Sunday, May 31, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन को लोगों के बीच सक्रिय न रहने तथा प्रेसीडेंट्स के उन्हें न पहचानने के कारण मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे सुधीर मंगला को विश्वास हो चला है कि उनकी उम्मीदवारी को अवश्य ही लाभ और न्याय मिलेगा

नई दिल्ली । सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन को लाभ पहुँचाने तथा जितवाने के उद्देश्य से की जा रहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन की कार्रवाइयाँ उल्टा ही असर करती नजर आ रही हैं, और अमित जैन के शुभचिंतकों को वोटिंग शुरू होने से पहले ही सुरेश भसीन के समर्थन के चलते अमित जैन की उम्मीदवारी का अभियान बढ़ने की बजाये घटता हुआ लग रहा है । अमित जैन की उम्मीदवारी के अभियान से जुड़े वरिष्ठ रोटेरियंस का ही कहना/बताना है कि जो क्लब पहले अमित जैन के प्रति समर्थन 'दिखा' रहे थे - सुरेश भसीन की कार्रवाइयों के सामने आने के बाद पलटते नजर आ रहे हैं । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन के कार्य-व्यवहार के चलते लोगों के बीच पहले से ही खासी नाराजगी है - जिसे सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव से जुड़ी सुरेश भसीन की कार्रवाइयों ने और बढ़ाने का ही काम किया है । सुरेश भसीन का खुद का क्लब उनके खिलाफ नजर आ रहा है । सुरेश भसीन ने सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में रमन भाटिया की उम्मीदवारी को संभव बनाने के जो प्रयास किए और नामांकन की तारीख को आगे बढ़ाने की हद तक गए, उससे उनके क्लब के पदाधिकारी नाराज हुए, और नतीजा यह रहा कि सुरेश भसीन की तमाम कोशिशों बाद भी रमन भाटिया की उम्मीदवारी को क्लब से हरी झंडी नहीं मिली और उनकी उम्मीदवारी ही प्रस्तुत नहीं हो सकी । उसके बाद, सुरेश भसीन ने सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन की उम्मीदवारी का झंडा उठाया और उन्हें फायदा पहुँचाने के उद्देश्य से अपनी टीम में कई फेरबदल किए । उनके फेरबदल ने लेकिन अमित जैन की उम्मीदवारी को झटका देने का ही काम किया है । 
अमित जैन को फरीदाबाद के क्लब्स का अच्छा समर्थन मिलने का भरोसा था, लेकिन सुरेश भसीन ने जबसे अमित जोनेजा को डिस्ट्रिक्ट कोऑर्डिनेशन चेयर दी है, तब से फरीदाबाद में अमित जैन के समीकरण बिगड़ते नजर आ रहे हैं । फरीदाबाद के कई वरिष्ठ रोटेरियंस अमित जोनेजा को उक्त चेयर दिए जाने से नाराज हैं, और उनकी नाराजगी अमित जैन की उम्मीदवारी पर निकलती नजर आ रही है । अमित जैन के क्लब के वरिष्ठ सदस्य समीर गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट एडमिन चेयर देने के सुरेश भसीन के फैसले ने दिल्ली के कई रोटेरियंस को नाराज किया है; उनकी शिकायत है कि सुरेश भसीन डिस्ट्रिक्ट के सभी पद अमित जैन और उनके नजदीकियों को ही देंगे/दिलवायेंगे क्या ? समझा जा रहा है कि समीर गुप्ता को डिस्ट्रिक्ट एडमिन चेयर देने के फैसले के सामने आने के बाद से अमित जैन के लिए दिल्ली के क्लब्स में भी चुनौती बढ़ गई है । अमित जैन के लिए चुनौती इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि उनके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार सुधीर मंगला की क्लब के पदाधिकारियों और वरिष्ठ सदस्यों के बीच खासी सक्रियता रही है । अमित जैन चूँकि ज्यादा सक्रिय नहीं रहते हैं और डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों में भी कम ही नजर आते हैं, इसलिए लोगों के बीच उनकी पहचान का संकट भी है । अमित जैन की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने के लिए उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स ने क्लब्स के प्रेसीडेंट्स से बात की तो कई प्रेसीडेंट्स से यह सुन कर उन्हें झटका लगा कि वह तो अमित जैन को जानते/पहचानते ही नहीं हैं ।
सुधीर मंगला सीओएल प्रतिनिधि के लिए अपनी दावेदारी पर जोर देते हुए बता रहे हैं कि पिछली बार सीओएल के लिए वह ऑल्टरनेटिव प्रतिनिधि थे और वह इंस्टीट्यूट में हुई ट्रेनिंग में भी शामिल हुए थे; इसलिए इस बार वह सीओएल प्रतिनिधि बनने के अधिकारी हैं । सुधीर मंगला याद दिला रहे हैं कि इसके लिए डिस्ट्रिक्ट के सभी पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें आश्वस्त भी किया था । अमित जैन के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनको उनके समर्थकों/शुभचिंतकों ने ही बरगला कर रखा, और उन्हें आश्वस्त किए रहे कि वह किसी और को उम्मीदवार बनने ही नहीं देंगे और अमित जैन निर्विरोध ही सीओएल प्रतिनिधि चुन लिए जायेंगे । इस आश्वासन के चलते ही अमित जैन ने क्लब्स के प्रेसीडेंट्स तथा अन्य पदाधिकारियों व प्रमुख सदस्यों को कोई तवज्जो नहीं दी । अमित जैन तथा उनके समर्थक पूर्व गवर्नर विनय अग्रवाल  डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन ने दूसरे संभावित उम्मीदवारों को रास्ते से हटाने के लिए अंत समय तक खूब प्रयास किए । संजय खन्ना को सीओएल प्रतिनिधि की चुनावी दौड़ से बाहर रखने/करने के प्रयास खुद अमित जैन ने किए और वह अपने अभियान में सफल रहे । सुधीर मंगला का 'शिकार' करने के लिए विनय अग्रवाल और सुरेश भसीन ने एड़ी-चोटी का जोर लगाया; विनय अग्रवाल ने सुधीर मंगला के नजदीकियों और समर्थकों पर इसके लिए दबाव बनाया कि वह सुधीर मंगला की उम्मीदवारी वापस करवाएँ और सुरेश भसीन नामांकन वापस लेने की तारीख तक सुधीर मंगला को उम्मीदवारी वापस लेने के लिए फुसलाते/डराते रहे । सुधीर मंगला को लेकिन विश्वास रहा कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो निरंतर सक्रियता बनाये रखी है, और रोटरी के आदर्शों व उद्देश्यों के लिए लगातार जो काम करते रहे हैं, उसके नतीजे के रूप में उनकी उम्मीदवारी को अवश्य ही लाभ और न्याय मिलेगा । सुधीर मंगला की उम्मीदवारी के बने रहने से अब जब अमित जैन को चुनावी मुकाबले में भिड़ने के लिए मजबूर होना ही पड़ रहा है, तो लोगों के बीच सक्रिय न रहने तथा प्रेसीडेंट्स के उन्हें न पहचानने के कारण उनके लिए चुनाव खासा मुश्किलों भरा हो गया नजर आ रहा है । 

Saturday, May 30, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में ग्लोबल ग्रांट के घपले में 'ऊँची पहुँच' के बल पर अपनी सजा को कम करवाने में सफल हो जाने के बाद भी, पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि घपला करने के दोषी होने तथा सजायाफ्ता होने के दाग को वह नहीं धो/धुलवा पाए हैं

जयपुर । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल ग्लोबल ग्रांट (नंबर 1420550) की करीब 20 लाख रुपये की घपलेबाजी में मिली सजा को कम करवा लेने में सफल हो जाने के बाद राहत की साँस लेते, उससे पहले बेचारे एक दूसरी मुसीबत में फँस गए हैं । उक्त मामले में अनिल अग्रवाल के साथ ही कुछेक प्रतिबंधों की सजा पाए रोटरी क्लब जयपुर सिटीजन के वरिष्ठ सदस्य मनोज जैन और उनके शुभचिंतक अनिल अग्रवाल पर इस शिकायत के साथ भड़के हुए हैं कि अनिल अग्रवाल ने अपनी सजा तो कम करवा ली, लेकिन उनकी सजा कम करवाने के लिए कोशिश नहीं की । मनोज जैन और उनके शुभचिंतकों का रोना है कि उक्त प्रोजेक्ट में वह तो सिर्फ प्राइम कॉन्टेक्ट थे, और इस नाते से प्रोजेक्ट में हुई घपलेबाजी में उनकी तो कोई भूमिका ही नहीं थी - लेकिन फिर भी उनकी सजा तो बरकरार है; और घपलेबाजी का सारा ताना-बाना तैयार करने वाले अनिल अग्रवाल की सजा कम हो गई है । अनिल अग्रवाल हालाँकि उन्हें लगातार आश्वस्त कर रहे हैं कि उन्होंने मनोज जैन की सजा को भी कम करवाने का जुगाड़ बैठा लिया है, और जल्दी ही उन्हें भी सजा कम कर देने की चिट्ठी मिल जाएगी । मनोज जैन और उनके शुभचिंतकों ने लेकिन तेवर अपनाए हुए हैं कि जब तक उन्हें सजा कम होने की चिट्ठी नहीं मिल जाती, तब तक वह अनिल अग्रवाल पर दबाव बनाये रखेंगे - और डिस्ट्रिक्ट में लोगों को बताते रहेंगे कि घपलेबाजी का मास्टरमाइंड होने के बावजूद अनिल अग्रवाल ने अपनी सजा कम करवा ली, लेकिन घपलेबाजी में किसी भी स्तर पर शामिल न होने के बावजूद मनोज जैन की सजा बरकरार है ।
उल्लेखनीय है कि बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों के नाम पर ली गई उक्त ग्रांट की करीब 20 लाख रुपये की घपलेबाजी के आरोप में अनिल अग्रवाल को 30 अप्रैल 2022 तक रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की सजा सुनाई गई थी । यह सजा सुनाने से पहले रोटरी इंटरनेशनल ने अनिल अग्रवाल को यह मौका दिया था कि वह यदि घपला की गई रकम लौटा देते हैं, तो उन्हें सजा नहीं होगी । अनिल अग्रवाल को रोटरी में अपने ऊँचे संपर्कों के भरोसे विश्वास था कि वह घपला की गई रकम को भी नहीं लौटायेंगे और सजा से भी बचे रहेंगे, इसलिए उन्होंने रकम लौटाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई । रोटरी में उनके ऊँचे संपर्क लेकिन उन्हें सजा से नहीं बचा सके और 25 अप्रैल 2019 की एक चिट्ठी के जरिये उन्हें उक्त सजा सुना दी गई । इसके बाद अनिल अग्रवाल घपला की गई रकम वापस करने को लेकर गंभीर हुए, और पिछले दिनों जानकारी मिली कि घपला की गई रकम वापस कर दी गई है । मजे की बात यह है कि इस घपले की कहानी जितनी रोमांचक है, घपला की गई रकम वापस करने का किस्सा उससे भी ज्यादा रोमांचपूर्ण है - क्योंकि किसी को नहीं पता कि वापस की गई रकम किसने या किस किस ने दी है । अनिल अग्रवाल को कुछेक मौकों पर कहते/बताते हुए सुना गया है कि सारी रकम उन्होंने ही दी है, जबकि उन्हें जानने वालों का कहना/बताना है कि उक्त रकम के लिए उन्होंने कुछेक लोगों से चंदा इकट्ठा किया । घपले की रकम वापस होने के मामले का हैरतंगेज तथ्य यह है कि यह रकम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल के क्लब - रोटरी क्लब कोटा के एकाउंट से वापस की गई है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हो रहा है कि घपलेबाजी का शिकार बनी ग्लोबल ग्रांट का जब राजेश अग्रवाल और या  उनके क्लब से कोई संबंध नहीं है, तब फिर घपला की गई रकम उनके क्लब के एकाउंट से क्यों वापस हुई ? जब भी और जहाँ कहीं भी इस बारे में सवाल उठता है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल पता नहीं क्यों बुरी तरह बौखला जाते हैं और नाराज हो जाते हैं और सवाल उठाने वाले को 'देख लेने' की धमकी देने लगते हैं - लेकिन सीधे से सवाल का जबाव नहीं देते हैं 
अनिल अग्रवाल के लिए मुसीबत का सबब रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय से आई वह चिट्ठी भी बनी है, जो उनकी सजा कम करने के बारे में सूचित करती है । मजे की बात यह है कि अनिल अग्रवाल की तरफ से लोगों के बीच यह बताने/जताने की कोशिश हो रही है कि रोटरी इंटरनेशनल ने उनकी सजा माफ कर दी है, जबकि चिट्ठी का मजमून यह बता रहा है कि उनकी सजा माफ नहीं हुई है, बल्कि कम हुई है । उन्हें 30 अप्रैल 2022 तक रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित करने की जो सजा सुनाई गई थी, उसे कम करके 30 जून 2020 तक कर दिया गया है । अनिल अग्रवाल को भेजी गई चिट्ठी में साफ कहा गया है कि चूँकि अनिल अग्रवाल और उनके साथियों ने उक्त ग्रांट की 25,702 अमेरिकी डॉलर, यानि 19 लाख 27 हजार 695 रुपये की रकम वापस कर दी है, और सजा कम करने के लिए अपील की है - इसलिए उनकी सजा कम करने का फैसला लिया गया है । वास्तव में, इसीलिए मनोज जैन और उनके शुभचिंतक भड़के हुए हैं - उनका कहना है कि जिस 'आधार' पर अनिल अग्रवाल की सजा कम हुई है, उसी आधार पर उनकी सजा कम क्यों नहीं हुई ? अब बेचारे मनोज जैन और उनके शुभचिंतकों को कौन समझाए कि 'आधार' की बात तो अपनी जगह है - सजा कम करवाने के लिए रोटरी के बड़े नेताओं की 'नजरेइनायत' का ज्यादा बड़ा रोल होता है । अनिल अग्रवाल ने दिखा दिया है कि उन्हें रोटरी के बड़े नेताओं का वरदहस्त प्राप्त है, जिसके चलते रोटरी फाउंडेशन की ग्रांट की रकम में घपला करने, पकड़े जाने और सजा पाने के बावजूद उन्हें डिस्ट्रिक्ट में और रोटरी इंडिया में असाइनमेंट्स मिल गए हैं । रोटेरियंस के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि रोटरी इंटरनेशनल द्वारा घपलेबाजी के लिए जिम्मेदार ठहराए गए और सजा पाए अनिल अग्रवाल को असाइनमेंट्स देने के लिए रोटरी के बड़े पदाधिकारी मजबूर क्यों हैं और ऐसा करके वह रोटरी की क्या पहचान बनाना चाहते हैं ?

Friday, May 29, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में दीपक तलवार तथा तेजपाल खिल्लन की दूसरे नंबर पर आने की कोशिशों ने मल्टीपल के राजनीतिक समीकरणों में बड़े उलटफेर के संकेत दिए और पूर्व प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की मुसीबतों को बढ़ाया

नई दिल्ली । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में छिड़ी लड़ाई में तीन में से दो उम्मीदवारों - दीपक तलवार और तेजपाल खिल्लन ने जिस तरह से अपनी कोशिशें अपने आप को दूसरे नंबर पर लाने/रखने तक टिका दी हैं, उसके चलते मल्टीपल का चुनावी परिदृश्य खासा रोमांचपूर्ण हो गया है । दअरसल इन्हें लग गया है कि इनके लिए चुनाव जीतना तो मुश्किल क्या, असंभव ही है और ऐसे में यह दूसरे नंबर पर आकर मल्टीपल में अपनी राजनीतिक इज्जत बचा सकते हैं । इस स्थिति ने तीसरे उम्मीदवार जितेंद्र चौहान को बड़ी राहत पहुँचाई है । किसी भी उम्मीदवार के लिए इससे बड़ा वरदान और भला क्या होगा कि उसके प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार उससे लड़ने की बजाये आपस में ही लड़ने लगें । जितेंद्र चौहान और उनके समर्थकों का यह डर भी कुछ हद तक दूर हुआ लग रहा है, जिसमें कानूनी दाँवपेंच के जरिये चुनाव को रद्द करवाने की आशंका है । मजे की बात यह है कि दीपक तलवार तथा तेजपाल खिल्लन और इन दोनों के समर्थक अभी तक चुनाव को रद्द करवाने के लिए तरह तरह के प्रपंच रच रहे थे; लेकिन अब इन्होंने वोट जुटाने के लिए प्रयास तेज कर दिए हैं । चुनाव रद्द करने/करवाने के लिए जो जो तर्क दिए गए, मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन विनय मित्तल ने जिस सफाई, बेबाकी और पारदर्शिता के साथ उनके जबाव दिए - उससे दबाव बना कर चुनाव रद्द करवाने की योजना विफल हो गई है, और अब सभी को चुनाव में जुटना पड़ रहा है ।
असल में, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का चुनाव रद्द करवाने की कोशिशों के चलते दीपक तलवार और तेजपाल खिल्लन तथा इन दोनों के समर्थक नेताओं की मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में इतनी बदनामी हो चुकी है, कि इन्हें अब चुनाव लड़ने में ही अपनी भलाई नजर आ रही है । दीपक तलवार की तरफ से पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना ने चुनाव रद्द करवाने को लेकर मोर्चा खोला हुआ था - लेकिन अब उनकी कोशिश है कि दीपक तलवार को तेजपाल खिल्लन से ज्यादा वोट तो मिलें ही । दीपक तलवार यदि तीसरे नंबर पर रहे, तो दीपक तलवार का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा - विनोद खन्ना की सारी राजनीति चौपट जरूर हो जाएगी । दूसरी तरफ, मौजूदा परिस्थिति में तेजपाल खिल्लन को यह मौका दिख रहा है कि वह दीपक तलवार से ज्यादा वोट लेकर अपने आप को मल्टीपल में विनोद खन्ना से बड़ा नेता साबित कर सकें । दरअसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के चक्कर में विनोद खन्ना की पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल के साथ जो दूरी बनी है, उस दूरी में अपने आप को फिट करने के लिए तेजपाल खिल्लन को दीपक तलवार से ज्यादा वोट पाना जरूरी लग रहा है ।
मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर छिड़ी लड़ाई ने नरेश अग्रवाल को भारी मुसीबत में फँसा दिया है । परिवार के बड़े बुजुर्ग के रूप में वह लगातार कोशिश कर रहे हैं कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चक्कर में मल्टीपल का माहौल न बिगड़े - लेकिन कोई भी उनकी सुन ही नहीं रहा है । नरेश अग्रवाल के लिए सबसे बड़े झटके की बात यह हुई है कि इस चुनावी चक्कर में उनके सबसे खास विनोद खन्ना ही उनसे दूर हो गए हैं । विनोद खन्ना के नजदीकियों का कहना है कि विनोद खन्ना इस बात पर उखड़ गए कि जितेंद्र चौहान को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनाने की 'योजना' से पहले तो उन्हें अलग-थलग रखा गया और फिर जितेंद्र चौहान की तरफ से प्रचारित किया गया कि विनोद खन्ना के पास विकल्प ही क्या होगा - तेजपाल खिल्लन के साथ तो वह जायेंगे नहीं, और अंततः उनके समर्थन में ही आने के लिए मजबूर होंगे । इससे ही नाराज होकर विनोद खन्ना ने दीपक तलवार को उम्मीदवार बना/बनवा दिया । नरेश अग्रवाल ने दीपक तलवार की उम्मीदवारी वापस करवाने के लिए प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से कई प्रयास कर लिए हैं, लेकिन विनोद खन्ना के रवैये के चलते उनके प्रयास विफल ही हुए हैं । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए छिड़े/बने चुनावी चक्कर ने प्रत्येक पक्ष को इस तरह 'घेर' लिया है कि मामला हार-जीत से बड़ा हो गया है, और जो मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के राजनीतिक समीकरणों पर गुणात्मक असर डालेगा ।

Thursday, May 28, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन पद पर अपनी मनमानी से नियुक्ति करने के मामले में रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस से 'बड़े बेआबरू होकर निकले'

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा ने अपने गवर्नर-वर्ष में विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बनाने के लिए जो अभियान छेड़ा हुआ है, उसे रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस से तगड़ा झटका लगा है । साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों ने उन्हें दो-टूक शब्दों में बता दिया है कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार उक्त पद पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी की सहमति से ही कोई नियुक्ति हो सकती है । साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों ने हालाँकि उन्हें यह सुझाव देते हुए एक मौका दे दिया है कि इसके बावजूद वह जो करना चाहते हैं, उसके लिए वह इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या से बात कर लें । संजीव राय मेहरा अब इस कोशिश में जुटे हैं कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का मजाक बनाने वाले अपने फैसले को हरी झंडी देने के लिए वह कैसे भरत पांड्या को राजी कर लें । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 में गवर्नर, गवर्नर इलेक्ट तथा गवर्नर नॉमिनी की सहमति से डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद पर इस वर्ष रंजन ढींगरा की नियुक्ति हुई थी । रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के तहत यह नियुक्ति तीन वर्षों के लिए होती है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में संजीव राय मेहरा ने भी रंजन ढींगरा के नाम पर अपनी सहमति दी थी । दस महीने बीतने के बाद संजीव राय मेहरा को 'ज्ञान' प्राप्त हुआ कि उक्त पद पर रंजन ढींगरा की नियुक्ति गलत हो गई है । कुछेक आरोप, जिनमें कुछ मनगढंत हैं और कुछ बाल की खाल निकालने वाली प्रकृति के हैं, लगाते हुए संजीव राय मेहरा ने घोषणा कर दी कि अपने गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद पर वह रंजन ढींगरा को हटा कर विनय भाटिया को नियुक्त कर रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अनूप मित्तल ने उनके फैसले का विरोध किया । अनूप मित्तल का कहना रहा कि संजीव राय मेहरा जो कर रहे हैं, वह रोटरी इंटरेनशनल के नियमों का सरासर उल्लंघन है, और उन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए । अनूप मित्तल का सुझाव रहा कि संजीव राय मेहरा डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद की नियुक्ति में यदि कोई बदलाव करना चाहते हैं, तो उन्हें रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का पालन करते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी के साथ विचार विमर्श करना चाहिए । संजीव राय मेहरा लेकिन अपनी जिद पर अड़े रहे और यह 'दिखाते' रहे तथा घोषणा कर बैठे कि डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन की नई नियुक्ति वह अकेले ही करेंगे और उन्हें किसी से पूछने/बताने की जरूरत नहीं है । इस मामले में संजीव राय मेहरा ने रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थिति साऊथ एशिया ऑफिस से मिले दिशा-निर्देशों को भी स्वीकार करने से इंकार कर दिया । इसके बाद, मामला गंभीर हो गया और साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों को उन्हें स्पष्ट रूप से बताना पड़ा कि रोटरी इंटरनेशनल के नियम उन्हें अकेले वह करने की अनुमति नहीं देते हैं, जो डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन की नई नियुक्ति के मामले में वह कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी को हैरानी है कि संजीव राय मेहरा रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का मजाक बनाने तथा ऐसा करते हुए रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थिति साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों से भी टकराने का काम वह आखिर किसकी शह पर कर रहे हैं ? डिस्ट्रिक्ट में अधिकतर लोग संजीव राय मेहरा के इस मनमाने कार्यक्रम को विनोद बंसल द्वारा स्पॉन्सर्ड कार्यक्रम के रूप में देख/पहचान रहे हैं, और इसे इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई के शुरुआती अध्याय के रूप में पढ़/समझ रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि रंजन ढींगरा और विनोद बंसल इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार के रूप में तैयारी करते सुने जा रहे हैं । विनोद बंसल को पिछले दिनों डिस्ट्रिक्ट के महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से जिस तरह जबर्दस्ती हटाया गया है, उससे विनोद बंसल की भारी फजीहत हुई है और डिस्ट्रिक्ट में उन्हें पूरी तरह अलग-थलग पड़ा देखा/पहचाना गया है; दूसरी तरफ रोटरी इंडिया वाटर मिशन के मुखिया के तौर पर रंजन ढींगरा को अपने डिस्ट्रिक्ट के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स में भी खासी तवज्जो मिलती दिख रही है । इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी ने कोच्ची इंस्टीट्यूट के कन्वेनर के रूप में रंजन ढींगरा को इंस्टीट्यूट के ट्रेजरर पद की जिम्मेदारी दी है । यह जिक्र आ ही चुका है कि डिस्ट्रिक्ट के तीन वर्षों के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने आपसी सहमति से रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन चुना है । इन उपलब्धियों के साथ, रंजन ढींगरा रोटरी समुदाय में अपनी बड़ी पहचान और स्वीकार्यता बनाते नजर आ रहे हैं, तथा विनोद बंसल खुद को उनके मुकाबले बुरी तरह पिछड़ता देख रहे हैं । दुनिया और समाज में यह एक आम समझ है कि जब कोई अपने आप को 'बड़ा' नहीं बना पाता है, तो वह अपने प्रतिद्धंद्धी को नीचे गिराने की कोशिशें शुरू कर देता है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि रंजन ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन के पद से हटवाने की कार्रवाई के रूप में संजीव राय मेहरा के जरिये विनोद बंसल ने वही खेल शुरू किया है । विनोद बंसल और संजीव राय मेहरा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं; आरोपपूर्ण चर्चाएँ हैं कि विनोद बंसल से प्रोफेशनल फायदे लेने की उम्मीद में संजीव राय मेहरा उनके खेल का हिस्सा बन गए हैं, और इसके लिए रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का मजाक बनाने की हद तक जा पहुँचे हैं । बताते चलें कि रंजन ढींगरा की जगह जिन विनय भाटिया को दिलवाने के प्रयास किए जा रहे हैं, वह विनय भाटिया इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी की सदस्यता के लिए विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में तैयारी कर रहे हैं । विनोद बंसल को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन बन जाने पर विनय भाटिया की उक्त उम्मीदवारी को फायदा मिलेगा ।
रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस से विनय भाटिया को डिस्ट्रिक्ट मेंबरशिप चेयरमैन का पद दिलवाने की कोशिश को भले ही झटका लगा हो, लेकिन विनोद बंसल ने संजीव राय मेहरा तथा विनय भाटिया को आश्वस्त किया है कि उक्त मामले में भले ही रोटरी इंटरनेशनल के नियमों का उल्लंघन हो रहा हो, किंतु वह भरत पांड्या से संजीव राय मेहरा के फैसले को हरी झंडी दिलवा देंगे । 

Wednesday, May 27, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी की, आयोजन की तारीख को आगे बढ़ा कर तथा 'विशेष नियुक्ति' के तहत सुभाष जैन को वाइस चेयरमैन बना कर कोच्ची इंस्टीट्यूट को कोरोना वायरस के प्रकोप से बचाने की, कोशिश काम करेगी क्या ? 


नई दिल्ली । पहले कोच्ची इंस्टीट्यूट के आयोजन की तारीख को आगे बढ़ा कर और फिर आयोजन कमेटी में 'विशेष नियुक्ति' के तहत सुभाष जैन को वाइस चेयरमैन बना कर इंटरनेशनल डायरेक्टर कमल सांघवी ने कोरोना वायरस के प्रकोप से पैदा हुए हालात की काली छाया से इंस्टीट्यूट को बचाने की कार्रवाई तो शुरू कर दी है, लेकिन उनके नजदीकियों और शुभचिंतकों को भी लग रहा है कि कोच्ची इंस्टीट्यूट को लेकर कमल सांघवी ने जैसे जो सपने बुन रखे थे - उन पर ग्रहण तो लग ही चुका है । नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही मानना और कहना है कि कमल सांघवी अब ज्यादा से ज्यादा यही कोशिश कर सकते हैं कि वह डैमेज को किसी भी तरह से कंट्रोल करें और इंस्टीट्यूट को अपने सपनों के अनुरूप न सही - उसके आसपास के स्तर का तो बना ही लें । कमल सांघवी कोच्ची इंस्टीट्यूट के कन्वेनर हैं और उन्हें रोटरी में 'शो-मैन' के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इसीलिए लोगों को उम्मीद है कि कोच्ची इंस्टीट्यूट को 'बचाने' के लिए वह हर संभव कोशिश करेंगे । हाल ही में लिए गए अपने फैसलों के जरिये कमल सांघवी ने यह संकेत देने की ही कोशिश की है कि वह अपनी तरफ से कोई कोर-कसर नहीं छोड़ेंगे और कोच्ची इंस्टीट्यूट को अपनी योजनानुसार ही आयोजित करने का प्रयास करेंगे । कमल सांघवी के नजदीकियों के अनुसार, इंस्टीट्यूट की तैयारी कमेटी में वह अभी कुछेक लोगों को और शामिल कर सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि कोच्ची इंस्टीट्यूट के आयोजन को लेकर कमल सांघवी ने अपने जोश और उत्साह का नजारा इंदौर इंस्टीट्यूट में ही दिखा दिया था । वहाँ कोच्ची इंस्टीट्यूट बूथ बनाया गया था, जिसमें केरल की परंपरागत नाव को प्रदर्शित किया गया था, जिसे केरल के विभिन्न मसालों और नारियल से सजाया गया था । इस बूथ का उद्घाटन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट मार्क मलोनी ने किया था । कोच्ची इंस्टीट्यूट को प्रमोट करने के लिए वहाँ केरल की पोशाक पहन कर रोटरी के बड़े पदाधिकारियों ने अपनी अपनी जीवनसंगिनि के साथ एक मलयालम गीत पर नृत्य भी प्रस्तुत किया था । इस तरह की प्रस्तुतियों के जरिये कमल सांघवी ने दरअसल दिखाया/जताया था कि कोच्ची इंस्टीट्यूट कितना रंग-भरा, उमंग-भरा और भव्य होगा । किसी इंस्टीट्यूट में अगले इंस्टीट्यूट के नजारे का ऐसा संकेत इससे पहले शायद ही कभी दिखा या दिखाया गया हो । कमल सांघवी ने इंदौर इंस्टीट्यूट में कोच्ची इंस्टीट्यूट की तैयारियों का खाका भी प्रस्तुत कर दिया था और अपनी टीम के प्रमुख पदाधिकारियों के नाम की घोषणा भी कर दी थी । कोरोना वायरस के प्रकोप से बने हालात ने लेकिन उनकी योजना पर ग्रहण लगा दिया ।
कोच्ची इंस्टीट्यूट को कोरोना वायरस के ग्रहण से बचाने के लिए कमल सांघवी ने पहले तो इंस्टीट्यूट के आयोजन की तारीख को आगे बढ़ाया । 26 से 28 नवंबर 2020 को होने वाले कोच्ची इंस्टीट्यूट को आगे बढ़ा कर, 15 से 17 जनवरी 2021 को करने की घोषणा की गई है । इस घोषणा के कुछ ही दिन बाद उन्होंने डिस्ट्रिक्ट 3012 के निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन को इंस्टीट्यूट की कमेटी में दूसरा वाइस चेयरमैन बनाने की घोषणा की है । अभी तक कमेटी में एक ही वाइस चेयरमैन थे, और वह थे अनुरुद्ध रॉय चौधरी । सुभाष जैन की नियुक्ति को उन्होंने 'विशेष नियुक्ति' कहा है और विश्वास व्यक्त किया है कि सुभाष जैन की सक्रियता कोच्ची इंस्टीट्यूट के आयोजन को सफल बनाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायेगी । कमल सांघवी की कोच्ची इंस्टीट्यूट की टीम में सुभाष जैन ही सबसे 'युवा गवर्नर' हैं - वह अभी पिछले वर्ष ही गवर्नर थे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन द्वारा आयोजित किए गए कार्यक्रमों ने भव्यता, रोमांच और लोगों की भागीदारी को लेकर जिस तरह के रिकॉर्ड बनाये - संभवतः उनकी ख्याति ने ही उन्हें इंस्टीट्यूट के वाइस चेयरमैन के पद पर 'जल्दी से' पहुँचाने का काम किया है । दरअसल अपने कार्यक्रमों की प्रशंसा की बदौलत ही सुभाष जैन को उत्तर भारत के डिस्ट्रिक्ट्स में हाल के वर्षों में सामने आने वाली लीडरशिप में सबसे ऊर्जावान लीडर के रूप में देखा/पहचाना गया है । देखना दिलचस्प होगा कि कोच्ची इंस्टीट्यूट को कोरोना वायरस के प्रकोप से बने हालात का शिकार बनने से बचाने के लिए कमल सांघवी और क्या क्या उपाये करते हैं, तथा उनका क्या नतीजा निकलता है ?

Monday, May 25, 2020

रोटरी इंटरनेशनल के डायरेक्टर भरत पांड्या तथा पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू सहित डिस्ट्रिक्ट 3080 की लीडरशिप पूर्व गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके से करीब 15 लाख रुपए की रकम बसूलने के मामले में लाचार क्यों बनी हुई है ?

चंडीगढ़ । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनप्रीत सिंह गंधोके ने डिस्ट्रिक्ट एकाउंट के करीब 15 लाख रुपए दबाए रखते हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा, निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल तथा पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू को जैसा नाच नचाया हुआ है, वह डिस्ट्रिक्ट ही क्या - रोटरी के इतिहास की अनोखी घटना है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने उक्त रकम वापस करने के लिए मनप्रीत सिंह गंधोके को कई बार ईमेल संदेश लिखे हैं, लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके ने रकम वापस करना तो दूर - उनके ईमेल संदेशों का जबाव तक नहीं दिया है । जितेंद्र ढींगरा ने 16 सितंबर 2019 को एक ईमेल के जरिये इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या को भी मामले से परिचित कराया, लेकिन तब भी मनप्रीत सिंह गंधोके ने परवाह नहीं की । अभी हाल ही में, 5 अप्रैल 2020 को जितेंद्र ढींगरा ने फिर मनप्रीत सिंह गंधोके को उक्त रकम डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में जमा करने की चेतावनी दी, लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके के कानों पर जूँ रेंगती हुई लग/दिख नहीं रही है । जितेंद्र ढींगरा ने निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल से भी ईमेल मैसेज के जरिये अनुरोध किया कि चूँकि उनके गवर्नर वर्ष में मनप्रीत सिंह गंधोके को डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से उक्त रकम दी गई है, इसलिए वह उक्त रकम वापस करवाएँ । जबाव में प्रवीन गोयल ने भी रोना रो दिया कि मनप्रीत सिंह गंधोके उनकी सुन ही नहीं रहे हैं और जबाव ही नहीं दे रहे हैं ।
हैरत की बात यह है कि मनप्रीत सिंह गंधोके ने उक्त रकम दबाए रखने के लिए डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ पूर्व गवर्नर और पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू को भी ठेंगा दिखाया हुआ है । जितेंद्र ढींगरा का कहना/बताना रहा है कि कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में राजा साबू ने आश्वस्त किया था कि वह मनप्रीत सिंह गंधोके से उक्त रकम वापस करवायेंगे । राजा साबू के उस आश्वासन को कई महीने बीत चुके हैं, लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके ने उक्त रकम वापस करने के कोई संकेत तक नहीं दिए हैं । इससे डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों को संदेह हो चला है कि मनप्रीत सिंह गंधोके उक्त रकम के बबाल में जो बेशर्मी दिखा रहे हैं, उसके पीछे राजा साबू की ही शह है - अन्यथा यह कतई संभव नहीं है कि राजा साबू सचमुच चाहें, और फिर भी मनप्रीत सिंह गंधोके रकम दबाए बैठे रहें । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगता है कि राजा साबू दोहरा खेल खेल रहे हैं - कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में तो उन्होंने कह दिया कि वह मनप्रीत सिंह गंधोके से रकम वापस दिलवायेंगे, लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके को भी संकेत दे दिया कि चुपचाप बैठो, बेशर्मी ओढ़े रहो - कोई आखिर क्या कर लेगा ? दरअसल, मनप्रीत सिंह गंधोके से रकम बसूलने के मामले में अभी तक जो कुछ हुआ है, उसे एक 'ट्रेजिडी' के 'कॉमिक' बनते जा रहे किस्से के रूप में देखा जाने लगा है । इस मामले को देख रहे डिस्ट्रिक्ट के आम और खास लोगों को यह तो विश्वास हो चला है कि मनप्रीत सिंह गंधोके से रकम वापस लेने के मामले में राजा साबू और प्रवीन गोयल तो नाटक कर रहे हैं, लेकिन उन्हें हैरानी इस बात की है कि जितेंद्र ढींगरा क्यों कोई कठोर कार्रवाई नहीं कर रहे हैं, और क्यों सिर्फ चेतावनी दे कर पीछे हट जा रहे हैं ?  
मामला पिछले रोटरी वर्ष का है । एक ट्रेवल एजेंसी के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट द्वारा उपभोक्ता अदालत में किए गए केस में फैसला डिस्ट्रिक्ट के पक्ष में हुआ, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट एकाउंट में 14 लाख 95 हजार 978 रुपए आए । उक्त केस मनप्रीत सिंह गंधोके के गवर्नर वर्ष में हुआ था । मनप्रीत सिंह गंधोके ने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को बताया कि जिस रकम पर ट्रेवल एजेंसी के साथ विवाद था, वह रकम उन्होंने अपने निजी एकाउंट से दी थी, इसलिए उक्त रकम पर उनका अधिकार है और वह उन्हें मिलनी चाहिए । प्रवीन गोयल इतने 'भोले' हैं कि मनप्रीत सिंह गंधोके ने उनसे कहा और उन्होंने बिना सच्चाई को जाने/समझे फटाक से उक्त रकम का चेक मनप्रीत सिंह गंधोके को दे दिया, जिसके बाद उक्त रकम डिस्ट्रिक्ट एकाउंट से मनप्रीत सिंह गंधोके के एकाउंट में चली गई । यह काम इतने आनन-फानन में हुआ कि प्रवीन गोयल की भूमिका भी संदेह और आरोपों की शिकार बनी । बाद में जैसे ही इस बात का पता चला, तब बबाल मचा । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में पूर्व गवर्नर टीके रूबी ने दावा किया कि इस रकम पर मनप्रीत सिंह गंधोके का दावा सरासर झूठ और धोखा है, तथा वास्तव में यह रकम रोटेरियंस की है, जिन्होंने बैंकॉक में होने वाली इंटरनेशनल कन्वेंशन में शामिल होने के लिए इसे जमा करवाया था । टीके रूबी ने चुनौती दी कि मनप्रीत सिंह गंधोके साबित करें कि यह रकम उन्होंने अपने किसी निजी एकाउंट से दी है । भेद खुला तो प्रवीन गोयल ने मासूमियत की चादर ओढ़ ली कि उन्हें तो बात का पता ही नहीं था, और मनप्रीत सिंह गंधोके ने उनसे जो कहा, उसे उन्होंने सच मान लिया । टीके रूबी द्वारा सच्चाई बताने तथा चुनौती देने के बाद से मनप्रीत सिंह गंधोके ने चुप्पी साध ली है, और वह उक्त रकम वापस करने संबंधी ईमेल संदेशों का जबाव भी नहीं दे रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा इस मामले में इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या से मदद माँग चुके हैं - लेकिन मनप्रीत सिंह गंधोके की बेशर्मी के सामने भरत पांड्या, राजा साबू सहित डिस्ट्रिक्ट 3080 की लीडरशिप की लाचारी ही सामने आ रही है । 

Saturday, May 23, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में सीओएल के चुनावी परिदृश्य में प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद अपनी उम्मीदवारी को लेकर सुधीर मंगला की जिद के चलते, लॉकडाउन के कारण ठंडी का शिकार बने डिस्ट्रिक्ट में गर्मी बढ़ी 

नई दिल्ली । सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में नामांकन वापस लेने की तारीख नजदीक आ रही है, और डिस्ट्रिक्ट के कई धुरंधर नेता सुधीर मंगला को अपना नामांकन वापस लेने के लिए राजी करने का प्रयास कर कर के थक चुके हैं - लेकिन सुधीर मंगला अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए तैयार ही नहीं हो रहे हैं, और चुनाव लड़ने की जिद पर अड़े हुए हैं । नामांकन वापस लेने के लिए अभी हालाँकि चार दिन का समय बचा हुआ है, लेकिन हर किसी ने मान लिया है कि सीओएल प्रतिनिधि के लिए अमित जैन और सुधीर मंगला के बीच चुनाव होना तय ही है । सुधीर मंगला को इस बात पर बड़ी हैरानी है कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर नेता और पूर्व गवर्नर्स उन पर ही उम्मीदवारी वापस लेने के लिए दबाव क्यों बना रहे हैं ? सीओएल प्रतिनिधि के पिछले चुनाव में भी, डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर लोग उम्मीदवारी वापस करवाने को लेकर उन्हीं के पीछे पड़े थे । हालाँकि पिछली बार भी उन्होंने किसी की एक नहीं सुनी थी, और चुनाव लड़ बैठे थे - लेकिन चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा था । सुधीर मंगला को उम्मीद थी कि वह चूँकि पिछली बार हारे हुए उम्मीदवार हैं, इसलिए डिस्ट्रिक्ट के लोग उनके प्रति हमदर्दी दिखाते हुए इस बार उन्हें सर्वसम्मति से सीओएल प्रतिनिधि चुन लेंगे; लेकिन अब उन्हें समझ में आ गया है कि रोटरी की दुनिया के लोग बड़े निष्ठुर लोग हैं, जिनके नजदीक हमदर्दी जैसी तो कोई चीज नहीं फटकती है । इसलिए सुधीर मंगला एक बार फिर सीओएल प्रतिनिधि के लिए चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं ।
सुधीर मंगला का कहना है कि रोटरी में उन्हें आसानी से कुछ नहीं मिला है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवारी पाने के लिए उन्हें अपने क्लब के सदस्यों के साथ ही जूझना पड़ा था, जिसके चलते उन्हें उम्मीदवारी तो नहीं ही मिली थी - बल्कि उन्हें अपना क्लब छोड़ने के लिए मजबूर और होना पड़ा था । उन्होंने नया क्लब बनाया, तब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए उम्मीदवार हो सके थे - उम्मीदवार तो वह बन गए, लेकिन चुनाव वह हार गए थे । दूसरी बार फिर जब वह उम्मीदवार बने, तो बड़ी मुश्किल से जीत सके थे । सीओएल प्रतिनिधि के मामले में भी सुधीर मंगला को जितने पापड़ बेलने पड़ रहे हैं, उतने डिस्ट्रिक्ट में इससे पहले शायद किसी ने नहीं बेले हैं । सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में खींचतान के मौके तो हालाँकि कई बार बने हैं, लेकिन असफल रहने वाले और या चुनावी पराजय का शिकार होने वाले लोगों ने इसे वैसा रंग कभी नहीं दिया - जैसा रंग सुधीर मंगला ने दिया हुआ है । सुधीर मंगला की बदकिस्मती है कि डिस्ट्रिक्ट का कोई नेता खुलकर उनकी उम्मीदवारी की वैसी वकालत करता हुआ भी नहीं दिख रहा है, जैसी वकालत कई नेता अमित जैन की करते हुए सुने जा रहे हैं । सुधीर मंगला का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट के नेता और पूर्व गवर्नर्स भले ही उनके साथ न दिख रहे हों, लेकिन क्लब्स के पदाधिकारियों और प्रेसीडेंट्स का समर्थन उनके साथ है - और उनके समर्थन के भरोसे ही वह अपनी उम्मीदवारी को वापस लेने के लिए राजी नहीं हैं ।
सुधीर मंगला को यह भी विश्वास है कि अभी भले ही कोई पूर्व गवर्नर उनकी उम्मीदवारी के समर्थन में नहीं दिख रहा है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में खेमेबाजी के असर और दबाव के चलते कुछेक पूर्व गवर्नर्स अवश्य ही उनकी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने में जुटेंगे । दूसरी तरफ, अमित जैन की उम्मीदवारी को पूर्व गवर्नर्स का अच्छा खासा समर्थन मिलता नजर आ रहा है - खास बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में परस्पर विरोधी के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले पूर्व गवर्नर्स अमित जैन की उम्मीदवारी का समर्थन करते देखे/सुने जा रहे हैं । दूसरी/तीसरी पंक्ति के नेता के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले कुछेक सक्रिय रोटेरियंस के भी अमित जैन की उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने तथा माहौल बनाने के काम में लगे होने की चर्चा है, जबकि सुधीर मंगला को अकेले ही अपनी उम्मीदवारी के लिए काम करते हुए देखा/सुना जा रहा है । सुधीर मंगला के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि जो लोग उनकी उम्मीदवारी के समर्थक हैं भी, और जिनका समर्थन सुधीर मंगला की उम्मीदवारी को मिलने की संभावना थी भी - वह भी उनकी उम्मीदवारी के लिए वास्तव में कुछ करते नजर नहीं आ रहे हैं.। तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद भी सुधीर मंगला ने लेकिन जिस तरह से अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिद पकड़ी हुई है, और उम्मीदवारी वापस लेने के दबावों को वह अनसुना कर रहे हैं - उसके चलते लॉकडाउन के कारण ठंडी का शिकार बने डिस्ट्रिक्ट में सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव को लेकर गर्मी तो बढ़ रही है ।

Thursday, May 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 को ग्रांट्स-प्रतिबंध की सजा से बचाने के लिए जरूरी रकम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल से बसूलने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की कोशिश ने अशोक अग्रवाल को मिले 'सर्विस अबव सेल्फ' अवॉर्ड को विवाद का विषय बनाया 

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल को रोटरी इंटरनेशनल के एक प्रमुख अवॉर्ड - सर्विस अबव सेल्फ - 'दिलवाने' के बदले में उनके गवर्नर वर्ष में यही अवॉर्ड पाने की सौदेबाजी करने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट को ग्रांट्स के प्रतिबंध से बचाने के लिए 20 हजार अमेरिकी डॉलर देने के लिए अशोक अग्रवाल पर दबाव बनाना शुरू किया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब ई मैग्नम को मंजूर हुई ग्लोबल ग्रांट 1755525 में हुई घपलेबाजी से जुड़े मामले में रोटरी फाउंडेशन ने एक जून तक 20 हजार अमेरिकी डॉलर जमा करवाने का आदेश दिया है; और चेतावनी दी है कि ऐसा न करने पर डिस्ट्रिक्ट 3012 को रोटरी ग्रांट्स से प्रतिबंधित कर दिया जायेगा । (रोटरी इंटरनेशनल के उक्त पत्र को इस रिपोर्ट के अंत में देखा/पढ़ा जा सकता है ।) अभी हाल ही में, डिस्ट्रिक्ट में आयोजित हुए रोटरी फाउंडेशन के जूम सेमीनार में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता से पूछा गया था कि रोटरी फाउंडेशन की तरफ से मिली चेतावनी के मामले में वह क्या कार्रवाई कर रहे हैं । दीपक गुप्ता ने यह कहते हुए इस सवाल का कोई सीधा जबाव नहीं दिया कि वह मामले को मैनेज कर लेंगे । इस तरह दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट और रोटरी फाउंडेशन के बीच के मामले को एक निजी मामले में बदल दिया । डिस्ट्रिक्ट में लोगों का कहना है कि उक्त मामला डिस्ट्रिक्ट 3012 और रोटरी फाउंडेशन के बीच का मामला है; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता को रोटरी फाउंडेशन से मिली चेतावनी के बारे में डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अवगत करवाना चाहिए था, और मामले को हल करने के संबंध में लोगों की सलाह लेना चाहिए थी - लेकिन दीपक गुप्ता ने इसे गुपचुप तरीके से हल करने का आश्वासन देकर लोगों के बीच संशय पैदा कर दिया है कि इस मामले को हल करने में वह कहीं कोई गड़बड़झाला तो नहीं कर रहे हैं ?
यह संशय पैदा होने के बाद ही, लोगों के बीच चर्चा है कि दीपक गुप्ता एक जून से पहले जमा कराने वाली रकम अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना से झटकने के चक्कर में हैं । उनके नजदीकियों के हवाले से ही सुनने को मिला है कि दीपक गुप्ता ने इन दोनों से साफ कह दिया है कि उनका गवर्नर-वर्ष तो पूरा हो गया है, इसलिए ग्रांट्स के प्रतिबंध से उन पर तो कोई फर्क पड़ेगा नहीं; आलोक गुप्ता के पास डीडीएफ (डिस्ट्रिक्ट डेजिगनेटेड फंड्स) में कोई पैसा नहीं होगा, इसलिए उनके गवर्नर-वर्ष में ग्रांट्स वैसे ही नहीं मिलेंगी - ऐसे में ग्रांट्स के प्रतिबंधित होने का नुकसान तुम्हें ही उठाना होगा, इसलिए एक जून से पहले जमा की जाने वाली रकम तुम्हीं भरो । दीपक गुप्ता के नजदीकियों के ही अनुसार, ललित खन्ना ने तो होशियारी 'दिखाते' हुए मामले में चुप्पी साध ली है; उन्हें लग रहा है कि उनसे पहले अशोक अग्रवाल गवर्नर बनेंगे, इसलिए वह ही मामले से निपटें । ललित खन्ना का यह भी मानना/कहना है कि दीपक गुप्ता ने चूँकि अशोक अग्रवाल को 'सर्विस अबव सेल्फ' अवॉर्ड दिलवा कर उन पर अहसान किया है, इसलिए दीपक गुप्ता एक जून से पहले जमा की जाने वाली रकम अशोक अग्रवाल से ही बसूलें । अशोक अग्रवाल का अलग रोना है; उनका कहना है कि 'सर्विस अबव सेल्फ' अवॉर्ड को लेकर तो दीपक गुप्ता के साथ पहले ही उनकी सौदेबाजी हो चुकी है - जिसके तहत अपने गवर्नर वर्ष में वह दीपक गुप्ता को उक्त अवॉर्ड दिलवायेंगे; इसलिए उक्त अवॉर्ड की कीमत के रूप में दीपक गुप्ता उन पर और अतिरिक्त बोझ क्यों डाल रहे हैं ?
उल्लेखनीय है कि रोटरी में 'सर्विस अबव सेल्फ' अवॉर्ड की स्थापना उन रोटेरियंस के प्रति सम्मान प्रकट करने तथा उन्हें एक प्रेरणास्रोत के रूप में चिन्हित करने के उद्देश्य से की गई थी, जो अपने निजी प्रयासों से मानवीय सेवा कार्यों में उत्कृष्ट काम करते हैं । इसके लिए रोटरी इंटरनेशनल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को नाम भेजना होता है । उम्मीद की जाती है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डिस्ट्रिक्ट के अन्य सदस्यों और पदाधिकारियों के साथ विचार-विमर्श करके नाम चुने और उस नाम को इंटरनेशनल कार्यालय को भेजे । हालाँकि अक्सर ही शिकायतें सुनी जाती हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मनमाने तरीके से इस अवॉर्ड के लिए नाम तय करते और भेजते हैं । यूँ, इस तरह के फैसलों में शिकायतों और विवाद से बच पाना मुश्किल भी है; किंतु अधिकतर गवर्नर नाम तय करते और भेजते हुए यह जरूर ध्यान रखते हैं कि वह 'काले' को 'सफेद' कहते हुए तो न दिखें । दीपक गुप्ता ने लेकिन इसका भी ध्यान नहीं रखा; उनके और अशोक अग्रवाल के नजदीकियों का भी मानना और कहना है कि अशोक अग्रवाल किसी भी तरह से उक्त अवॉर्ड को पाने लायक तो नहीं हैं । दीपक गुप्ता ने जिस चुपचाप तरीके से अशोक अग्रवाल का नाम उक्त अवॉर्ड के लिए भेजा, और अपने नजदीकियों तक को इस बारे में हवा नहीं लगने दी - उससे पैदा हुए संशय के चलते बाद में भेद खुला कि उक्त अवॉर्ड को लेकर दीपक गुप्ता और अशोक अग्रवाल में 'सौदा' हुआ है कि दीपक गुप्ता ने उन्हें यह अवॉर्ड दिलवाया है, इसके बदले में अशोक अग्रवाल अपने गवर्नर-वर्ष में उन्हें यह अवॉर्ड दिलवायेंगे । 'सर्विस अबव सेल्फ' अवॉर्ड के मामले में दीपक गुप्ता और अशोक अग्रवाल के बीच हुई सौदेबाजी की चर्चा एक बार फिर इसलिए गर्म हो उठी है, क्योंकि दीपक गुप्ता उक्त अवॉर्ड दिलवाने के बदले में अशोक अग्रवाल पर डिस्ट्रिक्ट को ग्रांट्स प्रतिबंध में फँसने से बचाने के लिए आवश्यक रकम देने का दबाव बना रहे हैं, और अशोक अग्रवाल रोना रो रहे हैं कि उक्त अवॉर्ड के लिए उन्हें आखिर कितने सौदे करने पड़ेंगे ? 



Tuesday, May 19, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद गवाँ देने वाले जगदीश अग्रवाल तो गुरनाम सिंह की खुशामद में जुटे, लेकिन विशाल सिन्हा ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवार जितेंद्र चौहान का नाम लेकर मामले को दिलचस्प बनाया

लखनऊ । सेकेंड से फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने की आसान सी कोशिश में जगदीश अग्रवाल के मात खा जाने के बाद से डिस्ट्रिक्ट के चुनावी राजनीति के परिदृश्य के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था में भी बड़ी उथल-पुथल के संकेत मिल रहे हैं - और इस उथल पुथल के केंद्र वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरनाम सिंह बन रहे हैं । एक तरफ तो जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकी व शुभचिंतक गुरनाम सिंह को मनाने तथा जगदीश अग्रवाल के प्रति उनकी नाराजगी को दूर करने के प्रयासों में जुटे हैं, तो दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का कार्यभार संभालने की तैयारी कर रहे कमल शेखर गुप्ता ने अचानक से गुरनाम सिंह के गीत गाना शुरू कर दिया है । कमल शेखर गुप्ता के तेजी से बदले रवैये ने पूर्व गवर्नर विशाल सिन्हा के लिए डिस्ट्रिक्ट की राजनीतिक व प्रशासनिक व्यवस्था में अस्तित्व का संकट पैदा कर दिया है । जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकियों को विश्वास है कि वह जल्दी ही गुरनाम सिंह की नाराजगी दूर कर लेंगे तथा हार जाने के बाद भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद हासिल कर लेंगे । जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकियों के प्रयासों और विश्वास को देख/जान कर गुरनाम सिंह के कहने पर नेगेटिव वोट डालने वाले लायंस को चिंता होने लगी है कि गुरनाम सिंह क्या सचमुच जगदीश अग्रवाल को माफ़ कर देंगे और उनके साथ धोखा करेंगे ? गुरनाम सिंह के नजदीकियों के बीच भी इस बात को लेकर मतभेद हैं कि जगदीश अग्रवाल के मामले में गुरनाम सिंह आखिर क्या करेंगे ? कुछेक को लगता है कि गुरनाम सिंह अंततः जगदीश अग्रवाल की खुशामद से मान जायेंगे और उन्हें माफ़ कर देंगे और उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनाने के जुगाड़ में लग जायेंगे; लेकिन अन्य कुछेक को लगता है कि गुरनाम सिंह उन लोगों के भरोसे को नहीं तोड़ेंगे, जिन्होंने उन पर भरोसा करके सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जगदीश अग्रवाल के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग की और उन्हें हरवाया ।
उधर विशाल सिन्हा ने जगदीश अग्रवाल के खिलाफ हुई नेगेटिव वोटिंग के सफल होने के बाद बने माहौल में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के सबसे मजबूत समझे जाने वाले उम्मीदवार जितेंद्र चौहान को घसीट कर मामले को और दिलचस्प बना दिया है । अपने आप को जितेंद्र चौहान की उम्मीदवारी के एक सक्रिय समर्थक के रूप में दिखा/जता रहे विशाल सिन्हा ने जितेंद्र चौहान के साथ अपनी नजदीकियत का वास्ता देते हुए कुछेक लोगों के बीच दावा किया है कि जितेंद्र चौहान इंटरनेशनल पद का चुनाव जीतने के बाद जगदीश अग्रवाल के मामले को निपटवायेंगे और लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की कुर्सी दिलवायेंगे । दरअसल जगदीश अग्रवाल की मौजूदा मुसीबत के लिए विशाल सिन्हा को ही जिम्मेदार माना/ठहराया जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी का मानना और कहना है कि विशाल सिन्हा की राजनीति ही जगदीश अग्रवाल को ले डूबी है । असल में पहले कमल शेखर गुप्ता और फिर जगदीश अग्रवाल की चुनावी जीत को विशाल सिन्हा अपनी जीत के रूप में देखने/समझने लगे थे, और अपने आप को गुरनाम सिंह से भी बड़ा नेता मानने/जताने लगे थे । समझा जाता है कि विशाल सिन्हा की शह पर ही जगदीश अग्रवाल ने गुरनाम सिंह को तवज्जो देना बंद कर दिया था, और उनके बारे में बकवासबाजी करने लगे थे । विशाल सिन्हा के उकसावे पर जगदीश अग्रवाल का रवैया हर किसी के प्रति उपेक्षापूर्ण और अपमानजनक हो गया था, तथा वह अन्य किसी को तवज्जो देने से कतराने लगे थे । विशाल सिन्हा के चक्कर में जगदीश अग्रवाल ने बहुत से लोगों को अपना दुश्मन बना लिया था । चूँकि हर कोई जगदीश अग्रवाल की मौजूदा मुसीबत के लिए विशाल सिन्हा को जिम्मेदार ठहरा रहा है, इसलिए विशाल सिन्हा ने जितेंद्र चौहान का नाम लेकर जगदीश अग्रवाल को 'बचाने' की बात करना शुरू किया है ।
विशाल सिन्हा की बदकिस्मती लेकिन यह है कि डिस्ट्रिक्ट में हर कोई उनकी चाल को समझ रहा है और मान रहा है कि जितेंद्र चौहान का नाम लेकर विशाल सिन्हा - जगदीश अग्रवाल को नहीं, बल्कि अपने आप को 'बचाने' की कोशिश कर रहे हैं । विशाल सिन्हा यह दिखाने/जताने का प्रयास कर रहे हैं कि गुरनाम  सिंह ने भले ही जगदीश अग्रवाल को मुसीबत में डाल दिया है, लेकिन जितेंद्र चौहान की मदद से वह जगदीश अग्रवाल को बचायेंगे । इस तरह के दावे के जरिये, विशाल सिन्हा वास्तव में डिस्ट्रिक्ट की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था में अपना अस्तित्व बचाने का प्रयास कर रहे हैं । विशाल सिन्हा दरअसल यह देख कर हक्के-बक्के हुए हैं कि जगदीश अग्रवाल के चुनाव का नतीजा आने के बाद से कमल शेखर गुप्ता ने जोरशोर से गुरनाम सिंह के गीत गाना शुरू कर दिया है, और यह दिखाना/जताना शुरू किया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह वही और वैसा ही करेंगे, जैसा गुरनाम सिंह कहेंगे । कमल शेखर गुप्ता हालाँकि पहले से भी गुरनाम सिंह की गुडबुक में रहने की कोशिश कर रहे थे, और उनसे सलाह/सुझाव ले रहे थे - लेकिन ज्यादा नजदीक वह विशाल सिन्हा के ही थे । माना/समझा जा रहा था कि कमल शेखर गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में 'असली गवर्नर' विशाल सिन्हा ही रहेंगे - लेकिन जगदीश अग्रवाल की हुई हालत देख कर कमल शेखर गुप्ता ने जिस तरह से पलटी मारी है, उसके चलते विशाल सिन्हा को डिस्ट्रिक्ट की राजनीति और प्रशासनिक व्यवस्था से अपना पत्ता कटता नजर आ रहा है । डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच यह चर्चा भी है कि गुरनाम सिंह यदि जगदीश अग्रवाल की खुशामद से मान जाते हैं, और लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने का कोई जुगाड़ लगा लेते हैं - तो विशाल सिन्हा उसे अपनी 'जीत' के रूप में प्रचारित करके उसका श्रेय लेने की कोशिश करेंगे; और इसीलिए उन्होंने जितेंद्र चौहान का नाम लेकर जगदीश अग्रवाल की मदद करने/करवाने का राग छेड़ दिया है । 

Monday, May 18, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जगदीश अग्रवाल के उपेक्षापूर्ण रवैये से नाराज गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ ने उन्हें सबक सिखाने के लिए उनके खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करवाई  

लखनऊ । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जगदीश अग्रवाल के खिलाफ नेगेटिव वोट डलवा कर गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा, प्रमोद सेठ आदि पूर्व गवर्नर्स ने जैसे पिछले लायन वर्ष की अपनी 'गलती' को सुधारने का काम किया है । कुल पड़े 251 वोटों में जगदीश अग्रवाल के पक्ष में कुल 107 वोट रहे, जबकि 144 वोट उनके खिलाफ पड़े - और इस तरह जगदीश अग्रवाल फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं चुने जा सके । जगदीश अग्रवाल के नजदीकियों ने इस स्थिति के लिए गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा, प्रमोद सेठ आदि पूर्व गवर्नर्स को जिम्मेदार ठहराया है । मजे की बात यह है कि पिछले लायन वर्ष में इन्हीं पूर्व गवर्नर्स ने जगदीश अग्रवाल को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनवाने/चुनवाने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगाया था - और उनकी उम्मीदवारी का नामांकन स्वीकार करवाने से लेकर लायंस इंटरनेशनल कार्यालय तक से उनके चुनाव को मंजूर करवाने में सक्रिय भूमिका निभाई थी । लेकिन जल्दी ही जगदीश अग्रवाल के इन लोगों के साथ संबंध खराब होने और सुनाई देने लगे । वरिष्ठ पूर्व गवर्नर गुरनाम सिंह के नजदीकियों के अनुसार, लायंस इंटरनेशनल कार्यालय से हरी झंडी मिलने के बाद जगदीश अग्रवाल के तेवर बिलकुल बदल गए थे, और उन्होंने गुरनाम सिंह को तवज्जो देना बंद कर दिया था । जगदीश अग्रवाल के इसी रवैये को देख कर गुरनाम सिंह ने उन्हें सबक सिखाने की ठान ली थी । खास बात यह रही कि गुरनाम सिंह ने जगदीश अग्रवाल को सबक सिखाने की योजना बहुत ही गुपचुप रूप से बनाई और अपनी योजना की खबर अपने 'हनुमान' विशाल सिन्हा को भी नहीं लगने दी । अब जो चर्चाएँ सुनने को मिल रही हैं, उनमें बात निकल कर आ रही है कि गुरनाम सिंह ने जगदीश अग्रवाल को सबक सिखाने के लिए एक तरफ तो संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ जैसे अपने खेमे के लोगों का साथ लिया, और दूसरी तरफ केएस लूथरा जैसे विरोधी खेमे के नेता की मदद ली ।
संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ ने जगदीश अग्रवाल के खिलाफ नेगेटिव वोटिंग करवाने के मामले में गुरनाम सिंह की मदद इस कारण से की बताई जा रही है, क्योंकि वह यह देख कर बुरी तरह नाराज रहे कि जगदीश अग्रवाल उन्हें कोई तवज्जो ही नहीं दे रहे हैं - और सिर्फ विशाल सिन्हा को ही नेता मान रहे हैं । कह सकते हैं कि जगदीश अग्रवाल एक तरह से गुरनाम सिंह खेमे के सदस्यों की आपसी लड़ाई के शिकार हो गए हैं - जिसमें एक तरफ विशाल सिन्हा और अनुपम बंसल और कमल शेखर हैं, तथा दूसरी तरफ संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ हैं । पिछले नौ/दस महीनों से देखने में आया कि जगदीश अग्रवाल ने संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ को तो किनारे लगा दिया, और विशाल सिन्हा व अनुपम बंसल के नजदीक रहे । इतने तक तो कोई बात नहीं थी, और जगदीश अग्रवाल के रवैये पर संजय चोपड़ा व प्रमोद सेठ खून का घूँट पीकर रह गए - लेकिन जगदीश अग्रवाल ने जब गुरनाम सिंह की भी अवहेलना शुरू कर दी, तब मामला बिगड़ गया । गुरनाम सिंह को एक तरफ तो जिमखाना क्लब की राजनीति में जगदीश अग्रवाल की तरफ से अपेक्षित सहयोग/समर्थन नहीं मिला, और दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट में भी उन्होंने देखा/पाया कि जगदीश अग्रवाल उन्हें उचित तवज्जो नहीं दे रहे हैं । जगदीश अग्रवाल के रवैये को लेकर संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ की नाराजगी के बारे में गुरनाम सिंह को जानकारी थी ही, सो उन्होंने इन दोनों को साथ लेकर जगदीश अग्रवाल को सबक सिखाने की योजना बना डाली ।
गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ ने अपनी योजना को इतने गुपचुप रूप से अंजाम दिया कि जगदीश अग्रवाल और उनके नजदीकियों व समर्थकों को कानों-कान खबर तक नहीं हुई, और इसीलिए जगदीश अग्रवाल के मामले में आये चुनावी नतीजे ने हर किसी को हैरान किया है । दरअसल गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा, प्रमोद सेठ की तिकड़ी को यह डर था कि उनकी योजना की पोल खुली तो विशाल सिन्हा कुछ नाटकबाजी करके उनकी योजना को फेल कर सकते हैं । असल में, लायन राजनीति में नेगेटिव वोटिंग वाले हथकंडे का शोर तो बहुत मचता है, लेकिन यह हथकंडा अमूमन सफल नहीं होता है । इससे पहले, मल्टीपल के डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू में नेगेटिव वोटिंग वाला हथकंडा कामयाब हुआ है, अन्यथा यह हथकंडा आमतौर पर फेल ही होता है । वास्तव में, इसीलिए गुरनाम सिंह, संजय चोपड़ा और प्रमोद सेठ ने इस हथकंडे को चुपचाप तरीके से अमल में लाने की कार्रवाई की । इसके पीछे एक और कारण यह भी रहा कि उनकी योजना यदि फेल हो जाती, तो उनके पास पड़ने वाले नेगेटिव वोटों का ठीकरा विरोधी खेमे नेताओं के सिर फोड़ने का मौका बना रहता । चर्चा है कि गुरनाम सिंह ने अपनी योजना को सफल बनाने के लिए विरोधी खेमे के नेता केएस लूथरा की भी मदद ली, और इन चारों ने इतने गुपचुप तरीके से जगदीश अग्रवाल के खिलाफ करीब 57 प्रतिशत नेगेटिव वोट डलवा दिए कि डिस्ट्रिक्ट के चुनावी परिदृश्य में हड़कंप सा मच गया है  । 

Sunday, May 17, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में अशोक अग्रवाल व ललित खन्ना ने सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में मुकेश अरनेजा से अपना अपना बदला लिया; और डिस्ट्रिक्ट में मुकेश अरनेजा की बदनामी का फायदा उठा कर उन्हें चुनाव हरवाया

नई दिल्ली । मुकेश अरनेजा सीओएल प्रतिनिधि का चुनाव तीन वोटों से हार गए । मुकेश अरनेजा की इस हार ने अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए होने वाले चुनाव के नजारे को दिलचस्प बना दिया है । मुकेश अरनेजा ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में झटके हालाँकि पहले भी खाए हैं, लेकिन इस हार का झटका उनके लिए खास इस मायने में हैं कि यह हार उन्हें अपने पुराने साथियों/सहयोगियों के मार्फत मिली है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी अशोक अग्रवाल और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी डेजिगनेटेड ललित खन्ना एक समय मुकेश अरनेजा के बड़े लाड़ले हुआ करते थे; और मुकेश अरनेजा की तमाम हरकतों में यह दोनों 'पार्टनर इन क्राइम' रहे हैं; मुकेश अरनेजा लेकिन उन लोगों में हैं जो 'क्राइम' करने के मामले में अपने पार्टनर्स को भी नहीं छोड़ते हैं - और इसी के चलते उन्होंने इन दोनों को भी नहीं बख्शा । इसीलिए इन दोनों ने सीओएल के चुनाव में मुकेश अरनेजा को ढेर करने का बीड़ा उठाया हुआ था । वास्तव में बीड़ा उठाया तो अशोक अग्रवाल ने था, ललित खन्ना तो मुकेश अरनेजा से अपनी खुन्नस निकालने के लिए अशोक अग्रवाल के साथ हो लिए । सीओएल के लिए मुकेश अरनेजा का चुनाव हुआ तो शरत जैन से - लेकिन बेचारे शरत जैन तो वास्तव में शिकार फाँसने के लिए बाँधी जाने वाली बकरी के रूप में थे । शरत जैन भले व्यक्ति हैं, और उनकी डिस्ट्रिक्ट में कोई राजनीतिक पहचान नहीं है । उन पर अंग्रेजी का वह मुहावरा फिट बैठता है, जिसमें कहा गया है - 'गुड फॉर नथिंग', यानि अच्छा तो है, पर किसी काम का नहीं है । इसीलिए माना/समझा जा रहा था कि मुकेश अरनेजा का चुनाव शरत जैन से नहीं है; उन्हें तो अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना से निपटना है । अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना को भी सीओएल के चुनाव के बहाने से मुकेश अरनेजा से अपना अपना हिसाब चुकता करने और बदला लेने का मौका मिल गया ।
अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना की जोड़ी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की भी मदद मिली - मुकेश अरनेजा जिनके गवर्नर वर्ष में डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर हैं । इससे समझा जा सकता है कि मुकेश अरनेजा ने किस हद तक अपने नजदीकियों को अपना दुश्मन बनाया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने सीओएल के चुनाव में यह तर्क देते हुए तटस्थ भूमिका निभाई कि उन्हें डेढ़/दो महीने बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी संभालनी है, और सभी को साथ लेकर डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के लिए काम करना है, इसलिए किसी एक उम्मीदवार के साथ जुड़ कर उन्हें डिस्ट्रिक्ट व रोटरी में पक्षपातपूर्ण माहौल नहीं बनाना चाहिए । मुकेश अरनेजा को एक अकेले निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन का समर्थन था । चुनावी नतीजे का आकलन करने वाले लोगों का कहना/मानना है कि सुभाष जैन का समर्थन न होता, तो मुकेश अरनेजा की हालत और भी बुरी होती । पिछले रोटरी वर्ष में अशोक अग्रवाल और अमित गुप्ता के बीच हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मुकेश अरनेजा और रमेश अग्रवाल ने अमित गुप्ता का समर्थन किया था, जिसके बावजूद अमित गुप्ता को 50 से भी कम वोट मिले थे । इसी से माना/समझा जा रहा है कि मुकेश अरनेजा के पास डिस्ट्रिक्ट में मुश्किल से दस से पंद्रह वोट ही हैं । ऐसे में, अकेले सुभाष जैन का समर्थन भी उनकी आखिर कितनी मदद करता ? सीओएल के चुनाव में सुभाष जैन की मदद ने मुकेश अरनेजा को बड़ी हार से जरूर बचा लिया और उनकी हार को मामूली अंतर से हुई 'सम्मानजनक हार' में शिफ्ट करके मुकेश अरनेजा को एक बड़ी फजीहत का शिकार होने से रोक लिया है । 
मुकेश अरनेजा की हार को लेकर कई लोगों को हालाँकि यह भी लगता है कि मुकेश अरनेजा और सुभाष जैन की जोड़ी अति-आत्मविश्वास के कारण भी सीओएल का चुनाव हार गई है । कई लोगों का कहना/बताना है कि इन दोनों ने अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना की सक्रियता को कम करके आँका और जीता-जिताया चुनाव गवाँ बैठे । अशोक अग्रवाल और ललित खन्ना ने इस चुनाव को किसी भी तरह से जीतने का जिम्मा लिया हुआ था, और हर तरह के हथकंडे अपनाए हुए थे; मुकेश अरनेजा और सुभाष जैन तथा उनके अन्य साथी लेकिन यही मानते/समझते रहे कि वह जीतने लायक वोट नहीं जुटा पायेंगे - किंतु अब जब नतीजा आया तो पता चला कि कुल दो वोटों की कमी से सीओएल का चुनाव उनके हाथ से निकल गया है । सीओएल के चुनावी नतीजे ने अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए होने वाले चुनाव के नजारे को खासा दिलचस्प बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में प्रियतोष गुप्ता की तथा नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए सुभाष जैन की उम्मीदवारी के सामने अभी कोई संकट नहीं देखा/पहचाना जा रहा है और माना/समझा जा रहा है कि इन दोनों के लिए सफलता पाना कोई मुश्किल नहीं होगा । किंतु सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में मिले चुनावी नतीजे से यह आशंका बढ़ गई है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में कुछ नए प्रयोग हो सकते हैं, जो चुनावी परिदृश्य को रोमांचक बनाए । देखना दिलचस्प होगा कि सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में मिले नतीजे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर सचमुच किस तरह से क्या प्रभाव डालेंगे ?

Friday, May 15, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव के मामले को गुपचुप रूप से क्रियान्वित करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा की कोशिशों ने लोगों को हैरान किया हुआ है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज तो उनके रवैये के चलते अपनी फजीहत होते हुए भी देख रहे हैं 

कुरुक्षेत्र । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज सीओएल (काउंसिल ऑन लेजिस्लेशन) प्रतिनिधि के चयन/चुनाव के मामले में अँधेरे में रखे जाने को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा से बुरी तरह खफा हैं । रमेश बजाज ने कुछेक मौकों पर अलग अलग लोगों से शिकायती स्वर में कहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने के बावजूद उन्हें यह नहीं पता है कि सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में क्या हो रहा है ? उन्होंने जितेंद्र ढींगरा से जब भी इस बारे में बात की, जितेंद्र ढींगरा ने बहानेबाजी करके बात को टाल दिया और कोई सीधा जबाव नहीं दिया । रमेश बजाज के नजदीकियों के अनुसार, रमेश बजाज को यह बात दरअसल इसलिए बुरी लगी है कि उनसे जब जब भी किसी ने सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर पूछा, तब तब उन्हें चुप रह जाना पड़ा और यह सोच कर शर्मिंदगी का सामना करना पड़ा - कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने के बावजूद उन्हें यही नहीं पता है कि सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर डिस्ट्रिक्ट में हो क्या रहा है ? रमेश बजाज के नजदीकियों के साथ-साथ दूसरों को भी यह बात समझना मुश्किल हो रही है कि रमेश बजाज तो जितेंद्र ढींगरा के खेमे के ही 'सदस्य' हैं, आखिर तब भी जितेंद्र ढींगरा उनसे उक्त मामले से जुड़ी कार्रवाई को छिपा क्यों रहे हैं ? उक्त मामले से जुड़ी कार्रवाई की बात जितेंद्र ढींगरा कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के दूसरे सदस्यों से छिपा रहे हैं, यह बात तो फिर भी लोगों की समझ में आ रही है, लेकिन अपने ही नजदीकी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज को भी वह उक्त मामले में अँधेरे में रख रहे हैं - इस बात पर हर किसी को हैरानी है ।
उल्लेखनीय है कि 30 जून 2020 तक प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट को रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय को अपने सीओएल प्रतिनिधि का नाम भेजना है । इसे लेकर प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव की सक्रियता है । अब जबकि तय समय सीमा को पूरा होने में करीब 45 दिन बचे हैं, डिस्ट्रिक्ट 3080 में सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर पूरी तरह अँधेरा छाया हुआ है । सीओएल प्रतिनिधि के लिए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ही उम्मीदवार हो सकते हैं; एक से ज्यादा उम्मीदवार होने की स्थिति में चुनाव होता है, जिसमें क्लब्स के प्रेसीडेंट वोट देते हैं । डिस्ट्रिक्ट 3080 में लेकिन नजारा यह है कि क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को तो छोड़िये, पूर्व गवर्नर्स तक को नहीं पता है कि सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर हो क्या रहा है । इस मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा से सीधा जबाव न मिलने पर लोग जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज से पूछते हैं, तो रमेश बजाज के लिए यह कहना/बताना भी मुश्किल हो जाता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने के बावजूद उन्हें भी उक्त मामले में कुछ नहीं पता है । मजे की बात यह है कि रमेश बजाज के नजदीकियों को ही लगता है कि जितेंद्र ढींगरा चूँकि रमेश बजाज को राजा साबू के नजदीक मानते/समझते हैं, इसलिए ही वह रमेश बजाज से बातें छिपाते हैं । इससे भी ज्यादा मजे की बात लेकिन यह है कि जितेंद्र ढींगरा जिन मनमोहन सिंह के साथ मिलकर सारी योजनाएँ बनाते हैं, उन्हें तो घोषित रूप में राजा साबू के नजदीक माना/पहचाना जाता है । इसलिए, जितेंद्र ढींगरा सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव में अपने खेमे के होने तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट होने के बावजूद रमेश बजाज को जिस तरह अँधेरे में रखे हुए हैं, उससे मामला कुछ ज्यादा ही रहस्यपूर्ण और विवादपूर्ण हो जाता है ।
जितेंद्र ढींगरा ने ही कुछेक मौकों पर बताया/कहा है कि राजा साबू ने भी उनसे पूछा था कि सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर क्या करना है, जिसके जबाव में जितेंद्र ढींगरा ने उनसे यह कहते हुए पीछा छुड़ाया कि समय आने पर तय करते हैं कि कैसे क्या करना है । जितेंद्र ढींगरा का कहना/बताना था कि यदि पहले से ही सीओएल प्रतिनिधि को लेकर चर्चा शुरू हो जायेगी, तो कई पूर्व गवर्नर उम्मीदवार बन जायेंगे और फिर चुनाव का झमेला खड़ा होगा । हालाँकि कई लोगों का कहना रहा कि चुनाव के झमेले के डर से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को उनके अधिकार से वंचित करने का प्रयास क्यों किया जाना चाहिए - और पूर्व गवर्नर्स को उम्मीदवार बनने का तथा क्लब्स के प्रेसीडेंट्स को वोट देने के अधिकार का इस्तेमाल करने देना चाहिए । जितेंद्र ढींगरा के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उनके ही कई नजदीकी सीओएल प्रतिनिधि चयन/चुनाव के मामले में अपनाये गए उनके रवैये से खुश नहीं हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज तो उनके रवैये के चलते अपनी फजीहत होते हुए भी देख रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट में कुछेक लोगों को लगता है कि जितेंद्र ढींगरा गुपचुप तरीके से मनमोहन सिंह को सीओएल प्रतिनिधि बनाना/चुनवाना चाहते हैं, और इसलिए ही सारी प्रक्रिया को ढँक कर रखने का काम कर रहे हैं । लोगों को लगता है कि सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव को लेकर उचित तरीके से प्रक्रिया का पालन यदि किया गया तो जितेंद्र ढींगरा के लिए मनमोहन सिंह को चुनवाना/बनवाना मुश्किल हो जायेगा, और इसीलिए वह ऐसे हालात बना देना चाहते हैं कि चुनाव का मौका ही न बन सके - और मनमोहन सिंह बिना चुनाव का सामना किए ही सीओएल प्रतिनिधि बन जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रमेश बजाज को भी इसीलिए वह सीओएल प्रतिनिधि के चयन/चुनाव जैसे महत्त्वपूर्ण मामले से अलग रखे हुए हैं ।

Thursday, May 14, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी की हार को वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जीएस धामा की जीत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; माना जा रहा है कि लगभग चमत्कारिक रूप से योगेश मोहन गुप्ता को जितवा कर जीएस धामा ने दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सफलता के ताले की चाबी अभी उन्हीं के पास है 

मेरठ । सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी की पराजय के नतीजे ने उनके नजदीकियों और समर्थकों को ही नहीं, बल्कि उनके विरोधियों को भी हैरान किया है । उनके विरोधियों का ही कहना/बताना है कि वोटिंग के दौरान यह तो दिखने लगा था कि संजीव रस्तोगी को अपने कुछेक नए नए बने 'समर्थकों' की तरफ से धोखा मिल रहा है - लेकिन फिर भी यह उम्मीद किसी को नहीं थी कि वह चुनाव हार जायेंगे । इससे भी ज्यादा हैरानी की बात यह है कि संजीव रस्तोगी की हार को वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जीएस धामा की जीत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के समीकरणों पर नजर रखने वालों का कहना/बताना है कि सीओएल का चुनाव हो भले ही संजीव रस्तोगी और योगेश मोहन गुप्ता के बीच रहा था - लेकिन जीएस धामा इस चुनाव को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति पर अपनी पकड़ जमाने और 'दिखाने' के अवसर के रूप में देख रहे थे, और इसके लिए उन्होंने बड़ी होशियारी से तैयारी की - इतनी होशियारी से कि किसी को उसकी भनक तक नहीं लगी । यही कारण रहा कि सीओएल के चुनाव में जीएस धामा को तटस्थ देखा/पहचाना जा रहा था । वोटिंग के दौरान कई मौकों पर यह चर्चा सुनाई तो दी कि जीएस धामा तो योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में वोट जुटाने के प्रयास कर रहे हैं, लेकिन जीएस धामा ने होशियारी और सावधानी से काम करते हुए चर्चा को ज्यादा मुखर नहीं होने दिया । अब लेकिन चर्चा है कि अशोक गुप्ता की तरफ से संजीव रस्तोगी को जो धोखा मिला, उसके पीछे जीएस धामा के ही प्रयास थे । समझा जाता है कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में समर्थन का भरोसा देकर जीएस धामा ने अशोक गुप्ता के वोट योगेश मोहन गुप्ता को दिलवाए । अपनी संभावित उम्मीदवारी के चक्कर में, विकास गोयल ने भी संजीव रस्तोगी का साथ छोड़ कर अपने वोट योगेश मोहन गुप्ता को दिलवाए ।
बहुत से लोगों के लिए समझना मुश्किल है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जीएस धामा को सबसे तगड़ा झटका योगेश मोहन गुप्ता ने ही दिया है, जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जीएस धामा के उम्मीदवार के रूप में संगीता कुमार को योगेश मोहन गुप्ता ने हराया था - आखिर तब फिर जीएस धामा ने सीओएल के चुनाव में योगेश मोहन गुप्ता को जितवाने के लिए काम क्यों किया ? डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को जानने/समझने वाले लोगों का मानना और कहना है कि वह बात अब पुरानी हो चुकी है - और जीएस धामा की नजर अब मौजूदा परिदृश्य पर है । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में पिछले कुछेक वर्षों से जीएस धामा का सिक्का चल रहा है; देखा/पाया गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जिस उम्मीदवार को जीएस धामा का समर्थन मिलता है, वह चुनाव में विजयी होता है । लेकिन इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में जीत का 'मुकुट' जीएस धामा को संजीव रस्तोगी के साथ 'शेयर' करना पड़ा । दरअसल डीके शर्मा को संजीव रस्तोगी के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । हालाँकि नॉन डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के दौरान डीके शर्मा को रोटरी इंटरनेशनल से 'न्याय' दिलवाने के मामले में भी जीएस धामा ने काफी प्रयास किए थे, और इस वर्ष हुए चुनाव में डीके शर्मा की जीत को सुनिश्चित करने/करवाने में भी जीएस धामा की बड़ी भूमिका थी - लेकिन डीके शर्मा की जीत के मामले में 'नाम' संजीव रस्तोगी का हुआ, जिससे संजीव रस्तोगी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के नेता बनते हुए दिखे । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव लड़ने की तैयारी करने वाले अशोक गुप्ता और विकास गोयल को संजीव रस्तोगी के साथ नजदीकी बनाते हुए देखा/पहचाना गया ।
यह सब देख/जान कर ही जीएस धामा को संजीव रस्तोगी की राजनीतिक उड़ान को 'कट टु साइज' करना जरूरी लगा । उन्हें लगा कि सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी यदि जीत गए तो फिर डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में उनका कद और बड़ा हो जायेगा । जीएस धामा को लगा कि योगश मोहन गुप्ता की डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जिस तरह की बदनामी है, उसके भरोसे योगेश मोहन गुप्ता से तो वह कभी भी निपट लेंगे - फिलहाल उनके लिए संजीव रस्तोगी के बढ़ते कदमों को रोकना जरूरी है । इसलिए ही, योगेश मोहन गुप्ता के पुराने 'गुनाह' को भूलकर जीएस धामा ने बड़ी चतुराई से एक तरफ तो अशोक गुप्ता तथा विकास गोयल जैसे संजीव रस्तोगी के नए नए बने समर्थकों को तोड़ने का काम किया, और दूसरी तरफ मुरादाबाद, मुजफ्फरनगर, चंदौसी आदि के ऐसे लोगों को योगेश मोहन गुप्ता के पक्ष में वोट देने के लिए राजी किया - जो अलग अलग कारणों से योगेश मोहन गुप्ता से नाराज थे । लगभग चमत्कारिक रूप से योगेश मोहन गुप्ता की जीत को सुनिश्चित करवा कर जीएस धामा ने दिखा दिया है कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में सफलता के ताले की चाबी अभी उन्हीं के पास है । संजीव रस्तोगी की हैरान करने वाली पराजय ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरि गुप्ता पर पनौती का दाग और लगा दिया है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों को कहने का मौका मिला है कि हरि गुप्ता जिसके साथ होते हैं, वह तमाम अनुकूल स्थितियों के बावजूद चुनाव हार जाता है । हरि गुप्ता ने दो चुनावों में दीपा खन्ना की उम्मीदवारी का समर्थन किया, फिर वह अशोक गुप्ता की उम्मीदवारी के समर्थक हुए, और सीओएल के चुनाव में संजीव रस्तोगी को उनका समर्थन मिला - और नतीजा पहले जैसा ही रहा ।

Saturday, May 9, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रोटरी के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को करने के नाम पर महज खानापूर्ति करने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को उम्मीद है कि रोटरी फाउंडेशन जूम सेमीनार में रमेश अग्रवाल एकेएस सदस्यता का अपना बकाया चुकाने की घोषणा जरूर कर देंगे

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को पूरा यकीन है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल 16 मई को होने वाले रोटरी फाउंडेशन जूम सेमीनार में एकेएस (आर्च क्लम्प सोसायटी) सदस्यता की बकाया रकम मौजूदा रोटरी वर्ष में ही चुकाने की घोषणा कर देंगे, और अब की बार गच्चा नहीं देंगे ? उल्लेखनीय है कि एकेएस सदस्यता के लिए दी जाने वाली रकम का बकाया रमेश अग्रवाल को पिछले रोटरी वर्ष में ही चुकाना था, लेकिन जो उन्होंने नहीं चुकाया था । आधिकारिक रूप से तो रमेश अग्रवाल ने इसका कोई कारण नहीं बताया था, लेकिन अनौपचारिक रूप से उनकी तरफ से सुनने को मिला था कि एकेएस सदस्यता की रकम का बकाया यदि वह अब देंगे, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुभाष जैन के गवर्नर-वर्ष में रोटरी फाउंडेशन में ज्यादा रकम जमा होने का रिकॉर्ड बनेगा - इसलिए वह इस वर्ष की बजाये अगले वर्ष, यानि दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष में बकाया रकम चुकायेंगे । दीपक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष के भी दस महीने बीत चुके हैं, लेकिन रमेश अग्रवाल ने एकेएस सदस्यता की बकाया रकम चुकाने का नाम नहीं लिया है । रमेश अग्रवाल द्वारा बकाया चुकाये जाने को लेकर दीपक गुप्ता को दो कारणों के चलते दिलचस्पी है - एक तो इसलिए, क्योंकि रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों की तरफ से उन पर भी दबाव है कि बकाया रकम देने में आनाकानी कर रहे रमेश अग्रवाल से बकाया रकम दिलवाएँ; दीपक गुप्ता को लगता है कि रमेश अग्रवाल इस वर्ष यदि उक्त बकाया चुका देते हैं, तो रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के बीच उनका भी रौब बनेगा। दूसरा कारण यह कि रमेश अग्रवाल बकाये की जो रकम चुकायेंगे, वह रोटरी फाउंडेशन के लिए इस वर्ष जमा होने वाली रकम में जुड़ेगी और इस तरह दीपक गुप्ता का रिकॉर्ड बनेगा ।
उल्लेखनीय है कि रमेश अग्रवाल ने वर्ष 2016 में एकेएस की सदस्यता के लिए फार्म भरा था । रमेश अग्रवाल के अलावा डिस्ट्रिक्ट के दो और सदस्य - जेके गौड़ तथा सुभाष जैन भी एकेएस सदस्य हैं । इन दोनों की तरफ से लेकिन एकेएस सदस्यता की पूरी रकम जमा हो चुकी है, और एक अकेले रमेश अग्रवाल पर ही सदस्यता राशि का बकाया बचा हुआ है । यूँ तो, एकेएस सदस्यता के लिए रोटरी फाउंडेशन के बड़े पदाधिकारियों के सामने दीपक गुप्ता ने भी सहमति दी हुई है, लेकिन उन्होंने इसके लिए चूँकि फार्म नहीं भरा है - इसलिए एकेएस सदस्यता का पैसा न चुकाने का आरोप उन पर नहीं लगाया जा सकता है । उनके बारे में यही कहा जा सकता है कि रोटरी फाउंडेशन के पदाधिकारियों के सामने रोटरी के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और अपनी अमीरी की शान दिखाने के लिए उन्होंने एकेएस सदस्यता के लिए सहमति तो दे दी, लेकिन जब सचमुच पैसे देने की बारी आई तो मुँह छिपाने लगे । हालाँकि यह कोई अनोखी और हैरान करने वाली बात नहीं है - रोटरी में इस तरह की 'गालबजाने' वाली हरकतें बहुत से रोटेरियंस करते हैं, और दीपक गुप्ता तो इस 'कला' में बड़े एक्सपर्ट हैं ।
एकेएस सदस्यता के बकाये का मामला दरअसल 16 मई को 'डूइंग गुड इन द वर्ल्ड' शीर्षक से आयोजित होने  रहे रोटरी फाउंडेशन जूम सेमीनार के कारण उठा है । असल में, हर किसी को हैरानी है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता  कार्यकाल जब खत्म होने जा रहा है, तब उनके द्वारा किए जा रहे इस सेमीनार का औचित्य भला क्या है ? रोटरी इंटरनेशनल की व्यवस्था के अनुसार, यह सेमीनार डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को अपना कार्यकाल शुरू होने दिनों में करना होता है । रोटरी फाउंडेशन की रोटरी में बड़ी महत्ता है; रोटरी फाउंडेशन वास्तव में रोटरी की जान है - इसलिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से उम्मीद की जाती है कि अपना कार्यकाल शुरू होते ही वह अपने प्रेसीडेंट्स तथा अन्य पदाधिकारियों को रोटरी फाउंडेशन के बारे में शिक्षित करेगा, ताकि प्रेसीडेंट्स व अन्य पदाधिकारी रोटरी फाउंडेशन को 'मजबूत' करने को लेकर सक्रिय हों । जाहिर है कि गवर्नर वर्ष के अंतिम दिनों में रोटरी फाउंडेशन को लेकर सेमीनार करने का कोई अर्थ नहीं रह जाता है । लेकिन दीपक गुप्ता को इस बात से जैसे कोई मतलब नहीं है, उन्हें तो बस रिकॉर्ड पूरा करना है - ताकि वह 'दिखा' सकें कि उन्होंने सारे काम किए हैं । यही उन्होंने मेंबरशिप सेमीनार के साथ किया । मेंबरशिप सेमीनार भी गवर्नर वर्ष के शुरू में होता है, जिसे दीपक गुप्ता ने अभी हाल ही में किया है । रोटरी के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रमों को करने के नाम पर महज खानापूर्ति करते हुए दीपक गुप्ता को यह उम्मीद जरूर है कि रोटरी फाउंडेशन जूम सेमीनार में रमेश अग्रवाल एकेएस सदस्यता का अपना बकाया चुकाने की घोषणा जरूर कर देंगे, जिससे उन्हें भी बकाया न देने पर होने वाली लानत-मलानत से छुटकारा मिल जायेगा और दीपक गुप्ता का रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम इकट्ठा करने का रिकॉर्ड बन जायेगा । देखना दिलचस्प होगा कि दीपक गुप्ता की उम्मीद पूरी होती है, या रमेश अग्रवाल से उन्हें गच्चा ही मिलता है । 

Wednesday, May 6, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में चले रोटरी ब्लड बैंक प्रकरण के कारण, 'विनोद बंसल के उम्मीदवार' का टैग अजीत जालान की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की दूसरी बार की उम्मीदवारी के लिए अभिशाप बनता दिख रहा है  

नई दिल्ली । विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से जिन हालात में और जिस तरह से हटाया या हटना पड़ा है, उसके कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में अजीत जालान की मुश्किलें खासी बढ़ गई हैं । रोटरी ब्लड बैंक के घटनाक्रम के कारण अजीत जालान की उम्मीदवारी के लिए विनोद बंसल वैसी ही मुसीबत बन गए हैं, जैसी मुसीबत अशोक कंतूर के लिए रवि चौधरी बन गए थे । अशोक कंतूर ने तो रवि चौधरी से आसानी से पीछा छुड़ा लिया था और वह अपनी उम्मीदवारी को कामयाबी की संभावना की पटरी पर ले आए थे, लेकिन अजीत जालान के लिए विनोद बंसल की छाया से पीछा छुड़ाना उतना आसान नहीं होगा । अजीत जालान के नजदीकियों और शुभचिंतकों का भी मानना और कहना है कि लेकिन यदि अजीत जालान, विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में ही देखे/पहचाने जाते रहे - तो फिर अगले रोटरी वर्ष में भी जीतने की उम्मीद छोड़ दें । अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए तीन उम्मीदवार तैयारी करते देखे/सुने जा रहे हैं - अजीत जालान, महेश त्रिखा और पुष्पा सेठी । त्रिकोणीय चुनाव में दूसरी वरीयता के वोटों का बड़ा महत्त्व हो जाता है । अशोक कंतूर की इस वर्ष हुई जीत में दूसरी वरीयता वोटों की बड़ी भूमिका थी । अजीत जालान दूसरी वरीयता के वोट पाने के मामले में चूँकि फिसड्डी रहे, इसलिए बुरी तरह हार गए । विनोद बंसल के समर्थन के बावजूद, अजीत जालान को जब इस वर्ष ही दूसरी वरीयता के वोटों का टोटा रहा; तो ब्लड बैंक के प्रकरण के बाद, विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में तो अजीत जालान को वोट जुटाना और भी मुश्किल हो जायेगा ।
रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से हटाए जाने या हटने के बाद, विनोद बंसल ने हमदर्दी जुटाने के उद्देश्य से अपनी उपलब्धियों का बखान करते हुए जो पत्र लिखा, उसके जबाव में कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने उन्हें आईना दिखाते हुए जो पत्र लिखे हैं - उनसे संकेत मिलता है कि अपने व्यवहार और अपने तौर-तरीकों से विनोद बंसल ने अपने डिस्ट्रिक्ट में अपनी जो हालत खराब कर ली है, वह जल्दी सुधरने वाली नहीं है । विनोद बंसल की यह स्थिति, उनके उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जाने वाले अजीत जालान की मुश्किलों को बढ़ाने का काम करती है; और इसीलिए अजीत जालान के नजदीकियों तथा शुभचिंतकों को लग रहा है कि अजीत जालान को जल्दी से जल्दी 'विनोद बंसल के उम्मीदवार' की पहचान से पीछा छुड़ा लेना चाहिए । अजीत जालान ने हाल-फिलहाल के दिनों में एक अच्छा काम किया है कि उन्होंने अपने विरोधियों से बातचीत करना शुरू किया है, तथा उन लोगों का समर्थन जुटाने का प्रयास किया है - जो इस वर्ष अशोक कंतूर के साथ थे । ऐसे लोगों में विनय भाटिया का नाम लिया जा रहा है । अशोक कंतूर के समर्थकों को हालाँकि पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के समर्थकों के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, लेकिन अजीत जालान के नजदीकियों का दावा है कि अशोक कंतूर के एक समर्थक रहे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया का समर्थन अजीत जालान की उम्मीदवारी को मिलना पक्का हो गया है, जो उन्हें फरीदाबाद के क्लब्स के वोट दिलवाने में मदद करेंगे ।
महेश त्रिखा की इस बार के चुनाव में जो स्थिति रही, उसे देख कर उनके समर्थकों के बीच निराशा तो है - लेकिन चूँकि वह अजीत जालान या पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के साथ नहीं जा सकते हैं, इसलिए उनकी मजबूरी है कि वह महेश त्रिखा के साथ ही रहें । महेश त्रिखा के समर्थक रहे कुछेक लोग हालाँकि पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी में भविष्य देखने की कोशिश तो कर रहे हैं, लेकिन पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी के अभियान को वह चूँकि कमजोर देख/पा रहे हैं, इसलिए उन्हें लग रहा है कि उन्हें महेश त्रिखा की उम्मीदवारी के अभियान को आगे बढ़ाने को लेकर तैयारी करना चाहिए । महेश त्रिखा और पुष्पा सेठी की उम्मीदवारी की तैयारियों में कमजोरी देख/भाँप कर अजीत जालान और उनके नजदीकियों को अगले रोटरी वर्ष में अपने लिए अच्छा मौका नजर आ रहा है, लेकिन 'विनोद बंसल के उम्मीदवार' का टैग उनके 'मौके' को धूल में मिलाता दिख रहा है । वह समझ रहे हैं कि इस टैग के चलते अजीत जालान के लिए महेश त्रिखा और पुष्पा सेठी के वोटरों के दूसरी वरीयता के वोट प्राप्त कर पाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव ही होगा । समस्या की बात यह है कि अजीत जालान के लिए यह टैग जितना मुसीबतभरा है, इससे पीछा छुड़ाना उससे भी ज्यादा मुसीबतभरा है । दरअसल उक्त टैग ही अजीत जालान की पहचान है, किंतु रोटरी ब्लड बैंक के प्रकरण चलते यह पहचान ही उनके लिए अभिशाप बनती दिख रही है ।   

Tuesday, May 5, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए सुनीता बंसल की उम्मीदवारी का झंडा जितेंद्र चौहान खेमे के पास जाने से, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह को भड़कता देख तरुण अग्रवाल को अपनी उम्मीदवारी के लिए मौका बनता नजर आ रहा है

आगरा । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में तरुण अग्रवाल द्वारा दिखाए जा रहे तेवर सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के चुनावी समीकरणों को बिगाड़ते दिख रहे हैं, और उनके नजदीकियों को भी लगने लगा है कि इस वर्ष आसानी से बनता दिख रहा सुनीता बंसल का काम खासी बड़ी मुश्किल में फँस गया है । इस बीच हालाँकि जितेंद्र चौहान और उनके नजदीकी छह गवर्नर्स ने सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के समर्थन की स्पष्ट घोषणा कर दी है । लेकिन लग रहा है कि इससे सुनीता बंसल के लिए मामला आसान होने की बजाए - और मुसीबतभरा हो गया है । दरअसल जितेंद्र चौहान और उनके छह साथी गवर्नर्स का बयान सामने आने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह की तरफ से सुनीता बंसल के लिए मुश्किलें खड़ी करने वाले संकेत मिलते दिख रहे हैं । जितेंद्र चौहान तथा उनके छह साथी गवर्नर्स द्वारा जारी बयान में कुछेक वरिष्ठ पदाधिकारियों पर सुनीता बंसल से 'अनड्यू फेवर्स' लेने का जो आरोप लगाया गया है, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह उससे बुरी तरह नाराज हुई हैं और इसे सीधे सीधे अपने ऊपर हमले के रूप में देख रही हैं । उन्होंने और उनके नजदीकियों ने उक्त बयान से मतलब निकाला है कि सुनीता बंसल ने जैसे अपनी उम्मीदवारी का झंडा जितेंद्र चौहान तथा उनके साथियों को सौंप दिया है । चुनावी राजनीति के हिसाब-किताब में जितेंद्र चौहान तथा उनके साथियों का पलड़ा भारी जरूर है, लेकिन मधु सिंह का रवैया सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के रास्ते में रोड़ा बिछाता दिख रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह और उनके नजदीकी दरअसल जितेंद्र चौहान और उनके साथी गवर्नर्स के सुनीता बंसल की उम्मीदवारी का समर्थन करने की घोषणा से बौखला गए हैं । इससे पहले तक, मधु सिंह और उनके नजदीकी सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को अपनी सरपरस्ती में रखने की कोशिश कर रहे थे । मजे की बात यह हो रही थी कि वह सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के लिए जितेंद्र चौहान और उनके साथी गवर्नर्स का समर्थन भी चाह रहे थे, क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता था कि जितेंद्र चौहान तथा उनके साथी गवर्नर्स के समर्थन के बिना सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को सफलता दिलवाना असंभव ही होगा - लेकिन सुनीता बंसल की उम्मीदवारी की बागडोर अपने ही हाथ में रखना चाह रहे थे, ताकि उम्मीदवार से मिलने वाले सारे 'फायदे' वह अकेले ही हड़प सकें । इस बीच मधु सिंह और उनके नजदीकियों ने उम्मीदवार के रूप में सुनीता बंसल की तरफ से मिलने वाले 'फायदों' को सिकुड़ते देखा, तो उनका माथा ठनका और उन्हें लगा कि सुनीता बंसल 'मुफ्त' में ही (सेकेंड वाइस) डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनना चाहती हैं । सुनीता बंसल के पारिवारिक बिजनेस के घटने/घाटे की खबरों/सूचनाओं के चलते मधु सिंह और उनके नजदीकियों की आशंका और बढ़ी, जिसके कारण सुनीता बंसल की उम्मीदवारी का बने रहना भी संदेह के घेरे में आ गया । आशंकाओं और संदेहों के कारण तथा उम्मीदवार के रूप में सुनीता बंसल पर दबाव बनाये रखने के उद्देश्य से तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी सामने आ गई । सिर्फ सुनीता बंसल पर दबाव बनाने का ही मामला यदि होता, तो मधु सिंह और उनके नजदीकियों का 'काम' अनिल अग्रवाल की उम्मीदवारी से ही चल जाता; लेकिन सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को लेकर पैदा हुए संदेह के कारण उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को आगे लाना/बढ़ाना पड़ा ।
मधु सिंह और उनके नजदीकियों को तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को लाने/बढ़ाने में दो फायदे नजर आये - एक तो उन्हें सुनीता बंसल का विकल्प मिला, और दूसरा तरुण अग्रवाल को जितेंद्र चौहान तथा उनके साथियों  का समर्थन मिलता - जिससे तरुण अग्रवाल की जीत सुनिश्चित होती । तरुण अग्रवाल चूँकि जितेंद्र चौहान के सबसे नजदीकी पारस अग्रवाल के क्लब के सदस्य हैं, और तरुण अग्रवाल व पारस अग्रवाल की पुरानी दोस्ती है, दोनों के बीच घनिष्ठ पारिवारिक संबंध रहे हैं और दोनों परिवारों का साथ-साथ घूमना-फिरना रहा है - इसलिए तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को पारस अग्रवाल तथा जितेंद्र चौहान का समर्थन स्वतः ही मान लिया गया । तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को क्लब में जिस आसानी और सहजता से हरी झंडी मिल गई, उससे मान लिया गया कि पारस अग्रवाल की अनुमति व सहमति से ही उन्हें हरी झंडी मिली है । जितेंद्र चौहान और पारस अग्रवाल तथा उनके समर्थक गवर्नर्स ने जब सुनीता बंसल की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाला संदेश निकाला, तब तक बहुत देर हो चुकी थी - और लोगों के बीच तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी को जितेंद्र चौहान व पारस अग्रवाल के समर्थन की धारणा बन/बैठ चुकी थी । उसके बाद, तरुण अग्रवाल और पारस अग्रवाल की तरफ से तथ्यों को उद्घाटित करते जो मैसेज आए - उससे यह तो साबित हो गया कि जितेंद्र चौहान और पारस अग्रवाल का समर्थन सुनीता बंसल की उम्मीदवारी को है; लेकिन उससे चुनावी राजनीति की जमीन पर इतना रायता फैल गया कि उसमें सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के कदम फिसलते नजर आ रहे हैं । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के फिसलते कदमों में तरुण अग्रवाल को चूँकि अपनी उम्मीदवारी के लिए रास्ता बनता दिख रहा है, इसलिए उन्होंने भी अपनी सक्रियता को संयोजित करना शुरू कर दिया है । सुनीता बंसल की उम्मीदवारी के झंडे पर कब्जे को लेकर जितेंद्र चौहान खेमे तथा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह के बीच जो तलवारें खिंची दिख रही हैं, उसमें इन दोनों के विरोधी गवर्नर्स को राजनीति करने का मौका मिल रहा है - और इस कारण से तरुण अग्रवाल की उम्मीदवारी तथा उनकी सक्रियता का महत्त्व बढ़ गया है । हालात हालाँकि अभी भी अस्पष्ट हैं, और अभी भी यह कहना मुश्किल है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की राजनीति का ऊँठ किस करवट बैठेगा - लेकिन यह बात जरूर सच लग रही है कि मौजूदा हालात में सुनीता बंसल की राह मुश्किल हो गई है ।

Monday, May 4, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल की सजा के रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में माफ न हो पाने के कारण डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' की कमेटी में उन्हें पद मिलने का मुद्दा सवालों के घेरे में फँसा 

जयपुर । बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी के आरोप में रोटरी में ग्रांट्स, अवॉर्ड्स, असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा पाए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल अग्रवाल को रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से एक बार फिर झटका लगा है - और उनकी सजा माफी की उम्मीद धूल में मिल गई है । उल्लेखनीय है कि अनिल अग्रवाल को पूरी पूरी उम्मीद थी कि अभी हाल ही में संपन्न हुईं रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तथा रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टीज की मीटिंग में उनकी सजा माफ हो जाएगी - और फिर वह चौड़े होकर घूमेंगे तथा उन्हें रोटरी में 'छिपछिपाकर' नहीं रहना पड़ेगा । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की अभी हाल ही में संपन्न हुई मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट 2981 के पूर्व गवर्नर ए मणि को सजा मुक्त करने का फैसला तो हुआ है, लेकिन अनिल अग्रवाल को सजा से माफी अभी नहीं मिली है । अनिल अग्रवाल हालाँकि खुशकिस्मत हैं कि रोटरी इंटरनेशनल ने उन्हें असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा भले ही सुनाई हुई हो, (इस संबंध में रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय द्वारा जारी किया गया पत्र इस रिपोर्ट के अंत में पढ़ा जा सकता है) लेकिन डिस्ट्रिक्ट में और 'रोटरी इंडिया' की कमेटी में उन्हें असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स मिल गए हैं । इन असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से अनिल अग्रवाल बड़े खुश भी हैं, और उनके कुछेक दोस्त/यार उन्हें इसके लिए बधाई भी दे रहे हैं - लेकिन यह खुशी और बधाई आधी/अधूरी सी है, और थोड़ी शर्मिंदगी के साथ ही व्यक्त की जा रही है ।
दरअसल अनिल अग्रवाल का मामला उस 'अपराधी' जैसा है, जिसे अदालत ने तो जेल की सजा सुनाई हुई है - लेकिन जिसने जुगाड़बाजी से पैरोल या जेल में सुख/सुविधाओं की 'व्यवस्था' कर ली है; व्यवस्था तो उसने कर ली, किंतु इसका फायदा वह चोरीछिपे ही उठाता है - उसे डर होता है कि 'पकड़े' जाने पर उससे यह 'व्यवस्था' छिन सकती है । अनिल अग्रवाल को वैसा तो कोई डर नहीं है; क्योंकि वह जानते हैं कि रोटरी इंटरनेशनल से असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा सुनाये जाने के बाद भी जिन पदाधिकारियों ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट में और 'रोटरी इंडिया' में असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स दिए हैं, उन्हें रोटरी की वैल्यूज, रोटरी के आदर्शों और रोटरी के नियमों आदि की कोई परवाह नहीं है - रोटरी को लेकर वह बातें चाहें कितनी ही बड़ी बड़ी करते रहते हों, लेकिन व्यावहारिक रूप से उनमें कोई नैतिक बल नहीं है और वह बूढ़ों, बीमारों, गरीबों और अनपढ़ों की मदद के नाम पर ली गई करीब 20 लाख रुपए की ग्लोबल ग्रांट की घपलेबाजी के आरोप में सजा पाए अनिल अग्रवाल के सामने समर्पण करते हुए ही दिखेंगे । अनिल अग्रवाल की चिंता और समस्या लेकिन दूसरी है - और वह यह कि डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' की कमेटीज के पदाधिकारी के रूप में वह जब लोगों के बीच जायेंगे, तो लोग उनसे पूछ सकते हैं कि रोटरी फाउंडेशन के पैसों में गड़बड़ी करने के मामले में 'सजायाफ्ता' होने के चलते वह कैसे उनके लीडर या मास्टर हो सकते हैं; रोटेरियंस को इस बात पर भी आपत्ति हो सकती है कि रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाया हुआ एक व्यक्ति कैसे उन्हें रोटरी के बारे में कोई पाठ पढ़ा सकता है ? दरअसल इसी डर के चलते, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट राजेश अग्रवाल की डिस्ट्रिक्ट टीम में असाइनमेंट व अपॉइंटमेंट पाने के बावजूद अनिल अग्रवाल अपने आपको राजेश अग्रवाल के आयोजनों से दूर रखे हुए हैं ।
अनिल अग्रवाल के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों का भी मानना और कहना है कि अनिल अग्रवाल को जुगाड़बाजी से डिस्ट्रिक्ट तथा 'रोटरी इंडिया' की कमेटी में पद नहीं लेना चाहिए था; और डिस्ट्रिक्ट तथा 'रोटरी इंडिया' के पदाधिकारियों को भी तब तक उन्हें कोई पद नहीं देना चाहिए था - जब तक कि उनकी सजा या तो पूरी नहीं हो जाती या माफ न हो जाती है । रोटेरियंस का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' के पदाधिकारियों ने अनिल अग्रवाल को असाइनमेंट व अपॉइंटमेंट देकर वास्तव में एक गलत परंपरा डाली है; इससे अब हर जुगाड़ु पदाधिकारी आश्वस्त रहेगा कि वह रोटरी में चाहें कितनी ही बड़ी घपलेबाजी कर ले, और उसके लिए रोटरी इंटरनेशनल से भले ही उसे सजा मिल जाये - लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' की टीम में उसे पद मिल ही जायेंगे । रोटरी इंटरनेशनल से असाइनमेंट्स व अपॉइंटमेंट्स से वंचित रखने की सजा पाये अनिल अग्रवाल को असाइनमेंट व अपॉइंटमेंट देने के बाद डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' के पदाधिकारी दूसरे रोटेरियंस से भला कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि वह अपना अपना काम ईमानदारी से करेंगे और अपनी बेईमानी तथा लूटखसोट की कार्रवाईयों से रोटरी को खोखला व बदनाम नहीं करेंगे ? इसी 'स्थिति' से पैदा होने वाली शर्मिंदगी तथा जलालत से अपने आप को तथा रोटरी में अपने गॉडफादर्स को बचाने के लिए अनिल अग्रवाल ने जुगाड़ तो लगाया था कि अप्रैल के आखिरी सप्ताह में संपन्न होने वाली रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स तथा रोटरी फाउंडेशन ट्रस्टीज की मीटिंग में उनकी सजा माफ हो जाने का फैसला हो जायेगा - लेकिन रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पदाधिकारियों ने अभी उन्हें निराश ही किया है । इसके चलते डिस्ट्रिक्ट और 'रोटरी इंडिया' की कमेटी में असाइनमेंट व अपॉइंटमेंट पाने की उनकी खुशी फीकी ही पड़ गई है । 



रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता की इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या द्वारा 'पदीय मजबूरी' में की गई तारीफ को सचमुच की तारीफ समझ कर, उनकी मदद से आलोक गुप्ता के आयोजन को रद्द करवाने की कोशिश, उनकी दोहरी फजीहत का कारण बनी     

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता को एक बार फिर आलोक गुप्ता से भिड़ना भारी पड़ गया, और वह अपनी फजीहत करवा बैठे । मजे की बात रही कि इस बार आलोक गुप्ता से भिड़ने के लिए दीपक गुप्ता ने इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद लेने की भी कोशिश की, लेकिन भरत पांड्या से मदद न मिलने के कारण दीपक गुप्ता को दोहरी फजीहत झेलना पड़ी । दीपक गुप्ता ने भरत पांड्या की मदद किस भरोसे लेने की कोशिश की, इसकी कहानी भी खासी दिलचस्प है - इसलिए पहले वह सुन लीजिये, मूल मुद्दे की बात उसके बाद करते हैं : कुछ ही दिन पहले दीपक गुप्ता ने अपने प्रेसीडेंट्स तथा अपनी टीम के कुछेक सदस्यों के साथ जूम पर एक मीटिंग की, जिसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या भी आमंत्रित किए गए थे । उक्त मीटिंग में दीपक गुप्ता ने अपने गवर्नर-वर्ष में हुए कार्यों का ब्यौरा देते हुए अपनी उपलब्धियों को लेकर खूब डींगें मारी और दावा किया कि उनके जैसा काम करने वाला गवर्नर डिस्ट्रिक्ट में न पहले कभी हुआ है, और जैसे जैसे लोग गवर्नर बन रहे हैं, उन्हें देखते हुए कहा जा सकता है कि अगले तीन-चार वर्ष तो कोई उनके जैसा काम नहीं ही कर पायेगा । मीटिंग में मौजूद प्रेसीडेंट्स तथा दूसरे पदाधिकारियों ने दीपक गुप्ता की 'पतंगबाजी' को तो झेल लिया, लेकिन उनका माथा तब चकराया - जब इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या ने भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में दीपक गुप्ता के कार्यों की जोरशोर से तारीफ की । भरत पांड्या के मुँह से दीपक गुप्ता के कार्यों की तारीफ सुनकर मीटिंग में मौजूद प्रेसीडेंट्स तथा दूसरे पदाधिकारी भौंचक रह गए - उन्हें आश्चर्य हुआ कि दीपक गुप्ता की टीम के सदस्य होने के बावजूद उन्हें तो दीपक गुप्ता के किसी उल्लेखनीय या प्रशंसनीय काम की जानकारी है नहीं, तब फिर दूर बैठे इंटरनेशनल डायरेक्टर साहेब को उनके कौन से काम नजर आ गए, जिनके आधार पर वह दीपक गुप्ता की इतने जोरशोर से तारीफ कर रहे हैं ?
तमाम माथापच्ची करने के बाद भी दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को जब अपने इस आश्चर्य का जबाव नहीं समझ में आया, तो उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कुछेक वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों से इस बारे में बात की । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें 'ज्ञान' दिया कि रोटरी की बहुत सारी बातें तो आप पेट्स तथा दूसरे ट्रेनिंग सेमिनार्स में जानते/सीखते/समझते हैं, लेकिन रोटरी की दो बातें आप अपने अनुभव से सीखते हैं - एक 'गाल बजाना' और दूसरी 'पीठ थपथपाना' । वरिष्ठ सदस्यों/पदाधिकारियों ने उन्हें बताया कि रोटरी में बहुत से लोग 'गाल बजाने' की कला में बड़े निपुण होते हैं; वह काम ज्यादा नहीं करेंगे, लेकिन गायेंगे ज्यादा । दीपक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट के लोग तो उनकी तारीफ करते नहीं हैं, इसलिए बेचारे को अपनी तारीफ खुद ही करना पड़ती है । दूसरी तरफ, रोटरी में हर बड़े पदाधिकारी को 'पीठ थपथपाने' के अलिखित नियम का पालन करना होता है । वह अच्छी तरह जानता है कि जिसने उसे अपने कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बुलाया है, वह महानिकम्मा है - लेकिन उसकी 'पदीय मजबूरी' होती है कि वह यह कह नहीं सकता है । इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के नाते भरत पांड्या की यह 'पदीय मजबूरी' है कि वह जिस भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के कार्यक्रम में जाएँ, उसकी भूरी-भूरी प्रशंसा करें - दीपक गुप्ता द्वारा बुलाई गई मीटिंग में शामिल हुए तो उन्हें दीपक गुप्ता की प्रशंसा वाले शब्द कहने ही थे - सुनने वालों को उनकी बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए, और उनकी 'पदीय मजबूरी' को समझना चाहिए । दीपक गुप्ता की टीम के सदस्यों को तो माजरा समझ में आ गया, लेकिन लगता है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या के प्रशंसाभरे शब्दों को दीपक गुप्ता ने गंभीरता से ले लिया और कुछ ज्यादा जोश में आ गए - और इसके चलते ही उन्होंने इस रिपोर्ट के मूल मुद्दे की रचना कर दी और अपनी फजीहत करवा ली ।
अब मूल मुद्दे पर आते हैं : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट आलोक गुप्ता ने खास तौर पर अपनी टीम के सदस्यों और आम तौर पर डिस्ट्रिक्ट के सदस्यों के लिए 3 मई को एक मोटीवेशनल सेमीनार मीटिंग का आयोजन किया । आयोजन का निमंत्रण पत्र देख कर दीपक गुप्ता भड़क गए और उन्होंने आलोक गुप्ता को झट से पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने उनकी अनुमति लिए बिना किए जा रहे उक्त सेमीनार को करने पर आपत्ति की और उसे रद्द करने के लिए कहा । दीपक गुप्ता का कहना रहा कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, और रोटरी इंटरनेशनल के नियमानुसार उनकी अनुमति लिए बिना डिस्ट्रिक्ट में कोई कार्यक्रम नहीं हो सकता है । दीपक गुप्ता ने उक्त पत्र काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के सभी सदस्यों को तो भेजा ही, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या को भी भेजा । यूँ, यह इतना संगीन मामला नहीं था कि इसे लेकर दीपक गुप्ता को भरत पांड्या की 'अदालत' का दरवाजा खटखटाना पड़ता - लेकिन संभवतः वह अपनी मीटिंग में भरत पांड्या द्वारा 'पदीय मजबूरी' में की गई तारीफ के झाँसे में आ गए और उसे सचमुच की तारीफ समझ बैठे । दीपक गुप्ता को लगा कि भरत पांड्या ने जब उनकी इतनी तारीफ की है, तो उनकी शिकायत को जरूर ही गंभीरता से लेंगे और आलोक गुप्ता के 'कान उमेठेंगे' - और तब आलोक गुप्ता उक्त सेमीनार मीटिंग को स्थगित करने के लिए मजबूर होंगे । दीपक गुप्ता के लिए फजीहत की बात लेकिन यह रही कि उनकी शिकायत को न आलोक गुप्ता ने कोई तवज्जो दी और न भरत पांड्या ने उसका कोई संज्ञान लिया - तथा उक्त सेमीनार मीटिंग सदस्यों की अच्छी खासी उपस्थिति के साथ संपन्न हुई । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता का उक्त पत्र और उससे पहले अपनी मीटिंग में अपनी खुद की तारीफ करना दरअसल उनके फ्रस्टेशन का इजहार है । चूँकि कोई दूसरा तो उनकी तारीफ कर नहीं रहा है, और आलोक गुप्ता भी रोटरी के आधिकारिक आयोजनों के अलावा अपने दूसरे कार्यक्रमों में उन्हें 'घास' नहीं डाल रहे हैं, इसलिए वह बौखलाए हुए हैं । इस फ्रस्टेशन और बौखलाहट में वह भूल गए हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में पिछले रोटरी वर्ष में उन्होंने भी ऐसे बहुत से कार्यक्रम किए थे, जिनके लिए उन्होंने तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन से कोई अनुमति नहीं ली थी । यह कोई आपत्ति की बात है भी नहीं । इसीलिए, इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या की मदद लेने की कोशिश करते हुए दीपक गुप्ता ने आलोक गुप्ता से भिड़ने की जो कोशिश की, उसमें उन्हें दोहरी फजीहत झेलना पड़ी है । 

Sunday, May 3, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल को रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से अंततः हाथ धोना पड़ा; हालाँकि कई लोगों को लग रहा है कि संजीव राय मेहरा के जरिये विनोद बंसल प्रेसीडेंट पद फिर से पाने की कोशिश करेंगे

नई दिल्ली । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की रोटरी ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट बने रहने की अंतिम समय तक की गईं कोशिशें आखिरकार विफल रहीं, और उनके लिए खासे अपमानजनक रहे घटनाचक्र में उन्हें अध्यक्ष पद से हटा दिया गया । उल्लेखनीय बात यह रही कि रोटरी ब्लड बैंक के नए पदाधिकारियों के चुनाव की तैयारी के बीच में ही बोर्ड मीटिंग में नए पदाधिकारियों का चयन कर लिया गया, जिसमें बाकी पदों के पदाधिकारी या तो यथावत रहे और या उनकी स्थिति अदली-बदली गई - लेकिन  विनोद बंसल की प्रेसीडेंट पद से छुट्टी कर दी गई । रोटरी ब्लड बैंक के नए प्रेसीडेंट पूर्व गवर्नर सुरेश जैन बने हैं । विनोद बंसल ने सारे घटनाक्रम के प्रति नाराजगी और असंतोष प्रकट करते हुए बड़े दुखी मन से एक पत्र लिखा/भेजा है - जिससे लगता है कि रोटरी ब्लड बैंक में पिछले कई महीनों से चल रही उठापटक इस सत्ता परिवर्तन के बावजूद समाप्त नहीं होगी, तथा अभी आगे और तमाशे देखने को मिलेंगे । इसके संकेत विनोद बंसल के डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट संजीव राय मेहरा के तेवर देख/सुन कर भी मिले । संजीव राय मेहरा ने उक्त मीटिंग को असंवैधानिक बताया और आरोप लगाया कि जल्दबाजी में बुलाई गई उक्त मीटिंग में न नियमों की परवाह की गई और न उचित व्यवस्था का पालन किया गया । संजीव राय मेहरा ने उचित 'फोरम' पर 'असंवैधानिक रूप से आयोजित हुई' इस मीटिंग के मुद्दे को उठाने की बात भी कही । कई लोगों को लगता है कि विनोद बंसल अब आगे की 'लड़ाई' संजीव राय मेहरा के सहारे लड़ेंगे ।
रोटरी ब्लड बैंक में पिछले कुछेक महीने से चल रहा झमेला विनोद बंसल के लिए खासा फजीहत भरा रहा है । उनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों को भी लगता है कि विनोद बंसल ने मामले को सही ढंग से हैंडल नहीं किया, और अपनी अकड़ तथा अपने अहंकार में अपनी मुसीबतों को बढ़ाते ही गए । विनोद बंसल दरअसल उस स्थिति का शिकार हो गए, जिसके लिए अंग्रेजी में एक जुमला कहा जाता है - 'एलिफैंट इन द रूम' । इसका प्रयोग ऐसी समस्या के लिए किया जाता है जो वास्तव में दिखाई तो नहीं देती है, लेकिन होती बहुत बड़ी है और आपके ठीक बगल में होती है । ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट के रूप में विनोद बंसल के दरवाजे पर इस समस्या ने वास्तव में उस समय दस्तक दी, जब ब्लड बैंक के सेक्रेटरी रमेश अग्रवाल और ट्रेजरर संजय खन्ना ने कुछेक बड़े बिलों पर हैरानी व्यक्त करते हुए विनोद बंसल से ब्लड बैंक के कामकाज में पारदर्शिता रखने/बरतने के लिए कहा । विनोद बंसल ने इस बात को बड़े हलके रूप में लिया; वह यह समझने/पहचानने में बुरी तरह चूक गए कि यह बात उनके लिए बड़ी फजीहत की नींव रखने वाली बन जाएगी । उनके शुभचिंतकों के साथ-साथ उनके विरोधियों को भी लगता है कि ब्लड बैंक के कामकाज में पारदर्शिता रखने/बरतने की रमेश अग्रवाल और संजय खन्ना की बात को विनोद बंसल ने यदि गंभीरता से लिया होता, और व्यावहारिक रवैया अपनाया होता - तो न तो उन्हें फजीहत का शिकार होना पड़ता और न प्रेसीडेंट का पद गँवाना पड़ता ।
ब्लड बैंक के कामकाज में झमेलेबाजी के आरोपों से शुरू हुई समस्या ने जब विनोद बंसल के बगल में जगह बनाना शुरू की, विनोद बंसल ने सिर्फ तब ही उसकी अनदेखी नहीं की - समस्या ने जब उन्हें चारों तरफ से घेरना शुरू किया, तब भी वह अकड़ और अहंकार की गिरफ्त में फँसे रह कर उससे अनजान बने रहे; और अपने व्यवहार से अपने समर्थकों को भी अपने से दूर करते गए । ब्लड बैंक के बोर्ड सदस्यों में जो लोग विनोद बंसल को घेर रहे थे, उनके तौर-तरीकों से नई टीम में ट्रेजरर बने आशीष घोष अकेले लोहा ले रहे थे - और इस कारण से आशीष घोष को विनोद बंसल के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जाने लगा था । लेकिन एक मीटिंग में आशीष घोष के एक सुझाव पर विनोद बंसल इतनी बुरी तरह से भड़क गए कि फिर उसके बाद आशीष घोष को उनके समर्थन से दूर हटते देखा गया । विनोद बंसल के बड़े नजदीकी के रूप में देखे/पहचाने जाते रहे डिस्ट्रिक्ट 3012 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक गुप्ता पहले से ही उनके विरोधियों के साथ जा मिले थे । अपने व्यवहार और रवैये के चलते विनोद बंसल ब्लड बैंक के बोर्ड सदस्यों के बीच पूरी तरह अलग-थलग पड़ गए थे; उसके बावजूद विनोद बंसल प्रेसीडेंट पद की कुर्सी पर बने रहने की उम्मीद रखे रहे । उनके कई शुभचिंतकों ने उन्हें सुझाव दिया था कि उन्हें स्वयं प्रेसीडेंट पद से इस्तीफा दे देना चाहिए और गरिमापूर्ण तरीके से ब्लड बैंक से विदा ले लेना चाहिए - लेकिन विनोद बंसल को लगता रहा कि तमाम फजीहत और विरोध के बावजूद वह प्रेसीडेंट पद बचा लेंगे । दरअसल ब्लड बैंक के बोर्ड के कई सदस्यों का रवैया कई मौकों पर बड़ा ढुलमुल सा रहा, जिसके चलते कई बार कुछेक फैसले टलते से रहे - इसे देखते हुए विनोद बंसल को विश्वास रहा कि बोर्ड के सदस्य कभी फैसला कर ही नहीं पायेंगे, और इस वजह से उनकी प्रेसीडेंट की कुर्सी बची रहेगी । लेकिन उनका यह विश्वास दिवास्वप्न साबित हुआ और तमाम कोशिशों के बावजूद अंततः उन्हें रोटरी ब्लड बैंक के प्रेसीडेंट पद से हाथ धोना पड़ा ।
मीटिंग में और मीटिंग के बाद संजीव राय मेहरा द्वारा दिखाए गए रवैये से लेकिन लगता है कि ब्लड बैंक का झगड़ा अभी और चलेगा; लोगों को लग रहा है कि संजीव राय मेहरा के जरिये विनोद बंसल उक्त मीटिंग को 'नल एंड वॉयड' घोषित करवा कर प्रेसीडेंट पद फिर से पाने की कोशिश करेंगे ।