Sunday, September 30, 2018

सुशील गुप्ता के रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने के साथ ही डिस्ट्रिक्ट 3011 में विनोद बंसल और दीपक कपूर के बीच शुरू हुई उठा-पटक का फायदा उठाने के लिए डिस्ट्रिक्ट 3054 में अशोक गुप्ता के कमर कसते ही जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा हुई

नई दिल्ली ।  14 अक्टूबर की कार रैली के दीपक कपूर के आयोजन को और नबंवर के पहले सप्ताह में जयपुर में सुशील गुप्ता का सम्मान करने की अशोक गुप्ता की तैयारी को विनोद बंसल के 13 अक्टूबर के कार्यक्रम के 'जबाव' के रूप में जिस तरह से देखा जा रहा है, उसमें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी लड़ाई की पोजीशंस बनने के संकेतों को छिपा माना जा रहा है । उल्लेखनीय है कि यह तीनों कार्यक्रम हो तो डिस्ट्रिक्ट्स की तरफ से रहे हैं, लेकिन इन्हें क्रमशः विनोद बंसल, दीपक कपूर और अशोक गुप्ता के कार्यक्रमों के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि इन कार्यक्रमों के जरिये यह तीनों इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के उम्मीदवारों के रूप में अपनी अपनी सक्रियता बनाने/जमाने का प्रयास कर रहे हैं । सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद को लेकर उठा-पटक अचानक से तेज हो गई है । इसका 'श्रेय' विनोद बंसल को दिया जा रहा है । उन्होंने दरअसल जिस तरह से दिल्ली में सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी बनने को सेलीब्रेट करने की योजना बनाई, उसने उनके डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं - बल्कि जोन 4 के रोटरी नेताओं के बीच भी हलचल मचा दी । रोटरी की व्यवस्था और राजनीति में इस तरह की हलचलें जब मचा करती हैं, तब कई दिलचस्प नजारे देखने को मिलते हैं । दिल्ली के कार्यक्रम को लेकर विनोद बंसल के जोश की हवा निकालने के लिए उनके अपने डिस्ट्रिक्ट में कई लोग सक्रिय हो गए । विनोद बंसल के लिए बड़े झटके की बात यह रही कि उनके अपने समझे जाने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया को ही विनोद बंसल की योजना को बिगाड़ते देखा/पहचाना गया । विनय भाटिया दरअसल विनोद बंसल की योजना के खर्चे से डर गए; उन्हें लगा कि विनोद बंसल कार्यक्रम का खर्च डिस्ट्रिक्ट पर थोपने की कोशिश कर रहे हैं, जिस कारण वह बगावती रूप में आ गए - विनय भाटिया के बगावती रूप का इस्तेमाल करके डिस्ट्रिक्ट के कुछेक लोगों ने विनोद बंसल को निशाने पर ले लिया । कार्यक्रम की बागडोर हाथ से निकलती देख विनोद बंसल ने डैमेज कंट्रोल कर हालात को संभालने की कोशिश की - और अपनी कोशिश में काफी हद तक कामयाब होने के बावजूद विनोद बंसल लेकिन कार्यक्रम का वह रूप बचाये नहीं रख सके, जैसा उन्होंने सोचा था । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया की बेवकूफी के कारण डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल कार्यक्रम को अपने तरीके से करने/चलाने का मौका गवाँ बैठे और कार्यक्रम की तैयारी में वह दूसरे लोगों को भी शामिल करने के लिए मजबूर हुए ।
विनोद बंसल को मिले इस झटके का फायदा उठाने का प्रयास अशोक गुप्ता ने किया । डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक गुप्ता ने जयपुर में सुशील गुप्ता के सम्मान में कार्यक्रम करने की घोषणा की, तो विनोद बंसल के दिल्ली के कार्यक्रम की रौनक स्वतः फीकी सी पड़ गई । दरअसल अशोक गुप्ता की रोटरी के 'शो-मैन' के रूप में खासी ख्याति है । उनके कार्यक्रम व्यवस्था, भव्यता और मेहमानदारी(हास्पिटैलिटी) के लिहाज से रोटरी में हर किसी को लुभाते और आकर्षित करते हैं । तीन वर्ष पहले जयपुर में आयोजित हुए रोटरी इंस्टीट्यूट की रौनक ने छोटे-बड़े हर रोटेरियंस को प्रभावित किया था और इसके लिए हर किसी ने अशोक गुप्ता की कार्यशैली को श्रेय दिया था । इसीलिए जयपुर में सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में होने वाले स्वागत समारोह की खबर ने रोटेरियंस के बीच एक अलग तरह का करंट पैदा किया, जिसने दिल्ली में हो रहे सुशील गुप्ता के स्वागत समारोह की तैयारी को धुँधला कर दिया । कार्यक्रमों को प्रभावी तरीके से आयोजित करने में हालाँकि विनोद बंसल को भी महारत है, जो पिछले दिनों ही पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन के सान्निध्य में 'एक शाम' के आयोजन में उन्होंने दिखाई थी, जिसकी खासी प्रशंसा हुई थी । विनोद बंसल के लिए मुसीबत की बात लेकिन यह है कि उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट में बहुत विरोध का सामना करना पड़ता है, जिस कारण उन्हें अपना पूरा हुनर दिखाने का मौका ही नहीं मिल पाता है । सुशील गुप्ता के सम्मान-समारोह के बहाने रोटरी के बड़े नेताओं और खासकर जोन 4 के लोगों के बीच धाक जमाने की कोशिश करने के मामले में उनके लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि जिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया को उनके बड़े मददगार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था, वही विनय भाटिया उनके सबसे बड़े 'दुश्मन' साबित हुए हैं - कार्यक्रम के खर्चे को लेकर विनय भाटिया ने डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के बीच जो रोना-धोना मचाया, उसने विनोद बंसल की योजना के जोश पर जैसे पानी फेर दिया ।
रही-सही कसर दीपक कपूर की विनोद बंसल के कार्यक्रम के ठीक अगले ही दिन की जा रही कार-रैली की तैयारी ने पूरी कर दी है । दीपक कपूर इस बात से बुरी तरह खफा बताये जा रहे हैं कि सुशील गुप्ता के सम्मान-समारोह की तैयारी से विनोद बंसल ने उन्हें पूरी तरह दूर रखा है । दीपक कपूर इंडिया नेशनल पोलियो प्लस कमेटी के चेयरमैन हैं, और इस नाते रोटरी के एक बड़े पदाधिकारी के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता के अपने ही डिस्ट्रिक्ट में होने वाले सम्मान-समारोह की तैयारी से दूर रखे जाने के चलते नाराज दीपक कपूर ने कार रैली की तैयारी के जरिये विनोद बंसल से 'बदला' लेने का पूरा इंतजाम कर लिया है । कार-रैली के आयोजन में जोन 4 के कई डिस्ट्रिक्ट्स को शामिल करके दीपक कपूर ने संकेत देने की कोशिश की है कि डिस्ट्रिक्ट्स के बीच लॉबीइंग को लेकर उन्हें कमजोर न समझा जाए; मौका और जरूरत पड़ने पर वह पलटवार कर सकते हैं । 14 अक्टूबर की कार रैली के आयोजन के जरिये दीपक कपूर ने जोन 4 के लोगों को यह संदेश देने का भी प्रयास किया है कि अपनी 'राजनीति' के लिए उन्हें सुशील गुप्ता की 'वैसाखी' की जरूरत नहीं है । दीपक कपूर की यह चाल विनोद बंसल को दो तरफा झटका देती है - यह एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट को राजनीतिक रूप से विभाजित करती है, और दूसरी तरफ सुशील गुप्ता पर संभल कर चलने का दबाव बनाती है । विनोद बंसल और दीपक कपूर के बीच मचने वाली इस उठा-पटक का फायदा उठाने के लिए अशोक गुप्ता कमर कसते नजर आ रहे हैं । सुशील गुप्ता के स्वागत में जयपुर में समारोह करने की उनकी घोषणा ने जिस तरह से इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है, उससे और क्या हुआ है - यह तो आगे पता चलेगा, अभी लेकिन उनकी घोषणा ने दिल्ली में होने वाले विनोद बंसल के कार्यक्रम की चमक को फीका कर दिया है ।

Saturday, September 29, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों के सामने एक सवाल : आप यह उम्मीद क्यों करते हैं कि आप खुद तो बहुत ही नीचता की, घटियापन की, टुच्चेपन की, बेईमानी की हरकतें करेंगे - और कोई पत्रकार और ब्लॉग आपकी हरकतों पर चुप रहे ?

['रचनात्मक संकल्प' के पते पर एक अनजान व्यक्ति एक लिफाफा दे गया, जिसे खोलने पर  सीए सत्येंद्र कुमार गुप्ता का एक पत्र मिला, जिसके साथ अनुरोध था कि यह पत्र यदि 'रचनात्मक संकल्प' में प्रकाशित होगा, तो ज्यादा लोगों तक पहुँच सकेगा और इसमें उठाए गए मुद्दे पर व्यापक चर्चा हो सकेगी । विषय की गंभीरता को देखते हुए उक्त पत्र को यहाँ हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है । संपादन के नाम पर हमने कुछेक मात्राओं को और कुछेक वाक्यों को दुरुस्त भर किया है ।]

टीम NIRC के प्रिय साथियों,
इंस्टीट्यूट और उसके पदाधिकारियों की पब्लिक इमेज को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए आपका खासा लंबा-चौड़ा मैसेज मैंने भी पढ़ा और मुझे यह देख कर वाकई अच्छा लगा कि आप लोग इंस्टीट्यूट के Torch Bearer पदाधिकारियों और सदस्यों की पब्लिक इमेज को लेकर चिंतित हैं और उसे सुरक्षित करने/रखने की जरूरत समझते हैं । इस जरूरत को समझने और इसके लिए आवश्यक कार्रवाई की पहल करने के लिए मैं आपका शुक्रिया अदा करता हूँ ।
लेकिन मैं बहुत ही अफ़सोस के साथ यह भी महसूस करता हूँ कि मामले को व्यापक रूप से समझने की बजाये आपने मामले को बहुत ही चलताऊ और एकांगी तरीके से निपटा दिया है, तथा सारा दोष एक ब्लॉग पर मढ़ दिया है । इंस्टीट्यूट के आयोजनों में माननीय प्रधानमंत्री जी और माननीय राष्ट्रपति जी क्या क्या कह गए हैं, यह आपको पता ही होगा । उन्होंने अपने अपने भाषणों में जो कहा है, वह यदि सच है तो इसका मतलब क्या यह नहीं है कि इंस्टीट्यूट के Torch Bearer पदाधिकारी और सदस्य अपनी जिम्मेदारियों का पालन करने में विफल रहे हैं - उनकी विफलता के लिए उक्त ब्लॉग कैसे जिम्मेदार हुआ ? इंस्टीट्यूट के Torch Bearer पदाधिकारियों और सदस्यों के खिलाफ आम और खास चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नाराजगी अक्सर ही देखने/सुनने को मिल जाती है, क्या उसके लिए उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? पिछले वर्ष सीए डे फंक्शन में जो तमाशा हुआ था, और जिसके लिए तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने आपके एक  Torch Bearer सदस्य को जिम्मेदार ठहराया था - उसके लिए क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? NIRC में पिछले करीब ढाई वर्षों में जो कुछ होता रहा है, और सदस्य एक-दूसरे के खिलाफ गंभीर आरोप लगाते रहे हैं और इंस्टीट्यूट में शिकायत करते रहे हैं - क्या उसके लिए उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? NIRC की एक मीटिंग में नितिन कँवर ने काउंसिल की एक महिला सदस्य के साथ इस हद तक बदतमीजी की, कि उक्त महिला सदस्य को मीटिंग के बीच में ही पुलिस बुलाने की कार्रवाई करना पड़ी - इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट व सेक्रेटरी के हस्तक्षेप के बाद ही मामला संभला, इसके लिए क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? नितिन कँवर की ही बदतमीजियों की शिकायत करते हुए एक महिला स्टॉफ द्वारा पुलिस में रिपोर्ट करने के हालात बने, जिसे किसी तरह निपटाया गया - क्या इसके लिए उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ?      
टीम NIRC के साथियों, इंस्टीट्यूट और उसके Torch Bearer पदाधिकारियों और सदस्यों की तथा टीम NIRC की पब्लिक इमेज बिगड़ने के लिए किसी बाहरी संस्था या व्यक्ति को जिम्मेदार ठहराने से ज्यादा जरूरी क्या यह नहीं होना चाहिए कि पहले आप अपने गिरेबाँ में भी झाँके ?
हो सकता है कि इंस्टीट्यूट और NIRC में होने वाले मामलों को उक्त ब्लॉग बढ़ा-चढ़ा कर और नमक-मिर्च लगा कर प्रस्तुत करता हो; पर सवाल यह है कि उसे ऐसा करने का मौका कौन देता है और सच्चाई को सामने क्यों नहीं आना चाहिए  ? आप यह उम्मीद क्यों करते हैं कि आप खुद तो बहुत ही नीचता की, घटियापन की, टुच्चेपन की, बेईमानी की हरकतें करेंगे - और कोई पत्रकार और ब्लॉग आपकी हरकतों पर चुप रहे ? मुझे यह देख कर वास्तव में अफसोस हुआ कि इंस्टीट्यूट के Torch Bearer पदाधिकारियों और सदस्यों तथा टीम NIRC की पब्लिक इमेज की चिंता करते हुए आप 'अपनी' हरकतों पर तो एक शब्द भी नहीं कहते हैं, और सारा आरोप 'दूसरों' पर - बाहरी लोगों पर, एक ब्लॉग पर थोप देते हैं ।  
साथियों, आपने जिस ब्लॉग पर निशाना साधा है, उस ब्लॉग की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच पहुँच और विश्वसनीयता को लेकर मैं खुद हैरान होता रहा हूँ । मैं यह देख कर सचमुच चकित होता रहा हूँ कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स न सिर्फ उसकी रिपोर्ट्स को दिलचस्पी के साथ पढ़ते हैं और उस पर चर्चा करते हैं, बल्कि सोशल मीडिया में उन्हें शेयर भी करते हैं । उस ब्लॉग की रिपोर्ट्स मुझे हमेशा ही आश्चर्य में डालती रही हैं कि काउंसिल की जो जानकारियाँ हम वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भी नहीं होती हैं, वह उस तक कैसे पहुँच जाती हैं और कभी कभी तो 'इधर घटना घटी, और उधर सूचना पहुँची' वाला मामला होता है । यह बात मुझे आश्चर्य में इसलिए डालती है, क्योंकि मैं हमेशा ही काउंसिल पदाधिकारियों और सदस्यों को उस ब्लॉग के खिलाफ बात करते हुए ही पाता/सुनता हूँ ।  मैंने जब जब उस ब्लॉग की जोरदार सफलता के कारणों को समझने की कोशिश की है, तब तब मैं इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उस ब्लॉग ने चूँकि इंस्टीट्यूट और काउंसिल्स के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों द्वारा आम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स से छिपा कर की जाने वाली बेईमानियों की पोल खोली है, तथा बड़े नेताओं और पदाधिकारियों द्वारा प्रताड़ित और अपमानित हुए लोगों का साथ दिया है, उनकी आवाज बना है - इसलिए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उसकी साख और विश्वसनीयता बनी है । बड़े नेताओं और पदाधिकारियों तथा उनके आसपास रहने वाले लोगों ने उस ब्लॉग की भले ही एक नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की है, लेकिन काउंसिल्स में होने वाली बेईमानियों और अपमान व प्रताड़नापूर्ण व्यवहार का शिकार होने वाले लोगों को - चाहें वह काउंसिल्स केसदस्य हों, स्टाफ हों और या वेंडर्स हों - वह ब्लॉग, अनजान होते हुए भी, अपना विश्वसनीय साथी और अपना दुःख बाँटने वाला लगा है । 
NIRC की एक मीटिंग में नितिन कँवर को काउंसिल के ही एक वरिष्ठ सदस्य पर निहायत बदतमीजी और अशालीन तरीके से चिल्लाते हुए और उन पर गंभीर आरोप लगाते हुए मैंने एक ऑडियो क्लिप में सुना है । अभी हाल ही में हुई एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा के बीच हुए झगड़े की कुछेक बातों की ऑडियो क्लिप भी मैंने सुनी है, जिसमें दोनों लोग एक-दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं ।  इन क्लिप्स को जिस किसी ने भी सुना है, उसे यह जानकर अफसोस ही हुआ है कि NIRC में इस तरह के सड़क छाप लोग भी हैं । यहाँ दो बातें रेखांकित करने योग्य हैं : एक तो यही कि NIRC टीम के किसी सदस्य ने कभी भी नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा से यह कहा है क्या कि काउंसिल की मीटिंग में इन्हें अपनी बात शालीनता और मर्यादा के साथ कहना चाहिए; तथा दूसरी बात यह कि इन्होंने आपस में ही एक दूसरे पर जो आरोप लगाए हैं, उनकी सत्यता की जाँच करने की कोई कोशिश हुई है क्या ? 
टीम NIRC के साथियों, मामले को व्यापकता और गंभीरता के साथ आप समझ भी रहे हो न ! आपको क्या लगता है कि आप उक्त ब्लॉग के खिलाफ पुलिस में और कोर्ट में जाओगे, तो पुलिस और कोर्ट बिना जाँच-पड़ताल के उक्त ब्लॉग के खिलाफ कार्रवाई कर देगी - वह कोई जाँच-पड़ताल नहीं करेगी ? और यदि जाँच-पड़ताल करेगी तो आपके द्वारा की गई गड़बड़ियों पर ध्यान नहीं देगी ? जिन क्लिप्स की मैं बात कर रहा हूँ, वह यदि पब्लिक डोमेन में हैं तो क्या उक्त ब्लॉग के कर्ता-धर्ताओं के पास नहीं होंगी; और वह पुलिस और कोर्ट में उन्हें पेश नहीं करेंगे ? उन क्लिप्स को सुन कर तथा आपके कई कारनामों के रिकॉर्ड/सुबूत देख कर कोर्ट आप लोगों को क्या शाबाशी देगी, आपकी तारीफ करेगी ? आपने अभी हाल ही में अखबारों में पढ़ा होगा कि कोर्ट ने दिल्ली के एक सांसद तथा दिल्ली प्रदेश भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष मनोज तिवारी को फटकार लगाते हुए उनसे कहा कि सांसद हो तो क्या अपने आपको खुदा समझते हो कि नियम-कानूनों का पालन नहीं करोगे । टीम NIRC के साथियों, क्या आप लोग भी अपने आपको और अपने Torch Bearer को खुदा तो नहीं समझते हो ? आप लोग कहीं यह तो नहीं समझते हो कि आपको तो नियम-कानूनों का पालन करने की कोई जरूरत ही नहीं है, आप जो चाहें सो कर सकते हो और चाहें किसी भी भाषा और लहजे में काउंसिल की मीटिंग्स में अपने ही साथियों से बात कर सकते हो और उन पर कोई भी कैसा भी आरोप लगा सकते हो ? मुझे डर है कि कहीं जोश और गलतफहमी में आप अपने लिए और नई मुसीबतें न पैदा कर लें ?                  
टीम NIRC के साथियों, हालाँकि मैं आपकी इस चिंता से पूरा इत्तफाक रखता हूँ कि इंस्टीट्यूट और  काउंसिल्स के पदाधिकारियों और सदस्यों की पब्लिक इमेज को खराब करने का मौका किसी को भी - किसी भी ब्लॉग को न मिले । इसके लिए मेरा सुझाव है कि आप लोग यदि अपने काम को ईमानदारी से करना शुरू कर दो, हर काम में वेंडर्स से कमीशन खाना बंद कर दो, काउंसिल के पैसों पर अपने चाय-नाश्ते और खाने-पीने के लिए निर्भर रहना बंद कर दो, अपने 'भाईयों' को फायदा पहुँचाने के लिए नियमों से खिलवाड़ करना बंद कर दो, नियम-कानूनों से और जिम्मेदारी से काम करना शुरू कर दो, काउंसिल में अपने ही साथियों पर हावी होने तथा उन पर रौब जमाने की कोशिश करने और उनके साथ अभद्र भाषा में बात करने से बचो, खासकर महिला सदस्यों और महिला स्टॉफ के साथ सम्मानजनक व्यवहार करना सीख सको, आपसी मतभेदों को शालीनता व मर्यादा में रहते हुए हल करने की कोशिश करो - तो बाहर के लोगों को, उक्त ब्लॉग के दुष्ट कर्ता-धर्ताओं को बातें बनाने का मौका ही नहीं मिलेगा, और वह ब्लॉग अपने आप ही बंद हो जायेगा । आपको पुलिस और कोर्ट में जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी । 
मैं ईश्वर से प्रार्थना करूँगा कि वह आपको सद्बुद्धि दे, और आप सचमुच में अपनी पब्लिक इमेज को साफ-सुथरा रख सकें, न कि इमेज बचाने के चक्कर में अपनी और पोल खुलवा लो तथा अपनी इमेज का और कबाडा करवा लो ।
शुभकामनाओं के साथ,
- सीए सत्येंद्र कुमार गुप्ता 

Thursday, September 27, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावी परिदृश्य में हंसराज चुग द्वारा अपनी रणनीति को पुराने ढर्रे पर ही चलाने तथा सुधीर अग्रवाल द्वारा अपनी रणनीति में व्यापक सुधार कर लेने के चलते समीकरणों में बड़ा उलटफेर होता दिख रहा है

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट की विभिन्न काउंसिल्स के लिए होने वाले चुनावों में नामांकन की समयसीमा पूरी हो जाने के बाद चुनावी परिदृश्य साफ हो जाने के साथ-साथ, उम्मीदवारों की तैयारी में गर्मी आ गई दिख रही है - जिसके तहत उम्मीदवारों और उनके समर्थकों/शुभचिंतकों को अपनी अपनी पोजीशंस लेते हुए देखा जा रहा है । नॉर्दर्न रीजन की चुनावी चर्चाओं में हालाँकि हंसराज चुग और सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी की स्थिति को लेकर होने वाले आकलन का जोर है । पिछले चुनाव में हंसराज चुग चूँकि मामूली अंतर से पिछड़ गए थे, इसलिए कुछेक लोगों को लगता है कि पिछली बार रह गई कमी को पूरा करके हंसराज चुग इस बार कामयाबी को अवश्य ही अपनी जेब में कर सकेंगे । अन्य कई लोगों को लेकिन लगता है कि यही 'गलतफहमी' हंसराज चुग को इस बार ले डूबेगी । उनका तर्क है कि हर उम्मीदवार के लिए हर चुनाव एक अलग चैप्टर की तरह होता है, जिसकी केमिस्ट्री और गणित पिछले चुनाव से पूरी तरह अलग होता है । किसी भी उम्मीदवार के लिए अगला चुनाव वहाँ से शुरू नहीं होता है, जहाँ पिछ्ला चुनाव खत्म हुआ होता है - यदि ऐसा होता तो काउंसिल के सदस्य तो चुनाव हारते ही नहीं; जबकि पिछले चुनाव में वेस्टर्न तथा ईस्टर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल सदस्य चुनाव हारे थे; नॉर्दर्न रीजन में भी पीछे एक बार विजय गुप्ता सेंट्रल काउंसिल सदस्य होते हुए दोबारा नहीं चुने जा सके थे, और इस बार हर किसी को राजेश शर्मा का चुना जाना मुश्किल लग रहा है । इसलिए यह मानना/समझना कि पिछली बार की रह गई कमी को पूरा करके हंसराज चुग इस बार मैदान मार लेंगे, एक खामख्याली ही है । हंसराज चुग और उनके समर्थक चाहें तो एसएस शर्मा के अनुभव से सबक सीख सकते हैं ।  उल्लेखनीय है कि एसएस शर्मा को 2012 के चुनाव में अच्छा समर्थन मिला था, लेकिन वह सफल नहीं हो सके थे; उन्होंने सोचा कि वह अगली बार और मेहनत करेंगे और जीत को हासिल कर लेंगे - वर्ष 2015 के चुनाव के लिए उन्होंने मेहनत जमकर की भी, लेकिन जीत उन्हें फिर भी नहीं मिली । 
चुनावी राजनीति के घुमावदार समीकरणों को जानने/समझने वाले लोगों का मानना/कहना है कि चुनावी राजनीति सिर्फ मेहनत से नहीं जीती जा सकती; उसके लिये माहौल में एक 'शोर' - एक सकारात्मक किस्म का 'शोर' भी चाहिए होता है; यह शोर कभी उम्मीदवार के बैकग्राउंड से और या उसकी सक्रियता से स्वयं पैदा हो जाता है या उसे कृत्रिम तरीके से पैदा करना होता है । एसएस शर्मा यह नहीं कर पाए और सिर्फ मेहनत के भरोसे रहे - जिसका नतीजा रहा कि वह कामयाब नहीं हो सके । हंसराज चुग भी उन्हीं की कहानी को दोहराते नजर आ रहे हैं । असल में, पिछली बार किसी को उम्मीद नहीं थी कि हंसराज चुग चुनावी जीत के आसपास आ सकते हैं; दरअसल 'शोर' की कमी के चलते किसी ने भी उनकी उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया ही नहीं था । उनकी स्थिति का गहराई से तुलनात्मक अध्ययन करें तो देखते हैं कि पहली वरीयता के वोटों की गिनती में 1072 वोटों के साथ दसवें नंबर पर रहते हुए वह 1361 वोटों के साथ आठवें नंबर पर रहे राजेश शर्मा से काफी पीछे थे; लेकिन फाइनल गिनती तक आते आते वह राजेश शर्मा से मामूली अंतर से पीछे रह गये थे । कई लोगों को लगता है कि हंसराज चुग अपनी उम्मीदवारी का यदि थोड़ा सा भी 'शोर' पैदा कर पाते, और चुनावी माहौल में अपनी उम्मीदवारी को लेकर थोड़ी सी भी गर्मी पैदा कर पाते - तो राजेश शर्मा की जगह काउंसिल में वह होते । हंसराज चुग के लिए इस बार भी पिछली बार जैसी ही स्थिति नजर आ रही है - वह और उनके समर्थक दो तथ्यों की सीधे सीधे अनदेखी करते लग रहे हैं, जिसके कारण इस बार उनके लिए हालात और भी चुनौतीपूर्ण बने नजर आ रहे हैं । पिछली बार वह रीजनल काउंसिल के सदस्य थे, जिस कारण वह लोगों के निरंतर संपर्क में थे और जिसका उन्हें फायदा मिला; दूसरी बात यह थी कि चरनजोत सिंह नंदा के उम्मीदवार न होने से उन्हें काफी पंजाबी वोट मिल गए थे - इस बार यह दोनों फायदे उन्हें आसानी से नहीं मिल सकेंगे । वोटों के किसी और 'ब्लॉक' पर उनका ध्यान है, ऐसा दिख नहीं रहा है । कुल मिलाकर उनका रवैया एसएस शर्मा जैसा ही है - और एसएस शर्मा की तरह हंसराज चुग ने भी मान लिया है कि इस बार थोड़ी और मेहनत करके वह पिछली बार रह गई कमी को पूरा कर लेंगे और सेंट्रल काउंसिल में जा बैठेंगे । लोगों को लगता है कि एसएस शर्मा जैसा रवैया अपना लेने के कारण इस बार के सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में हंसराज चुग का हाल भी कहीं एसएस शर्मा जैसा ही न हो जाए ?
चुनावी राजनीति की तरकीब को समझने और उसे अपनाने के मामले में पिछली बार की तुलना में इस बार सुधीर अग्रवाल ने लेकिन ऊँची छलाँग लगाई है । पिछला चुनाव उन्होंने 'लो-पिच' पर लड़ा था, लेकिन इस बार वह 'हाई-पिच' पर हैं । उनके मामले में हालात भी इस बार स्वाभाविक रूप से उनके अनुकूल दिख रहे हैं । सुधीर अग्रवाल के लिए खासी अनुकूल और दिलचस्प स्थिति यह बनी है कि नवीन गुप्ता और संजय अग्रवाल के रूप में जो सीटें खाली हो रही हैं, उन्हें 'बनिया सीटों' के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; इन दोनों के समर्थकों के बीच अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से सुधीर अग्रवाल ने इनके नजदीकियों और खास लोगों को अपने साथ जोड़ने का प्रयास किया है । नवीन गुप्ता के पिता और इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता तथा संजय अग्रवाल के राजनीतिक पार्टनर और रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन हरीश अग्रवाल से अपनी उम्मीदवारी के नामांकन पत्रों को प्रस्तावित करवा कर सुधीर अग्रवाल ने बड़ा राजनीतिक दाँव चला है, जिसका तोड़ खोजना बाकी उम्मीदवारों के लिए मुश्किल हो रहा है । इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट वेद जैन तथा रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन अनिल जिंदल, अनिल अग्रवाल, बीडी गुप्ता आदि भी सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रस्तावकों में हैं । लुधियाना के वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट और एनडी गुप्ता खेमे के सदस्य के रूप में देखे जाने वाले सेंट्रल काउंसिल के पूर्व सदस्य दीपक गुप्ता को अपनी उम्मीदवारी के प्रस्तावकों में शामिल करके सुधीर अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी की अपील को व्यापक बनाने का जो प्रयास किया है, वह चुनावी परिदृश्य में उनकी उम्मीदवारी का 'शोर' और ऊँचा करता है । एक उम्मीदवार की सक्रियता का जो 'रुटीन' होता है, उसे अपनाने/निभाने के साथ-साथ सुधीर अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को लेकर चुनावी परिदृश्य में जो 'शोर' स्थापित किया है, उसके चलते वरिष्ठ और युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच उनकी उम्मीदवारी को खासी  गंभीरता से लिया जा रहा है । हंसराज चुग द्वारा अपनी रणनीति को पुराने ढर्रे पर ही चलाने तथा सुधीर अग्रवाल द्वारा अपनी रणनीति में व्यापक सुधार कर लेने के चलते नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के चुनावी समीकरणों में बड़ा उलटफेर होता दिख रहा है और जिस कारण यहाँ का चुनावी परिदृश्य खासा दिलचस्प हो उठा है ।

Tuesday, September 25, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' करने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता की अनधिकृत कार्रवाई ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के लिए भी फजीहत की स्थिति बनाई

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट 3012 के रोटेरियंस 13 अक्टूबर को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता का स्वागत-सम्मान करने की तैयारी में लगे हुए हैं, लेकिन दूसरी तरफ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता ने सुशील गुप्ता की फजीहत करवाने के लिए मंच पूरी तरह से सजा दिया है । अपने पहले कार्यक्रम - पेम वन के मौके पर प्रकाशित डायरेक्टरी में दीपक गुप्ता ने सतीश सिंघल का नाम काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की सूची में प्रकाशित करते हुए उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता दी है । पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट तथा रोटरी इंटरनेशनल का फैसला बताते हुए लिखे पत्र में सतीश सिंघल को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटाते हुए साफ शब्दों में लिखा था कि सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी मान्यता नहीं मिलेगी । रोटरी को लेकर बड़ी बड़ी बातें करने तथा रोटरी से संबंधित ज्ञान झाड़ने वाले दीपक गुप्ता को क्या इतनी मामूली सी बात पता नहीं है, या समझ नहीं आ रही है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट ने जब यह कहा है - और बाकायदा लिखित में कहा है कि सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं माना/कहा जायेगा; तब फिर वह क्यों और कैसे अपने रिकॉर्ड में सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कह/बता सकते हैं ? दीपक गुप्ता अपने आपको क्या इंटरनेशनल प्रेसीडेंट और रोटरी इंटरनेशनल से भी ऊपर मानते/समझते हैं; और रोटरी इंटरनेशनल के नियम-कानूनों की बजाये अपने नियम चलाना चाहते हैं ? इस मामले में दीपक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा का रवैया खासा दिलचस्प है । पेम वन समारोह में मौजूद डिस्ट्रिक्ट 3011 के कुछेक पूर्व गवर्नर्स ने दीपक गुप्ता की डायरेक्टरी में जब सतीश सिंघल का नाम छपा देखा, तो उन्होंने मुकेश अरनेजा से इस बारे में पूछा; मुकेश अरनेजा ने उस समय तो यह कहते हुए बात को टाल दिया कि डायरेक्टरी तैयार करने का काम दीपक गुप्ता ने ही किया है, और दीपक गुप्ता ने इसमें उनसे कोई सलाह नहीं ली, जिस कारण उनका इसमें कोई दखल नहीं रहा - बाद में लेकिन वह यह कहते/बताते हुए मजे लेते दिखे/सुने गए कि सतीश सिंघल के क्लब के रवि सचदेवा से दो लाख रुपए ऐंठने के लिए दीपक गुप्ता ने अपनी डायरेक्टरी में सतीश सिंघल को अनधिकृत रूप से पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'दिखा' दिया है ।  
मुकेश अरनेजा के लोगों के बीच किए जा रहे दावों के अनुसार, दीपक गुप्ता ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तीनों उम्मीदवारों से पेम वन के लिए दो दो लाख रुपए बसूले हैं । मुकेश अरनेजा का ही दावा है कि पेम वन के आयोजन में दीपक गुप्ता ने पैसों की जमकर बसूली की है, और पेम वन में करीब आठ/दस लाख रुपए कमा लिए हैं । नए रोटेरियंस को मुकेश अरनेजा से इस तरह की बातें सुनकर हैरानी भी हो रही है; क्योंकि वह देख रहे हैं कि दीपक गुप्ता और मुकेश अरनेजा तो साथ-साथ हैं, दीपक गुप्ता ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है - आखिर फिर क्यों दीपक गुप्ता को लेकर मुकेश अरनेजा इस तरह की बातें कर रहे हैं ? लेकिन पुराने रोटेरियंस जानते हैं कि मुकेश अरनेजा जिस थाली में खाते हैं, उसमें ही छेद करने के शौकीन रहे हैं । उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि अपने को महत्त्वपूर्ण बनाए रखने के लिए मुकेश अरनेजा 'क्रिएट द प्रॉब्लम, देन सॉल्व द प्रॉब्लम' वाले फार्मूले पर काम करते रहे हैं; पहले वह समस्या पैदा करते हैं और उसे बढ़ाते हैं, और फिर उसे हल करने में जुटते हैं । लोगों को लगता है कि वह दीपक गुप्ता के साथ भी यही खेल खेल रहे हैं, जिसके तहत मुकेश अरनेजा पहले तो दीपक गुप्ता को बदनामी और मुसीबत के दलदल में फँसायेंगे, ताकि दीपक गुप्ता मदद के लिए उन पर ज्यादा से ज्यादा आश्रित हों । उनके नजदीकियों को ही शक है कि पेम वन के आयोजन में दीपक गुप्ता द्वारा कमाई करने की बातों के साथ-साथ सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' करने के मामले को भी हवा देने में मुकेश अरनेजा खुद दिलचस्पी ले रहे हैं, ताकि दीपक गुप्ता मुसीबत में फँसे और फजीहत का शिकार हों - और फिर उससे निकलने के लिए उनसे मदद माँगे और उन पर आश्रित हों ।
मुकेश अरनेजा जो कर रहे हैं या करना चाह रहे हैं, वह तो उन्हें जानने वालों को समझ में आ रहा है; लेकिन दीपक गुप्ता के शुभचिंतकों को हैरानी इस बात की है कि उनकी मति क्यों मारी गई है - जो वह रोटरी इंटरनेशनल के फैसलों को खुली चुनौती दे रहे हैं । सतीश सिंघल के मामले में दीपक गुप्ता हालाँकि लगातार सावधानी बरतते/दिखाते रहे हैं - सतीश सिंघल के प्रति गाहे-बगाहे हमदर्दी दिखाते रहने के बावजूद, 'होशियारी' के साथ आयोजित किए गए अनधिकृत थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में दीपक गुप्ता नहीं गए; अनधिकृत थैंक्स गिविंग कार्यक्रम में अनधिकृत अवॉर्ड पाने वालों की सार्वजनिक रूप से प्रशंसा करने का 'जोश' डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता ने तो कई मौकों पर दिखाया, लेकिन दीपक गुप्ता ने ऐसा कोई काम नहीं किया; अभी हाल ही में सतीश सिंघल के क्लब के अधिष्ठापन समारोह में मुकेश अरनेजा और आलोक गुप्ता के साथ शामिल होना तो दीपक गुप्ता ने स्वीकार किया, और समारोह में एक साधारण रोटेरियन के रूप में मौजूद सतीश सिंघल के साथ उन्होंने तस्वीरें भी खिंचवाईं - लेकिन समारोह में सतीश सिंघल को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर या पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का 'ओहदा' दिलवाने के लिए उन्होंने कोई प्रयास नहीं किया । इस तरह, मुकेश अरनेजा और आलोक गुप्ता के साथ-साथ दीपक गुप्ता ने भी सतीश सिंघल के साथ सुविधानुसार कभी/कहीं पास तो कभी/कहीं दूर रहने/दिखने का नाटक खासी होशियारी के साथ किया है । उनके इस नाटक को देखते/समझते हुए ही लोगों को हैरानी है कि दीपक गुप्ता ने अपनी डायरेक्टरी में सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' करने का रोटरी विरोधी काम कैसे और क्यों कर दिया ? कुछेक लोगों को लगता है कि दीपक गुप्ता ने यह काम अपने अहंकार में कर दिया है; दरअसल दीपक गुप्ता अक्सर ही दिखाते/जताते रहते हैं कि रोटरी के बारे में वह जितना जानते हैं उतना तो कोई भी नहीं जानता; सतीश सिंघल के मामले में हो सकता है कि उन्होंने मान लिया हो कि वह तो रोटरी इंटरनेशनल और इंटरनेशनल प्रेसीडेंट से भी ज्यादा जानते हैं - और रोटरी इंटरनेशनल भले ही न माने, पर वह तो सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मानते हैं; कुछेक लोगों को मुकेश अरनेजा की बात सही लगती है कि रवि सचदेवा से दो लाख रुपए ऐंठने के लिए उन्होंने सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' कर दिया है ।
दीपक गुप्ता की इस हरकत ने इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए सुशील गुप्ता के लिए भारी फजीहत की स्थिति पैदा कर दी है । नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार के रूप में चुने गए सुशील गुप्ता चेलैंज के लिए दी गई समयसीमा के पूरा होने के बाद एक अक्टूबर को इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी घोषित होंगे । उससे पहले ही उनके समझे जाने वाले डिस्ट्रिक्ट के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता ने ऐसा कांड कर दिया, जो रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को ही स्वीकार करने से इंकार करता है । विडंबना की बात यह भी है कि दीपक गुप्ता ने अपनी जिस डायरेक्टरी में रोटरी इंटरनेशनल के फैसले को ठेंगा दिखाते हुए सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' किया है, उसके विमोचन होने के पेम वन समारोह में सुशील गुप्ता भी मौजूद थे । अभी दो-तीन वर्ष पहले ही किसी बातचीत में सुशील गुप्ता का जिक्र आने पर दीपक गुप्ता ने बड़ी हेकड़ी से कहा था - 'हू इज सुशील गुप्ता ?' तब से अब तक हालाँकि काफी कुछ बदल गया है - दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने जा रहे हैं; सुशील गुप्ता इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे हैं; लेकिन लगता है कि दीपक गुप्ता का हेकड़ी वाला रवैया नहीं बदला है - सतीश सिंघल को मनमाने तरीके से पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर घोषित करते हुए दीपक गुप्ता हो सकता है कि अब भी कह दें - 'हू इज सुशील गुप्ता', 'हू इज रोटरी इंटरनेशनल' ।
__________________________________________________________

रोटरी इंटरनेशनल कार्यालय के पत्र का वह हिस्सा, जिसमें सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता नहीं देने का फैसला सुनाया गया है : 

  
दीपक गुप्ता के पेम वन में विमोचित हुई डायरेक्टरी का वह पृष्ठ, जिसमें सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'घोषित' किया गया है : 


Monday, September 24, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की हरकतों के कारण समर्थकों व नजदीकियों के साथ छोड़ते जाने के बावजूद अशोक कंतूर को विश्वास है कि रवि चौधरी कोई भी बेईमानी करके उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जितवा ही देंगे

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट लिटरेसी मीट को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने जिस तरह से अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के प्रमोशन का अड्डा बना दिया, उसे देख कर लोगों ने यही समझा/माना है कि रवि चौधरी और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अशोक कंतूर ने रोटरी का मतलब सिर्फ चुनाव ही मान/समझ लिया है । इन्होंने लिटरेसी जैसे महत्त्वपूर्ण विषय पर आयोजित आयोजन को भी जिस तरह से अपनी चुनावी राजनीति में इस्तेमाल करने का प्रयास किया, उससे लोगों को यह भी आभास मिला है कि अपनी चुनावी स्थिति को यह बहुत ही कमजोर पा/मान रहे हैं और इसलिए जहाँ कहीं भी इन्हें मौका मिलता है - यह मौके की गंभीरता और जरूरत को अनदेखा करते हुए अपने चुनावी प्रमोशन में लग जाते हैं । डिस्ट्रिक्ट लिटरेसी मीट में रवि चौधरी ने पिछले रोटरी वर्ष जैसे ही तेवर दिखाए और लोगों के बीच दावा किया कि जिस तरह पिछली बार उन्होंने कुछ भी करके मनमाफिक चुनावी नतीजा प्राप्त किया, वैसे ही इस बार भी उन्हें चाहें जो करना पड़े - वह अशोक कंतूर को चुनाव जितवायेंगे । रवि चौधरी के इस दावे को सुन कर लोगों को आश्चर्य भी हुआ और उनके बीच चर्चा हुई कि पिछले रोटरी वर्ष में तो वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, इसलिए तरह तरह की बेईमानी करके उन्होंने अपना मनचाहा नतीजा प्राप्त कर लिया; लेकिन इस वर्ष तो वह गवर्नर नहीं हैं - तब फिर उनके लिए बेईमानी कर पाना कैसे संभव हो सकेगा ? डिस्ट्रिक्ट लिटरेसी मीट में रवि चौधरी ने कई लोगों को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में अवॉर्ड दिलवाने के वायदे भी किए । यह उनका पिछले वर्ष जैसा ही चुनावी फंडा है । उल्लेखनीय है कि पिछले वर्ष उन्होंने कई एक प्रेसीडेंट्स को बेस्ट प्रेसीडेंट का अवॉर्ड 'बेच' कर वोट जुटाने का उपक्रम किया था । हालाँकि लोगों के लिए यह समझना मुश्किल हो रहा है कि इस वर्ष वह किसी भी प्रेसीडेंट को कैसे कोई अवॉर्ड बेच कर वोट जुटा सकेंगे ? तो क्या अशोक कंतूर के पक्ष में वोट जुटाने के लिए रवि चौधरी अवॉर्ड का लालच देकर प्रेसीडेंट्स व क्लब्स के अन्य प्रमुख लोगों को फाँसने और धोखा देने का प्रयास कर रहे हैं ?
डिस्ट्रिक्ट लिटरेसी मीट में यह और मजे की बात सुनने/देखने को मिली कि रवि चौधरी ने लोगों के बीच अपने आप को अशोक कंतूर के गवर्नर-वर्ष के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में बताते/दिखाते हुए लोगों को 'उस' वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम की पोस्ट देने/बाँटने का काम भी शुरू कर दिया । रवि चौधरी की इस हरकत का लोगों के बीच खूब मजाक भी बना और लोगों के बीच इस बात को लेकर सवालनुमा डर भी पैदा हुआ कि तो क्या अशोक कंतूर एक कठपुतली गवर्नर होंगे ? अशोक कंतूर के नजदीकियों का ही मानना तथा कहना/बताना है कि अशोक कंतूर अपनी उम्मीदवारी को लेकर जिस तरह से रवि चौधरी पर पूरी तरह आश्रित हो गए हैं, उससे उन्होंने अपनी उम्मीदवारी का कबाड़ा कर लिया है । नजदीकियों का ही बताना है कि रवि चौधरी की हरकतों के कारण अशोक कंतूर के कई समर्थकों व शुभचिंतकों ने उनसे दूरी बना ली है और इस कारण से अशोक कंतूर का समर्थन-आधार खासा घट गया है । डेढ़/दो महीने पहले तक अशोक कंतूर की चुनावी जीत को आसान मान रहे, अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के समर्थक बड़े नेता तक - अब इस बात को लेकर परेशान हो उठे हैं कि अशोक कंतूर को कैसे करके इतने वोट तो कम-से-कम मिल जाएँ ताकि वह अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार हो सकने का दावा पेश कर सकें । उन्हें यह चिंता सताने लगी है कि अशोक कंतूर को यदि ज्यादा अंतर से हार मिली, तो अशोक कंतूर के लिए तो अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का नैतिक आधार ही खो जायेगा । ज्यादा बड़े अंतर से मिली हार के बाद अगले रोटरी वर्ष में उनकी उम्मीदवारी को भला कौन गंभीरता से लेगा ? दिलचस्प नजारा यह है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई एक समर्थक ही दावा कर रहे हैं कि रवि चौधरी की बदनामी तथा लगातार जारी उनकी हरकतों ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के अभियान को कभी भी 'उठने' नहीं दिया और अब जब चुनाव सिर पर आ गए हैं - तो अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का अभियान संकट में फँसा दिख रहा है ।
दरअसल अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के कई समर्थकों ने उनसे इसलिए दूरी बना ली है, क्योंकि उनकी उम्मीदवारी के अभियान की कमान पूरी तरह रवि चौधरी ने सँभाल ली है, और वह रवि चौधरी के ऑफिस से संचालित होने लगा है । अशोक कंतूर के कई समर्थकों व नजदीकियों का कहना है कि अशोक कंतूर की उम्मीदवारी के अभियान के सिलसिले में होने वाली मीटिंग्स में रवि चौधरी उनके साथ ही बदतमीजी करने लगते हैं; वह दूसरों के सुझावों को अनसुना करते हैं तथा अपनी ही बात थोपने की कोशिश करते हैं । रवि चौधरी की इस हरकत के चलते अशोक कंतूर के कई समर्थक उनसे दूर हो गए हैं, और यह कहने लगे हैं कि खुदा-न-खास्ता कहीं अशोक कंतूर गवर्नर बन गए, तो उनकी आड़ में रवि चौधरी तो डिस्ट्रिक्ट और रोटरी का सत्यानाश ही कर देंगे । मजे का सीन यह है कि समर्थकों के अशोक कंतूर का साथ छोड़ते जाने की रवि चौधरी कोई परवाह करते हुए भी नहीं नजर आ रहे हैं; उन्होंने अशोक कंतूर को भी आश्वस्त किया है और लोगों के बीच भी दावा किया है कि मैं अकेला ही काफी हूँ अशोक कंतूर को चुनाव जितवाने के लिए । रवि चौधरी का कहना है कि उन्हें यह बात अच्छी तरह से समझ में आ गई है कि प्रेसीडेंट्स वोट देने के बदले में उम्मीदवार से क्या चाहते हैं - वह प्रेसीडेंट्स को वह सब दिलवायेंगे, जो वह चाहते हैं; और इस तरह अशोक कंतूर को आसानी से चुनाव जितवा लेंगे । रवि चौधरी कहते/बताते हैं कि उन्हें यह बात खूब अच्छे से पता है कि डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर सक्रिय और पहचान रखने वाले पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के दूसरे उम्मीदवार अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के समर्थन में हैं; लेकिन उन सब पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से निपटने के लिए 'मैं अकेले ही काफी हूँ ।' लगता है कि अशोक कंतूर ने भी मान/समझ लिया है कि रवि चौधरी अकेले ही उनकी चुनावी नैय्या को पार लगवा देंगे - इसलिए ही रवि चौधरी की तमाम बदनामी और रवि चौधरी के रवैये के कारण समर्थकों व नजदीकियों के साथ छोड़ते जाने के बावजूद अशोक कंतूर 'अकेले' रवि चौधरी पर ही भरोसा कर रहे हैं कि वह कोई भी बेईमानी करके उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी का चुनाव जितवा ही देंगे ।

Sunday, September 23, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल में पुनर्निर्वाचन की कोशिश करते हुए राजेश शर्मा युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को मूर्ख क्यों समझ रहे हैं और उन्हें क्यों लगता है कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनकी कारस्तानियों से परिचित नहीं हैं और उनके झाँसे में आ जायेंगे ?

नई दिल्ली । केंद्रीय मंत्रियों के साथ अपनी नजदीकियत बताने/दिखाने की हरकतों तथा कुछेक प्रशासनिक फैसलों में ढील दिलवाने का श्रेय लेने की राजेश शर्मा की कोशिशों ने उन्हें लोगों के बीच मजाक का विषय बना दिया है । लोगों का कहना है कि इस तरह खुद ही अपना ढोल बजा कर राजेश शर्मा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को प्रभावित करने की जो कोशिश कर रहे हैं, वह वास्तव में उन्हें उल्टी पड़ रही है, क्योंकि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स - खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स राजेश शर्मा की नौटंकी अच्छे से समझ रहे हैं, और मान रहे हैं कि राजेश शर्मा यह छिछोरी हरकतें अपने आपको प्रभावशाली 'दिखाने' के लिए कर रहे हैं । युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ही पूछ रहे हैं कि छिछोरी हरकतें करके कौन प्रभावशाली बन सका है; और जो प्रभावशाली है - उसे छिछोरी हरकतें करने की जरूरत क्या है ? कुछेक युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना/पूछना यह भी है कि यदि मान भी लें कि राजेश शर्मा की संबद्ध मंत्रालयों और मंत्रियों के बीच अच्छी पैठ है, तो फिर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को पिछले दो वर्षों से जिन फैसलों और कारणों से लगातार मुसीबतों का जो सामना करना पड़ रहा है, उन्हें बदलवाने और दूर करवाने के लिए राजेश शर्मा ने कोई प्रयास क्यों नहीं किए ? युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना/पूछना है कि राजेश शर्मा ने कभी भी इस बात का नोटिस आखिर क्यों नहीं लिया कि सरकार के मंत्री लोग चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को तरह तरह से 'चोर' बताते रहते हैं और जहाँ कहीं मौका मिलता है वहाँ बेमतलब के आरोप लगाते हुए चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को अपमानित करते रहते हैं और नसीहतें देते रहते हैं । अपने इस सवाल का खुद ही जबाव देते हुए युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि वास्तव में राजेश शर्मा की मंत्रियों के बीच इतनी और ऐसी औकात ही नहीं है कि चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सम्मान और हित में वह मंत्रियों से कोई उचित और सम्मानजनक फैसला करवा सकें ।
राजेश शर्मा की हरकतों को देखते/पहचानते हुए वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ-साथ युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भी अब लगने लगा है कि जिन मंत्रियों के साथ राजेश शर्मा अपनी नजदीकी दिखाते/जताते हैं, उन मंत्रियों के यहाँ उनकी हैसियत एक मसखरे से ज्यादा नहीं है । लोगों के बीच चर्चा है कि दरअसल मंत्रियों को भी अपना दिल बहलाने तथा अपने तनाव दूर करने के लिए कुछेक चमचे किस्म के मसखरों की जरूरत होती है, जो उनकी हाँ में हाँ मिलाएँ और उनकी बातों पर या तो गंभीर होने का नाटक करते हुए अपनी मुंडी हिलाएँ या खिलखिला कर हँसे - राजेश शर्मा उनकी इस तरह की जरूरतों को पूरा करने वाले समूह का एक हिस्सा हैं । मंत्री लोग ऐसे लोगों की सेवाओं से खुश हो कर कभी कभी ऐसे लोगों पर कुछ उपकार कर देते हैं और या इनकी कुछेक माँगे मान लेते हैं या मान लेने का आश्वासन दे देते हैं - जिसे राजेश शर्मा जैसे लोग अपनी 'उपलब्धि' के रूप में दिखाते हैं । लोगों को लगता है और उनका कहना है कि मंत्रियों से कुछ करवा सकने की राजेश शर्मा की हैसियत यदि सचमुच होती, तो पिछले दो वर्षों में वह चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को बार-बार सार्वजनिक मंचों पर अपमानित और कामकाज में परेशान नहीं होने देते - और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए वास्तव में कुछ करते हुए नजर आते । इसके विपरीत, सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में राजेश शर्मा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के साथ 'धोखाधड़ी' करते हुए और उन्हें अपमानित व परेशान करते/करवाते हुए ही नजर आए हैं । उल्लेखनीय है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य के रूप में राजेश शर्मा की हरकतों को लेकर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच इतना गुस्सा और विरोध रहा है कि इंस्टीट्यूट के मुख्यालय में 'राजेश शर्मा चोर है' जैसे नारे गूँजे । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के मुखर गुस्से का जैसा शिकार राजेश शर्मा को होना पड़ा है, वैसा इंस्टीट्यूट के अभी तक के इतिहास में अन्य किसी सेंट्रल काउंसिल सदस्य को नहीं होना पड़ा है ।
राजेश शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि दरअसल राजेश शर्मा को यह देख कर खासा तगड़ा झटका लगा है कि दिल्ली से दूर की ब्रांचेज के सदस्यों के बीच भी उनकी कारस्तानियों के चर्चे हैं और उनकी बदनामी है । राजेश शर्मा अभी तक यह समझते रहे थे कि उनकी करतूतों से सिर्फ दिल्ली के लोग ही परिचित हैं दिल्ली के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच ही उनकी बदनामी है; लेकिन सेंट्रल काउंसिल में अपने पुनर्निर्वाचन के उद्देश्य से पिछले दिनों जब वह अलग अलग ब्रांचेज में गए तो यह देख/जान कर सन्न रह गए कि उनकी हरकतों को लेकर यहाँ भी लोगों के बीच भारी नाराजगी है । कई एक जगह राजेश शर्मा को सुनने को मिला कि उनकी सड़कछाप हरकतों ने इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की पहचान और प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँचाने का ही काम किया है, और यह इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन के लिए कलंक की बात है कि उनके जैसा व्यक्ति सेंट्रल काउंसिल में है । इस तरह की बातों से राजेश शर्मा को पता चल गया कि नॉर्दर्न रीजन में हर तरफ उनकी कारस्तानियों के चर्चे हैं और उनकी बदनामी है । ऐसे में उन्हें सेंट्रल काउंसिल में अपना पुनर्निर्वाचित होना मुश्किल लगा है । इस मुश्किल को आसान करने के लिए राजेश शर्मा को उपाय सूझा है कि वह मंत्रियों के साथ अपनी नजदीकियत बताएँ/दिखाएँ और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को भरोसा दिलवाएँ कि वह उनके काम मंत्रियों से करवा सकते हैं । राजेश शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, राजेश शर्मा को लगता है कि उनके इस उपाय के झाँसे में वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स भले ही न आएँ, लेकिन युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अवश्य ही आ जायेंगे और उनकी चुनावी नैय्या को पार लगवा देंगे । कई युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना/पूछना लेकिन यह है कि राजेश शर्मा युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को मूर्ख क्यों समझ रहे हैं और उन्हें क्यों लगता है कि युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स उनकी कारस्तानियों से परिचित नहीं हैं और उनके झाँसे में आ जायेंगे ?

Saturday, September 22, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में मुकेश अरनेजा की हरकतों से परेशान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता ने यदि उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से सचमुच हटाया, तो मुकेश अरनेजा के लिए यह तीसरी बार फजीहत की स्थिति होगी

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा के साथ क्या वही सुलूक करने की तरफ बढ़ रहे हैं, जो आठ वर्ष पहले तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अमित जैन ने मुकेश अरनेजा के साथ किया था ? वरिष्ठ रोटेरियंस को याद है कि अमित जैन ने मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था, किंतु एक-डेढ़ महीने में मुकेश अरनेजा की हरकतों को देख कर अमित जैन ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा दिया था । दीपक गुप्ता के नजदीकियों का कहना/बताना है कि डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के रूप में मुकेश अरनेजा की हरकतों से दीपक गुप्ता भी परेशान हो उठे हैं, और वह मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा देने पर विचार कर रहे हैं । नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा से दीपक गुप्ता को कोई मदद तो मिल नहीं रही है - मुकेश अरनेजा उनके लिए मुसीबतें और खड़ी कर रहे हैं । पेम वन के आयोजन को लेकर मुकेश अरनेजा ने जो जो काम करने को लेकर दीपक गुप्ता को आश्वस्त किया था, उनमें से वह कोई भी काम करवा तो नहीं ही सके, ऐन मौके तक उन्होंने दीपक गुप्ता को अँधेरे में और रखा । दीपक गुप्ता के शुभचिंतकों का कहना है कि वह तो समय रहते दीपक गुप्ता ने मुकेश अरनेजा की क्षमताओं को भाँप लिया और जान/समझ लिया कि वह यदि मुकेश अरनेजा के चक्कर में रहे, तो फजीहत का शिकार होंगे - और इसलिए अपने पहले कार्यक्रम के रूप में पेम वन की तैयारी की कमान उन्होंने खुद सँभाल ली । दीपक गुप्ता का अनुभव रहा कि मुकेश अरनेजा बातें तो बड़ी ऊँची ऊँची करते हैं, लेकिन रिजल्ट देने के मामले में 'पिट' जाते हैं - इसीलिए दीपक गुप्ता के नजदीकियों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के रूप में दीपक गुप्ता डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से मुकेश अरनेजा की छुट्टी कर सकते हैं ।
मजे की बात यह है कि मुकेश अरनेजा यह तो समझ रहे हैं कि दीपक गुप्ता उनसे खुश नहीं हैं, लेकिन उनका दावा है कि दीपक गुप्ता उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाने की हिम्मत नहीं करेंगे । मुकेश अरनेजा के नजदीकियों के अनुसार, मुकेश अरनेजा का मानना/कहना है कि वह इस बात को अच्छी तरह से समझ रहे हैं कि दीपक गुप्ता ने खुशी से नहीं, बल्कि मजबूरी में उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया है - और दीपक गुप्ता की यही मजबूरी उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद पर बनाये रखेगी । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि दीपक गुप्ता ने पहले जेके गौड़ को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने का निश्चय किया था, लेकिन हालात कुछ ऐसे पलटे कि फिर वह मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के लिए मजबूर हुए । मुकेश अरनेजा का मानना/कहना है कि दीपक गुप्ता जिस कारण से उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाने के लिए मजबूर हुए, उसी कारण से दीपक गुप्ता उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाये रखने के लिए भी मजबूर रहेंगे । मुकेश अरनेजा तो अपने नजदीकियों के बीच यह दावा करते हुए भी सुने गए हैं कि दीपक गुप्ता के बाद आलोक गुप्ता भी अपने गवर्नर-वर्ष में उन्हें ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनायेंगे । मुकेश अरनेजा के कुछेक नजदीकियों का तो यहाँ तक कहना/बताना है कि मुकेश अरनेजा ने तो आलोक गुप्ता के गवर्नर-वर्ष की टीम के सदस्यों को भी चुनना शुरू कर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट के जो लोग मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता - तीनों के नजदीक हैं, उनका कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता एक जैसे कारणों से मुकेश अरनेजा से खफा तो हैं; और मुकेश अरनेजा को इस बात का पता भी है । इन्हीं नजदीकियों को लगता है कि मुकेश अरनेजा ऊपर ऊपर से भले ही दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के मजबूर होने का दावा करते हों, लेकिन वास्तव में वह इस आशंका से डरे हुए भी हैं कि दीपक गुप्ता कहीं सचमुच उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा न दें । दरअसल मुकेश अरनेजा के साथ बदकिस्मती की बात यह हुई है कि वह दो बार डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके हैं - अमित जैन ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया और फिर जल्दी ही हटा दिया; दूसरी बार पिछले वर्ष सतीश सिंघल ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया था - सतीश सिंघल को ही गवर्नरी पूरी करने का मौका नहीं मिला, जिस कारण मुकेश अरनेजा का डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर का कार्यकाल भी पूरा नहीं हो सका । ऐसे में मुकेश अरनेजा को डर है कि कहीं दीपक गुप्ता ने भी उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा दिया, तो यह उनके लिए बड़ी फजीहत की बात होगी । उनके नजदीकियों के अनुसार, इसीलिए मुकेश अरनेजा बहुत सावधानी बरत रहे हैं और प्रयास कर रहे हैं कि उनकी किसी कार्रवाई से दीपक गुप्ता की नाराजगी भड़क न उठे । मुकेश अरनेजा को जानने वाले लोगों का मानना/कहना लेकिन यह है कि मुकेश अरनेजा की रगों में खून नहीं, कारस्तानियाँ व बदतमीजियाँ बहती हैं; और लाख कोशिशों के बाद भी वह सुधर नहीं सकते हैं । कुछेक वरिष्ठ रोटेरियंस का कहना है कि जैसे कुत्ते की पूँछ को कितना ही सीधा करने की कोशिश करो, लेकिन वह सीधी नहीं हो सकती है - ठीक वैसे ही मुकेश अरनेजा कितना भी सुधरने की कोशिश करें, वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ सकते हैं । हरकतें उनके शरीर में जैसे कुलबुलाती रहती हैं, और वह कभी भी कहीं भी फूट पड़ती हैं । इसीलिए उन्हें जानने वाले लोगों का कहना है कि अमित जैन की तरह दीपक गुप्ता भी यदि मुकेश अरनेजा को डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाने की घोषणा कर दें, तो किसी को हैरान नहीं होना चाहिए ।

Friday, September 21, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल द्वारा अपने ऑफिस में पड़े छापे की खबरों से होने वाली फजीहत से बचने के लिए रीजनल काउंसिल की बजाये एक्जीक्यूटिव कमेटी की बुलाई मीटिंग में नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा के बीच हुई तू-तड़ाक ने काउंसिल में चलने वाली कमीशनखोरी की पोल खोली

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी की आज हुई मीटिंग में वाइस चेयरमैन नितिन कँवर तथा ट्रेजरर राजिंदर अरोड़ा ने एक-दूसरे के साथ पहले गाली-गलौच और फिर हाथा-पाई करते हुए एक-दूसरे की बेईमानियों की जिस तरह पोल खोली, उससे एक बार फिर साबित हुआ कि इन दोनों की बदतमीजियों और बेईमानियों ने काउंसिल में किस तरह की गंदगी मचाई हुई है । मजे की बात यह है कि यह दोनों ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में तीनों ही वर्ष सत्ता खेमे में साथ-साथ रहे हैं, और दूसरों के साथ लगातार बदतमीजियाँ करते रहे हैं । इन पर बेईमानी करने और काउंसिल में लूट-खसोट मचाने के आरोप तो लगते ही रहे हैं, लेकिन आज की मीटिंग में पहली बार दोनों को एक-दूसरे पर कमीशनखोरी करने के आरोप लगाते सुना गया । एक दूसरे पर हिसाब-किताब में बेईमानी करने तथा वेंडर्स से कमीशन उगाहने के आरोप लगाते हुए शुरू में तो इन्होंने एक-दूसरे के साथ खुल कर गाली-गलौच की, और फिर मामला हाथा-पाई तक जा पहुँचा । काउंसिल के स्टॉफ के लोगों का कहना/बताना है कि चेयरमैन पंकज पेरिवाल तथा स्टॉफ के वरिष्ठ सदस्यों ने बीच-बचाव न किया होता तो दोनों के कपड़े फटने और शारीरिक चोट लगने की स्थिति बन रही थी । हाथापाई करते हुए दोनों ही बार-बार पुलिस में रिपोर्ट करने और पुलिस बुलाने की बात करते हुए भी सुने गए । किसी तरह मामला तो शांत हो गया, लेकिन यह पोल जरूर खुल गई कि पदाधिकारियों के रूप में नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का कामकाज करने वाले वेंडर्स से कमीशन खाते हैं, और कमीशन की बंदरबाँट करने के लिए एक-दूसरे के सिर फोड़ने को भी तैयार हो सकते हैं ।
उल्लेखनीय है कि आज हुई एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग का मुख्य एजेंडा वेंडर्स के बकाये के भुगतान को लेकर ही था । दरअसल पिछले कई महीनों से वेंडर्स के भुगतान नहीं हो रहे हैं, जिसके चलते वेंडर्स ने सर्विस देना बंद करने की धमकी दी हुई थी । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के सेमीनार आयोजित करने वाले होटलों के प्रबंधकों ने धमकी दी हुई थी कि उनके भुगतान यदि जल्दी ही नहीं किए गए तो वह नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को ब्लैक-लिस्ट कर देंगे और तब काउंसिल को अपने कार्यक्रमों के लिए होटल्स में जगह नहीं मिल सकेगी । चर्चा रही कि काउंसिल के चेयरमैन पंकज पेरिवाल लुधियाना में अपने ऑफिस में पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे के कारण मुसीबत में फँसे होने के चलते चेयरमैन पद की जिम्मेदारियाँ निभाने के लिए समय नहीं निकाल पाए और इसलिए वेंडर्स व होटलों के भुगतान अटके/फँसे । समस्या को हल करने के लिए काउंसिल की सेक्रेटरी पूजा बंसल ने रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए नोटिस निकाला, लेकिन चेयरमैन के रूप में पंकज पेरिवाल ने नियमों की दुहाई देते हुए उनके नोटिस को रद्द कर/करवा दिया । लोगों के बीच चर्चा रही कि पंकज पेरिवाल को डर रहा कि लुधियाना के अखबारों में प्रकाशित हुईं उनके ऑफिस पर पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे की खबरों को लेकर मीटिंग में किसी ने यदि सवाल पूछ लिया तो उन्हें जबाव देना पड़ जायेगा और तब उनके यहाँ पड़े छापे की बात काउंसिल के रिकॉर्ड पर आ जाएगी, इसलिए पंकज पेरिवाल ने रीजनल काउंसिल की मीटिंग से बचने की हर संभव कोशिश की । वेंडर्स के भुगतान के मामले को हल करने का भी दबाव लेकिन बढ़ता जा रहा था, इसलिए पंकज पेरिवाल ने बीच का रास्ता निकालते हुए एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग बुला ली । एक्जीक्यूटिव कमेटी में सब 'अपने' ही लोग हैं, इसलिए पंकज पेरिवाल निश्चिंत रहे कि लुधियाना के अखबारों में छपी खबरों के हवाले से कोई उनके ऑफिस में पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे के बारे में सवाल नहीं पूछेगा ।
पंकज पेरिवाल ने रीजनल काउंसिल की बजाये एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग करके अपने आप को तो बचा लिया, लेकिन नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा के बीच हुई धींगामुश्ती के चलते प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट को कलंकित होने से वह नहीं बचा सके । दरअसल वेंडर्स और होटलों के भुगतान में होने वाली देरी पर बात शुरू हुई तो भेद खुला कि ट्रेजरर के रूप में राजिंदर अरोड़ा भुगतान में जानबूझ कर इसलिए देरी कर रहे थे, क्योंकि उन्हें वेंडर्स से कमीशन नहीं मिल रहा था । वेंडर्स की तरफ से कहा/सुना गया कि वह आखिर किस किस को कमीशन दें ? बात खुली कि पिछले वर्ष ट्रेजरर के रूप में नितिन कँवर वेंडर्स से कमीशन लेते रहे थे, और वह चाहते थे कि चूँकि वेंडर्स को उन्होंने काम दिलवाया है, इसलिए उन्हें इस वर्ष भी कमीशन मिलता रहे । इस कमीशन खोरी के मास्टरमाइंड के रूप में पिछले वर्ष के चेयरमैन राकेश मक्कड़ को देखा/पहचाना गया । काउंसिल के स्टॉफ का कहना/बताना है कि काउंसिल में राकेश मक्कड़ अकेले ऐसे सदस्य हैं, जो सुबह प्रायः स्टॉफ के आने से भी पहले ऑफिस आ जाते हैं और देर शाम तक ऑफिस में रहते हैं और काउंसिल के पैसे से ही दिन भर चाय-नाश्ता और खाना-पीना करते हैं । इस वर्ष भी राकेश मक्कड़ अपने आपको 'चेयरमैन' ही मानते/समझते हैं । नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा को उनके दो नवरत्नों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । लगातार आरोप लगते रहे हैं कि इन तीनों ने काउंसिल को तरह तरह से जी भर कर लूटा है । लूट के माल पर बढ़े लालच के चलते वेंडर्स के भुगतान रुके तो समस्या खड़ी हुई, और समस्या को हल करने की कोशिश में नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा की कारस्तानियों की पोल खुलना शुरू हुई तो फिर दूसरे की करतूत को अपनी करतूत से बड़ा साबित करने की कोशिश में नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा एक दूसरे की कारस्तानियों का कच्चा-चिट्ठा खोलने लगे - और उनकी इस कोशिश में नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक्जीक्यूटिव कमेटी की मीटिंग में सड़कछाप माहौल बन गया, जिसमें गाली-गलौच सुनी गईं और हाथा-पाई का नजारा देखा गया ।
मजे की बात यह है कि नितिन कँवर और राजिंदर अरोड़ा नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अपने अपने पुनर्निर्वाचन के लिए फिर से चुनावी मैदान में हैं, और इन्हें पूरा विश्वास है कि इनकी हरकतों और कारस्तानियों को जानने के बावजूद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इन्हें वोट देंगे और यह फिर से रीजनल काउंसिल में सदस्य और पदाधिकारी बनेंगे ।

Thursday, September 20, 2018

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की चुनावी राजनीति में 'सीए प्रीमियर लीग' के जरिये सुधीर अग्रवाल ने जो बाउंसर फेंका है, उसने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनावी माहौल में गर्मी पैदा करने के साथ-साथ बाकी उम्मीदवारों को चिंतित व परेशान करने का काम भी किया है

नई दिल्ली । सुधीर अग्रवाल की 'क्रिकेट डिप्लोमेसी' ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की चुनावी राजनीति में खासी गर्मी पैदा कर दी है । नॉर्दर्न इंडिया सीए फेडरेशन की तरफ से दो अक्टूबर को शुरू हो रही 'सीए प्रीमियर लीग' को सुधीर अग्रवाल की तरफ से एक ऐसे मास्टर स्ट्रोक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है, जिसने नॉर्दर्न रीजन में सेंट्रल काउंसिल के प्रायः सभी उम्मीदवारों और उनके समर्थकों को चिंतित और परेशान कर दिया है । चिंतित और परेशान हों भी क्यों न ? इस बार की प्रीमियर लीग में दिल्ली से बाहर की भी कई टीम आ रही हैं, और इससे भी बड़ी बात यह कि बिग फोर का प्रतिनिधित्व करती हुईं भी कुछेक टीम इस बार प्रीमियर लीग का हिस्सा बन रही हैं । इन तथ्यों को सुधीर अग्रवाल की चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खिलाड़ियों के बीच बनी और बढ़ती स्वीकार्यता के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । यूँ कहने को तो खिलाड़ियों की संख्या हालाँकि ज्यादा नहीं होगी; किंतु एक खिलाड़ी सिर्फ एक ईकाई ही नहीं होता है - उसके नजदीकी और उसके प्रशंसक होते हैं, उसकी एक फॉलोइंग होती है और उसका एक ऑरा (आभामंडल) होता है; ऐसे में एक खिलाड़ी वास्तव में कई लोगों पर प्रभाव छोड़ता है । अंतर्राष्ट्रीय ख्याति और मान्यता प्राप्त फिरोजशाह कोटला की पिच पर खेलने के लिए जालंधर, हिसार, यमुनानगर, गुड़गाँव आदि से आयेंगे तो कुछ ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खिलाड़ी, लेकिन वहाँ के बाकी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स खिलाड़ियों और चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भी यह तथ्य स्वाभाविक रूप से उत्सुकता और दिलचस्पी का होगा ही । जो भी क्रिकेट का बल्ला पकड़ता है, उसकी इच्छा और हसरत अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्राप्त फिरोजशाह कोटला की पिच पर खेलने की तो होती ही है । यह सच है कि सीए प्रीमियर लीग में खेलने का मौका कुछ ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को मिलेगा, लेकिन क्रिकेट में दिलचस्पी रखने वाले बाकी चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए भी यह मौका भावनात्मक जुड़ाव का होगा ही - और ऐसा कौन चार्टर्ड एकाउंटेंट होगा, जिसे क्रिकेट में दिलचस्पी न होगी । यही तथ्य सेंट्रल काउंसिल के चुनाव के संदर्भ में सुधीर अग्रवाल की 'क्रिकेट डिप्लोमेसी' को महत्त्वपूर्ण बना देता है, और सेंट्रल काउंसिल के बाकी उम्मीदवारों की नींद उड़ा देता है ।
इस वर्ष दो अक्टूबर से शुरू हो रही 'सीए प्रीमियर लीग' नॉर्दर्न इंडिया सीए फेडरेशन का चौथा आयोजन है । पहले के तीन आयोजनों की सफलता ने सीए प्रीमियर लीग को नॉर्दर्न रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच जो पहचान और प्रतिष्ठा दी है, उसके चलते भी इस चौथे आयोजन के प्रति रीजन के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खासा उत्साह है । इस उत्साह को बनाने/जमाने में सुधीर अग्रवाल की तरकीब भी है - जिन्होंने सीए प्रीमियर लीग के रूप में प्रोफेशन और क्रिकेट का ऐसा 'कॉकटेल' तैयार किया है, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को दोहरा फायदा मिलता/दिखता है । इसका नजारा तीसरे और पिछले आयोजन के फाइनल व पुरुस्कार वितरण समारोह में देखने को मिला था । उक्त समारोह में इंस्टीट्यूट के दो पूर्व प्रेसीडेंट्स - एनडी गुप्ता और वेद जैन समारोह में मौजूद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए आकर्षण के प्रमुख केंद्र थे । उक्त समारोह में मौजूद चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सक्रियता और संलग्नता में देखा/पाया भी गया और उनमें से कईयों ने कहा भी कि यहाँ क्रिकेट के रोमांच के साथ एनडी गुप्ता और वेद जैन जैसे इंस्टीट्यूट के प्रतिष्ठित लोगों के साथ नजदीकी बनाने और दिखाने के मौके भी मिल रहे हैं । मौजूदा वर्ष के शुरू में हुए उक्त समारोह में एनडी गुप्ता और वेद जैन के साथ जिन कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने तस्वीरें खिंचवाईं और सोशल मीडिया में उन तस्वीरों को लगाया/दिखाया, उन तस्वीरों ने उक्त समारोह में न पहुँच सके चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को 'सीए प्रीमियर लीग' के प्रति उत्सुक व गंभीर बनाया । यह भी एक प्रमुख कारण है कि 'सीए प्रीमियर लीग' के करीब बारह दिन बाद शुरू हो रहे चौथे आयोजन के प्रति चार्टर्ड एकाउंटेंट्स, खासकर युवा चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का जोश जोरों पर दिख रहा है । संयोग है कि यह चौथा आयोजन इंस्टीट्यूट के चुनाव के मौके पर हो रहा है । इस आयोजन के मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में सुधीर अग्रवाल ने इस मौके और जोश का अपनी उम्मीदवारी के लिए पूरा पूरा फायदा उठाने के उद्देश्य से चौथे आयोजन को और खास बनाने की तैयारी भी की है । दरअसल सुधीर अग्रवाल की बहुआयामी तैयारी ने ही चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के सेंट्रल काउंसिल के चुनावी माहौल में गर्मी पैदा कर दी है ।
'तैयारी' के तहत ही व्यवस्था की गई है कि प्रत्येक टीम को एक लीग मैच फिरोजशाह कोटला की पिच पर खेलने का मौका अवश्य ही मिलेगा । पिछले आयोजन में सिर्फ फाइनल मैच ही फिरोजशाह कोटला की पिच पर हो सका था । इस बार की व्यवस्था में लेकिन लीग में शामिल प्रत्येक खिलाड़ी को फिरोजशाह कोटला की अंतर्राष्ट्रीय पिच पर अपने खेल का कौशल दिखाने का मौका मिलेगा । दो अक्टूबर को 'सीए प्रीमियर लीग' का उद्घाटन दिल्ली स्थित अक्षर धाम मंदिर के मुख्य पुजारी स्वामी वत्सल मुनि कर रहे हैं, और बाद के आयोजनों में भी प्रयास रहेगा कि देश के मुख्य क्रिकेटर और इंस्टीट्यूट के प्रमुख पदाधिकारी और सदस्य खिलाड़ियों की हौंसला-आफजाई के लिए मौजूद रहें । यह व्यवस्था लीग की पहचान और प्रतिष्ठा बढ़ाने के उद्देश्य से तो होगी ही, साथ ही इस व्यवस्था में सेंट्रल काउंसिल के लिए प्रस्तुत सुधीर अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रमोशन का लक्ष्य भी स्वाभाविक रूप से होगा ही । सुधीर अग्रवाल ने सारी व्यवस्था इतनी चतुराई से की है कि प्रीमियर लीग के हर मौके का फायदा उनकी उम्मीदवारी को मिल सके । चुनावी आचार-संहिता का पालन करते हुए सुधीर अग्रवाल ने हालाँकि नॉर्दर्न इंडिया सीए फेडरेशन के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है, और प्रीमियर लीग के छह पृष्ठों के ब्रॉशर पर कहीं भी उनका नाम नहीं है - लेकिन पूरे आयोजन पर उनकी छाप इतनी गहरी है कि नॉर्दर्न इंडिया सीए फेडरेशन और/या सीए प्रीमियर लीग का जिक्र होते ही लोगों की जुबान पर सहज ही सुधीर अग्रवाल का नाम आ जाता है । दरअसल नॉर्दर्न इंडिया सीए फेडरेशन तथा सीए प्रीमियर लीग और सुधीर अग्रवाल आपस में एक दूसरे के इतने पर्याय बन चुके हैं; और लोगों के दिलों-दिमाग में ऐसे बैठ चुके हैं कि ब्रॉशर में सुधीर अग्रवाल का नाम होने या न होने का कोई अर्थ नहीं रह गया है । प्रीमियर लीग के जरिये सुधीर अग्रवाल ने सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में जो बाउंसर फेंका है, उसने इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा करने तथा सेंट्रल काउंसिल के बाकी उम्मीदवारों को चिंतित व परेशान करने का काम जरूर किया है - लेकिन इंस्टीट्यूट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि अपने इस आयोजन को मिलने वाले जोरदार समर्थन को वोट में बदलने का मैकेनिज्म सुधीर अग्रवाल को अभी तैयार करना है । वास्तव में वह मैकेनिज्म ही सेंट्रल काउंसिल में उनकी सफलता को सुनिश्चित करने का काम करेगा ।

Monday, September 17, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता की रजिस्ट्रेशन की कमी के कारण फ्लॉप होती दिख रही पेम वन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की अपनी उम्मीदवारी के प्रमोशन के लिए उपयोग करने की अशोक अग्रवाल की कोशिश सचमुच बचा लेगी क्या ?

गाजियाबाद । 23 सितंबर को होने जा रहे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के पहले कार्यक्रम पेम (प्रेसीडेंट इलेक्ट मीट) वन के लिए अब जब गिनती के दिन ही बचे हैं, तब भी दीपक गुप्ता को रजिस्ट्रेशन के लिए जूझना पड़ रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अशोक अग्रवाल के समर्थकों के बड़ी संख्या में पेम वन में उपस्थिति बनाने के अभियान के चलते दीपक गुप्ता की मुश्किलें कुछ आसान तो होती हुई दिख रही हैं, अन्यथा दीपक गुप्ता की पेम वन का बुरा हाल ही होना था । स्थिति कितनी खराब है, इसका अंदाजा इसी बात से लग रहा है कि पर्याप्त रजिस्ट्रेशन न हो पाने  के कारण दीपक गुप्ता को खुद प्रयास करना पड़ रहा है, और फोन कर कर के लोगों से रजिस्ट्रेशन करवाने की रिक्वेस्ट करना पड़ रही है । दीपक गुप्ता का शिकायतभरा रोना यह है कि जो लोग उनके साथ जुड़े हैं और उनके साथ होने का दम भरते हैं, वह लोग भी रजिस्ट्रेशन करवाने में उनकी मदद नहीं कर रहे हैं । दीपक गुप्ता को सबसे ज्यादा आश्चर्य उन लोगों के व्यवहार पर है, जो उनके गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट टीम में पद तो लेना चाहते हैं - और या ले चुके हैं, लेकिन पेम वन को कामयाब बनाने में कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । परंपरा और व्यवहार के अनुसार, प्रेसीडेंट इलेक्ट के अलावा पेम वन में ऐसे रोटेरियंस शामिल होते हैं, जिन्हें अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट टीम में पद लेना या मिलना होता है; ऐसे लोगों की एक सीमित संख्या होती है, जिनका रजिस्ट्रेशन तो पेम वन के लिए आसानी से हो जाता है - रजिस्ट्रेशन के 'टारगेट' को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट और उनकी कोर टीम के सदस्यों को प्रयास करना होता है । दीपक गुप्ता और उनकी कोर टीम के सदस्यों के प्रयासों में कमी के चलते पेम वन के 'टारगेट' को पूरा करना दीपक गुप्ता के लिए मुश्किल हो रहा है; और इसके चलते दीपक गुप्ता और उनकी कोर टीम के सदस्यों के बीच ही आरोप-प्रत्यारोप का सीन बन रहा है । दीपक गुप्ता का अपनी कोर टीम के सदस्यों पर आरोप है कि लोग महत्त्वपूर्ण पद लेकर तो बैठ गए हैं, लेकिन काम कुछ करने को तैयार नहीं हैं; कोर टीम के सदस्यों का कहना लेकिन यह है कि दीपक गुप्ता में लीडरशिप की कोई खूबी ही नहीं है, और उन्हें यह पता व समझ ही नहीं है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर केरूप में उन्हें काम कैसे करने हैं और कैसे लोगों को इंस्पॉयर करना है ।
दीपक गुप्ता का 'टारगेट' दरअसल सुभाष जैन की पेम वन से 'अच्छी' पेम वन करने का है । हालाँकि जगह के मामले में दीपक गुप्ता गच्चा खा गए हैं । सुभाष जैन ने पेम वन का आयोजन पुलमैन होटल में किया था, जहाँ रोटेरियंस को नया अनुभव मिला था, जबकि दीपक गुप्ता पेम वन का आयोजन ताज पैलेस में कर रहे हैं, जो पुलमैन से सस्ता पड़ता है । दीपक गुप्ता इस कमी की भरपाई संख्या बल से पूरा करना चाहते हैं । पिछले वर्ष पेम वन में साढ़े पाँच सौ से अधिक लोग जुटे थे, दीपक गुप्ता इससे अधिक लोग अपनी पेम वन में चाहते हैं । लेकिन रजिस्ट्रेशन की जो रफ्तार है, उसे देख कर लगता नहीं है कि दीपक गुप्ता इस 'टारगेट' को प्राप्त कर सकेंगे । लोगों का आरोप है कि दीपक गुप्ता रजिस्ट्रेशन के लिए ज्यादा रकम ले रहे हैं, और यही कारण है कि उन्हें रजिस्ट्रेशन की कमी का सामना करना पड़ रहा है । पिछले वर्ष पेम वन में एक दंपति के लिए रजिस्ट्रेशन चार्ज 5500 रुपए था, लेकिन दीपक गुप्ता एक दंपति के लिए आठ हजार रुपए बसूल रहे हैं । पिछली बार की तुलना में इस बार का होटल सस्ता है, इसलिए उम्मीद तो यह की जा रही थी कि इस बार रजिस्ट्रेशन चार्ज कम होगा, लेकिन दीपक गुप्ता तो करीब डेढ़ गुना रकम बढ़ा कर चार्ज बसूल कर रहे हैं । पेम वन को स्पॉन्सर करने वाले क्लब्स से तो दीपक गुप्ता ने पिछले वर्ष की तुलना में करीब तीन गुना रकम बसूलने की कोशिश की है । अपने पहले ही कार्यक्रम में दीपक गुप्ता ने जो लूट मचाई है, उसके कारण वह डिस्ट्रिक्ट में आलोचना व आरोपों के पात्र बन रहे हैं । हालाँकि कुछेक लोग इसके लिए दीपक गुप्ता के डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं; उनका मानना/कहना है कि दीपक गुप्ता रोटरी के नाम पर पैसे बनाने का काम शायद न करें - और यह काम उन्हें अँधेरे में रख कर मुकेश अरनेजा कर रहे हैं ।
मजे की बात यह है कि दीपक गुप्ता एक तरफ तो यह दावा कर रहे हैं कि पेम वन के आयोजन में जो/जितना पैसा खर्च होना है, वह स्पॉन्सरशिप तथा अभी तक हुए रजिस्ट्रेशन के जरिये आ चुका है - इसलिए उन्हें और रजिस्ट्रेशन की जरूरत नहीं है; लेकिन दूसरी तरफ वह फोन कर कर के लोगों पर रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए दबाव बना रहे हैं । लोगों का कहना/पूछना है कि दीपक गुप्ता को जब पेम वन का खर्च जुट गया है, तो उन्हें और रजिस्ट्रेशन की जरूरत क्या है, जिसके लिए वह तरह तरह से दबाव बना रहे हैं । अपने पहले ही कार्यक्रम, पेम वन को लेकर दीपक गुप्ता जिस तरह से विवादों व आरोपों के घेरे में आ गए हैं, और लीडरशिप व संगठनक्षमता के मामले में अपनी कमजोरी को जाहिर कर रहे हैं - उससे उनके गवर्नर वर्ष के बेहाल होने/रहने के अनुमान लगाए जा रहे हैं । पेम वन के मामले में दीपक गुप्ता की कुछ लाज बचाने का काम अशोक अग्रवाल और उनके समर्थक करते नजर आ रहे हैं । दरअसल पेम वन के जरिये अशोक अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए अपनी उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से प्रयास किया है कि पेम वन के आयोजन में उनके समर्थक अच्छी संख्या में रहें, ताकि लोगों को यह बताया/दिखाया जा सके कि दीपक गुप्ता और उनके बीच एक दूसरे की मदद करने वाले संबंध हैं तथा दीपक गुप्ता की टीम में अशोक अग्रवाल के समर्थकों व नजदीकियों को प्रमुखता से जगह मिलने जा रही है । अशोक अग्रवाल और उनके समर्थकों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता के साथ अपने और अपने समर्थकों के दोस्ताना संबंधों को दिखा/जता कर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में अशोक अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए अच्छा समर्थन जुटाया जा सकेगा ।

Sunday, September 16, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में टीके रूबी का 'मॉडल' अपनाने की बजाये राजा साबू वाला 'मॉडल' अपनाने के कारण डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी रसिन के कार्यक्रम के रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर फजीहत में फँसे

चंडीगढ़ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल 29 सितंबर को आयोजित हो रही समिट के रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर भारी आलोचना का शिकार हो रहे हैं । सोशल मीडिया में अपने गुस्से और अपनी नाराजगी को व्यक्त करते हुए डिस्ट्रिक्ट के कई आम और खास लोगों ने इसे लूट-खसोट कहा/बताया है, और साफ-साफ आरोप लगाया है कि छोटे-छोटे आयोजनों के बड़े-बड़े रजिस्ट्रेशन चार्ज लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल खासी कमाई कर रहे हैं और अपनी जेब भर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि उक्त समिट में मुख्य वक्ता के रूप में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी रसिन आ रहे हैं । ज्यूडिशियल एकेडमी में आयोजित हो रहे इस कार्यक्रम के लिए प्रति व्यक्ति 700 रुपये तथा प्रति दंपति 1300 रुपये का रजिस्ट्रेशन चार्ज लिया जा रहा है । शाम 4 बजे से शुरू होने वाले इस कार्यक्रम को लेकर पहले लोगों को भ्रम रहा कि कार्यक्रम के बाद डिनर की व्यवस्था होगी, लेकिन जब भेद खुला कि डिनर नहीं - चाय आदि की ही व्यवस्था है, तो रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर लोगों का गुस्सा भड़क उठा । कई लोगों ने रजिस्ट्रेशन की रकम को बहुत ज्यादा बताया है । किसी किसी ने तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल को ऑफर भी दिया कि उक्त कार्यक्रम वह 250 रुपये के रजिस्ट्रेशन चार्ज में करवा देंगे । डिस्ट्रिक्ट में, डिस्ट्रिक्ट के किसी कार्यक्रम के रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर इससे पहले किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को ऐसी फजीहत झेलना पड़ी हो - ऐसा डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ सदस्यों को भी याद नहीं पड़ता है ।
प्रवीन गोयल के लिए सबसे बड़ी फजीहत की बात यह हुई है कि लोगों ने पिछले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी के साथ उनकी तुलना करके उन्हें नीचा और गया-बीता साबित करने की कोशिश की है । किसी ने पिछले रोटरी वर्ष में हुए एक इंटरसिटी कार्यक्रम की याद करते हुए बताया कि तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी ने 750 रुपये के रजिस्ट्रेशन चार्ज में लंच करवाया था, चाय पिलवाई थी और गिफ्ट भी दिए थे । लोगों का पूछना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी यदि 750 रुपये में इतना कुछ कर सकते हैं, तो प्रवीन गोयल के लिए कहाँ/क्या मुश्किल है ? इसी तुलना के आधार पर लोगों का कहना है कि टीके रूबी को तो चूँकि रोटरी से पैसे कमाने नहीं थे, इसलिए उन्होंने रोटेरियंस को अच्छी सुविधाएँ दीं, लेकिन प्रवीन गोयल ने लगता है कि रोटरी से पैसे कमाने को अपना लक्ष्य बना लिया है - इसलिए वह छोटी/मोटी सुविधाओं के बदले में मोटी-मोटी रकम बसूल रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट फाइनेंस कमेटी के पूर्व सदस्य तथा रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट एमपी गुप्ता ने पत्र लिख कर प्रवीन गोयल से रजिस्ट्रेशन चार्ज पर पुनर्विचार करने का अनुरोध भी किया है । अपने पत्र में एमपी गुप्ता ने प्रवीन गोयल को याद दिलाया है कि अभी दो महीने पहले ही, जुलाई में ज्यूडिशियल एकेडमी में ही उन्होंने एक सम्मान समारोह का आयोजन किया था, जिसमें 600 रूपये का रजिस्ट्रेशन था । एमपी गुप्ता के पत्र में याद दिलाए गए इस तथ्य के सामने आने के बाद लोगों को आश्चर्य हुआ कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रवीन गोयल के सामने ऐसी क्या मजबूरी आ गई कि उन्होंने दो महीने में ही उसी जगह तथा उसी तरह की सुविधाओं के लिए 100 रुपये बढ़ा दिए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट के वरिष्ठ रोटेरियंस को यह देख कर बहुत बुरा भी लग रहा है कि कुछ सौ रुपयों को लेकर डिस्ट्रिक्ट में सार्वजनिक रूप से इतनी थुक्का-फजीहत हो रही है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जैसे महत्त्वपूर्ण पद की छीछालेदर हो रही है । लेकिन उनका कहना है कि इस स्थिति को लाने/बनाने में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजेंद्र उर्फ राजा साबू और उनकी शह पर रहने/चलने वाले गवर्नर्स का व्यवहार ही मुख्य रूप से जिम्मेदार है । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स तरह तरह से लोगों से पैसा इकट्ठा करते रहे हैं, और फिर उसका हिसाब-किताब देने/बताने में आनाकानी करते रहे हैं और इकट्ठा हुई रकम पर कुंडली मार कर बैठे रहे हैं और मनमर्जी से उसका इस्तेमाल करते रहे हैं - इसका नतीजा है कि डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगने लगा है कि यह लोग रोटरी और सेवा/प्रोजेक्ट्स के नाम पर पैसों की भारी हेराफेरी और चोरी-चकारी करते हैं । राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स के लिए बदकिस्मती की बात यह रही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी ने रोटेरियंस को मान/सम्मान तथा सुविधाएँ देने में इतने ऊँचे स्टैंडर्ड स्थापित किए कि लोगों को महसूस हुआ कि जैसे अभी तक तो वह ठगे जा रहे थे । हिसाब-किताब में पारदर्शिता रखने तथा लगातार उसके लिए प्रयास करने के टीके रूबी के प्रयत्नों का नतीजा यह हुआ है कि राजा साबू और उनके साथी गवर्नर्स का हर काम संदेह से देखा जाने लगा है और उसका हिसाब-किताब माँगा जाने लगा है । इस बदले माहौल का खामियाजा प्रवीन गोयल को भुगतना पड़ रहा है - क्योंकि गवर्नरी के लिए उन्होंने टीके रूबी का 'मॉडल' अपनाने की बजाये राजा साबू वाला 'मॉडल' अपनाया, और अपने हर काम को संदेहास्पद बना लिया है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बैरी रसिन के लिए होने वाला कार्यक्रम रजिस्ट्रेशन चार्ज को लेकर जिस तरह से विवाद में घिर गया है, उससे लग रहा है कि प्रवीन गोयल के लिए राजा साबू का 'मॉडल' मुसीबत बढ़ाने वाला साबित होगा ।

Saturday, September 15, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में दो उम्मीदवारों के रह जाने से सीधे बने चुनावी मुकाबले की स्थिति में पूर्व डिस्ट्रिक्ट रमेश चंद्र की नाराजगी के चलते अशोक कंतूर के लिए मामला चुनौतीपूर्ण बना

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नामांकन भरने का अंतिम दिन गुजर जाने के साथ ही स्पष्ट हो गया है कि उक्त पद के लिए दो ही उम्मीदवारों - अशोक कंतूर और अनूप मित्तल के बीच सीधा चुनावी मुकाबला होगा । चुनावी मुकाबले की दौड़ शुरू होते समय जितेंद्र गुप्ता भी दौड़ते हुए दिख रहे थे; हालाँकि उनकी दौड़ को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा था - लेकिन कोई यह भी नहीं मान रहा था कि वह चुपचाप से पतली गली पकड़ कर दौड़ से अलग हो जायेंगे । माना/समझा जा रहा था कि जितेंद्र गुप्ता अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार होने की तैयारी के तहत इस वर्ष उम्मीदवार 'बन' रहे हैं, इसलिए एक उम्मीदवार के रूप में वह ज्यादा सक्रिय नहीं दिखेंगे - लेकिन उम्मीदवार बने रहेंगे, ताकि अगले रोटरी वर्ष में वह पहले से बढ़त बना सकें । इसलिए उम्मीदवारों में दो ही नाम देख कर कई लोगों को हैरानी भी हुई, कुछेक को यह देख कर झटका भी लगा कि डिस्ट्रिक्ट की लीडरशिप के मामले में जितेंद्र गुप्ता इस तरह का बचकानापन दिखायेंगे । जितेंद्र गुप्ता की बदकिस्मती यह रही कि लोगों ने तो उन्हें गंभीरता से तब भी नहीं लिया था, जब वह खुद बहुत गंभीर दिखने का प्रयास कर रहे थे  - लिहाजा जब उन्होंने खुद ही गंभीरता को त्याग दिया, तब लोग उन्हें लेकर मजाक बना/सुना रहे हैं । ऐसे में, जितेंद्र गुप्ता की तरफ से चुनावी दौड़ से बाहर होने के लिए अपनी प्रोफेशनल व्यस्तता को कारण बताते हुए कुछ सफाई दी गई है; लेकिन लोगों को लग रहा है कि जितेंद्र गुप्ता को चूँकि अपनी उम्मीदवारी के संबंध में कहीं कोई समर्थन नहीं मिला, इसलिए उन्होंने अगले रोटरी वर्ष का प्लान त्याग दिया है; और अब जब उन्हें अगले वर्ष उम्मीदवार नहीं बनना है, तो इस वर्ष उम्मीदवार बन कर माहौल बनाने की कोई जरूरत भी नहीं रह गई - और इसलिए वह चुनावी दौड़ के सीन से चुपचाप खिसक लिए हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए दो उम्मीदवारों के रह जाने से चुनावी मुकाबला इस वर्ष सीधा और दिलचस्प हो गया है । पता नहीं कि यह मुकाबला सीधा-सीधा हो जाने का नतीजा है या कुछ और बात है कि अशोक कंतूर के जो समर्थक अभी दो-तीन महीन पहले तक अशोक कंतूर को अस्सी प्रतिशत वोट मिलने का दावा कर रहे थे, वह अब चुनावी मुकाबले को बराबर की टक्कर के रूप में देख रहे हैं । उल्लेखनीय है कि दो-तीन महीने पहले तक अशोक कंतूर के समर्थक नेता लोगों के बीच कहते/बताते थे कि अनूप मित्तल और जितेंद्र गुप्ता तो नाहक ही उम्मीदवार बन रहे हैं, क्योंकि अशोक कंतूर को अस्सी प्रतिशत वोट मिल रहे हैं - किंतु अब जब चुनावी मुकाबले का दिन नजदीक आता दिख रहा है, तो अशोक कंतूर के समर्थक नेताओं के सुर बदले हुए हैं, और वह मान रहे हैं कि अनूप मित्तल के लिए भी समर्थन तेजी से बढ़ा है और मुकाबला बराबरी पर आ टिका है । मजे की बात यह है कि अशोक कंतूर के समर्थक नेता इस बात का कोई कारण भी नहीं बता रहे हैं कि दो-तीन महीने पहले अशोक कंतूर को जो अस्सी प्रतिशत वोट मिल रहे थे, वह घट कर पचास प्रतिशत तक पर क्यों आ गए हैं, और अनूप मित्तल को समर्थन तेजी से क्यों बढ़ा है ? अशोक कंतूर के समर्थक नेताओं के इस रवैये को देख कर डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लगा है कि अशोक कंतूर  समर्थक नेताओं को सच्चाई या तो पता नहीं है, और या वह जानबूझ कर सच्चाई को अनदेखा कर रहे हैं - और लोगों को भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं । इस कोशिश से अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को फायदा तो कुछ नहीं मिला है, बल्कि समर्थक नेताओं की हवाई बातों ने अशोक कंतूर के लिए मुसीबत बढ़ाने का काम और किया । दरअसल, अशोक कंतूर अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के उद्देश्य से क्लब के प्रेसीडेंट और या प्रेसीडेंट के नजदीकी वरिष्ठ सदस्य से संपर्क करते तो उन्हें यही सुनने को मिलता कि 'अरे, आप को तो अस्सी प्रतिशत वोट मिल ही रहे हैं, आप क्यों चिंता कर रहे हैं ?' इस तरह की बातों ने लेकिन उम्मीदवार के रूप में अशोक कंतूर की चिंता बढ़ा दी है । 
अशोक कंतूर को सबसे तगड़ी चोट अपने ही क्लब में पड़ी है । उनके क्लब के वरिष्ठ सदस्य और पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश चंद्र ने अशोक कंतूर की उम्मीदवारी का खुलेआम विरोध किया है । दिलचस्प संयोग है कि अशोक कंटूर उसी वर्ष क्लब के प्रेसीडेंट थे, जिस वर्ष रमेश चंद्र डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे - इस नाते अशोक कंतूर को रमेश चंद्र का समर्थन सुनिश्चित ही होना चाहिए था । किंतु 'उस' वर्ष के प्रेसीडेंट्स की किटी में जब अशोक कंतूर की उम्मीदवारी को समर्थन देने की बात उठी, तो रमेश चंद्र का गुस्सा फूट पड़ा और उन्होंने कहा कि अशोक कंतूर पिछले दो वर्ष से उन्हें अपमानित करने की प्रक्रिया में शामिल हैं, तब उन्हें ख्याल नहीं आया कि मैं उनका गवर्नर रह चुका हूँ; रमेश चंद्र ने स्पष्ट कहा कि अशोक कंतूर का रवैया और व्यवहार देखते हुए मेरे लिए उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करना संभव नहीं होगा । रमेश चंद्र के ऐलान से हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश में अशोक कंतूर ने हालाँकि फिर दावा करना शुरू किया कि रमेश चंद्र की डिस्ट्रिक्ट में हैसियत ही क्या है, और यदि वह समर्थन नहीं करेंगे तो उनका क्या बिगाड़ लेंगे ? अशोक कंतूर ने लोगों के बीच कहा/बताया है कि रमेश चंद्र को तो क्लब में भी कोई नहीं मानता/पहचानता है, और क्लब के प्रेसीडेंट विशेष माथुर तो रमेश चंद्र को कोई तवज्जो नहीं देते हैं - इसलिए रमेश चंद्र की नाराजगी से उनकी उम्मीदवारी को कोई खतरा या डर नहीं है । हो सकता है कि अशोक कंतूर का यह दावा सही ही हो, और सचमुच रमेश चंद्र की नाराजगी उनकी उम्मीदवारी को कोई नुकसान न पहुँचाती हो - लेकिन रमेश चंद्र की नाराजगी अशोक कंतूर की लोगों के बीच एक नकारात्मक पहचान व छवि तो बनाती ही है, जो उनकी उम्मीदवारी के लिए घातक साबित हो सकती है । अशोक कंतूर के कुछेक नजदीकियों और समर्थकों को ही लग रहा है कि अनूप मित्तल की उम्मीदवारी के प्रति डिस्ट्रिक्ट में हमदर्दी का जो भाव है, तथा डिस्ट्रिक्ट के अधिकतर पूर्व गवर्नर्स का उन्हें जो समर्थन है, उसके कारण अशोक कंतूर के लिए चुनावी मुकाबला पहले से ही मुश्किल बना हुआ है; ऐसे में रमेश चंद्र की नाराजगी के चलते अशोक कंतूर की बनने वाली नकारात्मक छवि उन्हें और पीछे धकेलने का ही काम करेगी ।

Friday, September 14, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रवि सचदेवा के क्लब के अधिष्ठापन समारोह की सफलता के जरिये रवि सचदेवा और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों में भरा जोश सचमुच डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की गर्मी को बढ़ाते हुए उसे और दिलचस्प बना सकेगा क्या ?

नोएडा । रवि सचदेवा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों की सक्रियता में अचानक से तेजी आ रही दिख रही है, जिसके चलते वह कल शाम एक मीटिंग कर रहे हैं - जिसमें रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के अभियान को लेकर आगे की रूपरेखा तैयार की जाएगी । दरअसल रोटरी क्लब नोएडा एक्सेलेंस के नए पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में जुटी भीड़ ने रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों को खासा उत्साहित किया है, और उन्हें लगने लगा है कि वह यदि अपनी मुहिम को सावधानी से संयोजित करें और चलाएँ, तो रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को अच्छा समर्थन मिल सकेगा । उल्लेखनीय है कि रोटरी क्लब नोएडा एक्सेलेंस का अधिष्ठापन समारोह कहने को तो क्लब के नए पदाधिकारियों को अधिष्ठापित करने के लिए आयोजित किया गया था, लेकिन उसे जिस बड़े और खास डिजाईन के साथ आयोजित किया गया था उसे देख कर हर किसी को ठीक ठीक समझ में आ गया कि इसके पीछे वास्तविक उद्देश्य रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच माहौल बनाना और संदेश पहुँचाना है । इस समारोह के चलते रवि सचदेवा की उम्मीदवारी में यदि एक ऊँची छलाँग देखी/पहचानी गई, तो इसके दो कारण रहे - एक तो इस समारोह में डिस्ट्रिक्ट के कई खास और आम लोगों की उपस्थिति तथा दूसरे पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा के साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट दीपक गुप्ता और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी आलोक गुप्ता की मौजूदगी । सामान्य स्थितियों में इन तीनों की मौजूदगी के कोई ज्यादा मतलब नहीं होते, और इनकी मौजूदगी को सामान्य शिष्टाचार के पर्याय के रूप में ही देखा/पहचाना जाता - लेकिन क्लब में और समारोह में सतीश सिंघल के होने के विवाद के बीच समारोह में इन तीनों की मौजूदगी के कुछ खास अर्थ 'बन' गए । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए प्रस्तुत रवि सचदेवा की उम्मीदवारी ने उन 'अर्थों' को राजनीतिक आयाम भी दे दिया ।
समारोह को मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता की मौजूदगी के चलते राजनीतिक आयाम इसलिए भी मिला - क्योंकि अभी तक डिस्ट्रिक्ट में जो राजनीतिक समीकरण रहे हैं, उसमें सतीश सिंघल, मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता एक खेमा बना कर रहे हैं । डिस्ट्रिक्ट के प्रति रोटरी इंटरनेशनल के कठोर रवैये के सामने आने से - जिसके तहत सतीश सिंघल के खिलाफ कार्रवाई हुई और शरत जैन को चेतावनी मिली - डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के समीकरणों में उलट-फेर होने की संभावना तो दिखी, लेकिन अभी तक कोई नया समीकरण बनता हुआ नजर नहीं आया है । पिछले दिनों मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता ने हालाँकि सतीश सिंघल के साथ दूरी बनाने/दिखाने की कोशिश तो की, लेकिन रोटरी क्लब नोएडा एक्सेलेंस के अधिष्ठापन समारोह में एक साथ मौजूदगी दिखा कर - वह फिर 'पुराने घेरे' में वापस लौटते हुए दिखे हैं । जो लोग राजनीति के घुमावदार मोड़ों को जानते/समझते हैं, वह मानते/कहते हैं कि मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता अभी रवि सचदेवा की उम्मीदवारी का झंडा उठाने की जल्दबाजी नहीं करेंगे/दिखायेंगे; यह लोग अभी माहौल भाँपेंगे और यदि रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को दम पकड़ता पायेंगे, तभी आगे आयेंगे । रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थक व शुभचिंतक भी इस बात को समझ रहे हैं, और इसलिए वह दो स्तरों पर एकसाथ तैयारी करते हुए देखे जा रहे हैं - एक स्तर पर वह मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता को रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में 'दिखाने' का काम कर रहे हैं, और दूसरे स्तर पर वह ऐसा दिखाते हुए रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच स्वीकृति दिलाने का प्रयास कर रहे हैं ।
रवि सचदेवा और उनकी उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने रोटरी क्लब नोएडा एक्सेलेंस के अधिष्ठापन समारोह में दिए गए मुकेश अरनेजा, दीपक गुप्ता और आलोक गुप्ता के भाषणों के चुनिंदा अंशों को सोशल मीडिया के जरिये जिस तरह प्रचारित किया है, उसमें इन तीनों को रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में 'दिखाने' की होशियारी साफ झलकती है । हालाँकि रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के कुछेक समर्थकों का ही मानना/कहना है कि इस तरह की तरकीबों से क्षणिक रूप में तो माहौल में अनुकूलता और गर्मी लाई जा सकती है, किंतु इस अनुकूलता और गर्मी को यदि स्थाई रूप देना है तो इसके लिए जमीनी स्तर पर कुछ ठोस काम करना होगा । यह ठोस काम क्या होगा और इसे कैसे किया जायेगा, लगता है कि इसे तय करने के लिए ही रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के समर्थकों व शुभचिंतकों ने कल की बैठक बुलाई है । क्लब के अधिष्ठापन समारोह के रूप में रवि सचदेवा की उम्मीदवारी को प्रमोट करने के उद्देश्य से हुए आयोजन के सात/आठ दिन के भीतर ही समर्थकों व शुभचिंतकों की मीटिंग करने की तैयारी से संकेत मिल रहा है कि अधिष्ठापन समारोह की सफलता ने रवि सचदेवा और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों को उत्साहित किया है, तथा वह और जोरशोर के साथ रवि सचदेवा की उम्मीदवारी के अभियान में जुटने की जरूरत समझ रहे हैं । कल शाम होने वाली मीटिंग का एक उद्देश्य समर्थकों व शुभचिंतकों को एकजुट व उत्साहित रखने के साथ-साथ अधिष्ठापन समारोह की सफलता को ज्यादा से ज्यादा भुनाने की कवायद के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है । माना/समझा जा रहा है कि अधिष्ठापन समारोह की सफलता ने रवि सचदेवा और उनके समर्थकों व शुभचिंतकों में जो जोश भरा है, वह इस वर्ष होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव की गर्मी को और भड़कायेगा तथा उसे और दिलचस्प बनायेगा ।

Wednesday, September 12, 2018

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह को अपनी राजनीति के लिए 'उपयोग' करने की विनोद बंसल की कोशिश के कारण प्रस्तावित सम्मान समारोह का तमाशा बन गया है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया और डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर विनोद बंसल के बीच चल रही खींचातानी के चलते इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता के होने वाले सम्मान समारोह को लेकर खासा तमाशा खड़ा हो गया है । इन दोनों के रवैये को लेकर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्यों के बीच नाराजगी अलग शुरू हो गई है; जिनका कहना है कि सम्मान समारोह को लेकर विनय भाटिया और विनोद बंसल ने मिलकर जो तमाशा खड़ा किया है, उससे डिस्ट्रिक्ट की ही नहीं - सुशील गुप्ता की भी बदनामी हो रही है । कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के ही कुछेक सदस्यों का कहना है कि उन्हें इधर-उधर से सुनने को मिल रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में 13 अक्टूबर को सुशील गुप्ता का सम्मान समारोह होने जा रहा है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की तरफ से इस मामले में उन्हें कोई अधिकृत सूचना नहीं मिली है । कुछेक ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया से इस बारे में पूछा भी तो उन्हें जबाव मिला कि सारा कार्यक्रम विनोद बंसल फाइनल करेंगे, जो अभी देश से बाहर गए हुए हैं - उनके वापस लौटने के बाद ही यह सुनिश्चित किया जायेगा और बताया जायेगा कि सुशील गुप्ता का सम्मान समारोह कब और कहाँ होगा । विनय भाटिया से यह जबाव पा कर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के सदस्य और भड़के हुए हैं । सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह को लेकर हो रही तमाशेबाजी से खफा होकर कॉलिज ऑफ गवर्नर्स के एक वरिष्ठ सदस्य सुरेश जैन ने चेन्नई इंस्टीट्यूट के तुरंत बाद सुशील गुप्ता के सम्मान में एक निजी आयोजन करने की घोषणा कर दी है । सुरेश जैन की इस घोषणा ने विनय भाटिया और विनोद बंसल को परेशान कर दिया है, और वह सुरेश जैन के इस कार्यक्रम को रद्द करवाने की कोशिशों में जुट गए हैं । उनका कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी के रूप में सुशील गुप्ता का सम्मान करने का पहला मौका 'डिस्ट्रिक्ट' को मिलना चाहिए । 
उल्लेखनीय है कि सुशील गुप्ता के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने जाने के बाद कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में कॉलिज की तरफ से सुशील गुप्ता का सम्मान समारोह करने का सुझाव आया था, जिस पर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया का कहना रहा कि सुशील गुप्ता के सम्मान में समारोह डिस्ट्रिक्ट को करना चाहिए और डिस्ट्रिक्ट उसे करना चाहेगा । विनोद बंसल ने विनय भाटिया की बात का समर्थन किया; कॉलिज के दूसरे सदस्यों को भी इसमें कोई ऐतराज की बात नहीं लगी - और यह बात कॉलिज में स्वीकार कर ली गई । कॉलिज के सदस्यों का कहना है कि लेकिन उसके बाद से उन्हें नहीं पता कि सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह को लेकर विनय भाटिया और विनोद बंसल क्या खिचड़ी पका रहे हैं । इधर-उधर से पहले उन्होंने 20 अक्टूबर को समारोह होने की बात सुनी थी, और अब वह उक्त समारोह के 13 अक्टूबर को होने की बात सुन रहे हैं । विनय भाटिया से कुछ पूछते हैं तो वह यह कह कर हाथ झाड़ लेते हैं कि विनोद बंसल जब देश लौटेंगे, तब ठीक-ठीक पता चलेगा कि समारोह कब और कहाँ होगा । इस तरह इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए सुशील गुप्ता का अपने ही डिस्ट्रिक्ट में सम्मान समारोह होने का मामला एक तमाशा बन गया है, जो मुफ्त में देखने को मिल रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय भाटिया के नजदीकियों का कहना है कि सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह के 'साईज' को लेकर विनय भाटिया और विनोद बंसल के बीच चूँकि गंभीर विवाद है, इसलिए भी समारोह को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है । दरअसल विनोद बंसल इस समारोह को बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, जिसमें देश भर के रोटेरियंस नेताओं और पदाधिकारियों के साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल के प्रमुख नेताओं व पदाधिकारियों को भी आमंत्रित किया जाए - ताकि समारोह की धूम मचे और ख्याति फैले । विनोद बंसल का यह आईडिया विनय भाटिया को पसंद तो खूब आया, लेकिन इतने बड़े समारोह के खर्चे का आकलन करने पर उनकी हवा टाईट हो गई । विनय भाटिया को समारोह के खर्चे पर घबराया देख विनोद बंसल ने अपने स्वभाव के अनुसार उन्हें आश्वस्त तो किया कि चिंता मत करो, सब हो जायेगा - लेकिन यह नहीं बताया कि हो कैसे जायेगा । विनय भाटिया की घबराहट बनी देख विनोद बंसल ने उन्हें रास्ता भी सुझाया कि डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर सुभाष जैन से बात कर लेते हैं और दोनों डिस्ट्रिक्ट मिल कर समारोह कर लेते हैं । यह सुन कर विनय भाटिया की घबराहट कम होने की बजाये बढ़ और गई । उन्होंने आकलन किया कि डिस्ट्रिक्ट 3012 भी समारोह का हिस्सा बनेगा, तो लोगों की भीड़ और बढ़ेगी ही - और दोनों डिस्ट्रिक्ट के लिए भी उतना बड़ा समारोह कर पाना कैसे संभव होगा, जितना बड़ा समारोह करने की विनोद बंसल सोच रहे हैं और योजना बना रहे हैं ? विनोद बंसल योजना बता कर खुद तो विदेश उड़ गए, और समारोह की तैयारी की मुसीबत विनय भाटिया के सिर छोड़ गए । विनय भाटिया चाहते हैं कि सुशील गुप्ता के सम्मान में समारोह डिस्ट्रिक्ट 3011 चाहें अकेले करे और या डिस्ट्रिक्ट 3012 के साथ मिल कर करे - डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ही शामिल करके और उनके साथ मिल कर ही कर लें और ज्यादा तामझाम न करें । 
विनय भाटिया का अपने नजदीकियों के बीच कहना/बताना है कि विनोद बंसल को चूँकि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए उम्मीदवार बनना है, और उसके लिए समर्थन जुटाने के वास्ते वह सुशील गुप्ता के साथ अपनी नजदीकियत को दिखाना चाहते हैं - इसलिए सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह को वह बड़े स्तर पर करना चाहते हैं, ताकि देश/दुनिया के रोटेरियन नेताओं को दिखा/बता सकें कि सुशील गुप्ता के लिए वह क्या कर सकते हैं । विनय भाटिया का कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में वह विनोद बंसल की महत्त्वाकाँक्षा को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट का मंच तो उपलब्ध करवा सकते हैं, लेकिन 'डिस्ट्रिक्ट' विनोद बंसल की महत्त्वाकाँक्षा का 'खर्च' नहीं झेल पायेगा । इस बात को विनोद बंसल कैसे देखते हैं और कैसे हैंडल करते हैं, यह उनके वापस लौटने के बाद ही तय होगा - इसलिए विनय भाटिया ने सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह की तैयारी को ठंडे बस्ते में डाल दिया है और तय कर लिया है कि विनोद बंसल जब देश लौटेंगे, तभी देखेंगे और तय करेंगे कि क्या करना है ? सुशील गुप्ता के सम्मान समारोह को लेकर हो रहे इस तमाशे ने कॉलिज ऑफ गवर्नर्स को बुरी तरह नाराज किया हुआ है, और उन्हें लग रहा है कि इस तरह से सुशील गुप्ता के सम्मान के नाम पर उन्हें अपमानित किया जा रहा है, और इससे डिस्ट्रिक्ट की भी फजीहत हो रही है ।