Saturday, December 31, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के समर्थन के बावजूद अजीत जालान को अंततः अनूप मित्तल के हाथों फजीहत का शिकार होना ही पड़ा

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों तथा घपलेबाज नेताओं - खासकर उनके सरगना अजीत जालान के लिए नए वर्ष की शुरुआत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम से मिली चोट को सहलाते सहलाते हुई है । उन्होंने हालाँकि चोट का कारण बने मामले को दफ़्न करवाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियम की घेराबंदी पूरी की हुई थी, और डॉक्टर सुब्रमणियम भी उनके पूरे दबाव में थे - लेकिन मामले को लेकर सक्रिय रहे पूर्व क्लब अध्यक्ष अनूप मित्तल ने जो लंगर डाला हुआ था, उससे न रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के घपलेबाज नेता बच पाए और न उनके सुरक्षा कवच बने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम बच सके । डॉक्टर सुब्रमणियम ने अपनी तरफ से मामले को रफा-दफा करने का प्रयास तो बहुत किया; काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के लोगों ने भी मामले के प्रति अपनी 'अरुचि' दिखा/जता कर डॉक्टर सुब्रमणियम को मनमानी करने की छूट दे रखी थी, किंतु अनूप मित्तल ने अपने लंगर का घेरा ऐसा कसा हुआ था - कि डॉक्टर सुब्रमणियम को अंततः फैसला करने के लिए मजबूर होना ही पड़ा, और रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों तथा घपलेबाजों पर नकेल कसने की कार्रवाई उन्हें करना ही पड़ी । 
'अनूप मित्तल बनाम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट' के नाम से मशहूर हो चुके इस मामले की पूरी कहानी बहुत ही दिलचस्प है, जो एक साथ दो महत्त्वपूर्ण बातें बताती है : यह कहानी एक तरफ तो इस हकीकत से हमारा सामना करवाती है कि रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों का बड़ा जलवा है और उन्हें बड़े व प्रमुख लोगों का समर्थन सहज रूप से मिल जाता है; लेकिन साथ ही दूसरी तरफ इस कहानी का एक संदेश यह भी है कि बेईमानों व घपलेबाजों की नकेल थामने का कोई एक भी यदि फैसला कर ले, तो फिर उसके बड़े बड़े समर्थक भी उसे/उन्हें नहीं बचा सकते हैं । इस मामले में मुद्दे हालाँकि बहुत आसान और न्यायोचित थे । अनूप मित्तल की माँग थी कि क्लब के वर्ष 2014-15 के अकाउंट दिए जाएँ और क्लब के कुछेक लोगों ने घपलेबाजी के लिए जो चैरिटेबिल ट्रस्ट बनाया है, उसके कामकाज की जाँच हो और उसमें यदि घपलेबाजी के संकेत मिलें - तो उसे बंद किया जाए । रोटरी में ऊपर से नीचे तक बेईमानी व घपलेबाजी की जड़ें इतनी गहरी जमीं हुई हैं कि अनूप मित्तल की इन माँगों पर तुरंत से जबाव देना या कार्रवाई शुरू करना तो दूर की बात है - इन माँगों को हवा उड़ा देने का काम किया गया । क्लब के घपलेबाजों ने क्लब में माहौल ऐसा बना दिया कि अनूप मित्तल को क्लब के अन्य कुछेक सदस्यों के साथ क्लब छोड़ना पड़ा । क्लब के घपलेबाजों के हौंसले इतने ऊँचे थे कि अनूप मित्तल की लिखित शिकायत पर पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने उनसे जबाव लेने की कार्रवाई की, तो उन्होंने सुधीर मंगला तक को हड़काने व उनके प्रति असम्मान प्रकट करने वाली बातें की/कहीं । दरअसल सुधीर मंगला का गवर्नर-काल पूरा हो रहा था, और क्लब के घपलेबाज नेताओं के सरगना अजीत जालान को पता था कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम और उनसे भी अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी तो उनकी जेब में ही हैं - लिहाजा उन्हें सुधीर मंगला की परवाह करने की जरूरत नहीं है ।
रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों के जलवे का जीता-जागता उदाहरण है कि जो अजीत जालान क्लब में वर्ष 2014-15 में वित्तीय घपलेबाजी के लिए और अकाउंट न देने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थे, डॉक्टर सुब्रमणियम ने उन्हें ही अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार बनाया । वही अजीत जालान, रवि चौधरी की टीम में भी प्रमुख सदस्य के तौर पर लिए गए हैं । अनूप मित्तल की शिकायत पर सुधीर मंगला द्धारा तैयार की गई सिफारिश-रिपोर्ट पर मौजूदा रोटरी वर्ष में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में जब यह मामला आया तब डॉक्टर सुब्रमणियम तथा रवि चौधरी के साथ-साथ कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी मामले को दबाने तथा रफा-दफा करने में दिलचस्पी ली । मामला चूँकि रिकॉर्ड पर आ चुका था और अनूप मित्तल लगातार चिट्ठी-पत्री कर रहे थे, इसलिए मामले को रफा-दफा करना मुश्किल हुआ । इस मामले का दिलचस्प पहलू यह रहा कि घपलेबाजों के समर्थन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स खुल कर थे - जबकि अनूप मित्तल पूरी तरह अकेले थे । उनके साथ सिर्फ सच था । सच के सहारे अनूप मित्तल ने मामले को इस तरह से आगे बढ़ाया कि किसी भी तुर्रमखाँ का समर्थन घपलेबाजों के काम नहीं आया ।
हद की बात यह तक हुई कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में हुए फैसले के चलते बनी दो सदस्यीय कमेटी के सामने रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों ने अनूप मित्तल की दोनों मांगों को मान लेने की बात स्वीकार भी कर ली - लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम ने प्रयास किया कि उनकी स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड पर न आ पाए, और क्लब के पदाधिकारी व घपलेबाज फजीहत से बच सकें । अनूप मित्तल पर दबाव बनाया गया कि क्लब के पदाधिकारियों ने उनकी माँग को मान लिया है, और अब उन्हें मामले को खत्म कर देना चाहिए तथा मामले में आगे कार्रवाई के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए; और रोटरी में अपने कॅरियर पर ध्यान देना चाहिए । जी हाँ, रोटरी में भी कॅरियर होता है - जिसके लिए सच से मुँह मोड़ना होता है और घपलेबाजों से संबंध बनाना होता है । अनूप मित्तल लेकिन इस तरह की बातों में नहीं आए और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुब्रमणियम मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचाएँ तथा अंतिम फैसले को रिकॉर्ड पर दर्ज करें । अनूप मित्तल ने घोषणा की कि डॉक्टर सुब्रमणियम ने यदि ऐसा नहीं किया, तो वह रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे ।  
अनूप मित्तल की इस घोषणा को डॉक्टर सुब्रमणियम ने गंभीरता से लिया हो या न लिया हो - लेकिन पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने बहुत गंभीरता से लिया; उन्होंने ही डॉक्टर सुब्रमणियम को हिदायत दी कि क्लब के पदाधिकारी जब माँग मानने के लिए राजी हो चुके हैं - तो मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचा कर खत्म करो । सुशील गुप्ता की हिदायत के बाद डॉक्टर सुब्रमणियम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों की स्वीकारोक्ति को रिकॉर्ड पर दर्ज करने के लिए मजबूर हुए - और इस तरह क्लब के पदाधिकारियों व घपलेबाजों के खिलाफ तमाम बाधाओं के बाद अनूप मित्तल को एक बड़ी जीत मिली । रोटरी के इतिहास की यह एक बड़ी घटना है । रोटरी में घपलेबाजों के खिलाफ कार्रवाई करवा पाना खासा मुश्किल है, इसलिए ही जैसी सफलता अनूप मित्तल को मिली है - वैसी सफलता इससे पहले शायद ही किसी को मिली है ।

Friday, December 30, 2016

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल 321 ए टू में मुकेश गोयल के क्लब द्धारा स्पोंसर्ड प्रोजेक्ट के निमंत्रण-पत्र में धमकीभरे ब्लैकमेल से अपना नाम डलवाने का आरोप विनोद खन्ना के साथ-साथ नरेश अग्रवाल की भी फजीहत का कारण बना है

नई दिल्ली । सेंटेनियल सेलिब्रेशन के नाम पर हो रहे लायंस क्लब दिल्ली नॉर्थ एक्स द्धारा स्पोंसर्ड एक मेगा प्रोजेक्ट में अपना नाम जबर्दस्ती घुसा/घुसवा कर पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना ने इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की निगाह में 'चढ़ने' की जो तिकड़म भिड़ाई है, उसने डिस्ट्रिक्ट के ही नहीं बल्कि डिस्ट्रिक्ट के बाहर के लायन नेताओं को भी तरह-तरह की बातें करने/बनाने का मौका दिया है । हालाँकि - जैसा कि लोगों का मानना है और विश्वास है कि विनोद खन्ना तो पहले से ही नरेश अग्रवाल की निगाह में चढ़े हुए हैं और उन्हें नरेश अग्रवाल की 'आँख का तारा' तक कहा/पुकारा जाता है, इसलिए उन्हें 'इस काम' के लिए तिकड़म करने की कोई जरूरत ही नहीं है; लेकिन फिर भी लोगों को हैरानी है कि उन्होंने उक्त मेगा प्रोजेक्ट के निमंत्रण पत्र में अपना नाम जबर्दस्ती डलवाने का काम किया । मेगा प्रोजेक्ट की तैयारी से जुड़े लोगों का कहना है कि आयोजन में मुख्य अतिथि के रूप में नरेश अग्रवाल के आने को रद्द करवा देने की धमकी देकर विनोद खन्ना ने आयोजन के निमंत्रण पत्र में अपना नाम डालने/डलवाने का 'सौदा' किया । आरोप सुना गया कि विनोद खन्ना ने प्रोजेक्ट के आयोजकों से कहा कि नरेश अग्रवाल के साथ उनकी नजदीकियत की बात तो सभी को पता है ही, इसलिए समझ लो कि निमंत्रण पत्र में यदि उनका नाम नहीं दिया गया, तो वह नरेश अग्रवाल का आना रद्द करवा देंगे । उल्लेखनीय है कि उक्त मेगा प्रोजेक्ट सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार मुकेश गोयल के क्लब - लायंस क्लब दिल्ली नॉर्थ एक्स का प्रोजेक्ट है । इस प्रोजेक्ट के पीछे क्लब का एक दबा-छिपा उद्देश्य मुकेश गोयल की उम्मीदवारी को प्रोजेक्ट करना भी है - जो बड़ी स्वाभाविक-सी बात है । विनोद खन्ना लेकिन मुकेश गोयल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव नहीं रखते हैं । पिछले दिनों ही गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए मुकेश गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में सर्वसम्मति बनाने की जो कोशिश हुई थी, विनोद खन्ना ने उसका खुल्लमखुल्ला भारी विरोध किया था । एक तरफ, लायंस क्लब दिल्ली नॉर्थ एक्स के उम्मीदवार मुकेश गोयल का विरोध करना - और दूसरी तरफ, मुकेश गोयल की उम्मीदवारी के पक्ष में माहौल बनाने के उद्देश्य से किए जा रहे उनके प्रोजेक्ट के निमंत्रण पत्र में अपना नाम घुसा देने की विनोद खन्ना की कार्रवाई को उनकी मौकापरस्ती के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
विनोद खन्ना के लिए यह मौकापरस्ती दिखाना दरअसल मजबूरी भी है । असल में, उनके लिए नरेश अग्रवाल के सामने अपनी सक्रियता तथा लोगों के बीच अपनी स्वीकार्यता दिखाने का नाटक करना/जमाना इस समय बहुत जरूरी है । उल्लेखनीय है कि विनोद खन्ना को नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में बोर्ड अपॉइंटी बनना है, लेकिन कई लोगों ने विनोद खन्ना को बोर्ड अपॉइंटी बनने से रोकने के लिए अभियान चलाया हुआ है । यह अभियान चलाने वाले लोगों का एक बड़ा तर्क यह है कि विनोद खन्ना अपनी हरकतों के चलते अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बहुत ही नापसंद किए जाते हैं, और लोगों के बीच उनकी न कोई पूछ है और न कोई इज्ज़त है । ऐसे में, विनोद खन्ना के सामने नरेश अग्रवाल को यह दिखाने और साबित करने की चुनौती है कि अपने डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख आयोजनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रहती है । इसीलिए धमकीभरी सौदेबाजी करके विनोद खन्ना ने मुकेश गोयल के क्लब द्धारा स्पोंसर्ड मेगा प्रोजेक्ट के निमंत्रण पत्र में अपना नाम शामिल करवा लेने की तिकड़म रची ।
मजे की बात यह है कि विनोद खन्ना की हरकतों और उनकी असलियत से नरेश अग्रवाल अच्छी तरह परिचित हैं । वास्तव में इसी परिचय के चलते ही नरेश अग्रवाल ने इंटरनेशनल सेकेंड वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए चले अपने अभियान के दिनों में विनोद खन्ना को चुप तथा पीछे रहने के लिए कहा था । विनोद खन्ना यूँ तो मेहनती व्यक्ति हैं और नरेश अग्रवाल के लिए पूरी प्रतिबद्धता से काम करने वाले रहे हैं; लेकिन साथ ही वह मुँहफट किस्म के व्यक्ति भी हैं और किसी के साथ भी बदतमीजी करने को तैयार रहते हैं । दरअसल नरेश अग्रवाल ने इसी डर से विनोद खन्ना को अपने चुनाव अभियान से दूर रखा था कि उनकी बदतमीजीपूर्ण हरकतों के कारण उनका अभियान कहीं बिगड़ न जाए, और जिसके परिणामस्वरूप उनका इंटरनेशनल (सेकेंड वाइस) प्रेसीडेंट बनने का सपना कहीं बिखर न जाए । विनोद खन्ना ने नरेश अग्रवाल के अभियान से दूर रह कर उनकी पूरी 'मदद' की, लेकिन नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में सत्ता की मलाई खाने वह अब आगे आ गए हैं । कई लोगों ने नरेश अग्रवाल को लगातार सावधान किया है, और अभी भी कर रहे हैं कि जिन कारणों से विनोद खन्ना उनके चुनाव-अभियान को नुकसान पहुँचा सकते थे, उन्हीं कारणों से वह उनके प्रेसीडेंट-काल को कलंकित कर सकते हैं - इसलिए उनके लिए अभी भी विनोद खन्ना को पीछे ही रखने की जरूरत है ।
विनोद खन्ना पिछले कुछ समय से कामकाज और परिवार की मुश्किलों में घिरे हुए हैं । विनोद खन्ना को बोर्ड अपॉइंटी बनने से रोकने के अभियान में लगे दूसरे लायन नेता उनकी इन्हीं मुश्किलों को हथियार बनाए हुए हैं । कई लोगों को लगता है कि नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में विनोद खन्ना लायनिज्म की आड़ में धंधा करने के जुगाड़ में हैं, जिसके भरोसे उन्हें अपनी कामकाजी मुश्किलों को हल कर लेने की उम्मीद है । लोगों का कहना है कि विनोद खन्ना भारी कर्ज में फँसे हुए हैं, और इस कोशिश में हैं कि नरेश अग्रवाल के प्रेसीडेंट-काल में वह लायनिज्म में पैसे 'कमा' लें - ताकि कर्ज से मुक्ति पा सकें । इसी बात का हवाला देकर नरेश अग्रवाल को आगाह किया जा रहा है कि उन्होंने यदि विनोद खन्ना को कोई पोजीशन दी तो वह लूट-खसोट ही मचायेंगे - और तरह उनके प्रेसीडेंट-काल को बदनाम ही करेंगे । विनोद खन्ना की एक पुत्रवधु द्धारा किए गए मुक़दमे का मामला भी विनोद खन्ना के लिए मुसीबत बना हुआ है । उक्त मुक़दमे का हवाला देते हुए इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने जा रहे नरेश अग्रवाल को तरह तरह से बताया/समझाया जा रहा है कि उक्त मुक़दमे के कारण विनोद खन्ना कभी भी जेल के सीखचों के पीछे जा सकते हैं; और ऐसा यदि उनके बोर्ड अपॉइंटी होते हुए हुआ तो लायनिज्म की कितनी बदनामी होगी, और खुद उनकी तथा उनका प्रेसीडेंट-काल की कैसी  कितनी फजीहत होगी ।
विनोद खन्ना को अच्छी तरह से पता है कि लायनिज्म में उनके विरोधियों व दुश्मनों की संख्या कम नहीं है - जो तरह तरह के हथकंडों के जरिए उन्हें बोर्ड अपॉइंटी बनने से रोकने का हर संभव प्रयास करेंगे; इसलिए उन्होंने भी कमर कस ली है । सेंटेनियल सेलिब्रेशन के नाम पर अपने डिस्ट्रिक्ट में हो रहे प्रोजेक्ट में भागीदारी 'दिखा' कर एक तरफ तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों को 'दिखा' रहे हैं कि नरेश अग्रवाल उनकी वजह से ही इस आयोजन में आ रहे हैं; और दूसरी तरफ नरेश अग्रवाल बता/जता रहे हैं कि - देखो, डिस्ट्रिक्ट में मेरे बिना कोई काम होता ही नहीं है । विनोद खन्ना को विश्वास है कि अपने इस तरह के हथकंडों से वह अवश्य ही बोर्ड अपॉइंटी बन सकेंगे । नरेश अग्रवाल उन्हें बोर्ड अपॉइंटी जब बनायेंगे तब बनायेंगे - अभी लेकिन लायंस क्लब दिल्ली नॉर्थ एक्स द्धारा स्पोंसर्ड एक प्रोजेक्ट के निमंत्रण-पत्र में ब्लैकमेल करके अपना नाम डलवाने की विनोद खन्ना की कार्रवाई के आरोप ने लोगों के बीच विनोद खन्ना के साथ-साथ नरेश अग्रवाल की भी फजीहत की हुई है ।

Wednesday, December 28, 2016

अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल में पैसों के खर्चे के मामले में अपनी मनमानी को मान्यता और स्वीकृति दिलाने के लिए अनूप मित्तल ने आपात बैठक का नाटक रचा है क्या ?

नई दिल्ली । अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल में अचानक से इंटरनेशनल बोर्ड तथा जनरल बॉडी की आपात बैठक बुलाने की कार्रवाई ने संगठन के सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच खासी हलचल मचा दी है । मजे की बात यह है कि इंटरनेशनल सेक्रेटरी एमपीएस भारज की तरफ से आपात बैठक का जो नोटिस/निमंत्रण बोर्ड सदस्यों तथा क्लब्स व डिस्ट्रिक्ट्स के पदाधिकारियों को मिला है, उसमें आपात बैठक के एजेंडे की तो कोई सूचना या जानकारी नहीं दी गई है, लेकिन यह जरूर कहा/बताया गया है कि आपात बैठक में वोटिंग की जरूरत पड़ सकती है और वोटिंग अधिकार उचित पात्रता रखने वाले पदाधिकारी को ही मिलेगा । आपात बैठक के इस संदेशे को पढ़/देख कर संगठन के लोगों के बीच हलचल इस कारण से है कि आपात बैठक का निमंत्रण देते हुए बैठक का एजेंडा आखिर क्यों नहीं बताया गया है ? लोगों का कहना/पूछना है कि उच्च पदाधिकारियों ने यदि आपात बैठक बुलाने की जरूरत समझी है, और यह भी समझा है कि बैठक में वोटिंग की जरूरत पड़ सकती है - तो इसका बहुत स्पष्ट मतलब है कि एजेंडा पूरी तरह से तैयार हैं; तब फिर उसे लोगों से छिपाया क्यों जा रहा है ?
अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल के विभिन्न स्तर के पदाधिकारियों तथा सदस्यों का कहना है कि आपात बैठक का एजेंडा सिर्फ इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अनूप मित्तल तथा इंटरनेशनल सेक्रेटरी एमपीएस भारज को ही पता है, और वह जानबूझ कर लोगों से एजेंडा छिपा रहे हैं । इससे  लग रहा है कि प्रस्तावित आपात बैठक में यह दोनों अपना कोई ऐसा स्वार्थ पूरा करने की कोशिश में हैं, जिसके लिए खुद इन्हें तगड़े विरोध का डर है । अलायंस सदस्यों का मानना और कहना है कि यह आपात बैठक का एजेंडा इसी डर से नहीं बता रहे हैं, क्योंकि इन्हें खतरा है कि इनके स्वार्थ को लोग अभी से पहचान लेंगे और फिर इनके खिलाफ एकजुट हो जायेंगे । एजेंडा को अभी छिपा कर रखेंगे, तो लोग असमंजस में रहेंगे; इस बीच यह 'प्रयास' करेंगे कि आपात बैठक में ऐसे लोग आएँ/पहुँचे - जिनसे यह अपनी मनमानियों पर 'अँगूठा' लगवा सकें । अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल के सदस्यों को लगता है कि अनूप मित्तल और एमपीएस भारज की जोड़ी ने इस वर्ष के अपने कार्य-काल में संगठन के पैसों की जैसी जो लूट मचाई हुई है, उसे मान्यता और स्वीकृति दिलाने के लिए ही इन्होंने आपात बैठक का तमाशा रचा है ।
आपात बैठक की अधिकृत सूचना देते हुए इंटरनेशनल सेक्रेटरी एमपीएस भारज एजेंडे की बात को गोल भले ही कर गए हों, लेकिन लोगों का अंदाजा है कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट अनूप मित्तल ने जिस तरह मनमाने और गुपचुप तरीके से संगठन के पैसों को खर्च करने - तथा खर्च करने के नाम पर अपनी जेब भरने का 'कार्यक्रम' चलाया हुआ है, उसे व्यवस्थित रूप देना तथा कानूनी मान्यता दिलाना ही आपात बैठक का मुख्य उद्देश्य होगा । उल्लेखनीय है कि एक तरफ तो कोलकाता में संगठन के मुख्य कार्यालय के लिए भवन के नाम पर फ्लैट खरीदने की अनूप मित्तल की तैयारी संदेह के घेरे में हैं, तो दूसरी तरफ दिल्ली के नजदीक बुलंदशहर में कैंसर अस्पताल के निर्माण के नाम पर पैसा इकट्ठा करने की उनकी योजना गंभीर आरोपों के घेरे में है । यह संदेह और आरोप इसलिए और गंभीर हैं क्योंकि इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के कई सदस्यों तक को नहीं पता है कि इन दोनों मामलों में वास्तव में हो क्या रहा है ।  
अनूप मित्तल को संभवतः पता है कि इंटरनेशनल बोर्ड में तो वह अपनी पैसा खर्चु/बटोरू योजनाओं के लिए समर्थन नहीं जुटा पायेंगे, इसलिए उन्होंने उसी दिन शाम को जनरल बॉडी की आपात बैठक भी बुला ली है - जिसमें अपने 'समर्थकों' के भरोसे वह अपनी मनमानी थोपने का प्रयास करेंगे । अनूप मित्तल की निगाह एसएलएफ के पैसे पर भी है, और इसके लिए वह लगातार एसएलएफ के अकाउंट में एक हस्ताक्षरकर्ता बनाए जाने की माँग कर रहे हैं । अनूप मित्तल की बदकिस्मती लेकिन यह है कि संगठन के तमाम लोग इंटरनेशनल बोर्ड के सदस्यों को आगाह कर चुके हैं तथा करते रहते हैं कि अनूप मित्तल को एसएलएफ अकाउंट में हस्ताक्षरकर्ता न बनाया जाए; क्योंकि उन्हें अगर उक्त अकाउंट में हस्ताक्षरकर्ता बना दिया गया तो यह उसमें जमा पैसे को भी ठिकाने लगा देंगे, और एसएलएफ का मुख्य उद्देश्य पृष्ठभूमि में चला जायेगा । इस पृष्ठभूमि में, अप्रत्याशित तथा असमंजसपूर्ण तरीके से 15 जनवरी को बुलाई गईं आपात बैठकों में अनूप मित्तल और एमपीएस भारज अपनी मनमानी कार्रवाइयों पर संगठन के लोगों का ठप्पा लगवा पायेंगे क्या - यह देखना/जानना सचमुच दिलचस्प होगा ।

Tuesday, December 27, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल पर - इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की चेतावनी के बावजूद - पेम टू डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार दीपक गुप्ता को 'बेचने' का आरोप

नोएडा । प्रेसीडेंट इलेक्ट फैलोशिप में दीपक गुप्ता की उपस्थिति के रहस्य पर फैला कोहरा अब धीरे-धीरे छँट रहा है, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट के नजदीकियों के हवाले से ही सूचनाएँ मिल रही हैं कि इसके लिए सतीश सिंघल ने दीपक गुप्ता से मोटी रकम ऐंठी है । दरअसल सतीश सिंघल ने घोषणा की हुई थी कि प्रेसीडेंट इलेक्ट फैलोशिप (पेम टू) में वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के किसी भी उम्मीदवार को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं । उन्होंने खुद ही लोगों को बताया था कि प्रेसीडेंट इलेक्ट मीट (पेम वन) में इन उम्मीदवारों की सक्रियता के चलते उन्हें आलोचना का शिकार होना पड़ा था, और इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई तक ने उन्हें सुझाव दिया था कि अपने कार्यक्रमों को उन्हें चुनावी राजनीति का अखाड़ा नहीं बनने देना चाहिए । इन्हीं बातों का वास्ता देते हुए, पेम टू के आयोजित होने से पहले सतीश सिंघल ने कई लोगों से कहा था कि इसमें वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के किसी भी उम्मीदवार को आमंत्रित नहीं कर रहे हैं । लोगों से उन्होंने जो कहा सो कहा ही, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवारों - अशोक जैन तथा ललित खन्ना से भी उन्होंने यही बात कही । असल में, पेम टू के आयोजन से दो दिन पहले तक भी जब इन्हें निमंत्रण नहीं मिला - तो इन्होंने अपनी अपनी तरफ से पहल करके सतीश सिंघल को फोन करके अपने निमंत्रण के बारे में पूछा । सतीश सिंघल ने इन दोनों को ही बताया/दोहराया कि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों से मिले सुझावों के चलते उन्होंने पेम टू में किसी भी उम्मीदवार को आमंत्रित नहीं करने का फैसला किया है ।
सतीश सिंघल की इतनी स्पष्ट घोषणा के बावजूद, पेम टू के आयोजन में शामिल हुए लोगों ने जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के तीसरे उम्मीदवार दीपक गुप्ता को कार्यक्रम में देखा - तो वह हैरान रह गए । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ कि सतीश सिंघल जब बार-बार लगातार यह कहते जा रहे थे कि पेम टू में वह किसी भी उम्मीदवार को नहीं आमंत्रित कर रहे हैं, तब फिर दीपक गुप्ता के मामले में वह अपनी ही घोषणा से आखिर क्यों पलट गए ? सतीश सिंघल के साथ खराब अनुभव रखने वाले कुछेक लोगों ने वहाँ लोगों के बीच कहा/बताया भी कि 'सतीश सिंघल वास्तव में एक दोगला व्यक्ति है', 'वह कहता कुछ है लेकिन करता कुछ है', और 'इस तरह वह कई लोगों के साथ धोखाधड़ी कर चुका है' - इसलिए उसके दोगलेपन पर हैरान होने की जरूरत नहीं है; लेकिन यह सवाल फिर भी अनुत्तरित ही रहा कि दीपक गुप्ता के मामले में सतीश सिंघल ने अपने ही दावे को आखिर क्यों झूठा साबित कर दिया ?
पेम वन में उम्मीदवारों की सक्रियता को लेकर हुई आलोचना के बारे में भी सतीश सिंघल ने आधी-अधूरी बात ही बताई । उस समय शिकायत और आपत्तियाँ उम्मीदवारों की सक्रियता को लेकर नहीं हुईं थीं, बल्कि सतीश सिंघल के उस रवैये की हुई थी - जिसके तहत उन्होंने दीपक गुप्ता को मंच से लोगों को संबोधित करने का मौका दिया था । सतीश सिंघल के इस रवैये की शिकायत रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तथा नेताओं तक भी पहुँची थी, और इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने सतीश सिंघल को आगाह किया था कि साऊथ एशिया के डिस्ट्रिक्ट्स में होने वाली राजनीति पर निगाह रखने की जिम्मेदारी निवर्तमान इंटरनेशनल प्रेसीडेंट केआर रवींद्रन की है और जो अपनी जिम्मेदारी निभाने के मामले में बहुत सख्त हैं - इसलिए कोई ऐसा काम मत करो, जिसके कारण मुसीबत में पड़ो ।
मनोज देसाई के आगाह करने का वास्ता देकर सतीश सिंघल ने पेम टू के आयोजन में अशोक जैन और ललित खन्ना को तो निमंत्रित करने से इंकार कर दिया, लेकिन दीपक गुप्ता को आगे बढ़ कर सक्रिय होने का मौका दिया । सतीश सिंघल के इस दोगले रवैये पर हैरान होने वाले लोगों को लेकिन अब सतीश सिंघल के नजदीकियों से इसके पीछे का कारण सुनने/जानने का मौका मिल रहा है । प्रेसीडेंट इलेक्ट फैलोशिप के आयोजन से जुड़े लोगों से सुनने/जानने को मिल रहा है कि सतीश सिंघल ने इसके लिए दीपक गुप्ता से मोटी रकम बसूल की है - इन्फेक्ट, सतीश सिंघल ने पेम टू दीपक गुप्ता को 'बेचने' का काम किया है । सतीश सिंघल के नजदीकियों का कहना है कि सतीश सिंघल ने दरअसल रोटरी को पैसा कमाने का जरिया बना लिया है; और उन्होंने यह भी समझ लिया है कि यह मौका उन्हें सिर्फ एक वर्ष ही मिलेगा - इसलिए वह हर मौके का फायदा उठा लेने के लिए तत्पर हैं ।  
रोटरी के नाम पर पैसा बनाने/कमाने की सतीश सिंघल की तड़प ऐसी है कि उन्हें न मनोज देसाई का आगाह करना ध्यान रहा, न केआर रवींद्रन के सख्त रवैये की चिंता रही, और न इस बात का ध्यान रहा कि एक दिन पहले तक वह उम्मीदवारों को आमंत्रित न किए जाने की घोषणा करते रहे हैं । सतीश सिंघल के नजदीकियों के अनुसार, दीपक गुप्ता से पैसा मिलने का सौदा तय हुआ कि सतीश सिंघल सब भूल गए । मजे की बात यह है कि पेम टू के आयोजन का खर्चा पूरा करने के लिए सतीश सिंघल ने आयोजन से जुड़े लोगों को पैसा जुटने के जो सोर्स बताए, उनमें दीपक गुप्ता से मिले पैसों का कोई जिक्र नहीं है - जिस आधार पर आयोजन से जुड़े लोगों का ही कहना/बताना है कि दीपक गुप्ता से मिले पैसे तो गुप्त दान ही रहे, जो सीधे सतीश सिंघल की जेब में गए हैं ।

Saturday, December 24, 2016

पुणे में अपनी फजीहत के लिए सारा दोष अपने भतीजे अभिषेक जावरे पर मढ़ने और अपने आप को कोचिंग सर्विसेस व छात्रों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध बताने/दिखाने के उद्देश्य से लिखे एसबी जावरे के पत्र ने उनकी मुसीबत बढ़ाने का ही काम किया है

पुणे । अभिषेक जावरे के निकलने से जावरे प्रोफेशनल एकेडमी को लगे झटके से बचने/उबरने के लिए एसबी जावरे ने विनोद कुमार अग्रवाल के साथ जो हाथ मिलाया है - उसने पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की कोचिंग के धंधे के परिदृश्य में दिलचस्प नजारा प्रस्तुत किया है, जिसमें नए नए नाटक रोज रोज देखने को मिल रहे हैं । उल्लेखनीय है कि विनोद कुमार अग्रवाल पहले जावरे प्रोफेशनल एकेडमी में ही फैकल्टी थे, लेकिन एसबी जावरे के मनमाने रवैये के कारण अपमानित होकर उन्हें करीब 14/15 वर्ष पहले एकेडमी छोड़ना पड़ी थी । इससे पहले, जावरे प्रोफेशनल एकेडमी से निकल कर अभिषेक जावरे ने जिन सुबोध शाह के साथ गठबंधन किया है, वह भी पहले जावरे एकेडमी में ही थे । इस तरह, चाचा भतीजे ने अपनी आपसी लड़ाई में जिस तरह से अपनी एकेडमी से निकले लोगों को ही अपनी अपनी ढाल बनाया है - उससे लोगों को लग रहा है कि इन दोनों के बीच की यह लड़ाई अभी और गंदी होगी । इस बात के संकेत दोनों की तरफ से होने वाली बयानबाजी में भी मिले हैं : एसबी जावरे ने कई लोगों को भेजे अपने एक पत्र में 'एक फैकल्टी' के एकेडमी से निकलने के कारण बनी स्थिति का हवाला देते हुए अभिषेक जावरे पर निशाना साधा है, तो अभिषेक जावरे ने भी जबाव देने और लोगों को यह बताने में कोई संकोच नहीं किया है कि वह एकेडमी छोड़ना नहीं चाहते थे, उन्हें एकेडमी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया । यह कहते हुए अभिषेक जावरे ने एसबी जावरे को सीधे-सीधे कठघरे में खड़ा कर दिया है - क्योंकि जावरे एकेडमी में एसबी जावरे के अलावा और कौन होगा, जो उन्हें एकेडमी छोड़ने के लिए मजबूर करता ? अभिषेक जावरे ने खुद को 'एक फैकल्टी' कहे जाने का भी करारा जबाव दिया है : अपने जबाव में उन्होंने स्पष्ट कहा है कि जावरे एकेडमी में वह सिर्फ एक फैकल्टी नहीं थे - बल्कि एक पार्टनर, चीफ एक्जीक्यूटिव ऑफीसर और मुख्य फैकल्टी थे । चाचा/भतीजे के बीच आरोप-प्रत्यारोप का यह सिलसिला इसलिए छिड़ा है क्योंकि दोनों ही लोग अपने आप को निर्दोष बताने/साबित करने के साथ-साथ दूसरे के सिर पर ही सारी जिम्मेदारी मढ़ने की कोशिश कर रहे हैं ।
अभिषेक जावरे के एकेडमी से निकलने के कारण हुई और हो रही फजीहत से बचने के लिए एसबी जावरे ने अभिषेक जावरे पर सारा दोष मढ़ने और अपने आप को कोचिंग सर्विसेस व छात्रों के हितों के प्रति प्रतिबद्ध बताने/दिखाने के लिए जो पत्र लिखा है, उसमें भी चालाकी दिखाते हुए आधी-अधूरी जानकारी दी गई है । एसबी जावरे ने अपने पत्र में कहा/बताया है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कामों में व्यस्त हो जाने के कारण वह एकेडमी से कुछ दूर हो गए थे, लेकिन छात्रों के बार-बार के अनुरोध के कारण वह सेंट्रल काउंसिल में अपनी व्यस्तता के बावजूद एकेडमी में फिर लौट आए हैं । एसबी जावरे का यह बयान बेहद चालाकी भरा है, और छात्रों व लोगों को भावनात्मक रूप से बरगलाने वाला है । वह कह/बता रहे हैं कि वह इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कामों में व्यस्त हो गए थे - वह यह नहीं बता रहे हैं कि वह वहाँ क्यों व्यस्त हो गए थे : क्या वह रास्ता भटक गए थे, या उन्हें किसी ने जबर्दस्ती वहाँ पकड़ लिया था ? सच यह है कि उन्होंने अपनी मर्जी से, पूरे होशो-हवास में और अपने प्रयत्नों से सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ा था - और सेंट्रल काउंसिल पहुँचे थे । एसबी जावरे ने जानते-बूझते हुए अपने-आप को सेंट्रल काउंसिल में व्यस्त किया हुआ था, और इस कारण से उन्होंने छात्रों के साथ धोखा और उनके भविष्य के साथ खिलवाड़ किया था । अब जब वह बार-बार के अनुरोधों का हवाला देते हुए छात्रों के बीच वापस लौटने की बात कह रहे हैं, तो यह भी झूठ है - सच यह है कि नियमानुसार वह अबकी बार सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ ही नहीं सकते हैं, और इंस्टीट्यूट का प्रेसीडेंट बनने की उनकी हसरत भी बिखर चुकी है; लिहाजा सेंट्रल काउंसिल में अगले दो वर्ष उनके पास न तो करने को कुछ खास है, और न उनका उत्साह ही बचा है । सो, एसबी जावरे के पास एकेडमी में वापस लौटने के अलावा और कोई चारा ही नहीं बचा है ।
अभिषेक जावरे के अलग हो जाने से - और उनके अलग हो जाने के कारणों के सार्वजनिक हो जाने से एसबी जावरे को दोहरी चोट पड़ी है : उन्होंने एक तरफ तो विश्वसनीय सहयोगी खोया है, और दूसरी तरफ सारे घटनाक्रम से लोगों के बीच उनकी भारी फजीहत हुई है । इस बीच जावरे एकेडमी से दो-एक और फैकल्टी सदस्यों के निकलने की चर्चा जोर पकड़ रही है । इस दोहरी/तिहरी चोट से उबरने/सँभलने के लिए एसबी जावरे ने एक तो लोगों को ऊपर वर्णित पत्र लिखा और दूसरा काम एक समय जावरे एकेडमी से निकाले गए विनोद कुमार अग्रवाल से वापस संबंध जोड़ने का किया है । उन्हें उम्मीद है कि विनोद कुमार अग्रवाल को पुनः अपने साथ जोड़ कर वह एक अनुभवी फैकल्टी की कमी को भी दूर कर लेंगे, तथा साथ ही साथ लोगों को वह यह भी 'दिखा' देंगे कि उनके रवैये और व्यवहार में कोई गड़बड़ नहीं है - यदि सचमुच कोई गड़बड़ होती तो उनके यहाँ से छोड़ कर गए विनोद कुमार अग्रवाल पुनः उनके साथ भला क्यों जुड़ते ? पुणे की कोचिंग इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना लेकिन यह है कि एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल के बीच बना गठबंधन वास्तव में मजबूरी का सौदा है । जावरे एकेडमी से निकलने के बाद विनोद कुमार अग्रवाल ने हालाँकि एक समय सफलता की सीढ़ियाँ बड़ी तेजी से चढ़ी थीं, और काफी समय पुणे के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स छात्रों के बीच उनकी खासी लोकप्रियता रही थी - लेकिन पिछले काफी समय से उनका धंधा बुरी तरह चौपट चल रहा है; इसलिए जावरे एकेडमी में लौटने में उन्हें फिलहाल अपनी भलाई ही नजर आई है । एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल को अपनी अपनी मुसीबतों वाले मौजूदा समय में आपस में हाथ मिला लेने में फायदा दिखा - तो पिछले अनुभवों से मिली कड़वाहट को भूल कर वह इकट्ठा हो गए हैं । हालाँकि अधिकतर लोगों को लगता है कि एसबी जावरे और विनोद कुमार अग्रवाल के बीच होने वाला यह मौकापरस्त पुनर्मिलन ज्यादा दिन तक टिकेगा नहीं । इसीलिए माना जा रहा है कि पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की कोचिंग के धंधे में अभी और नए नए नाटक देखने को मिलेंगे ।
एसबी जावरे का पत्र :

Thursday, December 22, 2016

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में की गई हरकत के जरिए जेपी सिंह ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा करने के साथ-साथ जैसे एक बार फिर अपने आप को हराने की तैयारी शुरू कर दी है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में जेपी सिंह एंड कंपनी ने जो किया, उसके चलते गुरचरण सिंह की सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत उम्मीदवारी के अभियान को न सिर्फ तगड़ा झटका लगा है, बल्कि उनकी उम्मीदवारी के पीछे छिपे वास्तविक उद्देश्य की पोल भी खुल गई है । उल्लेखनीय है कि सुधीर सिंगला की चेयरमैनी तथा अजय गोयल की कंवेनरी वाली डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की पानीपत में आयोजित हुई मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग और फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंद्रजीत सिंह ने इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के होने वाले चुनाव को लेकर आम सहमति बनाने की बात की । उनका कहना रहा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव के चक्कर में लायन सदस्यों का बहुत सा समय, उनकी एनर्जी और बहुत सा पैसा व्यर्थ ही नष्ट हो जाता है तथा उससे लायनिज्म के काम पर भी प्रतिकूल असर पड़ता है - इसलिए जरूरी है कि ऑनरेरी कमेटी के सदस्य सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए उचित प्रतिनिधि पर आम राय बनाने के लिए कोशिश करें, जिससे डिस्ट्रिक्ट का और लायनिज्म का भी भला होगा । यह सुनकर जेपी सिंह और उनके समर्थक विनोद खन्ना बुरी तरह भड़क गए और बोले कि यदि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी के मामले में उनका समर्थन नहीं किया जायेगा, तो फिर वह भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के अपने उम्मीदवार गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को वापस नहीं लेंगे । विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह की तरफ से स्पष्ट किया गया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी का मामला आप पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच का मामला है, उसमें आप लोगों को हम भला क्या निर्देश दे सकते - उसमें तो जो भी कुछ करना/होना है, वह आप लोगों को ही करना है; आप लोग उसमें आम सहमति बना लीजिए । विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह की तरफ से कहा गया कि हम तो आप लोगों से सिर्फ यह अनुरोध कर रहे हैं कि आप लोग अपने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए डिस्ट्रिक्ट को चुनावी झगड़े में फँसने से बचाएँ । उन दोनों की चुनावी झगड़ों से बचने की कोशिश करने की अपील के बावजूद जेपी सिंह और विनोद खन्ना का भड़कना जारी रहा, और इन दोनों ने साफ कर दिया कि इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए जेपी सिंह के नाम को यदि क्लियर नहीं किया गया, तो सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को वापस नहीं लिया/कराया जायेगा ।
इस तरह जेपी सिंह और विनोद खन्ना ने औपचारिक रूप से पहली बार यह जता/दिखा दिया कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी में जरा सी भी गंभीरता नहीं है, और गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी तो इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडोर्सी पद के लिए विरोधी पक्ष के लोगों को ब्लैकमेल करने का हथकंडा भर है । गौरतलब है कि गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को लेकर ऐसी ही समझ व धारणा लोगों के बीच पहले से ही थी, और पक्ष-विपक्ष के लोगों के बीच शुरू से ही चर्चा थी कि गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी को जेपी सिंह अपने स्वार्थ में इस्तेमाल कर रहे हैं । समझा जाता है कि जेपी सिंह की इसी सोच और रणनीति को भाँप कर रमेश अग्रवाल ने उम्मीदवारी पर अपने दावे को छोड़ दिया था । उल्लेखनीय है कि जेपी सिंह की तरफ से पहले रमेश अग्रवाल ही सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार थे, लेकिन जैसे ही उन्हें इस बात का अहसास हुआ कि जेपी सिंह अपनी गोटी फिट करने की कोशिश में कभी भी उनकी उम्मीदवारी की बलि चढ़ा देंगे - वैसे ही रमेश अग्रवाल को अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने में ही अपनी भलाई नजर आई और वह तुरंत से पीछे हट गए । जेपी सिंह ने तब अपने ही क्लब के गुरचरण सिंह को उम्मीदवार बनाया । गुरचरण सिंह ने हालाँकि लोगों को विश्वास दिलाने का हर संभव प्रयास किया है कि वह अपनी उम्मीदवारी को लेकर बहुत ही गंभीर हैं, और उनकी उम्मीदवारी किसी भी तरह की सौदेबाजी का वाहक नहीं बनेगी । लेकिन जेपी सिंह और विनोद खन्ना ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में अंततः इस सच्चाई को खोल ही दिया कि गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी उनके लिए सिर्फ अपने को कामयाब बनाने का एक हथकंडा भर है, और अपने स्वार्थ में वह कभी भी सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए प्रस्तुत गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी की बलि चढ़ा सकते हैं ।
जेपी सिंह और विनोद खन्ना के द्धारा ही असलियत खोल देने के बाद गुरचरण सिंह के लिए लोगों के बीच अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाना मुश्किल हो गया है, और उनके लिए अपनी उम्मीदवारी को विश्वसनीय बनाने की गंभीर चुनौती पैदा हो गई है । मजे की बात यह है कि जेपी सिंह के समर्थकों व शुभचिंतकों का ही कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में विनोद खन्ना के साथ मिलकर जेपी सिंह ने जो किया, उससे गुरचरण सिंह का ही नहीं - बल्कि खुद जेपी सिंह का भी नुकसान हुआ है । लोगों को लगता है कि विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह के सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आम सहमति बनाने के प्रस्ताव पर जेपी सिंह यदि सकारात्मक रवैया दिखाते, तो डिस्ट्रिक्ट के लोगों को ज्यादा प्रभावित व आकर्षित करते । जेपी सिंह का यह डर स्वाभाविक और सच हो सकता है कि आम सहमति बनाने के नाम पर विनय गर्ग और इंद्रजीत सिंह राजनीति खेल रहे हों, तो भी उनकी राजनीति का जबाव जेपी सिंह को अपनी ऐसी राजनीति से देना चाहिए था - जिससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी सकारात्मक पहचान बनती । आम सहमति बनती या नहीं बनती - जेपी सिंह को 'दिखाना' यह चाहिए था कि वह तो आम सहमति के पक्ष में हैं, लेकिन सारी चीजें उनके हाथ में नहीं हैं : इससे होता यह कि साँप भी मर जाता और लाठी भी नहीं टूटती; यानि आम सहमति की बात भी पिट जाती, और इसकी जिम्मेदारी का दोष जेपी सिंह पर भी नहीं लगता । जेपी सिंह ने लेकिन जो किया, उसका उल्टा ही असर हुआ - साँप भी बच गया, और लाठी भी टूट गई । कुछेक लोगों को लगता है कि विनय गर्ग व इंद्रजीत सिंह का वास्तविक उद्देश्य सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए आम सहमति बनाना था ही नहीं, उन्होंने तो जेपी सिंह और उनके समर्थकों को भड़का कर उनकी असलियत सामने लाने के लिए जाल बिछाया था - जेपी सिंह और उनके समर्थक उसमें फँस कर अपने आपको 'नंगा' कर बैठे ।
इससे लगता है कि जेपी सिंह ने पिछले लायन वर्ष में हुई अपनी फजीहत से कोई सबक नहीं सीखा है - दरअसल वह अभी तक भी यह नहीं समझ पा रहे हैं कि पिछले लायन वर्ष में उनके साथ वास्तव में हुआ क्या ? पिछले लायन वर्ष में उनके साथ जो हुआ वह वास्तव में एक असाधारण घटना है - लायंस इंटरनेशनल के सौ वर्षों के इतिहास में कभी किसी के साथ ऐसा नहीं हुआ; लायंस इंटरनेशनल को तो छोड़िए, दुनिया के किसी भी चुनाव में, किसी भी प्रतियोगिता में ऐसा होने की जानकारी नहीं है - कि एक ही उम्मीदवार/भागीदार हो, और वह भी हार जाए । किसी दूसरे को नहीं, खुद जेपी सिंह को यह बात ईमानदारी से समझने की जरूरत है कि पिछले लायन वर्ष के चुनाव में जेपी सिंह को आखिर हराया किसने ? इस सवाल का जबाव यदि ईमानदारी से खोजने की कोशिश की जाएगी, तो जबाव मिलने में कोई ज्यादा समस्या नहीं आएगी कि जेपी सिंह को खुद जेपी सिंह ने ही हराया था । उम्मीदवार जेपी सिंह पर लायन सदस्य व लायन लीडर के रूप में की गईं जेपी सिंह की हरकतें और कारस्तानियाँ भारी पड़ीं - जो उम्मीदवार जेपी सिंह को ले डूबीं । उनके विरोधियों तक का मानना और कहना है कि जेपी सिंह उतने बुरे आदमी नहीं हैं, जितने बुरे वह 'प्रोजेक्ट' हो गए हैं; बदकिस्मती की बात यह हुई कि उन्हें खुद इस बात का भान नहीं है कि उनका प्रोजेक्शन, उनकी छवि कितनी बुरी है, और इस बुरे प्रोजेक्शन को वह कैसे काबू में करें ? कुछ संगत का भी असर है । कई लोगों का मानना और कहना है कि विनोद खन्ना जैसे लोगों की संगत तथा विनोद खन्ना जैसे लोगों के सहारे रहने ने जेपी सिंह का बेड़ा गर्क करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में जेपी सिंह को विनय सागर जैन का जो अप्रत्याशित समर्थन मिला, उसे देख कर जेपी सिंह के समर्थकों व शुभचिंतकों को डर हुआ है कि अभी तक विनोद खन्ना ही उनका दिमाग खराब किए थे - अब विनय सागर जैन भी आ मिले हैं, तो अंजाम न जाने क्या होगा ? विनय सागर जैन वह व्यक्ति हैं जो अभी कल तक जेपी सिंह के सिर्फ विरोधी ही नहीं थे, बल्कि जिनके कारण ब्लड बैंक में जेपी सिंह के फर्जीवाड़े के आरोपों को विश्वसनीयता मिली थी । विनय सागर जैन ब्लड बैंक में जेपी सिंह के कब्जे वाले दौर में ट्रेजरार के पद पर थे, और उन्होंने ही जब खुल कर आरोप लगाए थे कि जेपी सिंह ने किस तरह से ब्लड बैंक को अपनी लूट का और कमाई का जरिया बनाया हुआ है - तब जेपी सिंह पर लगने वाले आरोपों पर लोगों ने विश्वास करना शुरू किया था । यानि जेपी सिंह की बर्बादी में विनय सागर जैन की निर्णायक भूमिका रही है । अब वही विनय सागर जैन अचानक से जेपी सिंह के समर्थक हो गए हैं । चर्चा है कि दूसरे खेमे में विनय सागर जैन को चूँकि कोई खास तवज्जो नहीं मिली, इसलिए वह जेपी सिंह के नजदीक होने/दिखने का प्रयास करने लगे हैं । पक्ष-विपक्ष के दोनों तरफ के लोगों को लगता है कि जेपी सिंह विरोधी खेमे में उन्हें तवज्जो मिलने का आश्वासन यदि मिल जाए, तो वह फिर से जेपी सिंह के विरोध का झंडा उठा लेंगे । समझा जाता है कि दूसरे खेमे के नेताओं से डील करने के लिए माहौल बनाने के उद्देश्य से ही विनय सागर जैन ने ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में जेपी सिंह का बढ़चढ़ कर समर्थन किया । विनोद खन्ना और विनय सागर जैन के बबाल से उत्साहित होकर जेपी सिंह ने भी फिर ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में ऐसे तेवर दिखाए कि अपनी ही पोल खोल बैठे । ऑनरेरी कमेटी की मीटिंग में अपनी हरकत के जरिए, सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गुरचरण सिंह की उम्मीदवारी के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा करते हुए जेपी सिंह ने जैसे एक बार फिर अपने आप को हराने की तैयारी शुरू कर दी है ।

Wednesday, December 21, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में संजय खन्ना के बाद रवि चौधरी को अपनी तरफ करके सुशील खुराना ने विनोद बंसल के लिए सीओएल के चुनाव को वास्तव में खासा मुश्किल और चुनौतीपूर्ण बना दिया है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी ने पेम थर्ड की जिम्मेदारी सुशील खुराना के क्लब को सौंप कर विनोद बंसल को जोर का झटका खासे जोर से दिया है । डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के समीकरणों को देखते/समझते रहने वाले लोगों का कहना है कि रवि चौधरी ने सुशील खुराना के क्लब को पेम थर्ड की जिम्मेदारी सौंप कर सिर्फ अपने एक कार्यक्रम की 'व्यवस्था' करने का ही काम नहीं किया है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में बनते नए समीकरणों में अपना रुझान और अपनी पक्षधरता 'दिखाने' का भी काम किया है । लोगों का मानना और कहना है कि पेम थर्ड के आयोजन की जिम्मेदारी निभाने के लिए रवि चौधरी को कोई न कोई अन्य क्लब मिल ही जाता, लेकिन उनके द्धारा सुशील खुराना के क्लब को प्राथमिकता देने से डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच साफ संदेश गया है कि डिस्ट्रिक्ट की राजनीति के बनते नए समीकरणों में वह सुशील खुराना के साथ हैं । विनोद बंसल अभी सुशील खुराना और संजय खन्ना के बीच पकती खिचड़ी से मिले झटके से ही उबरने का प्रयास कर रहे थे, कि रवि चौधरी ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ाने वाला काम कर दिया है । बात सिर्फ इतनी नहीं है कि सुशील खुराना को रवि चौधरी के रूप में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट का समर्थन भी मिल गया है, बात इसलिए बड़ी है क्योंकि रवि चौधरी को विनोद बंसल के सबसे नजदीकी समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा था - इसलिए माना जा रहा है कि रवि चौधरी से मिले इस खुल्लमखुल्ला और अप्रत्याशित रूप से मिले धोखे से विनोद बंसल को जोर का झटका लगा है ।
मजे की बात यह है कि सुशील खुराना और विनोद बंसल डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में अभी कल तक एक साथ थे - लेकिन सीओएल की सदस्यता के चक्कर में दोनों अब आमने-सामने हो गए हैं । सीओएल के लिए सुशील खुराना की उम्मीदवारी का पत्ता साफ करने के उद्देश्य से डिस्ट्रिक्ट में यह बात चली कि सुशील खुराना को तो प्रत्येक पद चाहिए । सुशील खुराना को निशाने पर लेते हुए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच बातें कही/सुनी गईं कि डिस्ट्रिक्ट में जिस किसी पद के लिए भी चयन या चुनाव होने की बात आती है, सुशील खुराना झट से अपना दावा पेश कर देते हैं । इस तरह की बातों को हवा देने के पीछे सुशील खुराना ने विनोद बंसल को 'पहचाना' - उन्होंने समझा/माना कि सीओएल के लिए उनकी उम्मीदवारी को कमजोर करने के लिए विनोद बंसल ही उनके बारे में इस तरह की बातें फैला रहे हैं । ऐसा समझने/मानने के कारण ही सुशील खुराना ने सीओएल के लिए अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का अभियान शुरू किया - और पहला बड़ा काम यह किया कि डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में अपने 'दुश्मन' रहे संजय खन्ना से हाथ मिला लिया । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि संजय खन्ना को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव हरवाने के लिए सुशील खुराना ने ऐड़ी-चोटी का जोर तो लगाया ही था; बाद के वर्षों में भी दोनों आमने-सामने ही रहे हैं । यहाँ यह याद करना भी दिलचस्प होगा कि संजय खन्ना के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का उम्मीदवार बनने से पहले दोनों के बीच अच्छे संबंध थे, और सुशील खुराना के गवर्नर-काल में संजय खन्ना ने उनकी बहुत मदद की थी । यानि, जब संजय खन्ना को मदद की जरूरत पड़ी थी - तब सुशील खुराना ने उनसे मुँह मोड़ लिया था ।
सुशील खुराना से मिले धोखे के अनुभव के बावजूद संजय खन्ना ने उनसे 'दोस्ती' करने में जो तत्परता दिखाई है, उसने लोगों को हैरान किया है । पर, इसके पीछे की राजनीति जानने/समझने वालों का मानना और कहना है कि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं के बीच अपनी पैठ/पहुँच को सुरक्षित बनाए रखने के लिए संजय खन्ना को सुशील खुराना से मिले धोखे के अनुभव को भूल जाना उचित लगा है । उल्लेखनीय है कि संजय खन्ना ने रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच अपनी अच्छी पैठ/पहुँच बना ली है, और वह पिछले/अगले इंटरनेशनल प्रेसीडेंट्स तक के 'चहेते' के रूप में देखे जा रहे हैं । संजय खन्ना को अपनी इस पैठ/पहुँच को विनोद बंसल से चुनौती मिलने का खतरा है - क्योंकि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों व नेताओं के बीच विनोद बंसल की भी प्रभावी पहुँच है । विनोद बंसल से मिल सकने वाली चुनौती को खत्म करने के लिए संजय खन्ना को विनोद बंसल को पीछे खींचना जरूरी लगता है, और इसके लिए उन्हें सुशील खुराना से अपनी 'दुश्मनी' को दोस्ती में बदलना फायदेमंद लगा है । दुबई में आयोजित रोटरी जोन इंस्टीट्यूट से लौटे लोगों ने बताया है कि सुशील खुराना और संजय खन्ना के बीच नए सिरे से पनपती दोस्ती के जो बीज दिल्ली में पड़ गए थे, वह दुबई में रोटरी इंटरनेशनल के बड़े नेताओं के बीच तेजी से फसल बनते दिखे ।
संजय खन्ना को अपनी तरफ करके सुशील खुराना ने विनोद बंसल को जो झटका दिया, उसकी रेंज को और बढ़ाते हुए उन्होंने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी को भी अपनी तरफ मिला लिया है । उल्लेखनीय है कि रवि चौधरी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर चुनवाने में सुशील खुराना और विनोद बंसल ने यूँ तो बराबर की मदद की थी, किंतु यदि तथ्यों का बारीकी से आकलन किया जाए तो विनोद बंसल की मदद निर्णायक थी । सुशील खुराना तो नोमीनेटिंग कमेटी में अपने लोगों के वोट रवि चौधरी को नहीं दिला पाए थे, जिसके चलते नोमीनेटिंग कमेटी में रवि चौधरी को हार का सामना करना पड़ा था । चेलैंजिंग उम्मीदवार के रूप में रवि चौधरी को दिल्ली और फरीदाबाद के क्लब्स के वोट दिलवाने में विनोद बंसल की सक्रियता और भूमिका तुलनात्मक रूप से ज्यादा थी । उसके बाद भी, रवि चौधरी जब जब मुश्किल में पड़े/फँसे - विनोद बंसल ही उनकी मदद के लिए आगे आए । इसके बावजूद, रवि चौधरी के सामने जब सुशील खुराना और विनोद बंसल में से किसी एक को चुनने का मौका आया - तो रवि चौधरी ने सुशील खुराना को वरीयता दी । रवि चौधरी का यह रवैया कई लोगों को हैरान कर गया है । उन्हें लगता है कि रवि चौधरी यदि चाहते, तो किसी एक तरफ 'दिखने' से बच सकते थे । अंदरखाने वह किसके साथ होते, यह फिर अटकलों की बात होती - खुल्लमखुल्ला सुशील खुराना के साथ आने और 'दिखने' के पीछे आखिर उनकी क्या मजबूरी रही, यह किसी के लिए भी समझना मुश्किल हो रहा है । कुछेक लोगों को लगता है कि अपनी मूर्खता के चलते वह सुशील खुराना के साथ खड़े 'पकड़े' गए हैं; तो अन्य कुछेक लोगों का कहना है कि रवि चौधरी गवर्नर तो बन गए हैं, लेकिन गवर्नरी करने की काबिलियत उनमें नहीं है - ऐसे में उन्हें एक विश्वसनीय मददगार की जरूरत होगी ही; सुशील खुराना उन्हें 'वह' विश्वसनीय मददगार हो सकने का भरोसा देने में सफल रहे - और तब रवि चौधरी सहज रूप से विनोद बंसल को धोखा देने के लिए तैयार हो गए ।
इस तरह, संजय खन्ना के बाद रवि चौधरी को अपनी तरफ करके सुशील खुराना ने विनोद बंसल के लिए सीओएल के चुनाव को वास्तव में खासा मुश्किल और चुनौतीपूर्ण बना दिया है ।

Tuesday, December 20, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में ललित खन्ना ने अपनी कामकाजी उपलब्धियों के सहारे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मुकाबले में बढ़त बनाने का प्रयास शुरू किया

नोएडा । ललित खन्ना को दिल्ली में ईईपीसी स्टार परफॉर्मर एक्सपोर्ट अवार्ड मिलने तथा अफ्रीका में आयोजित एक अंतरराष्ट्रीय वॉटर मीट में भाषण देने का अवसर मिलने की घटनाओं ने डिस्ट्रिक्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के ठंडे पड़े माहौल में थोड़ी सी गर्मी पैदा करने का काम किया है । ललित खन्ना के क्लब के सदस्य ललित खन्ना को कामकाजी जीवन में मिली इन उपलब्धियों से खासे उत्साहित हैं, और उन्हें लगता है कि उनकी इन उपलब्धियों का उनके चुनाव पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा । चुनाव पर क्या असर पड़ेगा, यह तो बाद में पता चलेगा - अभी लेकिन इतना जरूर हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में ललित खन्ना की उम्मीदवारी की चर्चा लोगों की बातचीत के केंद्र में आ गई है; अन्यथा चुनाव की सारी चर्चा अशोक जैन और दीपक गुप्ता के बीच ही सिमट कर रह गई थी । लोगों के बीच चलने वाली चुनावी चर्चा में ललित खन्ना की उम्मीदवारी की अनुपस्थिति कई लोगों को उनकी उम्मीदवारी के बारे में भ्रम में भी डाल रही थी - और लोगों के बीच असमंजस भी बन रहा था कि ललित खन्ना की उम्मीदवारी है भी या नहीं ? ललित खन्ना और उनके क्लब के सदस्यों ने लेकिन ईईपीसी स्टार परफॉर्मर एक्सपोर्ट अवार्ड मिलने तथा एक अंतरराष्ट्रीय वॉटर मीट में भाषण देने का अवसर मिलने की घटनाओं का जैसा प्रचारात्मक इस्तेमाल किया है, उसने ललित खन्ना की उम्मीदवारी को लेकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच फैले/पनपे सारे भ्रमों व असमंजसों को दूर करने का काम किया है ।
इस 'काम' के चलते मजे की बात यह देखने को मिली है कि जैसे झील के शांत पानी में एक कंकड़ पड़ने से पानी में तरंगे पैदा हो जाती हैं, ठीक उसी तर्ज पर निर्जीव से पड़े डिस्ट्रिक्ट के चुनावी माहौल में हलचल सी पैदा हो गई है - और अशोक जैन व दीपक गुप्ता के समर्थकों/शुभचिंतकों को सिर्फ एक-दूसरे से ही नहीं, बल्कि ललित खन्ना से भी 'निपटने' की जरूरत दिखाई दी है । किसी भी चुनावी राजनीति में - और रोटरी की चुनावी राजनीति में भी किसी उम्मीदवार की कामकाजी सफलताएँ या उपलब्धियाँ कोई निर्णायक भूमिका सचमुच निभाती भी हैं क्या - इसे लेकर लोगों के बीच गंभीर मतभेद हैं; लेकिन लोगों के बीच इस बात पर पूरी सहमति है कि चुनाव-अभियान के दौरान मिलने वाली कोई भी सफलता या उपलब्धि उम्मीदवार तथा उसके समर्थकों/शुभचिंतकों का मनोबल बढ़ाने का काम तो करती ही है । ललित खन्ना की कामकाजी उपलब्धियों की खबर से चुनावी माहौल के साथ-साथ ललित खन्ना और उनके क्लब के सदस्यों की सक्रियता में अचानक से जो गर्मी 'देखने' को मिल रही है, उससे भी लगता है कि इन उपलब्धियों ने उनका मनोबल बढ़ाया है - आगे की कहानी इस बात पर निर्भर करेगी कि इस बढ़े मनोबल के साथ वह वास्तव में करते क्या हैं ?
कामकाजी उपलब्धियों के मामले में ललित खन्ना का रिकॉर्ड वैसे भी काफी अच्छा रहा है । निर्यातक कंपनी एपेक्स इंटरनेशनल के प्रवर्तक-निदेशक के रूप में ललित खन्ना ने कारपोरेट जगत में अपनी प्रभावी पहचान बनाई है । हैंडपंप निर्यात, खासकर अफ्रीकी देशों को निर्यात के मामले में उनकी उपलब्धियों के कारण उन्हें कई सम्मान और अवॉर्ड मिले हैं । ईईपीसी (इंजीनियरिंग एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल) की तरफ से उन्हें अभी जो अवॉर्ड मिला है, वह उन्हें लगातार पाँचवी बार मिला है । पानी की समस्या और उसके हल को लेकर विभिन्न देशों में होने वाली मीटिंग्स व सेमीनारों में उन्हें स्पीकर के रूप में आमंत्रित किया जाता है, जहाँ विभिन्न देशों के प्रतिनिधि उन्हें ध्यान और गंभीरता से सुनते हैं । यह उपलब्धियाँ उनकी लीडरशिप क्वालिटी व क्षमता का सुबूत पेश करती हैं । यह सुबूत दिल्ली के कमानी ऑडीटोरियम में देश भर से जुटे निर्यातकों की उपस्थिति में आयोजित एक भव्य समारोह में केंद्रीय रेलमंत्री सुरेश प्रभु के हाथों स्टार परफॉर्मर एक्सपोर्ट अवार्ड लेने तथा अटलांटिक कोस्ट पर स्थित अफ्रीकन यूनियन की व्यापारिक राजधानी अबिदजान में आयोजित अन्तर्राष्ट्रीय वॉटर मीट में 67 देशों के पाँच सौ से ज्यादा प्रतिनिधियों के बीच वॉटर मैनेजमेंट पर भाषण देने और प्रशंसा पाने की घटना से बिलकुल नए रूप में सामने आया है । ललित खन्ना और उनके क्लब के सदस्यों ने प्रयास शुरू किया है कि उनकी लीडरशिप क्वालिटी व क्षमता के सुबूत का यह नया रूप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उनकी उम्मीदवारी के भी काम आए ।

Monday, December 19, 2016

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा की नई नई हरकतों ने उन्हें सिर्फ डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच भी खासी फजीहत का शिकार बना दिया है

लखनऊ । विशाल सिन्हा को श्रीलंका पैकेज महँगा बेचने, डिस्ट्रक्ट 321 बी टू के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद को लायंस क्लब लखनऊ अवध के अधिष्ठापन समारोह में जबरन थोपने तथा पिकनिक कार्यक्रम में मनोज रुहेला से जबरन पैसे खर्च करवाने के आरोपों/विवादों ने जिस तरह से एक साथ घेरा है - उसके कारण विशाल सिन्हा डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल में लोगों के बीच खासी फजीहत का शिकार बन रहे हैं । यूँ तो विशाल सिन्हा का नाम घपलेबाजियों में इस तरह से जुड़ चुका है, कि उनकी किसी भी हरकत पर किसी को भी आश्चर्य नहीं होता है - लेकिन जिस तरह से उनकी हर नई हरकत उनकी पुरानी हरकत से 'इक्कीस' साबित होती है, उसे देख/जान कर लोगों को यह हैरानी जरूर होती है कि एक से बढ़ कर एक हरकतों के आईडियाज उनकी खोपड़ी में आखिर आते कहाँ से हैं ? समस्या की बात यह भी होती जा रही है कि विशाल सिन्हा तो अपना उल्लू सीधा कर लेते हैं, लेकिन उनकी 'ठगी' के शिकार लोग आर्थिक नुकसान सहने के साथ-साथ दूसरे लोगों के बीच अपनी जो किरकिरी भी करवाते हैं - उसके चलते वह दोहरी मार खाते हैं । विशाल सिन्हा के साथ श्रीलंका जाने वाले लोग, डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद, और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार मनोज रुहेला आजकल इसी दशा को प्राप्त हैं ।
उल्लेखनीय है कि विशाल सिन्हा अभी हाल ही में संपन्न हुई इसामे फोरम की मीटिंग में अपने साथ 15 और लोगों को श्रीलंका ले गए थे, जिनमें चार-पाँच लोग तो गैर-लायन थे । लायंस इंटरनेशनल की इसामे फोरम की मीटिंग में गैर-लायन लोगों को भला क्या करना था ? जाहिर है कि इसामे फोरम की मीटिंग तो बहाना थी, असल उद्देश्य पिकनिक का था । इस पिकनिक वाले कार्यक्रम में बीस और लायन सदस्यों को भी जाना था - लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने अपने आप को विशाल सिन्हा के कार्यक्रम से अलग कर लिया, और मजे की बात यह रही कि उन बीस लोगों ने विशाल सिन्हा के कार्यक्रम के आसपास ही श्रीलंका जाने का अपना अलग कार्यक्रम बनाया । उनका अलग से कार्यक्रम बनाने का मुख्य कारण पैकेज की कीमत बना, जिसमें 18 हजार रुपए का सीधा अंतर था । विशाल सिन्हा के कार्यक्रम में प्रत्येक यात्री से 72 हजार रुपए लिए गए, लेकिन अन्य बीस लोग उसी स्तर के पैकेज में 54 हजार रुपए में गए । विशाल सिन्हा का पैकेज शान ट्रैवल्स ने तैयार किया था ।
शान ट्रैवल्स के बारे में लायन सदस्यों के बीच अब यह बात मशहूर हो चुकी है कि उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स तथा बड़े नेताओं व पदाधिकारियों को 'फेवर' देना होता है, जिसकी बसूली वह बाकी लोगों से करते हैं । इसी कारण से उनके पैकेजेज पर महँगे होने के आरोप लगते रहते हैं । शान ट्रैवल्स के पैकेज पर ही विशाल सिन्हा कुछ समय पहले लोगों को ताशकंद ले गए थे, जिसमें भी ज्यादा पैसे लेने का आरोप लगाते हुए कई लोगों ने ऐन मौके पर शामिल होने से इंकार कर दिया था - जिस कारण से उक्त कार्यक्रम लेटलतीफी का शिकार भी हुआ था । श्रीलंका जाने वाले मामले में शान ट्रैवल्स और विशाल सिन्हा के लिए बदकिस्मती की बात दरअसल यह हुई कि कुछेक लोगों ने एक दूसरी ट्रैवल कंपनी से बात कर ली, और कीमत में 18 हजार रुपए का सीधा अंतर पा कर उन्होंने विशाल सिन्हा और शान ट्रैवल्स की ठगी का शिकार होने से अपने आप को बचा लिया । विशाल सिन्हा के साथ जाने वाले लोगों के लिए मुसीबत की बात यह हुई है कि उन्हें अब लोगों के बीच शर्मिंदगी का सामना करना पड़ रहा है कि वह विशाल सिन्हा की ठगी का शिकार होने से होने से आखिर बच क्यों नहीं सके ? एक तरफ तो उन्हें पैसों का घाटा हुआ, और दूसरी तरफ वह लोगों की निगाह में बेवकूफ साबित हुए ।
लायंस क्लब लखनऊ अवध के साथ विशाल सिन्हा ने एक अजीब ही खेल कर दिया । हाल ही में क्लब का अधिष्ठापन समारोह हुआ, जिसमें अधिष्ठापन कराने के लिए विशाल सिन्हा के दबाव के चलते डिस्ट्रिक्ट 321 बी टू के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद को बुलाया गया । क्लब के पदाधिकारी इस काम के लिए डिस्ट्रिक्ट के किसी वरिष्ठ/अनुभवी पूर्व गवर्नर को बुलाना चाहते थे । विशाल सिन्हा ने लेकिन क्लब के पदाधिकारियों पर दबाव डाला और उन्हें दीपक राज आनंद को बुलाने के लिए राजी किया । सिर्फ इतना ही नहीं, विशाल सिन्हा ने क्लब के पदाधिकारियों को इस बात के लिए भी जबर्दस्ती राजी किया कि वह दीपक राज आनंद के लिए एक अच्छे/महँगे गिफ्ट की और कानपुर से उनके आने/जाने के मार्ग-व्यय की व्यवस्था करें । विशाल सिन्हा ने क्लब के पदाधिकारियों को समझाया कि दीपक राज आनंद की आवभगत यदि अच्छे से होगी, तो वह खुश होंगे - और खुशी में मल्टीपल काउंसिल के चुनाव में वह अपना वोट उन्हें देने के लिए तैयार हो जायेंगे । यह सब बातें जब सार्वजनिक हुईं तब दीपक राज आनंद को जानने वाले लोगों ने क्लब के पदाधिकारियों तथा अन्य लोगों को बताया कि दीपक राज आनंद ऐसे व्यक्ति तो नहीं हैं, जो कानपुर से आने-जाने का मार्ग व्यय लेंगे । इसके बाद क्लब में बबाल पैदा हुआ कि दीपक राज आनंद के आने-जाने का मार्ग-व्यय यदि विशाल सिन्हा को दिया गया है और दीपक राज आनंद ने वह लिया है, तो वह आखिर गया किसकी जेब में ? मल्टीपल काउंसिल के चुनाव में विशाल सिन्हा ने अपने लिए दीपक राज आनंद का वोट पक्का करने के प्रयास में लायंस क्लब लखनऊ अवध पर आर्थिक बोझ डाल कर क्लब में खासा बबाल करवा दिया है, और क्लब के पदाधिकारियों को मुसीबत में फँसा दिया है ।
दूसरे के पैसों पर राजनीति तथा मौज करने की विशाल सिन्हा की प्रवृत्ति के नए शिकार मनोज रुहेला बने हुए हैं । मनोज रुहेला इस वर्ष सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार हैं । मजे की बात यह है कि मनोज रुहेला वास्तव में केएस लूथरा के उम्मीदवार हैं, जिन्हें विशाल सिन्हा फूटी आँख देखने को भी तैयार नहीं रहते हैं - और इस कारण से विशाल सिन्हा ने मनोज रुहेला की राह में काँटे बोने के लिए जोरशोर से एक उम्मीदवार की तलाश की थी । लेकिन विशाल सिन्हा के उम्मीदवार के रूप में चुनावी मैदान में आने के लिए कोई भी राजी नहीं हुआ । जिन लोगों ने दिलचस्पी दिखाई भी, वह भी विशाल सिन्हा की बड़ी-बड़ी बातें सुनकर और उनके रंग-ढंग देख कर मैदान से बाहर हो लिए । सभी को समझ में आया कि विशाल सिन्हा को दरअसल एक उम्मीदवार नहीं, बल्कि एक 'मुर्गा' चाहिए - जिसे वह पूरे वर्ष हलाल करते रहें - सो, सभी लोग विशाल सिन्हा के चक्कर में फँसने से बच निकले । 'मरता क्या न करता' वाली तर्ज पर विशाल सिन्हा ने मनोज रुहेला को अपना 'भी' उम्मीदवार मान/बना लिया । विशाल सिन्हा अपने सारे खर्चे मनोज रुहेला से करवाते हैं । हद यह हुई है कि उम्मीदवार द्धारा किए जाने वाले पिकनिक कार्यक्रम में भी विशाल सिन्हा ने अपनी नाक घुसेड़ दी है, और उसमें भी वह अपनी मनमानी थोप रहे हैं । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में पिछले कुछेक वर्षों से उम्मीदवार द्धारा डिस्ट्रिक्ट स्तर की पिकनिक आयोजित करने का चलन बन गया है । यह पूरी तरह से उम्मीदवार का अपना कार्यक्रम होता है, जिसे वह अपने सलाहकारों की सलाह के अनुसार आयोजित करता है । उम्मीदवार के रूप में मनोज रुहेला ने 15 जनवरी को डिस्ट्रिक्ट पिकनिक का कार्यक्रम बनाया है । विशाल सिन्हा 'मान न मान, मैं तेरा सलाहकार' वाली अदा के साथ मनोज रुहेला को सलाह देने में लग गए हैं कि ऐसे करो वैसे करो, यह करो वह करो । सलाह के जरिए विशाल सिन्हा दरअसल मनोज रुहेला के खर्चे पर अपनी राजनीति करने की और अपनी अहमियत बनाने/दिखाने की तिकड़म भिड़ा रहे हैं । अभी कल तक मनोज रुहेला के सामने मुसीबत खड़ी करने के लिए उम्मीदवार की तलाश करने वाले विशाल सिन्हा को अब मनोज रुहेला के सलाहकार के रूप में पाकर डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने विशाल सिन्हा के अवसरवादी रूप को ही देखा/पहचाना है ।
श्रीलंका पैकेज महँगा बेचने, डिस्ट्रक्ट 321 बी टू के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर दीपक राज आनंद को लायंस क्लब लखनऊ अवध के अधिष्ठापन समारोह में जबरन थोपने तथा पिकनिक कार्यक्रम में मनोज रुहेला से जबरन पैसे खर्च करवाने के आरोपों/विवादों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विशाल सिन्हा को सिर्फ डिस्ट्रिक्ट में ही नहीं, बल्कि मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के बीच खासी फजीहत का शिकार बना दिया है ।

Sunday, December 18, 2016

अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट अनूप मित्तल पर मुख्य कार्यालय के भवन तथा कैंसर अस्पताल के नाम पर अपनी जेब भरने का आरोप लगाने वाले लोगों को भविष्य की चिंता हुई

नई दिल्ली । अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल के प्रेसीडेंट अनूप मित्तल ने जिस तरह से मनमाने और गुपचुप तरीके से संगठन के पैसों को खर्च करने का काम शुरू किया हुआ है, उससे संगठन में नीचे से ऊपर तक के लोगों के बीच चिंता और आशंका पैदा हुई है कि अनूप मित्तल कहीं पैसों की बड़ी हेराफेरी तो नहीं कर रहे हैं ? संगठन के एक बड़े पदाधिकारी का कहना है कि अनूप मित्तल जस तरह से संगठन के दूसरे पदाधिकारियों से छिप/छिपा कर मोटी रकम खर्च करते हुए काम कर रहे हैं, उससे लोगों को उनकी नीयत और उनके इरादे पर शक होने लगा है - और कई एक लोग तो कहने भी लगे हैं कि संगठन के पैसे का बेजा इस्तेमाल करने के पीछे अनूप मित्तल का वास्तविक और तात्कालिक उद्देश्य अपनी जेब भरने का लगता है । उल्लेखनीय है कि एक तरफ तो कोलकाता में संगठन के मुख्य कार्यालय के लिए भवन खरीदने के नाम पर फ्लैट खरीदने की अनूप मित्तल की तैयारी संदेह के घेरे में हैं, तो दूसरी तरफ दिल्ली के नजदीक बुलंदशहर में कैंसर अस्पताल के निर्माण के नाम पर पैसा इकट्ठा करने की उनकी योजना गंभीर आरोपों के घेरे में है । यह संदेह और आरोप इसलिए और गंभीर हैं क्योंकि इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स के कई सदस्यों तक को नहीं पता है कि इन दोनों मामलों में वास्तव में हो क्या रहा है । अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल से जुड़े कई लोगों का कहना/बताना है कि इन दोनों मामलों के बारे में जब भी वह किसी भी बोर्ड सदस्य से कुछ पूछते हैं, तो उन्हें यही सुनने को मिलता है कि अनूप मित्तल उन्हें कुछ बताते ही नहीं हैं और उनसे कुछ पूछो तो वह नाराज होने लगते हैं, इसलिए उन्हें तो कुछ पता नहीं है । लोगों का कहना है कि जब बोर्ड के सदस्यों को ही कुछ नहीं पता है और अनूप मित्तल ने उन्हें भी अँधेरे में रखा हुआ है, तो मल्टीपल और डिस्ट्रिक्ट और क्लब के लोगों की तो फिर हैसियत ही क्या है ?
कोलकाता में संगठन के मुख्य कार्यालय के लिए भवन खरीदने के नाम पर फ्लैट खरीदने की अनूप मित्तल की तैयारी उनकी मनमानी तथा बेईमानीपूर्ण सोच का दिलचस्प उदाहरण है । इस खरीद पर उठने वाले सवालों के जबाव में अनूप मित्तल ने यह दावा तो किया कि कोलकाता में हुई इंटरनेशनल बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स की मीटिंग में मुख्य कार्यालय के लिए अपनी बिल्डिंग होने/करने का प्रस्ताव पास हुआ था, और वह उसी पास हुए प्रस्ताव पर अमल कर रहे हैं - लेकिन अनूप मित्तल पूरी बात नहीं बता रहे हैं । उनका यह दावा सच है कि कोलकाता में हुई बोर्ड मीटिंग में मुख्य कार्यालय के लिए अपनी बिल्डिंग होने/करने का प्रस्ताव पास हुआ था - लेकिन पूरा सच यह है कि मुख्य कार्यालय के लिए जमीन देने की घोषणा अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल के संस्थापक प्रेसीडेंट सतीश लखोटिया ने की थी । उक्त मीटिंग में सतीश लखोटिया ने घोषणा की थी कि अपनी करीब साढ़े आठ हजार वर्ग फुट जमीन वह संगठन के मुख्यालय के निर्माण के लिए देंगे । उन्होंने उक्त जमीन की रजिस्ट्री संगठन के नाम करने के लिए 17 जनवरी की तारीख भी तय कर दी थी । सतीश लखोटिया की इस स्पष्ट घोषणा के बावजूद, बाद में लोगों को जब पता चला कि अनूप मित्तल मुख्य कार्यालय के लिए एक आवासीय कालोनी में फ्लैट खरीदने की तैयारी कर रहे हैं - तो उनका माथा ठनका । बोर्ड मीटिंग में फ्लैट खरीदने की तो कोई बात ही तय नहीं हुई थी, और न अनूप मित्तल ने बाद में ही बोर्ड सदस्यों से फ्लैट खरीदने की अपनी तैयारी को लेकर कोई बात की । अनूप मित्तल की इस हरकत पर लोगों के बीच चर्चा चली है कि सतीश लखोटिया के जमीन देने से पहले ही मुख्य कार्यालय के नाम पर फ्लैट खरीदने के जरिए अनूप मित्तल एक बड़ी रकम अपनी जेब में करने का मौका बना रहे हैं - अन्यथा बोर्ड के सदस्यों को अँधेरे में रख कर फ्लैट खरीदने की जल्दबाजी करने की उन्हें कोई जरूरत नहीं थी ।
एक इंटरनेशनल संगठन का मुख्य कार्यालय आवासीय कालोनी के एक फ्लैट में हो - यह बात भी किसी के समझ में नहीं आ रही है । कई लोगों ने अनूप मित्तल से कहा भी कि आवासीय कालोनी के एक फ्लैट में संगठन के मुख्य कार्यालय का काम कर पाना संभव नहीं होगा; मुख्य कार्यालय में संगठन के सदस्यों की जिस तरह की चहल-पहल होगी, उस पर कालोनी के निवासियों को परेशानी व आपत्ति होगी और वह शिकायत कर सकते हैं; आवासीय कालोनी के फ्लैट में संगठन के नाम का बोर्ड भी नहीं लगा सकेंगे, और इस नाते से बाहर से आने वाले सदस्यों को कार्यालय का पता खोजने में मुश्किल होगी । अनूप मित्तल ने लेकिन इन बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया है, और इन बातों को करने वालों को तरह तरह की बहानेबाजियों से टरका दिया है । अनूप मित्तल बस जल्दी से जल्दी फ्लैट खरीद लेना चाहते हैं । उन्हें डर है कि कहीं बात इतनी न बढ़ जाए कि फ्लैट खरीदने की उनकी तैयारी धरी की धरी ही रह जाए । फ्लैट खरीदने को लेकर अनूप मित्तल की हड़बड़ी देख/जान कर लोगों का शक और बढ़ व पक्का हो रहा है कि मुख्य कार्यालय के नाम पर फ्लैट की खरीद करके अनूप मित्तल दरअसल अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपनी जेब भरने का काम कर रहे हैं ।
इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में अनूप मित्तल ने बुलंदशहर में कैंसर अस्पताल बनाने/बनवाने के नाम पर पैसा इकट्ठा करने की जो मुहिम शुरू की हुई है, उसे लेकर भी लोगों के शक और आरोप धीरे धीरे बढ़ते जा रहे हैं । अनूप मित्तल ने दावा तो यह किया था कि उक्त कैंसर अस्पताल उनके प्रेसीडेंट-काल की मुख्य पहचान बनेगा - लेकिन लोगों के बीच जिस तरह की बातें सुनी/सुनाई जा रही हैं, उससे लग यह रहा है कि अस्पताल नहीं - अस्पताल के नाम पर इकट्ठा हुई रकम को हड़पने की बात उनके प्रेसीडेंट-काल की पहचान बनेगी । यह बातें दरअसल इसलिए सुनी/सुनाई जा रही हैं, क्योंकि किसी को भी यह नहीं पता है कि प्रस्तावित कैंसर अस्पताल के नाम पर अनूप मित्तल ने कितनी रकम इकट्ठा कर ली है, और वह रकम कहाँ किस खाते में है, और अस्पताल बनने की योजना किस स्थिति में है ? हैरानी की बात यह है कि इस मामले को भी अनूप मित्तल ने बोर्ड के सदस्यों व पदाधिकारियों से छिपाया हुआ है । यह बात हैरानी की इसलिए है क्योंकि इस तरह के कामों में तो सभी की मदद ली जाती है, ताकि काम जल्दी से पूरा हो - अनूप मित्तल ने लेकिन अलग ही तरीका अपनाया हुआ है; कैंसर अस्पताल की अपनी योजना को लेकर वह बोर्ड के सदस्यों के साथ कोई विचार-विमर्श ही नहीं करते हैं । बोर्ड के सदस्यों का ही कहना है कि संभवतः अनूप मित्तल इसीलिए विचार-विमर्श नहीं करते हैं, क्योंकि तब फिर उन्हें सारा हिसाब-किताब भी बताना/देना पड़ेगा । अनूप मित्तल डिस्ट्रिक्ट्स व क्लब्स की मीटिंग्स में कैंसर अस्पताल के लिए दान देने की अपील तो जोर-शोर से करते रहते हैं, किंतु वह यह किसी को नहीं बताना चाहते कि कैंसर अस्पताल के लिए दान में मिले पैसों का वह कर क्या रहे हैं ?इंटरनेशनल प्रेसीडेंट के रूप में अनूप मित्तल के इस रवैये ने अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल की पूरी कार्यप्रणाली को संदेह के घेरे में ला दिया है, तथा लोगों के बीच चर्चा चली है कि प्रेसीडेंट कार्यालय जैसे मनमानी करके लूट-खसोट करने का अड्डा बन गया है । जो लोग अलायंस क्लब्स इंटरनेशनल से शुरू से जुड़े हुए हैं, और जिन्होंने इसके गठन में तथा इसे आगे बढ़ाने में मेहनत की है - वह अनूप मित्तल के रवैये कारण इसमें बन रहे माहौल तथा इसकी बन रही नकारात्मक छवि को लेकर खासे परेशान और निराश हैं । कुछेक लोगों को लगता भी है कि अनूप मित्तल की कार्रवाइयों में यदि पारदर्शिता नहीं लाई गई, तो संगठन में भरोसा करने वाले लोगों का भरोसा खत्म होगा - और यह बात संगठन को बहुत ही नुकसान पहुँचाने वाली होगी ।

Saturday, December 17, 2016

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी की सरकार के नोटबंदी के फैसले पर चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के मुँह बंद करने की कोशिश सरकारी पार्टी से राज्यसभा सीट जुगाड़ने का सौदा है क्या ?

नई दिल्ली । सरकार के नोटबंदी के फैसले का बेशर्मी भरा समर्थन करके चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच ही अपनी जैसी जो फजीहत कराई है, वह इंस्टीट्यूट के इतिहास की अनोखी घटना बन गई है । उनसे पहले, प्रेसीडेंट पद पर रहते हुए शायद ही किसी प्रेसीडेंट को ऐसी स्थिति का सामना करना पड़ा होगा, जिसमें चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने पत्र/ईमेल लिख कर प्रेसीडेंट को लताड़ा हो । कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने बाकायदा पत्र लिख कर देवराज रेड्डी के रवैये की न सिर्फ सख्त आलोचना की है बल्कि इस बात के लिए उनकी भर्त्सना तक की है कि अपने निजी स्वार्थ में उन्होंने इंस्टीट्यूट की स्वायत्तता को दाँव पर लगाने के साथ-साथ इसकी विश्वसनीयता व प्रतिष्ठा को भी चोट पहुँचाई है । इंस्टीट्यूट की तरफ से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए जारी उस एडवाईजरी ने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का गुस्सा खासा भड़काया हुआ है, जिसमें नोटबंदी के फैसले की किसी भी रूप में आलोचना और या खिलाफत वाली बात न कहने की 'सख्त सलाह' दी गई है । कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने देवराज रेड्डी से पूछा है कि 'उन्हें या इंस्टीट्यूट प्रशासन को यह अधिकार किसने दिया है कि आप हमें किसी मुद्दे पर वह कहने से रोकें, जिसे कहना हम उचित समझते हैं ।' चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की तरफ से ही आरोप लगाया गया है कि देवराज रेड्डी ने राज्य सभा की सीट का जुगाड़ बैठाने की अपनी तिकड़म में इंस्टीट्यूट की स्वायत्तता व प्रतिष्ठा की बलि चढ़ा दी है ।
देवराज रेड्डी की हरकत ने वास्तव में एक बड़े अर्थशास्त्री द्धारा कही गयी बात को ही सही साबित किया है, जिसके अनुसार नोटबंदी का समर्थन सिर्फ दो तरह के लोग कर रहे हैं : एक वह जो अर्थव्यवस्था के आंतरिक समीकरणों को नहीं जानते/समझते हैं और भावनात्मक आधार पर अपनी राय बनाते हैं; दूसरे वह जो अपने निजी स्वार्थ व लालच को प्राथमिकता देते हैं । नोटबंदी के मामले में एक दिलचस्प नजारा यह देखने को मिल रहा है कि देश-विदेश के नामी और प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री तो इसकी आलोचना कर रहे हैं, किंतु व्यापारी-बाबाओं और फिल्म अभिनेताओं जैसों की तरफ से इसे मुखर समर्थन मिला है । उद्यमियों  और उनके संगठनों ने आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साधी हुई है । देखा जाता रहा है कि जब कभी भी एक दिन की देशव्यापी हड़ताल हुई है, तो फिक्की और एसोचैम की तरफ से प्रेस कॉन्फ्रेंस करके बताया जाता रहा है कि एक दिन कारोबार ठप्प होने से देश की अर्थव्यवस्था को कितने हजार या लाख करोड़ का नुकसान हुआ है । लेकिन नोटबंदी के कारण महीने भर से ज्यादा समय से कारोबार ठप्प रहने से देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है - इसका ब्यौरा देने की फिक्की या एसोचैम ने अभी तक कोई जरूरत नहीं समझी है । यह स्वार्थ-भरी चुप्पी का एक नायाब उदाहरण है । लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि फिक्की या एसोचैम ने नोटबंदी का बेशर्मी भरा समर्थन भी नहीं किया है - जैसा कि चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट ने किया है ।
चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट ने अपनी एडवाईजरी में तथा एक बड़े अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित करवाए विज्ञापन में सरकार के सुर में सुर मिलाते हुए दावा किया है कि नोटबंदी से काले धन पर रोक लगेगी । इस दावे को लेकर कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने इंस्टीट्यूट प्रशासन व देवराज रेड्डी की खासी खिंचाई की है । उनसे पूछा गया है कि उन्हें यदि सचमुच भरोसा है कि नोटबंदी से कालेधन पर अंकुश लग सकता है, तो प्रत्येक वर्ष आम बजट से पहले इंस्टीट्यूट की तरफ से सरकार और/या वित्त मंत्रालय को जो सुझाव दिए जाते हैं, उनमें कभी नोटबंदी का सुझाव क्यों नहीं दिया गया । देवराज रेड्डी और इंस्टीट्यूट प्रशासन की अक्ल का बल्ब अभी ही क्यों जला है ? जाहिर है कि यह अक्ल की बात नहीं है, यह सिर्फ सरकार की हाँ में हाँ मिलाने का 'ठुमका' है । यह 'ठुमका' लगा कर इंस्टीट्यूट प्रशासन और प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी ने वास्तव में प्रोफेशन और इंस्टीट्यूट की स्वतंत्र पहचान तथा स्थिति को सही परिप्रेक्ष्य में देखने की उसकी क्षमता व खूबी को दाँव पर लगा दिया है । कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना कि यह ठीक है कि इंस्टीट्यूट 'पार्टनर्स इन नेशनल बिल्डिंग' है, लेकिन सच यह भी है कि वह सरकार का ही अंग नहीं है - उसकी अपनी एक स्वतंत्र हैसियत और पहचान है । कई मामलों में तो वह सरकार के कामकाज की पड़ताल करने तथा उसके कामकाज में होने वाली गड़बड़ियों और बेईमानियों को पकड़ने का भी अधिकार रखता है । लेकिन इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट के रूप में देवराज रेड्डी के रवैये ने इंस्टीट्यूट और प्रोफेशन की पहचान और प्रतिष्ठा को जैसे 'बेच' देने वाला रवैया दिखाया है ।
देवराज रेड्डी के रवैये की आलोचना करने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि नोटबंदी सरकार का एक बड़ा फैसला है, जिसका देश की अर्थव्यवस्था पर और देश के लोगों के आर्थिक-सामाजिक जीवन पर व्यापक असर पड़ना है; इसलिए होना यह चाहिए था कि इस मुद्दे पर इंस्टीट्यूट प्रशासन को और या सेंट्रल काउंसिल को व्यापक विचार विमर्श करना चाहिए था और उस विचार विमर्श में सामने आने वाली बातों के आधार पर अपनी राय और अपना निष्कर्ष निकालना/तय करना चाहिए था । उल्लेखनीय है कि सरकार प्रत्येक वर्ष बजट प्रस्तुत करती है और इंस्टीट्यूट की विभिन्न इकाईयाँ विचार-विमर्श के जरिए उसके अच्छे व खराब पक्षों की पड़ताल करती हैं । इस कार्रवाई को प्रोफेशन तथा अन्य संबद्ध पक्षों के लोगों के बीच सम्मानजनक ढंग से लिया/पहचाना जाता है - कई चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का कहना है कि नोटबंदी के मामले में भी ऐसा ही रवैया अपनाया जाना चाहिए था । पर इस मामले में तो उल्टा ही काम हुआ; न सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के बीच इस विषय पर चर्चा की/करवाई गई, और न अन्य किसी स्तर पर इस मामले में विचार-विमर्श की जरूरत समझी गई - उलटे, चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के लिए एडवाईजरी जारी की गई कि कोई भी चार्टर्ड एकाउंटेंट नोटबंदी को लेकर कहीं भी किसी भी तरह की प्रतिकूल टिप्पणी नहीं करेगा । इसे लेकर इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी की दोतरफा फजीहत हुई है : एक तरफ तो तमाम चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने इंस्टीट्यूट की एडवाईजरी को ठेंगा दिखाते हुए अपने अपने तरीके से नोटबंदी के फैसले की खामियों और उससे होने वाले नुकसान की व्यापक चर्चा की है;  दूसरी तरफ कई एक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स ने सीधे पत्र और ईमेल लिख कर उनके तथा इंस्टीट्यूट प्रशासन के रवैये की तीखी आलोचना भी है । देवराज रेड्डी को चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच इस आरोपपूर्ण चर्चा को और सुनना/झेलना पड़ रहा है कि सरकारी पार्टी से राज्यसभा सीट जुगाड़ने की तिकड़म में उन्होंने इंस्टीट्यूट की स्वतंत्र पहचान व प्रतिष्ठा का सौदा कर लिया है ।
देवराज रेड्डी और उनके नेतृत्व में इंस्टीट्यूट प्रशासन के इस प्रोफेशन विरोधी, जन विरोधी - और कई लोगों ने तो इसे मूर्खतापूर्ण भी कहा है - रवैये ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों के सामने लेकिन विकट स्थिति पैदा कर दी है । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के कुछेक सदस्य नोटबंदी के फैसले को लेकर प्रतिकूल सोच रखते हैं, और नोटबंदी को लेकर इंस्टीट्यूट प्रशासन के रवैये से तो बुरी तरह खफा ही हैं - लेकिन बेचारे कुछ कहने का साहस इसलिए नहीं कर पा रहे हैं, क्योंकि उन्हें इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ना/जीतना है । उन्हें डर है कि उक्त मामले में उनके मुँह खोलने और अपने मन की बात कहने से वाइस प्रेसिडेंट पद की उनकी उम्मीदवारी मुश्किल में पड़ सकती है - इसलिए उन्होंने चुप रहने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी है । कुछेक चार्टर्ड एकाउंटेंट्स का ही कहना है कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट को राज्यसभा में जाना है, और सेंट्रल काउंसिल के सदस्यों को (वाइस) प्रेसीडेंट बनना है - इस चक्कर में इन्होंने चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट जैसी प्रतिष्ठित संस्था को चंडूखाना बना दिया है ।

Thursday, December 15, 2016

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी के लिए लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के ग्रांट कोऑर्डीनेटर से मिली लताड़ के बाद आपदा पीड़ितों की राहत के नाम पर हड़पी गई रकम को नरेश अग्रवाल की 'मदद' के बावजूद डकार पाना मुश्किल होगा

गाजियाबाद । आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन से मिली पाँच हजार अमेरिकी डॉलर की ग्रांट को हड़पने की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की कोशिशों पर ग्रांट कोऑर्डीनेटर ने जो 'डंडा' चलाया है, उसने शिव कुमार चौधरी की कोशिशों को फेल करने का काम तो किया ही है - साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया है कि नरेश अग्रवाल और नेविल मेहता जैसे बड़े नेताओं ने भी उनकी 'मदद' से हाथ खींच लिए हैं । दरअसल शिव कुमार चौधरी को उम्मीद थी कि इन बड़े नेताओं की मेहरबानी से उन्होंने जैसे फर्जी तरीके से उक्त ग्रांट को स्वीकृत करा लिया है, वैसे ही वह इस ग्रांट का पैसा भी हड़प लेंगे । लेकिन लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन की ग्रांट कोऑर्डीनेटर की तरफ से उन्हें अभी जो धमकी भरा पत्र मिला है, उससे लग रहा है कि ग्रांट की रकम डकार पाना शिव कुमार चौधरी के लिए संभव नहीं होगा । उल्लेखनीय है कि ग्रांट कोऑर्डीनेटर ने शिव कुमार चौधरी को संबोधित पत्र में ग्रांट का हिसाब देने में आनाकानी करने की उनकी अभी तक की कोशिश पर तगड़ी लताड़ लगाते हुए, उन्हें 31 दिसंबर तक का समय देते हुए साफ चेतावनी दी है कि इस समय सीमा में उन्होंने यदि हिसाब नहीं दिया तो ग्रांट का पैसा वापस लेने की कार्रवाई शुरू की जाएगी ।
शिव कुमार चौधरी के लिए मुसीबत की बात यह है कि ग्रांट के पाँच हजार अमेरिकी डॉलर के समतुल्य तीन लाख चालीस हजार पचास रुपए उन्हें जो प्राप्त हुए हैं, उसके फर्जी खर्चे दिखाने का उन्हें कोई मौका नहीं मिल पाया है । उन्होंने ऋषिकेश के नजदीक नरेंद्रनगर में राहत सामग्री बाँटे जाने की जो फोटो तैयार की/करवाई भी, उसने उनके फर्जीवाड़े को पहली नजर में ही पकड़वा दिया है । शिव कुमार चौधरी ने धोखाधड़ी यह की कि इमरजेंसी ग्रांट तो उन्होंने पिथौरागढ़ व चमोली जिले के पीड़ितों के लिए ली, राहत सामग्री लेकिन उन्होंने इन जिलों से सैंकड़ों किलोमीटर दूर नरेंद्रनगर में बाँटी । तस्वीर में जो राहत सामग्री दिखी है, कोई भी उसका दाम तीस-चालीस हजार रुपए से ज्यादा नहीं बता रहा है । आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर की गई इस धोखाधड़ी के रंगे-हाथ पकड़े जाने के बाद शिव कुमार चौधरी की फिर और कोई हरकत करने की हिम्मत नहीं हुई ।
शिव कुमार चौधरी ने लेकिन यह हिम्मत खूब दिखाई कि लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के ग्रांट का हिसाब देने के अनुरोधों को वह अनसुना करते रहें और कोई जबाव ही न दें । इस काम में उनकी बड़ी एक्सपर्टीज है । शिव कुमार चौधरी ने जिन जिन लोगों से पैसे ले रखे हैं, वह बेचारे अपने अपने पैसे वापस पाने के लिए गुहार लगाते रहते हैं - शिव कुमार चौधरी लेकिन उनकी सुनते ही नहीं हैं और उन्हें कोई जबाव ही नहीं देते । लायंस क्लब मसूरी के अध्यक्ष सतीश अग्रवाल जब तब सोशल मीडिया में शिव कुमार चौधरी से पैसे वापस करने का अनुरोध करते रहते हैं, लेकिन शिव कुमार चौधरी के कानों पर कभी जूँ रेंगती नहीं 'पाई' गई । शिव कुमार चौधरी ने यही फार्मूला लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के साथ अपनाया । उल्लेखनीय है कि जुलाई महीने में ग्रांट का पैसा देते समय फाउंडेशन की तरफ से शिव कुमार चौधरी को स्पष्ट रूप से बता दिया गया था कि उन्हें एक महीने के भीतर इसका इस्तेमाल करके हिसाब भेजना है । ग्रांट का पैसा मिलने के बाद लेकिन शिव कुमार चौधरी ने फाउंडेशन के प्रति अपना रवैया ऐसा कर लिया, जैसे पूछ रहे हों कि 'भई, तू कौन है ?' महीने भर के भीतर हिसाब देना तो दूर की बात है, शिव कुमार चौधरी ने फाउंडेशन के हिसाब देने के बार बार भेजे जाने वाले नोटिसों का नोटिस तक नहीं लिया । जैसा व्यवहार वह अपने लेनदारों से करते हैं, ठीक वैसा ही व्यवहार उन्होंने लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के साथ किया । इस तरह से उन्होंने ठोस तरीके से साबित किया कि पैसा लेकर उसका हिसाब देना या उसे वापस करना उनकी फितरत में नहीं है ।
पर, लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के साथ उनकी यह झाँसेबाजी चल नहीं पाई । फाउंडेशन के ग्रांट कोऑर्डीनेटर ने 9 दिसंबर को लिखे अपने पत्र में शिव कुमार चौधरी को स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि 31 दिसंबर के बाद बात को अनसुना करने तथा जबाव न देने की उनकी झाँसेबाजी नहीं चलेगी । शिव कुमार चौधरी के नजदीकियों ने बताया है कि 9 दिसंबर का पत्र मिलने के बाद उन्होंने कुछेक वरिष्ठ लायन नेताओं से यह जानने/समझने का प्रयास किया है कि वह यदि ग्रांट का हिसाब न दें और न ही ग्रांट का पैसा वापस करें, तो लायंस इंटरनेशनल क्या कार्रवाई कर सकता है ? उन्हें बताया गया है कि लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में उन्हें दिए जाने वाले खर्चे को रोक सकता है, तथा उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से हटा सकता है । इसके बाद, शिव कुमार चौधरी यह हिसाब जोड़ने और समझने में व्यस्त हैं कि ग्रांट का पैसा वापस करने में फायदा है, या उसे हड़प लेने में ।
शिव कुमार चौधरी ने हालाँकि अभी भी नरेश अग्रवाल और नेविल मेहता जैसे बड़े नेताओं से मदद मिलने की उम्मीद छोड़ी नहीं है । दरअसल इन्हीं दोनों की मदद से उन्हें झूठ और फ्रॉड पर टिके आवेदन पर ग्रांट स्वीकृत हुई थी । 'रचनात्मक संकल्प' ने 25 अगस्त 2016 की अपनी रिपोर्ट में विस्तार से यह बताया था कि उक्त ग्रांट किस तरह झूठे तथ्यों के आधार के बावजूद स्वीकृत हुई है । वास्तव में कोई भी इस बात पर विश्वास नहीं करेगा कि लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन का कामकाज देख रहे पदाधिकारी इतने बड़े गधे हैं कि कोई भी उन्हें हजारों डॉलर खर्च होने की झूठी कहानी सुनायेगा, और वह उसे तुरंत से कुछ हजार डॉलर दे देंगे । जाहिर है कि शिव कुमार चौधरी को उनकी झूठी कहानी पर जो पाँच हजार अमेरिकी डॉलर की रकम मिली है, उसमें कुछेक बड़े लायन नेताओं व पदाधिकारियों का हिस्सा और या कोई दूसरा स्वार्थ होगा ही । कुछेक लोगों को लगता है कि शिव कुमार चौधरी ने जिस तरह से नरेश अग्रवाल व नेविल मेहता की 'मदद' से ग्रांट स्वीकृत करा ली थी, उसी तरह से वह ग्रांट का हिसाब देने तथा उसका पैसा वापस करने से भी बच लेंगे । लेकिन ग्रांट कोऑर्डीनेटर की 9 दिसंबर की चिट्ठी की स्पष्ट व कठोर भाषा को पढ़ कर लगता नहीं है कि शिव कुमार चौधरी के लिए आपदा पीड़ितों की राहत के नाम पर हड़पी गई रकम को डकार पाना आसान होगा ।
लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन की ग्रांट कोऑर्डीनेटर का शिव कुमार चौधरी को चेतावनी देता 9 दिसंबर का पत्र :

Wednesday, December 14, 2016

पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट की कोचिंग के धंधे में अभिषेक जावरे की बढ़ती पहचान और लोकप्रियता हजम न कर पाने के कारण ही एसबी जावरे ने उन्हें जावरे एकेडमी से निकाला है क्या ?

पुणे । जावरे प्रोफेशनल एकेडमी में एसबी जावरे की मनमानी और फैकल्टी सदस्यों के साथ हिसाब-किताब की गड़बड़ी का शिकार अंततः अभिषेक जावरे को भी होना पड़ा है । उल्लेखनीय है कि अभिषेक जावरे फैकल्टी सदस्य होने के साथ-साथ एकेडमी का प्रबंधन भी देख रहे थे और रिश्ते में एसबी जावरे के सगे भतीजे हैं - इसके बावजूद वह एसबी जावरे की बेईमानीपूर्ण टैक्टिस का शिकार होने से नहीं बच सके । नियति का क्रूर मजाक यह हुआ है कि अभिषेक जावरे अभी तक एसबी जावरे की बेईमानीपूर्ण टैक्टिस को क्रियान्वित करने का माध्यम हुआ करते थे, और पिछले कुछेक वर्षों में एसबी जावरे ने एकेडमी की जिन फैकल्टीज को अपनी टैक्टिस का शिकार बनाया है - उन्हें अंजाम तक पहुँचाने का काम अभिषेक जावरे ने ही किया है; उन्होंने कभी सोचा भी नहीं होगा कि एसबी जावरे की जिस टैक्टिस को सफलता के साथ वह अंजाम तक पहुँचाने का काम करते हैं, एक दिन एसबी जावरे की उसी टैक्टिस का शिकार वह खुद भी होंगे ।
एसबी जावरे की टैक्टिस बड़ी सीधी सी है : जावरे एकेडमी में फैकल्टी से वह जीतोड़ काम लेते हैं, इसके लिए फैकल्टी को राजी करने के लिए वह उसे आकर्षक ऑफर देते हैं - जिसमें दो-तीन तरह से पैसा दिए जाने की बात होती है । कुछ पैसा हर माह दिया जाता है, और कुछ पैसा उनके हिसाब में जुड़ते जाने की बात होती है । कुछ समय बाद जब फैकल्टी को समझ में आता है कि जावरे सर तो न सिर्फ उसका शोषण कर रहे हैं, बल्कि मौके-बेमौके उसे अपमानित भी करते रहते हैं - तो वह जावरे एकेडमी छोड़ने की तैयारी करता है । इस तैयारी में उसे हिसाब में जुड़ती गई जो रकम मिलने की उम्मीद होती है, एसबी जावरे उसे नहीं देते हैं और अपने ही मनमाने हिसाब से उसे उसके पैसे देते हैं । पिछले वर्षों में जो लोग भी जावरे एकेडमी छोड़ कर गए हैं, प्रायः उन सभी का एसबी जावरे से पैसों को लेकर भारी झगड़ा हुआ है । झगड़े के बावजूद सभी को मिले उतने ही पैसे, जितने एसबी जावरे ने देना तय किया था । एसबी जावरे से उन्हें यह और सुनने को मिलता रहा कि तुम थे क्या ? जो तुम आज हो, मैंने तुम्हें बनाया है; मेरी बदौलत हो; आदि-इत्यादि । इस तरह की बातें सुनकर जावरे एकेडमी छोड़ कर जाने वाला फैकल्टी सदस्य बेचारा डर जाता है कि जावरे सर जो पैसे दे रहे हैं, कहीं वह भी 'क्या से क्या बना देने' की फीस के रूप में वापस न ले लें; सो जो मिल रहा होता है, उसे लेकर वह निकल लेता है । एसबी जावरे का यह फार्मूला बिलकुल हिट फार्मूला है, जिसके कई शिकारों में नया नाम अब - अभिषेक जावरे का भी जुड़ गया है । अभिषेक जावरे ने अपने नजदीकियों को जो बताया है, उसके अनुसार एसबी जावरे ने उनका करीब डेढ़ से दो करोड़ रुपया मार लिया है । 'तुम क्या थे' जैसी बातें तो अभिषेक जावरे को दूसरों से ज्यादा सुनने को मिली हैं । अभिषेक जावरे ने ही कुछेक लोगों को बताया है कि एसबी जावरे ने उन्हें परिवार व खानदान के लोगों के बीच बेतरह अपमानित और जलील किया है ।
यह सच है कि अभिषेक जावरे जब जावरे प्रोफेशनल एकेडमी में आए थे, तब वह 'वह' नहीं थे, जो आज हैं । एसबी जावरे अगर यह कहना/बताना चाहते हैं कि उस समय अभिषेक जावरे 'कुछ' नहीं थे, तो इसे भी सच मान लेते हैं । किंतु सच यह भी है कि जावरे प्रोफेशनल एकेडमी भी तब वह नहीं थी, जो वह आज है । पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट की कोचिंग के धंधे से जुड़े लोगों का मानना और कहना है कि जावरे प्रोफेशनल एकेडमी ने पिछले छह-सात वर्षों में तरक्की की जो ऊँची छलाँग लगाई है, वह अभिषेक जावरे की अथक मेहनत तथा दूरदृष्टि का नतीजा है । इसी वर्ष सुबोध शाह की एकेडमी के साथ गठबंधन करके जावरे एकेडमी ने अपना जो विस्तार किया है, वह पूरी तरह से अभिषेक जावरे के दिमाग की ही उपज है । एसबी जावरे तो इस गठबंधन के लिए तैयार ही नहीं थे, अभिषेक जावरे ने बहुत मुश्किल से उन्हें इसके लिए राजी किया था । इस गठबंधन को लेकिन जब जोरदार सफलता मिली, एसबी जावरे तब उसका श्रेय लेने के लिए जरूर आगे आ गए । पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट की कोचिंग के धंधे से जुड़े लोगों का कहना है कि जावरे एकेडमी के कारण यदि अभिषेक जावरे ने पुणे में अपनी पहचान बनाई है, तो उनके कारण जावरे एकेडमी ने भी सफलता की सीढ़ियां तेजी से चढ़ी हैं ।
उल्लेखनीय है कि एसबी जावरे तो पिछले सात-आठ वर्षों से चार्टर्ड एकाउंटेंट इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के चुनावों में और उसकी कार्रवाइयों में व्यस्त रहे हैं, जिस कारण उनकी एकेडमी में कोई सक्रियता तो क्या, उपस्थिति तक नहीं रही । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में व्यस्तता के चलते उन्होंने पिछले सात-आठ वर्षों में एकेडमी में शायद ही कोई क्लास ली हो । इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की उनकी सदस्यता के चलते एकेडमी को उलटे नुकसान और उठाना पड़ा है, जब अक्टूबर 2011 में कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट के आरोप के चलते पुणे ब्रांच से मिला एक कॉन्ट्रेक्ट एकेडमी से छिन गया था और एकेडमी को एक बड़ी रकम से हाथ धोना पड़ा था । यानि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में अपनी सक्रियता के चलते एसबी जावरे एकेडमी में कोई भी भूमिका तो नहीं ही निभा पा रहे थे, उलटे एकेडमी को तरह तरह से नुकसान और पहुँचवा रहे थे । इसके बावजूद जावरे एकेडमी सफलता की सीढ़ियाँ चढ़ती जा रही थी और उसकी कमाई भी बढ़ रही थी - तो इसका एक बड़ा श्रेय अभिषेक जावरे के खाते में जुड़ रहा था ।
समझा जा रहा है कि अभिषेक जावरे की बढ़ती पहचान और कामयाबी को देख कर एसबी जावरे को उनसे जलन होने लगी, और उनकी यही जलन जावरे एकेडमी से अभिषेक जावरे के बाहर होने का कारण बनी । दरअसल किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल बना हुआ है कि अभिषेक जावरे की देखरेख में जावरे एकेडमी जब अच्छे से काम कर रही थी और तमाम प्रतिकूल स्थितियों के बावजूद लगातार तरक्की कर रही थी; एसबी जावरे को बिना कुछ किए-धरे ही एकेडमी की कमाई में हिस्सा मिल रहा था, तब फिर ऐसा आखिर क्या हुआ कि चचा एसबी जावरे को अपने भतीजे अभिषेक जावरे को एकेडमी से बाहर निकालना पड़ा । इस बारे में न तो एसबी जावरे ने और न अभिषेक जावरे ने ही अपने अपने नजदीकियों से ज्यादा कुछ कहा/बताया है; किंतु दोनों के नजदीकियों के जरिए जो जो बातें सामने आई हैं, उनसे ही लोगों ने अनुमान लगाया है कि पुणे में चार्टर्ड एकाउंटेंट की कोचिंग के धंधे में अभिषेक जावरे की बढ़ती पहचान और लोकप्रियता एसबी जावरे को हजम नहीं हो पाई है । एसबी जावरे को यह बात तो बिलकुल ही पसंद नहीं आई कि पुणे में जावरे एकेडमी को अभिषेक जावरे की एकेडमी के रूप में देखा/पहचाना जाने लगे । सुना जाता है कि अभिषेक जावरे की सफलता से चिढ़ने वाले अन्य कुछेक लोगों ने एसबी जावरे को भड़काया भी कि कहीं ऐसा न हो कि जावरे एकेडमी पर अभिषेक कब्ज़ा कर लें । ऐसी ही परिस्थितियों और मनःस्थिति में एसबी जावरे ने तरह तरह से अभिषेक जावरे पर दबाव बनाने के लिए उनके काम में हस्तक्षेप करने तथा उनके फैसलों की आलोचना करने के रूप में उनको अपमानित करना शुरू किया । पिछले कुछेक महीनों में घटी घटनाओं से अभिषेक जावरे ने भी भाँप लिया कि चाचा जी उन्हें अब जावरे एकेडमी से निकालने की तैयारी कर रहे हैं ।
एसबी जावरे की बनाई और खासी सफलतापूर्वक आजमाई गई टैक्टिस के चलते अभिषेक जावरे के लिए जावरे एकेडमी से निकलना भी उतना ही मुश्किलों भरा होगा, जितना कि वह पिछले वर्षों में दूसरों के लिए रहा है - अभिषेक जावरे ने यह नहीं सोचा था । अभिषेक जावरे ने अपने पैसों का जो हिसाब बनाया, एसबी जावरे ने उस पर बड़ा बबाल खड़ा किया । नौबत मामले के परिवार व खानदान के सदस्यों के बीच पहुँचने की आ गई । परिवार व खानदान के सदस्यों के बीच एसबी जावरे ने अभिषेक जावरे की बुरी तरह से फजीहत की । अभिषेक जावरे ने भी समझ लिया कि एसबी जावरे ने एकेडमी से निकलने वाले दूसरे लोगों को जिस तरह से पूरा पैसा नहीं दिया है, उसी तर्ज पर वह उन्हें भी अपने ही हिसाब से पैसा देंगे । दूसरे लोगों की तरह अभिषेक जावरे ने भी एसबी जावरे के हिसाब से दिए जा रहे पैसे को लिया और जावरे एकेडमी से बाहर का रास्ता पकड़ा ।

Tuesday, December 13, 2016

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के आनंद साहनी की लायनिज्म के इतिहास में अनोखा रिकॉर्ड बनाने की तैयारी ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव के संदर्भ में बढ़त बनाने का अच्छा मौका दिया है

लुधियाना । आनंद साहनी के बदले बदले तेवरों ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए योगेश सोनी की तैयारी और उम्मीदों को गड़बड़ाने वाला जो काम किया है, उसके कारण मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग का रास्ता आसान होता हुआ नजर आ रहा है । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के चुनाव में अभी हालाँकि काफी दिन हैं, इसलिए अभी से निर्णायक रूप में नतीजे की घोषणा करना तो फिजूल की कसरत होगी - लेकिन जिस तरह से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के दूसरे संभावित उम्मीदवारों के सामने मुश्किलें खड़ी होती गईं हैं और मुश्किलों के कारण वह पीछे हटते गए हैं, उसके कारण विनय गर्ग के लिए रास्ता स्वतः आसान होता जा रहा है । मजे की बात यह है कि शुरू में लेकिन सबसे ज्यादा मुसीबत विनय गर्ग के सिर पर ही देखी जा रही थी । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के किसी भी उम्मीदवार के लिए पहली जरूरत अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के समर्थन की होती है - इस मामले में सबसे ज्यादा पतली हालत विनय गर्ग की थी, क्योंकि उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंदरजीत सिंह की भूमिका संदेह के घेरे में थी । इंदरजीत सिंह की अति-सक्रियता और असावधानीवश कही उनकी बातों के कारण उन्हें विनय गर्ग की उम्मीदवारी के विरोध में देखा/पहचाना गया । इससे उनके विरोधियों को भी उन्हें एक-दूसरे के विरोध में खड़ा 'दिखाने' का मौका मिला, जिससे विनय गर्ग के लिए हालात खासे चुनौतीपूर्ण हो गए थे । किंतु हालात ने तेजी के साथ पलटा खाया है, और इंदरजीत सिंह आज विनय गर्ग के सबसे घनघोर समर्थक के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं । इंदरजीत सिंह के मौजूदा तेवर देख कर मल्टीपल के कुछेक नेताओं को तो यहाँ तक कहते हुए सुना गया है कि विनय गर्ग के लिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी पक्की करने/करवाने के काम में खुद विनय गर्ग से ज्यादा तो उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंदरजीत सिंह लगे हुए हैं ।
मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए फिलवक्त विनय गर्ग का मुकाबला योगेश सोनी से होने की स्थितियाँ नजर आ रही हैं । चेयरमैन पद की दौड़ में अनिल तुलस्यान और विशाल सिन्हा ने भी शामिल होने की कोशिश तो की थी, किंतु अपनी अपनी हरकतों के कारण होने वाली बदनामी तथा अपने अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के विरोध के तेवरों के चलते उनके लिए ज्यादा समय तक दौड़ में बने रह पाना संभव नहीं  हो सका । हालाँकि अनिल तुलस्यान पैसे से होने वाली वोटों की खरीद-फरौख्त के भरोसे तथा विशाल सिन्हा, विनोद खन्ना व जगदीश गुलाटी के सहारे नरेश अग्रवाल को साध लेने के जरिए मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की चुनावी दौड़ में अपनी वापसी करने के दावे तो कर रहे हैं - लेकिन मल्टीपल के नेताओं का मानना/कहना है कि इन दोनों की पोलपट्टी इतनी खुल गई है कि अब उसे लपेटना/समेटना संभव नहीं है । इसी कारण से मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए विनय गर्ग और योगेश सोनी को ही मुकाबले में देखा/पहचाना जा रहा है । इन दोनों में भी यूँ तो विनय गर्ग की तरफ से सक्रियता ज्यादा देखी गई है : उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इंदरजीत सिंह ने उनकी उम्मीदवारी का झंडा जिस तरह से उठाया/लहराया हुआ है, उसके कारण भी विनय गर्ग की उम्मीदवारी को मल्टीपल के नेताओं ने खासी गंभीरता से लिया है । योगेश सोनी की तरफ से अपनी उम्मीदवारी को लेकर कोई बहुत सक्रियता तो नहीं है, किंतु एक वैकल्पिक उम्मीदवार के रूप में अपनी उपस्थिति को बनाए रखने के कारण उन्हें उन लोगों का समर्थन मिलता दिख रहा है, जो किन्हीं किन्हीं कारणों से विनय गर्ग की उम्मीदवारी के खिलाफ हैं ।
किंतु फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में आनंद साहनी की बातों से मिल रहे संकेतों ने योगेश सोनी के सामने मुश्किलें खड़ी करना शुरू कर दिया है । योगेश सोनी हालाँकि अभी तक आनंद साहनी को अपने 'साथ' दिखाए रखने में सफल हैं, और आनंद साहनी ने भी अभी तक ऐसा कोई 'ठोस' काम नहीं किया है - जिससे उन्हें योगेश सोनी की उम्मीदवारी के खिलाफ मान लिया जाए । लेकिन उनके डिस्ट्रिक्ट के ही कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का कहना है कि आनंद साहनी अंततः योगेश सोनी के समर्थन में नहीं रहेंगे; उनका दावा तो यहाँ तक है कि आनंद साहनी इस बात के संकेत जब-तब देते भी रहते हैं, लेकिन योगेश सोनी किसी भी तरह से उन्हें मना लेते हैं और अपने से ज्यादा दूर नहीं होने देते हैं । योगेश सोनी तथा आनंद साहनी के बीच चलने वाली 'कभी पास कभी दूर' वाली स्थिति को पहचानने/देखने वाले  डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स का कहना है कि यह स्थिति ज्यादा देर तक नहीं चल सकेगी और अंततः दोनों की राहें जुदा होंगी ही । इसका कारण यह बताया जा रहा है कि आनंद साहनी अगले लायन वर्ष में खुद मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन चुने जाने की तैयारी में हैं, और इस तैयारी में पहला काम उन्हें यह करना जरूरी लगा है कि वह किसी भी तरह से अपने डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर योगेश सोनी को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की कुर्सी तक पहुँचने से रोकें ।
आनंद साहनी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनकर दरअसल लायनिज्म के इतिहास में एक अनोखा रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि उनके पिता कृष्ण साहनी करीब 24 वर्ष पहले, वर्ष 1992-93 में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन थे । अब यदि आनंद साहनी भी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बन जाते हैं, तो यह पिता-पुत्र के एक ही मल्टीपल में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का दिलचस्प उदाहरण और रिकॉर्ड होगा । डिस्ट्रिक्ट 321 एफ में कृष्ण साहनी के बाद, वर्ष 2001-02 में एनके ग्रोवर मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बने थे; और उसके बाद के पंद्रह वर्षों में डिस्ट्रिक्ट 321 एफ से किसी को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने का मौका नहीं मिला - प्रयास हालाँकि कई लोगों ने किया था । इस नाते से आनंद साहनी को उम्मीद है कि अगले लायन वर्ष में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए वह अपनी जमीन तैयार और मजबूत कर सकेंगे । मजे की बात है कि इसी नाते से योगेश सोनी भी अपनी दाल के गलने की उम्मीद कर रहे हैं । ऐसे में, आनंद साहनी को यह और भी जरूरी लग रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए योगेश सोनी की दावेदारी को मजबूत होने से पहले ही वह कमजोर कर दें । अभी हाल ही में श्रीलंका में संपन्न हुई इसामे फोरम की मीटिंग में जेपी सिंह ने जिस तरह से योगेश सोनी की उम्मीदवारी में अपना समर्थन 'दिखा' कर हवा भरने का काम किया, उसके बाद आनंद साहनी को योगेश सोनी की उम्मीदवारी के खिलाफ सक्रिय 'दिखने' की और जल्दी लगी है । इसीलिए श्रीलंका से लौटने के तुरंत बाद से आनंद साहनी ने ऐसे तेवर दिखाने शुरू किए हैं, जिनसे मल्टीपल के नेताओं को संकेत मिले हैं कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए योगेश सोनी की उम्मीदवारी को उनका समर्थन पक्का न समझा जाए ।
आनंद साहनी के इन तेवरों ने विनय गर्ग की उम्मीदवारी के समर्थकों को बड़ी राहत पहुँचाई है । उन्हें लग रहा है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के मुकाबले में विनय गर्ग के संभावित प्रतिद्धंद्धी जिस तरह से खुद ही ढेर होते जा रहे हैं, उसमें शायद कुदरत का ही कोई अनुकूल संदेश छिपा है । हालाँकि मल्टीपल काउंसिल की चुनावी राजनीति के अनुभवी खिलाड़ियों का मानना और कहना है कि अभी स्थितियाँ विनय गर्ग की उम्मीदवारी के अनुकूल भले ही दिख रही हों, लेकिन इसी स्थिति के चुनाव तक बने रहने का भरोसा करना आत्मघाती हो सकता है । आगे स्थितियाँ क्या मोड़ लेंगी, यह तो आगे पता चलेगा - अभी लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के आनंद साहनी के तेवरों ने डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू के विनय गर्ग को मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के चुनाव के संदर्भ में बढ़त बनाने का अच्छा मौका जरूर दिया है ।

Monday, December 12, 2016

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में चल रहे नोएडा रोटरी ब्लड बैंक की कमाई पर पड़ रहे 'डाके' का रोटरी के बड़े नेता संज्ञान लेकर दुबई रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल को ईमानदारी बरतने का पाठ पढ़ायेंगे क्या ?

दुबई । दुबई में हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में ट्रेनिंग के लिए पहुँचे डिस्ट्रिक्ट 3012 के गवर्नर इलेक्ट सतीश सिंघल को यहाँ क्या अपने नियंत्रण में चलने वाले नोएडा रोटरी ब्लड बैंक को ईमानदारी, पारदर्शिता और प्रभावी तरीके से चलाने की ट्रेनिंग भी मिलेगी ? सतीश सिंघल दरअसल अपने इस ब्लड बैंक की कमाई को लेकर गंभीर आरोपों के घेरे में हैं; अब जब वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने जा रहे हैं - तो कयास लगाया जा रहा है कि उक्त आरोपों में अच्छे/बुरे कारणों से और तेजी आयेगी, जो खुद उनके लिए, डिस्ट्रिक्ट के लिए तथा रोटरी के लिए बदनामी का सबब बनेंगे । नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल पर गंभीर वित्तीय आरोपों से चूँकि रोटरी के कई बड़े नेता भी परिचित हैं; और समय समय पर उक्त आरोपों के कारण रोटरी की होने वाली बदनामी के प्रति वह चिंता भी व्यक्त करते रहे हैं - इसलिए अनुमान लगाया जा रहा है कि दुबई में रोटरी इंस्टीट्यूट में जब रोटरी के सभी बड़े नेता और पदाधिकारी उपस्थित होंगे, तो वह सतीश सिंघल को इस तथ्य से भी अवगत करायेंगे कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होने के कारण उन्हें अपनी नहीं तो कम से कम रोटरी की साख, विश्वसनीयता व प्रतिष्ठा का ख्याल तो करना ही चाहिए । उल्लेखनीय है कि नोएडा रोटरी ब्लड बैंक की आधारशिला 20 मई 2007 को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुदर्शन अग्रवाल ने रखी थी, तथा इसका विधिवत उद्घाटन 26 दिसंबर 2011 को तत्कालीन इंटरनेशनल प्रेसीडेंट कल्याण बनर्जी ने किया था । इस नाते से इसे लेकर लगने वाले आरोप रोटरी तथा इसके बड़े पदाधिकारियों के लिए भी खासे बदनामी भरे हो जाते हैं । समझा जाता है कि आरोपी स्थितियों पर यदि लगाम नहीं लगाई गई तो रोटरी के प्रोजेक्ट्स पर से लोगों का भरोसा उठ जायेगा - और यह रोटरी की पूरी अवधारणा के लिए मुसीबत भरा साबित होगा ।
नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल की भूमिका पर आरोपों को विश्वसनीय बनाने का काम दरअसल दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक के मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की उपलब्धियों ने किया है । उल्लेखनीय है कि विनोद बंसल की देखरेख में चल रहे दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री करके 15 से 20 लाख रुपए का लाभ दर्ज किया जा रहा है, जबकि सतीश सिंघल नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री से कुल करीब 34/35 हजार रुपए का ही लाभ 'बताते' हैं । जिन लोगों को दोनों ब्लड बैंक के हिसाब का पता चला, उनके लिए हैरानी की बात यह हुई कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक ढाई हजार के करीब यूनिट बेच कर जब 15 से 20 लाख रुपए के करीब का लाभ कमा लेता है, तो सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले ब्लड बैंक की कमाई उतने ही यूनिट ब्लड बेचने के बाद 34/35 हजार रुपए के करीब पर ही क्यों ठहर जाती है ? यहाँ नोट करने की बात यह भी है कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक बड़ा है, और इसलिए उसके खर्चे भी ज्यादा हैं; ब्लड के विभिन्न कंपोनेंट्स के दाम बिलकुल बराबर हैं - बल्कि एक कंपोनेंट के दाम सतीश सिंघल के ब्लड बैंक में कुछ ज्यादा ही बसूले जाते हैं । इस लिहाज से सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले नोएडा रोटरी ब्लड बैंक का लाभ तो और भी ज्यादा होना चाहिए । लाभ के इस भीषण अंतर ने ब्लड बैंक के कर्ता-धर्ता के रूप में सतीश सिंघल की भूमिका को न सिर्फ संदेहास्पद बना दिया है, बल्कि गंभीर वित्तीय आरोपों के घेरे में भी ला दिया है ।
सतीश सिंघल का अपना व्यवहार व रवैया भी उनकी भूमिका के प्रति संदेह व आरोपों को विश्वसनीय बनाने का काम करता है । नोएडा रोटरी ब्लड बैंक के ट्रस्टी अक्सर शिकायत करते सुने गए हैं कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक का हिसाब-किताब देने/बताने में हमेशा आनाकानी करते हैं, और पूछे जाने पर नाराजगी दिखाने लगते हैं । सतीश सिंघल अपना पूरा समय ब्लड बैंक में ही बिताते हैं, जिससे लगता है कि उनके पास और कोई कामधंधा नहीं है । सतीश सिंघल के इसी व्यवहार व रवैये से लोगों को यह लगता रहा है कि रोटरी ब्लड बैंक को उन्होंने अपनी कमाई का जरिया बना लिया है । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टी यह कहते सुने जाते रहे हैं कि सतीश सिंघल का कामकाज पूरी तरह चौपट हो गया है, और पिछले वर्षों में उन्हें काफी वित्तीय मुसीबतों का सामना करना पड़ा है । अपनी मुसीबतों से पार पाने के लिए वह पंडितों की शरण में भी गए; और किसी पंडित के सुझाव पर ही उन्होंने अपने नाम की स्पेलिंग में एक अतिरिक्त 'टी' और जोड़ा । सतीश को अंग्रेजी में जितने भी तरीके से लिखा जाता है, उसकी स्पेलिंग में एक ही 'टी' आता है; किंतु सतीश सिंघल खुद जब अपना नाम लिखते हैं, तो उसमें दो 'टी' लगाते हैं । अब सतीश सिंघल अपने नाम की स्पेलिंग में 'टी' एक बार की बजाए दो बार लिखें, या दस बार लिखें - किसी को क्या फर्क पड़ना चाहिए ? फर्क तो कुछ नहीं पड़ता है, दूसरों को लेकिन अजीब जरूर लगता है - और जब अजीब लगता है, तो फिर सवाल उठते हैं; सवाल उठते हैं, और उचित तरीके से जब उनके जबाव नहीं मिलते हैं तो लोग अपने अपने तरीके से उनके जबाव खोज लेते हैं । इस मामले में भी यही हुआ । यह तो नहीं पता कि सतीश सिंघल ने खुद बताया या लोगों ने अपने प्रयासों से जान लिया कि नाम में दो 'टी' लगाने का सुझाव किसी पंडित ने उन्हें दिया था और आश्वस्त किया था कि ऐसा करने से उनका कामधंधा फिर से चमक उठेगा । उनका कामधंधा फिर से पटरी पर लौटा या नहीं, यह तो सतीश सिंघल को ही पता होगा - लोगों को तो सिर्फ यह पता है कि पिछले कुछेक वर्षों से सतीश सिंघल अपना सारा समय ब्लड बैंक को ही देते हैं, और ब्लड बैंक का हिसाब-किताब पूछने पर बुरी तरह भड़क जाते हैं ।
सतीश सिंघल के इस व्यवहार और रवैये से लोगों को यह तो लगता रहा है कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक में ऐसा कुछ करते हैं, जिसे दूसरों से छिपाकर रखना चाहते हैं । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टियों का ही आरोप भी रहा कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक को अपने निजी संस्थान के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और उसकी कमाई हड़प जाते हैं । सतीश सिंघल हालाँकि कई बार घाटे का रोना रोते हुए भी सुने गए हैं । तमाम तरह की बातों व आरोपों के बावजूद नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में सतीश सिंघल का किया-धरा ज्यादा बबाल का कारण नहीं बना । किंतु अब जब दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक के लाभ के तथ्य सामने आ रहे हैं, तो लोगों को हैरानी हो रही है कि सतीश सिंघल नोएडा ब्लड बैंक की आड़ में कर क्या रहे हैं ? कुछेक लोग हालाँकि सतीश सिंघल को संदेह का लाभ देना चाहते हैं - उनका कहना है कि सतीश सिंघल अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होंगे, इसलिए ब्लड बैंक की आड़ में मोटी कमाई करने के आरोपों के चलते उनके साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट की भी बदनामी होगी; इसलिए इस मामले में उनका पक्ष भी सुना जाना चाहिए । ऐसे लोगों का कहना है कि यह ठीक है कि अभी तक सतीश सिंघल हिसाब-किताब माँगने पर भड़क उठते रहे हैं, लेकिन अब जब दिल्ली के रोटरी ब्लड बैंक के लाभ के आँकड़े आने पर मामला गंभीर हो गया है - तो उम्मीद की जानी चाहिए कि सतीश सिंघल भी इस गंभीरता को समझेंगे, तथा भड़कने की बजाए नोएडा ब्लड बैंक के हिसाब-किताब को पारदर्शी बनायेंगे । सतीश सिंघल चूँकि अपनी तरफ से ऐसा कुछ करते हुए दिख नहीं रहे हैं - इसलिए जरूरी लग रहा है कि रोटरी के बड़े नेता और पदाधिकारी इस मामले में खुद से संज्ञान लें । इसी जरूरत को देखते हुए उम्मीद की जा रही है कि दुबई में हो रहे रोटरी जोन इंस्टीट्यूट में रोटरी के बड़े नेता और पदाधिकारी सतीश सिंघल को ईमानदारी बरतने का पाठ पढ़ायेंगे ।
लोगों का कहना है कि नोएडा रोटरी ब्लड बैंक डिस्ट्रिक्ट 3012 के साथ-साथ रोटरी की भी मुख्य पहचान का एक संस्थान है : इसकी कमाई पर यदि सचमुच डाका पड़ रहा है, और या सचमुच उचित तरीके से इसमें कमाई का हिसाब-किताब नहीं रखा जा रहा है - तो यह सभी के लिए चिंता की बात होना चाहिए; इसके कर्ता-धर्ता का पद सँभाले बैठे सतीश सिंघल के लिए तो यह और भी ज्यादा चिंता की बात होना चाहिए । उनकी तमाम मेहनत के बाद भी नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में कमाई का वास्तविक आँकड़ा यदि सचमुच वही है, जो वह बता रहे हैं - तो उन्हें खुद भी देखना चाहिए कि उनके जितना यूनिट ब्लड बेच कर दिल्ली वाला ब्लड बैंक उनके मुकाबले पचास गुना लाभ आखिर कैसे कमा पा रहा है ?