Sunday, October 8, 2017

थैंक्यू मिस्टर राजा साबू और मिस्टर यशपाल दास, काफी हील-हुज्जत के बाद आखिरकार आपने रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट तो दे दिए हैं; लेकिन रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर 'निकाले' गए दो करोड़ 83 लाख रुपए कहाँ और कैसे खर्च हुए - यह आपने क्यों नहीं बताया ?

अंबाला । 'रचनात्मक संकल्प' को अंबाला के एक अज्ञात/अनजान नंबर से आई फोन कॉल पर थोड़ी खीज, थोड़े गुस्से और थोड़ी ठसक से भरी आवाज में बताया गया कि 'आपको रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट देखने हैं तो रोटरी न्यूज ऑनलाइन पर देख लीजिये ।' उक्त आवाज से अभी उसका परिचय ही पूछा गया था, कि फोन काट कर उक्त आवाज चुप हो गई । तब 'रचनात्मक संकल्प' के पास रोटरी न्यूज ऑनलाइन पर जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा । 'रचनात्मक संकल्प' यूँ तो खोजबीन करने में अपने आप को बड़ा होशियार मानता/समझता है, लेकिन रोटरी न्यूज ऑनलाइन की भूल-भुलैय्या में रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट वाली पोस्ट खोजने में उसके लिए नाकों चने चबाने वाली स्थिति बन गई । खासी मशक्कत के बाद आखिरकार उक्त पोस्ट खोज ली गई । इस मशक्कत में बार बार इस सवाल ने भी परेशान किया कि उक्त ट्रस्ट के मुख्य कर्ताधर्ता पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर यशपाल दास ने वायदा तो उक्त ट्रस्ट के हिसाब/किताब को जीएमएल में प्रकाशित करवाने का किया था, फिर उन्होंने हिसाब/किताब ऐसी भूल-भुलैय्या वाली जगह पर प्रकाशित क्यों किया/करवाया है - जहाँ उसे देख पाना आसान न हो । यशपाल दास ने आखिर यह परस्पर विरोधी रवैया क्यों अपनाया - जिसमें एक तरफ तो वह हिसाब/किताब प्रकाशित करवाने का दावा कर सकें; और दूसरी तरफ उन्होंने ऐसी जगह हिसाब/किताब प्रकाशित किए/करवाए, जहाँ कोई आसानी से देख न सके ।
रोटरी के बड़े नेताओं व पदाधिकारियों द्वारा संचालित एक बड़े और महत्त्वपूर्ण प्रोजेक्ट के पूरे होने की खबर गुमनाम तरीके से प्रकाशित किए/करवाए जाने का नतीजा यह है कि खबर को प्रकाशित हुए एक सप्ताह से अधिक का समय हो जाने के बाद भी पोस्ट पर सिर्फ एक कमेंट आया है - और वह भी मधुकर मल्होत्रा का । उक्त ट्रस्ट को 33 डिस्ट्रिक्ट्स से पैसे मिले हैं । किसी डिस्ट्रिक्ट के किसी भी रोटेरियन ने उक्त हिसाब/किताब को नहीं देख पाया है क्या, या इस हिसाब/किताब को मधुकर मल्होत्रा के अलावा अन्य किसी ने तारीफ के लायक नहीं समझा है ? वास्तव में एक अकेले मधुकर मल्होत्रा के प्रशंसा भरे कमेंट ने हिसाब/किताब वाली उक्त पोस्ट को और भी संदेहास्पद बना दिया है । उल्लेखनीय है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब में हेराफेरी के आरोपों को लेकर जो राजा साबू और यशपाल दास लोगों के निशाने पर रहे हैं, मधुकर मल्होत्रा को उनके ही संगी-साथी के रूप में देखा/पहचाना जाता है । सेवा कार्यों की आड़ में मौज-मजा और तफ़रीह करने के आरोपों के घेरे में मधुकर मल्होत्रा का नाम भी सुना जाता रहा है । ऐसे में, रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट की गुमनाम तरीके से प्रकाशित की/करवाई गई रिपोर्ट पर एक अकेले मधुकर मल्होत्रा द्वारा ही की गई प्रशंसा ने दाल में कुछ ज्यादा ही काला होने का संकेत दिया ।
यह संकेत रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के अकाउंट पर सरसरी निगाह डालते ही 'तथ्य' में बदलता हुआ नजर आया । और यह तथ्य इस बात का सुबूत भी है कि राजा साबू और यशपाल दास लोगों की आँखों में धूल झौंकने का कैसा कैसा साहस रखते हैं । वर्ष 2015-16 की बैलेंस शीट में दो करोड़ 83 लाख रुपए स्कूल रिस्टेब्लिशमेंट फंड में ट्रांसफर दिखाए गए हैं । रिस्टेब्लिशमेंट फंड में इससे पहले के दो वर्षों में क्रमशः 28 लाख रुपए तथा दो करोड़ 55 लाख रुपए, यानि कुल दो करोड़ 83 लाख रुपए 'खर्च' किए हुए दिखाए गए हैं । ऐसे में सवाल यह है कि वर्ष 2013-14 और वर्ष 2014-15 में रिस्टेब्लिशमेंट फंड में जब दो करोड़ 83 लाख रुपए के खर्च का हिसाब 'बराबर' हो गया था, तब वर्ष 2015-16 में उक्त मद में और दो करोड़ 83 लाख रुपए ट्रांसफर करने का क्या मतलब है ? यह 'क्या मतलब' इसलिए और बड़ा हो जाता है कि वर्ष 2015-16 की बैलेंस शीट में ट्रस्टियों में से किसी के हस्ताक्षर नहीं हैं । नियमानुसार, ट्रस्टियों के हस्ताक्षर के बिना बैलेंसशीट मान्य ही नहीं है । तो क्या यशपाल दास और राजा साबू ने जानबूझ वर्ष 2015-16 की बैलेंसशीट पर इसीलिए हस्ताक्षर नहीं किए हैं, कि कहीं दो करोड़ 83 लाख रुपए का मामला 'पकड़ा' गया तो वह अपने आप को बचा लें ? उल्लेखनीय है कि बाकी तीन वर्षों की बैलेंसशीट में यशपाल दास के तीन तथा दो में राजा साबू के हस्ताक्षर हैं ।
रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब-किताब में एक और मजेदार चीज देखने को मिली - इसमें एक तरफ तो फोटोस्टेट करवाने में खर्च हुए 140 रुपए और बैंक चार्ज में खर्च हुए 56 रुपए तक का हिसाब देते हुए दिखाने/जताने का प्रयास किया गया है कि जैसे एक एक पैसे का हिसाब दिया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर बिना कोई डिटेल्स दिए हुए लाखों और करोड़ों रुपए खर्च हुए दिखा दिए गए हैं । उल्लेखनीय है कि रोटरी उत्तराखंड डिजास्टर रिलीफ ट्रस्ट के हिसाब/किताब में गड़बड़ी के जो संदेह पैदा हुए और आरोप लगने शुरू हुए, वह वास्तव में इसलिए ही गहराते गए क्योंकि हिसाब/किताब को छिपाने की कोशिश की जाती रही - और हिसाब/किताब पूछने वालों से चिढ़ने, नाराज होने तथा उनको 'दुश्मन' समझने का व्यवहार प्रदर्शित किया गया । तमाम हील-हुज्जत के बाद अब जब हिसाब/किताब सामने आए भी हैं, तो उनमें भी बताने/दिखाने से ज्यादा 'छिपाने' का प्रयास नजर आ रहा है । गुमनाम और भूल-भुलैय्या वाली जगह पर दिए गए हिसाब/किताब में ट्रस्ट को पैसे कहाँ कहाँ से और कितने कितने मिले हैं, इसका तो बड़ा विस्तृत विवरण दिया गया है, लेकिन पैसे खर्च कहाँ और कैसे हुए हैं - इसका विस्तृत विवरण छिपा लिया गया है । बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन और बिल्डिंग रिस्टेब्लिशमेंट के नाम पर विभिन्न वर्षों में जो लाखों और करोड़ों रुपए खर्च दिखाए गए हैं, उनके भी विस्तृत विवरण यदि दे दिए जाते, तो ट्रस्ट के पैसों में हेराफेरी और गड़बड़ी का संदेह करने वाले लोगों के मुँह अपने आप बंद हो जाते । इसकी बजाए, पहले तो हिसाब/किताब देने में तरह तरह की बहानेबाजी करने, दबाव पड़ने पर घोषित जगह की बजाए गुमनाम और भूल-भुलैय्या वाली जगह पर हिसाब/किताब देने, और वह भी आधे-अधूरे ढंग से और अमान्य बैलेंसशीट से देने की कोशिश ने ट्रस्ट के पैसों में गड़बड़ी और हेराफेरी के संदेहों और आरोपों को और हवा देने का ही काम किया है । ट्रस्टियों के हस्ताक्षर के बिना दिखाई जा रही वर्ष 2015-16 की बैलेंसशीट में दो करोड़ 83 लाख रुपयों के ट्रांसफर के तथ्य ने मामले को खासा गंभीर बना दिया है ।