नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने के लिए रतन सिंह यादव ने इस बार 'डबल गेम' खेला, लेकिन फिर भी चेयरमैन पद की कुर्सी पर बैठ पाना उन्हें नसीब नहीं हुआ । उनके लिए फजीहत की बात यह भी रही कि चेयरमैन पद की कुर्सी तो उन्हें नहीं ही मिली, काउंसिल में सबसे गंदी राजनीति करने का खिताब उन्हें और मिल गया । रतन सिंह यादव ने अपना 'डबल गेम' खेला तो हालाँकि बड़ी होशियारी से था, लेकिन उनकी होशियारी 'ओवर डोज' हो गई - जिसके चलते उन्हें होशियारी का कोई लाभ तो नहीं ही मिला, वह फजीहत का शिकार और हो गए । इससे भी ज्यादा बुरी बात उनके लिए यह हुई कि अपने 'डबल गेम' को जस्टिफाई करने के लिए उन्होंने जिन अविनाश गुप्ता को बलि का बकरा बनाने की कोशिश की, उन अविनाश गुप्ता ने पदों को ठुकरा कर अपना कद ऊँचा कर लिया । काउंसिल सदस्यों में हर कोई जहाँ पद पाने के जुगाड़ों में लगा था, वहाँ एक अकेले अविनाश गुप्ता ऐसे काउंसिल सदस्य बने - जो पदों की दौड़ में शामिल होने के बावजूद अपने आप को दौड़ से बाहर करते गए । रतन सिंह यादव अपने 'डबल गेम' को जस्टिफाई करने तथा सफल बनाने के लिए अविनाश गुप्ता को लगातार निशाना बनाते रहे, वह अविनाश गुप्ता को निशाना बनते देख खुश भी होते रहे - लेकिन वह यह समझने में चूक गए कि निशाना बनते हुए अविनाश गुप्ता उन्हें वास्तव में फजीहत व बदनामी के जिस दलदल में खींच कर पटक रहे हैं, वहाँ से उबर पाना रतन सिंह यादव के लिए खासा मुश्किल होगा ।
रतन सिंह यादव ने अपने 'डबल गेम' के तहत पहला काम तो यह किया कि अजय सिंघल को साथ लेकर उन छह सदस्यों के साथ ग्रुप बनाया, जो अब फाइनली सत्ता से बाहर हैं ।आठ सदस्यीय उस ग्रुप में रतन सिंह यादव इस समझौते के साथ जुड़े थे कि चेयरमैन पद के लिए उनके अलावा नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा व अविनाश गुप्ता नाम की पर्ची पड़ेगी । ग्रुप बनने/बनाने की बात को गुप्त रखने का फायदा उठाते हुए रतन सिंह यादव एक तरफ तो उक्त ग्रुप में शामिल हो गए थे, दूसरी तरफ वह अजय सिंघल के साथ मिल कर श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता व विजय गुप्ता की तिकड़ी को समझाने में लगे थे कि वह तीनों उन लोगों के साथ कैसे जुड़/बैठ सकते हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष उन्हें परेशान और बेइज्जत किया था । इन पाँच लोगों ने रचित भंडारी को भी अपने साथ कर लेने में सफलता पा ली थी । इन छह लोगों के ग्रुप में रतन सिंह यादव की चेयरमैनी तो पक्की थी, यहाँ उन्हें किसी के साथ पर्ची नहीं डालना थी - समस्या लेकिन यह थी कि सातवाँ समर्थक उन्हें खोजना/पाना था, और इसलिए सब कुछ पक्का होने के बाद भी पक्का कुछ नहीं था । इस कारण से रतन सिंह यादव पहले वाले ग्रुप में भी बने हुए थे । वहाँ बने रहते हुए वह वहाँ से निकलने के लिए बहाना भी तैयार करने लगे, और इसके लिए उन्होंने अविनाश गुप्ता को निशाना बनाना शुरू किया । उन्हें उम्मीद थी कि निशाना बनाये जाने से अविनाश गुप्ता बिदकेंगे, और ग्रुप में टूट-फूट मचेगी और तब उन्हें ग्रुप बाहर निकलने का अच्छा बहाना मिल जायेगा । रतन सिंह यादव को यह भी उम्मीद थी कि उनकी चालबाजी के चलते आठ सदस्यीय ग्रुप में टूट-फूट मचने पर गौरव गर्ग भी उनके साथ आ जायेंगे और वह चेयरमैन बन जायेंगे ।
अविनाश गुप्ता ने लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । रतन सिंह यादव ने पहले तो चेयरमैन पद के लिए अविनाश गुप्ता की पर्ची डालने पर आपत्ति की । उन्होंने सोचा था कि अविनाश गुप्ता इस पर भड़क जायेंगे, लेकिन अविनाश गुप्ता ने ग्रुप की एकता को बनाये रखने का वास्ता देकर अपने आप को चेयरमैन पद की चुनावी दौड़ से चुपचाप अलग कर लिया । अविनाश गुप्ता तब ट्रेजरर पद के लिए उम्मीदवार हो गए । ग्रुप में टूट-फूट मचाने लिए बहाना खोज रहे रतन सिंह यादव ने तब आपत्ति की कि यदि वह चेयरमैन बने तो उन्हें ट्रेजरर के पद पर अविनाश गुप्ता नहीं चाहिएँ । अविनाश गुप्ता इसके लिए भी राजी हो गए । उन्होंने कहा कि रतन सिंह यादव के चेयरमैन होने की स्थिति में वह गौरव गर्ग के साथ उम्मीदवारी बदल लेंगे और सेक्रेटरी पद के लिए उम्मीदवार हो जायेंगे । अपनी चाल को फेल होता देख रतन सिंह यादव ने तब शर्त थोपी कि अविनाश गुप्ता को वह किसी भी पद पर नहीं देखना चाहते हैं । उनकी उम्मीद के विपरीत, अविनाश गुप्ता ने उनकी इस बात को भी मान लिया और अपने आप को पदों की दौड़ से बाहर कर लिया । ग्रुप के दूसरे सदस्यों का कहना है कि उस समय तो उन्हें समझ में नहीं आया कि अविनाश गुप्ता इतनी आसानी से रतन सिंह यादव की माँगों को क्यों स्वीकार करते जा रहे हैं; लेकिन अब अविनाश गुप्ता ने उन्हें बताया है कि वह रतन सिंह यादव का खेल समझ गए थे, वह समझ गए थे कि वह धोखा दे रहे हैं, इसलिए उन्हें उन्हीं के खेल में उलझा कर उन्हें एक्सपोज करने के उद्देश्य से उनकी हर माँग को वह चुपचाप तरीके से स्वीकार करते गए ।
रतन सिंह यादव अपने ही जाल में फँस/उलझ गए थे । आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जिस धोखे का खेल खेल रहे थे, चुनाव का दिन नजदीक आने के कारण उसे उन्हें बंद करना ही था - तो उन्होंने झूठे ही आरोप लगाया कि आठ सदस्यीय ग्रुप के गठन की बात को गुप्त रखने की शर्त का चूँकि पालन नहीं किया गया है, इसलिए वह और अजय सिंघल ग्रुप से अलग हो रहे हैं । ग्रुप के सदस्यों ने उनसे पूछा भी कि ग्रुप के गठन की बात किसने कहाँ बता दी है, जिससे कि वह गुप्त नहीं रह गई - लेकिन रतन सिंह यादव ने इसका जबाव नहीं दिया; उन्हें तो दरअसल ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जो धोखाधड़ी कर रहे थे, उससे बाहर निकलने के लिए बहाना चाहिए था और इस बात को उन्होंने बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर लिया । चेयरमैन पद पर अपनी सुनिश्चित पकड़ बनाने के लिए रतन सिंह यादव ने आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ जो धोखा किया, और अविनाश गुप्ता को बलि का बकरा बनाने का जो प्रयास किया, उसमें फेल हो जाने के बाद रतन सिंह यादव के लिए फिर वह शशांक अग्रवाल की 'हार्ड बारगेनिंग' के सामने समर्पण करने अलावा कोई चारा नहीं बचा - और उनकी स्थिति 'ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम' जैसी हो गई । निकासा चेयरमैन के रूप में उनकी स्थिति उनके नजदीकियों को ही हजम नहीं हो रही है; उनका कहना है कि इससे तो अच्छा था कि रतन सिंह यादव कोई पद न लेते और 'किंग मेकर' की पहचान पाते । जाहिर है कि पॉवर ग्रुप में शामिल होने के बावजूद रतन सिंह यादव की लोगों के बीच फजीहत ही हो रही है; जबकि दूसरी तरफ पॉवर ग्रुप से बाहर हो कर भी अविनाश गुप्ता अपनी ऐसी छवि बना सकने में कामयाब हुए हैं, जो पदों के लालची नहीं हैं और ग्रुप में तथा काउंसिल में एकता व सद्भाव बनाये रखने के लिए पदों के ऑफर को छोड़ने के लिए तत्पर रहते हैं । इस पूरे प्रकरण में अविनाश गुप्ता के रवैये ने 'हार में जीत' जैसे मशहूर मुहावरे को सार्थक व प्रासंगिक बनाने का काम किया है ।
रतन सिंह यादव ने अपने 'डबल गेम' के तहत पहला काम तो यह किया कि अजय सिंघल को साथ लेकर उन छह सदस्यों के साथ ग्रुप बनाया, जो अब फाइनली सत्ता से बाहर हैं ।आठ सदस्यीय उस ग्रुप में रतन सिंह यादव इस समझौते के साथ जुड़े थे कि चेयरमैन पद के लिए उनके अलावा नितिन कँवर, राजिंदर अरोड़ा व अविनाश गुप्ता नाम की पर्ची पड़ेगी । ग्रुप बनने/बनाने की बात को गुप्त रखने का फायदा उठाते हुए रतन सिंह यादव एक तरफ तो उक्त ग्रुप में शामिल हो गए थे, दूसरी तरफ वह अजय सिंघल के साथ मिल कर श्वेता पाठक, पंकज गुप्ता व विजय गुप्ता की तिकड़ी को समझाने में लगे थे कि वह तीनों उन लोगों के साथ कैसे जुड़/बैठ सकते हैं, जिन्होंने पिछले वर्ष उन्हें परेशान और बेइज्जत किया था । इन पाँच लोगों ने रचित भंडारी को भी अपने साथ कर लेने में सफलता पा ली थी । इन छह लोगों के ग्रुप में रतन सिंह यादव की चेयरमैनी तो पक्की थी, यहाँ उन्हें किसी के साथ पर्ची नहीं डालना थी - समस्या लेकिन यह थी कि सातवाँ समर्थक उन्हें खोजना/पाना था, और इसलिए सब कुछ पक्का होने के बाद भी पक्का कुछ नहीं था । इस कारण से रतन सिंह यादव पहले वाले ग्रुप में भी बने हुए थे । वहाँ बने रहते हुए वह वहाँ से निकलने के लिए बहाना भी तैयार करने लगे, और इसके लिए उन्होंने अविनाश गुप्ता को निशाना बनाना शुरू किया । उन्हें उम्मीद थी कि निशाना बनाये जाने से अविनाश गुप्ता बिदकेंगे, और ग्रुप में टूट-फूट मचेगी और तब उन्हें ग्रुप बाहर निकलने का अच्छा बहाना मिल जायेगा । रतन सिंह यादव को यह भी उम्मीद थी कि उनकी चालबाजी के चलते आठ सदस्यीय ग्रुप में टूट-फूट मचने पर गौरव गर्ग भी उनके साथ आ जायेंगे और वह चेयरमैन बन जायेंगे ।
अविनाश गुप्ता ने लेकिन उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया । रतन सिंह यादव ने पहले तो चेयरमैन पद के लिए अविनाश गुप्ता की पर्ची डालने पर आपत्ति की । उन्होंने सोचा था कि अविनाश गुप्ता इस पर भड़क जायेंगे, लेकिन अविनाश गुप्ता ने ग्रुप की एकता को बनाये रखने का वास्ता देकर अपने आप को चेयरमैन पद की चुनावी दौड़ से चुपचाप अलग कर लिया । अविनाश गुप्ता तब ट्रेजरर पद के लिए उम्मीदवार हो गए । ग्रुप में टूट-फूट मचाने लिए बहाना खोज रहे रतन सिंह यादव ने तब आपत्ति की कि यदि वह चेयरमैन बने तो उन्हें ट्रेजरर के पद पर अविनाश गुप्ता नहीं चाहिएँ । अविनाश गुप्ता इसके लिए भी राजी हो गए । उन्होंने कहा कि रतन सिंह यादव के चेयरमैन होने की स्थिति में वह गौरव गर्ग के साथ उम्मीदवारी बदल लेंगे और सेक्रेटरी पद के लिए उम्मीदवार हो जायेंगे । अपनी चाल को फेल होता देख रतन सिंह यादव ने तब शर्त थोपी कि अविनाश गुप्ता को वह किसी भी पद पर नहीं देखना चाहते हैं । उनकी उम्मीद के विपरीत, अविनाश गुप्ता ने उनकी इस बात को भी मान लिया और अपने आप को पदों की दौड़ से बाहर कर लिया । ग्रुप के दूसरे सदस्यों का कहना है कि उस समय तो उन्हें समझ में नहीं आया कि अविनाश गुप्ता इतनी आसानी से रतन सिंह यादव की माँगों को क्यों स्वीकार करते जा रहे हैं; लेकिन अब अविनाश गुप्ता ने उन्हें बताया है कि वह रतन सिंह यादव का खेल समझ गए थे, वह समझ गए थे कि वह धोखा दे रहे हैं, इसलिए उन्हें उन्हीं के खेल में उलझा कर उन्हें एक्सपोज करने के उद्देश्य से उनकी हर माँग को वह चुपचाप तरीके से स्वीकार करते गए ।
रतन सिंह यादव अपने ही जाल में फँस/उलझ गए थे । आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जिस धोखे का खेल खेल रहे थे, चुनाव का दिन नजदीक आने के कारण उसे उन्हें बंद करना ही था - तो उन्होंने झूठे ही आरोप लगाया कि आठ सदस्यीय ग्रुप के गठन की बात को गुप्त रखने की शर्त का चूँकि पालन नहीं किया गया है, इसलिए वह और अजय सिंघल ग्रुप से अलग हो रहे हैं । ग्रुप के सदस्यों ने उनसे पूछा भी कि ग्रुप के गठन की बात किसने कहाँ बता दी है, जिससे कि वह गुप्त नहीं रह गई - लेकिन रतन सिंह यादव ने इसका जबाव नहीं दिया; उन्हें तो दरअसल ग्रुप के सदस्यों के साथ वह जो धोखाधड़ी कर रहे थे, उससे बाहर निकलने के लिए बहाना चाहिए था और इस बात को उन्होंने बहाने के तौर पर इस्तेमाल कर लिया । चेयरमैन पद पर अपनी सुनिश्चित पकड़ बनाने के लिए रतन सिंह यादव ने आठ सदस्यीय ग्रुप के सदस्यों के साथ जो धोखा किया, और अविनाश गुप्ता को बलि का बकरा बनाने का जो प्रयास किया, उसमें फेल हो जाने के बाद रतन सिंह यादव के लिए फिर वह शशांक अग्रवाल की 'हार्ड बारगेनिंग' के सामने समर्पण करने अलावा कोई चारा नहीं बचा - और उनकी स्थिति 'ना खुदा ही मिला, ना विसाले सनम' जैसी हो गई । निकासा चेयरमैन के रूप में उनकी स्थिति उनके नजदीकियों को ही हजम नहीं हो रही है; उनका कहना है कि इससे तो अच्छा था कि रतन सिंह यादव कोई पद न लेते और 'किंग मेकर' की पहचान पाते । जाहिर है कि पॉवर ग्रुप में शामिल होने के बावजूद रतन सिंह यादव की लोगों के बीच फजीहत ही हो रही है; जबकि दूसरी तरफ पॉवर ग्रुप से बाहर हो कर भी अविनाश गुप्ता अपनी ऐसी छवि बना सकने में कामयाब हुए हैं, जो पदों के लालची नहीं हैं और ग्रुप में तथा काउंसिल में एकता व सद्भाव बनाये रखने के लिए पदों के ऑफर को छोड़ने के लिए तत्पर रहते हैं । इस पूरे प्रकरण में अविनाश गुप्ता के रवैये ने 'हार में जीत' जैसे मशहूर मुहावरे को सार्थक व प्रासंगिक बनाने का काम किया है ।