Sunday, September 29, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अरनेजा गिरोह की हरकतों से निपटने का हुनर विनोद बंसल को डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल से सीख लेना चाहिए

नई दिल्ली । विनोद बंसल जिस आसानी से अपने साथी गवर्नर्स की चालबाजियों का शिकार हो गए हैं, उसे देख कर लगता है कि वह चाहें तो अपने कलीग गवर्नर - डिस्ट्रिक्ट 3100 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर - राकेश सिंघल से सबक सीख सकते हैं । उल्लेखनीय है कि जैसे डिस्ट्रिक्ट 3010 में आईपीडीजी रमेश अग्रवाल द्धारा खुद को इलेक्शन कमेटी का सदस्य चुनवा लेने का बेशर्मी भरा काम हुआ है, वैसे ही डिस्ट्रिक्ट 3100 में भी आईपीडीजी सुधीर खन्ना ने अपने आप को इलेक्शन कमेटी का सदस्य चुनवा लिया था । गौर करने की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को साफ-सुथरे तरीके से करवाने के लिए रोटरी के बड़े नेताओं ने जो नियम-कायदे बनाये हैं उनके अनुसार चुनाव को संचालित करने के लिए बनने वाली इलेक्शन कमेटी के तीन सदस्यों के लिए आईपीडीजी, डीजीई और डीजीएन को एक-एक पीडीजी के नाम देने होते हैं । अब यह एक कॉमनसेंस की बात है कि आईपीडीजी जब इलेक्शन कमेटी को चुनने वाली प्रक्रिया में शामिल है तो उसे चुने जाने वाले पीडीजी में शामिल नहीं होना चाहिए । नियम हालाँकि इस मामले में चुप है । अब नियम बनाने वाले बेचारे लोगों को क्या पता था कि उनकी रोटरी में रमेश अग्रवाल और सुधीर खन्ना जैसे पदलोलुप लोग भी हैं जो किसी भी अच्छे काम में खलल डालने को तैयार रहते हैं । इस तरह, रमेश अग्रवाल और सुधीर खन्ना का अपने अपने डिस्ट्रिक्ट की इलेक्शन कमेटी का सदस्य बनना नियमों का उल्लंघन तो नहीं है - लेकिन नियमों को बनाने के पीछे की सोच का मजाक उड़ाना जरूर है ।
डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने नियमों के मजाक बनने की इस हरकत को लेकिन गंभीरता से लिया । उन्होंने अपने डिस्ट्रिक्ट के जिम्मेदार पूर्व गवर्नर्स से सलाह की और आईपीडीजी सुधीर खन्ना का नाम प्रस्तावित करने वाले डीजीएन सुनील गुप्ता को रोटरी तथा डिस्ट्रिक्ट की साख व प्रतिष्ठा का वास्ता देकर समझाया । राकेश सिंघल के प्रयासों का सुफल मिला और इलेक्शन कमेटी में सुधीर खन्ना के स्थान पर दूसरा नाम आया । डिस्ट्रिक्ट 3010 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल ने लेकिन इस संबंध में कोई कार्रवाई नहीं की । उनकी तरफ से इस बात के भी कोई संकेत नहीं मिले हैं कि इस हरकत को उन्होंने कोई गंभीर मुद्दा माना भी है या नहीं । उल्लेखनीय है कि चुनाव-सुधार को लेकर जो नियम बने हैं उन्हें बनाने/बनवाने में जिन पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर शेखर मेहता ने अथक मेहनत की है, वह शेखर मेहता विनोद बंसल के बड़े खास लोगों में हैं और विनोद बंसल उन्हें प्रायः अपने हर बड़े कार्यक्रम में शामिल करते हैं । इसके बावजूद, चुनाव-सुधार के पीछे शेखर मेहता आदि की जो सोच रही है उसे बचाने/बनाये रखने की लेकिन विनोद बंसल ने कोई कोशिश नहीं की - जैसी कोशिश डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने की ।
दोनों डिस्ट्रिक्ट में आईपीडीजी यदि इलेक्शन कमेटी के सदस्य बने तो इसके पीछे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की खेमे बाजी तो है ही, साथ ही साथ अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को नीचा दिखाने की चाल भी है । दोनों ही डिस्ट्रिक्ट में आईपीडीजी, डीजीई और डीजीएन खेमेबाजी के संदर्भ में अपने अपने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के विरोध में हैं । डिस्ट्रिक्ट 3010 में हालाँकि डिस्ट्रिक्ट 3100 जितना बुरा हाल नहीं है - यहाँ डीजीई संजय खन्ना और डीजीएन जेके गौड़ खेमेबाजी के लिहाज से भले ही विनोद बंसल के खिलाफ खड़े दिखते हों; लेकिन खुलेआम उनकी अवज्ञा करते हुए नहीं देखे/सुने गए हैं । इसी से लगता है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर की तरह विनोद बंसल भी इलेक्शन कमेटी के लिए आईपीडीजी रमेश अग्रवाल का नाम प्रस्तावित करने वाले डीजीएन जेके गौड़ से यदि बात करते और उन्हें रोटरी व डिस्ट्रिक्ट की साख व प्रतिष्ठा का वास्ता देते तो हो सकता है कि जेके गौड़ भी खेमेबाजी की राजनीति करने की बजाये रोटरी की सच्ची भावना का सम्मान करते । रमेश अग्रवाल से इस बारे में जरूर कोई उम्मीद नहीं की जा सकती है - अपनी घटिया और टुच्ची हरकतों से अपने गवर्नर-काल में वह रोटरी के बड़े नेताओं/पदाधिकारियों से लगातार फटकार खाता रहा लेकिन अपनी हरकतों से बाज नहीं आया । आईपीडीजी के रूप में रमेश अग्रवाल ने जिन विनय कुमार अग्रवाल का नाम प्रस्तावित किया है, उससे भी उसके घटिया टेस्ट और एप्रोच का पता चलता है; डीजीएन जेके गौड़ से अपना खुद का नाम प्रस्तावित करा लेने के जरिये रमेश अग्रवाल ने जैसे यह बताने की ही कोशिश की है कि वह नहीं सुधरेगा ।
रमेश अग्रवाल तो नहीं सुधरेगा, लेकिन डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोग उसके सामने इतने असहाय क्यों हो जाते हैं ? इसका जबाव शायद यही है कि दूसरे लोग भी अपने-अपने तात्कालिक स्वार्थ को ज्यादा तवज्जो देते हैं और अगली-पिछली बातों को भूल जाते हैं । इसका सबसे सटीक उदाहरण आशीष घोष के रवैये में देखा जा सकता है । आशीष घोष को मुकेश अरनेजा, रमेश अग्रवाल और असित मित्तल की टीम ने हर तरह से अपमानित किया था - लेकिन आज आशीष घोष इन्हीं लोगों के साथ खड़े 'दिखाई' देते हैं । इन्हें एक साथ लाने वाला कारण विनोद बंसल का विरोध है । अलग-अलग कारणों से विनोद बंसल से निपटने की इच्छा और कोशिश इन्हें एक-साथ ले आई है । विनोद बंसल भी इनकी रणनीति तो समझ रहे हैं, लेकिन उनकी निगाह फ़िलहाल किसी दूर के ठिकाने पर है और उस ठिकाने पर पहुँचने के लिए उन्होंने ऐसा रास्ता चुना है, जो उनके डिस्ट्रिक्ट से होकर नहीं गुजरता - इसलिए डिस्ट्रिक्ट में अपने खिलाफ बनते माहौल को लेकर उन्होंने अपनी आँखें मूँद ली हुई हैं । पता नहीं किसने उन्हें समझा दिया है कि अपने डिस्ट्रिक्ट में अलग-थलग पड़ने के बाद भी रोटरी में वह आगे की ऊँचाइयों को प्राप्त कर लेंगे । शायद इसीलिये विनोद बंसल को इस बात की परवाह नहीं हुई है कि उनके गवर्नर-काल में उनके डिस्ट्रिक्ट को अरनेजा गिरोह ने जैसे बंधक बना लिया है । यह मामला कोई ऐसा मामला भी नहीं था कि विनोद बंसल इसे रास्ते पर नहीं ला सकते थे । उनके कलीग - डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर राकेश सिंघल ने आखिर यह नजीर पेश की ही है कि डिस्ट्रिक्ट को और रोटरी को किन्हीं लोगों के हाथ की कठपुतली वह नहीं बनने देंगे और इसे बड़ी आसानी से उन्होंने हल भी कर लिया । रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे इकट्ठे करने और रोटरी के बड़े नेताओं को खुश रखने के मामले में राकेश सिंघल भले ही विनोद बंसल का मुकाबला न कर सकें, लेकिन अपने डिस्ट्रिक्ट में अपने खिलाफ लगे नेताओं को कैसे जमीन पर उतारा जाता है - इसे विनोद बंसल चाहें तो राकेश सिंघल से सीख सकते हैं ।