Tuesday, October 31, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में रोटरी की पब्लिक इमेज की चिंता करने के नाम पर, आभा झा चौधरी के साथ हुई बदतमीजी के मामले में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी को बचाने की जीतेंद्र गुप्ता की कोशिश पर ही सवाल खड़े हुए

['रचनात्मक संकल्प' को एक अनजान व्यक्ति से एक लिफाफा मिला, जिसे खोलने पर सतीश चंद्र अग्रवाल का एक पत्र मिला, जिसके साथ एक संक्षिप्त चिट में कहा गया कि यह पत्र यदि 'रचनात्मक संकल्प' में प्रकाशित होगा, तो ज्यादा लोगों तक पहुँच सकेगा और इसमें उठाए गए मुद्दे पर व्यापक चर्चा हो सकेगी । विषय की गंभीरता को देखते हुए उक्त पत्र को यहाँ हू-ब-हू प्रकाशित किया जा रहा है । संपादन के नाम पर हमने कुछेक मात्राओं को और कुछेक शब्दों के हिज्जों को दुरुस्त भर किया है ।]

प्रिय रोटेरियंस साथियों,
रोटरी की पब्लिक इमेज को लेकर चिंता व्यक्त करते हुए जीतेंद्र गुप्ता का मैसेज मैंने भी पढ़ा और मुझे यह देख कर अच्छा लगा कि कोई तो है, जो रोटरी की पब्लिक इमेज को लेकर चिंतित है और इस बात की जरूरत समझता है कि हमें मामले को व्यापक रूप में समझने की जरूरत है; जीतेंद्र गुप्ता ने अपने मैसेज की शुरुआत ही यह कहते हुए की है : We need to understand the bigger picture. मामले को व्यापक रूप से समझने की जरूरत को रेखांकित करने के लिए मैं जीतेंद्र गुप्ता का शुक्रिया अदा करता हूँ ।
लेकिन मैं बहुत ही अफ़सोस के साथ यह भी महसूस करता हूँ कि मामले को व्यापक रूप से समझने की जरूरत को रेखांकित करने के बावजूद खुद जीतेंद्र गुप्ता ने मामले को बहुत ही चलताऊ और एकांगी तरीके से निपटा दिया है, तथा सारा दोष एक ब्लॉग पर मढ़ दिया है । अशोक घोष और दीपक कपूर तथा रमेश चंद्र व सुरेश भसीन के बीच के झगड़े के लिए, जिसमें कोर्ट-कचहरी तक हुई थी, क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? असित मित्तल के रूप में हमने एक ऐसे व्यक्ति को गवर्नर चुना था, जो अपनी हेराफेरियों के चलते काफी समय से जेल की हवा खा रहा है और रोटरी की पब्लिक इमेज पर धब्बा बन हुआ है, उसके लिए क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? विनय भाटिया को चुनाव जितवाने के लिए पूर्व गवर्नर्स ने जिस तरह की राजनीति की, जिसकी गूँज रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों तक ने सुनी और बिना अधिकृत शिकायत के मामले की सुनवाई की और जिम्मेदार लोगों को लताड़ लगाई - उसके लिए क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? अभी हाल ही में, डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने वरिष्ठ रोटेरियन और अपनी टीम की एक प्रमुख सदस्य आभा झा चौधरी के साथ जो हरकत की, जिसे खिलाफ आभा झा चौधरी ने रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों को विस्तृत पत्र लिखा है और उनसे अपील की है कि रोटरी को 'गुंडाइज्म' और 'गून-इज्म' का अड्डा न बनने दें - तो इसके लिए क्या उक्त ब्लॉग जिम्मेदार है ? रोटरी की पब्लिक इमेज बिगड़ने के लिए किसी बाहरी को जिम्मेदार ठहराने से ज्यादा जरूरी क्या यह नहीं होना चाहिए कि हम अपने गिरेबाँ में भी झाँके ?
हो सकता है कि रोटरी में होने वाले हमारे झगड़ों को उक्त ब्लॉग बढ़ा-चढ़ा कर और नमक-मिर्च लगा कर प्रस्तुत करता हो; पर सवाल यह है कि उसे ऐसा करने का मौका कौन देता है ? हम यह उम्मीद क्यों करते हैं कि हम खुद तो बहुत ही नीचता की, घटियापन की, टुच्चेपन की, बेईमानी की हरकतें करेंगे - और उक्त ब्लॉग से उम्मीद करेंगे कि वह हमारी हरकतों पर चुप रहे ? मुझे यह देख कर वास्तव में अफसोस हुआ कि रोटरी की पब्लिक इमेज की चिंता करते हुए जीतेंद्र गुप्ता 'अपनी' हरकतों को नियंत्रित करने को लेकर एक शब्द भी नहीं कहते हैं, और सारा आरोप 'दूसरों' पर थोप देते हैं - और इसे bigger picture को understand करना कहते हैं !
जीतेंद्र गुप्ता ने जिस ब्लॉग पर निशाना साधा है, उस ब्लॉग की रोटेरियंस के बीच पहुँच और विश्वसनीयता को लेकर मैं खुद हैरान रहा हूँ । उस ब्लॉग की रिपोर्ट्स मुझे हमेशा ही आश्चर्य में डालती रही हैं कि रोटरी समाज की जो जानकारियाँ हम रोटेरियंस को नहीं होती हैं, वह उस तक कैसे पहुँच जाती हैं और कभी कभी तो 'इधर घटना घटी, और उधर सूचना पहुँची' वाला मामला होता है । यह बात मुझे आश्चर्य में इसलिए डालती है, क्योंकि मैं हमेशा ही रोटेरियंस को और रोटरी के बड़े नेताओं को उस ब्लॉग के खिलाफ बात करते हुए ही पाता/सुनता हूँ । जीतेंद्र गुप्ता का कहना मुझे सच लगता है कि हम में से ही कुछ लोग उस ब्लॉग के छिपे मददगार होंगे । लेकिन मुझे यही चीज परेशान करती है कि हम में से कुछेक लोग उसके छिपे मददगार क्यों हैं, और कुछ छिपे मददगारों की मदद से उस ब्लॉग ने रोटेरियंस के बीच कैसे अपनी साख और विश्वसनीयता बना ली है, जो हम खुले में काम करने वाले रोटेरियंस नहीं बना सके हैं । मैं मानता हूँ कि इस बात को यदि हम समझ सकें, समझने की कोशिश कर सकें - तो हम मामले को व्यापक रूप से समझ सकेंगे; bigger picture को understand कर सकेंगे ।
मैंने जब जब उस ब्लॉग की जोरदार सफलता के कारणों को समझने की कोशिश की है, तब तब मैं इसी नतीजे पर पहुँचा हूँ कि उस ब्लॉग ने चूँकि रोटरी में बड़े नेताओं और पदाधिकारियों द्वारा आम रोटेरियंस से छिपा कर की जाने वाली बेईमानियों की पोल खोली है, तथा बड़े नेताओं और पदाधिकारियों द्वारा प्रताड़ित और अपमानित हुए लोगों का साथ दिया है, उनकी आवाज बना है - इसलिए रोटेरियंस के बीच उसकी साख और विश्वसनीयता बनी है । बड़े नेताओं और पदाधिकारियों तथा उनके आसपास रहने वाले लोगों ने उस ब्लॉग की भले ही एक नकारात्मक छवि बनाने की कोशिश की है, लेकिन रोटरी में होने वाली बेईमानियों और अपमान व प्रताड़नापूर्ण व्यवहार का शिकार होने वाले रोटेरियंस को वह ब्लॉग - अनजान होते हुए भी - अपना विश्वसनीय साथी और अपना दुःख बाँटने वाला लगा है ।
डिस्ट्रिक्ट में अभी हाल ही में घटी घटना को देखें : डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने अपनी ही टीम की एक प्रमुख पदाधिकारी और वरिष्ठ रोटेरियन आभा झा चौधरी से कई रोटेरियंस की उपस्थिति में बदतमीजी की; यह देख रहे किसी रोटेरियंस ने लेकिन यह कोशिश तक नहीं की कि वह रवि चौधरी से कह सकें कि आपका यदि कोई इश्यू है भी, तो कम से कम बात तो तमीज से कीजिये । रवि चौधरी के व्यवहार के चलते आभा झा चौधरी जिस समय भारी मानसिक प्रताड़ना झेल रही थीं, उस समय उन्हें किसी रोटेरियंस से सांत्वना नहीं मिली - बल्कि एक अनजान माध्यम से, उस ब्लॉग की तरफ से सांत्वना मिली । यहाँ दो बातें रेखांकित करने योग्य हैं : एक तो यही कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार हुईं आभा झा चौधरी को किसी रोटेरियंस की तरफ से नहीं, बल्कि उस ब्लॉग की तरफ से नैतिक समर्थन मिला; दूसरी बात और ज्यादा महत्त्वपूर्ण है और वह यह कि निश्चित ही उस ब्लॉग को घटना की जानकारी मौके पर मौजूद लोगों से ही मिली होगी; हम मान लेते हैं कि आभा झा चौधरी से ही मिली होगी - लेकिन क्या यह बात हम रोटेरियंस के लिए शर्म की बात नहीं है कि सार्वजनिक प्रताड़ना व अपमान के चलते मानसिक संताप झेल रहीं आभा झा चौधरी को नैतिक समर्थन और सांत्वना की उम्मीद किसी रोटेरियंस से नहीं हुई, बल्कि एक अनजान बाहरी माध्यम के रूप में उस ब्लॉग से हुई । मुश्किल समय में, प्रताड़ना और अपमान झेल रहीं आभा झा चौधरी को हम रोटेरियंस ने - डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए प्रयासरत उनके ही क्लब के सदस्य संजीव राय मेहरा तक ने - उन्हें जानते/पहचानते हुए भी उन्हें अकेला छोड़ दिया; और तब उनका संबल - उनसे अपरिचित और अनजान - वह ब्लॉग बना ! मुझे पूरा विश्वास है कि आभा झा चौधरी की उस मुश्किल घड़ी में यदि रोटेरियंस उन्हें सहारा और समर्थन देते, तो बात ब्लॉग तक जाती ही नहीं - और रोटरी की पब्लिक इमेज को भी धब्बा नहीं लगता । मैं जब भी bigger picture देखता हूँ, और उसे understand करने की कोशिश करता हूँ, तो इसी नतीजे पर पहुँचता हूँ कि हम रोटेरियंस यदि सही को सही और गलत को गलत कहना शुरू कर देंगे; रोटरी के नाम पर होने वाली बेईमानी और बात बात में दिखाई जाने वाली चौधराहटी अकड़ का विरोध करना शुरू कर देंगे; बेईमानी और अपमान व प्रताड़ना का शिकार होने वाले रोटेरियंस को समर्थन और मदद देना शुरू कर देंगे, तब किसी रोटेरियंस को अपना दुखड़ा रोने के लिए उक्त ब्लॉग के पास जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी और वह ब्लॉग अपने आप ही बंद हो जायेगा ।
मुझे अफसोस है कि जीतेंद्र गुप्ता ने अपने मैसेज में bigger picture को understand करने की बात तो की है, लेकिन ईमानदारी से उसके लिए प्रयास नहीं किया है । यदि किया होता, तो वह आभा झा चौधरी के प्रति किए गए रवि चौधरी के व्यवहार पर अवश्य ही कुछ कहते । हो सकता है कि वह रवि चौधरी के व्यवहार को उचित मान रहे हों, लेकिन वह यह कहते तो - तभी तो लोगों को पता चलता कि उनकी सोच का स्तर क्या है ? जीतेंद्र गुप्ता ने रोटरी की पब्लिक इमेज को बचाने/सुधारने को लेकर जिस आधे-अधूरे तरीके से अपनी बात रखी है, उसमें अपना कोई राजनीतिक मंतव्य साधने की उनकी कोशिश नजर आती है; और इस कारण से उनका मैसेज पाखंड-पूर्ण व्यवहार महसूस होता है । मैं आश्वस्त हूँ और मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि इस तरह के पाखंड-पूर्ण व्यवहार से bigger picture को न तो understand किया जा सकता है, और न ही रोटरी की पब्लिक इमेज को बचाया/सुधारा जा सकता है ।
हाँ, जीतेंद्र गुप्ता की इस बात से मैं पूरी तरफ सहमत हूँ कि We need to understand the bigger picture.
काश, हम ईमानदारी से ऐसा कर पाएँ !

- सतीश चंद्र अग्रवाल
  पूर्व क्लब प्रेसीडेंट

                                              जीतेंद्र गुप्ता के मैसेज का स्क्रीन-शॉट :



Saturday, October 28, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब को 'बताने से ज्यादा छिपाने की' यशपाल दास की कोशिश अंततः फेल हुई, और दो करोड़ 83 लाख रुपए का मिला हिसाब मोहिंदर पॉल गुप्ता की बड़ी जीत साबित हुई

अंबाला ।  मोहिंदर पॉल गुप्ता की मेहनत अंततः रंग लाई और उनके अभियान को एक बड़ी कामयाबी यह मिली है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के दो करोड़ 83 लाख रुपए हड़पने की जो तैयारी की जा रही थी, वह फेल हो गई है । अभी तक इस रकम को स्कूल रिस्टेब्लिशमेंट फंड में ट्रांसफर दिखा कर इसे खर्च हुआ बताने/जताने की कोशिश की जा रही थी, लेकिन मोहिंदर पॉल गुप्ता की लगातार कोशिशों के बाद ट्रस्ट की तरफ से यशपाल दास ने अब यह जानकारी दी है कि यह रकम अभी निपट नहीं गई है, बल्कि नौ वर्षों में खर्च होगी । यशपाल दास ने हालाँकि होशियारी और चालाकी बरतते हुए अभी भी यह नहीं बताया है कि इस रकम का रखवाला अब कौन है और यह रकम आखिर खर्च किस हिसाब से और किसके कहने से होगी ? मोहिंदर पॉल गुप्ता रोटरी क्लब चंडीगढ़ सिटी ब्यूटीफुल के पूर्व प्रेसीडेंट हैं और पिछले कुछ समय से उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के कार्यक्रमों तथा प्रोजेक्ट्स के हिसाब-किताब में पारदर्शिता लाने तथा जिम्मेदार लोगों को जबावदेह बनाने के लिए अभियान छेड़ा हुआ है, जिसके तहत वह सवाल पूछते रहे हैं । मोहिंदर पॉल गुप्ता का सवाल पूछना विभिन्न ट्रस्टों और अभियानों के मालिक बने बैठे राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू और यशपाल दास को इतना बुरा लगता रहा है कि कई मौकों पर इन्होंने मोहिंदर पॉल गुप्ता को लोगों के बीच बदनाम व अपमानित करने तक का प्रयास किया - इस प्रयास के पीछे इनका उद्देश्य वास्तव में मोहिंदर पॉल गुप्ता का मुँह बंद करना था । मोहिंदर पॉल गुप्ता लेकिन इनकी चाल में नहीं फँसे और तथ्यों को 'बताने से ज्यादा छिपाने की' इनकी कोशिशों से पैदा होने सवालों को लगातार पूछते रहे - जिसका नतीजा एक बड़ी जीत के रूप में सामने आया है ।
'हार' से पैदा हुई बदहवासी और बौखलाहट यशपाल दास के पत्र में पढ़ी/देखी जा सकती है । मोहिंदर पॉल गुप्ता ने यशपाल दास की जिस ईमेल को लेकर शिकायत की, यशपाल दास ने शुरू में तो यह कहते हुए उसका बचाव किया कि उक्त ईमेल उन्होंने सिर्फ पूर्व गवर्नर्स को लिखी थी, जो सोशल मीडिया में आ रही गलत जानकारियों से भ्रमित हो रहे थे और सच्चाई जानना चाहते थे । पत्र के अंत में वह लेकिन यह दावा करने लगे कि जो लोग उन्हें जानते हैं उन्हें विश्वास है कि वह कुछ भी गलत नहीं कर सकते हैं । तो क्या डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स उन्हें नहीं जानते हैं और यदि 'जानते' हैं तो 'उन्हें' सफाई देने की जरूरत उन्हें क्यों पड़ी ? यशपाल दास को यदि सचमुच लगता है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब को लेकर गलत बयानी हो रही है, और लोग भ्रमित हो रहे हैं तो उन्हें सभी का भ्रम दूर करना चाहिए ! यशपाल दास के पत्र में ही उनकी बदहवासी का आलम यह देखने को मिलता है कि एक तरफ तो वह दावा करते हैं कि जो लोग उन्हें जानते हैं, वह उन पर विश्वास करते हैं और किसी भ्रम का शिकार नहीं होंगे, और अपनी तरफ से सफाई भी उन्हें ही देते हैं जो उन्हें जानते हैं । दरअसल यशपाल दास के इस 'व्यवहार' में ही वह सोच उद्घाटित होती है जो अपने आप को 'राजा' समझती है और डिस्ट्रिक्ट के लोगों को दोयम दर्जे का मानती है और जिन्हें जबाव देना जरूरी नहीं समझती है । सोशल मीडिया में सवाल डिस्ट्रिक्ट के सदस्य ही तो उठा रहे हैं; सवाल करने वाले मोहिंदर पॉल गुप्ता एक वरिष्ठ रोटेरियन और पूर्व अध्यक्ष हैं और पिछले एक वर्ष में पूर्व इंटरनेशनल प्रेसीडेंट राजा साबू के हाथों से आउटस्टैंडिंग डिस्ट्रिक्ट चेयरमैन का अवॉर्ड ले चुके हैं - वह यदि भ्रमित हैं, तो उनका भ्रम दूर करने में पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास की क्रीज क्यों खराब हो रही है ?
हिसाब-किताब संबंधी सवाल पूछने पर बदहवास और बौखलाने का व्यवहार सिर्फ यशपाल दास ने ही नहीं दिखाया है, इससे पहले निवर्त्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमन अनेजा की डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में राजा साबू भी ऐसा ही व्यवहार दिखा चुके हैं । वहाँ मोहिंदर पॉल गुप्ता ने एक प्रोजेक्ट की फंडिंग के बारे में सवाल पूछा था, जिस पर राजा साबू बुरी तरह तमतमा गए थे और बौखलाए गुस्से में वह अपनी सीट छोड़ कर हॉल के बीच तक आ गए थे और लोगों को उकसाने के इरादे से सवाल करने लगे थे कि उन्हें प्रोजेक्ट करना चाहिए कि नहीं ? बेईमानीभरी चालाकी से पूछे गए इस सवाल में लोगों का ध्यान डायवर्ट करने की राजा साबू की कोशिश लेकिन छिपी नहीं रह सकी थी; क्योंकि लोगों का तुरंत ध्यान गया कि प्रोजेक्ट के होने या न होने को लेकर तो सवाल था ही नहीं - सवाल तो इस बारे में था कि किसी प्रोजेक्ट में पैसे कहाँ से आते हैं, कितने आते हैं और कैसे खर्च होते हैं ? राजा साबू के इस नाटक में राजा-भक्ति दिखाते हुए पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर जेपीएस सिबिया ने भी अतिथि कलाकार की भूमिका निभाते हुए मोहिंदर पॉल गुप्ता को चुप करने/कराने की कोशिश की थी । सवाल का सीधा जबाव देने की बजाए, सवाल से राजा साबू का बुरी तरह बौखलाना लोगों को 'चोर की दाढ़ी में तिनका' वाला मुहावरा याद दिला गया था । मोहिंदर पॉल गुप्ता के एक सीधे-सादे से सवाल से यशपाल दास का बदहवास होना और बौखलाना उक्त मुहावरे की एक बार फिर याद दिलाता है ।
मोहिंदर पॉल गुप्ता के सवालों से राजा साबू और यशपाल दास तथा उनके 'नजदीकी' गवर्नर्स बौखलाएँ चाहें जितना, लेकिन वह हिसाब-किताब देने के लिए मजबूर भी हो रहे हैं । इस तरह मोहिंदर पॉल गुप्ता के अभियान ने डिस्ट्रिक्ट में हवा बदलने का काम किया है । डिस्ट्रिक्ट की हवा बदलने के काम को और हवा देने का काम मौजूदा डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी की उस घोषणा ने भी किया है, जिसमें उन्होंने रोटरी इंटरनेशनल से खर्चे के लिए मिलने वाली रकम को प्रोजेक्ट्स में देने की घोषणा की है । टीके रूबी की यह घोषणा दिखा/जता रही है कि डिस्ट्रिक्ट के नए पदाधिकारी ज्यादा पारदर्शी व जबावदेह तरीके से काम करने में यकीन कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि इससे पहले किसी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने - यहाँ तक कि राजा साबू और यशपाल दास तक ने भी - लोगों को इस बात की हवा तक नहीं लगने दी कि उन्हें खर्चे के लिए रोटरी इंटरनेशनल से कितनी रकम मिली है । डिस्ट्रिक्ट में लोग याद करते हुए कह रहे हैं कि उन्होंने तो अभी तक यही देखा/पाया है कि किसी गवर्नर से यदि यह पूछ भी लो कि उन्हें खर्चे के नाम पर रोटरी से क्या मिला है, तो वह नाराज हो जाता रहा है । यशपाल दास ने भी मोहिंदर पॉल गुप्ता को लिखे पत्र में नाराजगी की बौखलाहट 'दिखाई' है । अच्छी बात लेकिन यह है कि यशपाल दास की नाराजगीभरी बौखलाहट के बावजूद मोहिंदर पॉल गुप्ता सवाल पूछने के अपने अभियान के प्रति संकल्पित नजर आ रहे हैं ।

Friday, October 27, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 बी वन में विभिन्न क्लब्स में विशाल सिन्हा द्वारा की जा रही बदतमीजियों के कारण पहले से ही अशोक अग्रवाल के मुकाबले कमजोर मुकाम पर खड़ी कमल शेखर की उम्मीदवारी और कमजोर हो रही है

लखनऊ । विशाल सिन्हा ने पिछले दिनों विभिन्न क्लब्स के कार्यक्रमों में शराब पी कर जिस तरह से हंगामा तथा दूसरे लोगों से बदतमीजी की है, उसके चलते कमल शेखर की उम्मीदवारी का अभियान शुरू होने के साथ ही खासी बड़ी मुसीबत में फँसता नजर आ रहा है । दरअसल कमल शेखर की उम्मीदवारी का झंडा विशाल सिन्हा के हाथ में ही है, और विशाल सिन्हा की हरकतों को देखते हुए डिस्ट्रिक्ट के क्लब्स के पदाधिकारी व अन्य प्रमुख लोग अभी से ही विशाल सिन्हा के खिलाफ बातें करने लगे हैं । विशाल सिन्हा की तरफ से हद की हरकत तो यह हुई कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर एके सिंह के क्लब के कार्यक्रम तक में वह बदतमीजी करने से बाज नहीं आये, और यहाँ वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार अशोक अग्रवाल से भिड़ गए - जिसका अशोक अग्रवाल ने भी करारा जबाव दिया और उनका नशा उतार दिया । विशाल सिन्हा की हरकत पर एके सिंह और उनके क्लब के पदाधिकारी भी नाराज हुए । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट की इस वर्ष की चुनावी राजनीति के बनते दिख रहे समीकरण में एके सिंह को कमल शेखर की तरफ देखा/पहचाना जा रहा है, किंतु विशाल सिन्हा की हरकत के चलते एके सिंह के क्लब के पदाधिकारियों के बीच विशाल सिन्हा के खिलाफ खासी नाराजगी पैदा हो गई है । ऐसे में, एके सिंह के लिए भी कमल शेखर की उम्मीदवारी को अपने क्लब का समर्थन सुनिश्चित करने/करवाने की चुनौती पैदा हो गई है ।
कमल शेखर की उम्मीदवारी के साथ हमदर्दी रखने वाले लोगों ने गुरनाम सिंह से भी शिकायत की है और उन्हें चेताया है कि विशाल सिन्हा की हरकतों पर यदि लगाम नहीं लगाई गई, तो कमल शेखर के लिए 'अपने' समझे जाने वाले समर्थकों को भी एकजुट बनाये रखना मुश्किल हो जायेगा - और तब कमल शेखर चुनावी लड़ाई शुरू होने से पहले ही चुनाव हार जायेंगे । उल्लेखनीय है कि शुरू में खुद गुरनाम सिंह ने कमल शेखर की उम्मीदवारी के पक्ष में अभियान चलाया था, और कुछेक लोगों के बीच कमल शेखर को इंट्रोड्यूज किया था - जिसका कमल शेखर की उम्मीदवारी को फायदा होता हुआ भी नजर आया था; लेकिन बाद में गुरनाम सिंह ने कमल शेखर की उम्मीदवारी की कमान विशाल सिन्हा को सौंप दी । विशाल सिन्हा ने अपनी हरकतों से लेकिन गुरनाम सिंह के किए धरे पर पानी फेर दिया है । विशाल सिन्हा को यूँ तो बहुत मेहनती लायन नेता के रूप में देखा/पहचाना जाता है, लेकिन लोगों का मानना/कहना है कि जब वह शराब पी लेते हैं - तब आपा खो बैठते हैं और फिर बदतमीजी पर उतर आते हैं । शराब उनकी बड़ी कमजोरी है, इसलिए उनके संगी-साथी भी शराबी किस्म के ही हैं । ऐसे में हमेशा ही हालत यह हो जाती है कि शराब उनके सामने न आये, 'यह हो नहीं सकता'; और शराब सामने हो और वह न पियें - यह उनके संगी-साथी 'होने नहीं देते' ।
विशाल सिन्हा के नजदीकियों का कहना हालाँकि यह भी है कि विशाल सिन्हा की बदतमीजियों का कारण सिर्फ नशा ही नहीं है, बल्कि चुनावी राजनीति की कमजोरी से पैदा हुया फ्रस्टेशन भी कारण है । विशाल सिन्हा दरअसल यह देख कर बुरी तरह निराश हैं कि जिन कमल शेखर की उम्मीदवारी का उन्होंने झंडा उठा लिया है, वह कमल शेखर भी यह विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि विशाल सिन्हा के भरोसे वह सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का चुनाव जीत सकेंगे - और इसीलिए कमल शेखर अपनी उम्मीदवारी के अभियान के लिए पैसा खर्च करने को तैयार नहीं हो रहे हैं । कमल शेखर के शुभचिंतक ही कमल शेखर को बता/समझा रहे हैं कि डिस्ट्रिक्ट में पिछले पाँच/छह वर्षों में केएस लूथरा के समर्थन के बिना कोई गवर्नर नहीं चुना जा सका है; विशाल सिन्हा को भी जिस वर्ष केएस लूथरा का समर्थन नहीं मिला था - वह बुरी तरह चुनाव हार गए थे; उसके अगले वर्ष केएस लूथरा की खुशामद करके उनका समर्थन जुटा कर ही विशाल सिन्हा गवर्नर के लिए चुने जा सके थे; इसलिए विशाल सिन्हा के चक्कर में मत पड़ो । कमल शेखर के शुभचिंतक और नजदीकी ही उन्हें तर्क दे रहे हैं कि केएस लूथरा की मदद के बिना जो विशाल सिन्हा अपना खुद का चुनाव नहीं जीत सके, वह विशाल सिन्हा उन्हें क्या जितवायेंगे ? पिछली बार विशाल सिन्हा के साथ अशोक अग्रवाल का जो बुरा अनुभव रहा, उसी के कारण तो अशोक अग्रवाल इस बार विशाल सिन्हा का साथ छोड़ कर केएस लूथरा के साथ आ गए हैं । इन सब बातों का असर लगता है कि कमल शेखर पर हुआ है, और इसीलिए उम्मीदवार होने के बावजूद अपनी उम्मीदवारी के अभियान में वह कोई पैसा खर्च नहीं कर रहे हैं । विशाल सिन्हा इस बात पर भड़के हुए हैं, और इसके फ्रस्टेशन में वह जहाँ कहीं मौका मिलता है - बदतमीजी करने लगते हैं ।
विशाल सिन्हा को वास्तव में यह डर भी है कि कमल शेखर बिना पैसा खर्च किए जिस तरह से उम्मीदवार बने हुए हैं, उससे वह कभी भी अगली बार समर्थन का आश्वासन लेकर केएस लूथरा से मिल जायेंगे - और तब विशाल सिन्हा डिस्ट्रिक्ट में भारी फजीहत का शिकार होंगे । इसलिए वह केएस लूथरा तथा उनके लोगों के साथ बदतमीजियाँ करके ऐसा माहौल बना देना चाहते हैं ताकि कमल शेखर का केएस लूथरा के पास जाने का रास्ता ही बंद हो जाए । लेकिन उनकी यह रणनीति उल्टी ही पड़ रही है । विशाल सिन्हा की हरकतों को देख कर डिस्ट्रिक्ट में उनके प्रति जो नाराजगी पैदा हो रही है तथा बढ़ रही है, उसका सीधा नुकसान कमल शेखर की उम्मीदवारी को हो रहा है । कमल शेखर की उम्मीदवारी वैसे ही कमजोर मुकाम पर खड़ी है, तिस पर विशाल सिन्हा की हरकतें उसे और कमजोर बना रही है । ऐसे में, कमल शेखर के शुभचिंतकों की आवाज और तेज होती जा रही है, जिसमें कहा/बताया जा रहा है कि विशाल सिन्हा के भरोसे कमल शेखर अपना समय, अपनी एनर्जी, अपना पैसा और अपनी पहचान/साख ही खोयेंगे - हालाँकि अभी भी समय है कि वह समझ/संभल जाएँ ।

Thursday, October 26, 2017

रोटरी इंटरनेशनल के पूर्व प्रेसीडेंट राजा साबू पद्म भूषण सम्मान पाने के जुगाड़ में, टीके रूबी के गवर्नर-काल के कार्यक्रमों का बहिष्कार करने की नीति छोड़ कर पानीपत में हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम में 'ठीक' जगह पाने की कोशिशों में जुटे

पानीपत । पानीपत में पाँच नबंवर को आयोजित हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम में राजेंद्र उर्फ़ राजा साबू के आने या न आने को लेकर डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों के बीच एक दिलचस्प बहस छिड़ी हुई है । इस बहस का कारण यह है कि यूँ तो अपने संगी-साथी गवर्नर्स के साथ राजा साबू ने टीके रूबी को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में 'स्वीकार' करने से इंकार किया हुआ है, जिसके तहत वह टीके रूबी के गवर्नर-काल के आयोजनों में शामिल नहीं हो रहे हैं - लेकिन सुना जा रहा है कि पानीपत के इंटरसिटी कार्यक्रम में शामिल होने के लिए राजा साबू बुरी तरह लालायित हैं और इसके लिए जुगाड़ लगा रहे हैं । लोगों के बीच बहस की बात यह है कि राजा साबू क्या सामान्य निमंत्रण पर कार्यक्रम में पहुँच जायेंगे, या अपने लिए 'खास' तरह से निमंत्रण पाने/लेने का प्रयास करेंगे और उसमें सफल होने के बाद ही कार्यक्रम में पहुँचेंगे; बहस का विषय यह भी है कि राजा साबू की हरकतों के चलते पिछले करीब ढाई वर्षों से अभी हाल तक बार-बार लगातार तरह तरह से परेशान और अपमानित होते रहे टीके रूबी क्या सब भूल जायेंगे और राजा साबू को 'खास' तरह से आमंत्रित करने के लिए तैयार हो जायेंगे ? लोगों के बीच सारी बहस चूँकि कयासबाजी पर है, इसलिए लग रहा है कि सारा खेल पर्दे के पीछे चल रहा है - राजा साबू अपने 'आदमियों' के जरिये टीके रूबी पर दबाव बना रहे हैं कि वह राजा साबू को 'ठीक' से आमंत्रित करें, ताकि कार्यक्रम में राजा साबू के पहुँचने का रास्ता 'बने', और टीके रूबी देख/समझ रहे हैं कि इस दबाव से वह कैसे और कितना निपटें ?
पानीपत में हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम में आने को लेकर राजा साबू के बुरी तरह लालायित होने का कारण दरअसल कार्यक्रम में हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी का मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होना है । राजा साबू रोटरी के 'जरिये' बड़े लोगों, नेताओं और प्रशासनिक अधिकारियों से नजदीकी बनाने/बढ़ाने के काम में बड़े होशियार रहे हैं । वह ऐसे हर कार्यक्रम में शामिल होते रहे हैं, जिसमें कोई बड़ा नेता या प्रशासनिक अधिकारी आया हुआ होता है । राजा साबू के इस 'व्यवहार' को लेकर पल्लव मुखर्जी के साथ घटी घटना डिस्ट्रिक्ट में खूब सुनी/सुनाई जाती रही है । बात कुछ पुरानी है - पल्लव मुखर्जी अपने क्लब के एक कार्यक्रम का निमंत्रण लेकर राजा साबू के पास गए । राजा साबू ने पहले तो उन्हें नखरे दिखाते हुए अपनी व्यस्तता का वास्ता देकर कार्यक्रम में पहुँचने के प्रति अपनी असमर्थता दिखाई, लेकिन बातचीत आगे बढ़ने पर जैसे ही उन्हें पता चला कि कार्यक्रम में फारूख अब्दुल्ला आ रहे हैं, राजा साबू ने गजब की पलटी मारी और अपनी सारी व्यस्तता भूल कर वह न सिर्फ कार्यक्रम में पहुँचने के लिए तैयार हो गए, बल्कि पल्लव मुखर्जी से यह तक डिस्कस करने लगे कि मंच पर कौन कौन और कहाँ कहाँ बैठेगा । इस डिस्कसन के जरिये दरअसल उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि मंच पर उन्हें फारूख अब्दुल्ला के ठीक बगल वाली कुर्सी पर बैठने का मौका मिले । एक कार्यक्रम में अरुण जेतली आये थे, तब भी राजा साबू ने इसी तरह का नाटक किया था । राजा साबू की इस नाटकबाजी को जानने/समझने वाले डिस्ट्रिक्ट के प्रमुख लोगों का विश्वास के साथ मानना और कहना है कि पानीपत में हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम में यदि हरियाणा के राज्यपाल न आ रहे होते, तो राजा साबू - टीके रूबी के गवर्नर-काल के कार्यक्रमों के बहिष्कार के 'रास्ते' पर ही होते ।
पानीपत में हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम का निमंत्रण खास तरीके से पाने के पीछे राजा साबू का उद्देश्य वास्तव में यही है कि वह पहले से तय कर लेना चाहते हैं कि कार्यक्रम में उनकी हैसियत और 'जगह' कहाँ और क्या होगी ? राजा साबू को डर है कि कार्यक्रम के कर्ता-धर्ता कहीं उन्हें दर्शकों/श्रोताओं में पूर्व गवर्नर्स के साथ न बैठा दें ? राजा साबू हरियाणा के राज्यपाल के ठीक बगल वाली कुर्सी अपने लिए पक्की करना चाहते हैं, और इसीलिए वह अपने आदमियों के जरिये टीके रूबी को घेर कर 'ठीक' से निमंत्रण चाहते हैं । राजा साबू के नजदीकियों का ही कहना है कि इस संबंध में टीके रूबी के पक्के समर्थक और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी जितेंद्र ढींगरा को तो राजी कर लिया गया है, जिन्होंने आश्वस्त किया है कि वह टीके रूबी को भी इस बात के लिए राजी कर लेंगे कि राजा साबू को कार्यक्रम में 'उचित' जगह तथा मौका मिले । पिछले दो-ढाई वर्षों में राजा साबू द्वारा प्रेरित और संरक्षित लड़ाई में टीके रूबी का साथ देने वाले कई लोगों का मानना/कहना लेकिन यह है कि टीके रूबी को राजा साबू के झाँसे में आने से बचना चाहिए और उन्हें एक पूर्व गवर्नर की तरह ही ट्रीट करना चाहिए । लोगों का कहना है कि जब राजा साबू को खुद ही अपनी 'हैसियत' की गरिमा की चिंता नहीं है और वह डिस्ट्रिक्ट की प्रशासनिक व्यवस्था तथा चुनावी राजनीति में टुच्चेपन को संरक्षण देते हैं, तब फिर अन्य किसी को भी उनकी गरिमा की चिंता करने की जरूरत क्या है ?
राजा साबू को हरियाणा के राज्यपाल के साथ बैठे 'दिखना' इस समय इसलिए भी जरूरी लग रहा है क्योंकि इस समय वह भारत सरकार के पद्म भूषण सम्मान के लिए जुगाड़ लगा रहे हैं । राजा साबू के लिए बदकिस्मती की बात यह है कि इसी समय वह रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के फंड में हेराफेरी के आरोपों में घिरे हैं । राजा साबू उक्त ट्रस्ट के चेयरमैन हैं । इसके अलावा, इसी समय उन पर रोटरी प्रोजेक्ट्स के नाम पर मौज-मजा करने के आरोपों का भी शोर है । इन आरोपों के चलते पद्म भूषण पाने के लिए की जा रही उनकी कोशिशें खटाई में पड़ सकती हैं, इसलिए वह अपने लिए ऐसे मौके की तलाश में हैं, जो उक्त आरोपों से उठी धूल पर पानी डाल सके । पाँच नबंवर को हो रहे इंटरसिटी कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में आ रहे हरियाणा के राज्यपाल कप्तान सिंह सोलंकी के साथ बैठने तथा उनकी मौजूदगी में लच्छेदार भाषण देने का मौका उन्हें उचित जान पड़ रहा है । यह मौका पाने के लिए राजा साबू ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी पर जाल तो फेंक दिया है - अब यह देखना दिलचस्प होगा कि टीके रूबी उनके जाल में फँसते हैं, या उससे बच निकलते हैं ?

Wednesday, October 25, 2017

रोटरी इंटरनेशनल के उच्च पदाधिकारियों के बीच प्रशंसा और सम्मान पाती रहीं डिस्ट्रिक्ट 3011 की अत्यंत सक्रिय रोटेरियन आभा झा चौधरी को 'वर्ल्ड पोलियो डे' के आयोजन के लिए अपने ही डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ा

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने 'वर्ल्ड पोलियो डे' पर कार्यक्रम करने के लिए डिस्ट्रिक्ट पोलियोप्लस कमेटी की चेयरपरसन आभा झा चौधरी के साथ जिस तरह की बदतमीजी की और कार्यक्रम को खराब करने का प्रयास किया, उससे डिस्ट्रिक्ट के लोगों को एक बार फिर इस बात का सुबूत मिला है कि रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट ही नहीं बल्कि रोटरी पर एक कलंक की तरह हैं । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया कार्यक्रम में रवि चौधरी की हरकतों पर जिस तरह से मजे लेते दिखे, उससे लोगों को यह भी लग रहा है कि घटियापन करने/दिखाने के मामले में विनय भाटिया भी रवि चौधरी से कम साबित नहीं होंगे । आभा
झा चौधरी के क्लब के वरिष्ठ सदस्य और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार संजीव राय मेहरा ने बाद में जिस तरह आभा झा चौधरी पर इस बात के लिए दबाव बनाया कि वह रवि चौधरी की हरकत को नजरअंदाज कर दें और डिस्ट्रिक्ट में लोगों से इस बारे में बात न करें, क्योंकि उसके उनकी उम्मीदवारी को रवि चौधरी की मदद नहीं मिल पायेगी - उससे लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट 3011 की किस्मत में घटिया सोच और व्यवहार के लोग ही गवर्नर बनने बदे हैं । संजीव राय मेहरा डिस्ट्रिक्ट के एक पुराने रोटेरियन हैं और उन्हें एक भले और जेनुइन व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है । लेकिन उन्हें रवि चौधरी के 'एजेंट' के रूप में काम करता देख लोगों को झटका लगा है - संजीव राय मेहरा ने पहले तो आभा झा चौधरी के साथ की जा रही रवि चौधरी की बदतमीजी को चुपचाप तमाशे की तरह देखा, और एक बार भी रवि चौधरी को रोकने की कोशिश नहीं की; और फिर आभा झा चौधरी पर ही इस बात के लिए दबाव बनाने का प्रयास किया कि वह रवि चौधरी की हरकत का किसी से जिक्र न करें और जो हुआ उसे भूल जाएँ ।
आभा झा चौधरी क्या, अन्य किसी ने भी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि 'वर्ल्ड पोलियो डे' पर अपनी पहल और अपनी अकेले की सक्रियता के दम पर कार्यक्रम करने के बावजूद उन्हें रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ेगा । उल्लेखनीय है कि आभा झा चौधरी को रवि चौधरी ने ही अपनी टीम में डिस्ट्रिक्ट पोलियोप्लस कमेटी की दिल्ली की चेयरपरसन का पद दिया हुआ है । 'वर्ल्ड पोलियो डे' को नजदीक आता देख आभा झा चौधरी को जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ऑफिस से कुछ कार्यक्रम करने का निर्देश या सुझाव मिलता हुआ नहीं दिखा, तो उन्होंने स्वयं ही पहल करते हुए रवि चौधरी से कुछ कार्यक्रम करने की जरूरत को रेखांकित करते हुए बात की । रवि चौधरी ने उनकी बात से सहमति व्यक्त की और उनसे कह दिया कि आप जैसा उचित समझें और अपने स्तर पर आप जो कर सकती हों, वह कर लें । रवि चौधरी ने उचित समय पर कार्यक्रम में पहुँचने के लिए वायदा भी कर लिया । हालाँकि इसके साथ ही रवि चौधरी ने उनसे यह भी साफ साफ कह दिया कि उक्त कार्यक्रम में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कार्यालय कोई मदद नहीं कर पायेगा । आभा झा चौधरी पिछले तीन चार वर्षों से 'वर्ल्ड पोलियो डे' पर अपनी पहल और अपनी अकेले की मेहनत से कार्यक्रम करती रही हैं तथा रोटरी इंटरनेशनल के पोलियो मुक्ति अभियान के लिए फंड इकट्ठा करती रहीं हैं - और इसके लिए देश में ही नहीं, बल्कि इंटरनेशनल तक में प्रशंसा और पुरस्कार प्राप्त करती रहीं हैं । उनकी सक्रियता और संलग्नता से प्रभावित होकर ही रोटरी इंटरनेशनल ने पोलियो खत्म करने के अभियान को चलाने के लिए फंड्स इकट्टा करने के उद्देश्य से शुरू की गई 'वर्ल्ड ग्रेटेस्ट मील' परियोजना में आभा झा चौधरी को भारत का 'कंट्री-कोऑर्डीनेटर' का पद सौंपा है ।
रोटरी तथा रोटरी के महत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के रूप में पोलियो मुक्ति अभियान के लिए गहरी संलग्नता के साथ काम करने के चलते देश/विदेश के डिस्ट्रिक्ट्स में प्रशंसा और सम्मान पा रहीं आभा झा चौधरी को लेकिन अपने ही डिस्ट्रिक्ट के गवर्नर रवि चौधरी की बदतमीजी का शिकार होना पड़ा । कार्यक्रम में पहुँचते ही रवि चौधरी ने आभा झा चौधरी को यह कहते हुए निशाना बनाया कि यह कार्यक्रम तो आपका है । आभा झा चौधरी ने यह कहते हुए उन्हें जबाव दिया कि यह कार्यक्रम मेरा नहीं, बल्कि रोटरी का, रोटरी के एक प्रमुख उद्देश्य का और डिस्ट्रिक्ट का कार्यक्रम है; डिस्ट्रिक्ट पोलियोप्लस कमेटी की चेयरपरसन होने के नाते मैं तो इसमें सिर्फ आयोजक की भूमिका निभा रही हूँ । यह सुन कर रवि चौधरी बुरी तरह भड़क गए और मौके पर उपस्थित लोगों के सामने ही निहायत बदतमीजी से कहने लगे कि आपने प्रेसीडेंट्स को कैसे इसमें आमंत्रित कर लिया तथा वॉट्सऐप पर आप इस बारे में मैसेज कैसे कर रही हैं और आप पोलियो के लिए फंड जुटाने का काम कैसे कर रही हैं ? रवि चौधरी के बदतमीजीपूर्ण व्यवहार के बावजूद अपने को संयत बनाये रखते हुए आभा झा चौधरी ने उन्हें याद दिलाया कि उन्होंने ही कल ही उन्हें अनुमति दी थी कि वह जैसा उचित समझें, वैसे कार्यक्रम को करें । आभा झा चौधरी ने उन्हें याद दिलाया कि पिछले तीन-चार वर्षों से वह इसी तरह से कार्यक्रम करती आ रही हैं, और पिछले सभी गवर्नर्स ने उनके काम की प्रशंसा की है; आभा झा चौधरी ने उन्हें यह भी याद दिलाया कि पिछले वर्ष के कार्यक्रम में तो वह स्वयं भी उपस्थित थे और उन्होंने भी कार्यक्रम की तथा उनके प्रयासों की जमकर तारीफ भी की थी । इन बातों से रवि चौधरी ने अपनी बेवकूफी से बुने जाल में खुद को ही फँसे पाया, तो वह और बिफर गए । पता नहीं कि वह घर से या कहीं और से दुत्कार खा कर आये थे कि वहाँ का सारा फ्रस्टेशन और गुस्सा वह आभा झा चौधरी पर निकालने में लग गए । उन्होंने आभा झा चौधरी को इस बात पर घेरने की कोशिश की, कि यहाँ जो फंड इकट्ठा किया जा रहा है - वह कहाँ जायेगा ? आभा झा चौधरी ने उनकी इस बात का भी शालीनता से तर्कपूर्ण जबाव दिया कि आप डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं, आपको यह पूछने की बजाये यह देखना/समझना चाहिए कि यहाँ इकट्ठा हुआ फंड जा कहाँ रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के पद पर होने के बावजूद रवि चौधरी को लेकिन देखना/समझना तो कुछ था नहीं, उन्हें तो सिर्फ बदतमीजी करनी थी - जो उन्होंने जमकर की ।
आभा झा चौधरी के साथ बदतमीजी करते हुए रवि चौधरी डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की जिम्मेदारी और मर्यादा तक भूल बैठे । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गर्मी दिखाते हुए रवि चौधरी ने मौके पर मौजूद लोगों के बीच यहाँ तक कह दिया कि वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं और उनकी मर्जी है कि वह 'वर्ल्ड पोलियो डे' मनाये या न मनाये । आभा झा चौधरी ने उन्हें इसका भी सटीक जबाव दिया कि बेशक उन्हें यह अधिकार है, इस अधिकार का उपयोग करते हुए वह कल उन्हें इस कार्यक्रम को करने से इंकार कर सकते थे; और पोलियो पर उन्हें यदि कुछ करना ही नहीं है तो अपनी टीम में उन्होंने पोलियो कमेटी के नाम पर दस दस पदाधिकारी क्यों बनाये हुए हैं ? रवि चौधरी की हर बात मौके पर मौजूद लोगों के बीच बेवकूफीभरी साबित होती जा रही थी, इससे वह और तिलमिलाते जा रहे थे । तिलमिलाहटभरी अपनी बदतमीजी को लेकिन उन्हें तब कंट्रोल करना पड़ा, जब वरिष्ठ पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर मंजीत साहनी और दीपक कपूर कार्यक्रम में पहुँचे । रवि चौधरी के लिए उस समय बड़ी शर्मिंदगी की स्थिति पैदा हो गई जब पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर तथा इंडिया पोलियोप्लस कमेटी के चेयरमैन दीपक कपूर ने आभा झा चौधरी के प्रयत्नों की जोरदार शब्दों में तारीफ की और उन्हें 'रोटरी का गौरव' बताया, और मंजीत साहनी ने आभा झा चौधरी की सक्रियता व संलग्नता को प्रेरणास्पद बताते हुए फंड जुटाने के अभियान में अपनी तरफ से चेक दिया ।
कई मौकों पर लताड़ खाने तथा दुत्कारे जाने के बावजूद रवि चौधरी ने लेकिन शर्मिंदा होना नहीं सीखा है । 'वर्ल्ड पोलियो डे' के कार्यक्रम में तमाशा और बदतमीजी करने को लेकर फजीहत का शिकार होने के बाद भी वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया के साथ आभा झा चौधरी को लेकर बकवासबाजी करते रहे, और विनय भाटिया उनकी बातों में रस लेते रहे । दोनों में से किसी को भी इस बात का अहसास नहीं हुआ कि वह जो हरकत कर रहे हैं - वह न सिर्फ रोटरी के उद्देश्यों/लक्ष्यों तथा रोटरी की भावना के खिलाफ है, बल्कि रोटरी के एक बड़े अभियान और डिस्ट्रिक्ट और अपनी ही टीम के एक बड़े पदाधिकारी; तथा इससे भी बढ़कर एक महिला की मेहनत और गरिमा के खिलाफ है । लोगों ने बार बार ऐसा महसूस किया है कि जैसे रवि चौधरी और विनय भाटिया जैसे लोगों ने रोटरी को लफंगई का एक अड्डा समझा हुआ है, जिसे 'वर्ल्ड पोलियो डे' के कार्यक्रम में उन्होंने एक बार फिर जाहिर किया । संजीव राय मेहरा जैसे वरिष्ठ और सुलझे हुए समझे जाने वाले रोटेरियन के रवैये ने लोगों को लेकिन और ज्यादा चौंकाया है । अपने ही क्लब की अत्यंत सक्रिय रोटेरियन आभा झा चौधरी का साथ देने की बजाये संजीव राय मेहरा जिस तरह से रवि चौधरी की करतूत को छिपाने के लिए आभा झा चौधरी पर दबाव बना रहे हैं, वह डिस्ट्रिक्ट 3011 के भावी माहौल के लिए कोई अच्छे संकेत नहीं हैं ।

Tuesday, October 24, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए दीपक जैन को मिली जीत को 'खरीदी' गई जीत के रूप में देखे जाने के कारण उनकी चुनावी जीत का रंग फीका पड़ा है

शामली । वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए दीपक जैन की चुनावी जीत को जिस तरह से हर कोई 'खरीदी' गई जीत के रूप में देख/बता रहा है, उससे दीपक जैन के समर्थकों व शुभचिंतकों के लिए उनकी जीत बेरौनक-सी हो गई है - जिसका नतीजा है कि दीपक जैन की जीत को लेकर डिस्ट्रिक्ट में कोई उत्साह नहीं बन सका है । दीपक जैन की जीत पर कुछ वही लोग खुश नजर आ रहे हैं, जो विगत में डिस्ट्रिक्ट की बर्बादी के लिए जिम्मेदार रहे हैं - और जो अपनी हरकतों के कारण रोटरी इंटरनेशनल से फटकार खाते रहे हैं । दीपक जैन की जीत पर डिस्ट्रिक्ट में जैसा ठंडापन छाया है, उसे देख कर ऐसा लग रहा है जैसे कि उन्हें वोट देने और दिलवाने वाले लोगों को ही डिस्ट्रिक्ट में मुँह छिपाना पड़ रहा है । दीपक जैन को जो अप्रत्याशित जीत मिली है, वह आखिर इसीलिए तो मिली है क्योंकि लोगों ने उन्हें समर्थन दिया/दिलवाया है - इतना जोरदार समर्थन मिलने के बावजूद उनकी जीत पर डिस्ट्रिक्ट में यदि 'मातम' का सा माहौल है, तो इसका मतलब यही लगाया/समझा जा रहा है कि उनकी जीत को 'मैनेज्ड' जीत के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है; और उनकी इस जीत को संभव बनाने के लिए जिन लोगों ने वोट दिए हैं, वह भी मान रहे हैं कि उन्होंने तो एक 'सौदे' के तहत वोट दिया है, इसलिए सौदे से निकले नतीजे पर खुश होने की भला क्या बात है ?
डिस्ट्रिक्ट के कई प्रमुख लोगों को दरअसल यह आशंका भी है कि अगला रोटरी वर्ष भी कहीं कोर्ट-कचहरी की भेंट न चढ़ जाए और तब दीपक जैन की दशा भी कहीं दीपक बाबू और दिनेश शर्मा जैसी न हो जाए ? यह आशंका डिस्ट्रिक्ट के उन बदनाम पूर्व गवर्नर्स के सक्रिय हो जाने से और बढ़ी है, जो सच्ची/झूठी शिकायतों के जरिए दूसरों को बदनाम करने और 'गिराने' का खेल खेलते रहे हैं - और दीपक जैन की जीत के चलते जिन्हें फिर से सिर उठाने का मौका मिल गया है । डर यह है कि बदनाम पूर्व गवर्नर्स अब दीपक जैन से उन्हें जितवाने की 'कीमत' बसूलने के जुगाड़ में लगेंगे और चाहेंगे कि दीपक जैन उनकी ही मुट्ठी में रहें । दीपक जैन के लिए सभी को खुश कर सकना असंभव ही होगा - ऐसे में, दीपक जैन जिसे खुश नहीं रख सके, वही फिर दीपक जैन को 'दिन में तारे' दिखाने की मुहिम में जुट जायेगा । दीपक जैन अचानक से उम्मीदवार बन कर चुनावी जीत को 'मैनेज' करने में तो सफल हो गए हैं, लेकिन चूँकि डिस्ट्रिक्ट के बुरी तरह उलझे हुए ताने-बाने से उनका परिचय नहीं है - और जीत के बाद उन्हें उससे परिचित होने के लिए पर्याप्त समय भी नहीं मिलेगा, इसलिए मजबूरी में उन्हें उन्हीं बदनाम नेताओं की गिरफ्त में रहना पड़ेगा, जिनकी 'मदद' से उन्होंने चुनावी जीत हासिल की है ।
डिस्ट्रिक्ट में लोगों को हालात अभी जल्दी सुधरते हुए नहीं दिख रहे हैं । वास्तव में इसीलिए डिस्ट्रिक्ट में तमाम आम और खास लोगों ने चुनावी प्रक्रिया में दिलचस्पी ही नहीं ली । रोटरी के नियम-कानूनों को जानने वाले लोगों की निगाह में तो, जो चुनाव हुआ है - वह वैध ही नहीं है । ऐसा मानने और दावा करने वाले लोगों का कहना है कि वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए हुए चुनाव की वैधता को यदि किसी  चुनौती दे दी, तो यह चुनाव ही निरस्त हो जायेगा । दरअसल, इसी सोच के चलते डिस्ट्रिक्ट के तमाम आम और खास लोगों ने अपने आप को चुनावी झमेले से दूर ही रखा । वास्तव में, इस बात ने भी दीपक जैन को चुनावी जीत को 'मैनेज' करने में मदद पहुँचाई । लेकिन इसी बात ने दीपक जैन के गवर्नरी की कुर्सी तक पहुँचने और गवर्नरी कर लेने को संदेहास्पद बना दिया है । दीपक जैन के सामने एक तरफ तो इस संदेह से निपटने की चुनौती है, और दूसरी तरफ अपने समर्थक बदनाम नेताओं को साधे रखने की मुसीबत है । चुनावी जीत से साथ-साथ दीपक जैन को जो यह चुनौती और मुसीबत मिली है - उसी के कारण उनकी चुनावी जीत का रंग फीका पड़ा है ।

Monday, October 23, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में तथ्यों को छिपाने तथा गंभीर वित्तीय घपलों के आरोपों के चलते डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल से रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छिना, और एसके मिढा ने उनकी जगह कार्यभार संभाला

नोएडा । 'रचनात्मक संकल्प' ने 25 अगस्त की अपनी रिपोर्ट में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल से रोटरी नोएडा ब्लड बैंक की कमान छिनने को लेकर जो संकेत दिए थे, वह अंततः सच साबित हुए - और सतीश सिंघल को रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के घपलों और उन घपलों में अपनी मिलीभगत के आरोपों के चलते अंततः रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद से हाथ धोना पड़ा है । ब्लड बैंक के ट्रस्टीज की बैठक में एसके मिढा को सतीश सिंघल की जगह मैनेजिंग ट्रस्टीज बनाया गया है । ट्रस्टीज के इस फैसले से सतीश सिंघल बुरी तरह नाराज हुए और अपनी नाराजगी वयक्त करते हुए उन्होंने एसके मिढा के ब्लड बैंक का कार्यभार संभालने के मौके का बहिष्कार किया । उस मौके पर ही चर्चा सुनी गई कि सतीश सिंघल ने मैनेजिंग ट्रस्टी का पद बचाने के लिए अंतिम समय तक प्रयास किया और अपने प्रयास में उन्होंने ट्रस्टीज के बीच फूट डालने की भी चाल चली, लेकिन उनकी कोई भी चाल कामयाब नहीं हो सकी, और अंततः उन्हें ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी छोड़ने के लिए मजबूर होना ही पड़ा । उल्लेखनीय है कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के हिसाब-किताब में घपलों के आरोपों को लेकर तथा अपने कार्य-व्यवहार के चलते सतीश सिंघल पिछले काफी समय से ट्रस्टीज के निशाने पर थे, लेकिन सतीश सिंघल कुछेक ट्रस्टीज की खुशामद करके तथा बाकियों के बीच फूट डाल/डलवा कर मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी को अभी तक अपने पास बचाये/बनाये रखने में कामयाब बने हुए थे । 
उल्लेखनीय है कि सतीश सिंघल के कार्य-व्यवहार को लेकर तो ट्रस्टीज को बहुत पहले से शिकायतें रही हैं, लेकिन उन शिकायतों को मुखर बनाने का काम किया दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक के 'नतीजों' ने किया है । डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनोद बंसल की देखरेख में चल रहे दिल्ली स्थित रोटरी ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री करके 15 से 20 लाख रुपए का लाभ दर्ज किया जा रहा है, जबकि सतीश सिंघल रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में प्रति माह करीब 2500 यूनिट ब्लड की बिक्री से कुल करीब 34/35 हजार रुपए का ही लाभ 'बताते' हैं । दोनों ब्लड बैंक के हिसाब-किताब की जानकारी रखने वाले लोगों को हैरानी यह देख/जान कर हुई कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक ढाई हजार के करीब यूनिट बेच कर जब 15 से 20 लाख रुपए के करीब का लाभ कमा लेता है, तो सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले ब्लड बैंक की कमाई उतने ही यूनिट ब्लड बेचने के बाद 34/35 हजार रुपए के करीब पर ही क्यों ठहर जाती है ? यहाँ नोट करने की बात यह भी है कि दिल्ली वाला ब्लड बैंक बड़ा है, और इसलिए उसके खर्चे भी ज्यादा हैं; ब्लड के विभिन्न कंपोनेंट्स के दाम बिलकुल बराबर हैं - बल्कि एक कंपोनेंट के दाम सतीश सिंघल के ब्लड बैंक में कुछ ज्यादा ही बसूले जाते हैं । इस लिहाज से सतीश सिंघल की देखरेख में चलने वाले रोटरी नोएडा ब्लड बैंक का लाभ तो और भी ज्यादा होना चाहिए । लाभ के इस खासे बड़े अंतर ने रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मुख्य कर्ता-धर्ता के रूप में सतीश सिंघल की भूमिका और उनकी काबिलियत को न सिर्फ संदेहास्पद बना दिया, बल्कि गंभीर वित्तीय आरोपों के घेरे में भी ला दिया ।
सतीश सिंघल के व्यवहार व रवैये ने उनकी भूमिका के प्रति संदेह व आरोपों को विश्वसनीय बनाने का काम किया । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टी अक्सर शिकायत करते सुने गए हैं कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक का हिसाब-किताब देने/बताने में हमेशा आनाकानी करते हैं, और पूछे जाने पर नाराजगी दिखाने लगते हैं । सतीश सिंघल के इस व्यवहार और रवैये से लोगों को विश्वास हो चला कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक में ऐसा कुछ करते हैं, जिसे दूसरों से छिपाकर रखना चाहते हैं । ब्लड बैंक के कुछेक ट्रस्टियों का ही आरोप भी रहा कि सतीश सिंघल ब्लड बैंक को अपने निजी संस्थान के रूप में इस्तेमाल करते हैं, और उसकी कमाई हड़प जाते हैं । सतीश सिंघल अपना पूरा समय ब्लड बैंक में ही बिताते हैं, जिससे लगता है कि उनके पास और कोई कामधंधा नहीं है । सतीश सिंघल के इसी व्यवहार व रवैये से लोगों को यह लगता रहा है कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक को उन्होंने अपनी कमाई का जरिया बना लिया है - और अपनी 'कमाई' भी वह बेईमानीपूर्ण तरीके से निकालते हैं । तमाम शिकायतों और आरोपों के बावजूद ट्रस्टीज चूँकि सतीश सिंघल के खिलाफ कार्रवाई करने को लेकर एकजुट नहीं हो पा रहे थे, इसलिए सतीश सिंघल को लगने लगा था कि मैनेजिंग ट्रस्टी पद से उन्हें हटा पाना असंभव ही होगा । लेकिन, जैसा कि 25 अगस्त की 'रचनात्मक संकल्प' की रिपोर्ट में बताया गया था कि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी के रूप में सतीश सिंघल पर गंभीर वित्तीय आरोपों से चूँकि रोटरी के कई बड़े नेता भी परिचित हैं; और समय समय पर उक्त आरोपों के कारण रोटरी की होने वाली बदनामी के प्रति वह चिंता भी व्यक्त करते रहे हैं - इसलिए सतीश सिंघल को डर है कि इन आरोपों के कारण वह कभी भी 'सजा' पा सकते हैं ।
समझा जाता है कि रोटरी के बड़े नेताओं और पदाधिकारियों से 'समर्थन' मिलने की शह पर ही रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के ट्रस्टीज ने आपसी मतभेदों को भुलाकर सतीश सिंघल के खिलाफ आरपार की लड़ाई लड़ने की तैयारी कर ली और तब सतीश सिंघल अकेले पड़ गए । चर्चा सुनी जा रही है कि कुछेक नियम कानूनों का वास्ता देकर सतीश सिंघल ने काफी समय तक मैनेजिंग ट्रस्टी पद की कुर्सी बचाने की कोशिश की, लेकिन उनसे साफ बता दिया गया कि उन्होंने यदि इस्तीफा नहीं दिया तो उन्हें बर्खास्त कर दिया जायेगा । सतीश सिंघल ने तब इस्तीफा दे देने में ही अपनी भलाई देखी/पहचानी और इस तरह रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में उनकी मनमानी और लूट-खसोट का अंत हुआ । मजे की बात है कि सतीश सिंघल की तरफ से यही कहा/बताया जा रहा है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी पद की जिम्मेदारियाँ साथ-साथ निभाना उनके लिए मुश्किल हो रहा था, इसलिए दोहरी जिम्मेदारी का दबाव कम करने के लिए उन्होंने मैनेजिंग ट्रस्टी पद से इस्तीफा दे दिया है । लेकिन उनकी यह बात किसी को हजम नहीं हो रही है - क्योंकि वास्तव में यदि दोहरी जिम्मेदारी का ही दबाव होता तो सतीश सिंघल को बहुत पहले मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छोड़ देना चाहिए था; अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उनकी जिम्मेदारियाँ काफी कुछ हद तक पूरी हो गईं हैं, तब दोहरी जिम्मेदारी के दबाव की बात करना मजाक ही है । कुछेक ट्रस्टीज ने सतीश सिंघल के कार्यकाल के हिसाब-किताब की जाँच करने/करवाने की माँग करके भी सतीश सिंघल के लिए मुसीबतों को बढ़ाने का काम किया है । यानि रोटरी नोएडा ब्लड बैंक के मैनेजिंग ट्रस्टी का पद छिन जाने के बाद भी सतीश सिंघल का मुसीबत और फजीहत से पीछा छूटता हुआ नहीं दिख रहा है ।

Saturday, October 21, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के सेक्रेटरी वी सागर के सख्त दिशा-निर्देशों ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके 'लुटेरे गिरोह' के सदस्यों की मनमानियों पर रोक लगाने के साथ उनकी मुसीबतें भी बढ़ाई

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर ने नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग दिल्ली में ही करने को लेकर जो कोड़ा फटकारा है, तो रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथी मीटिंग से बचने/भागने के लिए बहाने खोजने लगे हैं । बहाने खोजने में पूर्व चेयरमैन दीपक गर्ग ने जिस बेशर्मी का परिचय दिया, उसे देख कर बेशर्मी को भी शर्म आ गई होगी - दीपक गर्ग ने ऑडिट-सीजन का वास्ता देते हुए रीजनल काउंसिल की मीटिंग को स्थगित कर देने का सुझाव दिया है । मजे की बात है कि मीटिंग का समय तो उन्हीं लोगों ने तय किया है, समय तय करते हुए उन्हें ऑडिट-सीजन का ध्यान नहीं आया । ऑडिट-सीजन का ध्यान पिछले दस दिनों में उन्हें तब भी नहीं आया, जब रीजनल काउंसिल की मीटिंग लुधियाना में करने की तैयारी की जा रही थी । लुधियाना की बजाये दिल्ली में मीटिंग करने की बात आते ही दीपक गर्ग को ऑडिट-सीजन का ध्यान आ गया । दीपक गर्ग के बाद रीजनल काउंसिल के लुटेरे गिरोह के दूसरे सदस्यों ने भी जिस तरह से ऑडिट-सीजन का रोना शुरू किया है, उससे लग रहा है कि राकेश मक्कड़ इसी को बहाना बना कर ऐन मौके पर मीटिंग को स्थगित कर देने के चक्कर में हैं । राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के दूसरे सदस्य हालाँकि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल में नॉमिनेटेड सदस्य विजय झालानी की उस धमकी से भी डरे हुए हैं, जिसमें कहा गया है कि रीजनल काउंसिल के पदाधिकारियों ने यदि नियमानुसार काम नहीं किया तो वह इंस्टीट्यूट में औपचारिक शिकायत दर्ज करवायेंगे ।
चेयरमैन राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के दूसरे सदस्यों को इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर के उस फैसले से भी तगड़ा झटका लगा है, जिसमें राजेश अग्रवाल की लगातार अनुपस्थिति का हवाला देते हुए रीजनल काउंसिल की सदस्यता को समाप्त करने के फैसले को निरस्त कर दिया गया है । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल के कुल 13 सदस्यों में सात सदस्यों के खिलाफ हो जाने की स्थिति को बैलेंस करने के लिए राकेश मक्कड़ ने राजेश अग्रवाल की सदस्यता समाप्त करने की चाल चली । इसके लिए उन्हें इंस्टीट्यूट के एक नियम का सहारा भी मिल गया, जिसमें लंबे समय तक लगातार अनुपस्थित रहने वाले सदस्य की सदस्यता समाप्त करने का प्रावधान है । लेकिन इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर ने राजेश अग्रवाल की सदस्यता समाप्त करने के राकेश मक्कड़ के फैसले को मान्य नहीं किया । उनका तर्क है कि राजेश अग्रवाल जिस परिस्थिति में लगातार अनुपस्थित रहे, उस परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए वह संदर्भित नियम के दायरे में नहीं आते हैं । इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर ने राजेश अग्रवाल की सदस्यता के मुद्दे पर झटका देने के साथ-साथ ही रीजनल काउंसिल की मीटिंग दिल्ली में ही करने का फरमान जारी करके राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के सदस्यों की सारी योजना पर पानी फेरने का काम किया है । इसके बाद से ही राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के सदस्यों ने नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग से बचने और मीटिंग को स्थगित कर देने के बहाने खोजना शुरू कर दिया है ।
उल्लेखनीय है कि राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के सदस्यों ने पहले तो रीजनल काउंसिल के 13 में से सात सदस्यों द्वारा की गई मीटिंग बुलाने की मांग को अनसुना करने का प्रयास किया; चौतरफा दबाव पड़ने पर जब रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की माँग को अनसुना करना उनके लिए संभव नहीं रहा - तो उन्होंने मीटिंग दिल्ली में करने की बजाये लुधियाना में करने के जरिये अपने को बचाने की रणनीति बनाई । इंस्टीट्यूट के सेक्रेटरी वी सागर ने लेकिन राकेश मक्कड़ और उनके गिरोह के सदस्यों की लगातार जारी 'हरकतों' से तंग आकर जो सख्त रवैया अपनाया - उसके चलते राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के सदस्यों ने अपने आप को चारों तरफ से घिरा पाया है । उन्होंने जान/समझ लिया है कि सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा की सरपरस्ती भी अब उन्हें नहीं बचा पा रही है । कई लोगों को तो लगता है कि राकेश मक्कड़ और उनके संगी-साथियों की लगातार जो फजीहत और बदनामी हो रही है, उसके असली जिम्मेदार राजेश शर्मा ही हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की घटनाओं पर नजर रखने वाले लोगों का कहना है कि राकेश मक्कड़ और उनके साथी मीटिंग को स्थगित करने के लिए जो चालबाजियाँ कर रहे हैं, उससे उनकी मुश्किलें और बढ़ेंगी ही । राजेश शर्मा की सलाहानुसार, राकेश मक्कड़ और उनके लुटेरे गिरोह के सदस्यों ने पिछले दिनों में अपने को बचाने के लिए जो भी हथकंडे आजमाये हैं, वह सभी न सिर्फ फेल हुए हैं - बल्कि उनकी परेशानियों को बढ़ाने और उनकी बदनामी करवाने वाले ही साबित हुए हैं । इसी से लगता है कि राकेश मक्कड़ 23 अक्टूबर की घोषित मीटिंग चाहें कर लें, या चाहें स्थगित कर दें - आगे का रास्ता उनके लिए मुसीबत और फजीहत भरा ही है ।

Friday, October 20, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की चुनावी राजनीति में सीमेंट की एजेंसी दिलवाने की बात को मुद्दा बना कर सुरेश बिंदल क्या सचमुच संकरन जयरमन की उम्मीदवारी को केएल खट्टर का समर्थन दिलवा सकेंगे ?

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के मामले में विपिन शर्मा को पीछे हटता देख सुरेश बिंदल ने संकरन जयरमन की उम्मीदवारी को हवा दी है, और दावा करना शुरू किया है कि केएल खट्टर अपना और हरियाणा के दूसरे पूर्व गवर्नर्स का समर्थन संकरन जयरमन को दिलवायेंगे । सुरेश बिंदल के दावे के अनुसार तो उनकी केएल खट्टर से इस बारे में बात भी हो गई है, और उनसे आश्वासन मिलने के बाद ही वह जयरमन की उम्मीदवारी को लेकर आगे बढ़े हैं । अपने दावे को विश्वसनीय बनाने/दिखाने के लिए सुरेश बिंदल ने तर्क भी जोरदार दिया है और वह यह कि केएल खट्टर को जेके सीमेंट की एजेंसी जयरमन के कारण ही मिली है, इसलिए केएल खट्टर उस अहसान का बदला चुकाने के लिए क्या इतना भी नहीं करेंगे ? सुरेश बिंदल का दावा भले ही है, लेकिन केएल खट्टर के लिए सीमेंट की एजेंसी मिलने के अहसान के ऐवज में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जयरमन की उम्मीदवारी का सचमुच समर्थन करना और दूसरे नेताओं से भी समर्थन दिलवाना आसान नहीं होगा ।
दरअसल केएल खट्टर के लिए प्राथमिकता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरियाणा से 'अपना' उम्मीदवार तय करने - और उसे जितवाने की है । हरियाणा में लोगों के बीच की चर्चाओं के अनुसार, केएल खट्टर की पसंद तो सुरेश जिंदल हैं - लेकिन वहाँ 'दम' पुनीत बंसल में नजर आ रहा है । ऐसे में, केएल खट्टर के सामने दिल्ली के ऐसे उम्मीदवार का समर्थन करने की मजबूरी आएगी, जिसके समर्थक नेता सुरेश जिंदल को 'जितवा' सकते हों । सुरेश बिंदल पर तो केएल खट्टर को भरोसा नहीं है; उन्हें दूर दूर तक यह उम्मीद नहीं है कि सुरेश जिंदल दिल्ली में सुरेश जिंदल को इतना समर्थन दिलवा सकेंगे कि सुरेश जिंदल की चुनावी नैय्या पार हो जाए । केएल खट्टर को इस बारे में यदि जरा सी भी उम्मीद होती तो सुरेश बिंदल के साथ उनका 'समझौता' हो गया होता और सुरेश बिंदल को अकेले ही दावा नहीं करना पड़ता । जयरमन की उम्मीदवारी के संदर्भ में सुरेश जिंदल के दावे पर चूँकि केएल खट्टर ने ही चुप्पी साधी हुई है, इसलिए उनका दावा लोगों के बीच संदेहास्पद ही बना हुआ है ।
सुरेश बिंदल के लिए मुसीबत की बात यह बनी हुई है कि विपिन शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी को अभी पूरी तरह से वापस नहीं लिया है, और वह पुनर्वापसी के मौके की तलाश में हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों रामलीला के एक आयोजन में पूर्व गवर्नर्स के सम्मान का जो एक कार्यक्रम उन्होंने रखा था, उसके फ्लॉप होने पर विपिन शर्मा को यह बात तो अच्छे से समझ में आ गई थी कि सुरेश बिंदल के भरोसे तो वह गवर्नर नहीं बन सकेंगे - और इसीलिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के संकेत दे दिए थे । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी महाभारत में पाँच पाँडवों वाली भूमिका निभा रहे डीके अग्रवाल, दीपक तलवार, अजय बुद्धराज, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा ने उक्त कार्यक्रम का बहिष्कार करके यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि सुरेश बिंदल के उम्मीदवार के रूप में विपिन शर्मा को वह कतई कोई तवज्जो नहीं देंगे । विपिन शर्मा ने भी उनके इस संकेत को 'सम्मान' देते हुए 'जता' दिया कि उनसे तवज्जो नहीं मिलने की सूरत में वह भी उम्मीदवार नहीं बनेंगे । विपिन शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि उनके इस 'रिएक्शन' को पाँडवों वाली टीम ने सकारात्मक तरीके से लिया है, और उनकी तरफ से विपिन शर्मा को संदेश भिजवाया गया है कि उन्हें विपिन शर्मा से कोई समस्या नहीं है । इस बात से विपिन शर्मा को उम्मीद बनी है कि वह यदि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पाँडवों वाली टीम का समर्थन जुटा लें, तो फिर सुरेश बिंदल को भी अपनी उम्मीदवारी के लिए राजी कर ही लेंगे ।
पाँडवों वाली टीम का समर्थन जुटाने के लिए आरके शाह और राजीव अग्रवाल भी प्रयास कर रहे हैं । पूर्व गवर्नर राजिंदर बंसल के 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाने के कारण आरके शाह दिल्ली और हरियाणा के नेताओं के बीच फुटबॉल बने हुए हैं - दिल्ली के नेता उनसे कह रहे हैं कि पहले राजिंदर बंसल के जरिए हरियाणा के नेताओं का समर्थन घोषित करवाओ, उधर हरियाणा के नेता कह रहे हैं कि पहले दिल्ली में तो अपने लिए समर्थन घोषित करवाओ । नेताओं के इस रवैये से तंग आकर ही आरके शाह ने घोषित कर दिया है कि उन्हें चाहें किसी का भी समर्थन न मिले, वह तो उम्मीदवार बनेंगे ही । चुनावी नजरिये से सबसे अनुकूल स्थिति राजीव अग्रवाल की समझी जा रही है, हालाँकि इस अनुकूल स्थिति में भी उनके लिए आश्वस्त और सुरक्षित होने वाला मौका अभी नहीं बन सका है - और उनकी अनुकूल स्थिति पर तलवार लगातार लटकी हुई भी है । दरअसल तमाम अनुकूल स्थिति के बावजूद राजीव अग्रवाल अपना कोई 'वकील' तैयार नहीं कर सके हैं, जो नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी की जोरशोर से वकालत करे । स्थितियाँ फिलहाल राजीव अग्रवाल के अनुकूल हैं, लेकिन बनते/बिगड़ते समीकरणों के बीच कौन जानता है कि स्थितियाँ कब पलटी मार जाएँ ? राजीव अग्रवाल के लिए तो मुसीबत व चुनौती की बात यह हुई है कि उनके 'क्षेत्र' से ही दो दो और उम्मीदवार मैदान में हैं, जो दिख भले ही कमजोर रहे हों - लेकिन चुनावी समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने का काम तो कर ही सकते हैं ।

Monday, October 16, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 में अनूप मित्तल के हाथों पोपट बनने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने पूर्व गवर्नर दीपक तलवार को कोसा तथा विनोद बंसल को जिम्मेदार ठहराया

नई दिल्ली । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रवि चौधरी ने अनूप मित्तल को रोटरी से बाहर करने के लिए उनके क्लब - रोटरी क्लब दिल्ली प्राइड को बंद करवाने के लिए चार महीने जो मेहनत की, अनूप मित्तल ने उनकी उस मेहनत पर चार दिन में पानी फेर दिया है । अनूप मित्तल ने रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी जैसे डिस्ट्रिक्ट के प्रतिष्ठित क्लब में प्रवेश लेकर न सिर्फ रवि चौधरी की सारी योजना को ध्वस्त कर दिया, बल्कि यह भी दिखा/जता दिया कि रवि चौधरी के विरोध के बावजूद डिस्ट्रिक्ट के बड़े और प्रतिष्ठित क्लब्स में उनके लिए जोरदार समर्थन है । मजे की बात यह रही कि रवि चौधरी और उनके 'कमांडर-इन-चीफ' की पदवी सँभाले बैठे अशोक कंटूर ने उन क्लब्स को कड़ी निगरानी में रखा हुआ था, जिनमें अनूप मित्तल के जाने की आशंका या संभावना थी - और उनके प्रेसीडेंट्स तथा अन्य पदाधिकारियों व प्रमुख लोगों पर इस बात के लिए दबाव बनाया हुआ था कि अनूप मित्तल को अपने क्लब में प्रवेश नहीं देंगे । रवि चौधरी और अशोक कंटूर ने अनूप मित्तल के प्रवेश को रोकने के लिए कई क्लब्स में बाड़ लगाई हुई थी, उन्होंने सपने में भी नहीं सोचा था कि अनूप मित्तल का चाणक्यपुरी जैसे प्रतिष्ठित क्लब में इंडक्शन हो जाएगा ।
पिछले करीब पंद्रह दिनों की घटनाओं को देखें तो समझ सकते हैं कि अनूप मित्तल ने डिस्ट्रिक्ट के कई क्लब्स के साथ मिल कर रवि चौधरी और अशोक कंटूर का पोपट बना दिया । कई क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से रवि चौधरी को 'लीक' मिलीं कि अनूप मित्तल अपने साथियों के साथ उनका क्लब ज्वाइन करने की तैयारी कर रहे हैं - जिसके बाद अशोक कंटूर को साथ ले जा कर रवि चौधरी वहाँ 'छापेमारी' करते और  अपनी पीठ थपथपाते कि यहाँ से तो उन्होंने अनूप मित्तल का पत्ता साफ कर दिया है । उनके लिए फजीहत की बात यह भी रही कि अपनी इस वीरता की कहानी वह लोगों को सुनाते, तो कई बार उन्हें लोगों से सुनना पड़ता कि इस तरह की हरकतों से वह क्लब्स की कार्रवाईयों में गैरजरूरी हस्तक्षेप कर रहे हैं, और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की गरिमा को नीचे गिरा रहे हैं । इस बात को लेकर कुछेक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने भी रवि चौधरी को समझाया/हड़काया - हालाँकि गवर्नरी के नशे में धुत रवि चौधरी पर इसका असर नहीं हुआ । उनका नशा 'उतारने' का काम अनूप मित्तल ने ही किया । अनूप मित्तल ने कई क्लब्स के पदाधिकारियों के साथ मिल कर रवि चौधरी को दूसरी जगहों पर उलझाए रखा, और चुपचाप तरीके से चाणक्यपुरी में अपने और अपने साथियों के इंडक्शन की कार्रवाई को पूरा किया/करवाया - जिसकी भनक तक रवि चौधरी और उनके 'कमांडर' अशोक कंटूर को नहीं लगी ।
अनूप मित्तल की रणनीति के चलते रवि चौधरी का जो पोपट बना, रवि चौधरी उसके लिए अब पूर्व गवर्नर विनोद बंसल और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं । रवि चौधरी का कहना है कि विनोद बंसल ने पहले तो उन्हें अनूप मित्तल के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन बाद में फिर वह पीछे हट गए और उन्हें अकेला छोड़ दिया । रवि चौधरी को शक है कि रोटरी क्लब दिल्ली चाणक्यपुरी की सदस्यता के लिए अनूप मित्तल और उनके साथियों ने जिस तरह की गुपचुप तैयारी की, उसकी जानकारी विनोद बंसल को तो निश्चित रूप से होगी ही - और विनोद बंसल के जरिए विनय भाटिया को भी उक्त जानकारी पक्के तौर पर होगी; लेकिन दोनों ने ही उन्हें धोखा दिया ।
रवि चौधरी ने अनूप मित्तल के क्लब को बंद करवाने के लिए पहले तो केस को मजबूत 'बनाया', और फिर मामले को लोगों के बीच प्रचारित करने में गैरजरूरी दिलचस्पी दिखाई । रोटरी में क्लब बंद होने तथा उनके चार्टर वापस होने की घटना कोई ऐसी 'घटना' नहीं है, जिसे डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के लिए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच प्रचारित करने की कोई जरूरत हो । इससे पहले क्या क्लब बंद नहीं हुए हैं ? इससे पहले किस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर ने डिस्ट्रिक्ट के लोगों को किसी क्लब के बंद होने की सूचना - और वह भी दो दो बार दी है ? वास्तव में यह एक सामान्य प्रशासनिक कार्रवाई होती है, जो संबंधित पदाधिकारियों तक ही सीमित होती है । किंतु रवि चौधरी ने रोटरी क्लब दिल्ली प्राइड के बंद होने की बात को जिस तरह से प्रचारित किया, उससे यही साबित हुआ है कि इस मामले में उनकी दिलचस्पी उनकी बदनीयतभरी छोटी सोच का नतीजा है । रवि चौधरी के लिए बदकिस्मती की बात यह हुई है कि उन्होंने जाल बिछाया तो था अनूप मित्तल को फाँसने के लिए, लेकिन उस जाल में वह फँस खुद गए ।
रवि चौधरी की चार महीनों से चली आ रही हरकतों का उद्देश्य तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को हटाने का था, लेकिन रवि चौधरी की हरकतों ने काम किया अनूप मित्तल की उम्मीदवारी को मजबूत करने का । दरअसल एक तरफ तो रवि चौधरी की हरकतों के चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच अनूप मित्तल के प्रति सहानुभूति पैदा हुई है; और दूसरी तरफ अनूप मित्तल ने जिस रणनीति से रवि चौधरी की योजना को फेल किया - उससे उन्होंने एक कुशल रणनीतिकार व एक प्रभावी लीडर होने का सुबूत दिया और इसके चलते डिस्ट्रिक्ट के लोगों के बीच उनकी स्वीकार्यता में वृद्धि हुई । अनूप मित्तल की इस दोहरी उपलब्धि पर रवि चौधरी बुरी तरह बौखला गए हैं, और बौखलाहट में वह पूर्व गवर्नर दीपक तलवार को भी कोसने लगे हैं । उनकी बौखलाहट को देख कर डिस्ट्रिक्ट में लोगों को लग रहा है कि रवि चौधरी अभी चुप नहीं बैठेंगे और अनूप मित्तल के खिलाफ वह अवश्य ही कोई और षड्यंत्र रचेंगे - इसलिए उम्मीद की जा रही है कि रवि चौधरी का अभी और घटियापन देखने को मिलेगा ।

Sunday, October 15, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने लुधियाना में मीटिंग रख कर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के सामने चुनौती खड़ी की और उन पर तंज कसा

नई दिल्ली । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन राकेश मक्कड़ ने एक फैसला करने में दिखाए अपने व्यवहार से 'प्याज भी खाए और जूते भी खाए' वाली मशहूर कहावत को चरितार्थ किया है । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाए जाने की माँग पर पहले तो उन्होंने चुप्पी साधे रखी, लेकिन जब चारों तरफ से इस चुप्पी को लेकर उन पर 'जूते' पड़े तब फिर वह मीटिंग बुलाने के रूप में 'प्याज' खाने को तैयार हो गए । इस तैयारी में भी राकेश मक्कड़ ने एक अन्य मशहूर कहावत को चरितार्थ किया - 'चोर चोरी से जाए, पर हेराफेरी से न जाए ।' रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने को लेकर मजबूर हुए राकेश मक्कड़ ने यह मीटिंग दिल्ली में करने की बजाए लुधियाना में करने का फैसला लिया है । मजे की बात यह भी है कि पैसों की कमी का वास्ता देकर राकेश मक्कड़ ने अभी हाल ही में लायब्रेरीज बंद करने का फैसला किया था, लेकिन लुधियाना में रीजनल काउंसिल की मीटिंग करने में लाखों रूपया बहाने में उनके सामने कोई समस्या नहीं है । रीजनल काउंसिल के 13 में से 7 सदस्यों को इस पर ऐतराज है, लेकिन नियमों का हवाला देते हुए राकेश मक्कड़ लुधियाना में रीजनल काउंसिल की मीटिंग करने के अपने फैसले को सही ठहरा रहे हैं । राकेश मक्कड़ को इस नियम का तो पता है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की एक मीटिंग दिल्ली से बाहर की जा सकती है, लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल को लोकतांत्रिक, पारदर्शी और ईमानदार तरीके से चलाए जाने के नियमों को लेकर चेयरमैन के रूप में उन्होंने अपनी आँखें बंद की हुई हैं ।
चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने की काउंसिल सदस्यों के बहुमत की माँग पर पहले तो चुप्पी साधे रहे, लेकिन चारों तरफ से दबाव पड़ने के कारण अब जब वह मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए हैं - तब वह बहुमत सदस्यों की दिल्ली में मीटिंग बुलाने की माँग को अनसुना कर रहे हैं । चेयरमैन के रूप में राकेश मक्कड़ ने मीटिंग के एजेंडे में बहुमत सदस्यों द्वारा प्रस्तुत किए गए मुद्दों को भी शामिल करने से इंकार कर दिया है । यह गहरे अफसोस की और बिडंवना की बात है कि रीजनल काउंसिल के 13 में से 7 सदस्यों को लग रहा है कि लुधियाना में मीटिंग करने के पीछे राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों का वास्तविक उद्देश्य यह है कि वह मीटिंग को मनमाने तरीके से चला सकें, तथा बहुमत सदस्यों को अपनी बात न करने/कहने दें । इसी कारण से, काउंसिल के बहुमत सदस्यों ने मीटिंग के लिए ऑब्जर्वर की माँग की है । यहाँ इस बात को याद करना प्रासंगिक होगा कि पिछले दिनों दिल्ली में हुई रीजनल काउंसिल की मीटिंग में ऑब्जर्वर की उपस्थिति के बावजूद राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों की तरफ से इतनी बदतमीजी हुई थी कि काउंसिल सदस्यों को पुलिस बुलाने की धमकी देनी पड़ी थी । काउंसिल के बहुमत सदस्यों का मानना/कहना है कि जब दिल्ली में राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों के हौंसले इतने बुलंद थे, तो लुधियाना में तो फिर वह मनमानी करने से भला क्यों चूकेंगे ?      
राकेश मक्कड़ और उनके साथी पदाधिकारियों पर आरोप है कि रीजनल काउंसिल की मीटिंग से सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को दूर रखने के उद्देश्य से ही उन्होंने दिल्ली की बजाए लुधियाना में मीटिंग करने का फैसला किया है । दरअसल उन्हें डर है कि दिल्ली में मीटिंग होने पर उनकी मनमानियों पर सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की निगाह रहेगी और जरूरत पड़ने पर वह हस्तक्षेप कर सकते हैं । उन्हें यह डर इसलिए भी है क्योंकि मीटिंग से बचने की उनकी कोशिश सेंट्रल काउंसिल सदस्यों की सक्रियताभरे हस्तक्षेप के कारण ही विफल हुई है । राकेश मक्कड़ हालाँकि इस आरोप को बेबुनियाद बताते हुए तर्क करते हैं कि सेंट्रल काउंसिल सदस्यों पर लुधियाना में हो रही मीटिंग में शामिल होने पर कोई रोक नहीं है; लुधियाना में हो रही मीटिंग में शामिल होने के लिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों को लुधियाना जाने की परेशानी उठानी पड़ेगी - जैसी बातों पर तंज कसते हुए राकेश मक्कड़ और उनके साथियों का कहना है कि चुनाव के समय तो यह लोग दौड़ दौड़ कर लुधियाना जाते रहते हैं, तब तो इन्हें किसी भी तरह की कोई परेशानी नहीं होती है; अब मीटिंग में शामिल होने को लेकर इन्हें क्यों परेशानी होगी ?
सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्वारा की गई घेराबंदी के बाद रीजनल काउंसिल की मीटिंग बुलाने के लिए मजबूर हुए राकेश मक्कड़ ने सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के प्रति जो तंजभरी बातें कहना शुरू की हैं, और इसके जरिए सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के सामने जो चुनौती खड़ी की है - उससे मामला और दिलचस्प हो उठा है । उल्लेखनीय है कि राकेश मक्कड़ के एक साथी-पदाधिकारी नितिन कँवर ने पहले अतुल गुप्ता और फिर विजय गुप्ता के साथ अलग अलग कार्यक्रमों में जो बदतमीजी तथा तू तू मैं मैं की, और राकेश मक्कड़ ने इन 'कामों' के लिए नितिन कँवर को जिस तरह का संरक्षण दिया, उससे सेंट्रल काउंसिल के सदस्य नार्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के मामलों को लेकर पहले से ही दबाव में हैं । लुधियाना में रीजनल काउंसिल की मीटिंग करने का दाँव चल कर राकेश मक्कड़ ने रीजनल काउंसिल के बहुमत सदस्यों की माँग और कोशिश का 'दलिया' बनाने के साथ-साथ सेंट्रल काउंसिल सदस्यों के सामने भी जो चुनौती खड़ी की है - उससे लग रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की कार्रवाइयों में पटाखे अभी फूटते रहेंगे ।

Saturday, October 14, 2017

रोटरी इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की लाइन में लगने की तैयारी कर रहे पूर्व डायरेक्टर सुशील गुप्ता के पीछे हटने के कारण, इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए अधिकृत उम्मीदवार को चेलैंज करने की अशोक गुप्ता की तैयारी मँझधार में फँसी

जयपुर । इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के लिए चुने गए अधिकृत उम्मीदवार भरत पांड्या को चेलैंज करने की तैयारी के तहत अशोक गुप्ता ने समर्थन जुटाने का जो प्रयास शुरू किया है, उसे कोई खास समर्थन न मिलता देख अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों को तगड़ा झटका लगा है । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता के रवैये ने तो उन्हें सदमे जैसी हालत में पहुँचा दिया है । निवर्त्तमान इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई उनके चेलैंज में उन्हें दिलचस्पी लेते/दिखाते हुए तो लग रहे हैं, लेकिन कुछ करते और कोई नतीजा दिखाते हुए नजर नहीं आए हैं । अशोक गुप्ता ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के कई पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स से समर्थन जुटाने हेतु बात की है, लेकिन अधिकतर पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स ने उनके चेलैंज को लेकर कोई खास उत्साह नहीं जताया/दिखाया । 17 सितंबर को नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा फैसला करने की प्रक्रिया में बुरी तरह पराजित होने के बाद अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों ने पहला सप्ताह तो शोक मनाने में बिता दिया, उसके बाद फिर उन्होंने चेलैंज करने के बारे में सोचना शुरू किया । पिछले दो सप्ताहों में अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में समर्थन जुटाने के लिए कई बड़े/छोटे नेताओं के दरवाजे खटखटाए हैं, लेकिन इस कोशिश में उन्हें जो प्रतिक्रिया मिली है - उसने उन्हें हतोत्साहित ही किया है । अशोक गुप्ता के कुछेक नजदीकी और समर्थक तो कहने भी लगे हैं कि अशोक गुप्ता को चेलैंज/फैलेंज के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए, अन्यथा उनकी और ज्यादा फजीहत होगी ।
अशोक गुप्ता के लिए फजीहत की बात यह भी हुई है कि चेलैंज न करने के लिए रोटरी के बड़े नेता उन्हें मनाने का कोई प्रयास भी नहीं कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि भरत पांड्या की अधिकृत उम्मीदवारी को चेलैंज कर सकने को लेकर और जिन जिन उम्मीदवारों से खतरा था, उन सभी को 'मैनेज' कर लेने की बातें सुनी जा रही हैं । गुलाम वहनवती को रोटरी फाउंडेशन में ट्रस्टी बना दिया गया है; रंजन ढींगरा और दीपक कपूर को भी आकर्षक ऑफर के साथ-साथ 'अगली बार' का झुनझुना दिया/दिखाया जा रहा है - लेकिन अशोक गुप्ता को कोई 'मैनेज' करने का प्रयास ही नहीं कर रहा है । इससे लगता है कि रोटरी के बड़े नेता और पदाधिकारी भी चाहते हैं कि भरत पांड्या की अधिकृत उम्मीदवारी को अशोक गुप्ता चेलैंज करें : हालाँकि उनकी चाहना है अलग अलग कारणों से - कुछ नेता लोग तो इसलिए चाहते हैं, ताकि उन्हें अपनी राजनीति दिखाने/जताने का मौका मिले, और कुछ इसलिए चाहते हैं ताकि अशोक गुप्ता यह भी करके देख लें और बाहर निकलें तथा दूसरों के लिए मौका छोड़ें ।
अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों को पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील गुप्ता का रवैया काफी हैरान/परेशान करने वाला लगा है । उन्हें सबसे ज्यादा उम्मीद सुशील गुप्ता से ही थी; सुशील गुप्ता की तरफ से जब रंजन ढींगरा को चेलैंज न करने के लिए राजी कर लिया गया था, तब अशोक गुप्ता और उनके नजदीकियों की उम्मीद और बढ़ गई थी - लेकिन सुशील गुप्ता उनकी मदद करते हुए भी नहीं दिख रहे हैं । इसका एक प्रमुख कारण यह सुना/बताया जा रहा है कि सुशील गुप्ता चूँकि इंटरनेशनल प्रेसीडेंट पद के लिए लाइन में लगना चाहते हैं, इसलिए वह किसी भी तरह के विवाद में पड़ने/फँसने से बचना चाहते हैं - और इसलिए ही उन्होंने अशोक गुप्ता की चेलैंज करने की तैयारी से अपने आपको दूर किया/दिखाया हुआ है । अशोक गुप्ता के लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि जिन सुशील गुप्ता पर वह सबसे ज्यादा भरोसा कर रहे थे, उन सुशील गुप्ता ने इस बार तो उन्हें बीच मँझधार में छोड़ ही दिया है - दो/तीन वर्ष में ही मिलने वाले अगली बार के मौके के लिए भी वह कोई झूठा-मूठा भरोसा तक उन्हें नहीं दे रहे हैं । सुना जा रहा है कि सुशील गुप्ता अगली बार के लिए अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर विनोद बंसल को 'हवा' दे रहे हैं । उनके डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर्स के बीच चर्चा है कि विनोद बंसल आजकल सुशील गुप्ता की 'आँख का तारा' बने हुए हैं, जो अभी तक रंजन ढींगरा हुआ करते थे ।
सुशील गुप्ता के पीछे हटने से अशोक गुप्ता के चैलेंजिंग अभियान को जो धक्का लगा है, उससे उबरने का वह कोई तरीका नहीं खोज पा रहे हैं । निवर्त्तमान इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई की तरफ से उन्हें उत्साहित किए जाने की बातें तो सुनी जा रही हैं, लेकिन मनोज देसाई वास्तव में उनकी मदद करते हुए नहीं नजर आ रहे हैं । इसका एक बड़ा कारण यह माना/समझा जा रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर के रूप में मनोज देसाई ने विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स में लोगों को अलग अलग कारणों से नाराज किया हुआ है, और इसलिए वह किसी से ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं हैं । अशोक गुप्ता ने हाल ही के दिनों में विभिन्न डिस्ट्रिक्ट्स के पूर्व गवर्नर्स से खुद भी बात की है, और अपने चेलैंज के लिए समर्थन जुटाने का प्रयास किया है - पर अपने प्रयासों के नतीजों से वह खुद ही बहुत आश्वस्त नहीं हैं । अशोक गुप्ता के नजदीकियों का कहना है कि उनके कई समर्थकों ने हालात की प्रतिकूलता का हवाला देते हुए उन्हें चेलैंज को लेकर आगे न बढ़ने का सुझाव भी दिया है, लेकिन चेलैंज को लेकर अशोक गुप्ता जितना आगे बढ़ चुके हैं - उससे पीछे हटना भी उनके लिए फजीहतभरा होगा । नोमीनेटिंग कमेटी की चुनावी प्रक्रिया में सबसे पहले चुनावी दौड़ से बाहर होने के कारण अशोक गुप्ता की एक बार किरकिरी हो चुकी है, चेलैंज को लेकर वह जिस मँझधार में फँसे नजर आ रहे हैं - उससे लग रहा है कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने के लिए अपनाई गई उनकी कोई भी तरकीब उनके काम नहीं आ पा रही है, और इंटरनेशनल डायरेक्टर बनने का उनका सपना एक बुरा सपना साबित होने जा रहा है ।

Thursday, October 12, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3080 में राजनीतिक रूप से लगातार 'पिट' रहे राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को, कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में टीके रूबी और अजय मदान पर हुए 'हमलों' को चुपचाप देखते रहे, जितेंद्र ढींगरा के रवैये में उम्मीद और उत्साह का 'टॉनिक' मिला

चंडीगढ़ । इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम की मौजूदगी में हुई कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर टीके रूबी पर हुए 'हमलों' के बीच जितेंद्र ढींगरा के चुप बने रहने को राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अपने लिए उम्मीद की किरण के रूप में देख/पहचान रहे हैं । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को यह बात बहुत ही उल्लेखनीय और महत्त्वपूर्ण लगी है कि मीटिंग में टीके रूबी को तरह तरह के आरोपों के जरिए जब घेरा जा रहा था, तब मीटिंग में मौजूद जितेंद्र ढींगरा ने न तो आरोपों का कोई विरोध किया और न ही टीके रूबी का बचाव करने का कोई प्रयास किया । यहाँ तक कि राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स द्वारा मीटिंग में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी अजय मदान की उपस्थिति का आक्रामक ढंग से विरोध किए जाने के मुद्दे पर भी जितेंद्र ढींगरा चुप बने रहे । अजय मदान, जितेंद्र ढींगरा के ही क्लब के सदस्य हैं और समझा जाता है कि जितेंद्र ढींगरा के सुझाव पर ही उन्हें टीके रूबी की टीम में डिस्ट्रिक्ट सेक्रेटरी जैसा महत्त्वपूर्ण पद मिला है । इसके बावजूद, उनके साथ राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स द्वारा की गई बदतमीजी पर जितेंद्र ढींगरा चुप बने रहे - तो इसे राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स अपने लिए एक संभावित अनुकूल स्थिति के रूप में देख रहे हैं ।
दरअसल, राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को लगता है कि उनकी आक्रामक रवैये भरी रणनीति के कारण टीके रूबी जिस तरह अलग अलग किस्म की 'मुसीबतों' में फँसे हैं, उसे देख कर जितेंद्र ढींगरा सावधान और बचाव की मुद्रा में आ गए हैं । उन्हें लगता है कि जितेंद्र ढींगरा को महसूस हो रहा होगा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में टीके रूबी को जिन मुश्किलों का सामना करना पड़ा है, या पड़ रहा है - वैसी मुश्किलें उनके सामने न आएँ;  इसीलिए जितेंद्र ढींगरा, टीके रूबी के 'साथ' होते हुए भी उनसे दूर 'दिखने' का भी प्रयास कर रहे हैं । हालाँकि टीके रूबी चूँकि एक अलग परिस्थिति में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर 'बने' हैं, इसलिए उन्हें परेशान करने के लिए राजा साबू गिरोह के लोगों को कई मौके स्वतः ही मिल गए हैं - जो जितेंद्र ढींगरा के मामले में नहीं मिल सकेंगे; लेकिन राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स ने पिछले दिनों बार बार जिस तरह की नॉनसेंस हरकतें की हैं, उससे लगता नहीं है कि मौके 'बनाने' में उन्हें कोई समस्या आएगी । इस बात को जितेंद्र ढींगरा भी समझ रहे होंगे; और इसी बिना पर राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को लग रहा है कि जितेंद्र ढींगरा संभावित मुसीबतों से बचने के लिए ही उनके साथ टकराव को टालना चाहते हैं और इसीलिए टीके रूबी पर हो रहे शाब्दिक हमलों को लेकर वह चुप ही बने रहे ।
यहाँ इस तथ्य को रेखांकित करना प्रासंगिक होगा कि पिछले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के लिए नोमीनेटिंग कमेटी द्वारा अधिकृत उम्मीदवार चुने जाने के  बाद जितेंद्र ढींगरा को राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के प्रति लचीला रवैया अपनाते हुए 'देखा' गया था, जिसका उन्हें सुफल भी मिला - राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की तरफ से उनके डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बनने में कोई बाधा खड़ी नहीं की गई । हालाँकि गिरोह के दो नेताओं - मधुकर मल्होत्रा और प्रमोद विज ने लोगों के बीच स्पष्ट घोषणा की हुई थी कि वह किसी भी कीमत पर जितेंद्र ढींगरा को डिस्ट्रिक्ट गवर्नर की कुर्सी तक नहीं पहुँचने देंगे । उन दिनों राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स तथा जितेंद्र ढींगरा के बीच शांति स्थापित होती हुई नजर आ रही थी । वास्तव में, इस शांति की दोनों को ही जरूरत थी - राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स लड़ाई/झगड़े के चलते अपनी भारी फजीहत करवा चुके थे, तो जितेंद्र ढींगरा भी समझ रहे थे कि शांति करके ही वह गवर्नरी कर सकेंगे । जितेंद्र ढींगरा चूँकि कुछ समय पहले तक राजा साबू गिरोह के प्रमुख 'लड़ाकुओं' में थे, लिहाजा उनके बीच शांति स्थापित होने में ज्यादा समस्या भी नहीं आई । लेकिन अप्रत्याशित रूप से घटे घटनाचक्र में जब टीके रूबी को वर्ष 2017-18 की गवर्नरी मिल गई, तब अचानक से हालात फिर पहले वाली स्थिति में पहुँच गए ।
टीके रूबी को गवर्नरी मिलने से राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की छाती पर जो साँप लोटा, उसकी फुँकार ने राजा साबू और उनके गिरोह के पूर्व गवर्नर्स की तरफ बढ़ते जितेंद्र ढींगरा के कदमों को रोकने का भी काम किया । गवर्नर बनने के बाद से टीके रूबी को राजा साबू गिरोह की तरफ से जिन भी चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, वह यूँ तो उन्होंने अकेले ही भोगी/निपटाई हैं - लेकिन जितेंद्र ढींगरा हमेशा ही उनके सहयोगी बने भी दिखाई दिए हैं; किंतु इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम की मौजूदगी में संपन्न हुई कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में पहली बार  जितेंद्र ढींगरा और टीके रूबी के बीच कुछ 'गैप' देखा गया । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को इस गैप में अपनी साँसे वापस मिलती दिख रही हैं, और जिसे वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में भुनाना चाहेंगे । राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए इस वर्ष होने वाला डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव बिलकुल जीने/मरने जैसा मामला है । हालाँकि वह अभी तक कोई ऐसा उम्मीदवार नहीं खोज पाए हैं, जो टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा की मिलीजुली ताकत का मुकाबला करने का साहस दिखा सके । इस मामले में राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स के लिए राहत और उम्मीद की बात सिर्फ यही है कि टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के उम्मीदवार के रूप में देखे/पहचाने जा रहे रमेश बजाज का चुनाव अभियान ढीला/ढाला ही है, और वह पूरी तरह टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के भरोसे हैं; ऐसे में टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के बीच दिख रहा गैप रमेश बजाज के लिए मुसीबत बढ़ाने वाला भी साबित हो सकता है - रमेश बजाज की उम्मीदवारी को लेकर जितेंद्र ढींगरा की असहमति की चर्चा पहले से है भी ।
डिस्ट्रिक्ट में कई लोगों का मानना और कहना लेकिन यह भी है कि कुछेक मौकों पर टीके रूबी और जितेंद्र ढींगरा के व्यवहार और रवैये में फर्क भले ही नजर आता हो, किंतु उसे दोनों के बीच बनते/बढ़ते गैप के रूप में देखना राजनीतिक नासमझी और जल्दबाजी में निर्णय पर पहुँचने का सुबूत है । इसके अलावा, राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स खुद बुरी तरह बँटे हुए हैं - वह टीके रूबी के सामने मुसीबत खड़ी करने के मामले में तो आपसी बैरभाव भूल कर एकसाथ हो जाते हैं, लेकिन सत्ता में अपनी वापसी करने को लेकर किसी रोडमैप पर उनके बीच सचमुच एकता हो सकना अभी तो मुश्किल क्या, असंभव ही दिख रहा है । राजनीतिक रूप से लगातार 'पिट' रहे राजा साबू गिरोह के पूर्व गवर्नर्स को बासकर चॉकलिंगम की मौजूदगी में हुई कॉलिज ऑफ गवर्नर्स की मीटिंग में टीके रूबी और अजय मदान पर हुए 'हमलों' को चुपचाप देखते रहे जितेंद्र ढींगरा के रवैये में उम्मीद और उत्साह का 'टॉनिक' जरूर मिला है ।

Wednesday, October 11, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 की मुकदमेबाजी में नैनीताल हाई कोर्ट का फैसला गवर्नरी पाने के लिए तरह तरह के फार्मूलों पर काम कर रहे दिनेश शर्मा के लिए खासा फजीहत भरा है

सिकंदराबाद । दिनेश शर्मा ने जिस कोर्ट-कचहरी के जरिए अपनी उम्मीदों और सपनों को पूरा करने, अन्यथा रोटरी को ही भाड़ में भेजने की तैयारी की हुई थी - उसी कोर्ट-कचहरी ने न सिर्फ उनकी उम्मीदों और सपनों पर पानी फेर दिया है, बल्कि पटरी पर लौटते 'दिख' रहे डिस्ट्रिक्ट में उनकी स्थिति को और कमजोर बना दिया है । नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले के बाद वर्ष 2018-19 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हो रहे चुनाव पर छाए संकट के बादल पूरी तरह छंट गए हैं, और जल्दी ही अगले रोटरी वर्ष के लिए डिस्ट्रिक्ट को गवर्नर मिल जाने का रास्ता साफ हो गया है । नैनीताल हाई कोर्ट ने जिस सख्त 'लहजे' में फैसला सुनाया है और निचली अदालत के 'तरीके' पर टिप्पणी की है, उससे निचली अदालत से अपनी जीत का फैसला ला कर गवर्नर बनने का दिनेश शर्मा का दावा भी कमजोर पड़ गया है । उल्लेखनीय है कि दिनेश शर्मा और उनके संगी-साथी लगातार यह दावा करते रहे हैं कि निचली अदालत में तो उनके पक्ष में फैसला आएगा ही, और तब वह गवर्नर भी बन जायेंगे । पिछले दिनों निचली अदालत से वह जिस तरह से वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए हो रहे चुनाव को रुकवाने का फैसला करवा लाए थे, उससे उन्हें और उन्हें भड़का कर अपनी राजनीति चमका रहे लोगों को तो विश्वास भी हो चला था कि अब वह रोटरी इंटरनेशनल को 'घुटनों' पर ले आयेंगे और अपने पक्ष में मनमाने फैसले करवा लेंगे । लेकिन नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले के बाद दिनेश शर्मा और उन्हें भड़काने वाले नेताओं का सारा विश्वास डोल गया है । इस फैसले से यह भी स्पष्ट हो गया है कि कोर्ट-कचहरी के जरिए दिनेश शर्मा ने जो नाटक फैलाया हुआ था, वह भी अब ज्यादा दिन नहीं चलेगा ।
नैनीताल हाई कोर्ट के फैसले से यह स्पष्ट हो गया है कि दिनेश शर्मा की अदालती कार्रवाई अगले रोटरी वर्षों के गवर्नर के लिए होने वाले चुनावों की प्रक्रिया के लिए कोई बाधा नहीं बनेगी । अगले दो सप्ताह में डिस्ट्रिक्ट को अगले रोटरी वर्ष का गवर्नर मिल जायेगा, और अगले चार-छह महीने में वर्ष 2019-2020 के गवर्नर पद के लिए भी चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाने की उम्मीद है । दिनेश शर्मा रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के साथ सौदेबाजी में लगे हुए थे और अगले रोटरी वर्ष की गवर्नरी पाने की उम्मीद लगाए हुए थे - वह यदि उचित समय पर सौदेबाजी को अंजाम दे दिए होते, और डिस्ट्रिक्ट के गिरोहबाज पूर्व गवर्नर्स पर निर्भर होने की बजाए डिस्ट्रिक्ट के लोगों के साथ भरोसे के संबंध बनाने का प्रयास करते - तो बहुत संभावना थी कि अगले रोटरी वर्ष में उन्हें गवर्नरी मिल जाती । लेकिन वह जिस बेवकूफीभरी अकड़ में रहे, और डिस्ट्रिक्ट के गिरोहबाज पूर्व गवर्नर्स के साथ मिल कर न सिर्फ रोटरी इंटरनेशनल की तरफ से नियुक्त किए गए पदाधिकारी संजय खन्ना से, बल्कि इंटरनेशनल डायरेक्टर बासकर चॉकलिंगम तक से लुकाछिपी खेलते हुए भिड़ते रहे - उससे उन्होंने कुल मिलाकर अपना ही नुकसान कर लिया है और अब लग यही रहा है कि डिस्ट्रिक्ट में अपने लिए कोई हैसियत या सम्मानजनक स्थान पाने/लेने की स्थिति से भी वह दूर होते जा रहे हैं ।
दिनेश शर्मा ने जो नया शगूफा छोड़ा है, उससे उन्होंने खुद को और फजीहत में फँसा लिया है । रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों से वह सौदेबाजीभरी गुजारिश कर रहे हैं कि वह अपना मुकदमा वापस ले लेते हैं, जिसके बदले में वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए हो रहे चुनाव को रोक कर दोबारा से चुनावी प्रक्रिया शुरू हो - जिसमें अभी के चारों उम्मीदवारों को उम्मीदवारी न प्रस्तुत करने के लिए वह राजी कर लेंगे और वह अकेले ही उम्मीदवार होंगे और इस तरह वर्ष 2018-19 के लिए वह गवर्नर चुन लिए जायेंगे । उनकी इस बात पर रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारी हँस ही रहे हैं, और सोच रहे हैं कि दिनेश शर्मा खुली आँखों से भी कैसे कैसे सपने देख लेते हैं ? कुछेक लोग मजे भी ले रहे हैं । उनकी तरफ से दिनेश शर्मा को कहा गया है कि अब जो स्थिति है उसमें उनके अगले रोटरी वर्ष का गवर्नर बनने की एक ही सूरत है और वह यह कि चुनावी प्रक्रिया के बीच में ही सही, चारों उम्मीदवार अपनी अपनी उम्मीदवारी वापस लेने के साथ साथ यह घोषणा भी कर दें कि अभी तक की वोटिंग के आधार पर उनकी जीत यदि घोषित भी की गई, तो वह उसे स्वीकार नहीं करेंगे - तब रोटरी इंटरनेशनल को झक मार कर दोबारा चुनाव करवाना ही पड़ेगा । यह सुझाव देने वाले लोग कोई सुझाव नहीं दे रहे हैं, बल्कि वास्तव में दिनेश शर्मा की फिरकी ले रहे हैं । इस तरह की बातों के बीच, दिनेश शर्मा के नजदीकियों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट के गिरोहबाज पूर्व गवर्नर्स ने अपने चक्कर में फँसा कर दिनेश शर्मा की खासी फजीहत करवा दी है ।

Tuesday, October 10, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल की बेईमानीपूर्ण हरकतों का रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों द्वारा संज्ञान लिए जाने की खबर से आलोक गुप्ता की चुनावी जीत के रंग में भंग पड़ा और उनकी जीत विवाद के घेरे में आ गई

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जल्दी कराए जाने के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सतीश सिंघल के फैसले के पीछे बेईमानी और बदनीयती के आरोपों का रोटरी इंटरनेशनल द्वारा संज्ञान लिए जाने की खबर ने आलोक गुप्ता की जीत के जोश को ठंडा करने तथा 'आगे' के लिए उनकी मुश्किलों का बढ़ाने का काम किया है । उल्लेखनीय है कि आज सुबह आलोक गुप्ता की चुनावी जीत की खबर मिलने के साथ ही सतीश सिंघल को दिल्ली स्थित रोटरी इंटरनेशनल के साऊथ एशिया ऑफिस से यह खबर भी मिली कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने जल्दी चुनाव करवाए जाने के पीछे उनकी पक्षपातपूर्ण बेईमानी और बदनीयती को पहचाना है और अपने स्तर पर इसकी जाँच करवाने का निश्चय किया है । सतीश सिंघल ने अपनी तरफ से तो खबर को छिपाने की कोशिश की, लेकिन साऊथ एशिया ऑफिस से ही डिस्ट्रिक्ट 3011 के कुछेक पूर्व गवर्नर्स को भी यह खबर मिली, तब फिर सतीश सिंघल के लिए इसे छिपाए रखना मुश्किल हो गया । सतीश सिंघल ने हालाँकि यह कहते हुए बेफिक्री दिखाने/जताने का प्रयास जरूर किया कि रोटरी इंटरनेशनल के नियमों के अनुसार ही डिस्ट्रिक्ट गवर्नर को यह अधिकार प्राप्त है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव वह कब करवाए, इसलिए इस संबंध में की गई शिकायत और या होने वाली जाँच का कोई अर्थ नहीं है - लेकिन मामले में रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के दिलचस्पी लेने की खबर के कारण आलोक गुप्ता की चुनावी जीत के रंग में भंग जरूर पड़ गया है और उनकी जीत विवाद के घेरे में आ गई है ।
मजे की बात यह है कि जल्दी चुनाव करवाए जाने को लेकर रोटरी इंटरनेशनल में कोई ऑफिशियल शिकायत नहीं की गई है । साऊथ एशिया ऑफिस से भी जो जानकारी मिली है, उसके अनुसार भी जल्दी चुनाव करवाने के पीछे बेईमानी और बदनीयती का संज्ञान रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने खुद से ही लिया है । दरअसल, सतीश सिंघल का यह फैसला रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों के संज्ञान में खुद-ब-खुद रोटरी में सतीश सिंघल की कुख्याति के कारण आया जान पड़ता है । रोटरी नोएडा ब्लड बैंक में हिसाब-किताब की गड़बड़ियों के कारण सतीश सिंघल को रोटरी में रोटरी के नाम पर धंधा करने वाले व्यक्ति के रूप में देखा/पहचाना जाता है । इस 'पहचान' के कारण - 'बद अच्छा बदनाम बुरा' वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए उनके हर कदम को संदेह की निगाह से देखा जाता है । संभवतः यही वजह रही कि जल्दी चुनाव करवाने की सतीश सिंघल की घोषणा को संदेह की निगाह से देखा गया, और रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने अपने स्तर पर सतीश सिंघल के असली इरादे को भाँपने/समझने की कोशिश की । पिछले दिनों दिल्ली में आयोजित हुए रोटरी के बड़े कार्यक्रमों में रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारी और नेता शामिल हुए तो उन्हें सतीश सिंघल की हरकतों और बेईमानियों के तरह तरह के किस्से सुनने को मिले । इन्हीं किस्सों में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को प्रमोट करने तथा क्लब्स के प्रेसीडेंट्स पर आलोक गुप्ता को तवज्जो देने के लिए दबाव बनाने के उनके प्रयासों का भी जिक्र हुआ । समझा जाता है कि इसके बाद से ही रोटरी इंटरनेशनल के बड़े पदाधिकारियों ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव से जुड़ी कारगुजारियों पर निगाह रखना शुरू किया ।
डिस्ट्रिक्ट 3012 में चुनावी विवादों का हाल का रिकॉर्ड कुछ अच्छा नहीं है । पीछे संपन्न हुए सीओएल तथा इंटरनेशनल डायरेक्टर के चुनाव के लिए बनने वाली नोमीनेटिंग कमेटी के चुनाव विवाद और आरोपों में पड़े और मामला रोटरी इंटरनेशनल तक पहुँचा । डिस्ट्रिक्ट के पूर्व गवर्नर मुकेश अरनेजा की बदनामी का आलम यह है कि पिछली रोटरी इंस्टीट्यूट की कमेटी में तत्कालीन इंटरनेशनल डायरेक्टर मनोज देसाई ने उन्हें जगह तक नहीं दी । सतीश सिंघल के साथ उन्हीं मुकेश अरनेजा ने भी आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी की कमान सँभाली हुई थी और आरोप सुने जा रहे थे कि डीआरएफसी के रूप में मुकेश अरनेजा ने आलोक गुप्ता के लिए वोट जुटाने के  उद्देश्य से डीडीएफ की सौदेबाजी की । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल की भरपूर बदनामी के कारण, आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए उनके द्वारा अपनाए जा रहे हथकंडों ने उनकी बदनामी की आग को घी डाल कर भड़काने का काम किया । यही कारण रहा कि रोटरी इंटरनेशनल के पदाधिकारियों ने कोई ऑफिशियल शिकायत हुए बिना, खुद से संज्ञान लेकर जल्दी चुनाव करवाने के पीछे छिपी बेईमानी और बदनीयती की जाँच करने का फैसला लिया है । उल्लेखनीय है कि पड़ोसी डिस्ट्रिक्ट - डिस्ट्रिक्ट 3011 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर इलेक्ट विनय भाटिया के चुनाव के मामले में भी रोटरी इंटरनेशनल ने बिना ऑफिशियल शिकायत हुए, खुद से संज्ञान लेकर चुनावी बेईमानी की जाँच की थी और जाँच में आरोपों को सच पाए जाने पर इंटरनेशनल बोर्ड ने तीन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के खिलाफ सख्त टिप्पणियाँ की थीं ।
मजे की बात है कि सतीश सिंघल डिस्ट्रिक्ट 3011 के उक्त मामले को अपनी और आलोक गुप्ता की ढाल के रूप में देख रहे हैं और आश्वस्त हैं कि चुनावी बेईमानी के दोषी पाए जाने के बावजूद जैसे वहाँ 'वास्तव' में किसी का कुछ नहीं बिगड़ा, वैसे ही यहाँ भी नहीं बिगड़ेगा - बदनामी से डरना क्या ? बदनाम हैं तो क्या, नाम तो है । दरअसल मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने तो अपने आप को बदनामी के कीचड़ में 'एडजस्ट' कर लिया है; आलोक गुप्ता के लिए लेकिन 'सिर मुंडाते ओले पड़ने' वाली बात हो गयी है । एक अच्छी जीत की खबर के साथ-साथ, उनकी चुनावी जीत को 'मैनेज' करने के मामले को इंटरनेशनल पदाधिकारियों द्वारा संज्ञान में लेने की खबर भी आने से उनकी जीत का उत्साह तो ठंडा पड़ा है - रोटरी इंटरनेशनल पदाधिकारियों और नेताओं के बीच उनका नाम मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल जैसे पहले से बदनाम लोगों के साथ सीधे-सीधे और जुड़ गया है ।

Sunday, October 8, 2017

थैंक्यू मिस्टर राजा साबू और मिस्टर यशपाल दास, काफी हील-हुज्जत के बाद आखिरकार आपने रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट तो दे दिए हैं; लेकिन रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर 'निकाले' गए दो करोड़ 83 लाख रुपए कहाँ और कैसे खर्च हुए - यह आपने क्यों नहीं बताया ?

अंबाला । 'रचनात्मक संकल्प' को अंबाला के एक अज्ञात/अनजान नंबर से आई फोन कॉल पर थोड़ी खीज, थोड़े गुस्से और थोड़ी ठसक से भरी आवाज में बताया गया कि 'आपको रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट देखने हैं तो रोटरी न्यूज ऑनलाइन पर देख लीजिये ।' उक्त आवाज से अभी उसका परिचय ही पूछा गया था, कि फोन काट कर उक्त आवाज चुप हो गई । तब 'रचनात्मक संकल्प' के पास रोटरी न्यूज ऑनलाइन पर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा । 'रचनात्मक संकल्प' यूँ तो खोजबीन करने में अपने आप को बड़ा होशियार मानता/समझता है, लेकिन रोटरी न्यूज ऑनलाइन की भूल-भुलैय्या में रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट वाली पोस्ट खोजने में उसके लिए नाकों चने चबाने वाली स्थिति बन गई । खासी मशक्कत के बाद आखिरकार उक्त पोस्ट खोज ली गई । इस मशक्कत में बार बार इस सवाल ने भी परेशान किया कि उक्त ट्रस्ट के मुख्य कर्ताधर्ता पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास ने वायदा तो उक्त ट्रस्ट के हिसाब/किताब को जीएमएल में प्रकाशित करवाने का किया था, फिर उन्होंने हिसाब/किताब ऐसी भूल-भुलैय्या वाली जगह पर प्रकाशित क्यों किया/करवाया है - जहाँ उसे देख पाना आसान न हो । यशपाल दास ने आखिर यह परस्पर विरोधी रवैया क्यों अपनाया - जिसमें एक तरफ तो वह हिसाब/किताब प्रकाशित करवाने का दावा कर सकें; और दूसरी तरफ उन्होंने ऐसी जगह हिसाब/किताब प्रकाशित किए/करवाए, जहाँ कोई आसानी से देख न सके ।
रोटरी के बड़े नेताओं व पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बड़े और महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के पूरे होने की खबर गुमनाम तरीके से प्रकाशित किए/करवाए जाने का नतीजा यह है कि खबर को प्रकाशित हुए एक सप्ताह से अधिक का समय हो जाने के बाद भी पोस्ट पर सिर्फ एक कमेंट आया है - और वह भी मधुकर मल्होत्रा का । उक्त ट्रस्ट को 33 डिस्ट्रिक्ट्स से पैसे मिले हैं । किसी डिस्ट्रिक्ट के किसी भी रोटेरियन ने उक्त हिसाब/किताब को नहीं देख पाया है क्या, या इस हिसाब/किताब को मधुकर मल्होत्रा के अलावा अन्य किसी ने तारीफ के लायक नहीं समझा है ? वास्तव में एक अकेले मधुकर मल्होत्रा के प्रशंसा भरे कमेंट ने हिसाब/किताब वाली उक्त पोस्ट को और भी संदेहास्पद बना दिया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब में हेराफेरी के आरोपों को लेकर जो राजा साबू और यशपाल दास लोगों के निशाने पर रहे हैं, मधुकर मल्होत्रा को उनके ही संगी-साथी के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सेवा कार्यों की आड़ में मौज-मजा और तफ़रीह करने के आरोपों के घेरे में मधुकर मल्होत्रा का नाम भी सुना जाता रहा है । ऐसे में, रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट की गुमनाम तरीके से प्रकाशित की/करवाई गई रिपोर्ट पर एक अकेले मधुकर मल्होत्रा द्वारा ही की गई प्रशंसा ने दाल में कुछ ज्यादा ही काला होने का संकेत दिया ।
यह संकेत रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट पर सरसरी निगाह डालते ही 'तथ्य' में बदलता हुआ नजर आया । और यह तथ्य इस बात का सुबूत भी है कि राजा साबू और यशपाल दास लोगों की आँखों में धूल झौंकने का कैसा कैसा साहस रखते हैं । वर्ष 2015-16 की बैलेंस शीट में दो करोड़ 83 लाख रुपए स्कूल रिस्टेब्लिशमेंट फंड में ट्रांसफर दिखाए गए हैं । रिस्टेब्लिशमेंट फंड में इससे पहले के दो वर्षों में क्रमशः 28 लाख रुपए तथा दो करोड़ 55 लाख रुपए, यानि कुल दो करोड़ 83 लाख रुपए 'खर्च' किए हुए दिखाए गए हैं । ऐसे में सवाल यह है कि वर्ष 2013-14 और वर्ष 2014-15 में रिस्टेब्लिशमेंट फंड में जब दो करोड़ 83 लाख रुपए के खर्च का हिसाब 'बराबर' हो गया था, तब वर्ष 2015-16 में उक्त मद में और दो करोड़ 83 लाख रुपए ट्रांसफर करने का क्या मतलब है ? यह 'क्या मतलब' इसलिए और बड़ा हो जाता है कि वर्ष 2015-16 की बैलेंस शीट में ट्रस्टियों में से किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं । नियमानुसार, ट्रस्टियों के हस्ताक्षर के बिना बैलेंसशीट मान्य ही नहीं है । तो क्या यशपाल दास और राजा साबू ने जानबूझ वर्ष 2015-16 की बैलेंसशीट पर इसीलिए हस्ताक्षर नहीं किए हैं, कि कहीं दो करोड़ 83 लाख रुपए का मामला 'पकड़ा' गया तो वह अपने आप को बचा लें ? उल्लेखनीय है कि बाकी तीन वर्षों की बैलेंसशीट में यशपाल दास के तीन तथा दो में राजा साबू के हस्ताक्षर हैं ।
रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब में एक और मजेदार चीज देखने को मिली - इसमें एक तरफ तो फोटोस्टेट करवाने में खर्च हुए 140 रुपए और बैंक चार्ज में खर्च हुए 56 रुपए तक का हिसाब देते हुए दिखाने/जताने का प्रयास किया गया है कि जैसे एक एक पैसे का हिसाब दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर बिना कोई डिटेल्स दिए हुए लाखों और करोड़ों रुपए खर्च हुए दिखा दिए गए हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब/किताब में गड़बड़ी के जो संदेह पैदा हुए और आरोप लगने शुरू हुए, वह वास्तव में इसलिए ही गहराते गए क्योंकि हिसाब/किताब को छिपाने की कोशिश की जाती रही - और हिसाब/किताब पूछने वालों से चिढ़ने, नाराज होने तथा उनको 'दुश्मन' समझने का व्यवहार प्रदर्शित किया गया । तमाम हील-हुज्जत के बाद अब जब हिसाब/किताब सामने आए भी हैं, तो उनमें भी बताने/दिखाने से ज्यादा 'छिपाने' का प्रयास नजर आ रहा है । गुमनाम और भूल-भुलैय्या वाली जगह पर दिए गए हिसाब/किताब में ट्रस्ट को पैसे कहाँ कहाँ से और कितने कितने मिले हैं, इसका तो बड़ा विस्तृत विवरण दिया गया है, लेकिन पैसे खर्च कहाँ और कैसे हुए हैं - इसका विस्तृत विवरण छिपा लिया गया है । बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर विभिन्न वर्षों में जो लाखों और करोड़ों रुपए खर्च दिखाए गए हैं, उनके भी विस्तृत विवरण यदि दे दिए जाते, तो ट्रस्ट के पैसों में हेराफेरी और गड़बड़ी का संदेह करने वाले लोगों के मुँह अपने आप बंद हो जाते । इसकी बजाए, पहले तो हिसाब/किताब देने में तरह तरह की बहानेबाजी करने, दबाव पड़ने पर घोषित जगह की बजाए गुमनाम और भूल-भुलैय्या वाली जगह पर हिसाब/किताब देने, और वह भी आधे-अधूरे ढंग से और अमान्य बैलेंसशीट से देने की कोशिश ने ट्रस्ट के पैसों में गड़बड़ी और हेराफेरी के संदेहों और आरोपों को और हवा देने का ही काम किया है । ट्रस्टियों के हस्ताक्षर के बिना दिखाई जा रही वर्ष 2015-16 की बैलेंसशीट में दो करोड़ 83 लाख रुपयों के ट्रांसफर के तथ्य ने मामले को खासा गंभीर बना दिया है ।

Saturday, October 7, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में रमेश अग्रवाल से हुए 'सौदे' के चलते मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने यदि अशोक जैन को समर्थन दिया, तो अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का क्या होगा ?

गाजियाबाद । अशोक जैन द्वारा अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी में दिलचस्पी लेने तथा उनकी उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल का भी समर्थन होने की खबरों ने अमित गुप्ता की सारी प्लानिंग को चौपट करने का खतरा पैदा कर दिया है । उल्लेखनीय है कि अमित गुप्ता की तरफ से लगातार यह दावा किया/सुना जाता रहा है कि अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने उनकी उम्मीदवारी का समर्थन करने का आश्वासन उन्हें दिया हुआ है । माना/समझा तो यहाँ तक जाता है कि उनके समर्थन के भरोसे ही अमित गुप्ता ने अगले रोटरी वर्ष की उम्मीदवारी के लिए तैयारी की हुई है; और उनके समर्थन के भरोसे ही अमित गुप्ता ने अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सुभाष जैन और क्लब के प्रमुख सदस्यों के ऐतराज तक को नजरअंदाज किया हुआ है । अमित गुप्ता चूँकि सुभाष जैन के क्लब के ही सदस्य हैं, इसलिए सुभाष जैन और क्लब के अन्य प्रमुख लोगों का लगातार कहना रहा कि अगले रोटरी वर्ष में सुभाष जैन और क्लब के प्रमुख सदस्य गवर्नरी 'करने/चलाने' के काम में व्यस्त रहेंगे, इसलिए अमित गुप्ता की उम्मीदवारी के पक्ष में काम करने के लिए वह समय नहीं निकाल सकेंगे - और इस कारण से अमित गुप्ता अगले रोटरी वर्ष की बजाए उससे आगे के वर्ष में उम्मीदवारी प्रस्तुत करें । अमित गुप्ता की तरफ से लोगों को लेकिन हमेशा ही इस बात का यही जबाव सुनने को मिला कि अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के उम्मीदवार के रूप में वह स्वयं ही काम कर लेंगे और सुभाष जैन या क्लब के लोगों से सहयोग लेने/मिलने की कोशिश या उम्मीद वह नहीं करेंगे - और सहयोग न मिलने की किसी से कोई शिकायत भी वह नहीं करेंगे ।
अपने क्लब के लोगों के ऐतराज के बाद भी अमित गुप्ता के अगले वर्ष के लिए ही अपनी उम्मीदवारी पर डटे रहने के पीछे मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल के समर्थन को ही देखा/पहचाना जा रहा है । अमित गुप्ता के नजदीकियों के अनुसार ही, अगले रोटरी वर्ष की सिचुऐशन अमित गुप्ता को पूरी तरह अपने अनुकूल लग रही है - अमित गुप्ता को लग रहा है कि अगले रोटरी में सुभाष जैन चूँकि गवर्नरी करने में व्यस्त रहेंगे इसलिए उनकी मदद भले ही न कर सकें, लेकिन उनकी उम्मीदवारी का विरोध भी नहीं कर सकेंगे । दरअसल अमित गुप्ता को डर यह है कि सुभाष जैन कभी भी उनकी उम्मीदवारी को स्वीकार नहीं कर पायेंगे - उनके नजदीकियों को ही लगता है कि उन्हें यह बात मुकेश अरनेजा ने ही समझाई होगी कि सुभाष जैन कभी भी नहीं चाहेंगे कि क्लब में उनके अलावा और कोई भी गवर्नर हो जाए; इसलिए सुभाष जैन का गवर्नर-वर्ष ही उनके लिए उम्मीदवार बनने का बढ़िया मौका है । नजदीकियों की मानें तो मुकेश अरनेजा की समझाइस के अनुसार, अगले वर्ष की चुनावी राजनीति के परिदृश्य को लेकर अमित गुप्ता का आकलन यह है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के नाते सुभाष जैन उनकी उम्मीदवारी में कोई समस्या पैदा नहीं करेंगे और मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल के समर्थन के बूते वह आसानी से अपनी उम्मीदवारी की नाव को पार करा लेंगे ।
अमित गुप्ता इस आकलन के भरोसे अपनी उम्मीदवारी को लेकर बेहद आश्वस्त रहे और इसी आश्वस्ति के चलते उन्होंने अपने क्लब के लोगों की भी एक नहीं सुनी । किंतु अब जब वह अशोक जैन की संभावित उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल के समर्थन की बात सुन रहे हैं, तो उन्हें चिंता हुई है । सुना/बताया जा रहा है कि मुकेश अरनेजा ने मौजूदा वर्ष के चुनाव में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए रमेश अग्रवाल का समर्थन जुटाने के ऐवज में रमेश अग्रवाल से सौदा किया था, जिसके तहत अशोक जैन को अगले वर्ष समर्थन देने की बात है । उक्त सौदे के अनुरूप ही अशोक जैन ने अपनी उम्मीदवारी के लिए तैयारी करना शुरू कर दी है - हालाँकि वास्तविक खेल इस वर्ष के चुनाव का नतीजा आने के बाद ही शुरू होगा । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को सफल बनाने के लिए मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल ने जो चौतरफा 'फील्डिंग' लगाई थी, उसके चलते उन्हें आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के सफल होने की उम्मीद तो पूरी है; और सफल होने पर रमेश अग्रवाल तथा अन्य लोगों से किए गए सौदों का 'भुगतान' भी हो जाएगा - लेकिन किसी कारण से चुनावी नतीजा मनमाफिक नहीं आया तो उसका खामियाजा रमेश अग्रवाल और अशोक जैन को भी भुगतना पड़ेगा । अमित गुप्ता इसीलिए अशोक जैन की उम्मीदवारी को मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल के समर्थन की बात से निराश महसूस करने के बावजूद उम्मीद की लौ भी जलाए हुए हैं; वह इस बात को भी जानते ही हैं कि रोटरी की चुनावी राजनीति में वायदों और आश्वासनों की उम्र ज्यादा लंबी नहीं होती है । देखना दिलचस्प होगा कि मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल से अमित गुप्ता को मिला आश्वासन सच्चा साबित होता है, या झाँसा - और यदि झाँसा साबित हुआ तो अमित गुप्ता की उम्मीदवारी का क्या होगा ?