Saturday, July 27, 2013

'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन का पद 'बेचने' में लगे रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर पूछ रहे हैं कि रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात क्या है ?

नई दिल्ली । दिल्ली में 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' का आयोजन करने का प्रस्ताव देने वाले रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर पीटी प्रभाकर को जब यह बताया गया कि डिस्ट्रिक्ट 3010 की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने उक्त इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में मंजीत साहनी और/या अशोक घोष का नाम प्रस्तावित किया है, तो पीटी प्रभाकर बुरी तरह बिफर गए और पूछने लगे कि मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात क्या है ? मंजीत साहनी ने जब यह सुना तो किंचित आश्चर्य के साथ उन्होंने कहा कि प्रभाकर को मेरी औकात तो पता है - तभी तो वह डायरेक्टर चुने जाने से पहले फोन पर मुझसे दिन में दो दो बार बात करता था, सलाह लेता था, मदद माँगता था, कभी 'इससे' तो कभी 'उससे' सिफारिश करवाता था; उसे मेरी औकात का पता है, तभी तो वह यह सब करता था । मंजीत साहनी को हैरानी इस बात पर हुई कि प्रभाकर यह सब इतनी जल्दी भूल गया और पूछ रहा है कि उनकी औकात क्या है ? रोटरी में हालाँकि यह आम चलन है - चुनाव जीतने के लिए तो हर किसी की बड़ी खुशामद की जाती है, लेकिन चुनाव जीतने के बाद हर किसी के प्रति नजरिया यह होता है कि तुम हो कौन ? इसलिए यदि पीटी प्रभाकर ने मंजीत साहनी के प्रति यह रवैया प्रदर्शित किया है तो इसमें हैरान होने वाली भी कोई बात नहीं है । लेकिन यहाँ मामला अवसरवादी व्यवहार का नहीं है, बल्कि उससे भी ज्यादा गंभीर है ।
पीटी प्रभाकर की बातों से और उनके 'व्यवहार' से डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व गवर्नर्स को 'बाद में' यह 'पता' चला की 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन का पद पीटी प्रभाकर बेचने की फ़िराक में हैं और शायद उन्हें ग्राहक मिल भी गया है । दरअसल इसीलिए पीटी प्रभाकर को जब डिस्ट्रिक्ट 3010 में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में इंस्टीट्यूट के चेयरमैन के रूप में मंजीत साहनी और अशोक घोष का नाम प्रस्तावित होने की सूचना मिली तो वह बुरी तरह उखड़ गए । उखड़ कर फिर उन्होंने अपना जो असली वाला रंग दिखाया तो उसमें निशाना भले ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3010 के पूर्व गवर्नर्स को, और खास कर मंजीत साहनी व अशोक घोष को बनाया लेकिन फजीहत अपनी ही कराई और रोटरी को बदनाम किया । उन्होंने जो कुछ भी कहा उसका लब्बोलुबाब यह है कि वह रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद को बेचेंगे और जो उन्हें इसकी कीमत देगा उसे चेयरमैन बनायेंगे । उन्होंने दावा किया कि उन्हें ऐसा करने से कोई भी नहीं रोक सकता । इसी संदर्भ में उन्होंने पूछा कि मंजीत साहनी और अशोक घोष चेयरमैन पद की कीमत देने को तैयार हैं क्या ? पीटी प्रभाकर फिर औकात पता करने पर आ गए; उन्होंने पूछा कि मंजीत साहनी और अशोक घोष की कीमत देने की औकात है क्या ? इंटरनेशनल डायरेक्टर के पद पर बैठे व्यक्ति के मुँह से इस तरह की बातें जिसने भी सुनी वह हतप्रभ रह गया । मंजीत साहनी और अशोक घोष ने तुरंत ही यह स्पष्ट कर दिया कि रोटरी में उन्होंने कभी भी पद खरीदने की न तो कोई कोशिश की और न इस तरह की कोई बात उनके मन में कभी भी आई; उन्हें यहाँ जो कोई भी पद मिले हैं, उनकी काबिलियत के आधार पर ही मिले हैं । इन्होंने साफ कहा है कि पीटी प्रभाकर रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन का पद बेचना चाहते हैं, तो बेच लें - उनकी इसे खरीदने में कोई दिलचस्पी नहीं है ।
उल्लेखनीय है कि पीटी प्रभाकर ने जो कुछ भी कहा है, उसके पीछे जो 'सोच' है उसे रोटरी में स्वीकार्यता प्राप्त है । उन्होंने कोई अनोखा काम करने की कोशिश नहीं की है । उनसे पहले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर रहे शेखर मेहता ने जब दो बार - पहली बार 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2011' में और दूसरी बार अभी हाल ही में हैदराबाद में आयोजित हुए 'रोटरी साउथ एशिया समिट 2013' में - चेयरमैन कमल सांघवी को बनाया था, तो उन्होंने वास्तव में चेयरमैन का पद 'बेचा' ही था । इसे लेकर शेखर मेहता को अपने डिस्ट्रिक्ट में और कमल सांघवी को अपने डिस्ट्रिक्ट में हालाँकि विरोध भी झेलना पड़ा था - लेकिन शेखर मेहता और कमल सांघवी चूँकि होशियार लोग हैं इसलिए उन्होंने ज्यादा हील-हुज्जत में फंसे बिना डील कर ली थी । पीटी प्रभाकर ने अपनी मूरखता से सब गुड़-गोबर कर लिया । जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि पीटी प्रभाकर ने जो 'सोचा' और जो करने की कोशिश की, उसमें कुछ भी गलत नहीं है । क्लब्स में, डिस्ट्रिक्ट्स में और उसके ऊपर भी 'ऐसे' ही काम होते हैं - यह कहना ज्यादा सही होगा कि काम 'ऐसे' ही हो सकते हैं । पीटी प्रभाकर इसे ठीक तरह से अंजाम नहीं दे पाए और बुरी तरह एक्सपोज हो गए । इंस्टीट्यूट के चेयरमैन पद के लिए पीटी प्रभाकर की पसंद बने विनोद बंसल भी इस बात को या तो पहचान नहीं पाए और या पीटी प्रभाकर को कम्युनिकेट नहीं कर पाए कि उनके चेयरमैन बनने के मुद्दे पर उनके डिस्ट्रिक्ट में बबाल हो जायेगा - इसलिए अच्छा होगा कि इंस्टीट्यूट की मोटी-मोटी बातें तय होने से पहले डिस्ट्रिक्ट 3010 के लोगों को किसी भी स्तर पर शामिल ही न किया जाये ।
पीटी प्रभाकर और विनोद बंसल यह जानने/समझने में भी चूक कर बैठे कि जो खिचड़ी वह गुपचुप गुपचुप पका रहे हैं उसकी खुशबु लोगों तक जा पहुँची है और इस खिचड़ी को बिखेरने के लिए वह बस मौके का इंतजार कर रहे हैं । और यह मौका पीटी प्रभाकर ने खुद दे दिया । यह इससे साबित है कि पीटी प्रभाकर ने इंस्टीट्यूट के चेयरमैन को लेकर तो कोई बात ही नहीं की थी, उन्होंने तो दिल्ली के लोगों से दिल्ली में इंस्टीट्यूट करने को लेकर बात शुरू की थी - मौके का इंतजार कर रहे दिल्ली के भाई लोगों ने चेयरमैन का चुनाव ही कर डाला । विनोद बंसल के लिए इसे दुर्भाग्यपूर्ण विडंबना के अलावा और क्या कहा जायेगा कि पर्दे के पीछे तो वह रोटरी इंस्टीट्यूट के चेयरमैन बनने की तैयारी कर रहे थे, और पर्दे के सामने वह उस मीटिंग के हिस्सा थे जो मंजीत साहनी और या अशोक घोष को चेयरमैन बनाने का प्रस्ताव पास कर रही थी । विनोद बंसल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का कहना है कि 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' को लेकर महत्वपूर्ण फैसले करने से पहले पीटी प्रभाकर को डिस्ट्रिक्ट 3010 में आना ही नहीं चाहिए था । यह सच है कि विनोद बंसल चेयरमैन हो जाते और फिर डिस्ट्रिक्ट 3010 में बात आती तो बबाल तब भी होता, लेकिन तब वह जल्दी शांत भी हो जाता । अब लेकिन मामला गंभीर हो गया है - पीटी प्रभाकर ने मंजीत साहनी और अशोक घोष की औकात की बात करके तथा चेयरमैन पद को बेचने की घोषणा करके मामले को कुछ ज्यादा पेजीदा बना दिया है ।
बहरहाल, चूँकि पीटी प्रभाकर ने यह दावा कर दिया है कि 'रोटरी इंस्टीट्यूट 2014' के चेयरमैन पद को बेचने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता - इसलिए अब यह देखना दिलचस्प होगा कि उक्त पद को कौन खरीदता है ?