Sunday, March 11, 2012

अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने डिस्ट्रिक्ट में मिली चुनावी हार से लगता है कि कोई सबक नहीं सीखा है

मुंबई | श्याम मालपानी और अरूणा ओसवाल ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में उनके अपने ही डिस्ट्रिक्ट से एंडोर्समेंट लेने वाले राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ अभियान में शामिल होकर लायन सदस्यों की निगाह में अपने आप को और नीचे गिरा लिया है | उल्लेखनीय है कि लायन राजनीति में यह शायद पहला मौका है जब लायनिज्म में अपनी पहचान रहने वाले लोग अपने ही डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्स किए गए उम्मीदवार के खिलाफ खुल कर काम कर रहे हैं | पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर होने के नाते श्याम मालपानी की और लायनिज्म में अच्छी-खासी दान-दक्षिणा देने के कारण अरूणा ओसवाल की अपनी पहचान है और आम लायन सदस्य उनसे टुच्ची बातों से ऊपर उठे होने की उम्मीद करते हैं | लेकिन इन्होंने लोगों की उम्मीदों पर खरा उतरने की बजाये - इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में अपने ही डिस्ट्रिक्ट द्धारा एंडोर्स किए गए उम्मीदवार राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ प्रचार करने के जरिये अपने आपको 'छोटा' साबित कर दिया है | उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ-साथ दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने भी कहना शुरू कर दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के चलते इन दोनों ने पहले तो अपनी राजनीतिक फजीहत करवाई और अब यह दोनों एक लायन सदस्य के रूप में भी अपनी-अपनी किरकिरी करवाने में लगे हैं | इनके साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों तक का मानना और कहना है कि डिस्ट्रिक्ट में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए एंडोर्समेंट लेने के मामले में जो हुआ, उससे भी इन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है और लगातार इस तरह की गतिविधियाँ चलाये हुए हैं कि लोगों के बीच समर्थन खोते जा रहे हैं | यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि अपने डिस्ट्रिक्ट में एंडोर्समेंट लेने के लिए अरूणा ओसवाल का राजू मनवानी से जो पहला चुनाव हुआ था, उसमें वह दो वोट से हारी थीं, लेकिन तीन-तिकड़म से दूसरे चुनाव की जो नौबत पैदा की गई उसमें वह पचास से भी ज्यादा वोटों से हारीं | इसका कारण यह रहा कि दूसरे चुनाव में अरूणा ओसवाल को ऐसे कई प्रमुख लोगों का समर्थन नहीं मिला, जो पहले चुनाव में उनके साथ थे | अरूणा ओसवाल और उनके तथाकथित शुभचिंतकों को सोचना चाहिए कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट के जो लोग पहले चुनाव में उनके साथ थे, वह दूसरे चुनाव में उनका साथ क्यों छोड़ गए ?
अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थकों ने लेकिन यह सोचने की कोई जरूरत नहीं समझी | लगातार दूसरे चुनाव में मिली पराजय से वह इस कदर बौखला गए कि जिन राजू मनवानी से उन्हें लगातार दूसरी बार मात मिली, उन राजू मनवानी को उन्होंने अपना निजी दुश्मन मान लिया और इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव में वह खुलेआम राजू मनवानी को हरवाने की कोशिशों में लग गए हैं | डिस्ट्रिक्ट में उनके समर्थक लोगों का ही मानना और कहना है कि अपनी जिस 'सोच' के कारण अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने अपने डिस्ट्रिक्ट में अपनी फजीहत करवाई और अपने समर्थकों को खोया, उस 'सोच' से वह अभी भी मुक्त नहीं हो पाए हैं | उनके समर्थक रहे लोगों का मानना और कहना है कि अरूणा ओसवाल तथा श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थक राजू मनवानी से मिली पहली पराजय को यदि एक सच्चे लायन की तरह स्वीकार कर लेते तो उन्हें दूसरी बार मिली पराजय से हुई फजीहत को नहीं झेलना पड़ता | चुनाव को लेकर एक 'व्यावहारिक आदर्श' की बात यह स्वीकार की जाती है कि चुनाव जीतने के लिए चाहे जो हथकंडा आजमा लिया जाये, चुनावी नतीजे को आदर और बड़प्पन के साथ स्वीकार कर लिया जाना चाहिए | अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले के प्रति लेकिन न कोई आदर दिखाया और न कोई बड़प्पन | यह ठीक है कि उन्होंने जो कुछ किया वह उनका कानूनी अधिकार था और उनके इस अधिकार का सम्मान किया ही जाना चाहिए | अरूणा ओसवाल ने अपनी पराजय के फैसले को चुनौती दी, तो यह उनका कानूनी अधिकार था | उन्हें अपने इस अधिकार का इस्तेमाल करने का पूरा हक़ था | यहाँ समझने की बात सिर्फ इतनी सी है कि जो लोग 'सेवा' और 'फैलोशिप' की बात करते हैं, उन्हें लोगों के फैसले को कानूनी दांव-पेंचों में नहीं उलझाना चाहिए | लोग इस तरह की हरकतों को पसंद नहीं करते हैं | कानूनी दांव-पेंचों का सहारा लेकर अरूणा ओसवाल डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले को रद्द करवा देने में तो सफल हो गईं, लेकिन लोगों का विश्वास और समर्थन उन्होंने खो दिया | इसी का नतीजा रहा कि दूसरी बार हुए चुनाव में उनकी हार का अंतर पच्चीस गुना तक बढ़ गया |
अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जैसे उनके समर्थकों ने पहली बार जो गलती की, वह उनके लिए ट्रैजडी साबित हुई - लेकिन उस गलती से सबक न लेते हुए वह दूसरी बार भी वही गलती कर रहे हैं, तो यह उनके लिए कॉमेडी साबित हो रही है | अपने ही डिस्ट्रिक्ट के होने के बावजूद यह दोनों जिस तरह राजू मनवानी की उम्मीदवारी के खिलाफ प्रचार कर रहे हैं, उसे देख कर लोग इन पर हंस रहे हैं | लोगों का कहना है कि यह दोनों जब डिस्ट्रिक्ट में राजू मनवानी का कुछ नहीं कर पाए तो अब मल्टीपल में क्या कर लेंगे ? राजू मनवानी की खिलाफत करने के जरिये इन्होंने मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को यह सोचने के लिए मजबूर कर दिया है कि जो अपने डिस्ट्रिक्ट के नहीं हो सकते हैं, वह दूसरों के क्या होंगे ? लोगों का कहना है कि इन्हें यदि राजू मनवानी पसंद नहीं हैं तो इन्हें राजू मनवानी की उम्मीदवारी का विरोध करने का पूरा-पूरा हक़ है, लेकिन इन्हें साथ-साथ यह भी देखना चाहिए कि राजू मनवानी उस डिस्ट्रिक्ट के उम्मीदवार हैं जिस डिस्ट्रिक्ट में यह भी हैं और जिस डिस्ट्रिक्ट ने इन्हें पद और पहचान दी है - इसलिए इन्हें डिस्ट्रिक्ट के फैसले का सम्मान और पालन करना चाहिए | लोगों का कहना है कि अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी को यदि अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा राजू मनवानी के पक्ष में लिया/दिया गया फैसला पसंद और मंजूर नहीं है तो इन्हें डिस्ट्रिक्ट को छोड़ देना चाहिए - बजाये इसके कि यह अपने ही डिस्ट्रिक्ट के लोगों द्धारा लिए/दिए गए फैसले के विरोध में खड़े दिखाई दें |
किसी भी चुनावी राजनीति में - और इस तरह लायन राजनीति में भी उम्मीदवारों को अपने 'नजदीकियों' के धोखे और विरोध का सामना करना ही पड़ता है | इसलिए यदि राजू मनवानी को अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी के विरोध का सामना करना पड़ रहा है तो इसमें हैरानी की कोई बात नहीं है | राजू मनवानी को अपने डिस्ट्रिक्ट के और भी कुछेक लोगों के छिपे/खुले विरोध का सामना करना पड़ रहा है | इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी मुकाबले में उनके प्रतिद्धंद्धी ओम अग्रवाल को भी अपने डिस्ट्रिक्ट के कई एक लोगों के विरोध को झेलना पड़ रहा है | लेकिन अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी का मामला अलग है | लायनिज्म में यह दोनों बड़े नाम हैं और इनकी खास पहचान है | इसलिए यह जिस तरह अपने ही डिस्ट्रिक्ट के उम्मीदवार राजू मनवानी का विरोध कर रहे हैं, उसकी इनसे उम्मीद नहीं की जाती है | मजे की बात यह है कि इनके विरोध को कोई भी गंभीरता से नहीं ले रहा है : राजू मनवानी के समर्थक और ओम अग्रवाल के समर्थक इस बात पर एकराय हैं कि अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी जब अपने ही डिस्ट्रिक्ट में राजू मनवानी का कुछ नहीं बिगाड़ सके और अपनी ही फजीहत करा बैठे तो इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव को कैसे क्या प्रभावित कर सकेंगे ? इस तरह अरूणा ओसवाल और श्याम मालपानी का रवैया उनकी खुद की किरकिरी ही कर/करवा रहा है तथा लायन सदस्यों की निगाह में उन्हें छोटा बना रहा है |