Saturday, July 27, 2013

'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन का पद 'बेचने' में लगे रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर पूछ रहे हैं कि रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात क्या है ?

नई दिल्ली । दिल्ली में 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' का आयोजन करने का प्रस्ताव देने वाले रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर को जब यह बताया गया कि डिस्ट्रिक्ट 3010 की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने उक्त इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में मंजीत साहनी और/या अशोक घोष का नाम प्रस्तावित किया है, तो पीटी प्रभाकर बुरी तरह बिफर गए और पूछने लगे कि मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात क्या है ? मंजीत साहनी ने जब यह सुना तो किंचित आश्चर्य के साथ उन्होंने कहा कि प्रभाकर को मेरी औकात तो पता है - तभी तो वह डायरेक्टर चुने जाने से पहले फोन पर मुझसे दिन में दो दो बार बात करता था, सलाह लेता था, मदद माँगता था, कभी 'इससे' तो कभी 'उससे' सिफारिश करवाता था; उसे मेरी औकात का पता है, तभी तो वह यह सब करता था । मंजीत साहनी को हैरानी इस बात पर हुई कि प्रभाकर यह सब इतनी जल्दी भूल गया और पूछ रहा है कि उनकी औकात क्या है ? रोटरी में हालाँकि यह आम चलन है - चुनाव जीतने के लिए तो हर किसी की बड़ी खुशामद की जाती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद हर किसी के प्रति नजरिया यह होता है कि तुम हो कौन ? इसलिए यदि पीटी प्रभाकर ने मंजीत साहनी के प्रति यह रवैया प्रदर्शित किया है तो इसमें हैरान होने वाली भी कोई बात नहीं है । लेकिन यहाँ मामला अवसरवादी व्यवहार का नहीं है, बल्कि उससे भी ज्यादा गंभीर है ।
पीटी प्रभाकर की बातों से और उनके 'व्यवहार' से डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व गवर्नर्स को 'बाद में' यह 'पता' चला की 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन का पद पीटी प्रभाकर बेचने की फ़िराक में हैं और शायद उन्हें ग्राहक मिल भी गया है । दरअसल इसीलिए पीटी प्रभाकर को जब डिस्ट्रिक्ट 3010 में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में मंजीत साहनी और अशोक घोष का नाम प्रस्तावित होने की सूचना मिली तो वह बुरी तरह उखड़ गए । उखड़ कर फिर उन्होंने अपना जो असली वाला रंग दिखाया तो उसमें निशाना भले ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व गवर्नर्स को, और खास कर मंजीत साहनी व अशोक घोष को बनाया लेकिन फजीहत अपनी ही कराई और रोटरी को बदनाम किया । उन्होंने जो कुछ भी कहा उसका लब्बोलुबाब यह है कि वह रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को बेचेंगे और जो उन्हें इसकी कीमत देगा उसे चेयरमैन बनायेंगे । उन्होंने दावा किया कि उन्हें ऐसा करने से कोई भी नहीं रोक सकता । इसी संदर्भ में उन्होंने पूछा कि मंजीत साहनी और अशोक घोष चेयरमैन पद की कीमत देने को तैयार हैं क्या ? पीटी प्रभाकर फिर औकात पता करने पर आ गए; उन्होंने पूछा कि मंजीत साहनी और अशोक घोष की कीमत देने की औकात है क्या ? इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर बैठे व्यक्ति के मुँह से इस तरह की बातें जिसने भी सुनी वह हतप्रभ रह गया । मंजीत साहनी और अशोक घोष ने तुरंत ही यह स्पष्ट कर दिया कि रोटरी में उन्होंने कभी भी पद खरीदने की न तो कोई कोशिश की और न इस तरह की कोई बात उनके मन में कभी भी आई; उन्हें यहाँ जो कोई भी पद मिले हैं, उनकी काबिलियत के आधार पर ही मिले हैं । इन्होंने साफ कहा है कि पीटी प्रभाकर रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन का पद बेचना चाहते हैं, तो बेच लें - उनकी इसे खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि पीटी प्रभाकर ने जो कुछ भी कहा है, उसके पीछे जो 'सोच' है उसे रोटरी में स्वीकार्यता प्राप्त है । उन्होंने कोई अनोखा काम करने की कोशिश नहीं की है । उनसे पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर रहे शेखर मेहता ने जब दो बार - पहली बार 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2011' में और दूसरी बार अभी हाल ही में हैदराबाद में आयोजित हुए 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' में - चेयरमैन कमल सांघवी को बनाया था, तो उन्होंने वास्तव में चेयरमैन का पद 'बेचा' ही था । इसे लेकर शेखर मेहता को अपने डिस्ट्रिक्ट में और कमल सांघवी को अपने डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि विरोध भी झेलना पड़ा था - लेकिन शेखर मेहता और कमल सांघवी चूँकि होशियार लोग हैं इसलिए उन्होंने ज्यादा हील-हुज्जत में फंसे बिना डील कर ली थी । पीटी प्रभाकर ने अपनी मूरखता से सब गुड़-गोबर कर लिया । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि पीटी प्रभाकर ने जो 'सोचा' और जो करने की कोशिश की, उसमें कुछ भी गलत नहीं है । क्लब्स में, डिस्ट्रिक्ट्स में और उसके ऊपर भी 'ऐसे' ही काम होते हैं - यह कहना ज्यादा सही होगा कि काम 'ऐसे' ही हो सकते हैं । पीटी प्रभाकर इसे ठीक तरह से अंजाम नहीं दे पाए और बुरी तरह एक्सपोज हो गए । इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद के लिए पीटी प्रभाकर की पसंद बने विनोद बंसल भी इस बात को या तो पहचान नहीं पाए और या पीटी प्रभाकर को कम्युनिकेट नहीं कर पाए कि उनके चेयरमैन बनने के मुद्दे पर उनके डिस्ट्रिक्ट में बबाल हो जायेगा - इसलिए अच्छा होगा कि इंस्टीट्यूट की मोटी-मोटी बातें तय होने से पहले डिस्ट्रिक्ट 3010 के लोगों को किसी भी स्तर पर शामिल ही न किया जाये ।
पीटी प्रभाकर और विनोद बंसल यह जानने/समझने में भी चूक कर बैठे कि जो खिचड़ी वह गुपचुप गुपचुप पका रहे हैं उसकी खुशबु लोगों तक जा पहुँची है और इस खिचड़ी को बिखेरने के लिए वह बस मौके का इंतजार कर रहे हैं । और यह मौका पीटी प्रभाकर ने खुद दे दिया । यह इससे साबित है कि पीटी प्रभाकर ने इंस्टीट्यूट के चेयरमैन को लेकर तो कोई बात ही नहीं की थी, उन्होंने तो दिल्ली के लोगों से दिल्ली में इंस्टीट्यूट करने को लेकर बात शुरू की थी - मौके का इंतजार कर रहे दिल्ली के भाई लोगों ने चेयरमैन का चुनाव ही कर डाला । विनोद बंसल के लिए इसे दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना के अलावा और क्या कहा जायेगा कि पर्दे के पीछे तो वह रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे थे, और पर्दे के सामने वह उस मीटिंग के हिस्सा थे जो मंजीत साहनी और या अशोक घोष को चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव पास कर रही थी । विनोद बंसल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' को लेकर महत्वपूर्ण फैसले करने से पहले पीटी प्रभाकर को डिस्ट्रिक्ट 3010 में आना ही नहीं चाहिए था । यह सच है कि विनोद बंसल चेयरमैन हो जाते और फिर डिस्ट्रिक्ट 3010 में बात आती तो बबाल तब भी होता, लेकिन तब वह जल्दी शांत भी हो जाता । अब लेकिन मामला गंभीर हो गया है - पीटी प्रभाकर ने मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात की बात करके तथा चेयरमैन पद को बेचने की घोषणा करके मामले को कुछ ज्यादा पेजीदा बना दिया है ।
बहरहाल, चूँकि पीटी प्रभाकर ने यह दावा कर दिया है कि 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन पद को बेचने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता - इसलिए अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उक्त पद को कौन खरीदता है ? 

Friday, July 26, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने मंजीत साहनी को आगे करके विनोद बंसल की रोटरी इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनने की तैयारी में अड़चन पैदा की

नई  दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट 3010 में इन दिनों उस मशहूर हिंदी कहावत को चरितार्थ होते देखा जा सकता है जिसमें 'गाँव के बसने से पहले ही लुटेरों के सक्रिय होने' की बात कही गई है । हुआ यह है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर ने वर्ष 2014 में होने वाले रोटरी इंस्टीट्यूट को दिल्ली में आयोजित करने का प्रस्ताव रखा तो डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच उस इंस्टीट्यूट का चेयरमैन बनने को लेकर भयानक मारकाट मच गई । यह मारकाट इतने गंभीर रूप में चल रही है कि इसके चलते इंस्टीट्यूट के दिल्ली में होने का प्रस्ताव रद्द होने का खतरा तक पैदा हो गया है । उल्लेखनीय है कि क्लब्स के लोग इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपने प्रोजेक्ट्स संबंधी कार्यक्रम में आमंत्रित करें, तो यह व्यस्तता का तर्क देकर बच निकलते हैं । डिस्ट्रिक्ट के इंटरसिटी सेमीनारों में न आने का इनके पास बड़ा ठोस बहाना होता है कि गवर्नर ने इन्हें तरीके से निमंत्रित ही नहीं किया, बस एक इमेल भेज दिया है । लेकिन प्रस्तावित इंस्टीट्यूट के चेयरमैन बनने को लेकर छिड़ी लड़ाई में अपनी अपनी पोजीशन लेने की तैयारी को लेकर होने वाली मीटिंग्स के लिए इन्हें न तो किसी निमंत्रण के 'तरीके से' मिलने की जरूरत है और न इनके पास समय की कोई कमी है । इससे भी ज्यादा मजे की बात यह हुई है कि प्रस्तावित इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को लेकर छिड़ी लड़ाई में अभी कुछ दिन पहले तक एक-दूसरे को अश्लील और अशालीन तरीके से निशाना बना रहे कुछेक पूर्व गवर्नर्स अब एक दूसरे से गलबहियाँ करते देखे जा हैं ।
इस संबंध में मुकेश अरनेजा, आशीष घोष और अमित जैन के बीच बनी निकटता ने लोगों का ध्यान खास तौर से खींचा है । उल्लेखनीय है कि मुकेश अरनेजा पिछले काफी समय से आशीष घोष और अमित जैन को तरह-तरह से निशाना बनाते हुए अपमानित करते रहे हैं । आशीष घोष को लेकर मुकेश अरनेजा ने जिस तरह की अश्लील और अशालीन किस्म की बातें की हैं, किसी सामान्य भले व्यक्ति के लिए तो उन बातों को कहना/सुनना भी मुश्किल होगा । अमित जैन के साथ तो मुकेश अरनेजा का ऐसा टकराव रहा कि अमित जैन के लिए मुकेश अरनेजा को अपने गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाने की मजबूरी पैदा हो गई थी जिसके बदले में मुकेश अरनेजा ने अमित जैन के गवर्नर-काल को खराब करने का बीड़ा उठा लिया था । लेकिन अब, प्रस्तावित इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को लेकर छिड़ी लड़ाई में मुकेश अरनेजा की 'बातों' में आशीष घोष और अमित जैन को मजे लेते हुए देखा गया है । दरअसल, मुकेश अरनेजा की अश्लील और अशालीन किस्म की बातों में निशाने पर अब विनोद बंसल हैं - इसलिए इन्हें मजा आ रहा है । इन्हें मजा इसलिए भी आ रहा है क्योंकि अभी तक मुकेश अरनेजा की  बातों में निशाने पर जब ये होते थे तो विनोद बंसल मजा लेते थे । विनोद बंसल ने यह समझने की दरअसल कोई कोशिश ही नहीं की कि जो मुकेश अरनेजा अभी आशीष घोष और अमित जैन को निशाना बना रहे हैं, कल वही मुकेश अरनेजा उन्हें निशाना बनाने से नहीं चूकेंगे ।
मुकेश अरनेजा ने विनोद बंसल को आजकल इसलिए निशाने पर लिया हुआ है, क्योंकि दिल्ली में प्रस्तावित रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद के लिए पीटी प्रभाकर की पसंद के रूप में उन्हें विनोद बंसल का नाम सुनाई दिया । मुकेश अरनेजा ने यह भाँपने में कोई देर नहीं की कि पूर्व गवर्नर्स के बीच राजनीति करने का उन्हें यह सुनहरा मौका मिला है । उन्होंने समझ लिया कि अलग-अलग तरीके से वह लोगों को उकसायेंगे तो विनोद बंसल को चेयरमैन बनाने का विरोध करने के लिए हर कोई तैयार हो जायेगा । मुकेश अरनेजा ने गणित यह लगाया कि पिछले छह-आठ वर्ष में बने गवर्नर निजी खुन्नस, ईर्ष्या और या निजी महत्वाकांक्षा के चलते विनोद बंसल के खिलाफ किये जा सकते हैं और पुराने गवर्नर्स को वरिष्ठता का नारा देकर विनोद बंसल के खिलाफ किया जा सकता है । दिल्ली में प्रस्तावित रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद के लिए मंजीत साहनी और अशोक घोष का नाम उछाल कर मुकेश अरनेजा ने पहले तो काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में स्थितियों को विनोद बंसल के लिए प्रतिकूल बना दिया और फिर अपनी आदत के अनुसार चटखारेदार बातों के जरिये विनोद बंसल को निशाने पर ले कर मजाक का विषय बना दिया । इस तरह, आशीष घोष और अमित जैन को भी मुकेश अरनेजा की बातों में मजे लेने का मौका बहुत समय बाद मिला ।
मुकेश अरनेजा लोगों को रस ले ले कर बता रहे हैं कि दिल्ली में प्रस्तावित रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद की लड़ाई में किस तरह सुशील गुप्ता भी विनोद बंसल के काम नहीं आ पाये । लोगों को यह बात बताना मुकेश अरनेजा को इसलिए जरूरी लगा क्योंकि मुकेश अरनेजा को इस बात से भी बड़ी चिढ़ रही कि विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुशील गुप्ता को कुछ ज्यादा ही तवज्जो दे रहे हैं । मुकेश अरनेजा ने लोगों को जो बताया उसके अनुसार, काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में सुशील गुप्ता ने एक बार यह तर्क जरूर दिया कि इंस्टीट्यूट के चेयरमैन को चुनने का अधिकार तो इंटरनेशनल डायरेक्टर को मिलना ही चाहिए । लेकिन बाकी लोगों ने जब यह तर्क दिया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर को यह अधिकार मिलना तो जरूर चाहिए, लेकिन इंस्टीट्यूट की व्यवस्था अच्छे से हो सके इसके लिए क्या यह उचित नहीं होगा कि वह चेयरमैन का चुनाव दूसरों से सलाह करके करे - तो सुशील गुप्ता को चुप रह जाना पड़ा । दिल्ली में अगले रोटरी वर्ष में, यानि संजय खन्ना के गवर्नर-काल में रोटरी इंस्टीट्यूट की बात अभी सिर्फ प्रस्ताव के स्तर पर है - लेकिन डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को लेकर आपस में भिड़ गए हैं । इंस्टीट्यूट के प्रभारी के रूप में पीटी प्रभाकर ने विनोद बंसल को चेयरमैन बनाने की तैयारी की, तो डिस्ट्रिक्ट के सभी पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनके खिलाफ लामबंद हो गए; मंजीत साहनी और अशोक घोष का नाम काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में आया जरूर, लेकिन किसी एक नाम पर सहमति नहीं हो पाई - सहमति बनाने की कोशिश भी दरअसल नहीं हुई और इसलिए नहीं हुई क्योंकि इनके नाम ऐसे लोगों ने दिए जो इनके घोर विरोधी के रूप में जाने/पहचाने जाते हैं । समझा जाता है कि इनके नाम तो विनोद बंसल के खिलाफ माहौल बनाने के उद्देश्य से लिया गया है - चेयरमैन चुनने का जब सचमुच का वक्त आयेगा तो कुछेक लोग अपना नाम आगे कर सकते हैं । चेयरमैन पद को लेकर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग होने के बाद भी जिस तरह की हलचल है और छोटे-छोटे समूहों में गुपचुप गुपचुप बातचीतें हो रही हैं उससे यही आभास मिल रहा है कि इंस्टीट्यूट - जिसके दिल्ली में होने का सिर्फ प्रस्ताव भर है, अभी यह तय नहीं हुआ है कि वह दिल्ली में होगा भी या नहीं - के चेयरमैन पद को लेकर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तलवारें लिए घूम रहे हैं, इस बात की परवाह किये बिना कि उनकी यह तलवारें इंस्टीट्यूट के दिल्ली में होने की संभावना को ही काटने का काम करेंगी ।

Thursday, July 25, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपने बेटे को क्लब का अध्यक्ष बनवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के अभियान को सुधीर मंगला ने चोट पहुँचाने का ही काम किया है

नई दिल्ली । सुधीर मंगला ने अपनी उम्मीदवारी का श्रीगणेश पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने क्लब के अध्यक्ष को बदल/बदलवा कर किया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी चुने जाने के खिलाफ की गई अपनी शिकायत के खारिज हो जाने के बाद सुधीर मंगला ने जब दोबारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का फैसला किया तो सबसे पहला काम उन्होंने अपने क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट संजय गोयल को उनके पद से हटाने का किया/कराया । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले वर्ष भी सुधीर मंगला ने जब अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करना शुरू किया था, तब सबसे पहला काम उन्होंने अपने क्लब के तत्कालीन प्रेसीडेंट इलेक्ट अरूण जैन को रातों-रात उनके पद से हटाने/हटवाने का किया था, जिसे लेकर क्लब में तो भारी थुक्का-फजीहत हुई ही थी - उम्मीदवार के रूप में सुधीर मंगला की भी लोगों के बीच नकारात्मक छवि बनी थी । पिछले राटरी वर्ष के उस अप्रिय प्रसंग से लगता है कि सुधीर मंगला और क्लब में मौजूद उनके समर्थकों व शुभचिंतकों ने कोई सबक नहीं सीखा - और इस रोटरी वर्ष में फिर से वही नाटक खड़ा कर दिया गया । संजय गोयल को जिस तरह निहायत अपमानजनक तरीके से अध्यक्ष पद से हटा कर उनकी जगह विपिन गुप्ता को अध्यक्ष घोषित किया गया - उसे लेकर क्लब के कई सदस्यों के बीच गहरी नाराजगी है । संजय गोयल को अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले के पीछे सुधीर मंगला को देखने/पहचानने वाले क्लब के सदस्यों का कहना है कि इस कार्रवाई से सुधीर मंगला ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यही संदेश दिया है कि अपने स्वार्थ में वह अपने ही लोगों के खिलाफ काम कर सकते हैं और उन्हें अपमानित कर सकते हैं । इनका कहना है कि संजय गोयल क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट बने थे, तो उसमें सुधीर मंगला की भी रजामंदी थी ही - लेकिन उन्हीं सुधीर मंगला को अपनी उम्मीदवारी के स्वार्थ में वही संजय गोयल खटकने लगे और उन्हें अपमानजनक तरीके से रातों-रात अध्यक्ष पद से हटा दिया गया ।
सुधीर मंगला और क्लब में उनके समर्थकों का हालाँकि कहना है कि संजय गोयल ने अपनी कामकाजी व्यस्तता के चलते खुद ही अध्यक्ष पद को छोड़ा है । उनका कहना है कि संजय गोयल को अचानक से विदेश में कुछ काम मिल गया, जिसके कारण उन्हें अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पाना मुश्किल लगा और उन्होंने अध्यक्ष पद से खुद ही मुक्ति पा ली । क्लब के अन्य कुछेक लोगों का कहना लेकिन यह है कि संजय गोयल ने विवाद में फंसने से बचने के लिए सुधीर मंगला और उनके समर्थकों के इस तर्क को ‘स्वीकार’ कर लिया । पिछले वर्ष अरूण जैन को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद, जिस तरह से तंग किया गया और क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी को लेकर उनके द्वारा खर्च किए गए पैसे को लौटाने में हील-हुज्जत की गई थी, उससे सबक लेकर संजय गोयल ने मामले को तूल न देने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । अध्यक्ष पद से हटाये जाने को लेकर संजय गोयल भले ही कुछ न कह रहे हों, लेकिन उनके अध्यक्ष न रहने पर उनके क्लब के ही कुछेक लोगों ने निराशा और अपनी नाखुशी प्रकट की है । संजय गोयल को अध्यक्ष पद से हटाये जाने से नाराज क्लब के सदस्यों का कहना है कि संजय गोयल को सिर्फ इसलिए अपमानित किया गया, क्योंकि सुधीर मंगला को लगता है कि उनकी उम्मीदवारी के अभियान में नये रोटेरियन होने के नाते संजय गोयल से उन्हें उचित मदद नहीं मिल पायेगी । संजय गोयल की जगह जिन विपिन गुप्ता को क्लब का अध्यक्ष बनाया/बनवाया गया है, वह अपेक्षाकृत पुराने रोटेरियन हैं और इस कारण से रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के ‘नियम-धर्म’ को जानते/पहचानते हैं - इससे भी बड़ी बात यह कि वह सुधीर मंगला के ‘पड़ोसी’ भी हैं । इस कारण से सुधीर मंगला को लगता है कि उनकी उम्मीदवारी के अभियान में विपिन गुप्ता ज्यादा मददगार साबित होंगे । उल्लेखनीय है कि ‘इसी कारण’ से पिछले रोटरी वर्ष में अरूण जैन को अध्यक्ष पद से हटाया गया था । संजय गोयल को हटा कर विपिन गुप्ता को क्लब का अध्यक्ष बनाने से सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को चुनाव में कितना क्या फायदा होगा, यह तो समय बतायेगा - लेकिन इस प्रसंग से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अभी जो मैसेज गया है, उसने सुधीर मंगला के खिलाफ माहौल बनाने का ही काम किया है ।
सुधीर मंगला ने अपनी उम्मीदवारी के स्वार्थ में सिर्फ अपने ही क्लब में प्रेसीडेंट इलेक्ट को अपमानित करके नहीं हटाया/हटवाया, बल्कि यही खेल उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में किया/करवाया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में प्रेसीडेंट इलेक्ट दिव्या ज्योति सिंह थीं - लेकिन जैसे ही सुधीर मंगला का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनना तय हुआ, वैसे ही रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में दिव्या ज्योति सिंह को हटा कर सुधीर मंगला के बेटे निशांत मंगला को अध्यक्ष बना/बनवा दिया गया । दिव्या ज्योति सिंह पिछले रोटरी वर्ष में क्लब की सेक्रेटरी थीं, और सेक्रेटरी रहते हुए ही उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट चुना गया था । निशांत मंगला की क्लब में कहीं कोई भूमिका या सक्रियता  भी नहीं थी । पिछले रोटरी वर्ष में क्लब का जो ग्यारह सदस्यीय बोर्ड था, निशांत मंगला उसमें नहीं थे - लेकिन फिर भी दिव्या ज्योति सिंह को हटा कर वह सीधे अध्यक्ष बने । निशांत मंगला अध्यक्ष बनने से पहले रोटरी में जरा भी सक्रिय नहीं थे - जाहिर है कि रोटरी में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । अब अध्यक्ष तो वह अपने पिता जी की उम्मीदवारी में मदद करने के उद्देश्य से बने हैं । रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट के अध्यक्ष के रूप में निशांत मंगला से सुधीर मंगला को अपनी उम्मीदवारी में क्या मदद मिलेगी, इसे आंकने/समझने से पहले यह जान लेना प्रासंगिक होगा कि उनसे पहले जो दीप्ति गुप्ता लगातार दो वर्ष इस क्लब की अध्यक्ष रहीं, उनके अध्यक्ष बनने के पीछे भी कारण उनके पति जितेंद्र गुप्ता की राजनीतिक मदद करने का ही था, पर वह किसी भी तरह से हो नहीं पाई । जो फार्मूला जितेंद्र गुप्ता के काम नहीं आया, वह सुधीर मंगला के काम आ सकेगा - इसमें बहुतों को संदेह है ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के प्रति सहानुभूति का भाव रखने वाले कई लोगों का ही कहना है कि सुधीर मंगला का बेटा अपनी सक्रियता के बल पर और रोटरी इंटरनेशनल द्वारा मान्य सीढ़ीनुमा प्रथा का पालन करते हुए क्लब का अध्यक्ष बनता तो लोगों की आँखों में नहीं खटकता, लेकिन जिस तरह से और जिस उद्देश्य से उन्होंने अध्यक्ष का पद लिया है, उससे सुधीर मंगला की उम्मीदवारी मजाक का विषय और बन गई है । अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सुधीर मंगला इन जिस तरह की तिकड़मों का सहारा ले रहे हैं, उससे दो बातें एक साथ साबित हुई हैं: एक तो यह कि अपनी उम्मीदवारी को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता दिलाने को लेकर उनके पास कोई ठोस रणनीति नहीं है; और दूसरा यह कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन व स्वीकार्यता जुटाने/बनाने के लिए उनके पास समर्थकों की कमी है और इसीलिए उन्हें अपने बेटे को काम में ‘लगाना’ पड़ा है । रोटरी में - और डिस्ट्रिक्ट 3010 में भी पिता-पुत्र के एक साथ सक्रिय होने के उदाहरण तो कुछेक हैं, लेकिन पिता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में पुत्र के कमान संभालने का यह संभवतः पहला उदाहरण है । सुधीर मंगला के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए इस उदाहरण को डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने बहुत उत्साह से और या सकारात्मक भाव से नहीं लिया है । निशांत मंगला अपने पिता सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए कुछ अच्छा क्या और कैसे करेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन जो पता चल रहा है वह यह कि मनोवैज्ञानिक रूप से और परसेप्शन (अवधारणा) के स्तर पर सुधीर मंगला की इस कार्रवाई ने उनकी उम्मीदवारी के अभियान पर नकारात्मक असर ही डाला है तथा उनकी उम्मीदवारी के अभियान को चोट पहुँचाने का ही काम किया है ।

(इस रिपोर्ट को 'रचनात्मक संकल्प' के प्रिंट ऐडीशन से साभार लिया गया है ।)

Tuesday, July 23, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में एसएस भामरा ने जेपी सिंह का साथ सचमुच छोड़ दिया है, या वह अजय गोयल के साथ कोई खेल खेल रहे हैं

करनाल/नई दिल्ली । अजय गोयल ने एसएस भामरा को अपनी तरफ मिला कर जेपी सिंह को खासा तगड़ा झटका दिया है । इस झटके के ‘तगड़ेपन’ को कम करने/दिखाने के लिए जेपी सिंह ने यह दावा करके चाल तो हालाँकि चली हुई है कि एसएस भामरा को अजय गोयल से तार जोड़ने की सलाह उन्होंने ही दी है और अजय गोयल के यहाँ एसएस भामरा उनके ही जासूस के रूप में हैं; लेकिन डिस्ट्रिक्ट में लोगों को सच यही नजर आ रहा है कि जेपी सिंह को डूबते हुए जहाज के रूप में देखते/पहचानते हुए एसएस भामरा ने उनका साथ छोड़ने में ही अपनी भलाई देखी और पहचानी है तथा उन्हें चूँकि अजय गोयल के साथ अपना भविष्य दिखाई दे रहा है, इसलिए वह अब अजय गोयल के साथ जा मिले हैं । एसएस भामरा ने भी अपनी तरफ से होशियारी यह दिखाई हुई है कि वह सीधे अजय गोयल से नहीं जा मिले हैं, उन्होंने यह ‘काम’ बाया एमआर शर्मा किया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों से उन्होंने यही कहा है कि वह तो एमआर शर्मा के साथ हैं, अब यदि एमआर शर्मा ने अपने आप को अजय गोयल के साथ जोड़ लिया है तो फिर स्वाभाविक रूप से वह भी अजय गोयल के साथ ही हुए । इन तीनों के नजदीकियों की बातों पर यदि विश्वास करें तो अंदरखाने यह तय हो चुका है कि अगले लायन वर्ष में एसएस भामरा की उम्मीदवारी अजय गोयल के नेतृत्व में प्रस्तुत होगी । अजय गोयल के उम्मीदवार के रूप में हालाँकि विनय गर्ग को देखा/पहचाना जा रहा था, लेकिन समझा जाता है कि अजय गोयल ने एसएस भामरा को आश्वस्त कर दिया है कि विनय गर्ग से पहले वह उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवायेंगे । अजय गोयल ने कहा है कि अगले लायन वर्ष में डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की प्रक्रिया यदि पूरी हो गई तो अगले लायन वर्ष में ही दो चुनाव होंगे, और तब एसएस भामरा व विनय गर्ग दोनों ही गवर्नर की लाइन में आ जायेंगे - और यदि किसी वजह से अगले लायन वर्ष तक डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की प्रक्रिया पूरी नहीं हुई तो विनय गर्ग की बजाये एसएस भामरा उनके उम्मीदवार होंगे ।
विनय गर्ग को पीछे करके एसएस भामरा को अपने साथ मिला कर अजय गोयल ने जेपी सिंह की ‘राजनीति की कमर’ ही तोड़ देने का जो दाँव चला है, उसने जेपी सिंह को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पहली बार पटखनी खाने का अहसास कराया है । असल में, जेपी सिंह ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि एसएस भामरा उनका साथ छोड़ कर किसी और के साथ जा मिलेंगे । जेपी सिंह ने अपने नजदीकियों को इसका एक कारण यह भी बताया हुआ था कि एसएस भामरा की एक मोटी रकम उनके पास फँसी हुई है और उस रकम को चूँकि उनके चुनाव में ही एडजस्ट होना है, इसलिए भी एसएस भामरा उनका साथ नहीं छोड़ पायेंगे । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच चर्चा है कि जेपी सिंह संभावित उम्मीदवारों से अपने घर/परिवार के खर्च के नाम पर अच्छी.खासी रकम उधार ले लेते हैं और फिर उस रकम को चुनाव के खर्च में ‘एडजस्ट’ कर लेते हैं । उम्मीदवार ‘मजबूरी’ में कुछ बोल ही नहीं पाता है । जेपी सिंह का यह खेल चूँकि पिछले कई वर्ष से सफलता के साथ चल रहा है, इसलिए उन्हें उम्मीद रही कि एसएस भामरा के साथ भी उनका यह खेल चलेगा । लेकिन एसएस भामरा ने उनके खेल के इस ‘दाँव’ को भोथरा कर दिया है । जेपी सिंह ने अपने ‘चमचों’ से एसएस भामरा को यह संदेश भिजवाया भी कि यदि उन्होंने जेपी सिंह का साथ छोड़ा तो जेपी सिंह को उधार दी गई उनकी रकम तो मारी जायेगी - लेकिन एसएस भामरा ने यह जबाव देकर उन्हें और झटका दिया कि जेपी सिंह से अपनी रकम तो वह निकलवा लेंगे ।
मजे की बात यह है कि जेपी सिंह को मुसीबतों ने जिस तरह से घेरा है, उसके लिए खुद जेपी सिंह ही जिम्मेदार हैं । दरअसल अपनी अकड़ में जेपी सिंह यह भूल बैठे कि अपने लालच के चलते उन्होंने डिस्ट्रिक्ट में किस किस तरह के ‘दुश्मन’ बनाये हुए हैं - जो सिर्फ मौका देख रहे हैं उन्हें घेरने और उनसे निपटने का । लायंस क्लब अंबाला होस्ट के अनिल चोपड़ा की पहलभरी सक्रियता से डिस्ट्रिक्ट विभाजन का जो मुद्दा उठा वह शुरू में कोई इतना बड़ा मुद्दा नहीं था कि उससे निपटा न जा सकता हो - जेपी सिंह लेकिन इसी गलतफहमी में रहे कि यह कोई बड़ा मुद्दा नहीं है, और इससे तो वह आसानी से निपट लेंगे । उन्हें इस बात का जरा भी अहसास नहीं हुआ कि इस मुद्दे को लपक कर उनके तमाम विरोधी उनकी छाती पर चढ़ बैठेंगे । जेपी सिंह ने दूसरी गलती यह की कि जब उन्हें डिस्ट्रिक्ट विभाजन का मुद्दा गंभीर होता हुआ ‘दिखा’ भी, तब उन्होंने उससे निपटने के लिए विनोद खन्ना जैसे बदनाम आदमी पर भरोसा किया । जेपी सिंह यह समझने में असफल रहे कि डिस्ट्रिक्ट में उनसे भी ज्यादा बदनाम तो विनोद खन्ना हैं, और विनोद खन्ना का संग-साथ उन्हें बचाने की बजाये उन्हें डुबोने का ही काम करेगा । यही हुआ भी । डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए जेपी सिंह और विनोद खन्ना की जोड़ी की सक्रियता ने इनके विरोधियों को भी एकजुट होने के लिए प्रेरित किया ।
दरअसल, डिस्ट्रिक्ट को विभाजन की तरफ जाता देख कर जेपी सिंह और विनोद खन्ना जिस तरह से बौखलाए और डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने के लिए यह जिस तरह की हरकतों पर उतरे, उससे लोगों को ऐसा लगा जैसे इन्हें अपनी जायदाद छिनने का डर हो गया है - इससे इनके लिए मामला और बिगड़ गया । इनके लायनिज्म को धंधा बना लेने तथा पैसों के लूटखसोट में इनके लगे रहने के आरोपों पर जिन लोगों को पहले भरोसा नहीं होता था, उन्हें भी इन आरोपों में सच्चाई नजर आने लगी और इस तरह जेपी सिंह और विनोद खन्ना का विरोध बढ़ता गया । इसी का नतीजा रहा कि वोटों की लड़ाई में प्रायः जीतते रहे जेपी सिंह और विनोद खन्ना डिस्ट्रिक्ट विभाजन के मुद्दे पर हुई वोट की लड़ाई में बुरी तरह हार गये । बुरी तरह हार कर भी इन्होंने कोई सबक नहीं लिया और हार को जीत में बदलने की तिकड़मों में जुट गये - यह एक बार फिर यह न समझने/पहचानने की भूल कर बैठे कि इनकी करतूतों से मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोग भी भलीभाँति परिचित हैं और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट में हुई हार को मल्टीपल में जीत में बदलने की इनकी कोशिश औंधे मुँह जा गिरी । इस सारे घमासान में, डिस्ट्रिक्ट के विभाजन को रोकने की जेपी सिंह और विनोद खन्ना की कोशिश ही सिर्फ विफल नहीं हुई, डिस्ट्रिक्ट में उनकी बदनामी और उनके विरोधियों की संख्या में भी इजाफा हुआ । यह देख कर उन्हें राजनीतिक मात देने की कोशिशों में लगे लोगों में नये सिरे से जोश भरा - उनकी सक्रियता बढ़ी और नये समीकरण बनने की संभावनाओं को देखा/पहचाना जाने लगा । इसी देखने/पहचानने में एसएस भामरा ने पाला बदल लिया । ऐसा करने की कुछ तो एसएस भामरा के सामने मजबूरी बनी और फिर उन्हें इसमें ही अपना फायदा भी दिखा । डिस्ट्रिक्ट के विभाजन की मांग को चूँकि हरियाणा में ज्यादा समर्थन मिला, इसलिए इस मांग के विरोधी के रूप में हरियाणा के लोगों के बीच कुख्यात हुए जेपी सिंह के साथ एसएस भामरा भला कैसे खड़े रह सकते थे ? उन्होंने जान/समझ लिया है कि जेपी सिंह के खुले भरोसे में रह कर वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरियाणा के लोगों का समर्थन नहीं प्राप्त कर सकेंगे । जेपी सिंह हालाँकि लगातार यह दावा दोहराये जा रहे हैं कि एसएस भामरा उनके ही साथ हैं । तो क्या, एसएस भामरा राजनीतिक मजबूरी में अजय गोयल के साथ कोई खेल खेल रहे हैं ? अगले कुछ दिनों की घटनाएं बतायेंगी कि कौन किसके साथ खेल खेल रहा है और कौन किसे धोखा दे रहा है ? जाहिर है कि अगले कुछेक दिनों में घटने वाली घटनाएं डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के संदर्भ में महत्वपूर्ण होंगी ।

Monday, July 15, 2013

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में सुनील जैन की घोषणा ने कैबिनेट पदों की ऊँची कीमत बसूलने में लगे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर जनमेजा को फजीहत का शिकार बनाया

देहरादून/गाजियाबाद । सुनील जैन ने अपने गवर्नर-काल में कैबिनेट सदस्यों से पैसा न लेने की अपनी घोषणा को दोहरा कर सुधीर जनमेजा के लिए आलोचना और विरोध के स्वरों को तेज कर दिया है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने कैबिनेट सदस्यों से जो रकम बसूल करने की तैयारी की हुई है, उसके चलते वह पहले से ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों की आलोचना के निशाने पर हैं । सुधीर जनमेजा ने रीजन चैयरपरसन्स, जोन चेयरपरसन्स तथा कमेटी चेयरपरसन्स के लिए जो रेट तय किए, उन्हें डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने ‘लूट’ की संज्ञा दी है । लोगों का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने लगता है कि पैसा ‘बनाने’ का लक्ष्य निर्धारित कर लिया है । सुधीर जनमेजा ने एक कमाल यह और किया कि परिचय सम्मेलन में आने वाले लोगों तक से उन्होंने रजिस्ट्रेशन के नाम पर पैसा बसूल कर लिया । सुधीर जनेमजा के नजदीकियों का कहना है कि सुधीर जनमेजा ने इस सच्चाई को जान/पहचान लिया है कि लायनिज्म में कुछ लोग पदों के इतने लालची हैं कि पद की ऐवज में कोई भी रकम देने को तैयार हो जायेंगे । इन्हीं नजदीकियों का कहना है कि लोग जब लुटने के लिए तैयार हैं तो सुधीर जनमेजा उन्हें ‘लूटने’ का मौका भला क्यों छोड़े ? नजदीकियों की इन बातों में दम तो है । इन्हीं नजदीकियों ने मजाक-मजाक में एक तथ्य की ओर और ध्यान दिलाया कि सुधीर जनमेजा चंदा उगाहने के मामले में तो गाजियाबाद में पहले से ही बदनाम हैं । इस तरह की बातों के बीच, सुधीर जनमेजा के विरोधियों को यह कहने का मौका मिल गया है कि वह तो पहले से ही कहते थे कि सुधीर जनमेजा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सिर्फ पैसा बसूलने का ही काम करना है - अब देखिये, उनकी कही हुई बात सच साबित हो रही है ।
सुधीर जनमेजा को पैसा बसूलने के मामले में जिस तरह की आलोचना का शिकार होना पड़ रहा है, उसमें घी डालने का काम किया है - उनके बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद-भार संभालने वाले सुनील जैन ने । यह घी दरअसल सुनील जैन के उस दावे से पड़ा, जिसे उन्होंने लोगों के बीच एक बार फिर दोहराया है कि वह अपने गवर्नर-काल में कैबिनेट सदस्यों से कोई पैसा नहीं लेंगे । सुनील जैन ने अपनी इस बात को चूँकि ऐसे समय दोहराया है, जब कि सुधीर जनमेजा कैबिनेट सदस्यों से पैसा ‘लूटने’ के आरोपों में घिरे हैं - उस कारण से सुधीर जनमेजा के खिलाफ बोलने वालों को और बल मिला । सुधीर जनमेजा की बदकिस्मती यह रही कि सुनील जैन ने जो कहा, वह इरादतन उन्हें नीचा दिखाने के उद्देश्य से नहीं कहा । सुनील जैन तो उन लोगों को जबाव दे रहे थे, जो उनके सामने सुधीर जनमेजा की आलोचना करते हुए जोर-शोर से यह शिकायत कर रहे थे कि उम्मीदवार के रूप में तो लोग बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लेकिन गवर्नर बनते ही अपने असली रंग में आ जाते हैं । उन लोगों को जबाव देते हुए सुनील जैन ने दावा किया कि वह ‘ऐसे’ साबित नहीं होंगे । उम्मीदवार के रूप में उन्होंने यदि यह कहा है कि वह कैबिनेट सदस्यों से पैसे नहीं लेंगे, तो गवर्नर के रूप में भी वह अपनी इस घोषणा का पालन करेंगे । लोगों के बीच सुनील जैन की चूँकि अच्छी साख है, इसलिए लोगों ने सहज विश्वास भी कर लिया कि वह सुधीर जनमेजा जैसे साबित नहीं होंगे । सुधीर जनमेजा और सुनील जैन की साख/पहचान में जो अंतर है - वह इस तथ्य से भी जाहिर है कि सुधीर जनमेजा तीसरी बार के प्रयास में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुने जा सके, जबकि सुनील जैन पहले ही प्रयास में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुन लिए गये थे । यहाँ इस तथ्य को याद कर लेना भी प्रासंगिक होगा कि सुनील जैन की उम्मीदवारी का सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा ने खुला विरोध किया था - सुनील जैन लेकिन फिर भी जीते ।
कोई भी बुराई तब और भी बुरी दिखाई देती है, जब अच्छाई उसके ठीक सामने आ खड़ी हो । सुधीर जनमेजा ने कैबिनेट सदस्यों से जो लूट मचाई, वह लोगों के थोड़े-बहुत गुस्से-गुबार के बाद शांत हो जाती - लेकिन प्रसंगवश सामने आई सुनील जैन की घोषणा ने लोगों के गुस्से-गुबार को बुरी तरह भड़का दिया । सुधीर जनमेजा के लिए राहत की बात लेकिन यह रही कि पदों के लिए तय किए गए उनके रेट्स पर हाय-हल्ला चाहें जितना मचा हो, उन्हें उनकी कीमत पर ‘शिकार’ लेकिन मिल गये । सुधीर जनमेजा ने दरअसल इस बात को समझ/पहचान लिया है कि यहाँ कई लोग ऐसे हैं जिनके पास पैसे तो हैं लेकिन जिनकी कोई सामाजिक पहचान या संलग्नता नहीं है और जो पैसा देकर सामाजिक पहचान को ‘खरीदने’ को तैयार रहते हैं । सुधीर जनमेजा ने उनके सामने पद का ‘चारा’ फेंका और उन्हें फँसा लिया । इस तरह, सुधीर जनमेजा कैबिनेट के पदों को ऊँची कीमत पर ‘बेचने’ में तो कामयाब रहे, लेकिन सुनील जैन की घोषणा के कारण पैदा हुए माहौल में अपनी छवि और पहचान को फजीहत का शिकार होने से नहीं बचा सके । सुधीर जनमेजा की बदकिस्मती यह है कि उनके कारनामों की पोलें बड़ी जल्दी जल्दी खुल जा रही हैं । मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच सुधीर जनमेजा पैकेजबाजी को लेकर पहले से ही बदनाम हो चुके हैं । एक कार्यक्रम में भाषण देते हुए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर नरेश अग्रवाल ने जब यह चेतावनीपूर्ण सलाह दी कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद-भार संभालने जा रहे लोगों को पैकेजबाजी से बचना चाहिए तो वहाँ मौजूद सभी की निगाहें सुधीर जनमेजा पर जा टिकीं । दरअसल सुधीर जनमेजा ने पिछले दिनों जो कार्यक्रम किए उन्हें पैकेज टूर की तरह आयोजित किया - जिससे मल्टीपल तक के लोगों के बीच यह चर्चा चली कि इन पैकेज कार्यक्रमों की आड़ में सुधीर जनमेजा ने पैसा कमाने का काम किया है । नरेश अग्रवाल को इसीलिए पैकेजबाजी से बचने की सलाह देने के लिए मजबूर होना पड़ा ।
नरेश अग्रवाल की सलाह ने मल्टीपल के पदाधिकारियों के बीच और सुनील जैन की घोषणा ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच सुधीर जनमेजा की खासी किरकिरी करा दी है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा का कार्यकाल औपचारिक रूप से शुरू होने से पहले ही लोगों के बीच उनकी ‘लायनिज्म के सौदागर’ की जो पहचान बन गई है, उसके कारण उनका कार्यकाल संदेहों के घेरे में आ गया है । इससे उन लोगों को झटका लगा है जो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुधीर जनमेजा से और उनके गवर्नर-काल से लायनिज्म के संदर्भ में कुछ अलग किस्म की उम्मीदें लगाये हुए थे । उल्लेखनीय बात यह है कि इन उम्मीदों को खुद सुधीर जनमेजा ने ही लोगों के बीच पैदा किया था । उम्मीदवार रहते हुए उन्होंने बड़ी बड़ी बातें की थीं, और लायनिज्म के नाम पर जो चल रहा है उसे बदलने की जरूरत को रेखांकित किया था । उम्मीदवार के रूप में कही गई उनकी बातों को सुन कर ऐसा लगता था कि जब उन्हें मौका मिलेगा, तब वह लायनिज्म के नाम पर डिस्ट्रिक्ट में होने वाली धांधलियों को न सिर्फ खत्म कर देंगे - बल्कि डिस्ट्रिक्ट में लायनिज्म की एक नई इबारत लिखेंगे । लेकिन सुधीर जनमेजा के लिए जब कुछ करने का मौका आया, तब वह तरह-तरह से पैसा जुटाने/बनाने के अभियान में ही लगे दिखे । यह देख कर उनसे उम्मीद रखने वालों का निराश होना स्वाभाविक ही है ।