मेरठ
। श्रीहरी गुप्ता और दीपक जैन के बीच समझौते की कोशिशों के फेल हो जाने के
बाद श्रीहरी गुप्ता के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनावी
मुकाबला खासी मुसीबत में फँस गया है । श्रीहरी गुप्ता के लिए मुसीबत
इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि दीपक जैन की उम्मीदवारी को मेरठ के ही कुछेक
पूर्व गवर्नर्स से खाद-पानी मिलता देखा/सुना जा रहा है; और समझा जा रहा है
कि उनकी शह पर ही दीपक जैन ने अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने से साफ इंकार
कर दिया । श्रीहरी गुप्ता के नजदीकियों को अब लग रहा है कि समझौते की बात
कराने के पीछे भी मेरठ के उनके विरोधियों की एक चाल थी, जिसमें उन्हें
कमजोर दिखाने का उद्देश्य छिपा हुआ था; श्रीहरी गुप्ता के नजदीकियों को अब
लग रहा है कि उन्हें समझौते की बात करने के झाँसे में फँसना ही नहीं चाहिए
था । मेरठ में मेरठ के पूर्व गवर्नर्स की पहल और मौजूदगी में हुई समझौते
की बात में अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने को लेकर दीपक जैन के दो-टूक इंकार
ने मनोवैज्ञानिक रूप से दीपक जैन की उम्मीदवारी को बल दिया है, जिसकी सीधी
चोट श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी की संभावनाओं पर पड़ी महसूस हो रही है । मजे
की बात यह है कि श्रीहरी गुप्ता के ही शुभचिंतक उनके लिए पैदा हुई
मुसीबतों के लिए उन्हें ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । शुभचिंतकों के ही
अनुसार, मुरादाबाद में दो उम्मीदवारों के होने से श्रीहरी गुप्ता ने मेरठ
में अपने समर्थन-आधार को एकजुट करने/रखने के लिए कोई प्रयास ही नहीं किया;
वह यह सोच कर आश्वस्त रहे कि मेरठ में तो उन्हें एकतरफा समर्थन अपने आप मिल
जायेगा । पिछले वर्षों में यह देखा भी गया है कि मेरठ से यदि एक उम्मीदवार रहा है, तो
चाहे/अनचाहे उसे मेरठ के सभी पूर्व गवर्नर्स का समर्थन मिल जाता रहा है ।
श्रीहरी गुप्ता के तो फिर अधिकतर पूर्व गवर्नर्स के साथ अच्छे संबंध रहे
हैं, और उन्होंने अधिकतर पूर्व गवर्नर्स के लिए काम किया हुआ है । इसलिए श्रीहरी गुप्ता कुछ ज्यादा ही आश्वस्त रहे - और
मेरठ में एक उम्मीदवार के रूप में 'व्यवहार' करने/रखने से बचते रहे । मेरठ
के कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने तो यहाँ तक महसूस किया और कहा कि श्रीहरी
गुप्ता तो चुनाव होने और नतीजा आने से पहले ही अपने आप को गवर्नर मान बैठे हैं ।
दीपक जैन की उम्मीदवारी की चर्चाओं ने जब श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी के सामने
खतरे की घंटी बजाना शुरू की, तब भी श्रीहरी गुप्ता निश्चिन्त बने रहे और यह
सोचते/कहते/बताते रहे कि दीपक जैन को डिस्ट्रिक्ट में जानता ही कौन है ?
दरअसल श्रीहरी गुप्ता इस खतरे की संभावना की कल्पना भी नहीं कर सके कि दीपक
जैन को डिस्ट्रिक्ट में भले ही कोई न जानता हो, लेकिन मेरठ में अपने
व्यवहार और अपने रवैये से वह जिन लोगों को अपना विरोधी बना रहे हैं,
उन्होंने दीपक जैन को यदि 'गोद' ले लिया, तब क्या होगा ? और अब जब यही हुआ है, तो श्रीहरी गुप्ता और उनके समर्थक हक्के-बक्के रह गए हैं । मेरठ में ही श्रीहरी गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति
जब विरोध पैदा हो गया है, और कुछेक पूर्व गवर्नर्स उनकी उम्मीदवारी के
खिलाफ सक्रिय सुने/देखे जा रहे हैं - तब उनके लिए हालात सचमुच चुनौतीपूर्ण
हो गए हैं । मेरठ में श्रीहरी गुप्ता के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का ही
मानना और कहना है कि दूसरी बड़ी गलती उन्होंने दीपक जैन के साथ समझौते की बात करने के लिए तैयार होने की कर दी - दरअसल इससे श्रीहरी गुप्ता ने एक उम्मीदवार के रूप में अपनी कमजोरी को जाहिर और साबित कर दिया । वास्तव में, इससे
लोगों के बीच संदेश यह गया कि श्रीहरी गुप्ता चाहते हैं कि दीपक जैन अपनी
उम्मीदवारी छोड़ दें, ताकि वह आराम से बिना कुछ किए-धरे चुनाव जीत जाएँ ।
मेरठ में श्रीहरी गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों का ही नहीं, बल्कि उनके
विरोधियों का भी मानना और कहना है कि श्रीहरी गुप्ता के लिए चुनौती दीपक
जैन नहीं, बल्कि उनका खुद का व्यवहार और रवैया है । लोगों का कहना है कि
श्रीहरी गुप्ता यदि एक उम्मीदवार के रूप में 'सोचना' और व्यवहार करना शुरू
करें, और इस बात पर ध्यान दें कि एक उम्मीदवार को समर्थन जुटाने के लिए
किस तरह की 'फील्डिंग' सजानी/जमानी होती है - तो अभी भी वह हालात को अपने
पक्ष में कर सकते हैं ।
राजकमल गुप्ता पर दीपक बाबु के दिशा-निर्देशन में और दीपक जैन पर योगेश मोहन गुप्ता के दिशा-निर्देशन में वोटों की खरीद-फरोख्त
करने के काम में जुटने के आरोपों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में
गर्मी तो आई है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों का एक बड़ा तबका राजकमल गुप्ता
और दीपक जैन की इस तरह की कोशिशों को डिस्ट्रिक्ट के हक़ में नहीं मान/देख
रहा है । इसी नाते से लोगों का मत है कि श्रीहरी गुप्ता और या चक्रेश
लोहिया में से ही किसी को गवर्नर होना चाहिए । दरअसल यही दोनों पिछले
वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में सक्रिय रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट की कमजोरियों
और खूबियों को अच्छे से जानते/समझते/पहचानते हैं । लोगों को लगता है कि अपने अपने व्यवहार के चलते श्रीहरी गुप्ता और चक्रेश लोहिया
समय समय पर आलोचनाओं का शिकार भले ही होते रहे हों, लेकिन डिस्ट्रिक्ट इस
समय जिस मुकाम पर है - वहाँ उसे श्रीहरी गुप्ता और या चक्रेश लोहिया जैसे
अनुभवी लोग ही नेतृत्व के लिए चाहिए; राजकमल गुप्ता और दीपक जैन के मामले
में तो 'बंदर के हाथ में उस्तरा पकड़ाने' जैसा मामला हो जायेगा । सुनील गुप्ता और दीपक बाबु जैसे अनुभवहीन ही नहीं, बल्कि खुन्नसी किस्म के लोगों को नेतृत्व सौंपने की सजा डिस्ट्रिक्ट पहले ही बहुत भुगत चुका है । गौर करने वाली बात यह है कि राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की उम्मीदवारी उनकी नेतृत्व की स्वाभाविक आकांक्षा के चलते नहीं आई है, बल्कि उनके 'उन' नेताओं की खुन्नसी राजनीति के चलते प्रकट हुई है - जो डिस्ट्रिक्ट को बर्बाद करने के लिए जिम्मेदार माने/पहचाने और चिन्हित किए गए हैं । यही कारण है कि राजकमल गुप्ता और दीपक जैन की तरफ से वोटों की खरीद-फरोख्त करने के आरोप सुने जाने लगे हैं ।
वोटों की खरीद-फरोख्त के जरिए चुनाव जीतने की राजकमल गुप्ता और दीपक जैन
की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य को रोचक तो बना दिया है,
लेकिन साथ ही डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को फिर से पहले वाली दलदल की ओर धकेलना भी शुरू कर दिया है। पता नहीं, डिस्ट्रिक्ट 3100 को अभी और क्या क्या देखना है ?