नई दिल्ली । सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन को लाभ पहुँचाने तथा जितवाने के उद्देश्य से की जा रहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन की कार्रवाइयाँ उल्टा ही असर करती नजर आ रही हैं, और अमित जैन के शुभचिंतकों को वोटिंग शुरू होने से पहले ही सुरेश भसीन के समर्थन के चलते अमित जैन की उम्मीदवारी का अभियान बढ़ने की बजाये घटता हुआ लग रहा है । अमित जैन की उम्मीदवारी के अभियान से जुड़े वरिष्ठ रोटेरियंस का ही कहना/बताना है कि जो क्लब पहले अमित जैन के प्रति समर्थन 'दिखा' रहे थे - सुरेश भसीन की कार्रवाइयों के सामने आने के बाद पलटते नजर आ रहे हैं । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन के कार्य-व्यवहार के चलते लोगों के बीच पहले से ही खासी नाराजगी है - जिसे सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव से जुड़ी सुरेश भसीन की कार्रवाइयों ने और बढ़ाने का ही काम किया है । सुरेश भसीन का खुद का क्लब उनके खिलाफ नजर आ रहा है । सुरेश भसीन ने सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में रमन भाटिया की उम्मीदवारी को संभव बनाने के जो प्रयास किए और नामांकन की तारीख को आगे बढ़ाने की हद तक गए, उससे उनके क्लब के पदाधिकारी नाराज हुए, और नतीजा यह रहा कि सुरेश भसीन की तमाम कोशिशों बाद भी रमन भाटिया की उम्मीदवारी को क्लब से हरी झंडी नहीं मिली और उनकी उम्मीदवारी ही प्रस्तुत नहीं हो सकी । उसके बाद, सुरेश भसीन ने सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन की उम्मीदवारी का झंडा उठाया और उन्हें फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से अपनी टीम में कई फेरबदल किए । उनके फेरबदल ने लेकिन अमित जैन की उम्मीदवारी को झटका देने का ही काम किया है ।
अमित जैन को फरीदाबाद के क्लब्स का अच्छा समर्थन मिलने का भरोसा था, लेकिन सुरेश भसीन ने जबसे अमित जोनेजा को डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन चेयर दी है, तब से फरीदाबाद में अमित जैन के समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं । फरीदाबाद के कई वरिष्ठ रोटेरियंस अमित जोनेजा को उक्त चेयर दिए जाने से नाराज हैं, और उनकी नाराजगी अमित जैन की उम्मीदवारी पर निकलती नजर आ रही है । अमित जैन के क्लब के वरिष्ठ सदस्य समीर गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट एडमिन चेयर देने के सुरेश भसीन के फैसले ने दिल्ली के कई रोटेरियंस को नाराज किया है; उनकी शिकायत है कि सुरेश भसीन डिस्ट्रिक्ट के सभी पद अमित जैन और उनके नजदीकियों को ही देंगे/दिलवायेंगे क्या ? समझा जा रहा है कि समीर गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट एडमिन चेयर देने के फैसले के सामने आने के बाद से अमित जैन के लिए दिल्ली के क्लब्स में भी चुनौती बढ़ गई है । अमित जैन के लिए चुनौती इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार सुधीर मंगला की क्लब के पदाधिकारियों और वरिष्ठ सदस्यों के बीच खासी सक्रियता रही है । अमित जैन चूँकि ज्यादा सक्रिय नहीं रहते हैं और डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में भी कम ही नजर आते हैं, इसलिए लोगों के बीच उनकी पहचान का संकट भी है । अमित जैन की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने क्लब्स के प्रेसीडेंट्स से बात की तो कई प्रेसीडेंट्स से यह सुन कर उन्हें झटका लगा कि वह तो अमित जैन को जानते/पहचानते ही नहीं हैं ।
सुधीर मंगला सीओएल प्रतिनिधि के लिए अपनी दावेदारी पर जोर देते हुए बता रहे हैं कि पिछली बार सीओएल के लिए वह ऑल्टरनेटिव प्रतिनिधि थे और वह इंस्टीट्यूट में हुई ट्रेनिंग में भी शामिल हुए थे; इसलिए इस बार वह सीओएल प्रतिनिधि बनने के अधिकारी हैं । सुधीर मंगला याद दिला रहे हैं कि इसके लिए डिस्ट्रिक्ट के सभी पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें आश्वस्त भी किया था । अमित जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनको उनके समर्थकों/शुभचिंतकों ने ही बरगला कर रखा, और उन्हें आश्वस्त किए रहे कि वह किसी और को उम्मीदवार बनने ही नहीं देंगे और अमित जैन निर्विरोध ही सीओएल प्रतिनिधि चुन लिए जायेंगे । इस आश्वासन के चलते ही अमित जैन ने क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य पदाधिकारियों व प्रमुख सदस्यों को कोई तवज्जो नहीं दी । अमित जैन तथा उनके समर्थक पूर्व गवर्नर विनय अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने दूसरे संभावित उम्मीदवारों को रास्ते से हटाने के लिए अंत समय तक खूब प्रयास किए । संजय खन्ना को सीओएल प्रतिनिधि की चुनावी दौड़ से बाहर रखने/करने के प्रयास खुद अमित जैन ने किए और वह अपने अभियान में सफल रहे । सुधीर मंगला का 'शिकार' करने के लिए विनय अग्रवाल और सुरेश भसीन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया; विनय अग्रवाल ने सुधीर मंगला के नजदीकियों और समर्थकों पर इसके लिए दबाव बनाया कि वह सुधीर मंगला की उम्मीदवारी वापस करवाएँ और सुरेश भसीन नामांकन वापस लेने की तारीख तक सुधीर मंगला को उम्मीदवारी वापस लेने के लिए फुसलाते/डराते रहे । सुधीर मंगला को लेकिन विश्वास रहा कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो निरंतर सक्रियता बनाये रखी है, और रोटरी के आदर्शों व उद्देश्यों के लिए लगातार जो काम करते रहे हैं, उसके नतीजे के रूप में उनकी उम्मीदवारी को अवश्य ही लाभ और न्याय मिलेगा । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के बने रहने से अब जब अमित जैन को चुनावी मुकाबले में भिड़ने के लिए मजबूर होना ही पड़ रहा है, तो लोगों के बीच सक्रिय न रहने तथा प्रेसीडेंट्स के उन्हें न पहचानने के कारण उनके लिए चुनाव खासा मुश्किलों भरा हो गया नजर आ रहा है ।