गाजियाबाद
। जुम्मा जुम्मा चार दिन पहले गवर्नर पद की कुर्सी तक पहुँचने की लाइन में
लगने का नंबर पाए दीपक गुप्ता ने क्लब्स के पदाधिकारियों को जो तेवर
दिखाने शुरू किए हैं, उसके कारण क्लब्स के पदाधिकारी सकते में हैं और वह
सोचने लगे हैं कि दीपक गुप्ता को वह झेलेंगे कैसे ? मजे की बात यह हुई है कि जिन क्लब्स के पदाधिकारी बढ़चढ़ कर दीपक गुप्ता को समर्थन और वोट देकर जितवाने का श्रेय ले रहे थे, वही अब दीपक
गुप्ता के रवैये और व्यवहार की शिकायत करने लगे हैं । शिकायत एक ही है और
वह यह कि दीपक गुप्ता उनके फोन न तो उठाते हैं और न ही वापस कॉल करते हैं;
किसी तरह बात हो पाती है और उस बात में उनका सम्मान करने के लिए उन्हें
आमंत्रित करो तो वह नसीहत देने लगते हैं कि समय और तारीख तय करने से पहले
उनसे पूछ तो लेते ! क्लब्स के जो पुराने सदस्य हैं और पदाधिकारी रह चुके
हैं, वह दीपक गुप्ता के रवैये और व्यवहार की बातें सुन कर कहने/बताने लगे
हैं कि पिछले गवर्नर्स भी अपने रवैये और व्यवहार के चलते लोगों की आलोचना
का शिकार बनते/होते रहे हैं - लेकिन चुने जाने के महीने भर से भी कम समय
के भीतर दीपक गुप्ता जिस तरह से क्लब्स के पदाधिकारियों के निशाने पर आ रहे
हैं, वह सचमुच डिस्ट्रिक्ट व रोटरी के साथ-साथ दीपक गुप्ता के लिए भी
चिंता की बात होनी चाहिए ।
दीपक
गुप्ता का अपने समर्थकों के साथ 'हनीमून पीरियड' जितनी जल्दी से खत्म होता
दिख रहा है, उससे कुछेक लोगों को चिंता हुई है तो अन्य कुछेक लोगों को मजे
लेने का मौका मिला है । वरिष्ठ व अनुभवी रोटेरियंस का मानना/कहना है कि
डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी चुने जाने के बाद के कुछेक महीने तो जीतने वाले
के बारे में अच्छी अच्छी बातें होती ही हैं, लेकिन दीपक गुप्ता एक महीने के भीतर ही जिस तरह से अपने ही वोटरों की
आलोचना का शिकार होने लगे हैं - उससे उन्हें यह सबक लेने की जरूरत है कि
जीतने के बाद का समय उम्मीदवार बने होने के समय से कम मुश्किल और
चुनौतीपूर्ण नहीं होता है । लोगों का कहना है कि दीपक गुप्ता को समझना
चाहिए कि वह चुनाव जीते हैं और डिस्ट्रिक्ट गवर्नर नॉमिनी बने हैं, तो
क्लब्स में उनका सम्मान करने के लिए उन्हें आमंत्रित किया ही जायेगा और
क्लब का कार्यक्रम क्लब्स के पदाधिकारी ही तय करेंगे - समय और तारीख का
एडजस्टमेंट दीपक गुप्ता को ही करना पड़ेगा । और यह एडजस्टमेंट करते समय
'शराफत' दीपक गुप्ता को ही दिखानी पड़ेगी - वह यदि नसीहत देने लगेंगे, तो
क्लब्स के पदाधिकारियों को बुरा लगेगा ही - और फिर वह बात का बतंगड़
बनायेंगे ही । जाहिर है कि सावधानी दीपक गुप्ता को ही बरतनी है - जिस पर
उन्होंने ध्यान नहीं दिया, और वह अपने ही समर्थकों के निशाने पर आ गए ।
कुछेक
क्लब्स के पदाधिकारियों की तरफ से तो यहाँ तक शिकायतें सुनने को मिली हैं
कि दीपक गुप्ता अपने सम्मान कार्यक्रम को 'अच्छे' से करने तथा आमंत्रितों
की संख्या बढ़ाने तक के लिए दबाव बनाते हैं । कुछेक क्लब्स में हुए सम्मान
कार्यक्रम की उन्होंने यह कहते हुए शिकायत तक की कि वहाँ सम्मान के नाम पर महज खानापूर्ति ही हुई है, वहाँ नाहक ही उनका समय खराब हुआ । कुछेक
मौकों पर दीपक गुप्ता यह शिकायत करते हुए भी सुने गए कि पिछले वर्ष सुभाष
जैन के जीतने पर कई क्लब्स ने उनका सम्मान तो बड़े जोरशोर से किया था, जिसकी
डिस्ट्रिक्ट में भी खूब खूब चर्चा रही/हुई थी, लेकिन इस बार क्लब्स उनका
सम्मान फीके फीके रूप में कर रहे हैं - और डिस्ट्रिक्ट में कहीं कोई चर्चा
तक नहीं होती, उन्हें ही दूसरों को बताना पड़ता है कि फलाँ फलाँ क्लब में
उनका सम्मान हो चुका है । इस तरह की बातें सुन कर दीपक गुप्ता की उम्मीदवारी का समर्थन करने वाले लोगों का कहना है कि लगता है कि लोगों ने सहानुभूति में दीपक गुप्ता को वोट तो दे दिया, लेकिन उनको जितवा कर भी लोग खुश नहीं हैं - जिसका नतीजा सम्मान कार्यक्रमों में देखने को मिल रहा है । इस वर्ष हो रहे सम्मान कार्यक्रमों में पिछले वर्ष के सम्मान कार्यक्रमों जैसा जोश और उत्सवी माहौल यदि नहीं दिख रहा है, तो
इसके लिए अधिकतर लोग दीपक गुप्ता को ही जिम्मेदार ठहरा रहे हैं - लोगों का
कहना है कि दीपक गुप्ता का रूखा रूखा सा और शिकायती अंदाज वाला रवैया व व्यवहार 'देख' कर लोग जोश के साथ उनके लिए कुछ करने को लेकर उत्साहित नहीं हुए हैं । ऐसी स्थिति में उनकी नसीहतें सुन कर लोग भड़क और जा रहे हैं ।
चुनावी विजेता के रूप में लोगों के साथ बनने वाला उनका 'हनीमून पीरियड'
जितनी तेजी से खत्म होता नजर आ रहा है, उससे डिस्ट्रिक्ट में एक अलग नजारा
ही बन रहा है ।