Tuesday, May 30, 2017

लायनिज्म के साथ-साथ मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 को कलंकित करने का जो काम तेजपाल खिल्लन और डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के हारे/फ्रस्ट्रेटेड लोगों के गाली-गलौच भरे हिंसक हंगामे ने किया है, उसकी भरपाई आसान नहीं होगी

नई दिल्ली । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में, अपने अपने डिस्ट्रिक्ट्स में हारे/ठुकराए नेताओं को साथ लेकर तेजपाल खिल्लन ने लायनिज्म को उसके सौवें वर्ष में ऐतिहासिक हंगामे और लफंगेपन की जो सौगात दी है - वह लायनिज्म के इतिहास में मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के माथे पर कलंक की तरह जड़ गई है । डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के जिन लोगों को पिछले दिनों संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट के चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, उन्होंने अपनी हार की खीज को मिटाने के लिए - तेजपाल खिल्लन के नेतृत्व में इकट्ठे होकर पूरे मल्टीपल को बंधक बना लिया, जिसमें न सिर्फ गाली-गलौच और मार-पिटाई भरा हंगामा हुआ, बल्कि पुलिस कार्रवाई और अदालती कार्रवाई तक हुई । 25/30 लोगों की हंगामाई गुंडागर्दी के चलते होटल में ठहरे और आने वाले दूसरे नागरिकों को परेशानी हुई, और उन्होंने लायनिज्म के नाम पर हो रही लफंगई को सामने सामने देखा । होटल प्रबंधन ने साफ घोषणा की कि देश-विदेश में उनके पाँच सौ से ज्यादा होटल हैं - और वह सभी को सचेत कर रहे हैं कि वह अपने अपने यहाँ लायनिज्म की गतिविधियों के लिए कोई बुकिंग न करें । और यह सब हुआ सिर्फ इसलिए क्योंकि तेजपाल खिल्लन और उनके साथ जुटे लोगों को किसी भी कीमत पर जीत चाहिए थी - जब उन्हें जीत मिलती हुई नहीं दिखी, तो उन्होंने लायनिज्म के नाम पर जबर्दस्त कीचड़-उछाल कार्यक्रम को अंजाम दिया, जिसके लिए उन्होंने पहले से ही पूरी तैयारी की हुई थी ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपनी निश्चित पराजय को टालने के लिए तेजपाल खिल्लन की तरफ से अदालती मदद लेने की तैयारी की हुई थी, तो मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को जीतने के लिए उनकी तरफ से दोतरफा तैयारी थी - एक तरफ तो उन्होंने अपने वोटों की तगड़ी पहरेदारी की हुई थी, दूसरी तरफ उनके द्वारा अजय सिंघल और दीपक राज आनंद को खरीदने की कोशिशें की जा रही थीं । विनय गर्ग को चेयरमैन बनवाने के लिए तेजपाल खिल्लन की तरफ से पाँच वोटों का हालाँकि दावा तो किया जा रहा था; लेकिन आनंद साहनी, स्वर्ण सिंह खालसा और संदीप सहगल को लेकर वह आशंकित भी थे - इसलिए इनकी पहरेदारी करने के साथ साथ अजय सिंघल को बीस लाख तथा दीपक राज आनंद को पंद्रह लाख रुपए का ऑफर देकर खरीदने का प्रयास भी किया जा रहा था । तेजपाल खिल्लन को दीपक राज आनंद 'फँसते' हुए नजर भी आए और इसीलिए चुनाव से पिछली रात वह दीपक राज आनंद को एक-डेढ़ घंटे तक घेरे भी रहे । तेजपाल खिल्लन ने उन्हें समझाया कि तुम 'उस' तरफ की बजाए यदि 'इस' तरफ वोट दोगे, तो तुम पर कोई शक भी नहीं करेगा - हम बीएम सिंह को पहले ही इतना बदनाम कर चुके हैं कि हर कोई उन्हें ही धोखेबाज समझेगा । किसी भी कीमत पर विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुनवाने/बनवाने में लगे तेजपाल खिल्लन को यह अंदाजा नहीं था कि विनय गर्ग की जीत पर मुसीबत दरअसल कहीं और से आने वाली है ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए तगड़ी लामबंदी के साथ चुनाव की प्रक्रिया जब शुरू हुई - उम्मीदवारों और मतदाताओं के कागज/पत्तर की जब जाँच/पड़ताल शुरू हुई तो पता चला कि विनय गर्ग की उम्मीदवारी के प्रस्तावक और समर्थक के रूप में बीएम शर्मा और संदीप सहगल के क्लब के ड्यूज क्लियर नहीं हैं, और इसलिए वह इस चुनाव में वोट देने के अधिकारी ही नहीं हैं । यह सुन/जान कर विनय गर्ग और उनके साथियों के तो तोते उड़ गए - जिस जीत को वह बहुत आसान समझ रहे थे, वह उनके हाथ से फिसलती हुई दिख रही थी । विनय गर्ग और उनके गवर्नर इलेक्ट इंद्रजीत सिंह डिस्ट्रिक्ट के चुनाव में दोहरी हार का सामना कर चुके थे - डिस्ट्रिक्ट में भी उन्हें जीतने का पक्का भरोसा था, किंतु मिली उन्हें हार थी । मल्टीपल में भी यही हाल होता हुआ दिखा, तो फिर वह आपे से बाहर हो गए । उनकी जिद रही कि ड्यूज/फ्यूज के नियम पर ध्यान न दिया जाए और सभी को वोट देने का अधिकार मिले - यानि जल्दी से विनय गर्ग को विजेता घोषित किया जाए । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के दूसरे उम्मीदवार अनिल तुलस्यान और उनके समर्थकों ने लेकिन साफ कह दिया कि नियमों की अवहेलना करते हुए यदि चुनाव हुआ, तो वह चुनाव में शामिल नहीं होंगे और इस चुनाव को स्वीकार नहीं करेंगे । पर्ची डाल कर और या टॉस करके चुनाव कराने का विकल्प आया - विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह उसके लिए तैयार नहीं हुए । मौके पर मौजूद इंटरनेशनल डायरेक्टर विजय राजु तथा पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स से विचार-विमर्श हुआ, उन सभी का कहना रहा कि चुनाव में नियमों का तो सख्ती से पालन होना ही चाहिए । विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह ने लेकिन उनकी बात भी नहीं सुनी/मानी और वह अपनी जिद पर अड़े रहे । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी प्रक्रिया को अंजाम देने के लिए शाम से शुरू हुई में मीटिंग में जब रात ग्यारह/बारह बजे तक यही जिद चलती रही, तो मीटिंग यह कहते हुए स्थगित की गई कि इस मामले में लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से विचार करने के बाद इस चुनाव को संपन्न किया जाएगा ।
मीटिंग से निकल कर विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह ने तेजपाल खिल्लन को सारा किस्सा सुनाया; तेजपाल खिल्लन ने उन्हें अपने लोगों को इकट्ठा करने को कहा और करीब 25/30 लोगों को साथ लेकर, जिनमें ज्यादातर लोग डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के थे, वह नरेश अग्रवाल के कमरे की तरफ बढ़े और लोगों ने उनके कमरे का दरवाजा बुरी तरफ पीटते हुए उनके खिलाफ गालियाँ और भद्दे शब्द निकालते हुए तांडव शुरू कर दिया । नरेश अग्रवाल ने कमरे से बाहर आकर उनसे  बात करने की कोशिश की, लेकिन बात करने की बजाए वह लगातार नरेश अग्रवाल के खिलाफ भद्दे शब्दों का ही इस्तेमाल करते रहे । होटल स्टॉफ ने दूसरे नागरिकों को हो रही असुविधा का वास्ता देकर तेजपाल खिल्लन तथा उनके साथ के लोगों को रोकने की कोशिश की, लेकिन हंगामाईयों ने उनकी एक न सुनी । यह तमाशा रात करीब दो बजे का है। होटल स्टॉफ ने तब पुलिस बुला ली, और तब तेजपाल खिल्लन तथा उनके साथी तितर-बितर हुए । तेजपाल खिल्लन के साथ हंगामा करने/करवाने वालों में डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के पूर्व गवर्नर्स सुभाष बत्रा, चमन लाल गुप्ता, रमेश नांगिया, अजय गोयल तथा 'इनके' उम्मीदवार के रूप में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में पराजित हुए यशपाल अरोड़ा आगे आगे थे । रमेश नांगिया और चमनलाल गुप्ता डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेना चाहते थे, लेकिन रमेश नांगिया तो खुद ही मैदान छोड़ गए थे और चमनलाल गुप्ता को जेपी सिंह के सामने पराजय का सामना करना पड़ा था । इससे समझा जा सकता है कि तेजपाल खिल्लन के साथ दरअसल वह लोग थे, जो अपने डिस्ट्रिक्ट में चुनावी मुकाबले में हार के शिकार हुए थे; और उस हार से पैदा हुई अपनी फ्रस्ट्रेशन से वह न सिर्फ मल्टीपल कॉन्फ्रेंस को खराब कर रहे थे, बल्कि लायनिज्म को भी कलंकित कर रहे थे । अगले दिन, नरेश अग्रवाल के भाषण के बीच में नरेश अग्रवाल के प्रति अपशब्दों का इस्तेमाल करते हुए व्यवधान डालने के काम भी चमनलाल गुप्ता के बेटे ने ही किया, जिसके बाद लोगों के बीच मार-पिटाई हो गई । चमनलाल गुप्ता के बेटे की कारस्तानी को जस्टीफाई करने के लिए तेजपाल खिल्लन और उनके साथियों का तर्क रहा कि नरेश अग्रवाल अपने भाषण में एकतरफा बातें कर रहे थे - यानि नरेश अग्रवाल अपने भाषण में क्या कहें, यह तेजपाल खिल्लन और उनके साथी तय करना चाहते हैं । नरेश अग्रवाल अपने भाषण में लोगों के सामने पिछली शाम/रात का पूरा घटना चक्र बता रहे थे, जिससे तेजपाल खिल्लन और डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के अपने डिस्ट्रिक्ट में हारे हुए लोगों की हरकतों की असलियत सामने आ रही थी, जिससे बौखलाकर चमनलाल गुप्ता के बेटे ने बीच भाषण में ही नरेश अग्रवाल के साथ बदतमीजी शुरू कर दी, और तेजपाल खिल्लन तथा उनके साथियों ने उसका बचाव किया ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपनी पराजय को छिपाने के लिए तेजपाल खिल्लन ने अदालती कार्रवाई का सहारा लिया, और मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी लड़ाई को जीतने के लिए लफंगई का । लायनिज्म के सौ वर्षों के इतिहास में हार से बचने के लिए ऐसा तमाशा इससे पहले कभी नहीं हुआ । इसीलिए तेजपाल खिल्लन और डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के हारे/फ्रस्ट्रेटेड लोगों के गाली-गलौच भरे हिंसक हंगामे ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 तथा लायनिज्म को कलंकित करने का जो काम किया है, उसकी भरपाई होना मुश्किल क्या - असंभव ही है ।

Sunday, May 28, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की राजनीति में अपनी हार को जीत में बदलने की तेजपाल खिल्लन की हंगामाई 'तरकीब' में नरेश अग्रवाल को गालियाँ सुनने के साथ-साथ हाथापाई का भी शिकार होना पड़ा

जीरकपुर । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की जिम्मेदारी संभालने जा रहे नरेश अग्रवाल अपने ही मल्टीपल - मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की वार्षिक कॉन्फ्रेंस में लोगों के गुस्से का इस हद तक शिकार हो गए कि उन्हें लोगों की गालियाँ सुनने के साथ-साथ उनकी धक्का-मुक्की का भी निशाना बनना पड़ा । प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, कुछेक लोगों ने नरेश अग्रवाल के साथ धक्का-मुक्की करते हुए उन्हें 'अपनी तरफ' खींचने की कोशिश की, जिसके चलते वह लात-घूँसों का भी शिकार हो गए । प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि अन्य कुछेक लोग बीच-बचाव न करते और नरेश अग्रवाल को सुरक्षा घेरे में न लेते, तो उन्हें गहरी चोटें आ सकती थीं । गौरतलब है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने के नाते रहने वाली व्यस्तता के कारण अगले लायन वर्ष में नरेश अग्रवाल के लिए अपने मल्टीपल के लोगों से मिलना-जुलना संभव नहीं हो सकेगा, इसलिए इस बार की मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में उनकी उपस्थिति का खास महत्त्व था । उनकी उपस्थिति को संभव करने के लिए ही कॉन्फ्रेंस की तारीखें उनकी उपलब्धतता को ध्यान में रख कर तय की गईं थीं । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में नरेश अग्रवाल की उपस्थिति को लेकर मल्टीपल के लोग भी खासे उत्साहित थे - और खुद नरेश अग्रवाल भी खासे जोश में थे; इस उत्साह और जोश के कारण इस बार की मल्टीपल कॉन्फ्रेंस के ऐतिहासिक होने का अनुमान लगाया जा रहा था । लेकिन मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में जो नजारा बना, और नरेश अग्रवाल को लोगों के गाली-गलौच भरे हिंसक गुस्से का जिस तरह शिकार होना पड़ा - उसके चलते इस बार की मल्टीपल कॉन्फ्रेंस ऐतिहासिक तो हो गई, लेकिन यह इतिहास का यह अध्याय लायंस इंटरनेशनल के इतिहास  कलंक की तरह ही याद किया जायेगा । लायंस इंटरनेशनल के अभी तक के सौ वर्षों के इतिहास में इससे पहले शायद ही किसी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट को अपने ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में ऐसे अपमानजनक हिंसक हादसे का शिकार होना पड़ा हो ।
नरेश अग्रवाल के साथ उनके अपने ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में जो बदतमीजी हुई, उसके लिए तमाम लोग नरेश अग्रवाल को ही जिम्मेदार कह/बता रहे हैं । कॉन्फ्रेंस में हुए झगड़े-झंझट के लिए फौरी तौर पर भले ही मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी विवाद को कारण के रूप में देखा/बताया जा रहा हो, लेकिन हालात को इस स्थिति तक पहुँचाने में पूरे वर्ष की घटनाओं की भूमिका रही है । वास्तव में यह पूरा वर्ष ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में खासा उथल-पुथल भरा रहा - एक लीडर के रूप में नरेश अग्रवाल जिसमें हस्तक्षेप करने और हालात को बिगड़ने से बचाने में कतई असफल रहे; सच बल्कि यह है कि उन्होंने हस्तक्षेप करने की जरूरत ही नहीं समझी । दो-तीन डिस्ट्रिक्ट में चोट्टे किस्म के लोग गवर्नर बने, जिनका सारा ध्यान पैसे बनाने पर रहा और जिन्होंने ड्यूज तक हड़प लेने की हरकतें कीं, और लायंस इंटरनेशनल उन्हें बस चिट्ठियाँ लिखता रह गया । ड्यूज हड़पने की उनकी कार्यवाईयाँ मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को प्रभावित करने के हथकंडे के रूप में इस्तेमाल करने की बातें खुलेआम होने लगीं - इंटरनेशनल पदाधिकारी के रूप में नरेश अग्रवाल तब भी आँखें बंद किए बैठे रहे । हद की बात यह रही कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में नरेश अग्रवाल एक पक्ष की तरफ झुके हुए तो नजर आए - लेकिन उस एक पक्ष के खिलाफ किस किस तरह की बातें हो रही हैं और किस किस तरह के गठजोड़ बन रहे हैं, इसे लेकर वह पूरी तरह लापरवाह बने रहे । लोगों का मानना और कहना है कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में नरेश अग्रवाल जो कुछ भी करना/पाना चाहते थे, उसके लिए वह यदि थोड़ा पहले से सक्रिय होते - और मल्टीपल में बन रहे हिंसक माहौल को भाँपते हुए पहले से ही कदम उठा लेते, तो वह मल्टीपल में आराम से अपने पसंदीदा चुनावी नतीजे भी पा लेते और फजीहत का शिकार भी न बनते ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर तेजपाल खिल्लन ने जो और जिस तरह की राजनीति की, उसे देख कर बहुत पहले से ही लोगों की समझ में आ गया था कि वह वास्तव में एक हारी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं, और अपनी निश्चित हार को छिपाने के लिए मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में फसाद खड़ा करने की तैयारी कर रहे हैं । नरेश अग्रवाल और मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारियों को शायद यह आभास तो था कि कॉन्फ्रेंस में हंगामा तो होगा, लेकिन उन्हें भी यह उम्मीद नहीं थी कि कॉन्फ्रेंस में लायंस के भेष में आए कुछ लोग सड़कछाप लफंगों की तरह व्यवहार करेंगे - और नरेश अग्रवाल सहित मल्टीपल के तथा इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तक से बदतमीजी करेंगे । तेजपाल खिल्लन के लिए इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव प्रतिष्ठा का चुनाव बन गया था, लेकिन वहाँ चूँकि उनके हाथ कुछ लगने वाला नहीं था - इसलिए उन्होंने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव की आड़ में राजनीति खेलने की तैयारी की, और इस तैयारी में मल्टीपल के उन्हीं चोट्टे गवर्नर्स के साथ गठजोड़ बनाया, जो ड्यूज न जमा करा कर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को प्रभावित करने की बात कर रहे थे । अलग अलग कारणों से लीडरशिप से नाराज होने वाले लोगों को जोड़ कर तेजपाल खिल्लन ने कॉन्फ्रेंस में हंगामा कराने के जरिए लीडरशिप को ब्लैकमेल करने की जो तैयारी की, उसका अनुमान लगाने में नरेश अग्रवाल तथा लीडरशिप के अन्य लोग पूरी तरह विफल रहे और अपनी फजीहत करा बैठे ।

Friday, May 26, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू की सरपरस्ती के बावजूद डीसी बंसल गवर्नर तो नहीं ही बन पाए, रोटरी से बाहर और कर दिए गए हैं; डिस्ट्रिक्ट 3100 में डीके शर्मा का भी उनके जैसा ही हाल होने की संभावना

देहरादून । राजेंद्र उर्फ राजा साबू ने जिन डीसी बंसल को वर्ष 2017-18 का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने के लिए पिछले करीब दो वर्षों से डिस्ट्रिक्ट को 'बंधक' बना रखा था, वह डीसी बंसल वर्ष 2017-18 शुरू होने से पहले क्लब सहित रोटरी से निकाल दिए गए हैं । राजा साबू की एक हरकत डिस्ट्रिक्ट के लिए भी भारी पड़ी है, जिसका नजारा यह है कि वर्ष 2017-18 में डिस्ट्रिक्ट अनाथ जैसे स्थिति में है - क्योंकि इस वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट के पास कोई गवर्नर नहीं है । राजा साबू ने वर्ष 2018-19 के लिए चुने गए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन चंद्र गोयल को वर्ष 2017-18 की गवर्नरी के लिए राजी कर लिया था; वह राजी भी हो गए थे और अपनी ट्रेनिंग की औचारिकता पूरी कर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में काम करना शुरू भी कर दिया था, लेकिन अब उन्होंने भी रोटरी इंटरनेशनल से गुहार लगाई हुई है कि उन्हें तो उनके वास्तविक वर्ष - वर्ष 2018-19 में ही गवर्नरी करने का मौका दिया जाए । पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में हालत यह आ गई है कि अगले रोटरी वर्ष के लिए होने वाले पेट्स (प्रेसीडेंट्स इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) और सेट्स (सेक्रेटरीज इलेक्ट ट्रेनिंग सेमीनार) जैसे कार्यक्रम करने की जिम्मेदारी मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा पर आ पड़ी है । डिस्ट्रिक्ट की, डीसी बंसल की, और खुद राजा साबू की फजीहत करने और दिखाने वाला यह परिदृश्य सिर्फ इस कारण बना - क्योंकि वर्ष 2014-15 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा चुने गए अधिकृत उम्मीदवार टीके रूबी को राजा साबू गवर्नर की कुर्सी तक नहीं पहुँचने देना चाहते थे; जिस कारण उनकी शह पर डीसी बंसल को मोहरा बना कर टीके रूबी को रास्ते से हटाने के लिए चक्रव्यूह रचा गया । उस चक्रव्यूह में लेकिन खुद राजा साबू, उनका साथ देने वाले कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्य तथा डीसी बंसल ही फँस गए । राजा साबू इस बात पर अपनी पीठ हालाँकि जरूर थपथपा सकते हैं कि उन्होंने अंततः टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं ही बनने दिया है । इस 'उपलब्धि' पर कोई चाहे तो राजा साबू, कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के उनके साथियों और डीसी बंसल को माला पहना सकता है ।
माला पहनने के इस काम को अंजाम देने में 'इस्तेमाल' होने वाले डीसी बंसल के लिए विडम्बना की बात यह हुई है कि अभी जब रोटरी इंटरनेशनल द्वारा उन्हें उनके क्लब सहित रोटरी से निकाल दिया गया है, तब राजा साबू और कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों ने भी उनसे मुँह फेर लिया है । शायद इसलिए ही, क्योंकि अब वह उनके 'काम' के नहीं रह गए हैं । डीसी बंसल वर्ष 2017-18 की डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी पर अपना अधिकार जताते हुए उसे प्राप्त करने की कोशिश में अदालत की शरण में गए, जिसके बाद वह रोटरी इंटरनेशनल के कोप का भाजन बने और क्लब सहित रोटरी से निकाल दिए गए हैं । रोटरी इंटरनेशनल का मानना है कि जिस रोटेरियन को रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था और फैसले लेने की उसकी गंभीरता और निष्पक्षता पर भरोसा नहीं है - उसे फिर रोटरी में क्यों होना/रहना चाहिए ? रोटरी इंटरनेशनल में इस संदर्भ में नियम भी है । डीसी बंसल के लिए कुछेक लोगों को यह भी लग रहा है कि बदकिस्मती जैसे उनके साथ-साथ चल रही है । राजा साबू जैसा बड़ा नेता और कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सारे सदस्य दो वर्षों तक उन्हें गवर्नर चुनवाने/बनवाने की जीतोड़ कोशिश करते रहे - डीसी बंसल को जब अधिकृत उम्मीदवार के रूप में टीके रूबी को चेलैंज करने के लिए कॉन्करेंस की जरूरत थी, तब राजा साबू तथा सभी पूर्व गवर्नर्स ने अपने अपने क्लब के साथ-साथ अपने प्रभाव वाले दूसरे क्लब्स से भी उन्हें कॉन्करेंस दिलवाईं; डीसी बंसल को जब वोटों की जरूरत थी, तब डिस्ट्रिक्ट के इन्हीं महारथियों ने उन्हें वोट दिलवाए; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में पहले दिलीप पटनायक ने और फिर डेविड हिल्टन ने डीसी बंसल के लिए कठपुतलियों की तरह काम किया; डिस्ट्रिक्ट का चुनावी झगड़ा जब जब रोटरी इंटरनेशनल में पहुँचा, तब तब राजा साबू ने डीसी बंसल के पक्ष में फैसला करवाने के लिए प्रयास किया - लेकिन कोई भी तरकीब डीसी बंसल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बनवा सकी । रोटरी की 'व्यवस्था' से निराश होने के बाद, डिस्ट्रिक्ट गवर्नरी प्राप्त करने के लिए डीसी बंसल अभी पिछले दिनों जब अदालत की शरण में गए - तो रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें उनके क्लब सहित रोटरी से ही निकाल दिया है ।
रोटरी इंटरनेशनल ने डिस्ट्रिक्ट 3080 में अगले रोटरी वर्ष की गवर्नरी पाने की कोशिश करने वाले डीसी बंसल के साथ जो सुलूक किया है, उसने डिस्ट्रिक्ट 3100 में अगले रोटरी वर्ष की गवर्नरी पाने की कोशिश में अदालत गए डीके शर्मा के सामने भी रोटरी से बाहर हो जाने का खतरा पैदा कर दिया है । आखिर एक से ही दो मामलों में रोटरी इंटरनेशनल अलग अलग व्यवहार तो नहीं ही करेगा ? यूँ तो दोनों डिस्ट्रिक्ट में मामला अलग अलग किस्म का है, किंतु एक बात तो दोनों में समान है कि डीसी बंसल की तरह डीके शर्मा ने भी रोटरी की व्यवस्था और फैसला करने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल की गंभीरता और निष्पक्षता पर भरोसा खो दिया है - और वह भी 'न्याय' पाने के लिए अदालत चले गए । फैसला करने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल की गंभीरता और निष्पक्षता पर भरोसा खो देने के कारण यदि डीसी बंसल रोटरी में रहने के अधिकारी नहीं रहे हैं, तो फिर डीके शर्मा ही किस तर्क से रोटरी में रह पायेंगे ? डीसी बंसल और डीके शर्मा के मामले में एक बड़ी दिलचस्प समानता है, और वह यह कि दोनों को ही अपने अपने डिस्ट्रिक्ट में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों का एकतरफा समर्थन मिला है - लेकिन फिर भी वह गवर्नर नहीं बन पाए या पा रहे हैं, और दोनों के ही सामने रोटेरियन बने रहने तक का संकट खड़ा हो गया है ।

Thursday, May 25, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की चुनावी राजनीति में नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी का नाम घसीट कर तेजपाल खिल्लन ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को दिलचस्प बनाया

जीरकपुर । नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी द्वारा पड़ने वाले दबावों को बता बता कर तेजपाल खिल्लन अपने 'ग्रुप' को एकजुट रखने की जो कोशिश कर रहे हैं, उसने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव को खासा उलझनभरा और दिलचस्प बना दिया है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए अपने उम्मीदवार विनय गर्ग के समर्थन में पाँच वोटों के होने का दावा करते हुए तेजपाल खिल्लन आजकल लोगों को बता रहे हैं कि नरेश अग्रवाल उन्हें लगातार फोन कर रहे हैं, कुछेक बार तो उनकी पत्नी ने भी उन्हें फोन किया है । तेजपाल खिल्लन के एक नजदीकी ने इन पंक्तियों के लेखक से बात करते हुए बताया कि उन्हें खुद तेजपाल खिल्लन ने बताया कि उन्होंने लेकिन दोनों लोगों से यह कहते हुए बात करने से इंकार कर दिया कि उन्हें यदि बिजनेस की बात करना है, तो मेरे बेटे से करो - और यदि राजनीति की बात करना है, तो मैं 28 मई के बाद करूँगा । इस तरह की बातों से तेजपाल खिल्लन दरअसल यह जताने/दिखाने का प्रयास कर रहे हैं कि मल्टीपल की चुनावी राजनीति में उन्होंने जो गोलबंदी की है, उससे नरेश अग्रवाल तक परेशान हो उठे हैं और वह भी उन्हें अपनी तरफ खींचने में लग गए हैं - लेकिन वह उनकी बातों में नहीं आ रहे हैं । नरेश अग्रवाल तक की बात तो लोगों को हजम हो रही थी, लेकिन तेजपाल खिल्लन ने जिस तरह से नरेश अग्रवाल की पत्नी का नाम भी घसीट लिया है - उससे मामला खासा दिलचस्प हो उठा है । लोगों को लग रहा है कि इन बातों के जरिए तेजपाल खिल्लन एक तरफ तो अपने 'ग्रुप' को एकजुट करने/रखने की कोशिश कर रहे हैं, और दूसरी तरफ लोगों के बीच वह अपना 'कद' ऊँचा बनाने/दिखाने का प्रयास कर रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि तेजपाल खिल्लन के लीडरशिप - और खासतौर से नरेश अग्रवाल के साथ कभी सर्द तो कभी गर्म किस्म के संबंध रहे हैं, और लोगों के बीच धारणा यह बनी है कि लायन राजनीति में सर्द/गर्म होने का खेल वास्तव में वह अपने धंधे को बढ़ाने के लिए करते हैं । मल्टीपल की इस वर्ष की चुनावी राजनीति में तेजपाल खिल्लन ने जिस तरह से अपनी सक्रियता को दिखाया/बढ़ाया हुआ है, उसे राजनीति की आड़ में व्यावसायिक फायदा उठाने की उनकी योजना के रूप में देखा/पहचाना गया है । लायनिज्म में अगले पाँच-छह वर्ष दरअसल उनके धंधे के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं । अगले लायन वर्ष में नरेश अग्रवाल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होंगे, उसके अगले वर्ष भी वह इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्य रहेंगे; उसके बाद वर्ष 2022 में दिल्ली में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन का काम शुरू जायेगा । खुद तेजपाल खिल्लन ने ही अपने नजदीकियों को बताया है कि लायंस इंटरनेशनल में पिन्स और मैडल्स के हर वर्ष करीब 50 करोड़ रुपए के ऑर्डर मिलते/निकलते हैं । नरेश अग्रवाल के कारण उन्हें यदि चौथाई ऑर्डर भी मिल जाएँ, तो अगले पाँच-छह वर्षों में उनके तो बारे-न्यारे हो जायेंगे । काम-धंधा बेटे के जिम्मे कर तेजपाल खिल्लन जिस तरह से राजनीति में 'व्यस्त' हो गए हैं, उससे लोगों को यह लगा है कि उनकी इस राजनीतिक सक्रियता के पीछे उनका वास्तविक उद्देश्य ऑर्डर्स का जुगाड़ करना ही है । एक कुशल बिजनेसमैन होने के नाते तेजपाल खिल्लन इस तरह की बातों पर गौर नहीं करते हैं, और इस तरह की बातों को अनसुना करने की समझदारी ही दिखाते हैं । इस बार समस्या लेकिन यह हुई है कि तेजपाल खिल्लन को डर हुआ है कि इस तरह की बातों से उनका राजनीतिक प्लान कहीं फेल न हो जाए । तेजपाल खिल्लन को डर है कि जो लोग उनके साथ और उनके भरोसे हैं, वह कहीं इस बात को गंभीरता से न ले लें कि तेजपाल खिल्लन उनके नाम पर राजनीति करें सो करें - धंधा भी कर ले जाएँ ! इसीलिए तेजपाल खिल्लन को लोगों के बीच विश्वास और भरोसा बनाए रखने के लिए उन्हें यह बताने की जरूरत महसूस हुई कि वह नरेश अग्रवाल की बातों में आने वाले नहीं हैं; और देखिए वह खुद तो उन्हें फोन  कर ही रहे हैं, बल्कि अपनी पत्नी से भी फोन करवा रहे हैं - लेकिन वह उनसे बात ही नहीं कर रहे हैं, क्योंकि इस बार उन्हें उनसे कोई समझौता नहीं करना है ।
तेजपाल खिल्लन को इस बार मल्टीपल की चुनावी राजनीति में किसी भी कीमत पर कामयाब होना ही है - उन्हें लगता है कि इस बार यदि वह सफल नहीं हो पाए, तो अगले पाँच-छह वर्ष में अपने बिजनेस में ऊँची छलाँग मारने का उनके सामने जो मौका है, उसे वह खो देंगे । इसीलिए मजे की बात यह देखने में आ रही है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग की और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए वीएस कुकरेजा की उतनी सक्रियता नहीं है, जितनी तेजपाल खिल्लन की है । उनके चुनाव को लेकर उनकी बजाए तेजपाल खिल्लन ने दिन-रात एक किया हुआ है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर विनय गर्ग के लिए समर्थन और वोट जुटाने के लिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से बात करने पर कई बार तेजपाल खिल्लन को सुनना पड़ा है कि - विनय गर्ग तो कुछ कहते नहीं हैं, आप ही कह रहे हैं; कहो तो आपको चेयरमैन बनवा देते हैं । विनय गर्ग और वीएस कुकरेजा की तरफ से पैसे खर्च न करने की भी शिकायतें तेजपाल खिल्लन को जब तब सुनने को मिलती रही हैं, और हर बार उन्होंने  लोगों को एक ही जबाव दिया है कि फिक्र मत करो, मैं पैसे खर्च करूँगा ! मल्टीपल काउंसिल की कॉन्फ्रेंस में रजिस्ट्रेशन व कमरों आदि पर जो पैसा खर्च हो रहा है, उसे लेकर भी तेजपाल खिल्लन ने यह दिखाने/जताने का कोई मौका नहीं छोड़ा है कि यह पैसा वह खर्च कर रहे हैं । इससे लोगों बीच यह सवाल भी उठ रहे हैं कि विनय गर्ग  वीएस कुकरेजा की बजाए तेजपाल खिल्लन क्यों पैसे खर्च कर रहे हैं ? दरअसल इसीलिए माना/समझा जा रहा है कि मल्टीपल में इस बार का चुनाव विनय गर्ग और वीएस कुकरेजा को नहीं जीतना है - बल्कि तेजपाल खिल्लन को जीतना है; और वह पैसे खर्च नहीं कर रहे हैं, बल्कि इन्वेस्ट कर रहे हैं - आज इन्वेस्ट करेंगे, तो कल उसका कई गुना प्राप्त करेंगे ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए तेजपाल खिल्लन जो पाँच वोट अपने साथ मान रहे हैं, उनमें डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के आनंद साहनी तथा डिस्ट्रिक्ट 321 डी के स्वर्ण सिंह खालसा पर उन्हें लगातार संदेह बना हुआ है । उन्हें डर है कि यह दोनों लोग लीडरशिप के साथ जाने के चक्कर में उन्हें धोखा दे सकते हैं; इसलिए तेजपाल खिल्लन ने इनकी पहरेदारी तो मजबूत लगाई हुई है - लेकिन फिर भी वह इन दोनों की तरफ से पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं । इन दोनों का भरोसा और समर्थन बनाए रखने के लिए ही तेजपाल खिल्लन ने दरअसल नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी द्वारा फोन करने की कहानी सुनाई है । तेजपाल खिल्लन ने दूसरों के साथ-साथ खास तौर से इन दोनों तक यह संदेश पहुँचाने तथा इन्हें यह दिखाने/जताने का प्रयास किया है कि नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी के हस्तक्षेप से भी वह प्रभावित नहीं हो रहे हैं - और नरेश अग्रवाल की 'राजनीति' से वह कोई समझौता नहीं करेंगे तथा उनसे भिड़ते रहेंगे । तेजपाल खिल्लन को भरोसा है कि इस तरह की बातों से वह अपने खेमे के लोगों को तथा अपने द्वारा जुटाए गए समर्थन को चुनाव के समय तक तो अपने पक्ष में बनाए रखने में सफल हो जायेंगे । लेकिन अपने बिजनेस और अपनी राजनीति के फायदे के लिए तेजपाल खिल्लन ने जिस तरह से नरेश अग्रवाल के साथ-साथ उनकी पत्नी के नाम को भी घसीट लिया है, उससे उनके नजदीक के ही कई लोग खफा भी हो रहे हैं । उनका कहना है कि तेजपाल खिल्लन को अपने बिजनेस और अपनी राजनीति के स्वार्थ में इस हद पर नहीं उतर आना चाहिए कि वह नरेश अग्रवाल और उनकी पत्नी को भी विवाद में घसीट लें ।

Wednesday, May 24, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव से वीएस कुकरेजा ने जब अपने आप को बाहर मान/समझ लिया है, तब भी तेजपाल खिल्लन फर्जी तौर-तरीके से उनकी उम्मीदवारी के बारे में झूठ फैलाने के काम में आखिर क्यों लगे हुए हैं ?

नई दिल्ली । वीएस कुकरेजा को इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी चुनवाने/बनवाने की जिम्मेदारी लेकर तेजपाल खिल्लन ऐसी मुसीबत फँस गए हैं कि उनसे न निगलते बन रहा है, और न उगलते - इस मामले में मल्टीपल के अधिकतर डिस्ट्रिक्ट्स जिस तरह जेपी सिंह के प्रति समर्थन व्यक्त कर रहे हैं, उससे जेपी सिंह के सामने तेजपाल खिल्लन कच्चे खिलाड़ी भी साबित हो रहे हैं । तेजपाल खिल्लन के नजदीकियों के अनुसार, तेजपाल खिल्लन भी महसूस कर रहे हैं कि वीएस कुकरेजा के चक्कर में उन्होंने नाहक ही मल्टीपल में अपने लिए फजीहत का मौका बनवा लिया है । इन दोनों के डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन के लोगों का हालाँकि कहना है कि इस मामले में तेजपाल खिल्लन दरअसल अपने ही जाल में फँस गए हैं; तेजपाल खिल्लन अपनी राजनीति चलाने/बढ़ाने/दिखाने के लिए एक 'मुर्गा' खोजते हैं - इसी तर्ज पर उन्होंने वीएस कुकरेजा में हवा भरी, लेकिन वीएस कुकरेजा कुछ अपनी बेवकूफी में और कुछ अपने सयानेपन में उनका 'मुर्गा' नहीं बन पाए; और इस कारण तेजपाल खिल्लन के लिए चिकेन की व्यवस्था करना मुश्किल हो गया है । इसका नतीजा है कि मल्टीपल के दस में से जिन तीन डिस्ट्रिक्ट्स में तेजपाल खिल्लन ने एक एक ग्रुप का - यानि आधे/आधे लोगों का अलग अलग कारणों से जो समर्थन जुटाया भी है, उस 'समर्थन' को मौके पर पहुँचाने को लेकर ही उनके पसीने छूट रहे हैं ।
हद की बात तो यह है कि तेजपाल खिल्लन और वीएस कुकरेजा के अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन से ज्यादा लोग मल्टीपल कन्वेंशन में जाने को लेकर उत्साहित नहीं दिख रहे हैं । इस तरह के मामलों में लोगों को उत्साहित करने के लिए दरअसल 'रिवाज' यह बना हुआ है कि लोगों को बताया जाये कि उनका रजिस्ट्रेशन करवा लिया गया है, और उनके ठहरने के लिए कमरे बुक हो चुके हैं । तेजपाल खिल्लन और वीएस कुकरेजा की तरफ से चूँकि ऐसा कुछ नहीं कहा जा रहा है, इसलिए अलग अलग कारणों से उनके समर्थन में बने दिख रहे लोग भी निराश हैं । दिलचस्प नजारा यह है कि इनके अपने डिस्ट्रिक्ट से ज्यादा उछल-कूद तो डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू और डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के एक एक खेमे के गवर्नर्स दिखा रहे हैं - लेकिन उनके बीच भी इस बात को लेकर निराशा है कि तेजपाल खिल्लन और वीएस कुकरेजा की तरफ से कोई 'ऑफर' ही नहीं मिल रहा है; कुछेक लोगों ने तो इनसे शिकायत भी की है कि 'रिवाज' के अनुसार यदि ऑफर नहीं दोगे, तो लोग 'वोट, सपोर्ट और इलेक्ट' करवाने क्यों आयेंगे ? वीएस कुकरेजा का कहना है कि वह जब उम्मीदवार ही नहीं रह गए हैं, तो फिर उम्मीदवार द्वारा निभाया जाने वाला 'रिवाज' वह भला क्यों पूरा करें ? उनकी बात भी ठीक है, और उसमें दम है ।
लेकिन इस ठीक बात के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट 321 ए वन व डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू और डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के उन गवर्नर्स ने अपनी स्थिति हास्यास्पद बना ली है, जो सोशल मीडिया में वीएस कुकरेजा के लिए 'वोट-सपोर्ट-इलेक्ट' के पोस्टर लहरा रहे हैं । यह बेचारे पोस्टर तो लहरा रहे हैं, किंतु इनके पास इस बात का जबाव नहीं है कि वीएस कुकरेजा का जब नामांकन ही रिजेक्ट हो गया है, जिसके चलते वह उम्मीदवार ही नहीं रह गए हैं - तो उन्हें वोट कैसे दे पाओगे, कैसे उन्हें इलेक्ट करोगे ? जाहिर है कि वीएस कुकरेजा के समर्थन के नाम पर एक निर्लज्ज किस्म की मूर्खता का प्रदर्शन हो रहा है । कुछेक गवर्नर्स का गहरी नाराजगी के साथ हालाँकि कहना यह भी है कि उनके नाम से वीएस कुकरेजा को 'वोट-सपोर्ट-इलेक्ट' वाले पोस्टर उन्होंने नहीं निकाले हैं, बल्कि उनके नाम से किसी ने फर्जीवाड़ा किया है ।
इस फर्जीवाड़े के लिए तेजपाल खिल्लन को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । लोगों का कहना है कि तेजपाल खिल्लन दावा कर रहे हैं कि वीएस कुकरेजा अभी भी उम्मीदवार हैं और उनकी उम्मीदवारी को रद्द नहीं किया जा सकता है । वह तर्क दे रहे हैं कि दीपक तलवार की चेयरमैनी वाली नोमीनेशन कमेटी का गठन ही गैरकानूनी है, और इस कमेटी को नामांकन रद्द करने का अधिकार ही नहीं है । तेजपाल खिल्लन ने कोशिश की थी कि इस कमेटी के को-चेयरमैन राजीव मित्तल कमेटी के गैरकानूनी होने का वास्ता देकर कमेटी और अपने पद से इस्तीफा दे दें । राजीव मित्तल ने लेकिन उनकी बात मानने से साफ इंकार कर दिया । राजीव मित्तल, तेजपाल खिल्लन के डिस्ट्रिक्ट के ही पूर्व गवर्नर हैं; इसलिए उनके इंकार ने तेजपाल खिल्लन की और फजीहत कर दी है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा भी तेजपाल खिल्लन के डिस्ट्रिक्ट के ही हैं, लेकिन उनकी तरफ से भी तेजपाल खिल्लन की फजीहत करने/कराने का कोई मौका नहीं छोड़ा जा रहा है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट में तेजपाल खिल्लन ने राजीव मित्तल और जेसी वर्मा की ऐसीतैसी कर रखी है, सो इन्हें अब तेजपाल खिल्लन से बदला लेने का मौका मिल रहा है - और यह कोई मौका छोड़ भी नहीं रहे हैं । इनके रवैये ने मल्टीपल में नेतागिरी जमाने/दिखाने की तेजपाल खिल्लन की कोशिशों को पलीता लगा दिया है ।
तेजपाल खिल्लन के लिए मुसीबत और फजीहत की बात यह भी हुई है कि वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी को लेकर वह दूसरों को तो आश्वस्त करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन खुद वीएस कुकरेजा को उनके दावे और उनकी बातों पर भरोसा नहीं हो रहा है - और यही कारण है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह खुद ही उत्साहित नहीं रह गए हैं, और लोगों से बचने/छिपने में ही लगे हुए हैं । अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उन्हें बड़े सम्मान के साथ आमंत्रित किया गया था; डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस के निमंत्रण पत्र पर उनका नाम और फोटो था तथा बैकड्रॉप बैनर में भी उनका नाम और फोटो था - किंतु वीएस कुकरेजा कॉन्फ्रेंस में पहुँचे ही नहीं । उन्हें अपने उम्मीदवार होने का सचमुच भरोसा होता, तो क्या वह ऐसा कर सकते थे ? उनकी अनुपस्थिति में जेपी सिंह ने दोहरा फायदा उठाया - और उस एक आयोजन से मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट्स में यह साफ संदेश गया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ से वीएस कुकरेजा ने अपने आपको बाहर मान लिया है, और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एक अकेले उम्मीदवार जेपी सिंह ही हैं । 'मुद्दई सुस्त, गवाह चुस्त' वाली तर्ज पर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव का दिलचस्प नजारा है कि वीएस कुकरेजा तो अपनी तथाकथित उम्मीदवारी को लेकर चुप बने हुए हैं और लोगों से बचते/छिपते फिर रहे हैं, जबकि तेजपाल खिल्लन फर्जी तौर-तरीके से उनकी उम्मीदवारी के बारे में झूठ फैलाने के काम में लगे हुए हैं ।

Tuesday, May 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में अदालती मदद से गवर्नरी पाने की दिनेश शर्मा की कार्रवाई डिस्ट्रिक्ट की बदनामी और मुसीबतों को बढ़ाने का ही काम तो नहीं करेगी ?

सिकंदराबाद । अदालती आदेश से उत्साहित होकर दिनेश शर्मा ने खुद को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मान कर डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के आयोजन की घोषणा करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'काम' करना शुरू तो कर दिया, लेकिन फिर पता नहीं कैसे उन्हें ख्याल आया कि जोश में होश नहीं खोना चाहिए - और तब उन्होंने डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के आयोजन को अगली सूचना तक स्थगित करने का फैसला किया । दिनेश शर्मा को शायद किसी ने बताया होगा कि अदालती आदेश से ज्यादा खुश होने की जरूरत नहीं है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अदालती आदेश से नहीं बनोगे - उसके लिए तो रोटरी इंटरनेशनल से औपचारिक आदेश मिलना जरूरी होगा । अदालती आदेश में यह नहीं कहा गया है कि पैतृक संगठन के मुख्यालय की मत सुनो, तुम तो गवर्नरी का काम शुरू करो । अदालती आदेश मिलते ही, उक्त आदेश की कॉपी रोटरी इंटरनेशनल को उपलब्ध करवाने से पहले ही - दिनेश शर्मा ने फटाफट कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग बुलाई, उसमें समर्थन लिया और खुद को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मानते हुए काम करना शुरू कर दिया और 4 जून को डिस्ट्रिक्ट असेम्बली आयोजित करने की घोषणा कर डाली । शुक्र है कि उन्हें जल्दी ही सदबुद्धि आ गई और फिर उन्होंने डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के 4 जून के आयोजन को फिलहाल स्थगित कर दिया है - और अब उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल से 'नियुक्ति पत्र' लेने के काम को प्राथमिकता देने का निश्चय किया है ।
उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर्स की रोटरी जगत में बड़ी भारी बदनामी है - मजे की बात यह है कि रोटरी जगत में हर कोई यह भी मानता/समझता है कि वास्तव में उनके 'अपराध' इतने बड़े नहीं हैं, जितनी उनकी बदनामी है । डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर्स पर जो भी आरोप रहे हैं, वैसे आरोप अन्य कई डिस्ट्रिक्ट्स के कई गवर्नर्स पर रहे हैं; पर उनकी ज्यादा बदनामी नहीं है । जिन आरोपों के कारण डिस्ट्रिक्ट 3100 में सुनील गुप्ता को अपनी गवर्नरी गँवानी पड़ी और दीपक बाबु को गवर्नरी मिलते मिलते रह गयी - वैसे ही और या उनसे भी ज्यादा गंभीर आरोपों के बावजूद दूसरे कई डिस्ट्रिक्ट्स के गवर्नर आराम से गवर्नरी पूरी कर गए और अब मजे से पूर्व गवर्नर के फायदे ले रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट 3100 के गवर्नर्स का - कारनामों के मुकाबले आनुपातिक रूप से ज्यादा कठोर सजा पाने और बदनामी हासिल करने का मुख्य कारण यह है कि अपने आचरण और व्यवहार में वह संगठन में होने का संतुलन नहीं बना पाते हैं, और जोश में होश खो देते हुए वह अपने आप को संगठन से ऊपर समझने लगते हैं । सुनील गुप्ता के सामने संभलने के बहुत अवसर आए थे, लेकिन पता नहीं किस नशे में वह यह समझने लगे थे कि उनका कोई क्या बिगाड़ लेगा ? उनका जो हाल हुआ, उससे दीपक बाबु ने कोई सबक नहीं लिया - दीपक बाबु उनसे ज्यादा नशे में रहे, जिसका नतीजा हुआ कि वह सुनील गुप्ता से भी ज्यादा दुर्गति को प्राप्त हुए । लगता है कि दिनेश शर्मा ने भी उनकी हुई हालत से कुछ नहीं सीखा - और वह भी अपने आप को संगठन से ज्यादा होशियार तथा खुद को संगठन से ऊपर समझने के उन्हीं के रास्ते पर बढ़ चले हैं ।
गौर करने की बात है कि दिनेश शर्मा रोटरी क्लब सिकंदराबाद के सदस्य हैं और सिकंदराबाद में रहते हैं, जो बुलंदशहर जिले का एक शहर है । दिनेश शर्मा को रोटरी इंटरनेशनल द्वारा किए गए अन्याय में न्याय पाना है, लेकिन इसके लिए वह बुलंदशहर की न्यायिक व्यवस्था पर भरोसा नहीं करते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3100 में मेरठ, मुजफ्फरनगर और मुरादाबाद बड़े केंद्र हैं - दिनेश शर्मा यहाँ की न्यायिक व्यवस्था पर भी भरोसा नहीं करते हैं । न्याय पाने के लिए वह कोटद्वार जाते हैं । कोटद्वार में सिर्फ एक रोटरी क्लब है । यानि कोटद्वार में रोटरी फले-फैले-फूले, ज्यादा लोग रोटेरियन बने, ज्यादा क्लब खुले/बने - दिनेश शर्मा इसके लिए प्रयास नहीं करते हैं, लेकिन रोटरी में न्याय पाने के लिए वह सिकंदराबाद से कोटद्वार चले आते हैं । तकनीकी रूप से हालाँकि इसमें कुछ भी गलत नहीं है । दिनेश शर्मा ने यह जो भी किया है, पूरी तरह कानूनी दायरे में रहते हुए किया है, यह करने का उन्हें पूरा पूरा अधिकार है । लेकिन उनके 'इस' करने में उनकी एक होशियारी तो झलकती ही है - और उनके 'इस' करने में ही वह सोच 'दिखाई' देती है, जिसमें व्यक्ति अपने आप को अपने ही संगठन से ज्यादा होशियार और खुद को उससे ऊपर समझता है । दुनिया के तमाम देशों में फैले हुए रोटरी इंटरनेशनल की सौ वर्षों से अधिक की उम्र हो चुकी है; जाहिर है कि वह एक बड़ी ताकत है - दिनेश शर्मा और या उनके संगी-साथियों को क्या सचमुच लगता है कि वह अपनी तिकड़मों से रोटरी इंटरनेशनल को अपने सामने झुका लेंगे ? और या क्या वह सचमुच चाहते हैं कि रोटरी में गवर्नर बनाने/तय करने का काम अब अदालतों को सौंप देना चाहिए ?
सवाल हालाँकि यह भी है कि दिनेश शर्मा क्या करें ? बिना किसी आरोप/अपराध के उनसे यदि गवर्नर बनने का मौका छीना जा रहा है, तो उन्हें क्या करना चाहिए ? लेकिन इस सवाल में भी मौकापरस्ती छिपी है । अन्याय क्या सिर्फ दिनेश शर्मा के साथ ही हुआ है ? डिस्ट्रिक्ट 3100 यदि नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में गया है, तो क्या तमाम सारे लोगों को बिना किसी आरोप/अपराध के सजा नहीं मिली है ? कुछेक लोगों की करतूतों के कारण डिस्ट्रिक्ट के नॉन-डिस्ट्रिक्ट होने में डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के और उनके सदस्यों के साथ जो अन्याय हुआ, दिनेश शर्मा ने उसकी कभी कोई फिक्र की क्या ? सूचना तो यही है कि दिनेश शर्मा ने दूसरों के साथ हुए अन्याय की परवाह करने की बजाए कोशिश सिर्फ यह की कि कैसे भी उन्हें गवर्नर बनने का मौका मिल जाए । विडंबना की बात यह है कि अदालती आदेश के बाद वह खुशी खुशी उन लोगों से भी गले में माला डलवाते दिखे, जो डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा दुर्गति के लिए जिम्मेदार हैं और जो रोटरी इंटरनेशनल द्वारा बाकायदा नाम लेकर 'आरोपी' बताए गए थे । यानि दिनेश शर्मा दोनों हाथों में लडडू पकड़ना चाहते हैं - एक तरफ वह अपने साथ होने वाले अन्याय का दुखड़ा भी रोयेंगे, और दूसरी तरफ अपने साथ होने वाले अन्याय की स्थितियाँ पैदा करने वालों से माला भी पहनेंगे और उनके ही समर्थन के सहारे न्याय पाने की कोशिश करेंगे ।
दिनेश शर्मा ने अदालती कार्रवाई के जरिए गवर्नरी प्राप्त करने की जो कोशिश की है, उसकी रोटरी के बड़े नेताओं के बीच प्रतिकूल प्रतिक्रिया होने के ही संकेत मिले हैं । सुना जा रहा है कि रोटरी के बड़े नेताओं ने दिनेश शर्मा की कार्रवाई को उचित और सही नहीं माना है । अदालती आदेश आने के बाद, वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए हो रहे चुनाव को रद्द करने की बजाए स्थगित करने के फैसले से भी आभास मिलता है कि रोटरी इंटरनेशनल अदालती फैसले का अध्ययन करके अपील में जाने की सोच रहा है । इससे यह आभास मिलता है कि मामला कानूनी पचड़े में फँसेगा; जिसके चलते दिनेश शर्मा को कुछ कुछ समय के लिए गवर्नर 'होने' के सुख का अहसास भले ही हो, सचमुच गवर्नरी करने का मौका मिलेगा - इसमें संदेह है । अदालती आदेश से रोटरी इंटरनेशनल में किसी को गवर्नरी मिली हो, इसका कोई उदाहरण भी नहीं है । अंततः क्या होगा, इस बारे में अभी पक्के तौर पर कुछ कहना जल्दबाजी करना होगा; अभी लेकिन अधिकतर लोगों को यही लग रहा है कि दिनेश शर्मा की कार्रवाई ने डिस्ट्रिक्ट की बदनामी और मुसीबतों को बढ़ाने का ही काम किया है ।

Monday, May 22, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर संजीवा अग्रवाल को मिली भारी चुनावी जीत ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर मुकेश गोयल की पकड़ को एक बार फिर साबित किया

देहरादून । संजीवा अग्रवाल की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हुई भारी चुनावी जीत ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर मुकेश गोयल की पकड़ को एक बार फिर साबित किया है । इस बार के चुनाव और उसके नतीजे ने मुकेश गोयल का कद इसलिए और बढ़ाया है, क्योंकि इस बार का चुनाव सिर्फ वोट जुटाने भर का मामला नहीं था - बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी की बेहूदा और लायनिज्म-विरोधी कार्रवाइयों से निपटने का भी था । शिव कुमार चौधरी को लगता था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह मनमाने तरीके से किसी भी क्लब को बंद कर सकते हैं, किसी भी क्लब के वोट देने के अधिकार को छीन सकते हैं, चुनाव करवाने से इंकार कर सकते हैं, और न जाने क्या-क्या कर सकते हैं । शिव कुमार चौधरी ने अपनी बेहूदा और बेवकूफीभरी बातों से डिस्ट्रिक्ट में माहौल यह बनाया हुआ था कि हर किसी को शक था कि चुनाव हो भी पायेगा - होगा भी तो क्या शांतिपूर्ण व विवादहीन तरीके से हो पायेगा ? शिव कुमार चौधरी अपनी बातों और अपनी हरकतों से डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का नाम लगातार बदनाम कर रहे थे, लेकिन कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ-साथ पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल तक शिव कुमार चौधरी की हरकतों को शह दे रहे थे - दरअसल उन्हें उम्मीद थी कि शिव कुमार चौधरी की इन हरकतों के सहारे मुकेश गोयल से 'जीत' पाने की अपनी पुरानी हसरत को वह पूरा कर लेंगे । ऐसे माहौल में, स्वाभाविक रूप से मुकेश गोयल के सामने दोहरी चुनौती थी - एक तरफ तो उन्हें अपने समर्थन-आधार को एकजुट रखना था, और दूसरी तरफ उन्हें शिव कुमार चौधरी की नकारात्मक हरकतों को भी कामयाब नहीं होने देना था । मुकेश गोयल के सामने एक चुनौती और थी - वह समझ रहे थे कि शिव कुमार चौधरी सारी हरकतें उन्हें और उनके उम्मीदवार को ब्लैकमेल करने और उनसे पैसे ऐंठने के लिए कर रहे हैं; इसलिए उन्हें खुद को और अपने उम्मीदवार को ब्लैकमेलिंग से भी बचाना था ।
मुकेश गोयल को बहुआयामी चुनौती से निपटने में जो सफलता मिली है, उसमें विनय मित्तल की संलग्नता और सक्रियता को खासतौर से पहचाना गया है और कई लोगों ने विनय मित्तल को डिस्ट्रिक्ट के एक हरफनमौला नेता के रूप में चिन्हित किया है । अभी तक विनय मित्तल को लोग एक अच्छे कार्यकर्त्ता के रूप में तो मानते/पहचानते रहे हैं, लेकिन उन्हें लीडर मानने में लोगो को संकोच रहा है । लोगों का मानना/कहना रहा कि विनय मित्तल में जो अतिरिक्त विनयशीलता है, वह उनके लीडर बनने में सबसे बड़ी बाधा है । उनके शुभचिंतकों का भी मानना/कहना रहा कि विनय मित्तल में यदि किलर-इन्स्टिंगक्ट होती, तो वह बड़े लीडर हो सकते थे । दरअसल एक आम धारणा है कि बड़ा लीडर वही हो सकता है जो पूरी बेशर्मी के साथ किसी से भी बदतमीजी कर सकता हो और गाली-गलौच करने में सिद्धहस्त हो । लेकिन देखने में यह आया कि जिस विनयशीलता को विनय मित्तल की कमजोरी के रूप में देखा/पहचाना गया, वास्तव में वही विनयशीलता उनकी ताकत बनी । इस बार के चुनाव का सबसे बड़ा संदेश वास्तव में यही है कि किस तरह विनयशीलता ने गाली-गलौच के धुरंधर की हवा टाइट कर दी । लोगों के बीच चर्चा रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी को उनके खुद के चक्रव्यूह में फँसा देने की रणनीति विनय मित्तल की ही थी । शिव कुमार चौधरी की हरकतों को लायंस इंटरनेशनल में तरह तरह से रिपोर्ट करने/करवाने के पीछे दरअसल विनय मित्तल का ही दिमाग था - जिसके चलते लायंस इंटरनेशनल के सौ वर्षों के इतिहास में पहली बार किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को लायंस इंटरनेशनल से सीधी चेतावनी मिली - और एक से अधिक बार मिली कि चुनाव में यदि गड़बड़ी हुई तो तुम्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा दिया जाएगा ।
मुकेश गोयल खेमे को चुनावी गणित को लेकर दरअसल कोई खतरा नहीं था; उनका डर बस यह था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी कॉन्फ्रेंस को डिस्टर्ब कर सकते हैं और उस आड़ में उनके लिए मुसीबत खड़ी कर सकते हैं । इससे निपटने के लिए ही लायंस इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को शिव कुमार चौधरी की हर हरकत से अवगत कराया जाता रहा, जिससे लायंस इंटरनेशनल में शिव कुमार चौधरी की हरकतों को लेकर पूरी फाइल बन गई । इसी कारण से, लायंस इंटरनेशनल ने चुनाव में ऑब्जर्बर नियुक्त करने की माँग भी तुरंत मान ली । शिव कुमार चौधरी दरअसल यह समझ ही नहीं पाएँ कि मुकेश गोयल खेमे की तरफ से उन्हें चारों तरफ से घेर कर बाँध देने की तैयारी हो रही है, वह बेवकूफीभरी इसी ऐंठ में रहे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते वह जो चाहेंगे - वह कर लेंगे । ऑब्जर्बर के रूप में आए राजू मनवानी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में पहला काम शिव कुमार चौधरी की ऐंठ को निकालने का ही किया । कॉन्फ्रेंस में शिव कुमार चौधरी और अनीता गुप्ता की तरफ से हरकत होने की आशंका थी । राजू मनवानी ने आते ही शिव कुमार चौधरी और उनके 'साथी' गवर्नर्स को समझा दिया कि लायंस इंटरनेशनल ने उन्हें कहा है कि कॉन्फ्रेंस के होने में यदि कोई गड़बड़ी होती हुई दिखे, तो कॉन्फ्रेंस की जिम्मेदारी आप ले लेना और आप ही चुनाव करवाना । ऑब्जर्बर के रूप में राजू मनवानी के इन कड़े तेवरों को देख कर शिव कुमार चौधरी और अनीता गुप्ता की फिर चूँ करने की भी हिम्मत नहीं हुई - और चुनावी प्रक्रिया बड़े शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हुई ।
शिव कुमार चौधरी ने तकनीकी आधार पर मुकेश गोयल खेमे के कुछेक वोट कम करने की कोशिश जरूर की, लेकिन उन्हें समझा दिया गया कि इन्हीं आधारों पर उनके भी कई वोट कम होते हैं - मुकेश गोयल खेमे की जानकारी और तैयारी देख/समझ कर शिव कुमार चौधरी को जल्दी  ही समझ में आ गया कि वह एक पूरी तरह हारी हुई लड़ाई को जीतने की बेवकूफीभरी कोशिश कर रहे हैं । इसके बाद पता नहीं कैसे चमत्कार हुआ और शिव कुमार चौधरी से रूठी रूठी रहने वाली सदबुद्धि उनके पास आ फटकी - जिसके प्रभाव में शिव कुमार चौधरी ने फिर समर्पण कर देने में ही अपनी भलाई समझी । इसके बाद तो फिर चुनाव का जो नतीजा निकलना था, वही निकला । अश्वनी काम्बोज को झूठे गणित बता कर और बेसिरपैर के सब्ज़बाग दिखा कर उनके समर्थक नेताओं ने उनके पैसे पर अपनी अपनी राजनीति दिखाने/चमकाने का जुगाड़ भले ही कर लिया हो, लेकिन चुनावी नतीजे में एक बड़ी पराजय पहले से ही साफ-साफ दिख रही थी । इस निश्चित पराजय को टालने के लिए ही तो चुनाव में गड़बड़ी करने का माहौल बनाया जा रहा था - लायंस इंटरनेशनल में शिकायतें कर कर के और ऑब्जर्बर के रूप में राजू मनवानी द्वारा निभाई गई भूमिका ने लेकिन गड़बड़ी करने की संभावनाओं को ही खत्म कर दिया । अश्वनी काम्बोज और उनके नजदीकियों ने महसूस किया कि झूठी तस्वीर दिखा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी और कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें ही ठग लिया है ।

Sunday, May 21, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ को, राजेश शर्मा की मदद से वित्तीय धाँधलियाँ करने सहित अपने भाई को लाभ पहुँचाने के आरोप से बचने का विश्वास

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ की हरकतों के सामने आने से इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्य राजेश शर्मा एक बार फिर मुसीबत में घिर गए हैं । राकेश मक्कड़ पर इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए इंस्टीट्यूट के पैसे को अपने भाई के हाथों लुटवा देने का गंभीर आरोप सामने आया है - और इसी के साथ उन्हें बचाने की राजेश शर्मा की तरफ से भी सक्रियता सुनी जाने लगी है । इंस्टीट्यूट में और इंस्टीट्यूट के बाहर राजेश शर्मा की जिस तरह की सक्रियता देखने को मिलती है, और तस्वीरों में जिस तरह से इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों और इंस्टीट्यूट के बाहर के नेताओं के साथ वह कभी दाएँ तो कभी बाएँ कभी आगे तो कभी पीछे खड़े नजर आते हैं - उसके कारण उनसे ही सबसे ज्यादा उम्मीद की जाती है कि वह इंस्टीट्यूट के हितों की रक्षा में भी सबसे आगे खड़े दिखेंगे; लेकिन इंस्टीट्यूट की पहचान और प्रतिष्ठा पर जब जब आँच आती दिखी है, तब तब वह या तो गायब दिखे हैं और या इंस्टीट्यूट के लुटेरों के साथ खड़े दिखाई दिए हैं । पिछले दिनों ही जब इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की साख व प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ करते राधेश्याम बंसल, अनिल अग्रवाल, एसके गुप्ता जैसे चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के किस्से सामने आए थे - तब राजेश शर्मा न जाने कहाँ छिप गए थे; और अब जब नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ की कारस्तानी सामने आई है, तो उनके खिलाफ कार्रवाई को सुनिश्चित करवाने की बजाए राजेश शर्मा उन्हें बचाने की तरकीबें लगाते सुने जा रहे हैं ।
मामले की गंभीरता इसी बात से जाहिर है कि राकेश मक्कड़ की कारस्तानी का आरोप या खुलासा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों ने ही लगाया/किया है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के कुल तेरह सदस्यों में से छह सदस्यों ने इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में खुलासा करते हुए आरोप लगाया है कि काउंसिल की तरफ से चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में फैकल्टी नियुक्त करने के मामले में भारी बेईमानी की जा रही है, नियुक्ति के जरिए कमीशन खाया जा रहा है और चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने इंस्टीट्यूट के नियमों की अवहेलना करते हुए मनमानी शर्तों पर अपने भाई को भी फैकल्टी नियुक्त किया हुआ है । ज्ञापन में इंस्टीट्यूट के उक्त नियम को रेखांकित करते हुए - जिसके अनुसार काउंसिल के पदाधिकारी अपने रिश्तेदारों, पार्टनर्स व क्लाइंट्स को लाभ का कोई काम अलॉट नहीं कर सकते हैं - बताया गया है कि राकेश मक्कड़ ने अपने भाई राजेश मक्कड़ को काउंसिल द्वारा चलाई जा रही बहुत सी क्लासेस दी हुई हैं, और उन्हें भुगतान करने के मामले में भी नियमों व चली आ रही व्यवस्था में मनमाने तरीके से परिवर्तन किया गया है - जिसमें राजेश मक्कड़ को ज्यादा पैसा दिया जा रहा है, और काउंसिल को मिलने वाला पैसा घट गया है । आरोप यह भी है कि अधिकतर फैकल्टीज को तो फिक्स्ड अमाउंट दिया जा रहा है, लेकिन अपनी चहेती फैकल्टीज को ज्यादा पैसा दिलवाने के लिए - उनके साथ अलग तरह के कॉन्ट्रेक्ट किए गए हैं । इसके साथ-साथ, आरोप है कि चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ अपने भाई की कोचिंग को प्रमोट करने के काम में लगे हुए हैं, और इसमें वह अलग अलग तरीके से इंस्टीट्यूट के नाम को भी इस्तेमाल कर रहे हैं - और इस तरह इंस्टीट्यूट के नियम-कानूनों का उन्होंने मजाक बना कर रख दिया है । कोचिंग क्लासेस तथा काउंसिल के प्रिंटिंग व फोटोकॉपी के काम देने में भी कमीशन खाने तथा पक्षपातपूर्ण धाँधली करने के आरोप ज्ञापन में लगाए गए हैं ।
आरोपों की गंभीरता इस आरोप से लगाई/समझी जा सकती है कि कोचिंग क्लासेस में कैसे क्या हो रहा है, इस बात को काउंसिल सदस्यों से भी छिपाया जा रहा है - काउंसिल के ही छह सदस्यों का कहना है कि वह कई दिनों से पदाधिकारियों से पूछ/कह रहे हैं कि काउंसिल द्वारा चलाई जा रही कोचिंग क्लासेस में किस तरह से नियुक्तियाँ और भुगतान हुए हैं, लेकिन उन्हें जबाव नहीं दिया जा रहा है । इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट नीलेश विकमसे को संबोधित ज्ञापन में कहा गया है कि काउंसिल के अकाउंट उन्हें दिखाने/बताने से तो बचा ही जा रहा है, उनके सवालों के जबाव भी नहीं दिए जाते हैं । यहाँ तक कि पिछले कार्यकारी वर्ष के आखिरी कुछ महीनों में कार्यकारी चेयरपरसन रहीं पूजा बंसल तक से खर्चों के विवरण तथा अकाउंट छिपाए गए हैं । समझा जा सकता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन साथी पदाधिकारियों ने किस तरह से कब्जा किया हुआ है और वह मनमानी लूट-खसोट मचाए हुए हैं कि काउंसिल के दूसरे सदस्यों से ही उन्हें तथ्य छिपाने पड़ रहे हैं । चेयरमैन राकेश मक्कड़ की बेशर्मी और निर्लज्जता का आलम यह है कि अपने टीए/डीए के बिल उन्होंने नगद तक ले लिए हैं, जो काउंसिल के नियमों का खुला उल्लंघन है । इस तरह राकेश मक्कड़ को न तो चेयरमैन पद की जिम्मेदारियों का कोई अहसास है, और न चेयरमैन पद की गरिमा की ही चिंता है ।
चेयरमैन पद के साथ-साथ इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की गरिमा व प्रतिष्ठा से पूरी बेशर्मी और निर्लज्जता से खिलवाड़ करने का साहस, लोगों को लगता है कि राकेश मक्कड़ को राजेश शर्मा की शह और समर्थन के कारण ही मिल रहा है । खुद राकेश मक्कड़ ही कहते सुने गए हैं कि इंस्टीट्यूट में और या इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट से कोई उनकी चाहे कितनी ही शिकायत कर ले, सेंट्रल काउंसिल में राजेश शर्मा के होते हुए उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में राकेश मक्कड़ और उनके दो-तीन संगी-साथियों की जिस तरह की हरकतें हैं, और उनके खिलाफ जिस तरह के आरोप हैं - लोगों का मानना और कहना है कि पर्दे के पीछे से मिलने वाले किसी के समर्थन के बिना इस तरह की हरकतें कर पाना संभव ही नहीं है । कई कारणों से, उन्हें समर्थन देने वाले पर्दे के पीछे के व्यक्ति को राजेश शर्मा के रूप में पहचाना और रेखांकित किया जाता है । राकेश मक्कड़ कई मौकों पर जिस तरह से राजेश शर्मा के समर्थन की बात खुद भी कहते हैं, उससे लोगों के बीच बनने वाली धारणा और मजबूत ही होती है । काउंसिल के ही छह सदस्यों द्वारा की गई शिकायत के बावजूद, राकेश मक्कड़ यदि निश्चिन्त नजर आ रहे हैं, और कह/बता भी रहे हैं कि राजेश शर्मा के होते हुए उनके खिलाफ की गयी शिकायत से उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा - तो यह बात राजेश शर्मा के लिए भी मुसीबत बढ़ाने वाली है ।

Saturday, May 20, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल के लीगल अधिकारी स्कॉट ड्रमहेलर के स्पष्टीकरण से मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के विवाद में अपनी भूमिका पर पर्दा डालने की कोशिश ने चेयरमैन जेसी वर्मा की कारस्तानी को और उभारने का ही काम किया है

नई दिल्ली । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा लायंस इंटरनेशनल के लीगल डिपार्टमेंट की सबसे बड़ी 'तोप' स्कॉट ड्रमहेलर को आगे करके इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर अपनी शीर्षासनी कलाबाजी को छिपाने की जो कोशिश कर रहे हैं, उससे अपनी स्थिति को उन्होंने और हास्यास्पद बना लिया है । उल्लेखनीय है कि जेसी वर्मा दिखाने/जताने की कोशिश तो यह करते हैं कि वह बहुत नियमानुसार काम करने वाले व्यक्ति हैं, लेकिन इस मामले में उन्होंने जिस तरह से रंग बदले हैं - उससे वह कठपुतली चेयरमैन ही साबित हुए हैं । उनके लिए फजीहत की बात यह हुई है कि इस मामले में अपने आप को पाक-साफ दिखाने की वह जितनी ज्यादा कोशिश कर रहे हैं, उतने ही ज्यादा वह इसमें फँसते जा रहे हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर सवाल उठा रहे लायन सदस्यों और पदाधिकारियों का मुँह बंद करने के लिए जेसी वर्मा ने अब स्कॉट ड्रमहेलर का एक तथाकथित स्पष्टीकरण पेश किया है, इस स्पष्टीकरण ने लेकिन जेसी वर्मा की मुश्किलों को कम करने की बजाए बढ़ा और दिया है । दरअसल स्कॉट ड्रमहेलर के इस स्पष्टीकरण में ऐसी कोई नई बात सामने नहीं आई है, जो पहले से ही लोगों की - और या खुद जेसी वर्मा की जानकारी में नहीं थी । स्कॉट ड्रमहेलर ने अपने इस स्पष्टीकरण में साफ कहा है कि मौजूदा इंटरनेशनल कॉन्स्टीट्यूशन तथा बाई-लॉज और बोर्ड पॉलिसी के अनुसार इंटरनेशनल बोर्ड के किसी सदस्य के मल्टीपल से कोई दूसरा बोर्ड का सदस्य नहीं हो सकता है ।
इसमें नई बात भला क्या है ? वास्तव में तो इसी नियम का हवाला देते हुए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में जेसी वर्मा ने इस वर्ष इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव कराने से इंकार किया हुआ था । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल की 6 से 8 मार्च के बीच शिमला में हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने मल्टीपल की रिऑर्गेनाइजेशन रिपोर्ट पेश करते हुए साफ शब्दों में बताया था कि नरेश अग्रवाल के जून 2019 तक इंटरनेशनल बोर्ड का सदस्य होने के कारण मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट नहीं दिया जा सकता है । यह बात उक्त मीटिंग के जारी किए गए मिनिट्स में भी दर्ज है । अब नियम तो जो पहले था, वही अब भी है - स्कॉट ड्रमहेलर जो नियम बता रहे हैं, उसी नियम का हवाला देते हुए ही तो जेसी वर्मा पहले बता रहे थे कि इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव नहीं हो सकता है, और अब जब चुनाव करवाया जा रहा है तब भी जेसी वर्मा स्पष्टीकरण के नाम पर उसी नियम को रेखांकित करता स्कॉट ड्रमहेलर का मेल-संदेश लोगों के मुँह पर चिपकाने की कोशिश कर रहे हैं । जेसी वर्मा की इस हरकत से ऐसा लगता है कि जैसे मल्टीपल के लायन सदस्यों और पदाधिकारियों को उन्होंने 'शिकारपुर' का समझा हुआ है ।
पहले इंकार करने - और फिर अचानक से कलाबाजी खाते हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव कराए जाने को लेकर जो भी सवाल उठ रहे हैं, उनका जबाव मल्टीपल चेयरमैन होने के नाते जेसी वर्मा को देना है; इंटरनेशनल कार्यालय से स्पष्टीकरण लेने की आड़ में वह अपनी कलाबाजी की हरकत पर पर्दा नहीं डाल सकते हैं । यह उन्हें ही बताना है कि पिछले दो महीने में जब इंटरनेशनल कॉन्स्टीट्यूशन तथा बाई-लॉज और बोर्ड पॉलिसी में कोई बदलाव नहीं हुआ है, तब मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने को लेकर उनके रवैये में ठीक शीर्षासनी बदलाव कैसे और क्यों हो गया है ? आखिर किसने उनकी गर्दन पकड़ कर उनसे यह शीर्षासन करवा दिया है, और क्यों वह इसके लिए तैयार हो गए हैं ?
मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में अचानक से इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने के फैसले को लेकर बबाल दरअसल इसलिए भी ज्यादा मचा हुआ है, क्योंकि इस अचानक लिए फैसले के बाद एक जेपी सिंह को छोड़ कर बाकी सभी उम्मीदवार - चुनावी मुकाबले से बाहर खड़े कर दिए गए हैं । इसी से लोगों के बीच संदेह पैदा हुआ है कि जेसी वर्मा की देख-रेख में यह सारी कलाबाजी जेपी सिंह को बिना चुनावी मुकाबले के इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने की कवायद का हिस्सा है । अब इसे मजाक कहा जायेगा या सोची/समझी साजिश माना जायेगा कि मल्टीपल के पदाधिकारी साठ दिन पहले तक कह रहे थे कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव नहीं होगा; और अब वह उम्मीदवारों के नामांकन इस आधार पर खारिज कर रहे हैं कि उन्होंने साठ दिन पहले अपनी उम्मीदवारी के लिए इन्टेंशन नहीं दी । दावा किया जा रहा है कि एक अकेले जेपी सिंह ने साठ दिन पहले इन्टेंशन दी थी, और इस आधार पर उनका नामांकन सही है; सवाल यह है कि साठ दिन पहले जब मल्टीपल के पदाधिकारी इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव न होने की बात कह रहे थे, तब साठ दिन पहले जेपी सिंह की इन्टेंशन वह स्वीकार क्यों कर रहे थे ? इन सवालों का जबाव मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में जेसी वर्मा को देना है; स्कॉट ड्रमहेलर को नहीं देना है - और उन्होंने दिया भी नहीं है ।
स्कॉट ड्रमहेलर ने लगता है कि समझ लिया है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर जो नाटक हो रहा है, उसके असली सूत्रधार अगले लायन वर्ष में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल हैं; इसलिए जेसी वर्मा को संबोधित मेल के अंत में उन्होंने नरेश अग्रवाल को भी मामले में घसीट लिया है । स्कॉट ड्रमहेलर का मेल-संदेश लोगों को भेज कर जेसी वर्मा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के विवाद में अपनी भूमिका पर पर्दा डालने की जो कोशिश की है, वह उल्टी ही पड़ी है - और स्टॉक ड्रमहेलर के तथाकथित स्पष्टीकरण ने जेसी वर्मा की कारस्तानी को और उभारने का ही काम किया है ।
जेसी वर्मा को संबोधित स्कॉट ड्रमहेलर का मेल-संदेश :

Friday, May 19, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को लेकर श्रीहरी गुप्ता की निश्चिंतता और एक उम्मीदवार के रूप में व्यवहार करने से बचने की उनकी कोशिशें ही उनकी मुसीबत बनीं

मेरठ । श्रीहरी गुप्ता और दीपक जैन के बीच समझौते की कोशिशों के फेल हो जाने के बाद श्रीहरी गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी मुकाबला खासी मुसीबत में फँस गया है । श्रीहरी गुप्ता के लिए मुसीबत इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि दीपक जैन की उम्मीदवारी को मेरठ के ही कुछेक पूर्व गवर्नर्स से खाद-पानी मिलता देखा/सुना जा रहा है; और समझा जा रहा है कि उनकी शह पर ही दीपक जैन ने अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने से साफ इंकार कर दिया । श्रीहरी गुप्ता के नजदीकियों को अब लग रहा है कि समझौते की बात कराने के पीछे भी मेरठ के उनके विरोधियों की एक चाल थी, जिसमें उन्हें कमजोर दिखाने का उद्देश्य छिपा हुआ था; श्रीहरी गुप्ता के नजदीकियों को अब लग रहा है कि उन्हें समझौते की बात करने के झाँसे में फँसना ही नहीं चाहिए था । मेरठ में मेरठ के पूर्व गवर्नर्स की पहल और मौजूदगी में हुई समझौते की बात में अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने को लेकर दीपक जैन के दो-टूक इंकार ने मनोवैज्ञानिक रूप से दीपक जैन की उम्मीदवारी को बल दिया है, जिसकी सीधी चोट श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर पड़ी महसूस हो रही है । मजे की बात यह है कि श्रीहरी गुप्ता के ही शुभचिंतक उनके लिए पैदा हुई मुसीबतों के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । शुभचिंतकों के ही अनुसार, मुरादाबाद में दो उम्मीदवारों के होने से श्रीहरी गुप्ता ने मेरठ में अपने समर्थन-आधार को एकजुट करने/रखने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किया; वह यह सोच कर आश्वस्त रहे कि मेरठ में तो उन्हें एकतरफा समर्थन अपने आप मिल जायेगा । पिछले वर्षों में यह देखा भी गया है कि मेरठ से यदि एक उम्मीदवार रहा है, तो चाहे/अनचाहे उसे मेरठ के सभी पूर्व गवर्नर्स का समर्थन मिल जाता रहा है । श्रीहरी गुप्ता के तो फिर अधिकतर पूर्व गवर्नर्स के साथ अच्छे संबंध रहे हैं, और उन्होंने अधिकतर पूर्व गवर्नर्स के लिए काम किया हुआ है । इसलिए श्रीहरी गुप्ता कुछ ज्यादा ही आश्वस्त रहे - और मेरठ में एक उम्मीदवार के रूप में 'व्यवहार' करने/रखने से बचते रहे । मेरठ के कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने तो यहाँ तक महसूस किया और कहा कि श्रीहरी गुप्ता तो चुनाव होने और नतीजा आने से पहले ही अपने आप को गवर्नर मान बैठे हैं ।
दीपक जैन की उम्मीदवारी की चर्चाओं ने जब श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी के सामने खतरे की घंटी बजाना शुरू की, तब भी श्रीहरी गुप्ता निश्चिन्त बने रहे और यह सोचते/कहते/बताते रहे कि दीपक जैन को डिस्ट्रिक्ट में जानता ही कौन है ? दरअसल श्रीहरी गुप्ता इस खतरे की संभावना की कल्पना भी नहीं कर सके कि दीपक जैन को डिस्ट्रिक्ट में भले ही कोई न जानता हो, लेकिन मेरठ में अपने व्यवहार और अपने रवैये से वह जिन लोगों को अपना विरोधी बना रहे हैं, उन्होंने दीपक जैन को यदि 'गोद' ले लिया, तब क्या होगा ? और अब जब यही हुआ है, तो श्रीहरी गुप्ता और उनके समर्थक हक्के-बक्के रह गए हैं । मेरठ में ही श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति जब विरोध पैदा हो गया है, और कुछेक पूर्व गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी के खिलाफ सक्रिय सुने/देखे जा रहे हैं - तब उनके लिए हालात सचमुच चुनौतीपूर्ण हो गए हैं । मेरठ में श्रीहरी गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही मानना और कहना है कि दूसरी बड़ी गलती उन्होंने दीपक जैन के साथ समझौते की बात करने के लिए तैयार होने की कर दी - दरअसल इससे श्रीहरी गुप्ता ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी कमजोरी को जाहिर और साबित कर दिया । वास्तव में, इससे लोगों के बीच संदेश यह गया कि श्रीहरी गुप्ता चाहते हैं कि दीपक जैन अपनी उम्मीदवारी छोड़ दें, ताकि वह आराम से बिना कुछ किए-धरे चुनाव जीत जाएँ । मेरठ में श्रीहरी गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों का भी मानना और कहना है कि श्रीहरी गुप्ता के लिए चुनौती दीपक जैन नहीं, बल्कि उनका खुद का व्यवहार और रवैया है । लोगों का कहना है कि श्रीहरी गुप्ता यदि एक उम्मीदवार के रूप में 'सोचना' और व्यवहार करना शुरू करें, और इस बात पर ध्यान दें कि एक उम्मीदवार को समर्थन जुटाने के लिए किस तरह की 'फील्डिंग' सजानी/जमानी होती है - तो अभी भी वह हालात को अपने पक्ष में कर सकते हैं ।
राजकमल गुप्ता पर दीपक बाबु के दिशा-निर्देशन में और दीपक जैन पर योगेश मोहन गुप्ता के दिशा-निर्देशन में वोटों की खरीद-फरोख्त करने के काम में जुटने के आरोपों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी तो आई है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों का एक बड़ा तबका राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की इस तरह की कोशिशों को डिस्ट्रिक्ट के हक़ में नहीं मान/देख रहा है । इसी नाते से लोगों का मत है कि श्रीहरी गुप्ता और या चक्रेश लोहिया में से ही किसी को गवर्नर होना चाहिए । दरअसल यही दोनों पिछले वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट की कमजोरियों और खूबियों को अच्छे से जानते/समझते/पहचानते हैं । लोगों को लगता है कि अपने अपने व्यवहार के चलते श्रीहरी गुप्ता और चक्रेश लोहिया समय समय पर आलोचनाओं का शिकार भले ही होते रहे हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट इस समय जिस मुकाम पर है - वहाँ उसे श्रीहरी गुप्ता और या चक्रेश लोहिया जैसे अनुभवी लोग ही नेतृत्व के लिए चाहिए; राजकमल गुप्ता और दीपक जैन के मामले में तो 'बंदर के हाथ में उस्तरा पकड़ाने' जैसा मामला हो जायेगा । सुनील गुप्ता और दीपक बाबु जैसे अनुभवहीन ही नहीं, बल्कि खुन्नसी किस्म के लोगों को नेतृत्व सौंपने की सजा डिस्ट्रिक्ट पहले ही बहुत भुगत चुका है । गौर करने वाली बात यह है कि राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की उम्मीदवारी उनकी नेतृत्व की स्वाभाविक आकांक्षा के चलते नहीं आई है, बल्कि उनके 'उन' नेताओं की खुन्नसी राजनीति के चलते प्रकट हुई है - जो डिस्ट्रिक्ट को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार माने/पहचाने और चिन्हित किए गए हैं । यही कारण है कि राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की तरफ से वोटों की खरीद-फरोख्त करने के आरोप सुने जाने लगे हैं । वोटों की खरीद-फरोख्त के जरिए चुनाव जीतने की राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को रोचक तो बना दिया है, लेकिन साथ ही डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को फिर से पहले वाली दलदल की ओर धकेलना भी शुरू कर दिया है। पता नहीं, डिस्ट्रिक्ट 3100 को अभी और क्या क्या देखना है ?

Thursday, May 18, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के चुनाव में मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद जेके गौड़ का हुआ बुरा हाल, आलोक गुप्ता के लिए वरदान बना

गाजियाबाद । मुकेश अरनेजा के समर्थन से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का चुनाव जीतने की तैयारी करने वाले जेके गौड़ का जो हाल हुआ है, उसने अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में आलोक गुप्ता को बड़ी राहत दी है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ तो आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध की बातें कर ही रहे थे, मुकेश अरनेजा ने भी आशीष मखीजा की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर आलोक गुप्ता को धोखा देने की तैयारी कर ली थी । आलोक गुप्ता को धोखा देने की मुकेश अरनेजा की हरकत से आलोक गुप्ता के प्रति लोगों के बीच हालाँकि हमदर्दी सी पैदा हुई, और इस हमदर्दी के चलते मुकेश अरनेजा द्वारा दिया गया धोखा आलोक गुप्ता की मदद करता हुआ ही नजर आ रहा था । फिर भी यह सिर्फ भावना की बात थी - और हमदर्दी की इस भावना को बचा कर रख पाना और इसे बढ़ाते हुए समर्थन व वोट में तब्दील करना आलोक गुप्ता के लिए बड़ी चुनौती का काम होता । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का चुनाव यदि कहीं जेके गौड़ जीत गए होते, तो वह मुकेश अरनेजा के साथ मिल कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति को अपने नियंत्रणानुसार चलाने की ताकत पाते । उस स्थिति में आलोक गुप्ता को ही सीधा और तगड़ा घाटा होना था - लेकिन जेके गौड़ की चुनावी हार ने, और बहुत ही बुरी तरह से हुई इस चुनावी हार ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति में जेके गौड़ और मुकेश अरनेजा के पास कोई विकल्प नहीं छोड़े हैं; और उन दोनों की यह विकल्पहीनता आलोक गुप्ता के लिए तो जैसे वरदान बन कर आई है ।
मुकेश अरनेजा के खुल्लमखुल्ला समर्थन के बावजूद जेके गौड़ का जो बुरा हाल हुआ है, उसे देख कर सबसे तगड़ा झटका तो आशीष मखीजा को लगा होगा; और समझा जाता है कि जेके गौड़ का हुआ हाल देख कर आशीष मखीजा कम-अस-कम मुकेश अरनेजा के भरोसे तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में शामिल नहीं होंगे । आशीष मखीजा की गतिविधियों से किसी को भी ऐसा आभास भी नहीं मिला है कि अपनी उम्मीदवारी को लेकर उन्हें और कोई सहारा भी है; ऐसे में, यही माना जा रहा है कि उनकी उम्मीदवारी आई तो थी सभी को चौंकाते हुए - लेकिन जाएगी वह सभी के जानते/बूझते हुए, और तब मुकेश अरनेजा तो राजनीतिक रूप से 'अनाथ' ही हो जायेंगे । लेकिन लोग जानते हैं कि मुकेश अरनेजा की रगो में खून नहीं राजनीति बहती है, इसलिए 'राजनीतिक अनाथ' बन कर तो वह नहीं ही रहेंगे - और यह 'काम' भी मुकेश अरनेजा ही कर सकते हैं कि जिस बेशर्मी के साथ उन्होंने आलोक गुप्ता को धोखा देकर आशीष मखीजा की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी, उसी बेशर्मी के साथ वह आलोक गुप्ता के पास वापस लौट सकते हैं । हाल ही में संपन्न हुई असेम्बली में मुकेश अरनेजा को लोगों ने आलोक गुप्ता के साथ जिस तरह 'चिपकने' की कोशिश करते हुए देखा, उससे अंदाज लगाया गया कि मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के पास लौटने की तैयारी शुरू भी कर दी है । लगता है कि जेके गौड़ के बुरे हाल की खबर मिलने से पहले ही, आशीष मखीजा के ढीले-ढाले रवैये को देखते हुए मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के पास लौटने की जरूरत को पहचान/समझ लिया होगा । अब, जबकि जेके गौड़ के बुरे चुनावी हाल की खबर चारों तरफ फैल गई है - तब मुकेश अरनेजा को उक्त पहचान व समझ और भी ज्यादा हो गई होगी ।
आलोक गुप्ता के लिए यह स्थिति दोहरे फायदे का मौका बनाती है - दरअसल अब जब मुकेश अरनेजा उनके समर्थन में फिर से आते हैं, तो मुकेश अरनेजा के साथ उनके संबंध 'कुछ पास, कुछ दूर' वाले ही होंगे; ऐसे में, आलोक गुप्ता उनकी बदनामी के कारण होने वाले नुकसान से भी बच सकेंगे, और उनके कारण होने वाले फायदे को भी उठा सकेंगे । दीपक गुप्ता ने भी इसी तरकीब से इस वर्ष अपने लिए मौका बनाया था; उन्होंने चुनाव से करीब दो महीने पहले ही मुकेश अरनेजा से अनुरोध किया था कि मुझ पर एक अहसान करो, और वह यह कि मुझ पर कोई अहसान मत करो - और मेरे चुनाव प्रचार से दूर रहो । दीपक गुप्ता के चुनाव प्रचार से दूर रहने के कारण लोगों के बीच यह आशंका भी पैदा हुई थी कि मुकेश अरनेजा ने कहीं दीपक गुप्ता का साथ छोड़ तो नहीं दिया है । दीपक गुप्ता के रवैये से मुकेश अरनेजा खिन्न तो थे, पर खिन्नता में बेचारे करते भी क्या ? जेके गौड़ अपने चुनाव प्रचार से मुकेश अरनेजा को छिपा कर नहीं सके, और देखिये - किस गति को प्राप्त हुए । आशीष मखीजा के नाम पर मुकेश अरनेजा यदि आलोक गुप्ता के साथ धोखाधड़ी नहीं करते, तो हो सकता है कि आलोक गुप्ता के लिए उनसे दूरी बनाना/रखना संभव नहीं होता; मुकेश अरनेजा की धोखाधड़ी के कारण उनके और आलोक गुप्ता के बीच जो खाई बनी है, उसके जल्दी से भर पाने की उम्मीद तो नहीं ही है - और मुकेश अरनेजा के इस खाई को भरने की कोशिशों के बावजूद खाई के बने रहने की स्थिति आलोक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में दोहरा फायदा उठाने का मौका देती है ।
मुकेश अरनेजा के संग-साथ के कारण जेके गौड़ का जो चुनावी हाल हुआ है, उसमें आलोक गुप्ता को एक फायदा सतीश सिंघल की तरफ से भी हुआ है । आशीष मखीजा को लेकर मुकेश अरनेजा ने जिस नाटक पर से पर्दा हटाया था, उस नाटक में बाद में सतीश सिंघल के भी जुड़ने का अनुमान लगाया गया था । लेकिन आशीष मखीजा के ढीले पड़ने तथा जेके गौड़ का बुरा हाल होने ने सतीश सिंघल को सावधान किया है - और उन्होंने अपने आप को मुकेश अरनेजा के साथ आगे बढ़ने से रोका है । इस पूरी प्रक्रिया में सतीश सिंघल की आलोक गुप्ता पर निर्भरता और बढ़ी है, जिसका नजारा हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में ही लोगों को देखने को मिला । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में कई मौकों पर ऐसे 'फ्रेम' बने जबकि गवर्नर्स के साथ - एक अकेले आलोक गुप्ता ही खड़े दिखे, जो अभी गवर्नर वाली कैटेगरी में नहीं हैं । (इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित तस्वीर पर गौर करें !) वास्तव में, डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के हर मौके और हर कोने में आलोक गुप्ता या उनकी छाप को पहचाना गया । लोगों के बीच चर्चा भी रही कि आलोक गुप्ता का सहयोग न मिला होता, तो सतीश सिंघल तो यह असेम्बली कर ही न पाते । आलोक गुप्ता ने भी मौके का पूरा पूरा फायदा उठाया, और डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में आए/पहुँचे हर रोटेरियन को अपनी उपस्थिति और महत्ता का गहरा अहसास कराने का हर संभव प्रयास किया । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के चुनाव में मुकेश अरनेजा के समर्थन के बावजूद जेके गौड़ का जो बुरा हाल हुआ है, उसके कारण सतीश सिंघल अकेले से और पड़ गए हैं - जिसके चलते आलोक गुप्ता पर उनकी निर्भरता और बढ़ेगी; यह स्थिति आलोक गुप्ता के लिए चुनौतीपूर्ण तो होगी, पर इस स्थिति में उनके लिए फायदे उठाने के मौके भी बहुत होंगे ।

लायंस इंटरनेशनल की तरफ से ऑब्जर्बर के रूप में डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आ रहे पूर्व डायरेक्टर राजू मनवानी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को निष्पक्ष तरीके से संपन्न कराने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की मनमानियों को सचमुच रोक सकेंगे क्या ?

नई दिल्ली । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर राजू मनवानी डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में ऑब्जर्बर बन कर क्या आ रहे हैं, डिस्ट्रिक्ट 321 वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी से मल्टीपल ड्यूज और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन तथा एमजेएफ के पैसे बसूलने की जिम्मेदारी उन पर थोपने की कोशिशें और शुरू हो गईं हैं । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के ही अधिष्ठापन कार्यक्रम में जब वह मुख्य अतिथि बन कर आए थे, तब भी डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में शिव कुमार चौधरी की ठगी के शिकार लायंस सदस्यों ने अपने अपने पैसे शिव कुमार चौधरी से वापस दिलवाने के लिए उनसे गुजारिश की थी । उस समय मामला व्यक्तियों का था, इसलिए राजू मनवानी पचड़े में फँसने से बच गए थे, इस बार लेकिन मामला लायनिज्म का है; इस बार शिव कुमार चौधरी द्वारा व्यक्तियों को नहीं - बल्कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन को ही ठग लेने का मामला है । शिव कुमार चौधरी को मल्टीपल और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के करीब 19 लाख रुपए देने हैं, जबकि डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में कुल करीब सवा लाख रुपए ही बचे हुए हैं । डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में करीब 55 लाख रुपए जमा हुए थे, जिसमें से करीब 54 लाख रुपए शिव कुमार चौधरी ठिकाने लगा चुके हैं । मल्टीपल ड्यूज और लायंस इंटनेशनल फाउंडेशन का जो पैसा डिस्ट्रिक्ट अकाउंट में जमा हुआ, वह खर्च हो चुका है - लेकिन वहाँ नहीं पहुँचा, जहाँ उसे पहुँचना चाहिए था । डिस्ट्रिक्ट अकाउंट से जबकि किसी विशाल चौधरी को तथा एक वस्त्र भंडार को लाखों रुपए दिए गए हैं । राजू मनवानी के लिए मजेदार सीन बना है - जब वह डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के अधिष्ठापन समारोह में आए थे, तब शिव कुमार चौधरी की ठगी के शिकार लायन सदस्यों को उनसे उम्मीद बनी थी; और अब जब वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आ रहे हैं, तब लायंस इंटरनेशनल उनसे अपने ड्यूज बसूलवाने की उम्मीद कर रहा है ।
उल्लेखनीय है कि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के पदाधिकारियों ने जब जब अपने अपने बकाए माँगे - तब तब शिव कुमार चौधरी तरह तरह की बहानेबाजी करते हुए उन्हें 'गोली' देते रहे । हद की बात तो यह हुई कि जिन भी लोगों ने शिव कुमार चौधरी को उक्त बकाए चुकाने का सुझाव दिया, वह शिव कुमार चौधरी की बदतमीजी का शिकार हुआ । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना के साथ तो शिव कुमार चौधरी ने सार्वजनिक रूप से रिकॉर्डेड बदतमीजी की । 'गोली' और 'गाली' के जरिए शिव कुमार चौधरी अभी तक भी मल्टीपल और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन का बकाया देने/चुकाने से बचे हुए हैं । शिव कुमार चौधरी से अपने अपने ड्यूज और बकाया बसूलने के लिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के पदाधिकारियों की उम्मीद अब राजू मनवानी पर आ टिकी है । उन्हें लगता है कि ऑब्जर्बर की अपनी भूमिका को निभाते हुए राजू मनवानी उनके ड्यूज शिव कुमार चौधरी से बसूलवा सकते हैं । उन्हें शायद यह पता नहीं है कि पैसों की ठगी के मामले में शिव कुमार चौधरी की कुख्याति ऐसी है कि उनसे अपने पैसे वापस ले पाना रेत से तेल निकालने जैसा मामला है । यह जरूर है कि उनकी कुख्याति के बावजूद यह शायद ही किसी ने सोचा होगा कि व्यक्तियों को ठगते ठगते शिव कुमार चौधरी लायंस इंटरनेशनल को भी ठग लेंगे ।
मजे की बात यह है कि ऑब्जर्बर के रूप में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजू मनवानी के आने की खबर से खुद शिव कुमार चौधरी भी काफी खुश हैं । अपने नजदीकियों से उन्होंने कहा/बताया है कि राजू मनवानी तो उनका यार है, और ऑब्जर्बर के रूप में उनके आने से उन लोगों को झटका लगेगा - जिन्होंने ऑब्जर्बर की माँग की थी । शिव कुमार चौधरी लोगों को राजू मनवानी के साथ अपनी नजदीकियत के किस्से सुना सुना कर विश्वास दिला रहे हैं कि ऑब्जर्बर के रूप में राजू मनवानी के रहते/होते हुए उन्हें वह सब करने का पर्याप्त मौका मिलेगा, जो कुछ वह करना चाहते हैं । लोगों को लगता है कि शिव कुमार चौधरी तरह तरह की हरकतों और कार्रवाइयों से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में होने वाले सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश करते हुए दोनों उम्मीदवारों से पैसे ऐंठने की जुगत में हैं । इसके लिए हालाँकि वह लायंस इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन के पदाधिकारी से लताड़ भी खा चुके हैं, लेकिन फिर भी वह बाज नहीं आ रहे हैं । लायंस इंटरनेशनल के लीगल डिवीजन के पदाधिकारी ने उन्हें मेल लिख कर साफ साफ बता दिया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में निष्पक्ष चुनाव करवाना उनकी जिम्मेदारी है, जिसमें उनके फेल हो जाने पर चुनाव को रद्द करने के साथ-साथ उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद से हटाया भी जा सकता है । लायंस इंटरनेशनल के लीगल अधिकारी के मेल-संदेश की पृष्ठभूमि में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी के द्वारा बेईमानी करने की आशंका रखने वालों की पहली जीत इसी में देखी जा सकती है कि उनकी माँग पर लायंस इंटरनेशनल ने चुनाव की निगरानी के लिए ऑब्जर्बर की नियुक्ति कर दी है ।
इस तरह, ऑब्जर्बर के रूप में डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आ रहे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर राजू मनवानी के सामने अलग अलग लोगों की उम्मीदों से निपटने की गंभीर चुनौती आ खड़ी हुई है : मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों को उनसे उम्मीद है कि वह मल्टीपल ड्यूज और लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन का पैसा शिव कुमार चौधरी की गाँठ से निकलवाने का काम करवायेंगे; शिव कुमार चौधरी को उम्मीद है कि राजू मनवानी चूँकि उनके यार हैं, इसलिए उनकी हरकतों के प्रति अपनी आँखें बंद रखेंगे और उन्हें मनमानी करने देंगे; डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के लोगों को उम्मीद है कि राजू मनवानी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को निष्पक्ष तरीके से संपन्न करवाने का काम करेंगे, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी को किसी भी स्तर पर किसी भी तरह की मनमानी नहीं करने देंगे । देखना दिलचस्प होगा कि राजू मनवानी आखिर किसकी उम्मीदों पर खरे उतरते हैं और उन्हें पूरा करते हैं ।
लायंस इंटरनेशनल के लीगल पदाधिकारी का शिव कुमार चौधरी को चेतावनी देता मेल-संदेश :

Tuesday, May 16, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080, यानि राजा साबू के डिस्ट्रिक्ट में सीओएल के चुनाव में पाँच उम्मीदवारों में चौथे नंबर पर रहने के नतीजे के जरिए बदनाम करने के लिए मधुकर मल्होत्रा ने जितेंद्र ढींगरा को निशाने पर लिया

चंडीगढ़ । सीओएल के चुनावी मुकाबले में मिली बहुत ही बुरी चुनावी हार का फ्रस्ट्रेशन निकालने के लिए मधुकर मल्होत्रा ने जितेंद्र ढींगरा को जिस तरह से निशाना बनाया है, उससे डिस्ट्रिक्ट में लोगों को महसूस हो रहा है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जितेंद्र ढींगरा को मिली जीत को मधुकर मल्होत्रा अभी तक भी जैसे हजम नहीं कर पा रहे हैं । मधुकर मल्होत्रा का नया आरोप यह है कि सीओएल के चुनाव में पाँच उम्मीदवारों में उनके चौथे नंबर पर आने की बात डिस्ट्रिक्ट में फैला कर उन्हें बदनाम करने की कोशिशों के पीछे जितेंद्र ढींगरा हैं । उल्लेखनीय है कि सीओएल के चुनाव में पाँच उम्मीदवारों के बीच मधुकर मल्होत्रा के चौथे नंबर पर आने की बात का हवाला देते हुए डिस्ट्रिक्ट में मधुकर मल्होत्रा की भारी फजीहत हो रही है । मधुकर मल्होत्रा की यह फजीहत इसलिए हो रही है क्योंकि वह अपने आपको डिस्ट्रिक्ट के एक बड़े नेता के रूप में प्रोजेक्ट करते हैं, और जताते रहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट में राजेंद्र उर्फ राजा साबू के बाद उन्हीं का ज्यादा प्रभाव है और उन्हीं की चलती है । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में भी वह अपने प्रभाव का बखान करते रहते हैं, और लोगों को बताते/जताते रहते हैं कि वह कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में कोई फैसला करवाना चाहते हैं - तो आसानी से करवा लेते हैं । किंतु अभी पिछले सप्ताह ही सीओएल के लिए कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में जो चुनाव हुआ, उसमें पोल खुली कि 'वहाँ' तो मधुकर मल्होत्रा को इक्का-दुक्का लोगों का ही समर्थन है - और उनसे ज्यादा समर्थन तो रंजीत भाटिया, जीके ठकराल और मनमोहन सिंह के पास है । सीओएल का चुनाव मनमोहन सिंह जीते हैं । चुनावी नतीजे के विस्तृत विवरण को लेकर लोगों को कोई आधिकारिक सूचना तो नहीं मिली है, लेकिन अपने अपने स्रोतों से मिली जानकारियों के हवाले से लोगों के बीच चर्चा है कि दूसरे नंबर पर जीके ठकराल तथा तीसरे नंबर पर रंजीत भाटिया रहे । मधुकर मल्होत्रा चौथे नंबर पर रहे । सीओएल के चुनावी नतीजे के इस विस्तृत विवरण के चलते लोगों के बीच मधुकर मल्होत्रा की भारी किरकिरी हो रही है । 
मधुकर मल्होत्रा लोगों के बीच हो रही अपनी इस किरकिरी के लिए जितेंद्र ढींगरा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका कहना है कि  कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के बीच होने वाला सीओएल का चुनाव एक बहुत छोटा चुनाव होता है, जिसमें नतीजा सिर्फ यह सामने आता है कि जीता कौन - दूसरे और या चौथे और या आखिरी नंबर पर कौन रहा, इस बात का महत्त्व नहीं होता है । उनकी शिकायत है कि लेकिन इस बार जिस तरह से लोगों के बीच इस बात को प्रचारित किया जा रहा है कि दूसरे, तीसरे और या चौथे नंबर पर कौन रहा, उसके पीछे वास्तव में लोगों के बीच उन्हें बदनाम करने की साजिश है । मधुकर मल्होत्रा ने अपने नजदीकियों के बीच साजिशकर्ता के रूप में जितेंद्र ढींगरा का नाम लिया है । उनका कहना रहा है कि अभी तक कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में हुई बातें लोगों के बीच नहीं आती थीं, और डिस्ट्रिक्ट में कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की एक गरिमा व प्रतिष्ठा रही है - जिसे लेकिन अब धूल में मिलाने की कोशिश हो रही है । कहीं इशारों में तो कहीं सीधा नाम लेकर मधुकर मल्होत्रा ने इस कोशिश के पीछे जितेंद्र ढींगरा को चिन्हित किया है । मधुकर मल्होत्रा ने कुछेक लोगों के बीच यहाँ तक कहा/बताया कि जितेंद्र ढींगरा के 'इस' व्यवहार की आशंका के कारण ही पहले उन्हें सीओएल के लिए डिस्ट्रिक्ट के प्रतिनिधि का चुनाव करने वाली कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में नहीं बुलाया जा रहा था; मधुकर मल्होत्रा के ही अनुसार, कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्य लेकिन अब महसूस कर रहे हैं कि जितेंद्र ढींगरा को उक्त मीटिंग में शामिल करने का फैसला गलत ही साबित हुआ है ।
मधुकर मल्होत्रा की इस तरह की बातों पर जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों की तरफ से भी तीखा जबाव सुनने को मिला है, जिसमें कहा/बताया जा रहा है कि उक्त मीटिंग में जितेंद्र ढींगरा को शामिल कर किसी ने भी उन पर कोई अहसान नहीं किया है - कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल होना जितेंद्र ढींगरा का अब अधिकार है । कहा/बताया जा रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल की जिस व्यवस्था और उसके जिस नियम के अनुसार, मधुकर मल्होत्रा को कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल होने का अधिकार है, वही व्यवस्था और नियम जितेंद्र ढींगरा को भी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में शामिल होने का अधिकार देता है - मधुकर मल्होत्रा जितनी जल्दी इस सच्चाई को 'स्वीकार' कर लेंगे, उतनी ही जल्दी वह टेंशन से मुक्त हो जायेंगे; अन्यथा वह फ्रस्ट्रेशन का ही शिकार रहेंगे । मजे की बात है कि मधुकर मल्होत्रा ने जितेंद्र ढींगरा को लेकर जो और जिस तरह की बातें की हैं, उन पर जितेंद्र ढींगरा ने तो चुप्पी बनाए रखी है - लेकिन उनके नजदीक के कुछेक लोग खासे मुखर हैं । इन्हीं लोगों की तरफ से कहा/पूछा जा रहा है कि उन्हें नहीं पता कि जितेंद्र ढींगरा के खिलाफ मधुकर मल्होत्रा के जो आरोप हैं, उनमें कितनी क्या सच्चाई है; मधुकर मल्होत्रा को लेकिन यह बताना चाहिए कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में जो होता है, और या सीओएल के चुनाव में जो हुआ उसके बारे में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को जानने का हक आखिर क्यों नहीं है ? मधुकर मल्होत्रा इन बातों को छिपा कर क्यों रखना चाहते हैं ? जितेंद्र ढींगरा के इन्हीं नजदीकियों का कहना है कि मधुकर मल्होत्रा की समस्या वास्तव में यह है कि उन्हें यह बात हजम नहीं हो पा रही है कि उनके न चाहने और उनके विरोध करने के बावजूद जितेंद्र ढींगरा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुन लिए गए हैं और दो वर्ष बाद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होंगे ।
उल्लेखनीय है कि इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के दस दिन पहले तक मधुकर मल्होत्रा यह दावा कर रहे थे कि वह किसी भी कीमत पर जितेंद्र ढींगरा का चयन नहीं होने देंगे । चयन/चुनाव का दिन नजदीक आते आते मधुकर मल्होत्रा ने जब माहौल को भाँपा/पहचाना और यह समझ लिया कि वह चाहें जो कर लें - जितेंद्र ढींगरा को चयनित होने से नहीं रोक सकेंगे, रोकने की कोशिश करेंगे तो अपनी ही फजीहत करवायेंगे; लिहाजा मधुकर मल्होत्रा ने अपने आपको चुनावी प्रक्रिया से पीछे कर लिया । जितेंद्र ढींगरा के चयन/चुनाव को मधुकर मल्होत्रा रोक तो नहीं पाए, लेकिन जितेंद्र ढींगरा के चयन/चुनाव को स्वीकार कर पाना भी उनके लिए मुश्किल हुआ । पिछले दिनों कई एक मौकों पर उनका 'दर्द' छलकता हुआ दिखा भी । उनका दर्द कितना गहरा है, इसे इस बात से समझा/पहचाना जा सकता है कि चंडीगढ़ में जितेंद्र ढींगरा के स्वागत में जो समारोह हुआ, उसमें मधुकर मल्होत्रा शामिल तो हुए - लेकिन वहाँ उन्होंने जो कुछ कहा उसमें जितेंद्र ढींगरा के लिए कोई अच्छी बात कहने की बजाए अपनी पीड़ा और नाराजगी को ही जाहिर किया । उनकी बातें सुनकर वहाँ मौजूद लोगों ने कहा भी कि जितेंद्र ढींगरा की जीत से मधुकर मल्होत्रा को कुछ ज्यादा ही चोट लग गई लगती है । सीओएल के चुनाव में उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले पाँच उम्मीदवारों में चौथे नंबर पर रहने के नतीजे ने मधुकर मल्होत्रा की 'उस' चोट को लगता है कि और गहरा कर दिया है - जिसकी पीड़ा में निकली आह में उन्होंने जितेंद्र ढींगरा को निशाना बना लिया है ।
मधुकर मल्होत्रा को पिछले कुछ दिनों में सिर्फ जितेंद्र ढींगरा की चुनावी सफलता से ही चोट नहीं लगी है, बल्कि उनके प्रति राजा साबू के रवैये में आए बदलाव से भी गहरा झटका लगा है । मधुकर मल्होत्रा अपने आप को राजा साबू के बड़े खासमखास बताते/जताते/दिखाते रहे हैं, लेकिन प्रवीन चंद्र गोयल के साथ डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने का जो मौका उन्हें राजा साबू के कारण ही नहीं मिला, उससे वह खुद भी बहुत चक्कर में पड़े - और उनके लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह समझाना मुश्किल हुआ कि खासमखास होने के बावजूद राजा साबू ने उनके साथ ऐसा क्यों किया ? सीओएल के चुनाव के लिए भी राजा साबू का समर्थन मधुकर मल्होत्रा की बजाए रंजीत भाटिया के साथ सुना गया । मधुकर मल्होत्रा के लिए राहत की बात यह जरूर रही कि राजा साबू के समर्थन के बावजूद रंजीत भाटिया को भी कॉलिज ऑफ गवर्नर्स में कोई खास समर्थन नहीं मिला, और उनकी तीसरी पोजीशन रही - मधुकर मल्होत्रा के लिए लेकिन मुसीबत की बात यह हुई है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच राजा साबू के साथ उनकी तथाकथित नजदीकियत की जो पोल खुली है, उससे अपनी स्थिति में सुधार करने/लाने की उनकी उम्मीदें और ध्वस्त हो गई हैं । इससे पैदा हुए फ्रस्ट्रेशन में जितेंद्र ढींगरा के प्रति गुस्से से भरे उनके डिब्बे का ढक्कन खुल गया है, और सीओएल के चुनावी नतीजे के डिटेल्स लोगों के बीच जाहिर करने का आरोप लगाते हुए उन्होंने जितेंद्र ढींगरा पर उन्हें बदनाम करने का आरोप मढ़ना शुरू कर दिया है । हालाँकि उनकी तरफ से इस सवाल का जबाव सुनने को नहीं मिला है कि डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह बात आखिर क्यों नहीं जाननी चाहिए कि सीओएल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने वाले उम्मीदवारों में कौन किस नंबर पर रहा ?

Sunday, May 14, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव पर अवैध और मनमाने तरीके से होने का आरोप लगा और इसके पीछे नरेश अग्रवाल की मिलीभगत को देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए होने वाला चुनाव क्या अवैध रूप से किया/करवाया जा रहा है - जो कि लायंस इंटरनेशनल के नियमों की खुल्लम-खुल्ला अवहेलना है ? यह सवाल मल्टीपल के कई पदाधिकारियों और नेताओं को मथ रहा है । इससे भी ज्यादा महत्त्व का सवाल यह खड़ा हुआ है कि इस मामले में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल की भी मिलीभगत है क्या ? क्योंकि कोई भी इस बात पर तो यकीन नहीं ही करेगा कि नरेश अग्रवाल को विश्वास में लिए बिना - और या उनकी अनुमति लिए बिना तो इतना बड़ा 'खेल' नहीं ही हो रहा होगा । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल की 6 से 8 मार्च के बीच शिमला में हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल ने मल्टीपल की रिऑर्गेनाइजेशन रिपोर्ट पेश करते हुए साफ शब्दों में बताया था कि नरेश अग्रवाल के जून 2019 तक इंटरनेशनल बोर्ड का सदस्य होने के कारण मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट नहीं दिया जा सकता है । यह बात उक्त मीटिंग के जारी किए गए मिनिट्स में भी दर्ज है । इसके बावजूद मल्टीपल की चौथी कैबिनेट मीटिंग के साथ ही होने वाली मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट देने की तैयारी की जा रही है । आरोप यह सुना जा रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों को धोखे में रखकर उन्हें जेपी सिंह के 'सामने' से हटाने और इस तरह जेपी सिंह के लिए मुकाबले को आसान बनाने की खातिर यह 'खेल' रचा गया है । 'नोटिस ऑफ इन्टेंशन' तथा नोमीनेशन के नियमों का हवाला देते हुए जिस तरह से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के दूसरे अधिकतर उम्मीदवारों के नामांकन रद्द कर दिए गए हैं, उससे भी जाहिर हो रहा है कि मनमाने तरीके से इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने के पीछे जेपी सिंह को फायदा पहुँचाने की नीयत काम कर रही है ।
मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाने की तैयारी में लगे मल्टीपल काउंसिल के पदाधिकारी तथा दूसरे नेता इस तैयारी को जायज ठहराने के लिए लायंस इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की 24 से 27 मार्च के बीच ग्रीक के एथेंस में हुई मीटिंग में लिए फैसले का हवाला दे रहे हैं । उनका कहना है कि बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स ने अपनी इस मीटिंग में नियमों में जो फेरबदल करने का फैसला लिया है, उसके चलते मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करवाया जा सकता है । लेकिन एथेंस में हुई बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग के जो तथ्य 'रचनात्मक संकल्प' को मिले हैं, वह एक अलग और विपरीत कहानी ही कहते हैं । उक्त मीटिंग में कॉन्स्टीट्यूशन व बाई-लॉज कमेटी के जिन दस मामलों में फैसला हुआ है, उसमें नौवें और दसवें नंबर पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर होने वाले संशोधनों का जिक्र है - जिनमें 2017 की इंटरनेशनल कन्वेंशन में इंटरनेशनल बाई-लॉज के आर्टिकल II के सेक्शन 5 (C) और सेक्शन 4 में संशोधन करने के लिए प्रस्ताव रखने की बात स्वीकार की गई है । (स्नैपशॉट देखें) यानि नियमों में फेरबदल करने की बात इंटरनेशनल बोर्ड ने अभी सिद्धांततः स्वीकार की है, और इस फेरबदल को इंटरनेशनल कन्वेंशन में रखने की बात स्वीकार की है - इंटरनेशनल कन्वेंशन में यह फेरबदल स्वीकार होंगे, तब यह नियम/कानून का रूप बनेंगे, और उसके बाद से लागू होंगे । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 की कॉन्फ्रेंस, जिसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव होना है - शिकागो में होने वाली 2017 की इंटरनेशनल कन्वेंशन से करीब एक महीने पहले ही हो जाएगी । ऐसे में सवाल यही है कि 30 जून से 4 जुलाई के बीच होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन में जो नियम 'बनेगा', उस नियम के अनुसार 26 से 28 मई के बीच होने वाली मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में कार्रवाई कैसे हो सकती है - 26 से 28 मई के बीच होने वाली मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में तो लायंस इंटरनेशनल के मौजूदा नियमों के अनुसार ही कार्रवाई हो सकती है ।
मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के पदाधिकारी और पर्दे के पीछे से उन्हें कठपुतली की तरह चलाने वाले नेताओं ने लेकिन यह कमाल कर दिखाने की तैयारी शुरू कर दी है कि - लायंस इंटरनेशनल में नियम बाद में बनेगा, उस पर अमल पहले ही कर लिया जाएगा । सामान्य स्थितियों में ऐसा हो सकना असंभव ही होता है, किंतु मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के नेताओं और उनके कठपुतले पदाधिकारियों ने ऐसा करने की तैयारी शुरू कर दी है - तो माना जाना चाहिए कि उनका कॉन्फीडेंस लेबल काफी ऊँचा है । उनके इस ऊँचे और मनमाने कॉन्फीडेंस लेबल को नरेश अग्रवाल की 'ताकत' से खाद-पानी मिलता नजर आ रहा है । समझा जाता है कि 'सैयां भये कोतवाल, तो फिर डर काहे का' वाली तर्ज पर मल्टीपल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव करवाने वाले लोगों को पूरा पूरा भरोसा है कि अगले लायन वर्ष में चूँकि नरेश अग्रवाल ही इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के पद पर होंगे, इसलिए वह उनकी नियम-विरुद्ध हुई मनमानी कार्रवाई पर लायंस इंटरनेशनल की मुहर लगवा कर उनकी अवैध कार्रवाई को वैध बनवा ही देंगे । 
लेकिन मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 317 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने वाले डिस्ट्रिक्ट 317 बी के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर वासुदेव वलवलकर का इंटरनेशनल बोर्ड द्वारा जो हाल हुआ है, वह एक सबक भी है कि नियम विरुद्ध मनमानियाँ फजीहत का कारण भी बन जाती हैं । दिलचस्प संयोग की और मजे की बात है कि वासुदेव वलवलकर के मामले में भी फैसला 24 से 27 मार्च के बीच एथेंस में हुई उसी बोर्ड मीटिंग में हुआ है, जिसके संदर्भित फैसलों की मनमानी व्याख्या करते हुए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव कराने की तैयारी की जा रही है । इस दिलचस्प संयोग में कहीं यह संकेत तो नहीं छिपा है कि इंटरनेशनल बोर्ड का मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 317 के झंझट से पीछा छूटने के साथ साथ ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के संभावित झंझट की नींव पड़ गई है - क्योंकि मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में कुछेक लोगों ने कहना शुरू कर दिया है कि मल्टीपल में इस बार इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव सचमुच यदि हुआ, तो वह उसके खिलाफ इंटरनेशनल बोर्ड में अपील करेंगे और देखेंगे कि नरेश अग्रवाल के नाम पर कुछ लोग मल्टीपल में कैसे मनमानी करते हैं ?

Saturday, May 13, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में तेजपाल खिल्लन के फजीहत का शिकार बनने की स्थिति ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में अनिल तुलस्यान का पलड़ा भारी किया

नई दिल्ली । तेजपाल खिल्लन की राजनीतिक दादागिरी को उनके ही डिस्ट्रिक्ट के एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेसी वर्मा से ऐसी पटखनी मिलेगी कि तेजपाल खिल्लन के लिए मुँह छिपाना मुश्किल हो जायेगा - यह किसी ने नहीं सोचा था । जेसी वर्मा इस समय मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव के मामले में तेजपाल खिल्लन की राजनीति की हवा चुपके से ऐसी टाइट की है कि तेजपाल खिल्लन के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि फजीहत से वह बचें तो कैसे ? तेजपाल खिल्लन पिछले कुछ दिनों से वीएस कुकरेजा को इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने/बनवाने के अपने अभियान का गुब्बारा फुलाए हुए थे, लेकिन जेसी वर्मा ने सुई चुभा कर उनके गुब्बारे की सारी हवा निकाल दी है । दरअसल हुआ यह है वीएस कुकरेजा की तरफ से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की उम्मीदवारी के लिए मल्टीपल को साठ दिन पहले नोटिस ऑफ इन्टेंशन नहीं मिला है, जिसके कारण इस वर्ष उनकी उम्मीदवारी मान्य नहीं रह जाती है । वीएस कुकरेजा वैसे तो अपने आप को बड़ा कानूनची समझते हैं, और मौकों पर यह जताने/बताने से भी नहीं चूकते हैं कि लायंस इंटरनेशनल के नियम उनसे ज्यादा कोई नहीं जानता है - पर अपने ही मामले में वह नियम का पालन न करने की बेवकूफी कर बैठे ।
कानूनची व्यक्ति के साथ एक दिक्कत और होती है, और वह यह कि वह अपनी बेवकूफी को स्वीकार नहीं करता है, और कानूनी दाँवपेंचों के सहारे अपनी बेवकूफी को सही साबित करने का प्रयास करता है । वीएस कुकरेजा ने भी यही किया । उन्होंने पाया कि मल्टीपल में जो नियम साठ दिन का है, वह  इंटरनेशनल में 45 दिन का है । इस नियम की आड़ में वीएस कुकरेजा ने अपनी बेवकूफी छिपाने की कोशिश करते हुए लायंस इंटरनेशनल में गुहार लगाई कि उनके द्वारा दिया गया 'नोटिस ऑफ इन्टेंशन' चूँकि 45 दिन वाली शर्त को पूरा करता है, इसलिए उनकी उम्मीदवारी मान्य की/करवाई जाए । लायंस इंटरनेशनल ने लेकिन उन्हें दो-टूक बता दिया है कि चुनाव इंटरनेशनल में नहीं होना है, मल्टीपल में होना है - इसलिए उनके मामले में मल्टीपल का नियम लागू होगा । दीपक तलवार की चेयरमैनी वाली नोमीनेटिंग कमेटी की चूँकि अभी तक मीटिंग नहीं हुई है, इसलिए वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी अभी रिजेक्ट तो नहीं हुई है - लेकिन 'नोटिस ऑफ इन्टेंशन' के मामले में नियम का पालन न होने के कारण वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी स्वीकार होने का कोई कारण नहीं दिख रहा है । वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी के पेपर ही रिजेक्ट हो जाने से होने वाली फजीहत से बचने के लिए तेजपाल खिल्लन सम्मानजनक ढंग से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी पचड़े से बाहर निकलने के लिए कोई फार्मूला खोज रहे हैं, जिसके लिए दीपक तलवार भी उन्हें मौका दे रहे हैं - और इसीलिए नोमीनेटिंग कमेटी की मीटिंग को वह टालते जा रहे हैं ।
तेजपाल खिल्लन के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि इस फजीहत से उन्हें बचाने में उनके  डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स जेसी वर्मा और राजीव मित्तल उनकी मदद कर सकते हैं - लेकिन तेजपाल खिल्लन इन दोनों की ही डिस्ट्रिक्ट में जिस तरह से बेइज्जती करते रहे हैं, उसके कारण इन दोनों को भी मौका मिला है कि यह तेजपाल खिल्लन को मजा चखाएँ । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में जेसी वर्मा चाहें तो वीएस कुकरेजा के 'नोटिस ऑफ इन्टेंशन' को साठ दिन पहले आया हुआ बता सकते हैं; लायन-राजनीति में इस तरह की 'बेईमानियाँ' आम बात है । नोमीनेटिंग कमेटी में को-चेयरमैन के रूप में राजीव मित्तल के पास भी मौका है कि वह वीएस कुकरेजा की उम्मीदवारी को मान्य करवा दें - खुद उनकी तरफ से लोगों के बीच कहा/सुना भी गया है कि इस वर्ष हो रहे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में नियमों के मामले में लोचा ही लोचा है, इसलिए कई मामलों में नोमीनेटिंग कमेटी को नियमों की अनदेखी करनी ही पड़ेगी; ऐसे में, वीएस कुकरेजा के मामले में भी नियमों की अनदेखी की जा सकती है । किंतु वीएस कुकरेजा और तेजपाल खिल्लन ने अपने अपने रवैये और व्यवहार से जिस तरह लोगों को अपना विरोधी बनाया हुआ है, उसे देखते हुए उम्मीद कम ही है कि कोई भी उनके प्रति रियायत करना चाहेगा । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि अभी कुछ दिन पहले ही तेजपाल खिल्लन की ओछी किस्म की व्यूह-रचना के कारण ही ऐसी स्थिति बनी कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन होने के बावजूद जेसी वर्मा अपने ही डिस्ट्रिक्ट की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में शामिल नहीं हो सके । जेसी वर्मा के नजदीकियों का कहना है कि जेसी वर्मा उस अपमान को भूले नहीं हैं, और अब जब उन्हें मौका मिला है तो वह तेजपाल खिल्लन की फजीहत करने का यह मौका छोड़ेंगे नहीं ।
तेजपाल खिल्लन को इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी मैदान में लड़ाई शुरू होने से पहले ही जो तगड़ा वाला झटका लगा है, उसे और विस्तार देने के लिए मल्टीपल के उनके विरोधी नेताओं ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में उन्हें पछाड़ने के लिए भी उनकी घेराबंदी शुरू कर दी है । तेजपाल खिल्लन के उम्मीदवार विनय गर्ग के मुकाबले मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में अनिल तुलस्यान के लिए समर्थन जुटाने के काम में मल्टीपल के कई नेता जिस तरह से सक्रिय हुए हैं, उसके कारण अनिल तुलस्यान का पलड़ा भारी होता हुआ नजर आ रहा है । दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई में जेपी सिंह के एक पक्ष होने - और मजबूत व महत्त्वपूर्ण पक्ष होने के कारण मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में विनय गर्ग को एक बड़े खतरे के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; इस कारण से विनय गर्ग के खिलाफ कई सेंटीमेंट्स इकट्ठा हो गए हैं : किन्हीं को शिकायत है कि विनय गर्ग बिलकुल भी सक्रिय नहीं रहते हैं और उन्हें उचित तवज्जो नहीं देते हैं; किन्हीं को इस बात से परेशानी है कि विनय गर्ग तो तेजपाल खिल्लन की कठपुतली बन कर ही रहेंगे; किन्हीं को डर है कि विनय गर्ग का तो एकमात्र एजेंडा जेपी सिंह और उनके समर्थकों के साथ बदला लेने का रहेगा; विनय गर्ग के प्रति यह सारी शिकायतें, परेशानियाँ और डर अनिल तुलस्यान के लिए जैसे वरदान बन कर आईं हैं । मजे की बात यह हुई है कि अलग अलग कारणों से लीडरशिप के लोग भी और लीडरशिप के विरोधी रहे लोग भी अनिल तुलस्यान की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के अभियान में लगे नजर आ रहे हैं । दरअसल अलग अलग कारणों से तेजपाल खिल्लन के विरोधियों को लग रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के मामले में तेजपाल खिल्लन जिस फजीहत का शिकार हो रहे हैं, उसे और विस्तार देने तथा पुख्ता करने के लिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में भी उन्हें पछाड़ना जरूरी है - और इसी बात ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव में पलड़े को अनिल तुलस्यान की तरफ भारी बनाते हुए झुका दिया है ।