नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली
साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों तथा घपलेबाज नेताओं - खासकर उनके सरगना अजीत
जालान के लिए नए वर्ष की शुरुआत डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम से
मिली चोट को सहलाते सहलाते हुई है । उन्होंने हालाँकि चोट का कारण बने
मामले को दफ़्न करवाने के लिए डॉक्टर सुब्रमणियम की घेराबंदी पूरी की हुई
थी, और डॉक्टर सुब्रमणियम भी उनके पूरे दबाव में थे - लेकिन मामले को लेकर
सक्रिय रहे पूर्व क्लब अध्यक्ष अनूप मित्तल ने जो लंगर डाला हुआ था, उससे न
रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के घपलेबाज नेता बच पाए और न उनके सुरक्षा
कवच बने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम बच सके । डॉक्टर
सुब्रमणियम ने अपनी तरफ से मामले को रफा-दफा करने का प्रयास तो बहुत किया;
काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के लोगों ने भी मामले के प्रति अपनी 'अरुचि' दिखा/जता
कर डॉक्टर सुब्रमणियम को मनमानी करने की छूट दे रखी थी, किंतु अनूप
मित्तल ने अपने लंगर का घेरा ऐसा कसा हुआ था - कि डॉक्टर सुब्रमणियम को
अंततः फैसला करने के लिए मजबूर होना ही पड़ा, और रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ
वेस्ट के पदाधिकारियों तथा घपलेबाजों पर नकेल कसने की कार्रवाई उन्हें करना ही पड़ी ।
'अनूप मित्तल बनाम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट' के नाम से मशहूर हो चुके इस मामले की पूरी कहानी बहुत ही दिलचस्प है, जो एक साथ दो महत्त्वपूर्ण बातें बताती है : यह कहानी एक तरफ तो इस हकीकत से हमारा सामना करवाती है कि रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों का बड़ा जलवा है और उन्हें बड़े व प्रमुख लोगों का समर्थन सहज रूप से मिल जाता है; लेकिन साथ ही दूसरी तरफ इस कहानी का एक संदेश यह भी है कि बेईमानों व घपलेबाजों की नकेल थामने का कोई एक भी यदि फैसला कर ले, तो फिर उसके बड़े बड़े समर्थक भी उसे/उन्हें नहीं बचा सकते हैं । इस मामले में मुद्दे हालाँकि बहुत आसान और न्यायोचित थे । अनूप मित्तल की माँग थी कि क्लब के वर्ष 2014-15 के अकाउंट दिए जाएँ और क्लब के कुछेक लोगों ने घपलेबाजी के लिए जो चैरिटेबिल ट्रस्ट बनाया है, उसके कामकाज की जाँच हो और उसमें यदि घपलेबाजी के संकेत मिलें - तो उसे बंद किया जाए । रोटरी में ऊपर से नीचे तक बेईमानी व घपलेबाजी की जड़ें इतनी गहरी जमीं हुई हैं कि अनूप मित्तल की इन माँगों पर तुरंत से जबाव देना या कार्रवाई शुरू करना तो दूर की बात है - इन माँगों को हवा उड़ा देने का काम किया गया । क्लब के घपलेबाजों ने क्लब में माहौल ऐसा बना दिया कि अनूप मित्तल को क्लब के अन्य कुछेक सदस्यों के साथ क्लब छोड़ना पड़ा । क्लब के घपलेबाजों के हौंसले इतने ऊँचे थे कि अनूप मित्तल की लिखित शिकायत पर पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने उनसे जबाव लेने की कार्रवाई की, तो उन्होंने सुधीर मंगला तक को हड़काने व उनके प्रति असम्मान प्रकट करने वाली बातें की/कहीं । दरअसल सुधीर मंगला का गवर्नर-काल पूरा हो रहा था, और क्लब के घपलेबाज नेताओं के सरगना अजीत जालान को पता था कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम और उनसे भी अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी तो उनकी जेब में ही हैं - लिहाजा उन्हें सुधीर मंगला की परवाह करने की जरूरत नहीं है ।
रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों के जलवे का जीता-जागता उदाहरण है कि जो अजीत जालान क्लब में वर्ष 2014-15 में वित्तीय घपलेबाजी के लिए और अकाउंट न देने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थे, डॉक्टर सुब्रमणियम ने उन्हें ही अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार बनाया । वही अजीत जालान, रवि चौधरी की टीम में भी प्रमुख सदस्य के तौर पर लिए गए हैं । अनूप मित्तल की शिकायत पर सुधीर मंगला द्धारा तैयार की गई सिफारिश-रिपोर्ट पर मौजूदा रोटरी वर्ष में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में जब यह मामला आया तब डॉक्टर सुब्रमणियम तथा रवि चौधरी के साथ-साथ कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी मामले को दबाने तथा रफा-दफा करने में दिलचस्पी ली । मामला चूँकि रिकॉर्ड पर आ चुका था और अनूप मित्तल लगातार चिट्ठी-पत्री कर रहे थे, इसलिए मामले को रफा-दफा करना मुश्किल हुआ । इस मामले का दिलचस्प पहलू यह रहा कि घपलेबाजों के समर्थन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स खुल कर थे - जबकि अनूप मित्तल पूरी तरह अकेले थे । उनके साथ सिर्फ सच था । सच के सहारे अनूप मित्तल ने मामले को इस तरह से आगे बढ़ाया कि किसी भी तुर्रमखाँ का समर्थन घपलेबाजों के काम नहीं आया ।
हद की बात यह तक हुई कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में हुए फैसले के चलते बनी दो सदस्यीय कमेटी के सामने रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों ने अनूप मित्तल की दोनों मांगों को मान लेने की बात स्वीकार भी कर ली - लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम ने प्रयास किया कि उनकी स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड पर न आ पाए, और क्लब के पदाधिकारी व घपलेबाज फजीहत से बच सकें । अनूप मित्तल पर दबाव बनाया गया कि क्लब के पदाधिकारियों ने उनकी माँग को मान लिया है, और अब उन्हें मामले को खत्म कर देना चाहिए तथा मामले में आगे कार्रवाई के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए; और रोटरी में अपने कॅरियर पर ध्यान देना चाहिए । जी हाँ, रोटरी में भी कॅरियर होता है - जिसके लिए सच से मुँह मोड़ना होता है और घपलेबाजों से संबंध बनाना होता है । अनूप मित्तल लेकिन इस तरह की बातों में नहीं आए और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुब्रमणियम मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचाएँ तथा अंतिम फैसले को रिकॉर्ड पर दर्ज करें । अनूप मित्तल ने घोषणा की कि डॉक्टर सुब्रमणियम ने यदि ऐसा नहीं किया, तो वह रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे ।
अनूप मित्तल की इस घोषणा को डॉक्टर सुब्रमणियम ने गंभीरता से लिया हो या न लिया हो - लेकिन पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने बहुत गंभीरता से लिया; उन्होंने ही डॉक्टर सुब्रमणियम को हिदायत दी कि क्लब के पदाधिकारी जब माँग मानने के लिए राजी हो चुके हैं - तो मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचा कर खत्म करो । सुशील गुप्ता की हिदायत के बाद डॉक्टर सुब्रमणियम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों की स्वीकारोक्ति को रिकॉर्ड पर दर्ज करने के लिए मजबूर हुए - और इस तरह क्लब के पदाधिकारियों व घपलेबाजों के खिलाफ तमाम बाधाओं के बाद अनूप मित्तल को एक बड़ी जीत मिली । रोटरी के इतिहास की यह एक बड़ी घटना है । रोटरी में घपलेबाजों के खिलाफ कार्रवाई करवा पाना खासा मुश्किल है, इसलिए ही जैसी सफलता अनूप मित्तल को मिली है - वैसी सफलता इससे पहले शायद ही किसी को मिली है ।
'अनूप मित्तल बनाम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट' के नाम से मशहूर हो चुके इस मामले की पूरी कहानी बहुत ही दिलचस्प है, जो एक साथ दो महत्त्वपूर्ण बातें बताती है : यह कहानी एक तरफ तो इस हकीकत से हमारा सामना करवाती है कि रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों का बड़ा जलवा है और उन्हें बड़े व प्रमुख लोगों का समर्थन सहज रूप से मिल जाता है; लेकिन साथ ही दूसरी तरफ इस कहानी का एक संदेश यह भी है कि बेईमानों व घपलेबाजों की नकेल थामने का कोई एक भी यदि फैसला कर ले, तो फिर उसके बड़े बड़े समर्थक भी उसे/उन्हें नहीं बचा सकते हैं । इस मामले में मुद्दे हालाँकि बहुत आसान और न्यायोचित थे । अनूप मित्तल की माँग थी कि क्लब के वर्ष 2014-15 के अकाउंट दिए जाएँ और क्लब के कुछेक लोगों ने घपलेबाजी के लिए जो चैरिटेबिल ट्रस्ट बनाया है, उसके कामकाज की जाँच हो और उसमें यदि घपलेबाजी के संकेत मिलें - तो उसे बंद किया जाए । रोटरी में ऊपर से नीचे तक बेईमानी व घपलेबाजी की जड़ें इतनी गहरी जमीं हुई हैं कि अनूप मित्तल की इन माँगों पर तुरंत से जबाव देना या कार्रवाई शुरू करना तो दूर की बात है - इन माँगों को हवा उड़ा देने का काम किया गया । क्लब के घपलेबाजों ने क्लब में माहौल ऐसा बना दिया कि अनूप मित्तल को क्लब के अन्य कुछेक सदस्यों के साथ क्लब छोड़ना पड़ा । क्लब के घपलेबाजों के हौंसले इतने ऊँचे थे कि अनूप मित्तल की लिखित शिकायत पर पिछले रोटरी वर्ष में तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुधीर मंगला ने उनसे जबाव लेने की कार्रवाई की, तो उन्होंने सुधीर मंगला तक को हड़काने व उनके प्रति असम्मान प्रकट करने वाली बातें की/कहीं । दरअसल सुधीर मंगला का गवर्नर-काल पूरा हो रहा था, और क्लब के घपलेबाज नेताओं के सरगना अजीत जालान को पता था कि अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम और उनसे भी अगले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी तो उनकी जेब में ही हैं - लिहाजा उन्हें सुधीर मंगला की परवाह करने की जरूरत नहीं है ।
रोटरी में बेईमानों व घपलेबाजों के जलवे का जीता-जागता उदाहरण है कि जो अजीत जालान क्लब में वर्ष 2014-15 में वित्तीय घपलेबाजी के लिए और अकाउंट न देने के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार थे, डॉक्टर सुब्रमणियम ने उन्हें ही अपने गवर्नर-काल के लिए डिस्ट्रिक्ट ट्रेजरार बनाया । वही अजीत जालान, रवि चौधरी की टीम में भी प्रमुख सदस्य के तौर पर लिए गए हैं । अनूप मित्तल की शिकायत पर सुधीर मंगला द्धारा तैयार की गई सिफारिश-रिपोर्ट पर मौजूदा रोटरी वर्ष में काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में जब यह मामला आया तब डॉक्टर सुब्रमणियम तथा रवि चौधरी के साथ-साथ कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी मामले को दबाने तथा रफा-दफा करने में दिलचस्पी ली । मामला चूँकि रिकॉर्ड पर आ चुका था और अनूप मित्तल लगातार चिट्ठी-पत्री कर रहे थे, इसलिए मामले को रफा-दफा करना मुश्किल हुआ । इस मामले का दिलचस्प पहलू यह रहा कि घपलेबाजों के समर्थन में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट रवि चौधरी और कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स खुल कर थे - जबकि अनूप मित्तल पूरी तरह अकेले थे । उनके साथ सिर्फ सच था । सच के सहारे अनूप मित्तल ने मामले को इस तरह से आगे बढ़ाया कि किसी भी तुर्रमखाँ का समर्थन घपलेबाजों के काम नहीं आया ।
हद की बात यह तक हुई कि काउंसिल ऑफ गवर्नर्स में हुए फैसले के चलते बनी दो सदस्यीय कमेटी के सामने रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों ने अनूप मित्तल की दोनों मांगों को मान लेने की बात स्वीकार भी कर ली - लेकिन फिर भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर डॉक्टर सुब्रमणियम ने प्रयास किया कि उनकी स्वीकारोक्ति रिकॉर्ड पर न आ पाए, और क्लब के पदाधिकारी व घपलेबाज फजीहत से बच सकें । अनूप मित्तल पर दबाव बनाया गया कि क्लब के पदाधिकारियों ने उनकी माँग को मान लिया है, और अब उन्हें मामले को खत्म कर देना चाहिए तथा मामले में आगे कार्रवाई के लिए प्रयास नहीं करना चाहिए; और रोटरी में अपने कॅरियर पर ध्यान देना चाहिए । जी हाँ, रोटरी में भी कॅरियर होता है - जिसके लिए सच से मुँह मोड़ना होता है और घपलेबाजों से संबंध बनाना होता है । अनूप मित्तल लेकिन इस तरह की बातों में नहीं आए और उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुब्रमणियम मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचाएँ तथा अंतिम फैसले को रिकॉर्ड पर दर्ज करें । अनूप मित्तल ने घोषणा की कि डॉक्टर सुब्रमणियम ने यदि ऐसा नहीं किया, तो वह रोटरी इंटरनेशनल में शिकायत करेंगे ।
अनूप मित्तल की इस घोषणा को डॉक्टर सुब्रमणियम ने गंभीरता से लिया हो या न लिया हो - लेकिन पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता ने बहुत गंभीरता से लिया; उन्होंने ही डॉक्टर सुब्रमणियम को हिदायत दी कि क्लब के पदाधिकारी जब माँग मानने के लिए राजी हो चुके हैं - तो मामले को तार्किक परिणति तक पहुँचा कर खत्म करो । सुशील गुप्ता की हिदायत के बाद डॉक्टर सुब्रमणियम रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के पदाधिकारियों की स्वीकारोक्ति को रिकॉर्ड पर दर्ज करने के लिए मजबूर हुए - और इस तरह क्लब के पदाधिकारियों व घपलेबाजों के खिलाफ तमाम बाधाओं के बाद अनूप मित्तल को एक बड़ी जीत मिली । रोटरी के इतिहास की यह एक बड़ी घटना है । रोटरी में घपलेबाजों के खिलाफ कार्रवाई करवा पाना खासा मुश्किल है, इसलिए ही जैसी सफलता अनूप मित्तल को मिली है - वैसी सफलता इससे पहले शायद ही किसी को मिली है ।