नई दिल्ली । बाबु अब्राहम ने
इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड एकाउंटेंट्स के वाइस प्रेसीडेंट पद के लिए अपनी
उम्मीदवारी के पक्ष में समर्थन जुटाने के लिए जिस तरह की सक्रियता दिखाई
है, उससे इंस्टीट्यूट के पूर्व प्रेसीडेंट एनडी गुप्ता को अपने बेटे नवीन
गुप्ता के लिए मामला एक बार फिर बिगड़ता नजर आ रहा है । बाबु अब्राहम की
अचानक पैदा हुई सक्रियता के पीछे एनडी गुप्ता को दरअसल मौजूदा प्रेसीडेंट
देवराज रेड्डी की 'राजनीति' दिख रही है, और इसीलिए एनडी गुप्ता को नवीन
गुप्ता के लिए बैठाया गया अपना समीकरण छिन्न-भिन्न होता हुआ लग रहा है ।
इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट चुनाव में भूमिका निभाने में दिलचस्पी लेने
वाले जो पूर्व प्रेसीडेंट्स एनडी गुप्ता को नवीन गुप्ता के लिए समर्थन
जुटाने में सहयोग करते लग रहे थे, उनके भी दोहरे रवैये सामने आए हैं - और
इस बात ने भी एनडी गुप्ता को बुरी तरह निराश किया हुआ है; हालाँकि इस सबके
बावजूद उन्होंने मैदान और उम्मीद अभी छोड़ी नहीं है । उनके नजदीकियों का
कहना है कि उनका दावा है कि इस बार उन्होंने ऐसी गोटियाँ फिट की हैं कि
नवीन गुप्ता को वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने से कोई नहीं रोक सकेगा । यह
बताने वाले नजदीकियों का हालाँकि यह भी कहना है कि इस तरह के दावे एनडी
गुप्ता दो-तीन बार पहले भी कर चुके हैं; पिछले वर्ष तो बल्कि नवीन गुप्ता
के वाइस प्रेसीडेंट चुने जाने को लेकर एनडी गुप्ता पूरी तरह आश्वस्त थे ।
इसीलिए, नीलेश विकमसे के मैदान मार लेने के बाद एनडी गुप्ता और उनके
साथियों ने मामूली अंतर से नवीन गुप्ता के पीछे रह जाने की बात प्रचारित की
- हालाँकि काउंसिल सदस्यों का कहना रहा कि चुनावी नतीजे में यह पता
लगना/लगाना मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव होता है कि कौन कितना आगे-पीछे
रहा; इसलिए कई लोगों को लगा कि एनडी गुप्ता और उनके साथियों ने अपने
दावे के फेल हो जाने की शर्मिंदगी से बचने के लिए मामूली अंतर की बात
प्रचारित की ।
मजे की बात है कि नवीन गुप्ता का इस बार का समर्थन जुटाओ अभियान इसी तर्क पर काम कर रहा है कि पिछली बार जो मामूली सा अंतर रह गया था, उसे इस बार भर दिया जाए और नवीन गुप्ता का काम बन जाए । नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी की बागडोर पर्दे के पीछे से सँभाले हुए उनके पिता एनडी गुप्ता यही तर्क देकर नवीन गुप्ता के लिए समर्थन पक्का करने का प्रयास कर रहे हैं । उनका प्रयास इस बार कामयाब होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - लेकिन उनकी सक्रियता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को खासा दिलचस्प जरूर बना दिया है । वास्तव में, नवीन गुप्ता जब जब वाइस प्रेसीडेंट पद के गंभीर उम्मीदवार बने हैं - तब तब वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति का माहौल बेहद रोमांचक बना है, और इसका श्रेय उनके पिता एनडी गुप्ता को जाता है । इसका कारण यह होता है कि दूसरे उम्मीदवार तो समर्थन जुटाने के लिए खुद जुटते हैं, जबकि नवीन गुप्ता के मामले में उनके साथ साथ उनके पिता भी जुटते हैं और अपनी पहचान का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं - इससे नवीन गुप्ता के अभियान में नाटकीयता बढ़ जाती है । नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों ने कई बार सुझाव दिया है कि एनडी गुप्ता के कारण नवीन गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान होता है, और इसलिए एनडी गुप्ता को उनके चुनाव अभियान से दूर ही रहना चाहिए; एनडी गुप्ता इस सुझाव को मान भी लेते हैं तथा नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को आश्वस्त भी करते हैं कि वह नवीन गुप्ता के चुनाव के झमेले में अब आगे नहीं पड़ेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता जाता है, एनडी गुप्ता अपना आश्वासन भूल जाते हैं और नवीन गुप्ता के चुनाव की कमान संभाल लेते हैं - और इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनावी परिदृश्य को रोचक बना देते हैं ।
रोचक बनाने के साथ-साथ इस बार लेकिन एनडी गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को आर-पार का मामला भी बना दिया है । इसीलिए नवीन गुप्ता के लिए इस बार उन्होंने अच्छी फील्डिंग लगाने की तैयारी की है । किंतु बाबु अब्राहम उनकी तैयारी में सेंध लगाते नजर आ रहे हैं । बाबु अब्राहम की उम्मीदवारी की चर्चा तो हालाँकि थी, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह ज्यादा सक्रिय दिख नहीं रहे थे - जिसे एनडी गुप्ता अपनी 'जीत' के रूप में व्याख्यायित कर रहे थे । उनकी तरफ से बताया जा रहा था कि उनकी सिफारिश पर देवराज रेड्डी ने बाबु अब्राहम को 'पीछे रहने' के लिए राजी कर लिया था, ताकि इस बार नवीन गुप्ता का काम जाए । किंतु अब जब बाबु अब्राहम अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोर-शोर से सक्रिय हो गए हैं, तो एनडी गुप्ता को अपनी फील्डिंग बिगड़ती नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि देवराज रेड्डी वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई अलग खेल करना चाहते हैं । नवीन गुप्ता के कुछेक शुभचिंतक यद्यपि दावा कर रहे हैं कि बाबु अब्राहम की सक्रियता से नवीन गुप्ता का गणित मजबूत ही होगा, क्योंकि बाबु अब्राहम की सक्रियता नवीन गुप्ता के नार्दर्न रीजन के मुकाबलेबाजों को नुकसान पहुँचाएगी ।
असल में, नवीन गुप्ता के लिए मुख्य खतरा और चुनौती नॉर्दर्न रीजन के दूसरे उम्मीदवारों की तरफ से देखी जा रही है । नॉर्दर्न रीजन से संजय अग्रवाल, अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जा रहा है - और इनकी उम्मीदवारी की गंभीरता ही नवीन गुप्ता के लिए जंजाल बनी है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में से कुछेक का यह भी मानना और कहना है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों के बीच की आपसी होड़ को देखते हुए ही बाबु अब्राहम ने अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेना शुरू किया है, उन्हें लगा है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों की आपसी होड़ के चलते उनका काम शायद बन जाए । हालाँकि कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव इतना अनिश्चितताभरा है कि उसके नतीजे को लेकर कोई भी दावा करना तो दूर, अनुमान तक लगाना मुश्किल है । यह चुनाव वास्तव में धोखों का चुनाव है; इस चुनाव में उम्मीदवारों को इतने 'धोखे' मिलते हैं कि अब कोई उनका बुरा भी नहीं मानता है । हाँ, सीधे-सीधे मिलने वाले धोखे लोगों के बीच गपशप का विषय जरूर बनते हैं । जैसे, चुनाव से ठीक पहले राजेश शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह को तगड़ा झटका दिया है । काउंसिल सदस्यों के बीच इन दोनों की दोस्ती खासी मशहूर रही है, और इस नाते मुकेश कुशवाह को राजेश शर्मा के समर्थन का पक्का विश्वास था - लेकिन 'कहना कुछ और करना कुछ' वाली फितरत रखने वाले राजेश शर्मा ने ऐन अंतिम वक्त पर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह ही नहीं, दूसरे लोगों को भी सबक दे दिया है कि चुनावी राजनीति में दोस्तों के भरोसे नहीं रहना चाहिए !
मजे की बात है कि नवीन गुप्ता का इस बार का समर्थन जुटाओ अभियान इसी तर्क पर काम कर रहा है कि पिछली बार जो मामूली सा अंतर रह गया था, उसे इस बार भर दिया जाए और नवीन गुप्ता का काम बन जाए । नवीन गुप्ता की उम्मीदवारी की बागडोर पर्दे के पीछे से सँभाले हुए उनके पिता एनडी गुप्ता यही तर्क देकर नवीन गुप्ता के लिए समर्थन पक्का करने का प्रयास कर रहे हैं । उनका प्रयास इस बार कामयाब होगा या नहीं, यह तो बाद में पता चलेगा - लेकिन उनकी सक्रियता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को खासा दिलचस्प जरूर बना दिया है । वास्तव में, नवीन गुप्ता जब जब वाइस प्रेसीडेंट पद के गंभीर उम्मीदवार बने हैं - तब तब वाइस प्रेसीडेंट पद की चुनावी राजनीति का माहौल बेहद रोमांचक बना है, और इसका श्रेय उनके पिता एनडी गुप्ता को जाता है । इसका कारण यह होता है कि दूसरे उम्मीदवार तो समर्थन जुटाने के लिए खुद जुटते हैं, जबकि नवीन गुप्ता के मामले में उनके साथ साथ उनके पिता भी जुटते हैं और अपनी पहचान का फायदा उठाने का प्रयास करते हैं - इससे नवीन गुप्ता के अभियान में नाटकीयता बढ़ जाती है । नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों ने कई बार सुझाव दिया है कि एनडी गुप्ता के कारण नवीन गुप्ता को फायदा होने की बजाए नुकसान होता है, और इसलिए एनडी गुप्ता को उनके चुनाव अभियान से दूर ही रहना चाहिए; एनडी गुप्ता इस सुझाव को मान भी लेते हैं तथा नवीन गुप्ता के समर्थकों व शुभचिंतकों को आश्वस्त भी करते हैं कि वह नवीन गुप्ता के चुनाव के झमेले में अब आगे नहीं पड़ेंगे, लेकिन जैसे जैसे चुनाव नजदीक आता जाता है, एनडी गुप्ता अपना आश्वासन भूल जाते हैं और नवीन गुप्ता के चुनाव की कमान संभाल लेते हैं - और इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनावी परिदृश्य को रोचक बना देते हैं ।
रोचक बनाने के साथ-साथ इस बार लेकिन एनडी गुप्ता ने वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव को आर-पार का मामला भी बना दिया है । इसीलिए नवीन गुप्ता के लिए इस बार उन्होंने अच्छी फील्डिंग लगाने की तैयारी की है । किंतु बाबु अब्राहम उनकी तैयारी में सेंध लगाते नजर आ रहे हैं । बाबु अब्राहम की उम्मीदवारी की चर्चा तो हालाँकि थी, लेकिन अपनी उम्मीदवारी को लेकर वह ज्यादा सक्रिय दिख नहीं रहे थे - जिसे एनडी गुप्ता अपनी 'जीत' के रूप में व्याख्यायित कर रहे थे । उनकी तरफ से बताया जा रहा था कि उनकी सिफारिश पर देवराज रेड्डी ने बाबु अब्राहम को 'पीछे रहने' के लिए राजी कर लिया था, ताकि इस बार नवीन गुप्ता का काम जाए । किंतु अब जब बाबु अब्राहम अपनी उम्मीदवारी को लेकर जोर-शोर से सक्रिय हो गए हैं, तो एनडी गुप्ता को अपनी फील्डिंग बिगड़ती नजर आ रही है । उन्हें लग रहा है कि देवराज रेड्डी वाइस प्रेसीडेंट के चुनाव में कोई अलग खेल करना चाहते हैं । नवीन गुप्ता के कुछेक शुभचिंतक यद्यपि दावा कर रहे हैं कि बाबु अब्राहम की सक्रियता से नवीन गुप्ता का गणित मजबूत ही होगा, क्योंकि बाबु अब्राहम की सक्रियता नवीन गुप्ता के नार्दर्न रीजन के मुकाबलेबाजों को नुकसान पहुँचाएगी ।
असल में, नवीन गुप्ता के लिए मुख्य खतरा और चुनौती नॉर्दर्न रीजन के दूसरे उम्मीदवारों की तरफ से देखी जा रही है । नॉर्दर्न रीजन से संजय अग्रवाल, अतुल गुप्ता और विजय गुप्ता की उम्मीदवारी को गंभीरता से लिया जा रहा है - और इनकी उम्मीदवारी की गंभीरता ही नवीन गुप्ता के लिए जंजाल बनी है । इंस्टीट्यूट के वाइस प्रेसीडेंट पद के चुनाव में दिलचस्पी रखने वाले लोगों में से कुछेक का यह भी मानना और कहना है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों के बीच की आपसी होड़ को देखते हुए ही बाबु अब्राहम ने अपनी उम्मीदवारी को गंभीरता से लेना शुरू किया है, उन्हें लगा है कि नॉर्दर्न रीजन के उम्मीदवारों की आपसी होड़ के चलते उनका काम शायद बन जाए । हालाँकि कई लोगों का यह भी मानना और कहना है कि वाइस प्रेसीडेंट पद का चुनाव इतना अनिश्चितताभरा है कि उसके नतीजे को लेकर कोई भी दावा करना तो दूर, अनुमान तक लगाना मुश्किल है । यह चुनाव वास्तव में धोखों का चुनाव है; इस चुनाव में उम्मीदवारों को इतने 'धोखे' मिलते हैं कि अब कोई उनका बुरा भी नहीं मानता है । हाँ, सीधे-सीधे मिलने वाले धोखे लोगों के बीच गपशप का विषय जरूर बनते हैं । जैसे, चुनाव से ठीक पहले राजेश शर्मा ने अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह को तगड़ा झटका दिया है । काउंसिल सदस्यों के बीच इन दोनों की दोस्ती खासी मशहूर रही है, और इस नाते मुकेश कुशवाह को राजेश शर्मा के समर्थन का पक्का विश्वास था - लेकिन 'कहना कुछ और करना कुछ' वाली फितरत रखने वाले राजेश शर्मा ने ऐन अंतिम वक्त पर अपनी उम्मीदवारी प्रस्तुत करके मुकेश कुशवाह ही नहीं, दूसरे लोगों को भी सबक दे दिया है कि चुनावी राजनीति में दोस्तों के भरोसे नहीं रहना चाहिए !