गाजियाबाद
। मुकेश अरनेजा के समर्थन से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत
उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता का चुनाव जीतने की
तैयारी करने वाले जेके गौड़ का जो हाल हुआ है, उसने अगले रोटरी वर्ष में
होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में आलोक
गुप्ता को बड़ी राहत दी है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ तो आलोक गुप्ता
की उम्मीदवारी के विरोध की बातें कर ही रहे थे, मुकेश अरनेजा ने भी आशीष
मखीजा की उम्मीदवारी का झंडा उठा कर आलोक गुप्ता को धोखा देने की तैयारी कर
ली थी । आलोक गुप्ता को धोखा देने की मुकेश अरनेजा की हरकत से आलोक गुप्ता के प्रति लोगों के बीच हालाँकि हमदर्दी सी पैदा हुई, और इस हमदर्दी के चलते मुकेश
अरनेजा द्वारा दिया गया धोखा आलोक गुप्ता की मदद करता हुआ ही नजर आ रहा था ।
फिर भी यह सिर्फ भावना की बात थी - और हमदर्दी की इस भावना को बचा कर रख
पाना और इसे बढ़ाते हुए समर्थन व वोट में तब्दील करना आलोक गुप्ता के लिए
बड़ी चुनौती का काम होता । इंटरनेशनल
डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी
की सदस्यता का चुनाव यदि कहीं जेके गौड़ जीत गए होते, तो वह मुकेश अरनेजा के
साथ मिल कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति को अपने
नियंत्रणानुसार चलाने की ताकत पाते । उस स्थिति में आलोक गुप्ता को ही सीधा
और तगड़ा घाटा होना था - लेकिन जेके गौड़ की चुनावी हार ने, और बहुत ही
बुरी तरह से हुई इस चुनावी हार ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी
राजनीति में जेके गौड़ और मुकेश अरनेजा के पास कोई विकल्प नहीं छोड़े हैं; और
उन दोनों की यह विकल्पहीनता आलोक गुप्ता के लिए तो जैसे वरदान बन कर आई है ।
मुकेश
अरनेजा के खुल्लमखुल्ला समर्थन के बावजूद जेके गौड़ का जो बुरा हाल हुआ है,
उसे देख कर सबसे तगड़ा झटका तो आशीष मखीजा को लगा होगा; और समझा जाता है कि
जेके गौड़ का हुआ हाल देख कर आशीष मखीजा कम-अस-कम मुकेश अरनेजा के भरोसे तो
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी दौड़ में शामिल नहीं होंगे । आशीष
मखीजा की गतिविधियों से किसी को भी ऐसा आभास भी नहीं मिला है कि अपनी
उम्मीदवारी को लेकर उन्हें और कोई सहारा भी है; ऐसे में, यही माना जा रहा
है कि उनकी उम्मीदवारी आई तो थी सभी को चौंकाते हुए - लेकिन जाएगी वह सभी
के जानते/बूझते हुए, और तब मुकेश अरनेजा तो राजनीतिक रूप से 'अनाथ' ही हो
जायेंगे । लेकिन लोग जानते हैं कि मुकेश अरनेजा की रगो में खून नहीं
राजनीति बहती है, इसलिए 'राजनीतिक अनाथ' बन कर तो वह नहीं ही रहेंगे - और
यह 'काम' भी मुकेश अरनेजा ही कर सकते हैं कि जिस बेशर्मी के साथ उन्होंने
आलोक गुप्ता को धोखा देकर आशीष मखीजा की उम्मीदवारी की घोषणा कर दी थी, उसी
बेशर्मी के साथ वह आलोक गुप्ता के पास वापस लौट सकते हैं । हाल ही में
संपन्न हुई असेम्बली में मुकेश अरनेजा को लोगों ने आलोक गुप्ता के साथ जिस
तरह 'चिपकने' की कोशिश करते हुए देखा, उससे अंदाज लगाया गया कि मुकेश
अरनेजा ने आलोक गुप्ता के पास लौटने की तैयारी शुरू भी कर दी है । लगता
है कि जेके गौड़ के बुरे हाल की खबर मिलने से पहले ही, आशीष मखीजा के
ढीले-ढाले रवैये को देखते हुए मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के पास लौटने
की जरूरत को पहचान/समझ लिया होगा । अब, जबकि जेके गौड़ के बुरे चुनावी हाल
की खबर चारों तरफ फैल गई है - तब मुकेश अरनेजा को उक्त पहचान व समझ और भी
ज्यादा हो गई होगी ।
आलोक
गुप्ता के लिए यह स्थिति दोहरे फायदे का मौका बनाती है - दरअसल अब जब
मुकेश अरनेजा उनके समर्थन में फिर से आते हैं, तो मुकेश अरनेजा के साथ उनके
संबंध 'कुछ पास, कुछ दूर' वाले ही होंगे; ऐसे में, आलोक गुप्ता उनकी
बदनामी के कारण होने वाले नुकसान से भी बच सकेंगे, और उनके कारण होने वाले
फायदे को भी उठा सकेंगे । दीपक गुप्ता ने भी इसी तरकीब से इस वर्ष अपने लिए
मौका बनाया था; उन्होंने चुनाव से करीब दो महीने पहले ही मुकेश अरनेजा
से अनुरोध किया था कि मुझ पर एक अहसान करो, और वह यह कि मुझ पर कोई अहसान
मत करो - और मेरे चुनाव प्रचार से दूर रहो । दीपक गुप्ता के चुनाव प्रचार
से दूर रहने के कारण लोगों के बीच यह आशंका भी पैदा हुई थी कि मुकेश अरनेजा
ने कहीं दीपक गुप्ता का साथ छोड़ तो नहीं दिया है । दीपक गुप्ता के रवैये
से मुकेश अरनेजा खिन्न तो थे, पर खिन्नता में बेचारे करते भी क्या ? जेके
गौड़ अपने चुनाव प्रचार से मुकेश अरनेजा को छिपा कर नहीं सके, और देखिये -
किस गति को प्राप्त हुए । आशीष मखीजा के नाम पर मुकेश अरनेजा यदि आलोक
गुप्ता के साथ धोखाधड़ी नहीं करते, तो हो सकता है कि आलोक गुप्ता के लिए
उनसे दूरी बनाना/रखना संभव नहीं होता; मुकेश अरनेजा की धोखाधड़ी के कारण
उनके और आलोक गुप्ता के बीच जो खाई बनी है, उसके जल्दी से भर पाने की
उम्मीद तो नहीं ही है - और मुकेश अरनेजा के इस खाई को भरने की कोशिशों
के बावजूद खाई के बने रहने की स्थिति आलोक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के संदर्भ में दोहरा फायदा उठाने का
मौका देती है ।
मुकेश
अरनेजा के संग-साथ के कारण जेके गौड़ का जो चुनावी हाल हुआ है, उसमें आलोक
गुप्ता को एक फायदा सतीश सिंघल की तरफ से भी हुआ है । आशीष मखीजा को लेकर
मुकेश अरनेजा ने जिस नाटक पर से पर्दा हटाया था, उस नाटक में बाद में सतीश
सिंघल के भी जुड़ने का अनुमान लगाया गया था । लेकिन आशीष मखीजा के ढीले
पड़ने तथा जेके गौड़ का बुरा हाल होने ने सतीश सिंघल को सावधान किया है - और
उन्होंने अपने आप को मुकेश अरनेजा के साथ आगे बढ़ने से रोका है । इस पूरी
प्रक्रिया में सतीश सिंघल की आलोक गुप्ता पर निर्भरता और बढ़ी है,
जिसका नजारा हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में ही लोगों को
देखने को मिला । डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में कई मौकों पर ऐसे 'फ्रेम' बने
जबकि गवर्नर्स के साथ - एक अकेले आलोक गुप्ता ही खड़े दिखे, जो अभी गवर्नर
वाली कैटेगरी में नहीं हैं । (इस रिपोर्ट के साथ प्रकाशित तस्वीर पर गौर करें !) वास्तव में, डिस्ट्रिक्ट असेम्बली के हर मौके
और हर कोने में आलोक गुप्ता या उनकी छाप को पहचाना गया । लोगों के बीच
चर्चा भी रही कि आलोक गुप्ता का सहयोग न मिला होता, तो सतीश सिंघल तो यह
असेम्बली कर ही न पाते । आलोक गुप्ता ने भी मौके का पूरा पूरा फायदा
उठाया, और डिस्ट्रिक्ट असेम्बली में आए/पहुँचे हर रोटेरियन को अपनी
उपस्थिति और महत्ता का गहरा अहसास कराने का हर संभव प्रयास किया ।
इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली
नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के चुनाव में मुकेश अरनेजा के समर्थन के
बावजूद जेके गौड़ का जो बुरा हाल हुआ है, उसके कारण सतीश सिंघल अकेले से और
पड़ गए हैं - जिसके चलते आलोक गुप्ता पर उनकी निर्भरता और बढ़ेगी; यह स्थिति आलोक गुप्ता के लिए चुनौतीपूर्ण तो होगी, पर इस स्थिति में उनके लिए फायदे उठाने के मौके भी बहुत होंगे ।