Saturday, March 24, 2012

एच कृष्णामूर्ति की उम्मीदवारी की वापसी ने पंजाब नेशनल बैंक के शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स चुनाव को संदेहास्पद बनाया

चंडीगढ़/नई दिल्ली | पंजाब नेशनल बैंक में शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के चुनाव की प्रक्रिया को लेकर शिकायत की गई है | एक उम्मीदवार एच कृष्णामूर्ति द्धारा चुनाव से चार दिन पहले नाम वापस लेने को आधार बनाते हुए चंडीगढ़ की संस्था 'एसोसियेशन ऑफ कंपनी मैनेजमेंट' द्धारा मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स तथा मिनिस्ट्री ऑफ फाईनेंस को लिखी शिकायत में कहा गया है कि चुनाव में बैंक प्रबंधन की दिलचस्पी से नाराज होकर ही एच कृष्णामूर्ति ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का फैसला किया था | उल्लेखनीय है कि पंजाब नेशनल बैंक में शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के तीन पदों के लिए ग्यारह उम्मीदवारों के नामांकन सही घोषित किए गए थे | बैंक की नोमीनेशन कमेटी ने करीब एक माह पहले लखनऊ से गोपालकृष्ण लाठ, कच्छ से पंकज ठक्कर, चंडीगढ़ से डीके सिंगला, बंगलौर से एच कृष्णामूर्ति, जयपुर से सुभाष चंद्र बापना, गाजियाबाद से विनय मित्तल और सुनील गुप्ता, नई दिल्ली से महेश प्रसाद मेहरोत्रा तथा पंकज अग्रवाल, कानपुर से श्रीकांत मिश्र तथा मुंबई से माधवन नायर गोपीनाथ के नामांकनों को 'फिट एंड प्रोपर' घोषित किया था | प्रत्येक उम्मीदवार अपनी-अपनी क्षमता व अपने-अपने तरीके से वोट जुटाने तथा अपनी जीत को सुनिश्चित करने की कोशिश में लगा था - शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के चुनाव में पर्दे के पीछे जैसा जो खेल होता है वह खेल शांतिपूर्वक चल रहा था कि चुनाव से चार दिन पहले एच कृष्णामूर्ति ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेकर शांतिपूर्वक चल रहे खेल में हलचल मचा दी | मजे की बात यह है कि एच कृष्णामूर्ति ने अपनी उम्मीदवारी वापस लेने का कोई कारण नहीं बताया है लेकिन उनसे परिचित होने का दावा करने वाले लोगों का कहना रहा कि शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के चुनाव में पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन को खुली दिलचस्पी लेते देख एच कृष्णामूर्ति को चुनाव में खुला पक्षपात होता हुआ नज़र आया और अपना विरोध दर्ज कराने के उद्देश्य से ही उन्होंने अपनी उम्मीदवारी को चुनाव से चार दिन पहले वापस ले लिया |
एच कृष्णामूर्ति द्धारा अपनी उम्मीदवारी वापस लेने से पंजाब नेशनल बैंक के शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के चुनाव संदेह के खुले घेरे में आ गए - क्योंकि जो भी उम्मीदवार थे उनमें एच कृष्णामूर्ति की एक अलग और खास हैसियत व पहचान है | टीचिंग, रिसर्च व कंसल्टिंग में तीस से अधिक वर्षों का अनुभव रखने वाले एच कृष्णामूर्ति ने मद्रास यूनीवर्सिटी से बीई (आनर्स) तथा इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से एमई किया है | वह इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के सुपरकम्प्यूटर एजूकेशन एंड रिसर्च सेंटर में प्रिंसीपल रिसर्च साइंटिस्ट के पद पर हैं | कम्यूनिकेशन, नेटवर्किंग और बैंकिंग टेकनोलॉजी उनकी दिलचस्पी और सक्रियता के विषय व क्षेत्र हैं | पिछले पंद्रह वर्षों से वह कई सरकारी संस्थाओं में सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं | टेक्नीकल एडवाइजरी ग्रुप तथा टेक्नोलॉजी से संबद्ध स्टैंडिंग कमेटी में सदस्य के रूप में वह आरबीआई, सेबी और इरडा जैसी संस्थाओं से जुड़े हैं | आई डी आर बी टी की गवर्निंग काउंसिल में वह वर्ष 2002-05 में सदस्य रह चुके हैं तथा अब यहाँ स्टैंडिंग कमेटी के सदस्य हैं | आई डी आर बी टी के भविष्य के लिए रोडमेप तैयार करने के उद्देश्य से हाल ही में गठित डॉक्टर सी रंगराजन कमेटी के वह सदस्य बनाये गए हैं | पेट्रोलियम, कोल व स्टील क्षेत्र की कई कंपनियों को वह टेक्नीकल सुझाव व सलाह देते रहे हैं तथा सलाहकार के रूप में वह बैंकिंग व वित्तीय क्षेत्र की कई संस्थाओं में भी सक्रिय रहे हैं |
एक अलग और खास हैसियत व पहचान रखने वाले एच कृष्णामूर्ति के नाम वापस लेने के साथ ही पंजाब नेशनल बैंक में हुए शेयरहोल्डर डायरेक्टर्स के चुनाव संदेह के घेरे में आ गए | एच कृष्णामूर्ति के नाम वापस लेने को ही आधार बनाते हुए चुनावी प्रक्रिया की और उसमें बैंक प्रबंधन की भूमिका की जाँच की मांग उठने लगी है | चंडीगढ़ की संस्था 'एसोसियेशन ऑफ कंपनी मैनेजमेंट' द्धारा मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स तथा मिनिस्ट्री ऑफ फाईनेंस को लिखे अपने पत्र में शेयरहोल्डर्स डायरेक्टर्स के चुनाव में पंजाब नेशनल बैंक प्रबंधन की भूमिका की जाँच की मांग की गई है |

Tuesday, March 13, 2012

संभावित उम्मीदवारों से पैसे एँठने की कोशिश में रमेश अग्रवाल ने अपने ही बनाये नियम की धज्जियाँ उड़ाईं

नई दिल्ली | रमेश अग्रवाल बड़ी-बड़ी बातें करते-करते अब छोटी-छोटी हरकतों को करने पर उतर आये हैं | रमेश अग्रवाल ने 'दिखाया' था और दावा किया था कि उनके गवर्नर-काल में जो रोटेरियन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी कर रहे होंगे, उन्हें वह अपनी टीम का सदस्य नहीं बनायेंगे और डिस्ट्रिक्ट के आधिकारिक कार्यक्रमों में उनकी उपस्थिति को प्रोत्साहित नहीं करेंगे | लेकिन अभी हाल ही में संपन्न हुए डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमिनार(डीटीटीएस) में ऐसे रोटेरियंस उपस्थित व सक्रिय दिखे जो रमेश अग्रवाल के गवर्नर-काल में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी करते देखे/सुने जा रहे हैं | और यह तब हुआ जब रमेश अग्रवाल ने इन रोटेरियंस को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवार के रूप में चिन्हित करते हुए इन्हें अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम का सदस्य बनाने से इंकार कर दिया है | हर किसी के लिए हैरानी की बात रही कि रमेश अग्रवाल ने जब इन्हें अपनी डिस्ट्रिक्ट टीम में ही शामिल नहीं किया तब फिर इन्हें डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमिनार में क्या करने के लिए बुलाया ? रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का ही कहना है कि रमेश अग्रवाल इन लोगों से पैसे एँठने की फ़िराक में हैं और इसीलिए डिस्ट्रिक्ट टीम का सदस्य न होने के बावजूद इन्हें डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमिनार में बुलाया गया और इन्हें तवज्जो दी गई |
रमेश अग्रवाल के नजदीकियों का कहना है कि रमेश अग्रवाल पेट्स (प्रेसीडेंट इलेक्ट ट्रेनिंग सेमिनार) के खर्चों को पूरा करने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों की जेबें ढीली कराने की कोशिश में हैं और इसलिए खुद अपने द्धारा बनाई गई व्यवस्था के अनुसार जिन लोगों को उन्हें अपने कार्यक्रमों में शामिल नहीं करना चाहिए था, उन्हें चोर दरवाजे से शामिल कर लिया | रमेश अग्रवाल के इन्हीं नजदीकियों का कहना है कि रमेश अग्रवाल पेट्स में संभावित उम्मीदवारों से स्पॉन्सरशिप लेने की जुगाड़ बैठा रहे हैं, इसीलिए डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में उन्हें बुलाया गया | पेट्स की तैयारी से जुड़े लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को पेट्स में भी आमंत्रित करेंगे और उसके बदले में उनसे पैसे बसूलेंगे | लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल को यदि लगता है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों के बिना उनका 'काम नहीं चलेगा' और उन्हें संभावित उम्मीदवारों से पैसे बसूलते रहना है और इसके लिए उन्हें अपने कार्यक्रमों में शामिल करते रहना पड़ेगा, तो उन्हें संभावित उम्मीदवारों को अपनी टीम में रख लेना चाहिए | लोगों का कहना है कि रमेश अग्रवाल जो कर रहे हैं - उससे उनकी बेवकूफी, उनका दोहरा चरित्र, उनका पाखंड और उनका नौटंकीपना ही जाहिर हो रहा है | रमेश अग्रवाल ने अपनी इस तरह की हरकतों से अपना मजाक बनवा लिया है | पहले प्रेसीडेंट इलेक्ट मीटिंग में प्रेसीडेंट इलेक्ट को ही शामिल करने से इंकार करके उन्होंने अपने को बदनाम करवाया था, और अब डिस्ट्रिक्ट टीम में शामिल करने से इंकार किए गए लोगों को डिस्ट्रिक्ट टीम ट्रेनिंग सेमीनार में बुला कर उन्होंने अपनी फजीहत करा ली है |
रमेश अग्रवाल की इस हरकत को लेकर कुछेक लोगों ने डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर मुकेश अरनेजा से फरियाद की थी कि वह रमेश अग्रवाल को समझायें कि उनकी इस तरह की हरकतों से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा घटती है और डिस्ट्रिक्ट का नाम बदनाम होता है | मुकेश अरनेजा ने लेकिन यह कह कर मामले से पल्ला झाड़ लिया कि रमेश अग्रवाल ने उन्हें डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर बनाया ही इस शर्त पर है कि वह उनके किसी फैसले में टांग नहीं अड़ायेंगे | मुकेश अरनेजा ने साफ कर दिया कि यदि वह रमेश अग्रवाल से कहेंगे कि इस तरह का शेखचिल्लीपना न करे तो वह मुझे ही डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटा देगा - और मैं दोबारा से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से हटाया जाना नहीं चाहता हूँ | मुकेश अरनेजा ने कह दिया है कि रमेश अग्रवाल जो कर रहे हैं उससे उनकी ही बदनामी हो रही है, मेरा क्या जा रहा है - और यह भी कि मुझे तो सिर्फ एक ही चिंता करनी है कि मैं कहीं दोबारा से डिस्ट्रिक्ट ट्रेनर के पद से न हटा दिया जाऊँ | मुकेश अरनेजा ने भी हालाँकि स्वीकार किया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के संभावित उम्मीदवारों को रमेश अग्रवाल ने यदि अपनी टीम में न रखने का फैसला किया है तो उन्हें अपने कार्यक्रमों में भी संभावित उम्मीदवारों को नहीं बुलाना या शामिल करना चाहिए; और यदि संभावित उम्मीदवारों के बिना उनका काम नहीं चलना है तो संभावित उम्मीदवारों को उन्हें अपनी टीम में शामिल कर लेना चाहिए | हर किसी का यही मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल जो भी फैसला करना चाहें, करें - लेकिन वह अपने फैसले पर अमल करते हुए भी दिखें | अपने ही फैसलों की धज्जियाँ उड़ाते हुए उन्हें नहीं दिखना चाहिए - क्योंकि उससे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का और उनका खुद का मजाक बनता है |

Sunday, March 11, 2012

अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने डिस्ट्रिक्ट में मिली चुनावी हार से लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा है

मुंबई | श्याम मालपानी और अरूणा ओसवाल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट से एंडोर्समेंट लेने वाले राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ अभियान में शामिल होकर लायन सदस्यों की निगाह में अपने आप को और नीचे गिरा लिया है | उल्लेखनीय है कि लायन राजनीति में यह शायद पहला मौका है जब लायनिज्म में अपनी पहचान रहने वाले लोग अपने ही डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्स किए गए उम्मीदवार के खिलाफ खुल कर काम कर रहे हैं | पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के नाते श्याम मालपानी की और लायनिज्म में अच्छी-खासी दान-दक्षिणा देने के कारण अरूणा ओसवाल की अपनी पहचान है और आम लायन सदस्य उनसे टुच्ची बातों से ऊपर उठे होने की उम्मीद करते हैं | लेकिन इन्होंने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की बजाये - इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपने ही डिस्ट्रिक्ट द्धारा एंडोर्स किए गए उम्मीदवार राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ प्रचार करने के जरिये अपने आपको 'छोटा' साबित कर दिया है | उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के चलते इन दोनों ने पहले तो अपनी राजनीतिक फजीहत करवाई और अब यह दोनों एक लायन सदस्य के रूप में भी अपनी-अपनी किरकिरी करवाने में लगे हैं | इनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों तक का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने के मामले में जो हुआ, उससे भी इन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है और लगातार इस तरह की गतिविधियाँ चलाये हुए हैं कि लोगों के बीच समर्थन खोते जा रहे हैं | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि अपने डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट लेने के लिए अरूणा ओसवाल का राजू मनवानी से जो पहला चुनाव हुआ था, उसमें वह दो वोट से हारी थीं, लेकिन तीन-तिकड़म से दूसरे चुनाव की जो नौबत पैदा की गई उसमें वह पचास से भी ज्यादा वोटों से हारीं | इसका कारण यह रहा कि दूसरे चुनाव में अरूणा ओसवाल को ऐसे कई प्रमुख लोगों का समर्थन नहीं मिला, जो पहले चुनाव में उनके साथ थे | अरूणा ओसवाल और उनके तथाकथित शुभचिंतकों को सोचना चाहिए कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के जो लोग पहले चुनाव में उनके साथ थे, वह दूसरे चुनाव में उनका साथ क्यों छोड़ गए ?
अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थकों ने लेकिन यह सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी | लगातार दूसरे चुनाव में मिली पराजय से वह इस कदर बौखला गए कि जिन राजू मनवानी से उन्हें लगातार दूसरी बार मात मिली, उन राजू मनवानी को उन्होंने अपना निजी दुश्मन मान लिया और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह खुलेआम राजू मनवानी को हरवाने की कोशिशों में लग गए हैं | डिस्ट्रिक्ट में उनके समर्थक लोगों का ही मानना और कहना है कि अपनी जिस 'सोच' के कारण अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने अपने डिस्ट्रिक्ट में अपनी फजीहत करवाई और अपने समर्थकों को खोया, उस 'सोच' से वह अभी भी मुक्त नहीं हो पाए हैं | उनके समर्थक रहे लोगों का मानना और कहना है कि अरूणा ओसवाल तथा श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थक राजू मनवानी से मिली पहली पराजय को यदि एक सच्चे लायन की तरह स्वीकार कर लेते तो उन्हें दूसरी बार मिली पराजय से हुई फजीहत को नहीं झेलना पड़ता | चुनाव को लेकर एक 'व्यावहारिक आदर्श' की बात यह स्वीकार की जाती है कि चुनाव जीतने के लिए चाहे जो हथकंडा आजमा लिया जाये, चुनावी नतीजे को आदर और बड़प्पन के साथ स्वीकार कर लिया जाना चाहिए | अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले के प्रति लेकिन न कोई आदर दिखाया और न कोई बड़प्पन | यह ठीक है कि उन्होंने जो कुछ किया वह उनका कानूनी अधिकार था और उनके इस अधिकार का सम्मान किया ही जाना चाहिए | अरूणा ओसवाल ने अपनी पराजय के फैसले को चुनौती दी, तो यह उनका कानूनी अधिकार था | उन्हें अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करने का पूरा हक़ था | यहाँ समझने की बात सिर्फ इतनी सी है कि जो लोग 'सेवा' और 'फैलोशिप' की बात करते हैं, उन्हें लोगों के फैसले को कानूनी दांव-पेंचों में नहीं उलझाना चाहिए | लोग इस तरह की हरकतों को पसंद नहीं करते हैं | कानूनी दांव-पेंचों का सहारा लेकर अरूणा ओसवाल डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले को रद्द करवा देने में तो सफल हो गईं, लेकिन लोगों का विश्वास और समर्थन उन्होंने खो दिया | इसी का नतीजा रहा कि दूसरी बार हुए चुनाव में उनकी हार का अंतर पच्चीस गुना तक बढ़ गया |
अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थकों ने पहली बार जो गलती की, वह उनके लिए ट्रैजडी साबित हुई - लेकिन उस गलती से सबक न लेते हुए वह दूसरी बार भी वही गलती कर रहे हैं, तो यह उनके लिए कॉमेडी साबित हो रही है | अपने ही डिस्ट्रिक्ट के होने के बावजूद यह दोनों जिस तरह राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं, उसे देख कर लोग इन पर हंस रहे हैं | लोगों का कहना है कि यह दोनों जब डिस्ट्रिक्ट में राजू मनवानी का कुछ नहीं कर पाए तो अब मल्टीपल में क्या कर लेंगे ? राजू मनवानी की खिलाफत करने के जरिये इन्होंने मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि जो अपने डिस्ट्रिक्ट के नहीं हो सकते हैं, वह दूसरों के क्या होंगे ? लोगों का कहना है कि इन्हें यदि राजू मनवानी पसंद नहीं हैं तो इन्हें राजू मनवानी की उम्मीदवारी का विरोध करने का पूरा-पूरा हक़ है, लेकिन इन्हें साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि राजू मनवानी उस डिस्ट्रिक्ट के उम्मीदवार हैं जिस डिस्ट्रिक्ट में यह भी हैं और जिस डिस्ट्रिक्ट ने इन्हें पद और पहचान दी है - इसलिए इन्हें डिस्ट्रिक्ट के फैसले का सम्मान और पालन करना चाहिए | लोगों का कहना है कि अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी को यदि अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा राजू मनवानी के पक्ष में लिया/दिया गया फैसला पसंद और मंजूर नहीं है तो इन्हें डिस्ट्रिक्ट को छोड़ देना चाहिए - बजाये इसके कि यह अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले के विरोध में खड़े दिखाई दें |
किसी भी चुनावी राजनीति में - और इस तरह लायन राजनीति में भी उम्मीदवारों को अपने 'नजदीकियों' के धोखे और विरोध का सामना करना ही पड़ता है | इसलिए यदि राजू मनवानी को अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी के विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है | राजू मनवानी को अपने डिस्ट्रिक्ट के और भी कुछेक लोगों के छिपे/खुले विरोध का सामना करना पड़ रहा है | इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी मुकाबले में उनके प्रतिद्धंद्धी ओम अग्रवाल को भी अपने डिस्ट्रिक्ट के कई एक लोगों के विरोध को झेलना पड़ रहा है | लेकिन अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी का मामला अलग है | लायनिज्म में यह दोनों बड़े नाम हैं और इनकी खास पहचान है | इसलिए यह जिस तरह अपने ही डिस्ट्रिक्ट के उम्मीदवार राजू मनवानी का विरोध कर रहे हैं, उसकी इनसे उम्मीद नहीं की जाती है | मजे की बात यह है कि इनके विरोध को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है : राजू मनवानी के समर्थक और ओम अग्रवाल के समर्थक इस बात पर एकराय हैं कि अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जब अपने ही डिस्ट्रिक्ट में राजू मनवानी का कुछ नहीं बिगाड़ सके और अपनी ही फजीहत करा बैठे तो इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव को कैसे क्या प्रभावित कर सकेंगे ? इस तरह अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी का रवैया उनकी खुद की किरकिरी ही कर/करवा रहा है तथा लायन सदस्यों की निगाह में उन्हें छोटा बना रहा है |

Wednesday, March 7, 2012

इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अचानक से प्रस्तुत हुई ओम अग्रवाल की उम्मीदवारी के लिए चुनौतियाँ कम नहीं हैं

अहमदाबाद/मुंबई | ओम अग्रवाल को आगे करके राजू मनवानी को घेरने में लगे नेताओं की सक्रियता और हर हथकंडा आजमाने की तैयारी के चलते इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में खासी गर्मी पैदा हो गई है | राजू मनवानी से हमदर्दी रखने वाले लोगों का मानना और कहना है कि मल्टीपल के बड़े नेताओं का एक तबका राजू मनवानी को आगे बढ़ता हुआ नहीं देखना चाहता है और इसके लिए उस तबके ने पहले अरूणा ओसवाल को मोहरा बनाया; लेकिन जब अरूणा ओसवाल को सामने करके भी उन्हें मात खानी पड़ी, तो अब वह ओम अग्रवाल को ले आये हैं | ओम अग्रवाल की उम्मीदवारी को सबसे गंभीर आरोप यही झेलना पड़ रहा है कि वह उम्मीदवार बने नहीं हैं - बल्कि उम्मीदवार उन्हें 'बनाया' गया है | उल्लेखनीय है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए ओम अग्रवाल का नाम कभी भी चर्चा में नहीं था | अरूणा ओसवाल के लिए जब अपने डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट लेना संभव नहीं हुआ और उन्हें मल्टीपल के तमाम तुर्रमखां नेताओं के समर्थन के बावजूद राजू मनवानी के हाथों हार का सामना करना पड़ा - तो अपनी अपनी उम्मीदवारी को बढ़ा/दिखा रहे लोगों ने उन तुर्रमखां नेताओं का समर्थन जुटाने के लिए प्रयास किया | समर्थन मिला लेकिन उन ओम अग्रवाल को - जिनकी उम्मीदवारी की कहीं कोई चर्चा ही नहीं थी | ओम अग्रवाल और उनके समर्थक हालाँकि सफाई देते हुए बता रहे हैं कि ओम अग्रवाल तो इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए तबसे अपनी उम्मीदवारी जता रहे थे, जब वह मल्टीपल काउंसिल चेयरपरसन थे | लेकिन पहले उन्हें नरेंद्र भंडारी का वास्ता देकर और फिर अरूणा ओसवाल का नाम लेकर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत न करने के लिए मना लिया गया था - जिस कारण उनकी उम्मीदवारी की चर्चा लोगों के बीच नहीं हो सकी थी |
ओम अग्रवाल और उनके समर्थक जिस आरोप को धोने के लिए यह सफाई दे रहे हैं, वह आरोप इस सफाई से लेकिन और मजबूत ही हो रहा है | वह जो सफाई दे रहे हैं, उसका अर्थ भी यही निकल रहा है कि वह जब-जब उम्मीदवार होना चाहते थे, तब-तब बड़े नेताओं ने चूँकि उन्हें समर्थन नहीं दिया - उनकी बजाये पहले नरेंद्र भंडारी को और फिर अरूणा ओसवाल को दिया - इसलिए ओम अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी को प्रस्तुत नहीं किया; लेकिन अब जब नेताओं ने उन्हें उम्मीदवार बनने के लिए कहा तो वह उम्मीदवार बन गए हैं | मतलब साफ है कि ओम अग्रवाल उम्मीदवार बने नहीं हैं, बल्कि बनाये गए हैं | ओम अग्रवाल की एक व्यक्ति और एक लायन के रूप में बहुत तारीफ है - उनके काम को, उनके व्यवहार को, उनकी सामर्थ्य को, उनकी सोच को बहुत-बहुत ऊँचा बताया जा रहा है | ओम अग्रवाल के बारे में जो बताया जा रहा है, हो सकता है कि वह सच भी हो - लेकिन जो लोग उन्हें नहीं जानते हैं उनके सामने सवाल यही है कि ओम अग्रवाल जब इतने योग्य और प्रतिभाशाली हैं तो आज उनका गुड़गान कर रहे बड़े नेताओं ने उन्हें उस समय समर्थन क्यों नहीं दिया, जब वह उम्मीदवार बनना चाहते थे; उनकी जगह बड़े नेताओं ने पहले नरेंद्र भंडारी और फिर अरूणा ओसवाल को क्यों उम्मीदवार बनाया ? बड़े नेताओं ने क्या नरेंद्र भंडारी और अरूणा ओसवाल को उनसे ज्यादा योग्य और प्रतिभाशाली माना, और इसीलिए उनकी बजाये उन्हें उम्मीदवार बनाया ? लोगों के लिए यह समझना एक चुनौती बना हुआ है कि नरेंद्र भंडारी ने इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में किस योग्यता व प्रतिभा का परिचय दिया है ? हर किसी का मानना और कहना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में नरेंद्र भंडारी ने जो कुछ भी किया है, उसे तो कोई भी ऐरा-गैरा कर लेगा | अरूणा ओसवाल की लायन सदस्यों के बीच जो भी ख्याति है, वह सिर्फ और सिर्फ पैसे खर्च करने से जुड़ी है | तो क्या जो बड़े नेता पहले अरूणा ओसवाल को इंटरनेशनल डायरेक्टर बनवाने का 'ठेका' लिए हुए थे, और जिन्होंने अब ओम अग्रवाल को इंटरनेशनल चुनवाने के बीड़ा उठा लिया है - उनके लिए पैसा ही एकमात्र पैमाना है |
ऐसे में, ओम अग्रवाल के सामने चुनौती यह है कि जो लोग उन्हें अभी नहीं जानते हैं और उनकी प्रतिभा व योग्यता से परिचित नहीं हैं उन्हें वह यह बतायें/ समझायें कि जो बड़े नेता आज उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर चुनवाने का बीड़ा उठाये हुए हैं, उन्होंने पहले उनके मुकाबले नरेंद्र भंडारी तथा अरूणा ओसवाल को क्यों वरीयता दी ? किसी भी चुनाव में किसी भी उम्मीदवार को दो 'दांत' चाहिए होते हैं : एक दिखाने के लिए और एक खाने के लिए | एक 'प्रतिभा' और 'योग्यता' उसे 'दिखाने' के लिए चाहिए होती है तथा एक 'प्रतिभा' और 'योग्यता' उसे 'इस्तेमाल' करना होती है | ओम अग्रवाल के सामने समस्या यह है कि जिस प्रतिभा व योग्यता को वह 'दिखाने' की कोशिश करते हैं उस पर सवाल खड़ा हो जाता है कि इस प्रतिभा और योग्यता के बावजूद जब वह अपने नजदीकियों व समर्थकों के बीच ही सेकेंड और थर्ड च्वाइस हैं, तो जो लोग उन्हें नहीं जानते हैं उनके बीच वह एकदम से फर्स्ट च्वाइस कैसे बनें ? अब रही उस प्रतिभा व योग्यता की बात, जिसे चुनाव जीतने के लिए 'इस्तेमाल' करना होता है - तो ओम अग्रवाल को लोगों की इस शंका का जबाव देना है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद का उम्मीदवार होने में ही उन्हें पाँच वर्ष क्यों लग गए ? और अब भी वह इसलिए उम्मीदवार हो सके हैं क्योंकि जिन लोगों से उन्हें अपनी उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी मिली है वह लोग जिन अरूणा ओसवाल को उम्मीदवार बनाना चाहते थे, वह अरूणा ओसवाल अपने डिस्ट्रिक्ट में ही एंडोर्समेंट नहीं ले सकीं और उन्हें इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी दौड़ से बाहर होना पड़ा | यानि ओम अग्रवाल मजबूरी में बनाये गए उम्मीदवार हैं |
ओम अग्रवाल उम्मीदवार भले ही मजबूरी में बने हों - लेकिन उन्होंने और उनका समर्थन करने वाले नेताओं ने पूरे दमखम के साथ इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लिया है | उन्हें पता है कि उनका चुनावी मुकाबला जिन राजू मनवानी के साथ है, उन राजू मनवानी की उम्मीदवारी की चर्चा लोगों के बीच काफी समय से है और अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने को लेकर वह लोगों के बीच ठोस काम कर चुके हैं | राजू मनवानी की उम्मीदवारी की चूँकि पहले से सक्रियता रही है इसलिए अधिकतर जगहों पर लायन सदस्य उनके पक्ष में पोजीशन या तो ले चुके हैं और या हालात को समझने की कोशिश कर रहे हैं | ओम अग्रवाल की समस्या यह है कि अपनी उम्मीदवारी के बारे में देर से फैसला करने के कारण उनका दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों के साथ कोई परिचय ही नहीं है | यही कारण है कि उन्हें अपनी उम्मीदवारी के समर्थन में काम करने के लिए लायन ही नहीं मिल रहे हैं और उन्हें रिश्तेदारों की मदद लेनी पड़ रही है | जैसे कि अहमदाबाद में अपने डिस्ट्रिक्ट की कांफ्रेंस में एंडोर्समेंट लेने के अगले ही दिन ग्वालियर क्षेत्र में समर्थन जुटाने पहुंचे ओम अग्रवाल को अपने चुनाव की व्यवस्था की बागडोर किसी सक्रिय लायन सदस्य या नेता की बजाये अपने रिश्तेदार को सौंपनी पड़ी | इससे हालाँकि ओम अग्रवाल यह संदेश दे सके हैं कि चुनाव में वह हर किसी की मदद लेंगे | उन्होंने कई जगह कहा भी है कि चुनावी समर्थन जुटाने के लिए जो कुछ भी - जी हाँ जो कुछ भी करना होगा, उसे वह करेंगे | इससे एक बात साफ है कि 24 अप्रैल को होने वाला इंटरनेशनल डायरेक्टर पड़ का चुनाव खासा घमासानपूर्ण होगा |