Thursday, July 25, 2013

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 में अपने बेटे को क्लब का अध्यक्ष बनवा कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के अभियान को सुधीर मंगला ने चोट पहुँचाने का ही काम किया है

नई दिल्ली । सुधीर मंगला ने अपनी उम्मीदवारी का श्रीगणेश पिछले वर्ष की तरह इस वर्ष भी अपने क्लब के अध्यक्ष को बदल/बदलवा कर किया है । उल्लेखनीय है कि जेके गौड़ के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नोमिनी चुने जाने के खिलाफ की गई अपनी शिकायत के खारिज हो जाने के बाद सुधीर मंगला ने जब दोबारा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का फैसला किया तो सबसे पहला काम उन्होंने अपने क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट संजय गोयल को उनके पद से हटाने का किया/कराया । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले वर्ष भी सुधीर मंगला ने जब अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करना शुरू किया था, तब सबसे पहला काम उन्होंने अपने क्लब के तत्कालीन प्रेसीडेंट इलेक्ट अरूण जैन को रातों-रात उनके पद से हटाने/हटवाने का किया था, जिसे लेकर क्लब में तो भारी थुक्का-फजीहत हुई ही थी - उम्मीदवार के रूप में सुधीर मंगला की भी लोगों के बीच नकारात्मक छवि बनी थी । पिछले राटरी वर्ष के उस अप्रिय प्रसंग से लगता है कि सुधीर मंगला और क्लब में मौजूद उनके समर्थकों व शुभचिंतकों ने कोई सबक नहीं सीखा - और इस रोटरी वर्ष में फिर से वही नाटक खड़ा कर दिया गया । संजय गोयल को जिस तरह निहायत अपमानजनक तरीके से अध्यक्ष पद से हटा कर उनकी जगह विपिन गुप्ता को अध्यक्ष घोषित किया गया - उसे लेकर क्लब के कई सदस्यों के बीच गहरी नाराजगी है । संजय गोयल को अध्यक्ष पद से हटाने के फैसले के पीछे सुधीर मंगला को देखने/पहचानने वाले क्लब के सदस्यों का कहना है कि इस कार्रवाई से सुधीर मंगला ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यही संदेश दिया है कि अपने स्वार्थ में वह अपने ही लोगों के खिलाफ काम कर सकते हैं और उन्हें अपमानित कर सकते हैं । इनका कहना है कि संजय गोयल क्लब के प्रेसीडेंट इलेक्ट बने थे, तो उसमें सुधीर मंगला की भी रजामंदी थी ही - लेकिन उन्हीं सुधीर मंगला को अपनी उम्मीदवारी के स्वार्थ में वही संजय गोयल खटकने लगे और उन्हें अपमानजनक तरीके से रातों-रात अध्यक्ष पद से हटा दिया गया ।
सुधीर मंगला और क्लब में उनके समर्थकों का हालाँकि कहना है कि संजय गोयल ने अपनी कामकाजी व्यस्तता के चलते खुद ही अध्यक्ष पद को छोड़ा है । उनका कहना है कि संजय गोयल को अचानक से विदेश में कुछ काम मिल गया, जिसके कारण उन्हें अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों का निर्वाह कर पाना मुश्किल लगा और उन्होंने अध्यक्ष पद से खुद ही मुक्ति पा ली । क्लब के अन्य कुछेक लोगों का कहना लेकिन यह है कि संजय गोयल ने विवाद में फंसने से बचने के लिए सुधीर मंगला और उनके समर्थकों के इस तर्क को ‘स्वीकार’ कर लिया । पिछले वर्ष अरूण जैन को अध्यक्ष पद से हटाने के बाद, जिस तरह से तंग किया गया और क्लब के अधिष्ठापन समारोह की तैयारी को लेकर उनके द्वारा खर्च किए गए पैसे को लौटाने में हील-हुज्जत की गई थी, उससे सबक लेकर संजय गोयल ने मामले को तूल न देने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । अध्यक्ष पद से हटाये जाने को लेकर संजय गोयल भले ही कुछ न कह रहे हों, लेकिन उनके अध्यक्ष न रहने पर उनके क्लब के ही कुछेक लोगों ने निराशा और अपनी नाखुशी प्रकट की है । संजय गोयल को अध्यक्ष पद से हटाये जाने से नाराज क्लब के सदस्यों का कहना है कि संजय गोयल को सिर्फ इसलिए अपमानित किया गया, क्योंकि सुधीर मंगला को लगता है कि उनकी उम्मीदवारी के अभियान में नये रोटेरियन होने के नाते संजय गोयल से उन्हें उचित मदद नहीं मिल पायेगी । संजय गोयल की जगह जिन विपिन गुप्ता को क्लब का अध्यक्ष बनाया/बनवाया गया है, वह अपेक्षाकृत पुराने रोटेरियन हैं और इस कारण से रोटरी व डिस्ट्रिक्ट के ‘नियम-धर्म’ को जानते/पहचानते हैं - इससे भी बड़ी बात यह कि वह सुधीर मंगला के ‘पड़ोसी’ भी हैं । इस कारण से सुधीर मंगला को लगता है कि उनकी उम्मीदवारी के अभियान में विपिन गुप्ता ज्यादा मददगार साबित होंगे । उल्लेखनीय है कि ‘इसी कारण’ से पिछले रोटरी वर्ष में अरूण जैन को अध्यक्ष पद से हटाया गया था । संजय गोयल को हटा कर विपिन गुप्ता को क्लब का अध्यक्ष बनाने से सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को चुनाव में कितना क्या फायदा होगा, यह तो समय बतायेगा - लेकिन इस प्रसंग से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अभी जो मैसेज गया है, उसने सुधीर मंगला के खिलाफ माहौल बनाने का ही काम किया है ।
सुधीर मंगला ने अपनी उम्मीदवारी के स्वार्थ में सिर्फ अपने ही क्लब में प्रेसीडेंट इलेक्ट को अपमानित करके नहीं हटाया/हटवाया, बल्कि यही खेल उन्होंने रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में किया/करवाया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में प्रेसीडेंट इलेक्ट दिव्या ज्योति सिंह थीं - लेकिन जैसे ही सुधीर मंगला का डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उम्मीदवार बनना तय हुआ, वैसे ही रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट में दिव्या ज्योति सिंह को हटा कर सुधीर मंगला के बेटे निशांत मंगला को अध्यक्ष बना/बनवा दिया गया । दिव्या ज्योति सिंह पिछले रोटरी वर्ष में क्लब की सेक्रेटरी थीं, और सेक्रेटरी रहते हुए ही उन्हें प्रेसीडेंट इलेक्ट चुना गया था । निशांत मंगला की क्लब में कहीं कोई भूमिका या सक्रियता  भी नहीं थी । पिछले रोटरी वर्ष में क्लब का जो ग्यारह सदस्यीय बोर्ड था, निशांत मंगला उसमें नहीं थे - लेकिन फिर भी दिव्या ज्योति सिंह को हटा कर वह सीधे अध्यक्ष बने । निशांत मंगला अध्यक्ष बनने से पहले रोटरी में जरा भी सक्रिय नहीं थे - जाहिर है कि रोटरी में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है । अब अध्यक्ष तो वह अपने पिता जी की उम्मीदवारी में मदद करने के उद्देश्य से बने हैं । रोटरी क्लब दिल्ली सेलेक्ट के अध्यक्ष के रूप में निशांत मंगला से सुधीर मंगला को अपनी उम्मीदवारी में क्या मदद मिलेगी, इसे आंकने/समझने से पहले यह जान लेना प्रासंगिक होगा कि उनसे पहले जो दीप्ति गुप्ता लगातार दो वर्ष इस क्लब की अध्यक्ष रहीं, उनके अध्यक्ष बनने के पीछे भी कारण उनके पति जितेंद्र गुप्ता की राजनीतिक मदद करने का ही था, पर वह किसी भी तरह से हो नहीं पाई । जो फार्मूला जितेंद्र गुप्ता के काम नहीं आया, वह सुधीर मंगला के काम आ सकेगा - इसमें बहुतों को संदेह है ।
सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के प्रति सहानुभूति का भाव रखने वाले कई लोगों का ही कहना है कि सुधीर मंगला का बेटा अपनी सक्रियता के बल पर और रोटरी इंटरनेशनल द्वारा मान्य सीढ़ीनुमा प्रथा का पालन करते हुए क्लब का अध्यक्ष बनता तो लोगों की आँखों में नहीं खटकता, लेकिन जिस तरह से और जिस उद्देश्य से उन्होंने अध्यक्ष का पद लिया है, उससे सुधीर मंगला की उम्मीदवारी मजाक का विषय और बन गई है । अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सुधीर मंगला इन जिस तरह की तिकड़मों का सहारा ले रहे हैं, उससे दो बातें एक साथ साबित हुई हैं: एक तो यह कि अपनी उम्मीदवारी को लोगों के बीच समर्थन और स्वीकार्यता दिलाने को लेकर उनके पास कोई ठोस रणनीति नहीं है; और दूसरा यह कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन व स्वीकार्यता जुटाने/बनाने के लिए उनके पास समर्थकों की कमी है और इसीलिए उन्हें अपने बेटे को काम में ‘लगाना’ पड़ा है । रोटरी में - और डिस्ट्रिक्ट 3010 में भी पिता-पुत्र के एक साथ सक्रिय होने के उदाहरण तो कुछेक हैं, लेकिन पिता को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में पुत्र के कमान संभालने का यह संभवतः पहला उदाहरण है । सुधीर मंगला के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि उनके द्वारा प्रस्तुत किए गए इस उदाहरण को डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने बहुत उत्साह से और या सकारात्मक भाव से नहीं लिया है । निशांत मंगला अपने पिता सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के लिए कुछ अच्छा क्या और कैसे करेंगे, यह तो बाद में पता चलेगा; अभी लेकिन जो पता चल रहा है वह यह कि मनोवैज्ञानिक रूप से और परसेप्शन (अवधारणा) के स्तर पर सुधीर मंगला की इस कार्रवाई ने उनकी उम्मीदवारी के अभियान पर नकारात्मक असर ही डाला है तथा उनकी उम्मीदवारी के अभियान को चोट पहुँचाने का ही काम किया है ।

(इस रिपोर्ट को 'रचनात्मक संकल्प' के प्रिंट ऐडीशन से साभार लिया गया है ।)