदलोलुप लोग भी हैं जो किसी भी अच्छे काम में खलल डालने को तैयार रहते हैं । इस तरह, रमेश अग्रवाल और सुधीर खन्ना का अपने अपने डिस्ट्रिक्ट की इलेक्शन कमेटी का सदस्य बनना नियमों का उल्लंघन तो नहीं है - लेकिन नियमों को बनाने के पीछे की सोच का मजाक उड़ाना जरूर है ।
डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने नियमों के मजाक बनने की इस हरकत को लेकिन गंभीरता से लिया । उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के जिम्मेदार पूर्व गवर्नर्स से सलाह की और आईपीडीजी सुधीर खन्ना का नाम प्रस्तावित करने वाले डीजीएन सुनील गुप्ता को रोटरी तथा डिस्ट्रिक्ट की साख व प्रतिष्ठा का वास्ता देकर समझाया । राकेश सिंघल के प्रयासों का सुफल मिला और इलेक्शन कमेटी में सुधीर खन्ना के स्थान पर दूसरा नाम आया । डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने लेकिन इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की । उनकी तरफ से इस बात के भी कोई संकेत नहीं मिले हैं कि इस हरकत को उन्होंने कोई गंभीर मुद्दा माना भी है या नहीं । उल्लेखनीय है कि चुनाव-सुधार को लेकर जो नियम बने हैं उन्हें बनाने/बनवाने में जिन पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता ने अथक मेहनत की है, वह शेखर मेहता विनोद बंसल के बड़े खास लोगों में हैं और विनोद बंसल उन्हें प्रायः अपने हर बड़े कार्यक्रम में शामिल करते हैं । इसके बावजूद, चुनाव-सुधार के पीछे शेखर मेहता आदि की जो सोच रही है उसे बचाने/बनाये रखने की लेकिन विनोद बंसल ने कोई कोशिश नहीं की - जैसी कोशिश डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने की ।
दोनों डिस्ट्रिक्ट में आईपीडीजी यदि इलेक्शन कमेटी के सदस्य बने तो इसके पीछे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की खेमे बाजी तो है ही, साथ ही साथ अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को नीचा दिखाने की चाल भी है । दोनों ही डिस्ट्रिक्ट में आईपीडीजी, डीजीई और डीजीएन खेमेबाजी के संदर्भ में अपने अपने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के विरोध में हैं । डिस्ट्रिक्ट 3010 में हालाँकि डिस्ट्रिक्ट 3100 जितना बुरा हाल नहीं है - यहाँ डीजीई संजय खन्ना और डीजीएन जेके गौड़ खेमेबाजी के लिहाज से भले ही विनोद बंसल के खिलाफ खड़े दिखते हों; लेकिन खुलेआम उनकी अवज्ञा करते हुए नहीं देखे/सुने गए हैं । इसी से लगता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर की तरह विनोद बंसल भी इलेक्शन कमेटी के लिए आईपीडीजी रमेश अग्रवाल का नाम प्रस्तावित करने वाले डीजीएन जेके गौड़ से यदि बात करते और उन्हें रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की साख व प्रतिष्ठा का वास्ता देते तो हो सकता है कि जेके गौड़ भी खेमेबाजी की राजनीति करने की बजाये रोटरी की सच्ची भावना का सम्मान करते । रमेश अग्रवाल से इस बारे में जरूर कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है - अपनी घटिया और टुच्ची हरकतों से अपने गवर्नर-काल में वह रोटरी के बड़े नेताओं/पदाधिकारियों से लगातार फटकार खाता रहा लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया । आईपीडीजी के रूप में रमेश अग्रवाल ने जिन विनय कुमार अग्रवाल का नाम प्रस्तावित किया है, उससे भी उसके घटिया टेस्ट और एप्रोच का पता चलता है; डीजीएन जेके गौड़ से अपना खुद का नाम प्रस्तावित करा लेने के जरिये रमेश अग्रवाल ने जैसे यह बताने की ही कोशिश की है कि वह नहीं सुधरेगा ।
रमेश अग्रवाल तो नहीं सुधरेगा, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग उसके सामने इतने असहाय क्यों हो जाते हैं ? इसका जबाव शायद यही है कि दूसरे लोग भी अपने-अपने तात्कालिक स्वार्थ को ज्यादा तवज्जो देते हैं और अगली-पिछली बातों को भूल जाते हैं । इसका सबसे सटीक उदाहरण आशीष घोष के रवैये में देखा जा सकता है । आशीष घोष को मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल और असित मित्तल की टीम ने हर तरह से अपमानित किया था - लेकिन आज आशीष घोष इन्हीं लोगों के साथ खड़े 'दिखाई' देते हैं । इन्हें एक साथ लाने वाला कारण विनोद बंसल का विरोध है । अलग-अलग कारणों से विनोद बंसल से निपटने की इच्छा और कोशिश इन्हें एक-साथ ले आई है । विनोद बंसल भी इनकी रणनीति तो समझ रहे हैं, लेकिन उनकी निगाह फ़िलहाल किसी दूर के ठिकाने पर है और उस ठिकाने पर पहुँचने के लिए उन्होंने ऐसा रास्ता चुना है, जो उनके डिस्ट्रिक्ट से होकर नहीं गुजरता - इसलिए डिस्ट्रिक्ट में अपने खिलाफ बनते माहौल को लेकर उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हुई हैं । पता नहीं किसने उन्हें समझा दिया है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ने के बाद भी रोटरी में वह आगे की ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेंगे । शायद इसीलिये विनोद बंसल को इस बात की परवाह नहीं हुई है कि उनके गवर्नर-काल में उनके डिस्ट्रिक्ट को अरनेजा गिरोह ने जैसे बंधक बना लिया है । यह मामला कोई ऐसा मामला भी नहीं था कि विनोद बंसल इसे रास्ते पर नहीं ला सकते थे । उनके कलीग - डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने आखिर यह नजीर पेश की ही है कि डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को किन्हीं लोगों के हाथ की कठपुतली वह नहीं बनने देंगे और इसे बड़ी आसानी से उन्होंने हल भी कर लिया । रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने और रोटरी के बड़े नेताओं को खुश रखने के मामले में राकेश सिंघल भले ही विनोद बंसल का मुकाबला न कर सकें, लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने खिलाफ लगे नेताओं को कैसे जमीन पर उतारा जाता है - इसे विनोद बंसल चाहें तो राकेश सिंघल से सीख सकते हैं ।

Thursday, September 26, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में हुआ हिसार-कांड नरेश गुप्ता को अपनी अपनी जेब में करने को लेकर राकेश त्रेहन, अजय बुद्धराज, हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल के बीच छिड़ी होड़ का नतीजा है क्या

हिसार/नई दिल्ली । नरेश गुप्ता को हिसार में केएल खट्टर से जो फटकार सुनने को मिली, हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल ने उसके लिए राकेश त्रेहन व अजय बुद्धराज को जिम्मेदार ठहराया है । हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल का कहना है कि राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने उनसे सलाह किये बिना, अपनी राजनीति चलाने के इरादे से नरेश गुप्ता को अकेले ही हिसार में लोगों से मिलने  भेज दिया; और इस बात की जरा भी परवाह नहीं की, कि नरेश गुप्ता को वहाँ किन परिस्थितियों का सामना करना पड़ सकता है । हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल का मानना और कहना है कि नरेश गुप्ता को हिसार में केएल खट्टर तथा अन्य लोगों से जो खरी-खोटी सुननी पड़ी है, उससे सिर्फ नरेश गुप्ता की ही किरकिरी नहीं हुई है, बल्कि ग्रुप की और ग्रुप के नेताओं की भी फजीहत हुई है । हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल की इन बातों को सुन कर राकेश त्रेहन व अजय बुद्धराज को झटका लगा है । उनके लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि नरेश गुप्ता के साथ हिसार में जो कुछ हुआ उसके लिए केएल खट्टर की आलोचना करने की बजाये ये दोनों उन्हें निशाना क्यों बना रहे हैं ? राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ही नहीं, दूसरे अन्य कई लोगों को भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि नरेश गुप्ता को खरी-खोटी सुनाई तो केएल खट्टर ने है - लेकिन हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल इसके लिए राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज की लानत-मलानत करने में लगे हैं । आखिर माजरा है क्या ?
माजरा जो लोग समझ रहे हैं उनका कहना है कि यह सब खेल दरअसल नरेश गुप्ता को अपनी-अपनी गिरफ्त में लेने/रखने का है । बेचारे नरेश गुप्ता की मुसीबत यह है कि उन्हें इन चारों के बीच छिड़ी होड़ का शिकार होना पड़ रहा है । इन चारों के बीच होड़ इस बात को लेकर छिड़ी हुई है कि नरेश गुप्ता को कौन 'अपनी जेब में रख पाता है' । राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज के बीच केमिस्ट्री चूँकि अच्छी है, इसलिए उक्त होड़ में इनका पलड़ा भारी दिखता है - हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल एक तो अकेले अकेले हैं और दूसरे लोगों के बीच इनकी अलग अलग तरह की बदनामी है, जिस कारण नरेश गुप्ता को अपनी जेब में रखने की होड़ में ये राकेश त्रेहन-अजय बुद्धराज की जोड़ी के मुकाबले अपने आप को कमजोर पाते हैं । नरेश गुप्ता को हिसार जाने और वहाँ मीटिंग करने का सुझाव राकेश त्रेहन-अजय बुद्धराज की जोड़ी से मिला था और उनके इस कार्यक्रम के बारे में हर्ष बंसल व सुरेश बिंदल को अँधेरे में रखा गया था - इसलिए हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल इस कार्यक्रम से भड़के हुए थे । उनकी किस्मत से हिसार में नरेश गुप्ता की फजीहत हो गई - तो उन्हें यह बताने/जताने का सुनहरा मौका मिल गया कि नरेश गुप्ता यदि राकेश त्रेहन व अजय बुद्धराज के कहने पर चलेंगे तो इसी तरह अपमानित होते रहेंगे । हिसार में नरेश गुप्ता के साथ जो हुआ, उसके लिए राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज को जिम्मेदार ठहरा कर हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल ने दरअसल नरेश गुप्ता को उनकी पकड़ से छीन कर अपनी पकड़ में करने का दाँव चला है ।
नरेश गुप्ता को हिसार 'भेजने' के जरिये राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने जो राजनीतिक दाँव चला था - वह अपने आप में था बहुत बढ़िया, लेकिन अपने दाँव को अंजाम तक पहुँचाने की 'तैयारी' करने के मामले में चूँकि वह लापरवाही कर बैठे इसलिए उन्हें अपना दाँव उल्टा पड़ गया । नरेश गुप्ता को हिसार 'भेजने' के जरिये राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने दरअसल दो काम एक साथ साधने की योजना बनाई थी - एक तरफ तो वह नरेश गुप्ता को यह अहसास करा देना चाहते थे कि उन्हें उनके गवर्नर-काल की बहुत फिक्र है, और दूसरी तरफ उन्होंने नरेश गुप्ता के जरिये हरियाणा में दूसरे खेमे के ऐसे लोगों को अपने साथ करने की तरकीब लगाई थी जो कल तक उनके ही साथ थे । राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के गणित को अपने पक्ष में करने के लिए उन्हें हरियाणा में के दूसरी-तीसरी पंक्ति के अपने रूठे साथियों को मनाना पड़ेगा । दूसरी-तीसरी पंक्ति के लोगों को मनाने के लिए आने वाला गवर्नर बहुत काम आता है - यही सोच कर उन्होंने नरेश गुप्ता को हरियाणा में इस्तेमाल करने की योजना बनाई । नरेश गुप्ता इस्तेमाल होने के लिए तैयार हो जायें - इसके लिए राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज ने उन्हें पटटी यह पढ़ाई कि उन्हें हरियाणा में लोगों के साथ अपना मेलजोल बढ़ाना चाहिये, जिससे कि अगले लायन वर्ष में का उनका गवर्नर-काल अच्छा चले । नरेश गुप्ता को यह बात समझ में आई । किसी को भी आ जाती । बात अपने आप में है ही अच्छी ।
लेकिन अच्छी बातों के साथ अक्सर एक समस्या होती है - और वह यह कि अच्छी बातें प्रायः बुरे इरादों के साथ की जाती हैं, और इसीलिये वह न असर छोड़ती हैं और न सफल होती हैं । यहाँ भी यही हुआ । नरेश गुप्ता को हिसार 'भेजने' का जो 'कारण' बताया गया वह तो एक आवरण था, उसमें एक धोखा छिपा था - उसके पीछे असल उद्देश्य कुछ और था । इस फर्क के चलते नरेश गुप्ता के हिसार कार्यक्रम को लेकर कोई 'तैयारी' ही नहीं की जा सकी । की भी नहीं जा सकती थी । नरेश गुप्ता को हिसार 'भेजने' के पीछे राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज का जो असल उद्देश्य था, उसे वह हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल से भला कैसे बता सकते थे; नरेश गुप्ता से भी वह कैसे यह कह सकते थे कि आपसे जो करने को कहा जा रहा है उसमें आपका फायदा तो है ही, साथ में हमारा फायदा भी है । ऐसे में जो होना था, वही हुआ । नरेश गुप्ता चूँकि अपने को हिसार भेजे जाने का असल उद्देश्य नहीं समझ/पहचान पाये, इसलिए उन्होंने अपनी सरलता/सहजता में भाई-चारे की बातें कीं - जिन्हें सुन कर केएल खट्टर और वहाँ मौजूद दूसरे लोग उखड़ गए । नरेश गुप्ता को सीधे-सीधे बताया गया कि आप यहाँ बात तो भाई-चारे की कर रहे हो, लेकिन हर मामले में खड़े दिखते हो एक ग्रुप के नेताओं के साथ ! जिस तरह के उदाहरणों और सुबूतों के साथ नरेश गुप्ता के दोहरे रवैये को उनके सामने ही खोला गया - उन्हें सुन कर नरेश गुप्ता के पास चुप रहने के आलावा और कोई चारा ही नहीं बचा था । अपनी इस फजीहत के लिए नरेश गुप्ता ने किसे जिम्मेदार ठहराया है, यह तो अभी लोगों के सामने स्पष्ट नहीं हुआ है; लेकिन अपने आप को उनका शुभचिंतक बताने वाले हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल ने उनकी इस फजीहत के लिए साफ तौर पर राकेश त्रेहन और अजय बुद्धराज को जिम्मेदार बताया है । हिसार में हुई नरेश गुप्ता की फजीहत ने हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल को वास्तव में राकेश त्रेहन तथा अजय बुद्धराज के खिलाफ अपनी भड़ास निकालने का अच्छा मौका दे दिया है । इस बहाने से, नरेश गुप्ता को अपनी अपनी जेब में करने को लेकर राकेश त्रेहन, अजय बुद्धराज, हर्ष बंसल और सुरेश बिंदल के बीच छिड़ी होड़ का जो नजारा लोगों के सामने आया है - उसने डिस्ट्रिक्ट में एक मनोरंजक दृश्य बनाया है ।

Wednesday, September 25, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में राजीव देवा ने विनोद बंसल और संजय खन्ना पर भरोसा करके बड़ी भूल की है क्या

नई दिल्ली । राजीव देवा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजय खन्ना और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र के रवैये को देख कर अपने आप को ठगा महसूस कर रहे हैं । राजीव देवा का रोना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए पहले तो इन्होंने उन्हें कुछ करने के लिए उकसाया, लेकिन अब जब उन्होंने अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह के जरिये अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का कार्यक्रम बनाया तो ये लोग उनकी मदद करने से पीछे हट रहे हैं । राजीव देवा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके लिए अपने क्लब के लोगों को भी 'इनके' समर्थन का विश्वास दिलाना मुश्किल हुआ है - जिस कारण अधिष्ठापन समारोह में लोगों को आमंत्रित करने का काम भी राजीव देवा को बुझे मन से अकेले ही जैसे-तैसे वाले अंदाज़ में करना पड़ रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल, राजीव देवा द्धारा अपने क्लब के अधिष्ठापन समारोह को आयोजित करने की टाईमिंग को लेकर नाराज अलग देखे/बताये जा रहे हैं । विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में तटस्थ रहने का जो दावा कर रहे हैं - राजीव देवा ने 27 सितंबर को अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का कार्यक्रम रख कर उसे सवालों के घेरे में ला दिया है । राजीव देवा चूँकि शुरू से लगातार लोगों को यह बता रहे हैं कि उन्होंने तो विनोद बंसल के कहने पर अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत किया है, इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन भरने की अंतिम तारिख के नजदीक राजीव देवा द्धारा अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने का कार्यक्रम रखना विनोद बंसल की बदनामी का कारण बनता है । राजीव देवा के क्लब के पदाधिकारियों के अनुसार, विनोद बंसल ने उन्हें आगाह किया है कि 27 सितंबर के आयोजन में सिर्फ अधिष्ठापन संबंधी कामकाज ही होना चाहिए और उसमें ऐसा कोई काम नहीं होना चाहिए जिसे राजीव देवा की उम्मीदवारी के प्रमोशन के रूप में देखा/समझा जाये । विनोद बंसल के इस रवैये ने अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिए रखे गए आयोजन को लेकर राजीव देवा का उत्साह ठंडा कर दिया है ।
राजीव देवा को सबसे तगड़ा झटका संजय खन्ना की तरफ से लगा है । उन्हें उम्मीद थी कि संजय खन्ना से उन्हें सक्रिय सहयोग मिलेगा । लोगों को वह बार-बार याद दिला रहे थे कि संजय खन्ना जिस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार थे, उस वर्ष असिस्टेंट गवर्नर के रूप में उन्होंने संजय खन्ना की उम्मीदवारी का खुल कर समर्थन किया था । यह बता/जता कर राजीव देवा लोगों को यह समझाने का प्रयास कर रहे थे कि संजय खन्ना आखिर क्यों उनका समर्थन करेंगे । राजीव देवा का यह प्रयास उन कुछेक लोगों पर सफल होता हुआ दिखा भी, जिन्होंने संजय खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवारों की तुलना में राजीव देवा के साथ ज्यादा घुलते-मिलते देखा/पाया । संजय खन्ना को लेकिन जैसे ही इस बात का पता चला कि उनकी मिलनसारिता का राजीव देवा इस तरह फायदा उठा रहे हैं, वह सावधान हो गए । संजय खन्ना ने राजीव देवा से जिस तरह से दूरी बनाई, उसके चलते राजीव देवा की सारी तैयारी चौपट हो गई ।
राजीव देवा ने सबसे बड़ा दाँव रमेश चंद्र को लेकर चला । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र को चूँकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक दूसरे उम्मीदवार रवि भाटिया के समर्थन में समझा जाता है, इसलिए राजीव देवा ने लोगों के बीच जब उनके समर्थन का दावा किया तो लोगों को हैरानी इस बात की हुई कि राजीव देवा इतना बड़ा झूठ कैसे बोल सकते हैं ? रमेश चंद्र कोई बहुत सक्रियता के साथ राजनीति करते हुए नहीं सुने/देखे जाते हैं - लेकिन उनकी जो भी और जैसी भी सक्रियता है, डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने उसे रवि भाटिया के समर्थन में ही देखा/पाया है । राजीव देवा किंतु फिर भी रमेश चंद्र के समर्थन का दावा करते रहे और अपने इस दावे को कन्विन्सिंग बनाने के लिए उन्होंने तर्क बड़ा दिलचस्प दिया और वह यह कि रमेश चंद्र चूँकि सुबह उसी पार्क में टहलने आते हैं, जिस पार्क में वह टहलते हैं इसलिए रमेश चंद्र उनका समर्थन कर रहे हैं । राजीव देवा के इस तर्क को लोगों के बीच लेकिन एक चुटकुले से ज्यादा महत्व नहीं मिला । अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के लिए आयोजित किये जा रहे आयोजन की तैयारी में राजीव देवा को रमेश चंद्र का चूँकि कोई सहयोग या समर्थन मिलता हुआ नहीं दिख रहा है, इसलिए लोगों को और पक्का यकीन हो गया है कि रमेश चंद्र को लेकर किये गए राजीव देवा के दावे हवा-हवाई किस्म के ही हैं ।
राजीव देवा ने विनोद बंसल, संजय खन्ना और रमेश चंद्र के समर्थन का दावा करके अपनी उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बढ़ाने की जो कोशिश की थी, वह उन्हें उल्टी पड़ गई है । उनके तमाम दावों के बावजूद, उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में चूँकि कोई प्रमुख 'नेता' लोगों को नहीं दिखा है - इसलिए उनकी उम्मीदवारी लोगों के बीच किसी तरह की कोई विश्वसनीयता नहीं बना सकी । उनके दावों ने विनोद बंसल और संजय खन्ना को बदनाम करने का काम बल्कि और किया - जिस पर व्यक्त की गईं उन दोनों की प्रतिक्रियाओं ने राजीव देवा की मुश्किलों को और बढ़ाया ही है ।
राजीव देवा की तुलना में लोगों के बीच सुरेश भसीन की उम्मीदवारी की ज्यादा साख है - हालाँकि उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में भी अभी नेता किस्म का कोई नहीं दिखा है । सुरेश भसीन ने इस स्थिति को दरअसल खासी होशियारी से हैंडल किया है और व्यावहारिक तर्क दिया है । उन्होंने हमेशा यही कहा है कि नेता लोग अभी भले ही उनके साथ न हों, किंतु जैसे ही लोगों के बीच उनका समर्थन दिखने लगेगा, नेता लोग खुद-ब-खुद उनके समर्थन में आ जायेंगे । राजीव देवा ने लेकिन अपने बड़बोलेपन और झूठे दावों से अपनी खुद की ही फजीहत करा ली है । अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से किये जा रहे कार्यक्रम में राजीव देवा को चूँकि किसी भी तरफ से समर्थन और सहयोग नहीं मिल रहा है, इसलिए उनका खुद का उत्साह भी ढीला पड़ गया है । राजीव देवा अब यह कह/बता कर अपना दुःख दूर करने का प्रयास कर रहे हैं कि उन्होंने विनोद बंसल और संजय खन्ना पर भरोसा करके बड़ी भूल की है ।

Thursday, September 19, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की 'सफलता' उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उनकी दुश्मन हो गई लगती है

नई दिल्ली । विनोद बंसल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने के मामले में रिकॉर्ड बना कर रोटरी के बड़े पदाधिकारियों को भले ही इंप्रेस कर लिया हो, लेकिन उनकी इस 'सफलता' ने उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट में भारी आलोचना का शिकार बना दिया है । उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनोद बंसल ने पैसे खर्च करने और पैसे जुटाने को ही रोटरी समझा हुआ है और इसके जरिये वह रोटरी के बड़े पदाधिकारियों और बड़े नेताओं को खुश करने के एजेंडे पर काम कर रहे हैं । रोटरी की बाकी गतिविधियों से और रोटरी की मूल भावना को बनाये रखने के कामों से उन्हें जैसे कोई मतलब नहीं है ।
अपने आरोप को उदाहरणों के द्धारा वजनदार बनाते हुए इन पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि एक तरफ पैसे खर्च करके विनोद बंसल ने रोटरी इंस्टीट्यूट 2014 का वाइस चेयरमैन का पद जुगाड़ लिया और दूसरी तरफ रोटरी फाउंडेशन के लिए रिकॉर्ड पैसे जुटा कर रोटरी के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं को खुश कर दिया - लेकिन डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के प्रकाशन के लिए उनके पास समय नहीं है, जिस कारण अभी तक भी डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी प्रकाशित नहीं हो सकी है । डायरेक्टरी के काम से जुड़े लोगों के हवाले से इनका कहना है कि डायरेक्टरी का काम सिर्फ इसलिये रुका हुआ है क्योंकि जो चीजें विनोद बंसल को देनी हैं उन्हें देने का विनोद बंसल के पास समय नहीं है ।
विनोद बंसल के पास समय की सचमुच बहुत कमी है । क्लब्स के कार्यक्रमों में लेट पहुँचने और पहले से तय कार्यक्रम को ऐन मौके पर स्थगित कर देने के आरोप उन पर हैं । किसी भी क्लब के लिए कार्यक्रम की तैयारी करना एक श्रमसाध्य काम है - पहले से तय कार्यक्रम को विनोद बंसल लेकिन जब अचानक पैदा हुई व्यस्तता के कारण देर से पहुँच कर डिस्टर्ब कर देते हैं और या उसे कैंसिल ही कर देते हैं, तो क्लब के लोगों की मेहनत पर पानी तो फिरता ही है - उसे पैसों का घाटा भी होता है । क्लब के लोगों के उत्साह पर जो पानी फिर जाता है, वह अलग !
रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने के उद्देश्य से अभी हाल ही में हुए कार्यक्रम में तो विनोद बंसल ने और भी कमाल कर दिया । डिस्ट्रिक्ट के मेजर डोनर्स को सम्मानित करने के नाम पर हुए इस कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट के कई मेजर डोनर्स को निमंत्रण तक नहीं मिले । निमंत्रण न पाने वाले ऐसे मेजर डोनर्स में कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स भी हैं । कार्यक्रम से कई दिन पहले ही हालाँकि विनोद बंसल ने स्पष्ट कर दिया था कि चूँकि एक कार्यक्रम में सभी मेजर डोनर्स को सम्मानित नहीं किया/कराया जा सकता है, इसलिए इस तरह के दो कार्यक्रम होंगे । लेकिन उन्होंने यह स्पष्ट नहीं किया कि पहले कार्यक्रम में किन्हें बुलाया जायेगा; या पहले कार्यक्रम में बुलाये जाने वाले लोगों को चुनने का तरीका या मापदण्ड क्या होगा ?
विनोद बंसल ने तो यह स्पष्ट नहीं किया, लेकिन उनके नजदीकियों ने जो बताया उससे कुलमिलाकर विनोद बंसल की ही किरकिरी हुई । उनके नजदीकियों का कहना रहा कि विनोद बंसल को जिन लोगों से मोटी रकम मिलने की उम्मीद थी, उन्हें ही पहले कार्यक्रम में बुलाया जायेगा । इससे मामला और उलझा । विनोद बंसल को जिन लोगों से मोटी रकम मिलने की उम्मीद बनी - उस उम्मीद के बनने का कारण क्या रहा ? देखा/जाना यह गया कि विनोद बंसल ने लोगों से पैसा बसूलने के लिए दिन-रात मेहनत की । उन्होंने लोगों को तरह-तरह से घेरा । जिन लोगों से फोन पर बात नहीं बन पा रही थी, उन लोगों के घर के कई-कई चक्कर काटे । कई लोगों ने इन पंक्तियों के लेखक से बताया कि विनोद बंसल ने उन पर तरह-तरह से दबाव बना कर उनसे कमिटमेंट ली है । रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे जुटाने के काम के लिए उनके पास समय की कोई कमी नहीं थी ।
ऐसे में, सवाल यह भी उठा कि विनोद बंसल को जब लोगों से जबरदस्ती ही पैसे बसूलने थे, तो फिर उन्होंने कई मेजर डोनर्स को - यहाँ तक कि कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तक को एप्रोच क्यों नहीं किया ? पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के मामले में तो बात यह समझ में आई कि जिन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने रोटरी इंस्टीट्यूट 2014 के लिए उनको वाइस चेयरमैन बनाने का खुला और सक्रिय विरोध किया था, उनको रोटरी फाउंडेशन के उक्त कार्यक्रम से दूर रखने का विनोद बंसल ने प्रयास किया । लेकिन बाकी लोगों के साथ उन्होंने कौन सी दुश्मनी निभाई - यह किसी की समझ में नहीं आया ।
रोटरी फाउंडेशन के कार्यक्रम में अपनी उपेक्षा से खिन्न डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स याद कर कर के और पहले की बातें बताते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में इस बार पहली बार ऐसा हुआ कि डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली में लोगों को किट नहीं मिली । एक पूर्व गवर्नर का कहना है कि यह बात छोटी सी है, लेकिन यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे विनोद बंसल की कार्य प्रणाली और उनके कंसर्न का पता चलता है । अपने कार्यकाल की डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली में ज्यादा से ज्यादा लोगों को जुटा कर रिकॉर्ड बनाने के लिए विनोद बंसल ने बहुत मेहनत की थी । डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली में भीड़ जुटाने के लिए किये गए कैम्पेन में विनोद बंसल ने किट देने की बात को जोरशोर से प्रचारित भी किया था । लेकिन डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली हो जाने के बाद जब किट न मिलने की शिकायतें हुईं तो विनोद बंसल ने उन शिकायतों का यह कह कर मजाक उड़ाया कि किट से क्या होता है ? डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली के कैम्पेन में उन्होंने मनोरंजन के लिए कुछेक बड़े कलाकारों के आने के दावे भी किये थे, लेकिन जब उन कलाकारों के न आने की शिकायतें हुईं तो उनका कहना रहा कि रोटरी में हम क्या मनोरंजन के लिए हैं ? शुक्र है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी न आने की शिकायतों पर उन्होंने अभी तक यह नहीं कहा है कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी से क्या होता है ? वह कह सकते हैं कि डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी नहीं आई है - लेकिन फिर भी उनकी डिस्ट्रिक्ट एसेम्बली, उनका डिस्ट्रिक्ट इन्सटॉलेशन रिकॉर्डतोड़ कामयाब रहा; रोटरी फाउंडेशन में उन्होंने रिकॉर्ड पैसा इकठ्ठा कर लिया है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर रहते हुए अभी तक किसी को रोटरी इंस्टीट्यूट के वाइस चेयरमैन का पद नहीं मिला, जो उन्हें मिला है - और जो एक रिकॉर्ड है ।
कामयाबी या सफलता आखिर और किसे कहते हैं ?
लेकिन, उनकी यही 'सफलता' उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट में उनकी दुश्मन हो गई लगती है ।

Tuesday, September 17, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा दिलाकर विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को दिलचस्प बनाया

नई दिल्ली । विक्रम शर्मा ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर डिस्ट्रिक्ट के चुनावी खिलाड़ियों को भरोसा दिलाने का जो अभियान छेड़ा है, उसके चलते उनकी उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं में खासी गर्मी पैदा हुई है और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के दिलचस्प बनने के संकेत मिले हैं । उल्लेखनीय है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी की चर्चा तो पिछले काफी समय से है, लेकिन उनकी उम्मीदवारी को लेकर लोगों के बीच भरोसा पैदा नहीं हो पा रहा था । विक्रम शर्मा दरअसल पहले भी एक बार उम्मीदवार हो चुके हैं, लेकिन उस बार अपनी उम्मीदवारी को उन्होंने जिस तरह से हैंडल किया, उसके कारण उनके बारे में डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यही धारणा बनी कि विक्रम शर्मा उम्मीदवार तो बन सकते हैं, लेकिन अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का 'काम' करना उनके लिए मुश्किल होता है । इसी धारणा के चलते इस बार जब एकबार फिर उनकी उम्मीदवारी की चर्चा चली तो उनकी उम्मीदवारी को किसी ने भी गंभीरता से नहीं लिया । यहाँ तक कि जिस खेमे से विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी प्रस्तुत होनी है, उस खेमे के नेताओं तक को उनकी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा नहीं हुआ । इसके चलते खेमे के कुछेक नेताओं ने ओंकार सिंह को उम्मीदवार बनाने की संभावनाओं को टटोलने/पहचानने का काम भी शुरू कर दिया । खेमे के कुछेक नेताओं की 'इस' सक्रियता ने लगता है कि विक्रम शर्मा को सावधान किया और वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर गंभीर हुए ।
विक्रम शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, विक्रम शर्मा ने पहला काम तो खेमे के नेताओं को यह भरोसा देने/दिलाने का किया है कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर वास्तव में गंभीर हैं और उन सभी 'जिम्मेदारियों' को समझ रहे हैं तथा उन्हें निभाने के लिए तैयार हैं जो किसी भी उम्मीदवार को निभानी ही होती हैं । पिछली बार उम्मीदवार के रूप में उनका जो रवैया रहा था, उसके बारे में भी विक्रम शर्मा ने लोगों को सफाई दी कि उस बार वह वास्तव में उम्मीदवार नहीं थे, वह तो एक कॉम्बीनेशन को पूरा करने की गरज से उम्मीदवार 'बने' थे । चूँकि वह वास्तव में उम्मीदवार नहीं थे, इसलिए उम्मीदवार के रूप में उन्हें कुछ करने की जरूरत भी नहीं थी - और उन्होंने कुछ किया भी नहीं । उस समय जो कॉम्बीनेशन बना था, उसे बनाने वालों को चूँकि सारा मामला पता था - इसलिए उम्मीदवार के रूप में उनका कुछ न करना कहीं कोई मुद्दा बना ही नहीं था । अपने इस स्पष्टीकरण के जरिये विक्रम शर्मा ने पहले 'अपने' लोगों को यह विश्वास दिलाने का प्रयास किया है कि उनके बारे में जो यह धारणा बनी है कि उम्मीदवार के रूप में वह कुछ करेंगे ही नहीं, यह पूरी तरह से बेबुनियाद है और इसे उनके विरोधी फैला रहे हैं तथा हवा दे रहे हैं । विक्रम शर्मा के नजदीकियों का ही कहना है कि विक्रम शर्मा ने जिन-जिन लोगों से यह बातें कीं, उन सभी ने विक्रम शर्मा को सलाह दी है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच फैली/बैठी इस धारणा को ख़त्म करने के लिए पूरी तरह से जुट जाना चाहिये ।
विक्रम शर्मा ने अपने लोगों को जिस 'बात' का भरोसा दिलाने का प्रयास किया है, उस बात को लोगों के बीच वह कब और कैसे प्रमाणित कर पायेंगे - यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन यह जरूर हुआ है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के भरोसे जो नेता लोग डिस्ट्रिक्ट में राजनीति करना चाहते हैं उनमें जोश भर गया है । उन्हें उम्मीद हो चली है कि विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी के सहारे उन्हें डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में अपने-अपने निशाने लगाने का मौका मिल जायेगा । नेताओं में जो जोश पैदा हुआ है, उसे देख कर विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का उनकी उम्मीदवारी के संदर्भ में हौंसला तो बढ़ा है - लेकिन नेताओं का यह जोश उनके लिए एक चुनौती भी है । दरअसल इस जोश के पैदा होने के चलते नेता लोग विक्रम शर्मा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने से ज्यादा अपने अपने हिसाब-किताब बराबर करने में जुट गए हैं - किसी को विजय शिरोहा से निपटना है, तो किसी के पास दीपक टुटेजा को ठिकाने लगाने का काम है ।
विक्रम शर्मा के नजदीकियों का मानना और कहना है कि नेताओं के इसी तरह के रवैये के चलते पिछली बार सुरेश जिंदल को हार का मुँह देखना पड़ा था । सुरेश जिंदल और उनके नजदीकियों ने तो हार का नतीजा मिलने के बाद खुल कर आरोप लगाये थे कि उन्हें तो उनके अपनों ने हरा दिया है । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के मामले में हुआ यही था कि जो लोग उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में थे, उन्होंने उनका चुनाव छोड़ कर राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनवाने का जिम्मा ले लिया था और सुरेश जिंदल की चुनावी तैयारी से हाथ खींच लिया था । सुरेश जिंदल की उम्मीदवारी के समर्थक नेताओं ने बाद में इस बात को समझा और स्वीकारा भी कि विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा ने बड़ी होशियारी से राकेश त्रेहन को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के जाल में फँसा कर कई क्लब्स के वोट अपने पक्ष में जुटा लिए थे । विजय शिरोहा और दीपक टुटेजा द्धारा की गई होशियारी तो उन्हें बाद में तब समझ में आई जब पहले वह सुरेश जिंदल का चुनाव हार गए और फिर मल्टीपल काउंसिल में राकेश त्रेहन के लिए भी उन्हें कुछ नहीं मिला ।
विक्रम शर्मा के लिए चुनौती की बात यही है कि उनकी उम्मीदवारी के भरोसे उनके नेताओं में जो जोश पैदा हुआ है, वह जोश उनकी उम्मीदवारी के लिए ही काम करने में इस्तेमाल कैसे हो ? दरअसल विक्रम शर्मा और उनके नजदीकी यह मान/समझ रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में सफल होने के लिए उन्हें दूसरे ग्रुप के लोगों का भी समर्थन चाहिये होगा; दूसरे ग्रुप के कुछेक लोगों से उनके अच्छे संबंध हैं भी - उन्हें उम्मीद है कि उक्त संबंध उनके काम आयेंगे । इसके लिए लेकिन जरूरी है कि उनका और उनके ग्रुप के नेताओं का सारा ध्यान उनकी उम्मीदवारी पर हो । विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का मानना और कहना है कि उनके ग्रुप के नेताओं में किसी ने विजय शिरोहा को निशाने पर ले लिया, और किसी ने दीपक टुटेजा को - तो उनके चुनाव का भी कहीं वैसा ही हाल न हो, जैसा कि सुरेश जिंदल के चुनाव का हुआ । विक्रम शर्मा और उनके नजदीकियों का दावा तो है कि वह इस चुनौती से निपट लेंगे । उनका तर्क है कि विक्रम शर्मा ने प्रयास किया तो जल्दी से अपनी उम्मीदवारी के प्रति भरोसा पैदा करने में तो उन्होंने काफी हद तक कामयाबी प्राप्त कर ही ली है । वह अपने प्रयासों को और संगठित करेंगे तो अपने ग्रुप के नेताओं को भी लाइन पर ले ही आयेंगे । विक्रम शर्मा की सक्रियता और उनकी सक्रियता के भरोसे जमे उनके नजदीकियों के विश्वास ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनावी समर को फ़िलहाल दिलचस्प तो बना ही दिया है ।

Monday, September 16, 2013

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में विशाल गर्ग के खिलाफ मुहिम चलाने के कारण अतुल कुमार गुप्ता को दोहरी मार का शिकार होना पड़ रहा है

नई दिल्ली। अतुल कुमार गुप्ता को नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन विशाल गर्ग से इस बात को लेकर बहुत शिकायत है कि चेयरपरसन के रूप में विशाल गर्ग ने ब्रांचेज में अपना स्वागत.सम्मान कराने का अकेला एजेंडा लागू किया हुआ है और इस तरह चेयरपरसन के रूप में सेंट्रल काउंसिल के लिए चुनावी तैयारी कर रहे हैं । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य अतुल कुमार गुप्ता कई मौकों पर अपनी इस शिकायत को व्यक्त कर चुके हैं कि नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन के रूप में विशाल गर्ग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स और प्रोफेशन के हित में कुछ ठोस पहल करने की बजाये अपने आप को प्रमोट करने में लगे हुए हैं । अतुल कुमार गुप्ता का आरोप है कि चेयरपरसन के रूप में विशाल गर्ग ब्रांचेज के पदाधिकारियों पर दबाव बनाते हैं कि वह अपने-अपने आयोजनों में चेयरपरसन के रूप में उनका सम्मान करें और या उनका सम्मान करने के लिए अलग से कार्यक्रम आयोजित करें । अतुल कुमार गुप्ता का कहना है कि इससे ब्रांचेज में कामकाज पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है; क्योंकि ब्रांचेज के साधन और उनके पदाधिकारियों की एनर्जी विशाल गर्ग का स्वागत.सम्मान करने में ही खर्च हो जा रही है । अतुल कुमार गुप्ता ने इस तथ्य की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया है कि नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की ब्रांचेज में इस बार रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों का स्वागत.सम्मान कुछ ज्यादा ही हो रहा है । तथ्यात्मक रूप से देखें तो अतुल कुमार गुप्ता की बात सच है । हालाँकि तथ्य यह भी है कि ब्रांचेज में इस तरह के स्वागत.सम्मान हर वर्ष ही होते हैं, पर अतुल कुमार गुप्ता की बात भी सच है कि इस बार यह कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं । प्रोफेशन से जुड़े लोग इस तथ्य से परेशान तो हैं, लेकिन अतुल कुमार गुप्ता की शिकायत के पीछे वह प्रोफेशन के प्रति उनके कंसर्न को नहीं, बल्कि उनकी राजनीति को देख/पहचान रहे हैं ।
विशाल गर्ग और नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के दूसरे पदाधिकारियों के ब्रांचेज में जो स्वागत समारोह हो रहे हैं, वह अतुल कुमार गुप्ता की आंखों में दरअसल इसलिए खटक रहे हैं, क्योंकि इनमें उन्हें अपना राजनीतिक समर्थन.आधार खिसकता/कमजोर पड़ता दिख रहा है । ब्रांचेज में होने वाले स्वागत समारोहों की आलोचना करते हुए अतुल कुमार गुप्ता जब यह आरोप लगाते हैं कि इन स्वागत.समारोहों के जरिये विशाल गर्ग दरअसल सेंट्रल काउंसिल के लिए अपनी चुनावी तैयारी कर रहे हैं तो स्वतः जता देते हैं कि उनका दर्द भी वास्तव में राजनीतिक ही है । मजे की बात यह है कि विशाल गर्ग के चेयरपरसन के रूप में शुरू के कई दिन अतुल कुमार गुप्ता के साथ अच्छी दोस्ती में गुजरे थे । उन दिनों तो कई लोग यहाँ तक कहने लगे थे कि पर्दे के पीछे से नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को अतुल कुमार गुप्ता ही चला रहे हैं । किंतु जैसे ही विशाल गर्ग ने अतुल कुमार गुप्ता को रीजनल काउंसिल की रोज.रोज की गतिविधियों से बाहर किया, अतुल कुमार गुप्ता भड़क गये हैं और विशाल गर्ग पर राजनीति करने का आरोप लगाने लगे हैं । अतुल कुमार गुप्ता की बदकिस्मती लेकिन यह है कि कोई भी उनकी शिकायत को गंभीरता से लेता नहीं दिख रहा है । विशाल गर्ग के खिलाफ अतुल कुमार गुप्ता ने जो अभियान छेड़ा हुआ है, उसे कोई तवज्जो देता हुआ नहीं दिख रहा है तो इसका कारण यही है कि हर किसी ने यह स्वीकार कर लिया है कि रीजनल काउंसिल में जो कोई भी चेयरपरसन बनता है, वह फिर सेंट्रल काउंसिल के लिए तैयारी करता ही है । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पिछले टर्म के पहले वर्ष में जब अतुल कुमार गुप्ता चेयरपरसन थे, तब उन्होंने भी यही किया था - जो अब विशाल गर्ग कर रहे हैं । ऐसे में, विशाल गर्ग की शिकायत को अतुल कुमार गुप्ता की राजनीतिक खिसियाहट के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है ।
अतुल कुमार गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि अतुल कुमार गुप्ता को समस्या इस बात से नहीं है कि विशाल गर्ग सेंट्रल काउंसिल के लिए तैयारी कर रहे हैं; समस्या उन्हें इस बात को लेकर है कि विशाल गर्ग जो तैयारी कर रहे हैं उसमें वह उनके समर्थन-आधार को अपने साथ करने का प्रयास कर रहे हैं । विशाल गर्ग की तैयारी में अतुल कुमार गुप्ता चूँकि अपने लिए सीधा खतरा देख/पहचान रहे हैं, इसलिए वह बौखला गये हैं । उल्लेखनीय है कि ब्रांचेज अधिकतर हरियाणा और पंजाब में हैं, जहाँ अतुल कुमार गुप्ता अपने लिए अच्छा समर्थन प्राप्त करते हैं और देखते हैं । ब्रांचेज में ध्यान देकर विशाल गर्ग ने भी हरियाणा और पंजाब के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच अपना समर्थन-आधार खोजने और बनाने का प्रयास किया है । रीजनल काउंसिल का चुनाव तो उन्होंने अपने शहर लुधियाना और आसपास के शहरों के भरोसे जीत लिया, लेकिन सेंट्रल काउंसिल के लिए उन्हें अपने समर्थन-आधार को बढ़ाना ही होगा - और विशाल गर्ग को पता है कि उनका समर्थन-आधार हरियाणा और पंजाब में ही बढ़ सकेगा । रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन के रूप में विशाल गर्ग ने ब्रांचेज पर इसीलिए ज्यादा फोकस किया हुआ है । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में ब्रांचेज चूँकि हमेशा ही उपेक्षित सी रही हैं, इसलिए इस बार जब उन पर ध्यान दिया गया तो उन्होंने भी उत्साह दिखाया । ब्रांचेज के पदाधिकारियों के उत्साह को विशाल गर्ग की राजनीतिक उपलब्धि के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिससे अतुल कुमार गुप्ता की नींद उड़ गई है । अतुल कुमार गुप्ता को लगता है कि विशाल गर्ग को जो भी फायदा होगा, वह उनका नुकसान होगा । अपने नुकसान को रोकने के लिए ही अतुल कुमार गुप्ता ने विशाल गर्ग को बदनाम करने की मुहिम छेड़ दी है ।
विशाल गर्ग के खिलाफ चलाई जा रही अपनी इस मुहिम में अतुल कुमार गुप्ता को पहले सेंट्रल काउंसिल के एक अन्य सदस्य विजय कुमार गुप्ता का भी समर्थन मिल रहा था, लेकिन फिर जल्दी ही विजय कुमार गुप्ता ने अपने आप को अतुल कुमार गुप्ता की मुहिम से अलग कर लिया । विशाल गर्ग की सक्रियता के कारण विजय कुमार गुप्ता को हालाँकि ज्यादा खतरा महसूस हो रहा है । विजय कुमार गुप्ता चूँकि सेंट्रल काउंसिल में होते हुए एक बार चुनाव हार चुके हैं, इसलिए पुरानी गलतियों को वह नहीं दोहराना चाहते हैं, और विवादों में फँसने से बचने की कोशिश करते हुए वह अपने समर्थन आधार को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं । इस बार अमरजीत चोपड़ा से अचानक मिले समर्थन के कारण विजय कुमार गुप्ता की चुनावी नैया पार लगी है; अमरजीत चोपड़ा का समर्थन अगली बार उन्हें मिल सकेगा, चूँकि इसमें संदेह है; लिहाजा उन्होंने अपना समर्थन आधार बनाने का काम खुद ही करना शुरू कर दिया है । यह समर्थन आधार बनाने का काम पहले उन्होंने अतुल कुमार गुप्ता की तर्ज पर विशाल गर्ग के साथ मिल कर करने का प्रयास किया था, लेकिन जब विशाल गर्ग ने उन्हें छिटक दिया और अपनी चाल अकेले ही चलने लगे तो पहले तो विजय कुमार गुप्ता भी अतुल कुमार गुप्ता की तरह बहुत बौखलाए, लेकिन फिर जल्दी ही वह संभल गये । विजय कुमार गुप्ता ने समझ लिया कि बौखलाने से तो वह अपना नुकसान ही करेंगे, इसलिए उन्होंने अपने आप को अतुल कुमार गुप्ता की लाइन से अलग कर लिया । विजय कुमार गुप्ता ने दरअसल देख/जान लिया कि विशाल गर्ग चूँकि रीजनल काउंसिल के चेयरपरसन हैं, इसलिए ब्रांचेज में जो पदाधिकारी हैं वह भावनात्मक रूप से विशाल गर्ग के साथ जुड़े हुए हैं और ऐसे में विशाल गर्ग के खिलाफ कही गई कोई भी बात उनके बीच अपील और/या समर्थन पैदा नहीं करेगी । चेयरपरसन पद पर बैठे व्यक्ति की आलोचना करके ब्रांचेज के पदाधिकारियों का समर्थन जुटा पाना एक मुश्किल ही नहीं, असंभव सा काम है, इसीलिए अतुल कुमार गुप्ता ब्रांचेज में तेजी से अलोकप्रिय होते जा रहे हैं । अतुल कुमार गुप्ता को दोहरी मार पड़ रही है - एक तरफ तो ब्रांचेज में उन्हें कोई तवज्जो नहीं मिल रही है, और दूसरी तरफ रीजनल काउंसिल के जो आयोजन दिल्ली में हो रहे हैं उनमें उनकी बजाये सेंट्रल काउंसिल के दूसरे सदस्यों को ज्यादा तरजीह मिल रही है ।
अतुल कुमार गुप्ता को उनके व्यवहार के कारण उन लोगों में गिना जा रहा है, जो सफलता को पचा नहीं पाते हैं और सफलता के नशे में ऐसे चूर रहते हैं कि समझते हैं कि वह जो कुछ भी करेंगे उससे उन्हें फायदा ही होगा । विजय कुमार गुप्ता, पंकज त्यागी, विनाद जैन के अनुभव से उन्होंने लगता है कि कुछ नहीं सीखा है । विजय कुमार गुप्ता जब पहली बार सेंट्रल काउंसिल में जीते थे, तब उन्हें भी यह गलतफहमी हो गई थी कि इंस्टीट्यूट वही चलायेंगे । नतीजा यह हुआ कि दूसरी बार के अपने चुनाव में उन्हें इंस्टीट्यूट से बाहर हो जाना पड़ा । पंकज त्यागी ने विजय कुमार गुप्ता के अनुभव से सबक नहीं लिया और नतीजा सभी के सामने है । विनोद जैन की तो बात ही निराली है, दूसरों को तो छोड़िये उन्होंने तो अपने ही अनुभव से सबक नहीं सीखा - यही कारण है कि उन्होंने एक बार जीतने का तो दूसरी बार हारने का रिकार्ड बनाया है । अतुल कुमार गुप्ता भी इसी ‘राह’ पर बढ़ते दिख रहे हैं । उनके साथ रहे लोगों को ही लगने लगा है कि सफलता उनसे हजम नहीं हो रही है, जिसके कारण वह ऐसी.ऐसी हरकतें कर रहे हैं कि लोगों के बीच तेजी से अलोकप्रिय हो रहे हैं । इस बार के चुनाव में उनके साथ रहे लोगों को ही लग रहा है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में अतुल कुमार गुप्ता जैसी जो हरकतें कर रहे हैं, उसके चलते अपने दुश्मन आप ही साबित हो रहे हैं ।