Saturday, February 29, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में समय से ड्यूज जमा न हो पाने के कारण 15 से 20 वोटों के नुकसान की चपेट में आ चुके पंकज बिजल्वान अपनी हार को सुनिश्चित मानने/समझने के बावजूद चुनावी मैदान में दरअसल इसलिए बने हुए हैं, ताकि वह मैदान छोड़ते हुए न 'दिखें' - और अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी की संभावना बनी रहे 

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार पंकज बिजल्वान की तरफ से चुनावी प्रक्रिया को ईमानदारी से पूरा करने/करवाने के लिए ऑब्जर्वर की जो माँग की गई थी, वह उल्टी उन्हें ही भारी पड़ गई है - और अब वह उड़ क्षण को कोस रहे हैं, जब उन्होंने ऑब्जर्वर की माँग की थी । उल्लेखनीय है कि पंकज बिजल्वान की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग की तो इसलिए गई थी, ताकि प्रतिद्वंद्वी खेमा सत्ता में होने के कारण कोई चुनावी बेईमानी न कर सके - लेकिन ऑब्जर्वर के रूप में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना ने काम शुरू करते ही पंकज बिजल्वान की तरफ से होने वाली 'बेईमानी' को पकड़ लिया, जिसके चलते पंकज बिजल्वान के पक्के समझे जाने वाले 15 से 20 वोट घट गए हैं । वोटों की कमी से जूझ रहे पंकज बिजल्वान के लिए यह जोर का झटका है । इसके बाद पंकज बिजल्वान के नजदीकियों और समर्थकों ने ऑब्जर्वर विनोद खन्ना को ही कोसना शुरू कर दिया है । विनोद खन्ना ने दरअसल क्लब्स के ड्यूज जमा होने की स्थिति की जाँच-पड़ताल की, तो कुछेक क्लब्स के ड्यूज तय समयाविधि के बाद जमा होने की सच्चाई पता चली - नियमानुसार जिन्हें वोटिंग का अधिकार नहीं मिल सकता था । नियमों का पालन करते हुए विनोद खन्ना ने उन क्लब्स को वोटिंग का अधिकार देने से इंकार कर दिया । उक्त क्लब्स पंकज बिजल्वान के समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं, और इस तरह पंकज बिजल्वान को उतने वोटों का तो सीधा सीधा नुकसान हो गया है । इस फैसले पर बाद में बबाल न हो, इसकी ऐहतियात बरतते हुए विनोद खन्ना ने लायंस इंटरनेशनल कार्यालय के लीगल डिपार्टमेंट से सलाह करके ही उक्त फैसला लिया है । इस कारण पंकज बिजल्वान और उनके समर्थकों के पास रोने और सिर पीटने के अलावा कोई चारा नहीं बचा है । उनका रोना है कि ऑब्जर्वर के रूप में विनोद खन्ना की नियुक्ति उनकी उम्मीदवारी के लिए विनाशकारी साबित हुई है ।
मजे की बात यह है कि इस विनाश के लिए खुद पंकज बिजल्वान और उनके सलाहकार ही जिम्मेदार हैं । पता नहीं किस अक्ल'बंद' की सलाह रही कि 'न्यूट्रल' ऑब्जर्वर की माँग करते हुए पंकज बिजल्वान ने अपनी पसंद के ऑब्जर्वर के नाम भी सुझा दिए गए । पंकज बिजल्वान की तरफ से ऑब्जर्वर की माँग करते हुए लायंस इंटरनेशनल को जो आवेदन दिया गया, उसमें एपी सिंह, संगीता जटिया और राजु मनवानी में से किसी को ऑब्जर्वर के रूप में नियुक्त करने का अनुरोध किया गया था । अब यह कॉमनसेंस की बात है कि आप जिन लोगों के नाम दे रहे हैं, उन्हें 'न्यूट्रल' भला कैसे माना जा सकता है ? पंकज बिजल्वान के अक्ल'बंद' सलाहकार को पता नहीं क्यों, यह सामान्य सी बात समझ नहीं आई । इसका नतीजा हुआ कि लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने उनके द्वारा सुझाये गए नामों को रिजेक्ट करके विनोद खन्ना को ऑब्जर्वर नियुक्त कर दिया । विनोद खन्ना को अंदाजा है कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर खासी तनातनी है, इसलिए वह सावधानी के साथ रिकॉर्ड देख रहे हैं और फैसले ले रहे हैं । रिकॉर्ड के मामले में पंकज बिजल्वान का मामला बहुत ही कमजोर है । उनके समर्थकों में बड़बोले किस्म के और बकवास करने में एक्सपर्ट लोगों की तो बहुत भीड़ है, लेकिन गंभीरता से स्थितियों को समझने तथा होशियारी से उन्हें क्रियान्वित करने की कोशिश करने वाले लोगों का टोटा है । जो कुछ गंभीर व होशियार किस्म के लोग उनकी तरफ हैं भी, वह जब पंकज बिजल्वान को सड़कछाप किस्म के लोगों से घिरा देखते हैं - तो चुप रहने में ही अपनी भलाई देखते हैं; पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को इसी का नुकसान हो रहा है । ऑब्जर्वर वाले मामले में ठीक यही हुआ है, और यह मामला सिर्फ एक उदाहरण है ।
दूसरी तरफ, रजनीश गोयल के अभियान में बड़ी सुनियोजित रणनीति और तैयारी दिखाई देती है । ऐसा लगता है कि जैसे वहाँ हर काम बड़ा ठोक-बजा कर किया जाता है, और सभी के अनुभवों का फायदा लेते हुए सभी को बराबर से जिम्मेदारी तथा तवज्जो देते हुए अभियान चलाया जा  रहा है । इसी का नतीजा है कि रजनीश गोयल का अभियान संगठित रूप लेता हुआ दिखाई दिया है, और उनके समर्थक खुल कर उनके अभियान में संलग्न नजर आते हैं । इस का फायदा रजनीश गोयल को यह मिला है कि जो लोग बीच में रहते हैं, और आखिरी समय पर फैसला करते हैं, उन्होंने रजनीश गोयल के पक्ष में फैसला पहले से ही कर लिया है - और रजनीश गोयल एक बड़ी जीत की तरफ बढ़ते नजर आ रहे हैं । रजनीश गोयल का पलड़ा हालाँकि हमेशा ही भारी था, लेकिन उनके भारीपन का जो अंतर पहले कम दिख रहा था - अब वह खासा बढ़ा हुआ नजर आ रहा है । पंकज बिजल्वान के नजदीकी समर्थकों का ही कहना/बताना है कि उन्हें और पंकज बिजल्वान को अपनी पराजय सुनिश्चित ही लग रही है; अब तो वह चुनावी मैदान में सिर्फ इसलिए बने हुए हैं ताकि उनकी हार का अंतर बहुत ज्यादा न हो और वह मैदान छोड़ते हुए न 'दिखें' - जिससे कि अगले लायन वर्ष में उनकी उम्मीदवारी की संभावना बनी रहे । वास्तव में, इस समय एक उम्मीदवार के रूप में पंकज बिजल्वान की जो कवायद है, वह दरअसल अगले लायन वर्ष में अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बनाये रखने की कवायद है ।

Friday, February 28, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में गणतंत्र दिवस पर दारू पार्टी करने के बाद, वोटिंग शुरू होने के समय गज़ल सुनवाने का आयोजन करने वाले अजीत जालान और उनके साथियों पर गंभीर आरोप यही है कि वह अपनी हरकतों से रोटरी और उसके आदर्शों व उसके नियमों से खिलवाड़ क्यों करते रहते हैं ?

नई दिल्ली । गणतंत्र दिवस पर दारू पार्टी का आयोजन करके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में अजीत जालान के लिए वोट जुटाने की कोशिश में फेल हो जाने तथा फजीहत का शिकार हो जाने के बाद रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट 'शाम-ए-गज़ल' के नाम से एक और बबाली कार्यक्रम प्रस्तुत कर रहा है । यह कार्यक्रम रोटरी लिट्रेसी सेंटर तथा रोटरी डायलिसिस सेंटर के लिए फंड जुटाने के नाम पर किया जा रहा है । कहा/बताया गया है कि जो लोग 'शाम-ए-गज़ल' में शामिल होना चाहते हैं, उन्हें क्लब के ट्रस्ट 'रोटरी दिल्ली साऊथ वेस्ट फाउंडेशन' के नाम पर दान देना होगा, जिस पर 80जी के तहत कर छूट भी मिलेगी । मजे की बात यह भी देखने में आ रही है कि एक तरफ तो कार्यक्रम में शामिल होने के लिए दान देना जरूरी बताया गया है, लेकिन दूसरी तरफ क्लब्स के प्रेसीडेंट को तथा डिस्ट्रिक्ट के अन्य प्रमुख रोटेरियंस को दो दो पास फ्री में दिए गए हैं । बबाल दरअसल इसी बात से शुरू हुआ है । बबाल को बढ़ाने का काम कार्यक्रम की टाईमिंग ने भी किया है । कार्यक्रम ठीक उस समय रखा गया, जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए वोटिंग शुरू होने का समय था । हालाँकि वोटिंग शुरू होने का समय अब आगे बढ़ा दिया गया है; अन्यथा माना गया था कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के लोगों ने पक्की व्यवस्था कर ली थी कि कार्यक्रम में आने/पहुँचने वाले डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को वह बिना दान दिए गज़ल सुनवायेंगे और लगे हाथ उनसे अजीत जालान की उम्मीदवारी के पक्ष में वोट भी डलवा लेंगे । 
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए वोटिंग शुरू होने का टाइम आगे बढ़ जाने के कारण, गज़ल सुनवाते हुए वोट डलवाने का प्रोग्राम तो खटाई में पड़ गया है, लेकिन अजीत जालान के क्लब के पदाधिकारियों व सदस्यों को विश्वास है कि फ्री में गज़ल सुनने वाले प्रेसीडेंट्स इतने अहसानफरामोश नहीं साबित होंगे कि वोट देते समय अजीत जालान के नाम के सामने ठप्पा लगाना भूल जाएँ । हालाँकि गणतंत्र दिवस पर प्रेसीडेंट्स को दारू पिलवाने का अजीत जालान और उनके क्लब के पदाधिकारियों का कार्यक्रम कोई प्रभाव नहीं बना पाया था - और उस कार्यक्रम को लेकर उनके हाथ सिर्फ बदनामी ही लगी थी । अभी हाल ही में संपन्न हुई डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस तक में लोगों का आकलन था कि अजीत जालान को दस/पंद्रह वोट से ज्यादा नहीं मिलेंगे । इस आकलन को सार्वजनिक चर्चा का विषय बनता देख अजीत जालान और उनके नजदीकियों को डर हुआ कि यह बात यदि लोगों के बीच फैली, तो कहीं ऐसा न हो कि उन्हें इतने वोट भी न मिलें । कोई भी क्लब या प्रेसीडेंट दोस्ती के नाम पर ऐसे उम्मीदवार को भला क्यों वोट देना चाहेगा, जो बुरी तरह पिछड़ता हुआ नजर आ रहा है । इसी डर पर विजय पाने के लिए अजीत जालान और उनके नजदीकियों ने 'शाम-ए-गज़ल' कार्यक्रम पर अपनी उम्मीद टिका दी है । लेकिन यह कार्यक्रम ही आरोपों का शिकार बन गया है । गंभीर आरोप यही है कि अजीत जालान और उनके नजदीकी अपनी हरकतों से रोटरी और उसके आदर्शों व उसके नियमों से खिलवाड़ करते हैं, और उनका मजाक बनाते रहते हैं ।
अजीत जालान और उनके नजदीकियों के साथ यह बड़ा तमाशा होता रहता है कि वह कुछ बड़ा काम करना चाहते हैं, लेकिन उसकी तैयारी कुछ ऐसे षड्यंत्रपूर्ण व बेईमानीपूर्ण तरीके से करते हैं कि काम तो खटाई में पड़ता ही है, उनकी बदनामी और फजीहत अलग होती है । 'शाम-ए-गज़ल' कार्यक्रम जिस रोटरी दिल्ली साऊथ वेस्ट फाउंडेशन के नाम पर किया जा रहा है, उस फाउंडेशन का गठन ही विवादपूर्ण तरीके से हुआ है । दरअसल क्लब ने इसके गठन से ठीक पहले एक और ट्रस्ट बनाया था, जिसे लेकर घपलेबाजी के इतने गंभीर आरोप लगे थे कि मामला काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग तक पहुँचा था, जहाँ उक्त ट्रस्ट को बंद कर देने का फैसला हुआ था - और जो अब पूर्व हो चुके तत्कालीन सत्ता खेमे में शामिल गवर्नर्स के रूप में डॉक्टर सुब्रमणियन व रवि चौधरी की देखरेख में बंद किया गया था । उस ट्रस्ट को बंद करके ही क्लब के लोगों ने रोटरी दिल्ली साऊथ वेस्ट फाउंडेशन का गठन किया है । इस फाउंडेशन के जरिये जो डायलिसिस सेंटर बनाया जा रहा है, और जिसके लिए फंड इकट्ठा करने के लिए 'शाम-ए-गज़ल' आयोजित की जा रही है - उसे लेकर भी भारी झोल होने के आरोप हैं, जिनके चलते रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल की कुर्सी तक खतरे में पड़ गई है । यह दरअसल काम करने का बदनीयतीपूर्ण तरीका ही है, जिसके चलते डायलिसिस सेंटर बनाने जैसा अच्छा/बड़ा काम ऐसी फजीहत का शिकार हो बैठा है कि एक तरफ तो उसके कारण रोटरी ब्लड बैंक में बबाल हो गया है, और दूसरी तरफ उसके लिए फंड इकट्ठा करने का आयोजन राजनीतिक षड्यंत्र के रूप में देखा/पहचाने जाना लगा है ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पिछड़ते दिख रहे अशोक गुप्ता की स्थिति सुधारने की कोशिश में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी के नजदीक आने की अपनी कोशिशों को कहीं नुकसान तो नहीं पहुँचा लेंगे ?

मेरठ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी राजीव सिंघल की अपने गवर्नर वर्ष की टीम के लिए आवेदन माँगने की कार्रवाई को इस वर्ष हो रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, और इसकी शिकायत डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आ रहे इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी से करने की तैयारी की जा रही है । कुछेक पूर्व गवर्नर्स राजीव सिंघल की कार्रवाई को लेकर खासे नाराज हैं, और मान रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के रूप में राजीव सिंघल के जब यह रंग-ढंग हैं, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में तो वह पता नहीं क्या करेंगे ? मजे की बात है कि कुछेक पूर्व गवर्नर्स की नाराजगी को राजीव सिंघल ने कोई तवज्जो नहीं दी है; उनका कहना है कि उन्होंने कोई रोटरी-विरोधी काम नहीं किया है और कुछेक पूर्व गवर्नर्स नाहक ही बात का बतंगड़ बना रहे हैं । राजीव सिंघल कुछेक पूर्व गवर्नर्स की नाराजगी को तवज्जो देते हुए भले ही नहीं दिख रहे हों; लेकिन उनके नजदीकियों के अनुसार, वह इस बात को लेकर चिंतित जरूर हैं कि शेखर मेहता व कमल सांघवी के सामने उनकी कार्रवाई की शिकायत यदि हुई - तो उन दोनों के बीच उन्हें लेकर एक नकारात्मकता जरूर बनेगी, जो उनकी रोटरी की 'आगे की यात्रा' के लिए नुकसानदेह हो सकती है । समझा जाता है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में शेखर मेहता और कमल सांघवी को एक साथ बुलाने की 'व्यवस्था' राजीव सिंघल ने ही की है, और इस व्यवस्था के जरिये राजीव सिंघल ने रोटरी के सेटअप में अपनी पहुँच ऊँची करने की तैयारी दिखाई है । ऐसे में, उन्हें डर है कि शेखर मेहता और कमल सांघवी के सामने यदि यह बात जाहिर हुई कि उनके डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स उनकी पक्षपातपूर्ण राजनीतिक कार्रवाईयों से नाराज हैं, तो यह रोटरी के सेटअप में अपनी पहुँच ऊँची करने की उनकी तैयारी को झटका दे सकती है ।
राजीव सिंघल को इस वर्ष हो रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए डीके शर्मा व अशोक गुप्ता के बीच होने वाले चुनाव में अशोक गुप्ता के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक गुप्ता, राजीव सिंघल के नजदीकी रिश्तेदार हैं । समझा जाता है और डिस्ट्रिक्ट में चर्चा है कि राजीव सिंघल ने ही उन्हें उम्मीदवार बनाया है - अन्यथा अशोक गुप्ता की रोटरी में न तो ज्यादा रुचि रही है और न ज्यादा संलग्नता रही है । अपने क्लब के आयोजनों में ही वह वर्ष में मुश्किल से दो या तीन मौकों पर ही शामिल होते हुए देखे गए हैं । अशोक गुप्ता के नजदीकियों को ही हैरानी है कि रोटरी के आयोजनों में यदा-कदा दिखने वाले अशोक गुप्ता को आखिर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की कैसे और क्यों सूझी ? लोगों के बीच यह चर्चा भी है कि अशोक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट में लोगों को जानते/पहचानते तक नहीं हैं, और न ही लोग उन्हें जानते/पहचानते हैं - ऐसे में उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कूद पड़ने का फैसला भला किसके भरोसे लिया है । हालाँकि यह जल्दी ही स्पष्ट हो गया कि अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी पूरी तरह राजीव सिंघल के भरोसे ही है । राजीव सिंघल ने अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के लिए प्रयत्न तो काफी किए हैं, लेकिन लगता है कि अपने प्रयत्न खुद उन्हें भी नाकाफी लग रहे हैं । राजीव सिंघल को भी लग रहा है कि उनकी तमाम कोशिशों के बावजूद अशोक गुप्ता की चुनावी स्थिति डीके शर्मा के मुकाबले काफी कमजोर है । आरोप है कि इसीलिए चुनाव शुरू होने से छह दिन पहले राजीव सिंघल ने अपने गवर्नर-वर्ष के पदों के जरिये वोटों को 'खरीदने' का दाँव चला है । 
राजीव सिंघल का यह कहना तो बिलकुल दुरुस्त है कि अपने गवर्नर-वर्ष की टीम के पदों का ऑफर देने का जो पत्र उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को भेजा है, वह कोई रोटरी-विरोधी काम नहीं है । लेकिन उक्त पत्र भेजने की जो टाइमिंग है, वह पदों के ऑफर के जरिये डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को प्रभावित करने के आरोप को हवा देती है । मजे की बात यह है कि राजीव सिंघल ने अपने गवर्नर-वर्ष के लिए विजन अभी तय नहीं किया है; रोटरी की व्यवस्था के अनुसार, यह अभी तय हो भी नहीं सकता है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में राजीव सिंघल जब ट्रेनिंग के लिए जायेंगे, तब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट उक्त विजन देंगे - जाहिर है कि उसके बाद ही तथा उसके अनुरूप ही उन्हें अपनी टीम के पदों का निर्धारण करना होगा, और उसके बाद ही यह तय कर सकना संभव व उचित होगा कि योग्यतानुसार किसे क्या पद दिया जाए । राजीव सिंघल अपने गवर्नर-वर्ष की टीम के पदाधिकारियों को चुनने की उचित प्रक्रिया को अपनाये बिना जिस तरह से पदों के लिए आवेदन माँग बैठे हैं, उससे साफ संकेत मिला है कि यह कार्रवाई उन्होंने अपने गवर्नर-वर्ष को प्रभावी बनाने के लिए नहीं, बल्कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को प्रभावित करने के लिए - और अशोक गुप्ता के लिए वोट 'खरीदने' के लिए की है । उनकी इस कार्रवाई के दो दिन बाद ही डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो रही है, जिसमें इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी आ रहे हैं - तो डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने इस मामले को उनके सामने उठाने तथा राजीव सिंघल की शिकायत करने की तैयारी दिखाई है । राजीव सिंघल के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि अभी तक उन्हें पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई के नजदीक समझा/पहचाना जाता था; लेकिन राजीव सिंघल अब मनोज देसाई को छोड़ कर कमल सांघवी के नजदीक आने की कोशिश कर रहे हैं - ऐसे में, उनकी चिंता है कि उनके डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स उनकी शिकायत करेंगे, तो कमल सांघवी के यहाँ उनकी अनुकूल स्थिति कैसे बनेगी ? राजीव सिंघल के नजदीकियों को डर है कि अशोक गुप्ता की चुनावी स्थिति सुधारने के चक्कर में राजीव सिंघल रोटरी सेटअप में कहीं अपनी स्थिति न खराब कर लें ?

Thursday, February 27, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के लिए रतन सिंह यादव ने जो 'डबल गेम' खेला, उसे एक्सपोज करते हुए अविनाश गुप्ता ने उन्हें फजीहत में फँसाया और अपना कद ऊँचा किया

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के लिए रतन सिंह यादव ने इस बार 'डबल गेम' खेला, लेकिन फिर भी चेयरमैन पद की कुर्सी पर बैठ पाना उन्हें नसीब नहीं हुआ । उनके लिए फजीहत की बात यह भी रही कि चेयरमैन पद की कुर्सी तो उन्हें नहीं ही मिली, काउंसिल में सबसे गंदी राजनीति करने का खिताब उन्हें और मिल गया । रतन सिंह यादव ने अपना 'डबल गेम' खेला तो हालाँकि बड़ी होशियारी से था, लेकिन उनकी होशियारी 'ओवर डोज' हो गई - जिसके चलते उन्हें होशियारी का कोई लाभ तो नहीं ही मिला, वह फजीहत का शिकार और हो गए । इससे भी ज्यादा बुरी बात उनके लिए यह हुई कि अपने 'डबल गेम' को जस्टिफाई करने के लिए उन्होंने जिन अविनाश गुप्ता को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की, उन अविनाश गुप्ता ने पदों को ठुकरा कर अपना कद ऊँचा कर लिया । काउंसिल सदस्यों में हर कोई जहाँ पद पाने के जुगाड़ों में लगा था, वहाँ एक अकेले अविनाश गुप्ता ऐसे काउंसिल सदस्य बने - जो पदों की दौड़ में शामिल होने के बावजूद अपने आप को दौड़ से बाहर करते गए । रतन सिंह यादव अपने 'डबल गेम' को जस्टिफाई करने तथा सफल बनाने के लिए अविनाश गुप्ता को लगातार निशाना बनाते रहे, वह अविनाश गुप्ता को निशाना बनते देख खुश भी होते रहे - लेकिन वह यह समझने में चूक गए कि निशाना बनते हुए अविनाश गुप्ता उन्हें वास्तव में फजीहत व बदनामी के जिस दलदल में खींच कर पटक रहे हैं, वहाँ से उबर पाना रतन सिंह यादव के लिए खासा मुश्किल होगा ।
रतन सिंह यादव ने अपने 'डबल गेम' के तहत पहला काम तो यह किया कि अजय सिंघल को साथ लेकर उन छह सदस्यों के साथ ग्रुप बनाया, जो अब फाइनली सत्ता से बाहर हैं ।आठ सदस्यीय उस ग्रुप में रतन सिंह यादव इस समझौते के साथ जुड़े थे कि चेयरमैन पद के लिए उनके अलावा नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा व अविनाश गुप्ता नाम की पर्ची पड़ेगी । ग्रुप बनने/बनाने की बात को गुप्त रखने का फायदा उठाते हुए रतन सिंह यादव एक तरफ तो उक्त ग्रुप में शामिल हो गए थे, दूसरी तरफ वह अजय सिंघल के साथ मिल कर श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता व विजय गुप्ता की तिकड़ी को समझाने में लगे थे कि वह तीनों उन लोगों के साथ कैसे जुड़/बैठ सकते हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष उन्हें परेशान और बेइज्जत किया था । इन पाँच लोगों ने रचित भंडारी को भी अपने साथ कर लेने में सफलता पा ली थी । इन छह लोगों के ग्रुप में रतन सिंह यादव की चेयरमैनी तो पक्की थी, यहाँ उन्हें किसी के साथ पर्ची नहीं डालना थी - समस्या लेकिन यह थी कि सातवाँ समर्थक उन्हें खोजना/पाना था, और इसलिए सब कुछ पक्का होने के बाद भी पक्का कुछ नहीं था । इस कारण से रतन सिंह यादव पहले वाले ग्रुप में भी बने हुए थे । वहाँ बने रहते हुए वह वहाँ से निकलने के लिए बहाना भी तैयार करने लगे, और इसके लिए उन्होंने अविनाश गुप्ता को निशाना बनाना शुरू किया । उन्हें उम्मीद थी कि निशाना बनाये जाने से अविनाश गुप्ता बिदकेंगे, और ग्रुप में टूट-फूट मचेगी और तब उन्हें ग्रुप बाहर निकलने का अच्छा बहाना मिल जायेगा । रतन सिंह यादव को यह भी उम्मीद थी कि उनकी चालबाजी के चलते आठ सदस्यीय ग्रुप में टूट-फूट मचने पर गौरव गर्ग भी उनके साथ आ जायेंगे और वह चेयरमैन बन जायेंगे ।
अविनाश गुप्ता ने लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । रतन सिंह यादव ने पहले तो चेयरमैन पद के लिए अविनाश गुप्ता की पर्ची डालने पर आपत्ति की । उन्होंने सोचा था कि अविनाश गुप्ता इस पर भड़क जायेंगे, लेकिन अविनाश गुप्ता ने ग्रुप की एकता को बनाये रखने का वास्ता देकर अपने आप को चेयरमैन पद की चुनावी दौड़ से चुपचाप अलग कर लिया । अविनाश गुप्ता तब ट्रेजरर पद के लिए उम्मीदवार हो गए । ग्रुप में टूट-फूट मचाने लिए बहाना खोज रहे रतन सिंह यादव ने तब आपत्ति की कि यदि वह चेयरमैन बने तो उन्हें ट्रेजरर के पद पर अविनाश गुप्ता नहीं चाहिएँ । अविनाश गुप्ता इसके लिए भी राजी हो गए । उन्होंने कहा कि रतन सिंह यादव के चेयरमैन होने की स्थिति में वह गौरव गर्ग के साथ उम्मीदवारी बदल लेंगे और सेक्रेटरी पद के लिए उम्मीदवार हो जायेंगे । अपनी चाल को फेल होता देख रतन सिंह यादव ने तब शर्त थोपी कि अविनाश गुप्ता को वह किसी भी पद पर नहीं देखना चाहते हैं । उनकी उम्मीद के विपरीत, अविनाश गुप्ता ने उनकी इस बात को भी मान लिया और अपने आप को पदों की दौड़ से बाहर कर लिया । ग्रुप के दूसरे सदस्यों का कहना है कि उस समय तो उन्हें समझ में नहीं आया कि अविनाश गुप्ता इतनी आसानी से रतन सिंह यादव की माँगों को क्यों स्वीकार करते जा रहे हैं; लेकिन अब अविनाश गुप्ता ने उन्हें बताया है कि वह रतन सिंह यादव का खेल समझ गए थे, वह समझ गए थे कि वह धोखा दे रहे हैं, इसलिए उन्हें उन्हीं के खेल में उलझा कर उन्हें एक्सपोज करने के उद्देश्य से उनकी हर माँग को वह चुपचाप तरीके से स्वीकार करते गए ।
रतन सिंह यादव अपने ही जाल में फँस/उलझ गए थे । आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जिस धोखे का खेल खेल रहे थे, चुनाव का दिन नजदीक आने के कारण उसे उन्हें बंद करना ही था - तो उन्होंने झूठे ही आरोप लगाया कि आठ सदस्यीय ग्रुप के गठन की बात को गुप्त रखने की शर्त का चूँकि पालन नहीं किया गया है, इसलिए वह और अजय सिंघल ग्रुप से अलग हो रहे हैं । ग्रुप के सदस्यों ने उनसे पूछा भी कि ग्रुप के गठन की बात किसने कहाँ बता दी है, जिससे कि वह गुप्त नहीं रह गई - लेकिन रतन सिंह यादव ने इसका जबाव नहीं दिया; उन्हें तो दरअसल ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जो धोखाधड़ी कर रहे थे, उससे बाहर निकलने के लिए बहाना चाहिए था और इस बात को उन्होंने बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर लिया । चेयरमैन पद पर अपनी सुनिश्चित पकड़ बनाने के लिए रतन सिंह यादव ने आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ जो धोखा किया, और अविनाश गुप्ता को बलि का बकरा बनाने का जो प्रयास किया, उसमें फेल हो जाने के बाद रतन सिंह यादव के लिए फिर वह शशांक अग्रवाल की 'हार्ड बारगेनिंग' के सामने समर्पण करने अलावा कोई चारा नहीं बचा - और उनकी स्थिति 'ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम' जैसी हो गई । निकासा चेयरमैन के रूप में उनकी स्थिति उनके नजदीकियों को ही हजम नहीं हो रही है; उनका कहना है कि इससे तो अच्छा था कि रतन सिंह यादव कोई पद न लेते और 'किंग मेकर' की पहचान पाते । जाहिर है कि पॉवर ग्रुप में शामिल होने के बावजूद रतन सिंह यादव की लोगों के बीच फजीहत ही हो रही है; जबकि दूसरी तरफ पॉवर ग्रुप से बाहर हो कर भी अविनाश गुप्ता अपनी ऐसी छवि बना सकने में कामयाब हुए हैं, जो पदों के लालची नहीं हैं और ग्रुप में तथा काउंसिल में एकता व सद्भाव बनाये रखने के लिए पदों के ऑफर को छोड़ने के लिए तत्पर रहते हैं । इस पूरे प्रकरण में अविनाश गुप्ता के रवैये ने 'हार में जीत' जैसे मशहूर मुहावरे को सार्थक व प्रासंगिक बनाने का काम किया है ।

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चुनाव में 'किंग मेकर' के रूप में देखे/पहचाने जा रहे शशांक अग्रवाल तो 'किंग' बन गए और चेयरमैन पद के अलावा और कोई पद न लेने की घोषणा करने वाले रतन सिंह यादव को निकासा चेयरमैन पद से ही संतोष करना पड़ा  

नई दिल्ली । रोटी को बराबर बराबर बाँटने को लेकर हुई दो बिल्लियों की लड़ाई में बंदर द्वारा दोनों को ही ठग लेने की मशहूर कहानी को दोहराते हुए शशांक अग्रवाल ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन हथिया लिया है । मजे की बात यह हुई है कि चेयरमैन पद के लिए शशांक अग्रवाल का नाम दूर दूर तक चर्चा में नहीं था । पिछले तीन/चार दिनों में शशांक अग्रवाल को छोड़ कर बाकी सदस्यों में छह छह सदस्यों के दो खेमे तो बन गए थे - और दोनों खेमे के लोग अपनी अपनी तरह से शशांक अग्रवाल को अपनी अपनी तरफ खींचने का प्रयास कर रहे थे; जिसके चलते यह संभावना तो बन रही थी कि शशांक अग्रवाल को अबकी बार कोई न कोई पद तो मिल ही जायेगा, लेकिन यह किसी ने नहीं सोचा था कि शशांक अग्रवाल इतने बड़े 'हार्ड बारगेनर' निकलेंगे कि चेयरमैन का पद जुगाड़ लेंगे । चेयरमैन पद के लिए ताल ठोक रहे दूसरे उम्मीदवार बेचारे ताकते रह गए और चेयरमैन पद का ताज शशांक अग्रवाल के माथे पर जैसे अपने आप आ सजा । नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की राजनीति में रतन सिंह यादव को किस्मत ने लगातार दूसरी बार धोखा दिया और बैठते बैठते चेयरमैन पद की कुर्सी एक बार फिर उनके नीचे से निकल गई ।  
रतन सिंह यादव ने इस बार चेयरमैन पद के लिए पक्की फील्डिंग सजाई थी, और पिछली बार जैसे धोखे का शिकार होने से बचने की पूरी व्यवस्था की थी । वह छह सदस्य थे और सातवें के लिए शशांक अग्रवाल से बात कर रहे थे । शशांक अग्रवाल के दोनों हाथों में लड्डू थे । दरअसल दूसरा खेमा भी उन्हें अपनी तरफ खींच रहा था । शशांक अग्रवाल ने मौका ताड़ा और चेयरमैन पद की माँग कर दी । रतन सिंह यादव पर उनके 'साथियों' का दबाव पड़ा कि सत्ता में आना है, तो शशांक अग्रवाल की माँग मान लेना चाहिए । रतन सिंह यादव ने चेयरमैन पद की कुर्सी पर बैठने की पूरी तैयारी कर ली थी, लेकिन एक बार फिर उनकी तैयारी धरी रह गई और जिन शशांक अग्रवाल को 'किंग मेकर' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह 'किंग' बन गए । रतन सिंह यादव को निकासा चेयरमैन पद से ही संतोष करना पड़ा ।
श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता और विजय गुप्ता की तिकड़ी ने पॉवर ग्रुप में तो लगातार दूसरी बार अपनी जगह बना ली है, लेकिन पद उन्हें एक ही मिला । पिछले वर्ष इन तीनों सदस्यों के पास पद थे, लेकिन इस वर्ष सिर्फ पंकज गुप्ता को ही पद मिल सका है और वह ट्रेजरर पद पर जीते हैं । देखा जाये तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में इस बार जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, वह इस तिकड़ी के कारण ही हुआ है - पिछले वर्ष नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में जो झगड़ा/झंझट रहा, उसमें यह तिकड़ी एक पक्ष थी; और इसी तिकड़ी की एकजुटता ने इस वर्ष सत्ता परिवर्तन के लिए आधार तैयार किया । इस नाते से उम्मीद की जा रही थी कि इस तिकड़ी के तीनों नहीं, तो दो सदस्यों को तो पद जरूर ही मिल जायेंगे । रतन सिंह यादव के जब तक चेयरमैन बनने की बात थी, तब तक अजय सिंघल को कोई पद मिलने की बात नहीं थी; किंतु जब चेयरमैन पद शशांक अग्रवाल को मिलना तय हुआ, तब माना गया कि रतन सिंह यादव कोई पद नहीं लेंगे और अजय सिंघल को पद मिलेगा । ट्रेजरर पद के साथ, निकासा चेयरमैन का पद तिकड़ी खेमे को मिलने की संभावना थी, लेकिन जिसे रतन सिंह यादव ने हथिया लिया । रतन सिंह यादव ने घोषणा की हुई थी कि वह तो चेयरमैन ही बनेंगे, कोई और पद उनके 'कद' के अनुरूप नहीं है । लेकिन निकासा चेयरमैन का पद उन्होंने जिस तरह से ले लिया है, उसे देख कर लोगों ने तिकड़ी को ठगी का शिकार होता हुआ पाया है ।

Wednesday, February 26, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल ने रोटरी फाउंडेशन से मिली ग्रांट को हड़पने के आरोप में सजा प्राप्त पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को अपने गवर्नर-वर्ष में असाइनमेंट देकर रोटरी के आदर्शों व नियम-फैसलों का मजाक नहीं उड़ाया है क्या ? 

कोटा । बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी के आरोप में रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा पाए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट में असाइनमेंट देने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है, और इस मामले को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल की मुश्किलें बढ़ती जा रही हैं । राजेश अग्रवाल के नजदीकियों के अनुसार, राजेश अग्रवाल ने सोचा तो यह था कि अनिल अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट वाटर एंड सेनीटेशन कमेटी का चेयरमैन बनाने पर कुछ दिन शोर-शराबा होगा, और फिर मामला ठंडा पड़ जायेगा । लेकिन ऐसा होता हुआ दिख नहीं रहा है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह सवाल लगातार परेशान कर रहा है कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर रोटरी फाउंडेशन से पैसे लेकर हड़प जाने के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए अनिल अग्रवाल के नेतृत्व में कोई भी कैसे काम कर सकेगा ? डिस्ट्रिक्ट में रोटरी सदस्यों का कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल ने जब अनिल अग्रवाल को 30 अप्रैल 2022 तक रोटरी ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा सुनाई हुई है; तब राजेश अग्रवाल उन्हें कोई भी रोटरी असाइनमेंट कैसे दे सकते हैं ? सदस्यों का पूछना है कि राजेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में खुद को क्या रोटरी इंटरनेशनल से ऊपर समझ रहे हैं ? सदस्यों का कहना है कि अनिल अग्रवाल को एक डिस्ट्रिक्ट कमेटी का चेयरमैन बना कर राजेश अग्रवाल वास्तव में डिस्ट्रिक्ट 3054 की पहचान और प्रतिष्ठा को धूमिल कर रहे हैं ।
राजेश अग्रवाल ने अनिल अग्रवाल को एक डिस्ट्रिक्ट असाइनमेंट देने के मामले में मजेदार किस्म के जबाव दिए हैं  - पहले तो उन्होंने कहा कि जितने रुपयों की घपलेबाजी के आरोप में अनिल अग्रवाल को सजा सुनाई गई थी, उतने रुपए चूँकि रोटरी फाउंडेशन को लौटा दिए गए हैं, इसलिए अनिल अग्रवाल की सजा भी अपने आप खत्म हो गई । इस पर राजेश अग्रवाल से पूछा गया कि सजा खत्म करने का अधिकार तो रोटरी इंटरनेशनल को है, वह कैसे सजा खत्म कर सकते हैं ? राजेश अग्रवाल से यह भी पूछा गया कि यह भला कहाँ का कानून है कि चोर चोरी करता हुआ पकड़ा जाए, और उससे चोरी का सारा माल बरामद हो जाए - तो फिर उसे सजा नहीं होती है ? राजेश अग्रवाल ने तब पैंतरा बदला और तर्क किया कि अनिल अग्रवाल को तो वास्तव में इंटरनेशनल स्तर पर सजा दी गई थी, न कि डिस्ट्रिक्ट में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा दी गई थी । इस पर सदस्यों का कहना है कि अनिल अग्रवाल को सजा सुनाते हुए जो पत्र दिया गया है (जिसे इस रिपोर्ट के अंत में पढ़ा जा सकता है), उसमें साफ साफ कहा गया है कि अनिल अग्रवाल को रोटरी में कोई ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स नहीं मिलेगा । सदस्यों का कहना है कि राजेश अग्रवाल को इतना तो पता होना ही चाहिए कि 'रोटरी' में 'डिस्ट्रिक्ट' भी आता है ।
मजे की बात यह भी है कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर हड़पी गई ग्लोबल ग्रांट के वापस होने के मामले में भी बड़े झोल की चर्चा है । यह एक रहस्य बना हुआ है कि वापस की गई ग्रांट की रकम आखिर दी किसने है । उल्लेखनीय है कि रोटरी फाउंडेशन की रकम जिस क्लब की तरफ से दी गई है, उस क्लब का उक्त ग्रांट से कोई मतलब नहीं है; और उस क्लब ने जो रकम रोटरी फाउंडेशन को दी है, उसके पास उतनी रकम आई कहाँ से - यह भी कोई बताने को तैयार नहीं है । इस तरह रोटरी फाउंडेशन के पैसों की चोरी करने वाला मामला चोरी की रकम वापस मिल जाने के बाद भी आरोपपूर्ण बना हुआ है । अपराध कानून में चोरी का माल जहाँ से बरामद होता है, वहाँ भी जाँच-पड़ताल और पूछताछ तो होती ही है न । लेकिन इस मामले में चुप्पी बनाए रखी जा रही है । इस तरह की बातों ने लगभग दफ्न हो चुके अनिल अग्रवाल की घपलेबाजी के किस्से को फिर से 'जीवित' कर दिया है । कई लोगों को लगता है कि राजेश अग्रवाल दरअसल अनिल अग्रवाल की बातों में आ गए और अनिल अग्रवाल ने उन्हें सब्जबाग दिखा कर इस्तेमाल कर लिया तथा अपने साथ-साथ उनकी भी फजीहत करा बैठे हैं । राजेश अग्रवाल से सहानुभूति रखने वाले रोटेरियंस का कहना है कि राजेश अग्रवाल को अनिल अग्रवाल के झाँसे में नहीं आना चाहिए था और अपने पद की जिम्मेदारी व गरिमा का ध्यान रखते हुए रोटरी के आदर्शों व नियम-फैसलों - तथा डिस्ट्रिक्ट की पहचान व प्रतिष्ठा के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए ।
अनिल अग्रवाल को सजा सुनाता हुआ रोटरी इंटरनेशनल का पत्र :


Tuesday, February 25, 2020

रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट विनोद बंसल को डर है कि कल होने वाली मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग में उन पर ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छोड़ने का दबाव पड़ेगा/बनेगा; लेकिन उनके नजदीकियों के अनुसार, उन्होंने भी तय कर लिया है कि उन पर चाहें जितना भी दबाव पड़े/बने, वह ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद तो नहीं छोड़ेंगे

नई दिल्ली । दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक की मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग बुलाने की माँग को लगातार टालते आ रहे ब्लड बैंक के प्रमुख कर्ताधर्ता विनोद बंसल अंततः मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए, जिसके चलते बहुप्रतीक्षित मीटिंग कल होने जा रही है । कल होने वाली मीटिंग को रोटरी में विनोद बंसल के राजनीतिक भविष्य के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण समझा जा रहा है । मजे की बात यह है कि इस मीटिंग को - और इस मीटिंग को बुलाने की लगातार होती माँग को - राजनीतिक रंग खुद विनोद बंसल ने ही दिया है । उल्लेखनीय है कि मामले की शुरुआत तब हुई, जब ब्लड बैंक के दूसरे पदाधिकारियों को - सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल तथा ट्रेजरर संजय खन्ना तक को - ब्लड बैंक में लाखों/करोड़ों रुपयों के खर्च से होने वाले कामों की जानकारी तब मिली, जब उनके भुगतान के बिल आए । लंबे-चौड़े बिल देख कर पदाधिकारियों के सिर चकराए कि ब्लड बैंक में ऐसे कौन से काम हो रहे हैं, जिनके बारे में उन्हें भनक तक भी नहीं है । पदाधिकारियों का कहना रहा कि ब्लड बैंक में लाखों/करोड़ों रुपये के खर्चे वाले जो काम हो रहे हैं, उनकी जानकारी ब्लड बैंक के पदाधिकारियों तथा मैनेजिंग कमेटी के सदस्यों को तो होनी ही चाहिए - और उनके अनुमति ली जानी चाहिए । विनोद बंसल ने इस बात पर कोई ध्यान नहीं दिया । बात जब बढ़ी, तो विनोद बंसल ने यह आरोप और लगा दिया कि डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोग उन्हें बदनाम करने के इरादे से ब्लड बैंक में हो रहे कामकाज को मुद्दा बना रहे हैं । विनोद बंसल की तरफ से मामले को राजनीतिक रंग देते हुए कहना/बताना शुरू किया गया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ से उन्हें हटाने के लिए रंजन ढींगरा और दीपक कपूर की तरफ से उन्हें बदनाम करने का प्रचार शुरू किया गया है ।
विनोद बंसल ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता से भी यह शिकायत की । समझा जाता है कि शेखर मेहता से शिकायत करने के पीछे विनोद बंसल का उद्देश्य उनकी सहानुभूति प्राप्त करने का रहा, जिसे 'दिखा' कर वह लोगों को बता सकें कि शेखर मेहता का समर्थन उनके साथ है । लोगों के बीच चर्चा रही कि इस तरह विनोद बंसल ने ब्लड बैंक के प्रतिकूल पड़ते मामले को अनुकूल बनाने तथा उससे दोहरा फायदा उठाने का जुगाड़ लगाया । विनोद बंसल की लेकिन बदकिस्मती रही कि शेखर मेहता उनकी चाल में नहीं फँसे और समझा जाता है कि शेखर मेहता की तरफ से उन्हें यही सलाह मिली कि मैनेजिंग कमेटी के लोग यदि मीटिंग चाहते हैं, तो उन्हें मीटिंग कर लेनी चाहिए । समझा जाता है कि शेखर मेहता की इस सलाह के चलते ही विनोद बंसल ब्लड बैंक की मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए । विनोद बंसल ने मीटिंग तो बुला ली है; उनके नजदीकियों के अनुसार, लेकिन वह इस बात से डरे हुए भी हैं कि मीटिंग में कुछेक लोग उन पर ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद छोड़ने के लिए दबाव भी बना सकते हैं । मैनेजिंग कमेटी में एक्स-ऑफिसो के रूप में शामिल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता तो पहले ही आरोप लगा चुके हैं कि ब्लड बैंक में बिना चुनाव करवाए विनोद बंसल अनधिकृत रूप से प्रेसीडेंट बने हुए हैं, और मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं । उन्होंने माँग की हुई है कि विनोद बंसल को ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद तुरंत छोड़ देना चाहिए और नए चुनाव होने तक किसी और को वर्किंग प्रेसीडेंट बनाया जाना चाहिए । 
दीपक गुप्ता की इस माँग ने विनोद बंसल की मुसीबत को एक अलग तरीके से खासा गंभीर बना दिया है । दरअसल दीपक गुप्ता को विनोद बंसल के नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता रहा है; विनोद बंसल  का दावा रहा है कि उन्होंने कई मौकों पर दीपक गुप्ता की मदद की है । डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दीपक गुप्ता और सुभाष जैन के बीच हुए चुनाव में विनोद बंसल ने अपनी सामर्थ्यभर दीपक गुप्ता का सहयोग/समर्थन किया था । ऐसे में, दीपक गुप्ता को अपने विरोधियों के साथ खड़ा देख कर विनोद बंसल को तगड़ा झटका लगा है । विनोद बंसल का कहना है कि दीपक गुप्ता असल में रमेश अग्रवाल के बहकावे में आकर उनके अहसानों को भूल गए हैं । दीपक गुप्ता जैसे अपने नजदीकियों के विरोधियों के साथ जा मिलने से विनोद बंसल ब्लड बैंक के मामले में अलग-थलग और अकेले पड़ गए हैं, और इसीलिए ब्लड बैंक के हिसाब-किताब से जुड़े आरोपों के मामले में उनके लिए हालात ज्यादा गंभीर हो गए हैं । विनोद बंसल के नजदीकियों के अनुसार, विनोद बंसल के लिए मामला चाहें जितना गंभीर हो गया हो और कल होने वाली मीटिंग में उन पर चाहें जितना भी दबाव पड़े - वह ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद तो नहीं छोड़ेंगे । दरअसल माना/समझा जा रहा है कि ब्लड बैंक में हिसाब-किताब अभी जिस 'हालत' में है, उसी हालत में वह यदि उनके विरोधियों के हाथ लग गया - तो उसका इस्तेमाल करके उनके विरोधी उन्हें बदनाम करने का मौका पा लेंगे । नजदीकियों का ही कहना है कि विनोद बंसल ब्लड बैंक के हिसाब-किताब को 'डेकोरेट' करने के लिए समय चाहेंगे, और इसके लिए प्रेसीडेंट पद पर बने रहने की पुरजोर कोशिश करेंगे । ब्लड बैंक की मैनेजिंग कमेटी की कल की मीटिंग में हो चाहें कुछ भी, एक बात यह तय है कि विनोद बंसल की मुश्किलें खत्म होने नहीं जा रही हैं - कल की मीटिंग के बाद बल्कि वह बढ़ेंगी ही ।

Monday, February 24, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महेश त्रिखा की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे व्यापक समर्थन का मुकाबला करने के लिए अशोक कंतूर को नाराज चल रहे रवि चौधरी को मनाने तथा उन्हें अजीत जालान के समर्थन से दूर हटाने की जरूरत महसूस हो रही है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए वोटिंग शुरू होने के दिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा द्वारा एजीटीएस (असिस्टेंट गवर्नर्स ट्रेनिंग सेमीनार) करने का संज्ञान लेते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने वोटिंग शुरू करने की तारीख दो/एक दिन आगे बढ़ाने के लिए कार्रवाई शुरू की है, जिसके चलते खामःखाँ पैदा हुए विवाद का अंत होता हुआ दिख रहा है । इसके लिए हर कोई सुरेश भसीन की तारीफ कर रहा है; लोगों को लग रहा है कि नाहक ही पैदा हुए एक विवाद को सुरेश भसीन ने अपनी सूझबूझ से बहुत आराम से खत्म करवाने के लिए कदम उठाया है । उल्लेखनीय है कि एक तरफ तो घोषित कार्यक्रम के अनुसार, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए भारतीय समयानुसार 29 फरवरी की देर रात से वोटिंग लाइन खुलना हैं; और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा ने 29 फरवरी व एक मार्च को एजीटीएस करने का रेसीडेंशियल प्रोग्राम बना लिया है, जिसमें कई मौजूदा प्रेसीडेंट्स को विभिन्न भूमिकाएँ देते हुए आमंत्रित किया गया है । संजीव राय मेहरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाता है - इसलिए आरोप लगे कि संजीव राय मेहरा 29 फरवरी की रात को, एजीटीएस में इकट्ठा हुए प्रेसीडेंट्स से अपने सामने अशोक कंतूर के पक्ष में वोट डलवायेंगे । आरोप की शक्ल में विवाद बढ़ता दिखा, तो सुरेश भसीन ने हस्तक्षेप किया और कहा कि वह वोटिंग लाइन खुलने की तारीख दो/एक दिन आगे बढ़वाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करते हैं । उनके इस ऐलान से उक्त विवाद शांत हुआ है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से जुड़ा एक विवाद तो शांत हो गया है, लेकिन अजीत जालान और उनके साथी एक दूसरे विवाद को जिंदा रखने के प्रयासों में लगे हुए हैं । उल्लेखनीय है कि अजीत जालान और उनके साथी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में उस समय भड़क उठे थे, जब लोगों के बीच उन्होंने चर्चा सुनी कि अजीत जालान को तो कुल दस/पंद्रह वोट ही मिल सकेंगे और वह नाहक ही उम्मीदवार बने हुए हैं । यह चर्चा सुन कर अजीत जालान और उनके साथियों ने आरोप लगाया कि प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार और उनके समर्थक इस तरह का नकारात्मक प्रचार करके उनकी चुनावी संभावना को खत्म करने का काम कर रहे हैं । उनके इस आरोप को उनका रोना-धोना बताते हुए कई एक लोगों ने उन्हें सलाह भी दी कि चुनाव से पहले हर कोई अपना अपना आकलन पेश करता ही है, इसमें आरोप वाली बात भला क्या है ? कई लोगों ने अजीत जालान और उनके साथियों को समझाया कि रोने-धोने की बजाये, अपनी चुनावी संभावना को मजबूत करने के लिए उन्हें दावा करना चाहिए कि अजीत जालान को तो 150 वोट मिल रहे हैं । अजीत जालान और उनके साथी लेकिन लगातार यही रोना रोये जा रहे हैं कि उन्हें दस/पंद्रह ही वोट मिलने की बात कह कर कुछेक लोग उनकी चुनावी जीत की संभावना को खत्म करने का षड्यंत्र कर हैं । अजीत जालान के नजदीकियों को ही कहना/बताना है कि अजीत जालान जीतने के लिए उम्मीदवार नहीं बने हुए हैं; असल में वह भी जान/समझ रहे हैं कि इस बार वह नहीं जीत रहे हैं - इसके बावजूद वह उम्मीदवार बने हुए हैं और समर्थन जुटाने के लिए प्रयास कर रहे हैं तो इसलिए ताकी अगले रोटरी वर्ष में उनकी उम्मीदवारी को प्रभावी तरीके से समर्थन मिल सके ।
उल्लेखनीय है कि अगले रोटरी वर्ष की उम्मीदवारी के लिए कई उम्मीदवारों ने अभी से अपनी तैयारी शुरू कर दी है, जिसे देखते हुए अजीत जालान को लगता है कि इस बार के चुनाव में पिछड़ने/हारने के बाद भी उन्हें यदि अच्छे वोट मिल जाते हैं, तो अगली बार के लिए उनका दावा मजबूत हो जायेगा । अजीत जालान और उनके साथियों को डर है कि उन्हें मिलने वाले वोटों की संख्या यदि सचमुच दस/पंद्रह ही रह गई, तो अगले रोटरी वर्ष में भी उनकी उम्मीदवारी को कोई गंभीरता से नहीं लेगा । इसलिए वह दस/पंद्रह वोट मिलने की बात से भड़के हुए हैं । इस मामले में रोना/धोना मचाये रख कर अजीत जालान और उनके साथी अपने वोटों की संख्या को थोड़ा बढ़ा लेना चाहते हैं । उनकी इस कोशिश ने अशोक कंतूर और उनके साथियों को डराया हुआ है । दरअसल अशोक कंतूर और उनके साथियों को लगता है कि अजीत जालान को जो भी वोट मिलेंगे, वह वास्तव में उनके वोटों की संख्या को ही घटाने का काम करेंगे । उल्लेखनीय है कि पिछले रोटरी वर्ष में अशोक कंतूर और अजीत जालान एक साथ थे, लेकिन तब भी अशोक कंतूर जीतने के लिए जरूरी वोट प्राप्त नहीं कर सके थे । इस बार अजीत जालान जब खुद भी उम्मीदवार बन बैठे हैं, तब स्वाभाविक रूप से अशोक कंतूर के लिए जीतने के लिए जरूरी वोट पाना और मुश्किल बन गया दिख रहा है । इस मुश्किल को हल करने के लिए अशोक कंतूर की तरफ से पूर्व गवर्नर रवि चौधरी का समर्थन फिर से प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है । अशोक कंतूर की तरफ से कोशिश की जा रही है कि रवि चौधरी का समर्थन भले ही उन्हें न मिले, लेकिन रवि चौधरी - अजीत जालान को वोट दिलवाने की कोशिश करते हुए भी न दिखें । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में रवि चौधरी जिस तरह से गायब रहे और अजीत जालान अकेले ही अपनी उम्मीदवारी के अभियान में जुटे नजर आए - उसे अशोक कंतूर ने रवि चौधरी की मदद के रूप में ही देखा/पहचाना है । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में तीनों उम्मीदवारों के 'प्रदर्शन' में महेश त्रिखा की प्रस्तुति को जिस तरह से व्यापक सराहना मिली और उनके क्लब के सदस्य - दोनों पूर्व गवर्नर्स सुरेश जैन तथा संजय खन्ना सहित - बड़ी संख्या में उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन दिखाते हुए नजर आये - उसके चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महेश त्रिखा को एक अच्छी पोजीशन मिलती हुई लगी है । ऐसे में, अशोक कंतूर के शुभचिंतकों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि अजीत जालान ने वोट जुटाने के अपने प्रयासों को यदि जारी रखा, तो अशोक कंतूर के लिए महेश त्रिखा की उम्मीदवारी का मुकाबला करना मुश्किल ही होगा ।

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को मनमानी करने तथा उनकी लूट-खसोट को रोकने में मौजूदा लीडरशिप की असफलता के कारण डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच असमंजसता तथा निराशा फैल रही है

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जुटे रोटेरियंस की विभिन्न मामलों से जुड़ी शिकायतभरी बातों ने लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा लीडरशिप के खिलाफ बढ़ती नाराजगी के संकेत देने का काम किया है । लोगों की एकतरफा और बड़ी शिकायत यही सुनी गई कि उन्होंने मौजूदा लीडरशिप को यह सोच कर समर्थन दिया था कि इससे उन्हें और डिस्ट्रिक्ट को राजा साबू गिरोह के कुशासन से मुक्ति मिलेगी तथा उनकी मनमानियों व ग्रांट के पैसों की उनकी लूट-खसोट पर रोक लगेगी - लेकिन लग रहा है कि मौजूदा लीडरशिप ने राजा साबू गिरोह के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है और उनके जैसे ही तौर-तरीके अपना लिए हैं । ग्रांट के पैसे राजा साबू गिरोह के लोगों को ही मिल रहे हैं, और उनके ही प्रोजेक्ट हो रहे हैं; डिस्ट्रिक्ट के दूसरे कामकाजों तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने में भी पहले जैसे ही 'तरीके' अपनाए जा रहे हैं । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पहले सहारनपुर से उम्मीदवार आने/लाने की बात हो रही थी, लेकिन फिर अचानक पता चला कि नेताओं ने अरुण मोंगिया को उम्मीदवार बनाने का फैसला कर लिया है । सहारनपुर के रोटेरियंस के साथ-साथ दूसरे रोटेरियंस को भी इस फैसले से झटका लगा । इस झटके के चलते जले-भुने बैठे सहारनपुर के रोटेरियंस से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में किसी ने पूछ लिया कि आपके यहाँ से कोई उम्मीदवार नहीं आ रहा है क्या ? इस पर उसे सुनने को मिला - अभी हमारा नंबर कहाँ आयेगा ? नेताओं के रवैये को देखते हुए हमें तो लग रहा है कि जब तक काबिल सिंह भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन जायेंगे, तब तक हमें तो इंतजार ही करना पड़ेगा ।
मामला सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार 'चुनने' का ही नहीं है - बल्कि दूसरे प्रशासनिक व व्यवस्था संबंधी मामलों में भी मनमानी व अराजकता से जुड़ा हुआ है । ग्रांट के लिए आवेदन करने के मामले में सहायता चाहने वाले लोगों को सलाह मिलती है कि मधुकर मल्होत्रा से बात कर लो । यह सलाह पाने वाले लोगों का कहना है कि इनकी राजनीति के चक्कर में तो उन्होंने मधुकर मल्होत्रा से झगड़ा कर लिया, अब वह किस मुँह से मधुकर मल्होत्रा के पास जाएँ । लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के नए लीडरों ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक सत्ता पर तो कब्जा कर लिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट चलाने तथा रोटरी के काम करने की कोई व्यवस्था नहीं की है - जिसके कारण एक तरफ तो राजा साबू और उनके गिरोह के दूसरे नेताओं ने मौजूदा लीडरों का अपने आगे समर्पण करवा लिया है, और अपने काम बना रहे हैं, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट में अराजकता सी पैदा हो रही है । इसे व्यवस्था संबंधी अराजकता का ही संकेत और सुबूत माना/कहा जायेगा कि रोटरी लीडरशिप इंस्टीट्यूट को लेकर लगातार असमंजस बना रहा है, जिसके चलते पहले तय की गई फैकल्टी बिदक गई और अब जब उक्त इंस्टीट्यूट का कार्यक्रम तय हुआ है, तब जैसे तैसे अन्य फैकल्टीज की व्यवस्था की गई है । फैसले करने में होने वाली देर/दार के कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स भी लोगों को आकर्षित व प्रभावित नहीं कर सके और स्पीकर्स को लेकर लोगों के बीच असंतोष बना/रहा । 
लोगों को लग रहा है कि फैसलों में लेटलतीफी होने तथा असमंजस रहने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज का गवर्नर-वर्ष और ज्यादा शिकार होने जा रहा है । रमेश बजाज के पेट्स कार्यक्रम को लेकर जो तमाशा देखने को मिल रहा है, उससे संकेत मिल रहा है कि रमेश बजाज के गवर्नर-वर्ष के कार्यक्रम तो बस राम-भरोसे ही रहने हैं । उल्लेखनीय है कि पेट्स का आयोजन पहले कुफरी में होना निश्चित हुआ था, लेकिन फिर उसे पंचकुला में करने का फैसला हुआ । रमेश बजाज के नजदीकियों के अनुसार ही, कुफरी में पेट्स के आयोजन में खर्चा ज्यादा हो रहा था, इसलिए वहाँ आयोजन करने का इरादा छोड़ दिया गया । खर्चे को लेकर हालाँकि समस्या के अभी भी अटके/फँसे होने की चर्चा है । रमेश बजाज यह सोच सोच कर परेशान बताये जा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से जितने/जो पैसे मिलेंगे, उतने में तो पेट्स का खर्चा निपटेगा नहीं - तो बाकी खर्चा कहाँ से और कैसे पूरा होगा ? डिस्ट्रिक्ट में जोन बनाने को लेकर भी रमेश बजाज और उनके सहयोगी गफलत में हैं और किसी अंतिम फैसले पर पहुँचने को लेकर असमंजस में हैं । रमेश बजाज ने अपने असिस्टेंट गवर्नर्स से सहायता न मिलने को लेकर शिकायतें करना अभी से शुरू कर दिया है । उनका कहना है कि 'राजनीतिक मजबूरियों' के चलते वह ऐसे लोगों को असिस्टेंट गवर्नर्स बनाने के लिए मजबूर हुए हैं, जो डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था में उनकी मदद करने में सर्वथा अनुपयुक्त हैं । इस तरह की बातों से लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा लीडरशिप डिस्ट्रिक्ट में हुए बड़े राजनीतिक बदलाव से जुड़ी लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पाने में विफल हो रही है, जिसके कारण राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को मनमानी करने तथा लूट-खसोट बनाये रखने का मौका मिल रहा है तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच असमंजसता तथा निराशा फैल रही है ।

Thursday, February 20, 2020

रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट में शेखर मेहता के साथ कमल सांघवी जिस तरह से जुड़े रहे, और किसी तीसरे को इस समिट में तवज्जो मिलती नहीं दिखी - उससे मनोज देसाई की रोटरी में 'आगे की यात्रा' में रोड़े पड़ते देखे/पहचाने जा रहे हैं

नई दिल्ली । रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट में हर मौके पर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी शेखर मेहता और इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी की जैसी छाप रही, उसे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की 'भावी योजना' को तगड़ी चोट पहुँचने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि इस समिट का घोषित उद्देश्य चाहें जो रहा हो, लेकिन इसका अघोषित उद्देश्य भारत से अगले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए कमल सांघवी को प्रमोट करना था - और शेखर मेहता व कमल सांघवी ने इस अघोषित उद्देश्य को बहुत ही प्रभावी तरीके से अंजाम दिया । इसके लिए शेखर मेहता व कमल सांघवी की जोड़ी ने दो बातों का खास ख्याल रखा - एक तो यह कि इन्होंने अपने अलावा किसी तीसरे को पूरे आयोजन में कोई तवज्जो नहीं मिलने दी; और दूसरे उन्होंने खेमेबाजी की दीवारों को तोड़ने की कोशिश की ताकि कोई भी नाराज न हो । विरोधी समझे जाने वाले खेमे के लोगों को छोटे छोटे मौकों पर जिम्मेदारियाँ देकर संदेश देने की कोशिश की गई कि यह सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना चाहते है । प्रेसीडेंट नॉमिनी डिनर की जिम्मेदारी राजु सुब्रमणियन को सौंपे जाने के फैसले पर हर किसी को हैरानी हुई । राजु सुब्रमणियन को पूर्व प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के नजदीक समझा/पहचाना जाता है, इसलिए उन्हें जिम्मेदारी सौंपने के फैसले को शेखर मेहता व कमल सांघवी की जोड़ी की बड़ी चाल के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
शेखर मेहता व कमल सांघवी की इस चाल को मनोज देसाई की आगे की राजनीति के लिए खतरे की घंटी के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि भारत से अगले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए मनोज देसाई की उम्मीदवारी की चर्चा रही है । सुशील गुप्ता जब प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए थे, तभी यह चर्चा थी कि उनके बाद प्रेसीडेंट पद के लिए शेखर मेहता व मनोज देसाई के बीच मुकाबला होगा । दोनों ही सुशील गुप्ता की आँखों के तारे रहे हैं; हालाँकि सुशील गुप्ता के नजदीकियों को लगता था कि सुशील गुप्ता पहले शेखर मेहता को और फिर मनोज देसाई को प्रेसीडेंट का पद दिलवाने का प्रयास करेंगे । अप्रत्याशित रूप से सुशील गुप्ता के प्रेसीडेंट पद तक पहुँचने के रास्ते से हट जाने के बाद, शेखर मेहता 'उम्मीद से पहले' ही प्रेसीडेंट पद के नजदीक हो गए । सुशील गुप्ता के सीन से हटने के बाद उनका खेमा नेतृत्वविहीन हो गया है । अलग अलग कारणों से चूँकि कल्याण बनर्जी और राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू की हैसियत भी 'डेकोरेटिव आईटम' जैसी हो गई है, जिससे देश की रोटरी राजनीति में नेतृत्व का वैक्यूम पैदा हो गया है । प्रेसीडेंट (नॉमिनी) होने के कारण शेखर मेहता के पास इस वैक्यूम को भरने का एक बढ़िया मौका है, और वह इस मौके का पूरा पूरा फायदा उठाते हुए दिख भी रहे हैं - लेकिन फायदा उठाने के उनके मौके में कमल सांघवी की मौजूदगी लोगों के बीच बेचैनी व हलचल भी पैदा कर रही है ।
रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट में शेखर मेहता के साथ कमल सांघवी जिस तरह से जुड़े रहे, और किसी तीसरे को इस समिट में तवज्जो मिलती नहीं दिखी - उससे लोगों के बीच कई सवाल पैदा हुए हैं । समिट में सबसे बुरी बीती भरत पांड्या और विनोद बंसल के साथ । भरत पांड्या इंटरनेशनल डायरेक्टर हैं, और विनोद बंसल समिट की तैयारी समिति के प्रेसीडेंट थे - इसके बावजूद दोनों को खास तवज्जो नहीं मिली, और दूसरे लोगों की तरह यह दोनों भी शेखर मेहता व कमल सांघवी के दिशा-निर्देशों पर ही 'काम' करते हुए देखे गए । दरअसल समिट के पूरे आयोजन में, महत्त्वपूर्ण पदों पर होने के बावजूद भरत पांड्या और विनोद बंसल की जैसी जो उपेक्षा हुई, उसे देख कर ही लोगों का ध्यान इस बात की तरफ गया कि पूरा आयोजन तो वास्तव में शेखर मेहता व कमल सांघवी की गिरफ्त में है । पूरे आयोजन का 'डिजाईन' खासी होशियारी से तैयार किया गया था, जिसमें ऐसे लोगों को तो छोटे छोटे मौकों पर जिम्मेदारियाँ दी गईं और अलग अलग कारणों से तथा रूपों में मंच पर आने का मौका दिया गया - जो शेखर मेहता व कमल सांघवी के लिए कोई खतरा और या चुनौती नहीं बनते हैं; लेकिन उनके लिए खतरा और या चुनौती बन सकने वाले बड़े नेताओं को 'किनारे' लगा दिया गया । शेखर मेहता व कमल सांघवी की इसी होशियारी में मनोज देसाई की रोटरी में 'आगे की यात्रा' में रोड़े पड़ते देखे/पहचाने जा रहे हैं । 

Tuesday, February 18, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता से अपने बदले हुए नाम तथा अपने विज्ञापन को लेकर फटकारे जा चुके राजिंदर अरोड़ा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने लिए अतुल गुप्ता के भाई अरुण गुप्ता को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट मुख्यालय में गैर काउंसिल सदस्यों के प्रवेश के लिए निषिद्ध घोषित कैंटीन में राजिंदर अरोड़ा और अतुल गुप्ता की लंच मीटिंग की संलग्न तस्वीर नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के गठन की  पर्दे के पीछे चल रही कोशिशों का संकेत दे रही है क्या ? इस तस्वीर में सेंट्रल काउंसिल में सरकार द्वारा नामित सदस्य विजय झालानी तथा अतुल गुप्ता के भाई अरुण गुप्ता की मौजूदगी दरअसल मामले को संदेहास्पद बना रही है । तस्वीर में नजर आने वाले बाकी चेहरे संगरूर ब्रांच के पदाधिकारियों के हैं, जो अतुल गुप्ता को प्रेसीडेंट बनने की बधाई देने मुख्यालय आये थे । मुख्यालय में इन्हें अतुल गुप्ता से मिलवाने की जिम्मेदारी राजिंदर अरोड़ा ने ही ली और निभाई थी । राजिंदर अरोड़ा ने इस जिम्मेदारी को अतुल गुप्ता के भाई अरुण गुप्ता के जरिये निभाया था । प्रेसीडेंट ऑफिस के स्टॉफ के अनुसार, अतुल गुप्ता के प्रेसीडेंट के बनने बाद से प्रेसीडेंट ऑफिस पर अरुण गुप्ता ने ही 'कब्जा' किया हुआ है, और ऑफिसियल काम के अलावा दूसरे काम वही देखते/करते हैं । कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्य तथा वरिष्ठ स्टॉफ अरुण गुप्ता की दखलंदाजी को लेकर इशारों इशारों अपनी नाराजगी जता चुका है, लेकिन अतुल गुप्ता पर इसका कोई असर नहीं पड़ा है ।
इस मामले में विजय झालानी के रवैये पर भी सभी को हैरानी है । लोगों का कहना है कि विजय झालानी वैसे तो हमेशा ही नियम-कायदों की दुहाई देते रहते हैं, लेकिन अरुण गुप्ता मुख्यालय में जिस तरह से 'नॉन-कॉन्स्टीट्यूशनल पॉवर' बन गए हैं, उस पर न केवल चुप्पी साधे हुए हैं, बल्कि अरुण गुप्ता के साथ सहभागिता दिखाते हुए भी नजर आते हैं । इन शब्दों के साथ संलग्न तस्वीर से जुड़े मामले को ही लें : संगरूर ब्रांच के पदाधिकारी अतुल गुप्ता को प्रेसीडेंट बनने की बधाई देने मुख्यालय आते हैं, और चूँकि लंच के टाइम पर आते हैं, इसलिए अतुल गुप्ता उन्हें लंच करवाते हैं - यह बात तो समझ में आती है; राजिंदर अरोड़ा चूँकि संगरूर ब्रांच के पदाधिकारियों को लेकर आते हैं, इसलिए राजिंदर अरोड़ा भी लंच करने बैठ जाते हैं - यह बात भी स्वीकार्य कर ली जा सकती है । लेकिन यहाँ विजय झालानी और अरुण गुप्ता की मौजूदगी का क्या मतलब है ? विजय झालानी सेंट्रल काउंसिल सदस्य होने के नाते इस कैंटीन में आने के अधिकारी तो हैं, लेकिन अरुण गुप्ता यहाँ क्या रहे हैं ? यहाँ विजय झालानी की उपस्थिति दरअसल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण और सवालिया बनी है, कि हमेशा ही नियम-कानूनों की बात करने वाले विजय झालानी ने इस बात पर आपत्ति क्यों नहीं की, कि सिर्फ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के लिए अधिकृत कैंटीन में गैर काउंसिल सदस्य कैसे बैठे हैं ? यूँ बात बहुत छोटी सी है, लेकिन यह दिखाने के लिए काफी है कि प्रेसीडेंट और उनके नजदीकी किस तरह इंस्टीट्यूट में नियम-कानूनों का मजाक बनाते हैं, और सरकार द्वारा नामित सदस्य कैसे उनके साथ मिले होते हैं ।
राजिंदर अरोड़ा के नजदीकियों के अनुसार, संगरूर ब्रांच के पदाधिकारियों को अतुल गुप्ता से मिलवाने ले जाना तो एक बहाना था - राजिंदर अरोड़ा वास्तव में अतुल गुप्ता के साथ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पॉवर ग्रुप के गठन को लेकर बात करने का मौका खोज रहे थे । राजिंदर अरोड़ा दरअसल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनना चाहते हैं, और इसके लिए वह रीजनल काउंसिल के सदस्यों को यह दिखाना चाहते हैं कि अतुल गुप्ता के साथ उनके बड़े नजदीकी के और बड़े खास संबंध हैं । राजिंदर अरोड़ा के लिए समस्या की बात यह है कि उन्होंने सोशल मीडिया में जिस तरह से अपना नाम 'जीएसटी सीए राजिंदर अरोड़ा' किया हुआ है और अपनी सेवाओं के लिए तरह तरह से विज्ञापन करते रहते हैं, उसे लेकर अतुल गुप्ता कुछेक बार अपनी नाराजगी दिखा चुके हैं, और उनसे कह चुके हैं कि इस तरह की बातें प्रोफेशन तथा प्रोफेशन से जुड़े लोगों को बदनाम करती हैं । राजिंदर अरोड़ा पर लेकिन इन बातों का कोई असर नहीं पड़ा है । लोगों के बीच भी चर्चा है कि राजिंदर अरोड़ा की जो राजनीतिक सक्रियता है, उसके पीछे उनका वास्तविक उद्देश्य अपना धंधा बढ़ाना है । लोगों को लगता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन वह इसलिए ही बनना चाहते हैं, ताकि उन्हें लोगों तक एक विश्वसनीय पहुँच बनाने का मौका मिले और उन्हें क्लाइंट्स मिलें । अतुल गुप्ता के साथ नजदीकी दिखा कर राजिंदर अरोड़ा को लगता है कि वह रीजनल काउंसिल में चेयरमैन का पद पा लेंगे, जिससे फिर उन्हें अपना धंधा बढ़ाने में भी मदद मिलेगी । 

Sunday, February 16, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के नए पॉवर ग्रुप में सेक्रेटरी 'बनने' के जोश में की गई हरकत से गौरव गर्ग ने ग्रुप बनने की संभावनाओं को झटका देने के साथ अपने सेक्रेटरी पद को भी असुरक्षित कर लिया है 

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के अगले वर्ष के पॉवर ग्रुप में सेक्रेटरी 'बनने' की खुशी के जोश में गौरव गर्ग ने सत्ता पार्टी के दूसरे सदस्यों को नाराज कर दिया है, और उन्हें लग रहा है कि गौरव गर्ग का जोश पॉवर ग्रुप को बनने से पहले ही कहीं बिखेर न दे । गौरव गर्ग ने दरअसल पॉवर ग्रुप के सातवें सदस्य को जुटाने के लिए रीजनल काउंसिल के कुछेक सदस्यों का दरवाजा खटखटाया, जिससे पता चला कि छह सदस्यों का तो ग्रुप बन गया - सातवाँ और मिल जाए, तो नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का पॉवर ग्रुप बन जायेगा । गौरव गर्ग की सूचना के अनुसार, उनके अलावा नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा, सुमित गर्ग, हरीश जैन और अविनाश गुप्ता ने आपस में गठजोड़ कर लिया है । इनके बीच सहमति बन गई है कि सचिव गौरव गर्ग होंगे तथा चेयरमैन का चुनाव नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा व अविनाश गुप्ता के नाम की पर्ची डाल कर होगा । बाकी पदों का फैसला सातवाँ सदस्य मिल जाने पर होगा । सातवें सदस्य के लिए रतन सिंह यादव, पंकज गुप्ता, विजय गुप्ता, शशांक अग्रवाल का दरवाजा खटखटाया गया है । इस छह सदस्यों के बीच तय यह हुआ था कि सातवें सदस्य की तलाश में चेयरमैन व सेक्रेटरी पद को लेकर हुए फैसले के बारे में किसी को कुछ नहीं बताया जायेगा और कोशिश की जायेगी कि सातवाँ सदस्य बिना शर्त के इनके साथ जुड़े । गौरव गर्ग ने लेकिन कुछ भी छिपा नहीं रहने दिया ।
गौरव गर्ग ने सातवें सदस्य की तलाश में जहाँ जहाँ भी 'छापा मारा', वहाँ वहाँ साफ साफ बता दिया कि सेक्रेटरी तो मैं हूँ, इसलिए सेक्रेटरी बनने की उम्मीद तो रखना मत । यह बताया, तो फिर चेयरमैन वाली रणनीति का भी उन्होंने खुलासा कर दिया । इससे मामला बिगड़ गया । सभी से अमूमन यही जबाव मिला कि महत्त्वपूर्ण पद आप लोगों ने जब बाँट ही लिए हैं, तो हम क्या करेंगे/पायेंगे ? गौरव गर्ग ने ही लोगों को बताया है कि रतन सिंह यादव ने तो यह कहते हुए उनसे सौदेबाजी भी शुरू कर दी कि मुझे या अजय सिंघल को चेयरमैन बनाओ, तो हम दोनों का समर्थन ले लो । गौरव गर्ग ने उन्हें आश्वस्त किया कि उनके नाम की भी पर्ची डाल लेंगे । रतन सिंह यादव लेकिन इसके लिए तैयार नहीं हुए । उनका कहना रहा कि पर्ची से फैसला पिछली बार भी हुआ था, उस फैसले को लेकिन माना कहाँ गया । रतन सिंह यादव ने गौरव गर्ग से बता दिया कि उन्हें हरीश जैन तथा अविनाश गुप्ता पर भरोसा नहीं है, इसलिए वह उनके साथ पर्ची वाले खेल में शामिल नहीं होंगे । दूसरे लोगों ने भी अपने अपने तर्क देकर साफ साफ कुछ कहने से बचने की ही कोशिश की है । दरअसल पॉवर ग्रुप में शामिल हो सकने वाले सभी लोग अभी 'देखो और इंतजार करो' का फार्मूला अपनाए हुए हैं ।
नितिन कँवर को लेकिन लग रहा है कि गौरव गर्ग ने खुद के सेक्रेटरी बनने की बात का खुलासा करके खेल बिगाड़ दिया है, और छह सदस्यों को जोड़ कर जो पहल की गई थी - उसका शुरू में ही दम तोड़ दिया है । चेयरमैन के पद के लिए पर्ची डालने वाली बात तो फिर भी समझ में आती है; स्वाभाविक ही है कि बनने वाले पॉवर ग्रुप में चेयरमैन पद के लिए यदि एक से अधिक उम्मीदवार हैं, तब फैसला पर्ची डाल कर ही करना पड़ेगा । लेकिन सेक्रेटरी पद सुनिश्चित हो जाने से पॉवर ग्रुप में शामिल हो सकने वाले सदस्यों के कदम रुक जा सकते हैं । नितिन कँवर को लग रहा है कि गौरव गर्ग की हरकत नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का कामकाज पटरी पर लाने की उनकी कोशिशों को फेल कर सकती है । ऐसे में नितिन कँवर और उनके साथियों के बीच चर्चा भी चली है कि पॉवर ग्रुप के लिए यदि दो सदस्यों का जुगाड़ हो जाए, तो फिर वह गौरव गर्ग को छोड़ भी सकते हैं । इस तरह की बातों से जाहिर है कि गौरव गर्ग ने सेक्रेटरी 'बनने' के जोश में जो कांड कर दिया है, उसने नया पॉवर ग्रुप बनने की संभावनाओं को तो झटका दिया ही है, साथ ही अपने सेक्रेटरी पद को भी असुरक्षित कर लिया है ।

Saturday, February 15, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की चुनावी राजनीति में पंकज बिजल्वान की तरफ से फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग कराने की शुरू हुई बातों को पंकज बिजल्वान खेमे में फैली निराशा व अपनी हार स्वीकार करने के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; और इसे रजनीश गोयल की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे व्यापक समर्थन में और इजाफा होने के लक्षण व सुबूत के रूप में ही स्वीकार किया जा रहा है

देहरादून । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनावी मुकाबले में अपनी पराजय को सुनिश्चित देख/जान कर पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों ने 'खिसियानी बिल्लियों की तरह खंभा नोचना' शुरू कर दिया है, और चुनाव-अभियान के नाम पर वह गाली-गलौज करने तथा चरित्रहनन की हरकतों पर उतर आए हैं । पिछले कुछेक वर्षों का इतिहास गवाह है कि इस तरह की हरकतें करने वालों ने माहौल को गंदा जरूर किया है, लेकिन राजनीतिक रूप से वह हासिल कुछ नहीं कर पाए हैं । दरअसल हमारे समाज में सयानों ने भी कहा है कि गालियाँ देने का तथा बकवासबाजी करने का काम वही लोग करते हैं, जो अपने आप को कमजोर पड़ता देखते/पाते हैं और जिनके पास तथ्यात्मक रूप से कहने के लिए कोई बात नहीं होती है; जो लोग इस सच्चाई को जान/समझ लेते हैं कि लोगों के बीच उनकी तो कोई इज्जत, साख व विश्वसनीयता नहीं बची है - तब वह दूसरों की इज्जत, साख व विश्वसनीयता के साथ खिलवाड़ करने लगते हैं । पंकज बिजल्वान के नजदीकियों व समर्थकों की तरफ से ऐसा ही व्यवहार देखने को मिल रहा है, और इसके चलते उनका समर्थन और घटता जा रहा है । दरअसल पंकज बिजल्वान की तरफ दिख रहे कई प्रमुख नेताओं व गवर्नर्स ने पिछले कुछेक दिनों में उनका साथ छोड़ कर रजनीश गोयल की उम्मीदवारी का समर्थन करना शुरू किया है । पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को सबसे तगड़ा झटका फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अश्वनी काम्बोज की तरफ से लगा है । मजे की बात यह है कि पिछले दिनों 'रचनात्मक संकल्प' ने जब जब पंकज बिजल्वान व अश्वनी काम्बोज के बीच दूरी बढ़ने से जुड़े तथ्यों को प्रकाशित किया, तब तब पंकज बिजल्वान के समर्थकों ने उन तथ्यों पर गौर करने तथा उनके बीच बढ़ती दूरी को पाटने के प्रयास करने की बजाये उन तथ्यों को ही झूठा ठहरा दिया । लेकिन हापुड़, गाजियाबाद और मुज़फ्फरनगर की मीटिंग्स के निमंत्रण पत्रों में अश्वनी काम्बोज को जगह न देकर पंकज बिजल्वान खेमे से अश्वनी काम्बोज की बिदाई करके अंततः 'रचनात्मक संकल्प' के तथ्यों को स्वीकार कर लिया गया है ।
पंकज बिजल्वान की तरफ से अश्वनी काम्बोज को न सिर्फ 'धक्का' दे कर बाहर निकाल दिया गया है, बल्कि उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करवाने की बातें भी सुनाई दे रही हैं । इस तरह, यह तय होता दिख रहा है कि पंकज बिजल्वान चुनाव हारने के साथ साथ अपना एक अच्छा और विश्वसनीय दोस्त भी खोने जा रहे हैं । पंकज बिजल्वान को शिकायत है कि उन्होंने अश्वनी काम्बोज के चुनाव में उनका भरपूर साथ साथ दिया था, लेकिन अब जब उन्हें जरूरत है - तब अश्वनी काम्बोज उनका साथ नहीं दे रहे हैं । अश्वनी काम्बोज का कहना लेकिन यह है कि वह इस बात को बिलकुल याद रखे हैं कि पंकज बिजल्वान ने उनका साथ दिया था; किंतु इसके साथ वह इस सच्चाई को भी नहीं भूल पा रहे हैं कि वह यदि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे हैं, तो इसका श्रेय सिर्फ और सिर्फ विनय मित्तल को है । अश्वनी काम्बोज का कहना है कि पंकज बिजल्वान का साथ उनके लिए महत्त्वपूर्ण था, लेकिन सिर्फ उनके साथ के सहारे तो वह कभी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर न बन पाते । अश्वनी काम्बोज का कहना रहा कि वह पंकज बिजल्वान से मिली मदद को याद रखना तथा उसका सम्मान करना चाहते हैं, तो साथ ही साथ विनय मित्तल से मिली निर्णायक मदद को भी याद रखना व उसका सम्मान करना चाहते हैं । अश्वनी काम्बोज चाहते थे कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के चक्कर में उनके संबंध न पंकज बिजल्वान से खराब हों और न विनय मित्तल से बिगड़े । अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज ने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी को लेकर वर्ष के शुरू में विनय मित्तल से बात की थी; विनय मित्तल ने उन्हें तर्क दिया था कि उम्मीदवार 'चुनने' का 'अधिकार' गवर्नर को मिलना चाहिए - आप अगले वर्ष गवर्नर होंगे, अपने उम्मीदवार के रूप में आप पंकज बिजल्वान को चुनियेगा, मैं आपके साथ होऊँगा । अश्वनी काम्बोज को यह तर्क उचित लगा, और उन्होंने पंकज बिजल्वान को अगले लायन वर्ष में उम्मीदवार बनने के लिए राजी करने का प्रयास किया ।
अश्वनी काम्बोज के नजदीकियों के अनुसार, अश्वनी काम्बोज को शुरू में लगा था कि पंकज बिजल्वान पर उनके प्रयासों का असर हो रहा है और वह अगले लायन वर्ष में उम्मीदवार बनने के लिए तैयार हो रहे हैं; लेकिन फिर उन्होंने पाया कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावबाज नेताओं ने पंकज बिजल्वान को भड़काना शुरू किया है और पंकज बिजल्वान उनके भड़काने में आ रहे हैं । अश्वनी काम्बोज को यह देख/जान कर बुरा लगा कि पंकज बिजल्वान दोस्ती का दम तो उनके साथ भरते हैं, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बारे में फैसले दूसरों के कहने में आकर करते हैं । पंकज बिजल्वान डिस्ट्रिक्ट के दूसरे लोगों के भड़काने में आकर अश्वनी काम्बोज से दूर तो होते ही गए, यह प्रयास और करने लगे कि वह अश्वनी काम्बोज की कमान अपने हाथ में दिखाएँ ! डिस्ट्रिक्ट के कुछेक पूर्व गवर्नर्स अपने अपने तरीके से पंकज बिजल्वान के जरिये अश्वनी काम्बोज को बेइज्जत करने के उपाय कर रहे थे, और पंकज बिजल्वान अपने स्वार्थ में उनके हाथों का खिलौना बनते गए । अश्वनी काम्बोज चाहते थे कि चूँकि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए डिस्ट्रिक्ट के सभी लोगों का समर्थन व सहयोग चाहिए होगा, इसलिए वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में तटस्थ 'दिखेंगे' - लेकिन पंकज बिजल्वान ने उन्हें यह 'मौका' देना जरूरी नहीं समझा और 'जबर्दस्तीपूर्ण' तरीके से उन्हें चुनावी लड़ाई में इस्तेमाल करने के लिए घसीटा । इससे अश्वनी काम्बोज ने समझ लिया कि उन्होंने यदि निर्णायक कठोरता के साथ अपना रुख स्पष्ट नहीं किया, तो पंकज बिजल्वान व उनके समर्थक नेता उनकी इज्जत को धूल में मिला देंगे; और यह समझने के साथ ही उन्होंने पंकज बिजल्वान की उम्मीदवारी का एकतरफा समर्थन करने और 'दिखाने' से बचने का प्रयास शुरू किया । इसके जबाव में, पंकज बिजल्वान की तरफ से अपने आयोजन के निमंत्रण पत्र से अश्वनी काम्बोज को बाहर कर देने के साथ-साथ उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग कराने की जो कार्रवाई हुई है - उसे पंकज बिजल्वान खेमे में फैली निराशा व अपनी हार स्वीकार करने के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है; और इसे रजनीश गोयल की उम्मीदवारी को मिलते दिख रहे व्यापक समर्थन में और इजाफा होने के लक्षण व सुबूत के रूप में ही स्वीकार किया जा रहा है । 

Thursday, February 13, 2020

रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के प्रेसीडेंट होने के बावजूद विनोद बंसल के समिट के लिए फंड जुटाने के मामले में असफल रहने के कारण रोटरी के बड़े नेताओं के बीच दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक की अनियमितताओं और घपलेबाजियों की चर्चा को विनोद बंसल के लिए बड़े खतरे के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, और आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं उनका भी हाल सतीश सिंघल जैसा न हो

नई दिल्ली । रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट शुरू होने से पहले कोलकाता पहुँचे प्रमुख रोटेरियंस के बीच दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के कामकाज में अनिमितताओं और घपलेबाजियों से जुड़े आरोपों की जो चर्चा सुनी गई है, उनमें विनोद बंसल के लिए सतीश सिंघल जैसी दशा में 'पहुँचने' का डर पैदा होता दिख रहा है । उल्लेखनीय है कि नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में अनियमितताओं व घपलेबाजियों के आरोपों के चलते डिस्ट्रिक्ट 3012 में गवर्नर पद की जिम्मेदारी निभा रहे सतीश सिंघल को रोटरी इंटरनेशनल ने गवर्नर पद से हटा दिया था, और उन्हें पूर्व गवर्नर का दर्जा भी नहीं दिया गया । सतीश सिंघल नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के प्रमुख कर्ताधर्ता थे । विनोद बंसल दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक के प्रमुख कर्ताधर्ता हैं । सतीश सिंघल की तरह ही विनोद बंसल पर आरोप है कि ब्लड बैंक की प्रशासनिक व्यवस्था में सारा लेना-देना विनोद बंसल मनमाने तरीके से करते हैं, और ब्लड बैंक के दूसरे पदाधिकारियों को उसकी हवा भी नहीं लगने देते हैं । विनोद बंसल के इस रवैये पर पिछले दिनों बबाल तब उठा, जब ब्लड बैंक की बन रही बिल्डिंग से जुड़े बड़े खर्चों के बिल भुगतान के लिए ब्लड बैंक के ट्रेजरर पूर्व गवर्नर संजय खन्ना के पास आए । संजय खन्ना का कहना रहा कि लाखों/करोड़ों रुपये के खर्चे वाले जो काम हो रहे हैं, उनकी जानकारी ब्लड बैंक की मैनेजिंग टीम के सदस्यों को तो होनी ही चाहिए । ब्लड बैंक के सेक्रेटरी पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल को मामले का जब पता चला, तो वह भी वह भी बुरी तरह भड़के; उनका कहना रहा कि वह ब्लड बैंक के सेक्रेटरी हैं, और उन्हें भी नहीं पता कि ब्लड बैंक में हो क्या रहा है और किस काम में किन लोगों पर कितना पैसा खर्च हो रहा है ? डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता का तो आरोप है कि ब्लड बैंक में बिना चुनाव करवाए विनोद बंसल अनधिकृत रूप से प्रेसीडेंट बने हैं, और मनमाने तरीके से काम कर रहे हैं । उन्होंने माँग की कि ब्लड बैंक की मैनेजिंग टीम के सदस्यों की जल्दी से जल्दी मीटिंग बुलाई जाए और नियमानुसार चुनाव करवाए जाएँ । विनोद बंसल लेकिन ब्लड बैंक की मैनेजिंग कमेटी की मीटिंग बुलाने की माँग को लगातार टालते ही जा रहे हैं ।
दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक में अनियमितताओं व घपलेबाजियों के आरोपों में घिरे विनोद बंसल के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह हुई है कि रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के आयोजन में कोलकाता में जुटे वरिष्ठ रोटेरियंस के बीच आरोपों की बातें सुनी/सुनाई जा रही हैं । यह बातें वहाँ दरअसल इसलिए चर्चा में आईं, क्योंकि रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के प्रेसीडेंट के रूप में वह उचित फंड जुटाने के मामले में फेल हुए हैं । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल रोटरी में फंड जुटाने के मामले में 'मास्टर' समझे जाते हैं । वास्तव में अपनी इसी खूबी के चलते उन्होंने रोटरी की सीढ़ियाँ बड़ी तेजी से चढ़ी हैं । लेकिन लगता है कि उनकी यही खूबी उनके लिए मुसीबत बन गई है । रोटरी में हर छोटा/बड़ा नेता उनकी तरफ इसी उम्मीद से 'देखता' है कि वह उसके 'आयोजन' के लिए फंड जुटाएँ । रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के लिए भी उनसे बड़ी रकम की उम्मीद की गई थी । समझा जाता है कि समिट का प्रेसीडेंट उन्हें इसीलिए बनाया गया, ताकि इसका खर्च वह जुटाएँ । विनोद बंसल लेकिन उम्मीदों पर खरे नहीं उतरे हैं, और इसीलिए बड़े नेता उनसे बुरी तरह नाराज हुए हैं । विनोद बंसल के फंड जुटाने के मामले में असफल रहने का कारण यह माना/पहचाना जा रहा है कि लोगों के बीच उनकी पोल खुल गई है, और लोगों ने समझ लिया है कि वह झूठे आश्वासन देकर अपना काम निकालते हैं और लोगों  बरगलाते हैं - इसलिए लोग उनके झाँसे में नहीं आते हैं । रोटरी फाउंडेशन से ग्लोबल ग्रांट लेकर तथा दिलवा कर विनोद बंसल जिस तरह का 'काम' करते हैं, उसे लेकर भी उनकी खासी बदनामी हुई है । दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक को लेकर जो बबाल मचा है, उसके चलते तो विनोद बंसल की साख पर और दाग लगे हैं । इसी सब का नतीजा है कि फंड जुटाने के उनके स्रोत 'सूख' गए हैं, और इसीलिए रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के लिए फंड जुटाने के मामले में वह बुरी तरह असफल रहे हैं ।
रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट के प्रेसीडेंट होने के बावजूद विनोद बंसल को समिट के लिए फंड जुटाने के मामले में जिस असफलता का मुँह देखना पड़ा है, उसके कारण रोटरी के बड़े नेता और मुख्य कर्ताधर्ता उनसे बुरी तरह नाराज हैं । रोटरी इंडिया सेन्टेंनियल समिट शुरू होने से पहले कोलकाता में जुटे रोटरी के बड़े नेताओं के बीच विनोद बंसल के प्रति नाराजगी जिस तरह खुल कर प्रकट हुई है, उसे देखने/सुनने वाले लोगों को लगा है कि रोटरी के बड़े नेताओं ने जैसे मान लिया है कि विनोद बंसल अब उनके - और रोटरी के काम के नहीं रह गए हैं । ऐसे में, दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक की अनियमितताओं और घपलेबाजियों की चर्चा को विनोद बंसल के लिए बड़े खतरे के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । विनोद बंसल से हमदर्दी रखने वाले नेताओं का मानना/कहना है कि विनोद बंसल ने दिल्ली रोटरी ब्लड बैंक में भड़के बबाल को यदि होशियारी से हैंडल नहीं किया, तो कहीं उनका हाल भी नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के सतीश सिंघल जैसा न हो जाए ।

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद पर निहार जंबुसारिया की अप्रत्याशित जीत इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के बड़े तुर्रमखाँ नेताओं के लिए खासी झटके वाली बात भी है; लगता है कि उनसे धोखा खाए पूर्व व मौजूदा काउंसिल सदस्यों ने ही उनकी राजनीति को फेल कर दिया है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद पर हुई निहार जंबुसारिया की चुनावी जीत इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले लोगों को हैरान करने वाली तो है ही, इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के तुर्रमखांओं को झटका देने वाली भी है । हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी पूर्व प्रेसीडेंट्स अमरजीत चोपड़ा, उत्तम अग्रवाल और सुबोध अग्रवाल अपने अपने उम्मीदवारों को जितवाने के लिए चालें चल रहे थे, लेकिन इस वर्ष इन्हें बुरी तरह मुहँकी खानी पड़ी । बुरी तरह इसलिए, क्योंकि वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए इनके सारे प्लान - प्लान ए, प्लान बी, प्लान सी ..... आदि-इत्यादि सब फेल हो गए । दरअसल इन नेताओं का खेल हर वर्ष होता/रहता यह है कि अपने प्रमुख उम्मीदवारों के साथ-साथ यह दो-तीन और उम्मीदवारों को भी 'गोली' दिए रहते हैं, और वोटों का आदान-प्रदान करवा कर अपने पहले नहीं, तो दूसरे; दूसरे नहीं, तो तीसरे; और तीसरे नहीं, तो चौथे उम्मीदवार के जीतने की स्थिति बना लेते थे - और फिर श्रेय 'लूटते' थे । इसी 'परंपरा' के तहत इस वर्ष अनिल भंडारी, सुशील गोयल, मनु अग्रवाल, धीरज खंडेलवाल इन नेताओं के पहले, दूसरे, तीसरे, चौथे नंबर के उम्मीदवार थे ।
अमरजीत चोपड़ा ने अनिल भंडारी और मनु अग्रवाल को 'गोली' दी हुई थी; सुबोध अग्रवाल ने सुशील गोयल की उम्मीदवारी का झंडा उठाया हुआ था; और उत्तम अग्रवाल ने धीरज खंडेलवाल के लिए दाँव लगाया हुआ था । तत्कालीन प्रेसीडेंट प्रफुल्ल छाजेड़ के अनिल भंडारी के तथा तत्कालीन वाइस प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता के सुशील गोयल के समर्थन में होने के कारण इनका पलड़ा भारी दिख रहा था । उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवार की पहचान रखने के कारण धीरज खंडेलवाल को समर्थन का टोटा पड़ता दिखा, तो उत्तम अग्रवाल ने मनु अग्रवाल की उम्मीदवारी का झंडा इस उम्मीद से उठा लिया कि अमरजीत चोपड़ा का समर्थन मनु अग्रवाल को मिलेगा ही, तो धीरज खंडेलवाल न सही मनु अग्रवाल को ही वह वाइस प्रेसीडेंट चुनवा लेते हैं । वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में दिलचस्पी लेते रहे पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता दिल्ली विधानसभा की राजनीति में व्यस्त रहने के कारण इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट की राजनीति से दूर रहे, जिस कारण उम्मीद रही कि अमरजीत चोपड़ा, सुबोध अग्रवाल और उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवारों में से ही कोई उम्मीदवार कामयाब हो जायेगा । लेकिन नतीजा आया, तो उक्त उम्मीदों को धराशाही पाया । समझा जाता है कि काउंसिल सदस्य, खासकर नए सदस्य पूर्व प्रेसीडेंट्स के खेल को समझ गए हैं, और इस बार वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में उनके हाथ की कठपुतली नहीं बने और उन्होंने अपने विवेक से फैसला किया ।
वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव के चक्कर में काउंसिल सदस्य दरअसल इन पूर्व प्रेसीडेंट्स के द्वारा कई बार इस्तेमाल हो चुके हैं; काउंसिल सदस्यों को वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए वोट दिलवाने का वास्ता देकर नेता लोग अपने समर्थक बनाते हैं, और फिर अपनी राजनीति के लिए उन्हें इस्तेमाल करते हैं । वाइस प्रेसीडेंट बनने की दौड़ में शामिल होने वाले काउंसिल सदस्यों का तो बहुत ही बुरा अनुभव रहा है; और अधिकतर ने अपने आप को 'ठगा' हुआ ही पाया है । वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में उत्तम अग्रवाल तथा अमरजीत चोपड़ा से वादानुरूप अपेक्षित समर्थन न मिलने से पूर्व काउंसिल सदस्य विजय गुप्ता ने तो अपनी नाराजगी सार्वजनिक रूप से व्यक्त की थी । पूर्व प्रेसीडेंट्स की राजनीति में इस्तेमाल होने और या इस्तेमाल होने के किस्से सुन कर ही काउंसिल सदस्यों ने इस बार लगता है कि उनके झाँसे में आने से अपने आप को बचा लिया और इस कारण से इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में अपनी चौधराहट बनाने/जमाने के चक्कर में लगे रहने वाले नेताओं को मात खाना पड़ी । समझा जाता है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में नेताओं की वादाखिलाफी के शिकार हो चुके पूर्व व मौजूदा काउंसिल सदस्यों ने भी सक्रिय भूमिका निभा कर नेताओं की राजनीति को फेल करने का काम किया और निहार जंबुसारिया की उम्मीदवारी को सफल बनाया/बनवाया । इस तरह निहार जंबुसारिया का अप्रत्याशित तरीके से वाइस प्रेसीडेंट बनना इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के बड़े नेताओं के लिए खासे झटके वाली बात रही है ।

Wednesday, February 12, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनावी नतीजे को लेकर नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के वरिष्ठ सदस्य सुमित गर्ग की झूठ फैलाने की हरकत वास्तव में काउंसिल्स के कई सदस्यों की गैरजिम्मेदार व बेवकूफीपूर्ण सोच तथा व्यवहार का सुबूत पेश करती है

नई दिल्ली । सुमित गर्ग बुके खरीद कर चले तो थे प्रकाश शर्मा को बधाई देने, लेकिन फिर उन्हें वह बुके निहार जंबुसारिया को देने के लिए मजबूर होना पड़ा । दरअसल सुमित गर्ग को पहले सूचना मिली कि इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए सेंट्रल रीजन के प्रकाश शर्मा की जीत हुई है; सो आनन-फानन में सोशल मीडिया में प्रकाश शर्मा को विजयी बताते हुए और उन्हें बधाई देते हुए, सुमित गर्ग तेजी से प्रकाश शर्मा को खोजते हुए उन्हें बुके सौंपने को दौड़े - वह प्रकाश शर्मा को सबसे पहले बुके सौंप कर उनकी निगाह में आना चाहते थे । प्रकाश शर्मा को खोजते सुमित गर्ग रास्ते में लेकिन यह देख कर ठिठके कि लोग वेस्टर्न रीजन के निहार जंबुसारिया को घेरे खड़े हैं और उन्हें बधाई दे रहे हैं और उनके साथ फोटो खिंचवा रहे हैं । उन्होंने माजरा समझने की कोशिश की तो उन्हें पता चला कि जो बुके वह प्रकाश शर्मा के लिए ले जा रहे हैं, उस पर निहार जंबुसारिया का हक़ है और उन्हें अपना बुके निहार जंबुसारिया को दे देना चाहिए । सो, उन्होंने अपने दौड़ते कदमों की दिशा बदली और वह निहार जंबुसारिया की तरफ मुड़े । सुमित गर्ग नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सदस्य हैं; वह दूसरी बार सदस्य बने हैं, वह तरह तरह से लोगों को जताते/दिखाते रहते हैं कि वह बहुत ज्ञानी किस्म के व्यक्ति हैं - लेकिन इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव नतीजे के मामले में उनके ज्ञान ने लोगों को भ्रमित करने का काम किया और उनकी खुद की फजीहत करवाई ।
नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में होने वाली हरकतों में सुमित गर्ग के साथ रहने वाले सदस्य नितिन कँवर ने भी सुमित गर्ग की सूचना पर सोशल मीडिया में प्रकाश शर्मा को वाइस प्रेसीडेंट बनने की बधाई दे डाली थी, लेकिन जल्दी ही उन्हें इस सूचना के गलत होने की जानकारी मिली, तो सोशल मीडिया में अपनी पोस्ट उन्होंने तुरंत से डिलीट कर दी । सुमित गर्ग ने अपनी पोस्ट को डिलीट करने पर ध्यान नहीं दिया, और वह गलत सूचना देते हुए 'पकड़े' गए । हालाँकि अपने आप में यह बात कोई बड़ा 'अपराध' नहीं है; अपने निजी जीवन में और अपने कामधाम में इस तरह की चूक प्रायः सभी करते हैं - और फिर 'सुबह का भूला यदि शाम को घर लौट आए, तो उसे भूला नहीं कहते हैं' वाला तर्क भी सर्वमान्य है ही । लेकिन फिर भी यह प्रसंग इसलिए महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि यह प्रोफेशन व प्रोफेशन की राजनीति से जुड़े जाने/अनजाने तथ्यों से अवगत करवाता है । सुमित गर्ग वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं, यह प्रोफेशन की जरूरत है कि वह तथ्यों को ज्यादा संजीदगी से देखें; फिर वह अभी रीजनल काउंसिल में हैं और आगे सेंट्रल काउंसिल का सदस्य होने की हसरत रखते हैं - काउंसिल सदस्य के रूप में उनसे उम्मीद की जायेगी कि वह तथ्यों को सही रूप में जानेंगे, तभी तो उचित फैसले ले पायेंगे; तथ्यों के प्रति वह यदि लापरवाही दिखायेंगे तो प्रोफेशनली तथा प्रशासनिक रूप में सही निर्णय कैसे करेंगे ? यह सच है कि तथ्यों के प्रति गैर जिम्मेदारी दिखाने के मामले में अभी सुमित गर्ग 'पकड़े' जरूर गए हैं, लेकिन दूसरे काउंसिल सदस्यों का मामला भी कोई बहुत अलग नहीं है ।
वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी नतीजे के मामले में सुमित गर्ग द्वारा की गई गलतबयानी इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में बढ़ती अनिश्चितता की तरफ भी ध्यान खींचती है । निहार जंबुसारिया की जीत पर हर किसी को हैरानी है । हालाँकि यह चर्चा खासी जोरों पर थी कि निहार जंबुसारिया अपने रिलायंस संबंधों का फायदा उठाते और दिलवाने का वास्ता देकर अपने लिए समर्थन जुटाने का जुगाड़ कर रहे हैं; दावे किए जा रहे थे कि पूर्व प्रेसीडेंट अमरजीत चोपड़ा ने रिलायंस में कोई बड़ी 'जिम्मेदारी' लेने के चक्कर में निहार जंबुसारिया को जितवाने का 'ठेका' ले लिया है - लेकिन फिर भी निहार जंबुसारिया की उम्मीदवारी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लिया जा रहा था । दरअसल रिलायंस कनेक्शन के भरोसे निहार जंबुसारिया पहले भी वाइस प्रेसीडेंट बनने के प्रयास कर चुके हैं और असफल रह चुके हैं । अमरजीत चोपड़ा को भी प्रफुल्ल छाजेड़, अतुल गुप्ता व उत्तम अग्रवाल के उम्मीदवारों के बीच 'झूलते' हुए देखा/पहचाना जा रहा था । ऐसे में, माना जा रहा था कि निहार जंबुसारिया को कोई राजनीतिक गणित नहीं, बल्कि सिर्फ किस्मत ही वाइस प्रेसीडेंट चुनवा सकती है । और यही हुआ भी । वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव कितना अनिश्चितताभरा होता है यह इससे भी जाहिर है कि जो प्रकाश शर्मा दूर दूर तक दौड़ में नहीं थे, सुमित गर्ग व नितिन कँवर को उनके जीतने की फर्जी सूचना पर विश्वास हो गया और उन्होंने प्रकाश शर्मा को बधाई देते हुए उक्त सूचना को फ्लैश भी कर दिया ।
सुमित गर्ग और नितिन कँवर की उतावलीपूर्ण इस हरकत से यह भी समझा जा सकता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की हालत इतनी खराब क्यों है - कि वहाँ पदाधिकारियों के अधिकार निलंबित हैं, और अगले वर्ष के पदाधिकारियों का चयन भी आसान नहीं दिख रहा है । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की दुर्दशा के लिए सिर्फ सुमित गर्ग व नितिन कँवर को जिम्मेदार मानना/ठहराना इनके साथ ज्यादती भी होगा, क्योंकि अन्य कुछेक सदस्य भी इनके जैसे ही हैं - और कुछेक तो इनसे भी ज्यादा बड़बोले और बेवकूफ किस्म के हैं । वाइस प्रेसीडेंट के चुनावी नतीजे को फ्लैश करने के मामले में सुमित गर्ग की हरकत दरअसल काउंसिल्स के सदस्यों की गैरजिम्मेदार व बेवकूफीपूर्ण सोच तथा व्यवहार का एक सुबूत पेश करती है ।

Friday, February 7, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल के गवर्नर-वर्ष का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए अन्य किसी के तैयार न होने की स्थिति में, मजबूरी में जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाए जाने से एमएलसी स्नातक बनने की जेके गौड़ की तैयारी को झटका लगा है क्या ?

गाजियाबाद । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेके गौड़ को अपने गवर्नर-वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर चुन कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल ने एमएलसी स्नातक सीट पाने के चुनाव में सक्रिय जेके गौड़ की चुनाव जीतने की संभावना पर मिट्टी डालने का काम किया है क्या ? उल्लेखनीय है कि अशोक अग्रवाल लगातार यह कहते/बताते रहे हैं कि वह वैसे तो जेके गौड़ को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाते, लेकिन एमएलसी स्नातक बन जाने के कारण चूँकि जेके गौड़ को रोटरी के लिए ज्यादा समय निकाल पाना मुश्किल होगा - इसलिए मजबूरी में उन्हें किसी और को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाना पड़ेगा । लेकिन अब जब अशोक अग्रवाल ने जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना और घोषित कर दिया है, तो लोगों को लग रहा है कि जैसे उन्होंने संकेत दिया है कि जेके गौड़ को रोटरी के कामों के लिए समय की कोई समस्या नहीं होगी - तो इस तरह क्या अशोक अग्रवाल ने मान/समझ लिया है कि जेके गौड़ एमएलसी स्नातक नहीं बन रहे हैं, और उनके गवर्नर वर्ष में जेके गौड़ के पास समय ही समय होगा । जेके गौड़ हालाँकि एमएलसी स्नातक चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं; उनके बहुत नजदीक होने के नाते विश्वास किया जाता है कि अशोक अग्रवाल उनकी मेहनत से परिचित होंगे ही और यह इच्छा भी रखते ही होंगे कि जेके गौड़ को अपनी मेहनत का सुफल मिले - लेकिन जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना और घोषित करके अशोक अग्रवाल ने उनकी मेहनत तथा उस मेहनत के भरोसे मिलने वाले सुफल पर सवाल खड़ा कर दिया है, और एमएलसी स्नातक सीट पाने के लिए चलाए जा रहे जेके गौड़ के चुनावी अभियान को मनोवैज्ञानिक झटका दिया है ।
अशोक अग्रवाल और जेके गौड़ के नजदीकियों का हालाँकि कहना यह है कि अशोक अग्रवाल ने जेके गौड़ को बहुत ही मजबूरी में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है । उन्होंने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर पद के लिए किसी और को राजी करने के लिए कोशिशें तो खूब की थीं, लेकिन अन्य कोई उनके गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए तैयार ही नहीं हुआ । अशोक अग्रवाल के पास हालाँकि विकल्प भी बहुत सीमित थे । सीमित विकल्पों के बीच, अशोक अग्रवाल उन मुकेश अरनेजा को भी डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के लिए तैयार हो गए थे - जिन्होंने उनके चुनाव में उनकी उम्मीदवारी का जमकर विरोध किया था, और हर संभव तरीके से उन्हें हरवाने का प्रयास किया था । अशोक अग्रवाल की बदकिस्मती ही रही कि डिस्ट्रिक्ट के 'परमानेंट डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर' का ख़िताब पा चुके मुकेश अरनेजा ने भी उनके गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने से इंकार कर दिया । हर तरफ से निराश होकर अशोक अग्रवाल ने फिर जेके गौड़ को ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद थमा दिया । लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद स्वीकार करके जेके गौड़ की तरफ से भी लोगों को संदेश मिला है कि जैसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है कि एमएलसी स्नातक सीट पर तो चुनाव जीतना उनके लिए मुश्किल ही होगा, और इसलिए उन्होंने रोटरी में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का पद अपने लिए सुरक्षित कर लिया है । 
इस बात पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों को लेकिन हैरानी है कि अशोक अग्रवाल के गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने के लिए और कोई - यहाँ तक कि मुकेश अरनेजा भी - राजी क्यों नहीं हुआ ? अशोक अग्रवाल के नजदीकियों के अनुसार, इसका कारण उनका पूर्व गवर्नर रमेश अग्रवाल के साथ किया गया व्यवहार जिम्मेदार है । उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल को जेके गौड़ के गवर्नर-वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया गया था; लेकिन काम पूरा हो जाने के बाद जेके गौड़ और उनके सहयोगी के रूप में अशोक अग्रवाल ने रमेश अग्रवाल की जमकर लानत-मलामत की । जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल की इस हरकत को अहसानफरामोशी के रूप में देखा/पहचाना गया और माना/कहा गया कि अपना काम निकालने के लिए तो यह किसी को भी भाई-बाप बना लेते हैं, और काम निकलने के बाद उसे धिक्कारने लगते हैं । रमेश अग्रवाल के साथ इन्होंने यही किया । हालाँकि इनका कहना था कि रमेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनरी करते हुए इन्हें तरह तरह से परेशान और अपमानित किया और लगातार इनके साथ बदतमीजी करते रहे - और इसीलिए रमेश अग्रवाल के खिलाफ इनका गुस्सा फूटा । लोगों का कहना लेकिन यह रहा कि रमेश अग्रवाल 'ऐसे' ही हैं, क्या यह बात इन्हें पहले से पता नहीं थी, और या क्या इन्होंने यह सोचा था कि हर किसी से बदतमीजी करने वाले आदतन बद्तमीज रमेश अग्रवाल इन्हें बख़्श देंगे और इनके साथ बदतमीजी नहीं करेंगे । रमेश अग्रवाल ने तो वही किया, जिसके लिए वह (कु)ख्यात हैं । इन्होंने क्या किया - इन्हें जब लगा कि रमेश अग्रवाल इन्हें परेशान और अपमानित कर रहे हैं, तब इन्होंने रमेश अग्रवाल का साथ क्यों नहीं छोड़ दिया था ? इन्हें पता ही था कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में मुकेश अरनेजा ने जब अमित जैन को परेशान करना शुरू किया था, तब अमित जैन ने मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा दिया था । यह भी रमेश अग्रवाल को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा कर उनकी बदतमीजियों का शिकार होने से बच सकते थे । जेके गौड़ और अशोक अग्रवाल की जोड़ी ने ऐसा नहीं किया; इन्होंने किया यह कि पहले तो अपना काम निकाला/बनाया और फिर तुरंत ही रमेश अग्रवाल को धिक्कारने लगे । उसी प्रसंग को ध्यान में रखते हुए चूँकि अन्य कोई पूर्व गवर्नर अशोक अग्रवाल का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनने को तैयार नहीं हुआ, और इंकार करते करते जेके गौड़ ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बना दिए गए हैं । इससे लेकिन एमएलसी स्नातक बनने की जेके गौड़ की तैयारी को झटका लगा है ।

Wednesday, February 5, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने हेतु गणतंत्र दिवस पर दारू पार्टी का आयोजन करके अजीत जालान ने गणतंत्र दिवस की गरिमा को ठेस पहुँचाने के साथ क्लब, डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की छवि व प्रतिष्ठा को भी दाँव पर लगाया

नई दिल्ली । गणतंत्र दिवस पर 'डे-आउट पार्टी' के नाम पर दारू पार्टी करने के लिए रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के प्रेसीडेंट संदीप मंडल अपने क्लब के सदस्यों की ही आलोचना के निशाने पर आ रहे हैं । क्लब के ही सदस्यों का कहना/पूछना है कि संदीप मंडल को दारू पार्टी ही करना थी, तो और किसी भी दिन कर सकते थे - गणतंत्र दिवस जैसे देश के लिए महत्त्वपूर्ण व गौरवपूर्ण दिवस पर, और जो दिन देश भर में ड्राई डे भी होता है, उस दिन दारू पार्टी करने की भला उन्हें क्या उतावली थी ? क्लब के सदस्यों का ही कहना है कि संदीप मंडल और उक्त दारू पार्टी में शामिल हुए क्लब के वरिष्ठ सदस्यों को क्या पता नहीं है कि उन्होंने जो किया है, वह संज्ञेय अपराध है, और क्लब व डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ रोटरी की छवि व प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँचाने वाला है । मजे की बात यह है कि गणतंत्र दिवस पर दारू पार्टी करने के मामले में आलोचना का शिकार बने संदीप मंडल ने दारू पार्टी के लिए पूर्व प्रेसीडेंट अजीत जालान को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । संदीप मंडल का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से ही अजीत जालान ने उक्त पार्टी की योजना बनाई और अन्य क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को आमंत्रित किया । लेकिन गणतंत्र दिवस पर हुई डे-आउट पार्टी में शामिल होने वालों को 'ड्रिंक्स' का ऑफर तो संदीप मंडल की तरफ से ही था; इस पर संदीप मंडल का कहना है कि मौजूदा प्रेसीडेंट होने के नाते निमंत्रण पत्र पर नाम उनका जरूर था, लेकिन किया-धरा सब अजीत जालान का ही था ।


अजीत जालान ने दूसरे क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को आमंत्रित करने/करवाने में इस बात पर भी खासा जोर दिया था कि उक्त पार्टी में पूर्व गवर्नर्स विनोद बंसल तथा रवि चौधरी भी आयेंगे । हालाँकि जब यह दोनों ही पार्टी में नहीं पहुँचे, तो अजीत जालान ने ही वहाँ बताया कि अपनी अपनी निजी व्यस्तताओं के कारण विनोद बंसल व रवि चौधरी पार्टी में नहीं आ पा रहे हैं । हालाँकि अन्य कुछेक लोगों के अनुसार, विनोद बंसल व रवि चौधरी को पता चल गया था कि अजीत जालान के निमंत्रण को लोगों ने स्वीकार नहीं किया है, और पार्टी में गिनती के लोग - और वह भी सिर्फ क्लब के लोग ही पहुँचे हैं; इसलिए उन्होंने पार्टी में पहुँचने की जरूरत नहीं समझी । पार्टी में जितने जो लोग पहुँचे थे, उन्होंने पहले झंडा फहराया और फिर ड्राई डे के बावजूद हो रही दारू-पार्टी का आनंद लिया । 


मजे की बात यह भी रही कि क्लब के पदाधिकारियों तथा अजीत जालान ने गणतंत्र दिवस के नाम पर की गई दारू पार्टी की तस्वीरें सोशल मीडिया में भी प्रदर्शित कीं, और क्लब के फेसबुक पेज पर पार्टी की तस्वीरें लगाईं । दरअसल उन तस्वीरों को देख कर ही क्लब के सदस्यों के बीच मामला भड़का और उनका कहना रहा कि क्लब के पदाधिकारी व वरिष्ठ सदस्य इस तरह गणतंत्र दिवस का अपमान कैसे कर सकते हैं ? इस दारू पार्टी से नाराज क्लब के सदस्यों का हैरान हो कर कहना/पूछना है कि अजीत जालान के दावे के अनुसार, जो विनोद बंसल व रवि चौधरी पार्टी में शामिल होने वाले थे, उन्होंने भी यह बताने की जरूरत नहीं समझी कि गणतंत्र दिवस पर दारू पार्टी नहीं की जा सकती है - और नहीं करना चाहिए । गणतंत्र दिवस का मजाक बना देने तथा अपमान करने के मामले में क्लब के लोगों की नाराजगी सामने आने के बाद डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ सदस्यों ने रेखांकित किया है कि रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के वरिष्ठ सदस्य और पदाधिकारी अपनी उच्चकों जैसी हरकतों के कारण अक्सर ही फजीहत का शिकार होते रहे हैं । अभी कुछ ही समय पहले क्लब के वरिष्ठ सदस्यों द्वारा बेईमानीपूर्ण तरीकों से बनाए गए एक ट्रस्ट का मामला सामने आया था, जिसमें काउंसिल ऑफ गवर्नर्स को फैसला करना पड़ा था और उक्त ट्रस्ट को बंद करने का आदेश देना पड़ा था । ओल्ड ऐज होम के नाम पर बने ट्रस्ट के हिसाब-किताब को लेकर गंभीर आरोप हैं, और हिसाब-किताब को छिपाया जा रहा है । ऐसे में, गणतंत्र दिवस को मजाक बना देने और उसकी गरिमा को चोट पहुँचाते हुए क्लब के पदाधिकारियों की मदद से अजीत जालान द्वारा अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से की गई दारू पार्टी ने क्लब, डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की छवि व प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा दिया है । 

Tuesday, February 4, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 तथा रोटरी में इतिहास बनाती/रचती निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन द्वारा आयोजित की गई शानदार व बड़ी पार्टी में प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी पर उनके समर्थन की लगती मुहर ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को लगभग स्पष्ट कर दिया है

गाजियाबाद । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन की अपने गवर्नर-वर्ष की टीम के सदस्यों के साथ की गई जिस पिकनिक पार्टी को प्रियतोष गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए खतरे के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वह अंततः उनके लिए वरदान की तरह साबित हुई है । कुछेक लोगों को तो लग रहा है जैसे सुभाष जैन ने उक्त पार्टी प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन 'दिखाने' के लिए ही आयोजित की । हालाँकि पार्टी से पहले चर्चा थी कि उक्त पार्टी में सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए किसी उम्मीदवार को लॉन्च कर सकते हैं; दरअसल लोगों को उक्त पार्टी का कोई मकसद समझ नहीं आ रहा था - इसलिए अनुमान लगाया जा रहा था कि सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में कोई बड़ा धमाका करने के लिए पार्टी कर रहे हैं । पार्टी से कुछ ही दिन पहले सुभाष जैन चूँकि रूस की यात्रा करके लौटे थे, जहाँ वह अपने कुछेक नजदीकी रोटेरियंस साथियों के साथ गए थे - इसलिए माना/समझा जा रहा था कि अपने साथियों के साथ सुभाष जैन ने रूस में जरूर कोई 'खिचड़ी' पकाई होगी, जिसके 'स्वाद' से वह पार्टी में लोगों को परिचित करवायेंगे ।
इसीलिए पार्टी से पहले, पार्टी को प्रियतोष गुप्ता के लिए खतरे के संकेत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था । माना जा रहा था कि सुभाष जैन किसी को भी उम्मीदवार घोषित करेंगे, तो वह प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए ही मुसीबत बनेगा । पार्टी में लेकिन जब ऐसी किसी कोशिश की सुगबुगाहट भी नहीं देखी गई, तो प्रियतोष गुप्ता के नजदीकियों व शुभचिंतकों ने राहत की साँस ली । सुभाष जैन पार्टी में बल्कि कई मौकों पर प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन की बातें करते सुने/देखे गए, तो मामला बल्कि उल्टा हो गया । सुभाष जैन को प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव दिखाते देख प्रियतोष गुप्ता के नजदीकी और समर्थक प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी की सफलता के प्रति आश्वस्त और हो उठे । इस तरह अपने गवर्नर-वर्ष की टीम के सदस्यों के साथ की गई सुभाष जैन की जिस पार्टी में प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए खतरा पैदा होने का डर बना था, वह वास्तव में प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी को लाभ पहुँचाने का माध्यम बन गई । 
उक्त पार्टी ने दरअसल एक बार फिर दिखाया और साबित किया कि सुभाष जैन डिस्ट्रिक्ट के ही नहीं, बल्कि रोटरी के भी 'शो मैन' हैं । 'शो मैन' बनने के चक्कर में सुभाष जैन को कुछेक बार चिढ़नतु किस्म के रोटरी नेताओं की आलोचना भी सुननी/झेलनी पड़ी है, लेकिन उन्होंने अपना स्टाइल नहीं छोड़ा । डिस्ट्रिक्ट और या रोटरी के इतिहास में इससे पहले शायद ही कभी कहीं यह हुआ हो कि कोई निवर्त्तमान और या पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अपने गवर्नर-वर्ष की टीम के सदस्यों को जोड़े रखे और उनके साथ पार्टी का आयोजन करे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तक के लिए तो अपने अधिकृत कार्यक्रम ढंग से कर पाना मुश्किल होता है, उसके लिए वह बेचारा स्पॉन्सर्स खोजते खोजते परेशान हो जाता है - ऐसे में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी से उतरने के बाद उसके लिए कुछ करने की न हिम्मत बची रह पाती है और न उत्साह । सुभाष जैन ने लेकिन इस 'प्रथा' को तोड़ने का काम किया और एक अलग व नया उदाहरण स्थापित किया । सुभाष जैन ने पार्टी का सिर्फ आयोजन ही नहीं किया, बल्कि उसे भव्य तरीके से अंजाम भी दिया । उक्त पार्टी में शामिल होने वाले लोगों ने रेखांकित किया कि इतनी भीड़ और इतना बढ़िया इंतजाम तो डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में भी नहीं हुआ था । इतिहास बनाती/रचती एक शानदार व बड़ी पार्टी में प्रियतोष गुप्ता की उम्मीदवारी पर सुभाष जैन के समर्थन की लगती मुहर ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को भी लगभग स्पष्ट कर दिया है ।