Tuesday, February 28, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध के 'मलहम' से सुभाष जैन को दिए गए धोखे का घाव भरने की जेके गौड़ की कोशिश सफल होगी क्या ?

गाजियाबाद । आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में तेवर दिखा कर जेके गौड़ कहीं सुभाष जैन को दिए गए धोखे का पश्चाताप करने तथा सुभाष जैन की 'गुड बुक' में फिर से शामिल होने का जुगाड़ तो नहीं बैठा रहे हैं ? यह सवाल लोगों के बीच दरअसल इसलिए पैदा हुआ, क्योंकि अगले रोटरी वर्ष में होने वाले डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में आलोक गुप्ता की संभावित उम्मीदवारी के विरोध में एक अकेले जेके गौड़ की आवाज ही सुनाई दे रही है - जिसे वास्तव में बेमतलब और फिजूल की कसरत के रूप में देखा/पहचाना गया है । अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव अभी अपनी प्रारंभिक अवस्था में ही है, और अभी संभावित उम्मीदवार अपनी अपनी योजना बनाने में ही लगे हैं; इस अवस्था में समर्थन और विरोध के कोई मतलब नहीं हैं । अगले रोटरी वर्ष के संभावित उम्मीदवारों में अभी तक आलोक गुप्ता और ललित खन्ना के नाम सामने आए हैं, जिनके समर्थन या विरोध की नेताओं ने अभी कोई घोषणा नहीं की है - हालाँकि चुनाव यदि सचमुच इनके बीच ही हुआ तथा और कोई तीसरा उम्मीदवार नहीं आया तो कौन नेता किसके साथ होगा, इसका अनुमान लगाना कोई मुश्किल नहीं है । इस बीच लेकिन एक अकेले जेके गौड़ की आवाज ही जोर से सुनाई दी है, जिसमें आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी का विरोध है । किसी के लिए भी यह समझना मुश्किल हुआ है कि जेके गौड़ को अभी से अगले रोटरी वर्ष की आलोक गुप्ता की संभावित उम्मीदवारी के विरोध में आवाज उठाने की जरूरत आखिर क्यों पड़ी है ?
जेके गौड़ के नजदीकियों का कहना है कि ऐसा करके जेके गौड़ ने दरअसल सुभाष जैन के 'नजदीक' आने की कोशिश की है । इस वर्ष के चुनाव में जेके गौड़ ने सुभाष जैन की 'पीठ में छुरा भौंकने' का जो काम किया है, आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में अभी से नजर आ कर, वास्तव में वह सुभाष जैन को दिए गए घाव को भरने की कोशिश कर रहे हैं । मौजूदा वर्ष जेके गौड़ के लिए यूँ तो 'उपलब्धियों' भरा रहा है, लेकिन उपलब्धियों के लिए उन्हें भारी कीमत भी चुकानी पड़ी है - जो उनके लिए आगे मुसीबत भरी साबित हो सकती है । आगे की संभावित मुसीबतों को कम करने के लिए ही जेके गौड़ को आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में खड़ा होने की जल्दबाजी करना पड़ी है । जेके गौड़ की इस वर्ष की सबसे बड़ी उपलब्धि यह रही कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट के बड़े समझे जाने वाले नेता रमेश अग्रवाल की 'नाक काट' ली - और कुछ ज्यादा ही काट ली । उल्लेखनीय है कि इस वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में रमेश अग्रवाल के उम्मीदवार अशोक जैन को हरवाने में तो जेके गौड़ ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ही, साथ ही इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में जाने की रमेश अग्रवाल की योजना को भी ध्वस्त करने में उन्होंने सफलता पाई । इन सफलताओं की बात तक तो मामला ठीक है, लेकिन समस्या हुई है कि इन सफलताओं को पाने के लिए जेके गौड़ को सुभाष जैन के साथ भी धोखा करना पड़ा, और सिर्फ धोखा ही नहीं करना पड़ा - मामला उनकी 'पीठ में छुरा भौंकने' जैसा हुआ ।
जेके गौड़ का रोटरी का इतिहास यूँ तो धोखे का ही भरापूरा उदाहरण है - ज्यादा पुरानी बात नहीं है, जब उन्हें मुकेश अरनेजा के 'आदमी' के रूप में देखा/पहचाना जाता था; लेकिन जैसे ही उन्हें अहसास हुआ कि फायदा मुकेश अरनेजा के साथ नहीं, बल्कि रमेश अग्रवाल के साथ रहने में है तो वह झट से रमेश अग्रवाल की गोद में जा बैठे । रमेश अग्रवाल के साथ जब उनका पूरा काम निकल गया, तो वह झट से उनकी गोद से उतर भी गए और उन्हें बुरा-भला कहने लगे । रमेश अग्रवाल को सबक सिखाने के चक्कर में उन्होंने सुभाष जैन के साथ भी धोखा कर दिया - और जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि सुभाष जैन के साथ उन्होंने धोखा ही नहीं किया है, बल्कि उनकी पीठ में छुरा भौंकने का काम किया है । जेके गौड़ चाहते तो रमेश अग्रवाल से सीधे ही निपट सकते थे - लेकिन उस स्थिति में वह सफलता के प्रति खुद को ही आश्वस्त नहीं कर सके, और इसलिए सफलता तक पहुँचने के लिए उन्होंने सुभाष जैन को सीढ़ी बना लिया । सुभाष जैन के जरिए जेके गौड़ ने अशोक जैन को समर्थन देने का भरोसा दिया और बदले में उम्मीद की कि रमेश अग्रवाल इंटरनेशनल डायरेक्टर का चुनाव करने वाली नोमीनेटिंग कमेटी में पहुँचने के उनके रास्ते का रोड़ा नहीं बनेंगे । यह 'डील' कर लेने के बाद भी जेके गौड़ ने अशोक जैन का समर्थन नहीं किया । दरअसल अशोक जैन को हरवा कर ही जेके गौड़ का रमेश अग्रवाल से बदला पूरा हो पाता । रमेश अग्रवाल से पूरा बदला लेने के लिए लेकिन उन्होंने जिस तरह से सुभाष जैन की पीठ में छुरा भौंका, उससे उनके लिए मामला काफी मुसीबतभरा हो गया है ।
असल में, जेके गौड़ के क्लब के कुछेक प्रमुख सदस्य सुभाष जैन के निकटवर्तियों में हैं, और उन्हें भी जेके गौड़ का सुभाष जैन के साथ धोखा करना पसंद नहीं आया है । इसके अलावा, जेके गौड़ भी जानते/समझते हैं कि भले ही उन्होंने दीपक गुप्ता का समर्थन किया है - लेकिन दीपक गुप्ता इसका कोई अहसान नहीं मानेंगे और पहले की तरह ही उन्हें अपमानित और जलील करते रहेंगे । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल से उन्हें वैसे ही कोई उम्मीद नहीं है । ऐसे में, उन्हें भी लग रहा है कि सुभाष जैन से धोखा करके उन्होंने अपने लिए मुश्किलों को और बढ़ा लिया है । वास्तव में, इस वर्ष 'उपलब्धियों' को पाने के बाद भी - जेके गौड़ ने अपनी दशा ऐसी कर ली है, जिसमें कि वह न घर के रहे और न घाट के । डिस्ट्रिक्ट में ठीक-ठाक तरीके से बने रहने के लिए जे के गौड़ को सुभाष जैन के पास 'लौटने' का ही विकल्प सूझ रहा है । वह समझ रहे हैं कि अगले रोटरी वर्ष में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद को लेकर जो भी राजनीतिक बिसात बिछेगी, उसमें सुभाष जैन किसी भी रूप में आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के साथ तो नहीं ही रहेंगे । इसलिए जेके गौड़ ने अभी से ही आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में झंडा उठा लिया है । जेके गौड़ को विश्वास है कि उनके हाथ में यह झंडा रहेगा, तो सुभाष जैन उनसे धोखा खाने के बावजूद उन्हें अपने यहाँ जगह दे देंगे । राजनीति में वैसे भी दोस्तियाँ और दुश्मनियाँ ज्यादा दिन कहाँ चलती हैं ?

Sunday, February 26, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विवेक खुराना को धोखे का शिकार बनाते हुए राकेश मक्कड़ के चेयरमैन चुने जाने को लोगों ने काउंसिल की बदकिस्मती के रूप में देखा/पहचाना है

नई दिल्ली । राजेश शर्मा अपनी फरेबी व तिकड़मी चालबाजियों से राकेश मक्कड़ को अंततः नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल का चेयरमैन चुनवाने में कामयाब हुए - उनकी इन कामयाबी को संभव बनाने में विरोधियों के बीच एकजुटता और विश्वास के अभाव ने भी हालाँकि महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई । कहा जाता है न कि समाज बुरे लोगों की बुरी हरकतों से खराब नहीं होता है, वह अच्छे लोगों के अपनी जिम्मेदारी न निभाने यानि कुछ न करने से खराब होता है । इस फलसफ़े को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के संदर्भ में देखें तो देखने में आया कि नार्दर्न रीजन के कई सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने रीजनल काउंसिल के पॉवर ग्रुप की हरकतों को जी भर कर कोसा और उनकी हरकतों को इंस्टीट्यूट व प्रोफेशन को बदनाम करने वाला बताया, लेकिन पॉवर ग्रुप को सत्ता से बाहर करने के लिए प्रयास करने का जब समय आया - तो वह ऊँची नैतिकता और ऊँचे आदर्शों का हवाला देते हुए पीछे हट गए । सेंट्रल काउंसिल सदस्यों का यह व्यवहार इसलिए सवालों के घेरे में है, क्योंकि इन्हीं सेंट्रल काउंसिल सदस्यों ने दो वर्ष पहले राज चावला के चेयरमैन चुने जाने के समय रीजनल काउंसिल के कामकाज में सीधा हस्तक्षेप किया था - ऊँची नैतिकता व ऊँचे आदर्शों ने उस समय तो इन्हें हस्तक्षेप करने से नहीं रोका था ? इसलिए नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में पॉवर ग्रुप की करतूतों की कुछेक सेंट्रल काउंसिल सदस्यों द्धारा की जा रही आलोचना बेमानी है - क्योंकि पॉवर ग्रुप को पॉवर में बनाए रखने के लिए 'कुछ न करने वाले' यह सेंट्रल काउंसिल सदस्य भी जिम्मेदार हैं ।
राकेश मक्कड़ नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के ऐसे पहले चेयरमैन हैं, जिनके चेयरमैन बनने पर अधिकतर लोगों ने प्रतिकूल प्रतिक्रिया ही दी है; अधिकतर लोगों की तरफ से यही सुनने को मिला है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में अब अगले वर्ष भी घटियापन और टुच्चापन व बेईमानियाँ देखने को मिलेंगी । उल्लेखनीय है कि रीजनल काउंसिल में हर वर्ष एक नया चेयरमैन चुना जाता है - जो चुना जाता है, उसकी खूबियों और कमियों को अधिकतर लोग जानते/पहचानते हैं; लेकिन फिर भी लोग उससे उम्मीद करते हैं कि चेयरमैन पद पर बैठने के बाद यह अपनी कमियों को कम करने तथा खूबियों को बढ़ाने पर ध्यान देगा और अच्छा काम करेगा । राकेश मक्कड़ का मामला ऐसा है कि किसी को उनसे कुछ अच्छा करने की उम्मीद ही नहीं है । दरअसल पिछले महीनों में उनकी ऐसी ऐसी हरकतें रही हैं कि अधिकतर लोगों ने उनके चेयरमैन बनने को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की बदनसीबी के रूप में ही देखा/माना है । कुछेक लोगों ने तो इसे चुनावी सिस्टम की कमी के रूप में भी देखा/समझा - उनका कहना है कि यह चुनावी सिस्टम की कोई बहुत बड़ी कमी ही है कि इसमें फूलन देवी जैसी डकैत सांसद चुन ली जाती है और राकेश मक्कड़ जैसे लोग नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के चेयरमैन चुन लिए जाते हैं ।
राकेश मक्कड़ को चेयरमैन चुनवाने में सेंट्रल काउंसिल सदस्य राजेश शर्मा ने जैसी जो तिकड़म की, उससे वाइस चेयरमैन बने विवेक खुराना ने अपने आप को ठगा हुआ पाया है । उल्लेखनीय है कि विवेक खुराना भी चेयरमैन पद के उम्मीदवार थे, और राजेश शर्मा को भनक थी कि विवेक खुराना ने विरोधी खेमे के लोगों के साथ भी तार जोड़े हुए हैं और यदि मौजूदा पॉवर ग्रुप में उन्हें चेयरमैन बनने की संभावना नहीं दिखी तो वह विरोधी खेमे के समर्थन से चेयरमैन बन जायेंगे । विवेक खुराना चेयरमैन तो बनना चाहते थे, लेकिन राकेश मक्कड़ की तरह 'किसी भी तरह' नहीं - बल्कि एक स्वस्थ व लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत ही वह चेयरमैन बनना चाहते थे । उनके नजदीकियों का कहना था कि विवेक खुराना के तार विरोधी खेमे के लोगों से जुड़े हुए तो थे, लेकिन वह सिर्फ चेयरमैन बनने के लिए विरोधी खेमे में जाने के लिए तैयार नहीं थे; लेकिन हाँ, अपने खेमे में उन्हें यदि अपने साथ नाइंसाफी और बेईमानी होते हुए दिखी, तो वह विरोधी खेमे में जा सकते थे । ऐसे में, राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ की जोड़ी ने उन्हें इस तरह उल्लू बनाया कि जब तक उन्हें समझ में आया कि उनके साथ धोखा हो गया है, तब तक विरोधी खेमे में जाने का उनका रास्ता बंद हो चुका है । मनमार कर विवेक खुराना को वाइस चेयरमैन पद स्वीकारने में ही अपनी भलाई दिखी ।
राजेश शर्मा और राकेश मक्कड़ से विवेक खुराना को मिले धोखे की पीड़ा को कई लोगों ने विवेक खुराना की फेसबुक टाइमलाइन से भी 'पहचाना' । कई लोगों ने बताया/दिखाया कि विवेक खुराना ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर जिस तरह सिर्फ अपने वाइस चेयरमैन चुने जाने की सूचना चस्पां की है, और चेयरमैन सहित बाकी पदाधिकारियों के जिक्र से वह बचे हैं - उससे स्पष्ट झलकता है कि जिस तरह से चुनाव हुए हैं, उससे वह खासे नाराज हैं । यह निष्कर्ष निकालने/लगाने वाले लोगों का तर्क रहा कि पिछले दिनों इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट/वाइस प्रेसीडेंट से लेकर विभिन्न ब्रांचेज तक के पदाधिकारियों के जो चुनावी नतीजे आए हैं, उनके विजेताओं का जिक्र करते हुए विवेक खुराना ने अपनी टाइमलाइन पर सभी को बधाई दी है - लेकिन नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में विजेता बने अपने ही साथियों के मामले में वह चुप्पी साध गए हैं । नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के विजेता पदाधिकारियों के प्रति विवेक खुराना के इस सौतेलेपन को लोगों ने उनकी नाराजगी के पुख्ता सुबूत के रूप में ही देखा/पहचाना है । राकेश मक्कड़ के लिए मुसीबत और चुनौती की बात यही है कि उनके चेयरमैन बनने को लेकर जब उनकी अपनी टीम के सदस्यों में ही नाराजगी और असंतोष है, तो फिर बाकी लोगों की नाराजगी व असंतोष का तो कहना ही क्या ? राकेश मक्कड़ के चेयरमैन बनने को लेकर जिस तरह लोगों के बीच निराशा है, उससे लग रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में बदनामी के दाग अभी और गहरे होंगे ।

Friday, February 24, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में दीपक गुप्ता का रूखा रूखा सा नसीहतभरा व्यवहार विजेता के रूप में लोगों के साथ बनने वाले उनके 'हनीमून पीरियड' को जल्दी खत्म कर रहा है

गाजियाबाद । जुम्मा जुम्मा चार दिन पहले गवर्नर पद की कुर्सी तक पहुँचने की लाइन में लगने का नंबर पाए दीपक गुप्ता ने क्लब्स के पदाधिकारियों को जो तेवर दिखाने शुरू किए हैं, उसके कारण क्लब्स के पदाधिकारी सकते में हैं और वह सोचने लगे हैं कि दीपक गुप्ता को वह झेलेंगे कैसे ? मजे की बात यह हुई है कि जिन क्लब्स के पदाधिकारी बढ़चढ़ कर दीपक गुप्ता को समर्थन और वोट देकर जितवाने का श्रेय ले रहे थे, वही अब दीपक गुप्ता के रवैये और व्यवहार की शिकायत करने लगे हैं । शिकायत एक ही है और वह यह कि दीपक गुप्ता उनके फोन न तो उठाते हैं और न ही वापस कॉल करते हैं; किसी तरह बात हो पाती है और उस बात में उनका सम्मान करने के लिए उन्हें आमंत्रित करो तो वह नसीहत देने लगते हैं कि समय और तारीख तय करने से पहले उनसे पूछ तो लेते ! क्लब्स के जो पुराने सदस्य हैं और पदाधिकारी रह चुके हैं, वह दीपक गुप्ता के रवैये और व्यवहार की बातें सुन कर कहने/बताने लगे हैं कि पिछले गवर्नर्स भी अपने रवैये और व्यवहार के चलते लोगों की आलोचना का शिकार बनते/होते रहे हैं - लेकिन चुने जाने के महीने भर से भी कम समय के भीतर दीपक गुप्ता जिस तरह से क्लब्स के पदाधिकारियों के निशाने पर आ रहे हैं, वह सचमुच डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के साथ-साथ दीपक गुप्ता के लिए भी चिंता की बात होनी चाहिए ।
दीपक गुप्ता का अपने समर्थकों के साथ 'हनीमून पीरियड' जितनी जल्दी से खत्म होता दिख रहा है, उससे कुछेक लोगों को चिंता हुई है तो अन्य कुछेक लोगों को मजे लेने का मौका मिला है । वरिष्ठ व अनुभवी रोटेरियंस का मानना/कहना है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के बाद के कुछेक महीने तो जीतने वाले के बारे में अच्छी अच्छी बातें होती ही हैं, लेकिन दीपक गुप्ता एक महीने के भीतर ही जिस तरह से अपने ही वोटरों की आलोचना का शिकार होने लगे हैं - उससे उन्हें यह सबक लेने की जरूरत है कि जीतने के बाद का समय उम्मीदवार बने होने के समय से कम मुश्किल और चुनौतीपूर्ण नहीं होता है । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता को समझना चाहिए कि वह चुनाव जीते हैं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बने हैं, तो क्लब्स में उनका सम्मान करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया ही जायेगा और क्लब का कार्यक्रम क्लब्स के पदाधिकारी ही तय करेंगे - समय और तारीख का एडजस्टमेंट दीपक गुप्ता को ही करना पड़ेगा । और यह एडजस्टमेंट करते समय 'शराफत' दीपक गुप्ता को ही दिखानी पड़ेगी - वह यदि नसीहत देने लगेंगे, तो क्लब्स के पदाधिकारियों को बुरा लगेगा ही - और फिर वह बात का बतंगड़ बनायेंगे ही । जाहिर है कि सावधानी दीपक गुप्ता को ही बरतनी है - जिस पर उन्होंने ध्यान नहीं दिया, और वह अपने ही समर्थकों के निशाने पर आ गए ।
कुछेक क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से तो यहाँ तक शिकायतें सुनने को मिली हैं कि दीपक गुप्ता अपने सम्मान कार्यक्रम को 'अच्छे' से करने तथा आमंत्रितों की संख्या बढ़ाने तक के लिए दबाव बनाते हैं । कुछेक क्लब्स में हुए सम्मान कार्यक्रम की उन्होंने यह कहते हुए शिकायत तक की कि वहाँ सम्मान के नाम पर महज खानापूर्ति ही हुई है, वहाँ नाहक ही उनका समय खराब हुआ । कुछेक मौकों पर दीपक गुप्ता यह शिकायत करते हुए भी सुने गए कि पिछले वर्ष सुभाष जैन के जीतने पर कई क्लब्स ने उनका सम्मान तो बड़े जोरशोर से किया था, जिसकी डिस्ट्रिक्ट में भी खूब खूब चर्चा रही/हुई थी, लेकिन इस बार क्लब्स उनका सम्मान फीके फीके रूप में कर रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट में कहीं कोई चर्चा तक नहीं होती, उन्हें ही दूसरों को बताना पड़ता है कि फलाँ फलाँ क्लब में उनका सम्मान हो चुका है । इस तरह की बातें सुन कर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि लगता है कि लोगों ने सहानुभूति में दीपक गुप्ता को वोट तो दे दिया, लेकिन उनको जितवा कर भी लोग खुश नहीं हैं - जिसका नतीजा सम्मान कार्यक्रमों में देखने को मिल रहा है । इस वर्ष हो रहे सम्मान कार्यक्रमों में पिछले वर्ष के सम्मान कार्यक्रमों जैसा जोश और उत्सवी माहौल यदि नहीं दिख रहा है, तो इसके लिए अधिकतर लोग दीपक गुप्ता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं - लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता का रूखा रूखा सा और शिकायती अंदाज वाला रवैया व व्यवहार 'देख' कर लोग जोश के साथ उनके लिए कुछ करने को लेकर उत्साहित नहीं हुए हैं । ऐसी स्थिति में उनकी नसीहतें सुन कर लोग भड़क और जा रहे हैं । चुनावी विजेता के रूप में लोगों के साथ बनने वाला उनका 'हनीमून पीरियड' जितनी तेजी से खत्म होता नजर आ रहा है, उससे डिस्ट्रिक्ट में एक अलग नजारा ही बन रहा है ।

Thursday, February 23, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में जगदीश गुलाटी को सबक सिखाने की कुँवर बीएम सिंह की कोशिश में मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की अनिल तुलस्यान की तैयारी फजीहत का शिकार होती नजर आ रही है

वाराणसी । अनिल तुलस्यान की मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की तैयारी शुरू होते ही दम तोड़ती हुई नजर आ रही है, और अनिल तुलस्यान इसके लिए पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर जगदीश गुलाटी तथा फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर कुँवर बीएम सिंह को कोसते सुने जा रहे हैं । अनिल तुलस्यान अभी पिछले दिनों ही दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ मल्टीपल के कुछेक बड़े नेताओं से उनके घर/शहर जा कर मिले थे, और उन्होंने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने की अपनी मंशा और अपनी रणनीति के बारे में उनसे बात की थी । अनिल तुलस्यान के नजदीकियों के अनुसार, मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर अनिल तुलस्यान का रणनीतिक फंडा बड़ा क्लियर है - उनका मानना और कहना है कि मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन बनने के लिए पाँच फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को 'खरीदना' है, बस ! अनिल तुलस्यान पाँच फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को खरीदने की कीमत देने के लिए तैयार हैं - मल्टीपल की लीडरशिप से वह बस इतनी मदद चाहते हैं कि यह 'खरीद' वह करवाएँ । अनिल तुलस्यान को डर है कि उन्होंने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स की यदि सीधे ही खरीद की, तो कहीं ऐसा न हो कि फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स उनसे पैसे भी ले लें - और फिर उन्हें वोट भी न दें; जैसा कि सहजीव रतन जैन के साथ हुआ था । उल्लेखनीय है कि तीन वर्ष पहले डिस्ट्रिक्ट 321 सी टू के तत्कालीन डिस्ट्रिक्ट गवर्नर सहजीव रतन जैन ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन की सीट पक्की करने के लिए तबके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को महँगे 'गिफ्ट' दिए थे, लेकिन चुनाव के समय गिफ्ट लेने वाले फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स जब उन्हें धोखा देते दिखे - तो सहजीव रतन जैन ने उन सभी से अपने गिफ्ट वापस ले लिए थे । अनिल तुलस्यान का मानना/कहना है कि सहजीव रतन जैन के साथ धोखा इसलिए हुआ, क्योंकि उन्होंने लीडरशिप के नेताओं को 'सौदेबाजी' में शामिल नहीं किया था ।
अनिल तुलस्यान ने सहजीव रतन जैन वाली गलती से बचने के लिए पहले मल्टीपल की लीडरशिप से बात की । लीडरशिप से बात करना उन्हें इसलिए भी जरूरी लगा, क्योंकि लीडरशिप अभी मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद के लिए डिस्ट्रिक्ट 321 एफ के गवर्नर योगेश सोनी के समर्थन में 'सुनी' जा रही है । लीडरशिप को उन्हें यह समझाने की जरूरत महसूस हो रही थी कि योगेश सोनी के लिए फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का समर्थन 'जुटाना' मुश्किल होगा - और यह 'काम' तो वही कर सकते हैं । लीडरशिप के साथ उनकी बात यूँ तो उत्साहवर्धक रही, लेकिन एक मामले में उनके लिए समस्या खड़ी हो गई । अनिल तुलस्यान के लिए फजीहत की बात यह रही कि मल्टीपल में हर किसी को यह पता है कि उनके अपने डिस्ट्रिक्ट का फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर उनके साथ नहीं है, इसलिए लीडरशिप ने उनसे कहा कि पहले अपने फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन पक्का करो । अनिल तुलस्यान ने मल्टीपल के लोगों को तो यह कहते हुए टरकाया/निपटाया कि उनके फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन उन्हें दिलवाने का काम जगदीश गुलाटी करेंगे; उन्होंने मल्टीपल के लोगों को आश्वस्त किया कि जगदीश गुलाटी का कहना कुँवर बीएम सिंह हरगिज नहीं टाल पायेंगे, और इस तरह उन्हें अपने डिस्ट्रिक्ट के फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर का समर्थन मिल ही जायेगा ।
कुँवर बीएम सिंह के समर्थन को लेकर अनिल तुलस्यान ने मल्टीपल के लोगों को तो जगदीश गुलाटी का नाम लेकर आश्वस्त कर दिया - किंतु वह खुद कुँवर बीएम सिंह के समर्थन को लेकर आश्वस्त नहीं हो सके हैं । कुँवर बीएम सिंह ने यह कहते हुए उनकी चिंता/परेशानी को और बढ़ा दिया है कि अनिल तुलस्यान ने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की उम्मीदवारी को लेकर पहले कभी कोई बात ही नहीं की, इसलिए उन्होंने दूसरे संभावित उम्मीदवारों से कमिट कर लिया है - जिन्हें अब वह धोखा नहीं दे सकेंगे । अनिल तुलस्यान का कहना है कि यह तर्क कुँवर बीएम सिंह का सिर्फ एक बहाना है; वह उन्हें मल्टीपल के लोगों के बीच नीचा दिखाना चाहते हैं और उन्हें मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन नहीं बनने देना चाहते हैं - इसीलिए वह इस तरह की बहानेबाजी कर रहे हैं । कुँवर बीएम सिंह से भी ज्यादा नाराज अनिल तुलस्यान, जगदीश गुलाटी से हैं । अनिल तुलस्यान का कहना है कि जगदीश गुलाटी उन्हें पहले तो मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन के लिए उम्मीदवारी प्रस्तुत करने के लिए प्रेरित करते रहे और आश्वस्त करते रहे कि कुँवर बीएम सिंह के समर्थन को लेकर चिंता मत करो - उनका समर्थन 'मैं दिलवाऊँगा', किंतु अब जब समय और जरूरत आन पड़ी है, तो वह पीछे हटते नजर आ रहे हैं ।
जगदीश गुलाटी की समस्या दूसरी है - वह तो कुँवर बीएम सिंह को अनिल तुलस्यान के समर्थन के लिए राजी करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहे हैं, समस्या वास्तव में यह है कि कुँवर बीएम सिंह उनकी बात मान नहीं रहे हैं । इलाहाबाद के प्रमुख लायंस सदस्यों का कहना/बताना है कि डिस्ट्रिक्ट में और मल्टीपल में कुँवर बीएम सिंह को भले ही जगदीश गुलाटी के 'आदमी' के रूप देखा/पहचाना जाता हो, लेकिन कुँवर बीएम सिंह उनसे खुश नहीं हैं । उनकी नाराजगी का कारण यह है कि उन्हें लगता है कि उन्हें सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार बनवा कर जगदीश गुलाटी ने अपना राजनीतिक उल्लू सीधा किया था, और उनका मोटा पैसा खर्च करवा दिया था । कुँवर बीएम सिंह को लगता है कि जगदीश गुलाटी की लड़ाई अशोक सिंह से थी, जिसमें जगदीश गुलाटी ने उन्हें मोहरा बनाया और इस्तेमाल किया । इलाहाबाद के प्रमुख लोगों का मानना और कहना है कि कुँवर बीएम सिंह को अनिल तुलस्यान से कोई ज्यादा शिकायत नहीं है; वह तो जगदीश गुलाटी की राजनीति को फेल करने के लिए अनिल तुलस्यान का समर्थन न करने की जिद पर अड़े हुए हैं । कुँवर बीएम सिंह को लगता है कि अनिल तुलस्यान मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद को लेकर कभी भी उत्सुक नहीं थे; जगदीश गुलाटी ने अपनी राजनीति के चक्कर में उन्हें उकसा कर उम्मीदवार बना/बनवा दिया है - और अब जगदीश गुलाटी उन्हें भी 'अपना' आदमी दिखा/जता कर अपना राजनीतिक उल्लू सीधा करने की जुगाड़ में हैं । अनिल तुलस्यान को समर्थन न देकर कुँवर बीएम सिंह वास्तव में अनिल तुलस्यान को नहीं - बल्कि जगदीश गुलाटी को सबक सिखाना चाहते हैं ।
जगदीश गुलाटी से निपटने की कुँवर बीएम सिंह की इस कोशिश में अनिल तुलस्यान को लेकिन अपनी फजीहत होती नजर आ रही है ।

Tuesday, February 21, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी मल्टीपल ड्यूज के लिए जेसी वर्मा को तो झाँसा दिए ही हुए हैं, डिस्ट्रिक्ट के एमजेएफ लोगों को भी फूल देकर 'फूल' बनाने की तैयारी कर रहे हैं

देहरादून । एमजेएफ बनने के लिए आवश्यक रकम देने वाले कई लायन सदस्य एमजेएफ प्लेट और पिन न मिलने के कारण इस बात से डरे हुए हैं कि कहीं उनके द्धारा दी गई रकम डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने अपनी जेब में तो नहीं कर ली है ? पैसे ऐंठने और हड़पने के मामले में शिव कुमार चौधरी ने चूँकि काफी नाम कमाया हुआ है, इसलिए एमजेएफ बनने के लिए रकम देने वाले लोग और ज्यादा डरे हुए हैं । लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन की डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के एमजेएफ की जो लिस्ट है, उसमें भी चूँकि इस वर्ष किसी का नाम नहीं जुड़ा है - इसलिए भी लोगों के मन में सवाल उठ रहे हैं कि एमजेएफ के लिए दिया गया पैसा आखिर गया कहाँ ? शिव कुमार चौधरी लोगों को लगातार आश्वासन तो देते रहे हैं कि एमजेएफ की आधिकारिक लिस्ट में नाम भी आ जायेगा, और प्लेट व पिन भी मिल जाएगी - लेकिन उनका आश्वासन पूरा होने में ही नहीं आ रहा है । ऐसे में लोगों को अपना हाल लायंस क्लब मसूरी के सतीश अग्रवाल जैसा होता हुआ दिख रहा है - जिनके पैसे लौटाने का शिव कुमार चौधरी आश्वासन तो कई बार दे चुके हैं, लेकिन सतीश अग्रवाल को अपने पैसे मिले नहीं हैं । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा तक के साथ शिव कुमार चौधरी यही हरकत रहे हैं । जेसी वर्मा मल्टीपल ड्यूज के लिए कई बार तकादा कर चुके हैं, लेकिन शिव कुमार चौधरी के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगी है, और उन्होंने मल्टीपल ड्यूज के खाते में एक पैसा तक जमा नहीं कराया है ।
मल्टीपल ड्यूज जमा करने की अंतिम तारीख 15 जनवरी थी । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा ने कई रिमाइंडर भेजे । उन्होंने यहाँ तक कहा कि मल्टीपल के नरेश अग्रवाल इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे हैं, इसलिए मल्टीपल में ऐसी कोई हरकत नहीं होनी चाहिए जिससे मल्टीपल का और नरेश अग्रवाल का नाम खराब हो - इस नाते ड्यूज समय पर जमा होना जरूरी है, लेकिन शिव कुमार चौधरी ने न उनके रिमाइंडर की परवाह की और न मल्टीपल व नरेश अग्रवाल का नाम खराब होने की चिंता की । उल्लेखनीय तथ्य यह है कि मल्टीपल के बाकी सभी डिस्ट्रिक्ट्स ने अपने अपने हिस्से के मल्टीपल ड्यूज की आधे से ज्यादा और कुछेक डिस्ट्रिक्ट्स ने तो पूरी रकम जमा करा दी है, लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन ने मल्टीपल ड्यूज के खाते में इकन्नी भी जमा नहीं करवाई है । प्राकृतिक आपदा का शिकार हुए लोगों की मदद के लिए लायंस इंटरनेशनल से मिली इमरजेंसी ग्रांट को लेकर शिव कुमार चौधरी ने कैसी घपलेबाजी की है, यह बात अब जगजाहिर है ।
इन्हीं बातों/तथ्यों के आलोक में एमजेएफ बनने के लिए पैसा देने वालों को डर हुआ है कि गरीबों और पीड़ितों की मदद के लिए दिया गया उनका पैसा कहीं शिव कुमार चौधरी ही तो नहीं हड़प जायेंगे ? एमजेएफ बनने के लिए पैसा देने वाले लायन सदस्यों का कहना है कि शिव कुमार चौधरी ने उनसे 900 डॉलर के बराबर रुपये यह बताते हुए लिए हैं कि बाकी के सौ डॉलर फाउंडेशन के लिए इकट्ठा हुए पैसों से दिए जायेंगे । उल्लेखनीय है कि डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में पिछले कुछेक वर्षों से एमजेएफ बनने/बनाने को लेकर यही व्यवस्था चली आ रही है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में शिव कुमार चौधरी ने इसी व्यवस्था को अपनाने की कोई सार्वजनिक घोषणा तो नहीं की है, लेकिन व्यक्तिगत रूप से एमजेएफ बनने वालों को उन्होंने यही व्यवस्था बताई है, और इसी के अनुसार पैसे लिए हैं । लोगों से लिए गए पैसे लेकिन उन्होंने अभी तक लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन को नहीं भेजे हैं, इसी से लोगों को डर लगा है कि उनके पैसे आखिर गए कहाँ ? एमजेएफ के पैसे लेने/देने की प्रक्रिया से परिचित जानकारों का कहना है कि लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन को पैसे मिलते ही आठ/दस दिन में पैसे देने वाले का नाम एमजेएफ लिस्ट में दर्ज हो जाता है, और तुरंत ही एमजेएफ की प्लेट व पिन रिलीज हो जाती है । इस आधार पर एमजेएफ बनने के लिए पैसे दे चुके लोगों का नाम लिस्ट में आ जाने के साथ साथ उनके नाम की प्लेट व पिन आ जाना चाहिए थी, लेकिन लोगों को सिर्फ शिव कुमार चौधरी का आश्वासन मिल रहा है ।
शिव कुमार चौधरी का आश्वासन इसलिए भी डरा रहा है, क्योंकि वह लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के लिए प्रत्येक सदस्य से कम से कम दो डॉलर के अपेक्षित दान को जबरन बसूलने की कोशिश कर रहे हैं । उल्लेखनीय है कि लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन लायन सदस्यों से अनुरोध करता है कि वह कम से कम दो डॉलर तो फाउंडेशन के लिए दान करें ही । जाहिर है कि यह अनुरोध है, जिसे मानने और पूरा करने के लिए सदस्यों पर बाध्यता नहीं है । लेकिन शिव कुमार चौधरी ने इसे जरूरी बना दिया है । उन्होंने कहा है कि जो क्लब्स दो डॉलर प्रति सदस्य के हिसाब से लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के लिए पैसे नहीं देंगे, वह उन क्लब्स को नो-ड्यूज सर्टीफिकेट नहीं देंगे । उनकी इस कार्रवाई को लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन के पैसों में हेराफेरी करने की तिकड़म के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । आरोप है कि इसीलिए वह एमजेएफ के लिए मिली रकम को दबा कर बैठे हैं । कहा जा रहा है कि प्रत्येक सदस्य से दो दो डॉलर लेकर इकट्ठा हुई रकम से वह एमजेएफ के लिए पैसा देने वालों को एमजेएफ बनवा देंगे, और उनसे मिली हुई रकम को अपनी जेब में कर लेंगे । यह 'खेल' और इस खेल का 'हिसाब-किताब' चूँकि बाद में ही हो पायेगा, इसलिए एमजेएफ बनने के लिए मिली रकम को उन्होंने अभी लायंस इंटरनेशनल फाउंडेशन को नहीं भेजा है ।
एमजेएफ बनने के लिए पैसा देने वाले लोग ज्यादा परेशान न हों और शोर न करें - इसके लिए शिव कुमार चौधरी ने उनका सम्मान करने का एक कार्यक्रम करने की बात शुरू की है - जिसमें गेंदे के फूलों की माला पहना कर वह एमजेएफ बनने के लिए पैसा देने वालों को 'फूल' बनाने का काम करेंगे ।  

Monday, February 20, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3100 में दीपक बाबु ने चक्रेश लोहिया से निपटने के नाम पर डिस्ट्रिक्ट को संभलने से पहले ही फिर से मुसीबत में डालने/फँसाने की तैयारी कर ली है क्या ?

मुरादाबाद । डिस्ट्रिक्ट 3100 में लोगों को अच्छी खबर मिली, तो उसके पीछे पीछे बुरी खबर भी आ पहुँची है - और इस तरह डिस्ट्रिक्ट के नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर आने के लोगों के सारे उत्साह पर पानी फिरता दिख रहा है । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनते बनते रह गए जो दीपक बाबु डिस्ट्रिक्ट की बर्बादी के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार रहे, उन्हीं दीपक बाबु के नजदीकियों की तरफ से पटरी पर लौटते डिस्ट्रिक्ट में एक बार फिर बबाल मचाने की तैयारी शुरू हो गई है - और इस तरह उस उम्मीद का धुआँ निकलता नजर आ रहा है, जिसमें सबक सीखने का अहसास था । जून से पहले पहले वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए चक्रेश लोहिया की उम्मीदवारी घोषित होने के बाद जिस तरह अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी प्रस्तुत हुई है, उसमें डिस्ट्रिक्ट के लोगों को अनर्थ के पुनः उभरने के संकेत दिख रहे हैं । लगता है कि डिस्ट्रिक्ट में जिस चुनावी राड़ ने डिस्ट्रिक्ट को नॉन-डिस्ट्रिक्ट के स्टेटस में पहुँचाया, वह राड़ अभी भी जारी है और जो चक्रेश लोहिया व अंशुल शर्मा के बीच के संभावित चुनावी मुकाबले में एक बार फिर मुखर होगी । मजे की बात यह है कि अभी हालाँकि यही तय नहीं है कि जून से पहले वर्ष 2018-19 के गवर्नर पद के लिए होने वाला चुनाव मुरादाबाद क्षेत्र से ही होगा - यह तय भले ही न हुआ हो, लेकिन मुरादाबाद में चुनावी युद्ध के लिए सेनाएँ सजनी शुरू हो गई हैं ।
उल्लेखनीय है कि अभी सिर्फ यह तय हुआ है कि डिस्ट्रिक्ट 3100 का नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस 30 जून को खत्म हो जायेगा, तथा एक जुलाई से डिस्ट्रिक्ट - आधिकारिक रूप से डिस्ट्रिक्ट हो जायेगा । वर्ष 2017-18 में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नहीं होगा, उसकी जगह रोटरी इंटरनेशनल के प्रतिनिधि के रूप में डिस्ट्रिक्ट 3011 के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर संजय खन्ना ही डिस्ट्रिक्ट की जिम्मेदारी संभालेंगे, जिनकी अथक कोशिशों का ही नतीजा है कि डिस्ट्रिक्ट एक वर्ष से भी कम समय में नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस से बाहर आ गया है । तय हुआ है कि वर्ष 2018-19 के गवर्नर के लिए जून से पहले चुनाव होगा, और उससे अलगे वर्ष के गवर्नर के लिए अगस्त/सितंबर तक चुनाव करा लिया जायेगा । यह भी तय हो गया है कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के चुनाव जोन-वाइज होंगे और इसके लिए डिस्ट्रिक्ट को तीन जोन में बाँटा गया है - उल्लेखनीय है कि यह फैसला डिस्ट्रिक्ट की काउंसिल ऑफ गवर्नर्स ने पहले भी किया था, लेकिन जिसे दीपक बाबु ने अपने शातिरपने में लागू नहीं होने दिया था । एक बड़ी बात यह तय हुई है कि पिछले वर्षों में जो भी लोग उम्मीदवार बने हैं, वह तीन वर्षों के लिए उम्मीदवार नहीं हो सकेंगे । जो बात अभी तय होनी है, वह यह है कि जोन-वाइज जो चुनाव होंगे, उसमें जोन्स का क्रम क्या बनेगा । डिस्ट्रिक्ट के नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में जाने से पहले लगातार दो वर्ष चूँकि मेरठ से डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रहे हैं, इसलिए मुरादाबाद के लोग अपना पहला नंबर मान कर चल रहे हैं - और इसीलिए मुरादाबाद में चुनाव की तैयारी होने लगी है ।
चुनाव की तैयारी की शुरुआत चक्रेश लोहिया ने की, और उनकी तैयारी से मुरादाबाद के रोटरियंस के बीच जो गर्मी पैदा हुई - उसकी प्रतिक्रिया के रूप में अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी सामने आई । इस घटनाचक्र ने लोगों को दिवाकर अग्रवाल और दीपक बाबु के बीच हुए चुनावी घमासान के परिदृश्य को याद करा दिया - जिसमें झगड़े का पड़ा बीज नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस के फल के रूप में पनपा । उल्लेखनीय है कि चक्रेश लोहिया, दिवाकर अग्रवाल की उम्मीदवारी के प्रमुख सेनापतियों में थे - तो अंशुल शर्मा, दीपक बाबु की उम्मीदवारी के सेनापतियों में थे । यूँ तो अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी में कुछ भी गलत नहीं है; जितना हक चक्रेश लोहिया को उम्मीदवारी प्रस्तुत करने का है, उतना ही हक अंशुल शर्मा को भी है । लेकिन सामाजिक/राजनीतिक जीवन में जेस्चर जैसी चीज भी होती है तथा उसका एक संदेश और महत्त्व होता है । अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी ने लोगों को बुरी खबर का अहसास इसलिए कराया, क्योंकि डिस्ट्रिक्ट में पिछले दो-तीन वर्षों में जो कुछ भी बुरा हुआ और डिस्ट्रिक्ट नॉन-डिस्ट्रिक्ट स्टेटस में गया - उसके लिए प्रमुख रूप से दीपक बाबु और उनके नजदीकियों की राजनीति को जिम्मेदार माना/ठहराया गया और इसके लिए डिस्ट्रिक्ट व रोटरी में उनकी भारी फजीहत हुई । उम्मीद की जा रही थी कि अपनी फजीहत से सबक लेकर दीपक बाबु और उनके संगी-साथी अब जल्दी से ऐसा कोई काम नहीं करेंगे, जिससे डिस्ट्रिक्ट में फिर से झगड़े-फसाद शुरू हों । अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी से लेकिन डिस्ट्रिक्ट के लोगों की उक्त उम्मीद हवा हो गई है ।
अंशुल शर्मा को रोटरी में अभी ज्यादा समय नहीं हुआ है, और रोटरी में उनकी पहचान कुल मिला कर दीपक बाबु के चुनाव में निभाई गई उनकी भूमिका से ही है - लेकिन जिसने दीपक बाबु और डिस्ट्रिक्ट को सिर्फ बदनामी ही दिलवाई है । अंशुल शर्मा का अपने क्लब में भी झगड़ा हुआ, जिसके चलते उन्हें अपना क्लब छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा । चक्रेश लोहिया के नाम पर भी चुनावी झमेलों में शामिल होने के आरोप रहे हैं, लेकिन उनका प्रशासनिक अनुभव भी रहा है । कई डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के साथ उन्होंने औपचारिक तथा अनौपचारिक रूप से निर्णायक समझे जाने वाले काम किए हैं । जो लोग चक्रेश लोहिया को पसंद नहीं भी करते हैं, उनका मानना और कहना है कि चक्रेश लोहिया और अंशुल शर्मा के बीच कोई तुलना नहीं है - और अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी में चक्रेश लोहिया के साथ उतावलेपूर्ण ढंग से दुश्मनी निकालने/दिखाने जैसा भाव है । मुरादाबाद में कई लोगों का मानना और कहना है कि अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी प्रस्तुत करवा कर दीपक बाबु ने चक्रेश लोहिया की एक तरह से मदद ही की है - थोड़ा ठहर कर ठंडे दिमाग से एक बेहतर उम्मीदवार खोजा/लाया जाता, तो चक्रेश लोहिया को चुनावी मुसीबत में डाला जा सकता था । लोगों को लग रहा है कि चक्रेश लोहिया से निपटने की हड़बड़ी में दीपक बाबु और उनके संगी-साथियों ने अंशुल शर्मा की उम्मीदवारी को प्रस्तुत करके यही संकेत दिया है, कि पीछे जो कुछ हुआ है उससे उन्होंने कोई सबक नहीं सीखा है और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट को संभलने से पहले ही फिर मुसीबत में डालने/फँसाने के लिए कमर कस ली है ।

Sunday, February 19, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3011 के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच रवि दयाल के विरोध की 'आग' पर अपनी दाल गलने की उम्मीद लगाए बैठे संजीव राय मेहरा को अनूप मित्तल की सक्रियता से झटका लगा

नई दिल्ली । संजीव राय मेहरा की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी के लिए उनकी उम्मीदवारी के प्रस्तोता और समर्थक ही जैसे दुश्मन हो गए हैं । संजीव राय मेहरा के नजदीकियों के अनुसार, चुनाव के निर्णायक दौर में संजीव राय मेहरा लोगों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने तथा बढ़ाने का प्रयास करने की बजाए अपने समर्थक नेताओं को कोसने में अपना ज्यादा समय और एनर्जी लगा रहे हैं । उनकी शिकायत है कि चुनाव के निर्णायक दौर में उनके समर्थक नेताओं ने उन्हें अकेला छोड़ दिया है और उनकी बिलकुल मदद नहीं कर रहे हैं । संजीव राय मेहरा की यह शिकायत इस समय इसलिए और बढ़ गई है, क्योंकि उनके समर्थक नेताओं का शुरू से ही मदद न करने वाला रवैया रहा है । उनके समर्थक नेता अलग अलग मौकों पर हमेशा उन्हें यही कहते रहे कि - तुम काम करो, उचित समय पर हम आगे आयेंगे । संजीव राय मेहरा की शिकायत है कि अब जब चुनाव में महीने भर से भी कम समय रह गया है, उनके समर्थक नेता यही राग आलापे जा रहे हैं और उनकी मदद के लिए आगे नहीं आ रहे हैं । वह अभी भी यही कहते हुए बच निकल रहे हैं कि - तुम काम करो, हम उचित समय पर आगे आते हैं ।
संजीव राय मेहरा की नाराजगी के शिकार अशोक घोष, राजेश बत्रा, दीपक कपूर जैसे पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स हो रहे हैं । संजीव राय मेहरा की शिकायत है कि इन्होंने उन्हें उम्मीदवार तो बनवा दिया, लेकिन अब जब उनकी उम्मीदवारी को उनके 'दिखने' वाले समर्थन की जरूरत है, तब वह बचते/छिपते फिर रहे हैं । राजेश बत्रा ने तो बीच में दो-एक बार संजीव राय मेहरा के लिए कुछ कहने/करने का काम किया भी था, लेकिन फिर वह भी पीछे हट गए । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के इस रवैये से संजीव राय मेहरा को वास्तव में दोहरा नुकसान हो रहा है : एक तरफ तो उन्हें इनकी मदद नहीं मिल रही है, और दूसरी तरफ लोगों के बीच संदेश यह जा रहा है कि इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स को संजीव राय मेहरा के लिए लोगों के बीच चूँकि कोई समर्थन नहीं दिख रहा है इसलिए वह सामने आ कर अपनी फजीहत नहीं कराना चाहते हैं । इन पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के रवैये से लोगों के बीच यह सवाल भी उठ रहा है कि संजीव राय मेहरा को इनका समर्थन है भी, या संजीव राय मेहरा इनके समर्थन का झूठा दावा ही करते रहे हैं । लोगों को यह कहने का मौका भी मिल रहा है कि संजीव राय मेहरा एक उम्मीदवार के रूप में किए गए अपने काम से अपने समर्थक नेताओं तक को आश्वस्त नहीं कर पाए हैं, और इसीलिए उनके समर्थक नेताओं ने उनकी उम्मीदवारी से अपनी दूरी बनाई हुई है । संजीव राय मेहरा के लिए मुसीबत की बात यह बनी है कि उनके क्लब में दो पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर हैं - अशोक घोष और आशीष घोष; लेकिन दोनों में से कोई भी उनकी उम्मीदवारी के प्रति समर्थन 'दिखाता' और लोगों का समर्थन जुटाता नजर नहीं आ रहा है । आशीष घोष को तो बल्कि उनके प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार रवि दयाल की उम्मीदवारी के समर्थक के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है ।
संजीव राय मेहरा के नजदीकियों के अनुसार, संजीव राय मेहरा चूँकि बहुत पुराने रोटेरियन हैं और पिछले कई वर्षों से वह लोगों के बीच ज्यादा सक्रिय भी नहीं रहे हैं - इसलिए उन्हें क्लब्स के मौजूदा सक्रिय व प्रभावी सदस्यों तथा पदाधिकारियों के साथ कनेक्ट करने और तालमेल बैठाने में समस्या आ रही है । पुरानी बातें याद करके और उन्हें बता बता कर क्लब्स के नए सदस्यों व पदाधिकारियों के बीच सम्मान तो पाया जा सकता है, लेकिन उनके वोट पाना मुश्किल लग रहा है । संजीव राय मेहरा की रोटरी में सक्रियता का इतिहास भी कोई उत्साहित करने वाला नहीं है, और वह बड़ी सुस्त रफ़्तार का शिकार रहा है । संजीव राय मेहरा ने रोटरी क्लब दिल्ली के सदस्य के रूप में वर्ष 1978 में रोटरी ज्वाइन की थी, लेकिन क्लब का अध्यक्ष बनने में उन्हें 25 वर्ष लग गए । वह वर्ष 2003 में क्लब के अध्यक्ष बने । इसके दो वर्ष बाद, वर्ष 2005 में वह असिस्टेंट गवर्नर बने और उसके बाद फिर गुम हो गए । ग्यारह वर्ष बाद वह डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लिए सामने आए हैं । रोटरी में उनकी सक्रियता का 'यह' इतिहास किसी को भी उत्साहित और प्रेरित करने में तो फेल है ही, साथ ही मुसीबत का कारण भी है - क्योंकि ग्यारह वर्ष बाद डिस्ट्रिक्ट और रोटरी की मुख्यधारा में शामिल होने आए संजीव राय मेहरा न तो पिछले ग्यारह वर्षों में डिस्ट्रिक्ट में आए लोगों को जानते/पहचानते हैं और न इन ग्यारह वर्षों में रोटरी में आए 'बदलावों' से ही परिचित हैं । दरअसल यही कारण है कि वह लोगों के साथ कनेक्ट नहीं कर पा रहे हैं - और इस स्थिति को जानते/पहचानते हुए उनके समर्थक भी उनसे दूरी बनाए हुए हैं ।
संजीव राय मेहरा अपनी कमजोरियों को जानते/पहचानते हुए भी उम्मीदवार के रूप में कुछ समय पहले तक हालाँकि ज्यादा परेशान नहीं थे । उनका और उनके नजदीकियों का आकलन था कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव में उम्मीदवार भले ही और तीन लोग भी हैं, लेकिन मुख्य मुकाबला उनके और रवि दयाल के बीच ही है; और डिस्ट्रिक्ट के पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स का एक बड़ा समूह चूँकि रवि दयाल के खिलाफ है - इसलिए तमाम कमजोरियों के बावजूद उनकी चुनावी दाल गल जाएगी । लेकिन चुनावी लड़ाई में अचानक से हुई अनूप मित्तल की एंट्री ने उनका आकलन गड़बड़ा दिया है । अनूप मित्तल की उम्मीदवारी की प्रस्तुति तथा ताबड़तोड़ तरीके से चलाए गए उनके अभियान ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए बन रहे समीकरणों को छिन्न-भिन्न कर दिया है । संजीव राय मेहरा के नजदीकियों का कहना है कि पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के बीच रवि दयाल के जिस विरोध को संजीव राय मेहरा अपनी 'पूँजी' मान/समझ रहे थे, उस पूँजी के अनूप मित्तल की तरफ भी आकर्षित होने का खतरा बढ़ गया है । समझा जाता है कि इस खतरे को भाँप कर ही संजीव राय मेहरा के समर्थक पूर्व गवर्नर्स 'आगे' बढ़ने से रुक गए हैं, वह अभी और देखना/समझना चाहते हैं कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के संदर्भ में डिस्ट्रिक्ट के लोगों तथा नेताओं का मूड किस दिशा में बढ़ रहा है ? समर्थक पूर्व गवर्नर्स के इस रवैये ने संजीव राय मेहरा की उम्मीदवारी को तगड़ी चोट पहुँचाई है, और इसीलिए संजीव राय मेहरा चुनाव के निर्णायक दौर में लोगों के बीच अपने समर्थन को मजबूत करने तथा बढ़ाने का प्रयास करने की बजाए अपने समर्थक नेताओं के खिलाफ भड़ास निकालने में अपना ज्यादा समय और एनर्जी लगा रहे हैं ।

Saturday, February 18, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में बदलते राजनीतिक माहौल में अपने लिए मौका बनाने की ललित खन्ना की सक्रियता ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का तापमान बढ़ाया

नई दिल्ली । रोटरी क्लब दिल्ली नॉर्थ के ललित खन्ना ने अगले रोटरी वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनाव के लिए अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में गर्मी पैदा करने का काम किया है । ललित खन्ना इस वर्ष भी उम्मीदवार थे, लेकिन इस वर्ष उन्हें सफलता नहीं मिल सकी । इस वर्ष का चुनावी नतीजा आने के तुरंत बाद ही उन्होंने हालाँकि संकेत तो दिए थे कि उन्होंने लड़ाई हारी जरूर है, पर छोड़ी नहीं है - लेकिन लगातार दूसरे वर्ष उनके उम्मीदवार होने को लेकर लोगों के बीच संशय बना रहा था । ललित खन्ना अगले रोटरी वर्ष में उम्मीदवार होने के संकेत तो दे रहे थे, लेकिन चूँकि वह इस बारे में साफ-साफ घोषणा करने से बच रहे थे - इसलिए लोगों के बीच उनकी उम्मीदवारी को लेकर असमंजस बना । इसका फायदा रोटरी क्लब गाजियाबाद शताब्दी के आलोक गुप्ता ने उठाया । आलोक गुप्ता ने अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी को लेकर तैयारी शुरू दी । समझा जाता है कि ललित खन्ना को उनके शुभचिंतकों ने समझाया होगा - या क्या पता उन्होंने खुद ही समझा होगा कि यदि संकेतों और इशारों में ही बात करते रहोगे और पक्के तौर पर अपनी उम्मीदवारी को घोषित नहीं करोगे तथा उसके लिए काम शुरू नहीं करोगे, तो पिछड़ जाओगे; लिहाजा ललित खन्ना भी फिर औपचारिक रूप से अपनी उम्मीदवारी को लेकर सक्रिय हो गए और उन्होंने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में दिलचस्पी तथा अहमियत रखने वाले प्रमुख लोगों से बातचीत करना शुरू कर दिया ।
ललित खन्ना के नजदीकियों के अनुसार, नेताओं से ललित खन्ना को समर्थन का अभी कोई ठोस भरोसा तो नहीं मिला है लेकिन सकारात्मक इशारे जरूर मिले हैं - जिनसे ललित खन्ना ने अपने आप को उत्साहित पाया है । किन्हीं किन्हीं नेताओं ने ललित खन्ना से कहा कि अभी इस चक्कर में ज्यादा न पड़ो कि कौन साथ है और कौन साथ नहीं है - अभी तो बस काम करो । ललित खन्ना को यह देख/जान कर ज्यादा उत्साह मिला कि आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को ज्यादा नेताओं का समर्थन नहीं है, बल्कि कुछेक नेता तो उन्हें आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के विरोध में तीखे तेवर दिखाते नजर आए हैं । ललित खन्ना के क्लब में आयोजित हुए स्वागत समारोह में इस वर्ष डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद का चुनाव जीते दीपक गुप्ता ने ललित खन्ना की जैसी जो तारीफ की, उसके बाद से ललित खन्ना अपनी उम्मीदवारी को लेकर और ज्यादा उत्साहित नजर आए हैं । हालाँकि खुद ललित खन्ना के ही नजदीकियों का कहना है कि ललित खन्ना का उत्साह बढ़ने/बढ़ाने का कारण दीपक गुप्ता का भाषण शायद नहीं है - रोटरी में भाषणों में झाड़ पर चढ़ाने का 'काम' तो खूब होता है, समझदार लोग भाषणों में कही गई बातों के झाँसे में नहीं आते हैं; लगता है कि ललित खन्ना और दीपक गुप्ता के बीच जो अनौपचारिक बातचीत हुई है, उसमें ललित खन्ना को दीपक गुप्ता से कुछ महत्त्वपूर्ण टिप्स मिली होंगी - जिन्होंने ललित खन्ना को आश्वस्त व उत्साहित किया है । ललित खन्ना के नजदीकियों के अनुसार, ललित खन्ना कुछेक नेताओं से मिले इस फीडबैक से ज्यादा उत्साहित हैं कि आमतौर पर उत्तर प्रदेश तथा खासतौर पर गाजियाबाद में आलोक गुप्ता को एकतरफा समर्थन नहीं मिल सकेगा । कुछेक नेताओं ने हालाँकि ललित खन्ना को चेतावनी भी दी है कि उन्होंने पिछली बार के अपने चुनाव अभियान में जो गलतियाँ की हैं, इस बार भी यदि उन्हें दोहराया तो फिर उनका भी आलोक गुप्ता के सामने वैसा ही हाल होगा, जैसा इस वर्ष के चुनाव में दीपक गुप्ता के सामने अशोक जैन का हुआ है ।
इस वर्ष हुए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी नतीजे ने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के खिलाड़ी नेताओं की जो सिट्टी-पिट्टी निकाली है, और उसके कारण नेताओं के हौंसले जिस तरह से पस्त पड़े हैं - उसमें भी ललित खन्ना को अपने लिए अच्छा मौका नजर आ रहा है । अशोक जैन की बुरी हार से रमेश अग्रवाल को जो जोर का झटका जोर से लगा है, उससे लग रहा है कि अगले वर्ष रमेश अग्रवाल के भरोसे कोई उम्मीदवार नहीं आयेगा - ऐसे में ललित खन्ना उनका समर्थन मिलने की उम्मीद कर सकते हैं । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल जिस बड़बोलेपन के साथ दीपक गुप्ता की जीत का श्रेय ले रहे हैं, और खुद ही अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, उससे लग रहा है कि यह दोनों बड़बोली बेवकूफियाँ करने से आगे भी बाज नहीं आयेंगे, जिससे आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी को नुकसान होगा - जाहिर है कि वह प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार के रूप में ललित खन्ना का फायदा होगा । मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल के बड़बोलेपन पर लोगों की नाराजगी अभी से 'दिखने' भी लगी है; लोग पूछने लगे हैं कि इस वर्ष दीपक गुप्ता यदि इनके समर्थन के कारण जीते हैं, तो पिछले वर्ष दीपक गुप्ता इनके समर्थन के होते हुए भी सुभाष जैन से हार क्यों गए थे ?
डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति के बदलते नजारे को पहचान रहे लोगों का मानना और कहना है कि रमेश अग्रवाल की बड़बोली मनमानियों ने इस वर्ष जैसा नुकसान अशोक जैन का किया है, वैसे ही खतरे का सामना अगले वर्ष आलोक गुप्ता को मुकेश अरनेजा व सतीश सिंघल की तरफ से करना पड़ेगा । आलोक गुप्ता के सामने पैदा होने वाले इस खतरे में ही ललित खन्ना को अपने लिए मौका दिख रहा है । इस 'मौके' को देख लेने के कारण ही ललित खन्ना ने अगले वर्ष प्रस्तुत होने वाली अपनी उम्मीदवारी के लिए तैयारी शुरू कर दी है । आलोक गुप्ता के बाद, अगले वर्ष के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद के चुनावी मैदान में ललित खन्ना के भी सक्रिय हो जाने से डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का तापमान बढ़ने लगा है - और जिस कारण से चुनावी राजनीति के समीकरण नए सिरे से बनना शुरू हो गए हैं ।

Thursday, February 16, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग पर झूठा आरोप लगाने के कारण पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना को लोगों की तरफ से जोरदार लताड़ पड़ी

नई दिल्ली । पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर विनोद खन्ना को अपनी ही बेवकूफी भारी पड़ी, जिसके चलते उन्हें अपने ही डिस्ट्रिक्ट के पदाधिकारियों तथा सदस्यों से कड़ी फटकार पढ़ने/सुनने को मिली । कुछेक सदस्यों ने तो विनोद खन्ना को डिस्ट्रिक्ट और लायनिज्म के लिए कलंक तक बताया और कहा कि विनोद खन्ना जैसे लोग अपनी छोटी सोच और नीच मानसिकता के जरिए लायनिज्म को बदनाम करने का काम कर रहे हैं । कुछेक सदस्यों ने याद किया कि अपने घटिया रवैये के चलते विनोद खन्ना डिस्ट्रिक्ट 321 ए थ्री से भगाया जा चुका है, लेकिन फिर भी वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आया है और अपनी हरकतों से अब वह डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू को खराब कर रहा है । नया मामला ऑफिशियल कॉल को लेकर है - विनोद खन्ना ने शिकायत की कि एक दिन पहले आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में तो डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग ने ऑफिशियल कॉल को लेकर कोई बात नहीं की, और अगले दिन शाम को अपने लोगों के एक कार्यक्रम में ऑफिशियल कॉल रिलीज की । इस आधार पर उन्होंने विनय गर्ग पर बेईमानी करने तथा बदनीयती का आरोप लगाया ।
यह बात कोई साधारण लायन सदस्य कहता, तो इस बात को उसकी अज्ञानता मान कर अनसुना किया जा सकता था । किंतु यह बात चूँकि विनोद खन्ना ने कहीं, इसलिए यह बात तूल पकड़ गई । लोगों का कहना रहा कि विनोद खन्ना खुद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर और इंटरनेशनल डायरेक्टर रह चुके हैं, और इस नाते से उम्मीद की जाती है कि उन्हें ऑफिशियल कॉल निकालने के बारे में लायंस इंटरनेशनल के दिशा-निर्देशों का पता होगा । विनोद खन्ना के अलावा अन्य किसी ने भी - यहाँ तक कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग के घोर विरोधियों ने भी - विनय गर्ग पर लायंस इंटरनेशनल के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करने का आरोप नहीं लगाया; मजे की बात यह है कि खुद विनोद खन्ना ने भी दिशा-निर्देशों का उल्लंघन होने का सीधा आरोप नहीं लगाया है । ऐसे में, सवाल यह उठा कि डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में विनय गर्ग ने यदि लायंस इंटरनेशनल के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए ऑफिशियल कॉल रिलीज की है, तो फिर उसमें बेईमानी और बदनीयती की बात कहाँ आ गई ? विनय गर्ग ने पलट कर बहुत ही शालीनता से और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद की मर्यादा का पालन करते हुए उचित ही कहा है कि विनोद खन्ना को कुछ भी कहने से पहले अपने 'पद' और अपनी पोजीशन की मर्यादा का ध्यान तो रखना ही चाहिए ।
विनोद खन्ना ने विनय गर्ग पर आरोप लगाते हुए अपनी जो बड़ी बेवकूफी जाहिर की, वह यह कि उन्होंने विनय गर्ग पर इंटरनेशनल डायरेक्टर पद के तथा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवारों को उस कार्यक्रम में आमंत्रित नहीं करने का आरोप लगाया, जिसमें कॉल रिलीज की गई थी । सदस्यों ने इस आरोप पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि विनोद खन्ना को इतनी भी अक्ल नहीं है क्या कि ऑफिशियल कॉल आने से पहले कोई भी 'उम्मीदवार' कैसे हो सकता है ? शब्दों और उनके अर्थों व व्याख्याओं को यदि छोड़ भी दें, तो भी विनोद खन्ना का रवैया दुष्टता व घटियापन का एक नया उदाहरण है । हर कोई जानता है कि डिस्ट्रिक्ट में चुनावी खेमेबाजी है, और हर नेता व पदाधिकारी 'इस' तरफ या 'उस' तरफ है - विनय गर्ग भी इससे नहीं बचे हुए हैं, और विनोद खन्ना भी इसमें लिप्त हैं । ऐसे में उम्मीद यह की जाती है कि राजनीतिक खेमेबाजी में बँटे हुए नेता व पदाधिकारी अपने अपने पद व पोजीशन की मर्यादा में रहते हुए राजनीति करें । बड़े संदर्भ में देखें तो विनय गर्ग का भी निश्चित रूप से एक राजनीतिक पक्ष है, लेकिन ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जबकि वह लायंस इंटरनेशनल के किसी दिशा-निर्देश या नियम का उल्लंघन कर रहे हों, या अपने पक्ष के उम्मीदवारों का खुल्लमखुल्ला पक्ष ले रहे हों; जबकि विनोद खन्ना कई मौकों पर पूरी बेशर्मी के साथ लोगों के बीच अपने पक्ष के उम्मीदवारों की वकालत करते देखे/सुने गए हैं ।
और इसके बाद भी विनोद खन्ना, विनय गर्ग पर बेईमानी और बदनीयती का आरोप लगा रहे हैं - तो उनके इस व्यवहार को 'उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे' जैसे उदाहरण के रूप में देखा/पहचाना जा रहा है । एक मशहूर कहावत है कि जो जैसा खुद होता है, दूसरे लोग उसे वैसे ही दिखाई देते हैं; इसी कहावत को ध्यान में रखते हुए लोगों का कहना है कि विनोद खन्ना चूँकि खुद राजनीतिक बेईमानी कर रहे हैं और बदनीयती दिखा रहे हैं - इसलिए अपनी बेईमानी व बदनीयती से लोगों का ध्यान भटकाने के लिए डिस्ट्रिक्ट गवर्नर विनय गर्ग पर झूठे आरोप मढ़ रहे हैं । विनोद खन्ना के लिए फजीहत की बात यह हुई है कि उनकी इस हरकत पर डिस्ट्रिक्ट के लोगों ने उन्हें तो जमकर लताड़ा है, जबकि विनय गर्ग के प्रति समर्थन दिखाया है । लोगों ने विनय गर्ग को सुझाव दिया है कि विनोद खन्ना जैसे व्यक्ति के झूठे आरोपों की चिंता करने की उन्हें जरूरत नहीं है; विनोद खन्ना एक निहायत गंदा व्यक्ति है, जो अपने बेटे की पत्नी तक से बदतमीजी करने से बाज नहीं आया है - ऐसे व्यक्ति से अच्छे आचरण और व्यवहार की उम्मीद करना/रखना फिजूल ही होगा ।

Tuesday, February 14, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की मनमानी में नरेश अग्रवाल की फजीहत होने तथा सुशील अग्रवाल की शह की आशंका से मामला रोचक हुआ

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने अपनी छोटी और घटिया सोच के परिचय को और मजबूती देते हुए मल्टीपल कॉन्फ्रेंस के रंग में भंग डालने का जो काम किया है - और इस काम के जरिये उन्होंने मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन जेसी वर्मा तथा इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल की एकसाथ जो चिंदी उड़ाई है, उसे उनकी कलंक-कथा के एक और अध्याय के रूप में देखा/पढ़ा जा रहा है । इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल के लिए भी यह बड़ा जलील करने वाला मामला है, जिसमें कि उन्हें अपने ही मल्टीपल के एक डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के जरिये फजीहत का शिकार होना पड़ रहा है । किस्सा यह है कि मल्टीपल कॉन्फ्रेंस के लिए 26 से 28 मई की तारीख तय की गई है, जिसमें नरेश अग्रवाल ने मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित होने के लिए अपनी सहमति दे दी है । नरेश अग्रवाल यूँ तो इसी मल्टीपल के सदस्य होने के नाते इस मल्टीपल की तमाम मीटिंग्स में और कॉन्फ्रेंसेज में शामिल होते रहे हैं, लेकिन इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट के रूप में इस बार की मल्टीपल कॉन्फ्रेंस में उनकी उपस्थिति का खास महत्त्व है । इंटरनेशनल फर्स्ट वाइस प्रेसीडेंट के रूप में अपने लोगों के बीच उनकी उपस्थिति खुद उनके लिए भी उपलब्धि की बात है, और यह मल्टीपल के लोगों के लिए भी गर्व करने का मौका है । लेकिन डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी ने अपनी छोटी और घटिया सोच के चलते इस मौके को बिगाड़ने की तैयारी कर ली है ।
शिव कुमार चौधरी ने दरअसल इन्हीं तारीखों में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने की घोषणा की है । उनकी इस घोषणा से साफ है कि नरेश अग्रवाल के मुख्य आतिथ्य में होने वाली मल्टीपल डिस्ट्रिक्ट की ऐतिहासिक कॉन्फ्रेंस में डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के पदाधिकारी और सदस्य उपस्थित नहीं हो सकेंगे । शिव कुमार चौधरी की इस हरकत पर मल्टीपल के लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है; जिसमें कहा गया है कि वह शिव कुमार चौधरी की कारस्तानियों के बारे में सुनते/पढ़ते तो रहे हैं, लोगों के बारे में भद्दी बातें करने/कहने तथा गालियाँ बकने की उनकी आदत से भी वह परिचित रहे हैं लेकिन उन्हें यह विश्वास नहीं था कि वह नरेश अग्रवाल तक को सार्वजनिक रूप से लज्जित करने तक की हद तक भी जायेंगे । मजे की बात यह है कि लायनिज्म को कलंकित करने वाली शिव कुमार चौधरी की कई हरकतों को नरेश अग्रवाल की शह मिलने की चर्चा रही है - यह नरेश अग्रवाल की बदकिस्मती ही है कि जिस शिव कुमार चौधरी की हरकतों को उन्होंने शह दी, आज उसी शिव कुमार चौधरी ने उन्हें भी अपनी हरकतों का शिकार बना लिया । शिव कुमार चौधरी प्राकृतिक आपदा के शिकार लोगों की मदद के लिए मिली इमरजेंसी ग्रांट को जिस बेशर्मी के साथ पी गए हैं, वह नरेश अग्रवाल की शह के बिना संभव ही नहीं थी । नरेश अग्रवाल ने शायद सोचा भी नहीं होगा कि वह जिस शिव कुमार चौधरी को 'दूध' पिला रहे हैं, वही शिव कुमार चौधरी एक दिन उन्हें भी डसने के लिए तैयार हो जायेगा ।
मल्टीपल में कुछेक लोगों को नरेश अग्रवाल की फजीहत करने की शिव कुमार चौधरी की इस हरकत के पीछे पूर्व इंटरनेशनल डायरेक्टर सुशील अग्रवाल का हाथ भी नजर आ रहा है । लोगों को लगता है कि ईर्ष्या-भाव के चलते सुशील अग्रवाल को नरेश अग्रवाल के इंटरनेशनल प्रेसीडेंट बनने की बात रास नहीं आ रही होगी, और इस खुन्नस में वह पर्दे के पीछे से नरेश अग्रवाल के सामने फजीहत के मौके 'बना' रहे हों । दरअसल कोई भी इस बात पर यकीन करने के लिए तैयार नहीं है कि सुशील अग्रवाल की मदद और शह के बिना शिव कुमार चौधरी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर मनमानी कर सकते हैं । उल्लेखनीय है कि मल्टीपल काउंसिल के दिशा-निर्देशों तथा नियमों के अनुसार, प्रत्येक डिस्ट्रिक्ट में 30 अप्रैल तक डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस हो जाना चाहिए । डिस्ट्रिक्ट 321 सी वन के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी पहले सरेआम घोषणा करते रहे थे कि वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करायेंगे ही नहीं; अब उन्होंने 27/28 मई को डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस कराने की घोषणा की है । सुशील अग्रवाल के साथ शिव कुमार चौधरी के निकट के और भरोसे के संबंध जगजाहिर हैं; सुशील अग्रवाल की पत्नी अर्चना अग्रवाल को शिव कुमार चौधरी ने जोन चेयरपरसन बनाया हुआ है । शिव कुमार चौधरी ने जिस दिन डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तारीखों का ऐलान किया है, उससे पिछले दिन ही सुशील अग्रवाल की उपस्थिति में डिस्ट्रिक्ट की तीसरी कैबिनेट मीटिंग हुई थी - जिसमें शिव कुमार चौधरी ने घोषणा की थी कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तारीखों का ऐलान वह जल्दी ही करेंगे । अगले ही दिन उन्होंने तारीखों का ऐलान कर दिया । ऐसे में, हर कोई यही मान कर चल रहा है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की मनमानी तारीख पर शिव कुमार चौधरी को सुशील अग्रवाल की पूरी पूरी शह है । शह न होती तो सुशील अग्रवाल मल्टीपल काउंसिल के नियमानुसार 30 अप्रैल से पहले डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करवाने के लिए शिव कुमार चौधरी पर दबाव बनाते । कौन विश्वास करेगा कि अपनी पत्नी को जोन चेयरपरसन बनवाने वाले सुशील अग्रवाल उचित समय पर डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करवाने के मामले में शिव कुमार चौधरी के सामने असहाय हैं ।
शिव कुमार चौधरी ने डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस को लेकर जो नाटक फैलाया है, और जिसमें लायंस इंटरनेशनल व मल्टीपल काउंसिल के नियमों को भी धता बता देने की हद तक वह जाते दिख रहे हैं - उसके पीछे कई लोगों को उनकी फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल से पैसे ऐंठने तथा मल्टीपल ड्यूज हड़प जाने की मंशा भी 'दिखाई' दे रही है । दरअसल डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस उचित समय पर यदि नहीं होती है तो फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अजय सिंघल के लिए अमेरिका में होने वाले अधिष्ठापन समारोह में शामिल होना मुश्किल हो जायेगा । पैसों की लूट-खसोट के मामले में शिव कुमार चौधरी की जैसी कुख्याति है, उसके चलते लोगों को लग रहा है कि डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस उचित समय पर न करके वह अजय सिंघल को ब्लैकमेल करने की तिकड़म लगा रहे हैं । मल्टीपल कॉन्फ्रेंस के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस करने से शिव कुमार चौधरी को मल्टीपल ड्यूज की रकम भी हड़प लेने का मौका मिल जाने की उम्मीद है । लोगों का कहना है कि जो व्यक्ति प्राकृतिक आपदा के शिकार लोगों की मदद के लिए मिले पैसों को हड़प सकता है, उसके लिए अजय सिंघल को ब्लैकमेल करना और मल्टीपल ड्यूज की रकम को हड़प लेना कौन सा मुश्किल काम होगा ? लोगों को शिव कुमार चौधरी की इन हरकतों पर सुशील अग्रवाल की चुप्पी से लेकिन हैरानी जरूर है । और अब जब डिस्ट्रिक्ट गवर्नर शिव कुमार चौधरी की हरकतों के निशाने पर इंटरनेशनल प्रेसीडेंट होने जा रहे नरेश अग्रवाल भी आ गए हैं, तो मामला और खासा रोचक हो गया है ।

Monday, February 13, 2017

लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ई में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में क्षितिज शर्मा की 'लुटने से बचने' की कोशिश सफल हो पायेगी, या अनिल तुलस्यान अपनी 'राजनीति' का खर्चा भी उनके सिर मढ़ देंगे

वाराणसी । सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार क्षितिज शर्मा के जरिए मसूरी में कमरे बुक करा लेने के बाद डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान ने विद्ययुत विहार में डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस की तारीखों का ऐलान करके क्षितिज शर्मा के साथ गठजोड़ करने का संकेत तो दे दिया है, लेकिन अनिल तुलस्यान के रवैये से क्षितिज शर्मा के परेशान और निराश होने की खबरें भी लोगों को सुनने को मिल रही हैं । कुछेक लोगों के बीच क्षितिज शर्मा ने कहा है कि उम्मीदवार होने के नाते वह 'लुटेंगे' नहीं, और डिस्ट्रिक्ट में यदि कोई यह समझ रहा है कि वह उम्मीदवार होने के नाते उनका आर्थिक दोहन कर लेगा - तो वह बहुत गलतफहमी में है । क्षितिज शर्मा के नजदीकियों का कहना है कि क्षितिज शर्मा इस तरह की बातें कहने/करने वाले व्यक्ति नहीं हैं, वह बहुत दिल खोल कर काम करने वाले व्यक्ति हैं - लेकिन फिर भी वह इस तरह की बात कह रहे हैं तो इसका मतलब है कि अनिल तुलस्यान तथा डिस्ट्रिक्ट के सत्ता खेमे के नेताओं के रवैये से वह बुरी तरह आहत हुए हैं । क्षितिज शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, मसूरी में कमरे बुक कराने से पहले अनिल तुलस्यान ने क्षितिज शर्मा को कमरों का तथा लोगों के टिकट के खर्चे का अनुमान बताया था - जिसे चुकाने के लिए क्षितिज शर्मा ने अपनी सहमति दे दी थी; किंतु फिर अनिल तुलस्यान का मुँह जिस तरह से खुलता गया और उनकी माँग बढ़ती गई, उससे क्षितिज शर्मा को लगा कि उम्मीदवार के रूप में उन्हें जैसे लूटने की तैयारी हो रही है । इसी के बाद क्षितिज शर्मा को कहने के लिए मजबूर होना पड़ा कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार के रूप में वह लुटेंगे नहीं !
क्षितिज शर्मा के नजदीकियों के अनुसार, दो मामलों में क्षितिज शर्मा उखड़े हुए हैं : एक मामला देहरादून रेलवे स्टेशन से मसूरी तक लोगों के आने-जाने का है, और दूसरा मामला डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में नाच-गाने तथा दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से आने वाले अतिथियों के इंतजाम का है । क्षितिज शर्मा वाराणसी से और या अपने अपने शहरों से देहरादून जाने वाले लोगों का किराया खर्च करने के लिए तो तैयार हैं, लेकिन अनिल तुलस्यान ने उन्हें देहरादून से मसूरी तक ले जाने और फिर मसूरी से देहरादून वापस लाने के लिए कारों की व्यवस्था का खर्चा और बता दिया है । क्षितिज शर्मा इस काम के लिए बस बुक करना/कराना चाहते हैं, लेकिन अनिल तुलस्यान कारों की बात कर रहे हैं । दूसरा मामला इससे भी ज्यादा गंभीर है : अनिल तुलस्यान ने डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में डिस्ट्रिक्ट में एक नया अध्याय मनोरंजन का जोड़ा है; वह मनोरंजन प्रिय व्यक्ति हैं, और इस नाते से वह अपने कार्यक्रमों में नाच-गाने की खास व्यवस्था रखते हैं - कुछ लोगों का आरोप है कि इस व्यवस्था की आड़ में वह कुछ दूसरे गुल भी खिलाते हैं । यही व्यवस्था वह डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में करना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में वह मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स से आने वाले अतिथियों, खासतौर से फर्स्ट वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर्स के लिए विशेष इंतजाम करना चाहते हैं; समझा जाता है कि अनिल तुलस्यान मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की अपनी संभावित उम्मीदवारी के लिए अपनी डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में अच्छा माहौल बनाना चाहते हैं ।
अनिल तुलस्यान डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में लगता है कि डिस्ट्रिक्ट के अधिष्ठापन समारोह में हुए नुकसान की पूरी भरपाई करना चाहते हैं । उल्लेखनीय है कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट पदाधिकारियों के अधिष्ठापन समारोह में भी व्यवस्था तो अच्छी की थी, लेकिन निवर्तमान डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रकाश अग्रवाल के साथ की गई बदतमीजीपूर्ण हरकत के चलते उसमें जो बबाल हुआ - उससे मल्टीपल के दूसरे डिस्ट्रिक्ट्स के लोगों तक उनकी भारी फजीहत हुई थी । मल्टीपल काउंसिल चेयरमैन पद की उम्मीद में अनिल तुलस्यान लेकिन अब बहुत सावधानी के साथ कदम बढ़ाना चाहते हैं । पिछले दिनों आयोजित हुई तीसरी कैबिनेट मीटिंग में उन्होंने प्रकाश अग्रवाल को जो तवज्जो दी, उससे भी लोगों को संकेत मिला है कि अब वह किसी को नाराज नहीं रखना/छोड़ना चाहते हैं । डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में जैसे वह अपने सारे 'पाप' धो लेना चाहते हैं । इसमें समस्या की बात लेकिन यह हो गई है कि इसकी 'कीमत' वह क्षितिज शर्मा से बसूलना चाहते हैं । क्षितिज शर्मा ने अपने नजदीकियों से रोना रोया है कि अनिल तुलस्यान डिस्ट्रिक्ट कॉन्फ्रेंस में अपने राजनीतिक स्वार्थ में जो इंतजाम करना चाहते हैं, उसके खर्चे का बोझ भी वह उनके सिर पर मढ़ने का प्रयास कर रहे हैं - और इसीलिए क्षितिज शर्मा को कहने की जरूरत पड़ी है कि वह लुटेंगे नहीं ।
अनिल तुलस्यान और क्षितिज शर्मा के बीच 'लूटने' और 'लुटने से बचने' का जो खेल चल रहा है, वह वास्तव में सत्ता खेमे के नेताओं और क्षितिज शर्मा के बीच बने रहने वाले परस्पर अविश्वास का नतीजा भी है । क्षितिज शर्मा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर बनने के लालच में सत्ता खेमे के नेताओं के नजदीक चले तो गए हैं, लेकिन सत्ता खेमे के नेताओं की हरकतें न उन्हें पहले पसंद थीं और न अब हैं; उधर सत्ता खेमे के नेताओं ने एक मालदार उम्मीदवार होने के नाते उन्हें 'स्वीकार' तो कर लिया है, लेकिन साथ-साथ वह यह भी अच्छी तरह समझ रहे हैं कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर होने के बाद क्षितिज शर्मा उनके साथ रहेंगे नहीं । पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अशोक सिंह के साथ क्षितिज शर्मा की नजदीकी सत्ता खेमे के नेताओं को और भी आशंकित कर रही है । उल्लेखनीय है कि अशोक सिंह के कारण ही क्षितिज शर्मा को पिछले वर्ष के प्रकाश अग्रवाल के गवर्नर-काल में रीजन चेयरमैन का पद मिला था । प्रकाश अग्रवाल किसी और को रीजन चेयरमैन बना रहे थे, लेकिन अशोक सिंह ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए दखल दिया और क्षितिज शर्मा को रीजन चेयरमैन बनवाया - जिसके कारण क्षितिज शर्मा की लायन-यात्रा तेजी से आगे बढ़ी । मौजूदा सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर प्रभात चतुर्वेदी तो घोषित रूप से अशोक सिंह के नजदीक हैं; ऐसे में सत्ता खेमे के नेताओं के सामने सवाल यह भी है कि क्षितिज शर्मा को सफल करवा कर कहीं वह अपने प्रतिद्धंद्धी अशोक सिंह को तो मजबूत नहीं बना रहे हैं ? सत्ता खेमे के नेताओं और क्षितिज शर्मा के बीच पल रहे इसी अविश्वास के बीच 'लूटने' और 'लुटने से बचने' का खेल खासा दिलचस्प हो गया है - और लोगों को लग रहा है कि विद्ययुत विहार में डिस्ट्रिक्ट गवर्नर अनिल तुलस्यान द्धारा कॉल निकालने के बाद डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति का परिदृश्य अभी और करवट लेगा तथा चुनावी समीकरणों को प्रभावित करेगा ।

Wednesday, February 8, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में बाबु अब्राहम की उम्मीदवारी के जरिए मौजूद प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी सचमुच अपना कोई खेल जमाने का प्रयास कर रहे हैं क्या ?

नई दिल्ली । बाबु अब्राहम ने इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए जिस तरह की सक्रियता दिखाई है, उससे इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता को अपने बेटे नवीन गुप्ता के लिए मामला एक बार फिर बिगड़ता नजर आ रहा है । बाबु अब्राहम की अचानक पैदा हुई सक्रियता के पीछे एनडी गुप्ता को दरअसल मौजूदा प्रेसीडेंट देवराज रेड्डी की 'राजनीति' दिख रही है, और इसीलिए एनडी गुप्ता को नवीन गुप्ता के लिए बैठाया गया अपना समीकरण छिन्न-भिन्न होता हुआ लग रहा है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट चुनाव में भूमिका निभाने में दिलचस्पी लेने वाले जो पूर्व प्रेसीडेंट्स एनडी गुप्ता को नवीन गुप्ता के लिए समर्थन जुटाने में सहयोग करते लग रहे थे, उनके भी दोहरे रवैये सामने आए हैं - और इस बात ने भी एनडी गुप्ता को बुरी तरह निराश किया हुआ है; हालाँकि इस सबके बावजूद उन्होंने मैदान और उम्मीद अभी छोड़ी नहीं है । उनके नजदीकियों का कहना है कि उनका दावा है कि इस बार उन्होंने ऐसी गोटियाँ फिट की हैं कि नवीन गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने से कोई नहीं रोक सकेगा । यह बताने वाले नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि इस तरह के दावे एनडी गुप्ता दो-तीन बार पहले भी कर चुके हैं; पिछले वर्ष तो बल्कि  नवीन गुप्ता के वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने को लेकर एनडी गुप्ता पूरी तरह आश्वस्त थे । इसीलिए, नीलेश विकमसे के मैदान मार लेने के बाद एनडी गुप्ता और उनके साथियों ने मामूली अंतर से नवीन गुप्ता के पीछे रह जाने की बात प्रचारित की - हालाँकि काउंसिल सदस्यों का कहना रहा कि चुनावी नतीजे में यह पता लगना/लगाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव होता है कि कौन कितना आगे-पीछे रहा; इसलिए कई लोगों को लगा कि एनडी गुप्ता और उनके साथियों ने अपने दावे के फेल हो जाने की शर्मिंदगी से बचने के लिए मामूली अंतर की बात प्रचारित की । 
मजे की बात है कि नवीन गुप्ता का इस बार का समर्थन जुटाओ अभियान इसी तर्क पर काम कर रहा है कि पिछली बार जो मामूली सा अंतर रह गया था, उसे इस बार भर दिया जाए और नवीन गुप्ता का काम बन जाए । नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी की बागडोर पर्दे के पीछे से सँभाले हुए उनके पिता एनडी गुप्ता यही तर्क देकर नवीन गुप्ता के लिए समर्थन पक्का करने का प्रयास कर रहे हैं । उनका प्रयास इस बार कामयाब होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - लेकिन उनकी सक्रियता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को खासा दिलचस्प जरूर बना दिया है । वास्तव में, नवीन गुप्ता जब जब वाइस प्रेसीडेंट पद के गंभीर उम्मीदवार बने हैं - तब तब वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति का माहौल बेहद रोमांचक बना है, और इसका श्रेय उनके पिता एनडी गुप्ता को जाता है । इसका कारण यह होता है कि दूसरे उम्मीदवार तो समर्थन जुटाने के लिए खुद जुटते हैं, जबकि नवीन गुप्ता के मामले में उनके साथ साथ उनके पिता भी जुटते हैं और अपनी पहचान का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं - इससे नवीन गुप्ता के अभियान में नाटकीयता बढ़ जाती है । नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों ने कई बार सुझाव दिया है कि एनडी गुप्ता के कारण नवीन गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान होता है, और इसलिए एनडी गुप्ता को उनके चुनाव अभियान से दूर ही रहना चाहिए; एनडी गुप्ता इस सुझाव को मान भी लेते हैं तथा नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को आश्वस्त भी करते हैं कि वह नवीन गुप्ता के चुनाव के झमेले में अब आगे नहीं पड़ेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता जाता है, एनडी गुप्ता अपना आश्वासन भूल जाते हैं और नवीन गुप्ता के चुनाव की कमान संभाल लेते हैं - और इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनावी परिदृश्य को रोचक बना देते हैं ।
रोचक बनाने के साथ-साथ इस बार लेकिन एनडी गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को आर-पार का मामला भी बना दिया है । इसीलिए नवीन गुप्ता के लिए इस बार उन्होंने अच्छी फील्डिंग लगाने की तैयारी की है । किंतु बाबु अब्राहम उनकी तैयारी में सेंध लगाते नजर आ रहे हैं । बाबु अब्राहम की उम्मीदवारी की चर्चा तो हालाँकि थी, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह ज्यादा सक्रिय दिख नहीं रहे थे - जिसे एनडी गुप्ता अपनी 'जीत' के रूप में व्याख्यायित कर रहे थे । उनकी तरफ से बताया जा रहा था कि उनकी सिफारिश पर देवराज रेड्डी ने बाबु अब्राहम को 'पीछे रहने' के लिए राजी कर लिया था, ताकि इस बार नवीन गुप्ता का काम जाए । किंतु अब जब बाबु अब्राहम अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोर-शोर से सक्रिय हो गए हैं, तो एनडी गुप्ता को अपनी फील्डिंग बिगड़ती नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि देवराज रेड्डी वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई अलग खेल करना चाहते हैं । नवीन गुप्ता के कुछेक शुभचिंतक यद्यपि दावा कर रहे हैं कि बाबु अब्राहम की सक्रियता से नवीन गुप्ता का गणित मजबूत ही होगा, क्योंकि बाबु अब्राहम की सक्रियता नवीन गुप्ता के नार्दर्न रीजन के मुकाबलेबाजों को नुकसान पहुँचाएगी ।
असल में, नवीन गुप्ता के लिए मुख्य खतरा और चुनौती नॉर्दर्न रीजन के दूसरे उम्मीदवारों की तरफ से देखी जा रही है । नॉर्दर्न रीजन से संजय अग्रवाल, अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जा रहा है - और इनकी उम्मीदवारी की गंभीरता ही नवीन गुप्ता के लिए जंजाल बनी है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में से कुछेक का यह भी मानना और कहना है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों के बीच की आपसी होड़ को देखते हुए ही बाबु अब्राहम ने अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेना शुरू किया है, उन्हें लगा है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों की आपसी होड़ के चलते उनका काम शायद बन जाए । हालाँकि कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव इतना अनिश्चितताभरा है कि उसके नतीजे को लेकर कोई भी दावा करना तो दूर, अनुमान तक लगाना मुश्किल है । यह चुनाव वास्तव में धोखों का चुनाव है; इस चुनाव में उम्मीदवारों को इतने 'धोखे' मिलते हैं कि अब कोई उनका बुरा भी नहीं मानता है । हाँ, सीधे-सीधे मिलने वाले धोखे लोगों के बीच गपशप का विषय जरूर बनते हैं । जैसे, चुनाव से ठीक पहले राजेश शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह को तगड़ा झटका दिया है । काउंसिल सदस्यों के बीच इन दोनों की दोस्ती खासी मशहूर रही है, और इस नाते मुकेश कुशवाह को राजेश शर्मा के समर्थन का पक्का विश्वास था - लेकिन 'कहना कुछ और करना कुछ' वाली फितरत रखने वाले राजेश शर्मा ने ऐन अंतिम वक्त पर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह ही नहीं, दूसरे लोगों को भी सबक दे दिया है कि चुनावी राजनीति में दोस्तों के भरोसे नहीं रहना चाहिए !

Monday, February 6, 2017

रोटरी इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 3012 में आलोक गुप्ता ने अगले वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की उम्मीदवारी की तैयारी शुरू करके प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को दबाव में ला देने तथा अपनी बढ़त बनाने का काम शुरू किया

गाजियाबाद । डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद पर दीपक गुप्ता की जीत का नतीजा आने के तुरंत बाद से रोटरी क्लब गाजियाबाद शताब्दी के वरिष्ठ सदस्य आलोक गुप्ता ने अगले रोटरी वर्ष के लिए अपनी उम्मीदवारी की प्रस्तुति को लेकर जो तैयारी शुरू की है, उसने डिस्ट्रिक्ट की चुनावी राजनीति में फिर से साँसें भरने का काम किया है । आलोक गुप्ता की तरफ से पिछले काफी समय से लोगों को हालाँकि संकेत तो मिलते रहे थे कि वह अगले रोटरी वर्ष में अपनी उम्मीदवारी के बारे में संभावना देख रहे हैं, लेकिन अंतिम फैसला इस वर्ष का चुनावी नतीजा आने के बाद ही उन्हें लेना था । दरअसल इस वर्ष का चुनावी नतीजा आने से पहले अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी के बारे में पक्का फैसला करने की आलोक गुप्ता की राह में सबसे बड़ा रोड़ा रोटरी क्लब गाजियाबाद नॉर्थ के आलोक गर्ग थे । आलोक गर्ग प्रतिद्धंद्धी खेमे में अत्यंत सक्रिय रहे हैं, और उनकी सक्रियता देख कर ही लोगों को लगता था कि इस वर्ष यदि अशोक जैन जीते, तो अगले उम्मीदवार आलोक गर्ग होंगे । आलोक गर्ग चूँकि आलोक गुप्ता के मान्य रिश्तेदार हैं, इसलिए आलोक गर्ग की उम्मीदवारी के सामने उन्हें अपनी उम्मीदवारी के प्लान को छोड़ना ही पड़ता । हाँ, प्रतिद्धंद्धी खेमे से लेकिन यदि कोई और उम्मीदवार होता तो आलोक गुप्ता फिर सोचते ! इसी गफलत के चलते आलोक गुप्ता अगले वर्ष की अपनी उम्मीदवारी पर मोहर लगाने के लिए इस वर्ष के चुनावी नतीजे का इंतजार करने के लिए मजबूर थे ।
इस वर्ष के चुनावी नतीजे ने आलोक गुप्ता में दोहरा जोश भरा है - उनके खेमे के उम्मीदवार दीपक गुप्ता न सिर्फ जीते हैं, बल्कि भारी अंतर से जीते हैं । इस वर्ष के चुनावी नतीजे ने उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता को एक बड़ा साफ संदेश/सबक दिया है कि उम्मीदवार के रूप में उन्हें न प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं के प्रभाव से डरने की जरूरत है, और न अपने खेमे के नेताओं की बेवकूफीभरी कारस्तानियों से घबराने की जरूरत है - उन्हें जो कुछ भी पाना है, उसे अपने भरोसे ही पाना है । उम्मीदवार के रूप में आलोक गुप्ता के सामने सबसे बड़ी समस्या मुकेश अरनेजा और सतीश सिंघल जैसे अपने समर्थक नेता ही हैं, जो अपनी अपनी हरकतों से किसी का काम बनवाने नहीं, बल्कि बिगड़वाने के लिए कुख्यात हैं । समस्या की बात इसलिए और बड़ी है, क्योंकि आलोक गुप्ता को इन्हीं की मदद भी लेनी है । ऐसे में, जाहिर तौर पर उनके सामने उम्मीदवार के रूप में चुनौती यही होगी कि वह इन दोनों की मदद तो लें, लेकिन इनके कारण हो सकने वाले नुकसान से अपने को बचाएँ ! मुकेश अरनेजा पर पूरी तरह निर्भर होने/रहने का खामियाजा आलोक गुप्ता पीछे एक बार भुगत चुके हैं - उस बार मुकेश अरनेजा से उन्हें अप्रत्याशित रूप से धोखा ही मिला था ।
इस बार आलोक गुप्ता के लिए स्थितियाँ चूँकि बेहतर हैं, इसलिए 'उस' बार की तरह वह इस बार मुकेश अरनेजा पर पूरी तरह निर्भर भी नहीं हैं । एक अंतर तो यही है कि इस बार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के रूप में सतीश सिंघल उनके साथ वैसा खेल नहीं खेलेंगे, जैसा खेल उस बार के डिस्ट्रिक्ट गवर्नर रमेश अग्रवाल ने उनके साथ खेला था । दूसरा बड़ा अंतर डिस्ट्रिक्ट के राजनीतिक माहौल का है : अशोक जैन की बुरी हार के कारण प्रतिद्धंद्धी खेमे में निराशा और अफरातफरी का माहौल है । इस बार का चुनावी नतीजा आने से पहले अगले उम्मीदवार के रूप में जो कई लोग उछल रहे थे, चुनावी नतीजा आने के बाद वह सभी दुबक गए हैं । यह ठीक है कि प्रतिद्धंद्धी खेमे से भी कोई न कोई उम्मीदवार आयेगा ही, किंतु जब तक वहाँ की निराशा और अफरातफरी दूर होगी और कोई उम्मीदवार बनने के लिए तैयार होगा, तब तक आलोक गुप्ता के लिए लोगों के बीच बढ़त बनाने का अच्छा मौका है । पिछले दो चुनाव बताते हैं कि उम्मीदवारी 'दिखाने' में पहल करने वाले उम्मीदवार को फायदा मिला है । संभव है कि आलोक गुप्ता ने इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए उम्मीदवार की जगह खाली होते ही उस जगह को अपनी उम्मीदवारी से भर दिया है ।
डिस्ट्रिक्ट के मौजूदा राजनीतिक माहौल तथा राजनीतिक समीकरणों को देखते हुए आलोक गुप्ता की उम्मीदवारी के लिए रास्ता अभी भले ही आसान नजर आ रहा हो, लेकिन असली खेल तो तब शुरू होता है जब प्रतिद्धंद्धी उम्मीदवार भी सामने आ गया हो और उसने अपनी तैयारी का आभास दे दिया हो । आलोक गुप्ता के सामने अपने खेमे के लोगों को भी एकजुट बनाए रखने की चुनौती होगी; उनके खेमे में कई लोग हैं जो अपनी अपनी नॉनसेंस वैल्यूज के लिए खासे कुख्यात हैं - ऐसे लोग हालाँकि उपयोगी भी होते हैं, लेकिन यदि इन्हें ज्यादा ढील मिल जाती है तो फिर यही भस्मासुर भी साबित होते हैं । ऐसे लोगों से 'ज्यादा दूर भी न जाएँ, और ज्यादा पास भी न आएँ' वाले फार्मूले से ही निपटा जा सकता है ।
बहरहाल, अगले रोटरी वर्ष की डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी पद की चुनावी राजनीति का खेल यूँ तो अभी शुरू होना है - लेकिन आलोक गुप्ता ने 'मैं आ रहा हूँ' का संकेत देकर प्रतिद्धंद्धी खेमे के नेताओं को दबाव में ला देने तथा अपनी बढ़त बनाने का काम तो कर ही दिया है ।

Sunday, February 5, 2017

लायंस इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 321 ए टू में अंबाला के पाँच क्लब्स के अधिष्ठापन समारोह में गुरचरण सिंह भोला का चेयरपर्सन बनना उक्त क्लब्स के अध्यक्षों के लिए मुसीबत बना

अंबाला । गुरचरण सिंह भोला की चेयरपर्सनी में अपने अपने क्लब का अधिष्ठापन कराने के लिए वर्षा मल्होत्रा, वरिंदर सिंह ढिल्लों, चंद्रगुप्त बंसल, राजिंदर कंसल तथा कुलभूषण गुप्ता को अपने अपने क्लब में तथा अंबाला और डिस्ट्रिक्ट के लायन सदस्यों के बीच भारी फजीहत और बदनामी का सामना करना पड़ रहा है । इनके क्लब्स के साथ-साथ डिस्ट्रिक्ट के लोगों की तरफ से भी इन पर अपने अपने क्लब तथा लायनिज्म को सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार गुरचरण सिंह भोला को 'बेचने' के गंभीर आरोप लगाए जा रहे हैं । इनके क्लब्स के सदस्यों का तो यहाँ तक आरोप है कि क्लब के ड्यूज तथा आयोजन के नाम पर यह एक तरफ तो सदस्यों से भी पैसे ले रहे हैं, और दूसरी तरफ सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार गुरचरण सिंह भोला की भी जेब ढीली करवा रहे हैं - और इस तरह लायनिज्म के नाम पर दोनों हाथों से लूट मचाए हुए हैं । यह पाँचों क्रमशः लायंस क्लब अंबाला, लायंस क्लब अंबाला सेंट्रल, लायंस क्लब अंबाला सिटी ग्लोबल, लायंस क्लब अंबाला गैलेक्सी तथा लायंस क्लब अंबाला मिडटाउन के अध्यक्ष हैं ।
अंबाला के इन पाँच क्लब्स के अध्यक्षों की फजीहत और बदनामी का सिलसिला 25 जनवरी को अंबाला-चंडीगढ़ रोड पर स्थित ड्राइव इन 22 में आयोजित हुए संयुक्त अधिष्ठापन समारोह के बाद शुरू हुआ । इसका कारण वास्तव में इस संयुक्त अधिष्ठापन समारोह का अधिष्ठापन चेयरपर्सन गुरचरण सिंह भोला का बनना रहा । उल्लेखनीय है कि लायनिज्म में क्लब्स के संयुक्त अधिष्ठापन समारोह होना कोई नई या अनोखी बात नहीं है; उक्त समारोह में सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के किसी उम्मीदवार का कोई 'भूमिका' निभाना भी आश्चर्य की बात नहीं है - और यह बात भी अब दबी-छिपी नहीं रह गई है कि संयुक्त अधिष्ठापन समारोहों में किसी न किसी उम्मीदवार का आर्थिक सहयोग भी होता है, जिसके बदले में उसे उन क्लब्स का समर्थन मिलने की उम्मीद होती है । लेकिन 25 जनवरी को अंबाला के पाँच क्लब्स का जो संयुक्त अधिष्ठापन हुआ, उसमें नई और अनोखी बात यह हुई कि अधिष्ठापन चेयरपर्सन गुरचरण सिंह भोला नाम के उस व्यक्ति को बनाया गया, जिसका इन क्लब्स से किसी भी तरह का कोई संबंध नहीं है । गुरचरण सिंह भोला लायंस क्लब दिल्ली साऊथ के सदस्य हैं - अंबाला के क्लब्स के संयुक्त अधिष्ठापन समारोह में उनका अधिष्ठापन चेयरपर्सन बनना हर किसी के लिए हैरानी की बात थी । यह बात तो हर किसी को समझ में आई कि सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद का उम्मीदवार होने के नाते गुरचरण सिंह भोला ने उक्त अधिष्ठापन समारोह के आयोजन में कुछ आर्थिक सहयोग किया होगा; लेकिन यह बात किसी के गले नहीं उतरी कि उक्त आर्थिक सहयोग के बदले में गुरचरण सिंह भोला को अधिष्ठापन चेयरपर्सन क्यों बना दिया गया ? इस पद का अधिकारी तो अधिष्ठापित होने वाले पॉँच क्लब्स में से ही कोई हो सकता था ।
अब यह बात चली तो पोल खुली कि गुरचरण सिंह भोला ने उक्त अधिष्ठापन समारोह का खर्चा देना इसी शर्त पर स्वीकार किया था कि वही अधिष्ठापन चेयरपर्सन बनेंगे । उक्त समारोह की तैयारी से जुड़े एक पूर्व डिस्ट्रिक्ट गवर्नर के अनुसार, उन्होंने कहा था कि गुरचरण सिंह भोला को अधिष्ठापन चेयरपर्सन की बजाए और किसी रूप में 'रखा' जाए - लेकिन गुरचरण सिंह भोला इसके लिए तैयार नहीं हुए; उन्होंने साफ कहा कि समारोह का सारा खर्चा जब मैं दे रहा हूँ तो मैं ही अधिष्ठापन चेयरपर्सन बनूँगा । इस बात के सामने आने से अधिष्ठापित होने वाले क्लब्स के सदस्य चकराए कि समारोह का सारा खर्चा यदि गुरचरण सिंह भोला ने दिया था, तो फिर समारोह के खर्च के नाम पर उनसे पैसे क्यों लिए गए - और जो लिए गए, तो उनका हुआ क्या हुआ ? वह किसकी जेब में गए ? क्लब्स के सदस्यों के इन सवालों ने अधिष्ठापित होने वाले क्लब्स के अध्यक्षों को लपेटे में ले लिया । उन पर आरोप लगे कि अधिष्ठापन समारोह के आयोजन के नाम पर उन्होंने अपनी अपनी जेबें भरने का काम किया है - अधिष्ठापन समारोह के आयोजन के नाम पर उन्होंने क्लब के सदस्यों से भी पैसे ले लिए और सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के उम्मीदवार गुरचरण सिंह भोला से पैसे झटक लिए ।
अधिष्ठापित होने वाले क्लब्स के अध्यक्षों के लिए मुसीबत सेकेंड वाइस डिस्ट्रिक्ट गवर्नर पद के चुनाव में उनके समर्थन को लेकर गुरचरण सिंह भोला की आश्वस्ति व निश्चिंतता से भी बढ़ी । उनके समर्थन को लेकर गुरचरण सिंह भोला जितने आश्वस्त दिखे, उससे क्लब्स के सदस्यों को यह भी आशंका हुई है कि उनके अध्यक्षों ने गुरचरण सिंह भोला के साथ अपने वोटों की सौदेबाजी कर ली है, और उसके बदले में क्लब के ड्यूज चुकाने की जिम्मेदारी गुरचरण सिंह भोला को ही सौंप दी है । इसी से क्लब्स के सदस्यों का गुस्सा भड़का हुआ है । उनका आरोप है कि क्लब के अध्यक्ष एक तरफ तो सदस्यों से ड्यूज के पैसे ले रहे हैं, और दूसरी तरफ क्लब के वोटों को 'बेच' कर गुरचरण सिंह भोला से भी पैसे ऐंठ रहे हैं - और इस तरह न सिर्फ क्लब की, बल्कि लायनिज्म की भी सौदेबाजी कर रहे हैं । वर्षा मल्होत्रा, वरिंदर सिंह ढिल्लों, चंद्रगुप्त बंसल, राजिंदर कंसल तथा कुलभूषण गुप्ता को अपने अपने क्लब के सदस्यों के इस तरह के आरोपों के चलते न सिर्फ क्लब में बल्कि अंबाला और डिस्ट्रिक्ट के लायन सदस्यों के बीच भारी फजीहत और बदनामी झेलनी पड़ रही है । ऐसी स्थिति में, गुरचरण सिंह भोला से पैसे लेकर क्लब का अधिष्ठापन करना तथा क्लब के वोटों का सौदा करना उन्हें खासा भारी पड़ रहा है ।

Friday, February 3, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की दखलंदाजी को रोकने के लिए देवराज रेड्डी द्धारा आजमाई जा रही तरकीब सफल होगी क्या ?

नई दिल्ली । इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की दखलंदाजी को रोकने के लिए मौजूदा प्रेसीडेंट एम देवराज रेड्डी ने जो कदम उठाया है, उससे नेतागिरी झाड़ने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स बेचारे बड़े बौखलाए हुए हैं - और अपनी बौखलाहट में वह देवराज रेड्डी को तरह-तरह के आरोपों की आड़ में निशाना बना रहे हैं । मजे की बात लेकिन यह है कि इंस्टीट्यूट की सेंट्रल काउंसिल के मौजूदा अधिकतर सदस्य पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की नकेल कसने की देवराज रेड्डी की कार्रवाई से बहुत खुश हैं । उनका कहना है कि देवराज रेड्डी का काम करने का तरीका हालाँकि काफी मनमाना सा रहा है, और उनके कई फैसलों को लेकर आपत्ति की जा सकती है - लेकिन कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स की नेतागिरी दिखाने की कोशिशों पर लगाम लगाने की उन्होंने जो कार्रवाई की है, वह बहुत ही उचित है और यह कार्रवाई करके देवराज रेड्डी ने नेतागिरी करने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स को एक बड़ा संदेश दिया है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में नेतागिरी करने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स ने देवराज रेड्डी के संदेश को 'पढ़' तो लिया है - और इसीलिए वह बौखलाए हुए हैं; लेकिन देखने की बात यह होगी कि इंस्टीट्यूट के प्रेसीडेंट से मिले इस संदेश के बावजूद वह बाज आते हैं या नहीं ?
उल्लेखनीय है कि कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स की नेतागिरी को नियंत्रित करने के उद्देश्य से ही इस वर्ष इंस्टीट्यूट का वार्षिक समारोह 8 फरवरी को करने का फैसला किया गया है, हालाँकि पिछले वर्षों में यह 11 फरवरी को होता रहा है । हर वर्ष फरवरी की 12 तारीख को इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव होता है, इस वर्ष भी वह 12 फरवरी को ही होगा । पिछले वर्षों में होता यह रहा है कि 11 फरवरी को वार्षिक समारोह में शामिल होने के नाम पर इंस्टीट्यूट के पदाधिकारियों से मिलने-जुलने का मौका बनाने की आड़ में कुछेक पूर्व प्रेसीडेंट्स वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में दखलंदाजी करते रहे हैं । देवराज रेड्डी ने इस वर्ष वार्षिक समारोह चुनाव की तारीख से चार दिन पहले आयोजित करके पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की चालबाजी को फेल करने की तैयारी की है । आठ फरवरी को आयोजित हो रहे इंस्टीट्यूट के 67वें वार्षिक समारोह में शामिल होकर - यदि शामिल हुए तो - ग्यारह फरवरी की शाम/रात तक काउंसिल सदस्यों से मिलने का बहाना पाना अब पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए मुश्किल होगा; और इसलिए उम्मीद की जा रही है कि पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में इस वर्ष पिछले वर्षों की तरह दखलंदाजी करना संभव - और/या आसान नहीं होगा ।
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की भूमिका की कहानी भी कम दिलचस्प नहीं है । अधिकतर वाइस प्रेसीडेंट यह 'देख/सुन' कर आश्चर्य से भर जाते हैं कि उन्हें वाइस प्रेसीडेंट चुनवाने/बनवाने के लिए कितने कितने पूर्व प्रेसीडेंट्स मेहनत कर रहे थे ! दरअसल हर वर्ष चुने जाने वाले वाइस प्रेसीडेंट को चुनवाने का श्रेय लेने के लिए कई कई पूर्व प्रेसीडेंट्स आगे आ जाते हैं और वह खुद ही अपनी पीठ थपथपाते हुए दावा करने लगते हैं कि 'इसे' मैंने ही तो जितवाया है । वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति के जाल-जंजाल में शामिल रहे सेंट्रल काउंसिल के भूतपूर्व व मौजूदा सदस्यों का कहना है कि जो पूर्व प्रेसीडेंट्स नेता बने फिरते हैं, तथा 'इस' को और 'उस' को जितवाने का दावा करते हैं - वास्तव में उनकी कोई राजनीतिक औकात नहीं होती है - वह सिर्फ दलाल टाइप के लोग होते हैं; जो अपना स्वार्थ साधने के लिए चुनावी राजनीति में जबर्दस्ती घुस जाते हैं और निर्णय को प्रभावित करने का दावा करते हैं । हर वर्ष की चुनावी जीत का वह इस उम्मीद से खुद ही श्रेय ले लेते हैं, ताकि अगले वर्ष सफल होने की इच्छा रखने वाले उम्मीदवार उन्हें तवज्जो दें और उनके स्वार्थ पूरे करने में सहायक बनें ।
इंस्टीट्यूट के वार्षिक समारोह के अगले दिन ही वाइस प्रेसीडेंट का चुनाव होने की व्यवस्था ने पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं को अपना उक्त खेल जमाने की सुविधा दे रखी थी; जिसे लेकिन इस वर्ष देवराज रेड्डी ने वार्षिक समारोह को चार दिन पहले करने की व्यवस्था करके छीन लिया है । माना जा रहा है कि देवराज रेड्डी के इस फैसले के चलते पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं के लिए इस वर्ष वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी सक्रियता 'दिखा' पाना मुश्किल होगा । हालाँकि पूर्व प्रेसीडेंट्स नेताओं की चालबाजियों से परिचित लोगों का यह भी मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी सक्रियता और भूमिका दिखाने वाले पूर्व प्रेसीडेंट्स चूँकि दलाल किस्म के लोग हैं, इसलिए वह अपनी हरकत से बाज तो नहीं ही आयेंगे - और वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में अपनी भूमिका को किसी न किसी तरीके से 'दिखाने' का प्रयास तो करेंगे ही - वह क्या प्रयास करेंगे, यह देखना दिलचस्प होगा ।

Wednesday, February 1, 2017

इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स की नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में चेयरमैन पद की चुनावी राजनीति में बेनामी चिट्ठी का सहारा लेने में राकेश मक्कड़ पर शक जाने से माहौल गरमाया

नई दिल्ली । मोहित बंसल के एक पुराने आपराधिक मुकदमे को नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति में जिस तरह नकाब में छिप कर घसीट लिया गया है, उससे संकेत मिल रहा है कि नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की राजनीति नीचता और घटियापन की अभी और सीढ़ियाँ लुढ़केगी । मोहित बंसल वरिष्ठ चार्टर्ड एकाउंटेंट हैं और नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल में वाइस चेयरपर्सन पूजा बंसल के पति हैं - दरअसल पूजा बंसल के पति होने के नाते ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति में वह मोहरा बना दिए गए हैं । पूजा बंसल 13 सदस्यीय रीजनल काउंसिल में आठ सदस्यों वाले पॉवर-ग्रुप की सदस्य हैं, और इसी नाते से उन्हें वाइस चेयरपर्सन का पद मिला है । दीपक गर्ग के चेयरमैन पद से इस्तीफा देने के बाद, उन्हें उनकी जिम्मेदारियाँ सँभालने/निभाने का जिम्मा मिला । पॉवर-ग्रुप के नेताओं को यह फैसला इंस्टीट्यूट प्रशासन का डंडा पड़ने के बाद, वास्तव में मजबूरी में करना पड़ा । इसीलिए पूजा बंसल को वह चेयरपर्सन के रूप में स्वीकार नहीं कर पाए । इंस्टीट्यूट के नियम/कायदों को दरकिनार करके मनमाने तरीके से पॉवर-ग्रुप की एक टीम बना ली गई, जिसके मुखिया राकेश मक्कड़ बन गए । राकेश मक्कड़ अपने आपको चेयरमैन के रूप में दिखाने/जताने लगे, और इस कोशिश में बचकानी किस्म की हरकतें करने लगे । होटल ली मेरिडियन में आयोजित हुई रीजनल कॉन्फ्रेंस में उनके रंग-ढंग देख कर एक अतिथि स्पीकर ने तो उन्हें चेयरमैन कहते हुए संबोधित किया - झेंपते हुए उन्होंने हालाँकि तुरंत सफाई दी कि वह चेयरमैन नहीं हैं; लेकिन इस 'घटना' से लोगों को राकेश मक्कड़ का मजाक बनाने का मौका तो मिला ही, और उन्होंने राकेश मक्कड़ से कहा भी कि जब तुम चेयरमैन नहीं हो - तो लोगों के बीच चेयरमैन के रूप में अपने आपको दिखाने/जताने का प्रयत्न क्यों करते रहते हो ?
राकेश मक्कड़ की इन हरकतों से पूजा बंसल को चेयरपर्सन पद का कार्यभार मिलने का 'हक' नहीं मिल सका, और काउंसिल के कामकाज में उनकी बातों को अनसुना किया जाने लगा - जिसके चलते पूजा बंसल ने अपने आप को पॉवर-ग्रुप में अलग-थलग व अपमानित पाया । काउंसिल के कामकाज में होने वाली मनमानियों को पूजा बंसल ने चूँकि चुपचाप स्वीकार करने से इंकार किया और हर गलत बात का विरोध करना शुरू किया, उससे पॉवर-ग्रुप के नेताओं ने समझ लिया कि काउंसिल के अगले चेयरमैन के चुनाव में वह पॉवर-ग्रुप का हिस्सा नहीं रहेंगी । पॉवर-ग्रुप के बाकी बचे सात सदस्यों में चेयरमैन पद के लिए दो उम्मीदवारों - राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना को आमने-सामने देखा जा रहा है; इसलिए आम समझ यह बनी है कि अगले चेयरमैन का चुनाव एक दूसरा पॉवर-ग्रुप करेगा और एक नया समीकरण बनेगा । इस बीच एक घटना यह हुई कि पॉवर-ग्रुप की एक मीटिंग में मोहित बंसल की उपस्थिति के विरोध को लेकर विवेक खुराना की मोहित बंसल से झड़प हो गई । मोहित बंसल का तर्क रहा कि पॉवर-ग्रुप में पूजा बंसल को शामिल करने को लेकर जो भी बातें हुईं थीं, उनमें तो उनके शामिल होने पर किसी को कभी कोई ऐतराज नहीं हुआ, बल्कि अधिकतर मौकों पर उनसे ही बातें हुईं - अब अचानक से उनकी उपस्थिति पर ऐतराज क्यों होने लगा है ? मोहित बंसल की यह बात फिर झड़प में और तू-तू मैं-मैं में बदल गई । इस घटना से पूजा बंसल की पॉवर-ग्रुप के सदस्यों से दूरी और बढ़ गई ।
इसके बाद ही मोहित बंसल के एक पुराने आपराधिक मुकदमे का हवाला देते हुए एक बेनामी चिट्ठी लोगों को डाक से मिलने लगी । जिस मुकदमे में मोहित बंसल वर्षों पहले अंततः बरी हो गए और आरोप-मुक्त हो गए, इस बेनामी चिट्ठी के लेखक चाहते हैं कि उक्त मुकदमे के कारण इंस्टीट्यूट प्रशासन मोहित बंसल को सजा दे - और पूजा बंसल को भी सजा दे । अब यह कौन सा कानून कहता है कि कोई व्यक्ति यदि अपराध करे, तो सजा उसके साथ-साथ उसके परिवार के सदस्यों को भी मिले ? जाहिर है कि इस बेनामी चिट्ठी के लेखक को कानून की और न्याय की बात से कोई मतलब नहीं है, वास्तव में वह किसी को सजा भी नहीं दिलाना चाहता है - वह तो मोहित बंसल के मुकदमे का वास्ता देकर पूजा बंसल को ब्लैकमेल करना चाहता है । यदि ऐसा नहीं होता, तो कम-से-कम इतना साहस तो वह जरूर दिखाता ही कि अपने नाम और पूरे परिचय से शिकायत करता और चिट्ठी लिखता - न कि नकाब ओढ़ कर यह सब करता । चिट्ठी मिलने और इसकी चर्चा छिड़ने पर लोगों को यह समझने में देर नहीं लगी कि यह चिट्ठी नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल के पॉवर-ग्रुप में बैलेंस और समर्थन बनाने के लिए चल रहे संघर्ष का एक घिनौना हथकंडा है ।
इतना समझने के बाद लोगों ने जब यह समझने की कोशिश की कि इस चिट्ठी के पीछे कौन हो सकता है, तो आश्चर्यजनक रूप से सभी के शक के घेरे में राकेश मक्कड़ का नाम आया है । अपराधशास्त्र का सामान्य सिद्धांत है कि किसी भी अपराध में सबसे पहले यह देखा जाता है कि इससे आखिर फायदा किसे होगा ? चेयरमैन पद को लेकर राकेश मक्कड़ में गहरी लालसा देखी गई है; उनमें यह लालसा इतनी गहरी रही है कि पूजा बंसल को चेयरपर्सन पद का कार्य-भार मिलने के बाद भी वह - जैसा कि पहले ही कहा/बताया जा चुका है कि - अपने आप को तरह तरह से चेयरमैन दिखाने/जताने का काम करते । राकेश मक्कड़ अपने आपको अगला चेयरमैन मान कर चल रहे हैं; पॉवर-ग्रुप के दूसरे सदस्यों के समर्थन का तो उन्हें विश्वास है, लेकिन जो हालात बने उसमें अलग अलग कारणों से पूजा बंसल और विवेक खुराना उनका काम बिगाड़ते हुए नजर आए - लिहाजा इनसे निपटना उन्हें जरूरी लगा । लोगों को लगता है कि मोहित बंसल को निशाने पर लेती बेनामी चिट्ठी के जरिए राकेश मक्कड़ ने विवेक खुराना और पूजा बंसल को एकसाथ साधने की तिकड़म लगाई है । लोगों के बीच चर्चा है कि राकेश मक्कड़ को विश्वास रहा होगा कि चूँकि कुछ ही दिन पहले विवेक खुराना और मोहित बंसल की झड़प हुई है, इसलिए इस चिट्ठी के पीछे विवेक खुराना का हाथ 'देखा' जायेगा - और इस तरह यह चिट्ठी विवेक खुराना और पूजा बंसल को एक साथ लाइन पर ले आयेगी ।
मोहित बंसल को बदनाम करने वाली बेनामी चिट्ठी के पीछे राकेश मक्कड़ पर शक जाने और उसकी चर्चा होने के साथ ही नॉर्दर्न इंडिया रीजनल काउंसिल की चुनावी राजनीति में अचानक से तेज उबाल आ गया है । चेयरमैन पद के लिए पॉवर-ग्रुप में नितिन कँवर का नाम भी सुनाई पड़ने लगा है । नितिन कँवर के नजदीकियों के अनुसार, नितिन कँवर को उम्मीद लगी है कि पॉवर-ग्रुप में राकेश मक्कड़ और विवेक खुराना के बीच जो बबाल मचा है, उसके चलते हो सकता है कि उनकी लॉटरी निकल आए । लोगों को लेकिन यह भी लगता है कि तमाम बदनामी और फजीहत के बावजूद राकेश मक्कड़ चेयरमैन पद पाने की अपनी कोशिशों को आसानी से छोड़ेंगे नहीं, इसलिए चेयरमैन पद की राजनीति में अभी और तमाशा होगा तथा घटियापन और टुच्चेपन के अभी और दृश्य देखने को मिलेंगे ।