चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जुटे रोटेरियंस की विभिन्न मामलों से जुड़ी शिकायतभरी बातों ने लोगों के बीच डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा लीडरशिप के खिलाफ बढ़ती नाराजगी के संकेत देने का काम किया है । लोगों की एकतरफा और बड़ी शिकायत यही सुनी गई कि उन्होंने मौजूदा लीडरशिप को यह सोच कर समर्थन दिया था कि इससे उन्हें और डिस्ट्रिक्ट को राजा साबू गिरोह के कुशासन से मुक्ति मिलेगी तथा उनकी मनमानियों व ग्रांट के पैसों की उनकी लूट-खसोट पर रोक लगेगी - लेकिन लग रहा है कि मौजूदा लीडरशिप ने राजा साबू गिरोह के सामने पूरी तरह समर्पण कर दिया है और उनके जैसे ही तौर-तरीके अपना लिए हैं । ग्रांट के पैसे राजा साबू गिरोह के लोगों को ही मिल रहे हैं, और उनके ही प्रोजेक्ट हो रहे हैं; डिस्ट्रिक्ट के दूसरे कामकाजों तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने में भी पहले जैसे ही 'तरीके' अपनाए जा रहे हैं । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए पहले सहारनपुर से उम्मीदवार आने/लाने की बात हो रही थी, लेकिन फिर अचानक पता चला कि नेताओं ने अरुण मोंगिया को उम्मीदवार बनाने का फैसला कर लिया है । सहारनपुर के रोटेरियंस के साथ-साथ दूसरे रोटेरियंस को भी इस फैसले से झटका लगा । इस झटके के चलते जले-भुने बैठे सहारनपुर के रोटेरियंस से डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में किसी ने पूछ लिया कि आपके यहाँ से कोई उम्मीदवार नहीं आ रहा है क्या ? इस पर उसे सुनने को मिला - अभी हमारा नंबर कहाँ आयेगा ? नेताओं के रवैये को देखते हुए हमें तो लग रहा है कि जब तक काबिल सिंह भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं बन जायेंगे, तब तक हमें तो इंतजार ही करना पड़ेगा ।
मामला सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार 'चुनने' का ही नहीं है - बल्कि दूसरे प्रशासनिक व व्यवस्था संबंधी मामलों में भी मनमानी व अराजकता से जुड़ा हुआ है । ग्रांट के लिए आवेदन करने के मामले में सहायता चाहने वाले लोगों को सलाह मिलती है कि मधुकर मल्होत्रा से बात कर लो । यह सलाह पाने वाले लोगों का कहना है कि इनकी राजनीति के चक्कर में तो उन्होंने मधुकर मल्होत्रा से झगड़ा कर लिया, अब वह किस मुँह से मधुकर मल्होत्रा के पास जाएँ । लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के नए लीडरों ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक सत्ता पर तो कब्जा कर लिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट चलाने तथा रोटरी के काम करने की कोई व्यवस्था नहीं की है - जिसके कारण एक तरफ तो राजा साबू और उनके गिरोह के दूसरे नेताओं ने मौजूदा लीडरों का अपने आगे समर्पण करवा लिया है, और अपने काम बना रहे हैं, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट में अराजकता सी पैदा हो रही है । इसे व्यवस्था संबंधी अराजकता का ही संकेत और सुबूत माना/कहा जायेगा कि रोटरी लीडरशिप इंस्टीट्यूट को लेकर लगातार असमंजस बना रहा है, जिसके चलते पहले तय की गई फैकल्टी बिदक गई और अब जब उक्त इंस्टीट्यूट का कार्यक्रम तय हुआ है, तब जैसे तैसे अन्य फैकल्टीज की व्यवस्था की गई है । फैसले करने में होने वाली देर/दार के कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स भी लोगों को आकर्षित व प्रभावित नहीं कर सके और स्पीकर्स को लेकर लोगों के बीच असंतोष बना/रहा ।
लोगों को लग रहा है कि फैसलों में लेटलतीफी होने तथा असमंजस रहने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज का गवर्नर-वर्ष और ज्यादा शिकार होने जा रहा है । रमेश बजाज के पेट्स कार्यक्रम को लेकर जो तमाशा देखने को मिल रहा है, उससे संकेत मिल रहा है कि रमेश बजाज के गवर्नर-वर्ष के कार्यक्रम तो बस राम-भरोसे ही रहने हैं । उल्लेखनीय है कि पेट्स का आयोजन पहले कुफरी में होना निश्चित हुआ था, लेकिन फिर उसे पंचकुला में करने का फैसला हुआ । रमेश बजाज के नजदीकियों के अनुसार ही, कुफरी में पेट्स के आयोजन में खर्चा ज्यादा हो रहा था, इसलिए वहाँ आयोजन करने का इरादा छोड़ दिया गया । खर्चे को लेकर हालाँकि समस्या के अभी भी अटके/फँसे होने की चर्चा है । रमेश बजाज यह सोच सोच कर परेशान बताये जा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से जितने/जो पैसे मिलेंगे, उतने में तो पेट्स का खर्चा निपटेगा नहीं - तो बाकी खर्चा कहाँ से और कैसे पूरा होगा ? डिस्ट्रिक्ट में जोन बनाने को लेकर भी रमेश बजाज और उनके सहयोगी गफलत में हैं और किसी अंतिम फैसले पर पहुँचने को लेकर असमंजस में हैं । रमेश बजाज ने अपने असिस्टेंट गवर्नर्स से सहायता न मिलने को लेकर शिकायतें करना अभी से शुरू कर दिया है । उनका कहना है कि 'राजनीतिक मजबूरियों' के चलते वह ऐसे लोगों को असिस्टेंट गवर्नर्स बनाने के लिए मजबूर हुए हैं, जो डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था में उनकी मदद करने में सर्वथा अनुपयुक्त हैं । इस तरह की बातों से लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा लीडरशिप डिस्ट्रिक्ट में हुए बड़े राजनीतिक बदलाव से जुड़ी लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पाने में विफल हो रही है, जिसके कारण राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को मनमानी करने तथा लूट-खसोट बनाये रखने का मौका मिल रहा है तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच असमंजसता तथा निराशा फैल रही है ।
मामला सिर्फ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार 'चुनने' का ही नहीं है - बल्कि दूसरे प्रशासनिक व व्यवस्था संबंधी मामलों में भी मनमानी व अराजकता से जुड़ा हुआ है । ग्रांट के लिए आवेदन करने के मामले में सहायता चाहने वाले लोगों को सलाह मिलती है कि मधुकर मल्होत्रा से बात कर लो । यह सलाह पाने वाले लोगों का कहना है कि इनकी राजनीति के चक्कर में तो उन्होंने मधुकर मल्होत्रा से झगड़ा कर लिया, अब वह किस मुँह से मधुकर मल्होत्रा के पास जाएँ । लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के नए लीडरों ने डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक सत्ता पर तो कब्जा कर लिया है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट चलाने तथा रोटरी के काम करने की कोई व्यवस्था नहीं की है - जिसके कारण एक तरफ तो राजा साबू और उनके गिरोह के दूसरे नेताओं ने मौजूदा लीडरों का अपने आगे समर्पण करवा लिया है, और अपने काम बना रहे हैं, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट में अराजकता सी पैदा हो रही है । इसे व्यवस्था संबंधी अराजकता का ही संकेत और सुबूत माना/कहा जायेगा कि रोटरी लीडरशिप इंस्टीट्यूट को लेकर लगातार असमंजस बना रहा है, जिसके चलते पहले तय की गई फैकल्टी बिदक गई और अब जब उक्त इंस्टीट्यूट का कार्यक्रम तय हुआ है, तब जैसे तैसे अन्य फैकल्टीज की व्यवस्था की गई है । फैसले करने में होने वाली देर/दार के कारण डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में आमंत्रित किए गए स्पीकर्स भी लोगों को आकर्षित व प्रभावित नहीं कर सके और स्पीकर्स को लेकर लोगों के बीच असंतोष बना/रहा ।
लोगों को लग रहा है कि फैसलों में लेटलतीफी होने तथा असमंजस रहने का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज का गवर्नर-वर्ष और ज्यादा शिकार होने जा रहा है । रमेश बजाज के पेट्स कार्यक्रम को लेकर जो तमाशा देखने को मिल रहा है, उससे संकेत मिल रहा है कि रमेश बजाज के गवर्नर-वर्ष के कार्यक्रम तो बस राम-भरोसे ही रहने हैं । उल्लेखनीय है कि पेट्स का आयोजन पहले कुफरी में होना निश्चित हुआ था, लेकिन फिर उसे पंचकुला में करने का फैसला हुआ । रमेश बजाज के नजदीकियों के अनुसार ही, कुफरी में पेट्स के आयोजन में खर्चा ज्यादा हो रहा था, इसलिए वहाँ आयोजन करने का इरादा छोड़ दिया गया । खर्चे को लेकर हालाँकि समस्या के अभी भी अटके/फँसे होने की चर्चा है । रमेश बजाज यह सोच सोच कर परेशान बताये जा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से जितने/जो पैसे मिलेंगे, उतने में तो पेट्स का खर्चा निपटेगा नहीं - तो बाकी खर्चा कहाँ से और कैसे पूरा होगा ? डिस्ट्रिक्ट में जोन बनाने को लेकर भी रमेश बजाज और उनके सहयोगी गफलत में हैं और किसी अंतिम फैसले पर पहुँचने को लेकर असमंजस में हैं । रमेश बजाज ने अपने असिस्टेंट गवर्नर्स से सहायता न मिलने को लेकर शिकायतें करना अभी से शुरू कर दिया है । उनका कहना है कि 'राजनीतिक मजबूरियों' के चलते वह ऐसे लोगों को असिस्टेंट गवर्नर्स बनाने के लिए मजबूर हुए हैं, जो डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था में उनकी मदद करने में सर्वथा अनुपयुक्त हैं । इस तरह की बातों से लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट की मौजूदा लीडरशिप डिस्ट्रिक्ट में हुए बड़े राजनीतिक बदलाव से जुड़ी लोगों की उम्मीदों को पूरा कर पाने में विफल हो रही है, जिसके कारण राजा साबू और उनके गिरोह के लोगों को मनमानी करने तथा लूट-खसोट बनाये रखने का मौका मिल रहा है तथा डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच असमंजसता तथा निराशा फैल रही है ।