Tuesday, November 3, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में जितेंद्र ढींगरा के नेतृत्व वाले मौजूदा सत्ताधारियों ने अपने विरोधियों को चुप करने तथा बदनाम करने के लिए राजा साबू के नेतृत्व वाले पिछले सत्ताधारियों जैसे हथकंडे अपना कर विडंबना, ट्रैजिडी और कॉमेडी का नजारा पेश किया हुआ है

कुरुक्षेत्र । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी लड़ाई में सत्ता खेमे की पक्षपातपूर्ण मनमानियों और बेईमानियों को लेकर होने वाली शिकायतें रोटरी इंटरनेशनल के बड़े और प्रमुख पदाधिकारियों तक जा पहुँची हैं, और इस तरफ डिस्ट्रिक्ट की चुनावी लड़ाई एक बड़ा मुद्दा बन गया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार पंकज डडवाल के क्लब - रोटरी क्लब शिमला मिडटाऊन के प्रेसीडेंट अनिल सूद ने पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज को पत्र लिख कर पक्षपातपूर्ण मनमानियों और बेईमानियों पर लगाम लगाने का अनुरोध किया था; लेकिन अपने अनुरोध पर उन्हें जब कोई कार्रवाई होते हुए नहीं दिखी तो उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल के दिल्ली स्थित साऊथ एशिया ऑफिस के पदाधिकारियों से लेकर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर्स भरत पांड्या व  कमल सांघवी को अपनी शिकायतों से अवगत कराते हुए पत्र लिखे/भेजे और उनसे उचित कार्रवाई का अनुरोध किया । इस घटना ने डिस्ट्रिक्ट में इतिहास को ट्रैजिक रूप में दोहराने का काम किया है । अभी कोई चार/पाँच वर्ष पहले ही, आज के सत्ताधारी तब के सत्ताधारियों की मनमानियों व बेईमानियों की शिकायत किया करते थे; राजा साबू के नेतृत्व वाले तब के सत्ताधारी बड़े अहंकार के साथ दावा किया करते थे कि रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों तक उनकी चूँकि सीधी पहुँच है, इसलिए उनके खिलाफ होने वाली शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी; विडंबना और ट्रैजिडी यह है कि आज के सत्ताधारी भी वही 'भाषा' बोल रहे हैं और दावा कर रहे हैं कि पंकज डडवाल के समर्थक रोटरी इंटरनेशनल के किसी भी पदाधिकारी से चाहें जो शिकायत कर लें, उनकी शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं होगी ।
इसी दावे के भरोसे, निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा ने घोषणा की है कि अभी वह अपने बेटे की शादी के आयोजन में व्यस्त थे, लेकिन अब वह जल्दी ही 'बिग गेट टुगेदर' आयोजित करेंगे । उनकी इस घोषणा पर उनके उम्मीदवार अरुण मोंगिया खुशी जता रहे हैं । पिछले दिनों पहले सहारनपुर में और फिर अंबाला में अरुण मोंगिया की उम्मीदवारी के समर्थन में वोट जुटाने के उद्देश्य से मीटिंग/पार्टी की गई, जिसमें जितेंद्र ढींगरा के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय मदान और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी नवीन गुलाटी भी शामिल हुए । किसी ने इसे लेकर आपत्ति की, तो उसे जबाव दिया गया कि जितेंद्र ढींगरा अपने बेटे की शादी में भीड़भाड़ से बचने के लिए लोगों को बुला नहीं सके थे, इसलिए वह अब लोगों को पार्टी दे रहे हैं । इस पर लोगों के बीच सुनने को मिला कि अपने बेटे की शादी की पार्टी लोगों को अपने घर बुला कर दी जाती है, जितेंद्र ढींगरा ने अलग रिवाज शुरू किया है, वह लोगों के घर जाकर पार्टी दे रहे हैं । जाहिर है कि उनके तर्क को डिस्ट्रिक्ट में लोग हजम नहीं कर पा रहे हैं, और इसे लोगों की आँखों में धूल झोंकने की कोशिश के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है ।
डिस्ट्रिक्ट में इतिहास अपने आप को सिर्फ ट्रैजिक रूप में ही नहीं दोहरा रहा है, बल्कि कुछेक मामलों में वह कॉमेडी भी बन गया है । लोगों को याद है कि डेविड हिल्टन के गवर्नर-वर्ष में टीके रूबी के पक्ष में आयोजित की गई मीटिंग में शामिल होने के 'अपराध' में डिस्ट्रिक्ट टीम के 12 प्रमुख सदस्यों को टीम से निलंबित कर दिया गया था, उसी तरह की 'मानसिकता' को प्रकट करते हुए पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के एक समर्थक - रोटरी क्लब सोलन सिटी के पूर्व प्रेसीडेंट वीरेंद्र अग्रवाल को वाट्स-ऐप ग्रुपों से निकाल दिया गया है । वीरेंद्र अग्रवाल का 'अपराध' ठीक वही है, जो डेविड हिल्टन के गवर्नर-वर्ष में टीके रूबी और उन 12 सदस्यों का था - सत्ताधारियों की पक्षपातपूर्ण मनमानियों व बेईमानियों का विरोध करना । डेविड हिल्टन की डिस्ट्रिक्ट टीम से 12 सदस्यों को निकालने का कोई कारण नहीं बताया गया था, वीरेंद्र अग्रवाल को वाट्स-ऐप ग्रुपों से निकालने का भी कोई कारण नहीं बताया गया है । एक ग्रुप में एक सदस्य ने जितेंद्र ढींगरा से कारण पूछा तो जितेंद्र ढींगरा ने उन्हें जबाव दिया कि वह फोन पर उन्हें कारण बताते हैं । फोन पर क्यों ? वीरेंद्र अग्रवाल को आपने ग्रुपों से निकाला, यह बात सभी को पता है - तो कारण भी सभी को पता होना चाहिए ! कारण आप किसी के कान में क्यों बतायेंगे ? इस रवैये पर हर किसी को हैरानी है, और आरोप सुने जा रहे हैं कि कारण सार्वजनिक रूप से बताएंगे, तो हो सकता है कि वह झूठे साबित हों !
वीरेंद्र अग्रवाल, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय मदान के एक 'झूठे' बताये जा रहे आरोप के पहले भी शिकार हो चुके हैं । अजय मदान ने कई लोगों को अलग अलग बताया है कि वीरेंद्र अग्रवाल ने शेखर मेहता वाले कार्यक्रम में उनकी पत्नी के साथ बदतमीजी की थी । कुछेक लोगों के जरिये यह बात जब वीरेंद्र अग्रवाल के सामने पहुँची, तो उन्होंने पूरी घटना बताते हुए हैरानी प्रकट की कि एक सामान्य सी बात को बदतमीजी घोषित कर अजय मदान उन्हें बदनाम करने की कोशिश क्यों कर रहे हैं ? वीरेंद्र अग्रवाल के अनुसार, हुआ यह था कि कुरुक्षेत्र में आयोजित शेखर मेहता के सम्मान समारोह का आयोजन देर रात तक चलता रहा था । रात 12 बजे के करीब, कई लोगों को जब भूख सताने लगी और उन्होंने घर लौटने के बारे में भी सोचना शुरू किया, तो वह खाने के स्टॉल की तरफ बढ़े और खाना खाने की तैयारी करने लगे । तभी अजय मदान की पत्नी ने वहाँ आकर कहा कि अभी कार्यक्रम चल रहा है, इसलिए अभी खाना शुरू नहीं किया जाना चाहिए । इस पर कुछेक अन्य लोगों के साथ-साथ वीरेंद्र अग्रवाल ने भी कहा कि रात के 12 बज रहे हैं, लोगों को भूख लग रही है और वह घर लौटना चाहते हैं; जिन लोगों की कार्यक्रम में रुचि हो, वह रुकें - और जिन लोगों की रुचि न हो, उन्हें खाना खाकर घर जाने दिया जाए । वीरेंद्र अग्रवाल के इन तर्कों से दूसरे लोगों को भी बल मिला, और तब अजय मदान की पत्नी की खाना रोकने की कोशिश सफल नहीं हो सकी । अजय मदान इस घटना को अपनी पत्नी के साथ बदतमीजी करना कह/बता रहे हैं । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि तीन-चार वर्ष पहले तब के सत्ताधारी अपने विरोधियों को इसी तरह की बहानेबाजियों से बदनाम किया करते थे; विडंबना, ट्रैजिडी और कॉमेडी यह है कि तब के विरोधियों ने आज सत्ताधारी बन कर अपने विरोधियों से निपटने के लिए वैसे ही हथकंडे अपना लिए हैं ।

Monday, November 2, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन लंबे समय तक डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के सीन से गायब रहने के बाद, अब जब पुनः वापस लौटे हैं, तो विनय भाटिया और विनोद बंसल के लिए वास्तव में मुसीबत बन कर ही लौटे हैं

नई दिल्ली । निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुरेश भसीन की पुनः शुरू हुई सक्रियता ने रोटरी फाउंडेशन के लिए दिए गए दान के बदले में प्वाइंट न मिलने के मामले को एक बार फिर गर्म कर दिया है, और इस स्थिति ने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन/चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनय भाटिया की उम्मीदवारी के सामने गंभीर संकट खड़ा कर दिया है । ऐसे में, मजे की स्थिति यह बनी है कि सुरेश भसीन तो विनय भाटिया की उम्मीदवारी को मदद करने में जुटना चाहते हैं, लेकिन विनय भाटिया और उनकी उम्मीदवारी की कमान संभालने वाले विनोद बंसल उनकी मदद से बचने की कोशिश कर रहे हैं । दरअसल विनय भाटिया और विनोद बंसल जान/समझ रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में सुरेश भसीन की जैसी बदनामी है, उसके कारण उनके साथ जुड़ने से लाभ की बजाये नुकसान ज्यादा होगा - इसलिए सुरेश भसीन से दूर रहने तथा उनको दूर रखने में ही भलाई है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच, सुरेश भसीन की बदनामी हालाँकि तभी शुरू हो गई थी, जब वह गवर्नर थे - और इसका खामियाजा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में महेश त्रिखा को तथा सीओएल प्रतिनिधि के चुनाव में अमित जैन को उठाना/भुगतना पड़ा था । सुरेश भसीन ने इन दोनों का खुलकर समर्थन किया था । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी का मानना/समझना रहा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सुरेश भसीन की बदनामी के चलते उनका समर्थन महेश त्रिखा और अमित जैन को भारी पड़ा 
सुरेश भसीन के लिए फजीहत की बात यह रही कि गवर्नर पद से हटने के बाद उनकी बदनामी में और इजाफा ही हुआ है । दरअसल, उनके गवर्नर-वर्ष के आखिरी दो-तीन महीनों में रोटरी फाउंडेशन के लिए जिन लोगों ने पैसे दिए, उनमें से कईयों की शिकायत रही कि उनके द्वारा दी गई रकम के बदले में मिलने वाले प्वाइंट उन्हें नहीं मिले हैं । शुरू में तो सुरेश भसीन ने शिकायतकर्ताओं को यह कहते/बताते हुए टाला कि रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम जुटाने/जुटवाने का काम विनोद बंसल और अशोक कंतूर ने किया था और जैसे ही उन्हें इन दोनों से संबंधित डिटेल्स मिलेंगे - वह प्वाइंट्स दिलवाने का काम करवायेंगे । खास बात यह रही कि सुरेश भसीन की इस बात पर विनोद बंसल और अशोक कंतूर ने पहले तो कोई सफाई या जबाव नहीं दिया, लेकिन जब शिकायतकर्ताओं का शोर बढ़ता गया और बदनामीभरे आरोपों ने सुरेश भसीन के साथ-साथ उन्हें भी घेरे में लेना शुरू कर दिया, तब मामले से पीछा छुड़ाने की कोशिश करते हुए उन्होंने कहा/बताया कि उन्होंने तो रोटरी फाउंडेशन के लिए रकम जमा करवाने के काम में सुरेश भसीन की मदद भर की थी, और हिसाब-किताब तो सुरेश भसीन के पास ही है । इस मामले में ज्यादातर शिकायतकर्ता ऐसे रोटेरियंस रहे, जिन्होंने रोटरी फाउंडेशन के लिए नकद रकम दी थी; इसलिए उन्हें डर हुआ कि उनके द्वारा दी गई रकम रोटरी फाउंडेशन में पहुँची भी कि नहीं । इस मामले में शोर-शराबा अभी चल ही रहा था कि सुरेश भसीन डिस्ट्रिक्ट और रोटरी के सीन से गायब ही हो गए । इससे पहले तो बबाल बढ़ा, लेकिन फिर मामला शांत-सा हो गया ।
सुरेश भसीन लेकिन अब जब यह बताते हुए फिर से सक्रिय हुए हैं कि कुछ व्यक्तिगत व पारिवारिक कारणों से वह पिछले कुछेक सप्ताहों से लोगों के संपर्क में नहीं रह पा रहे थे; तो फिर शांत सा पड़ा उक्त मामला भी गर्म होता लग रहा है । सुरेश भसीन ने यह कहते हुए उक्त गर्मी को राजनीतिक ट्विस्ट भी दे दिया है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में प्रतिनिधित्व के लिए वह विनोद बंसल के उम्मीदवार विनय भाटिया को चुनाव जितवाने के लिए काम करेंगे । सुरेश भसीन की इस घोषणा ने विनोद बंसल और विनय भाटिया को खुश करने की बजाये डरा और दिया है । उन्हें डर हुआ है कि सुरेश भसीन की बदनामी के कारण, उनका समर्थन वास्तव में नुकसान पहुँचाने का काम ही करेगा - इसलिए वह सुरेश भसीन को अपने से दूर रखने का ही प्रयास करना चाहते हैं । उनकी समस्या लेकिन यह भी है कि वह सुरेश भसीन को दूर रखने का, और उनसे पीछा छुड़ाने का काम करें, तो कैसे करें ? विनोद बंसल को सुरेश भसीन से, रोटरी फाउंडेशन के लिए पैसे देने वाले लोगों को अभी प्वाइंट दिलवाने का काम करवाना है - इसलिए उनके सामने सुरेश भसीन को साथ रखने की मजबूरी भी है । इस मजबूरी को निभाते हुए उन्हें लेकिन सुरेश भसीन की बदनामी के चलते होने वाले राजनीतिक नुकसान से बचने की चुनौती से भी जूझना है । इस तरह, लंबे समय से डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के सीन से गायब रहे सुरेश भसीन अब जब पुनः वापस लौटे हैं, तो विनय भाटिया और विनोद बंसल के लिए वास्तव में मुसीबत बन कर ही लौटे हैं । 

Sunday, November 1, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में आनन-फानन में श्रीनगर में सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस करने की तैयारी के पीछे चेयरमैन शशांक अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल की चुनावी तैयारी तथा इंस्टीट्यूट के पैसे पर श्रीनगर घूमने के जुगाड़ को देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन शशांक अग्रवाल की 'सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस' के बहाने से श्रीनगर घूमने की तैयारी पर सेंट्रल काउंसिल सदस्य संजीव सिंघल ग्रहण लगाते दिख रहे हैं । संजीव सिंघल ने औपचारिक रूप से हालाँकि कोरोना से बचाव को लेकर लोगों की भागीदारी वाले आयोजनों के संदर्भ में केंद्रीय गृह मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ होम अफेयर्स - एमएचए) द्वारा जारी गाइडलाइंस का हवाला देकर 6 नबंवर को आयोजित की जाने वाली सब रीजनल कॉन्फ्रेंस पर सवाल उठाया है, लेकिन अनौपचारिक रूप से अपने संपर्क में आने वाले चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को वह इस कॉन्फ्रेंस को आनन-फानन में आयोजित करने तथा इसके बहाने से श्रीनगर घूमने व अपनी राजनीति चलाने की शशांक अग्रवाल की कोशिशों के रूप में व्याख्यायित कर हैं ।नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ही सदस्यों का कहना/बताना है कि संजीव सिंघल को लग रहा है कि शशांक अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं, और उनकी इस तैयारी को इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता से सहयोग व समर्थन मिल रहा है । संजीव सिंघल को ही नहीं, अन्य कई सेंट्रल काउंसिल सदस्यों तथा प्रमुख चार्टर्ड एकाउंटेंट्स को लग रहा है कि बिना किसी उचित योजना के जल्दीबाजी में 'सब रीजनल कॉन्फ्रेंस' के आयोजन पर अतुल गुप्ता ने कोई आपत्ति क्यों नहीं की ?
शशांक अग्रवाल की जल्दीबाजी में 'सब रीजनल कॉन्फ्रेंस' करने की घोषणा के पीछे कहानी यह बताई/सुनाई जा रही है कि 6 नबंवर को दरअसल श्रीनगर में जम्मू-कश्मीर ब्रांच के एक प्रतिनिधि ऑफिस का उद्घाटन होने का कार्यक्रम है । यह ऑफिस और उसका उद्घाटन भी मजाक को विषय बना हुआ है, और इसकी जरूरत किसी को समझ में नहीं आ रही है । उल्लेखनीय है कि श्रीनगर में कश्मीर सीपीई चैप्टर है, और जाहिर है कि उसका ऑफिस भी है - जिसे श्रीनगर में जो थोड़े से चार्टर्ड एकाउंटेंट्स हैं उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त माना/समझा जाता है । ऐसे में, वहाँ तथाकथित प्रतिनिधि ऑफिस खोलना सिर्फ अपनी उपलब्धियों को बढ़ा/चढ़ा कर दिखाने का मौका बनाना भर है । और सिर्फ इतना ही नहीं, चेयरमैन शशांक अग्रवाल तथा सेक्रेटरी अजय सिंघल को लगा कि तथाकथित प्रतिनिधि ऑफिस के उद्घाटन में शामिल होने के नाम पर उन्हें इंस्टीट्यूट के पैसे पर श्रीनगर घूमने का मौका भी मिल जायेगा । हालाँकि इन्हें यह डर भी हुआ कि एक ब्रांच स्तर के छोटे से कार्यक्रम में इंस्टीट्यूट के पैसे पर जाने को लेकर बबाल मचेगा, सो आनन-फानन में इन्होंने श्रीनगर में सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस करने की तैयारी कर ली । आरोप है कि सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस के नाम पर चेयरमैन शशांक अग्रवाल और सेक्रेटरी अजय सिंघल ने वास्तव में इंस्टीट्यूट के पैसे पर श्रीनगर घूमने का जुगाड़ बना लिया है । समझा जाता है कि प्रेसीडेंट अतुल गुप्ता ने भी आनन-फानन में सब-रीजनल कॉन्फ्रेंस करने पर आपत्ति इसीलिए नहीं की, क्योंकि शशांक अग्रवाल व अजय सिंघल की इस योजना में उन्हें भी श्रीनगर घूमने का मौका मिलता नजर आया ।
उल्लेखनीय है कि अतुल गुप्ता ने इसी तरह की जल्दबाजी के साथ अभी हाल ही में आयोजित हुए गुरुग्राम ब्रांच के एक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि बनने का जुगाड़ किया था, जिसकी जानकारी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों और सदस्यों को भी नहीं थी - और यहाँ तक कि गुरुग्राम ब्रांच के चैयरमेन तक को उक्त कार्यक्रम में शामिल होने  का मौका नहीं मिला । गुरुग्राम ब्रांच के दूसरे सदस्यों को यही समझ में नहीं आया कि कार्यक्रम वास्तव में था क्या ? ब्रांच के एक पदाधिकारी ने इन पंक्तियों के लेखक को बताया कि कार्यक्रम वास्तव में कुछ नहीं था, वह तो अतुल गुप्ता का सुबह सुबह फोन आया कि वह आयेंगे इसलिए तम्बू-कनात लगवा लेना और एक फोटोग्राफर बुलवा लेना । लोगों को ऐसा लगता है कि अतुल गुप्ता की उसी हरकत से प्रेरित होकर शशांक अग्रवाल और अजय सिंघल ने श्रीनगर का कार्यक्रम बना डाला । असल में, अतुल गुप्ता और शशांक अग्रवाल के लिए प्रेसीडेंट और चेयरमैन बनना कोरोना वायरस के प्रकोप से बने हालात की भेंट चढ़ गया है, और इन बेचारों को ब्रांचेज में आने-जाने, गले में माला डलवाने तथा फोटो खिंचवाने का मौका ही नहीं मिल सका है । इसलिए, इस तरह के मौके बनाने के लिए इन्हें फर्जी तरीके अपनाने पड़ रहे हैं । गुरुग्राम वाले मामले में तो ज्यादा बबाल नहीं हुआ, लेकिन श्रीनगर के कार्यक्रम को लेकर लोगों की नाराजगी इसलिए मुखर हो रही है, क्योंकि इसमें इंस्टीट्यूट की मोटी रकम बर्बाद होनी है, और इसे शशांक अग्रवाल की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी की तैयारी से जोड़कर देखा जा रहा है । 

Friday, October 30, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पंकज डडवाल के विजन प्रस्तावों से पड़ने वाले प्रभाव को देखते/समझते हुए जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को भी लगा है कि अरुण मोंगिया को भी पंकज डडवाल से सीखना चाहिए, अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि अरुण मोंगिया उनके लिए बदनामी तथा फजीहत का कारण बन जाएँ

कुरुक्षेत्र । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में अरुण मोंगिया की सुस्ती और गैरजिम्मेदाराना व्यवहार की शिकायतों ने जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं को चिंता और परेशानी में डाल दिया है, जिसके चलते उन्होंने अरुण मोंगिया की जमकर क्लास ली है । जितेंद्र ढींगरा के यहाँ एक पारिवारिक समारोह में पहुँचे कई लोगों ने साफ साफ कहा कि अरुण मोंगिया के रंग-ढंग ऐसे नहीं हैं कि उन्हें वोट दिया/दिलवाया जाये तथा उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनाया/बनवाया जाये - उनके सामने यदि जितेंद्र ढींगरा तथा दूसरे नेताओं के लिहाज के कारण अरुण मोंगिया को वोट देने की मजबूरी न हो, तो वह हर्गिज अरुण मोंगिया को वोट न दें । जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के अन्य नेताओं से लोगों ने कहा कि उन्हें देख/समझ कर ही ऐसे व्यक्ति को उम्मीदवार बनाना चाहिए, जो वास्तव में रोटरी के लिए कुछ करने के लिए उत्साहित हो तथा अपने व्यवहार से वह दूसरे लोगों को उत्साहित व प्रेरित कर सकता हो । लोगों की शिकायत रही कि अरुण मोंगिया चूँकि यह मान/समझ रहे हैं कि जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के दूसरे नेता अपने अपने प्रभाव से उन्हें चुनाव जितवा ही देंगे, इसलिए वह अपनी तरफ से कुछ करने में दिलचस्पी ही नहीं ले रहे हैं । 
शिकायतों में हद की बात यह सुनी/बताई गई कि गिफ्ट के रूप में अरुण मोंगिया ने हाल-फिलहाल के दिनों में जो पौधे दिए, उसमें भी भारी नाटकबाजी की । कुछेक क्लब्स के लोगों ने जितेंद्र ढींगरा और या अन्य प्रमुख नेताओं को बताया कि अरुण मोंगिया ने पहले तो उनसे पूछा कि वह किन किन लोगों से मिल लें; लेकिन उन्हें जब क्लब के छह/आठ लोगों के नाम बताये तो वह यह कहते हुए भड़क उठे कि क्लब के जब दो वोट हैं, तो फिर छह/आठ लोगों को गिफ्ट क्यों दिलवा रहे हैं ? कहीं उन्होंने क्लब के चार लोगों को गिफ्ट दिया, लेकिन जब उन्हें दो/तीन लोगों के नाम और बताये गए तो वह यह कहते हुए नाराज हो गए कि आठ सौ रुपये तो उन्होंने खर्च कर दिए हैं, और कितने पैसे खर्च करवाओगे ? शिकायती अंदाज में लोगों का कहना रहा कि अरुण मोंगिया को चूँकि यह भरोसा है कि सत्ता खेमे का उम्मीदवार होने के नाते, वह आसानी से चुनाव तो जीत ही जायेंगे - इसलिए उन्हें एक उम्मीदवार के रूप में न तो सक्रिय होने तथा व्यवहार करने की जरूरत है, और न क्लब्स के पदाधिकरियों तथा अन्य प्रमुख लोगों की बात मानने तथा उनका सम्मान करने/रखने की आवश्यकता है ।
जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के दूसरे नेताओं से लोगों ने कहा/बताया कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार पंकज डडवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपना जो विजन प्रस्तुत किया है, वह लोगों को आकर्षित और प्रभावित कर रहा है - इसलिए अरुण मोंगिया को भी अपना विजन बताना/दिखाना चाहिए; लेकिन अरुण मोंगिया का चूँकि लोगों के साथ कोई संपर्क ही नहीं है, इसलिए उन्हें पता ही नहीं है कि लोगों को उनसे क्या और किस तरह की उम्मीदें हैं ? उल्लेखनीय है कि पंकज डडवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में अपने विजन में स्पष्ट कहा/बताया है कि वह ड्यूज के नाम पर रोटेरियंस पर खर्चों का बोझ नहीं डालेंगे और जरूरी खर्चे ही किए/लिए जायेंगे; ग्लोबल ग्रांट्स में सभी क्लब्स को समान अवसर दिए जायेंगे तथा छोटे क्लब्स को उसके लिए प्रोत्साहित करने के लिए प्रयत्न किए जायेंगे और हिसाब-किताब में पारदर्शिता रखी जायेगी । ऐसे समय में, जबकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज पर विभिन्न तरीकों से पैसे जुटाने और बनाने के गंभीर आरोप लग रहे हैं, पंकज डडवाल के विजन में कही जा रहीं बातें डिस्ट्रिक्ट के रोटेरियंस तथा प्रेसीडेंट्स को प्रभावित कर रही हैं । ऐसे में, उम्मीद की जा रही थी कि अरुण मोंगिया की तरफ से भी ऐसा कुछ कहा जायेगा जो लोगों को आकर्षित व प्रभावित करेगा - लेकिन अरुण मोंगिया ने ऐसा कुछ करने की जरूरत ही नहीं समझी है । जितेंद्र ढींगरा के यहाँ पारिवारिक समारोह में जुटे रोटेरियंस ने जितेंद्र ढींगरा तथा सत्ता खेमे के नेताओं से कहा/बताया कि उन्हें अरुण मोंगिया को समझाना/बताना चाहिए कि रोटरी पदाधिकारी व नेता के रूप में उन्हें कैसे क्या करना चाहिए - अन्यथा कहीं ऐसा न हो कि अरुण मोंगिया उनके लिए बदनामी तथा फजीहत का कारण बन जाएँ । सत्ता खेमे के नेताओं का कहना/बताना है कि उन्होंने अरुण मोंगिया को समझाया तो बहुत है, लेकिन यह देखना अभी बाकी है कि उनके समझाने का अरुण मोंगिया पर कोई असर हुआ भी है या नहीं ?  

Wednesday, October 28, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 के चेयरमैन क्षितिज शर्मा को पूर्व चेयरमैन पारस अग्रवाल के अकाउंट की जाँच रोकने के मामले में लायंस इंटरनेशनल से झटका लगा, और इस प्रकरण में काउंसिल सेक्रेटरी राजीव अग्रवाल की भूमिका की चर्चा ने मामले को और दिलचस्प बनाया  

आगरा । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल के अकाउंट में गड़बड़ी के आरोपों की जाँच को रोकने के मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा के फैसले को रद्द करके जाँच प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का आदेश देकर पारस अग्रवाल की मुश्किलों को एक बार फिर से बढ़ा दिया है । लायंस इंटरनेशनल कार्यालय के फैसले से 'रचनात्मक संकल्प' की 9 अक्टूबर की रिपोर्ट में व्यक्त की गई आशंका सच साबित हुई है, जिसमें कहा गया था कि जाँच रुकवाने की कोशिश करके पारस अग्रवाल ने अकाउंट में झोलझाल होने के आरोपों को विश्वसनीयता दे दी है, और इस तरह जो काम मधु सिंह लगातार सक्रियता दिखा/बना कर नहीं कर पा रही थीं - उसे खुद पारस अग्रवाल ने एक गलत कदम के जरिये कर दिया है । पारस अग्रवाल ने सोचा तो यह था कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर क्षितिज शर्मा नाम की जो एक कठपुतली है, उससे वह जाँच को रुकवा लेंगे; लेकिन उन्हें यह ध्यान नहीं रहा होगा कि ऊपर का कार्यालय जाँच रोकने के फैसले को रद्द भी कर सकता है और तब उनकी ज्यादा फजीहत होगी । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के रूप में क्षितिज शर्मा ने मनमानी तथा नियमों की अनदेखी करते हुए पारस अग्रवाल के अकाउंट की जाँच को रोक देने का तो फैसला कर लिया था, लेकिन लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने उनके फैसले को रद्द करके जाँच की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने का जो आदेश दिया है, उसने क्षितिज शर्मा और पारस अग्रवाल के लिए मुसीबतों को और बढ़ा दिया है ।
पारस अग्रवाल दरअसल जाँच से इसलिए डरे हुए हैं, क्योंकि वह यह मान कर चल रहे हैं कि जाँच कमेटी अवश्य ही अकाउंट में फर्जीवाड़ा करने का उन्हें दोषी ठहरायेगी । जाँच कमेटी में अभी अशोक गुप्ता, पारस अग्रवाल के; अशोक कपूर, मधु सिंह के; और संजय चोपड़ा, विशाल सिन्हा के प्रतिनिधि के रूप में हैं - और इन तीनों को कमेटी का चेयरमैन चुनना है, जो मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर्स केएम गोयल, विनोद खन्ना व जगदीश गुलाटी में से कोई एक होगा । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में इस वर्ष जो हो रहा है और इंटरनेशनल डायरेक्टर एंडॉर्सी जितेंद्र चौहान तथा मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन क्षितिज शर्मा जिस तरह की मनमानी कर रहे हैं, उसके चलते तीनों पूर्व डायरेक्टर्स अपने आप को पूरी तरह उपेक्षित महसूस कर रहे हैं तथा बुरी तरह नाराज हैं । पारस अग्रवाल तथा उनके शुभचिंतकों को डर वास्तव में यही है कि तीनों पूर्व डायरेक्टर्स में से जो भी चेयरमैन बनेगा, वह अकाउंट की कमियों और गलतियों को खोजेगा तथा पारस अग्रवाल को दोषी ठहरायेगा । पारस अग्रवाल और उनके नजदीकी दरअसल इसीलिए चाहते थे कि मधु सिंह ने अकाउंट को लेकर जाँच की जो माँग की हुई है, उस माँग को किसी न किसी बहाने से रद्द किया जाए और जाँच से बचा जाए । लेकिन लायंस इंटरनेशनल कार्यालय ने मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन क्षितिज शर्मा से जाँच को रुकवा तथा रद्द करवा देने की उनकी कोशिश पर पानी फेर दिया है ।
पारस अग्रवाल के अकाउंट के मुद्दे पर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में जो घमासान मचा हुआ है, उसने मल्टीपल काउंसिल सेक्रेटरी राजीव अग्रवाल के लिए एक अलग तरह की मुसीबत पैदा की है । पारस अग्रवाल और उनके समर्थकों ने राजीव अग्रवाल पर सूचनाओं को लीक करने का आरोप लगाया हुआ है । पारस अग्रवाल और उनके समर्थकों को असल में यह बात हैरान किए हुए है कि उनके बीच की बातें विरोधी खेमे के लोगों तक तुरंत कैसे पहुँच जाती हैं ? इस हैरानी को दूर करने की उनकी कोशिशें राजीव अग्रवाल को संदिग्ध बनाती हैं । दरसअल राजीव अग्रवाल ही मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के ऐसे पदाधिकारी हैं, जिनकी नजदीकियत विरोधी खेमे के नेताओं के साथ भी है । विरोधी खेमे के नेताओं के साथ उनकी नजदीकियत वास्तव में संयोगवश ही है । राजीव अग्रवाल अपने डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री - में जिन नेताओं के साथ और संपर्क में ज्यादा रहते हैं, वह मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की राजनीति में विरोधी खेमे के सक्रिय सदस्यों के रूप में देखे/पहचाने जाते हैं - और इसीलिए पारस अग्रवाल तथा उनके नजदीकियों को लगता है कि उन्हें बचाने के लिए मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी जो भी योजना बनाते हैं, वह राजीव अग्रवाल के जरिये विरोधी खेमे के नेताओं तक पहुँच जाती है और विरोधी खेमे के लोग पहले से ही उनकी योजना को फेल करने में जुट जाते हैं । मामले में राजीव अग्रवाल को घसीटे जाने से लग रहा है कि अकाउंट के जरिये पारस अग्रवाल को घेरने/फँसाने तथा बचाने की 'लड़ाई' में अन्य कई लोगों के भी फजीहत का शिकार होने के हालात बन रहे हैं, और इससे मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक समीकरणों में कई तरह के उतार-चढ़ाव देखने को मिलेंगे ।

Friday, October 23, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में सत्ता खेमे के प्रति पैदा हुई नाराजगी के कारण प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार पंकज डडवाल को लोगों के बीच मिलते दिख रहे समर्थन से होने वाले नुकसान से बचने के लिए जितेंद्र ढींगरा जल्दी चुनाव कराने के चक्कर में, लेकिन चुनाव जल्दी होने से अजय मदान की मुश्किलें बढ़ने का खतरा

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के समय को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज परस्पर विरोधी दबावों में फँस गए हैं, और उनके लिए यह तय कर पाना मुश्किल हो रहा है कि वह चुनाव कब करवाएँ ? रमेश बजाज की मुश्किलों को निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के उस दावे ने और बढ़ा दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि वह जब चाहेंगे, तब चुनाव होगा । लोगों का कहना/पूछना है कि रमेश बजाज डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, या जितेंद्र ढींगरा की कठपुतली - जो उनके कहने से चुनाव की तारीख तय तथा घोषित करेंगे ? यह सवाल दरअसल इसलिए भी महत्त्वपूर्ण हो गया है, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज को जो काम अभी तक कर लेने चाहिए थे; वह तो उन्होंने किए नहीं हैं - जैसे चार महीने पूरे होने जा रहे हैं, लेकिन अभी तक डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का कोई अतापता नहीं है - किंतु चुनाव का जो काम जनवरी/फरवरी तक होता रहा है, रमेश बजाज उसे अभी कर लेना चाहते हैं, और वह भी जितेंद्र ढींगरा के दबाव में ! डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों ने और प्रेसीडेंट्स ने भी रमेश बजाज को कहा/सुझाया है कि अगले बीस-बाइस दिन त्यौहारी सीजन के हैं और लोग अपने अपने कामकाज तथा परिवार के साथ त्यौहार मनाने की तैयारियों में व्यस्त होंगे, इसलिए अभी करीब एक महीने तक तो चुनाव की प्रक्रिया को न शुरू करें ।
मजे की बात यह है कि अभी खुद जितेंद्र ढींगरा के लिए भी रोटरी की राजनीति के लिए समय निकाल पाना मुश्किल होगा - अभी उनके काम का सीजन है और फिर उन्हें एक बड़ी पारिवारिक जिम्मेदारी का निर्वाह करने में जुटना है; लेकिन उनके सामने चुनौती यह है कि उन्हें रोटरी की राजनीति की जिम्मेदारी भी निभानी है । असल में, जितेंद्र ढींगरा को डर हो चला है कि रमेश बजाज के कार्य-व्यवहार के कारण लोगों के बीच जो नाराजगी बढ़ रही है, उसका खामियाजा कहीं डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उनके उम्मीदवार अरुण मोंगिया को न भुगतना पड़ जाए । अरुण मोंगिया चूँकि सत्ता खेमे के उम्मीदवार हैं, इसलिए अलग अलग कारणों से सत्ता खेमे के खिलाफ पैदा होने वाली नाराजगी का ठीकरा उन्हीं के सिर फूटने की आशंका है । इस आशंका के चलते ही, जितेंद्र ढींगरा को लग रहा है कि सत्ता खेमे के खिलाफ लोगों की नाराजगी ज्यादा बढ़े, उससे पहले ही चुनाव करवा लिया जाए और चुनावी नुकसान से अपने को बचा लिया जाए । सत्ता खेमे के ही दूसरे लोगों का हालाँकि यह मानना और कहना है कि रमेश बजाज के कार्य-व्यवहार के कारण लोगों के बीच अभी जो नाराजगी के सेंटीमेंट्स हैं, उन्हें अगले दो/एक महीने में अजय मदान के गवर्नर-वर्ष के पद बाँट कर सेटल कर लिया जा सकता है - इसलिए चुनाव करवाने की जल्दी नहीं करना चाहिए । इनका यह भी मानना और कहना है कि अभी त्यौहार का सीजन भी है, इसलिए अभी चुनाव करवाने से लोगों के नाराजगी वाले सेंटीमेंट्स और भड़क सकते हैं । 
अभी चुनाव न करने/करवाने को लेकर एक दलील यह भी दी जा रही है कि अभी चुनाव करवा लेने से अजय मदान के लिए मुसीबतें खड़ी हो जायेंगी । कहा/बताया जा रहा है कि अभी चुनाव निपट जाने से डिस्ट्रिक्ट के लोगों का ध्यान अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय मदान पर जा टिकेगा और वह यह देखना/जानना शुरू करेंगे कि अजय मदान किस को क्या पद दे रहे हैं ? जिसे पद नहीं मिलेगा - या अपनी पसंद का नहीं मिलेगा, वह फिर अजय मदान के खिलाफ बातें बनाने लगेगा और तब अजय मदान के लिए अपने कार्यक्रम करना मुश्किल हो जायेगा तथा वह गवर्नर की कुर्सी पर बैठने से पहले ही आलोचनाओं व शिकायतों व आरोपों के भँवर में फँस जायेंगे । अजय मदान को आलोचनाओं व आरोपों से बचाये रखने तथा उनके कार्यक्रमों को बिना विवाद के संपन्न कर लेने के लिए जरूरी माना जा रहा है कि लोगों को अभी इसी वर्ष के चुनावी परिदृश्य में ही उलझा कर रखा जाए । सत्ता खेमे के लोगों को जल्दी चुनाव करवाने में कई तरह  नुकसान होते नजर आ रहे हैं, लेकिन अरुण मोंगिया और जितेंद्र ढींगरा को यह डर भी सता रहा है कि सत्ता खेमे के प्रति पैदा हुई नाराजगी के कारण प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार पंकज डडवाल को लोगों के बीच जो समर्थन मिलता दिख रहा है, वह यदि और बढ़ता गया तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में बाजी पलट भी सकती है । परस्पर विरोधी तर्कों व दलीलों के बीच सत्ता खेमे के नेताओं के लिए यह तय कर पाना सचमुच मुश्किल हो रहा है कि पंकज डडवाल से मिलने वाली चुनावी चुनौती से वह जल्दी चुनाव करवा कर बच सकते हैं, या समय से चुनाव करवाने में उन्हें फायदा होगा ?

Thursday, October 22, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले में सत्ता खेमे से जुड़े आम और खास नेताओं की नाराजगी के सामने आने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति के समीकरणों पर असर पड़ने के बनते हालात में, पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के समर्थकों को अपने लिए मौका और 'रास्ता' बनता नजर आ रहा है

शिमला । डिस्ट्रिक्ट डियूज के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज को घेरने की कोशिशों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी समीकरणों को जिस तरफ से डिस्टर्ब करना तथा बिगाड़ना शुरू किया है, उससे अरुण मोंगिया तथा उनके समर्थकों को चिंता होना शुरू हुई है - तथा पहली बार पंकज डडवाल के नजदीकियों व समर्थकों के बीच उम्मीद व उत्साह की लहर पैदा होती हुई देखी गई है । अरुण मोंगिया और पंकज डडवाल के बीच होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव को अभी तक एकतरफ ही झुका हुआ माना/देखा जा रहा था, लेकिन पहली बार उक्त चुनाव को लेकर बने समीकरण डगमगाते हुए दिख रहे हैं । दरअसल, डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर की जा रही मनमानी और मचाई जा रही 'लूट' को लेकर लोगों के बीच जिस तरह की नाराजगी पैदा हुई है, उसे कई एक ऐसे लोगों ने भी समर्थन दिया है - जो सत्ता खेमे के नजदीक हैं । इससे माना/समझा जा रहा है कि लोगों के बीच पैदा हुई नाराजगी को रोकने/संभालने के लिए सत्ता खेमे के नेताओं ने यदि जल्दी ही प्रयास नहीं किए, तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में कहीं लेने के देने न पड़ जाएँ । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट अजय मदान के गवर्नर वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाये गए संदीप गोयल के एक बयान ने आग में घी डालने का जो काम किया है, उससे भी सत्ता खेमे के नेताओं की मुश्किलें बढ़ी हैं और इसका सीधा असर अरुण मोंगिया की चुनावी जीत पर पड़ने का डर पैदा हुआ है ।
असल में, सत्ता खेमे के पदाधिकारियों व नेताओं की मनमानियों ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ-साथ सत्ता खेमे के नेताओं के नजदीकियों व समर्थकों को भी अलग अलग कारणों से नाराज किया हुआ है । डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले ने उन नाराजगियों को मुखर बना दिया है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज की तरफ से डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर प्रत्येक सदस्य से 750 रुपये बसूलने की तैयारी की गई है, जिसमें 150 रुपये जीएसटी के बताये/माने गए हैं । लोगों का कहना/पूछना यह है कि डिस्ट्रिक्ट जब दो वर्ष पहले ही जीएसटी के घेरे से बाहर आ गया है, तो जीएसटी के नाम पर पैसा क्यों लिया जा रहा है, और यह पैसा आखिर जायेगा कहाँ ? डिस्ट्रिक्ट ड्यूज में 250 रुपये पेट्स/सेट्स के नाम पर लिए जाते हैं, जो हुई ही नहीं हैं । वर्चुअल प्लेटफॉर्म जूम पर इनके नाम पर महज खानापूर्ति ही हुई है, जिसमें कोई खर्च नहीं हुआ । बाकी बची अन्य रकम को लेकर भी लोगों के सवाल और आपत्तियाँ हैं । आरोप यह भी है कि रमेश बजाज ने अपने गवर्नर वर्ष का बजट गुपचुप रूप से पेट्स में 'पास' तो करा लिया, लेकिन वह लोगों को उपलब्ध नहीं करवाया । लोगों के सवालों और आपत्तियों पर रमेश बजाज ने चुप्पी साधी हुई है । लोगों ने डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर होने वाली लूट को लेकर जितेंद्र ढींगरा से बात की, तो उन्होंने यह कह कर हाथ झाड़ लिए कि इस बारे में जो पूछना है रमेश बजाज से ही पूछो ।
संदीप गोयल ने लेकिन यह कह कर मामले को भड़का दिया है कि डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के नाम पर 750 रुपये ही तो लिए जा रहे हैं, इतनी मामूली रकम को लेकर लोग सवाल ही क्यों उठा रहे हैं । लोगों का कहना है कि 750 रुपये के हिसाब से रमेश बजाज के पास 25 लाख रुपये पहुँच गए हैं, और संदीप गोयल कह रहे हैं कि लोगों को यह जानने/पूछने की जरूरत नहीं है कि रमेश बजाज इस रकम का आखिर करेंगे क्या ? संदीप गोयल अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी बनाये गए है, इसलिए लोगों को शक है कि संदीप गोयल ने जो कहा है, वह कहीं अजय मदान ने तो उनसे नहीं कहलवाया है और इस तरह कहीं अजय मदान भी तो वही सब करने की तैयारी नहीं कर रहे हैं, जो रमेश बजाज कर रहे हैं ?
यह नजारा देख कर पंकज डडवाल के नजदीकियों और समर्थकों के बीच पहली बार उम्मीद व उत्साह पैदा होता हुआ नजर आया है । पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के प्रति समर्थन का भाव रखने वाले लोगों को लगने लगा है कि पंकज डडवाल के समर्थक यदि 'चुनावी जरूरतों' को समझते/पहचानते हुए अपनी सक्रियता को दिखाएँ/बढ़ाएँ, तो डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले में लोगों के बीच बढ़ती नाराजगी का फायदा उठाते हुए वह एकपक्षीय नजर आ रहे चुनावी परिदृश्य को पलट भी सकते हैं । पंकज डडवाल की उम्मीदवारी के कई समर्थकों व शुभचिंतकों को लगातार यह लगता रहा है कि इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में रमेश बजाज की कार्यप्रणाली ने जिस तरह से सिर्फ डिस्ट्रिक्ट के आम लोगों को ही नहीं, बल्कि सत्ता खेमे के आम तथा खास नेताओं तक को नाराज किया हुआ है, उसके कारण इस वर्ष पंकज डडवाल के लिए जीतने की अच्छी संभावना थी - लेकिन उनकी तरफ से प्रभावी रूप में अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के प्रयास ही नहीं किए गए । पंकज डडवाल के नजदीकियों को लगता है कि डिस्ट्रिक्ट ड्यूज के मामले में सत्ता खेमे के पदाधिकरियों तथा नेताओं के खिलाफ डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच जो नाराजगी पैदा हुई है, और खुद सत्ता खेमे से जुड़े लोग भी अपनी नाराजगी को खुलकर आवाज देने लगे हैं, उसने चुनावी राजनीति के समीकरणों पर असर डालना/दिखाना शुरू कर दिया है - और इसमें पंकज डडवाल की उम्मीदवारी की सफलता का 'रास्ता' बन सकता है । देखना दिलचस्प होगा कि पंकज डडवाल और उनके समर्थकों को अचानक से जो मौका मिला है, उसका फायदा उठाने के लिए वह कोई तैयारी कर पाते हैं या इस मौके को यूँ ही गवाँ देंगे ?

Wednesday, October 21, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में कुरुक्षेत्र में छप रही डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की क्वालिटी को लेकर जितेंद्र ढींगरा का अपेक्षित सहयोग न मिलने से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज के खफा होने के चक्कर में सारी तैयारी पूरी हो जाने के बावजूद डायरेक्टरी का आना लटक गया है 

पानीपत । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी की छपाई की क्वालिटी तथा कीमत को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश बजाज और निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जितेंद्र ढींगरा के बीच एक बार फिर 'शीतयुद्ध' जैसे हालात बन गए हैं, जिसके चलते डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का प्रकाशन लटक गया है । रमेश बजाज को प्रिंटर की तरफ से तैयार डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी के जो कुछेक सैम्पल मिले, रमेश बजाज उनसे संतुष्ट नहीं दिखे और इसलिए उन्होंने प्रिंटर को डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी का काम आगे बढ़ाने से रोक दिया है । रमेश बजाज की शिकायत है कि प्रिंटर ने उन्हें जिस क्वालिटी का भरोसा दिया था, तैयार सैम्पल में वह क्वालिटी नहीं है - इसलिए प्रिंटर या तो वह उस क्वालिटी का काम दे जिसका उसने भरोसा दिया था, और या रेट कम करे । डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी कुरुक्षेत्र में छप रही है, और प्रिंटर के साथ रमेश बजाज का तालमेल जितेंद्र ढींगरा ने करवाया था । इस नाते, रमेश बजाज चाहते हैं कि प्रिंटर से उनकी जो माँग है उसे जितेंद्र ढींगरा पूरा करवाएँ । जितेंद्र ढींगरा लेकिन इस पचड़े में पड़ना नहीं चाहते हैं । जितेंद्र ढींगरा के नजदीकियों का कहना है कि रमेश बजाज नाहक ही बात का बतंगड़ बना रहे हैं, और ऐसा करके वह वास्तव में प्रिंटर को तय हुई रकम से कम रकम देना चाहते हैं । उधर रमेश बजाज की तरफ से शिकायत सुनी जा रही है कि जितेंद्र ढींगरा उनकी बातों व समस्या पर कोई ध्यान ही नहीं दे रहे हैं और इस तरह वह प्रिंटर का पक्ष ले रहे हैं ।
उल्लेखनीय है कि रमेश बजाज ने कुरुक्षेत्र के प्रिंटर से डायरेक्टरी छपवाने का फैसला इस 'भरोसे' के साथ किया था कि उन्हें पिछले वर्ष जैसी डायरेक्टरी करीब आधी कीमत में मिल जायेगी । यह बात कहने/सुनने में अच्छी लगती है, लेकिन व्यावहारिक रूप में ऐसा होता नहीं है । पिछले वर्ष जितेंद्र ढींगरा ने दिल्ली के एक नामी प्रिंटर से डायरेक्टरी छपवाई थी । वह प्रिंटर नामी है ही इसलिए क्योंकि उसके पास बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर है, और अनुभवी लोगों की टीम है । प्रिंटिंग का काम ऊपर ऊपर से एक जैसा ही लगता है, लेकिन छोटी छोटी बातों से उसमें बड़ा बड़ा फर्क पड़ जाता है, और वह दिखता भी है । लोगों का कहना है कि रमेश बजाज को कॉमनसेंस से इतना तो समझना ही चाहिए था कि दिल्ली के एक नामी प्रिंटर के काम में और कुरुक्षेत्र के प्रिंटर के काम में कुछ अंतर तो होगा ही, तथा तब तो और भी जबकि कुरुक्षेत्र वाला प्रिंटर करीब आधी कीमत पर डायरेक्टरी छाप रहा है । लोगों को यह रमेश बजाज का 'भोलापन' ही लग रहा है कि उन्होंने इस दावे पर सहज ही विश्वास कर लिया कि उन्हें आधी कीमत में पिछले वर्ष जैसी ही डिस्ट्रिक्ट डायरेक्टरी छप कर सचमुच मिल जायेगी ।  
रमेश बजाज को डर दरअसल यह है कि लोगों को जब उनकी डायरेक्टरी पिछले वर्ष की डायरेक्टरी से 'हल्की' लगेगी, तो यह आरोप लगेंगे कि डायरेक्टरी में उन्होंने पैसे बचा लिए हैं । डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने में जबरदस्तियाँ करने को लेकर उनकी पहले से ही बदनामी है । डिस्ट्रिक्ट में लोगों के बीच यह चर्चा पहले से ही है कि डायरेक्टरी के लिए विज्ञापन जुटाने में जितेंद्र ढींगरा ने तो कभी किसी पर कोई दबाव नहीं बनाया था, जबकि रमेश बजाज ने विज्ञापन जुटाने को ही अपना उद्देश्य बना लिया है । ऐसे में, जब लोगों को रमेश बजाज की डायरेक्टरी मिलेगी और वह 'हल्की' लगेगी, तो यह बात तो उठेगी ही कि जितेंद्र ढींगरा ने विज्ञापनों के लिए जबरदस्ती किए बिना जब एक अच्छी डायरेक्टरी छाप ली - तो खूब खूब विज्ञापनों को जुटाने के बावजूद रमेश बजाज के लिए उनके जैसी डायरेक्टरी छापना क्यों संभव नहीं हुआ ? इन्हीं बातों से बचने के लिए रमेश बजाज प्रिंटर पर दबाव बना रहे हैं कि वह डायरेक्टरी की क्वालिटी को ठीक करे; उनकी कोशिश यह भी है कि प्रिंटर यदि क्वालिटी ठीक नहीं कर पाता है तो वह कुछ पैसे ही कम करवा लें । इस मामले में लेकिन जितेंद्र ढींगरा का अपेक्षित सहयोग न मिलने से रमेश बजाज कुछ खफा खफा से हैं; और इस चक्कर में सारी तैयारी के बावजूद डायरेक्टरी का आना लटक गया है ।

Monday, October 19, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के 'शोमैन' मुकेश गोयल की गैरमौजूदगी में डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति को तड़क-भड़क, रहस्य-रोमांच और गुलगपाड़े वाली गपशप के साथ जीवंत बनाये रख पाना खासा चुनौतीपूर्ण ही होगा

गाजियाबाद । आज दोपहर ढलते मुकेश गोयल की देह ही अग्नि को समर्पित नहीं हुई है, बल्कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति की तड़क-भड़क, रहस्य-रोमांच और गुलगपाड़े वाली गपशप भी उनकी देह के साथ राख हो गई । डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था और चुनावी राजनीति तो उनकी अनुपस्थिति में अपना समीकरण बना लेगी - बना क्या लेगी, उसने बना लिया है - लेकिन मुकेश गोयल की उपस्थिति मात्र से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जो जीवंतता साँसे भरती थी, वह मुकेश गोयल की साँसों के साथ ही परलोकवासी हो गई नजर आ रही है । पिछले तीन-चार महीने में मुकेश गोयल मृत्यु के और नजदीक पहुँच गए थे, डॉक्टरों ने जबाव दे दिया था और किसी भी तरह के ईलाज को व्यर्थ बता दिया था - लेकिन मृत्युशय्या पर पड़े पड़े भी मुकेश गोयल सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद से जुड़ी डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को लेकर जो चालें चल रहे थे, उनसे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बनने/बिगड़ने वाले समीकरणों में खासी हलचल मची हुई थी । अभी दस/बारह दिन पहले ही उन्होंने अपने नजदीकियों से कहा था कि वह मीटिंग्स आदि में चल कर नहीं जा सकते हैं, तो क्या हुआ - वह व्हीलचेयर पर तो जा सकते हैं । 
मुकेश गोयल के आभामंडल का ही असर था कि वह हालाँकि पिछले तीन वर्षों से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में या तो अपने आप को कमजोर पाते/आँकते हुए समर्पण कर रहे थे, और या चुनावी मुकाबले में पराजित हो रहे थे; तथा पिछले तीन/चार महीने से डॉक्टरों के जबाव देने के बाद दुआओं पर चल रहे थे - लेकिन फिर भी हर किसी को वह अपनी राजनीतिक चाल को लेकर आशंकित किए हुए थे । मुकेश गोयल को डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में जिताऊ नेता के रूप में पहचान मिली; लेकिन उनको इस पहचान तक सीमित करना उनके साथ अन्याय करना है - वास्तव में उनकी असली खूबी यह थी कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की लायन राजनीति में आम लायन की भूमिका को सिर्फ महत्त्वपूर्ण ही नहीं, बल्कि निर्णायक बनाने का काम किया । आम लायन सदस्यों के साथ उनके जुड़ाव ने उन्हें एक ऐसे करिश्माई नेता की पहचान दे दी थी, दूसरे नेता जिससे भय खाते थे । वह अंग्रेजी मुहावरे 'लार्जर देन लाइफ' को चरितार्थ कर रहे थे । वह डिस्ट्रिक्ट के 'शोमैन' थे । सच्चाई यह थी कि उनकी राजनीतिक ताकत वास्तव में उतनी बड़ी नहीं थी, जितना बड़ा उनके करिश्मे का शोर था - जिसे उन्होंने अपने व्यवहार और आचरण से खुद बनाया था । लेकिन हाँ, इसमें उन्हें मिलने वाली चुनावी सफलताओं का भी योगदान था, जो उन्हें विनय मित्तल के संग-साथ के कारण मिलीं ।
मुकेश गोयल डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में किस्मत के धनी भी थे, जिसके चलते उन्हें विनय मित्तल जैसा साथी-सहयोगी मिला । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मुकेश गोयल को जैसी सफलताएँ मिलीं, उसके पीछे वास्तविक तैयारी असल में विनय मित्तल की रहती थी । मुकेश गोयल ने अंत समय तक इस बात का ध्यान रखा और अभी पाँच/छह दिन पहले ही उन्होंने लिखित में विनय मित्तल की खासी प्रशंसा भी की थी । मुकेश गोयल की राजनीतिक ताकत भले ही कमजोर पड़ गई थी, लेकिन उनके करिश्मे का शोर बरकरार था - और इसीलिए अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी जबकि वह मृत्युशय्या पर पड़े थे, तब भी कई लोग उम्मीद कर रहे थे कि वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति की हवा बदल सकते हैं । यह मुकेश गोयल के बूते की ही बात थी कि वह जान/समझ रहे थे कि उनकी राजनीतिक पारी पूरी हो चुकी है - लेकिन फिर भी वह डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति को नियंत्रित करने तथा उसके शीर्ष पर बैठने की तरकीबें लड़ा रहे थे, और अपनी तरकीबों से दूसरे नेताओं को हैरान/परेशान किए हुए थे । मुकेश गोयल का यही करिश्मा था, और इसकी बदौलत ही उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति को तड़क-भड़क, रहस्य-रोमांच और गुलगपाड़े वाली गपशप के साथ जीवंत बनाया हुआ था । उनकी गैरमौजूदगी में इस जीवंतता को बनाये रख पाना वास्तव में खासा चुनौतीपूर्ण ही होगा । 

Sunday, October 18, 2020

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने की तैयारी शुरू कर चुके पंकज पेरिवाल अपनी बिल्डिंग के किरायेदार एक उद्यमी की आत्महत्या के लिए जिम्मेदार ठहराए जाने के आरोप में फँसे

लुधियाना । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पूर्व चेयरमैन पंकज पेरिवाल के बारे में चर्चा तो यह सुनी/सुनाई जा रही थी कि वह इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में जाने की तैयारी कर रहे हैं, लेकिन अखबारों में पढ़ने को मिल रहा है कि लुधियाना पुलिस उन्हें जेल ले जाने के लिए खोज रही है और वह बचते/छिपते फिर रहे हैं । अखबारी खबरों के अनुसार, पंकज पेरिवाल को एक उद्यमी सुरिंदर सिंह को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने का आरोपी बताया जा रहा है । मृतक की बेटी द्वारा लिखवाई रिपोर्ट में पंकज पेरिवाल पर आरोप है कि उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर सुरिंदर सिंह का पैसा और जमीन हड़प लिया, जिससे परेशान और निराश होकर उन्होंने अपनी जान दे दी । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि दो वर्ष पहले भी लगभग इन्हीं दिनों पंकज पेरिवाल के ऑफिस पर पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे की खबरें प्रकाशित हुई थीं । उस समय पंकज पेरिवाल नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन थे । अपने ऑफिस पर पड़े छापे की खबर के अखबारों में छपने से पंकज पेरिवाल इस कदर फजीहत का शिकार बने थे, कि रीजनल काउंसिल के चेयरमैन पद की जिम्मेदारियों का वह ठीक से निर्वाह नहीं कर पाए थे । 
अपने ऑफिस पर पड़े छापे की खबर के अखबारों में छपने के कारण हुई फजीहत के चलते पंकज पेरिवाल उस वर्ष हुए सेंट्रल काउंसिल का चुनाव भी नहीं लड़ पाए थे । वर्ष 2018 में पंकज पेरिवाल ने रीजनल काउंसिल का चेयरमैन बनने की तिकड़म दरअसल की ही इसलिए थी, क्योंकि उन्हें सेंट्रल काउंसिल का चुनाव लड़ना था - और इसीलिए अपनी तिकड़म में कामयाब होने पर वह खासे उत्साहित थे और सेंट्रल काउंसिल पद के लिए उन्होंने जोरशोर से तैयारी शुरू कर दी थी । लेकिन ऑफिस पर पड़े इनकम टैक्स विभाग के छापे की खबरों ने उनकी तैयारी पर पानी फेर दिया था । उन्होंने छापे की खबरों को एक अलग रूप देने तथा अपने आप को पाकसाफ दिखाने/बताने का प्रयास तो खूब किया, लेकिन उन्होंने खुद महसूस किया कि उनके प्रयास ज्यादा सफल नहीं हो सके हैं - और इसलिए उन्होंने उस वर्ष सेंट्रल काउंसिल के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का विचार छोड़ दिया । दो वर्ष पहले हुए सेंट्रल काउंसिल के चुनाव में उम्मीदवार न बन सकने की कमी को पंकज पेरिवाल ने इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए अगले वर्ष होने वाले चुनाव में दूर करने की बात करना शुरू कर दिया था और उन्हें अगले चुनाव के संभावित उम्मीदवार के रूप में देखा जाने लगा था ।
लेकिन, पंकज पेरिवाल ने अपनी उम्मीदवारी की चर्चा अभी शुरू ही की/करवाई थी कि वह एक बार फिर अखबारी सुर्खियों में छा गए । इस बार का मामला बल्कि ज्यादा गंभीर बताया/समझा जा रहा है ।पंकज पेरिवाल को एक उद्यमी की मौत के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है । मामला हालाँकि अभी आरोप की शक्ल में है, और जाँच के बाद ही सारी सच्चाई सामने आ सकेगी - लेकिन आरोप चूँकि संगीन प्रकृति के हैं, इसलिए पंकज पेरिवाल के लिए मुसीबत की बात तो है ही । पंकज पेरिवाल पर आरोप है कि पहले तो उन्होंने सुरिंदर सिंह की कंपनी में तीन-तिकड़म से चार्टर्ड एकाउंटेंट का काम लिया । सुरिंदर सिंह की कंपनी का ऑफिस चूँकि पंकज पेरिवाल की बिल्डिंग में किराए पर है, इसलिए पंकज पेरिवाल के लिए उनका विश्वास जीतना आसान हुआ । विश्वास जीत कर पंकज पेरिवाल ने कंपनी के कामकाज तथा हिसाब-किताब में गड़बड़ियाँ करना शुरू किया, जिसके चलते कंपनी का घाटा बढ़ता गया । घाटे की भरपाई के लिए पंकज पेरिवाल ने सुरिंदर सिंह पर दबाव बना कर उनकी संपत्ति के कागज ले लिए । इसी बात से परेशान व निराश होकर सुरिंदर सिंह ने आत्महत्या कर ली । सुरिंदर सिंह की बेटी द्वारा लिखवाई गई पुलिस रिपोर्ट में पंकज पेरिवाल को ही सुरिंदर सिंह की आत्महत्या के लिए दोषी ठहराया गया है । पंकज पेरिवाल के नजदीकियों को भी लग रहा है कि इस मामले के चलते लगता है कि पंकज पेरिवाल की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी अबकी बार भी खतरे में पड़ गई है । 

Saturday, October 17, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा के सहयोग व समर्थन से इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के नाम पर रोटरी में धंधा, राजनीति और फर्जीवाड़ा करने के उद्देश्य से होने वाले कार्यक्रम की पोल खुलने के बाद शेखर मेहता ने कार्यक्रम में शामिल होने से इंकार किया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा के सहयोग व समर्थन से फर्जी तरीके से रोटरी का नाम जोड़ कर एक फर्जी किस्म की संस्था के आज शाम हुए कार्यक्रम 'वर्चुअल ट्रु रिइंकार्नेशन इंटरसिटी' में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता को मुख्य अतिथि के रूप में शामिल करने की कोशिशें अंततः असफल हो गईं । शेखर मेहता को रोटरी के नाम पर किए जा रहे फर्जीवाड़े के बारे में तथ्य मिले, तो उन्होंने इस कार्यक्रम से दूर रहने का फैसला किया । कार्यक्रम के नाम पर होने वाले फर्जीवाड़े तथा राजनीतिक जुगाड़ को लेकर 'रचनात्मक संकल्प' ने दो दिन पहले ही एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जिसमें तथ्यों के साथ इस बात का खुलासा किया गया था कि कैसे और क्यों तो कार्यक्रम की आयोजक संस्था कागजी और फर्जी किस्म की है, कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े लोग क्यों और कैसे रोटरी को बदनाम करने वाले तथा रोटरी की वैल्यूज के साथ खिलवाड़ करने वाले हैं, और क्यों व किस तरह यह कार्यक्रम एक राजनीतिक एजेंडे के तहत किया जा रहा है - और सबसे ज्यादा दुर्भाग्य की बात यह कि शेखर मेहता जैसे रोटरी के सबसे बड़े पदाधिकारी के नाम पर किए जाने वाले गुलगपाड़े को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा ने किस किस तरीके से शह और समर्थन दिया । 'रचनात्मक संकल्प' में रिपोर्ट प्रकाशित होने के बाद डिस्ट्रिक्ट में बबाल मचा और कई लोगों ने अपने अपने तरीके से कोशिशें कीं कि रोटरी के नाम पर किए जा रहे फर्जीवाड़े तथा राजनीतिक एजेंडे को थोपने की कोशिशों में शेखर मेहता को सहभागी नहीं बनना चाहिए - क्योंकि उनकी सहभागिता से सच्चे रोटेरियंस का मनोबल टूटेगा ।
'वर्चुअल ट्रु रिइंकार्नेशन इंटरसिटी' से जुड़े विवादों की जानकारी मिलने पर शेखर मेहता भी कार्यक्रम में शामिल होने को लेकर असमंजस में पड़े । विवादों को लेकर उन्होंने संजीव राय मेहरा से पूछताछ की, तो संजीव राय मेहरा भी समझ गए कि 'रायता' फैल है । मजे की बात यह रही कि फैले रायते को समेटने के लिए संजीव राय मेहरा ने हर संभव कोशिश की । उनकी कोशिशों को पूर्व गवर्नर विनोद बंसल का सहयोग मिला । दरअसल विवादित कार्यक्रम की बागडोर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अजीत जालान के हाथ में थी, जिन्हें विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जाता है । विनोद बंसल ने समझ लिया कि मामला जिस तरह से बिगड़ा है, उसे अजीत जालान नहीं संभाल पायेंगे; और इसलिए उन्होंने विनय भाटिया को संजीव राय मेहरा की मदद में लगाया । विनय भाटिया डायरेक्टर पद की नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनोद बंसल के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे हैं । विनोद बंसल, विनय भाटिया और संजीव राय मेहरा की तिकड़ी कार्यक्रम से जुड़े विवादित मामलों को दूर करते हुए शेखर मेहता के आगमन के रास्ते को साफ करने की कोशिशों में जुटी ।
कार्यक्रम शुरू होने के पहले के 25/30 घंटों में डिस्ट्रिक्ट में भारी गहमागहमी रही । एक तरफ कुछेक लोगों की कोशिश थी कि रोटरी के नाम पर धंधा, राजनीति और फर्जीवाड़ा करने वाले रोटेरियंस के चक्कर में कहीं डिस्ट्रिक्ट, रोटरी तथा शेखर मेहता को फजीहत का शिकार न होना पड़ जाए - तो दूसरी तरफ 'वर्चुअल ट्रु रिइंकार्नेशन इंटरसिटी' के आयोजन से जुड़े लोगों ने उन उपायों को अपनाने पर जोर दिया, जिनसे शेखर मेहता की आशंकाओं को दूर किया जा सके तथा कार्यक्रम में उनकी सहभागिता को सुनिश्चित किया जा सके । इस चक्कर में कार्यक्रम के बेचारे निमंत्रण पत्र की बहुत दुर्गति हुई । कार्यक्रम शुरू होने से पहले लोगों को कई कई तरह के निमंत्रण पत्र देखने को मिले । धीरे धीरे करके पहले तो एक कागजी व फर्जी किस्म की संस्था के कार्यक्रम को डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रम का रूप दिया गया, फिर विवादित आयोजकों का नाम हटाया गया, फिर आयोजक क्लब्स के नाम भी हटा लिए गए - हद की बात यह हुई कि बाद में निमंत्रण पत्र से उस कागजी व फर्जी संस्था का नाम भी हटा लिया गया, वास्तव में जिसके नाम से कार्यक्रम की योजना बनाई गई थी । जैसे एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते हैं, ठीक उसी अंदाज में एक कागजी व फर्जी किस्म की संस्था के कार्यक्रम के जरिये धंधा जमाने व राजनीति करने की कोशिश को बदनामी के दाग से बचाने/छिपाने के लिए कई तरफ के उपाए आजमाये गए । संजीव राय मेहरा, अजीत जालान, विनय भाटिया व विनोद बंसल द्वारा आजमाये गए उपाए लेकिन शेखर मेहता को आश्वस्त नहीं कर सके; और शेखर मेहता ने अपने आप को कार्यक्रम से दूर करने/रखने में ही अपनी भलाई देखी । इस तरफ शेखर मेहता के नाम पर रोटरी में धंधा, राजनीति और फर्जीवाड़ा करने वाले रोटेरियंस की तैयारी धरी की धरी रह गई । 

Thursday, October 15, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा की शह पर शेखर मेहता व भरत पांड्या को आगे रख कर, एक फर्जी व विवादग्रस्त संस्था के आयोजन को चुनावी आचार संहिता के उल्लंघन के रूप में भी देखा/पहचाना जा रहा है

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार अजीत जालान के 'मैनेजर' की भूमिका निभा रहे संजीव वर्मा 'रोटरी ट्रु रिइंकार्नेशन' नाम की फर्जी टाइप की संस्था को लेकर फिर से सक्रिय हो गए हैं, और इस बार उन्होंने इंटरनेशनल डायरेक्टर भरत पांड्या तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता के नाम का सहारा लेकर अपने आलोचकों का मुँह बंद करने की 'तैयारी' दिखाई है । उल्लेखनीय है कि संजीव वर्मा इस तथाकथित संस्था को लेकर काउंसिल ऑफ गवर्नर्स के निशाने पर आ चुके हैं, और काउंसिल ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में उन्हें रोटरी के नाम पर निजी संस्था चलाने के लिए लताड़ पड़ चुकी है । इस लताड़ के चलते ही संजीव वर्मा ने पिछले करीब दो वर्षों से इस तथाकथित संस्था की तथाकथित गतिविधियों को बंद किया हुआ था; लेकिन अजीत जालान की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी को मदद पहुँचाने के उद्देश्य से संजीव वर्मा ने इसे फिर से सक्रिय कर लिया है । इस सक्रियता के तहत वह 17 अक्टूबर को वर्चुअल ट्रु रिइंकार्नेशन इंटरसिटी कर रहे हैं, जिसमें स्पीकर के रूप में उन्होंने भरत पांड्या और शेखर मेहता को शामिल होने के लिए तैयार कर लिया है । संजीव वर्मा को विश्वास है कि भरत पांड्या और शेखर मेहता जैसे रोटरी के बड़े पदाधिकारियों की मौजूदगी से वह अपनी संस्था के फर्जी टाइप होने तथा रोटरी के नाम व लोगो का गैरकानूनी तरीके से इस्तेमाल करने के आरोपों से बच जायेंगे ।
रोटेरियंस को यह समझना भी मुश्किल हो रहा है कि भरत पांड्या तथा शेखर मेहता जैसे बड़े पदाधिकारी रोटरी के नाम व लोगो का फर्जी तरीके से इस्तेमाल करने वाले रोटेरियन के निजी कार्यक्रम में क्यों तो शामिल हो रहे हैं, और क्यों रोटरी का नाम व लोगो फर्जी तरीके से इस्तेमाल होने दे रहे हैं । गौर करने वाला तथ्य यह है कि 'रोटरी ट्रु रिइंकार्नेशन' न तो क्लब का प्रोजेक्ट है, न डिस्ट्रिक्ट का प्रोजेक्ट है । दरअसल यह कोई प्रोजेक्ट ही नहीं है । इसकी वेबसाइट में खुद संजीव वर्मा ने बताया है कि यह उनकी सोच व भावना का उपक्रम है; और वास्तव में यह लोगों को अंगदान के प्रति शिक्षित करने का 'ऑनलाइन प्लेटफॉर्म' है । 'रोटरीऑर्गनडोनेशनडॉटओआरजी' नाम की वेबसाइट में संजीव वर्मा ने दावा किया है कि वह 'वैरी हार्ड वर्किंग' कर रहे हैं; लेकिन उनकी 'वैरी हार्ड वर्किंग' की पोल इसी वेबसाइट में 'लेटेस्ट न्यूज' कॉलम की सूचनाओं से खुल रही है - जहाँ 4 अगस्त 2020 की खबर से पहले 28 सितंबर 2018 की खबर है । यानि संजीव वर्मा अंगदान को लेकर लोगों को शिक्षित करने के लिए वर्चअल प्लेटफॉर्म तैयार करते हैं, और उसमें दो वर्ष तक उनके पास शेयर करने के लिए कोई सूचना या खबर नहीं होती है - और इसे वह 'वैरी हार्ड वर्किंग' कहते हैं ।
संजीव वर्मा इस इंटरसिटी को डीआरआर सार्थक बंसल के साथ मिल कर कर रहे हैं, जो रोट्रेक्ट वर्ष शुरू होने के दो महीने बाद नियम व व्यवस्थानुसार का उल्लंघन करते हुए मनमाने तरीके से डीआरआर बनाये गए हैं, और जिस पर खासा विवाद है । इस इंटरसिटी के आयोजन में संजीव वर्मा के क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के साथ रोटरी क्लब दिल्ली इलीट भी शामिल है, जिसके प्रेसीडेंट अनमोल चावला ने अभी पिछले दिनों रोट्रेक्ट की संस्था सीरिक के प्रेसीडेंट का चुनाव लड़ा था, जिसे जमकर धांधली करके उन्होंने जीता था । धांधली की शिकायत हुई, जाँच हुई, जाँच में आरोपों को सही पाया गया और चुनाव रद्द हुआ । इस तरह, सहज ही देखा/समझा जा सकता है कि 17 अक्टूबर को हो रही इस इंटरसिटी के आयोजन में प्रमुख भूमिका रोटरी व रोट्रेक्ट के नाम पर तरह तरह की धांधली करने वाले लोगों की ही है । इसमें विडंबना और मजे की बात यह है कि इस आयोजन को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा की पूरी पूरी शह और समर्थन है । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों कई क्लब्स के सहयोग तथा उनकी भागीदारी से रोटरी क्लब दिल्ली राजेंद्र प्लेस द्वारा किए जा रहे आयोजन को, जिसमें मुख्य स्पीकर के रूप में शेखर मेहता ने शामिल होने की स्वीकृति दे दी थी, संजीव राय मेहरा ने यह कहते हुए जबर्दस्ती रद्द करवा दिया था कि चूंकि क्लब की सदस्या आभा झा चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवार हैं इसलिए उक्त आयोजन चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन होगा । उन्हीं संजीव राय चौधरी को लेकिन अब यह नहीं दिख रहा है कि 17 अक्टूबर के आयोजन के मुख्य कर्ताधर्ता संजीव वर्मा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के एक अन्य उम्मीदवार अजीत जालान के 'चुनावी मैनेजर' की भूमिका निभाते रहे हैं, और कार्यक्रम का आयोजक क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट अजीत जालान का क्लब है । रोटरी क्लब दिल्ली राजेंद्र प्लेस के आयोजन में चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन देखने वाले संजीव राय मेहरा को रोटरी क्लब दिल्ली साऊथ वेस्ट के आयोजन में चुनावी आचार संहिता का उल्लंघन होता हुआ नहीं नजर आ रहा है - इसे उनकी पक्षपाती और बेईमान रवैये रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।

Wednesday, October 14, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा की मिलीभगत से रोट्रेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3011 के अनमोल चावला का बेईमानीपूर्ण हरकतों से जीता सीरिक प्रेसीडेंट का चुनाव रद्द हुआ; और इसके चलते न सिर्फ डिस्ट्रिक्ट 3011 की, बल्कि रोट्रेक्ट्स मूवमेंट्स की भी भारी बदनामी हुई है

नई दिल्ली । रोट्रेक्ट्स की संस्था सीरिक (एसईएआरआईसी - साऊथ ईस्ट एशियन रोट्रेक्ट इन्फॉर्मेशन सेंटर) के प्रेसीडेंट पद पर रोट्रेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3011 के अनमोल चावला की जीत के फैसले को रद्द कर देने की घोषणा अनमोल चावला के साथ-साथ रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा को भी बदनामी और फजीहत की कालिख का निशाना बनाती है । संजीव राय मेहरा ने अभी तक के अपने करीब तीन महीने के गवर्नर-काल में कई मौकों पर अपनी हरकतों से डिस्ट्रिक्ट तथा रोटरी को लज्जित व शर्मिंदा किया है, और खुद अपना मजाक उड़वाया है । सीरिक प्रेसीडेंट के चुनाव में धांधली करके जीत हासिल करने वाले अनमोल चावला ने रोट्रेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3011 की जो बदनामी करवाई है, उसके लिए संजीव राय मेहरा को भी इसलिए जिम्मेदार माना जा रहा है क्योंकि सीरिक के प्रेसीडेंट पद के लिए अनमोल चावला की उम्मीदवारी वास्तव में संजीव राय मेहरा की ही नाजायज कार्रवाई का परिणाम है । उल्लेखनीय है कि अनमोल चावला पिछले दो वर्षों से सीरिक प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार बनने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन डीआरआर (डिस्ट्रिक्ट रोट्रेक्ट रिप्रेजेंटेटिव) उनके बेईमानी व धांधलीबाज 'स्वभाव' को देखते/समझते हुए उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी नहीं दे रहे थे । उन्हें डर था कि अनमोल चावला अपनी बेईमानियों व धांधलियों से रोट्रेक्ट तथा डिस्ट्रिक्ट का नाम बदनाम ही करेंगे ।
उल्लेखनीय है कि अनमोल चावला पर डीआरआर पद पर रहते हुए पैसों में घपलेबाजी करने के गंभीर आरोप रहे हैं । आरोपों पर अनमोल चावला का रवैया चूँकि 'चोरी और सीनाजोरी' वाला रहा, जिसे देखते हुए पिछले दो वर्षों के डीआरआर ने यही समझा और पाया कि सीरिक प्रेसीडेंट के रूप में भी अनमोल चावला पैसों की घपलेबाजी ही करेंगे और इसलिए उन्हें सीरिक प्रेसीडेंट पद के लिए उम्मीदवार न बनाना ही उचित होगा । मौजूदा वर्ष की डीआरआर यामिनी थरेजा भी जब अनमोल चावला को सीरिक प्रेसीडेंट पद की उम्मीदवारी के लिए हरी झंडी देती हुई नहीं दिखीं, तब अनमोल चावला ने संजीव राय मेहरा से मदद माँगी । रोट्रेक्ट के पैसों की घपलेबाजी के आरोपों से घिरे अनमोल चावला के साथ संजीव राय मेहरा की पता नहीं किस तरह की क्या साँठगाँठ है कि संजीव राय मेहरा ने उनकी मदद करने के लिए यामिनी थरेजा को मनमाने तरीके और मनगढंत आरोपों के साथ डीआरआर पद से हटा दिया, और मनमाने तरीके से एक कठपुतली के रूप में सार्थक बंसल को डीआरआर नियुक्त कर दिया । सार्थक बंसल ने डिस्ट्रिक्ट 3011 के डीआरआर के रूप में सबसे पहला काम सीरिक प्रेसीडेंट पद के लिए अनमोल चावला की उम्मीदवारी को हरी झंडी देने का किया ।
सीरिक प्रेसीडेंट पद के उम्मीदवार के रूप में अनमोल चावला ने उन आशंकाओं व डर को सही साबित किया, जिनके कारण पिछले दो वर्षों से उनकी उम्मीदवारी को हरी झंडी देने से इंकार किया जा रहा था । उम्मीदवार के रूप में अनमोल चावला पर जिस तरह की गड़बड़ियों को करने के आरोप लगे, और जिन आरोपों को सही पाते हुए उनके चुनाव को रद्द कर दिया गया है, उससे लगता है कि बेईमानी व हेराफेरी करने की अनमोल चावला ने जैसे कोई प्रोफेशनल ट्रेनिंग ली हुई है । आरोपों का हवाला देते हुए रोट्रेक्ट्स को लगता है कि सीरिक प्रेसीडेंट तो दूर, अनमोल चावला को रोट्रेक्ट भी नहीं बने रहने देना चाहिए और उनकी सदस्यता तुरंत प्रभाव से खत्म कर देना चाहिए । अनमोल चावला की जीत के फैसले को रद्द करने के फैसले का स्वागत करते हुए कई रोट्रेक्ट्स का कहना है कि चुनाव रद्द करने का फैसला वास्तव में आधा-अधूरा फैसला है, और अनमोल चावला को चुनाव लड़ने के अयोग्य भी घोषित किया जाना चाहिए । रोट्रेक्ट्स का कहना है कि अनमोल चावला की हरकतों के कारण रोट्रेक्ट्स की पहचान व साख को बहुत बुरी चोट पहुँची है; और न सिर्फ रोट्रेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3011 की बल्कि रोट्रेक्ट्स मूवमेंट्स की भारी बदनामी हुई है । इस बदनामी के लिए रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा को भी यह कहते/बताते हुए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है कि संजीव राय मेहरा यदि अनमोल चावला को उम्मीदवार बनवाने के लिए नियमों व व्यवस्था को रौंदते हुए मनमानी न करते, तो रोट्रेक्ट डिस्ट्रिक्ट 3011 को इस मनहूस स्थिति को न देखना पड़ता ।

Tuesday, October 13, 2020

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3054 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर मेहुल राठौर की ताजपोशी करवाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की वैल्यूज के साथ खिलवाड़ करने की जो कोशिश की है, उससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा चढ़ा

कोटा । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए मेहुल राठौर के पक्ष में अन्य उम्मीदवारों पर दबाव डाल/बना कर उनकी उम्मीदवारी वापस करवाने का जो प्रयास किया है, उसका कुछेक उम्मीदवारों के साथ-साथ इलेक्शन कमेटी के सदस्यों ने भी विरोध किया है - और इस विरोध के चलते कल शाम कोटा में बुलाई गई मीटिंग में शामिल होने से उन्होंने इंकार किया । राजेश अग्रवाल ने कल शाम कोटा में सभी उम्मीदवारों तथा इलेक्शन कमेटी के सदस्यों की जो मीटिंग बुलाई थी, उसे गैरकानूनी तथा रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के उल्लंघन के रूप में ही देखा/पहचाना गया है । मजे की बात यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राजेश अग्रवाल ने आज अभी 13वें दिन तक उम्मीदवारों को लेकर नोटीफिकेशन जारी नहीं किया है; नामांकन की अंतिम तारीख 30 सितंबर थी, राजेश अग्रवाल ने लेकिन आज - 13 अक्टूबर तक भी आधिकारिक रूप से डिस्ट्रिक्ट में लोगों को यह जानकारी नहीं दी है कि कौन कौन उम्मीदवार हैं; यह अलग बात है कि अनधिकृत रूप से सभी को उम्मीदवारों के बारे में पता है । इस तरह, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में राजेश अग्रवाल को जो काम करने चाहिए, उन्हें करने में वह कोई दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं - लेकिन चुनावी राजनीति में रोटरी इंटरनेशनल द्वारा तय किए गए नियम-कानूनों की ऐसीतैसी करते हुए मनमानी करने में वह आगे से आगे चल रहे हैं ।
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मनमानी करने तथा डिस्ट्रिक्ट पर अपने उम्मीदवार को थोपने की तैयारी के तहत राजेश अग्रवाल ने कल शाम को कोटा में जो मीटिंग बुलाई, उसमें 9 उम्मीदवारों में से 5 उम्मीदवार ही पहुँचे तथा 4 सदस्यीय इलेक्शन कमेटी के तीन सदस्यों ने भी उक्त मीटिंग में शामिल होने से इंकार किया । एक अकेले इलेक्शन कमेटी के चेयरमैन सीएम बिड़ला उक्त मीटिंग में शामिल हुए । उक्त मीटिंग में सीएम बिड़ला की मौजूदगी को दुर्भाग्य और विडंबना के रूप में देखा/पहचाना गया है । डिस्ट्रिक्ट में हर किसी का मानना और कहना है कि सीएम बिड़ला वरिष्ठ पूर्व गवर्नर हैं, उनसे उम्मीद की जाती है कि वह डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की वैल्यूज का सम्मान रखने/करने में दिलचस्पी लेंगे । वह डिस्ट्रिक्ट के चीफ एडवाईजर भी हैं; इस नाते भी उनसे उम्मीद की जाती है कि डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की वैल्यूज के साथ खिलवाड़ करने की राजेश अग्रवाल की कोशिशों पर वह अंकुश लगाने का काम करेंगे । लोगों का कहना है कि उन्हें लेकिन यह जान/सुन कर बहुत दुःख पहुँचा और निराशा हुई है कि सीएम बिड़ला अंकुश लगाने की बजाये डिस्ट्रिक्ट व रोटरी की वैल्यूज के साथ खिलवाड़ करने की राजेश अग्रवाल की कार्रवाई में उनके सहयोगी तथा मददगार बने हुए हैं ।
कोटा में कल शाम हुई मीटिंग में मौजूद लोगों के हवाले से डिस्ट्रिक्ट के लोगों को पता चला है कि राजेश अग्रवाल और सीएम बिड़ला ने मीटिंग में मौजूद मेहुल राठौर की उम्मीदवारी के प्रति अपना समर्थन दिखाया/जताया तथा बाकी चार उम्मीदवारों पर तरह तरह से अपनी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए दबाव बनाया । लोगों के बीच सुनी जा रही चर्चाओं में यह जिक्र भी आ रहा है कि मीटिंग में नहीं पहुँचे उम्मीदवारों को फोन करके राजेश अग्रवाल ने उन्हें अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के लिए कहा है । कुछेक उम्मीदवारों ने राजेश अग्रवाल को ध्यान दिलाया कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार, उनकी उम्मीदवारी उन्होंने प्रस्तुत नहीं की है बल्कि उनके क्लब ने प्रस्तुत की है और उम्मीदवारी वापस लेने का अधिकार उन्हें नहीं बल्कि उनके क्लब को है । डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में मनमानी करने के चक्कर में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर राजेश अग्रवाल इतने 'अंधे' हो गए हैं कि रोटरी इंटरनेशनल के इस नियम व व्यवस्था को ही भूल गए । मेहुल राठौर को निर्विरोध डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुनवाने/बनवाने के उद्देश्य से अनधिकृत रूप से बुलाई गई कल की मीटिंग में चार उम्मीदवारों तथा इलेक्शन कमेटी के तीन सदस्यों के न पहुँचने से राजेश अग्रवाल की कसरत को फिलहाल तो धक्का लगा नजर आ रहा है, लेकिन इससे डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का पारा जरूर चढ़ गया है । 

Monday, October 12, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आरके शाह के सामने अपनी उम्मीदवारी को अजय बुद्धराज के समर्थन के दावे को लेकर झूठे साबित होने पर दिनेश जैन व उनके समर्थक अजय बुद्धराज से नाराज हुए  

नई दिल्ली । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दिनेश जैन को उम्मीदवार बनवा कर पूर्व गवर्नर अजय बुद्धराज ने लगता है कि मुसीबतों को आमंत्रित कर लिया है, और फजीहत का शिकार हो बैठे हैं । उनके लिए बिडंवना तथा दूसरों के लिए मजे की बात यह है कि उनके लिए मुसीबत व फजीहत का कारण दिनेश जैन ही बन रहे हैं । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर आरके शाह के रवैये से निराश और नाराज दिनेश जैन तथा उनके नजदीकियों ने अजय बुद्धराज पर नया आरोप लगाया है कि अजय बुद्धराज ने अपनी राजनीति के चक्कर में दिनेश जैन को उम्मीदवार तो बनवा दिया है, लेकिन उनकी मदद करने में वह कोई दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं । दिनेश जैन और उनके नजदीकी दरअसल इस बात पर भड़के हुए हैं कि उन्होंने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने के सिलसिले में जब आरके शाह से बात की, और अजय बुद्धराज के समर्थन का दावा किया - तो आरके शाह ने उनसे कहा कि वह इस संदर्भ में अजय बुद्धराज से उन्हें फोन करवा दें । दिनेश जैन की तमाम कोशिशों के बावजूद अजय बुद्धराज लेकिन आरके शाह को फोन करके यह कहने/बताने के लिए राजी नहीं हुए कि दिनेश जैन को उम्मीदवार बनने के लिए उन्होंने शह और हवा दी हुई है । दिनेश जैन तथा उनके नजदीकियों को लगता है कि अजय बुद्धराज के इस रवैये से वह आरके शाह के सामने झूठे साबित हुए हैं ।
असल में, आरके शाह के सामने दिनेश जैन और उनके समर्थकों ने जब यह दावा किया कि उनकी उम्मीदवारी को अजय बुद्धराज का समर्थन है, और उनके कहने पर ही वह उम्मीदवार बने हैं - तो आरके शाह ने उनसे कहा कि दिल्ली के अन्य साथी गवर्नर्स से बात किए बिना अजय बुद्धराज ऐसा कर ही नहीं सकते हैं । ऐसा कहते हुए, आरके शाह ने अप्रत्यक्ष रूप से तथा इशारों इशारों में वास्तव में दिनेश जैन और उनके नजदीकियों व समर्थकों को झूठा बताने का ही काम किया । दिनेश जैन और उनके नजदीकियों व समर्थकों को तो कम-अस-कम ऐसा ही लगा । इसलिए उन्होंने अजय बुद्धराज पर दबाव बनाया कि वह आरके शाह को फोन करके बता दें कि वह झूठ नहीं बोल रहे हैं । अजय बुद्धराज लेकिन फोन करने के लिए राजी नहीं हुए; और इस कारण से दिनेश जैन तथा उनके समर्थकों व नजदीकियों के लिए आरके शाह के सामने अपने को सच्चा साबित करने का मौका नहीं मिल सका । उन्हें लगता है कि अजय बुद्धराज के कारण आरके शाह के सामने वह झूठे साबित हो गए हैं ।
अजय बुद्धराज ने दिनेश जैन के कुछेक नजदीकियों को समझाने का प्रयास किया है कि दिनेश जैन राजनीति तो 'समझ' नहीं रहे हैं, और उनके साथ-साथ अपने लिए भी परेशानी खड़ी कर रहे हैं । अजय बुद्धराज का कहना है कि दिनेश जैन को समझना होगा कि अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने का काम उन्हें खुद करना होगा; अन्य लोग उन्हें सुझाव दे सकते हैं और उनका मार्गदर्शन कर सकते हैं; दिनेश जैन को ऐसे लोगों की निजता का ध्यान रखना होगा । अजय बुद्धराज ने दिनेश जैन के नजदीकियों से कहा/बताया है कि दिनेश जैन को अपनी उम्मीदवारी के लिए प्रत्येक का समर्थन पाने का प्रयास करना होगा - उन प्रत्येक में कई उनके विरोधी भी होंगे; ऐसे में उनका नाम लेने पर वह अपना ही नुकसान करेंगे । अजय बुद्धराज के लिए मुसीबत की बात यह हो रही है कि वह दिनेश जैन और उनके नजदीकियों व समर्थकों को 'राजनीति' सिखाने/पढ़ाने की कोशिश तो बहुत कर रहे हैं, लेकिन दिनेश जैन और उनके समर्थक व नजदीकी पढ़ने/सीखने की कोई कोशिश करते नजर नहीं आ रहे हैं - तथा अजय बुद्धराज के लिए मुसीबतें ही खड़ी कर रहे हैं । अजय बुद्धराज के लिए मुसीबत व फजीहत की बात यह भी हो रही है कि दिनेश जैन और उनके नजदीकी व समर्थक अजय बुद्धराज पर यह आरोप भी लगा रहे हैं कि वह दिनेश जैन की उम्मीदवारी के लिए कुछ कर नहीं रहे हैं और उन्होंने दिनेश जैन को उम्मीदवार बनवा कर फँसवा और दिया है ।

Sunday, October 11, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 डी में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दोबारा हुए चुनाव में दविंदर पाल अरोड़ा की जीत के साथ; डिस्ट्रिक्ट में चल रहे तमाशे पर फिलहाल तो विराम लगा है, लेकिन पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की मुश्किलें अभी कम होती हुई नहीं दिख रही हैं

नई दिल्ली । करीब छह महीने से जारी सी-ग्रेड ड्रामे के बाद आखिरकार डिस्ट्रिक्ट 321 डी को दविंदर पाल अरोड़ा के रूप में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तो मिल गया है, लेकिन इस ड्रामे के चलते फजीहत का शिकार बन रहे पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नरेश अग्रवाल की मुश्किलें अभी खत्म नहीं हुई हैं । हर तरह की तीन-तिकड़म आजमाने के बावजूद मुहँकी खाने वाले सत्ता खेमे के नेता लोग अपनी पराजय के लिए नरेश अग्रवाल को कोस रहे हैं । अभी तक विरोधी खेमे के नेताओं का आरोप रहता था कि सत्ता खेमे की मनमानियों को नरेश अग्रवाल की शह और समर्थन है । नरेश अग्रवाल इसी डिस्ट्रिक्ट के सदस्य और पूर्व गवर्नर हैं । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद पर कब्जे को लेकर पिछले करीब छह महीने से डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारी - पहले पिछले वर्ष के गवर्नर और फिर इस वर्ष के गवर्नर मनमानी करते हुए लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानूनों तथा उसकी व्यवस्था का चीरहरण कर रहे थे, लेकिन मजाल है कि नरेश अग्रवाल के कानों पर जूँ भी रेंगी हो । धृतराष्ट्र बने नरेश अग्रवाल लायनिज्म और लायंस इंटरनेशनल और डिस्ट्रिक्ट के चीरहरण का सारा तमाशा चुपचाप बैठे देखते रहे । विडंबना और दुर्भाग्य की बात यह रही कि चीरहरण के कर्ताधर्ता मल्टीपल काउंसिल में महत्त्वपूर्ण पद भी पा गए । वह तो डिस्ट्रिक्ट के कई-एक पूर्व गवर्नर्स ने हिम्मत नहीं हारी, और वह लगातार लायनिज्म व लायंस इंटरनेशनल व डिस्ट्रिक्ट की इज्जत बचाने तथा न्याय पाने की कोशिशों में लगे रहे, और अंततः जीत हासिल करने में कामयाब हुए । 
उल्लेखनीय है कि पिछले लायन वर्ष में हुए सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में बलराज कुमार विजयी घोषित किए गए थे । उक्त चुनाव लेकिन विवाद व आरोपों के घेरे में रहा और कहा/बताया गया कि तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरमीत सिंह ने मनमानी करते हुए हर स्तर पर नियम-कानून का मजाक बनाया । लायंस इंटरनेशनल में इसे लेकर शिकायत की गई, और लायंस इंटरनेशनल ने शिकायत को सही पाया तथा बलराज कुमार के चुनाव को रद्द करके दोबारा चुनाव करवाने का फैसला सुनाया । दोबारा चुनाव करवाने से बचने को लेकर मौजूदा गवर्नर हरदीप सिंह खरका ने तरह तरह के नाटक किए; सी ग्रेड फिल्म निर्माताओं के आईडियाज को मात देते हुए हरदीप सिंह खरका के नाटकों में सबसे मजेदार प्रसंग वह वीडियो रहा, जिसमें उन्होंने दबावों का जिक्र करते हुए बताया कि यदि किसी भी कारण से उनकी जान चली जाये, तो किस किस को जिम्मेदार माना जाए । लेकिन तमाम तमाशों/नाटकों के बावजूद, लायंस इंटरनेशनल के आदेश व निर्देश का पालन करते हुए चुनाव हुआ और उस चुनाव में वोटिंग अधिकार रखने वाले 31 गवर्नर्स में से 23 गवर्नर्स शामिल हुए; डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हरदीप सिंह खरका तथा निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर गुरमीत सिंह इस चुनावी प्रक्रिया में लेकिन शामिल नहीं हुए । चुनाव में उम्मीदवार के रूप में अकेले दविंदर पाल अरोड़ा का नाम प्रस्तावित हुआ और वह एकमत से विजयी घोषित हुए । सत्ता खेमे के नेताओं को उम्मीद थी कि नरेश अग्रवाल अपने प्रभाव से दविंदर पाल अरोड़ा को विजयी घोषित करने वाले चुनावी नतीजे को लायंस इंटरनेशनल कार्यालय में 'स्वीकार' नहीं होने देंगे । लेकिन लायंस इंटरनेशनल ने दविंदर पाल अरोड़ा को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में स्वीकार करके उनके मंसूबों पर पानी फेर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट 321 डी में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव को लेकर पिछले करीब छह महीनों में जो तमाशा हुआ है, उसके चलते सबसे ज्यादा फजीहत नरेश अग्रवाल की हुई है । डिस्ट्रिक्ट में और मल्टीपल में कई लोगों को मानना और कहना है कि नरेश अग्रवाल चाहते और कोशिश करते, तो इतना सब तमाशा नहीं होता; लेकिन नरेश अग्रवाल ने कोई प्रयास नहीं किया । उनके नजदीकियों का कहना है कि वह ऐसे ही हैं, वह कोई स्टैंड नहीं लेते हैं, और जो हो रहा होता है उसे चुपचाप बैठे देखते रहते हैं - और इस तरह अधिकतर मामलों में अपनी फजीहत करवाते रहते हैं । डिस्ट्रिक्ट 321 डी में हुए हालिया तमाशे को लेकर उनके एक नजदीकी ने जो किस्सा सुनाया है, वह खासा मजेदार है : मामले में नरेश अग्रवाल का समर्थन पाने के उद्देश्य से एक दिन सत्ता पक्ष के नेता लोग उनके घर गए और अपनी तरह से उन्होंने मामले को बयान किया । नरेश अग्रवाल ने उनकी बात ध्यान से सुनी और बोले कि आप ठीक कह रहे हैं, यू आर राइट; यू आर एब्सोल्यूटली राइट; यू आर कम्प्लीटली राइट ! अगले दिन विरोधी खेमे के नेता उनके घर पहुँचे और उन्होंने अपनी तरह से मामले को बयान किया । नरेश अग्रवाल ने उनकी बात ध्यान से सुनी और बोले कि आप ठीक कह रहे हैं, यू आर राइट; यू आर एब्सोल्यूटली राइट; यू आर कम्प्लीटली राइट ! नरेश अग्रवाल के इस रवैये को दोनों दिन उनकी पत्नी नविता अग्रवाल ने देखा तो वह थोड़ा नाराज हुईं; उन्होंने कहा 'नरेश, आप इंटरनेशनल प्रेसीडेंट रहे हो, लोग आपकी तरफ इस उम्मीद से देखते हैं कि आप सही को सही और गलत को गलत कहेंगे, आप स्टैंड लेंगे; आपको स्टैंड लेना चाहिए ।' नरेश अग्रवाल ने उनकी बात को ध्यान से सुना और बोले - 'नविता, आप ठीक कह रही हैं; यू आर राइट; यू आर एब्सोल्यूटली राइट; यू आर कम्प्लीटली राइट !' नविता अग्रवाल ने यह सुन कर सिर पकड़ लिया । दरअसल, इसी रवैये के चलते, डिस्ट्रिक्ट 321 डी में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद को लेकर चल रहे मामले में फिलहाल तो विराम लग गया है, लेकिन नरेश अग्रवाल की मुश्किलें अभी कम होती हुई नहीं दिख रही हैं ।

Friday, October 9, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट 321 में पूर्व चेयरमैन पारस अग्रवाल की अपने अकाउंट में गड़बड़ी के आरोपों की जाँच को रोकने की कोशिश ने उनके अकाउंट को संदेहजनक बनाने का वह काम कर दिया है, जिसे मधु सिंह लगातार सक्रियता के बावजूद भी नहीं कर पा रही थीं  

आगरा । पूर्व मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पारस अग्रवाल ने अपने अकाउंट को लेकर चल रहे विवाद में लगता है कि खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है, और अपने आपको ज्यादा बड़ी मुसीबत में फँसा लिया है ? पारस अग्रवाल के नजदीकियों और शुभचिंतकों का ही कहना है कि निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मधु सिंह की अधिकृत शिकायत पर, लायंस इंटरनेशनल के नियम-कानून के तहत मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में जाँच कमेटी बनने की प्रक्रिया शुरू होने के बाद पारस अग्रवाल ने अधिकृत शिकायत को निरस्त करने की माँग करके मामले को पूरी तरह से पलटते हुए लोगों के बीच गड़बड़ी के संदेहों को बढ़ा दिया है, जिसके चलते मधु सिंह के आरोपों को गंभीरता से देखा जाने लगा है और मधु सिंह के आरोपों को जैसे नया जीवन मिल गया है । पारस अग्रवाल की उक्त माँग आने से पहले तक सीन यह बन गया था कि मधु सिंह के आरोपों पर मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने दिलचस्पी खो दी थी, और लोग समझने/मानने लगे थे कि मधु सिंह किसी निजी खुन्नसबाजी में पारस अग्रवाल को परेशान और बदनाम कर रही हैं । मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट में भी जाँच की जो कार्रवाई होनी थी, उसके 'समीकरण' भी पारस अग्रवाल के हक में थे, और पक्ष-विपक्ष के लोग मान रहे थे कि उक्त जाँच में पारस अग्रवाल को क्लीन चिट मिल जायेगी । लेकिन पारस अग्रवाल ने अधिकृत शिकायत को रद्द करने की माँग करके तथा शुरू हुई जाँच प्रक्रिया को रुकवा कर एक मरते हुए मामले को फिर से जिंदा कर दिया है ।
दरअसल, लोगों के बीच सवाल पैदा हुआ है कि पारस अग्रवाल जाँच को रोकना क्यों चाहते हैं ? इसी से लोगों के बीच संदेह बढ़ा है कि जरूर ही उनके अकाउंट में बड़ा झोलझाल है, और इसीलिए जाँच की प्रक्रिया के शुरू होने ने उन्हें डरा दिया है और वह जाँच को रोकने की कोशिशों में जुट गए हैं । पारस अग्रवाल के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि जाँच को रोकने के लिए उन्होंने जो कारण बताया है, वह लोगों को नियमानुसार उचित नहीं लग रहा है और उसे एक बहानेबाजी के रूप में ही देखा/पहचाना जा रहा है । पारस अग्रवाल ने कारण बताया है कि अकाउंट के पास होने के बाद शिकायत करने के लिए जो समयसीमा तय है, मधु सिंह की शिकायत उस समयसीमा के समाप्त होने के बाद आई है, इसलिए उनकी शिकायत को अमान्य किया जाना चाहिए और उसके आधार पर कोई जाँच नहीं होना चाहिए । लेकिन पारस अग्रवाल जिस समयसीमा का वास्ता दे रहे हैं, वह अकाउंट के 'फाइनली' पास होने पर लागू होता है - अकाउंट फाइनली मल्टीपल कन्वेंशन में पास होते हैं, जो अभी हुई ही नहीं है । अभी तो उनके अकाउंट को मल्टीपल बोर्ड ने पास किया है, फाइनली पास तो उन्हें तब माना/कहा जायेगा, जब वह कन्वेंशन में पास होंगे । इसलिए जिस नियम का हवाला देकर पारस अग्रवाल ने बचने की कोशिश की है, वह नियम अभी लागू ही नहीं होता है । लोगों को लगता है कि पारस अग्रवाल ने सोचा होगा कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद पर क्षितिज शर्मा नाम की जो एक कठपुतली है, वह वही करेगी जैसा वह कहेंगे/चाहेंगे - लेकिन पारस अग्रवाल ने यह नहीं सोचा होगा कि जाँच से बचने की उनकी कोशिश उनकी मुश्किलों को कम करने की बजाये और बढ़ाने का ही काम करेगी ।
पारस अग्रवाल के अकाउंट का मामला दरअसल परसेप्शन का मामला है । अकाउंट में झोलझाल यदि साबित भी हो जाता है, तो क्या होगा ? लायंस व्यवस्था में सजा का कोई प्रावधान तो है नहीं ! ऐसे में, मधु सिंह की कोशिश इतनी ही लगती है कि वह पारस अग्रवाल को बदनाम करें, और इसके लिए वह लोगों के बीच संदेह तो पैदा कर ही दें । मधु सिंह ने इसके लिए बहुत प्रयास किए, लेकिन उनके प्रयास सफल नहीं हो रहे थे - और उनके आरोपों में दिलचस्पी व मजे लेने वाले लोग भी निराश हो चले थे । उनकी निराशा मधु सिंह द्वारा मल्टीपल में अधिकृत शिकायत दर्ज करवाने तथा उनकी शिकायत पर जाँच की प्रक्रिया शुरू होने से भी दूर नहीं हुई । हर किसी को लग रहा था कि मल्टीपल में होने वाली जाँच को पारस अग्रवाल 'मैनेज' कर लेंगे, और मधु सिंह की यह कोशिश भी व्यर्थ ही जायेगी । लेकिन पारस अग्रवाल ने मधु सिंह की शिकायत को रद्द करने का आवेदन दे कर अपने अकाउंट को संदेहजनक बना लिया है - और इस तरह जो काम, मधु सिंह लगातार सक्रियता दिखा/बना कर नहीं कर पा रही थीं, उसे खुद पारस अग्रवाल ने एक गलत कदम उठा कर दिया है । पारस अग्रवाल जाँच तो रुकवा लेंगे, लेकिन इससे उन्होंने मल्टीपल के लोगों के बीच यह संदेह और सवाल पैदा कर दिया है कि उनके अकाउंट में यदि कोई झोलझाल नहीं है, तो वह जाँच से डर क्यों रहे हैं ? 

Thursday, October 8, 2020

चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के लिए बालकृष्ण अग्रवाल ने अपनी उम्मीदवारी तो जता दी है, लेकिन उनके नजदीकियों का ही कहना है कि उनके लिए वोट जुटाना खासा मुश्किल ही होगा

सूरत । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए तैयारी कर रहे बालकृष्ण अग्रवाल अभी हार्दिक शाह की भी उम्मीदवारी के आ जाने के झटके से संभल भी नहीं पाए थे, कि सेंट्रल काउंसिल के अन्य उम्मीदवारों के सूरत में दस्तक देने की आहटों ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है । बालकृष्ण अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट जुटाने में जो संभावित उम्मीदवार दिलचस्पी ले रहे हैं, उनमें से अधिकतर की निगाह मारवाड़ी समुदाय के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर है - जिनके भरोसे बालकृष्ण अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल में जाने की तैयारी कर रहे हैं । ऐसे में, बालकृष्ण अग्रवाल के सामने अपने समर्थन आधार को ही बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है । बालकृष्ण अग्रवाल को सबसे गंभीर चुनौती सुनील पटोदिया से मिलती दिख रही है । सूरत में सुनील पटोदिया के कई समर्थक व शुभचिंतक हैं, जो उनके सरल तथा काम आने वाले व्यवहार से प्रभावित हैं, और उनकी उम्मीदवारी की खबर से खासे उत्साहित हैं । मजे की बात यह है कि सुनील पटोदिया ने अभी सूरत में कोई चुनावी संपर्क नहीं किया है, लेकिन उन्हें जानने वाले उनकी उम्मीदवारी की खबर से ही उनकी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बातें करने लगे हैं ।
सुनील पटोदिया के अलावा अनिल भंडारी, धीरज खंडेलवाल तथा दुर्गेश काबरा की भी सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खास दिलचस्पी है; और यह सभी कुल मिलाकर बालकृष्ण अग्रवाल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करते लग रहे हैं । हालाँकि बालकृष्ण अग्रवाल के नजदीकी रहे लोगों का कहना है कि बालकृष्ण अग्रवाल को कोई दूसरा नुकसान नहीं पहुँचायेगा - वह खुद ही खुद को नुकसान पहुंचायेंगे; और पहुँचायेंगे क्या, पहुँचा चुके हैं । बालकृष्ण अग्रवाल के नजदीकी रहे लोगों के अनुसार, वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने जाने के बाद बालकृष्ण अग्रवाल का रवैया व व्यवहार बिलकुल ही बदल गया, और वह अपने नजदीकियों व समर्थकों तक को अपने से दूर कर बैठे हैं । बालकृष्ण अग्रवाल के पार्टनर रहे लोग तक उनके खिलाफ बातें करते सुने जा रहे हैं । ऐसे में, बालकृष्ण अग्रवाल के लिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाना खासा मुश्किल ही होगा । विडंबना और मजे की बात लेकिन यह देखी/समझी जा रही है कि बालकृष्ण अग्रवाल की मुश्किल के चलते हार्दिक शाह को कोई फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है । 
हार्दिक शाह के सामने सूरत के बाहर से वोट जुटाने की बड़ी चुनौती है । दरअसल सिर्फ सूरत के वोटों के भरोसे तो सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं जीता जा सकता है । जय छैरा पिछले तीन टर्म से इसलिए चुनाव जीतते रहे, क्योंकि उन्हें सूरत के बाहर से खूब वोट मिलते रहे हैं । जय छैरा को सूरत में भी एकतरफा वोट मिले, और सूरत में उन्हें किसी दूसरे उम्मीदवार ने डिस्टर्ब नहीं किया - तथा उनके उम्मीदवार रहते हुए बाहर के उम्मीदवारों ने भी सूरत से दूरी बना कर रखी । अब लेकिन ऐसी स्थिति नहीं रहेगी । प्रत्येक चुनाव परसेप्शन पर भी निर्भर करता है । सूरत में सेंट्रल काउंसिल के लिए दो उम्मीदवार होने से सूरत के लोगों के बीच यह परसेप्शन अभी से बनने लगा है कि दो उम्मीदवार होने से सेंट्रल काउंसिल में सूरत के प्रतिनिधित्व की संभावना पर ग्रहण लग गया है । इस परसेप्शन के चलते बालकृष्ण अग्रवाल तथा हार्दिक शाह के लिए वोट जुटाना और मुश्किल हो गया है, क्योंकि वोट देने वाले अधिकतर लोग ऐसे उम्मीदवारों को वोट देने से बचते हैं, जिनके जीतने की संभावना पर पहले से ही सवाल उठ खड़े हुए हों । इस स्थिति ने बाहर के, खासकर मुंबई के उम्मीदवारों को सूरत में समर्थन जुटाने के लिए और ज्यादा प्रेरित किया है, जिसके कारण सूरत में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच चुनावी राजनीति के समीकरण और भी दिलचस्प हो गए हैं ।

Wednesday, October 7, 2020

रोटरी इंटरनेशनल जोन 7 में डायरेक्टर पद पर महेश कोटबागी की चुनावी जीत से रोटरी में शेखर मेहता के 'रुतबे' में आए उछाल में, डिस्ट्रिक्ट 3012 के सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता मिलने की उम्मीद बढ़ी    

नोएडा । महेश कोटबागी के इंटरनेशनल डायरेक्टर चुने जाने से इंटरनेशनल प्रेसीडेंट शेखर मेहता के 'रुतबे' में जो वृद्धि हुई है, उससे डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की मान्यता मिलने की उम्मीद जाग उठी है । सतीश सिंघल वर्ष 2017-18 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर थे, और नोएडा रोटरी ब्लड बैंक का प्रेसीडेंट पद भी सँभाले हुए थे । नोएडा रोटरी ब्लड बैंक में घपलेबाजी के आरोपों के  चलते उन्हें डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का पद खोना पड़ा था, और फिर उन्हें पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में भी मान्यता नहीं मिली । सतीश सिंघल पूर्व गवर्नर की मान्यता पाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे थे । इस मामले में, इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद की तरफ बढ़ते शेखर मेहता से सतीश सिंघल को उम्मीद बनी थी । चर्चा सुनी गई थी कि शेखर मेहता ने रोटरी फाउंडेशन की ग्रांट की रकम में घपलेबाजी के आरोप में रोटरी इंटरनेशनल से सजा पाए डिस्ट्रिक्ट 3054 के पूर्व गवर्नर अनिल अग्रवाल की सजा को कम करवाने के साथ साथ सतीश सिंघल के मामले को भी प्रायरिटी में रखा हुआ था । करीब चार महीने पहले अनिल अग्रवाल का काम तो बन गया था, और उनकी सजा कम कर दी गई थी - लेकिन सतीश सिंघल के मामले में उस समय फैसला नहीं हो सका था । 
उसके बाद, शेखर मेहता खुद मुसीबत में फँस गए । रोटरी इंटरनेशनल बोर्ड में कुछेक ऐसे फैसले हुए, जिन्होंने शेखर मेहता की 'हैसियत' को चोट पहुँचाने का काम किया और ऐसा लगा कि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी/इलेक्ट होने के बावजूद रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में शेखर मेहता की वैसी 'हैसियत' नहीं बन पाई है, जैसी कि बननी/होनी चाहिए । दरअसल, कई घटनाएँ ऐसी होती हैं जो किसी पदाधिकारी की स्थिति पर तो कोई असर नहीं डालती हैं, लेकिन उसके 'रुतबे' को प्रभावित जरूर करती हैं - और उससे उसकी 'हैसियत' निर्धारित होती है । शेखर मेहता इसी चीज के शिकार बने । ऐसे में, जोन 7 में दोबारा होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव के नतीजे का शेखर मेहता के 'रुतबे' के संदर्भ में खास महत्त्व था । जोन 7 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर महेश कोटबागी की जीत से शेखर मेहता की स्थिति पर 'तकनीकी रूप से' कोई असर नहीं पड़ा है, लेकिन महेश कोटबागी की जीत ने पिछले कुछ समय से दबाव झेल रहे शेखर मेहता को बड़ी राहत दी है - और उनके 'इकबाल' को बढ़ाया है । 

महेश कोटबागी की चुनावी जीत से रोटरी की राजनीति और व्यवस्था में शेखर मेहता के 'रुतबे' में जो उछाल आया है, उसमें सतीश सिंघल के सिफारिशियों को सतीश सिंघल का काम बनता नजर आ रहा है । शेखर मेहता के यहाँ सतीश सिंघल की वकालत करने वाले लोगों का कहना है कि अभी तक जब शेखर मेहता खुद मुसीबत में फँसे थे, तो उनसे सतीश सिंघल के मामले में कुछ करने के लिए कहना मुश्किल हो रहा था; लेकिन अब जोन 7 में दोबारा हुए इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी नतीजे के चलते हालात बदल गए हैं - और उम्मीद की जानी चाहिए कि शेखर मेहता जल्दी ही डिस्ट्रिक्ट 3054 के अनिल अग्रवाल की तरह डिस्ट्रिक्ट 3012 के सतीश सिंघल का काम भी बनवा देंगे - और सतीश सिंघल को पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में मान्यता मिल जाएगी ।

Tuesday, October 6, 2020

रोटरी इंटरनेशनल जोन 7 में डायरेक्टर पद के चुनाव में महेश कोटबागी की जीत के साथ, रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में शेखर मेहता के दबदबे के बढ़ने से, जोन 4 की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद की चुनावी राजनीति में शेखर मेहता के नजदीकियों का हौंसला बढ़ा

नई दिल्ली । महेश कोटबागी के इंटरनेशनल डायरेक्टर चुने जाने से देश की रोटरी की चुनावी राजनीति में इंटरनेशनल प्रेसीडेंट इलेक्ट शेखर मेहता का 'इकबाल' एक बार फिर स्थापित होता हुआ दिखा है । रोटरी की राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले बड़े नेताओं का भी कहना है कि जोन 7 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए दोबारा हुए चुनाव में महेश कोटबागी की जीत की खुद महेश कोटबागी को जितनी जरूरत थी, उससे कहीं ज्यादा जरूरत शेखर मेहता को थी । माना/समझा जा रहा है कि महेश कोटबागी की जीत के जरिये शेखर मेहता ने उस चोट का बदला ले लिया है, जो इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए पहले हुए चुनाव में जीते रवि वदलमानी की जीत को निरस्त करके उन्हें पहुँचाई गई थी । दरअसल रवि वदलमानी की जीत को निरस्त करने के फैसले तथा अन्य कुछेक घटनाओं के चलते रोटरी की राजनीति के खिलाड़ियों के बीच शेखर मेहता की स्थिति कमजोर हो चली थी, जिसका नतीजा यह देखने को मिल रहा है कि वर्षों से उनके साथ जुड़े रहे कई महत्त्वाकांक्षी रोटेरियंस ने दूसरे ठिकानों पर जगहें खोजने/बनाने की कोशिशें तेज कर दी हैं । ऐसे रोटेरियंस में लोगों को सबसे ज्यादा हैरान करने वाला उदाहरण डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल का लगा/दिखा है, जो वर्षों से शेखर मेहता के साथ लगे रहे हैं - लेकिन जो अब राजु सुब्रमणियन की 'मदद' करते हुए पूर्व प्रेसीडेंट केआर रविंद्रन के नजदीक होने की कोशिश करने में लगे नजर आ रहे हैं । 
दरअसल रोटरी की राजनीति और व्यवस्था में शेखर मेहता को केआर रविंद्रन से टक्कर और चुनौती मिलती दिख रही है, और देश में रोटरी की राजनीति इन्हीं दोनों के बीच विभाजित होती लग रही है । इसीलिए जिस किसी को शेखर मेहता के यहाँ अपनी दाल गलती हुई नहीं दिखती है, वह अपनी दाल की पतीली लेकर केआर रविंद्रन के दरवाजे पहुँच जाता है । पिछले दिनों घटी कुछेक घटनाओं ने शेखर मेहता की स्थिति को कमजोर होते दिखाया, तो उनके नजदीक जुड़े मतलबी रोटेरियंस के बीच भगदड़ मची देखी गई । इस भगदड़ का सबसे ज्यादा असर जोन 4 में होने वाले इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी समीकरणों पर पड़ता नजर आया । जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर के लिए जो भी उम्मीदवार हैं, उनमें से कुछेक को शेखर मेहता के तथा कुछेक को केआर रविंद्रन के नजदीकियों के रूप में देखा/पहचाना जाता है । शेखर मेहता जब इंटरनेशनल प्रेसीडेंट नॉमिनी चुने गए थे, तब विनोद बंसल ने उनके साथ अपनी नजदीकियत दिखाते/जताते हुए दावा करना शुरू किया था कि बस, अब तो उनका इंटरनेशनल डायरेक्टर बनना पक्का हो गया है । लेकिन जल्दी ही दूसरों के साथ साथ खुद उन्हें भी समझ में आ गया कि शेखर मेहता के यहाँ रंजन ढींगरा और अशोक गुप्ता की स्थिति उनसे मजबूत है । विनोद बंसल ने हालाँकि तरह तरह से शेखर मेहता के यहाँ अपनी स्थिति नंबर वन की बनाने की कोशिश तो बहुत की, लेकिन उन्हें अपनी दाल गलती हुई दिखी नहीं ।
इस बीच शेखर मेहता को रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में कुछेक तगड़े वाले झटके लगे, जिनसे उनकी स्थिति को कमजोर होते हुए देखा/पहचाना गया - और केआर रविंद्रन का पलड़ा भारी होते हुए समझा गया । रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में शेखर मेहता को कमजोर पड़ते देख विनोद बंसल ने अपनी दाल की पतीली शेखर मेहता के यहाँ से उठा कर केआर रविंद्रन के दरवाजे रखने की तैयारी शुरू कर दी, और इसके लिए उन्होंने इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनावी मुकाबले में एक प्रमुख उम्मीदवार के रूप में देखे जा रहे टीएन सुब्रमणियन उर्फ राजु सुब्रमनियन का दामन पकड़ा है । विनोद बंसल और उनके नजदीकियों ने जैसे तय कर लिया है कि यदि वह इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के मुकाबले से बाहर हो रहे हैं, तो वह डिस्ट्रिक्ट के दूसरे उम्मीदवारों को हराने/हरवाने की कोशिश करेंगे । इसी रणनीति के तहत देखने में आ रहा है कि डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार का चयन करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के लिए विनोद बंसल के उम्मीदवार विनय भाटिया तथा विनय भाटिया को जितवाने की जिम्मेदारी ले बैठे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजीव राय मेहरा आजकल राजु सुब्रमणियन को प्रमोट कर रहे हैं । संजीव राय मेहरा ने अपने नए जीएमएल में अंतिम पृष्ठ पर राजु सुब्रमणियन को लेकर एक बड़ा आलेख प्रकाशित किया है । विनय भाटिया व संजीव राय मेहरा को हालाँकि यह डर भी है कि राजु सुब्रमणियन का समर्थन करने के कारण डिस्ट्रिक्ट में उन पर डिस्ट्रिक्ट के साथ बेईमानी व धोखेबाजी करने का आरोप लगेगा, इसलिए उन्होंने आपने आप को दीपक कपूर के समर्थकों के रूप में दिखाना/जताना शुरू किया, लेकिन दीपक कपूर ने उन्हें हड़का दिया कि अपने धोखेबाजी के काम में वह उनका नाम क्यों घसीट रहे हैं ? दीपक कपूर ने नोमीनेटिंग कमेटी के लिए दीपक तलवार पर भरोसा जता कर विनोद बंसल तथा विनय भाटिया की कोशिशों को और झटका दिया है ।
महेश कोटबागी की इंटरनेशनल डायरेक्टर पद पर हुई जीत के साथ रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में शेखर मेहता की स्थिति के फिर से मजबूत होने के जो संकेत मिले हैं, उससे जोन 4 में इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के चुनाव को लेकर बनने वाले समीकरणों के शेखर मेहता खेमे के उम्मीदवारों के पक्ष में संयोजित होने की संभावना को और बल मिला है । उम्मीद की जा रही है कि शेखर मेहता की टीम के सदस्यों ने जिस तरह से जोन 7 में काम किया है, वह वैसे ही जोन 4 में भी काम करेगी - इसलिए भी करेगी, ताकि रोटरी की राजनीति व व्यवस्था में शेखर मेहता का पलड़ा भारी रहे ।

Saturday, October 3, 2020

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अशोक मनचंदा की सक्रियता को देख, पूर्व गवर्नर अजय बुद्धराज ने दिनेश जैन को चुनावी मैदान में उतार तो दिया - लेकिन दिनेश जैन ने अपने आप को उनका उम्मीदवार बता कर उनकी मुसीबत बढ़ा दी है

नई दिल्ली । दिनेश जैन ने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशें शुरू करके तथा अपनी उम्मीदवारी को पूर्व गवर्नर अजय बुद्धराज के समर्थन का दावा करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा कर दी है । दिनेश जैन के दावे पर लोगों ने अजय बुद्धराज से पूछना शुरू कर दिया है कि दिल्ली के दूसरे पूर्व गवर्नर्स से विचार-विमर्श किए बिना उन्होंने सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए अपना उम्मीदवार क्यों खड़ा कर दिया है ? अजय बुद्धराज के लिए इस सवाल का जबाव देना मुश्किल बना हुआ है - दरअसल वह समझ रहे हैं कि यदि वह दिनेश जैन को अपना उम्मीदवार कहने/बताने से इंकार करते हैं, तो दिनेश जैन की संभावनाओं को चोट पहुँचायेंगे; और यदि 'हाँ' कहते हैं, तो अपनी अलग राजनीति करने के दोषी ठहराए जायेंगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के बीच यह अंडरस्टैंडिंग बनी है कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार का फैसला दिल्ली के पूर्व गवर्नर्स आपस में सहमति बना कर घोषित करेंगे । ऐसे में, दिनेश जैन ने अजय बुद्धराज की हरी झंडी मिलने के बाद उम्मीदवार बनने की बात कह कर डिस्ट्रिक्ट में उबाल लाने के साथ-साथ अजय बुद्धराज के लिए मुसीबत भी खड़ी कर दी है ।
अजय बुद्धराज के नजदीकियों का कहना/बताना है कि अजय बुद्धराज ने तो दिनेश जैन को दिल्ली के सभी पूर्व गवर्नर्स तथा वरिष्ठ व सक्रिय लायन सदस्यों व नेताओं से मिलने-जुलने और बात करने का सुझाव दिया था, जिससे कि उनकी उम्मीदवारी को लेकर एक सकारात्मक माहौल बने - लेकिन दिनेश जैन ने अजय बुद्धराज के समर्थन की बात कहते/बताते हुए सारी पोल खोल दी और बात का बतंगड़ बना दिया । यहाँ यह याद करना प्रासंगिक होगा कि दिनेश जैन ने कुछेक वर्ष पहले भी उम्मीदवार बनने की कोशिश की थी, लेकिन राजनीतिक अनुभवहीनता के कारण उन्होंने ऐसी बातें और हरकतें कीं कि माहौल उनके खिलाफ हो गया, और फिर अजय बुद्धराज ने भी उनके समर्थन से हाथ पीछे खींच लिए - और तब दिनेश जैन ने चुप लगा लेने में ही अपनी भलाई देखी थी । दिनेश जैन को जानने वाले लोगों का मानना और कहना है कि दिनेश जैन एक अच्छी भावना और सोच रखने वाले व्यक्ति हैं, विवादों में पड़ने से बचते हैं और जेनुइन तरीके से काम करने की कोशिश करते हैं; लेकिन उनकी समस्या यह है कि वह एक उम्मीदवार की तरह 'व्यवहार' करना नहीं जानते हैं - और न सीखना चाहते हैं । लोगों का कहना है कि दिनेश जैन को बहुत पहले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बन जाना चाहिए था, लेकिन अपनी एक कमजोरी के कारण उन्हें अभी भी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए इंतजार करना पड़ रहा है ।
दिनेश जैन के शुभचिंतक इसके लिए अजय बुद्धराज को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । उनका कहना है कि अजय बुद्धराज को जब दिनेश जैन की खूबियों और कमजोरियों के बारे में अच्छे से पता है, तो उन्हें दिनेश जैन को ठीक से ट्रेनिंग देना चाहिए थी । लोगों के बीच चर्चा है कि अशोक मनचंदा को उम्मीदवार के रूप में सक्रिय देख कर अजय बुद्धराज ने जल्दबाजी में दिनेश जैन को चुनावी मैदान में उतार दिया है । अशोक मनचंदा चूँकि पूर्व गवर्नर दीपक टुटेजा के क्लब के सदस्य हैं, इसलिए उन्हें दीपक टुटेजा के उम्मीदवार के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । अशोक मनचंदा भी कुछेक वर्ष पहले उम्मीदवार बनने की कोशिश कर चुके हैं, लेकिन दिनेश जैन की ही तरह व्यावहारिकता के अभाव में वह अपनी उम्मीदवारी को आगे नहीं बढ़ा सके थे । अब की बार हालाँकि वह 'ठीक से चलते' दिख रहे हैं । ओंकार सिंह रेनु भी उम्मीदवार के रूप में सक्रिय हैं । उनकी स्थिति लेकिन बड़ी विचित्र है - लोगों को उनसे कोई शिकायत नहीं है, लेकिन उनके समर्थक पूर्व गवर्नर्स से बहुतेरी शिकायतें हैं, और इस कारण से उनका काम बनता हुआ दिख नहीं रहा है । माना/समझा जा रहा है कि ऐसे में अजय बुद्धराज को डर हुआ कि कहीं बाजी अशोक मनचंदा के हाथ न लग जाए - इसलिए उन्होंने आनन फानन में दिनेश जैन को उम्मीदवार के रूप में मैदान में उतार दिया है । दिनेश जैन ने अपनी उम्मीदवारी के लिए समर्थन जुटाने की कोशिशों को शुरू करते ही, अपने आप को अजय बुद्धराज का उम्मीदवार बता कर - फिलहाल अजय बुद्धराज के लिए मुसीबत बढ़ा दी है ।