Friday, October 20, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री की चुनावी राजनीति में सीमेंट की एजेंसी दिलवाने की बात को मुद्दा बना कर सुरेश बिंदल क्या सचमुच संकरन जयरमन की उम्मीदवारी को केएल खट्टर का समर्थन दिलवा सकेंगे ?

नई दिल्ली । फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की उम्मीदवारी के मामले में विपिन शर्मा को पीछे हटता देख सुरेश बिंदल ने संकरन जयरमन की उम्मीदवारी को हवा दी है, और दावा करना शुरू किया है कि केएल खट्टर अपना और हरियाणा के दूसरे पूर्व गवर्नर्स का समर्थन संकरन जयरमन को दिलवायेंगे । सुरेश बिंदल के दावे के अनुसार तो उनकी केएल खट्टर से इस बारे में बात भी हो गई है, और उनसे आश्वासन मिलने के बाद ही वह जयरमन की उम्मीदवारी को लेकर आगे बढ़े हैं । अपने दावे को विश्वसनीय बनाने/दिखाने के लिए सुरेश बिंदल ने तर्क भी जोरदार दिया है और वह यह कि केएल खट्टर को जेके सीमेंट की एजेंसी जयरमन के कारण ही मिली है, इसलिए केएल खट्टर उस अहसान का बदला चुकाने के लिए क्या इतना भी नहीं करेंगे ? सुरेश बिंदल का दावा भले ही है, लेकिन केएल खट्टर के लिए सीमेंट की एजेंसी मिलने के अहसान के ऐवज में फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए जयरमन की उम्मीदवारी का सचमुच समर्थन करना और दूसरे नेताओं से भी समर्थन दिलवाना आसान नहीं होगा ।
दरअसल केएल खट्टर के लिए प्राथमिकता सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के लिए हरियाणा से 'अपना' उम्मीदवार तय करने - और उसे जितवाने की है । हरियाणा में लोगों के बीच की चर्चाओं के अनुसार, केएल खट्टर की पसंद तो सुरेश जिंदल हैं - लेकिन वहाँ 'दम' पुनीत बंसल में नजर आ रहा है । ऐसे में, केएल खट्टर के सामने दिल्ली के ऐसे उम्मीदवार का समर्थन करने की मजबूरी आएगी, जिसके समर्थक नेता सुरेश जिंदल को 'जितवा' सकते हों । सुरेश बिंदल पर तो केएल खट्टर को भरोसा नहीं है; उन्हें दूर दूर तक यह उम्मीद नहीं है कि सुरेश जिंदल दिल्ली में सुरेश जिंदल को इतना समर्थन दिलवा सकेंगे कि सुरेश जिंदल की चुनावी नैय्या पार हो जाए । केएल खट्टर को इस बारे में यदि जरा सी भी उम्मीद होती तो सुरेश बिंदल के साथ उनका 'समझौता' हो गया होता और सुरेश बिंदल को अकेले ही दावा नहीं करना पड़ता । जयरमन की उम्मीदवारी के संदर्भ में सुरेश जिंदल के दावे पर चूँकि केएल खट्टर ने ही चुप्पी साधी हुई है, इसलिए उनका दावा लोगों के बीच संदेहास्पद ही बना हुआ है ।
सुरेश बिंदल के लिए मुसीबत की बात यह बनी हुई है कि विपिन शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी को अभी पूरी तरह से वापस नहीं लिया है, और वह पुनर्वापसी के मौके की तलाश में हैं । उल्लेखनीय है कि पिछले दिनों रामलीला के एक आयोजन में पूर्व गवर्नर्स के सम्मान का जो एक कार्यक्रम उन्होंने रखा था, उसके फ्लॉप होने पर विपिन शर्मा को यह बात तो अच्छे से समझ में आ गई थी कि सुरेश बिंदल के भरोसे तो वह गवर्नर नहीं बन सकेंगे - और इसीलिए उन्होंने अपनी उम्मीदवारी से पीछे हटने के संकेत दे दिए थे । डिस्ट्रिक्ट के चुनावी महाभारत में पाँच पाँडवों वाली भूमिका निभा रहे डीके अग्रवाल, दीपक तलवार, अजय बुद्धराज, अरुण पुरी और दीपक टुटेजा ने उक्त कार्यक्रम का बहिष्कार करके यह स्पष्ट संकेत दे दिया था कि सुरेश बिंदल के उम्मीदवार के रूप में विपिन शर्मा को वह कतई कोई तवज्जो नहीं देंगे । विपिन शर्मा ने भी उनके इस संकेत को 'सम्मान' देते हुए 'जता' दिया कि उनसे तवज्जो नहीं मिलने की सूरत में वह भी उम्मीदवार नहीं बनेंगे । विपिन शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि उनके इस 'रिएक्शन' को पाँडवों वाली टीम ने सकारात्मक तरीके से लिया है, और उनकी तरफ से विपिन शर्मा को संदेश भिजवाया गया है कि उन्हें विपिन शर्मा से कोई समस्या नहीं है । इस बात से विपिन शर्मा को उम्मीद बनी है कि वह यदि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में पाँडवों वाली टीम का समर्थन जुटा लें, तो फिर सुरेश बिंदल को भी अपनी उम्मीदवारी के लिए राजी कर ही लेंगे ।
पाँडवों वाली टीम का समर्थन जुटाने के लिए आरके शाह और राजीव अग्रवाल भी प्रयास कर रहे हैं । पूर्व गवर्नर राजिंदर बंसल के 'आदमी' के रूप में देखे/पहचाने जाने के कारण आरके शाह दिल्ली और हरियाणा के नेताओं के बीच फुटबॉल बने हुए हैं - दिल्ली के नेता उनसे कह रहे हैं कि पहले राजिंदर बंसल के जरिए हरियाणा के नेताओं का समर्थन घोषित करवाओ, उधर हरियाणा के नेता कह रहे हैं कि पहले दिल्ली में तो अपने लिए समर्थन घोषित करवाओ । नेताओं के इस रवैये से तंग आकर ही आरके शाह ने घोषित कर दिया है कि उन्हें चाहें किसी का भी समर्थन न मिले, वह तो उम्मीदवार बनेंगे ही । चुनावी नजरिये से सबसे अनुकूल स्थिति राजीव अग्रवाल की समझी जा रही है, हालाँकि इस अनुकूल स्थिति में भी उनके लिए आश्वस्त और सुरक्षित होने वाला मौका अभी नहीं बन सका है - और उनकी अनुकूल स्थिति पर तलवार लगातार लटकी हुई भी है । दरअसल तमाम अनुकूल स्थिति के बावजूद राजीव अग्रवाल अपना कोई 'वकील' तैयार नहीं कर सके हैं, जो नेताओं के बीच उनकी उम्मीदवारी की जोरशोर से वकालत करे । स्थितियाँ फिलहाल राजीव अग्रवाल के अनुकूल हैं, लेकिन बनते/बिगड़ते समीकरणों के बीच कौन जानता है कि स्थितियाँ कब पलटी मार जाएँ ? राजीव अग्रवाल के लिए तो मुसीबत व चुनौती की बात यह हुई है कि उनके 'क्षेत्र' से ही दो दो और उम्मीदवार मैदान में हैं, जो दिख भले ही कमजोर रहे हों - लेकिन चुनावी समीकरणों को बनाने/बिगाड़ने का काम तो कर ही सकते हैं ।