सूरत । चार्टर्ड एकाउंटेंट्स इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल की उम्मीदवारी के लिए तैयारी कर रहे बालकृष्ण अग्रवाल अभी हार्दिक शाह की भी उम्मीदवारी के आ जाने के झटके से संभल भी नहीं पाए थे, कि सेंट्रल काउंसिल के अन्य उम्मीदवारों के सूरत में दस्तक देने की आहटों ने उनकी मुश्किलों को और बढ़ा दिया है । बालकृष्ण अग्रवाल के लिए मुसीबत की बात यह है कि सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वोट जुटाने में जो संभावित उम्मीदवार दिलचस्पी ले रहे हैं, उनमें से अधिकतर की निगाह मारवाड़ी समुदाय के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स पर है - जिनके भरोसे बालकृष्ण अग्रवाल सेंट्रल काउंसिल में जाने की तैयारी कर रहे हैं । ऐसे में, बालकृष्ण अग्रवाल के सामने अपने समर्थन आधार को ही बचाने की चुनौती आ खड़ी हुई है । बालकृष्ण अग्रवाल को सबसे गंभीर चुनौती सुनील पटोदिया से मिलती दिख रही है । सूरत में सुनील पटोदिया के कई समर्थक व शुभचिंतक हैं, जो उनके सरल तथा काम आने वाले व्यवहार से प्रभावित हैं, और उनकी उम्मीदवारी की खबर से खासे उत्साहित हैं । मजे की बात यह है कि सुनील पटोदिया ने अभी सूरत में कोई चुनावी संपर्क नहीं किया है, लेकिन उन्हें जानने वाले उनकी उम्मीदवारी की खबर से ही उनकी उम्मीदवारी के लिए काम करने की बातें करने लगे हैं ।
सुनील पटोदिया के अलावा अनिल भंडारी, धीरज खंडेलवाल तथा दुर्गेश काबरा की भी सूरत के चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच खास दिलचस्पी है; और यह सभी कुल मिलाकर बालकृष्ण अग्रवाल की उम्मीदवारी को नुकसान पहुँचाने का काम करते लग रहे हैं । हालाँकि बालकृष्ण अग्रवाल के नजदीकी रहे लोगों का कहना है कि बालकृष्ण अग्रवाल को कोई दूसरा नुकसान नहीं पहुँचायेगा - वह खुद ही खुद को नुकसान पहुंचायेंगे; और पहुँचायेंगे क्या, पहुँचा चुके हैं । बालकृष्ण अग्रवाल के नजदीकी रहे लोगों के अनुसार, वेस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चुने जाने के बाद बालकृष्ण अग्रवाल का रवैया व व्यवहार बिलकुल ही बदल गया, और वह अपने नजदीकियों व समर्थकों तक को अपने से दूर कर बैठे हैं । बालकृष्ण अग्रवाल के पार्टनर रहे लोग तक उनके खिलाफ बातें करते सुने जा रहे हैं । ऐसे में, बालकृष्ण अग्रवाल के लिए सेंट्रल काउंसिल की अपनी उम्मीदवारी के लिए वोट जुटाना खासा मुश्किल ही होगा । विडंबना और मजे की बात लेकिन यह देखी/समझी जा रही है कि बालकृष्ण अग्रवाल की मुश्किल के चलते हार्दिक शाह को कोई फायदा होता हुआ नहीं दिख रहा है ।
हार्दिक शाह के सामने सूरत के बाहर से वोट जुटाने की बड़ी चुनौती है । दरअसल सिर्फ सूरत के वोटों के भरोसे तो सेंट्रल काउंसिल का चुनाव नहीं जीता जा सकता है । जय छैरा पिछले तीन टर्म से इसलिए चुनाव जीतते रहे, क्योंकि उन्हें सूरत के बाहर से खूब वोट मिलते रहे हैं । जय छैरा को सूरत में भी एकतरफा वोट मिले, और सूरत में उन्हें किसी दूसरे उम्मीदवार ने डिस्टर्ब नहीं किया - तथा उनके उम्मीदवार रहते हुए बाहर के उम्मीदवारों ने भी सूरत से दूरी बना कर रखी । अब लेकिन ऐसी स्थिति नहीं रहेगी । प्रत्येक चुनाव परसेप्शन पर भी निर्भर करता है । सूरत में सेंट्रल काउंसिल के लिए दो उम्मीदवार होने से सूरत के लोगों के बीच यह परसेप्शन अभी से बनने लगा है कि दो उम्मीदवार होने से सेंट्रल काउंसिल में सूरत के प्रतिनिधित्व की संभावना पर ग्रहण लग गया है । इस परसेप्शन के चलते बालकृष्ण अग्रवाल तथा हार्दिक शाह के लिए वोट जुटाना और मुश्किल हो गया है, क्योंकि वोट देने वाले अधिकतर लोग ऐसे उम्मीदवारों को वोट देने से बचते हैं, जिनके जीतने की संभावना पर पहले से ही सवाल उठ खड़े हुए हों । इस स्थिति ने बाहर के, खासकर मुंबई के उम्मीदवारों को सूरत में समर्थन जुटाने के लिए और ज्यादा प्रेरित किया है, जिसके कारण सूरत में चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के बीच चुनावी राजनीति के समीकरण और भी दिलचस्प हो गए हैं ।